साथी दलों को क्या राहुल मंजूर नहीं?


मतलब साफ है ‘मोदी- विरोध’ तो इन सभी विपक्षी कुनबे के नेताओं को मंजूर तो है, लेकिन, मोदी विरोध के नाम पर एकजुट होकर किसी एक को ‘नेता’ मानने के सवाल पर इनकी आपसी महत्वाकांक्षा टकराने लगती है.


डीएमके प्रमुख एम.के. स्टालिन ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने का प्रस्ताव दिया है. 16 दिसंबर को चेन्नई के डीएमके मुख्यालय में एम. करुनानिधि की प्रतिमा के अनावरण के मौके पर आयोजित कार्यक्रम के मौके पर आयोजित समारोह में पार्टी प्रमुख की तरफ से यह बयान दिया गया.

एम.के. स्टालिन ने जब यह बयान दिया उस वक्त कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी मंच पर मौजूद थे. इसके अलावा टीडीपी अध्यक्ष और आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन, फिल्म स्टार और नेता रजनीकांत, बीजेपी के बागी नेता शत्रुघ्न सिन्हा और दक्षिण भारत के कई जाने-माने नेता और अभिनेता भी उस वक्त कार्यक्रम के दौरान मंच पर मौजूद थे.

इन सभी नेताओं की मौजूदगी में स्टालिन की तरफ से राहुल गांधी के बारे में दिया गया यह बयान कांग्रेस को खूब पसंद आ रहा होगा. जो बात कांग्रेस आलाकमान अबतक खुलकर नहीं बोल पा रहा था या विपक्षी एकता के नाम पर कुछ वक्त के लिए चुप्पी साधना ही मुनासिब समझ रहा था, वो काम डीएमके प्रमुख ने कर दी है. स्टालिन ने अपने बयान के आधार पर अब 2019 की लड़ाई को ‘मोदी बनाम राहुल’ करने की कोशिश कर दी है.

हालांकि, इसी साल मई में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के वक्त राहुल गांधी ने एक सवाल के जवाब में अपने को प्रधानमंत्री पद के लिए तैयार बताया था. लेकिन, बाद में वे उस बयान से पलट गए थे. राहुल गांधी और उनकी पार्टी के रुख में ये नरमी सभी बीजेपी विरोधी दलों को साधने के लिए की गई थी, क्योंकि उस वक्त कांग्रेस की हालत ऐसी थी कि वो महज पंजाब तक ही सिमट कर रह गई थी.

लेकिन, अब स्टालिन का बयान ऐसे वक्त में आया है जब कांग्रेस ने तीन राज्यों में सरकार बना ली है. सोमवार 17 दिसंबर को राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जब कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों का शपथग्रहण हुआ है, तो, ठीक उसके एक दिन पहले ही स्टालिन ने कांग्रेस अध्यक्ष के बढ़े हुए कद का एहसास करा दिया है.

लेकिन, स्टालिन की यह ‘पैरवी’ मोदी के खिलाफ विपक्षी एकजुटता में लगे दूसरे दलों को रास नहीं आ रही है. इसकी एक झलक स्टालिन के बयान के अगले ही दिन दिख गई जब राजस्थान समेत तीनों राज्यों में ‘कांग्रेसी सरकार’ के शपथ ग्रहण समारोह में जिस विपक्षी एकजुटता की उम्मीद कांग्रेस कर रही थी वो नहीं दिखी.

शपथग्रहण समारोह में दिखाने के लिए मंच पर तो ऐसे बहुत सारे नेता थे, मसलन, डीएमके अध्यक्ष एम के स्टालिन, टी.आर. बालू और कनिमोझी, एनसीपी से शरद पवार औऱ प्रफुल्ल पटेल, झारखंड से पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी, कर्नाटक से जेडीएस के नेता पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी और जेडीएस के दूसरे नेता दानिश अली मौजूद थे. इसके अलावा आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, एलजेडी से शरद यादव और आरजेडी से तेजस्वी यादव मंच पर मौजूद रहे. कांग्रेस की तरफ से अध्यक्ष राहुल गांधी के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और लोकसभा में नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भी मौजूद रहे.

