आखिर स्कूल पहुंचने लगे घुमंतू वर्ग के बच्चे

 

पुरनूर

जयपुर:

हम सभी जानते हैं कि शिक्षा हमारा मौलिक अधिकार है परन्तु अभी भी हमारे समाज का कुछ वर्ग इस अधिकार से वंचित है, बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि यह वर्ग अभी भी अपने इस अधिकार से अनभिज्ञ है।हालांकि सरकार इस क्षेत्र में हर संभव प्रयास कर रही है लेकिन फिर भी राजस्थान का एक घुमंतू वर्ग बंजारा अभी भी शिक्षा के मामले में पिछड़ा हुआ है।
इस वर्ग के बच्चों के सामाजिक और आर्थिक स्तर बढाने के लिए कुछ चाहिए तो वो है शिक्षा। इस क्षेत्र में जी जान से लगे ह्यूमन लाइफ फाउंडेशन के अध्यक्ष श्री हेमराज चतुर्वेदी हर सम्भव प्रयास कर रहे हैं कि बनजारा वर्ग को अशिक्षा के आक्रांत से बचाया जाए।
श्री हेमराज चतुर्वेदी के अनुसार ,तमाम सरकारी प्रयाशों के बाबजूद हमारे बंजारा समाज में साक्षरता दर आज भी १-२ प्रतिशत के आसपास है । किन्तु सरकार खास कर के सहयोग से इनके अशिक्षित एवं घुमंतू प्रवृति से बच्चो को हमने एक बर्ष के पढाया एवं उचित मोटीवेशन प्रदान करके सरकारी स्कूल में प्रवेश दिलवा दिया है .। वहा इनको नित्य पोषाहार भी मिलेगा .। प्रताप नगर की बंजारा झुग्गी बस्ती में पहली वार कोई बच्चा सरकारी विद्यालय में पढने पहुंचा है । अब ह्यूमन लाइफ फाउंडेशन द्वारा की शिक्षिका / कार्यकर्ताओं द्वारा इन अत्यंत गरीब ३० बच्चों को झुग्गी बस्ती से २ कि.मी. दूर स्थित सरकारी विद्यालय में प्रातः काल नित्य छोडकर आने और पुनः इनका नित्य होमवर्क पूरा करवाने की व्यवस्था की जा रही है । संस्था की और से इन बच्चों की स्टेशनरी ड्रेस, बैग सहित समस्त दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति की जायेगी.


इसके अतिरिक्त स्कूल में प्रवेश के लिए जन्म प्रमाणपत्र आवश्यक होता है इसलिए संस्था द्वारा बच्चो के आधारकार्ड बनवा दिया है . इससे इनको एक पहचान मिलेगी और अब हमारे स्कूल नंबर – 2 के सभी ३० बच्चो को एक पहचान भी मिल गयी है . आगामी योजना में इनके जाति प्रमाणपत्र बनवाकर सरकार से मासिक वजीफा ( स्कालरशिप ) दिलवाने की संस्था की योजना है .
इसके अलावा ह्यूमन लाइफ स्कूल नंबर २ सरकारी स्कूल चूँकि जयादा दूर है इसलिये ना तो छोटे बच्चे पैदल जा पाएंगे और ना हमारी शिक्षिका इसलिये अक्षय पत्र के पास वाली स्कूल में संस्था की एक्टिविटीज पूर्ववत रहेंगी. स्कूल सुचारू संचालित होता रहेगा।
संस्था के विधि सलाहकार श्री दिनेश पाठक ने बताया कि RTE Act के तहत हर बच्चे का अधिकार है कि उसे 14 वर्ष तक मुफ्त शिक्षा मिले लेकिन विडम्बना है कि शिक्षा के ही आभाव के कारण पिछड़े वर्ग के लोग अपने मौलिक अंधकार से अनभिज्ञ हैं। संस्था शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने में निरन्तर कार्यरत है।

Supreme Court verdict has made it clear that the Delhi government has no police powers : Jaitley


The Supreme Court laid down broad parameters for the governance of the national capital, which has witnessed a bitter power tussle between the Centre and Delhi government since the Aam Aadmi Party government came to power in 2014.


