मोदी का व्यवहार जैसे कोई सड़कछाप व्यक्ति हों: इमरान मसूद


अब इमरान मसूद एक बार फिर वही गलती कर रहे हैं. मसूद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर फिर एक विवादित बयान दिया है.


कांग्रेस नेता इमरान मसूद कौन हैं ? 2014 के पहले शायद ही इनको कोई जानता होगा. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और आस-पास के इलाकों में इनकी पहचान रही होगी. एक इलाके भर में इनका वजूद रहा होगा, लेकिन, पहली बार पिछले लोकसभा चुनाव में सबको पता चला कि आखिर ये जनाब हैं कौन? कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ ऐसा बयान दिया जिसके बाद देश भर में सियासी बवाल मच गया था.

2014 लोकसभा चुनाव में यूपी के सहारनपुर में एक रैली के दौरान मसूद ने अपने भाषण के दौरान मोदी की ‘बोटी-बोटी काटने’ का विवादित बयान दिया था. उस वक्त पूरे देश में मोदी लहर चल रही थी. मोदी की लोकप्रियता चरम पर थी. यूपीए सरकार के दस साल के शासनकाल के बाद देशभर में परिवर्तन की लहर चल रही थी. मोदी उस परिवर्तन के नायक के तौर पर अपने-आप को पेश कर रहे थे. ऐसे वक्त में मोदी के खिलाफ इस तरह का बयान देने वाले इमरान मसूद का बयान उल्टा कांग्रेस के लिए ही महंगा पड़ गया था.

अब इमरान मसूद एक बार फिर वही गलती कर रहे हैं. मसूद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर फिर एक विवादित बयान दिया है. मसूद ने उन्हें एक सड़कछाप नेता कह दिया है. कांग्रेस नेता इमरान मसूद से जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गले लगाने को लेकर सवाल किया गया तो मसूद ने कहा कि ‘राहुल गांधी ने नवाज शरीफ या इमरान खान को तो गले नहीं लगाया न. प्रधानमंत्री जी को इसका जवाब शालीनता से देना चाहिए था. लेकिन वो ऐसे रिएक्ट कर रहे थे, जैसे कोई सड़कछाप व्यक्ति हों.’

इमरान मसूद के बयान से एक बार फिर खलबली मच गई है. उनके बयान पर सवाल खड़े हो रहे हैं. मसूद ने एक बार फिर भाषा की मर्यादा लांघी है. कांग्रेस ने दो साल पहले उन्हें यूपी में उपाध्यक्ष पद से नवाजा है. अब इस जिम्मेदारी के बावजूद मसूद का मोदी पर अमर्यादित बयान जारी है. तो सवाल कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से भी पूछे जा रहे हैं. राहुल से सवाल इसलिए पूछे जा रहे हैं क्योंकि, अविश्वास प्रस्ताव पर संसद के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गले मिलने को लेकर बीजेपी पर नफरत की राजनीति करने का आरोप लगाया था.

इमरान मसूद के बयान पर कांग्रेस को देना होगा जवाब

राहुल ने दिखाने की कोशिश की थी कि बीजेपी के लोग भले ही हमसे नफरत करें, हम उनसे विरोधी होने के बावजूद प्यार से गले लगते हैं. लेकिन, अब इस मुद्दे पर कांग्रेस को जवाब देना होगा, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को जवाब देना होगा, क्या इस तरह की भाषा से वो सहमत हैं. नफरत और प्यार का अंतर समझाने वाले राहुल गांधी इसे किस रूप में देखते हैं. क्योंकि अब सवाल राहुल गांधी की उस प्यार की राजनीति पर भी उठेंगे जो कि उन्होंने मोदी को संसद में गले लगाकर किया था.

इस मुद्दे पर बीजेपी भी कांग्रेस और राहुल गांधी को घेर रही है. बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने फर्स्टपोस्ट से बातचीत में कहा ‘कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कहते हैं कि वो नफरत नहीं प्यार करते हैं, लेकिन, उनके नेताओं का बयान नफरत वाला होता है.’ शाहनवाज हुसैन ने इमरान मसूद के 2014 के मोदी पर दिए उस आपत्तिजनक बयान की भी याद दिलाई जिसमें मसूद ने बोटी-बोटी काटने की बात कही थी.

बीजेपी प्रवक्ता ने दावा किया कि ‘जिस तरह 2014 में मसूद के बयान के बाद मोदी की जीत हुई थी, ठीक उसी तरह कांग्रेस को फिर से यह नफरत वाला बयान उल्टा पड़ेगा और 2019 में नरेंद्र मोदी की अगुआई में फिर से बीजेपी की ही जीत होगी.’ बीजेपी के दावे में कितना दम है यह तो वक्त बताएगा, लेकिन, ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस ने इतिहास से सबक नहीं लिया है. कांग्रेस हमेशा एक ही तरह की गलती बार-बार दोहराती रही है.

सोनिया गांधी ने गुजरात में 2007 के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर बताया था. इस बयान पर भी खूब हंगामा हुआ था. बीजेपी ने इस बयान को खूब भुनाया और चुनाव परिणाम कांग्रेस के खिलाफ रहा. लेकिन, कांग्रेस ने इससे सबक नहीं लिया. 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले भी कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को कांग्रेस अधिवेशन के बाहर चाय का स्टॉल लगाने की सलाह दे दी थी.

अपने खिलाफ की गई टिप्पणियों को खूब भुनाते हैं पीएम मोदी

चाय वाले का बेटा बताने वाले मोदी ने इस बयान को अपने पाले में खूब भुनाया. अय्यर का बयान कांग्रेस को उल्टा पड़ गया. फिर भी मणिशंकर अय्यर ने इससे सबक नहीं लिया. अभी पिछले साल खत्म हुए गुजरात के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला था. लेकिन, चुनाव के आखिरी चरण में मणिशंकर अय्यर ने फिर से मोदी पर निजी बयान दे डाला. अय्यर ने उस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीच कह डाला.

