“This is a political discourse. Abuse is not the answer. Please respond to the facts,” Jaitley told Surjewala

New Delhi:

The state of the economy was the focus of the verbal slugfest between Arun Jaitley and the Congress on Thursday with the union minister saying that abuse is not the answer in political discourse and the opposition party accusing the government of “economic mismanagement”.

The barbs flew thick and fast as Jaitley, who attacked Congress president Rahul Gandhi yesterday saying that wisdom has to be acquired through learning and cannot be inherited, telling Congress communications in-charge Randeep Surjewala that he should respond on facts.

A file image of union finance minister Arun Jaitley

Surjewala accused the union minister of “economic mismanagement” in the country after Jaitley claimed that India had emerged as the fastest growing economy from being among the ‘fragile five’ during UPA. The Congress leader again hit back, saying exports are in a free fall, the promise of two crore jobs a ‘jumla‘, NPAs had soared to Rs 10 lakh crore and loots and scams a norm under this government.

“This is a political discourse. Abuse is not the answer. Please respond to the facts,” Jaitley told Surjewala on Twitter, a response to Wednesday’s attack in which the Congress leader said the union minister was writing “hollow and wasteful” blogs to regain political relevance.

“When you abuse and berate the Congress leadership, even Supreme Court and many others by distorting facts, it is ‘political discourse’ for you, but when you are shown the ‘mirror of truth’ with hard facts, you get ‘unnerved’ and call it ‘abuse’? Politics of Convenience?” Surjewala asked on Thursday in response to Jaitley’s comments on the Congress chief.

Jaitley hit back, saying, “… surely the journey from India being part of the ‘fragile five’ and ‘policy paralysis’ to the world’s fastest-growing economy could not be a result of economic mismanagement — Another case of ignorance.” Surjewala responded by saying that growth under Modi government was at a four-year low. “Exports are in free fall, the promise of 2 crore jobs is a ‘Jumla‘, NPA’s are soaring to Rs 10 lakh crore, investment is down, banks are paralysed and ‘loot scams’ a norm, GST flawed, schemes failing! Isn’t this Economic Mismanagement?”

Jaitley had started the verbal duel by taking a jibe at Gandhi for his “anti-Narendra Modi tirade” on Wednesday.
“In dynastic parties political positions are heritable. Unfortunately, wisdom is not heritable. It has to be acquired through learning,” he said in a post titled “Is Congress Becoming Ideology-less? Is Anti-Modism its only ideology?” he had said on his Facebook page.

Maoist crackdown: Kiren Rijiju slams Rahul Gandhi over his tweet on RSS


Congress spokesperson Jaipal Reddy also condemned the raids and arrests saying no human rights activists should be arrested without a case.


Congress president Rahul Gandhi hit out at the Central government on Tuesday over the arrest of prominent activists for suspected Maoist links, saying there was place for only one NGO — the RSS — in the “new India”.

In a major crackdown in connection with the Bhima-Koregaon riots case of January 2018, the Maharashtra Police raided the homes of various activists in several states on Tuesday  and arrested at least five of them.

“There is only place for one NGO in India and it’s called the RSS. Shut down all other NGOs. Jail all activists and shoot those that complain. Welcome to the new India,” Gandhi said in a tweet with the hashtag Bhima Koregaon.

Earlier, Congress spokesperson Jaipal Reddy condemned the raids and arrests saying no human rights activists should be arrested without a case.

“I condemn those arrests in unqualified terms. No human rights activist should be arrested. For that matter, no Indian can be arrested without proper case.

“I defend the rights of everybody, more particularly human rights protesters. They are selfless NGOs, activists, who are obliged to fight the enveloping darkness of dictatorial tendencies,” he told reporters when asked about the arrests of some activists by the Pune police.

The raids took place at 10 places in Mumbai and Pune in Maharashtra, Goa, Telangana, Chhattisgarh, Delhi, and Haryana.

Those arrested include Vernon Gonsalves, Arun Ferreira, Sudha Bharadwaj, and Gautam Navlakha.

Activists Sudha Bharadwaj and Gautam Navlakha have been put under house arrest, while others will be produced before a court in Pune today.

