जब तक संगठन के चुनाव नहीं हो जाते, सोनिया गांधी ही पार्टी का नेतृत्व करेंगी

बीते करीब 19 महीने में कांग्रेस के अंदर का ये प्रेशर ग्रुप अक्सर चुनाव के वक्त ही चर्चा में आया है। अगस्त 2020 में जब इस समूह ने पहली बार सोनिया गांधी को पत्र लिखा। उस वक्त राजस्थान के उप मुख्यमंत्री बगावती तेवर अपनाए हुए थे। वहीं, एक महीने बाद ही बिहार में चुनाव तारीखों का ऐलान होने वाला था।  एक बार फिर ये नेता चर्चा में हालांकि, इस बार चुनाव नतीजों के बाद इस समूह ने सक्रियता दिखाई है। इसके अलावा भी गाहे बगाहे ये नेता अपने बयानों और ट्वीट से पार्टी और गांधी परिवार से मुश्किल सवाल पूछते रहते हैं। पंजाब में चुनाव से पहले जारी कलह पर मनीष तिवारी अक्सर बोलते रहते थे। पंजाब से आने वाले मनीष तिवारी को पूरे चुनाव के दौरान कांग्रेस नेतृत्व ने हाशिए पर रखा था। 

  • वैसे कांग्रेस में यह एक आम सहमति है कि सोनिया गांधी के बाद पार्टी का जिम्मा राहुल गांधी ही संभालेंगे

नयी दिल्ली(ब्यूरो), डेमोक्रेटिक फ्रंट :

पांच राज्यों में हुई करारी हार और चौतरफा उठ रहे सवालों के बीच कांग्रेस कार्यसमिति ने फैसला लिया है कि जब तक संगठन के चुनाव नहीं हो जाते, सोनिया गांधी ही पार्टी का नेतृत्व करेंगी। पांच घंटे चली कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में तमाम सदस्यों ने हार के कारणों पर अपनी अपनी राय रखी और पार्टी को मजबूत करने की सलाह भी दी। लेकिन सबने तय किया कि जल्दबाज़ी में फैसला लेना उचित नहीं है, इसलिए 20 अगस्त को संगठन के चुनाव के बाद ही तय होगा कि पार्टी का नया नेतृत्व किसे मिलेगा।

कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) ने हालिया विधानसभा चुनावों में हार के संदर्भ में ‘खामियों’ को स्वीकार करते और नतीजों पर गंभीर चिंता प्रकट करते हुए फैसला किया कि जल्द ही एक ‘चिंतन शिविर’ का आयोजन किया जाएगा जिसमें आगे की रणनीति तैयार की जाएगी।

पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने बताया कि सीडब्ल्यूसी ने सोनिया गांधी के नेतृत्व में विश्वास जताया और उनसे आग्रह किया कि वे पार्टी को मजबूत करने के लिए जरूरी बदलाव करें।

वैसे कांग्रेस में यह एक आम सहमति है कि सोनिया गांधी के बाद पार्टी का जिम्मा राहुल गांधी ही संभालेंगे। आज इस मीटिंग से पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का बयान भी चर्चा में रहा जिसमें उन्होंने राहुल गांधी को नेतृत्व संभालने की बात कही। यही नहीं जब सीडब्लूसी के मेंबर्स पार्टी दफ्तर के अंदर मंथन कर रहे थे, तब भी बाहर राहुल गांधी के समर्थन में यूथ कांग्रेस के नेता धरने पर बैठे रहे। हालांकि पार्टी का एक धड़ा उनकी रणनीतियों के तहत लड़े जा रहे चुनाव और लगातार मिल रही हार से निराश है, गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में तेईस नेताओं का ये धड़ा मानता है कि कांग्रेस को आमूल परिवर्तन करके ही रास्ते पर लाया जा सकता है। 

हाल में हुई चुनावी हार के बाद गुलाम नबी आजा़द ने कहा था कि इस हार से उनका दिल बैठा जा रहा है। नेताओं की इस उद्वेलना और निराशा को देखते हुए ही कार्यसमिति बुलायी गयी थी। लेकिन हार की समीक्षा के कारणों में रणनीति से ज्यादा नए नेतृत्व के मुद्दे पर बात हुई। कई नेताओं ने अपने सुझाव भी रखे। दिग्विजय सिंह ने कहा कि पार्टी नेतृत्व को संगठन के लोगों तक अपनी पहुंच आसान बनानी होगी, वहीं गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि नेतृत्व

G-23 में शामिल कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी पार्टी की हार पर ट्वीट किया। उन्होंने कहा कि पार्टी हारी है, पराजित नहीं हुई है। उन्होंने चुनावों में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए भाजपा को बधाई भी दी। उन्होंने ट्वीट किया कि कांग्रेस अभी भी योग्य विरोधी साबित होगी। जैसा मेरे सहयोगी आलिम जावेरी ने कहा, हम हारे हैं लेकिन पराजित नहीं हुए हैं। हमारा विश्वास, मूल्य और हमारी विरासत की भावना बहुत गहरी है और आगे भी बनी रहेंगी। कांग्रेस नेता अजय कुमार ने कहा कि दुखी हैं लेकिन टूटे नहीं हैं। हिले हैं लेकिन बिखरे नहीं। दिल छोटा न करें, धर्मी अकेले और कठिन लड़ाई लड़ते हैं।

पाँच राज्यों में शर्मनाक हार के बाद गांधी परिवार करेगा इस्तीफे की ‘पेशकश’

कांग्रेस ने स्पष्ट रूप से इस बात से इनकार किया है कि गांधी परिवार – सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा – अपने शीर्ष निर्णय लेने वाले निकाय कांग्रेस कार्य समिति या सीडब्ल्यूसी की रविवार को होने वाली बैठक में इस्तीफा देने जा रहे हैं. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने शनिवार शाम कहा, “कथित इस्तीफे की खबर अज्ञात स्रोतों पर आधारित है और पूरी तरह से अनुचित एवं गलत है.” यह पहली बार नहीं होगा जब गांधी परिवार के सदस्यों ने हार के बात अपने इस्तीफे की पेशकश की हो. 2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद सोनिया गांधी ने अपने इस्तीफे की पेशकश की थी जिसे कांग्रेस वोर्किंग कमिटी ने अस्वीकार कर दिया था। आज कल इस बार भी तीनों के इस्तीफे की पेशकश को खारिज कर दिया जाएगा और जल्दी ही प्रियंका गांधी वाड्रा को राज्य सभा भेजा जाएगा। अभी कुछ दिन पहले ही जब एक्ज़िट पोल जानने के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने अपनी इछ ज़ाहिर आर दी थी, जिसे किस ने भी नहीं नकारा।

राजविरेन्द्र वसिष्ठ, डेमोक्रेटिक फ्रंट :

2019 में, राहुल गांधी ने पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। तब से सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रही हैं। इतनी पुरानी पार्टी कोई नया अध्यक्ष तक नहीं खोज पाई है।गुरुवार को घोषित 5 राज्यों के चुनाव नतीजों में पार्टी का बेहद खराब प्रदर्शन जारी रहा। इसने अपने नियंत्रण वाले प्रमुख राज्यों में से एक, पंजाब को आम आदमी पार्टी (आप) के हाथों खो दिया। तीन अन्य राज्यों में एक मजबूत लड़ाई लड़ने में विफल रही, जहां उसने वापसी की उम्मीद की थी। ये थे – उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर। यूपी में, जहां चुनाव अभियान का नेतृत्व प्रियंका गांधी वाड्रा ने किया था, कांग्रेस को 403 में से सिर्फ 2 सीटें मिलीं, पिछले चुनावों के मुकाबले पार्टी को 5 सीटों का नुकसान हुआ। पार्टी को महज 2.4 फीसदी वोट मिले।

यह भी पढ़ें : प्रियंका वाड्रा को राज्यसभा में क्यों लाना चाहते हैं कांग्रेस के ‘वफादार’?