NEW DELHI: 

Union Minister Arun Jaitley today said that the Supreme Court verdict has made it clear that the Delhi government has no police powers and, hence, it cannot set up an investigating agency to probe crimes committed in the past.

He also said that the presumption that the issue concerning administration of the Union Territory cadre of services has been decided in favour of the city government would be “wholly erroneous”, the minister said in a Facebook post on Supreme Court’s observations in the Delhi government case.

“There are several issues which had directly not been commented upon, but by implication there is some indication of those issues. However, unless issues of importance are flagged, discussed and a specific opinion is rendered, none can assume that silence implies an opinion in favour of one or the other,” Mr Jaitley said.

As Delhi has no police powers, it cannot set up an investigative agency to probe crimes as had been done in the past, the minister said.

“Secondly, the Supreme Court has held categorically that Delhi cannot compare itself at par with other States and, therefore, any presumption that the administration of the UT cadre of services has been decided in favour of the Delhi government would be wholly erroneous,” the minister added.

The 5-judge bench of Supreme Court yesterday unanimously held that Delhi cannot be accorded the status of a state and clipped the powers of the Lieutenant Governor (LG), saying he has no “independent decision making power” and has to act on the aid and advice of the elected government.

The Supreme Court laid down broad parameters for the governance of the national capital, which has witnessed a bitter power tussle between the Centre and Delhi government since the Aam Aadmi Party government came to power in 2014.

Mr Jaitley said the judgement elaborates at length the constitutional philosophy behind the Constitution and reaffirms precisely the text of what the Constitution says.

“It does not add to the powers of the state government or the central government nor does it in any way dilute the same. It emphasises at the importance of elected state government, but Delhi being a Union Territory makes its powers subservient to the central government,” he said.

Mr Jaitley said, ordinarily, in the larger interest of democracy and federal politics, the Lieutenant Governor should accept the exercise of power by the state.

“But if it has good and cogent reasons supported by material to disagree, he can record the same in writing and refer the same to the President (i.e. the central government), which will resolve the difference of opinion between the state government and the Lieutenant Governor.”

“The decision of the central government will be binding both on the Lieutenant Governor and the elected state government. Thus, hereto the opinion of the centre is over-riding,” Mr Jaitley said.

He said the judgement gives due importance to the opinion of the elected state government, but maintains the primacy of the central government in the larger interest of the national capital.

“Delhi is not a state and, therefore, there could be no assumption that powers which belong to state government’s also belongs to the elected government of the Union Territory.

“It has been specifically held by the Supreme Court that it is crystal clear that by no stretch of imagination, NCT of Delhi can be accorded the status of a state under the present constitutional scheme and the status of the Lieutenant Governor of Delhi is not that of a Governor of a State, rather he remains an administrator, in a limited sense, working with the designation of Lieutenant Governor,” Mr Jaitley added.

नितीश- प्रशांत कि जुगलबंदी क्या रंग दिखाती है?


बिहार में जेडीयू और बीजेपी के बीच चल रही तनातनी के बीच 8 जुलाई को जेडीयू राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अपने अध्यक्षीय भाषण से नीतीश बीजेपी को भी संदेश दे सकते हैं


आठ जुलाई को दिल्ली में जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सबकी नजरें पार्टी अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भाषण पर होंगी. उनका अध्यक्षीय भाषण पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को संदेश तो देगा ही, लेकिन, उससे निकलने वाला संदेश सहयोगी बीजेपी के लिए भी होगा.

ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि बिहार में बीजपी के साथ मिलकर सरकार चला रहे नीतीश कुमार पिछले कुछ महीनों से असहज महसूस कर रहे हैं. विशेष राज्य के दर्जे के मसले को फिर से उठाकर नीतीश कुमार ने बिहारी अस्मिता को फिर हवा दी है. बीजेपी के साथ दोबारा हाथ मिलाने के बाद कुछ वक्त के लिए यह मुद्दा ठंढ़े बस्ते में चला गया था. लेकिन, अब एक बार फिर से इस मुद्दे पर महाभारत के आसार लग रहे हैं.

