यह मामला पश्चिम बंगाल के आसनसोल शहर से सामने आया है, जहां नामी चेन स्कूल के आसनसोल स्थित शाखा पर अभिभावकों ने यह आरोप लगाया है.
आसनसोल :
जय श्री राम और हिंदू मुस्लिम को लेकर देश में चल रहे बवाल के बीच अब देश के नामी स्कूल प्रबंधन पर बच्चों और अभिभावकों में हिंदू-मुसलमान के नाम पर भेदभाव करने का आरोप लगा है. यही नहीं आरोप तब और ज्यादा पुख्ता हो जाता है, जब बच्चों के नाम वाले रजिस्टर तक में हिंदू और मुस्लिम वाले कॉलम लिखवा कर उन्हें अलग-अलग करने का प्रयास किया जा रहा है. यह मामला पश्चिम बंगाल के आसनसोल शहर से सामने आया है, जहां एक नामी चेन स्कूल के आसनसोल स्थित शाखा पर अभिभावकों ने यह आरोप लगाया है.
इस आरोप को लेकर शनिवार को स्कूल के शिक्षक शिक्षिकाओं ने जोरदार हंगामा मचाया. शिक्षकों का कहना है कि स्कूल में फातिमा नाम की प्रिंसिपल जब से आई है. तब से यह राजनीतिक ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया जा रहा है. कभी जय श्री राम तो कभी अल्लाह हू अकबर को लेकर आए दिन स्कूल में बच्चों और शिक्षकों तक में भी दरारें पड़ती रहती हैं.
यही नहीं शिक्षकों के साथ ही इस स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने वाले अभिभावकों का भी आरोप है कि करीब 800 बच्चों वाले इस स्कूल में पेरेंट्स मीटिंग के दौरान महज 7 या 8 मुस्लिम अभिभावकों को ही समस्या बताने के लिए बुलाया जाता है. बाकी के अभिभावकों मीटिंग तक के लिए भी नहीं बुलाया जाता है. यही नहीं हिंदू और मुस्लिम के विभाजन वाले इस आरोपों के बीच कुछ शिक्षक यहां तक आरोप लगा रहे हैं कि स्कूल में ही मुस्लिम बच्चों और अन्य मुस्लिम शिक्षकों तथा स्टाफ के लिए नमाज पढ़ने की व्यवस्था भी कराई गई है.
आरोप लगाया गया कि यहां नमाज पढ़ने की की गई व्यवस्था के बाद बच्चों के बीच मतभेद करने के साथ ही साथ यहां माहौल को हिंदू-मुस्लिम के रूप में विभाजित करने का प्रयास किया जा रहा है. एक स्कूल जैसी संस्था में इस तरह से हिंदू मुस्लिम को लेकर किए जा रहे विवाद और अलगाव के बाद यहां काफी हंगामा दिखा. लोगों का कहना है कि अगर स्कूल में ही बच्चों के बीच भेदभाव किया जाएगा तो बाद में इनके मन में हमेशा ही यह भावना बनी रहेगी और वह एक-दूसरे में फर्क करना शुरू कर देंगे.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/07/405892-asansoll-school.jpg545970Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-07-15 00:57:042019-07-15 00:57:07आसनसोल के एक नामी स्कूल पर धार्मिक भेदभाव के आरोप
गोवा और कर्नाटक में सियासी हलचल से अभी कांग्रेस थी तरह उभरी भी नहीं थी की उसे बंगाल से एक बहुत ही भयंकर समाचार प्राप्त हुआ है। बीजेपी नेता मुकुल रॉय ने कहा
है कि पश्चिम बंगाल में 107 विधायक बीजेपी में शामिल होंगे. मुकुल रॉय ने कहा कि इन सभी विधायकों की लिस्ट तैयार हो चुकी है और उनसे लगातार संपर्क बना हुआ है। कर्नाटक में अभी थोड़ी सुध आ ही रही थी कि मुकुल रॉय के ब्यान ने एक बार फिर सियासी तूफान मचा दिया है।
कोलकाता: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता मुकुल रॉय ने शनिवार को एक ऐसा दावा किया है, जिससे पश्चिम बंगाल की सियासत में भारी उथल-पुथल मच सकती है. न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार, मुकुल रॉय ने कहा है कि पश्चिम बंगाल में 107 विधायक बीजेपी में शामिल होंगे. उन्होंने दावा किया कि सीपीएम, कांग्रेस और टीएमसी के 107 विधायक बीजेपी में शामिल होंगे. उन्होंने कहा कि हमारे पास उन विधायकों की लिस्ट तैयार हो गई है और उनसे लगातार संपर्क में हैं.
लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ दोबारा सत्ता पर काबिज हुई थी. बीजेपी ने पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 18 पर जीत दर्ज की थी. वहीं, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को 22 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. कांग्रेस को दो सीटों पर जीत मिली थी. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस किले में सेंध लगाने के लिए बीजेपी कोई भी कोर-कसर छोड़ना नहीं चाहती है. अभी हाल ही में टीएमसी के कई नेताओं ने बीजेपी का दामन थामा था. टीएमसी के नेताओं का बीजेपी में शामिल होने का क्रम लोकसभा चुनाव से पहले ही शुरू हो गया था.
यदि ऐसा हो जाता है तो सबसे अधिक नुकसान काँग्रेस को होगा। वह बंगाल में अपना बचाखुचा जनाधार भी खो देगी।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/07/mukul_roy.jpg547835Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-07-14 09:47:472019-07-14 09:47:49मुकुल रॉय के ब्यान ने मचाई खलबली
संसद भवन में गला फाड़ फाड़ कर लोकतन्त्र बचाने की गुहार लगाने वाली कांग्रेस कर्णाटक में खुद ही लोकतन्त्र की हत्या करने पर उतारू है। जिन विधायकों ने राज्यपाल और स्पीकर को इस्तीफा सौंप दिया है उन्हे भी व्हिप के तहत लाने की कॉंग्रेस की चाल न केवल अमर्यादित है आपितु स्पीकर का उन्हे बल और समय दोनों प्रदान करना आलोकतांत्रिक है। कॉंग्रेस और स्पीकर चाहते हैं की इन बागी विधायकों को वहिप की अवहेलना करने पर अयोग्य ठहरा दिया जाये। कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस और जेडीएस के 16 विधायकों के इस्तीफे के बाद यही सवाल उठ रहा है कि क्या बागी विधायक अयोग्य ठहरा दिए जाएंगे?
