मुठभेड़स्थल से 3 आतंकियों के शव और 3 हथियार बरामद हुए, मुठभेड़ अभी भी जारी


सुरक्षाबलों ने 24 घंटे के अंदर तीनों आतंकवादियों को ढेर कर पुलिस कॉन्स्टेबल मोहम्मद सलीम शाह की हत्या का बदला ले लिया है


जम्मू-कश्मीर के कुलगाम जिले में सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ में 3 आतंकवादियों को ढेर कर दिया है. मारे गए तीनों आतंकियों के शनिवार को पुलिस कॉन्स्टेबल सलीम शाह के अपहरण और हत्या में शामिल होने की बात कही जा रही है.

मुठभेड़स्थल से 3 आतंकियों के शव और 3 हथियार बरामद हुए हैं. सूत्रों के अनुसार यह मुठभेड़ अभी भी जारी है.


Kulgam encounter: Three terrorists have been gunned down by security forces. Three weapons also recovered. (visuals deferred)


पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आतंकवादियों के यहां मौजूद होने की जानकारी मिलने के बाद सुरक्षाबलों में कुलगाम जिले के खुदवानी इलाके में घेराबंदी और तलाशी अभियान शुरू किया था. उन्होंने बताया कि इस दौरान छिपे आतंकियों के सुरक्षाबलों पर फायरिंग शुरू कर दी जिसपर जवानों ने भी जवाबी कार्रवाई की.

इससे पहले राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) एसपी वैद्य ने ट्वीट कर बताया कि जिस आतंकवादी गुट ने हमारे साथी मोहम्मद सलीम की कुलगाम में बर्बरता से हत्या कर दी थी, उन सभी आतंकियों को हमने घेर लिया है.


Shesh Paul Vaid

बता दें कि हिज्बुल आतंकियों ने शुक्रवार को कुलगाम जिले से कॉन्स्टेबल मोहम्मद सलीम शाह को उनके घर से अगवा कर लिया था, इसके अगले दिन यानी शनिवार शाम उनका शव बरामद किया गया था.

सलीम शाह छुट्टी पर यहां अपने घर आए हुए थे जब उनका अपहरण कर लिया गया.

कश्मीर घाटी में आतंकवादी बीते 2 महीने में अब तक 3 जवानों का अपहरण के बाद उनकी हत्या कर चुके हैं.

 

जुमलेबाजी बन कर रह गया अविश्वास प्रस्ताव


देश की सवा सौ करोड़ जनता की प्रतिनिधि लोकसभा में 27वें अविश्वास प्रस्ताव पर जो बहस हुई वह अधिकतर पुरानी बातों का दोहराव बन कर रह गई


अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में 20 जुलाई को पक्ष और विपक्ष के बीच हुई बहस में सरकारी कामकाज अथवा नेताओं की कार्यशैली पर तो जुमलेबाजी होनी प्रत्याशित थी मगर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एनडीए सरकार के विरुद्ध असरदार भाषण देने के बाद अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘जादू की झप्पी’ देकर सदन में नई परिपाटी डाल दी. यह बात दीगर है कि संसदीय विमर्श में नई लकीर डालने की राहुल की यह स्वत:स्फूर्त कोशिश राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की शिकार हो गई.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और बीजेपी के अन्य नेताओं ने जहां राहुल की आलोचना की वहीं कांग्रेसियों ने उनकी सराहना की. यह बात दीगर है कि राहुल ने अपने चीफ व्हिप ज्योतिरादित्य सिंधिया से बातचीत के दौरान जो ‘आंख मारने’ का इशारा किया उससे भी उनकी पहल हल्की पड़ गई. हालांकि ऐसा इशारा राहुल एकाध बार अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी कर चुके हैं. लेकिन संसदीय विमर्श के पुराने जानकारों की राय में लोकसभा में बहस का स्तर नीतिगत अथवा प्रखरता पूर्ण भाषणों के बजाए निरंतर व्यक्तिगत और दलगत आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित होता जा रहा है.

देश की सवा सौ करोड़ जनता की प्रतिनिधि लोकसभा में 27वें अविश्वास प्रस्ताव पर जो बहस हुई वह अधिकतर पुरानी बातों का दोहराव बन कर रह गई. साथ ही एनडीए सरकार ने 199 मतों के भारी अंतर से अविश्वास प्रस्ताव को खारिज भी कर दिया. इससे 15 साल पहले 2003 में वाजपेयी सरकार के खिलाफ पेश हुए अविश्वास प्रस्ताव में विपक्ष का स्कोर 186 रहा था जो शुक्रवार के 126 के उसके स्कोर से कहीं बेहतर था.

शुक्रवार की बहस में नई बात बस कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा अपने भाषण में राफेल लड़ाकू विमानों के खरीद समझौते पर फ्रांस के राष्ट्रपति से अपनी बातचीत के हवाले से रक्षा मंत्री पर ‘असत्य’ बोलने का आरोप ही रहा. हालांकि रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने राहुल के आरोप का भारत और फ्रांस की सरकार के बीच राफेल खरीद पर 2008 में हुए गुप्तता संबंधी समझौते की प्रति दिखाकर तत्काल प्रतिवाद भी कर दिया.

दिन भर चली बहस के दौरान राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी के अलावा तेलगु देशम पार्टी के जयदेव गाला, तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय, नेशनल कांफ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला, सीपीएम के मोहम्मद सलीम, एमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी आदि नेताओं ने भी अपने तर्कों से मोदी सरकार की खामियां गिनाने और सदन को और उसके बाहर अपने वोट बैंक को प्रभावित करने की भरपूर कोशिश की.

