चंडीगढ़ के बाद महाराष्ट्र में 4 रुपए सस्ता हुआ डीजल


महाराष्ट्र में डीजल की कीमतें 4.06 रुपए कम हो गई हैं. महाराष्ट्र सरकार ने शुक्रवार को डीजल पर करों में कटौती की घोषणा की. राज्य सरकार ने डीजल की कीमत में 1.56 रुपए की कमी की.


तेल की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने लोगों को 2.5 रुपए की राहत देने का ऐलान किया था. साथ ही उन्होंने राज्य सरकारों से भी तेल की कीमतों में कमी करने की बात कही थी. इसके बाद कई राज्यों ने तेल की कीमतों में कमी की और अब बिहार सरकार ने भी उसी दिशा में कदम उठाते हुए पेट्रोल-डीजल के दामों में कमी कर दी है.

इसके पहले चंडीगढ़ और बिहार सरकार ने तेल की कीमतों में कमी की घोषणा की थी. चंडीगढ़ प्रशासन ने पेट्रोल-डीजल पर 1.50 रुपए कम कर दिए थे जिसके बाद चंडीगढ़ में पेट्रोल-डीजल कुल 4 रुपए सस्ता हो गया. वहीं बिहार सरकार ने दामों में कटौती करते हुए पेट्रोल 2.52 रुपए प्रति लीटर और डीजल 2.55 रुपए प्रति लीटर सस्ता कर दिया.

इससे पहले तेल के दाम कम करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा है कि सरकार एक्साइज ड्यूटी 1.5 रुपए कम कर रही है और तेल कंपनियां भी एक रुपए दाम कम करेंगी. इसके अलावा जेटली ने राज्य सरकारों से भी टैक्स कम करने को कहा था.

छत्तीसगढ़ में सीडी की बात सार्वजनिक होने से कांग्रेस नेताओं में हड़कंप


छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का नेतृत्व संकट गहरा गया है. पार्टी के दो बड़े नेताओं को लेकर विवाद हो गया है.


छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का नेतृत्व संकट गहरा गया है. पार्टी के दो बड़े नेताओं को लेकर विवाद हो गया है. विवाद की वजह सीडी है. जिसमें कांग्रेस के प्रदेश मुखिया और राज्य के प्रभारी पीएल पुनिया का नाम आ रहा है. पीएल पुनिया इस साल ही छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी बनाए गए थे. सीडी की बात सार्वजनिक होने से कांग्रेस नेताओं में हड़कंप है.

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को चुनाव की तैयारी में व्यस्त होना चाहिए. पार्टी किसी और वजह से परेशान है. छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ नेता दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं. ये नेता राहुल गांधी से मिलने के लिए इंतजार कर रहे हैं. सब अपनी बात राहुल गांधी को बताना चाहते हैं. एक खेमा स्टेट प्रेसिडेंट भूपेश बघेल और राज्य के प्रभारी पी एल पुनिया दोनों के खिलाफ है. एक खेमा पूरे प्रकरण के लिए भूपेश बघेल को ज़िम्मेदार बता रहा है. छत्तीसगढ़ में इस प्रकरण से कांग्रेस आलाकमान अंजान नहीं है.

छत्तीसगढ़ में सूत्रों के मुताबिक प्रदेश के प्रभारी पीएल पुनिया की कथित सीडी किन्हीं लोगों के पास है. सीडी में क्या है इसका खुलासा नहीं हो पा रहा है, लेकिन जिन लोगों के पास सीडी है, वो तीन विधानसभा सीट के लिए कांग्रेस से टिकट की मांग कर रहे हैं. जिसकी बातचीत का ऑडियो वायरल हो गया है. इस बातचीत का ऑडियो वायरल होने से कांग्रेस में हड़कंप मचा हुआ है. कांग्रेस के नेता परेशान है. राज्य में कांग्रेस का माहौल बन रहा था तभी सीडी कांड हो गया है.

बीजेपी आक्रामक

अभी तक बीजेपी बैकफुट पर थी फ्रंट फुट पर आ गई है. बीजेपी के नेता अमित शाह ने भी कांग्रेस को आड़े हाथ लिया है. उन्होंने आरोप लगाया है कि ये कांग्रेस का असली चरित्र है. बीजेपी को बैठे बिठाए कांग्रेस के खिलाफ मुद्दा मिल गया है. जिस हिसाब से बीजेपी ने मुद्दा उठाया है उससे साफ है कि कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई का बीजेपी लाभ लेना चाहती है.

पुनिया और भूपेश बघेल का किरदार

छत्तीसगढ़ में बताया जा रहा है कि पीएल पुनिया और भूपेश बघेल के बीच अनबन चल रही है. भूपेश बघेल को पुनिया के काम काज को लेकर ऐतराज था. तब से पुनिया को निबटाने की योजना बन रही थी. जिसमें बताया जा रहा है कि कांग्रेस के ही नेताओं ने साजिश के तहत प्रभारी पी.एल. पुनिया का स्टिंग कर दिया है. जिसके बाद सीट के लिए ब्लैकमेलिंग चल रही है.

एक ऑडियो वॉयरल हो रहा है जिसमें तीन सीटों को लेकर बातचीत करते हुए सुना जा सकता है. इस ऑडियो को अग्रेजी चैनल ने प्रसारित भी किया है. बताया जा रहा है कि प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल और पप्पू फरिश्ता की आवाज है. जिसकी पुष्टि नहीं हो पाई है.

पप्पू फरिश्ता, फिरोज सिद्दीकी और भूपेश बघेल

छत्तीसगढ़ में सीडी का कारोबार 2003 से चल रहा है. 2003 में तब के मुख्यमंत्री अजित जोगी का स्टिंग ऑपरेशन फिरोज सिद्दीकी ने किया था. जिसमें अजित जोगी बीजेपी के विधायक को कांग्रेस में आने का न्योता दे रहे थे. उस वक्त फिरोज अजित जोगी के करीबी थे. जिसमें पप्पू फरिश्ता का अहम रोल था. इस खुलासे के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सोनिया गांधी से शिकायत की थी. इस मामले में अजित जोगी को कांग्रेस ने निलंबित कर दिया था. तब से रमन सिंह की सरकार है.

बाद में ये दोनों व्यक्ति पप्पू फरिश्ता और फिरोज सिद्दीकी भूपेश बघेल के करीबी हो गए. अजित जोगी को राजनीतिक तौर पर कमजोर करने के लिए इन दोनों का भूपेश बघेल ने खूब इस्तेमाल किया. अजित जोगी कांग्रेस से बाहर हो गए हैं. लेकिन अब फिरोज सिद्दीकी ने दावा किया है कि भूपेश बघेल का स्टिंग उनके बंगले में ही किया गया है. पप्पू फरिश्ता और फिरोज दोनों पेशे से अपने को पत्रकार बताते हैं, लेकिन स्टिंग करने में माहिर हैं.

कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई सड़क पर

कांग्रेस के लगभग सभी नेता दिल्ली दरबार में पहुंच बनाने की जुगत में है. लीडर ऑफ अपोजिशन टी.एस. सिंह देव, पूर्व मुखिया रवींद्र चौबे, चरणदास महंत सभी अपनी बात रखने के लिए राहुल गांधी से मिल रहे हैं. कांग्रेस के सामने मुश्किल है कि चुनाव सिर पर है, पार्टी इस तरह के विवाद में उलझ गई है. सभी चाहते हैं कि आलाकमान जल्दी से फैसला लेकर चुनाव की तैयारी करे. सब को अपने भाग्य खुलने की उम्मीद है. हालांकि अपनी सफाई देने के लिए भूपेश बघेल भी दिल्ली में हैं.

डैमेज कंट्रोल मोड में कांग्रेस

कांग्रेस पूरे मसले पर डैमेज कंट्रोल मोड में है. पार्टी विवाद से बचने के लिए सभी विवादित लोगों के हटाने के लिए विचार कर रही है. ऐसे में चुनाव से ऐन पहले प्रदेश का नेतृत्व किसके हाथ में जाएगा ये बड़ा सवाल है. पूर्व में प्रदेश के मुखिया रहे चरणदास मंहत पर पार्टी फिर से भरोसा कर सकती है. वहीं प्रभारी के तौर पर फिलहाल मुकुल वासनिक या बीके हरिप्रसाद को भेजा जा सकता है. मुकुल वासनिक पिछले चुनाव में प्रदेश की देख-रेख कर रहे थे. बीके हरिप्रसाद कई साल तक राज्य के प्रभारी रह चुके हैं.

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को लग रहा था, इस बार सरकार बन सकती है. पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को भी उम्मीद थी. पहली बार बिना अजित जोगी के कांग्रेस चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही थी. अब तक हार का ठीकरा अजित जोगी पर फूटता रहा है. प्रदेश के नेता ये आरोप लगाते रहे कि अजित जोगी और रमन सिंह की मिलीभगत है, इसलिए कांग्रेस जीत नहीं पा रही है. हालांकि पार्टी के सीनियर नेता मोतीलाल वोरा भी इस प्रदेश से आते हैं. लेकिन जोगी और वोरा के बीच खाई गहरी थी. एक जमाने में अजित जोगी सोनिया गांधी के करीबी थे. छत्तीसगढ़ का पहला मुख्यमंत्री अजित जोगी को बनाया गया था लेकिन अपनी कार्यशैली की वजह से जोगी 2003 में चुनाव हार गए. तब से प्रदेश में बीजेपी का शासन है.

इस बार कांग्रेस बीजेपी के सीधे मुकाबले में थी. कांग्रेस को कामयाबी मिल सकती है लेकिन अजित जोगी काम खराब करने के लिए मुकाबले में हैं. अजित ने मायावती के साथ गठबंधन करके कांग्रेस के सामने दोहरी चुनौती पेश कर दी है. इधर कांग्रेस के नेताओं की सीडी की चर्चा भी शुरू हो गई है. जिससे कांग्रेस की किरकिरी हो रही है.

आखिर क्यूँ …


मध्य प्रदेश में मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है. छत्तीसगढ़ में अजित जोगी के साथ गठबंधन किया है. जहां तक राजस्थान की बात है पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गठबंधन के समर्थन में नहीं थे.


लखनऊ में इस साल जून में उत्तर प्रदेश के सीनियर मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य से मुलाकात हुई थी. ये मंत्री जी पहले बीएसपी में थे. अब बीजेपी में हैं. गठबंधन को लेकर बातचीत हो रही थी. उन्होंने कहा कि मायावती कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेंगी. मैंने कारण पूछा तो कहा कि मायावती को डर रहता है कि बीएसपी का वोट कांग्रेस में न चला जाए. मायावती कहती है कि पहले ये वोट कांग्रेस में ही था. जाहिर है कि तीन राज्यों के चुनाव में मायावती ने एकला चलो का नारा बुलंद किया है. स्वामी प्रसाद मौर्य की भविष्यवाणी सच साबित हुई है. मायावती ने ऐन मौके पर कांग्रेस को गच्चा दिया है. कुछ ऐसा ही अंदेशा बीएसपी से कांग्रेस में आए नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने भी किया था. ये लोग ऐसे है कि जिन्होंने मायावती के साथ कई दशक तक काम किया है. मायावती की राजनीति को अच्छी तरह समझते हैं.

राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस अकेले पड़ गई है. कांग्रेस को आस थी कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीएसपी के समर्थन से बीजेपी के पंद्रह साल के राज का अंत कर पाएंगे, लेकिन मध्य प्रदेश में मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है. छत्तीसगढ़ में अजित जोगी के साथ गठबंधन किया है. जहां तक राजस्थान की बात है पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गठबंधन के समर्थन में नहीं थे.

मायावती ने इस पूरे मामले में दिग्विजय सिंह पर ठीकरा फोड़ा है. मायावती ने आरोप लगाया है कि दिग्विजय बीजेपी के एजेंट हैं. जिसका कई ट्वीट के जरिए दिग्विजय सिंह ने खंडन किया है. दिग्विजय सिंह ने कहा कि वो मायावती का सम्मान करते हैं, वो चाहते थे कि मायावती के साथ गठबंधन हो जाए इसके अलावा दिग्विजय सिंह ने अपनी सफाई में कहा है कि वो नरेंद्र मोदी और अमित शाह के सबसे बड़े आलोचक हैं. जाहिर है कि दिग्विजय अपना बचाव कर रहे हैं लेकिन मायावती का इल्जाम बहुत हद तक सही नहीं है. कांग्रेस ने कोई लिस्ट जारी नहीं की है न ही अभी कोई फैसला हुआ है. जबकि प्रदेश की कमान संभाल रहे कमलनाथ गठबंधन के हिमायती हैं. ऐसा लग रहा है कि मायावती गठबंधन से निकलने की फिराक में थीं.

