न्यायाइक राजवंश के विरुद्ध लाम बंद सरकार


सवाल है कि क्या अब भी सुप्रीम कोर्ट इस सच को स्वीकार कर समय रहते हुए सुधार का काम शुरू करेगा या नहीं.


मोदी सरकार ने आते ही कार्यकारी व्यवस्था में बदलाव लाने के प्रयास किए जिसमें “न्यायिक राजवंश” को भेदना भी शामिल था। 2016 से सरकार ओर कोलेजियम में इसी बात को ले कर खींच तान चल रह है। हो न हो चार न्यायाधीशों की पत्रकार वार्ता के पीछे यह भी एक वजह हो सकती है। सरकार द्वारा कई नामों को नकारने के बावजूद कोलेजियम अपने कुछ चहेतों के नाम बार बार सर्वोच्च नयायालय के नयायाधीश पद हेतु भेज रहा रहा है। सरकार द्वारा इलाहाबाद उच्च नयायालय की ओर से  भेजे गए नामों को सार्वजनिक करना सरकार के इस राजवंशीय प्रणाली के प्रति उसके पक्षको स्थापित करता है।

2013 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय कॉलेजियम ने उच्च न्यायालय (हाईकोर्ट) में जज के तौर पर नियुक्ति के लिए आठ वकीलों का नाम भेजा था. हाईकोर्ट के उस कॉलेजियम में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (अब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश) ए.के. सिकरी, जस्टिस जसबीर सिंह और जस्टिस एस.के. मित्तल शामिल थे. इसी कॉलेजियम ने उच्च न्यायालय में जज के तौर पर नियुक्ति के लिए 8 वकीलों के नाम की सिफारिश की थी.

जिन वकीलों के नाम की अनुशंसा की गई थी, उसमें मनीषा गांधी (भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए.एस. आनंद की बेटी), गिरीश अग्निहोत्री (पूर्व न्यायमूर्ति एमआर अग्निहोत्री के पुत्र), विनोद घई, बीएस राणा (न्यायमूर्ति एस.के. मित्तल के पूर्व जूनियर), गुरमिंदर सिंह और राजकरन सिंह बरार (न्यायमूर्ति जसबीर सिंह के पूर्व जूनियर), अरुण पल्ली (पूर्व न्यायमूर्ति पी.के. पल्ली के बेटे) और एच एस सिद्धू (पंजाब के अतिरिक्त महाधिवक्ता) के नाम शामिल थे.

न्यायिक राजवंश

कॉलेजियम से इन नामों को मंजूरी मिलने के तुरंत बाद ही, 1000 वकीलों ने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश को एक हस्ताक्षरित ज्ञापन भेजा. इसमें कॉलेजियम की सिफारिशों को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए थे.

 

 

ज्ञापन में कहा गया था- ‘पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने जिस तरह न्यायाधीश के रूप में प्रोन्नति के लिए 8 वकीलों के नामों की सिफारिश की है, वह भारतीय न्यायपालिका की आजादी और अखंडता को खतरे में डालती है. इस तरह के नामों की सिफारिश करने के पीछे जो कारण हैं, वह कॉलेजियम के फैसले पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि नामों का चुनाव करते वक्त उम्मीदवार की योग्यता और सत्यनिष्ठा के अलावा अन्य चीजों पर विचार किया गया. अब ऐसे वकीलों के नामों की सिफारिश करना, जो पूर्व न्यायाधीशों और मुख्य न्यायाधीशों के बेटे, बेटियां, रिश्तेदार और जूनियर हैं, एक परंपरा और सुविधा का विषय बन गया है.’

यह ज्ञापन मनीषा गांधी के नाम चयन में बरती गई गंभीर कोताही की ओर इशारा करता है. इस बारे में ज्ञापन में लिखा है, ‘जिनकी एकमात्र योग्यता यह है कि वह पूर्व सीजेआई ए.एस. आनंद की बेटी हैं. वह साल 2012 में केवल 36 केसेज (मामलों) में अदालत में उपस्थित हुईं. उसमें दो सीआरएम, आठ सीडब्ल्यूपी और अन्य 26 कंपनी अपील थे. 2013 से वह आज तक केवल सात कंपनी अपील में ही अदालत में उपस्थित हुईं. हाल ही में उन्हें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का अतिरिक्त महाधिवक्ता (एडिशनल एडवोकेट-जनरल) नियुक्त किया गया, ताकि कॉलेजियम जज बनाने के लिए उनके नाम पर विचार कर सके.’

