अयोध्या गोलीकांड: तत्कालीन एसएचओ का दावा, ‘मौत का आंकड़ा कम दिखाने को दफनाई गईं कारसेवकों की लाशें’

साभार अर्श अग्रवाल के फकेबुक वाल से

जिस देश में देश द्रोहीयों, आतंकवादियों, दहशतगर्दों ज्धन्य अपराध करने वालों को मौत की सज़ा देने के बाद उचित संस्कार की परंपरा रही है वहीं तत्कालीन मुलायम सरकार ने कारसेवकों को उचित अंतिम संस्कार की बात तो दूर उनकी पहचान तक को खत्म कर दिया। हिन्दू कारसेवकों को उनकी पहचान के साथ दफना दिया गया। यह खुलासा एक निजी टीवी चैनल पर तत्कालीन एसएचओ बहादुर सिंह ने किया ।

अयोध्या गोलीकांड में कारसेवकों की मौत को लेकर आंकड़ों पर हमेशा संशय रहा है। हालांकि एक निजी टीवी चैनल से बातचीत में तत्कालीन एसएचओ और राम जन्मभूमि थाने के प्रभारी वीर बहादुर सिंह ने बताया है कि मौत का आंकड़ा कम दिखाने के लिए कई कारसेवकों की लाशों को दफनाया गया था।


अयोध्‍या गोलीकांड के बारे में एक टीवी चैनल ने बड़े खुलासे का दावा किया तत्कालीन एसएचओ ने बताया कि कारसेवकों के मौत का आंकड़ा ज्‍यादा उन्‍होंने कहा कि आंकड़े नहीं पता हैं, लेकिन काफी संख्या में लोग मारे गए थे

अयोध्या में 1990 में यूपी की मुलायम सिंह सरकार के दौरान कारसेवकों पर पुलिस की गोलीबारी के मामले में एक टीवी चैनल ने बड़े खुलासे का दावा किया है। चैनल ने अपने स्टिंग में एक तत्कालीन अधिकारी से बात की। रामजन्मभूमि थाने के तत्कालीन एसएचओ वीर बहादुर सिंह ने बताया कि कारसेवकों के मौत का जो आंकड़ा बताया गया था, उससे ज्यादा कारसेवकों की मौत हुई थी।
राम जन्मभूमि थाने के तत्कालीन एसएचओ वीर बहादुर सिंह ने इस टीवी चैनल से बातचीत में बताया, ‘घटना के बाद विदेश तक से पत्रकार आए थे। उन्हें हमने आठ लोगों की मौत और 42 लोगों के घायल होने का आंकड़ा बताया था। हमें सरकार को रिपोर्ट भी देनी थी तो हम तफ्तीश के लिए श्मशान घाट गए, वहां हमने पूछा कि कितनी लाशें हैं जो दफनाई जाती हैं और कितनी लाशों का दाह संस्कार किया गया है, तो उसने बताया कि 15 से 20 लाशें दफनाई गई हैं। हमने उसी आधार पर सरकार को अपना बयान दिया था। हालांकि हकीकत यही थी कि वे लाशें कारसेवकों की थीं। उस गोलीकांड में कई लोग मारे गए थे। आंकड़े तो नहीं पता हैं, लेकिन काफी संख्या में लोग मारे गए थे।’
टीवी चैनल के इस सवाल पर कि कई लोग अपनों के बारे में पूछते हुए अयोध्या तक आए होंगे, उन्हें क्या बताया जाता था। पूर्व एसएचओ ने बताया, ‘हम उन्हें बताते थे कि ये लाशें (जिन्हें दफनाया गया है) उनके परिवार के सदस्यों की नहीं हैं।’
मुलायम सिंह यादव भी कई मौकों पर इस गोलीकांड को सही ठहराते रहे हैं। उन्होंने हमेशा कहा है, ‘हमने देश की एकता के लिए गोली चलवाई थी। आज जो देश की एकता है उसी वजह से है। हमें इसके लिए और भी लोगों को मारना पड़ता तो सुरक्षाबल मारते।’
क्या हुआ था 30 अक्टूबर 1990 के दिन?
बता दें कि वीएचपी के आह्वान पर साल 1990 के अक्टूबर महीने में लाखों कारसेवक अयोध्या में इकट्ठा हुए थे। उद्देश्य था कि विवादित स्थल पर मस्जिद को तोड़कर मंदिर का निर्माण किया जाए। जब हजारों की संख्या में लोग विवादित स्थल के पास की एक गली में इकट्ठा हुए उसी वक्त सामने से पुलिस और सुरक्षाबलों ने गोली चला दी। इसमें कई लोग गोली से तो कई लोग भगदड़ से मारे गए और घायल हुए। हालांकि मौतों के आंकड़े कभी स्पष्ट नहीं हुए, ऐसे में तत्कालीन अधिकारी का यह खुलासा हैरान करने वाला है।

पश्चिम बंगाल अपना ध्यान रखने में सक्षम है. उसे किसी बाहरी की जरूरत नहीं है.’: ममता

पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने शनिवार को पीएम मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी और राजनाथ सिंह को पश्चिम बंगाल जीतने का सपना देखने से पहले अपनी-अपनी सीट के बारे में चिंता करना चाहिए.