लेकिन, इन सभी विपक्षी नेताओं की मौजूदगी के बीच विपक्षी एकता में दरार दिख रही थी. यह दरार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अलावा यूपी के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों अखिलेश यादव और मायावती की गैर-मौजूदगी के तौर पर दिख रही थी.

गौरतलब है कि इसी साल कर्नाटक में जब जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार बन रही थी तो उस वक्त मोदी विरोधी मोर्चा के तौर पर विपक्षी कुनबे की एकता प्रदर्शित करने के लिए विपक्ष के सभी नेता पहुंचे थे. उस वक्त सोनिया गांधी के साथ मायावती की ‘केमेस्ट्री’ की भी चर्चा थी तो राहुल के साथ अखिलेश यादव की जुगलबंदी भी चर्चा में रही. लेफ्ट से लेकर टीएमसी तक सभी नेता एक साथ एक मंच पर दिख रहे थे. लेकिन, हकीकत यही है कि उस वक्त कांग्रेस के नहीं बल्की जेडीएस के नेता कुमारस्वामी मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रह थे.

लेकिन, इन छह महीने बाद तीन-तीन राज्यों में बीजेपी को पटखनी देने के बाद जब कांग्रेस सत्ता में आई है तो इस वक्त मंच पर ममता, माया, अखिलेश के अलावा लेफ्ट के नेता भी नदारद दिख रहे थे. तो क्या इन नेताओं को एम के स्टालिन की वो बात नागवार गुजरी है? क्या ये नेता राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं?

फिलहाल तो हालात देखकर ऐसा ही लग रहा है. अखिलेश यादव और मायावती पहले ही यूपी में महागठबंधन की बात कर रहे हैं. लेकिन, उन्हें, महागठबंधन के भीतर कांग्रेस का साथ मंजूर नहीं. इन दोनों को लग रहा है कि कांग्रेस के साथ रहने और नहीं रहने से यूपी के भीतर कोई खास फर्क नहीं पड़ता है. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ ‘हाथ’ मिला चुके अखिलेश यादव इस बार कांग्रेस के साथ जाने से कतरा रहे हैं.

कुछ यही हाल मायावती का भी है. इन दोनों नेताओं को लगता है कि यूपी में कांग्रेस से उनको फायदा तो नहीं होगा लेकिन, उनके साथ गठबंधन में रहकर कांग्रेस कुछ सीटें जीत सकती है. यानी फायदा कांग्रेस को जरूर होगा. नेतृत्व के मामले में लोकसभा चुनाव बाद फैसला लेने की बात इनकी तरफ से हो रही है. ऐसा कर ये दोनों नेता अपना विकल्प खुला रखना चाह रहे हैं.

उधर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मुलाकात कर चुकी हैं. अपने दिल्ली दौरे के वक्त ममता बनर्जी ने मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री के मसले पर लोकसभा चुनाव बाद फैसला करने की बात कही थी. माना जा रहा है कि ममता बनर्जी की भी ‘ख्वाहिशें’ बड़ी हैं, ऐसे में एम के स्टालिन का बयान ममता बनर्जी को तो नागवार गुजरेगा ही.

11 दिसंबर को संसद का सत्र शुरू होने से एक दिन पहले दिल्ली में लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर मंथन को लेकर विपक्षी दलों की बैठक हुई थी, लेकिन, इस बैठक से भी अखिलेश यादव और मायावती ने दूरी बना ली. इन दोनों नेताओं ने अपने किसी प्रतिनिधि को भी इस बैठक में नहीं भेजा. यह साफ संकेत है कि ये दोनों ही नेता अभी अपने पत्ते नहीं खोलना चाहते. वे नहीं चाहते कि चुनाव से पहले यूपी में ऐसा कोई भी गठबंधन हो, जिसमें कांग्रेस भी शामिल रहे.

मतलब साफ है ‘मोदी- विरोध’ तो इन सभी विपक्षी कुनबे के नेताओं को मंजूर तो है, लेकिन, मोदी विरोध के नाम पर एकजुट होकर किसी एक को ‘नेता’ मानने के सवाल पर इनकी आपसी महत्वाकांक्षा टकराने लगती है. एम.के. स्टालिन के बयान ने भले ही बयान देकर मोदी बनाम राहुल की लड़ाई को हवा दे दी है, लेकिन, इस लाइन पर आगे बढ़ पाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा.

