ऑडिट रिपोर्ट को सीसोदिया ने दी चुनौती, केजरीवाल ने झाड़ा पल्ला, 12 राज्यों में हुई हत्याओं का दोषी कौन?

दिल्ली में ऑक्सीजन के मुद्दे पर गठित सुप्रीम कोर्ट के एक पैनल ने जब अपनी रिपोर्ट पेश की तो आम आदमी पार्टी (आआपा) सरकार पूरी तरह उखड़ गई। बीजेपी की तरफ से सवाल हुआ तो डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने रिपोर्ट को ‘तथाकथित’ कहते हुए रिपोर्ट पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया। इस केस में सीएम अरविंद केजरीवाल ने यह कह कर कि वो दो करोड़ लोगों की लड़ाई लड़ रहे थे रिपोर्ट पर जवाबदेई से पल्ला झाड लिया। अब इस पूरे मामले पर सिर्फ और सिर्फ राजनीति होगी। कानून प्रावधान क्या होने चाहिए और क्या होंगे न तो इस पर चर्चा होगी न ही कोई बनती कार्यवाई। 12 राज्यों में प्राण दायिनी ऑक्सिजन की कमी से जो हत्याएँ हुईं उनको कभी भी न्याय नहीं मिलेगा।

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन संकट को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त किए गए ऑडिट पैनल ने अपनी रिपोर्ट दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जब पूरा देश मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए संघर्षरत था, तब अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने 4 गुणा अधिक ऑक्सीजन की माँग की थी।

इस दौरान राजनैतिक लाभ लेने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री केजरीवाल और उनके मंत्रियों ने लगातार यह कहा था कि दिल्ली को उचित मात्रा में ऑक्सीजन नहीं प्राप्त हो रही है, इसके कारण दिल्ली को आवश्यकता से अधिक ऑक्सीजन प्रदान करनी पड़ी। यह सब तब हुआ जब बाकी राज्य लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन के लिए लगातार प्रतीक्षा कर रहे थे।

ऑडिट पैनल की रिपोर्ट में PESO के द्वारा किए गए अध्ययन को शामिल किया गया है। इसमें यह बताया गया है कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड और पंजाब जैसे राज्य टैंकर और कंटेनर की कमी से जूझ रहे थे, वहीं दिल्ली के 4 कंटेनर सूरजपुर आईनॉक्स में खड़े थे। ये कंटेनर इसलिए खड़े थे, क्योंकि दिल्ली में आपूर्ति आवश्यकता से ज्यादा थी और लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन को स्टोर करने की कोई जगह नहीं थी। इस रिपोर्ट में यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि दिल्ली द्वारा जितनी ऑक्सीजन की माँग की जा रही थी, वास्तविक आवश्यकता उससे कहीं कम थी।

अब चूँकि दिल्ली के अस्पतालों में आवश्यकता से अधिक ऑक्सीजन उपलब्ध थी। इसलिए ऑक्सीजन निस्तारण में अधिक समय लगने लगा। इससे रिलायंस जैसे अपूर्तिकर्ताओं को भी अपने कंटेनर प्राप्त करने और उन्हें रिफिल करके भेजने में औसत से अधिक समय लग गया।

अंतरिम रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दिल्ली न तो ऑक्सीजन के वास्तविक उपयोग का ऑडिट कर रही थी, न ही इसकी वास्तविक माँग का आकलन कर रही थी। इससे केंद्र सरकार उत्तरी भारत के अन्य राज्यों को ऑक्सीजन आवंटित कर सकने में असमर्थ थी, जहाँ अस्पतालों में लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन (LMO) की वास्तविक आवश्यकता थी।

ऑडिट पैनल की रिपोर्ट के अनुसार, 5 मई से 11 मई के बीच पेट्रोलियम एंड ऑक्सीजन सेफ्टी ऑर्गनाइजेशन (PESO) द्वारा किए गए अध्ययन में यह भी पाया गया था कि दिल्ली के लगभग 80% प्रमुख अस्पतालों में 12 घंटे से अधिक समय तक LMO का स्टॉक था। औसत दैनिक खपत 282 मीट्रिक टन से 372 मीट्रिक टन के बीच पाई गई और दिल्ली में उस समय मांग की जा रही 700 मीट्रिक टन LMO के लिए पर्याप्त भंडारण सुविधाएँ नहीं थीं।

यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आआपा सरकार द्वारा LMO की कमी का दावा किया गया था। उसके बाद जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार को दिल्ली को 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति बनाए रखने का निर्देश दिया था। वहीं, केंद्र ने विशेषज्ञों के सुझाव के आधार पर 415 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति निश्चित करने की बात कही थी।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 9 मई से केजरीवाल की आआपा सरकार पड़ोसी राज्यों में वैकल्पिक भंडारण स्थान प्राप्त करने की कोशिश कर रही थी क्योंकि उनके पास LMO के लिए भंडारण स्थान समाप्त हो गया था। दिल्ली की आआपा सरकार ने भंडारण सुविधाओं की कमी के कारण एयर लिक्विड कंपनी से आवंटित LMO (150 एमटी) की तुलना में कम मात्रा में ऑक्सीजन उठाई थी। केजरीवाल सरकार ने कंपनी से पानीपत और रुड़की में अपने संयंत्रों में उनके लिए LMO स्टोर करने के लिए भी कहा था।

इतना ही नहीं, दिल्ली की आआपा सरकार के कारण ओडिशा में लिंडे और JSW झारसुगुड़ा जैसे संयंत्रों को अपने टैंकर होल्ड करने और अन्य राज्यों को आपूर्ति में देरी करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। दरअसल, दिल्ली में आआपा सरकार ने उपलब्ध और आवंटित ऑक्सीजन टैंकरों का उपयोग ही नहीं किया अथवा अस्पतालों में स्टोरेज की अनुपस्थिति के कारण टैंकर वापस कर दिए गए। गोयल गैसेस ने सूचित किया था कि दिल्ली के अस्पतालों के पास आवश्यक ऑक्सीजन उपलब्ध है और उनके पास कोई अतिरिक्त भंडारण सुविधा उपलब्ध नहीं है इसलिए उनके टैंकर लंबे समय तक इंतजार करते रहे जिसके परिणामस्वरूप अन्य राज्यों को ऑक्सीजन आपूर्ति में कमी हो गई।

दिल्ली में केजरीवाल की आआपा सरकार ने केंद्र सरकार पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए बड़े पैमाने पर हंगामा किया और दिल्ली की ऑक्सीजन को रोके रखने के लिए अन्य राज्यों को भी जिम्मेदार ठहराया था। केजरीवाल ने तो प्रोटोकॉल को भी तोड़ा और पीएम मोदी के साथ मुख्यमंत्रियों की गोपनीय बैठक के वीडियो फुटेज को टीवी पर दिखा दिया। मीटिंग में उन्हें यह कहते हुए देखा गया कि दिल्ली को ऑक्सीजन की बहुत अधिक जरूरत है। दिल्ली सरकार का राजनैतिक और मीडिया का ड्रामा इतना अधिक हो गया था कि अंततः सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल देना पड़ा।