इस अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस ने हालांकि मोदी से पहले तक देश की सबसे विवादित प्रधानमंत्री रही इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्ष के ऐसे ही प्रस्तावों पर हुए भाषणों को याद करा दिया. राहुल सहित विपक्षी नेताओं ने जैसे प्रधानमंत्री मोदी पर देश में नफरत फैलाने, मनमानी करने और अपने वादे पूरे करने में कोताही का आरोप लगाया वैसे ही आरोप इंदिरा गांधी पर भी तत्कालीन विपक्षी नेता लगाते थे. उन पर सबसे बड़ा आरोप तो ‘गरीबी हटाओ’ के नारे पर अमल में कोताही का लगता था. उसके अलावा तानाशाही, संजय गांधी के सरकार में अनधिकृत दखल और उनकी मारुति कार परियोजना सहित अनेक अन्य कथित घोटालों के आरोप भी इंदिरा गांधी को झेलने पड़ते थे.

इंदिरा के खिलाफ मोर्चा संभालने वालों में राम मनोहर लोहिया, एन जी गोरे, अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नांडीज, ज्योतिर्मय बसु, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, मधु लिमये, मधु दंडवते, पीलू मोदी, अशोक मेहता, चंद्रशेखर, रामधन आदि नेता प्रमुख रहे. लोहिया ने ही इंदिरा गांधी को सदन में ‘गूंगी गुड़िया’ कह कर उनकी कमियां गिनाई थीं. इसकी वजह यह थी कि 1966 में इंदिरा गांधी को जब कांग्रेसी दिग्गजों के सिंडीकेट ने प्रधानमंत्री चुना तो सदन में बोलने के समय घबराहट के मारे उनके हाथ कांपते थे और जुबान तालू से चिपक जाती थी. अपने सामने लोहिया, वाजपेयी, ज्योतिर्मय बसु, एन जी गोरे, अशोक मेहता आदि जैसे कद्दावर विपक्षी नेताओं को देख कर संसदीय अनुभव के लिहाज से नौसिखिया इंदिरा के लिए ऐसा होना शायद स्वाभाविक भी था. फिर भी बार—बार कुल 15 अविश्वास प्रस्ताव झेलने वाली इंदिरा गांधी की सरकार एक बार नहीं गिरी.

गौरवशाली संसदीय इतिहास

गनीमत यह रही कि इंदिरा गांधी के समय तक पक्ष और विपक्ष में ऐसे नेता मौजूद थे जो विरोधियों की निजी कमियों के बजाए अधिकतर नीतिगत मुद्दों पर सदन में अपनी बात रखते थे जिनमें वैचारिक और विद्वत्तापूर्ण तत्व भी होते थे. भारत की संसद का इतिहास यूं भी बेहद गौरवशाली रहा है. हमारी संसद में डॉ बी आर अंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, महावीर त्यागी, डॉ सुशीला नैयर, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, आर आर दिवाकर, आचार्य जे बी कृपलानी, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, सी डी देशमुख, अशोक सेन, भूपेश गुप्त, ज्योतिर्मय बसु, हीरेन मुखर्जी, अशोक मेहता, बलराज मधोक, पीलू मोदी, राजनारायण, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, हरेकृष्ण महताब, बीजू पटनायक, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ मुरली मनोहर जोशी जैसे प्रखर प्रवक्ता रहे हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था. बाद में वाजपेयी जब खुद प्रधानमंत्री बने तो उन्हें भी एक बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा. इससे पहले दो बार विश्वास प्रस्ताव में वो सरकार नहीं बचा पाए लेकिन 2003 में विपक्ष को उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव में निर्णायक मात दे दी थी. इस अविश्वास प्रस्ताव के जवाब में उन्होंने विपक्षी कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी के भाषण में अपनी सरकार की नाकामी गिनाने वाले जुमलों पर कड़ा एतराज जताया था. उन्होंने कहा, ‘जब मैंने श्रीमती सोनिया जी का भाषण पढ़ा, तो दंग रह गया. उन्होंने एक ही पैरा में सारे शब्द इकट्ठे कर दिए और बीजेपी की अगुआई वाली सरकार को नाकाबिल, संवेदनहीन, गैर-जिम्मेदार और बड़ी ढिठाई से भ्रष्ट ठहरा दिया.’ उन्होंने पूछा था, ‘राजनीति में जो कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं, उनके बारे में आपका ये मूल्यांकन है. मतभेदों को प्रकट करने का ये कैसा तरीका है.’

UNDATED FILE PHOTO: India’s Prime minister Atal Bihari Vajpayee and President of Congress(I) Sonia Gandhi speak with each other during a function in New Delhi on April 29,1998. (photo by T.C.Malhotra)

उन्होंने सोनिया गांधी के सरकार पर जनादेश को धोखा देने के आरोप पर भी एतराज किया था. उन्होंने पूछा था कि आपको जज किसने बनाया? उन्होंने कहा था कि सभ्य तरीके से लड़िए, इस देश की मर्यादाओं का ध्यान रखिए. गाली से देश की समस्या का समाधान नहीं होगा.

इस मायने में अलग रहा अविश्वास प्रस्ताव पर बहस

बहरहाल शुक्रवार को अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान सरकार की ओर से सबसे दमदार भाषण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रहा जिन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष और अन्य विपक्षी नेताओं द्वारा अपनी आलोचना में कहे गए एक-एक मुद्दे का जी भर कर प्रतिवाद किया. डेढ़ घंटे लंबा उनका भाषण इस मायने में अलग रहा कि उसकी अधिकतर इबारत उन्होंने पढ़ कर बोली. साथ ही राहुल गांधी द्वारा अपने गले लगने को भी उन्होंने नहीं बख्शा. उन्होंने पूछा कि कांग्रेस के नेता को यह कुर्सी हथियाने की इतनी भी क्या जल्दी है? उनके अनुसार देश के 125 करोड़ लोग ही यह तय करेंगे कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर कौन बैठेगा?

गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने राहुल की ‘झप्पी’ को ‘संसद में चिपको आंदोलन की शुरुआत’ बताया. लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा, ‘सदन की अपनी गरिमा है और वे प्रधानमंत्री है. हमें सदन की गरिमा का पालन करना चाहिए. मुझे लगा कि कोई नाटक हो रहा है.’ हालांकि कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने राहुल गांधी के भाषण और उनकी ‘झप्पी’ को नई शुरुआत बताया.

तेलगु देशम पार्टी के सांसद जयदेव गाला ने मोदी सरकार पर आंध्र प्रदेश से अन्याय का आरोप लगाया. उनका कहना था कि हैदराबाद का विकास संयुकत आंध्र प्रदेश की जनता के पैसे से हुआ था और उसके तेलंगाना में जाने की भरपाई केंद्र को करनी थी मगर मोदी सरकार मुकर गई. उन्होंने कहा कि खनिज आदि संसाधनों के आंध्र के हाथ से निकल जाने का भी राज्य की भारी नुकसान हुआ है. उन्होंने अपने भाषण में भावुक होते हुए मोदी सरकार को आंध्र की जनता का श्राप लगने का जुमला भी बोल डाला जिससे प्रधानमंत्री बेहद आहत दिखे.

प्रधानमंत्री मोदी ने हालांकि गाला के आरोपों का आंकड़ों और पुरानी घटनाओं के जिक्र के साथ जवाब देने की पूरी कोशिश की. अब देखना यही है कि राजीव गांधी द्वारा आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री टी अंजैया के अपमान को तेलगु कौम की तौहीन के रूप में भुनाकर एनटी रामाराव जैसे नौसिखिया सत्ता हासिल करने में जिस प्रकार कामयाब रहे थे वैसे ही उनके दामाद ओर चतुर नेता चंद्रबाबू नायडू क्या विपक्षी गठजोड़ के चाणक्य बन कर मोदी को शिकस्त देने में कामयाब रहेंगे?jumlebaazi

वसुंधरा ही रहेंगी भाजपा की मुख्यमंत्री की उम्मीदवार


शाह ने कहा कि राजस्थान में एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस की परंपरा इस बार टूटने जा रही है. उन्होंने कहा कि वसुंधरा राजे की सरकार ने राजस्थान में बहुत काम किया है


बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह शनिवार को प्रदेश बीजेपी कार्यसमिति की दो दिन की बैठक के समापन सत्र को संबोधित करने के लिए जयपुर पहुंचे. उन्होंने बैठक में ऐलान किया कि भावी विधानसभा चुनाव में मौजूदा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ही मुख्यमंत्री की उम्मीदवार होंगी.

शाह ने इस बैठक में आगामी विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों की समीक्षा की. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष मदनलाल सैनी और अन्य लोगों ने सांगानेर हवाई अड्डे पर शाह की अगवानी की.

शाह के स्वागत के लिए हवाई अड्डे के बाहर बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता मौजूद थे. तोतूका भवन में शाह प्रदेश कार्यसमिति के दो दिवसीय समापन समारोह को संबोधित किया.

शाह ने कहा कि राजस्थान में एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस की परंपरा इस बार टूटने जा रही है. उन्होंने कहा कि वसुंधरा राजे की सरकार ने राजस्थान में बहुत काम किया है. भामाशाह योजना, मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान और गौरव पथ जैसी कई योजनाओं को देशभर में यश मिला है.

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस नकारात्मक राजनीति कर अफवाहें फैलाने का काम कर रही है. यह लोकतंत्र पर अघोषित हमला है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी देश से अपना जुड़ाव महसूस नहीं कर सकते. कांग्रेस बीजेपी का मुकाबला नहीं कर सकती. कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा खत्म हो गया है. अब तो कांग्रेस में भ्रष्टाचारियों को जमघट बचा है.’

उन्होंने कहा, ‘पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु, कनार्टक जब तक नहीं जीत लेते तब तक हमारी जीत पूरी नहीं है. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कहा कि हम विधानसभा चुनावों में पिछली बार से भी अधिक सीटें जीतेंगे. पिछली जीत से भी इस बार की जीत बड़ी होगी. हम लोकसभा चुनाव में सभी 25 सीटें जीतकर एक बार फिर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाएंगे. प्रदेश की जनता कांग्रेस की चालों को समझ गई है. हमारे पास चुनाव जीतने की हर वजह मौजूद है.

एक अन्य बैठक में शाह ने जयपुर के राज मंदिर सिनेमा घर में सोशल मीडिया सेल के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि प्रदेश में सोशल मीडिया की हमारी टीम ही बीजेपी को जीत दिलाएगी.

पीडीपी अपना घर संभालने में सक्षम नहीं हैं: भाजपा

जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने आरोप लगाया था कि पीडीपी विधायकों को एनआईए के छापों की धमकी देकर पार्टी छोड़ने के लिए उकसाया जा रहा है. शनिवार को बीजेपी ने एक बयान जारी कर मुफ्ती के इन तमाम बयानों को झूठा और बेबुनियाद बताया है.

बीजेपी के प्रवक्ता का कहना है, ‘महबूबा मुफ्ती का बयान यह दिखाता है कि वह हताशा की शिकार हैं. और अब अपनी विफलता से बचने के लिए झूठ के सहारे लोगों से सहानुभूति हासिल करने की कोशिश में हैं.’

दरअसल पीडीपी अध्यक्ष ने एक टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा था कि उनके विधायकों को एनआईए के छापों की धमकी देकर पार्टी छोड़ने को कहा जा रहा है. सीधे बीजेपी का हवाला देने से बचते हुए पूर्व मुख्यमंत्री ने खरीद फरोख्त का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि पीडीपी के कई विधायकों ने उन्हें निजी तौर पर कहा है कि उन पर पार्टी छोड़ने को लेकर भारी दबाव डाला जा रहा है.

इन बयानों पर पलटवार करते हुए बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि पीडीपी के विधायकों को एनआईए से धमकी मिलने की बात झूठी है. इसी के साथ उन्होंने पीडीपी पर निशाना साधते हुए कहा कि वह अपना घर संभालने में सक्षम नहीं हैं.

