Sunday, December 22

ऐसा पहली बार नहीं है जब ऑफसेट डील पर सवाल उठाए गए हैं. यह डील दुनिया में हर जगह विवादों में रही है

अरुण जेटली ने लोकसभा में राहुल गांधी को निशाने पर लेते हुए कहा कि उनकी जानकारी KG के बच्चे जितनी है. उन्हें ‘ऑफसेट’ का मतलब नहीं मालूम है. जेटली ने कहा, ‘राहुल गांधी का मानना है कि अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस राफेल जेट की मैन्युफैक्चरिंग कंपनी है. उन्हें पता होना चाहिए कि रिलायंस ग्रुप सिर्फ ऑफसेट पार्टनर है.’

जेटली ने यह भी कहा कि राहुल गांधी को पहले किसी मामले की पूरी जानकारी जुटानी चाहिए उसके बाद ही उसपर बोलना चाहिए. जेटली ने राहुल को तो घेर लिया लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऑफसेट डील क्या है और क्यों इस पर इतना विवाद हो रहा है.

क्या है ऑफसेट डील?

ऑफसेट एग्रीमेंट को अगर आसान शब्दों में कहें तो यह चाय में चीनी की तरह है. यानी सरकार जब किसी कंपनी के साथ डील करती है तो कुछ दूसरी कंपनियों के साथ साइड डील भी होती है. ये ही ऑफसेट डील होती हैं. वैसे तो यह डील खासतौर पर सरकार और किसी डिफेंस कंपनी के साथ ही होती है. लेकिन कई बार सिविल कंपनियों के साथ भी ऐसी डील हो सकती है.

जब भी किसी देश की सरकार किसी विदेशी कंपनी को ऑर्डर देती है तो ऑफसेट एग्रीमेंट की मांग करती है. सरकार ऑफसेट डील की मांग इसलिए करती है ताकि डील की रकम का कुछ फायदा घरेलू कंपनियों को भी हो. अगर हम ‘ऑफसेट डील’ को राफेल के जरिए समझे तो वो कुछ इस तरह होगा.

भारत सरकार ने एयरक्राफ्ट के लिए राफेल के साथ डील की. दोनों के बीच ऑफसेट एग्रीमेंट हुआ. राफेल की ऑफसेट पार्टनर बना अनिल अंबानी का रिलायंस ग्रुप. ऑफसेट डील के मुताबिक, राफेल भारत के लिए जो भी इक्विपमेंट बनाएगी, उसकी वेंडर कंपनी रिलायंस ग्रुप होगी. रिलायंस उसकी लोकल सप्लायर के तौर पर काम करेगी. इसके जरिए टोटल डील की रकम का कुछ हिस्सा रिलायंस ग्रुप के जरिए भारत आएगा. दूसरी तरफ यहां कि कंपनी को ऑर्डर मिलने से रोजगार के मौके बढ़ेंगे. ऑफसेट डील की वैल्यू 50 फीसदी से लेकर 100 फीसदी तक हो सकती है. राफेल की टोटल डील 58000 करोड़ रुपए की है. इस डील की करीब 50 फीसदी रकम घरेलू कंपनी के पास आई है. 

विवादों में क्यों है ऑफसेट डील?

राफेल के साथ डील में जब से रिलायंस ग्रुप का नाम आया है तब से विवाद और बढ़ गया है. ऐसा पहली बार नहीं है जब ऑफसेट डील पर सवाल उठाए गए हैं. यह डील दुनिया में हर जगह विवादों में रही है.

इस डील का विरोध करने वाले ऑफसेट डील को रिश्वत की तरह मानते हैं. इसके खिलाफ यह दलील दी जाती है कि किसी भी देश की सरकार किसी खास कंपनी को फायदा देने के लिए यह डील करती है. यह भी माना जाता है कि इस डील के तहत सरकार कई बार ऐसे इक्विपमेंट की डील कर लेती है, जिसकी जरूरत नहीं होती है या फिर बेस्ट क्वालिटी या वैल्यू नहीं मिल पाती है.