मोदी ने एक बार फिर से अय्यर के इस बयान को कांग्रेस की सोच से जोड़ कर गुजरात की जनता के सामने पेश कर दिया. मोदी ने इस बयान को अपने पिछड़े और गरीब तबके से जोड़ दिया. लिहाजा कांग्रेस को चुनावी समर में यह बयान उल्टा पड गया. बीजेपी की गुजरात में मिली जीत में इस बयान को लेकर भी खूब चर्चा हुई. कांग्रेस ने मणिशंकर अय्यर को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.

लेकिन, कांग्रेस के दूसरे नेता इससे सबक लेने को तैयार नहीं दिख रहे हैं. यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तरफ से बार-बार दी गई हिदायत और मोदी के खिलाफ किसी भी तरह की टिप्पणी से बचने की नसीहत का असर नहीं दिख रहा है. लोकसभा चुनाव में अभी भी वक्त है. कांग्रेस के पास अभी भी संभलने का वक्त है. कांग्रेस को समझना होगा मोदी पर जितना प्रहार होगा, मोदी उतने ही मजबूत होंगे. राहुल गांधी को अपने नेताओं पर लगाम लगानी होगी, वरना संसद में गले मिलने की प्यार की राजनीति महज दिखावा बनकर रह जाएगी.

 भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ …आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुद्दा: दुष्यंत कुमार


बात दो जून की रोटी की नहीं रही क्योंकि इन बच्चियों के पास रोटी के दो निवाले भी नहीं थे


काम की तलाश में पिता घर से बाहर था. मां को होश नहीं था और भूख उसके तीन मासूमों को ‘निवाला’ बनाने में जुटी हुई थी. दिल्ली के एक मोहल्ले में बंद कमरे से तीन बेटियों के शव बरामद हुए. न तो उनके शरीर पर चोट के निशान थे और न ही उन्होंने जहर खाया था. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में जो सच सामने आया उससे सरकारें ही नहीं बल्कि दिल्ली और हम सब शर्मसार हुए हैं. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट कहती है कि ये तीन बच्चियां 8 दिनों से भूखी थीं और इन्हें भूख ही खा गई. बात दो जून की रोटी की होती है लेकिन इन बच्चियों के पास  रोटी के दो निवाले भी नहीं थे.

दिल्ली यानी राजधानी ही नहीं बल्कि वो शहर जिस पर देश-दुनिया की नजर होती है. यहां की छोटी सी खबर भी देश के लिये बड़ी होती है. दिल्ली के मायने सिर्फ राजधानी तक ही सीमित नहीं. चकाचौंध, ग्लैमर, सियासत की उठापटक का शहर, तरक्की की रफ्तार के साथ तेज भागती जिंदगी और बड़े चेहरों-बड़े नामों से अपनी पहचान बनाने वाली ऐतिहासिक दिल्ली में मासूमों की मौत ने ये साबित कर दिया कि यहां किसी कोने में छुपा अंधेरा कितना स्याह है.

कहां गईं वो कैंटीन जो गरीबों को मुफ्त खाना देने का एलान करती हैं. कहां गई राशन की वो व्यवस्था जो हर परिवार को मुफ्त अनाज देने का दावा करती है. ये कितना शर्मनाक है कि गरीबों के लिये तमाम सरकारी योजनाओं को लागू करने का केंद्र कहलाने वाली दिल्ली में बेटियां भूख से मर जाती हैं और किसी को पता तक नहीं चलता है कि बच्चियां 8 दिनों से भूखी थीं.

डिजिटल इंडिया के दौर में देश को दुनिया के कोने-कोने से कनेक्ट करने की कोशिश की जा रही है और समाज अपने ही मोहल्ले में इस कदर कटा हुआ है कि उसे खबर ही नहीं कि 3 बच्चियां 8 दिनों से भूखी हैं.

इसी दिल्ली में एक सीजन में लाखों शादियां होती हैं जो रिकॉर्ड बनाती हैं. लाखों रुपये का खाना बर्बाद होता है. इसी जगमगाती दिल्ली की चकाचौंध में गरीब बस्तियों के बंद कमरे में भूखे पेट सोने वाले झूठी उम्मीद के साथ सुबह का इंतजार कर रहे होते हैं.

ये सिर्फ दिल्ली के मंडावली की कहानी नहीं है. ये समाज के राजनीति के  संवेदनहीन होने के चलते देश के कई इलाकों की हकीकत  है. इससे पहले झारखंड के सिमडेगा में एक 11 साल की बच्ची की भूख से मौत हो गई थी. बच्ची के परिवार को अनाज इसलिये नहीं मिल सका था क्योंकि उसके राशन कार्ड से आधार कार्ड लिंक नहीं था. दोनों ही घटनाओं का लिंक भूख से है. यहां न राशन कार्ड था और न बनाने को राशन.


क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ

रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ


सियासत सवाल उठा रही है दिल्ली सरकार पर. सवाल उठ रहे हैं सीएम केजरीवाल और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया पर. दिल्ली सरकार पर आरोप है कि वो फ्री पानी और फ्री वाईफाई तो दे सकती है लेकिन उसकी हुकूमत में मासूम भूख से मर रहे हैं. सवाल दिल्ली सरकार की तरफ से भी उठ रहे हैं कि उनकी डोर स्टेप राशन व्यवस्था ऐसी ही घटनाओं को रोकने के लिये है ताकि कोई भूख से न मरे.

सियासत आरोपों में उलझी हुई है और योजनाओं के फाइलों में फंसे होने की दलील दी जा रही है तो गरीबों के राशन कार्ड, बीपीएल कार्ड, पेंशन कार्ड जैसे न मालूम योजनाएं के कितने कार्ड न बनने के आरोप लग रहे हैं.