चंद्रशेखर राव, नायडू की तरह झगड़ने के बजाय अपने राज्य के विकास को तरजीह देते हैं : मोदी


तेलंगाना के सीएम की तारीफ करके मोदी ने ये सुनिश्चित कर लिया है कि 2019 में उनके पास एक संभावित सहयोगी के तौर पर टीआरएस होगी


शुक्रवार देर रात, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में अपना जवाब पूरा किया, तो, विजयवाड़ा से सांसद केसीनेनी नानी बोलने के लिए खड़े हुए. नानी ने शुरुआत में पीएम मोदी की भाषण कला की तारीफ की और कहा कि जब प्रधानमंत्री भाषण दे रहे थे, तो, उन्हें लगा कि वो एक ब्लॉकबस्टर बॉलीवुड फ़िल्म देख रहे हैं. लेकिन, कुछ सेकेंड के बाद ही नानी के बयान में तुर्शी नजर आ गई, जब उन्होंने कहा कि दुनिया में मोदी से बड़ा कोई अभिनेता नहीं. सत्ता पक्ष के सांसदों ने नानी के इस बयान पर कड़ा ऐतराज जताया.

लेकिन, फिल्मी दुनिया से प्रभावित विजयवाड़ा के सांसद नानी के आरोप में कुछ तो दम जरूर है. पीएम मोदी सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के हीरो हैं. उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव पर हुई चर्चा के जवाब में टीडीपी अध्यक्ष को आंध्र के विकास का विलेन ठहराने की कोशिश की थी. पीएम ने टीडीपी नेता को झगड़ालू बताया और कहा कि वो अक्सर तेलंगाना की सत्ताधारी पार्टी टीआरएस से झगड़ते रहते थे. जिसकी वजह से कई बार राज्यपाल, गृह मंत्री और खुद पीएम को ये झगड़ा शांत कराना पड़ता था.

टीडीपी की आलोचना टीआरएस की तारीफ के साथ

चंद्रबाबू नायडू के जख्मों पर और नमक डालते हुए पीएम मोदी ने टीआरस प्रमुख और तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव की तारीफ की और कहा कि चंद्रशेखर राव, नायडू की तरह झगड़ने के बजाय अपने राज्य के विकास को तरजीह देते हैं. नायडू को इस बात से और भी गुस्सा आया होगा.

लेकिन, मोदी यहीं पर नहीं रुके. नायडू के साथ अकेले में हुई अपनी बातों को सार्वजनिक करते हुए पीएम ने कहा कि जब मार्च में टीडीपी ने एनडीए से बाहर जाने का फैसला किया, तो उन्होंने नायडू को आगाह किया था कि आप वायएसआर कांग्रेस के जाल में फंस रहे हैं. मोदी ने अपने भाषण के जरिए चंद्रबाबू नायडू को एक छोटे से क्षेत्रीय दल का नेता ठहरा दिया, जो अपने घरेलू मसले निपटाने के लिए झगड़ता है. मगर दावे ऐसे करता है कि वो बहुत बड़ा नेता हो और देश की बड़ी सियासी तस्वीर समझता है.

लोकसभा में पीएम मोदी ने चंद्रबाबू नायडू पर जो तीखे हमले किए उसमें एक बात सबसे अहम है, वो ये कि नायडू के साथ बीजेपी की दोस्ती गए जमाने की बात हो गई है. हालांकि गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि नायडू अभी भी उनके दोस्त हैं, लेकिन, पीएम के भाषण से साफ है कि नायडू के एनडीए छोड़ने को मोदी निजी दुश्मनी के तौर पर देख रहे हैं. निजी स्तर पर नायडू के राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी और प्रकाश जावडेकर से रिश्ते अब भी बहुत अच्छे हैं. लेकिन अमित शाह और पीएम मोदी के साथ उनकी केमिस्ट्री गड़बड़ा गई है. और आज की तारीख में मोदी और शाह ही बीजेपी में सबसे अहम हैं.

आंध्र को विशेष दर्जा दिलाने पर नायडू का यू-टर्न

पीएम मोदी के भाषण पर पहली प्रतिक्रिया में नायडू ने उन्हें अहंकारी कहा. लेकिन तल्ख हकीकत ये है कि आंध्र प्रदेश और टीडीपी, राज्य को विशेष दर्जा दिलाने की ये सियासी लड़ाई हार गए हैं. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि आंध्र को विशेष दर्जा दिलाने पर उन्होंने यू-टर्न लिया है क्योंकि ये नायडू ही थे जिन्होंने 2016-17 में राज्य के लिए विशेष वित्तीय पैकेज को स्वीकार किया था. केवल यही नहीं, मार्च 2017 में नायडू ने आंध्र प्रदेश विधानसभा में एक प्रस्ताव भी पेश किया था जिसमें इस पैकेज के लिए आंध्र प्रदेश की जनता की तरफ से केंद्र को दिल से शुक्रिया कहा गया. इस प्रस्ताव में साफ लिखा था कि भले ही नाम अलग हो, लेकिन ये पैकेज असल में राज्य के लिए विशेष दर्जे जैसा ही है. उस वक्त नायडू के प्रचारकों ने इसे जोर-शोर से आंध्र प्रदेश की जनता और नायडू की जीत के तौर पर पेश किया था. बल्कि, लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की शुरुआत करने वाले टीडीपी सांसद जयदेव गल्ला ने मार्च 2017 में कहा था कि, ‘स्पेशल पैकेज विशेष राज्य के दर्जे से बेहतर है’. गुंटूर से सांसद गल्ला अब कह रहे हैं कि, ‘मेरे लिए विशेष दर्जा ही सब कुछ है’. ये आला दर्जे का सियासी दोगलापन है.

