पद्मश्री, पद्मविभूषण जसदेव सिंह नहीं रहे


87 बरस की उम्र में आवाज के जादूगर जसदेव सिंह ने ली आखिरी सांस


हॉकी वर्ल्ड कप विजय की वर्षगांठ थी. दिल्ली के शिवाजी स्टेडियम में एक समारोह रखा गया. इसमें जसदेव सिंह भी आए थे. तमाम औपचारिकताओं और एक प्रदर्शनी मैच के बीच जसदेव सिंह से उस जीत की यादें ताजा करने को कहा गया. मार्च का महीना था. जसदेव सिंह ने छोटा सा कागज निकाला. उस पर कुछ पॉइंट लिखे हुए थे. माइक हाथ में लिया. …और अगले 4-5 मिनट उनकी आवाज की खनक और रवानगी उस माहौल को जसदेवमय बना गई.

मैं जसदेव सिंह बोल रहा हूं… इस घोषणा के साथ ही रेडियो की आवाज बढ़ा दी जाती थी. लोग रेडियो के करीब आ जाते थे. उसके बाद बस, एक आवाज गूंजती थी. जसदेव सिंह की. 1975 के विश्व कप की उस दौर का कोई शख्स नहीं भूल सकता. यहां तक कि फाइनल में विजयी गोल करने वाले अशोक कुमार ने कुछ समय पहले कहा था कि जब हम लौटकर आए, तो वो कमेंट्री दोबारा सुनी. उन्होंने कहा, ‘मैं दिल से कहता हूं कि उस कमेंट्री का रोमांच मैं शब्दों में नहीं बता सकता.’

हॉकी के हर पास की रफ्तार जसदेव सिंह के मुंह से निकलते शब्द की रफ्तार से मुकाबला करते थे. ऐसा लगता था, जैसे वो एक भी लम्हा नहीं चूकना चाहते. ..और कमेंट्री को लेकर उनका लगाव ही था, जो वर्ल्ड कप के 30 बरस बाद भी वो कमेंट्री शब्द-दर-शब्द उन्हें याद थी.

दरअसल, महात्मा गांधी के अंतिम सफर की कमेंट्री से उनका कमेंट्री के साथ लगाव शुरू हुआ था. उनके शब्दों में 1962 के स्वतंत्रता दिवस पर जो शुरुआत की, तो फिर वो किसी भी स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस की आवाज बन गए. खासतौर पर गणतंत्र दिवस परेड की. माहौल बताना उनकी खासियत थी. उनकी कमेंट्री चिड़ियों के चहचहाने, सुहानी बयार, पेड़ों के झूमने से शुरू होती थी. यहां तक कि मजाक में कहा जाने लगा था कि जसदेव सिंह तो इनडोर स्टेडियम में चिड़ियों की आवाज सुना देते हैं.


Rajyavardhan Rathore

@Ra_THORe

It is with deep sadness that I note the demise of Sh Jasdev Singh, one of our finest commentators.

A veteran of @AkashvaniAIR & @DDNational, he covered 9 Olympics, 6 Asian Games & countless Independence Day & Republic Day broadcasts.

His demise is truly the end of an era.


शायद ही कोई ऐसा बड़ा इवेंट हो, जहां जसदेव सिंह की आवाज न गूंजी हो. जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी जैसे नेताओं की अंतिम यात्रा हो… खेलों के हर बड़े इवेंट के साथ जुड़ाव हो.. हर जगह जब भी कमेंट्री की बात आती, जसदेव सिंह का नाम पहले आता था. उन्हें फिल्म चक दे में कमेंटेटर के रोल के लिए भी बुलाया गया. लेकिन लिखी हुई लाइन के बजाय अपने हिसाब से बोलने पर वो अड़ गए, जिस वजह से उन्हें फिल्म में नहीं लिया गया.

एक समय के बाद उनमें कुछ कड़वाहट आने लगी. उन्हें लगने लगा कि उनका वो सम्मान नहीं हो रहा, जिसके वो हकदार थे. हालांकि सब जानते हैं कि पद्म भूषण, पद्म श्री, ओलिंपिक ऑर्डर.. ये सब उनके नाम हैं. लेकिन रिटायरमेंट के बाद हालात बदले. 1955 से कमेंट्री कर रहे जसदेव शायद कमेंट्री से अपने प्यार की वजह से इससे दूर नहीं होना चाहते थे. उन्हें स्टार स्पोर्ट्स में भी शुरुआती समय में सुनील गावस्कर के साथ मौका दिया गया. 2000 के सिडनी ओलिंपिक में उन्होंने ओपनिंग सेरेमनी की कमेंट्री की. लेकिन तब तक साफ होने लगा कि आवाज का जादू तो बरकरार है, लेकिन अब आंखों और आवाज का समन्वय गड़बड़ा रहा है. कुछ खिलाड़ियों को पहचानने में उन्हें समस्या होने लगी थी.

