मणिशंकर अय्यर की बहाली कांग्रेस की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है, शनिवार को हुई वर्किंग कमेटी में करप्शन पर सरकार को घेरने की योजना बनाई गई है
आठ दिन पहले एक एनजीओ का सेमिनार इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हो रहा था. इस सेमिनार में मणिशंकर अय्यर भी थे. आखिरी वक्ता होने के कारण मणिशंकर भूमिका बना रहे थे. तभी पूर्व आप नेता आशुतोष ने मणिशंकर को हिंदी में गलती ना करने के लिए आगाह किया. मणिशंकर ने तपाक से जवाब दिया कि मुझे लगता है कि यहां कोई नीच व्यक्ति मौजूद नहीं हैं. मणिशंकर अय्यर के बारे में चर्चा इसलिए हो रही है, क्योंकि राहुल गांधी ने उनकी कांग्रेस की सदस्यता बहाल कर दी है.
इस वाकये के मायने ये हैं कि मणिशंकर अय्यर बदलने वाले नहीं है. ये सेमिनार कांग्रेस में बहाली से पहले का है. जिसमें मणिशंकर अय्यर ने कहा कि वो समझते हैं कि वो कांग्रेस में हैं. जाहिर है कि मणिशंकर का आत्मविश्वास बता रहा था कि कांग्रेस से उनका निलंबन कुछ समय के लिए था. कांग्रेस के भीतर मणिशंकर वामपंथी विचारधारा के सृजक हैं. राहुल गांधी की भी नजदीकी आजकल लेफ्ट के नेताओं से ज्यादा है.
कार्यसमिति में चर्चा
मणिशंकर अय्यर की बहाली कांग्रेस की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है. शनिवार को हुई वर्किंग कमेटी में करप्शन पर सरकार को घेरने की योजना बनाई गई है. इस बैठक में प्रधानमंत्री को कैसे घेरना है, इस पर विस्तार से चर्चा हुई. इस बैठक में मौजूद सूत्र के मुताबिक ये कहा गया है कि बीजेपी के पास नरेन्द्र मोदी का चेहरा है. इसके अलावा सरकार के पास कोई विकल्प नहीं है.
इसलिए चुनाव के आखिरी साल कांग्रेस के निशाने पर सीधे प्रधानमंत्री रहेंगे. कांग्रेस को लग रहा है कि मोदी को निशाना बनाने का ही फायदा है. क्योंकि एक बार प्रधानमंत्री के बारे में जनता के बीच संशय बन गया तो बाजी हाथ में आ सकती है. जिस तरह से अविश्वास प्रस्ताव के दौरान राहुल गांधी ने नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधा है. वो इसका उदाहरण है.
नरम और गरम दल का संगम
कांग्रेस की नई राजनीति गरम दल और नरम दल के तर्ज पर चलने वाली है. मणिशंकर अय्यर जैसे नेता पार्टी में गरम दल की नुमाइंदगी करेंगें, जो विभिन्न मसलों पर पार्टी के इतर राय रख सकते है. जिसका जरूरत पड़ने पर पार्टी इस्तेमाल कर सकती है. अगर पार्टी को पंसद नहीं आता तो किनाराकशी अख्तियार कर सकती है.
हालांकि मकसद साफ है, सरकार और प्रधानमंत्री पर निशाना साधना. वहीं राहुल गांधी और उनकी टीम गांधीगिरी का रास्ता अपनाएगी. जिस तरह की झप्पी राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को दी है.
उस तरह का अभियान राहुल गांधी जारी रख सकते है. इससे राहुल गांधी की इमेज बनाने में पार्टी को आसानी होगी. राहुल गांधी सहिष्णुता और प्यार मुहब्बत की बात करके प्रधानमंत्री के इमेज को डेंट लगाएंगें. जिस तरह अटलजी के अंतिम संस्कार में कांग्रेस अध्यक्ष ने तत्परता दिखाई है. वो एक बानगी है.
वहीं गरम दल वक्त-वक्त पर पीएम के खिलाफ ऐसी बात कह सकता है, जो पार्टी का वफादार सुनना चाहता है.खासकर ऐसे लोग जिनको लग रहा है कि पार्टी बचाव की मुद्रा में ज्यादा है. कांग्रेस का गरम दल इस धारा के लोगों को खुश रख सकता है.
प्रधानमंत्री के खिलाफ बोलने से परहेज नहीं
कांग्रेस में पहले ये तय नहीं हो पा रहा था कि प्रधानमंत्री के खिलाफ बोलना चाहिए कि नहीं, लेकिन अब तय हो गया है कि इससे कोई परहेज नहीं है. कांग्रेस को लग रहा है कि जनता प्रधानमंत्री और सरकार के खिलाफ सुनना चाहती है. इसलिए ऐसे मुद्दे उठाने की शुरुआत हो गयी है. जिससे ये साबित हो जाए कि कुछ ना कुछ गड़बड़ चल रहा है.
जैसे नीरव मोदी का मसला है. इस तरह के मुद्दे से पीएम की साख पर बट्टा लगाया जा सकता है. करप्शन पर जनजागरण अभियान की तैयारी है. जिसे पार्टी गांव-गांव तक ले जा रही है. इसमें सभी बड़े नेताओं को शामिल होने का फरमान दिया गया है.
सीधे निशाना लगाने का मकसद
कांग्रेस 1989 के वी पी सिंह का फार्मूला अपनाने में लगी है. जिस तरह वी पी सिंह ने 403 लोकसभा सदस्य वाली पार्टी कांग्रेस को घेरा था. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर बोफोर्स तोप को लेकर आरोप लगे.
वी पी सिंह ने राजीव गांधी के खिलाफ अभियान चलाया और मजबूत गठबंधन के जरिए कांग्रेस के विकल्प के तौर पर खड़े हुए, नतीजा सबको पता है. राजीव गांधी की पार्टी चुनाव हार गई. कांग्रेस के नेता राहुल गांधी भी इस फार्मूले पर हैं. एक तो मजबूत गठबंधन बनाने की कवायद कर रहें हैं. वहीं सीधे प्रधानमंत्री को निशाना बना रहे हैं.
इस तरह से मोदी का विकल्प कौन वाले सवाल का जवाब दिया जा रहा है. जिस तरह से 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी का विकल्प कौन है, इस सवाल पर कांग्रेस चुप रही, सोनिया गांधी और कांग्रेस ने ये नहीं बताया कि अटल जी का विकल्प कौन है.
राहुल गांधी भी यही करना चाहते हैं. एक तरफ गठबंधन दूसरी तरफ प्रधानमंत्री को डिस्क्रेडिट करने की योजना, जिससे जनता का मोह बीजेपी से भंग हो जाए.
राहुल गांधी की उम्मीद
राहुल गांधी कई बार ये दोहरा चुके हैं कि नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री नहीं बनने जा रहें हैं. कांग्रेस का भरोसा बन रहे गठबंधन पर है. लेकिन ये बात भूल रहे हैं कि मोदी-शाह की जोड़ी लगभग अजेय जैसी हो रही है.
बीजेपी का काम चुनाव की मशीन की तरह है. जहां हर वक्त चुनाव और समीकरण पर ध्यान दिया जाता है. कांग्रेस को बीजेपी से मैच करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी.