‘नागरिकता संशोधन बिल’ पर राज्य सभा में भाजपा का ‘एसिड टेस्ट’

सारिका तिवारी, चंडीगढ़ – 11 दिसंबर:

Sarika Tiwari Editor, demokratikfront.com

लोकसभा से नागरिकता संशोधन बिल पास होने के बाद बुधवार को बिल राज्यसभा में पेश होगा. राज्यसभा में इस वक़्त 240 सांसदों की संख्या है, क्योंकि राज्यसभा में 5 सीटें खाली पड़ी हुई हैं. इस हिसाब से 121 सांसदों के समर्थन के बाद ही ये बिल राज्यसभा में पास हो सकता है. बीजेपी के पास इस वक़्त राज्यसभा में 83 सांसद हैं यानि कि बीजेपी को 38 अन्य सांसदों की आवश्यकता पड़ेगी.

नागरिकता संशोधन विधेयक को सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी बुधवार को राज्य सभा में दो बजे पेश कर सकती है.

इससे पहले सरकार ने इस विधेयक को लोकसभा में आसानी से पास करवा लिया. लोकसभा में बीजेपी के पास खुद अकेले दम पर बहुमत है. इस विधेयक पर वोटिंग के दौरान बीजेपी के 303 लोकसभा सदस्यों समेत कुल 311 सासंदों का समर्थन हासिल हुआ. अब राज्यसभा में इस विधेयक को रखा जाना है. जहां से पास होने की स्थिति में ही यह क़ानून की शक्ल लेगा. बीजेपी ने 10 और 11 दिसंबर को अपनी पार्टी के राज्यसभा सांसदों के लिए व्हिप जारी किया है.

साभार ANI

लेकिन सत्ताधारी पार्टी के लिए राज्यसभा की डगर लोकसभा जितनी आसान नहीं है.

क्या है राज्यसभा का गणित?

राज्यसभा में कुल 245 सांसद होते हैं. हालांकि वर्तमान सांसदों की संख्या 240 है.

राज्यसभा में इस वक़्त 240 सांसदों की संख्या है, क्योंकि राज्यसभा में 5 सीटें खाली पड़ी हुई हैं. इस हिसाब से 121 सांसदों के समर्थन के बाद ही ये बिल राज्यसभा में पास हो सकता है. बीजेपी के पास इस वक़्त राज्यसभा में 83 सांसद हैं यानि कि बीजेपी को 38 अन्य सांसदों की आवश्यकता पड़ेगी. लेकिन बीजेपी के लिए चिंता की बात इसलिए नहीं नज़र आ रही है क्योंकि बीजेपी के सहयोगी दलों के साथ साथ कुछ अन्य दल नागरिकता संशोधन बिल पर सरकार के साथ नज़र आ रहे हैं. AIADMK(11), JDU (6), SAD (3), निर्दलीय व अन्य समेत 13 सांसदों का समर्थन बीजेपी को राज्यसभा में मिल सकता है. इस तरह बिल के समर्थन में 116 सांसद नज़र आ रहे हैं. 

इन पार्टियों के अलावा सरकार के साथ बीजेडी (7), YSRCP (2), TDP (2) सांसदों के साथ नागरिकता संशोधन बिल का समर्थन कर सकती हैं. कुल मिलाकर 127 सांसदों के साथ यह बिल पास कराने में सरकार सफल हो सकती है. 

शिवसेना ने लोकसभा में इस बिल का समर्थन किया था लेकिन राज्यसभा में शिवसेना के 3 सांसद क्या इस बिल का समर्थन करेंगे या नहीं, इस पर सस्पेंस बरक़रार है. 

