ममता के कारण रद्द हुई भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों की बैठक


सूत्रों के मुताबिक, ये मीटिंग पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की वजह से कैंसिल हुई


लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र बीजेपी के खिलाफ सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए 22 नवंबर को प्रस्तावित मीटिंग कैंसिल कर दी गई है. सूत्रों के मुताबिक, ये मीटिंग पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की वजह से कैंसिल हुई.

दरअसल, आंध्र प्रदेश के सीएम और तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) प्रमुख चंद्रबाबू नायडू लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी विरोधी दलों को एक साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें ममता बनर्जी का साथ काफी अहम बताया जा रहा है. लेकिन, अभी तक ममता ने इस मीटिंग के लिए सहमति नहीं जताई है. सूत्रों के मुताबिक, आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू पहले ममता बनर्जी से मुलाकात करेंगे. इसके बाद मीटिंग की अगली तारीख तय होगी.

कौन-कौन सी पार्टियां हो सकती हैं शामिल?

सूत्रों के अनुसार, बैठक में शामिल होने के लिए कांग्रेस, टीडीपी, आम आदमी पार्टी, जेडीएस, एनसीपी और टीएमसी मान गए हैं. वहीं यह भी कहा जा रहा है कि मायावती ने बैठक में शामिल होने के लिए हामी नहीं भरी है. बैठक में एंटी बीजेपी फ्रंट को मजबूत करने पर जोर दिया जाएगा.

गहलोत से मिलकर लिया था 22 नवंबर को बैठक का फैसला

सभी दलों को करीब लाने का जिम्मा इस बार तेलुगू देशम पार्टी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने लिया है. इससे पहले उन्होंने अमरावती में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत से भी मुलाकात की थी. इस मुलाकात में यह तय हुआ था कि बीजेपी के खिलाफ विपक्ष के सभी बड़े दल 22 नवंबर को दिल्ली में बैठक करेंगे. इस बैठक में नोटबंदी, सीबीआई आदि मुद्दों पर भी चर्चा होनी थी.

केवल इतना ही नहीं नायडू विपक्ष के कई नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं. यह बैठक ठीक ममता के उस फैसले के बाद आयोजित की गई है, जिसमें उन्होंने आंध्र प्रदेश की तरह ही अपने राज्य में भी मामलों की जांच के लिए सीबीआई के प्रवेश पर पाबंदी लगाई थी

कांग्रेस को भारत माता की नहीं बल्कि सोनिया गांधी की जय पसंद: अमित शाह

दिनेश पाठक एवं डेमोक्रेटिक्फ़्र्ण्ट डेस्क


मध्य प्रदेश और राजस्थान चुनाव को लेकर अमित शाह का कहना है कि इन राज्यों में बीजेपी की सरकार बनेगी, इसमें कोई दो राय नहीं है.


देश के 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी के अच्छे प्रदर्शन करने की बात कही है. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान चुनाव को लेकर अमित शाह का कहना है कि इन राज्यों में बीजेपी की सरकार बनेगी, इसमें कोई दो राय नहीं है. बाकी के दो राज्य तेलंगाना और मिजोरम में शाह ने पार्टी के मजबूत होने की बात कही. वहीं राफेल के मामले में अमित शाह ने कहा कि अगर आरोपों में सच्चाई है तो राहुल गांधी सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं जाते?

न्यूज18 के विशेष कार्यक्रम ‘एजेंडा मध्य प्रदेश’ में राफेल मामले को लेकर अमित शाह ने कहा कि सच हमारे साथ है और बाकी लोगों के बयान झूठे साबित हो जाएंगे. अमित शाह ने कहा कि मोदी सरकार ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे देश की जनता के सामने शर्मिंदा होना पड़े. राफेल पर लगे आरोपों पर शाह ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आरोपों में अगर सच्चाई है तो वे सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं जाते? उन्होंने कहा कि आरोप लगाना और झूठ बोलना राजनीति की संस्कृति नहीं है.

वहीं अमित शाह का कहना है कि कांग्रेस को सोनिया गांधी की जय पसंद है. अमित शाह का कहना है कि एक वीडियो काफी फैल रहा है. इसमें कांग्रेस कार्यकर्ता जो ‘भारत माता की जय’ का नारा लगा रहा है, उसे ‘सोनिया गांधी की जय’ का नारा देने के लिए कहा गया. अगर यह वीडियो सच है तो कांग्रेस के लोगों को शर्म करनी चाहिए.

अमित शाह ने राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कहा कि राजस्थान में फिर से बीजेपी की सरकार बनेगी. जनसमर्थन हमारे साथ है. देखते-देखते माहौल बनेगा और बीजेपी की सरकार आएगी. महागठबंधन को लेकर शाह का कहना है कि उत्तर प्रदेश छोड़कर किसी भी राज्य में महागठबंधन का कोई अस्तित्व नहीं है. वहीं अगर उत्तर प्रदेश में सभी मिलकर भी आ जाएं तो बीजेपी को 50 फीसदी से ज्यादा वोट फीसदी मिलेगा.

अमित शाह ने कहा कि वो उन सबसे सवाल करना चाहते हैं कि जो लोकतंत्र की बात करते हैं वे कांग्रेस के आंतरिक लोकतंत्र पर सवाल क्यों नहीं खड़ा करते. इसको लेकर शाह ने कहा कि पीछे जब कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष चुना जाना था तब सबको पता था कि सोनिया गांधी के बाद कांग्रेस का अध्यक्ष कौन होगा. सबको इस बात की जानकारी थी कि यह पद राहुल गांधी को मिलेगा. शाह ने कहा ‘किसी को नहीं पता कि मेरे बाद बीजेपी का अध्यक्ष कौन होगा. क्योंकि हमारी पार्टी में लोकतंत्र है. यहां एक चायवाला दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का प्रधानमंत्री बना और एक पोस्टर चिपकाने वाला कार्यकर्ता दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का अध्यक्ष बन सका.’

