राहुल गांधी को प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट करने की योजना पर फिरा पानी
राहुल गांधी को प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट करने की योजना पर पानी फिर गया है. कांग्रेस कार्यसमिति ने रविवार को ही राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए प्रस्ताव पास किया था.
राहुल गांधी को प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट करने की योजना पर पानी फिर गया है. कांग्रेस कार्यसमिति ने रविवार को ही राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए प्रस्ताव पास किया था. राहुल गांधी साफ कह दिया है कि प्रधानमंत्री बनने के लिए सिर्फ वही उम्मीदवार नहीं हैं. बल्कि गठबंधन में से कोई भी प्रधानमंत्री बन सकता है. हालांकि पार्टी के भीतर किसी महिला को इस पद के लिए आगे करने पर विचार किया जा रहा है. जिसमें दलित चेहरे की चर्चा ज्यादा हो रही है. मीरा कुमार कांग्रेस की पंसद हो सकती हैं. लेकिन मायावती और ममता बनर्जी गठबंधन के भीतर से उम्मीदवार हो सकते हैं. जिनके पास राहुल गांधी से ज्यादा प्रशासनिक अनुभव है.
राहुल ने जमीनी हकीकत को समझा
राहुल गांधी को लेकर कई आपत्ति आ रही थी. जिसमें सबसे पहले कांग्रेस के सबसे विश्वस्त सहयोगी आरजेडी की तरफ से आया. आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि राहुल के अलावा भी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार हैं. इस बीच मायावती ने कहा कि वो सम्मानजनक सीट मिलने पर ही गठबंधन करेंगी. पार्टी को पता है कि रीजनल पार्टियां अपने हिसाब से बिसात बिछा रही हैं. कांग्रेस को सबको साथ लेकर चलना मजबूरी है.
हालांकि कांग्रेस के सूत्र कह रहे है कि गठबंधन बनाना महत्वपूर्ण है. प्रधानमंत्री पद इस वक्त कांग्रेस के लिए प्राथमिकता नहीं है. कांग्रेस के लिए प्राथमिकता बीजेपी को हटाना है. इसके लिए एक बडा एलांयस खड़ा करना जरूरी है. कांग्रेस के नेता अब कह रहे हैं कि चुनाव के बाद संख्या बल पर तय होगा कि कौन प्रधानमंत्री बनेगा. हालांकि कांग्रेस को उम्मीद है कि संख्या बल कांग्रेस के पक्ष में रहेगा.
कैसे होगा विपक्षी गठजोड़
कांग्रेस की परंपरा के मुताबिक वर्किंग कमेटी ने राहुल गांधी को गठबंधन करने के लिए अधिकृत कर दिया है. 2019 के चुनाव तक गठबंधन के फैसले राहुल गांधी ही करेंगे. जिसके लिए राहुल गांधी एक कमेटी का गठन करेंगें जो गठबंधन के लिए समान विचारधारा वाली पार्टियों से बात करेगी. लेकिन अंतिम फैसला राहुल गांधी करेंगे.
वर्किंग कमेटी में युवा ब्रिगेड इस बात पर जोर देता रहा कि गठबंधन को कांग्रेस ही लीड करे, यानी राहुल गांधी ही किसी भी तरह गठबंधन के अगुवा बने रहें, सचिन पायलट, रमेश चेन्निथला जैसे नेता यही चाहते हैं. कांग्रेस की महासचिव अंबिका सोनी ने कहा कि ये स्वाभाविक है, राहुल गांधी मुख्य विपक्षी दल के नेता है, हम चाहेंगे कि राहुल गांधी विपक्षी गठबंधन का चेहरा बनें.
राहुल गांधी को विपक्ष का चेहरा बनाना आसान नहीं है. 2004 में जब यूपीए गठबंधन वजूद में आया था तो माहौल दूसरा था. कांग्रेस के तकरीबन 145 से ज्यादा सांसद थे. बीजेपी की तादाद 138 सांसदों की थी इसके अलावा लेफ्ट तीसरी सबसे बड़ी ताकत थी. 13 वीं लोकसभा में यूपीए के घटक दलों की ताकत ज्यादा नहीं थी. कई दलों के सांसदो की संख्या दहाई के आंकड़े से भी कम थी. इसलिए कांग्रेस की अगुवाई छोटे दलों ने स्वीकार कर लिया था अब हालात ऐसे नहीं हैं.
कांग्रेस को इसको समझना पड़ेगा कि अब कांग्रेस के हिसाब से क्षेत्रीय दल गठबंधन करने के लिए तैयार होंगे ये मुश्किल लग रहा है. हालांकि पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने गठबंधन के लिए नया रास्ता निकालने की हिमायत की है. चिंदबरम ने कहा यूपी से लेकर बंगाल तक और तमिलनाडु में पार्टी की हालत नाजुक है. इसलिए गठबंधन ही रास्ता है. यानी तकरीबन 200 सीट पर कांग्रेस की स्थिति खराब है. इस बात का अंदाजा सभी नेताओं को है. पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन का विरोध नहीं किया है.