नई दिल्ली/बेंगलुरू:
कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस और जेडीएस के 16 विधायकों के इस्तीफे के बाद यही सवाल उठ रहा है कि क्या बागी विधायक अयोग्य ठहरा दिए जाएंगे? प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अध्यक्ष को इस्तीफे पर फैसला करने के लिए 16 जुलाई तक का समय देते हुए तब तक के लिए यथास्थिति का आदेश दिया. वहीं, गुरुवार की शाम जब अध्यक्ष की ओर से शीर्ष अदालत के सामने कहा गया कि उन्हें इस्तीफा स्वीकार करने से संबंधित निर्णय लेने के लिए समय की आवश्यकता होगी, तब अदालत ने उन्हें एक दिन के अंदर निर्णय लेने के लिए कहा था.
शुक्रवार से विधानसभा का 10 दिवसीय सत्र शुरू होने के कारण उनका यह दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है. क्योंकि जब तक उनके इस्तीफे स्वीकार नहीं हो जाते, तब तक दोनों दलों के सभी विधायक अपने-अपने दलों द्वारा विधानसभा की उपस्थिति और उसमें मतदान के संबंध में जारी किए गए व्हिप के लिए बाध्य होंगे. अगर विधायक व्हिप का उल्लंघन करते हैं, तो वे अयोग्यता सहित अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना कर सकते हैं. इस स्थिति में विधानसभा की शेष अवधि के लिए वह फिर से चुनाव नहीं लड़ सकेंगे.
कांग्रेस और जेडीएस दोनों ने अपने सभी विधायकों को राज्य के बजट (वित्त विधेयक) को पारित कराने के लिए विधानसभा में उपस्थित रहने और अन्य विषयों पर चर्चा में भाग लेने के लिए व्हिप जारी किया है. कांग्रेस प्रवक्ता रवि गौड़ा ने आईएएनएस को बताया, “बागियों को भी व्हिप जारी किया गया है, क्योंकि उनके इस्तीफे को अध्यक्ष ने स्वीकार नहीं किया है.”
कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के नेता सिद्धारमैया ने पहले ही अध्यक्ष को याचिका दी है कि जो विधायक व्हिप की अवहेलना करते हैं, उन्हें अयोग्य घोषित करें. हालांकि, बागियों ने दावा किया है कि अयोग्यता उन पर लागू नहीं होगी, क्योंकि वे अपने संबंधित विधानसभा क्षेत्रों से पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं और 6 जुलाई को राज्यपाल के साथ-साथ विधानसभा अध्यक्ष को भी पत्र सौंप चुके हैं. अगर अध्यक्ष सभी 16 इस्तीफों को स्वीकार कर लेते हैं, तो विधानसभा की प्रभावी ताकत 225 से घटकर 209 हो जाएगी और सत्तारूढ़ गठबंधन 100 पर सिमट जाएगा. इस स्थिति में बहुमत का जादुई आंकड़ा 105 होगा.
वहीं, कांग्रेस व जेडीएस के 16 विधायकों के अलावा, केपीजेपी विधायक और निर्दलीय विधायक ने भी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है, जिसकी वजह से गठबंधन खतरे में पड़ गया है. दूसरी ओर, भाजपा के पास 105 विधायक हैं और वह सरकार बनाने के लिए तैयार है. मुख्यमंत्री एच. डी. कुमारस्वामी ने शुक्रवार को कहा कि वह विश्वास मत हासिल करने के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा कि उनकी जेडीएस व कांग्रेस गठबंधन सरकार के पास सदन में पर्याप्त बहुमत है.
कुमारस्वामी ने कहा कि अगर भाजपा चाहती है तो वह अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने के लिए भी तैयार हैं. मुख्यमंत्री ने कन्नड़ भाषा में विधानसभा अध्यक्ष से कहा, “मैं विश्वास मत या अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने के लिए तारीख और समय को निर्धारित करना आप पर छोड़ता हूं.”
बागियों की दलील पर यथास्थिति बनाए रखने के लिए अध्यक्ष को निर्देश देते हुए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि वे विधायक के पद पर बने रहेंगे और अयोग्य नहीं ठहराए जाएंगे. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस और जेडीएस ने भी अध्यक्ष को याचिका दी है कि वे उन 10 बागियों को अयोग्य घोषित करें, जो उनके खिलाफ शीर्ष अदालत में गए और उनकी विधायक दल की बैठकों में शामिल नहीं हुए. शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को इस्तीफे पर फैसला करने के अपने गुरुवार के आदेश को संशोधित करते हुए अध्यक्ष को अतिरिक्त समय दिया.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/07/kar_4825299-m.jpg550850Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-07-12 17:26:042019-07-12 17:26:07कर्णाटक में लोकतन्त्र पर कठोर प्रहार
इस प्रस्ताव पर बीजेपी को तब बड़ी राहत मिली, जब टीएमसी और बीजेडी व वाइएसआरसीपी जैसी पार्टियों ने उसे समर्थन देने का ऐलान कर दिया.
नई दिल्ली: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सोमवार को राज्यसभा में जम्मू कश्मीर में सीमा पर रहने वालों के लिए आरक्षण और राज्य में राष्ट्रपति शासन 6 महीने बढ़ाने संबंधी प्रस्ताव को पेश किया. इस प्रस्ताव पर बीजेपी को तब बड़ी राहत मिली, जब टीएमसी और बीजेडी व वाइएसआरसीपी जैसी पार्टियों ने उसे समर्थन देने का ऐलान कर दिया.
विपक्ष द्वारा उठाए गए सवालों के जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा, कि हम राज्य मे राष्ट्रपति शासन सिर्फ सुरक्षा की दृष्टि से बढ़ाने के लिए कह रहे हैं. हमारे पास पहले से ही 16 राज्य हैं, ऐसे में विपक्ष का ये आरोप कि हम राष्ट्रपति शासन के जरिए कश्मीर में शासन करना चाहते हैं, पूरी तरह गलत है. इस बहस के बाद राज्यसभा ने जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन 6 महीने और बढ़ाने के साथ ही सीमा पर रहने वालों को आरक्षण देने वाले विधेयक को सर्वसम्मति से मंजूरी दे दी.
