लेटरल एंट्री के जरिये सरकार आरक्षण खत्म करने की कोशिश कर रही है: येचुरी

विपक्ष का काम तो विरोध ही होता है और विपक्ष विरोध कर रहा है, सभी को यह डर है कि ‘लेटरल एंट्री’ से संघी लोग सचिवालय आ जायेंगे, परन्तु कोई यह नहीं बता रहा कि इसका मसौदा तो कांग्रेस की सरकार ने ही पारित किया था बस उन्हें ज़रुरत नहीं पड़ी. और किसी को भी एक “स्टील फ्रेम” जैसा कि सरदार पटेल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं  के बारे में कहते थे, इस  संस्था में दरार का डर नहीं दीख पड़ता.

यूपीएससी एग्जाम के बगैर संयुक्त सचिव स्तर पर सीधी भर्ती कराने के फैसले पर सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने मोदी सरकार पर करारा निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि यह प्रशासनिक स्तर पर संघियों की भर्ती कराने की कोशिश है. इसके जरिए यूपीएससी और एसएससी पास करने वाले कैंडिडेट का महत्व कम किया जा रहा. उन्होंने कहा कि इस तरह के फैसलों के जरिए केन्द्र सरकार आरक्षण को भी खत्म करने की कोशिश कर रही है.

येचुरी अलावा अन्य कई विपक्षी नेताओं ने मोदी सरकार के इस फैसले की आलोचना की है. बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कहा कि ये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशासनिक विफलता का परिणाम है. उन्होंने कहा, “दस विभागों में वरिष्ठ स्तर पर नौकरशाही के पद ऐसे निजी लोगों के लिए खोलना जिन्होंने यूपीएससी परीक्षा पास नहीं की है, ये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशासनिक विफलता का परिणाम है.”उन्होंने कहा कि यह खतरनाक परम्परा है और इससे केंद्र सरकार की नीतियों में पूंजीवादियों और धनाढ्यों का प्रभाव बढ़ने की संभावना है.

हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मोदी सरकार के फैसले का बचाव किया है. उन्होंने कहा देश भर में आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की कमी के कारण उत्पन्न जरूरतों को देखते हुए प्रयोग के तौर पर ये योजना लाई गई है. साल 2013 से 2017 को छोड़कर 1990 के दशक से एनडीए के सहयोगी रहे कुमार ने सिविल सेवाओं को कमतर करने के लिए कांग्रेसी सरकारों को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि पहले कि सरकारों ने हमें इस स्थिति में छोड़ दिया है कि हमें प्रशासन की कई जरूरतों को पूरा करने में कठिनाई आ रही है.

विपक्ष की आलोचनाओं से इत्तेफाक नहीं रखते हुए केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह ने सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में भी सीधी भर्ती की वकालत की और कहा कि मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए. मानव संसाधन राज्यमंत्री ने कहा कि इस योजना से शैक्षणिक संस्थानों की क्षमता में सुधार आएगा. इस पर आरजेडी नेता मनोज झा ने कहा कि सरकार प्रतिबद्ध नौकरशाही यानि कि डेडिकेटेड ब्युरोक्रेसी चाहती है, इसलिए बिना यूपीएससी के ज्वाइंट सेक्रेटरी बनाने का फैसला लिया गया है.

हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम का कहना है कि हमें अभी और ब्यौरे के बारे में जानने की जरूरत है. देखते हैं कि हमारे अंतिम निष्कर्ष तक पहुंचने से पहले सरकार क्या जवाब देती है. उन्होंने कहा, ‘‘इस विज्ञापन को लेकर आशंका है. अगले कुछ दिनों में हम इस बारे में जवाब दे सकेंगे.’’राजनीति में आने से पहले नौकरशाह रहे कांग्रेस प्रवक्ता पी एल पुनिया ने आरोप लगाया कि सरकार सत्तारूढ़ पार्टी से जुड़े लोगों की भर्ती करने का प्रयास कर रही है.

Bhivandi Court Framed Charges Against RaGa Next Hearing 10 August

 

After four years of filing case rahul was summoned today for a hearing.

