Friday, December 27
Sarika Tiwari Editor, demokraticfront.com

आज सुबह ही एक दैनिक अंग्रेजी अखबार पढ़ते समय उसका एडवरटाइजमेंट पुल आउट देखते ही डिजिटल दुनिया के शक्ति प्रदर्शन की ओर ध्यान चला गया कि किस तरह लगातार मीडिया यानी अखबारों में रोजगार के अवसर कम से कमतर होते जा रहे हैं । कारण, मीडिया के बदलते रूप खासकर डिजिटलाइजेशन ने अखबारी दुनिया पर ठोस प्रहार किया है। बड़े-बड़े अखबारों में जहां पहले स्पेस मार्केटिंग और सरकुलेशन के पास संस्थान का बड़ा हिस्सा हुआ करता था वहीं आज विज्ञापन से संबंधित स्टाफ ज्यादा परिणाम नहीं दे पाता।

डिजिटल या कंप्यूटरीकरण से हमारे देखते-देखते काफी बदलाव आए। सबसे पहले संपादन के क्षेत्र में कई पद जैसे कि सब एडिटर चीफ सब एडिटर प्रूफ्रीडर टाइपिस्ट आदि धीरे धीरे लुप्त हो रहे थे लेकिन मार्केटिंग और सरकुलेशन के पास पास आशा की किरण बाकी थी । डिजिटल दुनिया के प्रभाव ने प्रिंट मीडिया से उसके विज्ञापन छीन लिए ।हालांकि अखबार ने अपना अस्तित्व बचाने के लिए नए नए प्रयोग कर रही हैं लेकिन सच माने तो मीडिया के हर एक नए अवतरण का असर सबसे पहले प्रिंट मीडिया पर पड़ता है। पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के आने से अखबारों के एडवरटाइजिंग रेवेन्यू पर विपरीत असर पड़ा बल्कि सम्पादन टीम भी इलेक्ट्रॉनिक की ओर आकर्षित हुई। जहां पहले रिपोर्टर नाम से जाने जाते थे अब टी वी ने उसे पाठको और दर्शकों से रू-ब-रू कराया। लेकिन आज हम बात कर रहे हैं मीडिया के व्यवसाय की क्योंकि लगातार विज्ञापनदाता भी अब अखबारों की बजाए दूसरे माध्यमों की सेवाएं लेने लगे। डिजिटल मीडिया के आने से बहुत ही कम खर्च और कम समय में ज्यादा लोगों तक पहुंचना फायदेमंद है, हालांकि टीवी अभी भी ट्रेंड में है। वर्ष 2019 के आंकड़े देखें तो सामने आता है कि कुल विज्ञापन का 40% केवल टीवी विज्ञापन में गया। वर्ष 2019 में टीवी का व्यवसाय 15.4% बढा। अध्ययन करने वाली कंपनियों की माने तो वर्ष 2023 तक विज्ञापन वृद्धि लगातार 12.5% बढ़ने की संभावना है ।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया ब्रांड अध्ययन संस्था मैग्ना का दावा है कि वर्ष 2020 में डिजिटल विज्ञापन में 15% और विज्ञापन में 25% वृद्धि की संभावना है ।मैग्ना का मानना है डिजिटल इंडस्ट्री का 73 प्रतिशत विज्ञापन मोबाइल के माध्यम से प्रसारित होते हैं ।

भारतीय उपमहाद्वीप में पाकिस्तान में विज्ञापन का 15% डिटेल माध्यम से प्रसारित किया जाता है, श्रीलंका मैं 14 प्रतिशत जबकि भारत 13% के साथ तीसरे स्थान पर है। डिजिटल के बाद टीवी अभी अपनी पकड़ बनाए हुए हैं हालांकि 30% लोग अब डाटा के माध्यम से टीवी देखते हैं फिर भी कुल विज्ञापन का 31% हिस्सा टेलीविजन के पास और इस वर्ष इसमें 14% की वृद्धि संभावित है। रेडियो में विज्ञापन 1. 2 % कम हुए हैं जबकि प्रिंट मीडिया में 8% गिरावट आई है। सोशल मीडिया इस समय विज्ञापन समाचार प्रसारण का बेताज बादशाह बन रहा है। ईमेल मार्केटिंग, ब्लॉगिंग, वीडियो, न्यूज़ और अन्य वेबसाइट पर ट्रैफिक बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयत्न किये जा रहे हैं ।

यही कारण है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बड़े-बड़े पब्लिकेशन हाउसेस मैं भारी मात्रा में छटनी की गई । पारंपरिक विचारधारा भले ही कि प्रिंट मीडिया की खबर के मुकाबले ज्यादा प्रभावित करती है हालांकि मनोवैज्ञानिकों की माने तो यह काफी हद तक यह सच भी है लेकिन बदलती प्रिंट मीडिया के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। लेकिन सराहनीय है कि प्रिंट मीडिया ने विचलित होने की बजाय अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए वेब दुनिया में भी अपनी हिस्सेदारी डाल रहा है।