हाल ही सीबीआई मुद्दा काफी सुर्खियों में बना हुआ है. सीबीआई मामले में शाह ने कहा इससे सीबीआई की छवि पर असर पड़ा है लेकिन ऐसे मामले में सरकार भी चुप नहीं बैठेगी. सरकार को बीच बचाव के लिए आगे आना ही पड़ेगा.

Congress’ lack of strategy, inability to seize initiative may cost it in Chhattisgarh, Rajasthan, MP

Curtsy: Sushit K Sen

The Assembly elections that are now already in progress should have been the ‘moment’ of opportunity that the bedraggled Congress was waiting for after being mauled in the 2014 Lok Sabha elections and a raft of state elections thereafter.

Instead of seizing the day, the Congress finds itself instead in a beleaguered state, principally because of a lack of coherent strategy, leading to a state of drift, and its delusions of grandeur, in turn caused mainly by its inability to come to terms with the screamingly plain truth that it is no more the sole arbiter of India’s destiny.

The lack of a coherent strategy has been caused by and reflects a lack of organisational cohesion. Thus, for instance, the failure of the ‘high command’ to stamp election campaigns with its own imprint and ensure a coordinated approach in the three north Indian states going to the polls — Chhattisgarh, Madhya Pradesh and Rajasthan — may end up costing it dearly.

Let us take the states one by one. An alliance with the Bahujan Samaj Party (BSP) in Chhattisgarh would have sewn up the state for the Congress, on the back of 15 years of Bharatiya Janata Party (BJP) rule under Chief Minister Raman Singh. Their combined voting percentage would have been close to 45 per cent compared to the BJP’s 41 percent, if we extrapolate the 2013 Assembly results. The chances, of course, are that this difference would have been higher given a certain anti-incumbency fatigue and the BJP’s current difficulties over the Rafale controversy and other issues, that have cast the party in a noticeably poor light.

Many traditional BJP voters are planning to either abstain or vote for other parties. Unfortunately, the Congress has failed to capitalise on this disenchantment by playing an instrumental role in creating a united front. Instead, the Congress’s brains trust, for want of a better appellation, is seeking to counter the BJP’s strident majoritarianism and authoritarianism with its own brand of Hindutva-based mobilisation, not pausing to consider whether it can compete with the BJP by legitimising its ideological positions and political programmes. The Congress’ election manifesto for Madhya Pradesh and the position its state unit has taken in Kerala, which aims at encouraging ‘devotees’ to prevent the Left Front government from implementing the Supreme Court’s Sabarimala order, are unbelievable concessions to Hindu ‘sentiment’

In following the route it has been pursuing, the Congress has isolated itself at a juncture in which other opposition parties have been actively pursuing the objective of joint action. Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav has rejected, for instance, a late, and obviously spurious, not to say infructuous, attempt by the Congress to build an alliance comprising the Samajwadi Party, Nationalist Congress Party, Sharad Yadav’s Loktantrik Janata Dal and Ajit Singh’s Rashtriya Lok Dal in Rajasthan. This is being seen by some as being a precursor to the BSP and Samajwadi Party tying up in Uttar Pradesh and in the process shutting out the Congress. In terms of seats, this would not be catastrophic, especially if, as is likely, the combine backs Congress president Rahul Gandhi and United Progressive Alliance chairperson Sonia Gandhi’s candidature from Amethi and Rae Bareli. But in symbolic terms, such an outcome would be a big blow to the Congress and its claims to leading the alliance against the BJP.

Andhra Pradesh chief minister Chandrababu Naidu and West Bengal chief minister Mamata Banerjee are already coordinating Opposition action, with a meeting held in Kolkata on Monday. In the meanwhile, both have sounded the bugle by withdrawing a general waiver to the Central Bureau of Investigation to pursue investigations in their states. Naidu, moreover, is trying to bring Opposition parties together to approach the Supreme Court with a plea for the curtailment of the powers of other Central agencies — the Income Tax Department, the Enforcement Directorate et al — in investigating cases relating to, or ‘targeting’, Opposition parties before the next Lok Sabha elections.

While the Congress has not specifically been excluded from the ambit of this initiative, it has clearly lost the initiative. To revive its fortunes appreciably, the Congress will have to engage with other opposition parties more constructively. As other opposition leaders have pointed out, the Congress, as the only opposition party with a nationwide presence, has to take the lead and make ‘disproportionate’ sacrifices as it did in Karnataka, reaping handsome dividends.

Simultaneously, the Congress has to come up with ripostes to the BJP’s barrage of gibes about the ‘ownership’ of the party. Prime Minister Narendra Modi and BJP president Amit Shah have been constantly lampooning the Congress over the role played in its affairs by the Gandhi family. Modi has dared Rahul Gandhi to step down and allow someone from outside the family to become party president and, by extension, the party’s prime ministerial nominee. He has most recently pointed to the manner in which Sitaram Kesri was ousted from the party presidency in 1998 after a year-and-a-half stint to make way for Sonia Gandhi. Shah, meanwhile, has likened the Congress to a private limited company owned by the Gandhi family.

It’s not easy to counter these gibes because they are substantially true. Congress leader P Chidambaram tried by producing a list of non-Gandhi Congress presidents, but got his history a little mixed up. Of those whom he named, only Kesri and PV Narasimha Rao belonged to the era after the second split in the party and the creation of the Congress (I). Thus, K Kamaraj, S Nijalingappa, D Sanjivayya and others were presidents of the Congress before the first split in 1969. C Subramaniam (interim president), Jagjivan Ram, Shankar Dayal Sharma, Dev Kant Barooah and K Brahmanand Reddy were presidents after the first split but before the second one in 1978. After that, Indira Gandhi was the president of the new party till her assassination in 1984 and Rajiv Gandhi until his, in 1996.