जेडीयू कार्यकारिणी की बैठक में इस मुद्दे को लेकर भी प्रस्ताव पास हो सकता है. कार्यकारिणी की बैठक के बाद विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे को लेकर धरना- प्रदर्शन की भी तैयारी हो रही है.

जेडीयू-बीजेपी के रिश्तों में कड़वाहट

इसके पहले ही जेडीयू और बीजेपी के कई नेताओं की तरफ से लोकसभा चुनाव को लेकर सीटों की संख्या के मुद्दे पर बयानबाजी देखने को मिली थी. बीजेपी के नेता रह-रह कर पिछले चुनाव में जीती सभी 22 सीटों पर अपना दावा करते रहे हैं. दूसरी तरफ जेडीयू 2009 के फॉर्मूले के हिसाब से सीटों के बंटवारे की बात कर रही है जिस वक्त वो 25 सीटों पर चुनाव लड़ती थी.

जेडीयू के सुप्रीमो बीजेपी नेताओं की इसी बयानबाजी से नाराज हैं. सूत्रों के मुताबिक, नीतीश कुमार की नाराजगी बिहार में सरकार के भीतर बीजेपी की बढ़ती दखलंदाजी से है. क्योंकि नीतीश कुमार एनडीए-1 में जिस अधिकार और जिसे निर्णायक भूमिका में होते थे, उस तरह चाहकर भी नहीं कर पा रहे हैं.

रामनवमी जुलूस के दौरान बवाल से हुई शुरुआत

उनकी नाराजगी इस साल रामनवमी जुलूस के दौरान हुए हंगामे को लेकर भी है. उन्हें लगता है कि इस हंगामे और बीजेपी नेताओं के बयानों से उनकी छवि खराब हुई है. इस दौरान केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे का मामला हो या फिर गिरिराज सिंह और बीजेपी अध्यक्ष नित्यानंद राय का बयान, इन सबसे नीतीश कुमार अपने-आप को असहज महसूस करते रहे हैं.

इसके बाद ही कई मौकों पर उनकी तरफ से करप्शन और कम्युनलिज्म से समझौता नहीं करने का बयान भी दिया जा रहा है. नीतीश कुमार के बयानों से साफ लगता है कि बिहार में जिस निर्णायक भूमिका में वो अपने-आप को चाह रहे थे, उस निर्णायक भूमिका में वो काम नहीं कर पा रहे हैं.

ऐसे माहौल में दिल्ली में सात जुलाई को पार्टी पदाधकारियों की बैठक और फिर अगले दिन राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पर सबकी नजरें टिक गई हैं. क्या नीतीश कुमार इस दिन दिल्ली से दिल्ली सरकार को कोई संदेश देंगे?

घड़ी की सुई फिर वहीं आ टिकी?

एक बार फिर से घड़ी की सुई घूमकर उसी जगह पर आकर टिक गई है. लगभग पांच साल पहले अप्रैल 2013 में नीतीश कुमार ने दिल्ली के मावलंकर हॉल में पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन को संबोधित करते हुए बीजेपी पर हमला बोला था. नीतीश ने साफ कर दिया था कि ‘सत्ता के लिए कभी टीका भी लगाना पड़ता है तो कभी टोपी भी पहननी पड़ती है.’ नाम लिए बगैर नीतीश कुमार ने उस वक्त नरेंद्र मोदी पर हमला बोला था. उसके कुछ ही दिनों बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी से नाता तोड़ने का फैसला कर लिया था.

अब एक बार फिर दिल्ली में ही पार्टी का अधिवेशन हो रहा है. ऐसे में एनडीए में असहज नीतीश के अध्यक्षीय भाषण पर सबकी नजरें होगी. इस भाषण से भविष्य के कदम का संकेत देखने को मिल सकता है.