लेकिन बंद कमरों में भूख से बेटियों की मौत पर समाज के ठेकेदार मौन धरे हुए हैं. ये लोग उसी समाज का हिस्सा हैं जो कभी आरक्षण की मांग को लेकर सड़कों पर संग्राम छेड़ देते हैं तो कभी जाति और मजहब के नाम पर सड़कों पर आक्रोश दिखाते हैं. लेकिन ऐसी संवेदनशील घटनाओं पर चुप्पी मार जाते हैं. अपने ही इलाकों में आपस में अंजान रहने और खुद में सिमटे रहने की आदत ही भावनात्मक रूप से शून्य बनाने का काम कर रही है.

मशहूर शायर दुष्यंत कुमार ने लिखा था कि, ‘ इस शहर मे वो कोई बारात हो या वारदात….अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियां.’

मंडावली की ये घटना आज के संवेदनहीन समाज के आइने का असल अक्स है जिसमें सिर्फ अपना पेट और अपनी जेब की फिक्र में इंसान इंसानियत से कटता दिखाई दे रहा है.

तीन बेटियों की दर्दनाक मौत हो गई. सिस्टम और समाज की संवेदनहीनता के चलते बेटियां बचाईं नहीं जा सकी. भूख से मौत की बेबसी आत्मा को झकझोर कर रख देती है. ये शर्मसार कर जाती है उन सियासी और गैर-सियासी लोगों को जो अपने अपने स्वार्थ में डूबे हैं. इस मौत के जिम्मेदार हम सब ही हैं. भले ही हम सरकार पर उंगली उठा कर खुद को मुंसिफ करार देने की कोशिश करें.

दलील दी जा रही है कि किसी को पता नहीं था कि बच्चियां भूखी हैं. ये दलील सही भी है. किसी को वाकई नहीं मालूम कि इस देश का एक तबका भूखे पेट ही सोता है. न ये सरकारों को अहसास है और न ही समाज के लोगों में ये अहसास जग सका है. समाज इसी तरह सोता रहेगा तो न किसी को भूख से मौत की खबर होगी और न फिर कभी फर्क ही पड़ेगा.

ऐसे ही संवेदनहीन हालातों को देखकर दुष्यंत ने ये भी कहा था, ‘ भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ …आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुद्दा.’

Nation is busy remembering ‘Kargil’ and Congress at it best

Today ABVP PU remembered Martyrs on the occasion of Vijay Diwas at Student center in Panjab University, Chandigarh. ‘ This pious land of Panjab University does not belong to the stone pelters who abuse Indian Army openly but to the heroes of the kargil war Captain Vikram Batra And Major Sagar, we must respect our Armed forces who protect us’ said senior ABVP leader Harmanjot Singh Gill. All the members of Party paid tribute to the heros and celebrated the Kargil Victory Day..

on the other hand Congress Party states:

courtesy HEADLINES TODAY

 

घर द्वार तक राशन पहुँचने वाली दिल्ली में 3 बच्चियों की भूख से हुई मौत

 

दिल्ली के मंडावली में भूख से तीन लड़कियों की मौत के मामले में महिला आयोग ने दिल्ली पुलिस से रिपोर्ट मांगी है. वहीं इस मामले में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि 25 हजार की फौरन मदद उपलब्ध करवाई गई है. लड़की की मां को अस्पताल में भर्ती कराया गया है और यह सुनिश्चित किया गया है कि उन्हें बेहतर इलाज मिले. जैसे ही लड़कियों के पिता वापस आएंगे, हम उन्हें और आर्थिक मदद उपलब्ध करवाएंगे.

सिसोदिया ने कहा कि हमारा सिस्टम फेल हो चुका है. हमने इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विस से रिपोर्ट मांगकर पूछा है कि क्या ये लोग हमारे रिकॉर्ड में थे. अगर ऐसा है तो इन लड़कियों की मदद क्यों नहीं की गई.

बता दें कि पूर्वी दिल्ली के मंडावली इलाके में तीन बहनों की मौत हो गई थी. शुरुआती पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इस बात का संकेत मिला था कि उनकी मौत भुखमरी से हुई है. मामला चर्चा में आते ही दिल्ली सरकार ने मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए थे. इन तीनों की उम्र दो, चार और आठ साल थी. बुधवार की दोपहर में करीब एक बजे उनकी मां और एक मित्र उन्हें अस्पताल लेकर आए थे. जिसके बाद अस्पताल प्रशासन ने पुलिस को उनकी मौत के बारे में सूचित किया.

 

सेना पर विवादित टिप्पणी पर आजम खान की मुश्किलें बढ़ीं

लखनऊ:

योगी सरकार ने समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान पर आपत्तिजनक टिप्पणी मामले मुकदमा चलाने का आदेश दिया है। दरअसल, आजम खान ने छ्त्तीसगढ़ के सुकमा में महिला नक्सलियों ने शहीदों के गुप्तांग काट लिया था। इसी मामले में आजम खान ने विवादित बयान दिया था। आजम खान ने कहा था कि महिलाओं ने फौजियों से रेप का बदला उनके गुप्तांग को काट कर लिया है। आजम खान के कहा था कि महिलाओं को जवानों के गुप्तांग से परेशानी थी इसलिए महिलाओं ने उसे काट कर साथ ले चली गई।

आजम खान के इस बयान के बाद से सियासी उबाल मच गया था। इतना ही नहीं इस बयान लेकर आजम के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज कराई गई थी। आजम खान पर भर्ती में भी जांच पहले से ही चल रही है। आजम खान पहले ही कह चुके है कि योगी सरकार उनको टारगेट कर रही है। जांच बैठाने के लिए और भी कई मुद्दे हैं और और प्रदेश में अपराध भी चरम पर है। योगी सरकार इन सब को छोड़कर मुझे ही क्यों टारगेट कर रही है।

आजम खान के इस बयान के बाद आकाश सक्सेना ने पुलिस थाने में तहरीर दी थी. उन्होंने कहा था कि सेना के जवान देश की सुरक्षा में अपने प्राणों की आहूति देते हैं. उनकी वजह से देश सुरक्षित है. देश की एकता और अखंडता कायम है. सैनिकों के प्रति पूर्व मंत्री का बयान मन को आघात पहुंचाने वाला है. ऐसे बयान सेना का मनोबल गिराते हैं. उनकी तहरीर पर 30 जून को पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया था.