राहुल गांधी के खिलाफ राफेल मुद्दे पर विशेषाधिकार प्रस्ताव पारित किया है


बीजेपी नेता अनुराग ठाकुर ने कांग्रेस अध्यक्ष के खिलाफ राफेल मुद्दे पर विशेषाधिकार प्रस्ताव पारित किया है


में यह प्रस्ताव बीजेपी के वरिष्ठ नेता अनुराग ठाकुर ने पेश किया था. गौरतलब है कि कांग्रेस राफेल सौदे पर बीजेपी पर लगातार हमले करती रही है.

ठाकुर ने सोमवार को प्रस्ताव दाखिल करते हुए यह मांग की कि कांग्रेस अध्यक्ष 20 जुलाई को लोक सभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान दिए गए अपने भाषण पर माफी मांगें.


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BJP moves Privilege Motion in Lok Sabha against Rahul Gandhi over issue. The Motion has been moved by Anurag Thakur. (file pic)


पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस मामले में क्लीन चिट देते हुए सभी याचिका खारिज कर दी हैं. हालांकि इसके बाद भी कांग्रेस केंद्र सरकार और बीजेपी पर लगातार हमले कर रही है. और राफेल सौदे में बीजेपी नीत सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी मढ़ रही है.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले की जांच के लिए सही संस्थान नहीं है. राहुल गांधी के मुताबिक इसकी जांच जेपीसी से करवाई जानी चाहीए. राहुल गांधी राफेल सौदे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी आरोप लगाते रहे हैं.


क्या है विशेषाधिकार हनन?
देश में विधानसभा, विधानपरिषद और संसद के सदस्यों के पास कुछ विशेष अधिकार होते हैं, ताकि वे प्रभावी ढंग से अपने कर्तव्यों को पूरा कर सके. जब सदन में इन विशेषाधिकारों का हनन होता है या इन अधिकारों के खिलाफ कोई कार्य किया जाता है, तो उसे विशेषाधिकार हनन कहते हैं. इसकी स्पीकर को की गई लिखित शिकायत को विशेषाधिकार हनन नोटिस कहते हैं.

कैसे लाया जा सकता है विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव?
इस नोटिस के आधार पर स्पीकर की मंजूरी से सदन में विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाया जा सकता है. विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव संसद के किसी सदस्य द्वारा पेश किया जाता है, जब उसे लगता है कि सदन में झूठे तथ्य पेश करके सदन के विशेषाधिकार का उल्लंघन किया गया है या किया जा रहा है.

किसे मिले हैं विशेषाधिकार?
भारत के लोकतंत्र में संसद के सदस्यों को जो विशेषाधिकार दिए गए हैं, उनका मूल उद्देश्य सत्ता को किसी भी रूप या तरीके से बेलगाम होने से रोकने का है. भारत ने जो संसदीय प्रणाली अपनाई है, उसमें बहुमत का शासन होता है. लेकिन, अल्पमत में रहने वाले दलों के सदस्यों को भी जनता ही चुनकर भेजती है. उनका मुख्य कार्य संसद के भीतर सरकार को जवाबदेह बनाए रखने का होता है.

बीजेपी ने लोक सभा में राहुल गांधी के खिलाफ राफेल मुद्दे पर विशेषाधिकार प्रस्ताव पारित किया है. लोक सभा

सीएम बनते ही कमाल नाथ ने किए किसानों के 2लाख के कर्जे माफ


कांग्रेस ने किया था सत्ता में आते ही कर्जमाफी करने का ऐलान


मध्य प्रदेश में सरकार बनते ही कांग्रेस ने किसानों से किया सबसे अहम वादा पूरा कर दिया है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभालते ही किसानों की कर्जमाफी का ऐलान कर दिया है. साथ ही उन्होंने इस फैसले पर हस्ताक्षर भी कर दिया है.

कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में इस मुद्दे को रखा था. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने विधानसभा चुनाव के पहले वादा किया था कि जैसे ही कांग्रेस की सरकार बनेगी उसके दस दिन के भीतर किसानों का कर्जा माफ कर दिया जाएगा.

कमलनाथ ने सोमवार को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है. शपथ ग्रहण करने के चंद घंटों के भीतर ही उन्होंने किसानों के कर्ज माफी से जुड़ी फाइल पर साइन भी कर दिया. इस फैसले के मुताबिक किसानों के 2 लाख रुपए से कम तक के कर्ज को माफ किया गया है. कमलनाथ शाम पांच बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे.

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण करने के पहले दिए गए इंटरव्यू में कमलनाथ ने पहले ही साफ कर दिया था कि वह किसानों का कर्ज माफ कर सकते हैं. कमलनाथ के कर्ज माफी करते ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी ट्वीट कर लोगों को उनका वादा याद दिलाया.

शिवराज से नेता विपक्ष की कुर्सी भी छिन सकती है


आरएसएस और मध्य प्रदेश बीजेपी की टॉप लीडरशिप नरोत्तम मिश्रा या गोपाल भार्गव को इस पद के लिए उपयुक्त मान रहे हैं


मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि नेता विपक्ष कौन बनेगा. बीजेपी के नेता, जिनमें पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन भी शामिल हैं उन्होंने इसके लिए फौरन शिवराज सिंह चौहान का नाम आगे बढ़ा दिया. वहीं आरएसएस और मध्य प्रदेश बीजेपी की टॉप लीडरशिप नरोत्तम मिश्रा या गोपाल भार्गव को इस पद के लिए उपयुक्त मान रहे हैं.

आरएसएस सूत्रों के बताया कि बीजेपी के चुनाव में खराब प्रदर्शन के पीछे वजह उसके नेताओं के कार्यकर्ताओं से दूरी बनने से हुई है. इस वजह से जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं ने चुनाव में पूरे मन से हिस्सा नहीं ली और पार्टी की हार हुई.

यह भी देखा गया कि किसी ब्राह्मण को विपक्ष का नेता (एलओपी) बनाने से ऊंची जातियों का गुस्सा शांत होगा. उनकी नाराजगी की वजह से विधानसभा चुनाव में बीजेपी का खेल खराब हो गया.

सूत्रों ने बताया कि संघ परिवार अब लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर फोकस कर रहा है. राज्य की सभी सीटों पर जीत हासिल करने के लिए संघ चाहता है कि बीजेपी के राज्य स्तर के नेता अधिक सक्रिय हों. संघ ने संसदीय क्षेत्रों से मौजूदा सांसदों के कामकाज का फीडबैक भी जुटाया है. उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में शिवराज सिंह चौहान का रोल विपक्ष के नेता की तुलना में काफी अहम हो जाता है.

1984 सिख नरसंहार आज तक क्या हुआ


दिल्ली हाईकोर्ट ने 1984 सिख विरोधी दंगों के मामले में लोअर कोर्ट का फैसला पलटते हुए कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को आज उम्रकैद की सजा सुना दी है. साथ ही सज्जन पर 5 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है. इसके अलावा हाईकोर्ट ने बलवान खोखर, कैप्टन भागमल और गिरधारी लाल की उम्र कैद की सजा बरकरार रखी है. जबकि पूर्व विधायक महेंद्र यादव और किशन खोखर की सजा बढ़ाते हुए 10-10 साल कर दी. बता दें कि इस मामले में 650 से ज्यादा केस दर्ज किए गए थे जिनमें से 268 मामलों की फ़ाइल अब गुम हो चुकी हैं.

सिख संगठनों, जांच आयोग की रिपोर्ट्स और गैर अधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली, कानपुर, राउरकेला और देश के अन्य शहरों में दिन दहाड़े 15,000 सिखों की हत्या कर दी गई थी. अकेले दिल्ली में ही दिन दहाड़े 6 से 7 हजार निर्दोष लोगों की हत्या कर दी गई थी. 3200 से अधिक दंगा पीड़ितों के परिजन आज भी इंसाफ की राह देख रहे हैं. इस दंगे से प्रभावित परिवारों की संख्या 8000 से भी ज्यादा है.