जेडीयू के साथ फिर से प्रशांत किशोर

जेडीयू के भीतर भी इन दिनों हलचल तेज हो गई है. सूत्रों के मुताबिक, चुनाव प्रबंधक प्रशांत किशोर की सक्रियता एक बार फिर से बढ़ गई है. चुनाव की तैयारी और सलाहकार की भूमिका में प्रशांत किशोर का आना इस बात का संकेत है कि अब जेडीयू एक बार फिर से आक्रामक तेवर के साथ लोकसभा चुनाव की तैयारियों में लग गई है.

हालाकि सूत्र बता रहे हैं कि प्रशांत किशोर ने कुछ महीने पहले बीजेपी के भीतर अपनी भूमिका की तलाश की थी. 2014 में बीजेपी के लिए चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी संभालकर प्रशांत किशोर हीरो बनकर उभरे थे. लेकिन, इस बार बीजेपी नेताओं के साथ मुलाकात के बाद उनको साफ कर दिया गया कि उन्हें पार्टी के स्ट्रक्चर के दायरे में रहकर ही काम करना होगा.

सूत्रों के मुताबिक, इसी के बाद प्रशांत किशोर ने जेडीयू का दरवाजा खटखटाया. हालाकि, वहां भी प्रशांत किशोर बिहार सरकार में अपने लिए बड़ी भूमिका और बड़ा ओहदा चाह रह थे. लेकिन, बात वहां भी नहीं बनी तो अब जेडीयू के चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी को संभाल रहे हैं.

क्या साथ आएंगे जेडीयू-कांग्रेस?

सूत्रों के मुताबिक, अगर बीजेपी के साथ जेडीयू के रिश्तों में तनातनी जारी रहती है तो फिर जेडीयू और कांग्रेस करीब आ सकते हैं. नीतीश कुमार की कोशिश एलजेपी को भी साधने की हो सकती है. रामविलास पासवान को लेकर नीतीश कुमार का नरम रवैया इस बात संकेत भी दे रहा है.

फिलहाल एलजेपी अपने पत्ते नहीं खोलना चाहती. अपने जन्मदिन के मौके पर केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने एनडीए के सभी घटक दलों से बातकर किसी भी तरह के विवाद को सुलझा लेने की बात की. पासवान कोई भी निर्णय लेने से पहले अपने नफा-नुकसान का आकलन कर लेना चाहेंगे.

जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत के दौरान बताया ‘अगर बीजेपी 40 में से 22 जीती हुई सीटों पर लड़ेगी, एलजेपी 6 जीती हुई सीटों पर लडेगी और आरएलएसपी तीन जीती हुई सीटों पर लड़ेगी, तो क्या जेडीयू महज 6-7 बची हुई सीटों पर ही चुनाव लड़ेगी? क्या ऐसा संभव है? क्या बीजेपी इस बात को नहीं समझ रही है? अगर यही फॉर्मूला है तो फिर विधानसभा चुनाव में क्या होगा? क्या बीजेपी 243 में से 55 जीती हुई सीटों पर चुनाव लड़ने को राजी हो जाएगी?’

जेडीयू नेता ने दावा किया कि इसी बात को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नाराज हैं. उन्हें बीजेपी नेताओं के बयान और उनकी तरफ से बनाए जा रहे दबाव के संकेत उन्हें किसी विकल्प के बारे में सोंचने पर मजबूर कर सकते हैं.

नीतीश के फोनकॉल के बाद से ही अटकलें

नीतीश कुमार की तरफ से लालू यादव को स्वास्थ्य संबंधी हालचाल को किया गया कर्टसी कॉल बैकफायर कर गया था. उस वक्त तेजस्वी के तेवर ने जेडीयू-आरजेडी के बीच किसी भी तरह की दोबारा साथ आने की अफवाहों तक को खारिज कर दिया.

