छत्तीसगढ़ में सीडी की बात सार्वजनिक होने से कांग्रेस नेताओं में हड़कंप


छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का नेतृत्व संकट गहरा गया है. पार्टी के दो बड़े नेताओं को लेकर विवाद हो गया है.


छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का नेतृत्व संकट गहरा गया है. पार्टी के दो बड़े नेताओं को लेकर विवाद हो गया है. विवाद की वजह सीडी है. जिसमें कांग्रेस के प्रदेश मुखिया और राज्य के प्रभारी पीएल पुनिया का नाम आ रहा है. पीएल पुनिया इस साल ही छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी बनाए गए थे. सीडी की बात सार्वजनिक होने से कांग्रेस नेताओं में हड़कंप है.

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को चुनाव की तैयारी में व्यस्त होना चाहिए. पार्टी किसी और वजह से परेशान है. छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ नेता दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं. ये नेता राहुल गांधी से मिलने के लिए इंतजार कर रहे हैं. सब अपनी बात राहुल गांधी को बताना चाहते हैं. एक खेमा स्टेट प्रेसिडेंट भूपेश बघेल और राज्य के प्रभारी पी एल पुनिया दोनों के खिलाफ है. एक खेमा पूरे प्रकरण के लिए भूपेश बघेल को ज़िम्मेदार बता रहा है. छत्तीसगढ़ में इस प्रकरण से कांग्रेस आलाकमान अंजान नहीं है.

छत्तीसगढ़ में सूत्रों के मुताबिक प्रदेश के प्रभारी पीएल पुनिया की कथित सीडी किन्हीं लोगों के पास है. सीडी में क्या है इसका खुलासा नहीं हो पा रहा है, लेकिन जिन लोगों के पास सीडी है, वो तीन विधानसभा सीट के लिए कांग्रेस से टिकट की मांग कर रहे हैं. जिसकी बातचीत का ऑडियो वायरल हो गया है. इस बातचीत का ऑडियो वायरल होने से कांग्रेस में हड़कंप मचा हुआ है. कांग्रेस के नेता परेशान है. राज्य में कांग्रेस का माहौल बन रहा था तभी सीडी कांड हो गया है.

बीजेपी आक्रामक

अभी तक बीजेपी बैकफुट पर थी फ्रंट फुट पर आ गई है. बीजेपी के नेता अमित शाह ने भी कांग्रेस को आड़े हाथ लिया है. उन्होंने आरोप लगाया है कि ये कांग्रेस का असली चरित्र है. बीजेपी को बैठे बिठाए कांग्रेस के खिलाफ मुद्दा मिल गया है. जिस हिसाब से बीजेपी ने मुद्दा उठाया है उससे साफ है कि कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई का बीजेपी लाभ लेना चाहती है.

पुनिया और भूपेश बघेल का किरदार

छत्तीसगढ़ में बताया जा रहा है कि पीएल पुनिया और भूपेश बघेल के बीच अनबन चल रही है. भूपेश बघेल को पुनिया के काम काज को लेकर ऐतराज था. तब से पुनिया को निबटाने की योजना बन रही थी. जिसमें बताया जा रहा है कि कांग्रेस के ही नेताओं ने साजिश के तहत प्रभारी पी.एल. पुनिया का स्टिंग कर दिया है. जिसके बाद सीट के लिए ब्लैकमेलिंग चल रही है.

एक ऑडियो वॉयरल हो रहा है जिसमें तीन सीटों को लेकर बातचीत करते हुए सुना जा सकता है. इस ऑडियो को अग्रेजी चैनल ने प्रसारित भी किया है. बताया जा रहा है कि प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल और पप्पू फरिश्ता की आवाज है. जिसकी पुष्टि नहीं हो पाई है.

पप्पू फरिश्ता, फिरोज सिद्दीकी और भूपेश बघेल

छत्तीसगढ़ में सीडी का कारोबार 2003 से चल रहा है. 2003 में तब के मुख्यमंत्री अजित जोगी का स्टिंग ऑपरेशन फिरोज सिद्दीकी ने किया था. जिसमें अजित जोगी बीजेपी के विधायक को कांग्रेस में आने का न्योता दे रहे थे. उस वक्त फिरोज अजित जोगी के करीबी थे. जिसमें पप्पू फरिश्ता का अहम रोल था. इस खुलासे के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सोनिया गांधी से शिकायत की थी. इस मामले में अजित जोगी को कांग्रेस ने निलंबित कर दिया था. तब से रमन सिंह की सरकार है.

बाद में ये दोनों व्यक्ति पप्पू फरिश्ता और फिरोज सिद्दीकी भूपेश बघेल के करीबी हो गए. अजित जोगी को राजनीतिक तौर पर कमजोर करने के लिए इन दोनों का भूपेश बघेल ने खूब इस्तेमाल किया. अजित जोगी कांग्रेस से बाहर हो गए हैं. लेकिन अब फिरोज सिद्दीकी ने दावा किया है कि भूपेश बघेल का स्टिंग उनके बंगले में ही किया गया है. पप्पू फरिश्ता और फिरोज दोनों पेशे से अपने को पत्रकार बताते हैं, लेकिन स्टिंग करने में माहिर हैं.

कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई सड़क पर

कांग्रेस के लगभग सभी नेता दिल्ली दरबार में पहुंच बनाने की जुगत में है. लीडर ऑफ अपोजिशन टी.एस. सिंह देव, पूर्व मुखिया रवींद्र चौबे, चरणदास महंत सभी अपनी बात रखने के लिए राहुल गांधी से मिल रहे हैं. कांग्रेस के सामने मुश्किल है कि चुनाव सिर पर है, पार्टी इस तरह के विवाद में उलझ गई है. सभी चाहते हैं कि आलाकमान जल्दी से फैसला लेकर चुनाव की तैयारी करे. सब को अपने भाग्य खुलने की उम्मीद है. हालांकि अपनी सफाई देने के लिए भूपेश बघेल भी दिल्ली में हैं.

डैमेज कंट्रोल मोड में कांग्रेस

कांग्रेस पूरे मसले पर डैमेज कंट्रोल मोड में है. पार्टी विवाद से बचने के लिए सभी विवादित लोगों के हटाने के लिए विचार कर रही है. ऐसे में चुनाव से ऐन पहले प्रदेश का नेतृत्व किसके हाथ में जाएगा ये बड़ा सवाल है. पूर्व में प्रदेश के मुखिया रहे चरणदास मंहत पर पार्टी फिर से भरोसा कर सकती है. वहीं प्रभारी के तौर पर फिलहाल मुकुल वासनिक या बीके हरिप्रसाद को भेजा जा सकता है. मुकुल वासनिक पिछले चुनाव में प्रदेश की देख-रेख कर रहे थे. बीके हरिप्रसाद कई साल तक राज्य के प्रभारी रह चुके हैं.