आतंकवाद के खिलाफ हमारी नीति जीरो टॉलरेंस की… इससे पहले अमित शाह ने विपक्ष के सवालों पर जवाब देते हुए कहा, मैं नरेन्द्र मोदी सरकार की तरफ से सदन के सभी सदस्यों तक ये बात रखना चाहता हूं कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग हैं और इसे कोई देश से अलग नहीं कर सकता. मैं फिर दोहराना चाहता हूं कि नरेन्द्र मोदी सरकार की आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति है. जम्हूरियत सिर्फ परिवार वालों के लिए ही सीमित नहीं रहनी चाहिए। जम्हूरियत गाँव तक जानी चाहिए, चालीस हज़ार पंच, सरपंच तक जानी चाहिए और ये ले जाने का काम हमने किया.
केंद्रीय गृहमंत्री के अनुसार, जम्मू कश्मीर में 70 साल से करीब 40 हजार लोग घर में बैठे थे जो पंच-सरपंच चुने जाने का रास्ता देख रहे थे, क्यों अब तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव नहीं कराये गये और फिर जम्हूरियत की बात करते हैं. मोदी सरकार ने जम्हूरियत को गांव-गांव तक पहुंचाने का काम किया है. सूफी परंपरा कश्मीरियत का हिस्सा नहीं थी क्या? पूरे देश में सूफियत का गढ़ था कश्मीर, कहां चली गई वो संस्कृति? उनको घरों से निकाल दिया गया. उनके धार्मिक स्थानों को तोड़ दिया गया. सूफी संतों को चुन-चुन कर मारा गया.
जो भारत को तोड़ने की बात करेगा उसको उसी भाषा में जवाब मिलेगा और जो भारत के साथ रहना चाहते है उसके कल्याण के लिए हम चिंता करेंगे. जम्मू कश्मीर के किसी भी लोगों को डरने की जरुरत नहीं है. कश्मीर की आवाम की संस्कृति का संरक्षण हम ही करेंगे. एक समय आएगा जब माता क्षीर भवानी मंदिर में कश्मीर पंडित भी पूरा करते दिखाई देंगे और सूफी संत भी वहां होंगे. मैं निराशावादी नहीं हूं. हम इंसानियत की बात करते हैं.
अमित शाह ने कहा, मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि आयुष्मान भारत योजना के तहत एक साल के अंदर किसी एक राज्य में सबसे ज्यादा लाभार्थी हैं तो वो जम्मू कश्मीर में हैं. नरेन्द्र मोदी सरकार में गरीबों को मुफ्त इलाज की सुविधा दी जा रही है. ये इंसानियत है. गुलाम नबी साहब ने बोला कि चुनाव आप करा दीजिए. हम कांग्रेस नहीं हैं कि हम ही चुनाव करा दें। हमारे शासन में चुनाव आयोग ही चुनाव कराता है. हमारे शासन में हम चुनाव आयोग को नहीं चलाते. राम गोपाल जी ने कहा कि कश्मीर विवादित है तो मैं बताना चाहूंगा कि न कश्मीर विवादित है, न POK कश्मीर विवादित है ये सब भारत का अभिन्न अंग हैं.
मैं सदन के माध्यम से सभी को बताना चाहता हूं कि हम जम्मू कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन करें, ये हमारा नहीं बल्कि वहां की जनता का फैसला था. तब एक खंडित जनादेश मिला था. मगर जब हमें लगा कि अलगाववाद को बढ़ावा मिल रहा है और पानी सिर के ऊपर जा रहा है तो हमने सरकार से हटने में तनिक भी देर नहीं की.
कांग्रेस को एक बात बतानी चाहिए कि 1949 को जब एक तिहाई कश्मीर पाकिस्तान के कब्जें में था तो आपने सीजफायर क्यों कर दिया. ये सीजफायर न हुआ होता ये झगड़ा ही न होता, ये आतंकवाद ही नहीं होता, करीब 35 हजार जानें नहीं गई होती. इन सबका मूल कारण सीजफायर ही था.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/06/amit-shah-speaks-in-the-rajya-sabha_00d3d744-0a6c-11e8-ba67-a8387f729390.jpg540960Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-07-02 02:56:512019-07-02 02:58:34जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि 6 माह बढ़ाई गयी
प्रियंका शर्मा के भाई राजीब शर्मा ने याचिका में 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजने को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट से दखल की मांग की थी और कोर्ट से दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी.
नई दिल्लीः पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बनावटी फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के मामले में पश्चिम बंगाल सरकार के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की गई है. यह याचिका गिरफ्तार हुई बीजेपी कार्यकर्ता प्रियंका शर्मा के भाई ने दायर की है. याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट से तुरंत रिहाई का आदेश मिलने के बावजूद 2 दिन बाद रिहा किया गया था.सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को अवमानना नोटिस जारी कर 4 हफ्ते में जवाब देने को कहा है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को प्रियंका शर्मा को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया था. कोर्ट ने रिहाई के बाद प्रियंका शर्मा को लिखित में ममता बनर्जी से माफी मांगने को कहा था.
दरअसल, प्रियंका शर्मा के भाई राजीब शर्मा ने याचिका में 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजने को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट से दखल की मांग की थी और कोर्ट से दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी. बनावटी फोटो में ममता को मेट गाला इवेंट में एक्ट्रेस प्रियंका चौपड़ा की लुक की तरह दिखाया गया था.
ममता बनर्जी की बनावटी फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के मामले में पश्चिम बंगाल की महिला भाजपा नेता को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. इसके साथ ही पश्चिम बंगाल में राजनीतिक जंग और तेज हो गई थी. इसके बाद उन्हें हावड़ा जिला पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था. दोनों दलों के बीच टकराव की आशंकाओं के मद्देनजर भी पुलिस पहले से ही अलर्ट है.आरोप है कि प्रियंका शर्मा ने ये बनावटी फोटो अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट की थी. प्रियंका शर्मा के फोटो पोस्ट करते ही सोशल मीडिया पर इसे शेयर किया जाने लगा था.
इससे थोड़ी देर में ही ममता बनर्जी की मेट गाला अवतार में बनावटी फोटो राज्य में वायरल होने लगी थी. टीएमसी कार्यकर्ताओं को जैसी ही इस फोटो के बारे में पता चला, हंगामा मच गया था. मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए दासनगर पुलिस थाना पुलिस ने तुरंत प्रियंका शर्मा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली थी.