अब प्रश्न यह हा कि तब दिल्ली ऑक्सिजन की कमी का स्वत: संगयान लेने वाले न्यायालय अब आआपा की इस रिपोर्ट पर या कार्यवाई कराते हैं या फिर अब शास्त्र मौन हैं

लावारिस अस्थियों को 5 जून को हरिद्वार में विसर्जित करेगा श्री नीलकंठ समाजसेवा ट्रस्ट

सतीश बंसल सिरसा:

 श्री नीलकंठ समाजसेवा ट्रस्ट की एक बैठक भादरा बाजार स्थित संस्था के पंजीकृत कार्यालय में हुई जिसमें ट्रस्ट के आगामी कार्यों को लेकर चर्चा की गई। संस्था के लंगर प्रधान एवं ट्रस्टी जनक दाबड़ा ने बताया कि ट्रस्ट द्वारा लंबे अरसे से लावारिस अस्थियों का विर्सजन हरिद्वार में किया जाता है। चूंकि अब कोरोना काल चल रहा है, इसलिए ट्रस्ट ने इस बार असमर्थ व कोरोना से प्रभावित अस्थियों का विर्सजन श्री गंगा जी में करने का निर्णय लिया है। इसी कड़ी में 5 जून को ट्रस्ट के पदाधिकारियों व सदस्यों का जत्था हरिद्वार के लिए रवाना होगा। असमर्थ व कोरोना से प्रभावित परिवार 98122-72173, 94162-52457, 94161-24704 पर सपंर्क कर सकते है ताकि अस्थियों का विर्सजन हो पाए। बता दें कि ट्रस्ट की ओर से नववर्ष पर श्री नीलकंठ में भंडारा, जबकि दोनो शिवरात्रि के अवसर पर शिवपुरी सिरसा में भंडारे लगाए जाते है। इसके अतिरिक्त अन्य समाजहित कार्य भी किए जाते है। इस बैठक में शुभकरण रातुसरिया, सुरेंद्र ग्रोवर, काली बाबा, राजेश फुटेला, अशोक सलूजा, रवि सेठी, आकाश मुंजाल, लक्की मेहता, सुरेंद्र बब्बर, जगदीश साहुवाला व अतुल गोयल भी मौजूद थे।

आज है देवी भगवती बगलामुखी अष्टमी(जयंती)

हर साल वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बगलामुखी जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष गुरुवार, 20 मई 2021 को मां बगलामुखी जयंती मनाई जा रही है।प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। 1. काली 2. तारा 3. षोड़षी 4. भुवनेश्वरी 5. छिन्नमस्ता 6. त्रिपुर भैरवी 7. धूमावती 8. बगलामुखी 9. मातंगी 10. कमला। मां भगवती श्री बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। मां बगलामुखी यंत्र चमत्कारी सफलता तथा सभी प्रकार की उन्नति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कहते हैं इस यंत्र में इतनी क्षमता है कि यह भयंकर तूफान से भी टक्कर लेने में समर्थ है।

माँ बगलामुखी

डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम, धर्म /संस्कृति डेस्क:

वैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता है जिस कारण इसे मां बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है. इस वर्ष 2021 में यह जयन्ती 20 मई, को मनाई जाएगी. इस दिन व्रत एवं पूजा उपासना कि जाती है साधक को माता बगलामुखी की निमित्त पूजा अर्चना एवं व्रत करना चाहिए. बगलामुखी जयंती पर्व देश भर में हर्षोउल्लास व धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इस अवसर पर जगह-जगह अनुष्ठान के साथ भजन संध्या एवं विश्व कल्याणार्थ महायज्ञ का आयोजन किया जाता है तथा महोत्सव के दिन शत्रु नाशिनी बगलामुखी माता का विशेष पूजन किया जाता है और रातभर भगवती जागरण होता है.

माँ बगलामुखी स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं. माँ बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है. देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए.

देवी बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह स्तम्भन की देवी हैं. संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं माता बगलामुखी शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है. इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर  प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है. बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है.

बगलामुखी देवी रत्नजडित सिहासन पर विराजती होती हैं रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं. देवी के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं. देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है, बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है.

बगलामुखी कथा

देवी बगलामुखी जी के संदर्भ में एक कथा बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा इससे चारों ओर हाहाकार मच जाता है और अनेकों लोक संकट में पड़ गए और संसार की रक्षा करना असंभव हो गया. यह तूफान सब कुछ नष्ट भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, जिसे देख कर भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए.

इस समस्या का कोई हल न पा कर वह भगवान शिव को स्मरण करने लगे तब भगवान शिव उनसे कहते हैं कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में जाएँ, तब भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर के निकट पहुँच कर कठोर तप करते हैं. भगवान विष्णु ने तप करके महात्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न किया देवी शक्ति उनकी साधना से प्रसन्न हुई और सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीडा करती महापीत देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ.

उस समय चतुर्दशी की रात्रि को देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुई, त्र्येलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी नें प्रसन्न हो कर विष्णु जी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रूक सका. देवी बगलामुखी को बीर रति भी कहा जाता है क्योंकि देवी स्वम ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं, इनके शिव को एकवक्त्र महारुद्र कहा जाता है इसी लिए देवी सिद्ध विद्या हैं. तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं, गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं.

पूजा-साधना काल की सावधानियां-

  • ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  • पीले वस्त्र धारण करें।
  • एक समय भोजन करें।
  • बाल नहीं कटवाए।
  • मंत्र के जप रात्रि के 10 से प्रात: 4 बजे के बीच करें।
  • दीपक की बाती को हल्दी या पीले रंग में लपेट कर सुखा लें।
  • साधना में छत्तीस अक्षर वाला मंत्र श्रेष्ठ फलदायी होता है।
  • साधना अकेले में, मंदिर में, हिमालय पर या किसी सिद्ध पुरुष के साथ बैठकर की जानी चाहिए।

बगलामुखी जयंती 2021 शुभ मुहूर्त-

बगलामुखी जयंती मुहूर्त : गुरुवार, 20 मई 2021 को 11.50 मिनट से 12.45 मिनट तक।

मां बगलामुखी पूजन

माँ बगलामुखी की पूजा हेतु इस दिन प्रात: काल उठकर नित्य कर्मों में निवृत्त होकर, पीले वस्त्र धारण करने चाहिए. साधना अकेले में, मंदिर में या किसी सिद्ध पुरुष के साथ बैठकर की जानी चाहिए. पूजा करने के लुए  पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करने के लिए आसन पर बैठें चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती बगलामुखी का चित्र स्थापित करें.

इसके बाद आचमन कर हाथ धोएं। आसन पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन, दीप प्रज्जवलन के बाद हाथ में पीले चावल, हरिद्रा, पीले फूल और दक्षिणा लेकर संकल्प करें. इस पूजा में  ब्रह्मचर्य का पालन करना आवशयक होता है  मंत्र- सिद्ध करने की साधना में माँ बगलामुखी का पूजन यंत्र चने की दाल से बनाया जाता है और यदि हो सके तो ताम्रपत्र या चाँदी के पत्र पर इसे अंकित करें.