A court in Bhiwandi in Maharashtra’s Thane district framed defamation charges against Congress president Rahul Gandhi on Tuesday in a criminal defamation case filed by RSS worker Rajesh Kunte.

The charges were framed under sections 499 (defamation) and 500 (punishment for defamation) of the Indian Penal Code. Rahul Gandhi reportedly pleaded not guilty. The court set 10 August as the next date of hearing.

Addressing the media after leaving the Bhiwandi court, Rahul accused the government filing cases against him, but not having answers on rising unemployment and saving farmers. “This is a government for the rich. The media shows the bright side. The prime minister does not speak on the issue like unemployment and protection of farmers. He doesn’t have answers to rising fuel prices. They keep putting cases on me. They can keep doing so; it doesn’t matter. This is my fight for ideology. We will fight them and win,” he said.

However, Kunte alleged that the Congress chief was being given “special treatment”. “I am complainant and still was not allowed inside court without being frisked but Rahul and his people went in without frisking despite him being accused. Police was biased,” Kunte Claimed

The judge, while reading out charges, said Rahul defamed the complainant’s organisation RSS through his remarks during a rally in 2014. The judge said that the Congress chief harmed RSS’ reputation.

Kunte had filed the case after the Congress president’s speech at an election rally, in which the latter had alleged that the RSS was behind the assassination of Mahatma Gandhi. He had also said the Hindutva organisation opposed Sardar Patel.

Rahul had moved to

The Supreme Court in 2015 seeking a stay on Bombay High Court’s order dismissing his plea for quashing the defamation case. In 2016, the court said Rahul must either apologise or face trial for his remarks. “You can’t make wholesale denunciation of an organisation,” the top court had said.

 

 

Delhi Hamaari then AAP Tumhari

Arvind Kejriwal is all set for negotiations if Delhi is granted full statehood status.

Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal Monday said that if the BJP-led Centre grants full statehood to Delhi before the 2019 Lok Sabha polls, the AAP will campaign for the party. Addressing the Assembly on the motion of full statehood, Kejriwal said it was time for the people of Delhi to end the “unaccountable” rule of the L-G, which he claimed was “worse” than the British Raj in terms of the extent of exploitation.

“Grant us full statehood before the Lok Sabha polls, each and every vote in Delhi will be polled in your (BJP’s) favour; we will campaign for you. If not, you will be thrown out by the people,” he said.

He repeatedly referred to the L-G as “maharaj (emperor)” and “viceroy”, claiming that the current arrangement was akin to the one under British rule. “After 1947, the entire country got freedom, but people of Delhi continue to be second-class citizens. Delhiites are half-citizens,” he said.

The Assembly, which debated the motion during a four-day special session, later passed a resolution demanding full statehood. According to Assembly secretary, C Velmurugan, similar resolutions have been passed at least four times before.

“The first such resolution was passed during the term of the first Assembly under then CM Chaudhary Brahm Prakash. Later, similar resolutions were passed even under BJP governments,” he said.

Making his point, Kejriwal invoked Delhi’s history under the Mughal empire and the British rule. “Between 2013 and 2016 came maharaja Najeeb Jung. Now we have maharaja Anil Baijal. Today, the most important question confronting Delhi is whether the L-G has the last word or the people. The time has come for people of Delhi to fight for their independence,” he said.

The AAP had set the tone on the first day of the session by linking all its unfinished business in office, starting from the Jan Lokpal Bill to the mohalla clinic project, to the pending demand for full statehood.

Kejriwal took it forward by invoking the list of pending proposals and incomplete projects. He also projected a scenario under which “every citizen of Delhi will have a house” and “guaranteed employment” if the city is granted full statehood.

He said 85 per cent of Delhi government jobs should be reserved for the people of Delhi. “We would have built 100 colleges in Delhi by now if Delhi was a full state,” he claimed.
The AAP has planned a series of events over the next one month to press for statehood. A convention has also been scheduled for July 1 over the demand.

Calling the AAP government’s bid for full statehood “a political gimmick”, Delhi BJP chief Manoj Tiwari claimed that the AAP and the Congress were hand-in-glove to mislead people of Delhi. “The AAP is trying to hide its bad governance and divert public attention to other issues,” he said.