पांच राज्यों में बुरी तरह हार का सामना करने के बाद कांग्रेस पार्टी ने कल कांग्रेस वोर्किंग कमिटी की बैठक बुलाई है। इस बैठक को लेकर एक बड़ी खबर सामने आ रही है। एनडीटीवी की एक खबर के अनुसार कांग्रेसकी अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, उनके बेटे राहुल गांधी और राहुल की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा, जिन्होंने ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र पार्टी के प्रचार अभियान की जिम्मेदारी ली हुई थे, तीनों कल पार्टी के पदों से अपने इस्तीफे की पेशकश कर सकते हैं।

इस बार भी तीनों के इस्तीफे की पेशकश को खारिज कर दिया जाएगा और जल्दी ही प्रियंका गांधी वाड्रा को राज्य सभा भेजा जाएगा। अभी कुछ दिन पहले ही जब एक्ज़िट पोल जानने के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने अपनी इछ ज़ाहिर आर दी थी, जिसे किस ने भी नहीं नकारा।

आआपा 3 राज्य की 460 सीटों पर लड़े सिर्फ 2 जीते अब 2024 में मोदी से लड़ने का ख्वाब देखने वाली

पंजाब में आम आदमी पार्टी की जीत का प्रमुख कारण उसके व पंजाब की तरह ही अन्य राज्यों में भी आम आदमी पार्टी ने अपना फ्री मॉडल जनता के सामने रखा था। लेकिन, पंजाब के अलावा किसी और राज्य में उसका प्रदर्शन रहा ही नहीं है। लेकिन, इससे यह भी पता चलता है कि पंजाब में आप की विशाल जीत केवल वादों पर ही आधारित नहीं है। दरअसल, चुनाव से ठीक पहले पंजाब में राजनीतिक संकट खड़ा हो गया था। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी थी और चरणजीत सिंह चन्नी को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बना दिया था। दे ही नहीं हैं। इसके लिए प्रदेश की राजनीतिक स्थिति ने भी अहम भूमिका निभाई है। केजरीवाल पंजाब के बारे में यह कह रहे हैं कि वहाँ इनकी पुरानी पहचान है तो उत्तर प्रदेश से केजरीवाल खुद ही मोदी के खिलाफ चुनावों में अपनी पहचान भी बना नहीं पाये थे। वही हाल इस बार भी आआपा का 4 राज्यों में रहा है।

चंडीगढ़ संवाददाता, डेमोक्रेटिक फ्रंट :

आम आदमी पार्टी ने पंजाब में 92 सीट जीत कर इतिहास रच दिया। आप की आंधी ने बड़े-बड़े दिग्गज धराशाही कर दिए। आम आदमी पार्टी का झाडू़ ऐसा चला कि सूबे की 117 सीटों में से 92 पर पार्टी का परचम लहरा गया। पंजाब के इतिहास में अब तक की ये सबसे बड़ी जीत है। 3 राज्य, 460 सीटों पर लड़े, 2 जीते, 2024 में मोदी से लड़ने का ख्वाब देखने वाली आआपा का परफॉर्मेंस यह भी है। यहाँ आआपा के संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी रैली की थी। पार्टी को कुल 0.38 प्रतिशत वोट मिले हैं, जो कि नोटा (0.69) से भी कम है। कानपुर में 10 में से 7 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। आआपा भाजपा से जीतने कि बात कर रही है जबकि सच यह है कि पंजाब में भाजपा कभी भी सत्तारूढ़ नहीं थी अपितु सत्ताधारियों का एक सहयोगी ही रही।

जब आम आदमी पार्टी के बीजेपी के खिलाफ उतरने की बात हो रही है तो आइए एक नजर डालते हैं उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा में उनकी क्या स्थिति रही। सबसे पहले बात करते हैं उत्तर प्रदेश की। प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा की लहर के आगे इस बार भी विरोधियों और विपक्ष की एक नहीं चली। इसी के चलते भाजपा एक बार फिर अकेले अपने दम पर 403 में से 255 सीटें जीतकर लगातार दूसरी बार सरकार बनाने जा रही है। वहीं, पंजाब में करामात करने वाली आम आदमी पार्टी का यूपी में खाता भी नहीं खुला।

AAP ने यूपी चुनाव में 350 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। खलीलाबाद सीट पर पूर्व सांसद भालचंद्र यादव के बेटे सुबोध यादव से पार्टी को काफी उम्मीदें थी लेकिन वह पाँचवें नंबर पर खिसक गए। यहाँ AAP के संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी रैली की थी। पार्टी को कुल 0.38 प्रतिशत वोट मिले हैं, जो कि नोटा (0.69) से भी कम है। कानपुर में 10 में से 7 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई।

वहीं उत्तराखंड की बात करें तो यहाँ आम आदमी पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे कर्नल अजय कोठियाल अपनी सीट भी नहीं बचा सके। वह उत्तराखंड की गंगोत्री विधानसभा सीट से अपना चुनाव हार गए। उनकी जमानत जब्त हो गई। उत्तराखंड में पार्टी का खाता भी नहीं खुला। उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी ने सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे लेकिन वो वहाँ पर कुल 3.31 प्रतिशत वोट ही हासिल कर सकी।

गोवा में पहली बार आम आदमी पार्टी के दो प्रत्‍याश‍ियों ने जीत तो दर्ज की है। लेकिन उनके सीएम उम्‍मीदवार अमित पालेकर अपनी सीट हार गए हैं। वहाँ उन्हें 6.77 प्रतिशत वोट मिले हैं। AAP ने सभी 40 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे।

उत्तर भारत में कॉंग्रेस की शर्मनाक हार के बाद ‘G23’ एक्टिव, आज़ाद के घर हुई बैठक

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद एक बार फिर कांग्रेस के भीतर अंसतोष बढ़ सकता है। नतीजों के ठीक एक दिन बाद पार्टी के जी 23 समूह के कई नेता राजधानी दिल्ली में बैठक कर रहे हैं जिसमें वे आगे की रणनीति तय कर सकते हैं। सूत्रों के अनुसार, राज्यसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद के आवास पर हो रही इस बैठक में कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी और कुछ अन्य नेता शामिल हैं।

नयी दिल्ली(ब्यूरो) : डेमोक्रेटिक फ्रंट :

पांच राज्यों में कांग्रेस ने एक बार फिर शर्मनाक हार का सामना किया है। पंजाब में जहां कांग्रेस की सरकार थी, वहां से भी जनता ने पार्टी को नकार दिया है। खबर है कि कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी का असंतुष्ट खेमा यानि जी-23 ग्रुप फिर एक्टिव हो गया है। जिसमें वे आगे की रणनीति तय कर सकते हैं।

पंजाब में आप की आँधी और यूपी में पीएम मोदी और सीएम योगी की जोड़ी का ऐसा जलवा दिखा कि विपक्षी पानी माँगते दिखे। इन राज्यों में कॉन्ग्रेस की शर्मनाक हार के बाद पार्टी का असंतुष्ट खेमा G-23 एक्टिव हो गया है। इस ग्रुप के नेताओं ने शुक्रवार (11 मार्च 2022) को गुलाम नबी आजाद के घर पर मीटिंग की।

बैठक में कॉन्ग्रेस की आपातकालीन बैठक बुलाकर पार्टी में नए अध्यक्ष के लिए चुनाव कराने की माँग की गई। इस दौरान कपिल सिब्बल से लेकर मनीष तिवारी तक शामिल रहे। इससे पहले ये असंतुष्ट नेता सोनिया गाँधी को पत्र लिखकर पार्टी के स्थाई अध्यक्ष के चुनाव का सुझाव दे चुके हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कॉन्ग्रेस को अपनी दुर्गति का आभास पहले से ही हो गया था।

ऐसा इसलिए कि रिपोर्ट के मुताबिक, 10 मार्च को रिजल्ट आने से पहले ही इसके नतीजों को लेकर कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी के घर पर एक बैठक हुई थी, जिसमें छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत, प्रियंका गाँधी वाड्रा और संगठन के महासचिव केसी वेणुगोपाल शामिल रहे। इसमें पार्टी के अध्यक्ष पद को लेकर यह तय किया गया कि सितंबर 2022 तक पार्टी के नए अध्यक्ष का चयन किया जाएगा। इतनी बड़ी हार के बाद भी कॉन्ग्रेसी राहुल गाँधी का गुणगान करने में लगे हुए हैं।