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को लग रहा था, इस बार सरकार बन सकती है. पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को भी उम्मीद थी. पहली बार बिना अजित जोगी के कांग्रेस चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही थी. अब तक हार का ठीकरा अजित जोगी पर फूटता रहा है. प्रदेश के नेता ये आरोप लगाते रहे कि अजित जोगी और रमन सिंह की मिलीभगत है, इसलिए कांग्रेस जीत नहीं पा रही है. हालांकि पार्टी के सीनियर नेता मोतीलाल वोरा भी इस प्रदेश से आते हैं. लेकिन जोगी और वोरा के बीच खाई गहरी थी. एक जमाने में अजित जोगी सोनिया गांधी के करीबी थे. छत्तीसगढ़ का पहला मुख्यमंत्री अजित जोगी को बनाया गया था लेकिन अपनी कार्यशैली की वजह से जोगी 2003 में चुनाव हार गए. तब से प्रदेश में बीजेपी का शासन है.

इस बार कांग्रेस बीजेपी के सीधे मुकाबले में थी. कांग्रेस को कामयाबी मिल सकती है लेकिन अजित जोगी काम खराब करने के लिए मुकाबले में हैं. अजित ने मायावती के साथ गठबंधन करके कांग्रेस के सामने दोहरी चुनौती पेश कर दी है. इधर कांग्रेस के नेताओं की सीडी की चर्चा भी शुरू हो गई है. जिससे कांग्रेस की किरकिरी हो रही है.

आखिर क्यूँ …


मध्य प्रदेश में मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है. छत्तीसगढ़ में अजित जोगी के साथ गठबंधन किया है. जहां तक राजस्थान की बात है पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गठबंधन के समर्थन में नहीं थे.


लखनऊ में इस साल जून में उत्तर प्रदेश के सीनियर मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य से मुलाकात हुई थी. ये मंत्री जी पहले बीएसपी में थे. अब बीजेपी में हैं. गठबंधन को लेकर बातचीत हो रही थी. उन्होंने कहा कि मायावती कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेंगी. मैंने कारण पूछा तो कहा कि मायावती को डर रहता है कि बीएसपी का वोट कांग्रेस में न चला जाए. मायावती कहती है कि पहले ये वोट कांग्रेस में ही था. जाहिर है कि तीन राज्यों के चुनाव में मायावती ने एकला चलो का नारा बुलंद किया है. स्वामी प्रसाद मौर्य की भविष्यवाणी सच साबित हुई है. मायावती ने ऐन मौके पर कांग्रेस को गच्चा दिया है. कुछ ऐसा ही अंदेशा बीएसपी से कांग्रेस में आए नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने भी किया था. ये लोग ऐसे है कि जिन्होंने मायावती के साथ कई दशक तक काम किया है. मायावती की राजनीति को अच्छी तरह समझते हैं.

राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस अकेले पड़ गई है. कांग्रेस को आस थी कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीएसपी के समर्थन से बीजेपी के पंद्रह साल के राज का अंत कर पाएंगे, लेकिन मध्य प्रदेश में मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है. छत्तीसगढ़ में अजित जोगी के साथ गठबंधन किया है. जहां तक राजस्थान की बात है पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गठबंधन के समर्थन में नहीं थे.

मायावती ने इस पूरे मामले में दिग्विजय सिंह पर ठीकरा फोड़ा है. मायावती ने आरोप लगाया है कि दिग्विजय बीजेपी के एजेंट हैं. जिसका कई ट्वीट के जरिए दिग्विजय सिंह ने खंडन किया है. दिग्विजय सिंह ने कहा कि वो मायावती का सम्मान करते हैं, वो चाहते थे कि मायावती के साथ गठबंधन हो जाए इसके अलावा दिग्विजय सिंह ने अपनी सफाई में कहा है कि वो नरेंद्र मोदी और अमित शाह के सबसे बड़े आलोचक हैं. जाहिर है कि दिग्विजय अपना बचाव कर रहे हैं लेकिन मायावती का इल्जाम बहुत हद तक सही नहीं है. कांग्रेस ने कोई लिस्ट जारी नहीं की है न ही अभी कोई फैसला हुआ है. जबकि प्रदेश की कमान संभाल रहे कमलनाथ गठबंधन के हिमायती हैं. ऐसा लग रहा है कि मायावती गठबंधन से निकलने की फिराक में थीं.

कांग्रेस को होगा नुकसान

कांग्रेस का ओवर कॉन्फिडेंस उसे ले डूबा है. कांग्रेस को लग रहा था कि मायावती गठबंधन के लिए ज्यादा बेकरार हैं इसलिए पार्टी आश्वस्त थी. लेकिन ये नहीं सोचा कि मायावती अलग तरह के फैसले लेने के लिए विख्यात हैं. कांग्रेस को लगा कि गठबंधन का मसला लटकाने से कांग्रेस को फायदा होगा लेकिन मायावती ने कुछ और सोच रखा था और नतीजा आपके सामने है. मायावती के इस फैसले से बीजेपी को फायदा होने की उम्मीद है. मायावती की बीएसपी का तकरीबन बीस सीट पर 30 से 35 हजार वोट है. जबकि मध्य प्रदेश में हर सीट पर 5 से 10 हजार वोट है. जो बीजेपी के खिलाफ एकजुट होता तो कांग्रेस को फायदा होता, लेकिन अब बंटने की सूरत में बीजेपी को फायदा हो सकता है. शिवराज सिंह चौहान के लिए राजनीतिक संजीवनी बन सकती है.

बीजेपी को नाराज नहीं करना चाहती

मायावती बीजेपी को नाराज नहीं करना चाहती है. मायावती को डर है कि उनके भाई पर शिंकजा कस सकता है. जिसकी वजह से फूंक-फूंक कर राजनीतिक फैसले कर रही हैं. मायावती इन चुनाव वाले राज्यों में मजबूत प्लेयर नहीं हैं लेकिन नाइटवॉचमैन की भूमिका में हैं. मायावती समझ रही हैं कि वैसे ही वो इन तीनों राज्यों में सरकार बनाने की स्थिति में नहीं हैं. कांग्रेस के साथ जाने में भी कोई राजनीतिक ताकत का इजाफा नहीं हो रहा है. इसलिए बीजेपी से दुश्मनी न करने में ही भलाई समझी है.