On the other hand, Delhi Congress chief spokesperson, Sharmistha Mukherjee, said, “The AAP and the BJP have a secret game plan. We also demanded statehood but it never became an excuse for not delivering.”

बंगला नम्बर 4, कुछ तो रहा होगा

सारिका तिवारी

आखिर अखिलेश यादव ने सर्वोच्च नयायालय की फटकार के बाद  बंगला नम्बर 4 खाली कर ही दिया. यह बात अलग है कि अगले ही दिन मिडिया ने उनके उजड़े चमन की तस्वीर सर – ए – आम कर दी. अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में अखिल्लेश ने इस बंगले की रूपरेखा बदलने के लिए लगभग 50 करोड़ रूपये खर्च किये थे, पर मोहभंग होते हिब्न्गले को इस तरह से उजाड़ने की एक प्रदेश के रहे मुख्यमंत्री और व्यस्क मानसिकता के मालिक से उम्मीद नहीं थी.

कभी ऐसा दीखता था बंगला नम्बर 4 

एसी, कूलर, टीवी,  मंहगे नलके, साज़-ओ-सामान तक तो ठीक था पर फर्श उखाड़ने दीवारें तोड़ने की नौबत क्यों पड़ी. चलो मान लिया कि टाइल और ईंटें मन पसंद थीं ले गए, पर साइकिल ट्रैक उखाड़ने के पीछे का मनोविज्ञान यह तो कतई समझ से बाहर है. जिसके बाद अब राज्य संपत्ति विभाग का कहना है कि वो अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों के खाली बंगलों में हुए नुक़सान की भी जांच करने वाला है और इसके लिए सूची बना रहा है.

हालांकि शुरू में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के लोग ये कह रहे थे कि वो सिर्फ़ अपना ही सामान ले गए हैं लेकिन अब पार्टी तोड़-फोड़ और सामान ग़ायब होने के लिए राज्य सरकार को दोषी ठहरा रही है.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अखिलेश यादव ने दो जून को यह बंगला खाली कर दिया था. बंगले में टूट-फूट का मामला सामने आने के बाद अब राज्य संपत्ति विभाग अब अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों के खाली बंगलों भी हुए नुक़सान की सूची बना रहा है.

हालांकि बताया जा रहा है कि अन्य बंगलों में कुछ सामान ज़रूर इधर-उधर हुए हैं लेकिन इस क़दर तोड़-फोड़ नहीं हुई है जैसी कि अखिलेश यादव के बंगले में हुई है.

राज्य संपत्ति विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इन बंगलों के सामान की सूची बनानी शुरू कर दी गई है और इनका रिकॉर्ड से मिलान कराया जाएगा. किसी भी किस्म की गड़बड़ी मिलने पर आवंटियों को नोटिस जारी किया जाएगा.

जिन पूर्व मुख्यमंत्रियों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बंगले खाली किए थे उनमें मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और मायावती शामिल हैं. इन सभी ने आवास खाली करने के बाद चाबी राज्य संपत्ति विभाग को सौंप दी है.

पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी का सरकारी आवास अभी खाली नहीं हुआ है.

समाजवादी पार्टी के नेता सुनील साजन कहते हैं, “अखिलेश यादव की छवि को ख़राब करने के लिए बीजेपी षडयंत्र कर रही है. जब चाबी पहले ही सौंप दी गई थी तो एक हफ़्ते बाद मीडिया को क्यों दिखाया गया?”

“मीडिया को दिखाने के लिए राज्य संपत्ति विभाग के अधिकारी नहीं बल्कि मुख्यमंत्री के ओएसडी लेकर आए. इसी से समझा जा सकता है कि सरकार की नीयत क्या थी.”

सुनील साजन इसे फूलपुर, गोरखपुर, कैराना और नूरपुर के उपचुनाव से जोड़ते हैं और कहते हैं कि बीजेपी हताशा में ऐसा कर रही है.

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता सुनील सिंह यादव ने कहा है कि “अखिलेश जी की छवि को धूमिल करने के उद्देश्य से भाजपा व प्रशासन के लोगों की ये एक घटिया चाल है.”

