Mayavati Supported Congress unconditionally but with heavy heart

BSP Supreemo Mayawati addressing press conference at her official residence in Lucknow 


  • ‘apne dil par patthar rakhkar’, much against their wishes, they voted for the Congress after seeing it as the main contender for power

  • To prevent the BJP from sticking to power, she said her party was extending the support to the Congress in government formation in Rajasthan and Madhya Pradesh


BSP supremo Mayawati on Wednesday said that people voted for the Congress much against their wishes because they saw it as the prime challenger to the BJP in Madhya Pradesh, Chhattisgarh, and Rajasthan.

Mayawati told the media that this was unfortunate as the poor, Dalits, marginalized and religious minorities had suffered during the past governments of the Congress.

“So, ‘apne dil par patthar rakhkar’, much against their wishes, they voted for the Congress after seeing it as the main contender for power.”

Charging the Congress with ignoring the path shown by Dalit icon BR Ambedkar, Mayawati said it was because of this that people from the Dalit community had to float parties of their own and even the BJP flourished due to the wrong policies of the Congress.

She admitted that despite the best efforts and hard work of its cadres, the elections in the three states were not that positive to the Bahujan Samaj Party.

But she said the voters in Rajasthan, Chhattisgarh and Madhya Pradesh had given “a befitting reply to the anti-people policies” pursued by the Bharatiya Janata Party (BJP) governments, she said in a statement.

To prevent the BJP from sticking to power, she said her party was extending the support to the Congress in government formation in Rajasthan and Madhya Pradesh.

किसानों की कर्ज़ माफी पर भाजपा रखेगी पैनी नज़र


कांग्रेस के सामने सरकार बनाने के बाद 10 दिनों में चुनावी वादों को पूरा करने की चुनौती है और ये वादा किसी और ने नहीं बल्कि खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने किया है 

कांग्रेस शासित राज्यों में  अगर चुनावी वादे पूरे नहीं होते हैं तो बीजेपी इसका इस्तेमाल सत्ता विरोधी लहर के रूप में कर सकती है


कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पुरजोर भरोसे के साथ कह रहे हैं कि जिस तरह बीजेपी को अभी हराया है उसी तरह साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी हराएंगे. कांग्रेस के आत्मविश्वास को संदेह से अब देखा नहीं जा सकता है क्योंकि चुनावी नतीजे गवाह हैं कि कांग्रेस ने किस तेजी से बीजेपी के खिलाफ तीन राज्यों में माहौल बदला. ये नतीजे लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी के लिए खतरे की घंटी हैं.

लेकिन तीन राज्यों में मिली जीत के बावजूद कांग्रेस अपने ही बनाए चक्रव्यूह में फंस सकती है. क्योंकि कांग्रेस ने बीजेपी को हराने के लिए जिन मुद्दों और वादों का इस्तेमाल किया वही तीन महीने बाद उसके सामने मुंह खोल कर खड़े होंगे. कांग्रेस के सामने सरकार बनाने के बाद 10 दिनों में चुनावी वादों को पूरा करने की चुनौती है. ये वादा किसी और ने नहीं बल्कि खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने किया है.

दस दिनों में कर्ज नहीं किया माफ तो ग्यारहवें दिन बदल देंगे सीएम

बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एक बार कहा था कि बीजेपी को उम्मीद नहीं थी कि बड़े-बड़े वादे करने के बाद वो सत्ता में भी आ जाएगी. शायद कांग्रेस को भी उम्मीद नहीं होगी कि उसके चुनावी वादे उसे सत्ता पर काबिज कर देंगे. तभी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि तीन राज्यों में मिली जीत से कांग्रेस पर बड़ी जिम्मेदारी आई है. उनके इशारे को कर्जमाफी का वादा माना जा सकता है.

