प्रधान मंत्री की हत्या के षडयंत्र के आरोपियों को सर्वोच्च न्यायालय से राहत, नज़रबंद रहेंगे आरोपी

नई दिल्ली:

नई दिल्ली भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामलों में वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी और उनके ठिकानों पर छापेमारी में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में पांच विचारकों की गिरफ्तारी पर 5 सितंबर तक रोक लगा दी है। मिली जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए कहा है कि आरोपियों को गिरफ्तार करने की बजाय उन्हें हाउस अरेस्ट किया जाए। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की अगली सुनवाई 6 सितंबर को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा है कि किसी भी लोकतंत्र के लिए सेफ्टी वॉल्व है। अगर असहमति की अनुमति नहीं होगी तो प्रेशर कूकर की तरह फट भी सकता है।

जनवरी में हुए भीमा-कोरेगांव दंगों के सम्बंध में गिरफ्तार पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नौलखा ने बताया कि यह पूरा मामला इस कायर और प्रतिशोधी सरकार की राजनीतिक असहमति के खिलाफ एक राजनीतिक चाल है। सरकार महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव दंगों के असली अपराधियों को बचाना चाहती है और इसीलिए उसने कश्मीर से केरल तक अपनी असफलताओं और घोटालों से जनता का ध्यान हटाना चाहती है। नौलखा ने कहा कि राजनीतिक लड़ाई राजनीतिक तरीके से लड़ी जानी चाहिए और मैं इस अवसर का स्वागत करता हूं। मेरा कुछ भी लेना-देना नहीं है। यह तो महाराष्ट्र पुलिस है, जो अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर काम कर रही है, और मेरे और मेरे गिरफ्तार अन्य साथियों के खिलाफ अपने मामले साबित करने की कोशिश कर रही है।

पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स’ (पीयूडीआर) में हम लोग 40 वर्षों से भी अधिक समय से एकजुट और निडर होकर लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं और इसके हिस्से के तौर पर मैंने ऐसे कई मामलों को कवर किया है। अब मैं खुद एक राजनीतिक लड़ाई का सामना करूंगा। नौलखा और चार अन्य नक्सल समर्थकों को 31 दिसंबर को पुणे में जनसभा आयोजित करने के मामले में पुणे पुलिस ने कई शहरों में छापे मारने के बाद गिरफ्तार किया है, जिसमें क्रांतिकारी कवि वरवर राव भी शामिल हैं। जनसभा के अगले दिन पुणे से 60 किलोमीटर दूर कोरेगांव-भीमा में हिंसा हुई थी।

आपको बता दें कि 28 अगस्त को पुणे पुलिस ने भीमा कोरेगांव हिंसा, नक्सलियों से संबंधों और गैर-कानूनी गतिविधियों के आरोपों में 5 लोगों को अरेस्ट किया है। इनमें वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वेरनोन गोन्जाल्विस और अरुण फरेरा शामिल हैं। इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की तरफ से रोमिला थापर, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे, माया दर्नाल और एक अन्य ने सुप्रीम कोर्ट ने अर्जी दाखिल की थी। इस याचिका को चीफ जस्टिस की अदालत में पेश किया है। याचिका में गिरफ्तारी को गैरकानूनी बताते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की गई।

राहुल गांधी ने इस मसले पर बीजेपी सरकार पर अटैक करते हुए ट्वीट किया, भारत में सिर्फ एक ही एनजीओ के लिए जगह है और उसका नाम है आरएसएस। इसके अलावा अन्य सभी एनजीओ को बंद कर दीजिए। सभी ऐक्टिविस्ट्स को जेल में डाल दो और जो विरोध करे, उसे गोली मार दो। राहुल की ओर से सरकार पर ऐक्टिविस्ट्स की आवाज को दबाए जाने के आरोप लगाने पर सरकार की ओर से भी प्रतिक्रिया आई है।

इमाम को मस्जिद के पास जिंदा जलाया, जलाने वाली महिला की तलाश

 

चेन्नई:

चेन्नई के त्रिपलीकेन क्षेत्र में बड़ी मस्जिद के बिलकुल सामने बने एक कार्यालय में एक बुर्केवाली महिला ने इमाम को जिंदा जला कर फरार हो गई। गंभीर रूप से झुलस गए इमाम को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया, जहां इमाम ने उपचार के दौरान दम तोड़ दिया।
पुलिस ने बताया कि हत्या के इरादे से अपराधी रात को आठ बजे कई अन्य महिलाओं के साथ सैयद फजरुद्दीन के कार्यालय में गई। वहां पहुंचने पर उस महिला ने फजरुद्दीन पर एक केमिकल फेंका और उन्हें आग के हवाले कर के रवाना हो गई।

इमाम की चिल्लाने की आवाज सुनने पर लोगों ने वहां पहुंचकर उन्होंने अस्पताल ले जाया गया। गंभीर रूप से झुलसने के वजह से तत्काल उपचार प्रारंभ कर दिया। इमाम ने उपचार के दौरान दम तोड़ दिया। त्रिपलीकेन पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज करके जांच प्रारंभ कर दी है। इसके साथ ही केस की जांच कर रही टीम महिला की शिनाख्त कर हत्या के पीछे क्या कारण है इसके प्रयास में जुटी हुई है। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि मनी (61) नाम के व्यापारी की उसी बिल्डिंग में एक दुकान है। इसमें वारदात को अंजाम दिया गया है। वह इमाम के खास दोस्तों में से एक हैं। घटना के बाद उन्होंने महिला को पकडऩे का प्रयास किया गया लेकिन वह लोगों को धक्का देकर भागने में सफल रही।

पुलिस ने घटनास्थल का भी जायजा लिया, जहां पर उन्हें इमाम का ऑफिस बुरी तरह से जली हुई अवस्था में मिला। पुलिस अधिकारी ने बताया कि यह सुनियोजित किया गया अपराध है। महिला खुद वहां पर आती है और यह भी हो सकता है कि पास में ही कोई घटना के बाद उसका गाड़ी में कोई इंतजार भी कर रहा हो। इमाम का इलाज करनेवाले चिकित्सकों का कहना है कि उन्हें शव से न तो पेट्रोल मिला है और न ही केरोसिन। नमूने लेकर जांच के लिए फोरेंसिक लैब में भेज दिया गया है।

“Chandrayaan2” 3 January 2019

India will launch its second lunar mission on 3 January next year to land on the moon with a lander and rover, a top space official said on Sunday.

“We are aiming to launch the mission on 3 January 2019, but the window to land on the lunar surface is open till March 2019,” Indian Space Research Organisation (ISRO) Chairman K Sivan said.

The Rs 800-crore lunar mission named “Chandrayaan-2” comes over a decade after India went up to the lunar orbit in November 2008 after “Chandrayaan-1” launch onboard a Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV) rocket from the spaceport in Andhra Pradesh’s Sriharikota.

Representational image.

The 3,890-kg Chandrayaan-2, which will be launched onboard the Geosynchronous Satellite Launch Vehicle (GSLV) Mk-3, will orbit around the moon and study its lunar conditions to collect data on its topography, mineralogy and exosphere.

A lander with rover which will separate from the spacecraft will orbit the moon, and then gradually descend on the lunar surface at a designated spot. The rover’s instruments will observe and study the lunar surface.

The lander has been named “Vikram” as a tribute to the pioneer of India’s space programme and former ISRO chairman (1963-71), Vikram Sarabhai, Sivan said.

This is the first time India will have a rover landing on the moon nearly 50 years after American astronaut Neil Armstrong walked on the eerie lunar surface in 1969.

The Indian space agency, which was eyeing at the second lunar mission this year, has had to make design and functional changes to Chandrayaan-2, causing the delay and pushing the mission to January next year, Sivan said.

For its Chandrayaan-1, ISRO had carried a moon impact probe vehicle to crash land on the surface from the lunar orbit.