ख़ुद अखिलेश यादव ने भी इन सबके लिए राज्य संपत्ति विभाग के अधिकारियों पर निशाना साधा है. उन्होंने नाम तो नहीं लिया लेकिन इस तरह से आरोप लगाया जैसे वो जानते हों कि राज्य संपत्ति विभाग का कौन सा अधिकारी ये सब कर रहा है.

वहीं बीजेपी ने सरकारी मकान में की गई इस तरह की तोड़-फ़ोड़ पर चिंता जताई है. पार्टी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी का कहना है कि ऐसा अखिलेश यादव ने सिर्फ़ इसलिए किया ताकि लोग ये न जान सकें कि वो सरकारी पैसे से कितनी ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीते थे.

राकेश त्रिपाठी कहते हैं, “अखिलेश यादव जानते थे कि उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनना है इसलिए पहले ही करोड़ों रुपये ख़र्च करके अपने लिए सरकारी बंगला आवंटित करा लिया. अब, जब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद उन्हें बंगला छोड़ना पड़ रहा है तो लोग जान न जाएं कि वो इतनी शानो-शौकत से रहते थे, इसलिए उसे तहस-नहस करा दिया.”

लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग स्थित चार नंबर का सरकारी बंगला अखिलेश यादव को बतौर मुख्यमंत्री आवंटित किया गया था. इस बंगले को अखिलेश यादव ने अपने मुख्यमंत्री रहते ही आवंटित करा लिया था और बताया जाता है कि इसके सौंदर्यीकरण पर क़रीब चालीस करोड़ रुपये ख़र्च किए गए थे.

लेकिन पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगले आवंटित करने को ग़ैरक़ानूनी क़रार दिया तो उन्हें ये बंगला खाली करना पड़ा.

हालांकि पहले अखिलेश यादव ने सुप्रीम कोर्ट से इसके लिए दो साल का समय भी मांगा था लेकिन जब समय नहीं मिला तो उन्हें खाली करना पड़ा.

जानकारों का कहना है कि क़ीमती सामान उठा ले जाने की बात तो समझ में आती है लेकिन जिस बंगले को सजाने में करोड़ों रुपये ख़र्च हुए हों, उसे कोई खंडहर बनाकर भला क्यों जाएगा.

बंगले के भीतर महंगी इटालियन टाइल्स लगी थीं जो उखड़ी हुई हैं, एसी, नल और नल की टूटियां तक ग़ायब हैं. तोड़-फोड़ सिर्फ़ बंगले के अंदर ही नहीं की गई है बल्कि बाहर भी दिखाई पड़ रही है.

बंगले की इमारत के बाहर बने साइकिल ट्रैक की पूरी फर्श टूटी पड़ी मिली और हमेशा हरा-भरा रहने वाले बगीचे से कुर्सियां और बेंच नदारद थीं.

इसके अलावा बैडमिंटन कोर्ट की फर्श, दीवारें, नेट और टाइल्स भी उखाड़ दिए गए हैं. पूरे बंगले में जो सबसे ज्यादा सुरक्षित बचा है वो है मंदिर. संगमरमर के बने इस मंदिर को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया गया है.

बहरहाल, इस मामले में अभी राजनीतिक बयानबाज़ी जारी है और सोशल मीडिया में बंगले की दुर्दशा पर अफ़सोस और ग़ुस्सा भी जताया जा रहा है.

राज्य संपत्ति विभाग की ओर से अभी कोई आधिकारिक बयान तो नहीं आया है लेकिन बताया जा रहा है कि राज्य संपत्ति विभाग नुकसान का आकलन करके उसकी भरपाई का नोटिस भेजने की तैयारी में है.

कुछ तो पर्दादारी है.

5 states are not Supporting PMMVY

The Union government’s conditional cash transfer scheme for pregnant and lactating mothers is yet to find takers from states that account for more than a fifth of the total beneficiaries.

According to officials from the Ministry of Women and Child Development, in the last one year since its rollout, the Centre has disbursed Rs 673 crore to 23.6 lakh beneficiaries under the Pradhan Mantri Matritva Vandana Yojana (PMMVY). However, Tamil Nadu, Telangana, Odisha, West Bengal, and Assam have not taken the benefit of the funds from the central scheme, said officials.