दिल्ली में क्या हुआ: 

रिपोर्ट के मुताबिक, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भीड़ सड़कों पर उतर आई और ‘खून के बदले खून’ का नारा लगा रहा थी. लाजपत नगर, जंगपुरा, डिफेंस कॉलोनी, फ्रेंड्स कॉलोनी, महारानी बाग, पटेल नगर, सफदरजंग एंक्लेव और पंजाबी बाग जैसे मिड्ल और अपर मिड्ल क्लास वाले इलाकों में जमकर लूटपाट और हत्याएं की गईं. यहां दुकानों, घरों और गुरुद्वारों में लूटपाट करने के बाद उनमें आग लगा दी गई. पाकिस्तान से आए सिखों की बस्तियों, स्लम और गावों में हत्या और रेप के साथ लूटपाट और आगजनी की वारदातों को अंजाम दिया गया.

सिख विरोधी दंगों की जांच के लिए बनाए गए थे 10 आयोग

त्रिलोकपुरी, कल्याणपुरी, मंगोलपुरी, सुल्तानपुरी, नंद नगरी, पालम गांव और शकूरपुर  इलाके में बड़ी संख्या में निर्दोषों को मौत के घाट उतारा गया. घरों में आग लगा दी गई और पुरुषों एवं जवान लड़कों की पीट-पीटकर, तलवार से हत्या कर दी गई. कुछ को जिंदा जलाकर मार दिया गया. बड़ी संख्या में महिलाओं का अपहरण और रेप किया गया.

जांच: सिख विरोधी दंगों की जांच के लिए 10 आयोग (मारवाह आयोग, मिश्रा आयोग और नानावती आयोग ) और समितियां (जैन-बनर्जी समिति, कपूर-मित्तल समिति) बनाई गईं. दंगों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) का गठन किया था, जिससे करीब 60 केस फिर से खोले गए थे. कांग्रेस के दो बड़े नेता सज्जन कुमार, कमलनाथ, एचकेएल भगत और जगदीश टाइटलर के अलावा पूर्व पार्षद बलवान खोखर, सेवानिवृत्त नौसैनिक अधिकारी कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल का नाम मुख्य आरोपियों के तौर पर सामने आया.

268 मामलों की फाइल गुम

भले ही सज्जन कुमार को दंगों के बाद 34 साल का वक्त गुजरने के बाद सजा सुना दी गई हो लेकिन 186 मामलों के आरोपी या पीड़ितों की मौत हो चुकी है. बिना किसी अदालती सुनवाई के एचकेएल भगत इस दुनिया से चले गए. कई चश्मदीद गवाह और पीड़ित परिवारों के सदस्य भी इस दुनिया में नहीं रहे. मामले की जांच के लिए अब तक गठित 3 आयोग, 7 कमीशन और 2 एसआईटी टीमें ऐसा भी नहीं कर सकीं कि किसी दोषी को सलाखों के पीछे कुछ दिन तक रखा जा सके. 2014 में मोदी सरकार ने पीपी माथुर के नेतृत्व में जांच को आगे बढ़ाया. माथुर के कहने पर 2015 में एसआईटी का गठन किया, जिसने अब तक इस मामले में चल रहे 650 में से 241 केसों को ही बंद कर दिया. अब तक एसआईटी केवल 12 केसों में ही चार्जशीट दाखिल कर सकी है.

सिख संगठनों के मुताबिक सिख विरोधी दंगों के मामले में 650 मामले दर्ज हुए थे. जांच एजेंसियों ने इनमें से कई मामलों को जांच के योग्य नहीं कहते हुए बंद कर दिया जबकि गृह मंत्रालय का कहना है कि 268 मामलों की फाइल गुम हो गई है. गृह मंत्रालय ने 2016 के नवंबर महीने में जानकारी दी कि गुरमुखी या उर्दू भाषा में एफआईआर होने के कारण जांच में विलंब हुआ. 34 सालों तक एफआईआर का अनुवाद नहीं कराया जा सका.