माँ बगलामुखी मंत्र

श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।
ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।

इसके पश्चात आवाहन करना चाहिए

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।

अब देवी का ध्यान करें इस प्रकार

सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।

मंत्र

ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां
वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय
बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा।

माँ बगलामुखी की साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है. यह मंत्र विधा अपना कार्य करने में सक्षम हैं. मंत्र का सही विधि द्वारा जाप किया जाए तो निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है. बगलामुखी मंत्र के जाप से पूर्व बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए. देवी बगलामुखी पूजा अर्चना सर्वशक्ति सम्पन्न बनाने वाली सभी शत्रुओं का शमन करने वाली तथा मुकदमों में विजय दिलाने वाली होती है.

गंगा जयंती : 18 मई

जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई वह दिन गंगा जयंती (वैशाख शुक्ल सप्तमी) और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई वह दिन ‘गंगा दशहरा’ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाने से सभी पाप नष्ट हो जाते है और मनुष्य को मोक्ष प्राप्त होता है।

गंगा जयंती हिन्दुओं का एक प्रमुख पर्व है. वैशाख शुक्ल सप्तमी के पावन दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई इस कारण इस पवित्र तिथि को गंगा जयंती के रूप में मनाया जाता है. इस वर्ष 2021 में यह जयन्ती 18 मई को मनाई जाएगी.

गंगा जयंती के शुभ अवसर पर गंगा जी में स्नान करने से सात्त्विकता और पुण्यलाभ प्राप्त होता है. वैशाख शुक्ल सप्तमी का दिन संपूर्ण भारत में श्रद्धा व उत्साह के साथ मनाया जाता है यह तिथि पवित्र नदी गंगा के पृथ्वी पर आने का पर्व है गंगा जयंती. स्कन्दपुराण, वाल्मीकि रामायण आदि ग्रंथों में गंगा जन्म की कथा वर्णित है.

भारत की अनेक धार्मिक अवधारणाओं में गंगा नदी को देवी के रूप में दर्शाया गया है. अनेक पवित्र तीर्थस्थल गंगा नदी के किनारे पर बसे हुये हैं. गंगा नदी को भारत की पवित्र नदियों में सबसे पवित्र नदी के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है. लोग गंगा के किनारे ही प्राण विसर्जन या अंतिम संस्कार की इच्छा रखते हैं तथा मृत्यु पश्चात गंगा में अपनी राख विसर्जित करना मोक्ष प्राप्ति के लिये आवश्यक समझते हैं. लोग गंगा घाटों पर पूजा अर्चना करते हैं और ध्यान लगाते हैं.

गंगाजल को पवित्र समझा जाता है तथा समस्त संस्कारों में उसका होना आवश्यक माना गया है. गंगाजल को अमृत समान माना गया है. अनेक पर्वों और उत्सवों का गंगा से सीधा संबंध है मकर संक्राति, कुंभ और गंगा दशहरा के समय गंगा में स्नान, दान एवं दर्शन करना महत्त्वपूर्ण समझा माना गया है. गंगा पर अनेक प्रसिद्ध मेलों का आयोजन किया जाता है. गंगा तीर्थ स्थल सम्पूर्ण भारत में सांस्कृतिक एकता स्थापित करता है गंगा जी के अनेक भक्ति ग्रंथ लिखे गए हैं जिनमें श्रीगंगासहस्रनामस्तोत्रम एवं गंगा आरती बहुत लोकप्रिय हैं.

गंगा जन्म कथा

गंगा नदी हिंदुओं की आस्था का केंद्र है और अनेक धर्म ग्रंथों में गंगा के महत्व का वर्णन प्राप्त होता है गंगा नदी के साथ अनेक पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं जो गंगा जी के संपूर्ण अर्थ को परिभाषित करने में सहायक है.  इसमें एक कथा अनुसार गंगा का जन्म भगवान विष्णु के पैर के पसीनों की बूँदों से हुआ गंगा के जन्म की कथाओं में अतिरिक्त अन्य कथाएँ भी हैं. जिसके अनुसार गंगा का जन्म ब्रह्मदेव के कमंडल से हुआ.

एक मान्यता है कि वामन रूप में राक्षस बलि से संसार को मुक्त कराने के बाद ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु के चरण धोए और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया और एक अन्य कथा अनुसार जब भगवान शिव ने नारद मुनि, ब्रह्मदेव तथा भगवान विष्णु के समक्ष गाना गाया तो इस संगीत के प्रभाव से भगवान विष्णु का पसीना बहकर निकलने लगा जिसे ब्रह्मा जी ने उसे अपने कमंडल में भर लिया और इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ था.

गंगा जयंती महत्व

शास्त्रों के अनुसार बैशाख मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को ही गंगा स्वर्ग लोक से शिव शंकर की जटाओं में पहुंची थी इसलिए इस दिन को गंगा जयंती और गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है.  जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई वह दिन गंगा जयंती (वैशाख शुक्ल सप्तमी) और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई वह दिन ‘गंगा दशहरा’ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है इस दिन मां गंगा का पूजन किया जाता है.  गंगा जयंती के दिन गंगा पूजन एवं स्नान से रिद्धि-सिद्धि, यश-सम्मान की प्राप्ति होती है तथा समस्त पापों का क्षय होता है. मान्यता है कि इस दिन गंगा पूजन से मांगलिक दोष से ग्रसित जातकों को विशेष लाभ प्राप्त होता है. विधिविधान से गंगा पूजन करना अमोघ फलदायक होता है.

पुराणों के अनुसा गंगा विष्णु के अँगूठे से निकली हैं, जिसका पृथ्वी पर अवतरण भगीरथ के प्रयास से कपिल मुनि के शाप द्वारा भस्मीकृत हुए राजा सगर के 60,000 पुत्रों की अस्थियों का उद्धार  करने के लिए हुआ था  तब उनके उद्धार के लिए राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर माता गंगा को प्रसन्न किया और धरती पर लेकर आए। गंगा के स्पर्श से ही सगर के 60 हजार पुत्रों का उद्धार संभव हो सका  इसी कारण गंगा का दूसरा नाम भागीरथी पड़ा.

आदि शंकराचार्य जयंती

आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म कब हुआ था? इस संबंध में भ्रम फैला हुआ है। इतिहासकार मानते हैं कि उनका जन्म 7वीं सदी के उत्तरार्ध में हुआ था। आओ जानते हैं कि आखिर सचाई क्या है? आदि शंकराचार्य का जन्म- महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है कि आदि शंकराचार्यजी का काल लगभग 2200 वर्ष पूर्व का है। दयानंद सरस्वती जी 139 साल पहले हुए थे। आज के इतिहासकार कहते हैं कि आदि शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में हुआ और उनकी मृत्यु 820 ईस्वी में। मतलब वह 32 साल जीए। अब हम असली बात समझते हैं।

धर्म/संस्कृति डेस्क

इस वक्त 2021 ईसाई वर्ष चल रहा है। विक्रम संवत इससे 57 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था। वर्तमान में विक्रम संवत 2076 चल रहा है। इस वक्त कलि संवत 5120 चल रहा है। युधिष्ठिर संवत कलि संवत से 38 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था। मतलब इस वक्त युधिष्ठिर संवत 5158 चल रहा है।

