Monday, December 23


उन्होंने कहा कि एक झूठ छिपाने के लिए सौ झूठ बोलना मोदी सरकार का चाल, चेहरा और चरित्र बन गया है। समय आ गया है कि प्रधानमंत्री देश को जवाब दें।


रणदीप सिंह सुरजेवाला, मीडिया प्रभारी, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी; डॉ. अमी याजनिक, सांसद एवं नासिर हुसैन, सांसद द्वारा जारी बयान :-

60,145 करोड़ रु. की राफेल डील ने साबित कर दिया कि ‘कल्चर ऑफ क्रोनी कैपिटलिज़्म’ यानि 3C’s मोदी सरकार का डीएनए बन गया है। ‘झूठ परोसना’ व ‘छल-कपट का चक्रव्यूह बुन’ देश को बरगलाना ही अब सबसे बड़े रक्षा सौदे में भाजपाई मूल मंत्र है। एक झूठ छिपाने के लिए सौ और झूठ बोले जा रहे हैं। वास्तविकता यह है कि 36 राफेल लड़ाकू जहाजों की एकतरफा खरीद से सीधे-सीधे ‘गहरी साजिश’, ‘धोखाधड़ी’ व ‘सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने के षडयंत्र’ की बू आती है। अब साफ है कि:-

1. राफेल जहाज बनाने वाली कंपनी, डसॉल्ट एविएशन ने 13 मार्च, 2014 को एक ‘वर्कशेयर समझौते’ के रूप में सरकारी कंपनी, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) से 36,000 करोड़ रु. के ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किए। परंतु प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र मोदी का ‘क्रोनी कैपिटलिज़्म प्रेम’ तब जगजाहिर हो गया, जब 10 अप्रैल, 2015 को 36 राफेल लड़ाकू जहाजों के खरीद की मोदी जी द्वारा की गई एकतरफा घोषणा के फौरन बाद, सरकारी कंपनी, एचएएल को इस सबसे बड़े ‘डिफेंस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट’ से दरकिनार कर दिया गया व इसे एक निज़ी क्षेत्र की कंपनी को दे दिया गया। प्रधानमंत्री व रक्षामंत्री इसका कारण क्यों नहीं बता रहे?

2. ‘डिफेंस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट’ एक निजी कंपनी, रिलायंस डिफेंस लिमिटेड को दे दिया गया, जिसे लड़ाकू जहाजों के निर्माण का शून्य भी अनुभव नहीं। रिलायंस डिफेंस लिमिटेड का गठन फ्रांस में 10 अप्रैल, 2015 को प्रधानमंत्री जी द्वारा 36 राफेल लड़ाकू जहाजों की खरीद की घोषणा किए जाने से 12 दिन पहले यानि 28 मार्च, 2015 को किया गया। रिलायंस डिफेंस लिमिटेड के पास लड़ाकू जहाज बनाने का लाईसेंस तक नहीं था।

3. आश्चर्य वाली बात यह है कि रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड को रक्षा मंत्रालय द्वारा लड़ाकू जहाजों के निर्माण का लाईसेंस तो दिया गया, लेकिन 2015 में लाईसेंस का आवेदन देने व उसके बाद लाईसेंस दिए जाने की तिथि, 22 फरवरी, 2016 को इस कंपनी के पास लड़ाकू जहाज बनाने की फैक्ट्री लगाने के लिए न तो कोई जमीन थी और न ही उस पर कोई बिल्डिंग। आश्चर्य की बात यह भी है कि रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड का गठन 24 अप्रैल, 2015 यानि प्रधानमंत्री जी द्वारा 10 अप्रैल, 2015 को फ्रांस में 36 राफेल लड़ाकू जहाजों की खरीद की घोषणा करने के 14 दिन बाद ही किया गया था।