पीवी सिंधू ने 18वें एशियाई खेलों में रचा इतिहास


रियो ओलंपिक खेलों की रजत विजेता भारत की पीवी सिंधू ने सोमवार को 18वें एशियाई खेलों की बैडमिंटन स्पर्धा के महिला एकल स्वर्ण पदक मुकाबले में पहुंचकर इतिहास रच दिया।


सिंधू भारत की पहली बैडमिंटन खिलाड़ी बन गयी हैं जिन्होंने एशियन खेलों के फाइनल में प्रवेश पाया है। उन्होंने महिला एकल सेमीफाइनल मुकाबले में भारी उत्साह और भारतीय समर्थकों के सामने दूसरी सीड जापान की अकाने यामागुची के खिलाफ 66 मिनट तक चले रोमांचक मुकाबले को 21-17, 15-21, 21-10 से जीता।

विश्व की तीसरे नंबर की खिलाड़ी सिंधू ने यामागुची की चुनौती को स्वीकारते हुये बराबरी की टक्कर दिखाई। पहला गेम जीतने के बाद दूसरे गेम में हालांकि जापानी खिलाड़ी ने कहीं बेहतर खेल दिखाया और 8-10 से सिंधू से पिछड़ने के बाद लगातार भारतीय खिलाड़ी को गलती करने के लिये मजबूर किया और 11-10 तथा 16-12 से बढ़त बना ली।

सिंधू पर दबाव बढ़ता गया और एक समय यामागुची ने स्कोर 17-14 पहुंचा दिया और फिर 20-15 पर गेम प्वांइट जीतकर 21-15 से गेम जीता और मुकाबला 1-1 से बराबर पहुंचा दिया। निर्णायक गेम और भी रोमांचक रहा जिसमें यामागुची ने आत्मविश्वास के साथ शुरूआत करते हुये 7-3 की बढ़त बनाई।  लेकिन सिंधू लगातार अंक लेती रहीं और 5-10 से पिछड़ने के बाद लंबी रैली जीतकर बढ़त बनाई।

उन्होंने 11 अंकों की सबसे बढ़ी बढ़त ली और 16-10 से यामागुची को पीछे छोड़ा और 20-10 पर मैच प्वाइंट जीतकर निर्णायक गेम और मैच अपने नाम कर लिया। तीसरी वरीय खिलाड़ी के सेमीफाइनल मुकाबला जीतने के साथ ही स्टेडियम में बैठे लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनकी जीत का स्वागत किया।

सिंधू अब फाइनल में भारत को पहला एशियाड स्वर्ण दिलाने के लिये चीनी ताइपे की ताई जू यिंग के खिलाफ उतरेंगी जिन्होंने दिन के एक अन्य सेमीफाइनल में भारत की सायना नेहवाल को 21-17, 21-14 से पराजित किया।
सायना एशियाई खेलों में महिला एकल का पदक जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी हैं।

‘मन की बात’ का 47वां संस्करण

 

मोदी ने रविवार को आकाशवाणी अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 47वें संस्करण में देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि सुशासन को मुख्य धारा में लाने के लिए देश सदा वाजपेयी का आभारी रहेगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि वाजपेयी ने भारत को नई राजनीतिक संस्कृति दी और बदलाव लाने का प्रयास किया। इस बदलाव को उन्होंने व्यवस्था के ढांचे में ढालने की कोशिश की जिसके कारण भारत को बहुत लाभ हुआ हैं और आगे आने वाले दिनों में बहुत लाभ होने वाला सुनिश्चित है।

उन्होेंने कहा कि भारत हमेशा 91वें संशोधन अधिनियम 2003 के लिए अटल जी का कृतज्ञ रहेगा। इस बदलाव ने भारत की राजनीति में दो महत्वपूर्ण परिवर्तन किए। पहला यह कि राज्यों में मंत्रिमंडल का आकार कुल विधानसभा सीटों के 15 प्रतिशत तक सीमित किया गया। दूसरा यह कि दल-बदल विरोधी कानून के तहत तय सीमा एक-तिहाई से बढ़ाकर दो-तिहाई कर दी गयी। इसके साथ ही दल-बदल करने वालों को अयोग्य ठहराने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश भी निर्धारित किए गए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कई वर्षों तक भारी भरकम मंत्रिमंडल गठित करने की राजनीतिक संस्कृति ने ही बड़े-बड़े “जम्बो” मंत्रिमंडल कार्य के बंटवारे के लिए नहीं बल्कि राजनेताओं को खुश करने के लिए बनाए जाते थे। वाजपेयी ने इसे बदल दिया। इससे पैसों और संसाधनों की बचत हुई। इसके साथ ही कार्यक्षमता में भी बढ़ोतरी हुई।