गौरतलब है कि न्यायमूर्ति एस.के. मित्तल उच्च न्यायालय के कॉलेजियम का हिस्सा थे, फिर भी उन्होंने खुद से प्रत्यक्ष तौर पर जुड़े व्यक्तियों की सिफारिश की. जाहिर है, ऐसे निर्णय हितों के टकराव और निर्णय प्रक्रिया में शुचिता की कमी जैसे गंभीर मुद्दे को उठाते हैं.

इस मुद्दे पर शोर मचने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने छह नामों को खारिज कर दिया और पल्ली और सिद्धू के नाम पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिए. यह मामला न्यायिक नियुक्ति की वर्तमान सबसे बड़ी समस्या में से एक को उजागर करता है. सरल शब्द में इसे ‘न्यायिक राजवंश’ कहा जा सकता है. इसे एक ऐसा कॉलेजियम भी कहा जा सकता है, जो सिर्फ अपने रिश्तेदारों, दोस्तों, पूर्व सहयोगियों और जूनियरों की नियुक्ति करने का काम करता है.

तमाम आलोचनाओं और व्यक्तिगत संबंधों के कारण होने वाली नियुक्तियों के स्पष्ट मामलों के सामने आने के बावजूद, यह परंपरा पिछले कुछ दशकों में बढ़ गई है. क्योंकि अवमानना के डर से लोग भाई-भतीजावाद के उदाहरणों को सामने लाने से हिचकते हैं.

केन्द्र सरकार का सख्त रुख

 

हालांकि, नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली वर्तमान सरकार इस प्रवृत्ति को रोकना चाहती है और इसके लिए प्रयासरत भी है. जून 2016 में पहली बार, केंद्र सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लिए 44 न्यायाधीशों की नियुक्ति पर रोक लगा दी थी. ये नाम उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा भेजे गए थे. जिन 44 नामों की सिफारिश की गई थी, उनमें से कम से कम सात नाम सेवारत या सेवानिवृत्त पूर्व न्यायाधीशों से संबंधित थे.

बुधवार को टाइम्स ऑफ इंडिया में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है. इसके मुताबिक, फरवरी में इलाहाबाद उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा भेजे गए 33 नामों की उम्मीदवारी का मूल्यांकन करने के बाद, केंद्र सरकार ने पाया है कि इन 33 नामों में से कम से कम 11 नाम सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीशों से संबंधित है. विभिन्न संवैधानिक विशेषज्ञों और कानूनी दिग्गजों ने इस मुद्दे पर बहस करते हुए कहा है कि किसी को भी न्यायिक कार्य में आने से सिर्फ इसलिए प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता, क्योंकि उम्मीदवार के परिवार का कोई सदस्य न्यायाधीश है. लेकिन, उन्होंने इस पर भी जोर दिया है कि लोगों के बीच विश्वास सुनिश्चित करने के लिए सिफारिश प्रक्रिया में अधिक से अधिक पारदर्शिता अपनाई जाए.

लेकिन सुधार की सभी बातों और सुझावों के बावजूद, उच्च न्यायपालिका ने इस मोर्चे पर कोई खास काम नहीं किया है. 2016 में फ़र्स्टपोस्ट के साथ एक बातचीत में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील अनुपम गुप्ता ने एक महत्वपूर्ण बिंदु पर बात की थी. उन्होंने बताया कि कैसे 2015 के एनजेएसी फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने इस समस्या को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया. हालांकि, इसने ‘हितों के टकराव’ सिद्धांत (न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका की भागीदारी के संबंध में) की ऐसी व्याख्या कर दी, जो किसी भी ज्ञात न्यायशास्र सीमा से परे है.

अब, इलाहाबाद उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा भेजी गई सूची में न्यायाधीशों के रिश्तेदारों के नामों को सार्वजनिक करके, केंद्र ने ‘एलीफैंट इन रूम’ (एक ऐसी समस्या, जिस पर कोई बात नहीं करना चाहता) वाली कहावत की कलई खोल दी है. सवाल है कि क्या अब भी सुप्रीम कोर्ट इस सच को स्वीकार कर समय रहते हुए सुधार का काम शुरू करेगा या नहीं.

अनुच्छेद 35A : संविधान का अदृश्य हिस्सा किताब में नहीं किन्तु अमल में है.