ममता ने कहा कि बीजेपी के ये नेता बाहरी हैं और पश्चिम बंगाल से नहीं हैं. उन्हें राज्य की संस्कृति और परंपरा के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं है. पश्चिम बंगाल में मोदी और सिंह ने अलग-अलग रैलियों में शनिवार को ममता पर निशाना साधा, जिसके बाद तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने उन पर यह तीखा हमला बोला है.

ममता ने कहा, ‘पश्चिम बंगाल में उनका (बीजेपी) कोई नेता नहीं है. वे लोग बाहरी लोगों को बुला रहे हैं, जिन्हें राज्य की संस्कृति और परंपरा के बारे में कोई जानकारी नहीं है. वे लोग बाहरी हैं, जो चुनाव से पहले आते हैं और फिर चले जाते हैं. उनका पश्चिम बंगाल के लोगों से कोई संबंध नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘क्या मोदी वाराणसी से जीत पाएंगे? मोदी को अपनी खुद की सीट के बारे में सोचना चाहिए. योगी आदित्यनाथ से अपने राज्य (उत्तर प्रदेश) को देखने के लिए कहें. पश्चिम बंगाल अपना ध्यान रखने में सक्षम है. उसे किसी बाहरी की जरूरत नहीं है.’

‘केरल में भारतीय जनता पार्टी के लिए एक सियासी माहौल बन चुका है.’: श्रीधरन पिल्लई

एक पखवाड़े में दो बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केरल की यात्रा की. इस दौरान उन्होंने केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण परियोजनाओं का उद्घाटन किया. साथ ही पार्टी के कार्यक्रमों को संबोधित करते हुए राज्य बीजेपी इकाई में लोकसभा चुनावों की तैयारियों के लिए जोश भी भरा. वहीं केरल के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष पीएस श्रीधरन पिल्लई का कहना है कि पार्टी इस बार के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करेगी.

श्रीधरन पिल्लई ने कहा ‘केरल में भारतीय जनता पार्टी के लिए एक सियासी माहौल बन चुका है.’ उन्होंने कहा ‘एनडीए के साथ मिलकर बीजेपी केरल की सभी 20 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली है. इस बार हमें ज्यादा सीटें जीतने की उम्मीद है.’

उन्होंने कहा ‘प्रमुख सहयोगी, भारत धर्म जन सेना (BDJS) के साथ विचार-विमर्श हो रहा है और इस महीने के आखिर तक 20 संसदीय सीटों में से प्रत्येक के लिए अंतिम उम्मीदवार सूची की उम्मीद की जा रही है.’ BDJS के साथ समीकरण को लेकर उनका कहना है ‘बीडीजेएस के साथ आपसी चर्चा की है और हम एक सहमति पर पहुंच गए हैं. लेकिन सीटों की संख्या का खुलासा करने के लिए मुझे केंद्रीय कार्यालय से पुष्टि करनी होगी.’

वहीं सबरीमाला विवाद पर उनका कहना है ‘सबरीमाला में हम भक्तों के हितों की रक्षा करना चाहते हैं. वर्तमान सरकार सबरीमाला की अवधारणा को विफल करना चाहती थी.’

यूपी, बिहार के बाद आंध्र भी कांग्रेस मुक्त गठबंधन

चंद्रबाब नायडू ने गुरुवार को वाईएसआर कांग्रेस एवं बीजेपी पर निशाना साधा और आरोप लगाते हुए कहा, ‘ये सभी (पार्टियां) केवल षड्यंत्र रचना जानती हैं.’

अमरावती: कांग्रेस द्वारा आंध्र प्रदेश में चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा करने के एक दिन बाद राज्य के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने गुरुवार को संकेत दिया कि उनकी पार्टी टीडीपी का भी राज्य में राष्ट्रीय पार्टी के साथ कोई चुनावी गठबंधन नहीं होगा. नायडू ने एक टेलीकान्फ्रेंसिंग के दौरान टीडीपी नेताओं से कहा कि राज्यों में गठबंधन संबंधित दलों की इच्छा पर आधारित होगा. उन्होंने कहा, ‘हम राष्ट्रीय स्तर पर साथ मिलकर बीजेपी के खिलाफ लड़ रहे हैं. हम देश बचाओ, लोकतंत्र बचाओ, एकजुट भारत के नारों के साथ एक साझा मंच पर साथ आये हैं.’ 