प्राथमिक जांच के बाद प्रियंका शर्मा को गिरफ्तार कर लिया गया था.साइबर क्राइमसेल पूरे मामले की जांच कर रही है.गौरतलब है कि प्रियंका चोपड़ा के मेट गाला अवतार को लेकर सोशल मीडिया पर उनकी काफी खिंचाई की गई थी. फैंस ने प्रियंका चोपड़ा की इस फोटो को लेकर काफी नकारात्मक और मजाकिया कमेंट किए थे.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/07/14_05_2019-mamta-priyanka-sharma_19220942_122446489.jpg540650Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-07-01 13:23:142019-07-01 13:23:17प्रियंका शर्मा की रिहाई में देरी से ममता सरकार को अवमानना नोटिस
साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता और असम नेपाली साहित्य सभा की अध्यक्ष दुर्गा खाटीवाडा का नाम एनआरसी अधिकारियों द्वारा 26 जून को जारी निष्कासन सूची में शामिल है.
गुवाहाटी: साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता दुर्गा खाटीवाडा और असम आंदोलन की पहली महिला शहीद बैजयंती देवी के परिवार के सदस्यों को राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के पूर्ण मसौदे से बाहर रखा गया है. यह जानकारी रविवार को एक संगठन ने दी. संगठन ने बताया कि उनके अलावा स्वतंत्रता सेनानी छबीलाल उपाध्याय की प्रपौत्री मंजू देवी को एनआरसी की ताजा प्रक्रिया से बाहर रखा गया है.
भारतीय गोरखा परिसंघ के राष्ट्रीय सचिव नंदा किराती देवान ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि तीनों मामले गोरखाओं से जुड़े हुए हैं और एनआरसी प्रक्रिया से उन्हें बाहर रखकर समुदाय का अपमान किया गया है और अगर इस मामले का समाधान नहीं किया गया तो इसे अदालत में ले जाया जाएगा.
देवान ने कहा, ‘‘स्वतंत्रता सेनानियों और असम आंदोलन के शहीदों के परिजनों को एनआरसी से बाहर रखकर उनका अपमान किया गया है. यह न केवल गोरखाओं का अपमान है बल्कि स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों का भी अपमान है.’’ ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने अवैध प्रवासियों की पहचान और उन्हें वापस भेजने को लेकर 1979 से छह वर्षों तक असम आंदोलन चलाया था. इसी कारण 15 अगस्त 1985 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मौजूदगी में असम समझौता हुआ था.
उन्होंने कहा कि साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता और असम नेपाली साहित्य सभा की अध्यक्ष दुर्गा खाटीवाडा का नाम एनआरसी अधिकारियों द्वारा 26 जून को जारी निष्कासन सूची में शामिल है. बैजयंती देवी के पिता अमर उपाध्याय ने कहा कि उनके प्रपौत्रों एवं उनकी मां निर्मला देवी का नाम भी निष्कासन सूची में शामिल है. देवान ने कहा, ‘‘असम में कांग्रेस के संस्थापक और स्वतंत्रता सेनानी छबीलाल उपाध्याय की प्रपौत्री मंजू देवी का नाम भी सूची से बाहर है.’’
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/07/NRC-Assam.jpg383660Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-07-01 12:55:012019-07-01 12:55:04एनआरसी असम ने खोये कुछ और नाम
ममता सरकार मुस्लिम तुष्टीकरणका कोई मौका हाथ से जाने नहीं देती, इस बार ममता ने केंद्र सरकार के आदेश को सीढ़ी बना कर अपनी तुष्टीकरण की नीति को अंजाम दिया। ममता बनर्जी सरकार के पश्चिम बंगाल में 70% से अधिक मुस्लिम छात्रों वाले सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन के वास्ते भोजन कक्षों के निर्माण का निर्देश देने को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. बीजेपी और अन्य विपक्षी दलों ने तृणमूल पर राज्य में सांप्रदायिक विभाजन करने का आरोप लगाया.
कोलकाता: पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा 70 प्रतिशत से अधिक अल्पसंख्यक छात्रों वाले सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन के वास्ते भोजन कक्षों के निर्माण का निर्देश देने को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. बीजेपी और अन्य विपक्षी दलों ने तृणमूल कांग्रेस पर राज्य में सांप्रदायिक विभाजन करने का आरोप लगाया. तृणमूल के वरिष्ठ नेता और अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री ग्यासुद्दीन मुल्ला ने आरोपों को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया और यह कहते हुए इस फैसले का बचाव किया कि इससे सभी छात्रों को फायदा होगा.
भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई के अध्यक्ष दिलीप घोष ने कूच बिहार जिले में 70 प्रतिशत से अधिक अल्पसंख्यक छात्र वाले सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन के वास्ते भोजन कक्षों के निर्माण का निर्देश देने के लिए राज्य सरकार की निंदा की है. उन्होंने सवाल खड़ा किया कि क्या इस कदम के पीछे कोई ‘नापाक मकसद’ है.
घोष ने अपने ट्विटर हैंडल पर परिपत्र की एक प्रति अपलोड करते हुए लिखा, ‘पश्चिम बंगाल सरकार ने एक परिपत्र जारी किया है, जिसके तहत उसने स्कूल प्रशासन को निर्देश दिये हैं कि जिन विद्यालयों में 70 प्रतिशत या उससे अधिक छात्र मुस्लिम समुदाय के हैं, उनके लिए एक अलग भोजन कक्ष बनाने के साथ ही बैठने की व्यवस्था की जाए.’ इस संबंध में किसी भी सरकारी अधिकारी से तत्काल प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी है.
उन्होंने पूछा, ‘धर्म के आधार पर छात्रों के बीच यह भेदभाव क्यों? क्या इस भेदभाव वाले कदम के पीछे कोई बदनीयती छुपी है? एक और साजिश?’ इस मुद्दे पर पलटवार करते हुए, सत्तारूढ़ टीएमसी ने शुरू में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के हवाले से एक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया था कि यह एक पुराना परिपत्र है, जिसे पहले ही वापस ले लिया गया है, लेकिन बाद में कहा गया कि वे एक नया स्पष्टीकरण जारी करेंगे.
मंत्री गियासुद्दीन मुल्ला ने यहां कहा, ‘हमारा विभाग सभी छात्रों के समग्र विकास के लिए अल्पसंख्यक बहुल सामान्य संस्थानों के बुनियादी ढांचे को उन्नत करने के लिए काम कर रहा है.’ उन्होंने कहा, ‘मध्याह्न भोजन के लिए बनने वाले भोजन कक्ष से सभी छात्रों को फायदा होगा, न कि केवल मुसलमानों को. धनराशि स्वीकृत हो गई है इसलिए हमने ऐसे स्कूलों की सूची मांगी है.’ राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अब्दुल मन्नान ने आदेश पर राज्य सरकार की आलोचना की और कहा कि सिर्फ धर्म के आधार पर छात्रों को अलग नहीं किया जा सकता.
मकपा के वरिष्ठ नेता सुजान चक्रवर्ती ने कहा, ‘छात्रों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है. यदि भोजन कक्ष बनाया जा रहा है तो यह सभी के लिए होना चाहिए. हम इस तरह के कदम की निंदा करते हैं.’ घोष ने आरोप लगाया कि ममता बनर्जी सरकार केवल राज्य में मुसलमानों के विकास के लिए काम करने में रुचि रखती है.
उन्होंने कहा, ‘‘तृणमूल सरकार केवल अपने वोट बैंक को सुरक्षित करने के लिए, अल्पसंख्यकों के विकास के लिए काम करने में रुचि रखती है, हिंदू छात्रों ने क्या गलत किया है कि वे भोजन कक्ष की सुविधा का लाभ नहीं उठा सकते.’
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/07/muslim-mamta.jpg11252000Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-06-28 18:29:432019-06-28 18:30:57ममता के बंगाल में अल्पसंख्यक छात्र भोजन कक्ष में और हिन्दू छात्र भूमि पर बैठ कर लेंगे मध्याह्न भोजन : भाजपा
सारंगी ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उसकी छवि गरीब, किसान, महिला विरोधी बनाने की कोशिश की गई। सरकार को सांप्रदायिक दर्शाने और नोटबंदी, जीएसटी और अन्य विषयों को लेकर नकारात्मक छवि पेश करने का प्रयास किया गया। उन्होंने पूछा, ‘जो लोग भारत के टुकड़े-टुकड़े करने तक जंग रहेगी, पाकिस्तान जिंदाबाद और अफजल गुरू जिंदाबाद के नारे लगाते हैं क्या उन्हें देश में जीने का अधिकार है।’
सारंगी ने कहा कि कांग्रेस को मोदी के कामकाज की सफलता को स्वीकार कर उनका अभिनंदन करना चाहिए
इस पर कांग्रेस के सदस्य खफा दिखे और उनके खिलाफ नारेबाजी करते नजर आए
सदन में मौजूद यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी भी सदस्यों को विरोध करने के लिए संकेत करते हुए देखी गईं
केंद्रीय मंत्री एवं ओडिशा से बीजेपी सांसद प्रताप चंद सारंगी ने सोमवार को लोकसभा में कहा कि कांग्रेस को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले पांच साल के कार्यकाल में किए गए कामकाज की सफलता को स्वीकार कर उनका अभिनंदन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस खुद को जनता की ओर से नकार दिए जाने पर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए।
केंद्रीय पशुपालन राज्य मंत्री प्रताप चंद सारंगी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर लोकसभा में धन्यवाद प्रस्ताव रखते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के समय नीतिगत पंगुता थी और घोटाले पर घोटाले हो रहे थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री मूकदर्शक बने रहते थे। उन्होंने कांग्रेस के प्रथम परिवार (नेहरू-गांधी परिवार) की भी आलोचना की जिस पर विपक्षी पार्टी के सदस्यों ने कड़ा ऐतराज जताया।
सदन में मौजूद यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी भी सदस्यों को विरोध करने के लिए संकेत करते हुए देखी गईं। कांग्रेस के सदस्यों ने ‘व्यवस्था का प्रश्न’ उठाया, लेकिन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर ‘व्यवस्था का प्रश्न’ नहीं उठाया जाता।
सारंगी ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उसकी छवि गरीब, किसान, महिला विरोधी बनाने की कोशिश की गई। सरकार को सांप्रदायिक दर्शाने और नोटबंदी, जीएसटी और अन्य विषयों को लेकर नकारात्मक छवि पेश करने का प्रयास किया गया, लेकिन जनता ने विपक्ष के महागठबंधन के प्रयासों को धता बताते हुए एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा जताया।
अटल ने की थी इंदिरा की प्रशंसा, कांग्रेस को झिझक क्यों? उन्होंने इस बात का पालन करके दिखाया है। सारंगी ने कहा कि 1971 में जब तत्कालीन जनसंघ नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की प्रशंसा में कोई कसर नहीं छोड़ी थी तो आज कांग्रेस एवं विपक्ष को मोदी की प्रशंसा में झिझक क्यों है। उन्होंने कहा कि यह पहली सरकार है और मोदी ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने हर साल विभिन्न स्थानों पर जाकर अपने कामकाज का हिसाब जनता को दिया।
जनता ने सामंतियों को हराया, अब तो समझे कांग्रेस जनता ने काम के आधार पर फिर मोदी को चुना है इसलिए हम जनता के आभारी हैं। सारंगी ने अपने भाषण में कई बार ऋग्वेद, गीता, रामचरित मानस और वेदों के मंत्रों, श्लोकों और सूक्तियों का उल्लेख किया। उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि इस बार जनता ने ‘सामंतियों’ को हराया और साबित किया कि वंशवाद को लोग पसंद नहीं करते। सारंगी ने कहा कि कांग्रेस को अब तो समझ जाना चाहिए ।
कैकेयी से की कांग्रेस की तुलना उन्होंने रामायण में राम-कैकेयी संवाद का उल्लेख करते हुए कहा कि कैकेयी ने राम को वनवास भेजा तो उन्हें पूरे देश ने जाना और नायक माना, ठीक इसी तरह ‘‘कांग्रेस के हम आभारी हैं।’’ इस दौरान सदन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे। दोनों को भी सारंगी के भाषण के दौरान कई बार मुस्कराते हुए देखा गया। सारंगी ने आपातकाल का भी उल्लेख किया और कांग्रेस पर संविधान का अपमान करने और लोकतंत्र की हत्या करने का आरोप लगाया। उन्होंने सिख विरोधी दंगों (1984) के लिए भी विपक्षी दल को आड़े हाथ लिया।
संतों के अपमान के चलते नेता विपक्ष का भी नहीं मिला पद सारंगी ने कहा कि संतों का अपमान किया गया, उसी का परिणाम है कि कांग्रेस को विपक्ष के नेता का भी पद नहीं मिला। उन्होंने कहा कि अमेठी संसदीय सीट से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को हराया और उन्हें केरल जाना पड़ा। केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘अब समय आ गया है कि कांग्रेस आत्मनिरीक्षा करे।’
उनकी धाराप्रवाह संस्कृत, हिन्दी, अँग्रेजी और बांग्ला ने समा बांध दिया। वेदों, उपनिषदों, गीता, रामायण, सभी भाषाओं के साहित्य और संविधान पर उनकी पाद का तो विपक्ष भी कायल हो गया। उनके भाषण की सोशल मीडिया पर बहुत तारीफ हो रही है।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/06/saarangi.jpg473630Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-06-26 01:14:082019-06-26 01:14:11सारंगी के सुर सधे हुए पर तीखे हैं
काश्मीर के बाद बंगाल आतनवादियों की शरणासथली बंता जा रहा है। बांग्लादेश के रास्ते बंगाल त पहुँचना ओर संरक्षण प्राप्त करना शेष सीमावर्ती राज्यों की अपेक्षा आधिक सरल ओर सुविधाजनक है। पुलिस को इनके पास से कई डिजीटल डॉक्यूमेंट्स मिले है जिसमें वीडियो और ऑडियो फाइलों के साथ साथ जिहादी बुकलेट्स भी मिली हैं.