मोदी ने कहा कि यह अटल जी दीर्घदृष्टा ही थे, जिन्होंने स्थिति को बदला और हमारी राजनीतिक संस्कृति में स्वस्थ परम्पराएं पनपी। अटल जी एक सच्चे देशभक्त थे। उनके कार्यकाल में ही बजट पेश करने के समय में परिवर्तन हुआ। पहले अंग्रेजों की परम्परा के अनुसार शाम को पांच बजे बजट प्रस्तुत किया जाता था क्योंकि उस समय लन्दन में संसद शुरू होने का समय होता था। वर्ष 2001 में अटल जी ने बजट पेश करने का समय शाम पांच बजे से बदलकर सुबह 11 बजे कर दिया।

मोदी ने कहा कि वाजपेयी के कारण ही देशवासियों को ‘एक और आज़ादी’ मिली। उनके कार्यकाल में राष्ट्रीय ध्वज संहिता बनाई गई और 2002 में इसे अधिसूचित कर दिया गया। इस संहिता में कई ऐसे नियम बनाए गए जिससे सार्वजनिक स्थलों पर तिरंगा फहराना संभव हुआ। इसी के कारण अधिक से अधिक भारतीयों को अपना राष्ट्रध्वज फहराने का अवसर मिल पाया। इस तरह से उन्होंने प्राण प्रिय तिरंगे को जनसामान्य के क़रीब कर दिया। उन्होेंने कहा कि वाजपेयी ने चुनाव प्रक्रिया और जनप्रतिनिधियों से संबंधित प्रावधानों में साहसिक कदम उठाकर बुनियादी सुधार किए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि इसी तरह आजकल आप देख रहे हैं कि देश में एक साथ केंद्र और राज्यों के चुनाव कराने के विषय में चर्चा आगे बढ़ रही है। इस विषय के पक्ष और विपक्ष दोनों में लोग अपनी-अपनी बात रख रहे हैं। ये अच्छी बात है और लोकतंत्र के लिए एक शुभ संकेत भी। मैं जरुर कहूंगा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए, उत्तम लोकतंत्र के लिए अच्छी परम्पराएं विकसित करना, लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए लगातार प्रयास करना, चर्चाओं को खुले मन से आगे बढ़ाना, यह भी अटल जी को एक उत्तम श्रद्धांजलि होगी।

वाजपेयी के योगदान का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने गाज़ियाबाद से कीर्ति, सोनीपत से स्वाति वत्स, केरल से भाई प्रवीण, पश्चिम बंगाल से डॉक्टर स्वप्न बनर्जी और बिहार के कटिहार से अखिलेश पाण्डे के सुझावाें का जिक्र किया।

श्रावण पूर्णिमा एवं रक्षाबंधन की कोटी कोटी बधाई

श्रावण माह की पूर्णिमा: ओणम एवं रक्षाबंधन

 

श्रावण माह की पूर्णिमा बहुत ही शुभ व पवित्र दिन माना जाता है. ग्रंथों में इन दिनों किए गए तप और दान का महत्व उल्लेखित है. इस दिन रक्षा बंधन का पवित्र त्यौहार मनाया जाता है इसके साथ ही साथ श्रावणी उपक्रम श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को आरम्भ होता है. श्रावणी कर्म का विशेष महत्त्व है इस दिनयज्ञोपवीत के पूजन तथा उपनयन संस्कार का भी विधान है.