आदि शंकराचार्य जयन्ती के पावन अवस्रप पर शंकराचार्य मठों में पूजन हवन का आयोजन किया जाता है। देश भर में आदि शंकराचार्य जी को पूजा जाता है। अनेक प्रवचनों एवं सतसंगों का आयोजन भी होता है। सनातन धर्म के महत्व पर की उपदेश दिए जाते हैं और चर्चा एवं गोष्ठी भी कि जाती है। मान्यता है कि इस पवित्र समय अद्वैत सिद्धांत का पाठ करने से व्यक्ति को परेशानियों से मुक्ति प्राप्त होती है। इस दिन धर्म यात्राएं एवं शोभा यात्रा भी निकाली जाती है। आदि शंकराचार्य जी ने अद्वैत वाद के सिंद्धांत को प्रतिपादित किया जिस कारण  आदि शंकराचार्य जी को हिंदु धर्म के महान प्रतिनिधि के तौर पर जाना जाता है, आदि शंकराचार्य, जी को जगद्गुरु  एवं शंकर भगवद्पादाचार्य के नाम से भी जाना जाता है।

आदि शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की थी। उत्तर दिशा में उन्होंने बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ की स्थापना की थी। यह स्थापना उन्होंने 2641 से 2645 युधिष्ठिर संवत के बीच की थी। इसके बाद पश्‍चिम दिशा में द्वारिका में शारदामठ की स्थापना की थी। इसकी स्थापना 2648 युधिष्‍ठिर संवत में की थी। इसके बाद उन्होंने दक्षिण में श्रंगेरी मठ की स्थापना भी 2648 युधिष्‍ठिर संवत में की थी। इसके बाद उन्होंने पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में 2655 युधिष्‍ठिर संवत में गोवर्धन मठ की स्थापना की थी। आप इन मठों में जाएंगे तो वहां इनकी स्थापना के बारे में लिखा जान लेंगे।

असाधारण प्रतिभा के धनी आद्य जगदगुरू शंकराचार्य का जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी के पावन दिन हुआ था। दक्षिण के कालाड़ी ग्राम में जन्में शंकर जी आगे चलकर ‘जगद्गुरु आदि शंकराचार्य’ के नाम से विख्यात हुए। इनके पिता शिवगुरु नामपुद्रि के यहाँ जब विवाह के कई वर्षों बाद भी कोई संतान नहीं हुई, तो इन्होंने अपनी पत्नी विशिष्टादेवी सहित संतान प्राप्ति की इच्छा को पूर्ण करने के लिए से दीर्घकाल तक भगवान शंकर की आराधना की इनकी श्रद्धा पूर्ण कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। शिवगुरु ने प्रभु शंकर से एक दीर्घायु सर्वज्ञ पुत्र की इच्छा व्यक्त की। तब भगवान शिव ने कहा कि ‘वत्स, दीर्घायु पुत्र सर्वज्ञ नहीं होगा और सर्वज्ञ पुत्र दीर्घायु नहीं होगा अत: यह दोनों बातें संभव नहीं हैं तब शिवगुरु ने सर्वज्ञ पुत्र की प्राप्ति की प्रार्थना की और भगवान शंकर ने उन्हें सर्वज्ञ पुत्र की प्राप्ति का वरदान दिया तथा कहा कि मैं स्वयं पुत्र रूप में तुम्हारे यहाँ जन्म लूंगा। इस प्रकार उस ब्राह्मण दंपती को संतान रूप में पुत्र रत्न की प्राप्त हुई और जब बालक का जन्म हुआ तो उसका नाम शंकर रखा गया शंकराचार्य ने शैशव में ही संकेत दे दिया कि वे सामान्य बालक नहीं है. सात वर्ष की अवस्था में उन्होंने वेदों का पूर्ण अध्ययन कर लिया था, बारहवें वर्ष में सर्वशास्त्र पारंगत हो गए और सोलहवें वर्ष में ब्रह्मसूत्र- भाष्य कि रचना की उन्होंने शताधिक ग्रंथों की रचना शिष्यों को पढ़ाते हुए कर दी अपने इन्हीं महान कार्यों के कारण वह आदि गुरू शंकराचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए।

मठों में आदि शंकराचार्य से अब तक के जितने भी गुरु और उनके शिष्य हुए हैं उनकी गुरु-शिष्य परंपरा का इतिहास संवरक्षित है। जो भी गुरु या गुरु का शिष्य समाधि लेता था उनकी तिथि वहां के इतिहास में दर्ज होती थी। फिर जो गुरु शंकराचार्य की पदवी ग्रहण करता और समाधि लेता था उसकी भी तिथि आदि दर्ज होती रही है। उक्त तिथियों को श्लोकों में लिखे जाने की परंपरा रही है। जिसे गुरु-शिष्य की परंपरा के अनुसार कंठस्थ किए जाने का प्रचलन रहा है। शंकराचार्य ने पश्‍चिम दिशा में 2648 में जो शारदामठ बनाया गया था उसके इतिहास की किताबों में एक श्लोक लिखा है।

युधिष्ठिरशके 2631 वैशाखशुक्लापंचमी श्री मच्छशंकरावतार:। तदुन 2663 कार्तिकशुक्लपूर्णिमायां….श्रीमच्छंशंकराभगवत्। पूज्यपाद….निजदेहेनैव……निजधाम प्रविशन्निति।

अर्थात 2631 युधिष्‍ठिर संवत में आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ था। मतलब आज 5158 युधिष्ठिर संवत चल रहा है। अब यदि 2631 में से 5158 घटाकर उनकी जन्म तिथि निकालते हैं तो 2527 वर्ष पूर्व उनका जन्म हुआ था। इसको यदि हम अंग्रेजी या ईसाई संवत से निकालते हैं तो 2527 में से हम 2019 घटा दे तो आदि शंकराचार्य का जन्म 508 ईसा पूर्व हुआ था। इसी तरह मृत्यु का सन् निकालें तो 474 ईसा पूर्व उनकी मृत्यु हुई थी।

आदि शंकराचार्य जयन्ती के दिन शंकराचार्य मठों में पूजन हवन किया जाता है और पूरे देश में सनातन धर्म के महत्व पर विशेष कार्यक्रम किए जाते हैं। मान्यता है कि आदि शंकराचार्य जंयती के अवसर पर अद्वैत सिद्धांत का किया जाता है। इस अवसर पर देश भर में शोभायात्राएं निकली जाती हैं तथा जयन्ती महोत्सव होता है जिसमें बडी संख्या में श्रद्वालु भाग लेते हैं तथा यात्रा करते समय रास्ते भर गुरु वन्दना और भजन-कीर्तनों का दौर रहता है। इस अवसर पर अनेक समारोह आयोजित किए जाते हैं जिसमें वैदिक विद्वानों द्वारा वेदों का सस्वर गान प्रस्तुत किया जाता है और समारोह में शंकराचार्य विरचित गुरु अष्टक का पाठ भी किया जाता है।