It was only after Rajiv’s death that Rao became party president and prime minister and he was followed as Congress president by Kesri, mainly because Sonia showed no desire to become a politician. After she acceded following repeated pleas, which itself is a revealing fact, she became party president followed recently by son Rahul. Thus, in the 40 years after the 1978 split, a Congress leader has led the party for just seven-odd years.

It’s a different matter that BJP leaders, too, are unaware of historical nuance, failing to distinguish between the Congress in its various phases, which leads them in semi-literate fashion to equate, for instance, Nehru with Indira Gandhi. It must also be recalled in fairness to the Congress that in the 38 years since Indira Gandhi returned to power — in 1980, a Gandhi has been prime minister for nine years, while Congress leaders from outside the Congress have held the chair for 15 years: Rao was prime minister for five of those and Manmohan Singh for 10. The BJP forgets, too, that Sonia lifted her party up by the bootstraps by renouncing prime ministerial office. It was an act of self-abnegation and sacrifice that may have been prompted by tactical motives but was nevertheless an extremely courageous and self-disregarding one.

Self-abnegation, self-sacrifice and disregard for one’s own ambitions are not descriptions one would normally apply either to Modi or Shah. Both are viscerally ambitious, authoritarian, paranoid and power-hungry beyond even the accepted standards of political life, which are not particularly high. The charges made by the duumvirate do not carry much weight because ever since the leadership of the party ceded power to Modi (who inducted Shah as his hatchet man), the BJP has ceased to be the functionally democratic party it once was (as was its forbear, the Jana Sangh), possibly the only positive thing one can say about the merchants of Hindutva.

Under the Modi-Shah dispensation, the BJP has acquired the worst traits of the Congress — for instance, the practice of nominating chief ministers from Delhi rather than allowing the relevant legislature parties to elect their own leaders.

It’s a case, to use a tired cliché, of the pot calling the kettle black. The only difference is that Modi rose from the ranks and captured the party, while Rahul did it as a matter almost of birthright. The difference, such as it is, is functionally not much of a difference.

Politically, the Congress would do better by pointing to the BJP’s penchant for trying to capture all manner of institutions and subverting them to subserve its alfresco designs of imposing a theocratic template on the Indian polity. For all its faults, opportunism of the kind that leads it into the terrain of ‘soft Hindutva’, whatever that’s supposed to mean, being one of the worst of them, the Congress cannot be accused of trying to systematically capture and subvert institutions. That’s one arena in which it has remained, generally speaking, true to its mainstream heritage. It should trumpet this achievement.

वसुंधरा के खिलाफ चुनावी दंगल मनवेन्द्र के दोनों हाथों में लड्डू


बीजेपी छोड़कर पिछले दिनों कांग्रेस में शामिल होने वाले मानवेंद्र सिंह मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को चुनौती देने के लिए उनके ही गढ़ में ताल ठोंक रहे हैं

जीत न मिले तो भी मानवेंद्र के दोनों हाथों में लड्डू हो सकते हैं. वसुंधरा राजे के सामने होने की वजह से पूरी मीडिया का अटेंशन इस सीट पर रहेगा और उन्हे लगातार पब्लिसिटी मिलेगी. इसके अलावा, अगर वे अच्छी फाइट देने में कामयाब रहते हैं तो हार के बावजूद वे पार्टी से इनाम के हकदार रहेंगे 

“हम तो वैसे भी हारी हुई लड़ाई लड़ रहे है. नुकसान तो कांग्रेस का ही है.”


बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने वाले मानवेंद्र सिंह अब मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को सीधे चुनौती देने के लिए मैदान में आ डटे हैं, या कहें कि ‘जबरन’ ला दिए गए हैं. बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे मानवेंद्र के पिता जसवंत सिंह और वसुंधरा राजे के बीच कुछ साल से अनबन रही है. ये अदावत पिछले दिनों के घटनाक्रम किसी से छिपे नहीं है. लिहाजा, फिलहाल बात करते हैं झालरापाटन से मानवेंद्र की दावेदारी क्या कहती है.

मीडिया की नजर में कांग्रेस की 32 नाम वाली दूसरी लिस्ट की सबसे बड़ी खासियत मानवेंद्र सिंह की उम्मीदवारी ही है. लेकिन टिकट मिलते ही मानवेंद्र ने जो पहला बयान दिया, उसके मतलब कुछ और निकलते से लगते हैं. मानवेंद्र ने कहा कि मैने पार्टी से टिकट मांगा ही नहीं था. मैं तो पश्चिम में पाकिस्तान बॉर्डर का निवासी हूं लेकिन अब पूर्व में भेज दिया गया है. पार्टी ने मुझे बुलाकर पूछा कि क्या ये चैलेंज मंजूर करोगे तो मैंने कह दिया कि देख लेंगे.

जाल में ‘फंस’ तो नहीं गए मानवेंद्र ?

माना जा रहा था कि उन्हे कांग्रेस ज्वॉइन कराने के पीछे अशोक गहलोत का ही हाथ है. इसी बैकिंग के बूते वे प्रदेशाध्यक्ष को बाइपास कर सीधे राहुल गांधी से ‘डील’ कर रहे थे. बाड़मेर में मानवेंद्र के प्रतिद्वंद्वी हरीश चौधरी ने उनके पार्टी में आने का विरोध भी जताया था. लेकिन जब उनकी सीधे राहुल से बातचीत का पता चला तो हरीश चौधरी भी शांत हो गए. अभी तक राजस्थान में आमतौर पर ये चर्चा थी कि मानवेंद्र ने खुद के लिए बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट और पत्नी चित्रा सिंह के लिए शिव विधानसभा सीट से टिकट की ‘डील’ की थी.