पुलिस ने अपनी जांच में उस बयान की सीडी साक्ष्य के लिए प्राप्त की. सीडी को लखनऊ प्रयोगशाला जांच के लिए भेजा गया. जांच से पुष्टि हुई कि सीडी में आवाज आजम खां की ही थी. पुलिस ने मुकदमे में पूर्व मंत्री को आरोपित मानते हुए उनके खिलाफ चार्जशीट लगाई थी और धारा 153ए लगी होने के चलते मुकदमा चलाने के लिए शासन से अनुमति मांगी गई थी.

पहले से चल रहा है बाप-बेटे पर जालसाजी का मुकदमा आपको बता दे कि आजम खां और उनके बेटे विधायक अब्दुल्ला आजम जालसाजी के आरोपों में कोर्ट ने मुकदमा कायम कर लिया था। पूर्व मंत्री नवेद मियां ने दोनों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के लिए कोर्ट में प्रार्थना पत्र दे दिया था। समाजवादी पार्टी की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे आजम खान ने पिछले विधानसभा चुनाव में अपने बेटे अब्दुल्ला को स्वार टांडा से सपा प्रत्याशी बनाया। अब्दुल्ला के नामांकन कराने के साथ ही उनकी उम्र को लेकर विवाद खड़ा हो गया। उनके मुकाबले बसपा प्रत्याशी रहे पूर्व मंत्री नवाब काजिम अली खान उर्फ़ नवेद मियां ने निर्वाचन अधिकारी के समक्ष आपत्ति दाखिल की थी कि अब्दुल्ला की उम्र 25 साल से कम है। तब अब्दुल्ला ने लखनऊ के एक अस्पताल का जन्म प्रमाण पत्र दाखिल किया, जिसमें उनकी उम्र 25 साल से ज्यादा थी। इस पर निर्वाचन अधिकारी ने आपत्ति खारिज करते हुए अब्दुल्ला का नामांकन पत्र सही ठहरा दिया, लेकिन चुनाव संपन्न हो जाने के बाद नवेद मियां के हाथ अब्दुल्ला आज़म की हाईस्कूल की मार्कशीट लग गई, जिसमें उनकी उम्र सात माह कम थी, इसे लेकर नवेद मियां ने अब्दुल्ला के खिलाफ हाई कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया।

फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर नामांकन पत्र दाखिल किया है अदालत में यह मुकदमा विचाराधीन है, लेकिन इसी बीच पूर्व मंत्री शिव बहादुर सक्सेना के बेटे भाजपा नेता आकाश सक्सेना ने भी अब्दुल्ला के खिलाफ मुख्य निर्वाचन अधिकारी लखनऊ से शिकायत कर दी, जिसमें कहा कि अब्दुल्ला ने फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर नामांकन पत्र दाखिल किया है। शपथ पत्र भी झूठा है उसके साथ जो पैन कार्ड लगा है, वह भी गलत है

आय से अधिक संपत्ति आजम खान की जांच शुरू


राज्यपाल की सिफारिश पर अब आयकर विभाग ने आरोपों की जांच शुरू कर दी है. 


समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. एक तरफ 2017 में सेना पर अमर्यादित टिप्पणी करने पर प्रदेश सरकार ने मुकदमा चलाने की अभी हाल ही में अनुमति दी है, तो वहीं अब आय से अधिक संपत्ति के मामले में आयकर विभाग ने जांच शुरू कर दी है.

दरअसल कांग्रेस नेता फैसल लाला ने 2016 में महामहिम राज्यपाल को एक शिकायती पत्र भेजकर शिकायत की थी. पत्र में कहा था कि सपा नेता आजम खान ने जौहर यूनिवर्सिटी के पास बनी जिला सहकारी बैंक की शाखा से नोटबन्दी के समय करेंसी एक्सचेंज कर अपना काला धन सफेद किया था. साथ ही यह भी शिकायत की थी कि आजम खान ने अपनी विधायक निधि, अपनी सांसद पत्नी की सांसद निधि और सांसद मुनव्वर सलीम की सांसद निधि का अस्सी प्रतिशत जौहर यूनिवर्सिटी में लगाया है.

इन शिकायतों का संज्ञान लेते हुए राज्यपाल की सिफारिश पर अब आयकर विभाग ने इन आरोपों की जांच शुरू कर दी है. आयकर उप निदेशक (जांच) एम के पाण्डेय ने फैसल लाला को पत्र भेजकर उनसे कहा कि अगर उनके द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच आयकर विभाग द्वारा की जा रही है तो वह इन आरोपों से संबंधित कोई और दस्तावेज आयकर विभाग को उपलब्ध कराएं.

पहले मस्जिद पर होगा फैसला, फिर पूजा के अधिकार की बारी: सर्वोच्च न्यायालय

 

सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी से बुधवार को कहा कि वो अयोध्या के विवादित स्थल पर पूजा करने का अधिकार दिलाने की मांग करने वाली अपनी याचिका का उल्लेख, क्या मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है, के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद करे.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली विशेष पीठ ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के मुसलमान समूह की याचिका पर अपना फैसला 20 जुलाई को सुरक्षित रख लिया था. याचिका में समूह ने अनुरोध किया था कि कोर्ट, मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है बताने वाले अपने 1994 के फैसले की बड़ी पीठ से समीक्षा कराए.