शिवपाल यादव ने समाजवादी सेक्यूलर मोर्चा बनाया, आज छोड़ सकते हैं समाजवादी पार्टी


समाजवादी पार्टी के बड़े नेता शिवपाल सिंह यादव बुधवार को पार्टी छोड़ सकते हैं


लखनऊ:

समाजवादी पार्टी में फिर घमासान के आसार लग रहे हैं। इसमें नई बात यह निकलकर आ रही है कि मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल यादव ने गत दिनों अपने भतीते पर नाराजगजी व्यक्त करते हुए कहा है कि डेढ साल से पार्टी की जिम्मेदारी के इंतजार कर रहा हूं। लेकिन मेरी अनदेखी की जा रही है। समाजवादी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष शिवपाल यादव ने अब समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बना दिया है। उन्होंने एलान किया है कि वे इस मोर्चे में उन लोगों को जोडेंगे जो समाजवादी पार्टी में अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।

उन्होंने कहा है कि वे नेताजी को सम्मान नहीं दिए जाने से बहुत आहत हो गए हैं और सेक्युलर मोर्चे के सहारे वे छोटे-छोटे दलों को भी जोड़ेने का प्रयास करेंगे। शिवपाल यादव द्वारा समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाने के फैसले पर अखिलेश यादव ने कहा है कि इसके पीछे भाजपा का हाथ है। शिवपाल की नाराजगी पर उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि मैं भी बहुत लोगों से नाराज हूं, मैं कहां जा सकता हूं। वहीं दूसरी ओर भाजपा ने अखिलेश यादव पर पलटवार करते हुए कहा कि चुनावों में हार मिलने के कारण अखिलेश हताश हो गए हैं इसी वजह से ऐसी बयानबाजी कर सुर्खियां बना रहे हैं। उल्लेख है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के अध्यक्ष और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने भी हाल ही दिनों में शिवपाल सिंह से मुलाकात की थी। इससे राजनीति सरगर्मियां तेज हो रही है। इससे राजनीतिज्ञ अनुमान लगा रहा हैं कि राजभर भी इस मोर्चे में अपनी भागीदारी निभा सकते हैं।

मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल यादव को गत वर्ष भरोसा दिलाया था कि पार्टी में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी। गत वर्ष सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उनके जगह पर प्रो.रामगोपाल यादव को प्रधान महासचिव तो बना दिया गया था। शिवपाल को कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई थी। इससे वे बहुत नाराज थे।

प्रधान मंत्री की हत्या के षडयंत्र के आरोपियों को सर्वोच्च न्यायालय से राहत, नज़रबंद रहेंगे आरोपी

नई दिल्ली:

नई दिल्ली भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामलों में वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी और उनके ठिकानों पर छापेमारी में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में पांच विचारकों की गिरफ्तारी पर 5 सितंबर तक रोक लगा दी है। मिली जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए कहा है कि आरोपियों को गिरफ्तार करने की बजाय उन्हें हाउस अरेस्ट किया जाए। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की अगली सुनवाई 6 सितंबर को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा है कि किसी भी लोकतंत्र के लिए सेफ्टी वॉल्व है। अगर असहमति की अनुमति नहीं होगी तो प्रेशर कूकर की तरह फट भी सकता है।

जनवरी में हुए भीमा-कोरेगांव दंगों के सम्बंध में गिरफ्तार पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नौलखा ने बताया कि यह पूरा मामला इस कायर और प्रतिशोधी सरकार की राजनीतिक असहमति के खिलाफ एक राजनीतिक चाल है। सरकार महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव दंगों के असली अपराधियों को बचाना चाहती है और इसीलिए उसने कश्मीर से केरल तक अपनी असफलताओं और घोटालों से जनता का ध्यान हटाना चाहती है। नौलखा ने कहा कि राजनीतिक लड़ाई राजनीतिक तरीके से लड़ी जानी चाहिए और मैं इस अवसर का स्वागत करता हूं। मेरा कुछ भी लेना-देना नहीं है। यह तो महाराष्ट्र पुलिस है, जो अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर काम कर रही है, और मेरे और मेरे गिरफ्तार अन्य साथियों के खिलाफ अपने मामले साबित करने की कोशिश कर रही है।

पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स’ (पीयूडीआर) में हम लोग 40 वर्षों से भी अधिक समय से एकजुट और निडर होकर लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं और इसके हिस्से के तौर पर मैंने ऐसे कई मामलों को कवर किया है। अब मैं खुद एक राजनीतिक लड़ाई का सामना करूंगा। नौलखा और चार अन्य नक्सल समर्थकों को 31 दिसंबर को पुणे में जनसभा आयोजित करने के मामले में पुणे पुलिस ने कई शहरों में छापे मारने के बाद गिरफ्तार किया है, जिसमें क्रांतिकारी कवि वरवर राव भी शामिल हैं। जनसभा के अगले दिन पुणे से 60 किलोमीटर दूर कोरेगांव-भीमा में हिंसा हुई थी।