राजविरेन्द्र वशिष्ठ


संविधान की किताबों में न मिलने वाला अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर की विधान सभा को यह अधिकार देता है कि वह ‘स्थायी नागरिक’ की परिभाषा तय कर सके


बँटवारे की  वजह से बाजपुर से इस  ब्राह्मण परिवार  को  भारत की सरजमीं पर आना पड़ा, आज इस बात को 70 साल हो गए, वह शरणार्थी ही हैं। उन्हे न तो मताधिकार प्राप्त है, न ही उन्हे बैंक अथवा कोई सरकारी संस्थान से आर्थिक लाभ अथवा सहायता मिल सकती है।  छजजु राम वशिष्ठ जो कि इस परिवार के  सबसे बड़े पुत्र हैं और रिश्ते मे मेरे भाई  जो कि घाटी में करोड़ों के मालिक हैं  जो कि किसी कारणवश चंडीगढ़ आए हुये हैं ने बताया,अगर उनकी पत्नी  जम्मू की न होतीं तो वह यह मुकाम हासिल न कर पाते। उनका व्यापार आज विदेशों तक में फैला हुआ है, सिंगापुर मलेशिया ओर दुबई जैसी जगहों पर उनके यहाँ से बासमती और सोया के उत्पाद जाते हैं, मलेशिया में उनका ट्रांसपोर्ट का बिज़नस है जो उनका बड़ा बेटा देख रहा है, भारत में पैदा होने के बावजूद भी वह स्वयं को भारतीय नहीं कह सकता, उसका विवाह भी जम्मू की ही एक युवती से हुआ है तभी वह यहाँ पर उसके नाम पर व्यवसाय आरंभ कर सका।

राज्य को इस परिवार की संवैधानिक स्थिति से कोई मतलब नहीं, परंतु इस परिवार द्वारा कमाई गयी रकम से अपना हिस्सा करों के रूप में चाहिए, इतना ही नहीं जो धन यह परिवार विदेशों में कमा रहा है उसमें भी राज्य का हिस्सा चाहिए। मेरे पूछने पर मोंटी (घर का नाम) को मैंने पूछा की वह विदेश में क्यों नहीं बस जाता, तो उसने जवाब दिया की किस तरह वह विदेश में बस सकता है जब की उसके पास अपने देश ही की नागरिकता नहीं है, वह स्पेशल पासपोर्ट पर प्रवास करता है।

चाहे देश हो या विदेश ये लोग भारतीय संविधान और  राज्य के रवैया इतना सौतेला रहा है कि इन लोगों को देश में दूसरे  या तीसरे दर्जे की तो बात खैर क्या ही कहें इनको तो कोई दर्जा ही प्राप्त नहीं है

कहा जाता है  कि 1952 में तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू की शह पर शेख अब्दुल्लाह ने चीन की पहाड़ियों से कुछ कबाईलियों को भारत बुला कर बसाया था, जिसका मकसद घाटी में एक अराजकता का माहौल बनाना और घाटी में हिन्दू मुसलानों की संख्या में संतुलन बिगाड़ना था। आज जो भी यहाँ के हालात हों उससे बेअसर इस परिवार की व्यथा है।

जब 47 से शरणार्थी बन रह रहे इन परिवारों को आज तक न्याय नहीं मिला तो काश्मीरी पंडितों को तो आस ही छोड़ देनी चाहिए

जून 1975 में लगे आपातकाल को भारतीय गणतंत्र का सबसे बुरा दौर माना जाता है. इस दौरान नागरिक अधिकारों को ही नहीं बल्कि भारतीय न्यायपालिका और संविधान तक को राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ा दिया गया था. ऐसे कई संशोधन इस दौर में किये गए जिन्हें आज तक संविधान के साथ हुए सबसे बड़े खिलवाड़ के रूप में देखा जाता है. लेकिन क्या इस आपातकाल से लगभग बीस साल पहले भी संविधान के साथ ऐसा ही एक खिलवाड़ हुआ था? ‘जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र’ की मानें तो 1954 में एक ऐसा ‘संवैधानिक धोखा’ किया गया था जिसकी कीमत आज तक लाखों लोगों को चुकानी पड़ रही है.

1947 में हुए बंटवारे के दौरान लाखों लोग शरणार्थी बनकर भारत आए थे. ये लोग देश के कई हिस्सों में बसे और आज उन्हीं का एक हिस्सा बन चुके हैं. दिल्ली, मुंबई, सूरत या जहां कहीं भी ये लोग बसे, आज वहीं के स्थायी निवासी कहलाने लगे हैं. लेकिन जम्मू-कश्मीर में स्थिति ऐसी नहीं है. यहां आज भी कई दशक पहले बसे लोगों की चौथी-पांचवी पीढ़ी शरणार्थी ही कहलाती है और तमाम मौलिक अधिकारों से वंचित है.

कई दशक पहले बसे इन लोगों की चौथी-पांचवी पीढ़ी आज भी शरणार्थी ही कहलाती है और तमाम मौलिक अधिकारों से वंचित है

एक आंकड़े के अनुसार, 1947 में 5764 परिवार पश्चिमी पकिस्तान से आकर जम्मू में बसे थे. इन हिंदू परिवारों में लगभग 80 प्रतिशत दलित थे. यशपाल भारती भी ऐसे ही एक परिवार से हैं. वे बताते हैं, ‘हमारे दादा बंटवारे के दौरान यहां आए थे. आज हमारी चौथी पीढी यहां रह रही है. आज भी हमें न तो यहां होने वाले चुनावों में वोट डालने का अधिकार है, न सरकारी नौकरी पाने का और न ही सरकारी कॉलेजों में दाखिले का.’

यह स्थिति सिर्फ पश्चिमी पकिस्तान से आए इन हजारों परिवारों की ही नहीं बल्कि लाखों अन्य लोगों की भी है. इनमें गोरखा समुदाय के वे लोग भी शामिल हैं जो बीते कई सालों से जम्मू-कश्मीर में रह तो रहे हैं. इनसे भी बुरी स्थिति वाल्मीकि समुदाय के उन लोगों की है जो 1957 में यहां आकर बस गए थे. उस समय इस समुदाय के करीब 200 परिवारों को पंजाब से जम्मू कश्मीर बुलाया गया था. कैबिनेट के एक फैसले के अनुसार इन्हें विशेष तौर से सफाई कर्मचारी के तौर पर नियुक्त करने के लिए यहां लाया गया था. बीते 60 सालों से ये लोग यहां सफाई का काम कर रहे हैं. लेकिन इन्हें आज भी जम्मू-कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं माना जाता.

ऐसे ही एक वाल्मीकि परिवार के सदस्य मंगत राम बताते हैं, ‘हमारे बच्चों को सरकारी व्यावसायिक संस्थानों में दाखिला नहीं दिया जाता. किसी तरह अगर कोई बच्चा किसी निजी संस्थान या बाहर से पढ़ भी जाए तो यहां उन्हें सिर्फ सफाई कर्मचारी की ही नौकरी मिल सकती है.’

यशपाल भारती और मंगत राम जैसे जम्मू कश्मीर में रहने वाले लाखों लोग भारत के नागरिक तो हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर राज्य इन्हें अपना नागरिक नहीं मानता. इसलिए ये लोग लोकसभा के चुनावों में तो वोट डाल सकते हैं लेकिन जम्मू कश्मीर में पंचायत से लेकर विधान सभा तक किसी भी चुनाव में इन्हें वोट डालने का अधिकार नहीं. ‘ये लोग भारत के प्रधानमंत्री तो बन सकते हैं लेकिन जिस राज्य में ये कई सालों से रह रहे हैं वहां के ग्राम प्रधान भी नहीं बन सकते.’ सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता जगदीप धनकड़ बताते हैं, ‘इनकी यह स्थिति एक संवैधानिक धोखे के कारण हुई है.’

ये लोग लोकसभा के चुनावों में तो वोट डाल सकते हैं लेकिन जम्मू कश्मीर में पंचायत से लेकर विधान सभा तक किसी भी चुनाव में इन्हें वोट डालने का अधिकार नहीं

जगदीप धनकड़ उसी ‘संवैधानिक धोखे’ की बात कर रहे हैं जिसका जिक्र इस लेख की शुरुआत में किया गया था. जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र के निदेशक आशुतोष भटनागर बताते हैं, ’14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा एक आदेश पारित किया गया था. इस आदेश के जरिये भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35A जोड़ दिया गया. यही आज लाखों लोगों के लिए अभिशाप बन चुका है.’

‘अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर की विधान सभा को यह अधिकार देता है कि वह ‘स्थायी नागरिक’ की परिभाषा तय कर सके और उन्हें चिन्हित कर विभिन्न विशेषाधिकार भी दे सके.’ आशुतोष भटनागर के मुताबिक ‘यही अनुच्छेद परोक्ष रूप से जम्मू और कश्मीर की विधान सभा को, लाखों लोगों को शरणार्थी मानकर हाशिये पर धकेल देने का अधिकार भी दे देता है.’