इसके बाद भी कई सालों तक वो कमेंट्री करते रहे. वो लगातार यह कहते रहे कि उनसे कमेंट्री करवाई जानी चाहिए. लेकिन जैसा कहा जाता है कि दिन किसी के लिए नहीं थमते. आज, 24 सितंबर 2018 को 87 साल की उम्र में जसदेव सिंह दुनिया छोड़ गए हैं. कमेंट्री का वो दौर खत्म हो गया है, जिसे उनकी आवाज ने पहचान दी थी.

आकाशवाणी के सबसे चर्चित नामों में एक देवकी नंदन पांडेय थे. समाचार पढ़ने के उनके तरीके ने उन्हें ख्याति दिलाई थी. उनके बारे में कहा जाता है कि एक बार इंदिरा गांधी से आकाशवाणी से लोग मिलने गए. सबने परिचय दिया. इंदिरा गांधी सिर नीचे किए कोई फाइल देख रही थीं. जब देवकी नंदन पांडेय ने अपना परिचय दिया तो इंदिरा जी ने सिर उठाया और कहा- अच्छा, आप हैं… 11 साल पहले 2007 में देवकी नंदन पांडेय का निधन हुआ था.

इसी तरह जसदेव सिंह को कमेंट्री की आवाज कहा जाता है. उनके लिए भी कहा जाता है कि 1975 के हॉकी वर्ल्ड कप फाइनल की कमेंट्री सुनने के लिए इंदिरा गांधी ने संसद की कार्यवाही रुकवा दी थी. यकीनन इसमें कोई शक नहीं कि जसदेव सिंह की आवाज गूंजती थी, तो ऐसा लगता था, मानो दुनिया थम जाए. सवाई माधोपुर में जन्मे जसदेव सिंह दिल्ली और जयपुर में रहते थे. जयपुर में अमर जवान ज्योति पर हर शाम उनकी आवाज गूंजा करती है. वो आवाज सिर्फ अमर जवान ज्योति नहीं, हर उस दिल मे हमेशा गूंजती रहेगी, जिसने उनकी कमेंट्री सुनी है. वो आवाज अमर है.

Two full time professions will now go hand in hand for Politicians

Courtsey: Bar & Bench :

The Supreme Court today ruled that Members of Parliament and Members of Legislative Assemblies (MPs and MLAs) cannot be barred from practicing law.

The Court made it clear that Rule 49 of the the Bar Council of India Rules is applicable only to full-time salaried employees, and does not cover legislators within its ambit.

The judgment was delivered by a Bench of Chief Justice Dipak Misra and Justices AM Khanwilkar and DY Chandrachud in a petition filed by advocate and BJP Spokesperson Ashwini Kumar Upadhyay.

Upadhyay had filed the petition praying that legislators be debarred from practicing as Advocates (for the period during which they are Members of Parliament or State Assembly), in the spirit of Part-VI of the Bar Council of India Rules.

Senior Advocates Kapil Sibal and Dr. AM Singhvi are Parliamentarians representing the Congress Party.

In the alternative, he had sought for a direction to quash Rule 49 of the Bar Council of India Rules as ultra vires the Constitution and its basic structure, and to permit all Public Servants to practice as Advocates.

The Bar Council of India (BCI) too had issued notice to MPs, MLAs and MLCs who continue to practice law, following Upadhyay’s submission that since the legislators are being paid salary by the government, they cannot be allowed to practice, as per the Advocates Act and BCI Rules.

Interestingly, the Central government through Attorney General KK Venugopalhad opposed the petition,  contending that a Member of Parliament (MP) is an elected representative, and is not a full-time employee of the Government of India, and hence cannot be stopped from practicing law.

“They are doing a public service in their capacity as an MP. You can’t stop a person from practising a profession. It is a fundamental right to carry on a profession”, Venugopal had argued.

Senior Counsel Shekhar Naphade had represented the petitioner.

Questionable verdict. They are treated as public servants in corruption cases against them. There can be conflict of interest when a law which is to be enacted is against the interest of their clients and they vote against it even if it is in public interest.

Advocate/ legal profession is fulltime profession. Public representative viz. M.P./ MLA are bound to duty serve public full time. They can not say that they will serve/ perform their duties for part time either way.
In both position full time duty is badly required. So they should be banned from practising. According  to me, SC must review its Judgment.

When they are urgently required, either at Court or for Public duties, they are not available.
Even there are all possibilities of conflict of timing while dicharging their duties.
MLA-MP are getting undue advantages in profession. They are softly treated in court and they are getting government briefs.

तो क्या अब दाग अच्छे हैं ????


  • अब कानून तोड़ने वालों को होगी कानून बनाने कि आज़ादी

  • 1581 जन प्रतिनिधि आपराधिक मामलों में संलिप्त

  • राजनेताओं पर 3045 आपराधिक मामले दर्ज


25 सितम्बर, सारिका, पुरनूर :

उच्चतम न्यायालय ने अपने हाथ बंधे होने का हवाला देते हुए कहा कि राजनैतिक पार्टियाँ ही अपने दागी नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकना चाहें तो रोक सकतीं हैं. इसके लिए नयायपालिका कि कुछ सीमाएं हैं इस लिए विधानपालिका ही इस पर क़ानून बना सकती है.