वहीं अगर विपक्ष की रणनीति पर नज़र डालें तो वह इस मुद्दे पर एकजुटता दिखाने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस के राज्यसभा में 46 सांसद है और वह इस बिल के ख़िलाफ़ ज़्यादा से ज़्यादा मतदान कराना चाहती है. मंगलवार को कांग्रेस नेताओं ने संसद भवन में अन्य विपक्षी दलों के साथ बातचीत भी की है. नागरिकता संशोधन बिल पर राज्यसभा में डीएमके (5), RJD (4), NCP (4), KC(M)-1, PMK(1), IUML(1), MDMK (1), व अन्य 1 सांसद ख़िलाफ़ वोट करेंगे. यानि इस तरह से यूपीए का आँकड़ा 64 सांसदों का पहुँचता है. 

लेकिन यूपीए के साथ साथ कई अन्य विपक्षी दल भी इस बिल के ख़िलाफ़ राज्यसभा में वोट करेंगे, जिसे लेकर समाजवादी पार्टी समेत कई दलों ने अपने सांसदों को व्हिप भी जारी किया है. TMC(13), Samajwadi Party (9), CPM(5), BSP (4), AAP (3), PDP (2), CPI (1), JDS (1), TRS (6) जैसे राजनीतिक दलों के सांसद इस बिल के ख़िलाफ़ हैं. यूपीए के अतिरिक्त कई विपक्षी दलों के 44 सांसद भी इस बिल के ख़िलाफ़ वोट कर सकते हैं.

नागरिकता संशोधन विधेयक के प्रस्तावित संशोधनों के ख़िलाफ़ राज्यसभा में विपक्ष दो सूत्रीय रणनीति पर काम करेगा.

लोकसभा में यह पास हो चुका है लेकिन इस मामले के जानकारों के मुताबिक अगर यह विधेयक राज्यसभा में पास भी हो गया तो विपक्ष इसकी समीक्षा प्रवर समिति (सेलेक्ट कमेटी) से करवाने के लिए दबाव डालेगा. कांग्रेस, डीएमके और वाम दलों ने इसे लेकर अपने अपने मसौदे तैयार किए हैं. ये पार्टी इस बात पर तर्क करेंगी कि चूंकि यह विधेयक भारत की नागरिकता क़ानूनों की नींव में भारी बदलाव करेगा लिहाजा इसे समीक्षा के लिए एक सेलेक्ट कमेटी को भेजना चाहिए.

क्या होती है सेलेक्ट कमेटी?

संसद के अंदर अलग-अलग मंत्रालयों की स्थायी समिति होती है, जिसे स्टैंडिंग कमेटी कहते हैं. इससे अलग जब कुछ मुद्दों पर अलग से कमेटी बनाने की ज़रूरत होती है तो उसे सेलेक्ट कमेटी कहते हैं. इसका गठन स्पीकर या सदन के चेयरपर्सन करते हैं. इस कमेटी में हर पार्टी के लोग शामिल होते हैं और कोई मंत्री इसका सदस्य नहीं होता है. काम पूरा होने के बाद इस कमेटी को भंग कर दिया जाता है.

क्या है नागरिकता संशोधन विधेयक?

नागरिकता संशोधन विधेयक (Citizenship Amendment Bill) को संक्षेप में CAB भी कहा जाता है और यह बिल शुरू से ही विवाद में रहा है.

इस विधेयक में बांग्लादेश, अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान के छह अल्पसंख्यक समुदायों (हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिख) से ताल्लुक़ रखने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव है. मौजूदा क़ानून के मुताबिक़ किसी भी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता लेने के लिए कम से कम 11 साल भारत में रहना अनिवार्य है. लेकिन इस विधेयक में पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए यह समयावधि 11 से घटाकर छह साल कर दी गई है.

इसके लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में कुछ संशोधन किए जाएंगे ताकि लोगों को नागरिकता देने के लिए उनकी क़ानूनी मदद की जा सके. मौजूदा क़ानून के तहत भारत में अवैध तरीक़े से दाख़िल होने वाले लोगों को नागरिकता नहीं मिल सकती है और उन्हें वापस उनके देश भेजने या हिरासत में रखने के प्रावधान है.

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