नीतीश कुमार अगर इसके बावजूद भी बीजेपी से अलग राह चलने का कोई फैसला कर लें तो इसमें आश्चर्य नहीं होगा. करप्शन और कम्युनलिज्म से बराबर की दूरी का रास्ता बिहार में फिर से एक तीसरे विकल्प को हवा दे सकता है. कांग्रेस की भूमिका इसमें अहम हो सकती है.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के 12 जुलाई के बिहार दौरे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मुलाकात होनी तय है. लेकिन, इस मुलाकात की पटकथा और मुलाकात की संभावना नीतीश के दिल्ली दौरे से ही तय होगी. इसीलिए नीतीश के दिल्ली दौरे और जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को निर्णायक माना जा रहा है.

देश द्रोह का आरोप : जुरमाना रु10000

जेएनयू की उच्च-स्तरीय जांच समिति ने उमर खालिद को कॉलेज से बाहर निकालने के फैसले का समर्थन किया है. साथ ही कन्हैया कुमार पर 10,000 रुपए का जुर्माना लगा दिया है. जांच समिति ने 2016 फरवरी मे अफजल गुरु की फांसी के खिलाफ कैंपस में एक प्रदर्शन किया था. यह जांच इसी मामले को लेकर चल रही थी.

जेएनयू की जांच समिति में 5 सदस्य थे, जिन्होंने यह फैसला लिया है. अफजल गुरु की फांसी के विरोध में जेएनयू के छात्रों ने कैंपस में देश विरोधी नारे लगाए थे. पैनल ने इस मामले में अपना फैसला अभी भी बरकरार रखा है.

2016 की शुरुआत में जेएनयू जांच समिति ने खालिद और दो अन्य छात्रों को कॉलेज से निकालने का फैसला सुनाया था. इसके साथ ही यूनियन प्रेसिडेंट कन्हैया कुमार पर जुर्माना लगाया था. अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए 13 छात्रों पर जुर्माना लगाया गया है. जुर्माना लगने के बाद इन छात्रों ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. दिल्ली हाई कोर्ट ने अपीलीय अथॉरिटी पैनल के फैसले की जांच करने के कहा. एक सूत्र के मुताबिक, कुछ छात्रों की पेनाल्टी घटा दी गई है.

फरवरी 2016 में उमर खालिद, कन्हैया कुमार और अनिर्वान भट्टाचार्य पर देशद्रोह का आरोप लगा था. इसके बाद काफी विरोध-प्रदर्शन हुआ और खालिद और कन्हैया कुमार को बेल पर छोड़ा गया.


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अब किसी भी मामले पर उनकी सहमति की आवश्यकता नहीं होगी : अरविंद केजरीवाल


दिल्ली में अपने अधिकारों के लिए पिछले तीन सालों से मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच मतभेद सामने आ रहे थे.


दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कोर्ट के फैसले के बाद उपराज्यपाल को लिखा है कि अब किसी भी मामले पर उनकी सहमति की आवश्यकता नहीं होगी.

बता दें दिल्ली में अपने अधिकारों के लिए पिछले तीन सालों से मुख्यमंत्री और राज्यपाल आमने-सामने थे.

हालांकि अब कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कह दिया है कि उपराज्यपाल को सरकार की सलाह पर काम करना होगा. इस फैसले के बाद से आम आदमी पार्टी पूरी तरह से खुश और विरोधियों के प्रति आक्रामक नजर आ रही है.

केजरीवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि असली शक्ति चुनी हुई सरकार में है, इसलिए किसी भी मामले में उपराज्यपाल की सहमति आवश्यक नहीं होगी. केजरीवाल ने यह भी कहा कि कोर्ट के फैसले के बाद उपराज्यपाल अनिल बैजल को सरकार का समर्थन करना चाहिए.

केजरीवाल के मुताबिक, अभी तक सारी फाइलों को उपराज्यपाल के पास सहमति के लिए भेजा जाता था लेकिन अब ऐसा करने की जरूरत नहीं होगी. हालांकि सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों के बारे में उपराज्यपाल को सूचित किया जाएगा.