आशुतोष भटनागर जिस अनुच्छेद 35A (कैपिटल ए) का जिक्र करते हैं, वह संविधान की किसी भी किताब में नहीं मिलता. हालांकि संविधान में अनुच्छेद 35a (स्मॉल ए) जरूर है, लेकिन इसका जम्मू-कश्मीर से कोई सीधा संबंध नहीं है. जगदीप धनकड़ बताते हैं, ‘भारतीय संविधान में आज तक जितने भी संशोधन हुए हैं, सबका जिक्र संविधान की किताबों में होता है. लेकिन 35A कहीं भी नज़र नहीं आता. दरअसल इसे संविधान के मुख्य भाग में नहीं बल्कि परिशिष्ट (अपेंडिक्स) में शामिल किया गया है. यह चालाकी इसलिए की गई ताकि लोगों को इसकी कम से कम जानकारी हो.’ वे आगे बताते हैं, ‘मुझसे जब किसी ने पहली बार अनुच्छेद 35A के बारे में पूछा तो मैंने कहा कि ऐसा कोई अनुच्छेद भारतीय संविधान में मौजूद ही नहीं है. कई साल की वकालत के बावजूद भी मुझे इसकी जानकारी नहीं थी.’

भारतीय संविधान की बहुचर्चित धारा 370 जम्मू-कश्मीर को कुछ विशेष अधिकार देती है. 1954 के जिस आदेश से अनुच्छेद 35A को संविधान में जोड़ा गया था, वह आदेश भी अनुच्छेद 370 की उपधारा (1) के अंतर्गत ही राष्ट्रपति द्वारा पारित किया गया था. लेकिन आशुतोष कहते हैं, ‘भारतीय संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ देना सीधे-सीधे संविधान को संशोधित करना है. यह अधिकार सिर्फ भारतीय संसद को है. इसलिए 1954 का राष्ट्रपति का आदेश पूरी तरह से असंवैधानिक है.’

अनुच्छेद 35A (कैपिटल ए) संविधान की किसी किताब में नहीं मिलता. हालांकि संविधान में अनुच्छेद 35a (स्मॉल ए) जरूर है, लेकिन इसका जम्मू-कश्मीर से कोई सीधा संबंध नहीं

अनुच्छेद 35A की संवैधानिक स्थिति क्या है? यह अनुच्छेद भारतीय संविधान का हिस्सा है या नहीं? क्या राष्ट्रपति के एक आदेश से इस अनुच्छेद को संविधान में जोड़ देना अनुच्छेद 370 का दुरूपयोग करना है? इन तमाम सवालों के जवाब तलाशने के लिए जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र जल्द ही अनुच्छेद 35A को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने की बात कर रहा है.

वैसे अनुच्छेद 35A से जुड़े कुछ सवाल और भी हैं. यदि अनुच्छेद 35A असंवैधानिक है तो सर्वोच्च न्यायालय ने 1954 के बाद से आज तक कभी भी इसे असंवैधानिक घोषित क्यों नहीं किया? यदि यह भी मान लिया जाए कि 1954 में नेहरु सरकार ने राजनीतिक कारणों से इस अनुच्छेद को संविधान में शामिल किया था तो फिर किसी भी गैर-कांग्रेसी सरकार ने इसे समाप्त क्यों नहीं किया? इसके जवाब में इस मामले को उठाने वाले लोग मानते हैं कि ज्यादातर सरकारों को इसके बारे में पता ही नहीं था शायद इसलिए ऐसा नहीं किया गया होगा.

अनुच्छेद 35A की सही-सही जानकारी आज कई दिग्गज अधिवक्ताओं को भी नहीं है. जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र की याचिका के बाद इसकी स्थिति शायद कुछ ज्यादा साफ़ हो सके. लेकिन यशपाल भारती और मंगत राम जैसे लाखों लोगों की स्थिति तो आज भी सबके सामने है. पिछले कई सालों से इन्हें इनके अधिकारों से वंचित रखा गया है. यशपाल कहते हैं, ‘कश्मीर में अलगाववादियों को भी हमसे ज्यादा अधिकार मिले हुए हैं, वहां फौज द्वारा आतंकवादियों को मारने पर भी मानवाधिकार हनन की बातें उठने लगती हैं. वहीं हम जैसे लाखों लोगों के मानवाधिकारों का हनन पिछले कई दशकों से हो रहा है. लेकिन देश को या तो इसकी जानकारी ही नहीं है या सबकुछ जानकर भी हमारे अधिकारों की बात कोई नहीं करता.’