आदि शंकराचार्य के समय जैन राजा सुधनवा थे। उनके शासन काल में उन्होंने वैदिक धर्म का प्रचार किया। उन्होंने उस काल में जैन आचार्यों को शास्त्रार्थ के लिए आमंत्रित किया। राजा सुधनवा ने बाद में वैदिक धर्म अपना लिया था। राजा सुधनवा का ताम्रपत्र आज उपलब्ध है। यह ताम्रपत्र आदि शंकराचार्य की मृत्यु के एक महीने पहले लिख गया था। शंकराचार्य के सहपाठी चित्तसुखाचार्या थे। उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम है बृहतशंकर विजय। हालांकि वह पुस्तक आज उसके मूल रूप में उपलब्ध नहीं हैं लेकिन उसके दो श्लोक है। उस श्लोक में आदि शंकराचार्य के जन्म का उल्लेख मिलता है जिसमें उन्होंने 2631 युधिष्ठिर संवत में आदि शंकराचार्य के जन्म की बात कही है। गुरुरत्न मालिका में उनके देह त्याग का उल्लेख मिलता है।

भ्रम क्यों उत्पनन्न हुआ- दरअसल, 788 ईस्वी में एक अभिनव शंकर हुए जिनकी वेशभूषा और उनका जीवन भी लगभग शंकराचार्य की तरह ही था। वे भी मठ के ही आचार्य थे। उन्होंने चिदंबरमवासी श्रीविश्वजी के घर जन्म लिया था। उनको इतिहाकारों ने आदि शंकराचार्य समझ लिया। ये अभिनव शंकराचार्यजी कैलाश में एक गुफा में चले गए थे। ये शंकराचार्य 45 वर्ष तक जीए थे। लेकिन आदि शंकराचार्य का जन्म केरल के मालाबार क्षेत्र के कालड़ी नामक स्थान पर नम्बूद्री ब्राह्मण शिवगुरु एवं आर्याम्बा के यहां हुआ था और वे 32 वर्ष तक ही जीए थे।

शंकराचार्य ने ही दसनामी सम्प्रदाय की स्थापना की थी। यह दस संप्रदाय निम्न हैं:- 1.गिरि, 2.पर्वत और 3.सागर। इनके ऋषि हैं भ्रगु। 4.पुरी, 5.भारती और 6.सरस्वती। इनके ऋषि हैं शांडिल्य। 7.वन और 8.अरण्य के ऋषि हैं काश्यप। 9.तीर्थ और 10. आश्रम के ऋषि अवगत हैं।

पंचकूला सैक्टर 25 निवासी पर्वतारोही संदीप दलाल की नहीं ले रहा ज़िला प्रशासन कोई सुध- चंद्रमोहन

पूर्व उपमुख्यमंत्री चंद्रमोहन जी ने युवा पर्वतारोही संदीप दलाल के आवास पर पहुँच कर शुभकामनाएँ दी। संदीप हाल ही  में माउंट एवरेस्ट के बेस केम्प तक की  चढाई केवल 15 दिनो में पूरी की है।पूर्व उपमुख्यमंत्री ने प्रशासन पर पर्वतारोही  की अनदेखी का आरोप लगाते हुए कहा कि जिस नौजवान ने हरियाणा और पंचकुला का नाम रोशन किया है प्रशासन द्वारा उसे हर सम्भव प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए ताकी अन्य युवा भी संदीप दलाल जैसे युवाओं से  प्रेरणा लेकर हरियाणा का नाम रोशन कर सके ।संदीप दलाल माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप तक पहुँचने वाले ट्राईसिटी के पहले युवा हैं 

चन्द्रमोहन जी ने कहा 17598 फुट तक पहुँचने वाले ज़िले के पहले युवा बने है अब उनकी चाहत माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने की है संदीप दलाल गुरुग्राम की डेल कम्पनी मै जाब करते है मिडीया प्रवक्ता हेमन्त किगरं ने कहा संदीप दलाल को जब ठंड लग रही थी हवा कानों को चिर रही थी आक्सीजन भी कम होने के कारन सांस लेने मैं दिक़्क़त आ रही थी  फिर भी संदीप दलाल ने हिम्मत नहीं हारी 

मिडीया प्रवक्ता हेमन्त किगरं ने कहा की पूर्व उप मुख्यमंत्री चन्द्रमोहन जी ने संदीप दलाल को हर सम्भव सहायता देने के लिये कहा है ईस मोके पर कांग्रेस के पार्षद व कई कांग्रेस नेता उपस्थित थेपार्षद अकक्षदीप चोधरी ,पार्षद संदीप सोही, रबदीप चोधरी, कांग्रेस नेता पवन बिटु,राजेन्द्र सिंह,अजमेर सिंह,बलजीत  सिंह,के के सिंह,गियान चदं,रवीन्द्र शर्मा,कुलदीप बकशी,दिपक खुलर, 

जंगलों की आग से बचने के उपाय छुपे हैं ग्रामीण परिवेश में

चढ़ते पारे के साथ उत्तराखंड के जंगलों में फिर से आग भड़कने लगी है। 24 घंटे के भीतर ही प्रदेशभर में 50 नई घटनाएं हुईं, जिनमें बड़े पैमाने पर वन संपदा को नुकसान पहुंचा है। जबकि, कई क्षेत्रों में जंगल की आग रिहायशी इलाकों के करीब पहुंच गई, जिससे ग्रामीणों और मवेशियों को खतरा बना हुआ है। वन विभाग, एनडीआरएफ और फायर ब्रिगेड आग पर काबू पाने में जुटी हुई हैं। हालांकि, जंगलों में जानबूझकर आग लगाने वाले शरारती तत्व भी बाज नहीं आ रहे हैं। वन विभाग की टीम ने तीन और आरोपितों को रंगे हाथों गिरफ्तार किया है।  पखवाड़ेभर से उत्तराखंड के जंगल धधक रहे हैं। तमाम प्रयास के बावजूद लगातार बढ़ रही घटनाओं पर अंकुश लगाना मुश्किल साबित हो रहा है। बीते मंगलवार को हुई बारिश-बर्फबारी के बाद कुछ राहत जरूर मिली थी, लेकिन अब फिर से आग विकराल होने लगी है। 24 घंटे के भीतर प्रदेशभर में हुई 50 घटनाओं में कुछ 60 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। इस दौरान गढ़वाल 47 और कुमाऊं में तीन घटनाएं हुईं। गढ़वाल में पौड़ी और टिहरी सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। 

जंगलों में लगने वाली आग के पीछे का एक प्रमुख कारण ग्रामीणों द्वारा घास की अधिक माँग होना माना जाता रहा है लेकिन यह कारण अपने आप में  सिर्फ एक भ्रांति है। आग लगने के बाद फास्फोरस और पोटाश मिट्टी में वापस तो आते हैं लेकिन मानसूनी बारिश और पहाड़ी ढाल होने के कारण यह नदी-नालों में बह जाते हैं। इस कारण से  जमीन और अधिक बंजर और रूखी हो जाती है। साथ ही साथ आग लगने के कारण घास का महीन बीज भी जलकर खत्म हो जाता है। इस कारण घास का उत्पादन बढ़ने के बजाए हर वर्ष कम होता जाता है। इसी तरह चीड़ वनों से जुड़ी भ्रांतियां और उनके कुप्रबंधन के चलते भी वर्षों से हिमालयी वन जलते रहे हैं। यह अति आवश्यक है, कि वैज्ञानिक ढंग से इन प्रभावों को समझा जाए और आज की परिस्थितियों के हिसाब से वनाग्नियों से जुड़ी घटनाओं को समय से पहले रोका जाए। 