यह बात नयायपालिका उस समय कह रही है जबकि चुनाव टिकट बाँटने में अब समय नहीं बचा है.

उच्चतम न्यायलय ने ओउप्चारिकता निभाते हुए राजनैतिक नैतिकता पर सिर्फ भाषण दिया और कहा कि राजनैतिक अप्रधिकर्ण एक रिवाज बन गया है जो कि बहुत चिंता जनक है.

राज्य इस राजनैतिक आपराधिक व्यवस्था का शिकार न हों इसके लिए राजनैतिक पार्टियाँ ही तय करें कि क्या वह अपने दागी छवि वाले नेताओं को चुनावी मैदान  में उतारना चाहतीं हैं या नहीं, साथ ही उन्होंने कहा कि राजनैतिक  पार्टियाँ अपे दागी नताओं को और उनके खिलाफ चल रहे मामलों का पूरा ब्यौरा अपनी website पर डालें.

यह फैसला सुप्रीम कोरट के ही २००२ के फैसले का एक्सटेंशन है.

आपको बता दें राजनेताओं के विरूद्ध 1581 आपराधिक मामले विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं. ज़यादा मामले महिलाओं के प्रति अपराध के हैं.

आमतोर पर इन मामलों में केवल 40% मामलों ही में सजा हो पाती है उसी में भी यदि सजा 2 वर्ष से कम है तो उसी समय जमानत भी मिल जाती है. अन्य आपराधिक मामलों में केवल 30% मामलों ही में सज़ा हो पाती है. ऐसी स्थिति में न्याय पालिका कैसे सोच सकती है कि देश को स्वास्थ्य विधानपालिका मिल सकती है.

न्यायपालिका के 5 न्यायाधीशों कि बेंच ने फैसला लिया कि आरोप तय होने पर चुनाव लड़ने पर रोक लगाना सही नहीं.

आपको बता दें अब तक दो साल से अधिक कि सज़ा होने पर ही चुनाव लड़ने पर रोक का प्रावधान था, इसके अतिरिक्त कुछ ख़ास किस्म के आपराधिक मामलों में दो वर्ष से कम कि सजायाफ्ता नेताओं पर भी रोक लगाए जाने का प्रावधान था.

अब सवाल यह है कि बहुत से सामजिक मामलों में स्वयं संज्ञान लेने और पुराणी परम्पराओं को तोड़ने वाले बड़े फैसले सुनाने वाली न्यायपालिका के हाथ इन मामलों में कैसे बंध जाते हैं. पाने द्वारा ही अपराधी घोषित करने के बावजूद देश को आपराधि के हाथ सोंप देना और अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना कहाँ तक तर्कसंगत है?  अपराधी राजनीतिज्ञों के मामलों में अपने बंधे हाथों का हवाला देते हुए न्यायलय ने गेंद संसद के पाले में दाल दी. अब देखना यह है कि संसद इस मामले में क्या करती है, क्योंकि कुछ राज्यों में तो चुनाव आचार संहिता लागो होने वाली है. ऐसे में तो कोई अध्यादेश भी जारी नहीं किया जा सकता है. सबसे बड़ी बात यदि राजनैतिक दल चाहते तो नौबत यहाँ तक आती ही क्यों? उससे भी ऊपर राजनैतिक दल स्वच्छ और स्वास्थ्य छवि वाले नेता कहाँ से लाय्न्गी.

यह मसला विधान पालिके में फैंकने कि बजाय न्यायालय ने अपने विवेक से फैसला देता तो सर्वदा मानी होता क्योंकि क़ानून कि नज़र में अपराधी अब देश कि बागडोर संभालेंगे.

संविधान सरंक्षक के बंधे हाथ हज़म नहीं हो रहे.

Due to bad weather flights to various stations were departed delayed

 

Due to bad weather at chandigarh on dtd 24 th sept 2018, following flights were departed delayed form Chandigarh Airport:-

1. G8 382 departed delayed by 5 hrs

2. G8 913 departed delayed by 01 Hrs

3. UK 831 departed delayed by 42 mins

4. 9i 831/832 Departed delayed by 36Min.

5. AI621/813 departed delayed 3 hrs 26 min

6. AI463 / 464 Departed delayed 2 hrs 05 min.

7. IX188 / 187 departed delayed by 3 hrs 6 min.

8. AI814 / 622 departed delayed by 2 hrs 41 min.

9. 9I 807/808 cancelled for today

10 I5 1826/1825 departed delayed by 3 hrs

11. 6e 842 cancelled for today.

12. 6e 376 Departed delayed 05 hrs.