ब्राह्मण वर्ग अपनी कर्म शुद्धि के लिए उपक्रम करते हैं. हिन्दू धर्म में सावन माह की पूर्णिमा बहुत ही पवित्र व शुभ दिन माना जाता है सावन पूर्णिमा की तिथि धार्मिक दृष्टि के साथ ही साथ व्यावहारिक रूप से भी बहुत ही महत्व रखती है. सावन माह भगवान शिव की पूजा उपासना का महीना माना जाता है. सावन में हर दिन भगवान शिव की विशेष पूजा करने का विधान है.

इस प्रकार की गई पूजा से भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं. इस माह की पूर्णिमा तिथि इस मास का अंतिम दिन माना जाता है  अत: इस दिन शिव पूजा व जल अभिषेक से पूरे माह की शिव भक्ति का पुण्य प्राप्त होता है.

कजरी पूर्णिमा | Kajari Purnima

कजरी पूर्णिमा का पर्व भी श्रावण पूर्णिमा के दिन ही पड़ता है यह पर्व विशेषत: मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के कुछ जगहों में मनाया जाता है. श्रावण अमावस्या के नौंवे दिन से इस उत्सव तैयारीयां आरंभ हो जाती हैं. कजरी नवमी के दिन महिलाएँ पेड़ के पत्तों के पात्रों में मिट्टी भरकर लाती हैं जिसमें जौ बोया जाता है.

कजरी पूर्णिमा के दिन महिलाएँ इन जौ पात्रों को सिर पर रखकर पास के किसी तालाब या नदी में विसर्जित करने के लिए ले जाती हैं .इस नवमी की पूजा करके स्त्रीयाँ कजरी बोती है. गीत गाती है तथा कथा कहती है. महिलाएँ इस दिन व्रत रखकर अपने पुत्र की लंबी आयु और उसके सुख की कामना करती हैं.

श्रावण पूर्णिमा को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक नामों से जाना जाता है और उसके अनुसार पर्व रुप में मनाया जाता है जैसे उत्तर भारत में रक्षा बंधन के पर्व रुप में, दक्षिण भारत में नारयली पूर्णिमा व अवनी अवित्तम, मध्य भारत में कजरी पूनम तथा गुजरात में पवित्रोपना के रूप में मनाया जाता है.

रक्षाबंधन | Rakshabandhan

रक्षाबंधन का त्यौहार भी श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है इसे सावनी या सलूनो भी कहते हैं. रक्षाबंधन, राखी या रक्षासूत्र का रूप है राखी सामान्यतः बहनें भाई को बांधती हैं इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं उनकी आरती उतारती हैं तथा इसके बदले में भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है और उपहार स्वरूप उसे भेंट भी देता है.

इसके अतिरिक्त ब्राहमणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा संबंधियों को जैसे पुत्री द्वारा पिता को भी रक्षासूत्र या राखी बांधी जाती है. इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है, उत्सर्जन, स्नान-विधि, ॠषि-तर्पणादि करके नवीनयज्ञोपवीत धारण किया जाता है. वृत्तिवान ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं.

श्रावणी पूर्णिमा पर अमरनाथ यात्रा का समापन

पुराणों के अनुसार गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर श्री अमरनाथ की पवित्र छडी यात्रा का शुभारंभ होता है और यह यात्रा श्रावण पूर्णिमा को संपन्न होती है. कांवडियों द्वारा श्रावण पूर्णिमा के दिन ही शिवलिंग पर जल चढया जाता है और उनकी कांवड़ यात्रा संपन्न होती है. इस दिन शिव जी का पूजन होता है पवित्रोपना के तहत रूई की बत्तियाँ पंचग्वया में डुबाकर भगवान शिव को अर्पित की जाती हैं.

श्रावण पूर्णिमा महत्व

श्रावण पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ होता है अत: इस दिन पूजा उपासना करने से चंद्रदोष से मुक्ति मिलती है, श्रावणी पूर्णिमा का दिन दान, पुण्य के लिए महत्वपूर्ण होता है अत: इस दिन स्नान के बाद गाय आदि को चारा खिलाना, चिंटियों, मछलियों आदि को दाना खिलाना चाहिए इस दिन गोदान का बहुत महत्व होता है.