मायावती ने लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस को फिर उम्मीद बंधाई है. मायावती ने कहा कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी गठबंधन के हिमायत में थे. मायावती आम चुनाव में कांग्रेस के साथ संभावना बनाकर रखना चाहती हैं. आम चुनाव में हो सकता है कि बीजेपी के दबाव में न रहे. इसलिए कांग्रेस मायावती को कुछ भी कहने से बच रही है. दिग्विजय सिंह भी अपनी सफाई ही दे रहे हैं. मायावती पर पलटवार नहीं कर रहे हैं. कांग्रेस के साथ आगे किसी भी रिश्ते की संभावना से आगे इनकार नहीं किया जा सकता है.

अकेले चलना कांग्रेस के लिए मुफीद ?

कांग्रेस के लिए तीनों राज्यों में अकेले लड़ना ज्यादा फायदेमंद है. मायावती को खुश करने के लिए ज्यादा सीट देनी पड़ती जिससे कांग्रेस को ज्यादा नुकसान हो सकता था. ऐसी सीटों पर बागी उम्मीदवार के लड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता है. जिससे कांग्रेस को ही नुकसान होता, जिस तरह 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में हुआ था. इसके अलावा बीजेपी के खिलाफ आमने-सामने की लड़ाई में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ता अब त्रिकोणीय लड़ाई में कांग्रेस को फायदा हो सकता है.

कैसे चलेगा गठबंधन ?

कांग्रेस 2019 से पहले गठबंधन के मंसूबों पर पानी फिरता दिखाई पड़ रहा है. राज्यों के चुनाव में गठबंधन न कर पाना कांग्रेस की कमजोरी के तौर पर देखा जा रहा है. इसमें गठबंधन हो जाने से टेस्ट हो जाता और आगे इसमें सुधार की गुंजाइंश भी बनी रहती. अब नए सिरे से मेहनत करनी होगी जिस तरह राज्य के लीडर्स तेवर दिखा रहे हैं. उससे लग रहा है कि कांग्रेस के लिए आगे की राह आसान नहीं है.

ममता बनर्जी राहुल गांधी को लेकर सवाल खड़े कर रही है. शरद पवार अपनी बिसात बिछा रहे हैं. साउथ में भी हालात बहुत अच्छे नहीं है. कांग्रेस को नए सिरे से कवायद करने की जरूरत है.

 

कभी राहुल के राजनैतिक गुरु रहे दिग्गी राजा अब अपनी ही पार्टी में हाशिये पर


दिग्विजय खुद कहते हैं कि उनका नाम मध्य प्रदेश में जो भी सीएम के तौर पर ले रहा है, वो उनका और पार्टी का हितैषी नहीं हो सकता है. लेकिन दिग्विजय सिंह के ये बयान पूरी तरह राजनीतिक हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. परंतु पार्टी उन्हें खास तवज्जो दिखाई देती नहीं दिख रही है.


दिग्विजय सिंह अक्सर अपने बयानों के कारण चर्चा में रहते हैं. उनके बयान और विवाद का चोली दामन का रिश्ता रहा है. लेकिन अपने खास अंदाज में बात करने वाले दिग्विजय सिंह अपनी बातों को सामने रखने में तनिक भी संकोच नहीं करते. खासकर तब जब बीजेपी को किसी मसले पर घेरना हो तो ऐसा मौका गंवाना उन्हें गवारा नहीं है. वैसे हाल की गतिविधियों से पता चलता है कि कांग्रेस पार्टी उनसे किनारा करने लगी है. लेकिन ये दिग्विजय सिंह हैं, जो अपने एक के बाद दूसरे बयानों से मीडिया की सुर्खियां बटोरने में पिछड़ते नहीं हैं.

भले ही वो सोशल मीडिया में ट्रोल हों या फिर टीवी या अखबारों में उनके बयान को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया हो. लेकिन दिग्गी राजा सुर्खियों में न रहें ये ज्यादा दिन तक हो नहीं सकता. बीजेपी पर अटैक करने में वो कई बार जल्दबाजी दिखा चुके हैं.

इन दिनों वो सोशल मीडिया पर एक ट्वीट करने के चलते खूब चर्चा में हैं. इस ट्वीट में उन्होंने योगी आदित्यनाथ को यूपी में जर्जर हो रहे स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए आड़े हाथों लिया है. वैसे उन्होंने जिस फोटोग्राफ का चयन ट्वीट में किया है, उसमें एंबुलेंस के ऊपर तेलगु में शब्द लिखे हुए हैं. इस सच्चाई के सामने आने पर सोशल मीडिया में फेक फोटोग्राफ इस्तेमाल करने को लेकर उनकी खूब खिंचाई हो रही है.

लेकिन दिग्विजय सिंह कभी भी इसकी परवाह नहीं करते. वो कहते हैं कि मोदी, शाह, बीजेपी और संघ का विरोधी वो शुरू से रहे हैं. और आगे भी देश को तोड़ने वाली ताकतों के खिलाफ लड़ते रहेंगें. लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती ने उन्हें बीजेपी और आरएसएस का एजेंट करार देकर डिफेंसिव कर दिया है.

दरअसल मायावती ने यह आरोप लगा दिया है कि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं होने की वजह दिग्विजय सिंह हैं और वो आरएसएस और बीजेपी के एजेंट के रूप में कांग्रेस पार्टी के अंदर कार्य कर रहे हैं. इस बयान से तिलमिलाए दिग्विजय सिंह ने कहा कि वो हमेशा से कांग्रेस और बीएसपी गठबंधन के पक्षधर रहे हैं और वो मायावती का सम्मान करते हैं. वो राहुल गांधी को अपना नेता मानते हैं और कोई भी काम उनकी मर्जी के बगैर नहीं करते हैं.

दिग्विजय सिंह ने बीएसपी पर आरोप लगाते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में तालमेल करने में बीएसपी ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, वहीं मध्यप्रेदश में जब बात चल ही रही थी, उसी दरमियान बीएसपी ने अपने 22 उम्मीदवार घोषित कर दिए. इतना ही नहीं आरोप-प्रत्यारोप के दौर में दिग्विजय सिंह ने मायावती पर आरोप लगाया कि वो सीबीआई के डर से गठबंधन में शामिल नहीं हो रही हैं. जाहिर है इस बयान से तिलमिलाई मायावती ने गठबंधन नहीं होने का सारा ठीकरा दिग्विजय के मत्थे फोड़ा और उनके बहाने कांग्रेस को भी आड़े हाथों लिया.

