Friday, January 10
स्तुति वैष्णव बीएमसी द्वितीय वर्ष
हमारा देश भारत लोकतांत्रिक देश है। यहाँ सरकारें लोंगो द्वारा चुनीं जाती हैं, हम कई बार निष्पक्ष होकर चुनाव में अपना मत देते हैं, और कई बार चुनिंदा पार्टी द्वारा किये गए कुछ कच्चे दावों में आकर, अपना मत जो बहुत कीमती है, हमारा हक है उसे यूँ ही किसी को भी डाल कर जीता कर व्यर्थ न गवाएं, वोट ही तो है डाल देंगे किसी को भी ये सोच रख कर एक नेता ना चुनें  क्यों कि वो एक नेता ही है जो भारत का इतिहास बदलने में कामयाब हो जाये और कुछ सुनहरी इतिहास लिख दे।
वोट बहुत कीमती है इसका सही प्रयोग करे क्यों कि लोकतंत्र हमसे है ना कि हम किसी पर निर्भर हैं मैं हमेशा खुद के अनुभव रखती हूँ किसी और का उदहारण देने से पहले शुरुआत खुद से ही करनी चाहिए, ” कुछ समय पहले मैं एक पोलिटिकल लीडर से मिली, मैंने देश का नागरिक होते हुए अपने सारी समस्याएं रखी उन्होंने मिलने के लिए समय भी दिया मिले भी बहुत अच्छे से सुना भी बहुत ध्यान से, मुझे कुछ उम्मीद की किरण भी नज़र आई शायद कुछ सहारा मिल जाये पर मुझे ये उम्मीद बिल्कुल नही थी कि वो मुझे कुछ इस प्रकार उत्तर देंगे कि मैं कोशिश करूंगा तुम भी कोशिश करती रहो इतनी जल्दी यह मुमकिंन नही।  अगर उनके लिए ये मुमकिंन नही था तो किसके लिए होगा हम लोगो ने जिन्हें चुना इस लिए जो देश को संभाल सके वो हमसे कोशिश करते रहने को कह कर खुद सियासत की ऐश लूट रहे है मेरे मुददे इतने बड़े भी नही थे कि उन्हें इतना सोचना पड़े या कोशिश करनी पड़े और ऐसा नही है कि मुझे सहारे की जरूरत है या मैं अपनी लड़ाई अकेले नही लड़ सकती पर हमारा देश सिर्फ राजनीति पर निर्भर है यहाँ का हर बड़ा और अहम निर्णय एक नेता ही लेता है,ऐसे सुना मैने बहुत बार  पर सवाल ये नही की फैसला लेता कोन है या किसके द्वारा लिया जाता है सवाल ये है?  हमारा देश लोकतंत्र से चलता है अर्थ ये हुआ लोगों के लिए, लोगों के द्वारा , लोंगो से फिर क्यों जो लोग उन्हें चुनते हैं, जरूरत पड़ने पर उन्हें ही ऐसे बेसहारा सा छोड़ दिया जाता है,पर जो लोग उन्हें चुन कर सत्ता सौंप सकते हैं, वो लोग उन्हें गिरा भी सकते हैं। कमजोर कोई नही होता पर हमने जिन्हें देश सौंपा है उनका कोई कर्तव्य नही आम जनता के प्रति आपस मे मार काट करके क्या हासिल होगा ? कुर्सी पर बैठने से पहले सब भाई, बहन, माँ होते हैं कुर्सी मिलने के बाद वो भाई बहन  माँ बोझ से लगते हैं कही अब कोई काम न करवाना पड़ जाए, सत्ता मिलने पर हम ऊंची ऊंची प्रेस कॉन्फ्रेंस रैली में भारी भारी शब्दो का प्रयोग कर सबको इतना यकीन दिला देते हैं हम तुम्हारे हैं तुम्हारे साथ हैं , पर ये साथ कुछ देश के लिए देश के नागरिकों के लिये अपने भारत के लिए सोचे तो सत्ता सौंप कर हमें भी खुशी होगी, आपस की झड़प छोड़ देश का सोचे तो शायद हमारे देश के नौजवानो को वीजा लगवा कर बाहर का मुंह नही देखना पड़ेगा जो आवाज उठाता है उसकी आवाज को हमेशा के लिए दबा दिया जाता है, ये सत्ता का खेल ही कुछ ऐसा है मैं ये नही कहूंगी पार्टी डिबेट खत्म कर दें पर वो बहस एक दूसरे को नीचा दिखाने की जगह अगर किसी नागरिक, हमारे देश के लोगो के हित के लिए होने लगे कि कौन देश के उन्ह मुददों का सुझाव बेहतर देगा कौन उसे लागू करनवाने की पहल करेगा तो “सत्ता” का ये “खेल” बेहद खुदसूरत हो जाएगा। और इस को खेल खेलने और देखने का नज़रिया खुद बदल जाएगा।