श्रावणी पर्व के दिन जनेऊ पहनने वाला हर धर्मावलंबी मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेकर जनेऊ बदलते हैं ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान दे और भोजन कराया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा का विधान होता है. विष्णु-लक्ष्मी के दर्शन से सुख, धन और समृद्धि कि प्राप्ति होती है. इस पावन दिन पर भगवान शिव, विष्णु, महालक्ष्मीव हनुमान को रक्षासूत्र अर्पित करना चाहिए.

इतिहास में वर्णित कुछ प्रसंग:

श्रावण मास पूर्णिमा को मनाए जाने वाला रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है। इस बार 26 अगस्त रविवार को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जा रहा है। इस त्योहार का प्रचलन सदियों पुराना है। पौराणिक कथा के अनुसार इस त्योहार की परंपरा उन बहनों ने रखी जो सगी बहनें नहीं थी। आइए जानते हैं कि आखिर क्यों मनाया जाता हैं रक्षाबंधन का त्योहार।

राजा बलि और देवी-लक्ष्मी ने शुरू की भाई बहनों की राखी

राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयास किया तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान, वामन अवतार लेकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। भगवान ने तीन पग में आकाश, पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। तब राजा बलि ने अपनी भक्ति से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। तब माता लक्ष्मी ने राजा बलि के पास जाकर उन्हें रक्षासूत्र बांधकर अपना भाई बनाया और भेंट में अपने पति को साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी।

द्रौपदी और कृष्ण का रक्षाबंधन

राखी या रक्षा बंधन या रक्षा सूत्र बांधने की सबसे पहली चर्चा महाभारत में आती है, जहां भगवान कृष्ण को द्रौपदी द्वारा राखी बांधने की कहानी है। दरअसल, भगवान कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से चेदि नरेश शिशुपाल का वध कर दिया था। इस कारण उनकी अंगुली कट गई और उससे खून बहने लगा। यह देखकर विचलित हुई रानी द्रौपदी ने अपनी साड़ी का किनारा फाड़कर कृष्ण की कटी अंगुली पर बांध दी। कृष्ण ने इस पर द्रौपदी से वादा किया कि वे भी मुश्किल वक्त में द्रौपदी के काम आएंगे। पौराणिक विद्वान, भगवान कृष्ण और द्रौपदी के बीच घटित इसी प्रसंग से रक्षा बंधन के त्योहार की शुरुआत मानते हैं। कहा जाता है कि कुरुसभा में जब द्रौपदी का चीरहरण किया जा रहा था, उस समय कृष्ण ने अपना वादा निभाया और द्रौपदी की लाज बचाने में मदद की।

कर्णावती-हुमायूं

मेवाड़ के महाराजा राणा सांगा की मृत्यु के बाद बहादुर शाह ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया था। इससे चिंतित रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूं को एक चिट्टी भेजी। इस चिट्ठी के साथ कर्णावती ने हुमायूं को भाई मानते हुए एक राखी भी भेजी और उनसे सहायता मांगी। हालांकि मुगल बादशाह हुमायूं बहन कर्णावती की रक्षा के लिए समय पर नहीं पहुंच पाया, लेकिन उसने कर्णावती के बेटे विक्रमजीत को मेवाड़ की रियासत लौटाने में मदद की।

रुक्साना-पोरस

रक्षा बंधन को लेकर इतिहास में राजा पुरु (पोरस) और सिकंदर की पत्नी रुक्साना के बीच राखी भेजने की एक कहानी भी खूब प्रसिद्ध है। दरअसल, यूनान का बादशाह सिकंदर जब अपने विश्व विजय अभियान के तहत भारत पहुंचा तो उसकी पत्नी रुक्साना ने राजा पोरस को एक पवित्र धागे के साथ संदेश भेजा। इस संदेश में रुक्साना ने पोरस से निवेदन किया कि वह युद्ध में सिकंदर को जान की हानि न पहुंचाए।