एआईसीसी के जनरल सेक्रेट्री और गुजरात के प्रभारी रघु शर्मा का कहना है कि पूरे देश में केवल राहुल गाँधी ही भाजपा का मुकाबला कर रहे हैं। वो कहते हैं कि केवल राहुल और प्रियंका ही जनता के मुद्दों पर बात करते हैं।

राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष खड़गे ने ट्वीट किया, 50 साल के मेरे राजनीतिक करियर में मैंने कई उतार और चढ़ाव देखे हैं। विधानसभा चुनावों के नतीजों को देखना दुर्भाग्यपूर्ण था, लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि सिर्फ हम फासीवादी ताकतों से लड़ सकते हैं। हम जनता का विश्वास जल्द फिर से जीत लेंगे।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में कॉन्ग्रेस की केवल 2 सीटें आई हैं औऱ उसका वोट शेयर केवल 2 प्रतिशत ही रहा। जबकि पंजाब में आप की आँधी के सामने कॉन्ग्रेस 11 सीटों पर सिमट गई। उसके मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी तक हार गए।

‘भाजपा की सरकार बनते ही उत्तराखंड में UCC’ पुष्कर सिंह धामी

उत्तराखंड के सीएम ने चुनाव प्रचार खत्म होने के कुछ ही घंटे पहले अब यूनिफॉर्म सिविल कोड का कार्ड खेला है। उन्होंने ऐलान किया है कि उनकी सरकार बनते ही यूनिफॉर्म सिविल कोड का गठन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि आगामी नई भाजपा सरकार अपने शपथ ग्रहण के तुरंत बाद न्यायविदों, सेवानिवृत जनों, समाज के प्रबुद्धजनों और अन्य लोगों की एक कमेटी गठित करेगी जो उत्तराखंड राज्य के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड का ड्राफ्ट तैयार करेगी

डेमोक्रेटिक फ्रंट, उत्तराखंड(ब्यूरो) :

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में अब केवल दो दिन बाकी हैं। इसी क्रम में शनिवार को केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह उत्तराखंड पहुंचे। उन्होंने बागेश्वर के कपकोट में जनसभा को संबोधित किया और भाजपा को वोट देने की अपील की। रक्षा मंत्री राजदनाथ सिंह ने कहा कि आज देश सुरक्षित हाथों में है। उन्होंने कहा कि देश की ओर आंख उठाने की हिम्मत किसी की नहीं है। देश के दुश्मनों (आतंकियों) को इस पार (भारत) भी मार रहे, जरूरत पड़ी तो उस पार जाकर भी मारेंगे। कपकोट में सभा को संबोधित करने पहुंचे रक्षा मंकत्री राजनाथ सिंह ने कांग्रेस पर भी जमकर प्रहार किए।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्पष्ट किया कि राज्य में आने वाले नए UCC के हिसाब से शादी, तलाक, जमीन-संपत्ति और वसीयत को लेकर समान कानून लागू होंगे। सभी वर्गों के लिए समा कानून होंगे। सीएम धामी ने स्पष्ट किया कि लोगों का मजहब जो भी हो, उनके लिए कानून समान ही रहेंगे। सीएम धामी ने कहा, “UCC उनलोगों के सपने को साकार करने की तरफ एक कदम होगा, जिन्होंने हमारे संविधान का निर्माण किया। साथ ही ये हमारे संविधान की भावना को और ठोस बनाएगा।”

उधम सिंह नगर से विधानसभा चुनाव लड़ रहे पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि ये अनुच्छेद-44 की तरफ भी एक प्रभावशाली कदम होगा, जो सभी नागरिकों के लिए UCC का प्रस्ताव देता है। बताते चलें कि भारत के अनुच्छेद-44 में यह उल्लेख किया गया है कि नागरिकों के लिए देश के पूरे क्षेत्र में एक समान अधिकार हो तथा समान नागरिक संहिता की रक्षा करना राज्य का प्रमुख कर्तव्य है। ऐसे में ‘लैंड जिहाद’ जैसे मुद्दों से जूझ रहे चारधाम वाले आध्यात्मिक और पर्यटन वाले राज्य उत्तराखंड के लिए ये एक बड़ी घोषणा है।

सीएम धामी ने कहा, “मैं जो भी घोषणा कर रहा हूँ, वो मेरी पार्टी का संकल्प है और भाजपा की नई सरकार बनते ही जल्द से जल्द उसे पूरा किया जाएगा। देवभूमि की संस्कृति और विरासत को अक्षुण्ण बनाए रखना हमारा मुख्य कर्तव्य है। हम इसके लिए प्रतिबद्ध है। UCC के जल्द लागू होने से राज्य के सभी नागरिकों के समान अधिकार को मजबूती मिलेगी। ये सामाजिक सौहार्दता को मजबूती देगा, लैंगिक समानता को ठीक करेगा और और महिला सशक्तिकरण को भी मजबूत करेगा।”

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री और राज्य में भाजपा के चेहरे पुष्कर सिंह धामी का ये भी कहना है कि UCC के आने से इससे राज्य की अभूतपूर्व सांस्कृतिक-आध्यात्मिक पहचान को सुरक्षा मिलेगी और यहाँ के पर्यावरण को भी सुरक्षा मिलेगी। राज्य में 14 फरवरी को चुनाव होने हैं। एक ही चरण में यहाँ मतदान निपटा लिया जाएगा। 10 मार्च को पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणाम आने हैं। इस कार्यकाल में भाजपा को तीन सीएम बदलने पड़े। त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत के बाद पुष्कर सिंह धामी पर भरोसा जताया गया।

बता दें कि अप्रैल 2021 में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने गोवा के UCC की प्रशंसा की थी। ये भारत का अकेला ऐसा राज्य है, जहाँ का ये कानून है। हालाँकि, 2018 में ‘लॉ कमीशन’ का कहना था कि UCC न तो ज़रूरी है और न ही साध्य है। अभी तक केंद्र में UCC के लिए कोई ब्लूप्रिंट नहीं बना है। अमेरिका में हर राज्य के पास अलग संविधान और अपराध कानून होते हैं। CJI ने बुद्धिजीवियों को गोवा के UCC को गंभीरता से पढ़ने की सलाह दी थी।

2019 के एक जजमेंट में भी गोवा के UCC को सुप्रीम कोर्ट ने एक अच्छा उदाहरण बताया था। जमीन की वसीयत सम्बंधित एक फैसले में इस कानून की मदद ली गई थी। सन् 1867 में पुर्तगालियों के समय से ही वहाँ ये कानून चला आ रहा है। मुस्लिमों के लिए यहाँ कोई अलग शरिया कानून नहीं है। गोवा की UCC के 4 भाग हैं, जो सिविल कैपेसिटी, अधिकारों के अर्जन, संपत्ति के अधिकार, ब्रीच ऑफ राइट्स एंड रेमेडीज। इसीलिए, सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी प्रशंसा की थी।

असम के सीएम ने दिया हिजाब पर उकसाने वाला बयान, कांग्रेस पर लगाया आरोप

बिपिन रावत को याद करते हुए हेमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि जनरल बिपिन रावत देश का गौरव थे। उनके नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक किया। राहुल गांधी क्या बोले प्रूफ दो। अरे भाई आप कौन से पिता का बेटा हैं क्या हमने कभी प्रूफ मांगा है? मेरा सैनिक बल से आपको  प्रूफ मांगने का क्या अधिकार है। क्या आप विपिन रावत पर विश्वास नहीं करते है? क्या आप सचमूच राजीव गांधी के बेटे हैं, इसका प्रूफ मांगा क्या?