कोलकाताः पश्चिम एसटीएफ ने कोलकाता के सियालदाह रेलवे स्टेशन से आईएसआईएस के 4 संदिग्धों को गिरफ्तार किया है. इनमें से 3 बांग्लादेश के नागरिक है और जिस भारतीय को इस मामले में पकड़ा है वह इन तीनों को छिपाने का काम करता था. इन चारों संदिग्धों का उद्देश्य आतंकी संगठन आईएसआईएस के लिए भर्ती करना और पैसा इकट्ठा करना था. ये लोग आतंक के अपने एजेंडे को फैलाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते थे. पुलिस को इनके पास से कई डिजीटल डॉक्यूमेंट्स मिले है जिसमें वीडियो और ऑडियो फाइलों के साथ साथ जिहादी बुकलेट्स भी मिली हैं.
ऐसा बताया जा रहा है कि उनके संगठन का मुख्य उद्देश्य भारत और बांग्लादेश में लोकतांत्रिक सरकार को उखाड़ और एक खिलाफत के तहत शरिया कानून स्थापित करना था. कोलकाता पुलिस द्वारा जारी बयान के मुताबिक सोमवार (24 जून) को एसटीएफ ने पुख्ता जानकारी के आधार पर एसटीएफ ने दो बांग्लादेशी नागरिकों को गिरफ्तार किया जो कि Neo-JBM (जमात-उल-मुजाहिद्दीन बांग्लादेश) इस्लामिक स्टेट के सदस्य हैं. यह गिरफ्तारी सियालदाह रेलवे स्टेशन की पार्किंग से हुई है. इनके पास से कई विवादित समाग्री मिली है.
सियालदाह से गिरफ्तार किए गए संदिग्धों के नाम मोहम्मद जियाउर रहमान और ममनूर रशीद हैं. दोनों ही बांग्लादेश के रहने वाले हैं. इनसे हुई पूछताछ के आधार पर मंगलवार को एसटीएफ ने हावड़ा से दो अन्य संदिग्धों को गिरफ्तार किया.
इन संदिग्धों के नाम मोहम्मद शाहीन आलम और रूबिउल इस्लाम है. शाहीन आलम बांग्लादेश का नागरिक है जबकि रूबिउल इस्लाम पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले का रहने वाला है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/06/840762-bengal-isis-collage.jpg7201280Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-06-25 16:41:412019-06-25 16:41:47एसटीएफ़ ने बंगाल में 4 ISIS संदिघ्द पकड़े
25 जून 1975 की आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी यानी आपातकाल लगाने की घोषणा की थी. आज़ाद भारत में इमरजेंसी के 21 महीनों के दौरान संवैधानिक अधिकारों को कुचल कर मनमाने ढंग से सत्ता चलाई गई. 25 जून 1975 को Doctor भीम राव अंबेडकर के लिखे संविधान की कीमत…एक साधारण किताब जैसी हो गई थी. इस तारीख़ को गांधीवाद की माला जपने वाली कांग्रेस ने महात्मा गांधी के आदर्शों और उसूलों की हत्या कर दी थी. देश एक ऐसे अंधेरे में डूब गया था, जहां सरकार के विरोध का मतलब था जेल. ये वो दौर था जब अपने अधिकारों को मांगने के लिए भी जनता के पास कोई रास्ता नहीं बचा था, क्योंकि अखबारों में वही छपता था, जो सरकार चाहती थी. रेडियो में वही समाचार सुनाई देते थे, जो सरकार के आदेश पर लिखे जाते थे.
25 जून को इमरजेंसी के 44 वर्ष पूरे हो जाएंगे. भारत में कम से कम दो पीढ़ियां ऐसी हैं, जो इमरजेंसी के बाद पैदा हुईं. और उनमें से सबसे युवा पीढ़ी को तो शायद इमरजेंसी के बारे में पता ही नहीं होगा. इसलिए, हम DNA में इमरजेंसी का विश्लेषण करने वाली एक सीरीज़ शुरू कर रहे हैं. जिसमें हम हर रोज़ आपको इमरजेंसी की अनुसनी कहानियां बताएंगे…ताकि हमारे हर उम्र के दर्शक इसके बारे में अच्छी तरह समझ सकें.