राहुल ने अपनी रैलियों में जगह-जगह ऐलान किया था कि राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने पर दस दिनों में किसानों का कर्ज माफ कर दिया जाएगा वर्ना ग्यारहवें दिन सीएम बदल दिया जाएगा. अब कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने चुनावी वादे को पूरा करने की है क्योंकि कहीं ये वादे अधूरे छूटने पर  3 महीनों के भीतर ही सत्ता विरोधी लहर में न बदल जाएं.

बीजेपी को अब उन राज्यों में सतर्क रहने की जरूरत है जो 15 साल से उसके गढ़ थे. मध्यप्रदेश की 29, छत्तीसगढ़ की 11 और राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों को जीतने के लिए नए समीकरण बनाने की जरूरत है क्योंकि जो मुद्दे विधानसभा चुनाव में हावी रहे वो ही लोकसभा चुनाव में भी हुंकार भरेंगे.

ऐसे में कर्जमाफी जैसे दूसरे वादे पूरा न कर पाने पर साल 2019 के लोकसभा चुनाव में इन राज्यों में कांग्रेस के खिलाफ ही सत्ता विरोधी लहर चल सकती है. जो लुभावने वादे कर कांग्रेस सत्ता में आई है अब वही वादे बीजेपी के लिए साल 2019 में माहौल बदलने के काम आ सकते हैं.

क्या कांग्रेस की जीत से बीजेपी को होगा फायदा?

कांग्रेस इस जीत से बेहद उत्साहित है. लेकिन बीजेपी के लिए राज्य की सत्ता से लोकसभा चुनाव से तीन-चार महीने पहले हटने के दूरगामी फायदे भी हो सकते हैं. बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने नतीजों पर कहा कि जनता ने दिल पर पत्थर रखकर कांग्रेस को वोट दिया. मायावती के बयान से क्या माना जाए कि जनता ने बीजेपी की राज्य सरकारों के प्रति गुस्से को कांग्रेस को वोट देकर निकाल बाहर कर दिया? अगर ये गुस्सा पंद्रह साल में उपजा तो फिर वोट शेयर में भारी गिरावट क्यों नहीं हुई.

मध्यप्रदेश में बीजेपी को 41 फीसदी वोट मिले जबकि कांग्रेस को 40.9 फीसदी. इसी तरह राजस्थान में भी बीजेपी को सत्ता विरोधी लहर के बावजूद 73 सीटें मिलीं. ये साफ संकेत है कि साल 2019 में इन राज्यों में वापसी के लिए बीजेपी के पास अभी कई मौके बाकी हैं.

हालांकि, साल 2019 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी के सामने इस बार चुनौती ज्यादा है. न सिर्फ पांच साल सरकार के कामकाज का हिसाब देना है बल्कि इस बार सामने साल 2014 की तरह न तो बिखरा हुआ विपक्ष है और न ही यूपीए के दस साल के शासन की सत्ता विरोधी लहर का मौका. इस बार बीजेपी के सामने एनडीए को बिखराव से बचाने की चुनौती भी है.

शिवसेना नाराज है तो चंद्रबाबु नायडू जैसे एनडीए के पूर्व संयोजक ही साथ छोड़ गए और विपक्ष का महागठबंधन तैयार करने में जुटे हुए हैं. एनडीए छोड़कर जाने वाले दलों की वजह से बीजेपी को सीटों का कुछ नुकसान हो सकता है लेकिन उसके फायदे के लिए एक नया रास्ता टीआरएस खोल रही है.

टीआरएस के दांव से किसे होगा फायद किसका होगा नुकसान

तेलंगाना में सत्ता वापसी करने वाले केसीआर ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष के नए गठबंधन की बात की है जो कि गैर कांग्रेसी और गैर-बीजेपी हो. केसीआर की इस नई कहानी से विपक्ष की एकता के प्रतीक महागठबंधन की परिकल्पना का पटाक्षेप हो जाता है. आखिर बीजेपी और कांग्रेस विरोधी कितने दल एक साथ अलग-अलग आएंगे?