नैनीताल/मसूरी:

उत्तराखंड के जंगल पिछले कई दिनों से धू-धूकर जल रहे हैं। जंगल में लगी आग इतनी भीषण है जिसे बुझाने के लिए उत्तराखंड सरकार ने केंद्र सरकार से मदद मांगी है। आग पर काबू पाने के लिए वायुसेना के हेलिकॉप्टर तैनात किए गए हैं। कुमाऊं और गढ़वाल दोनों क्षेत्रों को मिलाकर लगभग 40 से ज्यादा जगहों पर आग लगी हुई है।

एमआई 17 हेलीकॉप्टरों की मदद से उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग बुझाई जा रही है। जंगलों में आग मुख्यतः जमीन पर गिरी सूखी घास-पत्तियों से फैलती है। उत्तराखंड के पहाड़ों में चीड़ के पेड़ों की अधिकता यहाँ आग फैलने का मुख्य कारण है। चीड़ की पत्तियाँ जिन्हें पिरूल भी कहा जाता है, अपनी अधिक ज्वलनशीलता की वजह से हिमालय की बहुमूल्य वन संपदा खत्म कर रही हैं।

यूकेफॉरेस्ट वेबसाइट के अनुसार वर्ष 2021 में अब तक जंगल में आग लगने की 1635 घटनाएँ सामने आ चुकी हैं। जिस वजह से 4 लोगों की मौत के साथ ही 17 जानवरों की मौत भी हुई है। जंगल में आग लगने की वजह से 6158047.5 रुपए की वन संपदा जल कर ख़ाक हो गई।

इसी वेबसाइट पर आप जंगल में आग से प्रभावित स्थानों की लाइव जानकारी भी ले सकते हैं।

इस आग की वज़ह से पहले ही उत्तर भारत के तापमान में 0.2 डिग्री सेल्सियस की छलांग से मानसून पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है। चीड़ के पेड़ हिमालय में आग फैलाने के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी तो हैं पर उन्हें काट देना ही आग रोकने का समाधान नहीं है। चीड़ के बहुत से फायदे भी हैं। उसे कई रोगों के इलाज में उपयोगी पाया गया है, जैसे इसकी लकड़ियाँ, छाल आदि मुँह और कान के रोगों को ठीक करने के अलावा अन्य कई समस्याओं में भी उपयोगी हैं।

चीड़ की पत्तियों से कोयला बना और बिजली उत्पादन कर आजीविका भी चलाई जा सकती है।

ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (टेरी ) के जैवविविधता विशेषज्ञ डॉ योगेश गोखले चीड़ के जंगलों में हर वर्ष लगने वाली आग की समस्या पर कहते हैं कि पिरूल के बढ़ने से आग लगने का खतरा भी बढ़ जाता है। नमी की वज़ह से आग को फैलने से रोका जा सकता है। जलती बीड़ी जंगलों में फेंक देना भी जंगल की आग के लिए उत्तरदायी है।

आग लगने की वजह से पर्यावरण को जो नुकसान पहुँच रहा है, उसे बचाने के लिए डॉ गोखले पिरूल के अधिक से अधिक इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहते हैं क्योंकि पिरूल हटने से बाकि वनस्पतियों का विकास होगा और मिश्रित जंगल बनने की वज़ह से भविष्य में आग लगने की घटनाओं में भी कमी आएगी। पालतू जानवरों के लिए चारा उपलब्ध होगा तो ग्रामीण इसके लिए पिरूल के जंगलों में आग भी नही लगाएँगे।

आईएफएस एडिशनल प्रिंसिपल, चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट उत्तराखंड डॉ एसडी सिंह से जब यह पूछा गया कि चीड़ के जंगलों में आग न लगे, सरकार इसके लिए क्या कदम उठा रही है तो उन्होंने बताया कि इसके लिए हर वर्ष कार्य योजना बनाई जाती है। फरवरी और मार्च में ही तय कर लिया जाता है कि कहाँ पर फायर क्रू स्टेशन बनाए जाने हैं और साथ में ही संचार साधन भी दुरस्त कर लिए जाते हैं। इसके अलावा जंगल में फायर लाइन बनाते रहते हैं और झाड़ी नहीं होने देते हैं। किसानों को भी साथ लेकर पत्तियाँ इकट्ठा की जाती हैं और खेतों के किनारे सफाई की जाती है ताकि आग खेतों तक न फैले।

पत्रिका की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग की घटनाओं को नैनीताल हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने इसके स्थाई समाधान के लिए जंगलों में पहले से चाल व खाल बनाने के निर्देश दिए हैं।

उत्तराखंड में पारंपरिक रूप से पानी रोकने के लिए बनाए जाने वाले तालाबों को चाल व खाल कहते हैं, इनकी वजह से जमीन में नमी बनी रहती है और आग कम फैलती है।

भारत में औपनिवेशिक काल से पहले लोग वनों का उपभोग भी करते थे और रक्षा भी। अंग्रेजों ने आते ही वनों की कीमत को समझा, जनता के वन पर अधिकारों में कटौती की और वनों का दोहन शुरू किया।

जनता के अधिकारों में कटौती की व्यापक प्रतिक्रिया हुई और समस्त कुमाऊँ में व्यापक स्तर पर आन्दोलन शुरू हो गए। शासन ने दमन नीति अपनाते हुए प्रारम्भ में कड़े कानून लागू किए, परन्तु लोगों ने इन कानूनों की अवहेलना करते हुए यहाँ के जंगलों को आग के हवाले करना आरम्भ किया। फलस्वरूप शासन ने समझौता करते हुए एक समिति का गठन किया।

कुमाऊँ फॉरेस्ट ग्रीवेंस कमिटी

1921 में गठित कुमाऊँ फॉरेस्ट ग्रीवेंस कमिटी का अध्यक्ष तत्कालीन आयुक्त पी विंढम को चुना गया तथा इसमें तीन अन्य सदस्यों को शामिल किया गया। समिति ने एक वर्ष तक पर्वतीय क्षेत्र का व्यापक भ्रमण किया। समिति द्वारा यह सुझाया गया कि ग्रामीणों की निजी नाप भूमि से लगी हुई समस्त सरकारी भूमि को वन विभाग के नियंत्रण से हटा लिया जाए।

स्वतन्त्र भारत में वनों को लेकर बहुत से नए-नए नियम कानून बनाए गए। वर्तमान समय में उत्तराखंड की वन पंचायत जो पंचायती वनों का संरक्षण और संवर्धन खुद करती है, उन्हें अधिक शक्ति दिए जाने की आवश्यकता है।

डाउन टू अर्थ में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में आदिवासी बहुल क्षेत्र सबसे कम कार्बन उत्सर्जित करते हैं। इसका सीधा मतलब यह है कि समुदाय के पास जंगल का नियंत्रण रहने से वहाँ आग भी कम लगती है क्योंकि वह ही जंगल की रक्षा भी करते हैं।

जंगल में लग रही इस आग के समाधान पर वरिष्ठ पत्रकार और पर्यावरणविद राजीव नयन बहुगुणा कहते हैं कि उत्तराखंड के गाँवों की चार किलोमीटर परिधि में जंगलों से सरकारी कब्ज़ा हटा कर उन्हें ग्राम समुदाय के सुपुर्द किया जाना चाहिए।