कांग्रेस की पहली लिस्ट में शिव सीट से अमीन खान को टिकट दे दिया गया. उधर हरीश चौधरी ने तो लिस्ट आने से पहले ही बायतू से नामांकन भी दाखिल कर दिया था. ऐसे में सवाल उठ रहे थे कि मानवेंद्र के राजनीतिक भविष्य का क्या होगा ? अब उनकी ‘अनिच्छा’ और वसुंधरा राजे जैसी ताकतवर हस्ती से प्रतिद्वंद्विता देखकर ये सवाल कहीं बड़ा हो गया है.

1980 के दशक से ही वसुंधरा राजे झालावाड़ जिले को अपना पॉलिटिकल बेस बनाए हुए हैं. 2003 से पहले तक वे झालावाड़ लोकसभा सीट से लगातार जीत दर्ज कर रही थी. यहां से अब उनके बेटे दुष्यंत सिंह सांसद हैं. पिछले 15 साल से वे झालरापाटन से विधायक हैं. वैसे भी हाड़ौती संभाग बीजेपी का पुराना गढ़ रहा है. हो सकता है कि वसुंधरा राजे को शिकस्त देना जसोल परिवार की दिली इच्छा हो लेकिन तमाम समीकरणों को देखें तो वसुंधरा राजे के सामने मानवेंद्र के चुनौती बनने में संशय ही दिखता है.

राजपूतों की नाराजगी को भुनाने की कोशिश

मानवेंद्र, राजपूतों की बीजेपी खासकर वसुंधरा राजे से नाराजगी को लगातार हवा दे रहे हैं. हाड़ौती में राजपूतों के अच्छी संख्या में वोट हैं और उन्हे उम्मीद है कि नाराजगी को सुलगाकर वे समाज को अपनी तरफ कर सकते हैं. लेकिन इस रणनीति में भी एक झोल है. राजपूतों के एक वर्ग में बीजेपी के प्रति नाराजगी तो है. लेकिन लगता है ये समाज के कुछ नेताओं की निजी नाराजगी ज्यादा है.

पिछले महीने करणी सेना ने जयपुर में बीजेपी को अपनी ताकत दिखाने के लिए सभा का आयोजन किया था. सभा में 50 हजार लोगों के आने का दावा किया गया. लेकिन हालात ये थे कि तय समय पर पूरे स्टेडियम में सिर्फ 100 लोग पहुंचे थे. आयोजकों ने 3 घंटे तक लोगों का इंतजार कर आखिर में सभा रद्द कर दी. इसके बाद बीजेपी ने इन राजपूत नेताओं की रही सही ‘पूछ-परख’ भी बंद कर दी.

वैसे, जीत न मिले तो भी मानवेंद्र के दोनों हाथों में लड्डू हो सकते हैं. वसुंधरा राजे के सामने होने की वजह से पूरी मीडिया का अटेंशन इस सीट पर रहेगा और उन्हे लगातार पब्लिसिटी मिलेगी. इसके अलावा, अगर वे अच्छी फाइट देने में कामयाब रहते हैं तो हार के बावजूद वे पार्टी से इनाम के हकदार रहेंगे. आखिर उन्होने बिना ना-नुकुर किए सबसे बड़ी चुनौती को स्वीकार किया है. इस कदम के जरिए उन्होंने फिलहाल अपने राजनीतिक विरोधियों को शांत करने में भी कामयाबी हासिल कर ली है.

बीजेपी-कांग्रेस में उठापटक चरम पर

सोमवार यानी 19 नवंबर नामांकन दाखिल करने का आखिरी दिन है. बीच मे सिर्फ रविवार का दिन है और उठापटक ऐसी मची है कि दोनों ही पार्टियां अभी तक पूरे उम्मीदवार भी घोषित नहीं कर पाई हैं. अब तक कांग्रेस ने 2 लिस्ट में 184 तो बीजेपी ने 3 बार मे 170 उम्मीदवार घोषित किए हैं.

कांग्रेस में पहली लिस्ट के बाद शुरू हुआ बवाल अब और तेज हो गया है. जयपुर जिले की फुलेरा सीट पर टिकट के लिए प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट और नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी में राहुल गांधी के सामने ही तीखी बहस हो गई थी. इस सीट के लिए डूडी अपनी रिश्तेदार स्पर्धा चौधरी के लिए टिकट मांग रहे थे. स्पर्धा को टिकट तो नहीं मिला, उल्टे उन्हे 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है. निश्चित रूप से ये लड़ाई अब और तीखी होने की आशंका है. सचिन पायलट पर अपनी जाति के खास लोगों को टिकट बांटने के आरोप भी लगने लगे हैं.

इधर, बीजेपी की तीसरी लिस्ट में कांग्रेस से एक दिन पहले ही आए पूर्व मंत्री राम किशोर सैनी को बांदीकुई से टिकट दे दिया गया है. यहां से मौजूदा विधायक अलका गुर्जर का टिकट काटा गया है. जिनके पति ने 1989 में सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट को दौसा लोकसभा सीट से शिकस्त दी थी.

पार्टी ने सवाई माधोपुर से जयपुर राजपरिवार की मौजूदा विधायक दीया कुमारी का पत्ता भी काट दिया है. दीया को 2013 में खुद वसुंधरा राजे ही राजनीति में लेकर आई थी. लेकिन इसके बाद से दोनों के बीच ‘कुछ भी ठीक’ नहीं चल रहा था. चर्चा है कि यहां पिछली बार दीया से हारने वाले किरोड़ी लाल मीणा की सिफारिश चली है. पार्टी ने अलवर के थानागाज़ी से मंत्री हेमसिंह भड़ाना का टिकट काटकर वसुंधरा राजे के नजदीकी डॉ रोहिताश्व शर्मा को टिकट दिया है. जमवा रामगढ़ से भी मौजूदा विधायक का टिकट काट दिया गया है. इन पर अपने बेटे को विधानसभा में सरकारी नौकरी लगवाने में अनैतिकता के आरोप लगे थे.