चीफ जस्टिस के अलावा, जस्टिस ए. एम. खानविलकर और जस्टिस डी. वाई. चन्द्रचूड़ की पीठ ने स्वामी से कहा कि वो इस मामले में फैसला आने के बाद उचित तरीके से अपनी याचिका सूचीबद्ध कराते हुए उस पर जल्दी सुनवाई का अनुरोध करें. स्वामी ने कोर्ट से पूजा करने का अपना अधिकार जल्दी दिलाने का अनुरोध किया था.

दलहनी फसलों सब्जियों को बचाने के लिए घड़रोजो, नीलगायों को मारने की मंजूरी मिलेः अनुप्रिया पटेल

मिर्जापुर।

उत्तर प्रदेश में दलहनी फसलों और सब्जियों को घडरोजो, नीलगायों और वनरोजों से ज्यादा नुकसान हो रहा है। किसानों की इस गम्भीर समस्या से निजात दिलाने के लिए केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री श्रीमती अनुप्रिया पटेल ने इस संबंध में उत्तर प्रदेश के वन, पर्यावरण, जन्तु उद्यान मंत्री दारा सिंह चैहान को पत्र लिखा है। केन्द्रीय मंत्री श्रीमती पटेल ने श्री चौहान से अनुरोध की है कि कृपया जनहित में महत्वपूर्ण इस विषय पर तत्काल कार्यवाही कर घड़रोजो, नीलगायों और वनरोजो को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 अनुसूची 3 से अनुसूची 5 में शामिल करने हेतु अनुशंसा राज्य सरकार से केन्द्र सरकार को भिजवायें ताकि बिहार प्रदेश की तरह उत्तर प्रदेश के लिए भी भारत सरकार द्वारा आदेश जारी कराया जा सके। केन्द्रीय मंत्री श्रीमती पटेल ने अपने पत्र में लिखा है कि दलहनी फसलों और सब्जियों को खाकर तहस-नहस और बर्वाद कर दिया जा रहा है, जिससे आजिज और परेशान होकर किसान दलहनी फसलों और सब्जियों की खेती कम करता चला जा रहा है, परिणाम स्वरूप मांग के अनुरूप दाल और सब्जी पैदा नहीं हो रही है और मूल्य बढ़ रहा है। किसानों को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए केन्द्रीय मंत्री श्रीमती पटेल ने 4 दिसंबर 2014 को नियम 377 के तहत लोकसभा में मामला उठाया था और कृषि मंत्री तथा वन, पर्यावरण एवं जंगली पशुओं को ‘पीड़क जंतु‘ मानकर इन्हे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची 3 से 5 में शामिल कर मारने हेतु आदेश जारी करने की मांग की थीं, जिस पर केन्द्र सरकार ने 12 जनवरी 2015 को त्वरित कार्यवाही करते हुए केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री ने उत्तर प्रदेष सरकार से इस विषय में रिपोर्ट की मांग की, जो उत्तर प्रदेश सरकार से इस संबंध में भारत सरकार के स्तर से अग्रिम कार्यवाही लंबित है। खास बात यह है कि बिहार सरकार ने इसे गंभीरता से लेते हुए 19 जून 2015 को इसे पास कर इसे भारत सरकार को भेज दिया और भारत सरकार ने इसे 1 दिसंबर 2015 को मंजूरी दे दी और इन जंगली जानवरों को पीड़क जन्तु घोषित कर दिया है, इसके बाद बिहार में किसान अपनी फसल की सुरक्षा हेतु इन्हे मार सकते है।

कांग्रेस हताश, किसी को भी पीएम उम्मीदवार बनाने को तैयारः अनंत कुमार

 

प्रधानमंत्री पद के लिए मायावती और ममता बनर्जी के नाम पर कांग्रेस की सहमति पर संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार का कहना है, ‘ये कांग्रेस की हताशा को दर्शाता है. जिस दिन वर्किंग कमेटी ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर चयनित किया था. हमने उसी दिन कहा उनकी उम्मीदवारी  के लिए कोई सहमति नहीं होगी.’

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस की साथी पार्टियों में इस कारण विकट परिस्थिति शुरू हो गई है. जब ऐसी स्थिति पैदा होती है तो निराश होकर कोई भी प्रधानमंत्री बने, कैसे भी बने तो हम उसका समर्थन करेंगे. यही स्थिति कांग्रेस की हो गई है.’

वहीं राफेल डील को लेकर प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री के खिलाफ कांग्रेस पार्टी द्वारा विशेषाधिकार हनन लाए जाने के नोटिस पर संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार का कहना है कि विशेषाधिकार हनन का नोटिस संसद के नियमों के हिसाब से होता है.

अगर कांग्रेस विशेषाधिकार हनन लाती है तो उसका कोई स्टैंड नहीं करेगा. प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के खिलाफ जो विशेषाधिकार हनन लाने की बात कर रहे हैं, उसमें कोई दम नहीं है. इससे कांग्रेस के लिए अजीब सी स्थिति उत्पन्न हो जाएगी.

संसद में जब विशेषाधिकार हनन का नोटिस आता है वो संसद की नियमावली के सूझ-बूझ और ज्ञान, विवेक के हिसाब से देते हैं. हर बार इस तरीके से विशेषाधिकार हनन का नोटिस इस्तेमाल करने का प्रावधान नहीं है. लेकिन बिना सूझ-बूझ और बिना विवेक के कांग्रेस जहां कोई विशेषाधिकार का हनन नहीं है, कोई विशेषाधिकार हनन का कोई मुद्दा ही नहीं बनता है, वहां पर नोटिस दे रही है. तो एक और बार खुलासा होगा कि जो संसदीय प्रक्रिया है उसकी कमी कांग्रेस में.

स्मानतर अदालतें हमारे समाज का हिस्सा नहीं हो सकतीं: Nida


तीन तलाक पीड़िता निदा कहती हैं कि जिस देश में हम रह रहे हैं वहां एक संविधान है तो समानांतर कोर्ट नहीं चल सकती.


