मणि महेश यात्रा 2019
वृहत संहिता में तीर्थ का बड़े ही सुंदर शब्दों में वर्णन किया गया है। इसके अनुसार, ईश्वर वहीं क्रीड़ा करते हैं जहां झीलों की गोद में कमल खिलते हों और सूर्य की किरणें उसके पत्तों के बीच से झांकती हो, जहां हंस कमल के फूलों के बीच क्रीड़ा करते हों…जहां प्राकृतिक सौंदर्य की अद्भुत छटा बिखरी पड़ी हो।’ हिमालय पर्वत का दृश्य इससे भिन्न नहीं है। इसलिए इस पर्वत को ईश्वर का निवास स्थान भी कहा गया है। भगवदगीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है, ‘पर्वतों में मैं हिमालय हूं।’ यही वजह है कि हिंदू धर्म में हिमालय पर्वत को विशेष स्थान प्राप्त है। हिंदुओं के पवीत्रतम नदी गंगा का उद्भव भी इसी हिमालय पर्वत से होता है।
मणिमहेश यात्रा
जुलाई-अगस्त के दौरान पवित्र मणिमहेश झील हजारों तीर्थयात्रियों से भर जाता है। यहीं पर सात दिनों तक चलने वाले मेला का आयोजन भी किया जाता है। यह मेला जन्माष्टमी के दिन समाप्त होता है। जिस तिथि को यह उत्सव समाप्त होता है उसी दिन भरमौर के प्रधान पूजारी मणिमहेश डल के लिए यात्रा प्रारंभ करते हैं। यात्रा के दौरान कैलाश चोटि (18,556) झील के निर्मल जल से सराबोर हो जाता है। कैलाश चोटि के ठीक नीचे से मणीमहेश गंगा का उदभव होता है। इस नदी का कुछ अंश झील से होकर एक बहुत ही खूबसूरत झरने के रूप में बाहर निकलती है। पवित्र झील की परिक्रमा (तीन बार) करने से पहले झील में स्नान करके संगमरमर से निर्मित भगवान शिव की चौमुख वाले मूर्ति की पूजा अर्चना की जाती है। कैलाश पर्वत की चोटि पर चट्टान के आकार में बने शिवलिंग का इस यात्रा में पूजा की जाती है। अगर मौसम उपयुक्त रहता है तो तीर्थयात्री भगवान शिव के इस मूर्ति का दर्शन लाभ लेते हैं।
स्थानीय लोगों के अनुसार कैलाश उनकी अनेक आपदाओं से रक्षा करता है, यही वजह है कि स्थानीय लोगों में महान कैलाश के लिए काफी श्रद्धा और विश्वास है। यात्रा शुरू होने से पहले गद्दी वाले अपने भेड़ों के साथ पहाड़ों पर चढ़ते हैं और रास्ते से अवरोधकों को यात्रियों के लिए हटाते हैं। ताकि यात्रा सुगम और कम कष्टप्रद हो। कैलाश चोटि के नीचे एक बहुत बड़ा हिमाच्छादित मैदान है जिसको भगवान शिव के क्रीड़ास्थल ‘शिव का चौगान’ के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि यहीं पर भगवान शिव और देवी पार्वती क्रीड़ा करते हैं। वहीं झील के कुछ पहले जल का दो स्रोत है। इसको शिव क्रोत्रि और गौरि कुंड के नाम से जाना जाता है।
चौरसिया मंदिर, भरमौर
चौरसिया मंदिर का नाम इसके परिसर में स्थित 84 छोटे-छोटे मंदिरों के आधार पर रखा गया है। यह मंदिर भरमौर या ब्रह्मपुरा नामक स्थान में स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार 84 योगियों ने ब्रह्मपुरा के राजा साहिल बर्मन के समय में इस जगह भ्रमण करते हुए आए थे। राजा बर्मन के आवभगत से अभिभूत होकर योगियों ने उनको 10 पुत्र रत्न प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। फलत: राजा बर्मन ने इन 84 योगियों की याद में 84 मंदिरों का निर्माण करा दिया। तभी से इसको चौरसिया मंदिर के नाम से जानते हैं। एक दूसरी धारणा के अनुसार एक बार भगवान शिव 84 योगियों के साथ जब मणिमहेश की यात्रा पर जा रहे थे तो कुछ देर के लिए ब्राह्मणी देवी की वाटिका में रुके। इससे देवी नाराज हो गईं लेकिन भगवान शिव के अनुरोध पर उन्होंने योगियों के लिंग रूप में ठहरने की बात मान ली। कहा जाता है इसके बाद यहां पर इन योगियों की याद में चौरसिया मंदिर का निर्माण कराया गया। जबकि एक और मान्यता के अनुसार जब 84 योगियों ने देवी के प्रति सम्मान प्रकट नहीं किया तो उनको पत्थर में तब्दील कर दिया गया।
मणिमहेश्वर यात्रा मार्ग
मणिमहेश्वर 3950 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसकी चढ़ाई ज्यादा कठिन नहीं तो आसान भी नहीं है। इस मंदिर के दर्शन हेतु मई से अक्टूबर का महीना सबसे ज्यादा उपयुक्त है। लेकिन पहाड़ी चढ़ाई होने के कारण एक दिन में 4 से 5 घंटे तक की चढ़ाई ही संभव हो पाती है। मणिमहेश की यात्रा कम से कम सात दिनों की है। मोटे तौर पर मणिमहेश के लिए मार्ग है – नई दिल्ली – धर्मशाला – हर्दसार – दांचो – मणिमहेश झील – दंचो – धर्मशाला – नई दिल्ली.
पहला दिन
नई दिल्ली पहुंचकर धर्मशाला के लिए प्रस्थान।
दूसरा दिन
(धर्मशाला-हरसर-धन्छो, 2280 मीटर की ऊंचाई पर स्थित) हरसर से धन्छो जिसकी दूरी ४ कि॰मी॰ है, लेकिन जाने में 3 घंटे लग जाते हैं। यहाँ पर रात गुजारने का अच्छा प्रबंध होता है !
तीसरा दिन
(धन्छो – मणीमहेश झील, 3950 मी. की ऊंचाई पर स्थित) धन्छो से मणीमहेश तक की चढ़ाई न केवल लंबी ही है, इस यात्रा का सबसे कठिनतम चरण भी है। इस मार्ग पर लगातार चढ़ाई करनी होती है। रात कैंप में ब्यतीत करनी होती है ।
चौथा दिन
(मणिमहेश झील-धन्छो) वापस आने की प्रक्रिया की शुरूआत। इसके तहत पहला दिन धन्छो में गुजारना होता है।
पांचवां दिन
(धन्छो-धर्मशाला)
छठा दिन
(धर्मशाला) यहां पहुंचने के उपरांत तीर्थयात्री अगर चाहें तो विभिन्न बौद्धमठों को देखने का लुत्फ उठा सकते हैं। इसके बाद शाम में पठानकोट पहुंचा जा सकता है। यहां से ट्रेन या सड़क मार्ग से दिल्ली के लिए प्रस्थान किया जा सकता है।
सातवां दिन
(आरक्षित दिन)
चम्बा बेस से जाने पर चढ़ाई कुछ आसान हो जाती है। तीर्थयात्री चाहें तो इस मार्ग का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।