Many of these states have refused the money as they have their own state schemes that offer higher sums and have a more universal coverage.

Union government officials state that the non-cooperation of these states could result in the Centre being held legally accountable for not covering all states as required of it under National Food Security Act (NFSA), 2013. “Some of these states are not doing their job since they have their own schemes which are very CM- driven or are staying out for political reasons. These states together account for 23 per cent of beneficiaries. After much convincing, Tamil Nadu and Telangana have agreed to come on board by June-end,” said the official, adding that these states might use the central funds in addition to their own funds disbursed under the state schemes.

Prime Minister Narendra Modi announced in December 2016 that all pregnant and lactating women would be given Rs 6000 under the scheme.

As against this, several states that have had their own versions of the scheme pay much more and cover two live births. Odisha government’s conditional cash transfer maternity benefit scheme Mamata covers two live births. Tamil Nadu’s pre-existing Muthulakshmi Reddy Maternity Assistance Scheme already pays Rs 12,000, double the amount paid by the Centre, covers two live births and has been proven to have had a positive effect on reducing the maternal and infant mortality ratio. The amount is likely to be enhanced to Rs 18000 with an infusion of Rs 6000 per beneficiary from the central scheme.

“किम – ट्रम्प” बर्फ पिघल रही है

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन के बीच सिंगापुर में ऐतिहासिक मुलाक़ात समाप्त हो गई है. मुलाक़ात समाप्त होने के बाद किम ने ट्रंप से अंग्रेजी में कहा, ”नाइस टू मीट यू , मिस्टर प्रेज़ीडेंट”, जिस पर ट्रम्प ने कहा,” आईटी’स माय ऑनर, वे विल हैव टेरेफिक रिलेशनशिप, आई हैव नो डोयुट”

सिंगापुर के सैंटोसा द्वीप में स्थित कैपेला होटल में हुई यह मुलाक़ात करीब 50 मिनट तक चली. अब दोनों ही नेता अपने साथ आए वरिष्ठ सलाहकार और सहयोगियों के दल के साथ बैठक कर रहे हैं.

अमरीका की तरफ से इस बैठक में राष्ट्रपति ट्रंप के साथ विदेश मंत्री माइक पोम्पियो, व्हाइट हाउस के चीफ़ ऑफ स्टाफ जॉन कैली और सुरक्षा सलाहकार जॉन बॉल्टन बैठे हुए दिखाई दे रहे हैं.

वहीं दूसरी तरफ उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन के साथ उनके सबसे करीबी समझे जाने वाले किम योंग चोल मौजूद हैं, इसके अलावा विदेश मंत्री री योंग हो और पूर्व विदेश मंत्री री सु योंग मौजूद हैं.

किम और ट्रंप के बीच हुई फ़ेस-टू-फ़ेस यानी आमने-सामने की मुलाक़ात होटल की लाइब्रेरी में हुई.

इससे पहले दोनों नेताओं ने एक छोटी सी प्रेस कॉन्फ्रेंस की.

इस दौरान डोनल्ड ट्रंप ने कहा, ”मैं बहुत ही अच्छा महसूस कर रहा हूं. हमारे बीच शानदार बातचीत होने वाली है और मुझे लगता है कि यह मुलाकात ज़बरदस्त रूप से कामयाब रहेगी. यह मेरे लिए बहुत ही सम्मानजनक है और मुझे इसमें कोई शक़ नहीं कि हमारे बीच बेहतरीन संबंध स्थापित होंगे.”

वहीं किम जोंग उन ने कहा, ”यहां तक पहुंचना आसान नहीं था, हमारा इतिहास…और हमारे पूर्वाग्रह इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए रोढ़े बने हुए थे. लेकिन हम उन सभी को पार कर आज यहां मौजूद हैं.”

किम जोंग-उन से मुलाक़ात के ठीक पहले अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने एक ट्वीट किया, जिसमें इस बैठक को लेकर ख़ुद ट्रंप की आशंकाओं की झलक मिल रही थी. ट्रंप ने लिखा कि स्टाफ़ के सदस्यों और प्रतिनिधियों के बीच सबकुछ बहुत अच्छा रहा लेकिन ये बहुत मायने नहीं रखता. बहुत जल्द ये पता चल जाएगा कि इस मुलाक़ात में कोई असल समझौता हो पाता है या नहीं.