‘संविधान की रक्षा 23 गैर बीजेपी दलों का एजेंडा है’ 
नायडू ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस का पश्चिम बंगाल में कोई चुनावी गठबंधन नहीं है. उन्होंने कहा, ‘इसके बावजूद कांग्रेस नेता कोलकाता में विपक्षी रैली में शामिल हुए. हम सभी बेंगलुरू और कोलकाता में एक मंच पर एक साथ आये हैं. संविधान की रक्षा 23 गैर बीजेपी दलों का एजेंडा है.’ टीडीपी प्रमुख ने गुरुवार को वाईएसआर कांग्रेस एवं बीजेपी पर निशाना साधा और आरोप लगाते हुए कहा, ‘ये सभी (पार्टियां) केवल षड्यंत्र रचना जानती हैं.’

कांग्रेस महासचिव एवं केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने कहा था कि कांग्रेस पार्टी राज्य की सभी 175 विधानसभा सीटों और 25 लोकसभा सीटों पर चुनाव अकेले लड़ेगी. चांडी ने कहा, ‘टीडीपी ने हमारे साथ केवल राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन किया है, इसलिए हमारा राज्य में (उसके साथ) कोई लेनदेन नहीं होगा.’ 

बिहार में भी कांग्रेस मुक्त गठबंधन की तैयारी

  • आरजेडी के 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण के विरोध के कारण कांग्रेस भी आरजेडी से दूर होकर देश में यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि आरजेडी ने सवर्ण आरक्षण का विरोध किया था, इस कारण अलग हुए
  • कांग्रेस कम से कम 16 सीटें मांग रही है और यह संकेत भी दे रही है कि कांग्रेस किसी भी हाल में 12 से कम सीटों पर समझौता नहीं करेगी. 
  • आरजेडी सूत्र कहा कि तेजस्वी बिना कांग्रेस के छोटे दलों के साथ गठबंधन को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं

पटना: बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नीत महगठबंधन में पहले छोटे दलों के आकर्षण से महागठबंधन के नेता उत्साहित नजर आ रहे थे लेकिन अब इन दलों की मांग ने महागठबंधन में सीट बंटवारा चुनौती हो गई है. ऐसे में उत्तर प्रदेश की तर्ज पर बिना कांग्रेस के गठबंधन बनाए जाने के कयास लगाए जाने लगे हैं. कांग्रेस के एक नेता की मानें तो पहले कांग्रेस के 12 से 20 सीटों पर लड़ने पर सहमति बनी थी लेकिन धीरे-धीरे अन्य दलों के इस गठबंधन में शामिल होने के बाद अब गठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर किचकिच शुरू हो गई है.

अब इस गठबंधन में पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा के अलावा जीतन राम मांझी का हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम), मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी शामिल है. माना जाता है वामपंथी दल भी इस महागठबंधन में शामिल होंगे, हालांकि अब तक इसकी औपचारिक घोषणा नहीं की गई है. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस कम से कम 16 सीटें मांग रही है और यह संकेत भी दे रही है कि कांग्रेस किसी भी हाल में 12 से कम सीटों पर समझौता नहीं करेगी. 

कांग्रेस के इस मांग के बाद आरजेडी ने अपने दूसरे फॉर्मूले पर काम शुरू कर दिया है, जिसमें कांग्रेस शामिल नहीं है. आरजेडी सूत्र कहा कि तेजस्वी बिना कांग्रेस के छोटे दलों के साथ गठबंधन को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि इसे लेकर उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा और मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी के नेताओं से बातचीत भी हो चुकी है. 

बिहार की राजनीति को करीब से देखने वाले और राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि यह बड़ी बात नहीं होगी. उन्होंने कहा कि हाल में हुए विधानसभा चुनाव के परिणामों से उत्साहित कांग्रेस आरजेडी की सोच से ज्यादा सीट की मांग कर रही है. ऐसे में इतना तय है कि कांग्रेस 10 सीट से नीचे नहीं जाएगी. 

किशोर कहते हैं, “आरजेडी के 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण के विरोध के कारण कांग्रेस भी आरजेडी से दूर होकर देश में यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि आरजेडी ने सवर्ण आरक्षण का विरोध किया था, इस कारण अलग हुए. इस बहाने को लेकर आरजेडी भी कांग्रेस से अलग होकर अपने वोटबैंक को मजबूत करने की बात को लेकर चुनावी मैदान में उतरेगी.” 

ऐसे में कांग्रेस और आरजेडी के अलग होना कोई बड़ी बात नहीं है. उन्होंने सीट बंटवारे को लेकर भी कहा कि महागठबंधन में दलों की संख्या अधिक हो गई है, जिसे कोई नकार नहीं सकता. ऐसे में कोई भी दल सीट को लेकर त्याग करने की स्थिति में नहीं है. इस बीच, कांग्रेस ने अपने शक्तिप्रदर्शन को लेकर तीन फरवरी को पटना के गांधी मैदान में रैली की घोषणा कर दी है. इस रैली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के अलावा प्रियंका गांधी के भी आने की संभावना है. रैली को लेकर कांग्रेस के नेता उत्साहित हैं. 

वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी कहते हैं कि महागठबंधन में सीट बंटवारे का पेंच कांग्रेस के कारण फंसा हुआ है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है, ऐसे में वह सम्मानजनक सीटों से कम पर समझौता नहीं कर सकती है. उत्तर प्रदेश की रणनीति पर आरजेडी यहां काम कर सकती है, इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता है. भेलारी भी मानते हैं कि रालोसपा किसी हाल में चार सीटों से कम पर समझौता नहीं करेगी. कांग्रेस और हम की अपनी-अपनी मांगें हैं. ऐसे में आरजेडी के पास कांग्रेस को छोड़कर गठबंधन बनाने का अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं बचता. 

वैसे, आरजेडी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर कहा, “आरजेडी अपनी वैकल्पिक योजना पर काम कर रही है परंतु कांग्रेस के साथ बातचीत विफल नहीं हुई है. यह सही है कि कांग्रेस तीन राज्यों में विजयी हुई है परंतु बिहार में भी उसकी स्थिति में सुधार हुआ है, ऐसा नहीं है. कांग्रेस को अपनी क्षमता के अनुसार मांग करनी चाहिए.” 

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है. पिछले लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने कितनी सीटें जीती थी, उसे यह याद रखना चाहिए. यह विधानसभा चुनाव नहीं है, जहां मतदाता क्षेत्रीय दलों को मत देंगे, यह लोकसभा चुनाव है, जहां मतदाता राष्ट्रीय दलों को देखते हैं. बहरहाल, महागठबंधन में सीटों को लेकर पेंच फंसा हुआ है. यही कारण है कि महागठबंधन के नेताओं के खरमास यानी 15 जनवरी के बाद होने वाला सीट बंटवारा अब तक नहीं हुआ है. 

Child from marriage of Muslim man and Hindu woman legitimate, entitled to father’s property: SC

The top court said this upholding the plea by one Mohammed Salim. He was born to Mohammed Ilias and Valliamma, and court described him as their legitimate child.

NEW DELHI: 

HIGHLIGHTS

  1. Islam considers marriage between a Hindu and Muslim as “irregular”
  2. But a child born to such a couple is “legitimate”, rules Supreme Court
  3. Top court also said that the child has a claim on the father’s property

The Supreme Court on Tuesday said that although the marriage between a Muslim man and Hindu woman is an irregular marriage, described as “fasid” in Mohamadan law, the children born out this wedlock are legitimate and have claim over the property of the father.

“The marriage of a Muslim man with an idolater or fire­worshipper is neither a valid (sahih) nor a void (batil) marriage, but is merely an irregular (fasid) marriage. Any child born out of such wedlock (fasid marriage) is entitled to claim a share in his father’s property,” observed the bench of Justice N.V. Ramana and Justice Mohan M. Shantanagoudar in their judgment.

Upholding an order of the trial court and that of the Kerala High Court, Justice Shantanagoudar speaking for the bench said: “It would not be out of place to emphasise at this juncture that since Hindus are idol worshippers, which includes worship of physical images/ statues through offering of flowers, adornment, etc., it is clear that the marriage of a Hindu female with a Muslim male is not a regular or valid (sahih) marriage, but merely an irregular (fasid) marriage.”

The top court said this upholding the plea by one Mohammed Salim. He was born to Mohammed Ilias and Valliamma, and court described him as their legitimate child.

Having held that a child born out of Hindu mother and Muslim father is legitimate and has claim over the property of father, the court said: “The position that a marriage between a Hindu woman and Muslim man is merely irregular and the issue from such wedlock is legitimate has also been affirmed by various high courts.”

सिंधिया-शिवराज कि मुलाकात ने उड़ाई पार्टियों की नींद

पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच यहां सोमवार की रात को हुई मुलाकात ने कांग्रेस नेताओं को बेचैन कर दिया है. 
“हम दोनों के बीच कोई मनमुटाव नहीं है, कोई कड़वाहट नहीं है, मैं ऐसा व्यक्ति नहीं हूं जो चुनाव के समय की कड़वाहट को लेकर पूरी जिंदगी बिताऊं. जैसा कहा जाता है कि रात गई बात गई. इसलिए आगे की सोचना होगा.”  ज्योतिरादित्य सिंधिया
“इस मुलाकात से हतप्रभ हूं, चौहान ने तो कभी शिष्टाचार नहीं निभाया, मगर ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रेम कैसे उमड़ आया.” अजय सिंह

भोपाल: पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच यहां सोमवार की रात को हुई मुलाकात ने कांग्रेस नेताओं को बेचैन कर दिया है. पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह तो इस मुलाकात से हैरान हैं. सिंधिया और चौहान की मुलाकात को लेकर पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने मंगलवार के संवाददाताओं से चर्चा करते हुए कहा, “इस मुलाकात से हतप्रभ हूं, चौहान ने तो कभी शिष्टाचार नहीं निभाया, मगर ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रेम कैसे उमड़ आया.”