आपको बता दें कि 28 अगस्त को पुणे पुलिस ने भीमा कोरेगांव हिंसा, नक्सलियों से संबंधों और गैर-कानूनी गतिविधियों के आरोपों में 5 लोगों को अरेस्ट किया है। इनमें वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वेरनोन गोन्जाल्विस और अरुण फरेरा शामिल हैं। इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की तरफ से रोमिला थापर, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे, माया दर्नाल और एक अन्य ने सुप्रीम कोर्ट ने अर्जी दाखिल की थी। इस याचिका को चीफ जस्टिस की अदालत में पेश किया है। याचिका में गिरफ्तारी को गैरकानूनी बताते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की गई।

राहुल गांधी ने इस मसले पर बीजेपी सरकार पर अटैक करते हुए ट्वीट किया, भारत में सिर्फ एक ही एनजीओ के लिए जगह है और उसका नाम है आरएसएस। इसके अलावा अन्य सभी एनजीओ को बंद कर दीजिए। सभी ऐक्टिविस्ट्स को जेल में डाल दो और जो विरोध करे, उसे गोली मार दो। राहुल की ओर से सरकार पर ऐक्टिविस्ट्स की आवाज को दबाए जाने के आरोप लगाने पर सरकार की ओर से भी प्रतिक्रिया आई है।

राजस्थान को तो पहिले समझ लो फिर सवाल करना: वसुंधरा

 

 

जैतारण/सोजत/जयपुर: 

मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने कहा कि वे राजस्थान की बहू है। राजस्थान की संस्कृति को जानती है। लेकिन कांग्रेस के नये-नये नेता सचिन पायलट को न राजस्थान की संस्कृति का पता है, न ही यहां के संस्कारों का पता और न ही यहां की प्रथा का पता। पहले राजस्थान को समझ तो लो फिर उसके बाद हमसे सवाल करो। सीएम राजे पाली जिले के जैतारण कस्बे में आयोजित एक बड़ी सभा को सम्बोधित कर रही थीं।

उन्होंने कहा कि पीपाड़ सिटी में पथराव की घटना एक साजिश थी जिसे टीवी और वीडियो फुटेज के माध्यम से सब ने देखा है। इसके बावजूद कांग्रेस कह रही है कि यह उसने नहीं किया। मुझे प्रदेश की जनता ने साढे़ 7 करोड़ लोगों की सेवा के लिए चुना है। इसलिए कांग्रेस ने मेरा नहीं प्रदेश के साढे़ 7 करोड़ लोगों का अपमान करने का प्रयास किया। हर महिला का अपमान करने का प्रयास किया। राजस्थान में सबको प्यार करते हुए, सबको साथ लेकर चलते हुए, राम-राम सा और खम्मा घणी बोलते हुए आगे बढ़ने की परम्परा रही है, लेकिन इन्होंने इस परम्परा को तोड़ने का काम किया है। प्रदेश की जनता आने वाले चुनाव में इसका सबक इन्हें सिखा देगी।

पायलट ने वसुंधरा से पूछा 17वां सवाल

 

जयपुर:

राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से बुधवार को तेहरवां प्रश्न पूछा है कि ‘बिजली की दरें 37 से 70 प्रतिशत तक बढ़ाकर तथा जनता को लूटने के उद्देश्य से प्रमुख शहरों में निजी कम्पनियों को बिजली वितरण देकर और लटकते तारों व जलते ट्रांसफार्मर से लगभग 2500 नागरिकों की मौत हो जाने पर क्या मुख्यमंत्री गौरव महसूस करती हैं?’

पायलट ने कहा कि गत पौने पांच वर्षों में भाजपा सरकार ने प्रत्येक वर्ग के लिए बिजली की दरों में बेतहाशा वृद्धि कर दी है। घरेलू बिजली की दरों में 37 से 70 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर व व्यापारिक व औद्योगिक क्षेत्र की बिजली दरों को दुगुना कर दिया है। उदय योजना को लागू कर प्रदेश की जनता पर 60 हजार करोड़ रुपए का बोझ डाला गया है। बिजली छीजत व चोरी को नियंत्रित करने में भाजपा सरकार बुरी तरह से नाकाम रही है। फीडर रिनोवेशन प्रोग्राम के तहत लाखों ट्रांसफार्मर बदलने के दावों के बावजूद प्रदेश में भाजपा के राज में गत समय में लगभग 2500 निर्दोष लोग व बड़ी संख्या में पशुधन विद्युत कंपनियों की लापरवाही के कारण 11 केवी ट्रांसमिशन लाइन से करंट लगने, ट्रांसफार्मर के फटने व जलने के कारण बेमौत मारे गए हैं। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्य है कि इतनी बड़ी तादाद में बेकसूरों की मौत होने पर भी सरकार के स्तर पर किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति की इन हादसों के लिए जवाबदेही सुनिश्चित नहीं की गई।