दिल्ली के अलावा हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, एमपी और यूपी में भी बड़े पैमाने पर सिखों की हत्या और लूटपाट की घटना को अंजाम दिया गया था. लखनऊ, कानपुर, रांची और राउरकेला हिंसा में बुरी तरह झुलसने वाले शहरों में शामिल थे.

1984 में कमलनाथ की संलिप्तता के चलते उनके इस्तीफे की मांग उठी


कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दें राहुल गांधी, कमलनाथ को पार्टी से करें बाहर: BJP

पात्रा ने कहा, जो इंसान सिख विरोधी दंगों में शामिल था, उसे मध्य प्रदेश का सीएम बना दिया गया


बीजेपी नेता संबित पात्रा ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा, ‘राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे देना चाहिए क्योंकि नानावती कमीशन के द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में कमलनाथ का नाम सबूत और हलफनामे के साथ सामने आया है.’

पात्रा ने कहा, ‘जो इंसान सिख विरोधी दंगों में शामिल था, उसे मध्य प्रदेश का सीएम बना दिया गया. राहुल गांधी को उन्हें(कमलनाथ) पार्टी से निष्कासित कर देना चाहिए.’


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Sambit Patra,BJP:Rahul Gandhi should resign as Congress’ chief. Kamal Nath ji’s name crops up along with affidavit & evidence in a report submitted to Nanavati Commission.A man involved in anti-Sikh riots has been made the MP CM. Mr Rahul Gandhi must expel him from the party.


मध्यप्रदेश चुनाव से पहले भी संबित पात्रा ने कमलनाथ के नाम पर मजाक बनाया था. उन्होंने कहा था, ‘आज इस मंच से हम कमलनाथ जी को एक नया नाम दे रहे हैं. वो कमल नाथ नहीं, कमीशन नाथ हैं. मध्यप्रदेश की जनता को कमीशन नाथ नहीं चाहिए, यहां कमल ही खिलेगा.’

हालांकि चुनाव नतीजों में बीजेपी को मध्यप्रदेश में हार का मुंह देखना पड़ा और 15 सालों बाद कांग्रेस ने राज्य में शानदार वापसी की. कांग्रेस ने एमपी फतेह के बाद कमलनाथ को राज्य का सीएम बना दिया.

गौरतलब है कि 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में सिख विरोधी दंगे हुए थे. सज्जन कुमार और कमलनाथ पर इन दंगों को भड़काने का आरोप लगा था.

कमलनाथ पर आरोप था कि गुरुद्वारा रकाबगंज में वह दंगों के दौरान दो घंटे तक मौजूद थे और उन्होंने भीड़ का नेतृत्व किया. हालांकि सज्जन सिंह को इस मामले में उम्रकैद की सजा मिली है वहीं कमलनाथ को सीएम बनाए जाने पर विपक्षी पार्टियां हमलावर हो रही हैं और उन पर कार्रवाई की मांग कर रही हैं.

सज्जन कुमार को दोषी करार दिए जाने के फैसले का सीएम अमरिंदर ने स्वागत किया


1984 के सिख विरोधी दंगा मामले का पंजाब मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने स्वागत किया है.


1984 के सिख विरोधी दंगा मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को दोषी करार दिया है. इसी के साथ उन्हें उम्रकैद की सजा भी सुना दी गई है. इस फैसले का पंजाब मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने स्वागत किया है.

फैसले को लेकर पंजाब सीएम कार्यालय का कहना है कि पंजाब मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 1984 सिख विरोधी दंगा मामले में सज्जन कुमार को दोषी ठहराए जाने के फैसले का स्वागत किया है. साथ ही उन्होंने इसे खुले तौर पर स्वतंत्र भारत में सांप्रदायिक हिंसा के सबसे बुरे उदाहरणों में से एक के पीड़ितों को न्याय का मामला बताया है. हालांकि, मुख्यमंत्री ने अपने स्टैंड को दोहराते हुए कहा है कि न तो कांग्रेस पार्टी और न ही गांधी परिवार की दंगों में कोई भूमिका थी. लेकिन विरोधियों ने इस मामले पर राजनीति करने के लिए इसमें उनका नाम घसीटा.


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Punjab CMO: CM, however, reiterated his stand that neither the Congress party nor the Gandhi family had any role to play in the rioting & lashed out at the Badals for continuing to drag their names into the case at the behest of their political masters – BJP.