आशंकाएं अपनी जगह हैं लेकिन उम्मीदें भी कम नहीं हैं. दुनिया में बहुत लोग ये चाहते हैं कि 18 महीने पहले तक एक दूसरे को हमले की धमकी दे रहे देश, साथ मिलकर शांति स्थापित करने की ओर बढ़े. इसीलिए कल जब किम जोंग उन सिंगापुर घूम रहे थे तो वहां लोगों ने उन्हें देखकर ज़बरदस्त उत्साह दिखाया.

किम ने भी सिंगापुर वासियों को निराश नहीं किया और मुस्कुराकर, हाथ हिलाकर उनका अभिवादन किया.

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप इस मुलाक़ात को शांति कायम करने का “एक और मौका” मान रहे हैं वहीं दुनिया से अलग-थलग रहने वाले उत्तर कोरिया के लिए यह दुनिया से जुड़ने का एक सुनहरा मौक़ा है.

इस मुलाक़ात में परमाणु कार्यक्रमों पर बात होनी तय है. अमरीका को उम्मीद है कि इससे उस प्रक्रिया को शुरू करने में मदद मिलेगी जिसके नतीजे में उत्तर कोरिया परमाणु हथियारों का अपना कार्यक्रम बंद कर देगा.

वहीं उत्तर कोरिया का कहना है कि वह परमाणु कार्यक्रम बंद करने को तो तैयार है लेकिन ये सब कैसे होगा, ये अभी तक स्पष्ट नहीं है. इसके साथ ही ये भी स्पष्ट नहीं है कि उत्तर कोरिया ऐसा करने के ऐवज़ में क्या मांग रखेगा.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने दोनों नेताओं की मुलाक़ात को एक सार्थक पहल बताते हुए कहा कि दोनों ही नेता पिछले साल उपजे तनाव को दूर करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं. दोनों का ही मकसद शांति स्थापित करना होना चाहिए. जैसा कि मैं पिछले महीने ही दोनों नेताओं को ख़त लिखकर बोल चुका हूं कि यह रास्ता आपसी सहयोग, त्याग और एक उद्देश्य की मांग करता है. ज़ाहिर है इसमें कई तरह के उतार-चढ़ाव होंगे, असहमतियां होंगी और कठिन समझौते होंगे.

अमरीकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने दोनों नेताओं की इस मुलाक़ात को संभावनाओं से भरा हुआ बताया है.

पॉम्पियो ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप इस मुलाक़ात के लिए पूरी तरह से तैयार हैं. हम चाहते हैं कि कह होने वाली मुलाक़ात का सार्थक परिणाम सामने आए जो दोनों देशों के हित में हो. यह बिल्कुल नई तरह की कोशिश है.

किम के संदर्भ में जानकारों का कहना है कि अब वो अपना ध्यान देश की अर्थव्यवस्था पर लगा रहे हैं और चाहते हैं कि उनके देश पर लगाए गए प्रतिबंध हटाए जाएं. उत्तर कोरिया में अंतरराष्ट्रीय निवेश हो और ये मुलाक़ात इस लिहाज़ से भी काफी अहम है. सबसे अहम सवाल यही कि क्या यह बातचीत उस तनाव को कम करने में कामयाब होगी जो उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षणों और परमाणु कार्यक्रम से पनपा था और जिसने एक समय समूची दुनिया को अपनी ज़द में ले लिया था.

केजरीवाल …! प्रेसेंट सर

आम आदमी चाहे तो बड़े बड़ों को घुटने टेकने पर मजबूर कर सकता है. किसी को फर्श से अर्श तो किसी को अर्श से फर्श तक पहुंचा सकता है. उसकी ताकत का अंदाजा लगाना हो तो इसे कपिल मिश्रा के जरिए समझा जा सकता है, जिन्होंने सही मायने में आम आदमी की ताकत का अहसास मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को करा दिया है. अरविंद केजरीवाल दिल्ली विधानसभा में उपस्थिति देने को मजबूर हो गए. ऐसा उन्होंने तब किया जब कपिल मिश्रा ने सोमवार को हाइकोर्ट में उनके खिलाफ एक जनहित याचिका दाखिल की.