उन्होंने कहा कि भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में किसानों को 8 घंटे तीन फेस व सभी ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में 24 घंटे सिंगल फेस बिजली देने का वादा किया था, परंतु सत्ता में आते ही वादाखिलाफी कर जनता से कहा गया कि सरकार के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है और विभाग की एमआरआई रिपोर्ट प्रमाणित करती है कि 5 से 6 घंटे से भी कम समय तीन फेस बिजली मिलती है, जबकि सिंगल फेस बिजली शहरों में औसतन 16 घंटे व गांवों में केवल 8 घंटे ही मिलती है।

इमाम को मस्जिद के पास जिंदा जलाया, जलाने वाली महिला की तलाश

 

चेन्नई:

चेन्नई के त्रिपलीकेन क्षेत्र में बड़ी मस्जिद के बिलकुल सामने बने एक कार्यालय में एक बुर्केवाली महिला ने इमाम को जिंदा जला कर फरार हो गई। गंभीर रूप से झुलस गए इमाम को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया, जहां इमाम ने उपचार के दौरान दम तोड़ दिया।
पुलिस ने बताया कि हत्या के इरादे से अपराधी रात को आठ बजे कई अन्य महिलाओं के साथ सैयद फजरुद्दीन के कार्यालय में गई। वहां पहुंचने पर उस महिला ने फजरुद्दीन पर एक केमिकल फेंका और उन्हें आग के हवाले कर के रवाना हो गई।

इमाम की चिल्लाने की आवाज सुनने पर लोगों ने वहां पहुंचकर उन्होंने अस्पताल ले जाया गया। गंभीर रूप से झुलसने के वजह से तत्काल उपचार प्रारंभ कर दिया। इमाम ने उपचार के दौरान दम तोड़ दिया। त्रिपलीकेन पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज करके जांच प्रारंभ कर दी है। इसके साथ ही केस की जांच कर रही टीम महिला की शिनाख्त कर हत्या के पीछे क्या कारण है इसके प्रयास में जुटी हुई है। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि मनी (61) नाम के व्यापारी की उसी बिल्डिंग में एक दुकान है। इसमें वारदात को अंजाम दिया गया है। वह इमाम के खास दोस्तों में से एक हैं। घटना के बाद उन्होंने महिला को पकडऩे का प्रयास किया गया लेकिन वह लोगों को धक्का देकर भागने में सफल रही।

पुलिस ने घटनास्थल का भी जायजा लिया, जहां पर उन्हें इमाम का ऑफिस बुरी तरह से जली हुई अवस्था में मिला। पुलिस अधिकारी ने बताया कि यह सुनियोजित किया गया अपराध है। महिला खुद वहां पर आती है और यह भी हो सकता है कि पास में ही कोई घटना के बाद उसका गाड़ी में कोई इंतजार भी कर रहा हो। इमाम का इलाज करनेवाले चिकित्सकों का कहना है कि उन्हें शव से न तो पेट्रोल मिला है और न ही केरोसिन। नमूने लेकर जांच के लिए फोरेंसिक लैब में भेज दिया गया है।

‘ईसाई’ नहीं ‘वाम पंथ’ है आतिशी की परेशानी


एक कहावत याद आ गई कि सारे ‘कुए में ही भांग घुली है’ तो फिर सिर्फ आतिशी को दोष देना कहीं ज़्यादती तो नहीं आतिशी का डर ईसाई होना नहीं अपितु मार्क्स और लेनिन के जोड़ से बना मर्लेना है जो उनकी वाम पंथी पालन पोषण है, जिससे अब वह छुटकारा पाना चाहती हैं


दिल्ली की राजनीति में आतिशी मर्लेना नया नाम नहीं है। अब वे दिल्ली वालों के लिए सिर्फ ‘आतिशी’ हो गई हैं. उन्होंने अपने नाम से ‘मर्लेना’ हटाने का एलान किया है. आम आदमी पार्टी (आआपा) ने जब देश में नए किस्म की राजनीति का दावा और वादा किया था, उसमें कई अच्छे कार्यकर्ता, प्रोफेशनल्स और नौजवान चेहरे निकल कर आए थे उनमें से एक नाम है आतिशी मर्लेना. जब दिल्ली में सरकार बन गई तो ‘आतिशी’ को उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का सलाहकार बना दिया गया. वे प्रवक्ता के तौर पर भी टीवी पर आआपा का पक्ष रखतीं दिखतीं रहीं हैं।