कहा जाता है कि राजा पोरस ने जंग के मैदान में इसका मान रखा और युद्ध के दौरान जब एक बार सिकंदर पर उसका धावा मजबूत हुआ तो उसने यूनानी बादशाह की जान बख्श दी। इतिहासकार रुक्साना और पोरस के बीच धागा भेजने की घटना से भी राखी के त्योहार की शुरुआत मानते हैं।

जब युद्धिष्ठिर ने अपने सैनिको को बांधी राखी

राखी की एक अन्य कथा यह भी हैं कि पांडवो को महाभारत का युद्ध जिताने में रक्षासूत्र का बड़ा योगदान था। महाभारत युद्ध के दौरान युद्धिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं कैसे सभी संकटो से पार पा सकता हूं। इस पर श्रीकृष्ण ने युद्धिष्ठिर से कहा कि वह अपने सभी सैनिको को रक्षासूत्र बांधे। इससे उसकी विजय सुनिश्चिच होगी। तब जाकर युद्धिष्ठिर ने ऐसा किया और विजयी बने। तब से यह त्योहार मनाया जाता है।

जब पत्नी सचि ने इन्द्रदेव को बांधी राखी

भविष्य पुराण में एक कथा हैं कि वृत्रासुर से युद्ध में देवराज इंद्र की रक्षा के लिए इंद्राणी शची ने अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया और श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्र की कलाई में बांध दी। इस रक्षासूत्र ने देवराज की रक्षा की और वह युद्ध में विजयी हुए। यह घटना भी सतयुग में ही हुई थी

इन्दिरा ओर राजीव भी सामान्य हृदयाघात से ही मारे होंगे: हरसिमरत

 

सिखों के खिलाफ हुए दंगों पर राहुल गांधी के बयान पर पलटवार करते हुए केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने कांग्रेस अध्यक्ष पर निशाना साधा. केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘अगर राहुल गांधी के मुताबिक सिखों का नरसंहार नहीं हुआ तो मेरा भी मानना है कि उनके पिता (राजीव गांधी) और दादी मां (इंदिरा गांधी) की भी हत्या नहीं हुई. उनकी मौत भी सामान्य दिल के दौरे से हुई.’

दरअसल कांग्रेस अध्यक्ष ने शुक्रवार को लंदन के हाउस ऑफ कॉमंस कैंपस में ‘भारत एवं विश्व’ विषय पर हुई परिचर्चा में शामिल हुए थे. यहां साल 1984 के सिख विरोधी दंगों में कांग्रेस पार्टी की ‘संलिप्तता’ के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में राहुल ने उस घटना को ‘त्रासदी’ और ‘दर्दनाक अनुभव’ करार दिया, लेकिन इस बात से सहमत नहीं हुए कि कांग्रेस इसमें ‘शामिल’ थी.

उन्होंने कहा, ‘मैं समझता हूं कि किसी के खिलाफ की गई कोई भी हिंसा गलत है. भारत में कानूनी प्रक्रियाएं चल रही हैं, लेकिन जहां तक मेरी राय है, उस दौरान हुई किसी भी गलती के लिए सजा मिलनी चाहिए. मैं इसमें 100 फीसदी समर्थन दूंगा.’ कांग्रेस अध्यक्ष के इसी बयान पर पलटवार करते हुए केंद्रीय मंत्री ने यह हमला किया.

पी चिदंबरम भी उतरे राहुल के बचाव में

इस के बचाव में शनिवार को पूर्व वित्तमंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की. चिदंबरम ने प्रेस कॉन्फ्रेस कर कहा, ‘1984 में कांग्रेस सत्ता में थी. उस वक्त एक बहुत ही भयानक घटना हुई थी, जिसके लिए मनमोहन सिंह ने संसद में माफी भी मांगी थी. आप उसके लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते हैं, वो उस वक्त बस 13-14 साल के थे. उन्होंने इसके लिए किसी का बचाव नहीं किया है.’

Sibling rivalry over prez post intensifies in DMK

 

The sibling rivalry in Dravida Munnetra Kazhagam (DMK) intensified with the official wing of party deciding to go ahead with plan to elevate M K Stalin, son of M Karunanidhi, the 50- years-long president of the party who died recently, and the estranged elder brother M K Alagiri upped the ante of revolt to a new level declaring a rally of his loyalists in Chennai on 5 September.