4. चौंकाने वाले खुलासों एवं प्रमाणों से 30,000 करोड़ रु. का ‘डिफेंस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट’ रिलायंस समूह को दिए जाने बारे रक्षामंत्री, श्रीमती निर्मला सीतारमन की झूठ जगजाहिर हो जाती है। इसके अलावा, रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी किए गए डिफेंस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट दिशानिर्देशों का घोर उल्लंघन जगजाहिर है। रिलायंस समूह व डसॉल्ट एविएशन के 30,000 करोड़ के ऑफसैट कॉन्ट्रैक्ट के साझे समझौते को रक्षामंत्री व एक्विजि़शन मैनेजर, रक्षा मंत्रालय की अनुमति दिशानिर्देशों के मुताबिक अनिवार्य थी। पूरे मसौदे को डिफेंस एक्विजि़शन काउंसिल के समक्ष पेश करना भी जरूरी था। खुद मोदी सरकार ने ही रक्षा मंत्रालय के सभी दिशानिर्देशों की धड़ल्ले से धज्जियां उड़ा दीं।

मोदी सरकार का 1,30,000 करोड़ रु. का झूठ – ‘30,000’ करोड़ रु. का ‘डिफेंस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट’ एवं 1,00,000 करोड़ का ‘लाईफ साईकल कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट’

रिलायंस डिफेंस लिमिटेड ने दावा किया है कि उसे ‘डसॉल्ट एविएशन’ से 30,000 करोड़ रु. का ‘ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट’ एवं 1 लाख करोड़ रु. का ‘लाईफसाईकल कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट’ मिल गया है। कृपया दिनांक 16.02.2017 की रिलायंस की प्रेस विज्ञप्ति देखें, जो संलग्नक A1 में संलग्न है तथा आरइन्फ्रा इन्वेंस्टर्स प्रेज़ेंटेशन संलग्नक A2 देखें।

डसॉल्ट एविएशन ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट 2016-17 (संबंधित अंश संलग्नक A3 है) में माना है कि ‘ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट’ का क्रियान्वयन ‘रिलायंस समूह’ कर रहा है।

इन सब दावों के बावज़ूद, रक्षामंत्री, श्रीमती निर्मला सीतारमन ने दिनांक 07.02.2018 को एक पीआईबी प्रेस विज्ञप्ति में यह दावा कर दिया कि डसॉल्ट एविएशन द्वारा ‘ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट दिया ही नहीं गया’। प्रेस विज्ञप्ति की प्रति संलग्नक A4 है।

प्रश्न बहुत साफ है- क्या मोदी सरकार व रक्षामंत्री, श्रीमती निर्मला सीतारमन झूठ नहीं बोल रहीं? क्या रिलायंस समूह को 30,000 करोड़ का डिफेंस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट व 1,00,000 करोड़ का लाईफ साईकल कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट मिला है?

30,000 करोड़ रु. का ‘ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट’ देने में ‘डिफेंस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट दिशानिर्देशों’ का उल्लंघन

रक्षा मंत्रालय में एक स्थायी ‘डिफेंस ऑफसेट मैनेजमेंट विंग’ (डीओएमडब्लू) की स्थापना की गई है और सभी ‘ऑफसेट कॉन्ट्रेक्टों’ के लिए ‘डिफेंस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट दिशानिर्देश’ भी जारी किए गए हैं (http://www.makeinindiadefence.gov.in/DefenceOffsetGuidelines.pdf)। संबंधित अंश संलग्नक A5 है। इन दिशानिर्देशों में यह अनिवार्य है कि:-

I. सभी ऑफसेट प्रस्ताव रक्षामंत्री द्वारा स्वीकृत किए जाएंगे (ऑफसेट नियमों का अनुच्छेद 8.6)। ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट पर रक्षा मंत्रालय के ‘एक्विजि़शन मैनेजर’ के हस्ताक्षर जरूरी होंगे (ऑफसेट नियमों का अनुच्छेद 8.6)।

II. ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट की प्रगति का डिफेंस ऑफसेट मैनेजमेंट विंग के नामांकित अधिकारी द्वारा हर छः माह में ऑडिट कराया जाएगा (ऑफसेट नियमों का अनुच्छेद 8.8)।