 

जुमे का दिन था और वक्त था जोहर की नमाज का जब हम बरेली के शामतगंज में निदा खान के घर पहुंचे. निदा तो घर पर थीं नहीं. लेकिन उनकी अम्मी अपना फोन लिए इधर-उधर कर रही थीं. पूछने पर पता चला कि वो निदा के अब्बू और भाई को फोन लगा रही हैं जो नमाज अदा करने घर के पास वाली मस्जिद में गए है.

विश्व प्रसिद्ध दरगाह आला हजरत के दारुल इफ्ता से निदा खान के खिलाफ फतवा जारी होने के बाद यह पहला जुम्मा था. किसी ने निदा की अम्मी को फोन कर बताया था कि निदा के अब्बू और भाई को नमाज अदा करने से रोक दिया गया है. और यही वजह थी उनके हैरान परेशान होने की.

हालांकि जब निदा के अब्बू और भाई घर लौटे तो वो खबर महज एक अफवाह थी. निदा के अब्बू ने बताया कि हमने किसी को मिलने का मौका ही नहीं दिया. हम ठीक उस वक्त पहुंचे जब नमाज शुरू होने को थी और बाकी भीड़ के निकलने से पहले हम खुद वहां से निकल गए. उन्होंने कहा, हम सिर्फ जुमे की नमाज पढ़ने मस्जिद जाते हैं बाकी दिन की नमाज हम घर से ही अदा करते हैं. 

16 जुलाई को मुफ्ती खुर्शीद आलम द्वारा जारी किए फतवे में निदा को इस्लाम से खारिज कर दिया गया था. फतवे में कहा गया था, ‘अगर निदा खान बीमार पड़ती हैं तो उन्हें कोई दवा उपलब्ध नहीं कराई जाएगी. अगर उनकी मौत हो जाती है तो न ही कोई उनके जनाजे में शामिल होगा और न ही कोई नमाज अदा करेगा’. फतवे में यह भी कहा गया है,’अगर कोई निदा खान की मदद करता है तो उसे भी इस्लाम से खारिज कर दिया जाएगा’.

तीन तालाक पर लड़ाई लड़ रही निदा कोर्ट की तारीख पर गई थीं. निदा के घर लौटने में अभी वक्त था तो हम मुफ्ती खुर्शीद आलम से मिलने जामा मस्जिद पहुंचे. हालांकि मौलाना ने कहा हम बात नहीं करेंगे, आप मीडिया वाले हमारी सुनते नहीं सिर्फ अपनी कहते हैं. हमारे तसल्ली देने के बाद उन्होंने कहा कि पहले आप मस्जिद में इकठ्ठा हुई महिलाओं से मीलिए फिर हम आपसे मिलेंगे.

मस्जिद में लगभग सौ महिलाओं की भीड़ थी. जिस वक्त हम मस्जिद पहुंचे तो नातशरीफ पढ़ रही थीं. हालांकि हमें देखते ही वो उस मुद्दे पर आ गईं जिसके लिए मौलाना ने हमें उनसे मिलने को कहा था. उनके लिए मुद्दा था इस्लाम की रक्षा करना जिसे निदा जैसी औरतें खराब कर रही हैं.

रफिया शबनम

रफिया शबनम नाम की एक महिला इस भीड़ को संबोधित कर रही थीं. वो बता रही थीं कि ‘सबकी आवाज’ नाम से उन्होंने एक मुहिम शुरू की है जिसमें एक लाख मुस्लिम महिलाओं के दस्तखत होंगे और ये मुहिम शरीयत के कानून पर उठाए जा रहे सवालों के खिलाफ है.

अपने संबोधन में उन्होंने कहा, कुछ महिलाओं द्वारा धर्म की गलत छवि पेश की जा रही है. अब और लोग हमें बताएंगे कि हम शरीयत के कानून से डरें नहीं? और लोग हमें बताएंगे कि हम अपने धर्म में सुरक्षित हैं? आप लोगों को पता है कि तलाक को मुश्किल करने के लिए हलाला है? और बड़ी बात तो ये कि जिस आदमी ने तुम्हें एक बार तालाक दे दिया उसके पास वापस जाने का मतलब क्या है? ये हमारे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाना है. शरीयत ये इजाजत देती है कि एक बार तुम्हारे शौहर ने तुम्हें तलाक दे दिया तो तुम कहीं और निकाह कर सकती हो. नहीं जरूरी है दोबारा वापिस आओ. हलाला को रेप ओर दुष्कर्म क्यों बना दिया?

हाल ही में बरेली से सामने आए शबीना हलाला मामले का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, आज हमारे शहर की एक औरत ने 60 साल के पिता की उम्र के आदमी पर दुष्कर्म का आरोप लगा दिया. क्या उसे शर्म नही आई ये करते हुए? क्या उसे ये नहीं पता उसका सवाल शरीयत पर सवाल उठाता है? उसने सिर्फ अपना फायदा देखा. जितने बराबरी के हक शरीयत ने मर्द और औरत को दिए हैं उतने शायद ही किसी और धर्म ने दिए.

क्या 5 या 10 प्रतिशत महिलाओं के कहने से शरीयत का कानून यानी तलाक और हलाला गलत हो जाएगा? जो 1400 साल पहले हमारे हूजुर ने लिख वो आज गलत हो गया! निदा खान ने अपने व्यक्तिगत मामले से से आज हमारी शरीयत पर सवाल उठा दिए. एक बड़े खानदान को रुसवा कर दिया.

संबोधन खत्म हुआ तो मैंने रफिया शबनम से पूछा क्या निदा के साथ जो हुआ वो ठीक है? रफिया ने कहा, वो निदा का व्यक्तिगत मामला है. तलाक पीड़िताएं तो बरसों से है. व्यक्तिगत मामलों को धर्म से मत जोड़िए. मैंने पलट कर पूछ लिया तो जब मामला व्यक्तिगत था तो फतवा भी गलत हुआ? तो वो थोड़ा गुस्साईं और कहने लगीं, क्या एक निदा के कहने से शरीयत में लिखा ट्रिपल तलाक या हलाला गलत हो जाएगा, अपने पीछे खड़ी भीड़ की तरफ इशारा कर उन्होंने कहा कि क्या ये हजार महिलाएं अपने घर में महफूज नहीं है? एक तलाक पीड़िता के लिए क्या सब बदल दिया जाएगा?