16 वीं लोकसभा में कांग्रेस अपने न्यूनतम स्तर पर है. कांग्रेस के बाद ममता बनर्जी की पार्टी है. जिसको राहुल गांधी के नाम पर सबसे ज्यादा एतराज है. ममता बनर्जी की मंशा है जो गठबंधन बने उसका कोई अगुवा ना हो यानी पहले से नेता ना तय हो बल्कि चुनाव के बाद ये मसला तय किया जाए. ममता बनर्जी ने कांग्रेस की बैठक से पहले 19 अगस्त को संघीय मोर्चा की रैली का ऐलान कर चुकी है. जिसमें कांग्रेस को भी आमंत्रित करेंगी.
ममता एकला चलो का नारा भी दे चुकी हैं, बंगाल में टीएमसी सभी 42 सीट पर अकेले लड़ने का मन बना रही हैं. हालांकि कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का दावा है कि ममता का ये बयान आखिरी नहीं है. जब बातचीत होगी तो तय हो जाएगा चुनाव से पहले बयानों में तब्दीली हो सकती है. सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी और शरद पवार किसी भी गठबंधन की संभावना से इनकार कर चुके हैं.
राहुल गांधी की अध्यक्षता में पहली वर्किंग कमेटी की बैठक में पार्टी को रोडमैप नहीं दे पाए. इस विस्तारित बैठक से उम्मीद थी कि ये पार्टी के लिए कोई दिशा तय करेगी. 2019 की तैयारी को लेकर कोई खाका नहीं बनाया गया है. जिससे पार्टी और जनता के बीच कनेक्ट बन सके, कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि पार्टी ऐसा प्रोग्राम तय करेगी. जिससे बीजेपी को कटघरे में खड़ा किया जा सकता है. हालांकि अविश्वास प्रस्ताव के बाद कांग्रेस के नेताओं का आत्मविश्वास बढ़ा था.
जिस तरह राहुल गांधी की स्पीच के बाद बीजेपी में खलबली थी. उसको वर्किंग कमेटी की बैठक में बढ़ाने का माद्दा नदारद था. संसद का तेवर आगे बढ़ाया जा सकता था. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया पार्टी के नेता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट करने की कवायद करते रहे, लेकिन राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी कैसे बनेगी, इस बात को लेकर किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई है. ज्यादा जोर गठबंधन पर ही था.
आरएसएस से सीख रहे राहुल गांधी
राहुल गांधी ने संसद में कहा कि हिंदू होने का मतलब सीख गए हैं. यानि सहिष्णु होने का, राहुल गांधी ने तंज के जरिए ही कहा था. लेकिन वर्किंग कमेटी में राहुल गांधी ने गंभीरता से कहा कि जिस तरह बीजेपी/आरएसएस का काम चल रहा है. उससे सीखने की जरूरत है. राहुल गांधी ने कहा कि आदिवासी समाज के भीतर संघ ने काम किया उसकी वजह से ये समाज कांग्रेस से दूर हुआ है.
संघ की शाखा वनवासी कल्याण आश्रम काम कर रहा है. उस तरह ही काम करने की जरूरत है. लेकिन ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के पास इस तरह का संगठन नहीं है. कांग्रेस सेवादल इन सब कामों के लिए बना है. लेकिन निष्क्रिय है. पार्टी की आला लीडरशिप कोई प्रोग्राम फ्रंटल संगठनों को नहीं दे पाया है.
क्या वाकई में मोदी का काउंटडाउन शुरू हो गया है
कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि मोदी सरकार का काउंट डाउन शुरू हो गया है. मनमोहन सिंह ने भी मोदी सरकार पर निशाना साधा है. लेकिन अविश्वास प्रस्ताव में शिव सेना के वॉकआउट के बाद एनडीए को 325 वोट मिले ये कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है. प्रधानमंत्री के साथ मजबूत संख्या बल है. जिसको तोड़ने के लिए कांग्रेस को 2004 वाली नीति अपनानी पड़ सकती है.
जनता के मुद्दों पर संघर्ष
कांग्रेस की वर्किंग कमेटी की बैठक में तय हुआ कि किसानों की समस्या से लेकर कानून व्यवस्था के मसले पर आंदोलन किया जाएगा. लेकिन बेहतर होता कि इस बैठक में ये रोड मैप तय कर दिया जाता. जिसमें सभी 239 सदस्यों को पार्टी काम सौंपती. जिसकी समय समय पर समीक्षा भी की जाती. कौन सा मुद्दा कब उठाना है. कितने दिन तक आंदोलन करना है, ये सब तय किया जाता. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है.
कांग्रेस के एक बड़े नेता ने कहा कि कांग्रेस को तय करना होगा कि किस सामाजिक मुद्दे की वजह से कौन नेता पार्टी में है, या किस मुद्दे के लिए काम कर रहा है. ये तय नहीं होगा तब तक पार्टी की हालत नहीं सुधरेगी. झप्पी का पोस्टर लगाने से काम नहीं चलने वाला है. बल्कि ऐसा कुछ करें कि जनता कांग्रेस को झप्पी देने के लिए बेकरार हो जाए.