प्राचीन भारतीय सिक्षा का स्वर्णिम युग बनाम वर्तमान शिक्षा व्यवस्था

विश्लेषण


Er. S. K. Jain – Feature Editor

भारतवर्ष आर्यभट्ट, वाराहमिहिर, चाणक्य जैसे विद्वानों का देश रहा है। हमारे देश में उस समय तक्षशिला, नालंदा व पुष्पगिरी जैसे विश्व विद्यालय थे जबकि पश्चिमी देशों के लोग फूहड़ और अनपढ़ थे। नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में हुई थी, उस वक्त वहाँ करीब 10,000 देशी एवं विदेशी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे। करीब 1500 वर्ष पहले यह विश्व विद्यालय ज्ञान और विज्ञान के अंतर्राष्ट्रीय केंद्र माने जाते थे। विदेशी छात्र इन विश्व विद्यालयों में पढ़ने के पश्चात तमाम उम्र अपने शिक्षकों से प्रभावित रहते थे और उन्हे उफार भेजते रहते थे। चीन के छत्र भारतीय संस्कृति से इतने प्रभावित थे कि उन्होने अपने चाइनीज़ नाम बदल कर भारतीय नाम रख लिए थे। जैसे प्रकाशमती, श्रीदेव, चरित्रवर्मा, प्रज्ञावर्मा, प्रज्ञादेव इत्यादि। यह हमारे लिए बहुत ही गर्व कि बात थी। कई चीनी विद्वानों ने इन विश्व विद्यालयों को भारत और चीन के सामाजिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्धों को जोड़ने वाला सेतु कहा था।

नालंदा विश्व विद्यालय के छत्रों में चीन के प्रसिद्ध यात्री और विद्वान हयून्त्सांग, फ़ाहियान, सांगयून एवं इतसिंग भी शामिल थे। हयून्त्सांग नालंदा के आचार्य शीलभद्र के शिष्य थे। हयून्त्सांग ने 6 साल तक विषविद्यालय में रह कर विधिविशारद (कानून) की पढ़ाई की थी। चीनी मूल के छात्र इत्सिंग को चीनी-संस्कृत शब्दकोश लिखने का श्रेय दिया जाता है। उस समय की हमारी शिक्षा ने हमारा नैतिक स्टार इतना बढ़ा दिया था की हमें अपनी किसी भी चीज़ को ताला लगा कर रखने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। चोरी – चकारी के बारे में हम सोच भी नहीं सकते थे। चीनी यात्रियों ने अपने स्न्समरणों में लिखा था की भारत में लोग अपने घरों को ताले नहीं लगाते हैं। आज हम पढ़ कर अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं। और आज के युग में हम अपने साइकिल को भी ताला लगाए बिना नहीं छोड़ सकते। इसे हम अपनी नैतिकता के हनन की पराकाष्ठा की संज्ञा दे सकते हैं। भारत ने शून्य(0) और दशमलव(॰) की खोज की और दुनिया को गिनती सिखाई। अगर शून्य न होता तो आज कम्प्यूटर और सुपरकम्प्यूटर इस दुनिया मेननहीन होते। क्योंकि कंपूतर की भाषा को बाइनेरी भाषा यानि शून्य और एक (0 and 1) पर ही आधारित है।

आज हमारे भारत में शिक्षा व्यवस्था की की स्थिति है, इसे जानकार हमें घोर आश्चर्य और निराशा का सामना करना पद सकता है। ए सर्वे में कुछ छात्रों को हिन्दी का एक वाक्य लिख कर दिया गया, जिसे पढ़ कर सुनाने के लिए कहा गया। यह वाक्य साधारण सा दूसरी कक्षा के सतर का था। जानकार हैरानी हुई कि हमारे देश के ग्रामीण इलाके के तीसरी कक्षा के 73%, पाँचवीं कक्षा के 50% और आठवीं कक्षा के 27% बच्चे यह वाक्य नहीं पढ़ सकते। इससे बच्चों कि बौद्धिक क्षमता के सतर का पता चलता है। यह आंकड़े सान 2018 की ANNUAL STATUS OF EDUCATION की एक रिपोर्ट में लिखा है। सरकारी संगठन हर वर्ष ग्रामीण भारत की शिक्षा सतर को दर्शाने वाली रिपोर्ट प्रकाशित करता है। यह 336 पन्नों की रिपोर्ट है। बहुत अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि आज भारत के, ख़ास तौर पर ग्रामीण इलाकों के बाचचे ‘हिन्दी’ के वाक्य पढ़ने में असमर्थ हैं और गणित के साधारण से सवालों को हल नहीं कर सकते। क्या यही बच्चे भारत का भविष्य तय करेंगे।

ए॰ एफ़॰ आई॰ आर॰ कि रिपोर्ट में बताया गया है कि गैर सरकारी संगठन PRATHAM ने भारत के 28 राज्यों के 596 जिलों के ग्रामीण इलाकों से अपने आंकड़े इकट्ठे किए हैं। इस संस्था ने 3 से 16 वर्ष कि आयु के 50 हज़ार बच्चों का परीक्षण किया, इस संस्था ने भारत के ग्रामीण इलाकों के निजी व सरकारी विद्यालयों के बहचोन से बात की।  इस रिपोर्ट में ,ईख है की 8वीं कक्षा पास बहुत से छात्र गणित के साधारण सवालों को भी हल नहीं कर सकते। 8वीं कक्षा के 56% छात्र 3 अंकों की एक संख्या को एक अंक की संख्या से भाग(÷)  नहीं दे सकते। 5वीं कक्षा के 72% छात्र किसी भी प्रकार के भाग(÷)  का सवाल हल नहीं कर सकते। 3सरी कक्षा के 70% छात्र एक संख्या को दूसरी संख्या से घटाना नहीं जानते। सबसे बुरी स्थिति राजस्थान प्रदेश की है जहां इस तरह के बच्चों की संख्या 92% है। केरल राज्य में यह स्थिति कुछ अच्छी है उस सर्वे से यह भी पता चला की उत्तर भारत के मुक़ाबले दक्षिण भारत के विद्यार्थियों का शिक्षा सार बेहतर है। अंक गणित के बारे में लड़कियां लड़कों से पीछे हैं। ग्रामीण भारत में 50% छात्रों के मुक़ाबिल सिर्फ 44% छात्राएं ही भाग(÷)   करना जानतीं हैं।

भारत का इतिहास सिर्फ 70 साल पुराना नहीं बल्कि हजारों वर्षों पुराना है। आज चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है और माना जा रहा है की कुछ वर्षों के अंतराल में चीन सबको पीछे छोड़ता हुआ सुपर – पावर बन जाएगा। इतिहास का वह भी दौर रहा है की चीन के छात्र भारत विद्यार्जन के लिए आते थे। आज हमारे मन में यह सवाल उठ रहा होगा इ अगर भारत कभी विश्वगुरु था और हमारी शिक्षा पद्धति इतनी अच्छी और विशाल थी तो क्या कार्न थे की शिक्षा के मामले में हमारी स्थिति आज इतनी दयनीय और ख़राब हो गयी है। करीब 1300 साल पहले भारत पर अर्ब और तुर्क सेनाओं ने हमले शुरू किए। सोने की चिड़िया कहे जाने वाले इस देश को लूटा और बर्बाद किया। विदेशी आक्रांताओं ने हमार मंदिरों और विश्वविद्याल्यों पर आक्रमण कर वहाँ के शिख्स्कोन की हत्याएँ कीं, विश्वविद्यालयों में स्थित पुस्तकालयों को भीषण आग के हवाले कर दिया गया। इस नरसंहार और विद्ध्वंस में लाखो दुर्लभ ग्रंथ और पांडुलिपियाँ हमेषा हमेशा के लिए नष्ट हो गईं। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि कई पुस्तकालय तो 3 महीने तक सुलगते रहे। कई इतिहास कारों का कहना है कि इन हमलों में चीनी छात्रों द्वारा किए गए शोध कार्यों कि पांडुलिपियाँ भी नाश हो गईं।

800 साल मुगलों और 200 साल अंग्रेजों कि गुलामी ने हमारे राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और शिक्षा क्षेत्रों के ढ़ाचे को चकनाचूर करने में कोई कसर नहीं छोड़िए और हमारे देश को बहुत पीछे धकेल दिया। हमारी नैतिक और नैसर्गिक प्रतिभा का भी बहुत ह्रास हुआ। अब धीरे धीरे भारत उठ रहा है, आज NASA में 38%वैज्ञानिक भारतीय मूल के हैं। हमारा ISRO संगठन आज दुनिया में अपनी पहचान बना चुका है। आशा करते हैं कि बहुत जल्द हमारी शिक्षा पद्धति में सुधार होगा और एक बार फिर भारत अपनी खोई हुई पहचान पाने में सफल होगा। हमारा यह सपना है कि वह समय वापिस आएगा और भारत पुन: ज्ग्त्गुरु बनेगा।

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