कांग्रेस के भीतर भी हाशिए पर खड़े दिग्विजय सिंह

दिग्विजय सिंह अपने ऊपर लगे इन आरोपों का जवाब खुद को संघ और बीजेपी का धुर विरोधी बताते हुए देते हैं. जाहिर है सालों से बीजेपी के खिलाफ मुखर रहे दिग्विजय के ऊपर मायावती ने संघ और बीजेपी का एजेंट बताकर उनकी राजनीतिक साख की जड़ें हिलाने की कोशिश की है. जिसने दिग्गी राजा को थोड़ा डिफेंसिव कर दिया है.

वैसे इन दिनों दिग्विजय सिंह पार्टी के भीतर भी हाशिए पर दिखाई पड़ने लगे हैं. उन्हें पार्टी अध्यक्ष ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी में जगह न देकर सबको चौंका दिया है. पार्टी के इतने बड़े कद्दावर नेता को कांग्रेस के होर्डिंग और कट आउट में जगह नहीं दिया जा रहा है. भोपाल में संपन्न हुई रैली में पार्टी के पोस्टर में सिंधिया, कमलनाथ, और कांतिलाल भूरिया जैसे नेताओं को जगह दिया गया लेकिन दिग्विजय सिंह नदारद रहे. जाहिर है इसके बाद प्रदेश में उनकी अहमियत को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं.

वैसे दिग्विजय सिंह कांग्रेस के नेताओं में वो पहले शख्स हैं, जिन्होंने राहुल गांधी को नेतृत्व देने को लेकर सबसे पहले आवाज बुलंद करना शुरू किया था. माना जा रहा था कि राहुल राजनीतिक शह और मात का खेल दिग्विजय सिंह की देख रेख में सीख रहे थे. इतना ही नहीं भट्ठा परसौल में राहुल के किसान प्रेम को लेकर जो सुर्खियां बटोरी गई थी. उसका सारा क्रेडिट भी दिग्विजय सिंह ने ही लिया. लेकिन हाल के कई डेवलपमेंट पार्टी के भीतर उनकी कमजोर होती पकड़ को साफ बयां कर रही हैं.

ऐसे में दिग्विजय सिंह का नीतीश कुमार पर जोरदार हमला कई मायनों में अखबार की सुर्खियों से ज्यादा कुछ लग नहीं रहा है. दिग्विजय सिंह ने हाल के अपने बयान में नीतीश कुमार को सत्ता का भूखा करार दिया है, साथ ही ये भविष्यवाणी कर डाली है कि नीतीश लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए की हार के खतरे को भांप कर यूपीए गठबंधन में शामिल होंगे.

सवाल उनके इस बयान को लेकर गंभीरता का है. ये महज राजनीतिक है या फिर आने वाले समय में होने वाली राजनीतिक गोलबंदी की भविष्यवाणी. वैसे जानकार इसे राजनीतिक टीका टिप्पणी से ज्यादा कुछ खास तवज्जो नहीं देते हैं.

ऐसा इसलिए भी है क्योंकि कांग्रेस की वर्तमान टीम में दिग्विजय सिंह का रोल नीति निर्धारक के तौर पर तो बिल्कुल नहीं दिखता है. मध्य प्रदेश में 10 साल सीएम के पद पर कार्य कर चुके दिग्विजय सिंह के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ की जोड़ी भारी पड़ने लगी है. कभी नक्सल के ऊपर कांग्रेस सरकार के एक्शन की हवा निकाल देने वाले दिग्विजय सिंह के लिए उनकी अपनी छवि ही उन्हें भारी पड़ने लगी है.

गोवा में सरकार नहीं बनने का जिम्मेदार उन्हें ठहराया जा रहा है. उन पर आरोप था कि उनकी निष्क्रियता के चलते पार्टी सरकार बनाने से चूक गई. इतना ही नहीं उन पर बीजेपी के आगे झुक जाने का भी आरोप लगा क्यूंकि दिग्विजय वहां के प्रभारी थे. वैसे दिग्विजय खुद कहते हैं कि उनका नाम मध्य प्रदेश में जो भी सीएम के तौर पर ले रहा है, वो उनका और पार्टी का हितैषी नहीं हो सकता है. लेकिन दिग्विजय सिंह के ये बयान पूरी तरह राजनीतिक हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. परंतु पार्टी उन्हें खास तवज्जो दिखाई देती नहीं दिख रही है.

50, 000 करोड़ कि अनुमानित राशि के मालिक “दलित नेता” दलितों के लिए दो गज ज़मीन कि मांग कर बुरे फंसे.


50, 000 करोड़ कि अनुमानित राशि के मालिक “दलित नायक” दलितों के लिए दो गज ज़मीन कि मांग कर बुरे फंसे. 

अप्रैल 2018 का संसद भवन का वाकया आपकी नज़र:


जाति के नाम पर आरक्षण एक अभिशाप है। देश के विकास में बाधा डालनेवाले और देश में असमानता लाने वाले जातिवाद आरक्षण के वजह से आज भारत दुनिया में ही पिछड़ा हुआ देश है। अपने राजनैतिक मुनाफे के लिए आरक्षण का उपयॊग करने वाले नेता गण वास्तव में संविधान और अंबेडकर जी का अपमान कर रहे हैं। खुद अंबेडकर जी ने कहा था की जाति के आधार पर आरक्षण केवल दस साल के लिए ही रहना चाहिए और जो दलित आरक्षण का लाभ उठाकर सक्षम होता है उसे दूसरॊं की सहायता करना चाहिए तांकि  उसका भी उत्थान हो।

लेकिन कांग्रेस पिछले 60 साल से देश के साथ गद्दारी कर रही है और आज भी जाति के नाम पर न केवल वॊट मांग रही है अपितु एक दूसरों को लड़वा भी रही है। कांग्रेस के दलित नायक मल्लिकार्जुन जो हमेशा मोदी सरकार पर निशाना साधते हैं, उनकी संपत्ति के बारे में जानेंगे तो आपके हॊश उड़ जाएंगे।

खड्गे ने प्रधानमंत्री मोदी जी के सामने हाथ जोड़ते हुए, आखों में आँसू लाते हुए गिड गिडाया था और कहा था ” इस देश में दलितों को दो गज ज़मीन दे दीजिए तांकि वे भी गौरव से अपना जीवन यापन कर सके”