कांग्रेस को होगा नुकसान

कांग्रेस का ओवर कॉन्फिडेंस उसे ले डूबा है. कांग्रेस को लग रहा था कि मायावती गठबंधन के लिए ज्यादा बेकरार हैं इसलिए पार्टी आश्वस्त थी. लेकिन ये नहीं सोचा कि मायावती अलग तरह के फैसले लेने के लिए विख्यात हैं. कांग्रेस को लगा कि गठबंधन का मसला लटकाने से कांग्रेस को फायदा होगा लेकिन मायावती ने कुछ और सोच रखा था और नतीजा आपके सामने है. मायावती के इस फैसले से बीजेपी को फायदा होने की उम्मीद है. मायावती की बीएसपी का तकरीबन बीस सीट पर 30 से 35 हजार वोट है. जबकि मध्य प्रदेश में हर सीट पर 5 से 10 हजार वोट है. जो बीजेपी के खिलाफ एकजुट होता तो कांग्रेस को फायदा होता, लेकिन अब बंटने की सूरत में बीजेपी को फायदा हो सकता है. शिवराज सिंह चौहान के लिए राजनीतिक संजीवनी बन सकती है.

बीजेपी को नाराज नहीं करना चाहती

मायावती बीजेपी को नाराज नहीं करना चाहती है. मायावती को डर है कि उनके भाई पर शिंकजा कस सकता है. जिसकी वजह से फूंक-फूंक कर राजनीतिक फैसले कर रही हैं. मायावती इन चुनाव वाले राज्यों में मजबूत प्लेयर नहीं हैं लेकिन नाइटवॉचमैन की भूमिका में हैं. मायावती समझ रही हैं कि वैसे ही वो इन तीनों राज्यों में सरकार बनाने की स्थिति में नहीं हैं. कांग्रेस के साथ जाने में भी कोई राजनीतिक ताकत का इजाफा नहीं हो रहा है. इसलिए बीजेपी से दुश्मनी न करने में ही भलाई समझी है.

मायावती ने लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस को फिर उम्मीद बंधाई है. मायावती ने कहा कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी गठबंधन के हिमायत में थे. मायावती आम चुनाव में कांग्रेस के साथ संभावना बनाकर रखना चाहती हैं. आम चुनाव में हो सकता है कि बीजेपी के दबाव में न रहे. इसलिए कांग्रेस मायावती को कुछ भी कहने से बच रही है. दिग्विजय सिंह भी अपनी सफाई ही दे रहे हैं. मायावती पर पलटवार नहीं कर रहे हैं. कांग्रेस के साथ आगे किसी भी रिश्ते की संभावना से आगे इनकार नहीं किया जा सकता है.

अकेले चलना कांग्रेस के लिए मुफीद ?

कांग्रेस के लिए तीनों राज्यों में अकेले लड़ना ज्यादा फायदेमंद है. मायावती को खुश करने के लिए ज्यादा सीट देनी पड़ती जिससे कांग्रेस को ज्यादा नुकसान हो सकता था. ऐसी सीटों पर बागी उम्मीदवार के लड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता है. जिससे कांग्रेस को ही नुकसान होता, जिस तरह 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में हुआ था. इसके अलावा बीजेपी के खिलाफ आमने-सामने की लड़ाई में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ता अब त्रिकोणीय लड़ाई में कांग्रेस को फायदा हो सकता है.

कैसे चलेगा गठबंधन ?

कांग्रेस 2019 से पहले गठबंधन के मंसूबों पर पानी फिरता दिखाई पड़ रहा है. राज्यों के चुनाव में गठबंधन न कर पाना कांग्रेस की कमजोरी के तौर पर देखा जा रहा है. इसमें गठबंधन हो जाने से टेस्ट हो जाता और आगे इसमें सुधार की गुंजाइंश भी बनी रहती. अब नए सिरे से मेहनत करनी होगी जिस तरह राज्य के लीडर्स तेवर दिखा रहे हैं. उससे लग रहा है कि कांग्रेस के लिए आगे की राह आसान नहीं है.

ममता बनर्जी राहुल गांधी को लेकर सवाल खड़े कर रही है. शरद पवार अपनी बिसात बिछा रहे हैं. साउथ में भी हालात बहुत अच्छे नहीं है. कांग्रेस को नए सिरे से कवायद करने की जरूरत है.

 

कभी राहुल के राजनैतिक गुरु रहे दिग्गी राजा अब अपनी ही पार्टी में हाशिये पर


दिग्विजय खुद कहते हैं कि उनका नाम मध्य प्रदेश में जो भी सीएम के तौर पर ले रहा है, वो उनका और पार्टी का हितैषी नहीं हो सकता है. लेकिन दिग्विजय सिंह के ये बयान पूरी तरह राजनीतिक हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. परंतु पार्टी उन्हें खास तवज्जो दिखाई देती नहीं दिख रही है.


दिग्विजय सिंह अक्सर अपने बयानों के कारण चर्चा में रहते हैं. उनके बयान और विवाद का चोली दामन का रिश्ता रहा है. लेकिन अपने खास अंदाज में बात करने वाले दिग्विजय सिंह अपनी बातों को सामने रखने में तनिक भी संकोच नहीं करते. खासकर तब जब बीजेपी को किसी मसले पर घेरना हो तो ऐसा मौका गंवाना उन्हें गवारा नहीं है. वैसे हाल की गतिविधियों से पता चलता है कि कांग्रेस पार्टी उनसे किनारा करने लगी है. लेकिन ये दिग्विजय सिंह हैं, जो अपने एक के बाद दूसरे बयानों से मीडिया की सुर्खियां बटोरने में पिछड़ते नहीं हैं.

भले ही वो सोशल मीडिया में ट्रोल हों या फिर टीवी या अखबारों में उनके बयान को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया हो. लेकिन दिग्गी राजा सुर्खियों में न रहें ये ज्यादा दिन तक हो नहीं सकता. बीजेपी पर अटैक करने में वो कई बार जल्दबाजी दिखा चुके हैं.

इन दिनों वो सोशल मीडिया पर एक ट्वीट करने के चलते खूब चर्चा में हैं. इस ट्वीट में उन्होंने योगी आदित्यनाथ को यूपी में जर्जर हो रहे स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए आड़े हाथों लिया है. वैसे उन्होंने जिस फोटोग्राफ का चयन ट्वीट में किया है, उसमें एंबुलेंस के ऊपर तेलगु में शब्द लिखे हुए हैं. इस सच्चाई के सामने आने पर सोशल मीडिया में फेक फोटोग्राफ इस्तेमाल करने को लेकर उनकी खूब खिंचाई हो रही है.