गौरतलब है कि बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को हर फैसले पर उपराज्यपाल की जरूरत नहीं है.


धरना सहमती से दिया था क्या???? वैसेइ  पूछ लिया 

थरूर को अग्रिम ज़मानत


  • सुनंदा पुष्कर की मौते के मामले में दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने शशि थरूर को अग्रिम दे दी है.
  • कोर्ट ने कांग्रेस सांसद थरूर को एक लाख रुपए के निजी मुचलके पर अग्रमि जमानत दी है.
  • साथ ही कोर्ट ने थरूर के विदेश जाने पर भी रोक लगा दी है.
  • अभी अच्छे दिन आने बाकी हैं????

आपको बता दें कि दिल्ली पुलिस ने अग्रिम जमानत का विरोध किया था. इससे पहले पटियाला हाउस कोर्ट ने शशि थरूर की अग्रिम जमानत याचिका पर बुधवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. थरूर ने उनके खिलाफ आरोपी के तौर पर केस चलाए जाने के आदेश के बाद दिल्‍ली के पटियाला हाउस कोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया था.

शशि थरूर को इस बात का डर है कि 7 जुलाई को सुनवाई के दौरान उन्‍हें गिरफ्तार किया जा सकता है.

सुनंदा पुष्कर की मौत मामले में उनके पति शशि थरूर को कुछ दिन पहले ही सीबीआई की विशेष अदालत ने आरोपी माना है.

शशि थरूर को 498ए के तहत भी सजा हो सकती है. मालूम हो कि सुनंदा पुष्कर ने 8 जनवरी 2014 को अपने पति शशि थरूर को ईमेल में लिखा था कि, ‘मेरी जीने की इच्छा नहीं है. मैं सिर्फ मौत की कामना कर रही हूं.’ इस ईमेल के 9 दिन बाद सुनंदा दिल्ली के एक होटल में मृत मिली थीं.

इसके पहले सुनवाई के दौरान सरकारी वकील अतुल श्रीवास्तव ने कहा था कि सुनंदा की तीसरी शादी थी जिसको 3 साल 3 महीने हुए थे. जो चार्जशीट फाइल की गई है वह ‘अबेटमेंट फॉर सुसाइड’ और क्रुएलिटी के तहत ही दायर की गई है. चार्जशीट में पुलिस ने उस कविता का भी जिक्र किया है, जिसे खुद सुनंदा ने मौत से दो दिन पहले लिखा था. जिसका मतलब निकाला जा सकता है कि मौत से पहले वह काफी डिप्रेशन में थी.

कांग्रेस नेता पर आईपीसी की धारा 498 ए (क्रूरता) और 306 (आत्महत्या के लिये उकसाने) के आरोप लगाए गए हैं. धारा 498 ए के तहत अधिकतम तीन साल के कारावास की सजा का प्रावधान है जबकि धारा 306 के तहत अधिकतम 10 साल की जेल हो सकती है. दिल्ली पुलिस ने एक जनवरी 2015 को आईपीसी की धारा 302 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी.

शशि थरूर को इस मामले में अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है.

 

“The Strategy Trap-India and Pakistan under Nuclear Shadow”by Lt. Gen. Prakash Menon released

 

 

The Punjab Governor and Administrator, UT, Chandigarh, Shri V.P. Singh Badnore releasing a book titled

“The Strategy Trap-India and Pakistan under Nuclear Shadow”

written by Lt. Gen. Prakash Menon at Punjab Raj Bhavan , Chandigarh on Thursday, July 05, 2018