इमरजेंसी क्यों लगाई गई? इसके पीछे इंदिरा गांधी की मंशा क्या थी? इमरजेंसी को लगाने से पहले देश में किस तरह का माहौल था? इसकी जानकारी हम आपको आगे देंगे, लेकिन उससे पहले आपको ये बताते हैं कि आखिर इमरजेंसी होती क्या है? भारतीय संविधान में तीन तरह की इमरजेंसी का ज़िक्र है…
संविधान के Article 352 के तहत National emergency का प्रावधान है. इसे तब लगाया जाता है, जब देश की सुरक्षा को बाहरी आक्रमण से ख़तरा हो. संविधान के Article 356 के तहत State Emergency का प्रावधान है. इसे तब लगाया जाता है, जब राज्य में संवैधानिक मशीनरी फेल हो गई हो. इस इमरजेंसी को राष्ट्रपति शासन या President Rule भी कहा जाता है. और संविधान के Article 360 के तहत Financial emergency का प्रावधान है. इसे तब लगाया जाता है, जब देश की वित्तीय स्थिरता को ख़तरा हो.
भारत में National emergency यानी राष्ट्रीय आपातकाल तीन बार लगाया गया. पहली बार 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान, दूसरी बार 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान. और तीसरी बार 1975 में इंदिरा गांधी के शासनकाल में. 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आंतरिक गड़बड़ियों की आशंका को आधार बनाकर आपातकाल लगा दिया था. इसे एक तानाशाही फैसला कहा जाता है, क्योंकि देश में इमरजेंसी लगाने के आदेश पर कैबिनेट की मंज़ूरी के बिना ही राष्ट्रपति के हस्ताक्षर ले लिए गए थे. अगली ही सुबह विपक्ष के सभी बड़े नेताओं को जेल के अंदर डाल दिया गया था. देश में जो भी सरकार की आलोचना कर रहा था उसे गिरफ्तार कर लिया गया था.
आपातकाल में Maintenance of Internal Security Act यानी मीसा के तहत किसी को भी अनिश्चितकाल के लिए गिरफ़्तार कर लिया जाता था और उसे अपील करने का भी अधिकार नहीं था. इंदिरा गांधी ने देश के नागरिकों के सभी मूलभूत संवैधानिक अधिकार छीन लिए थे. लोकतंत्र में जनता ही भगवान है. लेकिन इंदिरा गांधी ने खुद को लोकतंत्र का भगवान समझ लिया था. इसलिए अपनी तानाशाही को बचाये रखने लिए उन्होंने इमरजेंसी लगा दी. इसकी वजह समझनी भी ज़रूरी है.
1971 का चुनाव जीतने के बाद अगले 3 वर्षों में इंदिरा गांधी की लोकप्रियता कम होने लगी. सरकारी नीतियों से देश की अर्थव्यवस्था बदहाल हो गई. भ्रष्टाचार और महंगाई ने लोगों की ज़िंदगी मुश्किल कर दी थी. महंगाई से परेशान सरकारी कर्मचारी वेतन बढ़ाने की मांग कर रहे थे और छात्र भी हालात से परेशान होकर आंदोलन करने लगे. उस वक्त तमिलनाडु को छोड़कर देश के हर राज्य में कांग्रेस की सरकार थी. लोगों का गुस्सा कांग्रेस सरकारों के प्रति बढ़ता जा रहा था. इसी बीच छात्र संगठनों ने भी आंदोलन तेज़ कर दिया था.
विपक्ष के सभी नेता एकजुट होकर इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग करने लगे. इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ देश भर में हड़ताल, प्रदर्शन, अनशन और आंदोलनों का दौर शुरू हो गया. 1974 में जार्ज फर्नांडिस के साथ करीब 17 लाख रेलवे कर्मचारी 20 दिनों तक हड़ताल पर चले गये. फर्नांडिस उस समय सोशलिस्ट पार्टी के चेयरमैन और ऑल इंडिया रेलवे मैंस फेडरेशन के अध्यक्ष थे. 1974 में इंदिरा गांधी की सरकार ने हड़ताल को गैरक़ानूनी क़रार देते हुए हज़ारों कर्मचारियों को नौकरी से बर्खास्त कर दिया.
इस फैसले के बाद कर्मचारी और मज़दूर इंदिरा गांधी से नाराज़ हो गए. लेकिन इमरजेंसी लगाने की आख़िरी वजह बना 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट को ऐतिहासिक फैसला, जिसमें रायबरेली से इंदिरा गांधी के निर्वाचन को रद्द कर दिया था…और उन्हें भ्रष्ट तरीकों से चुनाव लड़ने का दोषी ठहरा दिया था. आज आपको इस ऐतिहासिक घटनाक्रम के बारे में भी जानना चाहिए. जिसकी कहानी 1971 से शुरू होती है. वर्ष 1971 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी, रायबरेली से लोकसभा चुनाव जीती थीं.
लेकिन इंदिरा गांधी की इस जीत को उनके विपक्षी उम्मीदवार राजनारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दे दी. राज नारायण संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे. वो अपनी जीत को लेकर इतने आश्वस्त थे कि नतीजे घोषित होने से पहले ही उनके समर्थकों ने विजय जुलूस निकाल दिया था.
लेकिन जब परिणाम घोषित हुआ तो राज नारायण चुनाव हार गए. नतीजा आने के बाद राज नारायण ने इसके ख़िलाफ़ कोर्ट में अर्ज़ी दी. उन्होंने ये अपील की थी कि, इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया है, इसलिए ये चुनाव निरस्त कर दिया जाए. इंदिरा गांधी पर ये आरोप थे कि उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय के एक सीनियर अधिकारी यशपाल कपूर को अपना चुनावी एजेंट बनाया था, जबकि वो एक सरकारी कर्मचारी थे.
इसके अलावा उन्होंने ने भारतीय वायु सेना के विमानों का दुरुपयोग किया और रायबरेली के कलेक्टर और पुलिस अधिकारियों को अपने चुनाव के लिए इस्तेमाल किया. इंदिरा गांधी पर ये आरोप भी था कि चुनाव जीतने के लिए वोटरों को कंबल और शराब भी बंटवाई गई थी. यानी आप आज के विश्लेषण से ये भी जान सकते हैं कि चुनाव जीतने के लिए शराब और दूसरे सामान बांटने का फॉर्मूला इंदिरा गांधी ने 1970 के दशक में ही खोज लिया था. मुक़दमे की सुनवाई के दौरान इंदिरा गांधी पर सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल करने वाले आरोप सही साबित हुए.
इसी आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के खिलाफ एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया और उनके चुनाव को रद्द कर दिया. इस फैसले में अगले 6 वर्षों तक इंदिरा गांधी को लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहरा दिया गया.