 

पीएम ने आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा न देने के लिए वित्तीय आयोग की सिफारिशों का बहाना बनाया. मोदी ने कहा कि उत्तर-पूर्व के राज्यों और पहाड़ी इलाकों के सिवा किसी और राज्य को विशेष दर्जा नहीं दिया जा सकता. चंद्रबाबू नायडू इसे सरासर झूठा दावा कहते हैं. सच तो ये है कि अगर आंध्र प्रदेश को स्पेशल स्टेटस दिया जाता, तो केंद्र सरकार को तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे आंध्र प्रदेश के पड़ोसी राज्यों का विरोध झेलना पड़ता. क्योंकि तब इन राज्यों को लगता कि निवेशकों को रिझाने में आंध्र प्रदेश उनसे आगे निकल जाता.

2019 के लिए बड़ी दूर का पासा है टीआरएस का नाम लेना

बीजेपी की रणनीति साफ है. वो चंद्रबाबू नायडू पर दबाव बनाए रखना चाहती है. इस मामले में वाईएसआर कांग्रेस और पवन कल्याण उसके मददगार हैं. खास तौर से अभिनेता से नेता बने पवन कल्याण के तीखे हमलों से नायडू को शक है कि वो बीजेपी के एजेंट के तौर पर काम कर रहे हैं.

आंध्र प्रदेश के सियासी मैदान में जो तस्वीर बन रही है, उसमें नायडू के मुकाबले बीजेपी, वाईएसआर कांग्रेस और पवन कल्याण की जनसेना का मोर्चा बनता दिख रहा है. इस मुकाबले में नायडू तभी जीत सकते हैं, जब उनके खिलाफ इस तिकड़ी के वोट बंटें. अगर ये तीनों आपसी तालमेल से नायडू का मुकाबला करने की ठानते हैं, तो टीडीपी के लिए चुनौती बहुत बड़ी होगी. दूसरी तरफ टी़डीपी, कांग्रेस के साथ नहीं जा सकती, क्योंकि आंध्र की जनता उसे राज्य के बंटवारे का विलेन मानती है. हालांकि कांग्रेस ने वादा किया है कि वो सत्ता में आई तो आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देगी.

हालांकि मोदी का नायडू के दावों को झूठा साबित करना सिक्के का एक ही पहलू है. पीएम ने जिस तरह से इशारों में चंद्रशेखर राव की तारीफ की, उससे 2019 में हम नई तस्वीर देख सकते हैं. तेलंगाना के सीएम की तारीफ करके मोदी ने ये सुनिश्चित कर लिया है कि अगर 2019 में वो बहुमत के जादुई आंकड़े 272 से दूर रहते हैं, तो उनके पास एक संभावित सहयोगी के तौर पर टीआरएस होगी. आखिर चंद्रशेखर राव को लुभाने के लिए इससे अच्छा दांव क्या हो सकता है कि उन्हें अपने दुश्मन चंद्रबाबू नायडू से बेहतर नेता बताया जाए.

कर्णाटक में गौ रक्षा दल बनयेगी विश्व हिन्दू परिषद


यह दल रात के वक्त मवेशियों को ले जा रहे सभी संदिग्ध वाहनों को रोकेंगे और दोषियों के पकड़े जाने पर उन्हें पुलिस को सौंपेंगे


विश्व हिंदू परिषद ने कर्नाटक के तटीय दक्षिण कन्नड़ जिले के हर गांव में गौरक्षा दल बनाने का फैसला किया है. ताकि मवेशियों की चोरी और अवैध तरीके से उन्हें लाने ले जाने पर लगाम लगे.

परिषद के मंगलूर संभाग के अध्यक्ष जगदीश शेनावा ने कहा कि मवेशियों की बढ़ती चोरी की घटनाएं और दोषियों की गिरफ्तारी में पुलिस की कथित नाकामी के कारण उन्हें ऐसे दल  बनाने पड़े. उन्होंने कहा कि हर दल में 10 सदस्य होंगे. यह दल रात के वक्त मवेशियों को अवैध तरीके से लाने-ले जाने पर नजर रखेंगे. मवेशियों को ले जा रहे सभी संदिग्ध वाहनों को रोकेंगे और दोषियों के पकड़े जाने पर उन्हें पुलिस को सौंपेंगे.

शेनावा ने कहा कि विश्व हिंदू परिषद को ऐसा कदम इसलिए उठाना पड़ा क्योंकि पुलिस जिले में मवेशियों को अवैध तरीके से लाने-ले जाने पर लगाम लगाने में पूरी तरह नाकाम रही है. उन्होंने कहा कि हिंदू कार्यकर्ताओं को नैतिकता के पहरेदार के तौर पर पेश करने की बजाय पुलिस को मवेशियों का अवैध परिवहन करने वालों के खिलाफ गुंडा कानून के तहत केस दर्ज करना चाहिए.

विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल 26 जुलाई को जिले के वामनजूर में गौहत्या और मवेशियों के अवैध व्यापार को रोकने में अधिकारियों की कथित नाकामी के विरोध में संयुक्त रूप से एक रैली करेंगे.

जो प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं वे कभी अज्ञानता, झूठ और कलाबाजी को मिश्रित नहीं करते हैं:जेटली


जेटली ने लिखा, ‘राहुल ने बार-बार ये दर्शाया है कि वे तथ्यों से अनजान हैं. लागत बताने का मतलब होता है कि विमान में मौजूद हथियारों की भी जानकारी देना.’


लोकसभा में शुक्रवार को मोदी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को लेकर केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने कांग्रेस और राहुल गांधी पर निशाना साधा है. शुक्रवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने केंद्र पर संविधान बदलने से लेकर जीएसटी पर आरोप लगाए थे. अरुण जेटली ने फेसबुक पर ब्लॉग लिखकर इन सभी आरोपों पर जवाब दिया है.