13 6e 491 Departed delayed by 04 hrs

14. SG 2831/2834 cancelled for today

15. 9w 641/648 departed delayed by 30 min

16. 9w 665/197 departed delayed by 30 min

17. 9w 735/3523 departed delayed by 1 hrs 30 min

18. 9w 652 departed delayed by 40 min

19. 9w 646 departed delayed by 10 min

20. 9w 652 departed delayed by 40 min

21. 9w 646 departed delayed by 10 min

23. 9w 642 departed delayed by 35 min

24. 9w 430 departed delayed by 4 hrs

25. 9w 158 departed delayed by 1hrs 15 min

26. 9w 439 departed delayed by 30 min

27. 9w 626 departed delayed by 3 hrs

28. 9w 664 departed delayed by 35 min

Quran prevails over constitution: Siddiqullah Chowdhury

Siddiqullah-Chowdhury


Siddiqullah Chowdhury, a Minister in West Bengal government, took the protest against the Centre’s ordinance on triple talaq to another level by saying that the Constitution is subservient to the Quran.


Siddiqullah Chowdhury, a Minister in West Bengal government, took the protest against the Centre’s ordinance on triple talaq to another level by saying that the Constitution is subservient to the Quran.

Chowdhury is the Minister of Mass Education and Library in the government led by Chief Minister Mamata Banerjee. He is also the state president of the Jamiat Ulema-e-Hind.

According to a report in The Indian Express, Chowdhury said that the Quran will prevail over the Constitution if any constitutional provision or law contradicts the Quran.

“For us, our holy scripture, the Quran Sharif, is supreme and if any constitutional provision or any law contradicts the Quran, then our scripture will prevail and not the law or Constitution,” Chowdhury was quoted as saying by The Indian Express.

Interestingly, Chowdhury accused the Bharatiya Janata Party (BJP) of playing the religion card and toying with the Constitution.

Referring to the Ordinance introduced on Wednesday that made the practice of triple talaq a penal offence, Chowdhury said that it will “have no effect on Muslims”.

“No one will adhere to it, but will follow the religion and the holy book,” he said.

Drawing attention to the rising cases of violence against women, he said that the Centre is doing nothing to protect the women but “are hurting the sentiments of Muslims for cheap vote bank politics”.

This is not the first time that the controversial minister has lashed out against the triple talaq. In August 2017, he had vehemently countered the Supreme Court’s ruling banning the triple talaq calling the decision “unconstitutional”.

According to reports, he had then said that the ban on triple talaq is “a design of the BJP government”. At the time he had defended his party stating that his views are personal.

Chowdhury is not the only Muslim leader to oppose the triple talaq ordinance.

All India Majlis-E-Ittehadul Muslimeen (AIMIM) chief Asaduddin Owaisi had protested the passing of the Ordinance calling it “unconstitutional”.

Owaisi, a Lok Sabha MP from Telangana’s Hyderabad, said on Wednesday that All India Muslim Personal Law Board (AIMPLB) and women organisations should challenge the ordinance in the Supreme Court.

“This ordinance is against the Muslim women. This ordinance will not provide justice to the Muslim women,” Owaisi quoted.

“In Islam, marriage is a civil contract and bringing penal provisions in it is wrong,” said Owaisi

Triple Talaq now a penal offence, Ordinance cleared


The ‘Muslim Women Protection of Rights on Marriage Bill’ was cleared by the Lok Sabha and is pending in the Rajya Sabha where the government lacks numbers


The Union Cabinet on Wednesday approved an ordinance making triple talaq a penal offence. Law Minister Ravi Shankar Prasad gave the information to the media after the cabinet meeting.

The ‘Muslim Women Protection of Rights on Marriage Bill’ was cleared by the Lok Sabha and is pending in the Rajya Sabha where the government lacks numbers.

“I have said this before, the issue of triple talaq has nothing to do with faith, mode of worship or religion. It is a pure issue of gender justice, gender dignity and gender equality,” Prasad told reporters after the meet.

“Twenty two countries regulated triple talaq, but gender justice was given complete go-by in India due to vote bank politics. Such a barbaric inhuman, triple talaq curse was not allowed to be ended by a Parliamentary law because of ambiguity and vacillation of the Congress party for pure vote bank politics,” he added.

The minister urged the leaders of other parties to help in passage of triple talaq bill in the Rajya Sabha.

“Appeal to Sonia Gandhi, Mayawati and Mamata Banerjee to help in passage of triple talaq bill in name of gender justice. There was urgency, compelling necessity for ordinance on triple talaq as practice was continuing unabated,” he said.

In 2017, the Supreme Court had banned the practice, in which Muslim men could get instant divorce by saying the word “talaq” thrice.

पेट्रोल 55 और डीजल 50 रुपए लीटर मिलेगा: गडकरी


केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘हमारा पेट्रोलियम मंत्रालय एथेनॉल बनाने के लिए पांच प्लांट लगा रहा है, एथेनॉल लकड़ी और नगर निगम के कचरे से बनाया जाएगा’


पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों के बीच सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने बायोफ्यूल के उपयोग का तरीका सुझाया है. गडकरी ने कहा, मैं 15 वर्षों से कह रहा हूं कि किसान और आदिवासी बायोफ्यूल बना सकते हैं. जिससे हवाई जहाज तक उड़ सकता है. हमारी नई तकनीक से बनी गाड़ियां किसानों और आदिवासियों द्वारा बनाए गए एथेनॉल से चल सकती हैं.