निदा खान के खिलाफ जारी किए गए फतवे की तस्वीर

मैंने एक-एक कर उन्हीं में से कई महिलाओं से पूछा क्या आप तलाक-ए-बिद्दत को ठीक मानती हैं? कोई दूसरे का मुंह देखने लगी तो किसी ने मुस्कुराकर टाल दिया, तो किसी ने यहां तक कह दिया कि आपका सवाल ही गलत है. मैंने कहा चलिए ये बताइए कि तलाक के जिस तरीके को सुप्रीम कोर्ट ने बैन किया है क्या वो सही था? ऐसा लगा जैसे वो इस सवाल के लिए तैयार नहीं थीं. इस भीड़ में पीछे खड़ी एक औरत आगे बढ़ी और कहने लगी, हमें अपने हदीस और कुरान पर यकीन है. सुप्रीम कोर्ट कुछ भी कहे पर हम मानेंगे तो वही जो हमारा कुरान हमसे कहता है. संविधान ने हमें हक दिया अपने धर्म को पालन करने का और अगर संविधान हमारे शरीयत या हदीस के खिलाफ होगा तो हम संविधान के भी खिलाफ जाएंगे.

वक्त आया मौलाना जी से मिलने का. मैंने कहा, क्या निदा अपने हक के लिए लड़ नहीं सकती? और लड़ेगी तो आप उसे इस्लाम से खारिज कर देंगे? आपको ये हक किसने दिया? मौलाना ने कहा, मैं कौन होता हूं किसी को इस्लाम से खारिज करने वाला! जो कुरान ओर हदीस के खिलाफ जाएगा वो खुद ही इस्लाम से खारिज हो जाएगा. हम तो सिर्फ हुकम बताने वाले हैं. सवाल कायम किया हमने, फतवा दारुल इफ्ता से मिला और मैंने सिर्फ उसका जवाब पढ़कर सुना दिया.

उसमें लिखा है कि अगर किसी ने कुरान से इंकार करने की गलती की है तो वो तौबा करें, मांफी मांगे, जब वो मुस्लमान है. ये फतवा इसलिए जारी हुआ क्योंकि हमें कुरान और हदीस पर भरोसा है. अगर इसके खिलाफ कोई बात सामने आती है तो हमारी जिम्मेदारी बनती है कि अवाम को आगाह किया जाए. जैसी कि बयानबाजी हो रही थी कि हलाला का कुरान में कोई सबूत नहीं हैं, हलाला औरतों पर जुल्म है. हलाला का तालुक खुदा के हुक्म से है. हलाला का मतलब नहीं कि जबरदस्ती किसी को मजबूर किया जाए.

मैंने कहा कि क्या जिस तलाक-ए-बिद्दत पर सुप्रीम कोर्ट ने बैन लगा दिया है, आप उसके विरोध में नहीं हैं?

मौलाना ने जवाब दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा वो ही हमारी शरीयत भी कह रही है. एक साथ तीन तालाक गुनाह है, लेकिन अगर कह दिया तो तलाक हो जाएगा. वो गुनहगार है जिसने एक साथ तीन तलाक दिया.

मैंने कहा जब शरीयत भी कह रही है ये गलत है तो इसके खिलाफ लड़ना कैसे गलत है? मौलाना ने कहा, तलाक तो हो गया. निदा अपने हक के लिए लड़ें, हमें उससे कोई दिक्कत नहीं. लेकिन वो अपने हक की लड़ाई में शरियत को निशाना न बनाएं, कुरान और हदीस के खिलाफ न जाएं. फतवे की ये लाइनें हदीस से कोट की गई हैं. फतवे का मतलब है आगाह करना. ये फतवा सिर्फ निदा के लिए नहीं है. उसमे लिखा है जो भी कुरान या हदीस के कानून से इंकार करेगा उस पर इस्लाम का ये कानून लागू होता है.

आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड आपके फतवे से कोई इत्तेफाक नहीं रखता और उनका कहना है कि इस फतवे का कोई मतलब नहीं क्योंकि फतवा सिर्फ तब जायज है जब वो मांगा जाए, दागा नहीं जा सकता. तो उन्होंने कहा, हमारी जिम्मदारी है कानून और हदीस के कानून से अवाम को आगाह करना. लोगों को बताना.

मुफ्ती खुर्शीद आलम

इस तरह के फतवे जारी कर के आप इस्लाम को बदनाम कर रहें हैं? ये सोच है और सोच पर कोई पाबंदी नहीं लगा सकता. जिसका इमान कुरान पर है, हदीस पर है वो कभी ये नहीं बोल सकता कि इन फतवों से इस्लाम बदनाम होता है. बल्कि ये फतवा ईमान वालों के लिए रहमत है. शहर काजी के हुक्म से फतवा जारी हुआ हे और वो शब्द-शब्द सही है. कुरान का कानून है और कुरान के हर हर्फ पर मेरा ईमान है

सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के मुताबिक फतवे की कोई कानूनी मान्यता नहीं है और संविधान से बड़ा तो कुछ नहीं? तो वो बोले कुरान सबसे बड़ा है हमारे लिए. पहले हम कुरान देखेंगे, फिर सुप्रीम कोर्ट का कानून.

मुफ्ती खुर्शीद आलम से लंबी बातचीत में बार-बार पूछने पर उन्होंने कहा कि तलाक ए बिद्दत शरीयत के हिसाब से भी गलत है लेकिन किसी ने दे दिया तो हो गया. हालांकि गलत के खिलाफ लड़ने पर उनके पास जवाब नहीं.