कपिल मिश्रा ने जनहित याचिका दायर करते हुए ये मांग की कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को विधानसभा के सभी सत्र में उपस्थित रहने का निर्देश दिया जाए. साथ ही विधायकों के लिए 75 प्रतिशत उपस्थिति को अनिवार्य बनाया जाए. काम नहीं तो वेतन नहीं का फॉर्मूला विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री पर लागू किया जाए. अगर 50 फीसदी से कम उपस्थिति हो तो वेतन काटा जाए.

दिल्ली हाइकोर्ट में दाखिल इस जनहित याचिका पर मंगलवार को सुनवाई होनी है. मगर, इससे पहले कपिल मिश्रा ने सार्वजनिक तौर पर जो बातें कहीं उसने लोगों की आंखें खोल दी हैं.

आम आदमी पार्टी के बागी विधायक कपिल मिश्रा पत्रकारों से बात करते हुए कहते हैं, ‘दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए बुलाए गए विशेष सत्र में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक दिन भी नहीं आए. सीलिंग पर चर्चा के लिए विशेष सत्र हुआ, जिसमें चार में सिर्फ एक दिन मुख्यमंत्री केजरीवाल उपस्थित रहे. बजट सत्र 16 दिन चला जिसमें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल केवल तीन दिन ही उपस्थित रह सके.’

उन्होंने आगे कहा, ‘तीन साल में प्रश्न काल के दौरान एक दिन भी मुख्यमंत्री उपस्थित नहीं रहे. मुख्यमंत्री के तौर पर अरविंद केजरीवाल ने आज तक एक सवाल का भी जवाब सदन में नहीं दिया. पिछले एक साल के दौरान सदन की कुल 27 बैठकों में केजरीवाल ने सिर्फ 5 बैठकों में शिरकत की है.’

कपिल मिश्रा ने वाकई ये चौंकाने वाले आंकड़े सामने रखें हैं. ये न सिर्फ लोकतंत्र का मजाक उड़ा रहे हैं बल्कि आंकड़े बता रहे हैं कि किसी भी सदन में किसी पार्टी को इतना बहुमत नहीं दिया जाए कि उसके लिए सदन ही बेमतलब हो जाए. मुख्यमंत्री सदन में आएं, न आएं या फिर प्रश्नकाल में मौजूद रहें या न रहें इस पर आपत्ति करने वाला ही कोई न रह जाए. कपिल मिश्रा की मानें तो दिल्ली विधानसभा में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की उपस्थिति 10 प्रतिशत से भी कम रही है.

सवाल ये है कि आम आदमी पार्टी के नेताओं को कपिल मिश्रा के सवाल क्यों नागवार लग रहे हैं? क्या आम आदमी पार्टी के नेता जो आंदोलन से पैदा होने का और लोकतांत्रिक होने का दावा करते हैं उन्हें ये मुद्दे अलोकतांत्रिक लगते हैं? क्या उन्हें अपनी सरकार के भीतर, अपनी पार्टी के भीतर लोकतंत्र को जिंदा रखने वाली चिंता को उठाने या जताने का अधिकार नहीं है? या आम से खास बने पार्टी नेताओं की आवाज सत्ता सुख में कहीं दब गई हैं.

कपिल मिश्रा के जनहित याचिका दायर करने की तारीख 11 जून रही. इससे पहले उन्होंने सारे सवालों को ट्वीट और मीडिया के माध्यम से देश के सामने रख दिया था. अदालत चाहे इस पर जो फैसला सुनाए लेकिन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को इन सवालों की अहमियत समझ में आ गई है. वे 11 जून को सदन में पहुंच गए.

ऐसा कर के कपिल मिश्रा ने सूचना के महत्व को स्थापित किया है, सूचना के इस्तेमाल का रास्ता दिखाया है, आम आदमी की अहमियत को नए सिरे से स्थापित किया है. कहने की जरूरत नहीं कि आम आदमी के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाली पार्टी के मुंह पर उन्होंने तथ्यों का उल्टा तमाचा जड़ा है.