बीजेपी बदलेगी कुछ उम्मीदवार

बीजेपी ने अब कुछ सीटों पर उम्मीदवार बदलने के संकेत भी दिए हैं. इनमें सबसे ऊपर है टोंक सीट. यहां से सचिन पायलट उतर रहे हैं. जिस तरह से कांग्रेस ने वसुंधरा को घेरने की कोशिश की है, उसके बाद बीजेपी यहां से सरकार मे नंबर 2 युनूस खान को उतारने का मन बना रही है. टोंक सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी है. युनूस खान को अभी तक टिकट नहीं दिया गया है.

शुक्रवार को उनके सरकारी आवास पर डीडवाणा से बड़ी संख्या में लोग पहुंचे और उनसे निर्दलीय चुनाव लड़ने की इच्छा जताने लगे. इसी दौरान प्रदेशाध्यक्ष मदन लाल सैनी वहां पहुंचे और खान से एकांत में चर्चा की. माना जा रहा है कि पार्टी की तरफ से उन्हे आश्वासन दे दिया गया है. वैसे भी किसी मुसलमान को टिकट न दिए जाने का मुद्दा बड़ा बनता जा रहा था.

बहरहाल, इस बार लहरविहीन लड़ाई में कांग्रेस जीत को आसान मान कर चल रही थी. लेकिन जिस तरीके से बागियों ने सिर उठाया है, उसने तगड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए बागियों को मनाए बिना जीत हासिल करना आसान नहीं होगा. हालांकि यही चुनौती बीजेपी के सामने भी है लेकिन नाम न छापने की शर्त पर पार्टी के एक नेता ने जो कहा वो जबरदस्त पंचलाइन है- “हम तो वैसे भी हारी हुई लड़ाई लड़ रहे है. नुकसान तो कांग्रेस का ही है.”

ममता शर्मा ने ‘हाथ’ में ‘कमल’ थामा


बीजेपी की सदस्यता का ग्रहण करने के बाद ममता शर्मा ने आधिकारिक बयान देते हुए कहा, कांग्रेस में इस बार टिकटों की बंदरबांट हुई है


विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ही अपने-अपने खेमों में बग़ावती सुरों से परेशान हैं. साथ ही अपने मनपसंद नेताओं को टिकट ना मिलने पर पार्टी के कार्यकर्ता भी सड़क पर उतर आए हैं. ऐसे में रविवार को राजस्थान की कांग्रेस नेता ममता शर्मा बीजेपी में शामिल हो गईं.

उन्होंने मुख्यमंत्री आवास पर बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली है. बताया जा रहा है कि ममता शर्मा के साथ ही कुछ अन्य कांग्रेस कार्यकर्ता भी बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. वहीं ममता शर्मा के बेटे समृद्ध शर्मा कांग्रेस में ही बने रहेंगे.

बीजेपी की सदस्यता का ग्रहण करने के बाद ममता शर्मा ने आधिकारिक बयान देते हुए कहा, ‘कांग्रेस में इस बार टिकटों की बंदरबांट हुई है. हम पूरा परिवार सालों से कांग्रेस की सेवा करते हैं, लेकिन कांग्रेस ने पूरे परिवार की अवहेलना की है. जो लोग क्षेत्र में मेहनत कर रहे हैं, उन्हें टिकट नहीं दिया जा रहा. मैंने अपने पुत्र के लिए टिकट मांगा, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई.’

ममता ने कहा, ‘बीजेपी से मुझे चुनाव चिन्ह मिल गया है. इस बार के विधानसभा चुनाव में पीपल्दा से लडूंगी.’

राजस्थान में 7 दिसंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की ओर से रविवार को जारी उम्मीदवारों की तीसरी सूची में पार्टी ने एक उम्मीदवार का विधानसभा क्षेत्र बदल दिया वहीं पूर्व की सूची में घोषित दो उम्मीदवारों का नाम हटा दिया. कांग्रेस की ओर जारी तीसरी सूची में पार्टी ने पांच सीटों पर गठबंधन की घोषणा की है. राजस्थान विधानसभा की 200 सीटों पर सात दिसंबर को मतदान होगा.

Saffron party took ‘Sabka Saath, Sabka Vikas’: Modi

The second phase of polling in 72 seats, out of the 90-member Assembly, would be held on 20th of November 2018. Assuring a wave of development and progress under the BJP rule, PM Modi said the saffron party was the only party that took forward the mantra ‘Sabka Saath, Sabka Vikas’ in the country without any form of discrimination.

Prime Minister Narendra Modi on Friday appreciated the people of Bastar in Chhattisgarh for turning out in large numbers to vote in the first phase of polling, despite targeted attacks by the Naxals.

The turnout in the first phase of Chhattisgarh polls in 18 seats on November 12 was recorded at 76.28 per cent, as compared to 75.79 per cent in the 2013 polls.He said by improving the voting percentage, the people of Chhattisgarh have proved the strength of Indian democracy even in harsh conditions.

Addressing a rally in Chhattisgarh’s Ambikapur, PM Modi further urged the people to register an even higher voting percentage than Bastar in the second phase of polling on November 20 to give an answer to those creating violence.

Shifting his focus to the opposition Congress, PM accused the party of disregarding Ambikapur and said the Congress will be ousted from the state after the election.

He further said the Congress had not yet come to terms with the fact that a ‘Chaiwala’ had become the Prime Minister of the country.