मई-जून की गर्मियों में उत्तराखंड के जंगलों में आग सबसे ज्यादा फैलेगी और हेलीकॉप्टर से पानी गिरा आग बुझाना, इस समस्या का स्थाई समाधान नहीं है। न ही चीड़ के पेड़ों को काट-काट कर हम अपने कृत्यों से लगी इस आग को रोक सकते हैं। समुदाय ने मिल कर ही मानव जाति का निर्माण किया है और वह ही इसे और अपने पर्यावरण को बचा भी सकता है।

इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तन लेने के पश्चात दलित नहीं ले सकेंगे जातिगत आरक्षण का लाभ

हिन्दू धर्म में वर्ण व्यवस्था है, हिन्द धर्म 4 वर्णों में बंटा हुआ है, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वेश्या एवं शूद्र। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात पीढ़ियों से वंचित शूद्र समाज को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए संविधान में आरक्षण लाया गया। यह आरक्षण केवल (शूद्रों (दलितों) के लिए था। कालांतर में भारत में धर्म परिवर्तन का खुला खेल आरंभ हुआ। जहां शोषित वर्ग को लालच अथवा दारा धमका कर ईसाई या मुसलिम धर्म में दीक्षित किया गया। यह खेल आज भी जारी है। दलितों ने नाम बदले बिना धर्म परिवर्तन क्यी, जिससे वह स्वयं को समाज में नचा समझने लगे और साथ ही अपने जातिगत आरक्षण का लाभ भी लेते रहे। लंबे समय त यह मंथन होता रहा की जब ईसाई समाज अथवा मुसलिम समाज में जातिगत व्यवस्था नहीं है तो परिवर्तित मुसलमानों अथवा इसाइयों को जातिगत आरक्षण का लाभ कैसे? अब इन तमाम बहसों को विराम लग गया है जब एकेन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद सिंह ने सांसद में स्पष्ट आर दिया कि इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले दलितों के लिए आरक्षण की नीति कैसी रहेगी।

नयी दिल्ली(ब्यूरो):

इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले दलितों को चुनावों में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों से चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं होगी। इसके अलावा वह आरक्षण से जुड़े अन्य लाभ भी नहीं ले पाएँगे। गुरुवार (11 फरवरी 2021) को राज्यसभा में एक प्रश्न का जवाब देते हुए क़ानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने यह जानकारी दी। 

हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले अनुसूचित जाति के लोग आरक्षित सीट से चुनाव लड़ने के योग्य होंगे। साथ ही साथ, वह अन्य आरक्षण सम्बन्धी लाभ भी ले पाएँगे। भाजपा नेता जीवी एल नरसिम्हा राव के सवाल का जवाब देते हुए रविशंकर प्रसाद ने इस मुद्दे पर जानकारी दी। 

आरक्षित क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की पात्रता पर बात करते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा, “स्ट्रक्चर (शेड्यूल कास्ट) ऑर्डर के तीसरे पैराग्राफ के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म से अलग है, उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।” इन बातों के आधार पर क़ानून मंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले दलितों के लिए आरक्षण की नीति कैसी रहेगी। 

क़ानून मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि संसदीय या लोकसभा चुनाव लड़ने वाले इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्ति को निषेध करने के लिए संशोधन का प्रस्ताव मौजूद नहीं।    

जो कुछ हुआ वह बहुत बुरा है. महाराष्ट्र में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ. राज्यपाल का पद संवैधानिक है और मुख्यमंत्री को उनका सम्मान करना चाहिए को: बाला नांदगांवकर

महाराष्ट्र राजभवन की तरफ से इस बाबत जारी बयान में कहा गया कि राज्यपाल का ये दौरा निजी नहीं, आधिकारिक था. उन्हें उत्तराखंड के मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी में आईएएस अधिकारियों के 122वें इंडक्शन ट्रेनिंग प्रोग्राम में शामिल होने के लिए जाना था. राज्य सरकार को इस बाबत 2 फरवरी को ही बताया गया था, विमान पर पहुंचने के बाद भी परमिशन नहीं दी गई,जिसके बाद वो प्राइवेट कमर्सियल फ्लाइट से देहरादून के लिए रवाना हुए. . और अब राज्य भवन के अधिकारियों पर ठीकरा फोड़ रही है उद्धव सरकार।

मुंबई. 

महाराष्‍ट्र के राज्‍यपाल भगत सिंह कोश्‍यारी विमान प्रकरण को लेकर राजभवन और उद्धव ठाकरे सरकार के बीच तनातनी बढ़ गई है. इस पर राजभवन का कहना है कि 2 फरवरी को पत्र लिखकर राज्‍यपाल द्वारा सरकारी विमान के उपयोग की अनुमति मांगी गई थी. लेकिन राज्‍यपाल जब मुंबई एयरपोर्ट पहुंचे और सरकारी विमान में सवार हुए तो उनसे अनुमति नहीं मिलने की बात कही गई. इस पर मुख्‍यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राजभवन के लोगों पर गलती और लापरवाही का आरोप लगाया है.

मुख्‍यमंत्री ठाकरे ने कहा, ‘महाराष्ट्र के राजभवन को विमान उपलब्धता के बारे में पता किया जाना चाहिए. राज्यपाल जैसे सम्मानित व्यक्ति के साथ अच्छा नहीं हुआ. इसके जिम्मेदार राजभवन के अधिकारी हैं. राज्य सरकार ने 10 फरवरी को विमान यूज करने से मना कर दिया था और इस संबंध में राजभवन के अधिकारियों को मुख्यमंत्री ऑफिस में बात करके एक बार पता कर लेना चाहिए था. फिर राज्यपाल के आने का प्रबंध करना चाहिए था.’ उन्‍होंने कहा कि इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए और राजभवन के संबंधित अधिकारी की जिम्‍मेदारी तय की जानी चाहिए.

जभवन ने 5 बिंदु्ओं में राज्यपाल के कार्यक्रम की जानकारी दी

1. महाराष्ट्र और गोवा के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को शुक्रवार यानी 12 फरवरी को मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री आईएएस एकेडमी के एक कार्यक्रम में पहुंचना है।
2. इसके चलते गवर्नर गुरुवार यानी 11 फरवरी को 10 बजे मुंबई के छत्रपति शिवाजी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पहुंचे।
3. मसूरी दौरे को देखते हुए राज्यपाल सचिवालय ने 2 फरवरी को ही महाराष्ट्र सरकार को पत्र लिखकर सरकारी विमान के इस्तेमाल की अनुमति मांगी थी। इस बारे में मुख्यमंत्री को भी सूचना दी गई थी।
4. गुरुवार को राज्यपाल तय समय पर हवाईअड्डे पहुंचे और विमान में बैठ गए। तभी राज्यपाल को बताया गया कि सरकारी विमान के इस्तेमाल की इजाजत नहीं मिली।
5. इसके बाद कोश्यारी के निर्देश पर उनके लिए कमर्शियल एयरक्राफ्ट में टिकट बुक की गई। दोपहर 12.15 बजे वे मुंबई से देहरादून के लिए रवाना हुए।
इस मामले के तूल पकडऩे के बाद, मुख्यमंत्री कार्यालय ने बयान जारी कर कहा कि राजभवन सचिवालय को राज्यपाल के दौरे से पहले विमान के इस्तेमाल की अनुमति मिली है या नहीं, इसकी जांच-पड़ताल करनी चाहिए थी। मुख्यमंत्री सचिवालय से 10 फरवरी को ही राज्यपाल के सचिवालय को विमान का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं मिलने की सूचना दी गई थी। इसके बावजूद राज्यपाल को सरकारी विमानों के उड़ान भरने की जगह पर ले जाया गया। मुख्यमंत्री सचिवालय ने पूरे घटनाक्रम पर गहरी नाराजगी जताई है। साथ ही, लापरवाही बरतने वाले राजभवन के अधिकारियों की जवाबदेही तय कर उन पर कार्यवाही करने की मांग की है।
राज्य सरकार के इस कदम से भाजपा नेताओं में नाराजगी है। पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि राज्यपाल महोदय के साथ घटी यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह महाराष्ट्र के इतिहास में काला अध्याय है।