आतिशी ने अपने नाम से ‘मर्लेना’ इसलिए हटाया क्योंकि इससे लगता है कि वे ‘ईसाई’ हैं और ‘मर्लेना’ नाम वाम पंथ का भी द्योतक है इसलिए वह इस बार साल 2019 के लोकसभा चुनावों में पूर्वी दिल्ली से पार्टी की उम्मीदवार होंगी तो उन्हें डर है कि इससे चुनावों में नुकसान होगा. आतिशी ने अब बताया है कि वे ‘पंजाबी राजपूत’ हैं. और यह फैसला अचानक नहीं लिया गया है. पार्टी में इस पर अच्छे से सलाह मशविरा हुआ है यानी मुख्यमंत्री और पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल साहब की इस पर रजामंदी है या यूं कहे कि उन्होंने यह तय किया कि चुनाव जीतने के लिए जो भी जरूरी है, वो किया जाना चाहिए. नई राजनीति का उनका वादा अब पुराना हो गया है.

उन्हें डर है कि बीजेपी और दूसरी पार्टियां यदि आतिशी मर्लेना को ‘ईसाई’ / ‘वाम पंथी’ बताएंगी तो फिर वे चुनाव हार सकती हैं. हो सकता है कि उनकी इस आशंका में कुछ दम हो, लेकिन फिर वो खुद को कैसे अलग किस्म की राजनीति करने का दावा कर सकते हैं! वैसे तो उन्होंने बहुत कुछ बदल ही लिया है बल्कि ये कहना होगा कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने भी राजनीतिक गंगा में स्नान कर लिया है. यानी अगली बार आपको दिल्ली में वोट देना हो तो सिर्फ इसलिए वोट मत दीजिएगा क्योंकि आप साफ- सुथरी राजनीति के पक्षधर हैं.

खैर, हिन्दुस्तान की राजनीति का एक बड़ा नाम है-जॉर्ज फर्नांडिस. जॉर्ज धर्म के हिसाब से ईसाई थे लेकिन उन्होंने 1977 में अपना चुनाव जीता जातिवादी राजनीति के गढ़ माने जाने वाले बिहार से. जॉर्ज 1977 में मुजफ्फरपुर से तीन लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीते थे. जब तक वे सक्रिय राजनीति में रहे, हिन्दुस्तान के शायद ही किसी वोटर ने ईसाई समझ कर वोट नहीं दिया हो. एक जमाने में बीजेपी के अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक सीट से सिर्फ इसलिए चुनाव नहीं लड़े थे क्योंकि उसे ब्राह्मण और सवर्णों के प्रभाव वाली सीट माना जाता था.

आतिशी के नाम से ‘मर्लेना’ शब्द को हटाना ना केवल हिन्दुस्तान की राजनीति में धर्म और जाति के दबाव को बताता है बल्कि वोटर के बुद्धिमानी का अपमान भी करता है. मुझे याद नहीं पड़ता कि जब से आतिशी मर्लेना सक्रिय राजनीति में आई हैं, उनके धर्म को लेकर किसी ने इस बात पर नाराजगी जाहिर की है या विरोध किया है, बल्कि मेरी समझ से वे काफी लोकप्रिय हैं ‘आआपा’ के नए नेताओं की पीढ़ी में. और क्या दिल्ली के चुनावों में पंजाबी नेता कभी चुनाव नहीं हारे हैं.

उस दिन दिल्ली में पूर्व प्रधानमंत्री और बीजेपी नेता अटल बिहारी वाजपेयी की अंतिम यात्रा निकल रही थी तो एक मस्जिद के बाहर मौलाना साहेब और बहुत से बच्चे हाथों में फूल लिए वाजपेयी को श्रद्धांजलि देने के लिए इंतजार कर रहे थे. वाजपेयी जिंदगी भर हिन्दुत्ववादी कही जाने वाली पार्टी जनसंघ और बीजेपी के नेता ही नहीं रहे, वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक भी रहे, लेकिन उनकी राजनीति धर्म और जाति से परे रही.

हिन्दुस्तान की राजनीति के शायद वे अकेले नेता होंगे जो चार-चार राज्यों से लोकसभा के लिए चुने गए और दो बार तो उन्होंने दो अलग-अलग राज्यों से एक साथ चुनाव लड़कर जीता. वाजपेयी दस बार लोकसभा सांसद रहे और उन्होंने गुजरात, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और दिल्ली की नुमाइंदगी की है. वाजपेयी किसी भी धर्म और जाति में सबसे लोकप्रिय नेताओं में से रहे. वाजपेयी को छोड़िए. बीजेपी के एक नेता हैं शाहनवाज हुसैन, वे सांसद भी रहे हैं और वाजपेयी सरकार के सबसे कम उम्र के कैबिनेट मंत्री भी, क्या उनके इलाके के लोग शाहनवाज को इसलिए वोट नहीं देते कि वे मुसलमान हैं और बीजेपी के नेता?