जेटली ने लिखा, ‘अगर कोई प्रतिभागी (राहुल गांधी) जो एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल का अध्यक्ष भी है (जो प्रधानमंत्री बनने की आकांक्षा रखता है), तो उसका बोला हुआ हर एक शब्द मूल्यवान होना चाहिए. उनके तथ्यों में विश्वसनीयता और सत्यता होनी चाहिए. बहस महत्वहीन नहीं होनी चाहिए.’ राहुल का घेराव करते हुए जेटली ने आगे कहा कि जो प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं वे कभी अज्ञानता, झूठ और कलाबाजी को मिश्रित नहीं करते हैं.

जितना ज्यादा ‘दल-दल’ होगा, उतना खिलेगा कमल- शाहजहांपुर में PM मोदी ने विपक्ष पर किए ये प्रहार

अरुण जेटली ने लिखा, ‘अफसोस की बात है कि कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष ने एक महान अवसर खो दिया है. अगर 2019 के लिए यह उनकी अबतक की सबसे अच्छी बहस थी, तो भगवान उनकी पार्टी (कांग्रेस) की मदद करे.’ जेटली ने कहा कि उनकी समझ की कमी न केवल बुनियादी मुद्दों तक ही सीमित है, बल्कि प्रोटोकॉल की जानकारी भी सीमित है.


Rahul Gandhi, by concocting a conversation with President Macron, has lowered his own credibility&seriously hurt the image of an Indian politician before the world at large. Not to be aware of the fact that UPA Government Minister had signed the secrecy pact is not understandable


जेटली ने आगे लिखा, ‘उन्होंने कहा कि किसी को भी कभी भी सरकार के मुखिया या राज्य के मुखिया के साथ हुई बातचीत को गलत नहीं ठहराना चाहिए. अगर कोई ऐसा कहता है, तो गंभीर लोग आपसे बात करने या आपकी उपस्थिति में बोलने के लिए अनिच्छुक होंगे.’

PM मोदी का राहुल पर तंज, कहा- ‘अविश्वास प्रस्ताव का कारण नहीं बता पाए तो गले पड़ गए’

केंद्रीय मंत्री ने ब्लॉग में लिखा, ‘सदन में राफेल का मुद्दा उठाने के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रो से मुलाकात का भी जिक्र किया. इसको राहुल गांधी ने राष्ट्रपति मैक्रों के साथ बातचीत करके अपनी विश्वसनीयता कम की है. दुनिया भर में एक भारतीय राजनेता की छवि को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया है.’


Hallucinations can give momentary pleasure to a person. Therefore, to hallucinate after an embarrassing performance that he has won future election or to hallucinate that he is the reincarnation of Mark Antony may give him self-satisfaction but– in fact it is a serious problem.


जेटली ने लिखा, ‘ये नहीं भूलना चाहिए कि यूपीए सरकार के मंत्री ने गोपनीयता समझौते पर साइन किए. राहुल गांधी अब डॉक्टर मनमोहन सिंह को शर्मिंदा करना चाहते हैं, जो इस बातचीत के गवाह हैं.’

जेटली ने लिखा, ‘राहुल ने बार-बार ये दर्शाया है कि वे तथ्यों से अनजान हैं. लागत बताने का मतलब होता है कि विमान में मौजूद हथियारों की भी जानकारी देना.’

उन्होंने जीएसटी का जिक्र करते हुए कहा कि क्या वह इस तथ्य से अनजान हैं कि यूपीए ने जीएसटी संशोधन का प्रस्ताव दिया था? जीएसटी के दायरे में पेट्रोलियम उत्पादों को शामिल नहीं किया गया? यह केवल एनडीए सरकार है जो जीएसटी परिषद द्वारा सहमत होने के बाद जीएसटी लेकर आई.

पंचकूला-यमुनानगर फोरलेन पर स्थानीय निवासी हो टोल फ्री :विजय बंसल


केंद्रीय परिवहन मंत्री को भेजा ज्ञापन,नगर निगम सीमा में नही लग सकता टोल-प्लाजा


हरियाणा किसान कांग्रेस के प्रदेशउपाध्यक्ष व पूर्व चेयरमैन हरियाणा सरकार विजय बंसल ने श्री नितिन गडकरी,केंद्रीय परिवहन मंत्री ,भारत सरकार को ज्ञापन भेज कर मांग करी है कि पंचकूला-यमुनानगर टोल प्लाजा पर स्थानीय निवासियो को टोल फ्री किया जाए अन्यथा प्रस्तवित टोल प्लाजा को नगर निगम पंचकूला की सीमा से बाहर लगाया जाए।विजय बंसल ने इससे पूर्व भी पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करके चंडीमंदिर टोल प्लाजा पर स्थानीय निवासियों को निजात दिलवाकर जनहित के कार्यो में मिसाल कायम करी थी।बंसल ने ज्ञापन में कहा है कि नैशनल हाइवे अथार्टी ऑफ इंडिया,बीओटी के आधार पर हरियाणा के पंचकूला से यमुनानगर तक फोरलेन का निर्माण कर रहा है।एनएचएआई एक टोल प्लाजा नग्गल गांव के पास लगा रहा है जोकि नगर निगम पंचकूला की सीमा के अंतर्गत आता है।एनएचएआई के नियमानुसार नगर निगम सीमा के अंतर्गत टोल प्लाजा नही लग सकता।प्रस्तवित टोल प्लाजा जगह के आसपास की निवासी, जिला पंचकुला के निवासी है और सभी दफ्तर,अस्पताल,विद्यालय,महाविद्यालय,शिक्षण संस्थान आदि कार्यो के लिए हररोज पंचकूला आना पड़ता है।यहाँ तक कि नगर निगम कार्यालय, लघु सचिवालय,न्यायलय,किसान मंडी,अनाज मंडी आदि भी पंचकूला में है।ऐसे में यदि टोल प्लाजा लग जाएगा तो स्थानीय निवासियों की जेब पर आर्थिक भोज बढेगा।साथ ही यह शिवालिक क्षेत्र के अधीन है जोकि अर्ध पहाड़ी व पिछड़ा क्षेत्र है।बंसल ने मांग करी है कि हरियाणा के पंचकूला से यमुनानगर निर्माणाधीन फ़ॉरलेन पर जिला पंचकूला निवासियों को टोल फ्री कर जनहित में आदेश पारित किए जाए।विजय बंसल ने बताया कि भाजपा ने 2014 के चुनावों में घोषणा करी थी कि सभी प्राइवेट वाहनों को टोल फ्री किया जाएगा जिससे तेल,समय की बचत होगी जबकि 4 वर्ष पूरे होने के बाद भी कोई कार्यवाही नही हुई।भाजपा की जनविरोधीनीतियों आज जनता के समक्ष है,रक्षक भक्षक बन गए है।विजय बंसल ने स्थानीय भाजपाई नेतृत्व पर आरोप लगाते हुए कहा कि कमजोर नेतृत्व होने की वजह से आमजनमानस परेशान है।केंद्र व राज्य में भाजपा की सरकार है उसके बावजूद भी जनता परेशान है।