विपक्ष ने इस मामले पर साधा निशाना
भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के राज्यपाल भगह सिंह कोश्यारी को सरकारी विमान से देहरादून की यात्रा करने की अनुमति नहीं देने को लेकर राज्य सरकार की गुरुवार को आलोचना की. उन्होंने शिवसेना नीत गठबंधन सरकार पर आरोप लगाया कि वह अहंकारी है और ‘बचकाना हरकतें’ कर रही है. पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस ने यह आरोप भी लगाया कि राज्य सरकार ने राज्यपाल के संवैधानिक पद का अपमान किया है.

वहीं, एमएनएस ने भी इसे राज्यपाल का अपमान बताकर उद्धव ठाकरे सरकार को घेरा है. एमएनएस नेता बाला नांदगांवकर ने कहा, ‘जो कुछ हुआ वह बहुत बुरा है. महाराष्ट्र में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ. राज्यपाल का पद संवैधानिक है और उनका सम्मान करना चाहिए. साथ ही राज्यपाल को भी राज्य सरकार का सम्मान करना चाहिए. मुख्यमंत्री और राज्यपाल अहम पद हैं और दोनों को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए.’

देशविरोधी पोस्ट डालने पर उत्तराखंड पुलिस करेगी kadi कारवाई

आमतौर पर सोशल मीडिया पर देश विरोधी पोस्ट करने पर आईटी ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है, लेकिन उत्तराखंड पुलिस की यह अपने आप में एक अनूठी पहल है। जिसका सीधा संदेश है कि अगर देश के खिलाफ कोई सोशल मीडिया पर कुछ लिखता है तो उसको यह बहुत भारी पड़ेगा।

देहारादून/चंडीगढ़: DF स्टाफ:

उत्तराखंड पुलिस ने सोशल मीडिया पर देशविरोधी और भड़काऊ पोस्ट करने वालों पर नकेल कसने की पूरी तैयारी कर ली है। डीजीपी अशोक कुमार ने चेतावनी दी है कि अगर सोशल मीडिया पर कोई देशविरोधी या भड़काऊ सामग्री पोस्ट कर हालात बिगाड़ने का प्रयास करते हैं, तो इसका परिणाम उन्हें अपना पासपोर्ट और हथियार लाइसेंस बनवाते वक्त भुगताना होगा। यहीं नहीं, नौकरी के आवेदन के समय भी सोशल मीडिया पोस्ट को अब सुरक्षा के मद्देनजर आधार बनाया जाएगा।

पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने ट्वीट कर यह जानकारी दी हैं। उन्होंने बताया, “सोशल मीडिया पर राष्ट्र विरोधी एवं असामाजिक पोस्ट करने वाले व्यक्तियों का रिकार्ड रखा जाएगा और भविष्य में उनके द्वारा पासपोर्ट एवं आर्म्स लाइसेंस के अनुरोध करने पर सत्यापन कार्यवाही में इसका उल्लेख भी किया जाएगा।”

उत्तराखंड पुलिस का कहना है कि पासपोर्ट आवेदन और शस्त्र लाइसेंस में सत्यापन के समय उक्त व्यक्ति के वेरिफिकेशन के लिए उसके सोशल मीडिया को भी खंगाला जाएगा। इसके रिकॉर्ड को रिपोर्ट के तौर पर आगे की जाँच के लिए बढ़ाया जाएगा। सत्यता पाए जाने पर आवेदन निरस्त भी किया जा सकता है। वहीं पासपोर्ट और शस्त्र लाइसेंस के अलावा अब नौकरी के आवेदन के समय भी इसी प्रकार की जाँच पड़ताल की जाएगी। ताकि युक्त साइबर अपराधों पर रोक लगाई जा सके।

गौरतलब है कि देहरादून में पुलिस मुख्यालय में आयोजित एक सम्मेलन के दौरान डीजीपी कुमार ने बताया, “अब तक, किसी भी व्यक्ति द्वारा सोशल मीडिया पर कोई भी राष्ट्र-विरोधी पोस्ट डालने के मामलों में, पुलिस पहले उसकी काउंसलिंग करती थी, उसे भविष्य में इसे न दोहराने के लिए कहती थी। वहीं गंभीर मामला सामने आने के दौरान ही केवल मामला दर्ज किया जाता था।”

डीजीपी ने कहा, “लेकिन अब से, पुलिस आरोपित व्यक्ति के सोशल मीडिया व्यवहार की जाँच करेगी कि क्या उसे ऐसी राष्ट्र विरोधी पोस्ट डालने की आदत है। साथ ही यह भी देखा जाएगा कि उसकी सोशल मीडिया पर किस तरह की गतिविधियाँ रहती थी। यदि राष्ट्र विरोधी रहीं तो उसके खिलाफ निगेटिव रिपोर्ट लगाकर आवेदन रद्द कराने की संस्तुति की जा सकती है।

इस मामले को लेकर एक अन्य पुलिस अधिकारी ने कहा, “यह निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि राज्य में सोशल मीडिया पर राष्ट्र विरोधी पोस्ट डालने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। सोशल मीडिया मॉनिटरिंग टीम ऐसे पोस्ट और लोगों को ट्रैक करने के लिए उनपर कड़ी निगरानी रख रही है क्योंकि यह कानून के लिए एक स्पष्ट खतरा है।”

पुलिस ने यह भी कहा कि, “ड्रग्स माफियाओं एवं साइबर क्राइम के अपराधियों के विरूद्ध गैंगस्टर के अन्तर्गत कार्रवाई एवं उनकी अवैध रूप से सम्पत्ति को जब्त किया जाएगा।”

मुख्यमंत्री के सलाहकार ने की पुलिस की तारीफ
मुख्यमंत्री के आर्थिक सलाहकार आलोक भट्ट ने भी उत्तराखंड पुलिस की इस पहल की पुष्टि की है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘उत्तराखंड पुलिस शस्त्र लाइसेंस जारी करने में एक उदाहरण पेश कर रही है। जो लोग सोशल मीडिया पर ऐंटी नैशनल पोस्ट डालते हैं उन्हें किसी भी तरह का लाइसेंस जारी नहीं किया जाएगा।’