Former prime minister Atal Bihari Vajpayee

दूसरा नाम हैं मुख्तार अब्बास नकवी, जो मौजूदा सरकार में मंत्री हैं, उन्होंने भी रामपुर से चुनाव जीता है. यानी वोटर अक्सर धर्म और जाति के आधार पर वोट नहीं देता. बहुत से ऐसे एससी-एसटी सांसद हैं जो सामान्य सीटों से चुनाव जीतते रहे हैं. यानी सवर्ण मानी जाने वाली जातियां उन्हें वोट देती हैं. हिन्दुस्तान में अल्पसंख्यकों के जितने भी बड़े नेता माने जाते हैं, उनमें से ज़्यादातर हिन्दू हैं चाहे फिर वो विश्वनाथ प्रताप सिंह हों, अर्जुन सिंह हों, लालू यादव हों, मुलायम सिंह यादव हों या फिर मायावती और एक जमाने तक नेहरू सबसे लोकप्रिय नेता रहे.

हिन्दुस्तान में आजादी के करीब दो दशक बाद तक जाति और धर्म की राजनीति उस तरह नहीं होती थी. सबसे पहले जनसंघ ने जातियों के आधार पर पार्टी में मोर्चा बनाना शुरू किया था, फिर कांग्रेस ने एससी/एसटी मोर्चा बनाया. इससे पहले नेहरू इमाम बुखारी का इस्तेमाल चुनावी राजनीति में करते थे. मास्टर तारासिंह ने सिख धर्म की राजनीति करने की कोशिश की. चौधरी चरण सिंह ने जातिवादी राजनीति की शुरुआत की और विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लाकर इसे पूरी तरह से फैलने का मौका दिया.

फिर एक वक्त आया जब गैर-कांग्रेसवाद के नाम पर छोटी-छोटी पार्टियां बनने लगीं और ज्यादातर का आधार धर्म या जाति रहा और वे उन्हें उकसा कर अपना राजनीतिक फायदा उठाती रहीं. बीजेपी राम मंदिर निर्माण को लेकर हिन्दुत्ववादी राजनीति में लगी रही तो कांग्रेस और गैर बीजेपी पार्टियों ने सेक्यूलरिज़्म के नाम पर मुसलमानों को अपने तरफ खींचने की कोशिश की. आज सारी पार्टियों की सरकारें अपने-अपने राज्यों में धार्मिक यात्राओं के लिए मदद दे रही हैं. गुजरात में 2017 में श्रवण तीर्थ दर्शन यात्रा शुरू हुई तो जयललिता ने तो 2012 में ईसाइयों के लिए येरूशलम और हिन्दुओं के लिए मानसरोवर और मुक्तिधाम यात्राएं शुरू कर दी थीं.

कर्नाटक की कांग्रेस सरकार चारधाम यात्रा करवाती थी. उत्तरप्रदेश में अखिलेश यादव सरकार ने मानसरोवर यात्रा के लिए सब्सिडी शुरू की तो योगी सरकार ने आकर उसकी रकम को दोगुना कर दिया. हज यात्रा के लिए सब्सिडी बरसों से मिलती रही और सबसे साफ राजनीति का दावा करने वाली केजरीवाल सरकार ने भी दिल्ली में 53 करोड़ रुपए तीर्थयात्राओं के लिए दिए हैं. एक कहावत याद आ गई कि सारे ‘कुए में ही भांग घुली है’ तो फिर सिर्फ आतिशी को दोष देना कहीं ज़्यादती तो नहीं.

“Chandrayaan2” 3 January 2019

India will launch its second lunar mission on 3 January next year to land on the moon with a lander and rover, a top space official said on Sunday.

“We are aiming to launch the mission on 3 January 2019, but the window to land on the lunar surface is open till March 2019,” Indian Space Research Organisation (ISRO) Chairman K Sivan said.

The Rs 800-crore lunar mission named “Chandrayaan-2” comes over a decade after India went up to the lunar orbit in November 2008 after “Chandrayaan-1” launch onboard a Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV) rocket from the spaceport in Andhra Pradesh’s Sriharikota.

Representational image.

The 3,890-kg Chandrayaan-2, which will be launched onboard the Geosynchronous Satellite Launch Vehicle (GSLV) Mk-3, will orbit around the moon and study its lunar conditions to collect data on its topography, mineralogy and exosphere.