बिहार कांग्रेस्स ने रखी राहुल के भूचाल की लाज

 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 



राहुल गांधी ने देश से वादा किया था कि अगर वो संसद में बोलेंगे तो भूकंप आ जाएगा, वह संसद में बहुत बोले, भूकंप नहीं आया लेकिन बिहार के कांग्रेसियों ने उनके दावे की लाज रख ली


कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश से वादा किया था कि अगर वो संसद में बोलेंगे तो भूकंप आ जाएगा. वह संसद में बहुत बोले. भूकंप नहीं आया. लेकिन, बिहार के कांग्रेसियों ने उनके दावे की लाज रख ली. राहुल शुक्रवार को संसद में बोल रहे थे. इधर भागलपुर में कांग्रेसियों की बैठक में भूकंप का नजारा चल रहा था. नेता-कार्यकर्ता एक दूसरे को धकिया कर बैठक वाले कांग्रेस भवन से बाहर कर रहे थे. बिल्कुल भूकंप जैसा माहौल था. बुजुर्ग कांग्रेसी सदानंद सिंह, जो इस समय विधायक दल के नेता हैं, विधानसभा के साथ-साथ कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं, इस आपाधापी में गश खाकर गिर गए. सबको एक रहने की हिदायत देने आए कांग्रेस के प्रभारी सचिव वीरेंद्र सिंह राठौर बमुश्किल जान बचा कर भागे.

यह उसी समय में हो रहा था, जब संसद में केंद्र सरकार के खिलाफ पेश अविश्वास प्रस्ताव पर बहस चल रही थी. कांग्रेस के नगर विधायक अजीत शर्मा और पार्टी के नेता प्रवीण कुशवाहा के समर्थक अपना जौहर दिखा रहे थे. तभी यह दृश्य उपस्थित हुआ. इस अप्राकृतिक ‘भूकंप’ की चपेट में आए सदानंद सिंह ने दोषी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. दरअसल, राज्य में कांग्रेस लंबे समय से नेतृत्वविहीन है. इधर आलाकमान ने एक महासचिव और दो सचिवों को राज्य में पार्टी की मजबूती का जिम्मा दिया है. कांग्रेसी इसी तरीके से अपनी ताकत का अहसास कराते रहते हैं.

90 के बाद खानाबदोश की जिंदगी

बिहार में कांग्रेस 1990 में सत्ता से बेदखल हुई. तभी से वह खानाबदोश वाली जिंदगी बसर कर रही है. लंबे समय तक वह आरजेडी के आसरे रही. बीच में कुछ दिनों के लिए उसे जेडीयू का भी सहारा मिला. आजकल फिर आरजेडी के साथ है. इस अवधि में कभी भी आलाकमान की ओर से इस बात की गंभीर कोशिश नहीं की गई कि कांग्रेस को अपने पैरों पर खड़ा किया जाए.

इस दौर में जितने अध्यक्ष बने, सबको गुटबाजी का शिकार होना पड़ा. लंबे समय तक सत्ता में रहने के कारण कांग्रेसियों की सड़क पर उतर कर संघर्ष करने की क्षमता खत्म होती गई. पार्टी में पूर्व सांसद और पूर्व विधायक इफरात में हैं. इन्हें रेलवे में मुफ्त सफर की सुविधा है. दिल्ली में रहने के लिए बिहार भवन के कमरे आसानी से मिल जाते हैं. इन सुविधाओं का इस्तेमाल कांग्रेसियों ने आलाकमान के सामने एक दूसरे की कब्र खोदने के लिए किया. आप कांग्रेस के बड़े नेताओं के रोजनामा पर गौर करें तो पाएंगे कि क्षेत्र से अधिक इनके दौरे दिल्ली के होते हैं.

करीब 20 वर्षों से आलाकमान से मुलाकात की खबरों का एक फॉर्मेट बना हुआ है-‘आलाकमान से मुलाकात हुई. राज्य की राजनीतिक स्थिति पर गंभीर चर्चा हुई.’ चर्चा कितनी गंभीर हुई, इसका पता आजतक किसी को नहीं चला. क्योंकि 2015 के विधानसभा चुनाव परिणाम को छोड़ दें तो राज्य में कांग्रेस की कामयाबी हमेशा गिरते क्रम में रही है. 1990 के विधानसभा चुनाव में 71, 1995 में 29, 2000 में 23, 2005 के फरवरी में 10, अक्टूबर में 09 और 2010 में सिर्फ चार विधायक जीत पाए. इस चुनाव की खासियत यह थी कांग्रेस अपने दम पर लड़ी थी. सभी 243 सीटों पर उसके उम्मीदवार खड़े थे. आठ फीसदी से अधिक वोट मिले थे.