इसी के साथ उन्होंने पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दामों का भी जिक्र किया. सोमवार को एक सभा को संबोधित करते हुए नितिन गडकरी ने कहा, हम पेट्रोल और डीजल के आयात पर 8 लाख करोड़ रुपए खर्च करते हैं. पेट्रोल की कीमत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. डॉलर की तुलना में रुपए की कीमत घट रही है.’

View image on Twitter

ANI

एथेनॉल है पेट्रोल-डीजल का विकल्प

केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘हमारा पेट्रोलियम मंत्रालय एथेनॉल बनाने के लिए पांच प्लांट लगा रहा है. एथेनॉल लकड़ी और नगर निगम के कचरे से बनाया जाएगा. इसके बाद डीजल की कीमत 50 रुपए प्रति लीटर और पेट्रोल का विकल्प 55 रुपए प्रति लीटर पर उपलब्ध होगा.’

दरअसल पिछले कुछ दिनों से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लगातार वृद्धि हुई है. और फिलहाल पेट्रोल और डीजल के दाम अब तक के सबसे उच्चतम कीमत पर पहुंच गए हैं. इसके चलते सोमवार को कांग्रेस ने बंद का आयोजन भी किया था.

जहां नम्रता, सत्य, लज्जा और धर्म हैं वहीं कृष्ण हैं, जहां कृष्ण हैं वहीं विजय है


धार्मिक विश्वासों को छोड़ दें तो एक किरदार के रूप में कृष्ण के जीवन के तमाम पहलू बेहद रोचक हैं


जनमाष्टमी यानी कृष्ण के जन्म का उत्सव. कृष्ण के जन्म से दो बिल्कुल कड़ियां अलग जुड़ती हैं. एक ओर मथुरा की काल कोठरी है जहां वासुदेव और देवकी जेल में अपनी आठवीं संतान की निश्चित हत्या का इंतजार कर रहे हैं. दूसरी तरफ गोकुल में बच्चे के पैदा होने की खुशियां हैं. कृष्ण के जन्म का ये विरोधाभास उनके जीवन में हर जगह दिखता है. धार्मिक विश्वासों को छोड़ दें तो एक किरदार के रूप में कृष्ण के जीवन के तमाम पहलू बेहद रोचक हैं. और समय-समय पर उनके बारे में जो नई कहानियां गढ़ी गईं उन्हें समझना भी किसी समाजशास्त्रीय अध्ययन से कम नहीं है.

अब देखिए वृंदावन कृष्ण की जगह है, लेकिन वृंदावन में रहना है तो ‘राधे-राधे’ कहना है. ऐसा नहीं हो सकता कि आप अयोध्या में रहकर सिया-सिया, लुंबिनी में यशोधरा-यशोधरा या ऐसा कुछ और कहें. यह कृष्ण के ही साथ संभव है. कान्हा, मुरली और माखन के कथाओं में कृष्ण का बचपन बेहद सुहावना लगता है. लेकिन कृष्ण का बचपन एक ऐसे शख्स का बचपन है, जिसके पैदा होने से पहले ही उसके पिता ने उसकी हत्या की जिम्मेदारी ले ली थी. वो एक राज्य की गद्दी का दावेदार हो सकता था तो उसको मारने के लिए हर तरह की कोशिशें की गईं. बचपन के इन झटकों के खत्म होते-होते पता चलता है कि जिस परिवार और परिवेश के साथ वो रह रहा था वो सब उसका था ही नहीं.

कहानियां यहीं खत्म नहीं होतीं. मथुरा के कृष्ण के सामने अलग चुनौतियां दिखती हैं. जिस राज सिंहासन को वो कंस से खाली कराते हैं उसे संभालने में तमाम मुश्किलें आती हैं. अंत में उन्हें मथुरा छोड़नी ही पड़ती है. महाभारत युद्ध में एक तरफ वे खुद होते हैं दूसरी ओर उनकी सेना होती है. वो तमाम योद्धा जिनके साथ उन्होंने कई तैयारियां की होंगी, युद्ध जीते होंगे. अब अगर कृष्ण को जीतना है तो उनकी सेना को मरना होगा. इसीलिए महाभारत के कथानक में कृष्ण जब अर्जुन को ‘मैं ही मारता हूं, मैं ही मरता हूं’ कहते हैं तो खुद इसे जी रहे होते हैं.

महाभारत से इस्कॉन तक कृष्ण

अलग-अलग काल के साहित्य और पुराणों में कृष्ण के कई अलग रूप हैं. मसलन महाभारत में कृष्ण का जिक्र आज लोकप्रिय कृष्ण की छवि से बिलकुल नहीं मिलता. भारतीय परंपरा के सबसे बड़े महाकाव्य में कृष्ण के साथ राधा का वर्णन ही नहीं है. वेदव्यास के साथ-साथ श्रीमदभागवत् में भी राधा-कृष्ण की लीलाओं का कोई वर्णन नहीं है. राधा का विस्तृत वर्णन सबसे पहले ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है. इसके अलावा पद्म पुराण में भी राधा का जिक्र है. राधा के शुरुआती वर्णनों में कई असमानताएं भी हैं. कहीं दोनों की उम्र में बहुत अंतर है, कहीं दोनों हमउम्र हैं.