केसीआर के इस दांव से फायदा बीजेपी को ही होगा तो नुकसान उस विपक्ष को जो बीजेपी को सत्ता में आने से रोकना चाहती है. अब जबकि राहुल विपक्ष के नंबर वन नेता बनकर उभरे हैं और उनकी लीडरशिप में विपक्षी महागठबंधन की संभावना दिखाई देती है तो टीआरएस नेता केसीआर का अलग राग विपक्षी महागठबंधन के तोड़ के रूप में नजर आता है.

भले ही राज्यों की हार की नैतिक जिम्मेदारी शिवराज, वसुंधरा और रमन सिंह ने ली लेकिन बीजेपी को ये नहीं भूलना चाहिए कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी किसान, बेरोजगारी, नोटबंदी, जीएसटी और भ्रष्टाचार के आरोपों को कांग्रेस मुद्दा बनाएगी.

ऐसे में राहुल के हमलों को हल्के में लेने की भूल दोहरानी नहीं चाहिए क्योंकि जनता ने राहुल को अब विपक्ष के नंबर एक नेता के तौर पर स्थापित कर दिया है. साथ ही अब बीजेपी के उन जिम्मेदार नेताओं को ये कहने से भी बचना होगा कि राहुल जितनी रैलियां करेंगे उसका फायदा बीजेपी को ही मिलेगा. राहुल केंद्रित रणनीति का ठीक वैसा ही नुकसान हो सकता है जैसा कि साल 2014 में कांग्रेस और दूसरे दलों ने मोदी-केंद्रित प्रचार रखा था.

बीजेपी के पास फिलहाल ‘वेट एंड वॉच’ का विकल्प है. कांग्रेस शासित राज्यों में  अगर चुनावी वादे पूरे नहीं होते हैं तो बीजेपी इसका इस्तेमाल सत्ता विरोधी लहर के रूप में कर सकती है. इतिहास गवाह रहा है कि तीन-तीन राज्यों में एक साथ चुनाव जीतने वाली पार्टी को भी छह महीने के भीतर ही एंटीइंकंबेंसी की वजह से लोकसभा चुनाव में खामियाजा भुगतना पड़ा है. इसलिए बीजेपी के लिए अभी सबकुछ खत्म नहीं हुआ है बल्कि नए सिरे से शुरू करने का अलार्म ही बजा है.

सिंधिया ने कमलनाथ के नाम पर प्रस्ताव दिया


सिंधिया ने कहा कि अगर उन्हें सीएम बनने का मौका दिया जाता है, तो ये उनके लिए बहुत सम्मान की बात होगी


मध्य प्रदेश में बहुत इंतजार के बाद आखिरकार कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और दूसरे दलों के समर्थन के बाद उसने बहुमत का आंकड़ा भी पार कर लिया. अब असली सवाल सामने खड़ा है- मुख्यमंत्री कौन?

यहां प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच सीएम के पद की रेस चल रही है. जहां विश्लेषक मानकर चल रहे हैं कि कमलनाथ को ही सीएम बनाया जाएगा, वहीं पार्टी के अंदर से समर्थकों की आवाजें सिंधिया के पक्ष में उठ रही हैं.

हालांकि सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि बहुत माथापच्ची के बाद अब सिंधिया ने कमलनाथ के नाम पर प्रस्ताव दिया है. अब बस उनके नाम पर राहुल गांधी की मुहर लगने का इंतजार है.

खास बात है कि सिंधिया ने खुद कमलनाथ का नाम प्रस्तावित किया है, जबकि राज्य में खुद उनके नाम की दावेदारी पर जोर दिया जा रहा था. सिंधिया ने भी अपनी तरफ से कोई संकेत नहीं दिया था कि अपनी दावेदारी पर उनका क्या रुख है. लेकिन उनके एक बयान से लगा कि वो खुद को इस रेस से बाहर मानकर नहीं चल रहे हैं.

दरअसल, सिंधिया ने  पत्रकारों से कहा था कि अगर उन्हें सीएम बनने का मौका दिया जाता है, तो ये उनके लिए बहुत सम्मान की बात होगी.