लेकिन दिग्विजय सिंह कभी भी इसकी परवाह नहीं करते. वो कहते हैं कि मोदी, शाह, बीजेपी और संघ का विरोधी वो शुरू से रहे हैं. और आगे भी देश को तोड़ने वाली ताकतों के खिलाफ लड़ते रहेंगें. लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती ने उन्हें बीजेपी और आरएसएस का एजेंट करार देकर डिफेंसिव कर दिया है.

दरअसल मायावती ने यह आरोप लगा दिया है कि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं होने की वजह दिग्विजय सिंह हैं और वो आरएसएस और बीजेपी के एजेंट के रूप में कांग्रेस पार्टी के अंदर कार्य कर रहे हैं. इस बयान से तिलमिलाए दिग्विजय सिंह ने कहा कि वो हमेशा से कांग्रेस और बीएसपी गठबंधन के पक्षधर रहे हैं और वो मायावती का सम्मान करते हैं. वो राहुल गांधी को अपना नेता मानते हैं और कोई भी काम उनकी मर्जी के बगैर नहीं करते हैं.

दिग्विजय सिंह ने बीएसपी पर आरोप लगाते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में तालमेल करने में बीएसपी ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, वहीं मध्यप्रेदश में जब बात चल ही रही थी, उसी दरमियान बीएसपी ने अपने 22 उम्मीदवार घोषित कर दिए. इतना ही नहीं आरोप-प्रत्यारोप के दौर में दिग्विजय सिंह ने मायावती पर आरोप लगाया कि वो सीबीआई के डर से गठबंधन में शामिल नहीं हो रही हैं. जाहिर है इस बयान से तिलमिलाई मायावती ने गठबंधन नहीं होने का सारा ठीकरा दिग्विजय के मत्थे फोड़ा और उनके बहाने कांग्रेस को भी आड़े हाथों लिया.

कांग्रेस के भीतर भी हाशिए पर खड़े दिग्विजय सिंह

दिग्विजय सिंह अपने ऊपर लगे इन आरोपों का जवाब खुद को संघ और बीजेपी का धुर विरोधी बताते हुए देते हैं. जाहिर है सालों से बीजेपी के खिलाफ मुखर रहे दिग्विजय के ऊपर मायावती ने संघ और बीजेपी का एजेंट बताकर उनकी राजनीतिक साख की जड़ें हिलाने की कोशिश की है. जिसने दिग्गी राजा को थोड़ा डिफेंसिव कर दिया है.

वैसे इन दिनों दिग्विजय सिंह पार्टी के भीतर भी हाशिए पर दिखाई पड़ने लगे हैं. उन्हें पार्टी अध्यक्ष ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी में जगह न देकर सबको चौंका दिया है. पार्टी के इतने बड़े कद्दावर नेता को कांग्रेस के होर्डिंग और कट आउट में जगह नहीं दिया जा रहा है. भोपाल में संपन्न हुई रैली में पार्टी के पोस्टर में सिंधिया, कमलनाथ, और कांतिलाल भूरिया जैसे नेताओं को जगह दिया गया लेकिन दिग्विजय सिंह नदारद रहे. जाहिर है इसके बाद प्रदेश में उनकी अहमियत को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं.

वैसे दिग्विजय सिंह कांग्रेस के नेताओं में वो पहले शख्स हैं, जिन्होंने राहुल गांधी को नेतृत्व देने को लेकर सबसे पहले आवाज बुलंद करना शुरू किया था. माना जा रहा था कि राहुल राजनीतिक शह और मात का खेल दिग्विजय सिंह की देख रेख में सीख रहे थे. इतना ही नहीं भट्ठा परसौल में राहुल के किसान प्रेम को लेकर जो सुर्खियां बटोरी गई थी. उसका सारा क्रेडिट भी दिग्विजय सिंह ने ही लिया. लेकिन हाल के कई डेवलपमेंट पार्टी के भीतर उनकी कमजोर होती पकड़ को साफ बयां कर रही हैं.

ऐसे में दिग्विजय सिंह का नीतीश कुमार पर जोरदार हमला कई मायनों में अखबार की सुर्खियों से ज्यादा कुछ लग नहीं रहा है. दिग्विजय सिंह ने हाल के अपने बयान में नीतीश कुमार को सत्ता का भूखा करार दिया है, साथ ही ये भविष्यवाणी कर डाली है कि नीतीश लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए की हार के खतरे को भांप कर यूपीए गठबंधन में शामिल होंगे.

सवाल उनके इस बयान को लेकर गंभीरता का है. ये महज राजनीतिक है या फिर आने वाले समय में होने वाली राजनीतिक गोलबंदी की भविष्यवाणी. वैसे जानकार इसे राजनीतिक टीका टिप्पणी से ज्यादा कुछ खास तवज्जो नहीं देते हैं.

ऐसा इसलिए भी है क्योंकि कांग्रेस की वर्तमान टीम में दिग्विजय सिंह का रोल नीति निर्धारक के तौर पर तो बिल्कुल नहीं दिखता है. मध्य प्रदेश में 10 साल सीएम के पद पर कार्य कर चुके दिग्विजय सिंह के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ की जोड़ी भारी पड़ने लगी है. कभी नक्सल के ऊपर कांग्रेस सरकार के एक्शन की हवा निकाल देने वाले दिग्विजय सिंह के लिए उनकी अपनी छवि ही उन्हें भारी पड़ने लगी है.

गोवा में सरकार नहीं बनने का जिम्मेदार उन्हें ठहराया जा रहा है. उन पर आरोप था कि उनकी निष्क्रियता के चलते पार्टी सरकार बनाने से चूक गई. इतना ही नहीं उन पर बीजेपी के आगे झुक जाने का भी आरोप लगा क्यूंकि दिग्विजय वहां के प्रभारी थे. वैसे दिग्विजय खुद कहते हैं कि उनका नाम मध्य प्रदेश में जो भी सीएम के तौर पर ले रहा है, वो उनका और पार्टी का हितैषी नहीं हो सकता है. लेकिन दिग्विजय सिंह के ये बयान पूरी तरह राजनीतिक हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. परंतु पार्टी उन्हें खास तवज्जो दिखाई देती नहीं दिख रही है.

पाकिस्तान ने 18 अंतर्राष्ट्रीय सहायता संगठनों को कामकाज समेटने के लिए दिया 60 दिनों का वक्त

 

पाकिस्तान ने 18 अंतर्राष्ट्रीय सहायता संगठनों को बंद करने के आदेश दिए है. जिससे देश के उन सबसे जरूरतमंद लोगों के सामने सहायता मिलने का खतरा पैदा हो गया है जिन्हें ये संगठन मदद उपलब्ध कराते थे. अंतरराष्ट्रीय सहायताकर्मियों ने यह जानकारी दी.