छात्रो के भविष्य से खिलवाड़ न करे भाजपा सरकार : एनएसयूआई

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस छात्र संगठन , एनएसयूआई हरियाणा के प्रदेश मीडिया प्रभारी दीपांशु बंसल ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया कि भाजपा के शासन में प्रदेश के 10 लाख छात्रो का भविष्य खतरे में है-वही 2 लाख लोगों का रोजगार भी खतरे में है ,चूंकि हरियाणा सरकार ने प्रदेश के 3200 स्कूलों को शैक्षिक सत्र शुरू होने के तीन माह बाद भी अस्थाई मान्यता का लेटर जारी नही किया है।दीपांशु ने कहा कि सरकार की इस जनविरोधी व छात्रविरोधी नीति से छात्रो के अभिभावक परेशान है, साथ ही प्रदेश में 3200 प्राइवेट शिक्षण संस्थान के संचालक भी परेशान है जिसके द्वारा लगभग 2 लाख लोगों को रोजगार दिया जाता है व प्रत्येक व्यक्ति पर लगभग 5 लोग निर्भर होते है।दीपांशु ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया कि, एक तरफ भाजपा सरकार प्रति वर्ष 2 करोड़ रोजगार देने की बात करते है,वही सरकार रोजगार व्यक्तियों से रोजगार छीनने का काम कर रही है।साथ ही सरकार छात्रो के भविष्य से खिलवाड़ करते हुए लापरवाही बरत रही है , जिससे छात्र स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहे है।दीपांशु ने कहा की एनएसयूआई हमेशा से छात्रो के हितों की आवाज उठाती रही है।हरियाणा सरकार के हरियाणा शिक्षा बोर्ड ने इस वर्ष उचित समय पर मान्यता संबंधित लेटर जारी नही किया व इस साल बोर्ड द्वारा मान्यता संबंधित निर्धारित करी गई 6 जुलाई की तारीख नजदीक आगई है ,जिसके कारण प्रदेश के 10 लाख छात्र-2 लाख (टीचर्स,चालक,परिचालक आदि स्टाफ के सदस्य)-3200 विद्यालयों के संचालक अपने भविष्य को अंधकार में देखते हुए परेशान है।गौरतलब है कि इन 3200 विद्यालयों में वह अस्थाई मान्यता प्राप्त स्कूल शामिल है,जो सरकार के रिकॉर्डनुसार 2003 से पूर्व से शिक्षा देने का काम कर रहे है,उसी आधार पर सरकार की तरफ से इन स्कूलों को अस्थाई मान्यता दी गई थी।वह स्कूल भी काफी संख्या में है जिन्हें सरकार ने 2007 के नियमो के तहत स्कूल चलाने की परमिशन दी हुई है और बोर्ड से अस्थाई मान्यता मिली हुई है।
एनएसयूआई हरियाणा के प्रदेश मीडिया प्रभारी दीपांशु बंसल ने मांग करी है कि प्रदेश के 10 लाख छात्रो के भविष्य को सुरक्षित करते हुए,2 लाख (टीचर्स-चालक-परिचालक आदि स्टाफ के सदस्यों)व 3200 स्कूलों के संचालकों के रोजगार आदि को ध्यान में रखते हुए इन स्कूलों को तुरन्त प्रभाव से अस्थाई मान्यता दी जाए व परमिशन वाले निजी स्कूलो को परमिशन संबंधित एक्सटेंशन लेटर निकालते हुए राहत दी जाए।

Whats on

In a step towards bringing transparency in University Governance, Prof. Arun K. Grover, Vice Chancellor, Panjab University, Chandigarh will launch the implementation of Charter related to 40 important items of Controller of Examinations as per schedule below:-

Date:               Friday 6 July 2018

Time:               3.00 pm

Venue:             Vice Chancellor Committee Room(VCCR)

बिना शौचालय व बिना पानी की व्यव्यस्था के मेंगो मेले में होगी असुविधा,सरकार करे कार्यवाही: विजय बंसल