ANI


@ANI

Punjab CMO: Punjab Chief Minister Captain Amarinder Singh has welcomed the conviction of Sajjan Kumar in the 1984 riots case, terming it a case of justice finally delivered to the victims of one of the worst instances of communal violence in independent India.


दरअसल, 34 साल बाद आए इस फैसेल में सज्जन कुमार को षडयंत्र रचने, हिंसा कराने और दंगा भड़काने का दोषी पाया गया है. कोर्ट के फैसले के मुताबिक सज्जन कुमार को 31 दिसंबर तक सरेंडर करना होगा. वहीं सज्जन के अलावा कोर्ट ने बलवान खोखर, कैप्टन भागमल और गिरधारी लाल की उम्र कैद की सजा बरकरार रखी है. जबकि पूर्व विधायक महेंद्र यादव और किशन खोखर की सजा बढ़ाते हुए 10-10 साल की जेल की सजा सुना दी है.

हाईकोर्ट का ये फैसला निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आया है. इस मामले में निचली अदालत ने फैसला सुनाते हुए कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को बरी कर दिया था. इसके बाद निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई.

क्या राहुल आरोपों की गंभीरता की समझ रखते है या बस चुनावी फायदे के लिय आरोप लगा दिये: बराला


राफेल मामले पर पूरे देश में ‘जनांदोलन’ शुरू करेगी कांग्रेस: राहुल

राफेल डील पर 100 शहरों में प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगी कांग्रेस: राहुल 

राफेल सौदे में तथ्यों को छिपा रही हैं रक्षा मंत्री सीतारमण: एके एंटनी 

राफेल सौदे की तुलना बोफोर्स से नहीं की जा सकती: चिदंबरम 

मोदी सरकार पर न तो सुप्रीम कोर्ट को शक है और न ही पीएम मोदी की नीयत पर कांग्रेस के सहयोगी एनसीपी क्षत्रप शरद पवार को…


आज देश भर में भारतीय जनता पार्टी ने राफेल डील पर सर्वोच्च न्यायालय के आए फैसले पर प्रेस वार्ता कर राहुल गांधी को घेरा। इसी सिलसिले में कई जगह प्रेस वार्ताएं की गईं।

हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी के प्र्देशाध्यक्ष ने मीडिया कर्मियों को संबोधित करते हुए राहुल गांधी से पूछा

  • क्या राहुल आरोपों की गंभीरता की समझ रखते है या बस चुनावी फायदे के लिय आरोप लगा दिये?
  • राहुल गांधी को बताना चाहिए की उनकी सरकार के कार्यकाल में ऐसा क्या हुआ था कि मनमोहन सिंह इस सौदे को पूरा नहीं कर पाये?
  • कहीं कारण यह तो नहीं कि उस समय क्वात्रोची, या मिशेल जैस कोई या उनके अपने किसी रिश्तेदार को बिचौलिया नहीं बनाया गया और यह सौदा अपने अंजाम तक नहीं पहुंचा?
  • राहुल गांधी के आरोपों पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खारिज किए जाने पर  भाजपा द्वारा उन्हे राष्ट्र को गुमराह करने और अपनी पार्टी के लिए इसका दुरुपयोग करने के लिए सदन में माफी की मांग उठाई है
  • राफेल डील पर प्रधान मंत्री पर आरोप लगन का सुझाव उन्हे किसने दिया?
  • राफेल विमानों की खरीदी में हुई कथित घपलेबाज़ी सुनी सुनाई अफवाह थी या उनके पास कोई ठोस जान कारी भी थी?
  • यदि उनके पास ठोस जान कारी थी तो उन्होने सुप्रीम कोर्ट को अपना सच क्यों नहीं बताया?
  • अब जब राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट ही ने जवाब दे दिया है तब वह राष्ट्र से माफी कब मांगेंगे।

अब राहुल गांधी की तरफ से जवाब देने के लिए सुरजेवाला, सिब्बल ओर मनीष तिवारी कब सक्रिय होते हैं देखना बाकी है।

 