आशुतोष भटनागर कहते हैं, ‘अनुच्छेद 35A दरअसल अनुच्छेद 370 से ही जुड़ा है. और अनुच्छेद 370 एक ऐसा विषय है जिससे न्यायालय तक बचने की कोशिश करता है. यही कारण है कि इस पर आज तक स्थिति साफ़ नहीं हो सकी है.’ अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर को कुछ विशेषाधिकार देता है. लेकिन कुछ लोगों को विशेषाधिकार देने वाला यह अनुच्छेद क्या कुछ अन्य लोगों के मानवाधिकार तक छीन रहा है? यशपाल भारती और मंगत राम जैसे लाखों लोगों की स्थिति तो यही बताती है.

A portion of the Agra-Lucknow Expressway caved in

A portion of the Agra-Lucknow Expressway, former Uttar Pradesh chief minister Akhilesh Yadav’s dream project, caved in on Wednesday causing a vehicle carrying four passengers to fall into a 20-feet ditch in Dauki, 16 kilometres from Agra, media reports said. Heavy rain had caused a portion of the road to cave in. All four passengers were rescued by locals and no major injury was reported.

 

According to NDTV, the four men were on a road trip from Mumbai to their home in Kannauj district after one of the men bought the car in Mumbai. The Uttar Pradesh government has called for a probe asking a third party agency, RITES Ltd, to find out why the road caved in and submit a report within 15 days.

“A third-party probe has been ordered into the caving-in of the side road of the expressway (16 km from Agra towards Lucknow) by RITES Limited. The construction of the damaged road will be done by the construction agency at its cost,” Uttar Pradesh Expressway Industrial Development Authority (UPEIDA) chairman Avanish Awasthi said.

The driver had bought the second-hand vehicle in Mumbai recently and had no idea of the route on which they were travelling, The Times of India reported.

The 302-kilometre-long Agra-Lucknow expressway, which costs nearly Rs 15,000 crore, was completed in record time of 23 months. It was inaugurated in November 2016, by the erstwhile Samajwadi Party (SP) government months ahead of the 2017 Uttar Pradesh Assembly election. It is the country’s longest access-controlled greenfield expressway on which the Indian Air Force (IAF) fighters jets can land and take-off in case of a war-like emergency.

तम्बाकू विषय पर होगी जिला स्तरीय कार्यशाला


रोहतक, 1 अगस्त:

स्वास्थ्य विभाग द्वारा 3 अगस्त को प्रात: 11 बजे तम्बाकृू विषय पर जिला स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया जायेगा। स्थानीय विकास सदन के सभागार में आयोजित इस कार्यशाला की अध्यक्षता अतिरिक्त उपायुक्त अजय कुमार करेंगे।
सिविल सर्जन डॉ. अनिल बिरला ने इस संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि इस जिला स्तरीय सेंसीटाइजेशन कार्यशाला में जिला के विभिन्न विभागों के अधिकारी भाग लेंगे। उन्होंने बताया कि पुलिस अधीक्षक के अलावा आरटीए, एसडीएम, महाप्रबंधक रोडवेज, जिला हैल्थ अधिकारी, जिला शिक्षा अधिकारी, जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी, महिला एवं बाल विकास, सभी खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी, श्रम अधिकारी, कृषि अधिकारी, फूड सेफ्टि ऑफिसर सहित कई स्कूलों के प्राचार्य भी इस कार्यशाला में भाग लेंगे। इसके अलावा ड्रग कन्ट्रौल ऑफिसर तथा रोटरी क्लब के अधिकारी भी इस जिला स्तरीय कार्यशाला में भाग लेंगे।

बिल जमा कराने की तिथि निर्धारित

रोहतक, 01 अगस्त: फसल अवशेष प्रबंधन स्कीम के अन्तर्गत चयनित किसान एवं सीएचसी कृषि विभाग के कार्यालय में 10 अगस्त तक कृषि उपकरण खरीदकर अपने बिल जमा करवा सकते है। इससे पूर्व बिल जमा करवाने की अंतिम तिथि 31 जुलाई निर्धारित की गई थी।
सहायक कृषि अभियन्ता गोपीराम सांगवान ने इस संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि कृषि विभाग द्वारा क्रियान्वित फसल अवशेष प्रबंधन स्कीम वर्ष 2018-19 के दौरान व्यक्तिगत किसानों के साथ-साथ सीएचसी को 31 जुलाई तक कृषि उपकरण खरीदकर बिल जमा करवाने को कहा गया था। अब विभाग द्वारा यह तिथि बढ़ाकर 10 अगस्त निर्धारित कर दी है। इस लिए सभी किसान एवं सीएचसी विभाग द्वारा मान्यता प्राप्त फर्मो से निर्धारित साइज की मशीन व बिल की कॉपी एवं मशीन के साथ अपनी फोटो निश्चित तिथि तक कृषि विभाग के कार्यालय में देना सुनिश्चित करें।