इसके बाद मैथिल कोकिल कहे जाने वाले विद्यापति के पदों में राधा आती हैं. यह राधा विरह की ‘आग’ में जल रही हैं. 13वीं 14वीं शताब्दी के विद्यापति राधा-कान्हा के प्रेम के बहाने, शृंगार और काम की तमाम बातें कह जाते हैं. इसके कुछ ही समय बाद बंगाल से चैतन्य महाप्रभु कृष्ण की भक्ति में लीन होकर ‘राधे-राधे’ का स्मरण शुरू करते हैं. यह वही समय था जब भारत में सूफी संप्रदाय बढ़ रहा था, जिसमें ईश्वर के साथ प्रेमी-प्रेमिका का संबंध होता है. चैतन्य महाप्रभु के साथ जो हरे कृष्ण वाला नया भक्ति आंदोलन चला उसने भक्ति को एक नया आयाम दिया जहां पूजा-पाठ साधना से उत्सव में बदल गया.

अब देखिए बात कृष्ण की करनी है और जिक्र लगातार राधा का हो रहा है. राधा से शुरू किए बिना कृष्ण की बात करना बहुत मुश्किल है. वापस कृष्ण पर आते हैं. भक्तिकाल में कृष्ण का जिक्र उनकी बाल लीलाओं तक ही सीमित है. कृष्ण ब्रज छोड़ कर जाते हैं तो सूरदास और उनके साथ बाकी सभी कवि भी ब्रज में ठहर जाते हैं. उसके आगे की कहानी वो नहीं सुनाते हैं. भक्तिकाल के कृष्ण ही सनातन परंपरा में पहली बार ईश्वर को मानवीय चेहरा देते हैं. भक्तिकाल के बाद रीतिकाल आता है और कवियों का ध्यान कृष्ण की लीलाओं से गोपियों और राधा पर ज्यादा जाने लगता है. बिहारी भी जब श्रृद्धा के साथ सतसई शुरू करते हैं, तो ‘मेरी भव बाधा हरो राधा नागरि सोए’ ही कहते हैं. इन सबके बाद 60 के दशक में इस्कॉन जैसा मूवमेंट आता है जो उस समय दुनिया भर में फैल रहे हिप्पी मूवमेंट के साथ मिलकर ‘हरे कृष्णा’ मूवमेंट बनाता है.

ईश्वर का भारतीय रूप हैं कृष्ण

कृष्ण को संपूर्ण अवतार कहा जाता है. गीता में वे खुद को योगेश्वर भी कहते हैं. सही मायनों में ये कृष्ण हैं जो ईश्वर के भारतीय चेहरे का प्रतीक बनते हैं. अगर कथाओं के जरिए बात कहें तो वे छोटी सी उम्र में इंद्र की सत्ता और शोषण के खिलाफ आवाज उठाते हैं. जीवन भर युद्ध की कठोरता और संघर्षों के बावजूद भी उनके पास मुरली और संगीत की सराहना का समय है. वहीं वह प्रेम को पाकर भी प्रेम को तरसते रहते हैं. यही कारण है कि योगेश्वर कृष्ण की ‘लीलाओं’ के बहाने मध्यकाल में लेखकों ने तमाम तरह की कुंठाओं को भी छंद में पिरोकर लिखा है. उनका यह अनेकता में एकता वाला रूप है जिसके चलते कृष्ण को हम बतौर ईश्वर अलग तरह से अपनाते हैं.

तमाम जटिलताएं

इसमें कोई दो राय नहीं कि कृष्ण की लीलाओं के नाम पर बहुत सी अतिशयोक्तियां कहीं गईं हैं. बहुत कुछ ऐसा कहा गया है जो, ‘आप करें तो रास लीला…’ जैसे मुहावरे गढ़ने का मौका देता है. लेकिन इन कथाओं की मिलावटों को हटा देने पर जो निकल कर आता है वो चरित्र अपने आप में खास है. अगर किसी बात को मानें और किसी को न मानें को समझने में कठिनाई हो तो एक काम करिए, कथानकों को जमीन पर जांचिए. उदाहरण के लिए वृंदावन और मथुरा में कुछ मिनट पैदल चलने जितनी दूरी है. मथुरा और गोकुल या वृंदावन और बरसाने का सफर भी 2-3 घंटे पैदल चलकर पूरा किया जा सकता है. इस कसौटी पर कसेंगे तो समझ जाएंगे कि कौन-कौन सी विरह की कथाएं कवियों की कल्पना का हिस्सा हैं.