सिंधिया सोमवार की रात दिल्ली से भोपाल पहुंचे और अचानक पूर्व मुख्यमंत्री चौहान के आवास पर गए. दोनों नेताओं के बीच बंद कमरे में लगभग 45 मिनट बातचीत हुई. इस मुलाकात को लेकर राजनीति के गलियारों में चर्चाएं जारों पर है. मुलाकात के बाद सिंधिया ने संवाददाताओं से कहा, “हम दोनों के बीच कोई मनमुटाव नहीं है, कोई कड़वाहट नहीं है, मैं ऐसा व्यक्ति नहीं हूं जो चुनाव के समय की कड़वाहट को लेकर पूरी जिंदगी बिताऊं. जैसा कहा जाता है कि रात गई बात गई. इसलिए आगे की सोचना होगा.” 

सिंधिया ने आगे कहा, “मध्य प्रदेश का भविष्य संवारना है, उज्ज्वल करना है, इसलिए हमें सबको साथ लेकर चलना है, खासकर कांग्रेस की जिम्मेदारी है क्योंकि वह सत्ता में है. चुनाव मैदान में कश्मकश होती है, मगर चुनाव के बाद सबको मिलकर साथ काम करना चाहिए.” 

सिंधिया ने चौहान के साथ हुई बातचीत को अच्छा बताते हुए कहा, “वे हमारे राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं, उनसे मिलने आया था, बहुत सारी बातें हुईं.” 

सिंधिया से जब सवाल किया गया कि क्या कांग्रेस को विपक्ष का साथ मिलेगा? तब उन्होंने कहा कि विपक्ष को हमेशा अच्छी चीजों का साथ देना चाहिए और कमियों को उजागर करना चाहिए. देश के प्रजातंत्र में विपक्ष की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है, जितनी सत्तापक्ष की होती है. केंद्र में बतौर विपक्ष कांग्रेस का महत्वपूर्ण योगदान है, अपेक्षा है कि इसी तरह का राज्य में भाजपा का रहेगा.

पूर्व मुख्यमंत्री चौहान ने भी इस मुलाकात को सौजन्य मुलाकात करार दिया है. इससे पहले चौहान का मुख्यमंत्री कमलनाथ के शपथ ग्रहण समारोह में मंच पर जाना और सिंधिया व कमलनाथ द्वारा चौहान का गर्मजोशी से स्वागत खासा चर्चाओं में रहा था. अब यह मुलाकात सियासी गलियारों में चर्चा में है. 

आरजेडी के स्वर्णों के कोटा विरोध ने कांग्रेस की मुश्किल बढ़ाई

कांग्रेस पार्टी आरजेडी के वोट बैंक के साथ अगड़ों को एक साथ लाने की रणनीति पर काम कर रही थी लेकिन अब वैसा हो पाना उन्हें टेढ़ी खीर मालूम पड़ने लगा है

90 के दशक में मंडल-कमंडल की राजनीति के बीच बिहार में पिछड़ों के मसीहा के तौर पर लालू यादव का उभार हुआ था. दूसरी तरफ, मंडल के जवाब में कमंडल की राजनीति ने बीजेपी को भी धीरे-धीरे बिहार में अपने-आप को खड़ा करने का मौका दे दिया. लेकिन, इन दोनों के बीच में फंस गई कांग्रेस. बिहार में लालू के उभार ने ही कांग्रेस के अवसान की पटकथा लिख दी थी. लेकिन, मजबूर कांग्रेस सब कुछ जानते हुए भी लालू से तब भी पीछा नहीं छुड़ा पाई और अभी भी जेल में बंद लालू के पीछे-पीछे चलने को मजबूर दिख रही है.

कांग्रेस की रणनीति फेल?

लेकिन, लगभग दो दशक के दौर के बाद अब लालू यादव की पार्टी आरजेडी के खिलाफ सवर्णों की नाराजगी को कम करने का बीड़ा कांग्रेस ने उठाया था. लालू की गैरहाजिरी में उनके बेटे तेजस्वी यादव को आगे कर कांग्रेस सवर्णों के एक तबके के बीच यह संदेश देने की कोशिश कर रही थी कि आरजेडी अब वो आरजेडी नहीं रह गई. गंगा में बहुत पानी बह चुका है.

मोदी विरोध के नाम पर बिहार में महागठबंधन बनाने की तैयारी में लगी कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा था जिसमें लालू यादव के यादव और मुस्लिम वोट के साथ कांग्रेस सवर्ण तबके के लोगों को भी अपने नाम पर जोड़ने की तैयारी में थी. कांग्रेस में मदनमोहन झा और अखिलेश प्रसाद सिंह सरीखे सवर्ण नेताओं को आगे बढाकर आरजेडी के रघुवंश प्रसाद सिंह और जगदानंद सिंह जैसे चेहरों के सहारे कांग्रेस एक बार फिर से सवर्ण तबके को महागठबंधन से जोड़ने की तैयारी कर रही थी.