रोहतक के 3 खिलाडिय़ों ने हासिल किए पदक

रोहतक, 01 अगस्त। मिनी हरियाणा राज्य तलवारबाजी खेल प्रतियोगिता का आयोजन समालखा में करवाया गया। इस खेल प्रतियोगिता में तलवारबाजी प्रशिक्षक सुरेंद्र मैहला के नेतृत्व में जिला रोहतक के 8 खिलाडिय़ों ने भाग लिया। जिला रोहतक के 3 खिलाडिय़ों ने पदक प्राप्त किए, जिनमें से रोनक ने सबरे इवेंट में स्वर्ण पदक, आर्यन ने सबरे इवेंट में कांस्य पदक तथा कशिश ने फोईल इवेंट में रजत पदक प्राप्त करके अपने जिला का नाम रोशन किया। इस प्रतियोगिता में पदक प्राप्त करने वाले खिलाडिय़ों का चयन 4 से 6 अगस्त को शिरडी, अहमदनगर, महाराष्ट्र में आयोजित होने वाली मिनी नेशनल चैम्पियनशिप के लिए हुआ है। खिलाडिय़ों ने अपनी इस उपलब्धि का पूर्ण श्रेय तलवारबाजी प्रशिक्षक सुरेंद्र मैहला को दिया।

सामुदायिक केंद्र में आयोजित होगा मधुमेह जांच शिविर


-सहकारिता मंत्री ग्रोवर करेंगे उद्घाटन


रोहतक, 01 अगस्त। माता कलावती वैलफेयर सोसायटी, रोहतक की बैठक सोसायटी कार्यालय डीएलएफ कालोनी में हुई। बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि सोसायटी के संस्थापक सदस्य सुभाष चंद्र सिंगल की पुण्यतिथि के अवसर पर 3 अगस्त को प्रात: 9 बजे से पुराना आईटीआई ग्राऊंड स्थित शहीद मदन लाल धींगडा कम्युनिटी सैंटर में रक्तदान, मधुमेह जांच शिविर, अन्न भंडारा व एक शांति पाठ का आयोजन किया जाए।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में हरियाणा के सहकारिता मंत्री मनीष कुमार ग्रोवर उपस्थित रहेंगे। इस बैठक में सोसायटी के प्रधान ईश्वर चंद सिंगला ने सभी सदस्यों व शहरवासियों से अपील की कि इस कार्यक्रम में अधिक से अधिक संख्या में पहुंचकर कार्यक्रम को सफल बनाएं।

सडक़ सुरक्षा को लेकर साक्षरता कार्यक्रम आयोजित

 

रोहतक, 01 अगस्त।

जिला विधिक सेवाएं प्राधिकरण रोहतक के चेयरमैन एवं सत्र न्यायाधीश संत प्रकाश एवम् सीजेएम श्रीमती सुकृति गोयल के कुशल मार्गदर्शन में आज जिला विधिक सेवाएं प्राधिकरण के पैनल के अधिवक्तागण द्वारा पूरे सप्ताह तक चलने वाले -सडक़ सुरक्षा सप्ताह- से सम्बन्धित जागरुकता व साक्षरता कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ रोहतक शहर के मुख्य चौराहों से किया गया। इस अवसर पर वरिष्ठ अधिवक्ता राजबीर कश्यप ने बताया कि भारतीय उपमहाद्वीप में लोगों को राष्ट्रीय सडक़ों की सुरक्षा के बारे में जागरूक करने के लिए सडक़ सुरक्षा अभियान का आयोजन आईएसएस भारत, एचएसई (स्वास्थ्य, सुरक्षा और वातावरण) द्वारा की गई एक पहल है। इस अभियान के आयोजन का मुख्य लक्ष्य सडक़ सुरक्षा के लिए साधारण नियमों का पालन व सुरक्षित सडक़ यात्रा पर जोर देना है। आंकड़ों के अनुसार यह दर्ज किया गया है कि, हर साल लगभग एक लाख लोग सडक़ दुर्घटना में मारे जाते हैं या उनमें से कुछ मानसिक आघात, याददाश्त में कमी, हाथ या पैर की हानि, पूरे जीवन भर के लिए होने वाली परेशानियों से पीडि़त हो जाते हैं।
इन हालात के कारण विशेष रूप से भारत में सडक़ सुरक्षा के उपायों का महत्व और आवश्यकता बढ़ जाती है। शहरों में सडक़ यात्रा करने वालों की बहुत बड़ी संख्या है, जैसे दुपहिया वाहन, चौपहिया वाहन आदि, इसलिए उन्हें और भी अधिक सडक़ सुरक्षा के बारे में जागरूक किया जाना जरूरी है। सडक़ सुरक्षा एक नारा नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है। सभी अधिवक्तागण ने यात्रियों को आह्वान किया कि सडक़ पर सुरक्षा के साथ चलें, नशा करके वाहन न चलायें, यातायात के नियमों का पालन करें, ड्राइविंग के दौरान हेलमेट तथा सीट बेल्ट का प्रयोग करें, अपने वाहन को निर्धारित गति सीमा में रखें, थके होने पर, नशे में होने पर तथा बिना ड्राईविंग लाईसेंस के वाहन न चलायें।
जिला विधिक सेवाएं प्राधिकरण रोहतक का यह सडक़ सुरक्षा का एक अभियान है, मध्यांतर नहीं। इस अवसर पर वरिष्ठ अधिवक्ता राजबीर कश्यप, सुपरिंटेंडेंट विजय कुमार शर्मा, अधिवक्तागण संदीप कुमार, संजीत कादियान, करतार सिंह, सोम सिंह बजाड, सुरेश बबर, प्रवीण कलसन, राजेश मलिक, संजय, उषा गिरोत्रा, सवीता सैनी, स्नेहलता तथा पीएलवी माया देवी, मीनाक्षी, सुरेंद्र आदि उपस्थित रहे।

पांच दिवसीय कार्यक्रम का होगा आयोजन


महम, 30 जुलाई:

ग्रवित वालंटियरों का चौथा पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम 31 जुलाई से खण्ड विकास एवं पंचायत अधिकारी, महम कार्यालय में शुरू करवाया जाएगा।
यह जानकारी देते हुए जिला कार्यक्रम अधिकारी विजय रोहिल्ला ने बताया क खण्ड महममे ग्रामीण विकास के लिए तरूण ग्रवित योजना में स्वैच्छा से समाज सेवा कर रहे ग्रवित वालंटियरो के लिए नि:शुल्क पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम 4 अगस्त तक चलेगा। इस कार्यक्रम में लगभग 100 ग्रवित वालंटियर भाग लेंगे।
इस ट्रेनिंग प्रोग्राम मे नीलोखेड़ी के प्रशिक्षक से विशेष मास्टर ट्रनरों, विभिन्न विभागों के अधिकारियों/विशेषज्ञों द्वारा विभागों में चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं की जानकारी व ग्रामीणों को जागृत करने बारे जानकारी दी जाएगी ताकि ग्रामीण युवा इसका लाभ खुद भी उठा सके और अपने गाँव मे ग्रामवासियों को भी उन योजनाओ की जानकारी देकर लाभ पहुंचा सकंे।
इस प्रशिक्षण शिविर का आयोजन हरियाणा सरकार के संस्थान हरियाणा ग्रामीण विकास संस्थान, नीलोखेड़ी द्वारा किया जाएगा जिसके अन्तर्गत 215 ग्रवित वालंटियरो को पहले प्रशिक्षण दिया जा चुका है। प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान प्रशिक्षण सामग्री व अंतिम दिन पांच दिन का प्रशिक्षण पूरा करने पर ग्रवित वालंटियरों को प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित किया जाएगा व ग्रामीण विकास से संबंधित मोड्युल किट बैग दिया जाएगा ।
उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण लेने वाले वालंटियर सुबह नाश्ता-चाय, दोपहर का भोजन व चाय का प्रबंध संस्थान नीलोखेडी की ओर से किया जाएगा। उन्होंने आग्रह किया कि सभी कलस्टर व ग्राम ग्रवित हैड अपने अपने गांव के ग्रवित वालंटियरों ( लिस्ट में अंकित) को भाग लेने के लिए सूचित करें व स्वयं भी प्रशिक्षण में भाग ले।