कृष्ण के जीवन में बहुत सारे रंग हैं. कुछ बहुत बाद में जोड़े गए प्रसंग हैं जिन्हें सही मायनों में धार्मिक-सामाजिक हर तरह के परिवेश से हटा दिया जाना चाहिए. राधा के वर्णन जैसी कुछ ऐसी चीज़ें हैं जो महाभारत और भागवत में नहीं मिलती मगर आज कृष्ण का वर्णन उनके बिना संभव नहीं है. इन सबके बाद भगवद् गीता है जो सनातन धर्म के एक मात्र और संपूर्ण कलाओं वाले अवतार की कही बात. जिसमें वो अपनी तुलना तमाम प्रतीकों से करते हुए खुद को पीपल, नारद कपिल मुनि जैसा बताते हैं. आज जब तमाम चीजों की रक्षा के नाम पर हत्याओं और अराजकता एक सामान्य अवधारणा बनती जा रही है. निर्लज्जता, झूठ और तमाम तरह की हिंसा को कथित धर्म की रक्षा के नाम पर फैलाया जा रहा है, ऐसे में कृष्ण के लिए अर्जुन का कहा गया श्लोक याद रखना चाहिए यतः सत्यं यतो धर्मो यतो ह्लीराजर्वं यतः. ततो भवति गोविंदो यतः कृष्णोस्ततो जयः यानी जहां नम्रता, सत्य, लज्जा और धर्म हैं वहीं कृष्ण हैं, जहां कृष्ण हैं वहीं विजय है. अंतिम बात यही है कि कृष्ण होना सरस होना, क्षमाशील होना, नियमों की जगह परिस्थिति देख कर फैसले लेना और सबसे ज़रूरी, निरंकुशता के प्रतिपक्ष में रहना है.

श्री कृष्ण के नामकरण पर पधारे महर्षि गर्ग ने कुंडली विचार जो भविष्यवाणियाँ कीं वह अक्षरश: सत्य थीं

जगत के पालनहार का कृष्ण अवतार विधि का विधान था और वे स्वयं दुनिया का भाग्य लिखते हैं, उनके भाग्य को कोई नहीं पढ सकता। लेकिन जैसे ही मानव योनि में अवतार आया तो वे संसार के बंधन में पड़ जाता है और इस कारण उसे दुनिया के लोकाचार को भी निभाना पडता है। जन्म से मृत्यु तक सभी संस्कार करने पडते हैं।

इन्हीं लोकाचारों में श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर महर्षि गर्ग पधारे और उनका नामकरण संस्कार किया। उनका नाम कृष्ण निकाल कर उनके जीवन की अनेकों भविष्यवाणी ज्योतिष शास्त्र के अनुसार की थी जो अक्षरशः सही रही। इस आधार पर श्रीकृष्ण की कुंडली में ग्रह क्या बोलते हैं का यह संक्षिप्त विश्लेषण प्रस्तुत किया जा रहा है।

भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन रोहिणी नक्षत्र के संयोग में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया। सोलह कला सम्पूर्ण महान योगी श्रीकृष्ण का नामकरण व अन्नप्राशन संस्कार गर्ग ऋषि ने कुल गुरू की हैसियत से किया तथा कृष्ण के जीवन की सभी भविष्यवाणियां की जो अक्षरशः सही रहीं। भाद्रपद मास की इस बेला पर हम गर्ग ऋषि को प्रणाम करते हैं।

अष्टमी तिथिि की मध्य रात्रि में जन्मे कृष्ण का वृषभ लग्न में हुआ। चन्द्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में बैठे व गुरू, शनि, मंगल, बुध भी अपनी-अपनी उच्च राशियों में बैठे थे। सूर्य अपनी ही सिंह राशि में बैठे।

योग साधना, सिद्धि एवं विद्याओं की जानकारी के लिए जन्म जन्म कालीन ग्रह ही मुख्य रूप से निर्भर करते हैं। अनुकूल ग्रह योग के कारण ही कृष्ण योग, साधना व सिद्धि में श्रेष्ठ बने। गुरू अष्टमेश बनकर तृतीय स्थान पर उच्च राशि में बैठ गुप्त साधनाओं से सिद्धि प्राप्त की तथा पंचमेश बुध ने पंचम स्थान पर उच्च राशि कन्या में बैठ हर तरह की कला व तकनीकी को सीखा।

चन्द्रमा ने कला में निपुणता दी। मंगल ने गजब का साहस व निर्भिकता दी। शुक्र ने वैभवशाली व प्रेमी बनवाया। शनि ने शत्रुहन्ता बनाया व सुदर्शन चक्र धारण करवाया। सूर्य ने विश्व में कृष्ण का नाम प्रसिद्ध कर दिया।

जन्म के ग्रहों ने कृष्ण को श्रेष्ठ योगी, शासक, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, चमत्कारी योद्धा, प्रेमी, वैभवशाली बनाया। श्रीकृष्ण की कुंडली में पांच ग्रह चन्द्रमा, गुरू, बुध, मंगल और शनि अपनी उच्च राशि में बैठे तथा सूर्य व मंगल अपनी स्वराशि में हैं।