डेमोक्रेटिक फ्रंट, नयी दिल्ली/उत्तराखंड :

कर्नाटक में शुरू हुए हिजाब विवाद अब राजनीति गर्मा गई है। इस विवाद में अब असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का अजीब बयान सामने आया है। संवाददाताओं से बातचीत में उन्होंने हिजाब क्यों जरूरी नहीं है, इस पर अपना तर्क दिया। उन्होंने कहा कि एक शिक्षक को कैसे पता चलेगा कि कोई छात्र समझ रहा है या नहीं, अगर उन्होंने हिजाब पहन रखा है? किसी ने नहीं कहा कि वे 3 साल पहले हिजाब पहनना चाहते थे? मुस्लिम समुदाय को शिक्षा की जरूरत है, हिजाब की नहीं। राजनीतिक इस्लाम कांग्रेस प्रायोजित कर रही है।

रिपोर्ट के मुताबिक, हिमंता बिस्वा सरमा उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के मद्देनजर प्रचार करने के लिए आए थे। उसी दौरान उन्होंने शुक्रवार (11 फरवरी 2022) को ये बयान दिया। सरमा ने कहा कि कर्नाटक में जो भी हो रहा है वो ज्ञान का मुद्दा नहीं रहा। ये अब शिक्षा के मंदिर में धर्म का मसला बन गया है। उन्होंने इस विवाद के पीछे साजिश की तरफ इशारा किया और कहा कि तीन साल पहले तक यह विवाद नहीं था। अचानक से यह क्यों उठा?

सरमा ने कहा, “अगर आप स्कूल में हिजाब पहनकर जाते हैं तो शिक्षक को कैसे पता चलेगा कि आपको समझ रहा है या नहीं। अगर एक स्टूडेंट हिजाब पहनकर क्लास में बैठेगा और दूसरा स्टूडेंट दूसरे भेष में बैठेगा तो ये क्या मामला होगा। तीन साल पहले कोई नहीं बोला था कि हिजाब पहनना है। अभी तुरंत वो मामला सामने आ गया है।”

इसके साथ ही सरमा ने राहुल गाँधी द्वारा संसद में भारत को राज्यों का संघ बताने वाले बयान का जिक्र करते हुए आगे कहा, “हिजाब के मामले में केस होता है। सुप्रीम कोर्ट और कर्नाटक हाई कोर्ट में दोनों ही जगह पर कॉन्ग्रेस का वकील हिजाब के पक्ष में खड़ा होता है। ये देश को तोड़ने की एक साजिश है। अभी अगर मुस्लिम समाज को सबसे अधिक शिक्षा की आवश्यकता है, उनको हिजाब की जरूरत नहीं है। अगर मुस्लिम बेटियों को सबसे अधिक जरूरत है तो डॉक्टर, इंजीनियर बनने की जरूरत है। इस मसले को विपक्ष बहुत ही निचले स्तर तक ले गया है। धार्मिक इस्लाम कुरान और शिक्षा पर जोर देता है, लेकिन दूसरा पॉलिटिकल इस्लाम का पालन कॉन्ग्रेस कर रही है।”

देहरादून में सरमा ने कहा, “सभी इस्लामिक देश कह रहे हैं कि हिज़ाब ज़रुरी नहीं है। राहुल और प्रियंका गाँधी कह रहे हैं कि हिज़ाब पहनों। लेकिन उनका एक भी वक्तव्य नहीं मिलेगा, जहाँ पर वे बोल रहे हों कि आप लोग इंजीनियरिंग, मेडिकल पढ़ो। आप विश्वविद्यालय में जाओ।”

परिवारवाद – वंशवाद का दंश झेलती कांग्रेस, उत्तराखंड में फिर टूट गया ‘एक परिवार-एक टिकट’

दिसंबर के आखिरी दिनों में जब टिकटों को लेकर कांग्रेस के भीतर मामला अटक रहा था, तब हरीश रावत ने कांग्रेस से संन्यास लेने तक का मन ज़ाहिर कर दिया था। तब दिल्ली में उत्तराखंड के नेताओं को आलाकमान ने बुलाकर साफ तौर पर रावत की अगुवाई में चुनाव लड़ने की बात कहकर उनकी स्थिति मज़बूत की। फिर भाजपा की पहली सूची के बाद कांग्रेस ने उम्मीदवारों की जो सूची जारी की, उसमें साफ तौर पर हरीश रावत का दखल नज़र आया।

डेमोक्रेटिक फ्रंट(ब्यूरो) उत्तराखंड/नयी दिल्ली:

कांग्रेस उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में टिकट वितरण को लेकर सख्त रवैया अपनाए हुए है। पार्टी अनेक बार कह चुकी है कि एक परिवार से एक ही व्यक्ति को टिकट मिलेगा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी अपनी देहरादून रैली के बाद हुई कांग्रेस की बैठक में भी इस बात को कह चुके हैं। लगता है पार्टी और उसके नेता के कहे का असर उत्तराखंड कांग्रेस के कुछ सीनियर लीडरों के परिवारों पर नहीं हो रहा है।

कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार आज दौर से गुजर रही है उसमें एक परिवार-एक टिकट का उच्च स्थापित नैतिक प्रतिमान टिकता ही कितने दिन। तो टूट गया। जी-23 के निशाने पर तो सोनिया गांधी – राहुल गांधी – प्रियंका गांधी खुद हैं। वंशवाद और परिवारवाद के लिए कांग्रेस विरोधियों के निशाने पर रही है और अब अपनों के निशाने पर। सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद हैं और कार्यकारी अध्यक्ष। राहुल गांधी वायनाड से सांसद हैं। पूर्व अध्यक्ष हैं पर मां की बढ़ती उम्र और सेहद का ध्यान रखते हुए पार्टी में अहम फैसले लेते हैं। महासचिव प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ज़ोर आजमाईश कर रही हैं। जब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की रणभेरी बजी तो पार्टी के भीतर अनुशासन के लिए तय किया गया कि एक परिवार से किसी एक को ही टिकट मिलेगा। उत्तराखंड और पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए तो इसे तय माना गया। आज से ठीक 15 दिन पहले देहरादून में उत्तराखंड इलेक्शन इंचार्ज अविनाश पांडे ने ये बात दोहराई पर थोड़ी ढील देकर कि जिस परिवार में पहले से दो विधायक हैं उनका टिकट कैसे काटा जाए।

पंजाब में तो इस पर सख्ती दिखी। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी अपने भाई के लिए बस्सी पठाना की सीट चाह रहे थे। पर आलाकमान ने मना कर दिया। उनके भाई मोहन सिंह ने अब निर्दलिय मैदान में उतरने का मन बना लिया है। वह मौजूदा विधायक गुरप्रीत सिंह जीपी के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे। जब पूछा गया तब पंजाब के पहले दलित सीएम चरणजीत सिंह चन्नी ने कहा कि वह अपने भाई को समझाएंगे। और जब 25 जनवरी को कांग्रेस ने 23 उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी की तो अपवाद सामने आ गया। पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भट्टल संगरूर के लेहरा से पहले ही उम्मीदवार घोषित हो चुकी हैं, दूसरी लिस्ट में उनके दामाद विक्रम बाजवा को भी सहनेवाल से टिकट मिल गया है। चरणनजीत सिंह चन्नी परिस्थितियों के सीएम हैं, तो चुप ही रहेंगे लेकिन पार्टी ने चोला बदल दिया।

उत्तराखंड में तो अविनाश पांडे ने एक अपवाद 11 जनवरी को ही बता दिया ता। यशपाल आर्य और संजीव आर्य। पुष्कर सिंह धामी कैबिनेट में समाज कल्याण और परिवहन मंत्री रहे यशपाल आर्य भाजपा छोड़ बेटे समेत कांग्रेस में शामिल हुए थे। दोनों विधायक हैं। लिहाजा उत्तराखंड में वापसी की कोशिश कर रही पार्टी पहले ही तय कर चुकी होगी कि दोनों का टिकट बरकरार रहेगा। वही हुआ भी। यशपाल आर्य तो बाजपुर से पर्चा भी दाखिल कर चुके हैं। बेटा संजीव आर्य नैनीताल से उम्मीदवार बनाया गया है।