सरकार की एक सूची के अनुसार जिन सहायता समूहों को बंद करने के आदेश दिए गए है उनमें से ज्यादातर अमेरिका के है जबकि बाकी ब्रिटेन के है. सरकार के ताजा आदेश में जिन सहायता समूहों को बंद करने के आदेश दिए गए है उनमें वर्ल्ड विजन यूएस, कैथोलिक रिलीफ सर्विस यूएस, इंटरनेशनल रिलीफ और डेवल्पमेंट यूएस, एक्शनएड यूके और डेनिश रिफ्यूजी काउंसिल, डेनमार्क आदि हैं.

पाकिस्तान की नई सरकार से इस संबंध में कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं आया है और गृह मंत्रालय के जरिए जारी किए गए आदेश से सहायता समूहों को बंद किए जाने से संबंधित सवालों का कोई जवाब नहीं दिया गया है. सूचना मंत्रालय और विदेश मंत्रालय ने प्रतिक्रिया के लिए एपी के अनुरोधों का कोई जवाब नहीं दिया.

प्लान इंटरनेशनल के कंट्री निदेशक इमरान युसूफ शामी ने बताया कि संगठनों को अपना कामकाज समेटने के लिए 60 दिनों का समय दिया गया है. प्लान इंटरनेशनल को बताया गया कि उसके पंजीकरण से इनकार कर दिया गया है. इस संगठन का मुख्यालय ब्रिटेन में है और यह एक वैश्विक संगठन है जो शिक्षा और बच्चों के अधिकारों पर ध्यान केन्द्रित करता है. शामी ने कहा कि इन समूहों के बंद होने से पाकिस्तान के जरूरतमंद लोगों को ठेस पहुंचेंगी.

पंचकूला सरकारी अस्पताल फिर सवालों के घेरे में

RK, पंचकुला:

चंडीगढ़,(:पंचकूला का सैक्टर 6 का सरकारी अस्पताल में छेडछाड का एक ओर बड़ा मामला सामने ेआया है। जानकारी के अनुसार शुक्रवार को अस्पताल के अंदर  इलाज के लिए एक  महिला  दाखिल हुई तो उसी समय एक युवक ने महिला से छेड़छाड की। महिला ने सिक्योरिटी गाड्र्स को बताया तो सिक्योरिटी गाड्र्स ने आरोपी को पुलिस के हवाले करने की बजाए,उसका बचाव करते हुए अस्पताल से भगा दिया।

जब अस्पताल प्रबंधन तक पहुंची मामले की जानकारी,तो अब अस्पताल प्रबंधन ने आनन-फानन में महिला को पीजीआई चंडीगढ़ रेफ र करने की कवायद की शुरू कर दी गई। जानकारी के अनुसार महिला व उसके परिजनों ने बताया कि ज्यादती के खिलाफ आवाज उठाना क्या है गुनाह? हम गरीबों के पास नही पीजीआई में इलाज करवाने के पैसे नही है। बतां दे कि महिला अमलादेवी  पिंजौर के चरनियाँ की रहने वाली है  और  2 अक्टूबर से महिला अस्पताल में है भर्ती है और महिला की बच्चेदानी की ट्यूब में बच्चा फंसा बताया जा रहा है। उसे सही ईलाज भी नही मिल रहा है।

जब अस्पताल के सीएमओ योगेश कुमार से बात की गई तो उन्होंने कहा कि  मेरे ध्यान में मामला अब आया है मामले की जांच की जाएगी  जो भी पाया जाएगा दोषी,उसे बक्शा नही जाएगा

अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत एस 400 डील कर दुनिया को ये संदेश देने में कामयाब हो गया कि  कूटनीतिक, समारिक और कारोबारी हितों के लिए हर दोस्त जरूरी होता है


ट्रंप के अप्रत्याशित रवैये को देखते हुए अमेरिका ये तय नहीं कर सकता कि भारत के लिए उसका कारोबारी और सामरिक दोस्त कौन होगा

भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती करीबी का ये मतलब नहीं कि भारत और रूस के बीच दूरियां बन गईं

भारत और रूस के बीच सामरिक करारों का सिलसिला कई दशकों पुराना है. ये वक्त के थपेड़ों के बावजूद नहीं बदला. इस पर सोवियत संघ के टूटने का असर नहीं पड़ा


भारत-रूस के रिश्तों को 70 साल हो गए हैं. सत्तर साल पुराने रिश्तों में एस 400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की डील को निर्णायक माना जा सकता है. इसकी बड़ी वजह ये है कि भारी अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत ने रूस के साथ इस करार पर मुहर लगाई. एस 400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम भारत के लिए अहम रक्षा कवच है. भारत ने अमेरिका की खुली नाराजगी के बावजूद रूस के साथ इस पर करार किया.

भारत ने अमेरिका की उस चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया जिसमें सहयोगी देशों को ये ताकीद किया गया है कि वो रूस के साथ किसी भी तरह का लेन-देन न करें. अमेरिका ने आगाह किया कि रूस के साथ बड़ा सौदा करने वाले देश को प्रतिबंध भुगतने पड़ सकते हैं. लेकिन भारत ने न तो अमेरिकी चेतावनियों की परवाह की और न ही प्रतिबंधों की.

सवाल उठता है कि अमेरिका के साथ तमाम सामरिक, आर्थिक, कूटनीतिक साझेदारी के बावजूद भारत रूस के साथ सैन्य डील करने को क्यों राजी हुआ? खासतौर से तब जबकि चीन और पाकिस्तान के साथ भी रूस की नजदीकियां बढ़ी हैं. तो वहीं सवाल ये भी उठता है कि आखिर अमेरिका चाहता क्या है?  एक तरफ भारत पर ईरान से तेल न खरीदने का अमेरिकी दबाव है तो दूसरी तरफ रूस के साथ लेन-देन पर भी अमेरिकी तेवर.

दरअसल, ट्रंप के शासनकाल में अमेरिका की विदेश नीति में ट्रंप-नीति ही अबतक हावी दिखी है. चाहे वो उत्तर कोरिया का मामला हो या फिर रूस का. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों से उलट राय रखते हैं. वो कभी रूस को अच्छा दोस्त मानते हैं तो कभी अमेरिकी चुनावों में रूस की दखलंदाजी से इनकार करते हैं. वो अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में रूसी हैकिंग को लेकर अपनी ही खुफिया एजेंसियों के दावों को खारिज कर देते हैं. वो जी-7 देशों से रूस को समूह में शामिल करने की मांग करते हैं. तो वहीं दूसरी तरफ रूस के साथ किसी भी तरह के लेन-देन के लिए सहयोगी देशों को धमकाते हैं. ऐसे में ट्रंप के अप्रत्याशित रवैये को देखते हुए अमेरिका ये तय नहीं कर सकता कि भारत के लिए उसका कारोबारी और सामरिक दोस्त कौन होगा.

