राज्यसभा : भाजपा ने दुष्यंत गौतम व रामचंद्र जांगड़ा को बनाया उम्मीदवार
चंडीगढ़:
तमाम अटकलों व सम्भावनाओं के बीच भाजपा ने जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए एक टिकट पिछड़ा वर्ग से भाजपा नेता रामचन्द्र जांगड़ा को दिया है तो दूसरा टिकट दलित नेता व भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दुष्यंत गौतम को थमा दिया है। पिछले चुनाव में रामचन्द्र जांगड़ा का नाम काफी चला था लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दी थी।
चर्चा में नहीं था नाम, फिर भी सफल रहे टिकट लेने में
इस बार इन दोनों नेताओं का नाम कहीं भी चर्चा में नहीं था, लेकिन पार्टी ने उनकी निष्ठा को व जातिगत समीकरणों के चलतेे उन्हें उम्मीदवार बना दिया है। विधानसभा में दलगत समीकरणों के चलते भाजपा उम्मीदवारों की जीत तय है।
हुड्डा के गढ़ गोहाना से हैं जांगड़ा
रामचंद्र जांगड़ा पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले गोहाना से हैं। वह इस सीट से विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। जांगड़ा मूल रूप से रोहतक जिले के महम के रहने वाले हैैं। भाजपा सरकार ने उन्हें हरियाणा पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग कल्याण बोर्ड का चेयरमैन बनाया हुआ है। रामचंद्र जांगड़ा की सियासी पृष्ठभूमि पर नजर डालें तो भाजपा ने ऐसे शख्स पर दांव खेला है, जो चुनावी दंगल में काफी मंझा हुआ है। हालांकि उन्हें चुनावी रण में अभी तक कोई कामयाबी नहीं मिल पाई।
कई बार चुनाव लड़ चुके हैं जांगड़ा
उनकी शुरुआत लोकदल (बहुगुणा) के साथ हुई थी। वह 1987 में सफीदों से उम्मीदवार बनाए गए लेकिन हार गए। हरियाणा विकास पार्टी के टिकट पर वर्ष 1991 में महम और फिर करनाल से वर्ष 2004 में विधानसभा चुनाव में उतारे गए। फिर उन्होंने भाजपा का दामन थामा। भाजपा में उन्हें तीन बार प्रदेश उपाध्यक्ष और दो बार ओबीसी मोर्चे का उपाध्यक्ष बनाया गया। वह पिछड़ा वर्ग मोर्चा के अध्यक्ष भी रहे।
भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं गौतम
पूर्वी दिल्ली के कोंडली विधानसभा सीट से भाजपा के प्रत्याशी रहे दुष्यंत कुमार गौतम का जन्म 29 सिंतबर 1957 को दिल्ली के पदम सिंह गौतम के घर हुआ। जिस समय दुष्यंत ने राजनीति में कदम रखा, उस समय देश में आपातकाल लगी हुई थी। अपनी पढा़ई खत्म कर वे एवीबीपी के मंडल अध्यक्ष बने। इस दौरान उन्होंने दलित मुद्दों को बखुबी उठाकर लोगों के सामने रखा जिसके बाद उन्हें अनुसूचित मोर्चे का उपाध्यक्ष बना दिया गया। वे तीन बार भाजपा अनुसूचित मोर्चा के अध्यक्ष बने। 1997 में दुष्यंत पहली बार जिला पार्षद का चुनाव लडा़ जिसमें उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। वह फिलहाल भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।