पर सिलसिला थमा नहीं। भाजपा से ही कांग्रेस में पहुंचे हरक सिंह रावत की बहू अनुकृति गुसाईं को लैंसडाउन से पार्टी उम्मीदवार बनाया है। हालांकि हरक सिंह रावत पर अभी तक फैसला नहीं हुआ है पर इस कद्दावर नेता को टिकट मिलना तय माना जा रहा है। पिछला चुनाव उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर कोटद्वार से जीता था। एक परिवार-एक टिकट का सारा फॉर्म्युला 26 जनवरी की आधी रात धरा का धरा रह गया जब पार्टी ने सीएम उम्मीदवार और प्रचार समिति के अध्यक्ष हरीश रावत के साथ उनकी बेटी को भी उम्मीदवारों की सूची में स्थान दे दिया। हरीश रावत लालकुंआ से और उनकी बेटी अनुपमा रावत हरिद्वार ग्रामीण सीट से मैदान में होंगी।

परिवार को ध्यान रखना कांग्रेस की मजबूरी है। सैद्धांतिक धरातल पर ऐसे प्रतिमान शीर्ष पर गढ़े जाते हैं। जब कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ही परिवारवाद के बूते पार्टी चलाना चाहता हो तो पार्टी धरातल पर उससे अलग प्रतिमान कैसे गढ़ सकती है। खासकर ऐसे समय में जब कांग्रेसमुक्त भारत अभियान चल रहा है। पार्टी उत्तराखंड मेें वापसी चाहती है और पंजाब में बने रहने की लड़ाई लड़ रही है। क्या रामनगर सीट काटने के बाद हरीश रावत को रूठने से रोकने का कोई और जरिया था। शायद नहीं, इसलिए बेटी को टिकट दिया गया। ऐसी ही मजबूरियों से पार्टी अभी और दो-चार हो सकती है।

हरक के कांग्रेस में शामिल होने से पहले विरोध शुरू, राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा ने कहा- ऐसे लोगों को दूर रखें

प्रदीप टम्टा ने कहा कि उनका व्यक्तिगत मत है कि ऐसे दलबदलू लोगों को पार्टी से दूर रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से इस तरह की जोड़तोड़ में विश्वास नहीं करते हैं। बावजूद इसके यदि शीर्ष नेतृत्व हरक सिंह को पार्टी में लेने का निर्णय लेता है, तो हम पार्टी से बाहर नहीं जाएंगे। पार्टी को भी निर्णय लेते समय 2016 में हुए अपराध का संज्ञान लेना चाहिए। माफी मांग लेने भर से कुछ नहीं हो जाता। इसकी क्या गारंटी है कि उन्होंने (हरक सिंह) जो पहले किया है, उसे फिर से नहीं दोहराएंगे।

डेमोक्रेटिक फ्रंट, उत्तराखंड(ब्यूरो) :

बीजेपी से निष्कासित पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत 6 साल बाद एक बार फिर से कांग्रेस में वापसी को बेकरार दिख रहे हैं। यहां तक कि उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से 100 बार माफ़ी मांगने की बात भी कही है। बावजूद इसके कांग्रेस आला कमान में हरक सिंह रावत की एंट्री को लेकर को बात अभी तक नहीं बन पायी है। मिल रही जानकारी के मुताबिक हरक सिंह रावत लगातार कांग्रेस के संपर्क में हैं। लेकिन हरीश रावत की वजह से उनकी जॉइनिंग पर अभी तक कोई फैसला नहीं हो सका है। हरीश रावत ने हालांकि हरक सिंह रावत को माफ़ करने की बात तो कही, लेकिन साथ ही उन्हें अपराधी भी बता दिया।

भाजपा से निष्कासित पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत की कांग्रेस में एंट्री से पहले ही विरोध शुरू हो गया है। केदारनाथ विधायक मनोज रावत के बाद राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा ने भी हरक को पार्टी में नहीं लिए जाने की बात कही है। अमर उजाला से बातचीत में सांसद प्रदीप टम्टा ने कहा कि जो लोग आज हरक सिंह रावत को पार्टी में शामिल किए जाने की पैरवी कर रहे हैं, शायद वह वर्ष 2016 की घटना को भूल गए हैं, जब षड़यंत्र के तहत लोकतंत्र की हत्या की गई थी।

इस साजिश के शामिल डॉ. हरक सिंह रावत ने पांच साल सरकार में रहकर कभी भाजपा की गलत नीतियों की आलोचना नहीं की। लेकिन अब जब उन्हें पार्टी ने निकाल दिया है, तब उन्हें फिर कांग्रेस याद आ रही है। वह जानते हैं कि इस बार राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है। इसलिए कांग्रेस पार्टी का रुख करना चाहते हैं। हम जनता को क्या जवाब देंगे।

टम्टा ने कहा कि उनका व्यक्तिगत मत है कि ऐसे दलबदलू लोगों को पार्टी से दूर रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से इस तरह की जोड़तोड़ में विश्वास नहीं करते हैं। बावजूद इसके यदि शीर्ष नेतृत्व हरक सिंह को पार्टी में लेने का निर्णय लेता है, तो हम पार्टी से बाहर नहीं जाएंगे। पार्टी को भी निर्णय लेते समय 2016 में हुए अपराध का संज्ञान लेना चाहिए। माफी मांग लेने भर से कुछ नहीं हो जाता। इसकी क्या गारंटी है कि उन्होंने (हरक सिंह) जो पहले किया है, उसे फिर से नहीं दोहराएंगे।

पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत की कांग्रेस पार्टी में ज्वानिंग नहीं हो पाई है। कहा जा रहा है कि पूर्व सीएम हरीश रावत के कारण ऐसा हो रहा है। जबकि हरीश रावत का कहना है कि व्यक्तिगत तौर पर तो वह उन्हें (डॉ. हरक) बहुत पहले माफ कर चुके हैं, लेकिन यह मामला व्यक्तिगत नहीं है। उन्हें घाव लगा है, इसलिए हो सकता है, वह निष्पक्ष होकर निर्णय नहीं ले पाएं, लेकिन पार्टी का शीर्ष नेतृत्व जो भी निर्णय लेगा, वह उसके साथ होंगे। 

डॉ. हरक सिंह के मुद्दे पर अमर उजाला से बातचीत करते हुए पूर्व सीएम हरीश रावत ने कहा कि इस मामले में वह पिक्चर में नहीं हैं। पार्टी का जो निर्णय होगा, वह उसे मान लेंगे। हरक सिंह रावत अगर यह कह रहे हैं कि मैंने माफी दे दी है तो यह हरीश रावत का व्यक्तिगत मामला नहीं है। वह तो इस बात को अपने मन से बहुत पहले ही हटा चुके हैं। बकौल हरीश, हमारे जीवन में यह घटना होनी थी, हो गई, हम इसे झेल रहे हैं। हम ही क्या, सभी उसका परिणाम झेल रहे हैं।

उस दौरान यदि तीन-चार माह और सरकार रहती तो काम करने के तमाम अवसर मिलते। लेकिन इन्होंने (हरक सिंह) ऐसा नहीं होने दिया। इन्होंने सरकार का एक प्रकार से पूरा एक वित्तीय वर्ष खत्म कर दिया। इस दौरान उत्तराखंड के विकास का जो नुकसान हुआ, उसका सवाल बड़ा है। लोकतंत्र का नुकसान हुआ, उसका भी सवाल है। इसके लिए आप (हरक सिंह) भले ही सर्वाजनिक रूप से बात करें या माफी मांगे, लेकिन यह पार्टी को देखना है कि इनके आने से फायदा है या नुकसान है। यह पार्टी को तय करना है, मैं इस मसले पर नहीं फंसना चाहता हूं। हरीश रावत ने आगे जोड़ा कि उन्हें घाव लगा था, इसलिए हो सकता है, वह निष्पक्ष तरीके से नहीं सोच पा रहे हों। वह इतना ही कहना चाहते हैं कि पार्टी के सामूहिक निर्णय में हरीश रावत का निर्णय भी शामिल होगा।

