अरविंद V/s दीपेंदर “दिल्ली अभी दूर है”
सारिका तिवारी
यूं तो चुनाव कई बातों से प्रेरित होते हैं लेकिन हरियाणा की भूमि का कण कण राजनीति को धार देता है। गली मोहल्ले के टोलों में स्कूली बच्चों से लेकर चौपाल में हुक्का गुड़गुड़ाते बुजुर्ग तक राजनीति की बिसात पर अपने विचार खुले दिल से रखते हैं। निर्भीकता से अपने राजनैतिक विचारों को व्यक्त करना यहाँ की खासियत है। लेकिन इस बार जानकारों के लिए भी स्थिति असमंजस की है। जातीय समीकरणों से खेली जाने वाली राजनीति में नॉन जात इस बार चुप्पी साधे बैठा है।
हुड्डा का गढ़ माना जाने वाला रोहतक लोकसभा क्षेत्र इस बार असमंजस की स्थिति में है। इसलिए इस क्षेत्र को एक बार फिर जीतने के लिए हुड्डा परिवार ने पूरा जोर लगा रखा है। रोहतक लोकसभा क्षेत्र से हुड्डा परिवार की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। कांग्रेस पार्टी की ओर से मौजूदा सांसद दीपेंद्र हुड्डा चौथी बार प्रत्याशी हैं।
हुड्डा परिवार 9 बार सांसद बना है। रणबीर हुड्डा 1952 तथा 1957 में सांसद बने। 1991, 1996, 1998 और 2004 में भूपेंद्र हुड्डा और 2005, 2009 तथा 2014 में दीपेंद्र हुड्डा सांसद बने। 1952 से लेकर 2014 तक हुए चुनाव में ज्यादातर समय जाट नेता ही सांसद बने हैं। इसमें भी 11 बार कांग्रेस जीती है। 1962, 1971 व 1999 और 1977, 1980 तथा 1989 में गैर कांग्रेसी प्रत्याशी को जीत हासिल हुई थी।
वहीं बीजेपी, भाजपा ने पूर्व सांसद अरविंद शर्मा को मैदान में उतारा है जो कि प्रधानमंत्री मोदी की छवि को सामने रखकर वोट मांग रहे है। भाजपा का इस लोकसभा क्षेत्र को आगामी विधानसभा को ध्यान में रख कर चुनाव लड़ रही है अगर दीपेंद्र हुड्डा को हराने में कामयाब रही तो आगामी विधानसभा चुनावों के लिए रणनीति साफ हो जाएगी।खुद दीपेंद्र हुड्डा भी मानते हैं कि रोहतक का चुनाव राजनीतिक दिशा तय करेगा।
जानें कौन हैं अरविंद शर्मा भाजपा प्रत्याशी अरविंद शर्मा भी 3 बार सांसद रह चुके हैं। शर्मा 1996 में सोनीपत से आजाद उम्मीदवार के तौर पर जीते। शिवसेना के प्रदेश अध्यक्ष रहे और 1999 में रोहतक से चुनाव लड़े लेकिन हार गए। कांग्रेस में शामिल हुए और करनाल से 2004 और 2009 में जीते। 2014 में भाजपा के अश्विनी चोपड़ा ने अरविंद को हरा दिया। फिर वह बीएसपी में शामिल हुए। बीएसपी ने उन्हें सीएम उम्मीदवार भी घोषित किया था। विधानसभा चुनाव में वह दो सीटों से लड़े लेकिन हार गए।
जातिवाद चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। एक नज़र देखते हैं जातिय समीकरण को।
इस लोकसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा करीब सवा 6 लाख जाट वोटर, करीब 2 लाख 98 हजार अनुसूचित जाति के वोटर, करीब 1 लाख 70 हजार यादव वोटर, करीब 1 लाख 24 हजार ब्राह्मण वोटर और करीब 1 लाख 8 हजार पंजाबी वोटर हैं। जातिगत समीकरणों को देखते हुए ही कांग्रेस, इनेलो और जेजेपी-आप गठबंधन ने जाट प्रत्याशियों को टिकट दिया है, जबकि बीजेपी ने ब्राह्मण प्रत्याशी पर भरोसा जताया है। बीएसपी-एलएसपी गठबंधन की ओर से विश्वकर्मा जाति के प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं।
भाजपा ने गैर जाट उम्मीदवार उतारकर इसे बड़ा हथियार बनाया है। चुप्पी साधे बैठा नॉन जाट वोटर ही इस बार निर्णायक साबित होगा। कुल 17.37 लाख वाेटाें में से करीब साढ़े 10 लाख गैर जाट वाेटर हैं। इन्हें रिझाने के लिए दाेनाें ही पार्टियां जोर लगा रही हैं।
इनेलाे और जेजेपी से भी जाट उम्मीदवारों के खड़े होने से दीपेंद्र हुड्डा को नुकसान हाेने का आंकलन सिरे नहीं चढ़ पाया। जाट भी जीताऊ उम्मीदवार की ओर ज्यादा झुकते दिख रहे हैं। इसका सबसे ज्यादा नुकसान इनेलो को झेलना पड़ सकता है। जेजेपी के प्रदीप देशवाल राजनीतिक पारी की अच्छी ओपनिंग के लिए प्रयास कर रहे हैं। दीपेंद्र अपनी शराफत, पिछले काम और राेहतक की चाैधर के नाम पर वोट मांग रहे हैं
इस बार लोकसभा चुनाव में प्रमुख मुद्दा नरेंद्र मोदी बनाम दीपेंद्र हुड्डा बन गया है। जबकि शर्मा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर जनता के बीच हैं, वहीं दीपेंद्र, कांग्रेस सरकार के समय पर हुए विकास कार्यों के नाम पर वोट मांग रहे हैं। अरविंद शर्मा को पीएम मोदी, सीएम, दंगों के दर्द और ग्रुप डी की भर्तियों का सहारा है। शर्मा के सामने बड़ी चुनाैती भितरघात से निपटना भी है। कई नेता उनकाे टिकट देने से खफा थे तो कुछ प्रचार से दूरी बनाए हैं।
इसके अलावा जननायक जनता पार्टी-आप गठबंधन ने छात्र नेता प्रदीप देशवाल और इनेलो ने धर्मवीर फौजी को प्रत्याशी बनाया है। बीएसपी-एलएसपी गठबंधन से किशन सिंह पांचाल मैदान में हैं।