 

उसी जगह पर मात्र 15 मिनिट के अंदर मॊदी ने खड्गे के सामने उनके संपत्ति से जुड़ा दस्तावेज़ दिखाया और सारा कच्चा चिटठा खॊल दिया। उस दस्तावेज़ के अनुसार ‘दलित नायक’ की संपत्ति का ब्यॊरा कुछ इस प्रकार है:

पीएम मोदी ने दिया राहुल-खड़गे को करारा जवाब, बेनामी संपत्ति पर ‘चेतावनी’

कर्नाटक के बन्नेरघट्टा रॊड में 500 करोड़ का एक बड़ा कांपलेक्स खड्गे के नाम पर है।
चिक्कमगलूरु ज़िले में 300 एकड़ काफी एस्टेट जिसकी कुल कीमत करीब 1000 करोड़ रुपये हैं।
चिक्कमगलूरु ज़िले में ही एक घर है जिसकी कीमत 50 करोड़ है।
बेंगलूरु के केंगेरी में 40 एकड़ की फार्म हाऊस है।
बेंगलूरु के एम.एस.रामय्या कॉलेज के पास इनके नाम पर एक इमारत है जिसकी कीमत 25 करोड़ रूपए हैं।
बेंगलूरु के ही आर. टि. नगर में एक बड़ा बंगला है।
बल्लारी रॊड में 17 एकड़ ज़मीन है।
बेंगलूरु के इंद्रा नगर में तीन मंजिला बंगला है ।
बेंगलूरु के सदाशिव नगर में दो और बंगले इनके नाम पर है।

इसके अलावा इनके और इनके रिश्तेदारों के नाम पर देश के महा नगर जैसे मैसूरु, गुलबर्गा, चेन्नई, गॊवा, पूना, नागपुर, मुम्बई और देश की राजधानी दिल्ली तक में रियल एस्टेट कि संपत्ति है जो 1000 करोड़ रुपए की कीमत की है। खडग देश की जनता को उल्लू समझते होगें कि वे जानते नहीं कि दलित -दलित का नाम जप कर खड्गे ने इतनी संपत्ती कहां से और कैसे बनाई। कुल मिलाकर खड्गे के पास 50,000 करोड़ से भी ज्यादा की संपत्ति है। 1980 से रेवेन्यू मिनिस्टर रह चुके खड्गे ने SC बेकलोग उद्योग की चयन प्रक्रिया में भी खूब घॊटाला किया है और अपने अधिकारॊं का दुरुपयॊग करते हुए खूब पैसा ऐंठा है।

दलितों का नाम इस्तेमाल कर के कांग्रेस के दलित नायक खड्गे ने देश का पैसा लूटा है। अगर खड्गे को दलितों से इतना ही प्यार है तो वो अपनी सारी संपत्ति गरीब दलितों को दे और उनका उद्धार करे किसी को इससे कॊई आपत्ति नहीं लेकिन दलित कार्ड का उपयॊग कर मॊदी सरकार को बदनाम करने का काम ना ही करे तो उनके लिए ही अच्छा है।

भाजपा के कुत्तों ने भी देश कि आज़ादी में कोई बलिदान नहीं दिया: खड्गे


21 जुलाई 1942 को नितांत गरीब और दलित परिवार में जन्मे खड़गे ने 1969 में कांग्रेस ज्वाइन की और उनके परिवार का भी देश कि आज़ादी से कोई लेना देना नहीं.

खड्गे पैदा ज़रूर एक गरीब परिवार में हुए पर सूत्रों कि मानें तो उनके अकूत दौलत का अनुमान लगाना बहुत ही मुश्किल है. सूत्रों के अनुसार आज वह खरबों पति हैं.

शायद कांग्रेसी कुत्ता शब्द का प्रयोग निर्विवादित ढंग से करते हैं.


देश के 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा और वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर विभिन्न दलों के नेताओं के बयान अब तीखे होते नजर आ रहे हैं. आरोप-प्रत्यारोप लगाने का सिलसिला तेजी से शुरू हो गया है. इसी क्रम में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने बीते गुरुवार को बीजेपी और आरएसएस को निशाने पर लिया. खड़गे ने महाराष्ट्र में एक रैली को संबोधित करते हुए बीजेपी और आरएसएस के ऊपर तीखा हमला किया.

कांग्रेस ने देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया

कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि देश की आजादी के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और बीजेपी के नेताओं के घर के एक कुत्ते ने भी अपना बलिदान नहीं दिया है. कांग्रेस महासचिव खड़गे महाराष्ट्र के जलगांव जिले में पार्टी की जन संघर्ष यात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत के लिए आयोजित एक रैली को यहां संबोधित कर रहे थे. खड़गे ने कहा- ‘हम लोगों (कांग्रेस) ने देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया है. इंदिरा गांधी ने देश की एकता- अखंडता के लिए बलिदान दिया. राजीव गांधी ने देश के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया. मुझे बताइए कि देश की आजादी के लिए भाजपा और संघ (नेताओं) के घर का एक कुत्ता भी कुर्बान हुआ है.’

बीजेपी पर संविधान के साथ छेड़छाड़ करने का लगाया आरोप

खड़गे ने पूछा- ‘हमें बताइए देश की आजादी के लिए आपके कौन से लोग जेल गए हैं.’  रैली में अपने संबोधन के दौरान खड़गे ने बीजेपी के ऊपर संविधान के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी उनके मंसूबे को कामयाब नहीं होने देगी. कांग्रेस के नेता इसके लिए अपनी आखिरी सांस तक लड़ेंगे. आपको बता दें कि केंद्र समेत देश के 20 से ज्यादा राज्यों में बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस पार्टी के कई नेता पहले भी इस तरह का बयान देते रहे हैं. कांग्रेस के दिग्गज नेता मणिशंकर अय्यर हों या सांसद शशि थरूर, कई नेताओं ने इससे पहले भी बीजेपी नेताओं के खिलाफ तीखे और विवादित बयान दिए हैं.

घटी में भाजपा के 13 उम्मीदवारों की निर्विरोध जीत के साथ ही निकाय पर पार्टी का नियंत्रण पक्का हो गया है.


शोपियां जिले के स्थानीय निकाय में बीजेपी के 13 उम्मीदवारों की निर्विरोध जीत के साथ ही निकाय पर पार्टी का नियंत्रण पक्का हो गया है


दक्षिण कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित शोपियां जिले के स्थानीय निकाय में बीजेपी के 13 उम्मीदवारों की निर्विरोध जीत के साथ ही निकाय पर पार्टी का नियंत्रण पक्का हो गया है.

