देश में औसतन एक हजार लोगों पर 1.7 नर्स कर रहीं काम
नई दिल्ली/त्रिवेंद्रम/इंदौर/जयपुर.देश में नर्सों की स्थिति बेहद खराब है। इन्हें न्यूनतम 20 हजार रुपए प्रतिमाह भी नहीं दिया जा रहा है। जबकि, ये करीब 10 से ज्यादा तरह की गंभीर संक्रामक बीमारियों के बीच घिरकर मरीजों की सेवा कर रही हैं। बीते सप्ताह केरल में निपाह वायरस के मरीजों का इलाज करते समय नर्स लिनी पुतुसेरी की मौत इसका उदाहरण है। यूनाइटेड नर्सेज एसोसिएशन के केरल के स्टेट जनरल सेक्रेटरी सुजानापाल बताते हैं कि प्राइवेट अस्पतालों में नर्सों की सैलरी 8 हजार रुपए तक है। ये इन्हें इंसान नहीं मानते हैं। नर्सों से दबाव देकर 12-15 घंटे नौकरी करवाई जाती है। हालात इतने खराब हैं कि कुछ लोगों ने अब अपना करिअर तक छोड़ दिया है।
- दिल्ली नर्सेज फेडरेशन के महासचिव एलडी रामचंदानी का कहना है कि देश में एक हजार की आबादी पर 1.7 नर्स काम कर रही हैं। जबकि, वैश्विक औसत प्रति हजार 2.5 नर्स का है। अपनी मांगों के लिए देशभर में नर्सेज आंदोलन कर रही हैं, लेकिन न तो कोई राज्य सरकार और न ही केन्द्र सरकार इस ओर ध्यान दे रही है।
निजी अस्पताल से सरकारी या बड़े कॉर्पोरेट अस्पताल जाना मजबूरी
- ऑल इंडिया गवर्नमेंट नर्सेज फेडरेशन की महासचिव जीके खुराना का कहना है कि निजी अस्पताल में नर्सों का बुरा हाल है। यहां महीने में 10 से 15 हजार रुपए नर्सेज को दिया जाता है।
- खुराना का कहना है कि छोटे शहरों में तो हालात इससे भी बदतर हैं। यही कारण है कि नर्सें निजी अस्पतालों में दो से तीन साल का अनुभव लेकर सरकारी या बड़े कॉर्पोरेट अस्पताल में चली जाती हैं। सरकारी अस्पतालों में शुरुआती दौर में नर्स को करीब 45 हजार और रिटायरमेंट के समय नर्स की सैलरी करीब 90 हजार होती है।
सरकारी नर्सें भी 15 साल से रिस्क अलाउंस की कर रही हैं मांग
- वहीं दूसरी तरफ नर्सिंग फेडरेशन करीब 15 साल से सरकारी अस्पताल में तैनात नर्सों के लिए रिस्क अलाउंस की मांग कर रहा है, लेकिन इस पर भी अब तक सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं मिल पाया है। एक ओर देश में नर्सेज को बीएससी नर्सिंग के बाद स्पेशल कोर्स कराके कुछ दवाइयां लिखने का उन्हें अधिकार देने पर काम चल रहा है।
- वहीं दूसरी ओर वर्तमान में कार्यरत नर्सों द्वारा किए जा रहे काम को नाकाफी बताया जा रहा है। यही वजह है कि नर्सेज को अभी तक न तो सातवें वेतनमान का फायदा मिला है और न ही रिस्क अलाउंस।