It is almost ensured that the DMK is going to elevate Stalin in the party’s general council meeting, called by its general secretary K Anbazhagan, on 28 August.

Party general secretary has included election of president and treasurer, along with audit committee’s report in the agenda for the event to be held at DMK headquarters Anna Arivalayam. As a prelude to the election of Stalin as the party’s head, district units and various wings of DMK have passed resolutions to the effect that they accept his leadership.

Stalin’s elevation to the president’s post is quite natural as he has been functioning as the working president of the party ever since his father and five-time chief minister Karunanidhi’s failing health kept him out of active politics.

In the course of making his younger son, Stalin, his heir, Karunanidhi expelled Alagiri, his elder son from the party four years ago citing anti-party activities.

Though Alagiri was keeping a low in the public life for the past few years and never criticised party organ, immediately after the demise of Karunanidhi he came out in open to revolt against Stalin while visiting his father’s grave days after the cremation.

According to political observers and some of the veteran journalist’s opinion, Alagiri will continue to be a headache for Stalin as he is still holding good influence in south Tamil Nadu. His rally will be the first step of upping the ante of rebellion to a new level after he staked claim to his father’s mantle at his grave at the Marina on 13 August, especially one of its kind to be organised in Chennai.

“The permission to hold a rally from Anna Statue has been sought from police and we hope to get it in a day or two. More than 75,000 people are expected tp to turn up,” said Alagiri. Though Alagiri claims that he is not holding the rally to prove his popularity, it is evident from the fact that the venue chosen for the rally is a pointer to Stalin.

And according to sources close to DMK, some of the senior leaders of the party had in touch with Alagiri and the probability of a heightened fight among the siblings is gaining ground. If elected as president of the party, Stalin will only be the second president of DMK which was founded by late Dravidian Starwalt C N Annadurai in 1949.

The sources close to party revealed that the former minister and the party’s principal secretary Durai Murugan will be elevated to the coveted post of treasurer, a decision which was pointed out by political observers as the immediate cause of Alagiri’s rebellion.

Meanwhile, Senior leaders of the DMK are confident there would be absolutely no opposition to Stalin taking over the party reins. Some of them even believe that the BJP at the centre is creating problems in the party.

Some of the political observers also are of the opinion that the degradation of Dravidian movement in the state is necessary for the BJP or any other party to gain grounds.

In tribute to Vajpayee, PM Modi walks the extra mile

Indian Prime Minister Narendra Modi (R) walks behind a truck pulling the coffin with the body of former Indian prime minister Atal Bihari Vajpayee during a funeral procession in New Delhi on August 17, 2018.
Three-time Indian prime minister Atal Bihari Vajpayee died August 16, sparking tributes from across the political spectrum as current leader Narendra Modi mourned the “irreplaceable loss” of the respected statesman.


In a rare gesture, Prime Minister Modi joined the sea of people who walked down from the BJP headquarters up to the Smriti Sthal, a distance of roughly 5km


He may not be a true follower of the style of politics that former Prime Minister Atal Bihari Vajpayee believed in, but Prime Minister Narendra Modi paid a rare tribute to the three-time BJP PM by covering his final journey on foot on Friday.

In a rare gesture, Prime Minister Modi joined the sea of people who walked down from the BJP headquarters up to the Smriti Sthal, a distance of roughly 5 km. By doing so, the Prime Minister set aside the protocol and apprehensions over his security. This was a silent gesture of PM Modi to show how much he loved and respected BJP stalwart AB Vajpayee

Prime Minister Narendra Modi paying his last respects to former prime minister Atal Bihari Vajpayee at the cremation ground in New Delhi on August 17, 2018.

Vajpayee’s funeral procession started from the BJP headquarters on the Deen Dayal Upadhyay Marg, and then took the Bahadur Shah Zaffar Marg, crossed Delhi Gate and Daryaganj, to take the Netaji Subhash Marg, before reaching Smriti Sthal at Shanti Van.

Social media was flooded with posts appreciating PM Modi’s gesture towards the former PM.