A lander with rover which will separate from the spacecraft will orbit the moon, and then gradually descend on the lunar surface at a designated spot. The rover’s instruments will observe and study the lunar surface.

The lander has been named “Vikram” as a tribute to the pioneer of India’s space programme and former ISRO chairman (1963-71), Vikram Sarabhai, Sivan said.

This is the first time India will have a rover landing on the moon nearly 50 years after American astronaut Neil Armstrong walked on the eerie lunar surface in 1969.

The Indian space agency, which was eyeing at the second lunar mission this year, has had to make design and functional changes to Chandrayaan-2, causing the delay and pushing the mission to January next year, Sivan said.

For its Chandrayaan-1, ISRO had carried a moon impact probe vehicle to crash land on the surface from the lunar orbit.

Teen Murti Bhavan row exposes the insecurity of a Dynasty whose insidious power play is reaching the end game

 

By all accounts, the move to build a museum for prime ministers to encourage shared memories in a democracy ought to be non-controversial. It is one of those essential yet dull tasks performed by governments that no one gives much attention to except students, chroniclers, researchers or academicians. News about such tasks find no mention in TV debates and notifications are usually buried in the inside pages of newspapers.

Yet, for months now, a controversy has been brewing over the building of a museum for all prime ministers of India on the premises of the Teen Murti Estate in New Delhi — that also houses the Nehru Memorial Museum and Library (NMML). It reached a crescendo with former prime minister Manmohan Singh shooting off an indignant letter last Friday to his successor Narendra Modi, accusing the government of indulging in “revisionism” and trying to “obliterate” India’s first prime minister Jawaharlal Nehru’s legacy.

The debate is fascinating in more ways than one. It delves into the inner workings of a Dynasty that has never relinquished its control over the levers of power in independent India. It explains how the Dynasty exerted this control over its ‘subjects’ through an elaborate, intricate and symbiotic power edifice built over decades and nurtured for generations. Finally, the controversy also captures the insecurities of the Dynasty as for the first time in seven decades, it feels an ebb in its power and appears scared of the prospect.

On the face of it, the controversy is needless. First, the proposed museum for all prime ministers will be set up on the premises of the Teen Murti Estate. There will be no reconstruction of the Teen Murti Bhavan which used to be Nehru’s residence and has now been converted into a museum. The estate is situated over 25 acres of prime Lutyens’ land.

A report in The Indian Express quoted A Surya Prakash, a member of the NMML Executive Council, as saying, “Teen Murti Estate and Teen Murti Bhavan (Nehru’s residence and now the museum) are distinct entities. Often, an attempt is made to imply that these are the same. The library was constructed later on the premises, then the planetarium came, some land was also given to Delhi Police. There is scope for adding more in the complex.”

File image of former prime minister Jawaharlal Nehru

The decision has irked the Congress. Its leaders and council members Mallikarjun Kharge and Jairam Ramesh have said that “this is the legacy of Nehru and associated with the freedom movement. It cannot be destroyed”. They have slammed the move as “diabolical, intended only to obliterate Jawaharlal Nehru”, according to the report.

It isn’t clear how constructing a museum on the Teen Murti Estate, that also houses other buildings, is a “diabolical act”. It is also unclear how a memorial to other prime ministers “obliterates Nehru’s legacy”. Is the Teen Murti Estate a private property? Does it belong to the Nehru-Gandhi family?

The NMML is actually an autonomous body under the ministry of culture. The prime minister is the president of NMML and the home minister is vice-president. The property belongs to the Union government. The decision, taken in July in a general body meeting chaired by Union Home Minister Rajnath Singh, complies with procedures. What explains Congress’s angst?

It is useful to remember that the Teen Murti Bhavan was earmarked as the official residence of prime ministers in 1948. Before that, it was the official abode of the Commander-in-Chief of the Indian Armed Forces. Nehru, as economist Sanjaya Baru writes in Daily O, moved into the colonial mansion only after Mahatma Gandhi’s death and one year into his premiership, leaving behind his “regular” Lutyens’ bungalow ostensibly because he sought a fancier address than his Cabinet colleagues.

“Once the Mahatma was gone, Nehru would have felt liberated enough to move into the grand palace of the Commander-in-Chief, located a stone’s throw from the Viceroy’s palace – Rashtrapati Bhavan…,” writes Baru, who was the media advisor of Manmohan Singh in UPA 1. His decision to “live in Teen Murti House was perhaps also an attempt to elevate himself above the rest of the Congress leadership in the public eye. From primus inter pares (first among equals), Nehru made himself numero uno.”