ये इंदिरा गांधी के लिए बहुत बड़ा झटका था… उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. 25 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट के Vacation Judge वी आर कृष्णा अय्यर ने अपने फैसले में कहा कि इंदिरा गांधी को संसद में वोट का अधिकार नहीं है…पर वो अगले 6 महीने के लिए प्रधानमंत्री बनी रह सकती हैं.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद विपक्ष ने इंदिरा गांधी पर राजनीतिक हमले तेज़ कर दिए. 25 जून 1975 को ही दिल्ली के रामलीला मैदान में देश के वरिष्ठ राजनेता जयप्रकाश नारायण की रैली हुई और उस रैली में एक नारा दिया गया था- “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है”…..आपने भी ये नारा ज़रूर सुना होगा. लेकिन ये सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता थी.
कहा जाता है कि जयप्रकाश नारायण की रैली को रोकने के लिए भी इंदिरा गांधी ने कई कोशिशें की. दिल्ली की रामलीला मैदान में रैली करने के लिए जयप्रकाश नारायण को Flight से कलकत्ता से दिल्ली आना था लेकिन इंदिरा गांधी ने इस फ्लाइट को कैंसिल करवा दिया. इसके बावजूद वो दिल्ली पहुंच गये. इस रैली में करीब तीन लाख लोगों की संख्या देखकर इंदिरा गांधी घबरा गईं. इसके बाद उन्होंने तुरंत इमरजेंसी लगाने का फैसला ले लिया.
वक़्त बदलने देर नहीं लगती. वर्ष 1971 में इंदिरा गांधी ने लोकसभा को भंग कर के मध्यावधि चुनाव कराए थे. वो भारी बहुमत से चुनकर सत्ता में आई थीं. 1971 में कांग्रेस ने लोकसभा की 352 सीटें जीती थीं. इसके बाद दिसंबर 1971 में पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांटकर इंदिरा गांधी अपनी राजनीति के शिखर पर पहुंच गई थीं. लेकिन, सत्ता से चिपके रहने के इंदिरा गांधी के लालच ने देश को इस अंधकार में झोंक दिया. इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले के बाद इंदिरा गांधी इस्तीफ़ा देकर किसी और को प्रधानमंत्री बना सकती थीं और ये लड़ाई क़ानूनी तरीक़े से लड़कर दोबारा सत्ता हासिल कर सकती थीं. लेकिन, उन्होंने गांधी परिवार से बाहर के किसी सदस्य को प्रधानमंत्री बनाने के विकल्प पर काम नहीं किया और उसका नतीजा इमरजेंसी के तौर पर देश ने भुगता.
इंदिरा गांधी की इमरजेंसी वाली तानाशाही के पीछे एक पूरी टीम काम कर ही थी. इसमें दो तरह के लोग थे. एक वो जो इमरजेंसी को लागू करने की संवैधानिक रणनीति तैयार कर रहे थे. आप इन्हें इमरजेंसी के स्क्रिप्ट राइटर भी कह सकते हैं. इनमें पहला नाम है सिद्धार्थ शंकर रे– जो उस वक्त पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री थे. माना जाता है इमरजेंसी का आइडिया सिद्धार्थ शंकर रे ने ही इंदिरा गांधी को दिया था. सिद्धार्थ शंकर रे एक मशहूर वक़ील थे और संविधान के जानकार माने जाते थे. इमरजेंसी लगाने से पहले इंदिरा गांधी ने सिद्धार्थ शंकर रे को कोलकाता से दिल्ली बुलाया था.
इसके बाद 25 जून को रात 11 बजे इंदिरा गांधी और सिद्धार्थ शंकर रे राष्ट्रपति भवन गए. जहां इन दोनों ने इमरजेंसी की घोषणा पर तत्कालीन राष्ट्रपति फख़रुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर कराए. इस तरह, सिद्धार्थ शंकर रे ने संविधान की अपनी जानकारी का इस्तेमाल देश को आपातकाल के अंधकार में झोंकने के लिए किया.
इमरजेंसी के दूसरे बड़े किरदार का नाम है- तत्कालीन राष्ट्रपति फख़रुद्दीन अली अहमद. राष्ट्रपति पद के लिए फख़रुद्धीन अली अहमद के नाम को इंदिरा गांधी ने ही आगे बढ़ाया था. शायद यही वजह थी कि फखरुद्दीन अली अहमद ने विरोध का एक भी शब्द कहे बिना …संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर कर दिए.
आधी रात को इमरजेंसी के पेपर पर राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर पर एक कार्टून भी बना था, जो पूरी दुनिया में चर्चित हो गया. इसमें फख़रुद्दीन अली अहमद अपने बाथटब में लेटे हुए इमरजेंसी के पेपर पर साइन कर रहे हैं और ये कह रहे हैं कि बाक़ी के कागज़ों पर साइन लेने के लिए थोड़ा इंतज़ार करें. इस कार्टून से आप इंदिरा गांधी की सत्ता की शक्ति और तानाशाही का अंदाज़ा लगा सकते हैं.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/06/emergency-ss-25-06-15.jpg338666Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-06-25 16:02:192019-06-25 16:02:22आपातकाल कब – क्यूँ और कैसे ?
We may request cookies to be set on your device. We use cookies to let us know when you visit our websites, how you interact with us, to enrich your user experience, and to customize your relationship with our website.
Click on the different category headings to find out more. You can also change some of your preferences. Note that blocking some types of cookies may impact your experience on our websites and the services we are able to offer.
Essential Website Cookies
These cookies are strictly necessary to provide you with services available through our website and to use some of its features.
Because these cookies are strictly necessary to deliver the website, you cannot refuse them without impacting how our site functions. You can block or delete them by changing your browser settings and force blocking all cookies on this website.
Google Analytics Cookies
These cookies collect information that is used either in aggregate form to help us understand how our website is being used or how effective our marketing campaigns are, or to help us customize our website and application for you in order to enhance your experience.
If you do not want that we track your visist to our site you can disable tracking in your browser here:
Other external services
We also use different external services like Google Webfonts, Google Maps and external Video providers. Since these providers may collect personal data like your IP address we allow you to block them here. Please be aware that this might heavily reduce the functionality and appearance of our site. Changes will take effect once you reload the page.
Google Webfont Settings:
Google Map Settings:
Vimeo and Youtube video embeds:
Google ReCaptcha cookies:
Privacy Policy
You can read about our cookies and privacy settings in detail on our Privacy Policy Page.