सरकार ने भीमा कोरेगांव में किसी तीसरे का हाथ होने की आशंका जताई
भीमा कोरेगांव हिंसा की जांच के लिए फरवरी में कमीशन को स्थापित किया गया था और बुधवार से मुंबई में इसकी सुनवाई शुरु हुई. इसकी सुनवाई पुणे में भी होगी
राज्य सरकार के स्पेशल पब्लिक प्रोसेक्यूटर ने भीमा कोरेगांव हिंसा में पूछताछ कर रहे आयोग के सामने दावा किया कि 1 जनवरी को हुई घटना किसी ‘तीसरे ग्रुप’ ने ‘अराजकता फैलाने’ के लिए किया हो सकता है. 44 वर्षीय मनीषा खोपकर पर हिंसा के दौरान हमला हुआ था. मनीषा ने आयोग को बताया कि एक ग्रुप ने उनपर पत्थरों से हमला किया था. और भगवा झंडे लिए लड़के मोटरसाइकिलों पर नारे लगाते हुए वहां से निकल गए.
समस्त हिंदू अघादी नेता मिलिंद एकबोट और श्री शिव प्रतिस्ठान हिंदुस्तान नेता संभाजी भिड़े के खिलाफ शिक्रपुर पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई है. 1 जनवरी को कोरेगांव की लड़ाई में शहीदों की 200 वीं वर्षगांठ के समय इकट्ठा हुए लोगों के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देने में उन लोगों की भूमिका की जांच की जाएगी. पुणे पुलिस ने पिछले साल 31 दिसंबर को शनिवार वाडा में आयोजित एल्गार परिषद के आयोजकों और प्रतिभागियों को भी नामजद किया है और आरोप लगाया कि उनके उत्तेजक भाषणों की वजह से ही हिंसा भड़की.
गवाहों से पूछताछ शुरु:
मनीषा खोपकर से जब ये पूछा गया कि, ‘क्या यह संभव है कि दोनों समूहों के बीच में गलतफहमी और हिंसा बढ़ाने के मकसद से किसी ने ये काम किया हो?’ इसके जवाब में खोपकर ने कहा कि वह किसी पर आरोप नहीं लगा रही हैं. हालांकि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) जे एन पटेल ने कहा कि सवाल ‘कल्पित’ था. लेकिन हिरय ने कहा कि गवाह से सवाल पूछा गया क्योंकि उन्हें ‘विचारधारा’ का अर्थ पता है. किसी तीसरे पक्ष की संलिप्तता के बारे में सवाल पूछने से पहले मनीषा से पूछा गया था कि क्या वो विचारधारा का अर्थ समझती हैं. इसके बाद हिरय ने लिखा कि हिंसा के पीछे ‘अलग विचारधारा’ के तीसरे समूह की संभावना थी.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक हिरय ने गवाह से कोरेगांव की लड़ाई के इतिहास के बारे में भी सवाल किया और पूछा कि क्या उनके पास इसके बारे में कोई लिखित सबूत है. खोपकर ने कहा कि पेशवा के खिलाफ लड़ाई में महारों की जीत का इतिहास उन्होंने अपने माता-पिता से सुना था. इसके बात हिरय ने खोपकर से 2014-15 में उनके खिलाफ चेक-बाउंसिंग के तीन लंबित मामलों को दिखाया. साथ ही उन्होंने खोपकर से उनके इस दावे के बारे में भी सवाल किया कि 1 जनवरी को दुश्मनों द्वारा उन्हें और दूसरे लोगों पर भीड़ द्वारा जातिवादी टिप्पणी की गई थी पुलिस ने उनके इस आरोप ध्यान नहीं दिया. एकतरफ जहां हिरय ने दावा किया कि वह झूठ बोल रही हैं. वहीं खोपकर ने कहा कि उन्होंने पुलिस को इसके बारे में बताया पर पुलिस ने इसे दर्ज नहीं किया था.
गुरुवार को एक और गवाह, तुकाराम गावड़े को भी पेश किया गया. कमीशन के वकील आशीष सतपूते द्वारा सवाल पूछने पर गावड़े ने कहा कि वह 2006 में राज्य और मुंबई पुलिस में अस्सिटेंट इंस्पेकटर के रूप में रिटायर हुए थे. उन्होंने कहा कि वो इसके पहले चार पांच बार भीम कोरेगांव का दौरा कर चुके थे. और 200वीं वर्षगांठ के समय वो एक बड़े समूह के साथ गए थे.
कमीशन को फरवरी में स्थापित किया गया था और बुधवार से मुंबई में इसकी सुनवाई शुरु हुई. इसकी सुनवाई पुणे में भी होगी.