राज्य के प्रमुख दलों नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने संविधान के अनुच्छेद 35ए को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने के मद्देनजर चुनाव का बहिष्कार किया है और आतंकवादी समूहों की धकमियों के कारण अन्य लोग भी चुनावी प्रक्रिया से दूरी बनाए हुए हैं.

सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच तमाम मुठभेड़ों के साक्षी रहे शोपियां जिला में 17 सदस्यीय स्थानीय निकाय हैं. इनमें से बीजेपी ने 13 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे जबकि चार सीटों पर किसी ने नामांकन नहीं भरा.

इससे पहले चुनाव अधिकारियों ने बुधवार को बताया था कि, शोपियां नगर समिति के 13 वार्ड के लिए हमें सिर्फ एक-एक नामांकन मिला है जबकि चार अन्य पर किसी ने नामांकन नहीं भरा है.

जीत पर क्या बोली भाजपा

राज्य बीजेपी ने इसे ‘ऐतिहासिक जीत’बताया है. जम्मू-कश्मीर बीजेपी प्रमुख रविंद्र रैना ने कहा ‘हमारा लक्ष्य सभी का विकास है और सभी लोगों के साथ न्याय करेंगे. हम बहुत खुश हैं.’

बीजेपी नेता रैना ने नेकां और पीडीपी पर निशाना साधते हुए कहा कि शहरी स्थानीय निकाय चुनावों का बहिष्कार कर दोनों दलों ने ‘लोकतांत्रिक प्रक्रिया का मजाक’ बनाया है.

यह पूछने पर कि क्या शोपियां से जीतने वाले उम्मीदवारों में कोई कश्मीरी पंडित भी है, रैना ने कहा, सभी 13 लोग स्थानीय मुसलमान हैं

उत्पाद शुल्क के नाम पर मोदी ने 13 लाख करोड़ लूटे: सुरजेवाला


कांग्रेस का मानना है कि टैक्स मोदी के जेब में जाते है.

सरकार ने रूपये 2.50 कि कटौती कि है, और राज्य सरकारों से भी उम्मीद जताई है कि वह भी 2.50 रूपये की कटौती करें कुल मिला कर उपभोक्ता को 5 रूपये कि राहत मिले. कांग्रेस शासित राज्य इस पर क्या फैसला लेंगे इस पर सुरजेवाला मौन हैं. 

कांग्रेस ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने हजारों घाव देने के बाद अब बैंडएड लगाया है और जनता को बेवकूफ बनाने की कोशिश की है.


सरकार के जरिए पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 2.50 रुपए प्रति लीटर की कटौती किए जाने पर कांग्रेस ने दावा किया कि आगामी विधानसभा चुनाव में हार सामने देखकर और जनता की भारी नाराजगी की वजह से नरेंद्र मोदी सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों के दाम में नाममात्र कमी की है. पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने हजारों घाव देने के बाद अब बैंडएड लगाया है और जनता को बेवकूफ बनाने की कोशिश की है. पार्टी का कहना है कि 29 देशों को सस्ता पेट्रोल और डीजल क्यों बेच रहे हैं?

कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, ‘पांच राज्यों में चुनावी हार को सामने देख और जनता के भयंकर गुस्से से घबराकर मोदी सरकार ने मामूली मात्रा में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में उत्पाद शुल्क कम करने की घोषणा की. मोदी जी आप जनता का बेवकूफ अब नहीं बना सकते. आपको पेट्रोल-डीजल की लूट पर जवाब देना पड़ेगा.’ उन्होंने सवाल किया, ‘पिछले 52 महीने में मोदी सरकार ने केंद्रीय उत्पाद शुल्क के नाम पर देश की जनता की जेब काटकर 13 लाख करोड़ क्यों लूटा? उत्पाद शुल्क में 52 महीने में 12 बार इजाफा क्यों किया?’

सुरजेवाला ने कहा, ‘मोदी जी और जेटली जी, क्या आप भूल गए कि कच्चे तेल की कीमत कांग्रेस सरकार में औसतन 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक रही. 2008 में जब कांग्रेस की सरकार थी और जब आप गैस सिलेंडर और पेट्रोल पंप पर विरोध करते थे तो कच्चे तेल की कीमत 147 डॉलर प्रति बैरल तक गई. आज तो 86 डॉलर पहली बार पहुंची है और आप आज ही दुहाई दे रहे हैं.’ उन्होंने कहा, ‘जब 107 डॉलर कच्चे तेल की कीमत थी तो पेट्रोल की कीमत 71 रुपया 41 पैसे प्रति लीटर थी और डीजल की कीमत 55 रुपया 49 पैसे लीटर थी, जो आज क्रमश: 84 रुपया और 75 रुपया को पार कर गई है. इसका जवाब कब देंगे?’

सुरजेवाला ने कहा, ‘मोदी जी ये जवाब देना पड़ेगा कि जहां आप भारत के लोगों के ऊपर अनाप-शनाप पेट्रोल और डीजल की कीमतों का बोझ डाल रहे हैं, आप 29 देशों को सस्ता पेट्रोल और डीजल क्यों बेच रहे हैं?’ उन्होंने कहा, ‘मई, 2014 में गैस सिलेंडर 414 रुपए का था और मोदी सरकार में इसे 879 रुपए का कर दिया गया. इसका मतलब यह है कि 52 महीने में 414 रुपए का सिलेंडर 879 रुपए का किया है, 465 रुपए का इजाफा. 465 रुपये 52 महीने में बढ़ा दिए, 112 प्रतिशत से भी अधिक कीमतों में इजाफा.’

व्यवस्था के तहत कटौती

सरकार ने पेट्रोल-डीजल की कीमतों में एक व्यवस्था के तहत 2.50 रुपए प्रति लीटर कटौती की घोषणा की. इसमें 1.50 रुपए की कमी उत्पाद शुल्क में कटौती से हुई है, जबकि पेट्रोलियम का खुदरा कारोबार करने वाली सरकारी कंपनियों को एक रुपए प्रति लीटर का बोझ वहन करने के लिए कहा गया है.