मौलाना से मिल हम निदा के घर लौटे. निदा अपने घर के आंगन में बैठी एक मां के आंसू पोंछ रही थीं. दरअसल वो मां थीं एक और पीड़िता की जिसे उसके शौहर की मृत्यु के बाद ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया था. निदा उन्हें समझा रहीं थी कि वे परेशान ना हो, ये लड़ाई कानूनी तौर पर लड़ी जाएं.

निदा 2017 से आला हजरत हेल्पिंग सोसायटी नाम की एक संस्था चलाती हैं जिसमें वो ट्रिपल तालाक, हलाला, बहुविवाह से पीड़ित महिलाओं की मदद करती हैं. निदा कहती हैं कि हमारी पहली कोशिश होती है कि घर टूटने से बच सकें तो उसे बचा लें.

निदा यहां अपनी अम्मी, अब्बू, भाई के साथ रहती हैं.अक्सर न्यूज स्क्रीन पर जिस निदा को हमेशा नकाब में देखा वो एक बेहद दिलचस्प इंसान हैं. ट्रिपल तलाक, हलाला के खिलाफ लड़ाइ लड़ रही निदा चंचल, चुलबुल लड़की हैं.

बात करने पर निदा ने कहा कि वो कोर्ट के उस फैसले से खुश है जिसमे कोर्ट ने उनके तीन तलाक को अवैध करार दे दिया है. निदा ने कहा फतवे का इस्तेमाल हमेशा से कानून को चकमा देने के लिए किया गया है. जो चीज असंवैधानिक है उसका कोई वजूद नहीं. इसका इस्तेमाल सलाह मशविरा के लिए किया जा सकता है, किसी को बेइज्जत करने के लिए नहीं. जिस तरह की बात फतवे में हुई है वो मेरे मौलिक अधिकारों का हनन है. और उनके इस फतवे का जवाब देने से अच्छा मैं समझती हूं कि मैं उस पर कार्रवाई करूं.

2016 से शुरू हुई इस लड़ाई में मुझ पर अटैक हुए, केस वापस लेने का दबाव बनाया गया और अब ये फतवा लेकिन एक इंसान जितना डर सह सकता है उससे ज्यादा हो चुका है, तो अब इन चीजों का फर्क नहीं पड़ता. मेरे संविधान ने मुझे अधिकार दिया है कि मैं जो धर्म चाहूं उसका पालन करूं और कोई भी फतवा मुझे ये करने से रोक नहीं सकता. मैं इस फतवे को सुप्रीम कोर्ट लेकर जाउंगी. जो संदेश उन्होंने इस फतवे से समाज को देने की कोशिश की है उसका उल्टा संदेश मैं सामाज को दूंगी…मैं इस लड़ाई को पूरी तरह से लड़ूंगी.

अजीब ये है कि जिन मौलानाओं को इस्लाम का प्रतिनिधित्व करने का काम दिया गया है वो ऐसे फतवों से इस्लाम की गलत तस्वीर पेश करते हैं. इस तरह का फतवा देकर वो समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं कि जो कोई अपने हक की लड़ाई लड़ेगा उसे हम इस्लाम से खारिज कर देंगे. मुझे लगता है तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत हमारी सोसायटी का एक बुरा सच है जिसका खत्म होना बेहद जरूरी है.

और रही बात हलाला की तो हलाला शरीयत के हिसाब से मर्दों के लिए सजा थी और लेकिन इसमें असली सजा तो महिलाओं को भुगतनी पड़ती है. आज के वक्त में इसे बिजनेस बना दिया गया है.

निदा कहती हैं, सोसायटी का एक हिस्सा है जिन पर फतवे से फर्क पड़ा हैं. मैं कोर्ट गई थी और वहां मेरी पहचान के ही किसी ने कहा मैं आपसे बात नहीं करूंगा वरना मेरा ईमान चला जाएगा.

जब निदा से मैंने पूछा कि वो सरकार से क्या चाहती हैं? निदा ने कहा, ये अकेली और पहली सरकार है जिसने तीन तलाक का मुद्दा उठाया है और शायद पहली बार इससे पीड़ित महिलाएं इसके खिलाफ आवाज उठा रही हैं. अब तक तीन तलाक शरीयत के नाम पर चलाया जा रहा था लेकिन अब जब सुप्रीम कोर्ट ने ही इसे बैन कर दिया तो अब क्या? हालांकि सिर्फ तलाक-ए-बिद्दत को बैन करने से चीजें नहीं बदलेंगी क्योंकि वो तलाक तो आज भी हो रहे हैं. कानून तो हमारे पास रेप का भी है लेकिन अमल होना जरूरी हैं. ठीक है कि ये कानून बनने से मुस्लिम महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा लेकिन सिर्फ तब जब उस कानून का सही से पालन होगा. रिफॉर्म सोसायटी के लिए जरूरी है.

निदा कहती हैं जब तक मैं अपने शौहर को सलाखों के पीछे नहीं पहुंचाती, जिसकी वजह से मैंने अपन बच्चा खोया, ये लड़ाई जारी रहेगी. जिस देश में हम रह रहे हैं वहां एक संविधान है तो समानांतर कोर्ट नहीं चल सकती. अगर इतना है तो पहले सुप्रीम कोर्ट जाएं और शरीयत को कोडिफाई कराएं.

मेरी अम्मी, अब्बू, भाई ने मुझे बहुत सहारा दिया है. कोर्ट के वातावरण का अंदाजा तो जॉली एलएलबी के बाद से सबको हो ही गया है. उस वातावरण में मेरे भाई ने मुझे काफी सपोर्ट किया है. हमें बहुत सारी कामयाबी मिली है.

पानी जब तक दूर है तब तक उससे डर लगता है लेकिन एक बार समुद्र की लहर पैरों को छू जाएं तो वो डर खत्म हो जाता है.