सूबे में कांग्रेस आरजेडी के बराबर सीट पर लड़ने का दावा कर रही थी. बीजेपी द्वारा एसएसी और एसटी एक्ट पर लिए गए फैसले के खिलाफ सवर्ण मतदाताओं की नाराजगी को भुनाने का मंसूबा पाल चुकी कांग्रेस बिहार में आरजेडी के साथ गठबंधन कर बेहतरीन प्रदर्शन की उम्मीद लगाए बैठी थी. लेकिन सवर्णों को आरक्षण दिए जाने संबंधी सदन में कवायद जैसे ही शुरू हुई राजनीतिक फिजा प्रदेश में बदलने लगी. खासकर आरजेडी के विरोध के फैसले के बाद आरजेडी के सवर्ण नेता सहित कांग्रेस पार्टी का राजनीतिक गणित उलझने लगा है.

स्टेट लेवल के एक सीनियर कांग्रेसी नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि अगड़ी जाति के बीच आरजेडी के रुख को समझ पाना मुश्किल होगा और इससे आगामी लोकसभा चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस के गठबंधन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा.

लेकिन, सामान्य वर्ग के गरीब तबके को मिलने वाले दस फीसदी आरक्षण वाले विधेयक पर आरजेडी के संसद में विरोध के बाद कांग्रेस की सारी रणनीति फेल होती दिख रही है. झटका आरजेडी के उन सवर्ण नेताओं को भी लगा है जो इस बार सवर्णों के वोट बैंक के सहारे चुनाव में उतरने की तैयारी में थे.

आरजेडी के सवर्ण नेताओं में बेचैनी

आरजेडी के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह की तरफ से आया बयान उसी झुंझलाहट और बेचैनी को दिखाता है. आरजेडी के सवर्ण नेता पार्टी के स्टेंड को लेकर उलझन में हैं कि वो लोकसभा चुनाव में सवर्ण मतदाताओं से वोट किस आधार पर मांगेंगे, उन दिग्गज नेताओं में रघुवंश प्रसाद सिंह,जगदानंद सिंह और शिवानंद तिवारी सरीखे नेता शामिल हैं जिन्हें आरजेडी के द्वारा लिया गया सवर्ण आरक्षण विरोधी फैसला असहज करने लगा है. इसलिए आरजेडी द्वारा लिए गए फैसले को चूक बताकर रघुवंश प्रसाद सिंह ने डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश भी शुरू कर दी है.

उन्होंने ऐसा वक्तव्य देकर अगड़ी जाति को रिझाने की कोशिश की है. दरअसल रघुवंश प्रसाद सिंह आरजेडी के सवर्ण चेहरा हैं. वो पांच दफा सांसद चुने जा चुके हैं. उनका चुनाव क्षेत्र वैशाली है जहां राजपूतों की संख्या निर्णायक फैसला कराने का मादा रखती है.

साल 1996 से लेकर 2009 तक लगातार रघुवंश प्रसाद सिंह वहां के सांसद रह चुके हैं. जातिगत समीकरण के तहत यादव और राजपूत जाति का एक साथ गोलबंद होना रघुवंश बाबू को संसद तक पहुंचाता रहा है लेकिन 2014 में रामा सिंह की इंट्री की वजह से एलजेपी और बीजेपी के गठबंधन ने रघुवंश प्रसाद सिंह को छठी बार सांसद बनने से रोक दिया था.

वजह साफ है कि राजपूत और यादव समाज का गठबंधन पिछले चुनाव में मज़बूत नहीं हो पाया था और आरजेडी के सवर्ण आरक्षण मुद्दे पर अपनाए गए रुख से रघुवंश प्रसाद सिंह सरीखे नेता की राजनीतिक जमीन चौपट हो सकती है. इसके लिए रघुवंश प्रसाद सिंह ने पार्टी से अलग लाइन लेकर मुद्दे को माइल्ड करने की कोशिश की है. ध्यान रहे राजपूत और यादव का गठजोड़ वैशाली के आसपास तीन लोकसभा क्षेत्र में सीधा असर डाल सकता है इसलिए बदली परिस्थितियों में उन्हें एक साथ रख पाना आसान नहीं दिखाई पड़ रहा है. यही हालत कमोबेश कई संसदीय क्षेत्र में है जिनमें मुंगेर, बलिया, बेगूसराय, नवादा, दरभंगा, मुज़्फ्फरपुर, औरंगाबाद की सीटें प्रमुख हैं.

लालू यादव के इशारे पर हुआ था विरोध!