BSP से गठबंधन न होने से कांग्रेस पर नहीं पड़ेगा असर: कमलनाथ


मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा कि मायावती ऐसी 50 सीटें मांग रहीं थीं जहां उनके वोट न के बराबर है, ऐसे में इससे कांग्रेस को ही नुकसान होता


मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा है कि बीएसपी के साथ गठबंधन नहीं होने से हमारी पार्टी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, हमारी तैयारी पूरी है. पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि समाजवादी पार्टी (एसपी) से हमारी बातचीत चल रही है और हो सकता है कि कांग्रेस-एसपी का गठबंधन राज्य में देखने को मिले.

कमलनाथ ने कहा कि बहुजन समाजवादी पार्टी (बीएसपी) उन सीटों की मांग कर रही थी जहां उसका वोट बैंक लगभग न के बराबर है. उन्होंने कहा कि मायावती की पार्टी ऐसी लगभग 50 सीटों की मांग कर रही थी. ऐसी सीटें उन्हें देने से कांग्रेस को बड़ा नुकसान होता और इसका सीधा लाभ बीजेपी को मिलता.

बीएसपी से मध्य प्रदेश में गठबंधन नहीं हो पाने और मायावती के आरोप पर कमलनाथ ने यह जरूर कहा कि वो दिग्विजय सिंह से पूछेंगे कि उन्होंने ऐसा क्या कहा था. कमलनाथ ने साफ किया कि गठबंधन नहीं होने से कांग्रेस पर कोई असर नहीं पड़ने वाला और राज्य की जनता समझदार है. वो सोच-समझकर फैसला लेगी.



राज्य में कांग्रेस-एसपी गठबंधन को लेकर मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि मैंने कुछ दिन पहले ही अखिलेश यादव से बात की थी. हमारी बातचीत जारी है.

बुधवार को बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कहा था कि दिग्विजय सिंह जो बीजेपी के एजेंट हैं. उन्होंने स्टेटमेंट दिया है कि मायावती को केंद्र की तरफ से प्रेशर है इसलिए वह गठबंधन करना नहीं चाहतीं. यह निराधार है. दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेसी नेता नहीं चाहते कि कांग्रेस-बीएसपी का गठबंधन हो. वह सीबीआई, ईडी की तरह डरे हुए हैं.

वहीं मायावती के आरोपों को खारिज करते हुए दिग्विजय सिंह ने कहा कि मैं पहले ही साफ कर चुका हूं कि मैं मायावती का सम्मान करता हूं. मैं कांग्रेस और बीएसपी के बीच गठबंधन का समर्थक हूं. छत्तीसगढ़ में गठबंधन को लेकर बात हो रही थी लेकिन वो (मायावती) इसके लिए तैयार नहीं हुईं. मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस और बीएसपी के बीच गठबंधन को लेकर बातचीत चल रही थी लेकिन यहां उन्होंने 22 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया.

माया मोह से परे कांग्रेस भाजपा कि राह आसान करती हुई


बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने साफ कर दिया है, ‘कांग्रेस पार्टी के रवैये को देखते हुए अब हमारी पार्टी कांग्रेस पार्टी के साथ किसी भी कीमत पर मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी.’


बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने साफ कर दिया है, ‘कांग्रेस पार्टी के रवैये को देखते हुए अब हमारी पार्टी कांग्रेस पार्टी के साथ किसी भी कीमत पर मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी.’ पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले बीएसपी सुप्रीमो मायावती का यह ऐलान सियासी हलचल मचाने वाला है. हलचल विपक्षी खेमे में कहीं ज्यादा है, क्योंकि इस ऐलान के बाद बीएसपी ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में कांग्रेस के साथ किसी भी सहमति की संभावना को सिरे से खारिज कर दिया है.

लेकिन, इस ऐलान का मतलब सिर्फ विधानसभा चुनावों तक ही नहीं है. मायावती के इस ऐलान में दिख रही तल्खी से साफ है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भी वो कांग्रेस को पटखनी देने की पूरी कोशिश करेंगी यानी यूपी में भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावना भी अब खत्म हो गई है.

मायावती की गुगली से कांग्रेस चित

 

मायावती ने कांग्रेस पर उनकी पार्टी बीएसपी को खत्म करने का आरोप लगाया है. उनके मुताबिक, कांग्रेस पार्टी के नेताओं के रवैये से लगता है कि वे लोग बीजेपी को सत्ता से हटाने के लिए गंभीर होने के बजाए, बीएसपी को ही खत्म करने में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं. मायावती का आरोप है कि बदनामी मोल लेने के बावजूद भी बीएसपी ने बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस का साथ दिया लेकिन, बदले में कांग्रेस ने बीजेपी की तरह ही हमेशा दगा दिया है और पीठ में छुरा घोंपने का काम किया है.

मायावती के हमले में कांग्रेस को चारों खाने चित करने की तैयारी है क्योंकि जो कांग्रेस बीजेपी पर जातिवादी और साम्प्रदायिक होने का आरोप लगाती रही है, अब मायावती ने सीधे कांग्रेस पर भी वही आरोप लगा दिए हैं.

बीएसपी सुप्रीमो मायावती की तरफ से किया गया कांग्रेस पर वार बीजेपी के लिए राहत है, कांग्रेस के लिए बाधक है, जबकि, खुद बीएसपी सुप्रीमो मायावती के लिए एक अगले लोकसभा चुनाव से पहले खुल कर खेलने का मौका है, यानी बंधन मुक्त मायावती जो कि आने वाले दिनों में अपने हिसाब से सौदा भी कर सकें और हालात के हिसाब से सियासी गोटी भी फिट कर सकें.

बीजेपी के लिए राहत

बात पहले बीजेपी की करें तो पार्टी मायावती के इस कदम से राहत की सांस ले रही है. कम-से-कम उन प्रदेशों में बीजेपी के लिए फिलहाल राहत है जहां कांग्रेस के साथ उसकी सीधी टक्कर है. मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी सत्ता में है और विधानसभा चुनाव में उसे एक साथ कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

एंटीइंकंबेंसी फैक्टर के अलावा एससी-एसटी एक्ट के विरोध में बीजेपी के परंपरागत वोटर रहे सवर्ण समाज के विरोध ने पार्टी को परेशान कर दिया है. ऐसे वक्त में कांग्रेस के साथ बीएसपी के गठबंधन से पूरा का पूरा माहौल बदल सकता था. लेकिन, ऐसा हो न सका. बीजेपी के लिए यह राहत भरी बात है. तीसरी ताकत के तौर पर मायावती का मैदान में उतरना इन राज्यों में बीजेपी को फायदा पहुंचाने वाला रहेगा.