पर्यवेक्षक मोहन प्रकाश जोशी की कांग्रेस भवन में मौजूदगी के दौरान रायपुर विधानसभा क्षेत्र के कुछ कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस मुख्यालय भवन में डॉ. हरक सिंह रावत के विरोध में नारेबाजी कर प्रदर्शन किया। 

बताया जा रहा है कि प्रदर्शन कर रहे कार्यकर्ता दो माह पूर्व ही कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए महेंद्र नेगी गुरुजी के समर्थक थे। महेंद्र नेगी रायपुर से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। डॉ. हरक सिंह रावत के कांग्रेस में शामिल होने और रायपुर सीट से दावेदारी जताने की आशंका में उम्मीदवार पहले ही विरोध दर्ज करा देना चाहते हैं।

शायद यही वजह रही कि पर्यवेक्षक नियुक्त होने के बाद पहली बार कांग्रेस मुख्यालय भवन पहुंचे मोहन प्रकाश जोशी की मौजूदगी के समय विरोध दर्ज कराने का समय चुना गया। जिस वक्त पर्यवेक्षक मोहन प्रकाश जोशी कांग्रेस भवन में पहली मंजिल पर बने वार रूम का निरीक्षण कर रहे थे, उसी वक्त कार्यालय प्रांगण में कार्यकर्ता प्रदर्शन कर रहे थे। 

हरक सिंह पुन: कॉंग्रेस में जाएँगे

प्रदेश की सियासत में उठापटक के प्रतीक माने जाने वाले कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत इस बार भाजपा के लिए किरकिरी का सबब बने हैं। नौ कांग्रेसी विधायकों के साथ हरक सिंह रावत 2016 में हरीश रावत का साथ छोड़ भाजपा में आने की वजह से चर्चा में आए थे। भाजपा ने न सिर्फ उन्हें कोटद्वार से टिकट देकर उम्मीदवार बनाया बल्कि कैबिनेट मंत्री से भी नवाजा। पूर्व मुख्य मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से उनके लगभग चार साल के कार्यकाल में हरक का छत्तीस का आंकड़ा बना रहा। 

सारिका तिवारी, डेमोक्रेटिक फ्रंट – उत्तराखंड/चंडीगढ़ :

उत्तराखंड में भाजपा में खींचतान लगातार जारी है। कुछ दिन पहले कैबिनेट मीटिंग में इस्तीफा देने के बाद मना लिए गए वरिष्ठ मंत्री हरक सिंह रावत को पार्टी ने रविवार को बाहर का रास्ता दिखा दिया। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री कार्यालय ने देर रात बयान जारी कर बताया कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया है और इसकी जानकारी राज्यपाल को भी भेज दी है। वहीं, रावत को 6 साल के लिए भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से भी बर्खास्त कर दिया गया है।

दावेदारों के पैनल के सिलसिले में दिल्ली में हुई पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की बैठक में यह निर्णय लिया गया। प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने इसकी पुष्टि की। बताया जा रहा कि हरक परिवार के लिए तीन टिकट मांग रहे थे, जिसे केंद्रीय नेतृत्व ने खारिज कर उन्हें बाहर का रास्ता दिखाना बेहतर समझा। हरक रविवार को ही विधायक उमेश शर्मा काऊ के साथ दिल्ली पहुंचे थे। हरक का कहना था कि वह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करेंगे।

हरक सिंह रावत पिछले पांच साल से भाजपा को समय-समय पर असहज करते आए हैं। अब तक पार्टी वर्ष 2016 के राजनीतिक घटनाक्रम के दौरान दिए गए सहयोग के लिए उनकी हर बात को मानती आई है। ऐसे में पार्टी संगठन के बीच से भी हरक के विरोध में सुर उभर रहे थे। अब जबकि विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है तो नाराज बताए जा रहे हरक ने पार्टी के सामने अपनी सीट बदलने के साथ ही पुत्रवधू के लिए लैंसडौन से टिकट समेत तीन टिकटों की मांग रख दी। हाल में उन्होंने केंद्रीय मंत्री एवं प्रदेश चुनाव प्रभारी प्रल्हाद जोशी से बंद कमरे में बातचीत की थी। तब पार्टी की ओर से साफ कर दिया गया था एक परिवार को एक ही टिकट दिया जाएगा।

अब चुनाव की नामांकन प्रक्रिया शुरु होने से चंद घण्टे पहले उनकी कांग्रेस में वापसी की प्रबल संभावना को देखते हुए आखिरकार भाजपा को आखिरकार उनसे अपने रिश्ते फिर से परिभाषित करने पड़ गए हैं। इसी क्रम में सीएम पुष्कर सिंह धामी को उन्हें सरकार से बर्खास्त करने के साथ ही पार्टी ने भी उन्हें निलंबित कर दिया है। जबकि अब तक हर बार पार्टी उनकी मनोव्वल करती आ रही थी। हरक के तेवरों के आगे नरम पड़ती पार्टी के रवैये से भाजपा का मूल कैडर भी हैरान था, इस कारण पार्टी ने अब तकरीबन बेअसर हो चुकी इस कार्यवाही से अपने कैडर की भावनाओं पर मरहम लगाने का प्रयास किया है।

1991 पौड़ी से भाजपा के टिकट पर विधायक निर्वाचित
1991 कल्याण सिंह सरकार में सबसे युवा मंत्री बने
1993 में फिर पौडी सीट से निर्वाचित हुए
1995 विवादों के बीच भाजपा का साथ छोड़ा
1997 मायावती के नेतृत्व वाली बसपा में शामिल
1997 यूपी खादी ग्रामोद्योग में उपाध्यक्ष बने
2002 कांग्रेस से लैंसडाउन के विधायक बन
2002 तिवारी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने
2003 जेनी प्रकरण में इस्ती़फा देना पड़ा
2007 फिर से लैंसडाउन के विधायक बने
2007 में कांग्रेस से नेता विपक्ष बनाए गए
2012 रुद्रप्रयाग से विधायक निर्वाचित हुए
2016 कांग्रेस से इस्तीफा दिया, भाजपा में वापसी
2017 भाजपा से कोटद्वार से विधायक बने
2017 भाजपा सरकार में फिर मंत्री बनाए गए

2022 भाजपा सरकार से बर्खास्त किए गए

हरक सिंह शनिवार को एक बार फिर चर्चा में तब आए, जब वह प्रदेश भाजपा कार्यालय में कोर ग्रुप की बैठक में शामिल नहीं हुए। इसे उनकी तीन टिकट की मांग का समाधान न होने से पैदा नाराजगी से जोड़कर देखा गया। रविवार शाम को हरक अपनी पुत्रवधू अनुकृति गुसाईं और विधायक उमेश शर्मा काऊ के साथ दिल्ली पहुंच गए। उन्होंने बताया था कि वह दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर अपनी बात रखेंगे।

दरअसल, रविवार शाम को विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी चयन के संबंध में भाजपा नेता मंथन में जुटे। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने देर रात बताया कि बैठक में हरक के विषय पर भी मंथन हुआ। इसके बाद पार्टी ने हरक को छह साल के लिए भाजपा से बर्खास्त करने का निर्णय ले लिया। उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने के संबंध में भी सरकार की ओर से राजभवन को सूचना भेज दी गई। राजभवन ने इसकी पुष्टि की है। उधर, देर रात यह जानकारी सामने आई कि हरक सिंह रावत सोमवार को विधिवत कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं।

पूर्व कैबिनेट मंत्री डा. हरक सिंह रावत का कहना है कि भाजपा ने मेरे संबंध में जो निर्णय लिया है, उसकी जानकारी मुझे मीडिया से मिली। पार्टी ने मुझे अपनी बात रखने का अवसर भी नहीं दिया, जबकि मैं दिल्ली में ही मौजूद हूं। पार्टी नेताओं को इसकी जानकारी भी थी। अब सभी पहलुओं पर विचार-विमर्श के बाद अगला कदम तय करूंगा।