मनोज परीदा चंडीगढ़ के प्रशासक के नए सलाहकार : एक परिचय

चंडीगढ़ ।

चंडीगढ़ के प्रशासक के नवनियुक्त सलाहकार मनोज परीदा युटी काडर के 1986 बैच के अधिकारी है । इस समय वे अरविंद केजरीवाल सरकार के गृह विभाग के प्रमुख सचिव है ।

उन्हें चंडीगढ़ के प्रशासक के सलाहकार परिमल राय के स्थान पर नियुक्त किया गया है । परिमल राय ने 14 मार्च 2016 को कार्यभार संभाला था ।

मनोज परीदा पंडुचेरी के मुख्य सचिव के पद पर भी कार्यरत रहे । लेकिन उनकी वह की उपराज्यपाल किरण बेदी से कुछ मसलों पर न बने कर कारण उन्हें 2017 नवंबर में दिल्ली का गृह सचिव नियुक्त किया गया । उड़ीसा राज्य से संबंध रखने वाले मनोज अगले कुछ दिनों में अपना कार्यभार संभाल लेंगे ।

1984 सिख दंगा: आरोपी सज्जन कुमार दोषी करार, हाईकोर्ट ने दी उम्रकैद की सजा


पूरे 34 साल के बाद हाई कोर्ट ने सज्जन कुमार को दोषी ठहराया गया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई। कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल और पूर्व कांग्रेस पार्षद बलवान खोखर को भी उम्रकैद की सजा हुई है।

  • सिख विरोधी दंगों में पूरे 34 साल के बाद आया बड़ा फैसला

  • कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को हाई कोर्ट से बड़ा झटका

  • निचली अदालत से बरी हुए, अब मिली उम्रकैद की सजा

  • 3 राज्यों में सरकार बनाने के दिन ही कांग्रेस के लिए बुरी खबर


नई दिल्ली
दिल्ली हाई कोर्ट ने 1984 के सिख विरोधी दंगा मामले में निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को दोषी पाया है। दंगा भड़काने और साजिश रचने के आरोपी सज्जन को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। कोर्ट ने हालांकि सज्जन को हत्या के आरोप से बरी कर दिया। सज्जन को 31 दिसंबर 2018 को सरेंडर करना है। उन्हें शहर न छोड़ने का निर्देश दिया है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब कांग्रेस पार्टी तीन राज्यों में सरकार बनाने जा रही है। ऐसे में उसे सियासी हमले भी झेलने पड़ सकते हैं।

दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला पढ़ते हुए कहा, ‘1947 की गर्मियों में बंटवारे के वक्त कई लोगों की हत्या की गई थी। 37 साल बाद दिल्ली में ऐसी ही घटना घटी। आरोपी राजनीतिक संरक्षण का फायदा उठाकर सुनवाई से बच निकले।’ जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस विनोद गोयल की बेंच ने यह फैसला सुनाया। सज्जन कुमार के अलावा कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल और पूर्व कांग्रेस पार्षद बलवान खोखर को भी उम्रकैद की सजा हुई है। वहीं, किशन खोखर और पूर्व विधायक महेंदर यादव को 10 साल जेल की सजा हुई है।

आपको बता दें कि पूरे 34 साल के बाद कोर्ट ने सज्जन कुमार को सजा हुई है, जबकि इससे पहले उन्हें बरी कर दिया गया था। दरअसल, सीबीआई ने 1 नवंबर, 1984 को दिल्ली कैंट के राज नगर इलाके में पांच सिखों की हत्या के मामले में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को बरी किए जाने के निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने पूछा था कि स्टेट मशीनरी क्या कर रही थी? घटना दिल्ली कैंटोनमेंट के ठीक सामने हुई थी।

अकाली दल ने कहा, फांसी हो

शिरोमणि अकाली दल के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए धन्यवाद दिया। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि हमारी लड़ाई जारी रहेगी जबतक कि सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर को मौत की सजा नहीं मिल जाती। उन्होंने गांधी परिवार को भी कोर्ट में खींचने और जेल पहुंचाने की बात कही। गौरतलब है कि मई 2013 में सीबीआई और पीड़ित परिवार के लोगों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।