2013 के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में बीएसपी को 6.29 फीसदी, छत्तीसगढ़ में 4.30 फीसदी जबकि राजस्थान में 3.40 फीसदी था. ऐसे में कांग्रेस के साथ बीएसपी का वोट प्रतिशत जुड़ जाने पर यह आंकड़ा बीजेपी के लिए परेशान कर सकता था. खासतौर से छत्तीसगढ़ में और भी ज्यादा परेशानी हो सकती थी जहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच वोट प्रतिशत का अंतर महज एक से डेढ़ फीसदी का ही रहा था.

महागठबंधन की कोशिशों को झटका

बात अगर कांग्रेस की करें तो कांग्रेस के लिए अब मायावती का रुख बड़ा बाधक बन सकता है. खासतौर से कांग्रेस ने जिस तरह महागठबंधन बनाने के लिए विपक्षी एकता की बात की थी, उससे देश भर में एक माहौल बनाने की कोशिश हो रही थी. यह कोशिश बीजेपी विरोधी सभी दलों को साथ रखकर चलने की थी. लेकिन, मायावती ने कांग्रेस की इन सभी उम्मीदों पर फिलहाल पानी फेर दिया है.

कांग्रेस के लिहाज से यूपी में एसपी-बीएसपी के साथ गठबंधन करना ज्यादा जरूरी था. लेकिन, न ही मायावती और न ही अखिलेश यादव की तरफ से कांग्रेस को लेकर उत्साह दिखाया जा रहा है. कांग्रेस अगर यूपी में महागठबंधन नहीं बना पाई तो फिर लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता की उसकी कोशिश परवान नहीं चढ़ पाएगी. मायावती की गुगली से कांग्रेस इस वक्त बुरी तरह से फंस गई है, क्योंकि कांग्रेस के ही जातिवादी-साम्प्रदायिक तीर से मायावती ने उसे घेर दिया है.

मायावती 

अब, बात मायावती की करें तो वो कांग्रेस पर पूरी तरह से ठीकरा फोड़ रही हैं. मायावती को पता है कि उनपर सीबीआई और ईडी जैसी जांच एजेंसियों के डर से कांग्रेस से दूर रहने के का आरोप लगेगा. कांग्रेस इन आरोपों को लगाकर बीजेपी के साथ मायावती की मिली-भगत का आरोप लगाएगी, लिहाजा, पहले से ही कांग्रेस पर उनका प्रहार शुरू हो गया है.

लेकिन, हकीकत यही है कि मायावती ने बड़ा सियासी दांव खेला है. मायावती ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव में अपनी उपेक्षा के बहाने कांग्रेस को कायदे से किनारे लगा दिया है. मायावती को इन राज्यों के विधानसभा चुनावों से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. लेकिन, यूपी में लोकसभा चुनाव से पहले उनकी तरफ से जो दांव खेला गया है, उससे कांग्रेस खेमे में हड़कंप है. अगर एसपी के साथ बीएसपी का गठबंधन बन भी जाता है तो उस हालात में चुनाव बाद भी मायावती अलग अपना फैसला लेने के लिए स्वतंत्र होगी. लेकिन, चुनाव से पहले गठबंधन बनने से मायावती के लिए गठबंधन का ठप्पा लगा रहेगा जिससे बीएसपी के मुकाबले फायदा कांग्रेस को ही होगा.

 

 

6 अक्टूबर को होगा “व्यापारी सम्मेलन” : विजय बंसल

विजय बंसल और साथियों की फाइल फोटो

 

कालका विधानसभा के व्यापारी व उद्योगपति करेगे शिरकत
अखिल भारतीय उद्योग व्यापार सुरक्षा मंच के बैनर तले होगा आयोजन

पिंजोर/कालका:

अखिल भारतीय उद्योग व्यापार सुरक्षा मंच द्वारा कालका विधानसभा व्यापारी सम्मेलन का आयोजन 6 अक्टूबर को होटल क्लासिक रेसीडेंसी पिंजोर में व्यापारियों,उद्योगपतियों व प्रोफेशनल्स के लिए प्रातः 10 बजे किया जाना है जिसमें हरियाणा व्यापारी कल्याण बोर्ड के चेयरमेन व अखिल भारतीय व्यापार उद्योग सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय मुख्य संयोजक गोपाल शरण गर्ग व राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रमोद मित्तल बतौर मुख्यअतिथि पहुंचेगे,राष्ट्रीय संगठन मंत्री विजय बंसल कार्यक्रम की अध्यक्षता करेगे इसके साथ ही कुलभूषण गोयल व प्रदीप गोयल विशेष अतिथि के रूप में कार्यक्रम में पहुंचेगे।
कालका विधानसभा व्यापारी सम्मेलन के मद्देनजर पिंजोर-कालका के व्यापारियों व उद्योगपतियों ने तैयारियां शुरू करदी है जिसे लेकर गत दिनों एक निजी होटल में बैठक भी हुई था। वेद गर्ग (राघव टिम्बर)अध्यक्ष ,अखिल भारतीय उद्योग व्यापार सुरक्षा मंच कालका विधानसभा इकाई ने बताया 6 अक्टूबर को होने वाले व्यापारी सम्मेलन में कालका,पिंजोर,मोरनी,रायतन व दून क्षेत्र के व्यापारी तथा उद्योगपति पहुंचेगे,इसके साथ ही वेद ने क्षेत्र के उद्योगपति व व्यापारियों को कार्यक्रम में पहुंचने के लिए निमंत्रण भी दिया।इस सम्मेलन में व्यापारियों व उद्योगपतियों के उत्थान के लिए विभिन्न योजनाओं के बारे विचार विमर्श किया जाएगा।इस क्षेत्र में व्यापारियों व उद्योगपतियों के लिए काफी अर्से बाद किसी सम्मेलन का आयोजन हो रहा है जिसे लेकर व्यापारी व उद्योगपतियों में उत्साह है।इस कार्यक्रम की पहल विजय बंसल जी ने करी है जिसको लेकर व्यापारी व उद्योगपतियों ने सराहना करी है।
प्रेस वार्ता के दौरान राष्ट्रीय संगठन मंत्री विजय बन्सल के साथ साथ शमिंदर गर्ग,वेद गर्ग,दीपांशु बन्सल,रोबिन जैन,धर्मपाल अग्रवाल ,मुनीश अग्रवाल,रोहित गर्ग,अजय कुमार आदि व्यापारी व उद्योगपतियों ने सम्बोधित किया।