इससे माना जा रहा था सिंधिया खुद को रेस से बाहर नहीं रख रहे हैं. हालांकि, कांग्रेस की जीत की घोषणा के बाद उन्होंने कई ट्वीट किए हैं, जिनमें उन्होंने जीत पर खुशी जताते हुए कार्यकर्ताओं को बधाई दी थी और विकास के लिए काम करने की प्रतिबद्धता जताई थी. उस वक्त तक उन्होंने सीएम के पद के लिए दावेदारी पर कोई संकेत नहीं दिया था.

उधर कमलनाथ कई बार कह चुके हैं कि सीएम के चेहरे पर फैसला हाई कमांड ही लेगा. मध्य प्रदेश में दोनों नेताओं के समर्थक अपने-अपने नेताओं का नाम चिल्ला रहे हैं.

बता दें कि कांग्रेस के सभी बड़े नेता बुधवार दिन में राज्यपाल आनंदी बेन पटेल से सरकार बनाने का दावा करने वाली चिट्ठी लेकर मिलने पहुंचे थे. लेकिन पटेल ने कहा कि कांग्रेस जब तक सीएम के लिए अपना चेहरा नहीं चुनती, वो सरकार बनाने के लिए न्योता नहीं देंगी.

शाम को कांग्रेस के नेताओं की बैठक होने वाली है, जिसके बाद मध्य प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री की घोषणा की जाएगी. राज्य की कांग्रेस 14 दिसंबर तक शपथग्रहण समारोह करवा लेना चाहती है.

वसुंधरा ने दिया इस्तीफा

जयपुर:

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया है. राज्य विधानसभा चुनाव में हुई बीजेपी के बाद उन्होंने अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया.

कांग्रेस को जीत की बधाई देते हुए वसुंधरा राजे ने कहा 5 साल में बीजेपी ने अच्छे काम किए हैं.मुख्यमंत्री ने कहा कि हम प्रदेश की जनता की आवाज को सदन में उठाएंगे. मैं समस्त पार्टी कार्यकर्ताओं, पीएम मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को धन्यवाद देना चाहती हूं. जब पत्रकारों ने उनसे हार का कारण जानना चाहा तो वसुंधरा ने सवाल को टाल दिया.

वसुंधरा के कई मंत्री चुनाव हारे

बता दें राजस्थान में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है. वसुंधरा राजे सरकार में कद्दावर रहे कई मंत्री विधानसभा चुनाव हार गए हैं. इनमें परिवहन मंत्री युनुस खान, खान मंत्री सुरेंद्र पाल सिंह टीटी, यूडीएच मंत्री श्रीचंद कृपलानी शामिल हैं. जीतने वाले मंत्रियों में गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया व शिक्षा मंत्री किरण महेश्वरी का नाम प्रमुख है. वसुंधरा राजे के करीबी माने जाने वाले युनुस खान टोंक विधानसभा सीट से 54,179 मतों से हार गए. इस सीट पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे सचिन पायलट जीते हैं.
वहीं जल संसाधन मंत्री डॉ. रामप्रताप हनुमानगढ़ सीट पर 15522 मतों से तो पशुपालन मंत्री रहे ओटाराम देवासी सिरोही सीट पर 10253 मतों से पराजित हुए. इसी तरह राजे सरकार के कृषि मंत्री प्रभु लाल सैनी अंता सीट पर 34059 मतों से हारे. उन्हें कांग्रेस के प्रमोद भाया ने हराया. खान मंत्री सुरेंद्र पाल सिंह टीटी करणपुर सीट पर हारे और वह मुकाबले में तीसरे स्थान पर रहे.

खाद्य व आपूर्ति मंत्री बाबू लाल वर्मा बारां अटरू सीट पर 12248 मतों से हार गए. पर्यटन मंत्री कृष्णेंद्र कौर दीपा नदबई सीट पर बसपा के जोगिंदर सिंह से 4094 मतों से हारीं जबकि यूडीएच मंत्री श्रीचंद कृपलानी निंबाहेडा सीट पर 11908 मतों से हारे हैं.

सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री अरूण चतुर्वेदी सिविल लाइंस सीट पर 18078 मतों से हार गए. उद्योग मंत्री राजपाल सिंह शेखावत झोटवाड़ा सीट पर 10747 मतों से हार गए. वहीं गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने उदयपुर सीट पर कांग्रेस की गिरिजा व्यास को 9307 मतों से पराजित किया.

इन मंत्रियों को मिली सफलता

वसुंधरा राजे के जिन प्रमुख मंत्रियों ने जीत दर्ज करने में सफलता पाई है उनमें चिकित्सा मंत्री कालीचरण सर्राफ मालवीयनगर सीट पर 1704 मतों से, महिला व बाल विकास मंत्री अनिता भदेल अजमेर (दक्षिण) सीट पर 5700 मतों से व शिक्षामंत्री वासुदेव देवनानी अजमेर (उत्तर) सीट पर 8630 मतों से जीते हैं. बाली सीट पर ऊर्जा मंत्री पुष्पेंद्र सिंह 28081 मतों व शिक्षा मंत्री किरण महेश्वरी ने राजसमंद सीट पर 24532 मतों से जीत दर्ज की है

आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों से ज्यादा वोट नोटा को मिले हैं


हालांकि मध्यप्रदेश के सिंगरौली में आप नेता रानी अग्रवाल शुरुआत में बढ़त बनाए हुए थीं, लेकिन अब वो भी पिछड़ गई हैं


पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आने शुरु हो गए हैं. मतगणना अभी जारी है लेकिन राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में तस्वीर साफ हो गई है. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार बना रही है. वहीं तेलंगाना में टीआरएस सत्ता पर काबिज हो गई.

पूर्वोत्तर राज्य में कांग्रेस का आखिरी किला भी ढह गया है. मिजोरम में कांग्रेस के 10 साल से मुख्यमंत्री ललथनहवला दो सीटों पर चुनाव लड़े थे और उन्हें दोनों ही सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा. मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट सरकार बना रही है.

चुनावों में दिलचस्प आंकड़े सामने आ रहे हैं. दिल्ली में सरकार में बैठी और आंदोलन से उपजी आम आदमी पार्टी ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अपने उम्मीदवार खड़े किए थे. तीनों ही राज्यों में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को जनता ने सिरे से नकार दिया. हालांकि मध्यप्रदेश के सिंगरौली में आप नेता रानी अग्रवाल शुरुआत में बढ़त बनाए हुए थीं, लेकिन अब वो भी पिछड़ गई हैं.

तीन राज्यों में आप बनाम नोटा का आंकड़ा

आलम ये है कि आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों से ज्यादा वोट नोटा (इनमें से कोई नहीं) को मिले हैं.

मध्यप्रदेश में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को 1,17,968 वोट मिले. वहीं 2,63,835 लोगों ने नोटा का विकल्प चुना.

छत्तीसगढ़ में नेताओं को 44020 वोट मिले वहीं नोटा पर 1,05,919 वोट पड़े.

राजस्थान में मिले 99,266 वोट मिले और नोटा पर 3,56,185 वोट पड़े.

 कांग्रेस की जीत पर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह

 

ब्रेकिंग् फ्रॉम झजजर

कांग्रेस की जीत पर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह

:  ढोल -नगाड़ो व लडडू बाटकर मनाई जीत की खुशी

: झज्जर के अंबेडकर चौक पर अशोक तंवर के कार्यकर्ताओं ने  ढोल बजाकर किया खुशी का इजहार

: कहा,  2019 में देश के प्रधानमंत्री होंगे राहुल गांधी

: कहा,  झज्जर का बेटा अशोक तंवर होगा हरयाणा का मुख्यमंत्री

मध्यप्रदेश नतीजे शिवराज उतारचढ़ाव के बीच सरकार बनाने के जुगाड़ में


खबर आ रही है कि बीजेपी घटते-बढ़ते आंकड़ों को देखकर जोड़-तोड़ करके सरकार बनाने की तैयारी में है


पांचों चुनावी राज्यों में मध्य प्रदेश ही ऐसा राज्य है, जहां से कोई भी साफ तस्वीर निकलकर नहीं आ रही. यहां कांग्रेस और बीजेपी आगे-पीछे हो रही हैं. अभी तक किसको बहुमत मिलेगा, ये साफ नहीं हो पा रहा है.