हरियाणा किसान कांग्रेस के प्रदेशउपाध्यक्ष व पूर्व चेयरमैन विजय बंसल ने कहा कि पिंजोर गार्डन में मेंगो मेले का आयोजन किया जाना है परन्तु दुख की बात है कि न तो गार्डन में पानी की सुविधा है , न ही शौचालय की सुविधा है।ऐसे में सरकार द्वारा मेले में असुविधा होगी।विजय बंसल ने मांग करी है कि सरकार तुरन्त प्रभाव से पानी की सुविधा उपलब्ध करवाए,शौचालय बनवाए ताकि पर्यटकों को मुश्किल न हो।विजय बंसल ने मुख्यमंत्री हरियाणा सरकार व अतिरिक्त मुख्य सचिव पर्यटन विभाग हरियाणा सरकार को ज्ञापन भेज कर मांग करी थी कि ऐतिहासिक यादविन्द्रा गार्डन,पिंजोर में मरीज पैलेस, शौचालय का निर्माण व उपयुक्त पेयजल सुविधा मुहैया कराई जाए।बंसल ने बताया एक तरफ भाजपा सरकार स्वच्छ भारत अभियान व हर जगह शौचालय होने का दावा करती है वही ऐतिहासिक व विश्व स्तरीय पिंजोर गार्डन में शोचालय की सुविधा तक नही है व पेयजल सुविधा भी नही है जिससे पर्यटकों को आए दिन परेशानी का सामना करना पड़ता है।बंसल ने ज्ञापन में कहा कि ऐतिहासिक यादविन्द्रा गार्डन पिंजोर जिला पंचकूला हरियाणा अपनी सुंदरता व विशेषताओं से विश्व स्तर पर पर्यटन केंद्र में चिन्हित है जिसे देखने के लिए देश विदेश से लाखों पर्यटक आते है पंरतु गार्डन में शौचालय की सुविधा उपलब्ध नही है।कुछ माह पहले बाहर एक निर्मित शौचालय तोड़ दिया था ।साथ ही ओसिस रेस्ट्रॉन्ट का शौचालय बन्द रहता है। पर्यटकों को शौचालय की सुविधा न होने के कारण दिक्कत का सामना करना पड़ता है।साथ ही , गार्डन में पीने के पानी की उपयुक्त सुविधा भी उपलब्ध नही है।पीने का पानी न होने से पर्यटकों में रोष है।पानी व शौचालय की सुविधा न होने से , पर्यटकों को दिक्कत आती है।साथ ही कर्मचारियों की कमी व पानी की कमी के कारण पेड़ सुख गए है व हरियाली कम होगी है।सन 2016 में विजय बंसल के नेतृत्व में शिवालिक विकास मंच के एक प्रतिनिधिमंडल ने तत्कालीन महाप्रबंधक , श्री समीर पाल सराओ जी को गार्डन में मरीज पैलेस के निर्माण, शौचालय निर्माण व उपयुक्त पेयजल सुविधा के लिए ज्ञापन दिया था जिसके संदर्भ में महोदय ने आदेश करते हुए मैरिज पैलेस के लिए टेंडर निकाल दिया था व शौचालय के निर्माण के आदेश दिए थे जिसके सन्दर्भ में शौचालय को तोड़कर नया बनाना था परन्तु शौचालय तोड़ दिए गए परन्तु नए नही बनाए गए।10 अकटुबर 1999 को श्री आलोक प्रधान , आईएएस महानिदेशक भारत सरकार पर्यटन विभाग ने “न्यू विंग ऑफ Budgerigar मोटल” की आधारशिला रखी थी जिसके संदर्भ में अब तक कोई कार्यवाही नही हुई।बंसल ने ज्ञापन में प्रमुख तौर पर मांग करी कि:

  • पिंजोर गार्डन में शौचालयो के निर्माण किए जाए।
  • पेयजल की सुविधा के लिए उपयुक्त प्रबंध मुहैया करवाए जाए।
  • गार्डन में मरीज पैलेस का निर्माण करवाया जाए।
  • “न्यू विंग ऑफ Budgerigar मोटल” का निर्माण करवाया जाए
  • कर्मचारियो व पानी की कमी को पूरा कर , गार्डन में हरियाली को बढ़ाया जाए व पेड़ो को सूखने से बचाया जाए।