मौजूदा परिवेश को देखते हुए एक बार फिर विश्व दो ध्रुवीय व्यवस्था के बीच बंटा हुआ दिखाई दे रहा है. इसमें एक तरफ अमेरिका और पश्चिमी देश हैं तो दूसरी तरफ रूस और चीन हैं. हाल ही में रूस ने दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास कर खुद के महाशक्ति होने के दावे को पुख्ता किया. रूस के साथ इस सैन्य अभ्यास में चीन भी शामिल था. चीन के साथ अमेरिका का ट्रेड वॉर छिड़ा हुआ है तो दक्षिणी चीन सागर में चीन और अमेरिका के युद्धपोत एक दूसरे के सामने आ खड़े हुए हैं.

मध्य-पूर्व में सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद को अपदस्थ करने की अमेरिकी कोशिशों को रूस ने नाकाम कर दिया. असद सरकार की हिफाज़त में रूस खड़ा हुआ है तो ईरान के साथ भी रूस है वहीं अमेरिकी शह पर सऊदी अरब सीरिया के मामले में रूस और ईरान के खिलाफ है तो इस्रायल भी ईरान को धमका रहा है. इन सबसे थोड़े ही दूर पाकिस्तान अब रूस के भीतर अमेरिका जैसी दोस्ती तलाश रहा है.

पाकिस्तान चाहता है कि जितनी जल्दी अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी हो जाए ताकि दक्षिण एशिया में अमेरिका का प्रभुत्व कम हो सके. अमेरिकी फटकार के बाद अब पाकिस्तान चीन और रूस में अपना भविष्य देख रहा है. लेकिन दिलचस्प ये है कि सऊदी अरब के साथ खड़ा पाकिस्तान रूस के साथ रिश्तों का समीकरण बनाने में जुटा हुआ है जबकि सीरिया के मामले में रूस और सऊदी अरब आमने-सामने हैं.

तेजी से बदलते दुनिया के कूटनीतिक और सामरिक माहौल में भारत को भी अपने हित के लिए निडर हो कर फैसला लेने का हक है. उसी के चलते अब भारत ने अमेरिका के साथ रिश्तों की नई पहचान बनाने के बावजूद पुराने मित्र रूस को भुलाया नहीं है.

सत्तर साल के दरम्यान भारत के लिए रूस दोस्ती की हर परीक्षा में खरा उतरा है. वो रूस ही था जिसने 22 जून 1962 को वीटो का इस्तेमाल करते हुए कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत का समर्थन किया था. उस वक्त कश्मीर को भारत से छीन कर पाकिस्तान को देने की साजिश के तहत भारत के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया गया था जिस पर रूस ने पानी फेर दिया था. वो रूस ही है जो भारत की एनएसजी में दावेदारी के समर्थन में खड़ा रहा है. ये तक माना जाता है कि डोकलाम मुद्दे पर भी रूस पर्दे के पीछे से भारत के साथ ही खड़ा था.

भारत के रूस के साथ सांस्कृतिक और सामाजिक रिश्ते भी हैं. ये रिश्ते सिर्फ आर्थिक समझौतों पर आधारित कभी नहीं रहे. भारत के औद्योगीकरण में रूस की साझेदारी, तकनीक और योगदान ने भारत के विकास में बड़ी भूमिका निभाई है. कारखानों, डैम, पॉवर प्लांट, परमाणु संयंत्र और अनुसंधान केंद्र का निर्माण बिना रूस की मदद के संभव नहीं था. रूस हमेशा ही भारत के साथ सैन्य और अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोगी रहा.

रूस की ही मदद से भारत ने साल 1975 में आर्यभट्ट के रूप में पहला सैटेलाइट लॉन्च किया था तो रूस की ही मदद से भारत ने ब्रह्मोस जैसी सुपरसोनिक मिसाइल बनाई. भारतीय थल सेना में टी-20 और टी-72 जैसे टैंक रूस निर्मित हैं तो सुखोई और मिग-21 जैसे लड़ाकू विमान रूस की देन हैं. भारत और रूस के बीच सामरिक करारों का सिलसिला कई दशकों पुराना है. ये वक्त के थपेड़ों के बावजूद नहीं बदला. इस पर सोवियत संघ के टूटने का असर नहीं पड़ा.

हालांकि बीच में अमेरिका और भारत की बढ़ती नजदीकी ने पाकिस्तान को रूस की तरफ उम्मीदों से देखने को मजबूर किया. पाकिस्तान ने रूस से लड़ाकू विमान और टैंक खरीदने की दिली ख्वाहिश का इजहार कर सैन्य आपूर्ति को लेकर अमेरिका पर निर्भरता को कम करने की कोशिश की. उधर रूस भी अफगानिस्तान से भविष्य में अमेरिकी सेना की वापसी की संभावनाओं को देखते हुए मध्य एशिया में तालिबानी खतरे के मद्देनजर पाकिस्तान के साथ रिश्तों को मजबूती देना चाहता है. हालांकि इन रिश्तों की बुनियाद साल 1949 में ही पड़ गई होती अगर उस वक्त पाकिस्तान के नेता लियाकत अली खान सोवियत संघ के न्योते को कबूल कर गए होते.

भले ही पाकिस्तान और रूस के बीच सामरिक संबंधों के जरिए नए समीकरण बन रहे हों लेकिन आजतक रूस के किसी भी राष्ट्रपति ने पाकिस्तान का दौरा नहीं किया है. साल 2007 में रूस के प्रधानमंत्री ने पाक का दौरा किया था. पहली दफे ऐसा हुआ है कि रूस ने पाकिस्तान के साथ मिलकर आतंकवाद के मुद्दे पर सितंबर 2016 में सैन्य अभ्यास किया है. लेकिन पाकिस्तान के साथ रूस की हालिया नजदीकी के पीछे दरअसल अमेरिका के लिए संदेश है. इसके ये मायने नहीं हैं कि रूस पाकिस्तान की कीमत पर भारत से दूर हो गया है. ठीक उसी तरह भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती करीबी का ये मतलब नहीं कि भारत और रूस के बीच दूरियां बन गईं.