सूत्रों की मानें तो आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव से सलाह मशविरा करने के बाद ही पार्टी ने लोकसभा और राज्यसभा में सवर्ण आरक्षण मुद्दे पर विरोध करने का फैसला किया था. राज्य सभा में मनोज झा ने बिल का विरोध करते हुए कहा था कि ‘कहानियां हमेशा से काल्पनिक आधार पर गढ़ी जाती रही हैं और उसका वास्तविकता से दूर-दूर का वास्ता नहीं होता है.’ उन्होंने कहा था कि ‘हम सबने बचपन में पढ़ा है कि एक गरीब ब्राह्मण था लेकिन एक गरीब दलित था , एक गरीब यादव था या एक गरीब कुर्मी था ऐसी कहानी कभी नहीं पढ़ी है.’

ज़ाहिर है मनोज झा ऐसी कहानी सुना कर साबित करने की कोशिश कर रहे थे कि सवर्ण को गरीब बताया जाना मनगढ़ंत कहानी है और इसका हकीकत से कोई लेना देना नहीं है. मनोज झा पार्टी लाइन के हिसाब से सदन में बोल रहे थे और बाहर पार्टी के युवा नेता और लालू प्रसाद के वारिस तेजस्वी यादव सवर्ण आरक्षण के मुद्दे पर आए संविधान संशोधन विधेयक का विरोध यह कहते हुए कर रहे थे कि यह आरक्षण दलित,पिछड़े और आदिवासी को मिल रहे आरक्षण को खत्म करने की एक साजिश है. इतना ही नहीं तेजस्वी यादव ने विरोध करते हुए यह भी कहा था कि 15 फीसदी आबादी को 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने की कोशिश हो रही है तो 52 फीसदी ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए.

तेजस्वी पिता लालू प्रसाद से गंभीर मंत्रणा के बाद ही ऐसी लाइन ले रहे थे. उन्हें मालूम था कि ऐसी पार्टी लाइन आरजेडी को सूट करती है और वो मोदी सरकार द्वारा लाए गए सवर्ण आरक्षण मुद्दे पर बिहार में अगड़ा बनाम पिछड़ा राजनीति करने में ठीक वैसे ही कामयाब होंगे जैसे उनके पिता लालू प्रसाद 90 के दशक में मंडल कमीशन लागू किए जाने के बाद सत्ता के शिखर तक पहुंचे थे.

अगड़ा बनाम पिछड़ा की रणनीति कितनी कारगर?

बिहार में अगड़ा बनाम पिछड़ा की राजनीति के दम पर लालू प्रसाद की राजनीति खूब चमकती रही है. इसकी वजह यह है कि अगड़ी जाति में जो चार जाति आती हैं, उनमें ब्राह्मण की आबादी 5.7 फीसदी है वहीं कायस्थ 1.5 फीसदी, भूमिहार 4.7 फीसदी और राजपूत 5.2 फीसदी हैं. आरजेडी अगड़ों के खिलाफ अतिपिछड़ा 21.7 फीसदी, यादव 14.4 फीसदी, बनिया 7.1 फीसदी, कुर्मी 3 और कोईरी 4 फीसदी को गोलबंद कर बिहार में अपनी राजनीति चमकाने की फिराक में है.

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लेकिन 90 के दशक की राजनीति का वो तरीका अब कारगर हो पाएगा उसकी उम्मीद कम ही दिखाई पड़ती है. मंडल कमीशन के दौर की राजनीति के बाद बिहार में तमाम दलों के नेतृत्वकर्ता पिछड़े और अति पिछड़े समाज से ही आते हैं, इसलिए आरजेडी की राजनीति से ज्यादा राजनीतिक लाभ मिल पाएगा ऐसा प्रतीत होता नजर नहीं आता है. प्रदेश में अगड़ा बनाम पिछड़ा की राजनीति फिर से शुरू हो सके इसकी गुंजाइश नहीं दिखाई पड़ती है.

यही वजह है कि महागठबंधन के घटक दलों में सवर्ण आरक्षण मुद्दे पर आरजेडी के विरोध के बाद असहज स्थिति पैदा होने लगी है. आरजेडी के सवर्ण नेता भले ही डैमेज कंट्रोल करने में लगे हों लेकिन कांग्रेस के भीतर भी आरजेडी के स्टैंड को लेकर मायूसी है. कांग्रेस पार्टी आरजेडी के वोट बैंक के साथ अगड़ों को एक साथ लाने की रणनीति पर काम कर रही थी लेकिन अब वैसा हो पाना उन्हें टेढ़ी खीर मालूम पड़ने लगा है.

‘‘जब बहनजी ने उन्हें छोड़ दिया, तब यह स्वभाविक है कि वह दीदी (ममता) को याद करेंगे.’’ स्मृति ईरानी

‘‘विपक्षी दल बार – बार कह रहे हैं कि वे बीजेपी से अकेले नहीं लड़ सकते और इससे उनकी नाकामी उजागर होती है.’
मोदी ने अक्सर ही इस बात पर जोर दिया है कि देश को एक मजबूत सरकार चाहिए, ना कि एक मजबूर सरकार. 