हरक सिंह रावत कोटद्वार में मेडिकल कालेज के निर्माण को लेकर तकरीबन बीते दो महीने से मुखर थे। इस मामले में लग रही अड़चन से नाराज हरक सिंह रावत इस्तीफा देने की धमकी देते हुए बीती 24 दिसंबर को कैबिनेट बैठक छोड़कर चले गए थे। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, कैबिनेट मंत्री रावत की नाराजगी दूर करने को सक्रिय हुए। उन्होंने मेडिकल कालेज के संबंध में ठोस निर्णय के संकेत दिए। मान-मनुहार के प्रयास कामयाब हुए।

दिल्‍ली रवाना होने के दौरान हरक सिंह रावत के साथ देहरादून के रायपुर विधानसभा सीट से उमेश शर्मा काऊ भी हैं। बताया जा रहा है कि हरक सिंह रावत देर रात को कांग्रेस की अध्‍यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात करने जा रहे हैं। कल यानी सोमवार को उनके कांग्रेस में शामिल होने की भी चर्चा चल रही है। हालांकि माना जा रहा है कि जिस तरह से हरक सिंह रावत ने भाजपा के समक्ष टिकटों की शर्त रखी थी, यद‍ि वह कांग्रेस के सामने भी यह शर्त रखते हैं तो यह कांग्रेस के लिए भी मुश्किल हो सकती है।

भाजपा के बदरीनाथ विधानसभा सीट से विधायक महेंद्र भट्ट ने ट्वीट कर कहा कि देर से ही सही पार्टी का अच्‍छा निर्णय। हरक सिंह रावत भाजपा से बर्खास्‍त हुए। मंत्रीमंडल से भी बर्खास्‍त।

माँ शाकंभरी देवी की जयंती, आइये जानें अधिक …….

जानिए की कौन हैं देवी शाकम्भरी और क्यों मनाये शाकम्भरी जयंती..????

आज ( सोमवार—17जनवरी 2022) शाकम्भरी जयंती है आज सूर्योदय से अत्यंत शुभ रवि योग रहेगा | आज दक्षिण भारत में मट्टू पोंगल नामक पर्व मनाया जायेगा |शाकम्भरी जयंती 15 जनवरी को देवी शाकम्भरी की याद में मनायी जाती है।देवी शाकम्भरी दुर्गा के अवतारों में एक हैं।ऐसी मान्यता है कि माँ शाकम्भरी मानव के कल्याण के लिये इसी दिन धरती पर आयी थी।

मां शाकम्भरी की महिमा के बाबत सत्य ही वर्णित है

शारणागत दीनात् परित्राण परायणे, सर्वस्यर्ति हरे देवी नारायणी नामोस्तुते।

       शाकम्भरी नवरात्री पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी से पूर्णिमा तक होती हैं। पौष माह की पूर्णिमा को ही पूराणों के अनुसार शाकम्भरी माताजी का प्रार्दुभाव हुआ था अतः पूर्णिमा के दिन शाकम्भरी जयन्ती (जन्मोत्सव) महोत्सव मनाया जाता हैं।



माँ शाकम्भरी देवी मन्दिर—भक्तों की श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास का केन्द्र—-

प्राचीन समय की बात है – दुर्गम नाम का एक महान्‌ दैत्य था। उस दुष्टात्मा दानव के पिता राजारूरू थे। ‘देवताओं का बल देव है। वेदों के लुप्त हो जाने पर देवता भी नहीं रहेंगे, इसमें कोई संशय नहीं है। अतः पहले वेदों को ही नष्ट कर देना चाहिये’। यह सोचकर वह दैत्य तपस्या करने के विचार से हिमालय पर्वत पर गया। मन में ब्रह्मा जी का ध्यान करके उसने आसन जमा लिया। वह केवल वायु पीकर रहता था। उसने एक हजार वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की। उसके तेज से देवताओं और दानवों सहित सम्पूर्ण प्राणी सन्तप्त हो उठे। तब विकसित कमल के सामन सुन्दर मुख की शोभा वाले चतुर्मुख भगवान ब्रह्मा प्रसन्नतापूर्वक हंस पर बेडकर वर देने के लिये दुर्गम के सम्मुख प्रकट हो गये और बोले – ‘तुम्हारा कल्याण हो ! तुम्हारे मन में जो वर पाने की इच्छा हो, मांग लो। आज तुम्हारी तपस्या से सन्तुष्ट होकर मैं यहाँ आया हूँ।’ ब्रह्माजी के मुख से यह वाणी सुनकर दुर्गम ने कहा – सुरे, र! मुझे सम्पूर्ण वेद प्रदान करने की कृपा कीजिये। साथ ही मुझे वह बल दीजिये, जिससे मैं देवताओं को परास्त कर सकूँ।

दुर्गम की यह बात सुनकर चारों वेदों के परम अधिष्ठाता ब्रह्माजी ‘ऐसा ही हो’ कहते हुए सत्यलोक की ओर चले गये। ब्रह्माजी को समस्त वेद विस्मृत हो गये।

इस प्रकार सारे संसार में घोर अनर्थ उत्पन्न करने वाली अत्यन्त भयंकर स्थिति हो गयी। इस प्रकार का भीषण अनिष्टप्रद समय उपस्थित होने पर कल्याणस्वरूपिणी भगवती जगदम्बा की उपासना करने के विचार से ब्राह्मण लोग हिमालय पर्वत पर चले गये। समाधि, ध्यान और पूजा के द्वारा उन्होंने देवी की स्तुति की। वे निराहार रहते थे। उनका मन एकमात्र भगवती में लगा था। वे बोले – ‘सबके भीतर निवास करने वाली देवेश्वरी ! तुम्हारी प्रेरणा के अनुसार ही यह दुष्ट दैत्यसब कुछ करता है। तुम बारम्बार क्या देख रही हो ? तुम जैसा चाहो वैसा ही करने में पूर्ण समर्थ हो। कल्याणी! जगदम्बिके प्रसन्न हो जाओ, प्रसन्न हो जाओ, प्रसन्न हो जाओ! हम तुम्हें प्रणाम करते हैं।’

‘इस प्रकार ब्राह्मणों के प्रार्थना करने पर भगवती पार्वती, जो ‘भुवनेश्वरी’ एवं महेश्वरी’ के नाम से विखयात हैं।, साक्षात्‌ प्रकट हो गई। उनका यह विग्रह कज्जल के पर्वत की तुलना कर रहा था। आँखें ऐसी थी, मानों विकसित नील कमल हो। कमल के पुष्प पल्लव और मूल सुशोभित थे। सम्पूर्ण सुन्दरता का सारभूत भगवती का यह स्वरूप बड़ा ही कमनीय था। करोडो सूर्यों के समान चमकने वाला यह विग्रह करूण रस का अथाह समुद्र था। ऐसी झांकी सामने उपस्थित करने के पश्चात्‌ जगत्‌ की रक्षा में तत्पर रहने वाली करूण हृदया भगवती अपनी अनन्त आँखों से सहस्रों जलधारायें गिराने लगी। उनके नेत्रों से निकले हुए जल के द्वारा नौ रात तक त्रिलोकी पर महान्‌ वृष्टि होती रही। वे देवता व ब्राह्मण सब एक साथ मिलकर भगवती का स्तवन करने लगे।

देवी ! तुम्हें नमस्कार है। देवी ! तुमने हमारा संकट दूर करने के लिये सहस्रों नेत्रों से सम्पन्न अनुपम रूप धारण किया है। हे मात ! भूख से अत्यन्त पीडि त होने के कारण तुम्हारी विशेष स्तुति करने में हम असमर्थ हैं। अम्बे ! महेशानी ! तुम दुर्गम नामक दैत्य से वेदों को छुड़ा लाने की कृपा करो।

व्यास जी कहते हैं – राजन ! ब्राह्मणों और देवताओं का यह वचन सुनकर भगवती शिवा ने अनेक प्रकार के शाक तथा स्वादिष्ट फल अपने हाथ से उन्हें खाने के लिये दिये। भाँति-भाँति के अन्न सामने उपस्थित कर दिये। पशुओं के खाने योग्य कोमल एवं अनेक रस से सम्पन्न नवीन तृण भी उन्हें देने की कृपा की। राजन ! उसी दिन से भगवती का नाम ”शाकम्भरी” पड गया।