अंदरूनी संकट का कारण पिछला चुनाव परिणाम भी है

असल में राज्य कांग्रेस में मौजूद अंदरूनी संकट का कारण विधानसभा का पिछला परिणाम भी है. 41 सीटों पर लड़ाई. उसमें 27 पर जीत. लगता है कि कांग्रेसियों ने इस जीत में अपने योगदान को माइनस कर दिया है. सबके सब इस बहस में उलझे हुए हैं कि इतनी शानदार जीत किसके चलते हुई. वह चुनाव महागठबंधन के बैनर तले हुए था. आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद और सीएम नीतीश कुमार जोर लगाए हुए थे. आने वाले नवंबर में उस चुनाव को हुए तीन साल पूरे हो जाएंगे, कांग्रेसी अभी तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि उस जीत का असली श्रेय किसे दिया जाए.

कुछ विधायक इसका श्रेय नीतीश कुमार को देते हैं. एहसान चुकाने की गरज से ही प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष डा अशोक चौधरी विधान परिषद के दो अन्य सदस्यों के साथ जेडीयू में चले गए. इधर जो विधायक हैं, उनके मन में संघर्ष चल रहा है- कांग्रेस में रहें, इधर(आरजेडी) रहें कि उधर (जेडीयू) चले जाएं. उनकी बेचैनी समझने लायक है. कई बार विधायक और एक बार सांसद रहे बुजुर्ग कांग्रेसी रामदेव राय भी नीतीश कुमार की तारीफ करते नहीं थकते. उन्होंने कहा, मैं खांटी कांग्रेसी की हैसियत से नीतीश के कामकाज की तारीफ करता हूं. सच्चा कांग्रेसी कभी झूठ नहीं बोलता. राय के वक्तव्य को कांग्रेस में भूकंप की आशंका के तौर पर देखा जा रहा है.

असर मापने का कोई पैमाना नहीं बन सका

कांग्रेस के किस नेता का राज्य में कितना असर है? इसके मूल्यांकन की अजीबोगरीब प्रणाली अपनाई गई है. आलाकमान ने हमेशा अपने प्रभारी की रिपोर्ट पर भरोसा किया. प्रभारी की रिपोर्ट में जो कुछ कहा गया, आंख मूंदकर उस पर अमल किया गया. लिहाजा कांग्रेसी उतने ही समय तक सक्रिय रहते हैं, जितने समय तक प्रभारी राज्य में मौजूद रहते हैं.

पटना एयरपोर्ट से लेकर प्रदेश मुख्यालय सदाकत आश्रम तक पार्टी की सक्रियता उस दिन देखते ही बनती है, जिस दिन प्रभारी, कांग्रेस के किसी बड़े नेता या आलाकमान की ओर से तैनात किसी प्रतिनिधि का पटना आगमन होता है. नई-पुरानी गाड़ियों का काफिला यह बताते चलता है कि कांग्रेस में बड़ी जान है. प्रभारी के सामने ताकत का प्रदर्शन अक्सर मारपीट के जरिए ही होता रहा है. इससे पहले सदाकत आश्रम में मारपीट की कई घटनाएं हो चुकी हैं. भागलपुर में भी वही हुआ. हां, उस घटना के बाद प्रभारी एहतियात बरत रहे हैं. अब उनकी हिफाजत का खास खयाल रखा जा रहा है.

प्रभारियों के साथ एक और बात होती है. सत्ता में न रहने के बावजूद उनपर रिश्वतखोरी के आरोप लग जाते हैं. पहले वाले प्रभारी महासचिव सीपी जोशी पर ऐसे आरोप इफरात में लगे. राज्य में पार्टी के प्रति आलाकमान की गंभीरता का अंदाजा इस तथ्य से लगाइए कि प्रदेश अध्यक्ष का पद करीब साल भर से प्रभार में चल रहा है. यह अलग बात है कि जिस दिन नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा हुई, गुटबाजी फिर तेज हो जाएगी.

DR Raj Kumar has been appointed new VC of Panjab University, Chandigarh

 

DR Raj Kumar has been appointed new VC of Panjab University, Chandigarh

Dr Kumar is presently working as Dean and Head, Institute of Management Studies, Banaras Hindu University.

Know more about Dr Raj Kumar 

Prof Raj Kumar is D. Litt., Ph.D, MBA and M.com, having 35 years of teaching and research experience in the areas of Insurance, Capital Market and Entrepreneurship. His special interest arena is contemporary issues like Human Values & Ethics and CSR. He has authored four books and completed six research projects besides contributing many research papers to National and International seminars, conferences and workshops. He has also conducted one refresher course, one Entrepreneurial Development program and 4 QIPs (AICTE). He has been organizing Faculty Development Programmes on Entrepreneurship Development under NIMAT Project of the Department of Science & Technology, Government of India since 2008-09 for creating resource persons for entrepreneurship development. Till date, over 200 faculties/ executives / Entrepreneurs were trained as part of the Project. Prof. Raj Kumar has been serving as an expert member in Panels of AICTE, NAAC and other professional bodies and in selection committees for a number of institutions. He has served as Coordinator of the Technical Cell in the Office of the Vice Chancellor, Banaras Hindu University and as Chief Coordinator of Industry Institute Partnership Cell, IM, BHU besides serving as expert member in Academic Council/ Board of Studies of number of Universities/ Institute. He is the Managing Editor of BHU Management Review – A journal of contemporary management research, and serving as expert member in various Editorial / Advisory board of National and International Journals. Prof Raj Kumar has served as Executive Member of LIC Policy Holder Council and All India Commerce Association.

After taking charges of the Director, Dean and Head of the Institute, Prof. Raj Kumar initiated several innovative steps for expansion and outreach of the institute. These include works on consultancy services, collaborative courses and projects, connecting the institute with different ministries of GOI, Central government agencies, banks & financial institutions and reputed private corporate entities for possible tie-ups. Created Start-up Cell in the institute for encouraging new and innovative ideas. Also initiated efforts to finalize Vision Document of the Institute, establishing Management Park at RGSC, construction of new block with additional class rooms and facilities and strengthening the linkages with different stakeholders.