The real question is not why a museum for all prime ministers is being constructed on the premises, but why was the official residence of prime ministers of India converted into a museum for its first occupant. Is Nehru the only prime minister of India worthy of his office? While the British left Indian shores, did they transfer the mantle of ‘colonial masters’ to the ‘First Family’ of India?

It is hard to disagree when Baru says that if first occupancy is qualification enough for an official residence to be turned into a memoriam, the Americans should have turned the White House into George Washington’s museum or the British should have turned 10 Downing Street into a memoriam for Robert Walpole. “It was Sarvepalli Radhakrishnan, as President, MC Chagla, as minister for education and culture, and Indira Gandhi as minister for information and broadcasting, who took the decision,” writes Baru.

Incidentally, as NMML director Shakti Sinha reminds us in The Hindu, “even after it became a museum in his memory, the Union Cabinet, on August 9, 1968, decided that it should once again become the residence of the PM. The NMML agreed to shift the museum to Patiala House, but it did not happen.”

If anything, the travesty lay in the fact that an abode meant for all prime ministers was turned into a memoriam for one, and the decision didn’t generate any debate. This points to the way the primacy of the Dynasty was hammered into the collective psyche of a nation. Its deification was taken as “normal”.

This was a different form of colonialism, where exclusive occupancy of a rarefied zone becomes a signifier for political power and social influence. The exclusivity was slowly institutionalised. The Dynasty used this ‘denial of access’ mechanism to lay the building blocks of the edifice that would help sustain its political sway over several decades — even during times of distress.

To quote from Swapan Dasgupta’s piece in The Pioneer on how this happens: “Despite all the ups and downs of politics, the Gandhis have remained the first family of Lutyens’ Delhi. Some even consider them the owners of the place. Others come and go, maybe even rename Government-owned bungalows to indicate long occupancy, but it is only the Gandhis who have remained permanent residents for four generations. Around them has developed a durbar comprising politicians, bureaucrats, fixers, socialites, journalists, academics and others whose occupations remain a source of enduring mystery.”

It is in this context that we must place Congress’s outrage against Centre’s move for greater democratisation. The party is feeling threatened because construction of a building inside the sanctum sanctorum of its power destroys the ‘denial of access’ mechanism that it had built and guarded ferociously for all these years. The memoriam for all prime ministers inside Teen Murti Estate, in this sense, becomes a symbolical break-in. It reduces the halo that the Dynasty had built around itself (by self-certification methods such as conferring of Bharat Ratnas) and exposes it to plebian scrutiny.

The real danger to the Dynasty lies not in the fact that it is going through a political ebb. Rather, for the first time in history, the blocks of the power edifice are being dismantled. As the legacies of other prime ministers are also brought into gradual focus, soon the new generation may seek a re-evaluation of the ‘Nehru deification’ phenomenon. The emperor’s nakedness may finally become stark.

Congress’s second objection is that NMML is running a BJP agenda and trying to change the “nature and character” of the library and museum. In his letter, Manmohan writes, “The museum itself must retain its primary focus on Jawaharlal Nehru and the freedom movement because of his unique role having spent almost ten years in jail between the early 1920s and mid-1940s. No amount of revisionism can obliterate that role and his contributions.”

NMML director Shakti Sinha,in reply,  says: “Even in the present set-up, less than 2 per cent of the books, documents and other items in our repository are about Jawaharlal Nehru. When we expand the repository to include other PMs, we will be adding to Nehru as well in the process. Nowhere are we obliterating Nehru, we will make it Nehru-plus.”

Sinha has also given an account of the upgradation work that will be carried out.

On the context of Congress’s fear about the museum “losing its focus”, BJP leader Bhupender Yadav has tweeted an MOA clause:

The details make Congress’s fear seem misplaced. Its outrage, however, arises from a deeper anxiety. In marketing policy parlance, ‘brand recall’ and ‘brand recognition’ are key considerations in moulding consumer behaviour. Companies see red when their products suffer a slip in brand awareness. They spend billions in ensuring ‘top of the mind recall’ among consumers.

The Dynasty, through its relentless promotion of the Nehru-Gandhi brand, has so far ensured a high degree of brand awareness among the electorate. Among other things, this has also helped it cement political power. A greater democratisation, fears the party, may drown out the brand awareness of Congress, more so because its current offering has resisted all efforts at repackaging. This distress has reflected in the way it has forced mild-mannered Manmohan Singh — who slept through countless scams under his watch — to suddenly rediscover his voice on NMML issue.

If Nehru’s legacy is indeed “indelible”, no amount of conspiracies from the BJP will be able to diminish his brightness. Why is the Congress unduly worried?