Congress leader Shashi Tharoor had earlier said that India has a tea-seller as its prime minister today because of the country’s first PM Jawaharlal Nehru.

Modi, in his speech, challenged the Congress to allow a good leader of the party outside of the Gandhi family to become the party president for five years. He said then only will he agree that Nehru had really created a truly democratic system within the Congress.

Recalling how former prime minister Atal Bihari Vajpayee had peacefully divided and created the two states of Madhya Pradesh and Chhattisgarh, he took the opportunity to accuse the Congress of creating a mess during the formation of Telangana.

“जन आवाज़” 2019 के लिए कड़ी मशक्कत कर रहे अशोक तंवर


अशोक तंवर अपनी पार्टी के “वचन पत्र” को ले कर खासी मशक्कत कर रहे हैं. उनके साथ अनेकों सरकारी विभागों के अध्यक्ष भी देखे जा सकते हैं. हरियाणा में राजनैतिक बयार बह रही है जहां सभी अपनी अपनी पत्रिका कि तैयारी में जुटे हैं वहीँ कुछ बातें समझ से बाहर हैं. आम आदमी से कांग्रेस का गठबंधन समझ से बाहर है.

क्या माकन के कद को छोटा करने की कवायद की जा रही है? और क्या इसी लिए माकन कुछ सप्ताह पहले पार्टी से विमुख हो गये थे?   (कांग्रेस कभी किसी को अपनी मर्ज़ी से नहीं जाने देती, खुद निकालती है और कैसे सभी जानते हैं)

क्या दिल्ली में सीटों का 5 – 2 का सौदा हो चुका है? क्या इसी लिए माकन को केजरीवाल पर नरम रहने के लिए कहा गया है? (आम आदमी 5 – कांग्रेस  2)

क्या आम आदमी के साथ हरियाणा में भी कोई सांठ गाँठ कर अशोक तंवर को भी किनारे तो नहीं किया जाएगा?

भूपेन्द्र सिंह हुड्डा बहुत कारसाज मुख्यमंत्री रहे हैं, पर ठक्कर भी अब टक्कर देने में सक्षम हैं. जहां लोग अभी तक हुड्डा की कार्य शैली को नहीं भुला पाए हैं वहीँ अब ठक्कर भी जनता और मिडिया की पसंद बनते जा रहे हैं.

कुल मिला कर क्या यह समय तंवर और माकन के लिए ठीक है?


पंचकुला :

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा अपने चुनाव घोषणा-पत्र को ‘जन-आवाज़’ बनाने के उद्देश्य से आम लोगों के विचार जानने के लिए खाद्य सुरक्षा और पोष्टिकता, स्वास्थ संभाल, अनुसूचित जातियों व जनजातियों और पिछड़े वर्गों सम्बद्ध कार्यकारी ग्रुप की एक बैठक मंगलवार को पंचकुला स्थित किसान भवन में हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद डॉ. अशोक तंवर के नेतृत्व में हुई।

बैठक की अध्यक्षता राज्य सभा सदस्य और चुनाव घोषण पत्र समिति के संयोजक राजीव गौवड़ा ने की। इसमें चुनाव घोषण पत्र समिति के कोआर्डीनेटर डॉ. अमुल देशमुख, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अनुसूचित जाति विभाग के चेयरमेन डॉ. नितिन राऊत, पंजाब के प्रतिनिधि डॉ. राजदीप सिंह संधु और भारी संख्या में विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया जिनमें डॉक्टर, सामाजिक कार्यकर्ता ऑपिनियन बिल्डरस आदि ने भाग लिया। यह बैठक दो चरणों में हुई। पहले चरण में डॉक्टरों, निती निर्धरितकर्ताओं, मेडिकल कालेजों के विशेषज्ञों, एन.जी.ओ. के प्रतिनिधियों, जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों आदि ने भाग लिया जिनकी संख्या 90 के करीब थी। बैठक में किन्नरों के प्रतिनिधियों ने भी अपनी समस्यायें रखीं जिनमें उनके सामाजिक तौर पर पुर्नवास की समस्या विशेष थी। दूसरे चरण में अनुसूचित जातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों, समाजसेवियों आदि वर्गों के 100 से अधिक नेताओं ने भाग लिया।

बैठक के उद्देश्य के बारे में बात करते हुए राजीव गौवड़ा ने बताया कि कांग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गांधी ने पार्टी के चुनाव घोषणा-पत्र को ‘जन-आवाज़’ बनाने के उद्देश्य से देशभर में भ्रमण करके लोगों के विचार जानने के लिए 19 विषयों पर कार्यकारी ग्रुपों का गठन किया है। इन ग्रुपों द्वारा लोगों के विचार जानने के बाद मध्य जनवरी तक अपनी रिपोर्ट दे दी जायेगी जिस पर कांग्रेस कार्यकारिणी समिति द्वारा विचार करने के बाद सभी महत्वपूर्ण विषयों को कांग्रेस पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में शामिल किया जायेगा।

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की चुनाव घोषणा पत्र समिति के कोऑर्डीनेटर डॉ. अमुल देशमुख ने बताया कि जन-आवाज़ के बारे में जानकारी लेने के लिए 20-30 विषय निर्धारित किए गए हैं जिनके बारे में देशभर में कार्यकारी ग्रुप बैठकें कर रहे हैं और आज की यह बैठक इसी कार्यक्रम का हिस्सा है। उन्होंने बताया कि बैठकों के दो चरणों के बाद हरियाणा में एक बैठक और की जायेगी जिसका विषय खेल-कूद होगा क्योंकि हरियाणा राजय खेल-कूद में विषय महत्व रखता है।

हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद डॉ. अशोक तंवर ने बैठक में भाग लेने वालों का धन्यवाद दिया और कहा कि बैठक में बहुत ही बहुमुल्य सुझाव प्राप्त हुए हैं जो कांग्रेस पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र को जन-आवाज बनाने में सहायक सिद्ध होंगे। उन्होंने कहा कि हरियाणा में पानी, स्वास्थ्य, कृषि संबंधी और पर्यावरण की विशेष समस्यायें हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने अनुसूचित जातियों और पिछड़ा वर्गों के हितों का कोई ध्यान नहीं रखा है। उन्होंने कहा कि ये वर्ग रोजगार, सामाजिक विकास व सुरक्षा, शिक्षा आदि में काफी पिछड़ गए हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी के चुनाव घोषण पत्र में इन विषयों को भी शामिल करने के लिए विशेष ध्यान दिया जायेगा क्योंकि कांग्रेस पार्टी ने सदैव ही कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए कार्य किया है और भविष्य में भी इन्हें महत्व दिया जायेगा। उन्होंने पूर्व आईएएस श्री दलबीर भारती द्वारा मंच संचालन करने के लिए धन्यवाद किया।


सरकारी अधिकारी कांग्रेस के साथ अपनी तथा कथित समबन्धों को दर्शाने में नहीं चूक रहे, कहीं राहुल उन्हें भी व्यापम वाले डॉ. आनंद राय कि भांति धोखा न दे दें (बकौल डॉ.आनंद राय  राहुल ने उन्हें टिकेट देने का वायदा किया था इसीलिए उन्होंने नौकरी भी छोड़ दी, और अब उन्हें मिलते भी नहीं)

‘भाजपा के कुशासन की वजह से लोगों का सपना टूट गया.’ राहुल


यूपीए काल के 10 वर्षों में प्रधानमंत्री पद की गरिमा को तथाकथित रूप से तार तार करने के बाद, संसद में अमेठी का प्रतिनिधित्व करने वाले राहुल जो यदा कदा विदेश अज्ञात वास चले जाते हैं, अब प्रधान मंत्री मोदी को  उनका कार्य समझा रहे हैं। 


कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला करते हुए कहा है कि देश एक व्यक्ति से नहीं चलता. देश को पूरी जनता चलाती है. मोदी भारत के विकास को लेकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं.

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान से ठीक पहले एक रैली को संबोधित करते हुए गांधी ने कहा कि मोदी को लगता है कि देश का विकास तो उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद ही शुरू हुआ है. नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लघु एवं मध्यम कारोबारियों की कमर तोड़ने के लिए थे.

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ‘वह (मोदी) तो यह तक नहीं जानते कि देश को जनता चलाती है, न कि एक व्यक्ति. इस तरह की बातें कहकर वे आपका अपमान करते हैं. नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, विजय माल्या भारत के लोगों के हजारों करोड़ रुपये लेकर भाग गए. उन्हें देश वापस लाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी कुछ नहीं कर रहे और इस मुद्दे पर एक शब्द तक नहीं बोलते’.

छत्तीसगढ़ में हमारी पार्टी की सरकार बनी तो राज्य में ‘जनता की सरकार’ होगी

राफेल सौदे में जांच रोकने के लिए सीबीआई निदेशक को रात के एक बजे पद से हटा दिया गया. लड़ाकू विमान बनाने में 70 साल का अनुभव रखने वाली एच ए एल की जगह राफेल सौदे के लिए अनिल अंबानी को चुना गया.अनिल अंबानी के पास अनुभव नहीं था. यहां तक कि उन्होंने कागज का जहाज तक नहीं बनाया है. यदि इसकी जांच हो जाए तो केवल दो नाम आएंगे- नरेंद्र मोदी और अनिल अंबानी. मोदी जांच से डरते हैं.

गांधी ने कहा कि छत्तीसगढ़ में सोमवार को जिन 18 निर्वाचन क्षेत्रों में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हुआ, वहां कांग्रेस के पक्ष में लहर है. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और अन्य चुनावी राज्यों में चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आएंगे. संसाधनों में छत्तीसगढ़ समृद्ध है, लेकिन बीजेपी सरकार के ‘कुशासन की वजह से लोगों का सपना टूट गया.’

गांधी ने वायदा किया कि यदि छत्तीसगढ़ में उनकी पार्टी की सरकार बनी तो वह राज्य में ‘जनता की सरकार’ होगी. उन्होंने कहा कि लोग ऐसी सरकार चाहते हैं जो उनके ‘मन की बात’ सुने. उन्होंने कहा, ‘कुछ उद्योपतियों के लिए काम करने की बजाए कांग्रेस राज्य में कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य के विकास के लिए काम करेगी.’

कांग्रेस सत्ता में आई तो युवाओं को कारोबार करने और बैंकों से कर्ज लेने की सुविधा के लिए प्रोत्साहित करेगी. कांग्रेस बड़े उद्यमियों के खिलाफ नहीं है, लेकिन यदि सरकार उन्हें फायदा पहुंचाती है तो लघु और मध्यम उद्यमों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए.

Early hearing of Ram Janm Bhoomi Title Suit, Permission declined: Supreme Court


The Supreme Court on Monday declined early hearing of petitions in the Ram Janmabhoomi-Babri Masjid title dispute case.

A Bench comprising Chief Justice Ranjan Gogoi and Justice S.K. Kaul said it had already listed the appeals before the appropriate bench in January.

“We have already passed the order. The appeals are coming up in January. Permission declined,” the bench said while rejecting the request of early hearing of lawyer Barun Kumar Sinha, appearing for the Akhil Bharat Hindu Mahasabha.

The top court had earlier fixed the Ram Janmabhoomi-Babri Masjid land dispute case for the first week of January before an “appropriate bench”, which will decide the schedule of hearing.

Solicitor General Tushar Mehta and senior advocate C.S. Vaidyanathan, appearing for the Uttar Pradesh government and deity Ram Lalla respectively, had sought early listing of the appeals in the case after referring to their long pendency.