III. रक्षा मंत्रालय की ‘एक्विजि़शन विंग’ को हस्ताक्षर किए गए ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट एवं क्रियान्वयन की स्थिति के विवरण बारे ‘डिफेंस एक्विजि़शन काउंसिल’ को वार्षिक रिपोर्ट देनी होगी (ऑफसेट नियमों का अनुच्छेद 8.17)। किसी भी साल ऑफसेट नियमों का पालन न कर पाने की स्थिति में पूरे न किए गए ऑफसेट दायित्व के 5 प्रतिशत के बराबर दण्ड के साथ पेनल्टी लगाई जाएगी (ऑफसेट नियमों का अनुच्छेद 8.13)।

प्रश्न सीधे हैं:-

I. क्या रिलायंस एवं डसॉल्ट एविएशन 30,000 करोड़ रु. के ‘ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट’ पर रक्षामंत्री की अनुमति के बिना हस्ताक्षर कर सकते हैं?

II. क्या इस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट पर रक्षा मंत्रालय के ‘एक्विजि़शन मैनेजर’ ने हस्ताक्षर किए?

III. डीओएमडब्लू द्वारा छः महीने में किया जाने वाला ऑडिट क्यों नहीं किया गया?

IV. क्या ‘एक्विजि़शन विंग’ ने ‘डिफेंस एक्विजि़शन काउंसिल’ को अपनी वार्षिक रिपोर्ट जमा कराई? यदि नहीं, तो इसका कारण क्या है?

V. क्या देश के एक बड़े रक्षा सौदे में किसी प्राईवेट कंपनी और रक्षा उपकरणों की सप्लायर को पूरे ‘डिफेंस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट नियमों/निर्देशों’ को ताक पर रखने की अनुमति है?

कैटेगरी A, ‘हाई सिक्योरिटी डिफेंस प्रोडक्शन’ के लिए औद्योगिक लाईसेंस बिना किसी भूमि या बिल्डिंग के दिया जाना

भारत में रक्षा उत्पादन के लिए लाईसेंस इंडस्ट्रीज़ (डेवलपमेंट एण्ड रेगुलेशन), एक्ट, 1951; रजिस्ट्रेशन एण्ड लाईसेंसिंग ऑफ इंडस्ट्रियल अंडरटेकिंग रूल्स, 1952 और न्यू आर्म्स रूल्स, 2016 के तहत दिया जाता है (www.makeinindiadefence.gov.in – industrial licenses)।


अभी श्री भूपेंद्र भूपी जी ने श्री रणदीप सुरजेवाला का प्रेसनोट पोस्ट किया है। इसमें मोदी सरकार के 1,30,000 करोड़ के झूठ का जि़क्र है। मैं यह कहना चाहूंगा कि मीडिया ने इस फिगर को आसान बनाने के लिए एक लाख तीस हजार करोड़ की तरह कहना और लिखना शुरू कर दिया क्योंकि यह लिखना या कहना आसान लगता है और सचमुच आसान है भी। लेकिन इसमें एक भारी दिक्कत है क्योंकि आम आदमी इसकी गंभीरता को नहीं समझ पाता। आइये जरा समझें कि मैं क्या कहना चाहता हूं। एक करोड़ लिखना हो तो “एक” लिखने के बाद “सात ज़ीरो” और लगेंगे। यानी, अगर हमने 1,30,000 करोड़ को सचमुच पूरा लिखना हो तो
1,30,00,00,00,00,000
लिखा जाएगा। सौ करोड़ का एक अरब बनता है, सौ अरब का एक खरब बनता है और सौ अरब का शायद “शंख” बनता है या शायद एक “नील”, मुझे भी पक्का पता नहीं है। यानी, अगर ये आरोप सच है तो हमें समझना चाहिए कि यह कितनी बड़ी राशि है जिसकी हेराफेरी हुई है, क्योंकि सिर्फ एक लाख तीस हजार करोड़ कह देने से आम आदमी को पक्का अंदाजा नहीं लग पाता कि यह राशि असल में “शंख” या “नील” जितनी बड़ी है। अंग्रेजी में भी इसे कितने ट्रिलियन कहा जाएगा मुझे पता नहीं है।
मैं फिर दोहराता हूं कि अगर श्री रणदीप सुरजेवाला का आरोप सही है तो यह बहुत बड़ी रकम है जिसकी हेराफेरी हुई है। यह बहुत गंभीर मामला है और सारे देश को, देश के एक-एक नागरिक को प्रधानमंत्री से पूछना चाहिए —

