‘जज कानून से ऊपर नहीं हैं.’: जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एक अलग फैसले में कहा, ‘जज कानून से ऊपर नहीं हैं.’ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायपालिका अलग-थलग में काम नहीं कर सकती, क्योंकि न्यायाधीश संवैधानिक पद का आनंद लेते हैं और सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वहन करते हैं.
नई दिल्ली: देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) का दफ्तर भी सूचना के अधिकार (RTI) के दायरे में आएगा. यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पारदर्शिता न्यायिक स्वतंत्रता को कम नहीं करती है. सूचना देने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित नहीं होती, लेकिन कुछ सूचनाओं की निजता और गोपनीयता का ध्यान रखा जाना चाहिए. सूचना और निजता में बैलेंस रहे.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एक अलग फैसले में कहा, ‘जज कानून से ऊपर नहीं हैं.’ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायपालिका अलग-थलग में काम नहीं कर सकती, क्योंकि न्यायाधीश संवैधानिक पद का आनंद लेते हैं और सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वहन करते हैं.
सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के 2010 के निर्णय को सही ठहराते हुए इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल और शीर्ष अदालत के केंद्रीय सार्वजनिक सूचना अधिकारी की अपील खारिज कर दी.
यह व्यवस्था देते हुए संविधान पीठ ने आगाह किया कि सूचना के अधिकार कानून का इस्तेमाल निगरानी रखने के हथियार के रूप में नहीं किया जा सकता है और पारदर्शिता के मुद्दे पर विचार करते समय न्यायपालिका की स्वतंत्रता को ध्यान में रखना चाहिए. यह निर्णय सुनाने वाली संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एनवी रमण, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूति संजीव खन्ना शामिल थे.
इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने एक आरटीआई एक्टिविस्ट की याचिका पर 2010 में फ़ैसला दिया था कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस का ऑफिस सूचना के अधिकार कानून के दायरे में आएगा. हाईकोर्ट के इस फ़ैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल व सेंट्रल पब्लिक इंफार्मेशन ऑफिसर की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल तीन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने चार अप्रैल को फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था.