जगत में कोलाहल मच जाने पर दूत के कहने पर दुर्गम नामक स्थान दैत्य स्थिति को समझ गया। उसने अपनी सेना सजायी और अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित होकर वह युद्ध के लिये चल पड़ा। उसके पास एक अक्षोहिणी सेना थी। तदनन्तर भगवती शिवा ने उससे रक्षा के लिये चारों ओर तेजोमय चक्रखड़ा कर दिया। तदनन्तर देवी और दैत्य-दोनों की लड़ाई ठन गयी। धनुष की प्रचण्ड टंकार से दिशाएँ गूँज उठी।

भगवती की माया से प्रेरित शक्तियों ने दानवों की बहुत बड़ी सेना नष्ट कर दी। तब सेनाध्यक्ष दुर्गम स्वयं शक्तियों के सामने उपस्थित होकर उनसे युद्ध करने लगा। दस दिनों में राक्षस की सम्पूर्ण अक्षोहिणी सेनाएँ देवी का द्वारा वध कर कदी गयी।

अब भगवती जगदम्बा और दुर्गम दैत्य इन दोनों में भीषण युद्ध होने लगा। जगदम्बा के पाँच बाण दुर्गम की छाती में जाकर घुस गये। फिर तो रूधिर वमन करता हुआ वह दैत्य भगवती परमेश्वरी के सामने प्राणहीन होकर गिर पड़ा।

देवगण बोले- परिवर्तनशील जगत की एकमात्र कारण भगवती परमेश्वरी! शाकम्भरी! शतलोचने! तुम्ळें शतशः नमस्कार है। सम्पूर्ण उपनिषदों से प्रशंसित तथा दुर्गम नामक दैत्य की संहारिणी एवं पंचकोश में रहने वाली कल्याण-स्वरूपिणी भगवती महेश्वर! तुम्हें नमस्कार है।

व्यासजी कहते हैं – राजन! ब्रह्मा, विष्णु आदि आदरणीय देवताओं के इस प्रकार स्तवन एवं विविध द्रव्यों के पूजन करने पर भगवती जगदम्बा तुरन्त संतुष्ट हो गयीं। कोयल के समान मधुरभाषिणी उस देवी ने प्रसन्नतापूर्वक उस राक्षस से वेदों को त्राण दिलाकर देवताओं को सौंप दिया। वे बोलीं कि मेरे इस उत्तम महात्म्य का निरन्तर पाठ करना चाहिए। मैं उससे प्रसन्न होकर सदैव तुम्हारे समस्त संकट दूर करती रहूँगी।

व्यासजी कहते हैं – राजन ! जो भक्ति परायण बड भागी स्त्री पुरूष निरन्तर इस अध्याय का श्रवण करते हैं, उनकी सम्पूर्ण कामनाएँ सिद्ध हो जाती हैं और अन्त में वे देवी के परमधाम को प्राप्त हो जाते हैं।

============================================================



यह मन्दिर उदयपुर खाटी (राजस्थान), जिला सीकर के निकट है तथा प्रकृति की अनुपम छटा लिये हुए सुन्दर मनोहर घाटी पर विद्यमान है जहाँ आज भी गंगा बहती है।
उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर से करीब 40 कि.मी. की दूरी पर शिवालिक की पर्वतमालाओं में स्थित आदिशक्ति विश्वकल्याणी मां शाकम्भरी देवी के प्राचीन सिद्धपीठ की छटा ही निराली है।

प्राकृतिक सौंदर्य व हरीतिमा से परिपूर्ण यह क्षेत्र उपासक का मन मोह लेता है तथा बरबस ही मस्तक उस जगतजननी के समक्ष श्रद्धा से झुक जाता है जो दस महाविद्याओं के विभिन्न स्वरूपों में एक सौ आठ नाम से वंदनीय हैं व दिव्य ज्योति रूप बनकर भौतिक जगत को प्रकाशित करती हैं। मां शाकम्भरी की महिमा से ही प्रकृति सुरक्षित है। वे न केवल प्राणियों की क्षुधा शांत करती हैं बल्कि प्रण-प्राण से रक्षा भी करती हैं। देवीपुराण के अनुसार शताक्षी, शाकम्भरी व दुर्गा एक ही देवी के नाम हैं।
नवरात्रि तथा दुर्गा अष्टमी के अलावा विभिन्न पुनीत अवसरों पर मां शाकम्भरी पीठ पर उपासकों का तांता लगा रहता है। हालांकि वर्षा ऋतु के दौरान यहां उपासकों को बाढ़ की सी स्थिति का सामना करना पड़ता है लेकिन भक्ति में शक्ति होने के कारण यहां सदैव भक्तों का जमावड़ा बना रहता है।

पुराण में वर्णित है कि इसी पवित्र स्थल पर मां जगदम्बा ने रक्तबीज का संहार किया था तथा सती का सिर भी इसी स्थल पर गिरा था। जनश्रुति है कि जगतजननी मां शाकम्भरी देवी की कृपा से उपासक के यहां खाद्य सामग्री की कमी नहीं रहती। शाक की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण वे शाकम्भरी देवी के नाम से लोको में जानी जाती हैं। श्री दुर्गा सप्तशती में वर्णित रूप के अनुसार मां शाकम्भरी देवी नीलवर्ण, नयन नीलकमल की भांति, नीची नाभि एवं त्रिवली हैं। कमल पर विराजमान रहने वाली मां शाकम्भरी देवी धनुष धारणी हैं। देवी पुराण में उनकी महिमा का वर्णन करते हुये उल्लेख किया गया है कि वे ही देवी शाकम्भरी हैं, शताक्षी हैं व दुर्गा नाम से जानी जाती हैं। यह भी सत्य है कि वे ही अनंत रूपों में विभक्त महाशक्ति हैं।

सिद्धपीठ मां शाकम्भरी देवी में मुख्य प्रतिमा मां शाकम्भरी के दाई ओर भीमादेवी व भ्रामरी तथा बायीं ओर शीताक्षी देवी प्रतिष्ठित हैं। मंदिर प्रांगण में ही भैरव आदि देवों के लघु मंदिर स्थापित हैं। सिद्धपीठ के समीप ही दस महाविधाओं में से एक मां छिन्न-मस्ता का प्राचीन मंदिर है। पुराण के अनुसार जब राक्षसों के अत्याचारों से पीडि़त देवतागण शिवालिक पर्वतमालाओं में छिप गये तथा उनके द्वारा जगदम्बा की स्तुति करने पर मातेश्वरी ने इसी स्थल पर प्रकट होकर उन्हें भयमुक्त किया व उनकी क्षुधा मिटाने हेतु साग व फलादि का प्रबंध किया। इसी कारण वह शाकम्भरी नाम से प्रसिद्ध हुईं। तत्पश्चात् वह शुम्भ-निशुम्भ राक्षसों को रिझाने के लिये सुंदर रूप धारण कर शिवालिक पहाड़ी पर आसन लगाकर बैठ गयीं। इसी स्थल पर मां जगदम्बा ने शुम्भ-निशुम्भ, रक्तबीज व महिषासुर आदि दैत्यों का संहार किया व भक्त भूरेदेव को आशीर्वाद दिया। सिद्धपीठ के समीपस्थ स्थित भूरेदेव के मंदिर से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है। मां की असीम अनुकम्पा से वर्तमान में भी सर्वप्रथम उपासक भूरेदेव के दर्शन करते हैं तत्पश्चात पथरीले रास्ते से गुजरते हुये मां शाकम्भरी देवी के दर्शन हेतु जाते हैं। जिस स्थल पर माता ने रक्तबीज नामक राक्षस का वध किया था, वर्तमान में उसी स्थल पर मां शाकम्भरी का सिद्धपीठ गौरव से मस्तक ऊंचा किये खड़ा है।