समय के साथ बदलते हालातों के चलते हर देश अपनी प्राथमिकताओं को बदलने के लिए स्वतंत्र है. आज एनएसजी यानी परमाणु आपूतिकर्ता समूह में शामिल होने के लिए भारत को रूस के साथ अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देशों के भी समर्थन की जरूरत है. एनएसजी की सदस्यता में चीन सबसे बड़ा रोड़ा है. ऐसे में भारत सिर्फ किसी एक देश पर भी निर्भर नहीं हो सकता है. इसी तरह डिफेंस के मामले में भी भारत सिर्फ रूस या अमेरिका पर निर्भर नहीं रह सकता है. भारत अब रूस के अलावा फ्रांस और इजराइल जैसे देशों के साथ रक्षा करार कर रहा है.

अमेरिका के साथ भारत का अब 10 अरब डॉलर से ज्यादा का डिफेंस कारोबार हो रहा है. भारत को अपनी सुरक्षा के लिए बड़े पैमाने पर हथियारों और आधुनिक रक्षा तकनीक की जरूरत है. ऐसे में भारत अमेरिका को खारिज नहीं कर सकता है. सत्तर साल में पहली दफे ऐसे हालात बने हैं जब अमेरिका ने आतंक के मुद्दे पर पाकिस्तान की भूमिका को लेकर भारत का समर्थन किया. पहली दफे ये हुआ कि अमेरिका ने पाकिस्तान को आतंकी अड्डे खत्म करने और आतंकियों को गिरफ्तार करने को कहा. अमेरिका का भारत के साथ बदला रुख दरअसल चीन और पाकिस्तान की बढ़ती नजदीकी का भी नतीजा है. बदलते हालात में किरदार वही हैं बस देशों के नाम और भूमिकाएं बदल रही हैं. नए समीकरणों में आज अमेरिका भारत का खुल कर समर्थन कर रहा है. एनएसजी में भारत की दावेदारी और संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी सीट के लिए अमेरिका समर्थन कर रहा है.

बहरहाल, अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत एस 400 डील कर दुनिया को ये संदेश देने में कामयाब हो गया कि  कूटनीतिक, समारिक और कारोबारी हितों के लिए हर दोस्त जरूरी होता है.

ईरान से अब पेट्रो डॉलर के बदले रूपये में व्यापार होगा


‘ईरान तेल के लिए पूर्व में रुपए का भुगतान लेता रहा है. वह रुपए का उपयोग औषधि और अन्य जिंसों के आयात में करता है. इस तरह की व्यवस्था पर काम जारी है.’ 

भारत की ईरान से करीब 2.5 करोड़ टन कच्चे तेल के आयात की योजना है 


 

भारत ने अमेरिकी पाबंदी के बावजूद ईरान से तेल व्यापार का पहला साफ संकेत दिया है. सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने पश्चिम एशियाई देश से 12.5 लाख टन कच्चे तेल के आयात के लिए अनुबंध किया है और वे डॉलर की जगह रुपए में व्यापार की तैयारी कर रहे हैं.

उद्योग के शीर्ष सूत्र ने कहा कि इंडियन ऑयल कारपोरेशन (आईओसी) और मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोरसायन लि. (एमआरपीएल) ने नवंबर में ईरान से आयात के लिए 12.5 लाख टन तेल के लिए अनुबंध किया किया है. उसी माह से ईरान के तेल क्षेत्र पर पाबंदी शुरू होगी. अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने पिछले महीने कहा था कि प्रतिबंध के मामले में कुछ छूट देने पर विचार किया जाएगा लेकिन यह साफ किया कि यह सीमित अवधि के लिए होगी.

सूत्रों के मुताबिक आईओसी ईरान से जो तेल आयात कर रहा है वह सामान्य है. उसने 2018-19 में 90 लाख टन ईरानी तेल के आयात की योजना बनाई थी. मासिक आधार पर यह 7.5 लाख टन बैठता है. ईरान पर अमेरिकी पाबंदी चार नवंबर से शुरू होगी.

सूत्रों ने कहा कि भारत और ईरान चार नवंबर के बाद रुपए में व्यापार पर चर्चा कर रहे हैं. एक सूत्र ने कहा, ‘ईरान तेल के लिए पूर्व में रुपए का भुगतान लेता रहा है. वह रुपए का उपयोग औषधि और अन्य जिंसों के आयात में करता है. इस तरह की व्यवस्था पर काम जारी है.’ उसने कहा कि अगले कुछ सप्ताह भुगतान व्यवस्था पर चीजें साफ हो जाएगी.

वास्तविक मात्रा हो सकती है कम

सूत्रों के मुताबिक आईओसी और एमआरपीएल जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की तेल रिफाइनरी कंपनियां तेल आयात के लिए ईरान को भुगतान को लेकर यूको बैंक या आईडीबीआई बैंक का उपयोग कर सकती हैं. भारत की ईरान से करीब 2.5 करोड़ टन कच्चे तेल के आयात की योजना है जो 2017-18 में आयातित 2.26 करोड़ टन से अधिक है. हालांकि वास्तविक मात्रा कम हो सकती है क्योंकि रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी कंपनियां पूरी तरह तेल खरीद बंद कर चुकी हैं. अन्य भी पाबंदी को देखते हुए खरीद घटा रही हैं.

50, 000 करोड़ कि अनुमानित राशि के मालिक “दलित नेता” दलितों के लिए दो गज ज़मीन कि मांग कर बुरे फंसे.


50, 000 करोड़ कि अनुमानित राशि के मालिक “दलित नायक” दलितों के लिए दो गज ज़मीन कि मांग कर बुरे फंसे. 

अप्रैल 2018 का संसद भवन का वाकया आपकी नज़र:


जाति के नाम पर आरक्षण एक अभिशाप है। देश के विकास में बाधा डालनेवाले और देश में असमानता लाने वाले जातिवाद आरक्षण के वजह से आज भारत दुनिया में ही पिछड़ा हुआ देश है। अपने राजनैतिक मुनाफे के लिए आरक्षण का उपयॊग करने वाले नेता गण वास्तव में संविधान और अंबेडकर जी का अपमान कर रहे हैं। खुद अंबेडकर जी ने कहा था की जाति के आधार पर आरक्षण केवल दस साल के लिए ही रहना चाहिए और जो दलित आरक्षण का लाभ उठाकर सक्षम होता है उसे दूसरॊं की सहायता करना चाहिए तांकि  उसका भी उत्थान हो।