रोहिणी नक्षत्र में जन्म लेने वाला बुद्धि और विवेक का धनी होता है। यही चन्द्रमा का अति प्रिय नक्षत्र और चन्द्रमा की उपस्थिति व्यक्ति को जातक मे आकर्षण बढा देती है। ऐसे व्यक्ति सभी को प्रेम देते हैं और अन्य लोगों से प्रेम लेते हैं। श्रीकृष्ण को इस योग ने सबका प्रेमी बना दिया और वे भी सबसे प्रेम करते थे।

जन्म कुंडली का पांचवा स्थान विद्या, बुद्धि और विवेक तथा प्रेम, संतान, पूजा, उपासना व साधना की सिद्धि का होता है। यहां बुध ग्रह ने उच्च राशि में जमकर इन क्षेत्रों में कृष्ण को सफल बनाया तथा राहू के संयोग से बुध ग्रह ने परम्पराओं को तुड़वा ङाला और भारी कूटनीतिकज्ञ को धराशायी करवा डाला।

स्वगृही शुक्र ने उन्हें वैभवशाली बनाया तो वहां उच्च राशि में बैठे शनि ने जमकर शत्रुओं का संहार करवाया। भाग्य व धर्मस्थान में उच्च राशि में बैठे मंगल ने उनका भाग्य छोटी उम्र में ही बुलंदियों पर पहुंचा दिया। मारकेश व व्ययेश बने मंगल ने धर्म युद्ध कराकर व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन कराया।

अष्टमेश गुरू को मारकेश मंगल ने देख उनके पांव के अगूठे में वार करा पुनः बैकुणठ धाम पहुंचाया। अष्टमेश और मारकेश का यह षडाष्ठक योग बना हुआ है और मारकेश मंगल ग्रह को पांचवी दृष्टि से राहू देख रहा। यह सब ज्योतिष शास्त्र के ग्रह नक्षत्रों का आकलन मात्र है। सत्य क्या था यह तो परमात्मा श्रीकृष्ण ही बता सकते हैं।

Sudha Bhardwaj denies Maharashtra police’s claims, terms letter “concocted”, “fabricated”

Sudha-Bhardwaj


At a press conference in Mumbai on Friday, the Maharashtra Police said that Bharadwaj had written a letter to a certain “Comrade Prakash”.


Activist Sudha Bharadwaj, who was arrested along with four others on 28 August, rejected the Maharashtra Police’s accusation that the accused had “clear links” with Maoists. In a hand-written statement issued on 1 September, Bharadwaj, who is currently under house arrest, said the police had “totally concocted” a letter to implicate her.

“It is a totally concocted letter fabricated to criminalise me and other human rights lawyers, activists and organisations,” the letter read.

Bharadwaj’s statement was shared through her lawyer Vrinda Grover.

At a press conference in Mumbai on Friday, the Maharashtra Police said that Bharadwaj had written a letter to a certain “Comrade Prakash”. The police had also read out passages from seized letters allegedly establishing the links between the Naxals and those arrested.

Bharadwaj, a visiting professor of Law-Poverty and tribal rights at the National Law University (NLU), Delhi, said that the purported letter shown by the police is a “mixture of innocuous”.

She claimed a number of human rights lawyers, activists and organisations were deliberately named to cast a stigma over them, obstruct their work and incite hatred against them.

“I categorically state that I have never given Rs 50,000 to hold any programme in Moga. Nor do I know any Comrade Ankit who is in touch with Kashmiri separatists,” she wrote.

The activist, who is also the general secretary of People’s Union for Civil Liberties (PUCL) in Chhattisgarh, said that she knows Gautam Navlakha as “a senior and respected human rights activist whose name has been mentioned in a manner to criminalise and incite hatred against him”.

Navlakha is journalist and civil rights activist who is also involved with PUCL. He has also served as a convener for International People’s Tribunal for Human Rights and Justice in Kashmir. He was picked up by the Pune Police from New Delhi on the same day as the other four.

Early this week, the police raided the homes of activists and lawyers from five states – Varavara Roa in Hyderabad, Vernon Gonsalves and Arun Ferreira in Mumbai, Bharadwaj in Fariadabad and Navalakha in Delhi. All five were arrested.

Lawyers of the arrested activists slammed the Pune Police for trying to indulge in media trial by publicly sharing sensitive information that is part of investigation.

“What police has done today in the press conference is wrong. Even defence lawyers do not have access to these documents, which the police claim as evidence against accused persons. It is clear that the police is indulging in media trial to put pressure on the judiciary,” Rohan Nahar, lawyer for P Varavara Rao, was quoted as saying by Indian Express.

Vernon Gonsalves’ lawyer Tosif Shaikh, too, backed the “media trial” claim stating that the police does not have strong evidence to prove allegations.

On Friday, ADG (Law and Order), Maharashtra Police, Parambir Singh said at a press conference in Mumbai that the arrests were made only after “we were confident that clear links have been established”.

“Evidence clearly establishes their roles with Maoists,” he said adding that letters exchanged between the activists point to the plotting of a “Rajiv Gandhi-like” incident