Earlier, a three-judge Bench, by a 2:1 majority, refused to refer to a five-judge Constitution Bench the issue of reconsideration of the observations in its 1994 judgement of the Allahabad High Court that a mosque was not integral to Islam. The matter had arisen during the hearing of the Ayodhya land dispute.

The apex court bench headed by the then Chief Justice Dipak Misra had said that the civil suit has to be decided on the basis of evidence.

It had also said that the previous verdict has no relevance to this issue.

As many as 14 appeals have been filed against the high court judgement, delivered in four civil suits, that the 2.77 acre land be partitioned equally among three parties — the Sunni Waqf Board, the Nirmohi Akhara and Ram Lalla.

‘ऐसा लगता है इन दिनों कांग्रेस का केवल एक ही मकसद है, ‘मंदिर नहीं बनने देंगे, शाखा नहीं चलने देंगे’: संबित पात्रा

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कांग्रेस के ‘वचन पत्र’ पर विवाद, BJP ने RSS को लेकर किए वादे पर जताई आपत्ति


चुनाव का सीजन आते ही वादों का सिलसिला भी शुरू हो जाता है. मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस ने कुछ ऐसा वादा कर दिया है जिसे राजनीतिक हलचल बढ़ गई है. कांग्रेस ने शनिवार को अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया है. कांग्रेस के इस घोषणा पत्र को ‘वचन पत्र’ कहा जा रहा है. दिलचस्प है कि कई दूसरी चीजों के साथ कांग्रेस ने अपने इस घोषणा पत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की शाखाओं पर पाबंदी लगाने का भी वादा किया है. इस घोषणा पत्र के इस बिंदु को लेकर बीजेपी ने उस पर बड़ा हमला बोला है.

क्या लिखा है कांग्रेस के घोषणापत्र में?

कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में लिखा है कि सरकारी ऑफिसों में RSS की शाखाएं नहीं लगने देंगे. कांग्रेस ने यह भी लिखा है कि शासकीय अधिकारी और कर्मचारियों को शाखाओं में छूट संबंधी आदेश निरस्त करेंगे. इसके अलावा कांग्रेस ने मध्य प्रदेश के लिए जारी अपने घोषणा पत्र में व्यापम घोटाले की परीक्षाओं में पिछले 10 सालों में शामिल हुए लाखों उम्मीदवारों का शुल्क वापस लौटाने का वादा किया है. साथ ही कांग्रेस का वादा है कि व्यापम को बंद कर दिया जाएगा.

शनिवार को 112 पन्नों के कांग्रेस के इस वचन पत्र में पार्टी की ओर से प्रदेश के हर वर्ग के लिए तमाम वादे किए गए हैं. बीजेपी ने वचन पत्र में कांग्रेस के इस वादे, ‘अगर वो सत्ता में आई तो सरकारी इमारतों और उनके परिसरों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शाखा नहीं लगने देगी.’ पर आपत्ति जताई है.

बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कांग्रेस को इस पर घेरते हुए कहा, ‘ऐसा लगता है इन दिनों कांग्रेस का केवल एक ही मकसद है, ‘मंदिर नहीं बनने देंगे, शाखा नहीं चलने देंगे’

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Looks like the Congress these days has only one motto- ‘Mandir nahi ban ne denge, Shakha nahi chalne denge:’ Sambit Patra,BJP on in its manifesto in says RSS ‘shakhas’ would not be allowed in Government buildings

वहीं बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा, ‘कांग्रेस ने संघ पर प्रतिबंध लगाने का वचन दिया है! अच्छा होता, अगर वो सिमी जैसे आतंकवादी संगठनो पर प्रतिबंध लगाते. पर वहां क्यों लगाएंगे, आपकी राजनीति तुष्टिकरण और वोटबैंक की ही जो है. जनता आपको कभी माफ नहीं करेगी.’


Kailash Vijayvargiya

@KailashOnline

मे अपने विचार सामने लाते हुए..  कांग्रेस ने संघ पर प्रतिबंध लगाने का “वचन” दिया है.!
अच्छा होता, अगर वो सिमी जैसे आतंकवादी संगठनो पर प्रतिबंध लगाते। पर वहाँ क्यो लगाएंगे, आपकी राजनीति तुष्टिकरण व वोटबैंक की ही जो है। जनता आपको कभी माफ नहीं करेगी।


कांग्रेस के वचन पत्र में सरकार भवनों में RSS शाखा लगाने पर रोक का वादा

दरअसल कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में कहा है कि वो यहां सरकार बनने पर सरकारी भवनों में आरएसएस की शाखा लगाने पर रोक लगेगी. साथ ही इसमें सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने के पूर्व के आदेश को भी रद्द करेगी.


in its manifesto in has said if the party comes to power then RSS ‘shakhas’ would not be allowed in Government buildings and premises, also earlier order to allow Govt employees to attend RSS ‘shakhas’ will be revoked.


कांग्रेस मध्य प्रदेश में बीते 15 वर्षों से सत्ता से दूर है. इसलिए उसकी कोशिश है कि वो हर हालत में चुनाव में शिवराज सरकार को उखाड़ फेंके. इसे सच साबित करने के लिए खुद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी जहां लगातार राज्य के दौरे कर रहे हैं वहीं सरकार को घेरने के लिए कमलनाथ समेत पार्टी के बड़े नेता सार्वजनिक तौर पर सबके सहयोग की बात कर रहे हैं.

मध्य प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों के लिए 28 नवंबर को एक ही चरण में मतदान होना है. इसी दिन पूर्वोत्तर के राज्य मिजोरम में भी वोटिंग होगी. एमपी समेत पांचों चुनावी राज्यों में 11 दिसंबर को चुनाव के नतीजे आएंगे