लेकिन कांग्रेस पिछले 60 साल से देश के साथ गद्दारी कर रही है और आज भी जाति के नाम पर न केवल वॊट मांग रही है अपितु एक दूसरों को लड़वा भी रही है। कांग्रेस के दलित नायक मल्लिकार्जुन जो हमेशा मोदी सरकार पर निशाना साधते हैं, उनकी संपत्ति के बारे में जानेंगे तो आपके हॊश उड़ जाएंगे।

खड्गे ने प्रधानमंत्री मोदी जी के सामने हाथ जोड़ते हुए, आखों में आँसू लाते हुए गिड गिडाया था और कहा था ” इस देश में दलितों को दो गज ज़मीन दे दीजिए तांकि वे भी गौरव से अपना जीवन यापन कर सके”

 

उसी जगह पर मात्र 15 मिनिट के अंदर मॊदी ने खड्गे के सामने उनके संपत्ति से जुड़ा दस्तावेज़ दिखाया और सारा कच्चा चिटठा खॊल दिया। उस दस्तावेज़ के अनुसार ‘दलित नायक’ की संपत्ति का ब्यॊरा कुछ इस प्रकार है:

पीएम मोदी ने दिया राहुल-खड़गे को करारा जवाब, बेनामी संपत्ति पर ‘चेतावनी’

कर्नाटक के बन्नेरघट्टा रॊड में 500 करोड़ का एक बड़ा कांपलेक्स खड्गे के नाम पर है।
चिक्कमगलूरु ज़िले में 300 एकड़ काफी एस्टेट जिसकी कुल कीमत करीब 1000 करोड़ रुपये हैं।
चिक्कमगलूरु ज़िले में ही एक घर है जिसकी कीमत 50 करोड़ है।
बेंगलूरु के केंगेरी में 40 एकड़ की फार्म हाऊस है।
बेंगलूरु के एम.एस.रामय्या कॉलेज के पास इनके नाम पर एक इमारत है जिसकी कीमत 25 करोड़ रूपए हैं।
बेंगलूरु के ही आर. टि. नगर में एक बड़ा बंगला है।
बल्लारी रॊड में 17 एकड़ ज़मीन है।
बेंगलूरु के इंद्रा नगर में तीन मंजिला बंगला है ।
बेंगलूरु के सदाशिव नगर में दो और बंगले इनके नाम पर है।

इसके अलावा इनके और इनके रिश्तेदारों के नाम पर देश के महा नगर जैसे मैसूरु, गुलबर्गा, चेन्नई, गॊवा, पूना, नागपुर, मुम्बई और देश की राजधानी दिल्ली तक में रियल एस्टेट कि संपत्ति है जो 1000 करोड़ रुपए की कीमत की है। खडग देश की जनता को उल्लू समझते होगें कि वे जानते नहीं कि दलित -दलित का नाम जप कर खड्गे ने इतनी संपत्ती कहां से और कैसे बनाई। कुल मिलाकर खड्गे के पास 50,000 करोड़ से भी ज्यादा की संपत्ति है। 1980 से रेवेन्यू मिनिस्टर रह चुके खड्गे ने SC बेकलोग उद्योग की चयन प्रक्रिया में भी खूब घॊटाला किया है और अपने अधिकारॊं का दुरुपयॊग करते हुए खूब पैसा ऐंठा है।

दलितों का नाम इस्तेमाल कर के कांग्रेस के दलित नायक खड्गे ने देश का पैसा लूटा है। अगर खड्गे को दलितों से इतना ही प्यार है तो वो अपनी सारी संपत्ति गरीब दलितों को दे और उनका उद्धार करे किसी को इससे कॊई आपत्ति नहीं लेकिन दलित कार्ड का उपयॊग कर मॊदी सरकार को बदनाम करने का काम ना ही करे तो उनके लिए ही अच्छा है।

भाजपा के कुत्तों ने भी देश कि आज़ादी में कोई बलिदान नहीं दिया: खड्गे


21 जुलाई 1942 को नितांत गरीब और दलित परिवार में जन्मे खड़गे ने 1969 में कांग्रेस ज्वाइन की और उनके परिवार का भी देश कि आज़ादी से कोई लेना देना नहीं.

खड्गे पैदा ज़रूर एक गरीब परिवार में हुए पर सूत्रों कि मानें तो उनके अकूत दौलत का अनुमान लगाना बहुत ही मुश्किल है. सूत्रों के अनुसार आज वह खरबों पति हैं.

शायद कांग्रेसी कुत्ता शब्द का प्रयोग निर्विवादित ढंग से करते हैं.


देश के 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा और वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर विभिन्न दलों के नेताओं के बयान अब तीखे होते नजर आ रहे हैं. आरोप-प्रत्यारोप लगाने का सिलसिला तेजी से शुरू हो गया है. इसी क्रम में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने बीते गुरुवार को बीजेपी और आरएसएस को निशाने पर लिया. खड़गे ने महाराष्ट्र में एक रैली को संबोधित करते हुए बीजेपी और आरएसएस के ऊपर तीखा हमला किया.

कांग्रेस ने देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया

कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि देश की आजादी के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और बीजेपी के नेताओं के घर के एक कुत्ते ने भी अपना बलिदान नहीं दिया है. कांग्रेस महासचिव खड़गे महाराष्ट्र के जलगांव जिले में पार्टी की जन संघर्ष यात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत के लिए आयोजित एक रैली को यहां संबोधित कर रहे थे. खड़गे ने कहा- ‘हम लोगों (कांग्रेस) ने देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया है. इंदिरा गांधी ने देश की एकता- अखंडता के लिए बलिदान दिया. राजीव गांधी ने देश के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया. मुझे बताइए कि देश की आजादी के लिए भाजपा और संघ (नेताओं) के घर का एक कुत्ता भी कुर्बान हुआ है.’

बीजेपी पर संविधान के साथ छेड़छाड़ करने का लगाया आरोप

खड़गे ने पूछा- ‘हमें बताइए देश की आजादी के लिए आपके कौन से लोग जेल गए हैं.’  रैली में अपने संबोधन के दौरान खड़गे ने बीजेपी के ऊपर संविधान के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी उनके मंसूबे को कामयाब नहीं होने देगी. कांग्रेस के नेता इसके लिए अपनी आखिरी सांस तक लड़ेंगे. आपको बता दें कि केंद्र समेत देश के 20 से ज्यादा राज्यों में बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस पार्टी के कई नेता पहले भी इस तरह का बयान देते रहे हैं. कांग्रेस के दिग्गज नेता मणिशंकर अय्यर हों या सांसद शशि थरूर, कई नेताओं ने इससे पहले भी बीजेपी नेताओं के खिलाफ तीखे और विवादित बयान दिए हैं.