“राफेल का दाम बताओ, कौन है दलाल, नाम बताओ”।

कहना है क्षेत्र के जाने माने “विचारक ओर विश्लेषक श्री पी के खुराना” का


रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड व उसकी संबंधित कंपनियों – रिलायंस डिफेंस लिमिटेड एवं रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड को लड़ाकू जहाज बनाने का कोई अनुभव नहीं। वास्तव में रिलायंस डिफेंस लिमिटेड का गठन प्रधानमंत्री जी द्वारा 10 अप्रैल, 2015 को फ्रांस में 36 लड़ाकू जहाज खरीदे जाने की घोषणा करने के केवल 12 दिन पहले, यानि 28 मार्च, 2015 को किया गया था (संलग्नक A6)। रिलायंस डिफेंस लिमिटेड के पास लड़ाकू जहाज बनाने का लाईसेंस तक नहीं था।

रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड का गठन 24.04.2015 को किया गया था। कंपनी ने लड़ाकू जहाज बनाने के औद्योगिक लाईसेंस के लिए आवेदन साल, 2015 में दिया और इसे 22.02.2016 को वाणिज्य मंत्रालय द्वारा यह अनुमति दे दी गई। उस समय श्रीमति निर्मला सीतारमन वाणिज्य मंत्री थीं। लाईसेंसों का आवंटन करने से संबंधित सूची संलग्नक A7 में दी गई है। इस कंपनी का गठन भी 24.04.2015 को, यानि प्रधानमंत्री जी द्वारा 10 अप्रैल, 2015 को फ्रांस में 36 लड़ाकू जहाज खरीदे जाने की घोषणा करने के केवल 14 दिन बाद किया गया था।

लड़ाकू जहाज बनाने के लिए लाईसेंस के आवेदन में रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड ने अपना पता एवं स्थान, ‘सर्वे नं. 589, तालुका जफराबाद, ग्राम लुंसापुर, जिला अमरेली, गुजरात’ दिया था। उस समय ये परिसर रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड के स्वामित्व में नहीं थे। उपरोक्त स्थान की मल्कियत ‘पीपावाव डिफेंस एण्ड ऑफशोर इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड’ के पास थी। लाईसेंस के दिन, यानि 22.02.2016 को भी रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड के पास उपरोक्त पते पर कोई जमीन या भवन नहीं था। पीपावाव डिफेंस लिमिटेड का अधिग्रहण रिलायंस डिफेंस लिमिटेड द्वारा 18.01.2016 को किया गया और उसके बाद इसका नाम बदलकर रिलायंस डिफेंस एण्ड इंजीनियरिंग लिमिटेड रख दिया गया। यह बात वार्षिक रिपोर्ट 2015-16 से साबित हो जाती है, जिसका संबंधित हिस्सा संलग्नक A8 में संलग्न है।


वैसे पूछते हैं,

कहीं यह सारी कवायद राहुल गांधी द्वारा केन्द्रीय रक्षा मंत्री ओर प्रधान मंत्री पर संसद में लगाए अनर्गल ओर मिथ्या आरोपों (जिससे सम्पूर्ण राष्ट्र को शर्मिंदा हीना अदा इतना ही नहीं मित्र राष्ट्र को भी बचाव में आना पड़ा) की शर्मिंदगी से बचने की दूसरी कोशिश तो नहीं?