नई दिल्लीः तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की विपक्षी दलों की रैली का समर्थन करने को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर शुक्रवार को बीजेपी ने तंज कसते हुए कहा कि यह स्वभाविक है कि ‘बहनजी’ के छोड़ने के बाद वह ‘दीदी’ को याद करेंगे. 

कोलकाता के ऐतिहासिक ब्रिगेड परेड मैदान में आज बीजेपी के खिलाफ होने वाली इस रैली में 20 से अधिक विपक्षी दलों के नेताओं के शरीक होने की उम्मीद है. बीजेपी की इस टिप्पणी में संभवत: बहनजी का जिक्र बसपा प्रमुख मायावती और दीदी का जिक्र पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए किया गया है.

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि रैली से भगवा पार्टियों के प्रतिद्वंद्वियों के बारे में यह खुलासा होता है कि वे अपने बूते मुकाबला नहीं कर सकते हैं. यह पूछे जाने पर कि क्या ममता को राहुल के समर्थन पत्र से विपक्ष की मजबूती प्रदर्शित होती है, स्मृति ने जवाब दिया, ‘‘जब बहनजी ने उन्हें छोड़ दिया, तब यह स्वभाविक है कि वह दीदी (ममता) को याद करेंगे.’’ 

उन्होंने उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के हाल ही में गठबंधन की घोषणा किए जाने की ओर संभवत: इशारा करते हुए यह कहा. दरअसल, उप्र में दोनों दलों (सपा और बसपा) ने गठबंधन में कांग्रेस को शामिल नहीं किया है. केंद्रीय मंत्री ने भरोसा जताया कि लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन करेंगे. उन्होंने कहा कि उन्होंने (मोदी ने) अक्सर ही इस बात पर जोर दिया है कि देश को एक मजबूत सरकार चाहिए, ना कि एक मजबूर सरकार. 

उन्होंने रैली का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘विपक्षी दल बार – बार कह रहे हैं कि वे बीजेपी से अकेले नहीं लड़ सकते और इससे उनकी नाकामी उजागर होती है.’

क्षेत्रीय राजनीतिक मजबूरियों की बिसात है ममता की महारैली

लोकसभा चुनाव 2019 से पहले विपक्षी एकता का इसे प्रदर्शन माना जा रहा है. “क्षेत्रीय राजनीतिक मजबूरियों को इस प्रस्तावित रैली से जुड़े बड़े राजनीतिक उद्देश्यों में नहीं मिलाना चाहिए.” : टीएमसी
भाजपा से पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी गेगोंग अपांग और शत्रुघ्न सिन्हा भी शिरकत करेंगे

कोलकाता: उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ बने समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के गठबंधन के बाद कोलकाता में शनिवार को तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की विपक्षी दलों की महारैली होने जा रही है. लोकसभा चुनाव 2019 से पहले विपक्षी एकता का इसे प्रदर्शन माना जा रहा है. यह रैली यहां ऐतिहासिक ब्रिगेड परेड मैदान में होगी. हालांकि, विपक्ष के कई नेता इस रैली में नजर नहीं आएंगे.  

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव रैली में भाग लेंगे जबकि बसपा की ओर से पार्टी के वरिष्ठ नेता सतीश चंद्र मिश्रा के शिरकत करने की संभावना है. हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती खुद इस रैली में हिस्सा नहीं लेंगी. आरएलडी के अजीत सिंह और जयंत चौधरी भी मौजूद रहेंगे. वहीं, रैली में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे करेंगे. 

उत्तर प्रदेश में नया चुनावी समीकरण बनाने वाली सपा और बसपा सहित सभी बड़ी विपक्षी पार्टियों की इस रैली में मौजूदगी काफी मायने रखती है. वहीं, कांग्रेस को भी यह लगता है कि विपक्ष की महारैली से उत्तर प्रदेश में राजनीतिक समीकरण के बारे में गलतफहमी नहीं होनी चाहिए. रैली का आयोजन कर रही तृणमूल कांग्रेस ने कहा, “क्षेत्रीय राजनीतिक मजबूरियों को इस प्रस्तावित रैली से जुड़े बड़े राजनीतिक उद्देश्यों में नहीं मिलाना चाहिए.”

इस रैली में जिन अन्य नेताओं के शामिल होने की उम्मीद है, उनमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एवं जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं तेदेपा प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू शामिल हैं. इनके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला के भी शामिल होने की उम्मीद है. कांग्रेस से खड़गे और पार्टी के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी रैली में भाग लेंगे. 

तृणमूल कांग्रेस प्रमुख एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ – साथ एनसीपी प्रमुख शरद पवार, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी, पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और झारखंड विकास मोर्चा के बाबूलाल मरांडी भी मंच पर नजर आएंगे. मंगलवार को भाजपा छोड़ने वाले अरूणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री गेगोंग अपांग भी रैली में शामिल होंगे.