मध्य प्रदेश में बहुमत की सरकार के लिए 116 का नंबर चाहिए. रुझानों में अभी तक कांग्रेस को 111 सीटें मिली हैं और बीजेपी को 108 मिली हैं. वहीं अन्य 11 सीटें अन्य दलों के हिस्से में जा रही हैं. नतीजे आने तक ये आंकड़े बदलेंगे.

वहां के हालात देखकर लग रहा है कि वहां त्रिशंकु विधानसभा बनेगी. अगर दोनों पार्टियों में से किसी को भी बहुमत नहीं मिलेगा तो सत्ता की चाबी मायावती और निर्दलीय विधायकों के हाथ में होगी.

न्यूज18 के मुताबिक खबर आ रही है कि बीजेपी घटते-बढ़ते आंकड़ों को देखकर जोड़-तोड़ करके सरकार बनाने की तैयारी में है. खबर है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के घर पर बीजेपी की अहम बैठक हो रही है. बीजेपी जरूर निर्दलीय विधायकों को अपने साथ लाने की कोशिश करेगी.

वहीं बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायवती के कदम पर भी सबकी नजर है. बीजेपी बीएसपी को अपनी तरफ मिलाने की कोशिश कर सकती है. लेकिन एबीपी न्यूज ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि बीएसपी एमपी में बीजेपी से हाथ नहीं मिलाएगी. खबर है कि मायावती ने राज्य में लड़ रहे अपने उम्मीदवारों को दिल्ली बुलाया है, ताकि उन्हें जोड़-तोड़ से बचाया जा सके.

मध्य प्रदेश में बीजेपी की पिछले 15 सालों से सरकार है. हालांकि इस बार जनता में बदलाव का माहौल बन गया था.

Five points to note, even before the last vote is counted for analysis

Madhya Pradesh, Chattisgarh and Rajasthan are three States where the Congress and the BJP are face to face.

Trends continue to fluctuate in Rajasthan and Madhya Pradesh, into the afternoon on the counting day, but one thing is clear — Amarinder Singh, the leader of the lean club of Congress chief ministers will have some new members joining. It is not yet clear, how many.

Madhya Pradesh, Chhattisgarh and Rajasthan are three States where the Congress and the BJP are face to face, like Gujarat. In Telangana and Mizoram,the Congress is up against regional parties.

There are five points to be noted even before the results are complete

First, the BJP’s strongholds are under challenge. Madhya Pradesh, Rajasthan and Chhattisgarh, surrounding the Gujarat laboratory, are critical to Hindutva politics. The BJP has been in power since 2013 in MP and Chhattisgarh. The party sought to overcome anti-incumbency and corruption charges in these States by a high dose of Hindutva, generously deploying Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath for campaigning. Perhaps that strategy worked to some extent and prevented a complete collapse of the party, though not enough to secure a comfortable win anywhere. What lesson will the BJP learn from this, for its 2019 campaign? A likely scenario will be that it will go for a mix of fresh populist government schemes and a sharp escalation of its Hindutva rhetoric. The mandir slogan is dusted and ready, for relaunch any time. We can’t be sure of its outcome.

Second point to be noted is the impact of the results on Mr. Modi’s individual standing. It can be argued that it was Mr. Modi’s personal appeal that prevented a complete rout of the BJP in Madhya Pradesh and Rajasthan. It is possible that when the 2019 election will be framed as a verdict on Mr. Modi and his politics, the scenario could be different from what we see today. But the news scenario of a weakened BJP at the state level in critical regions will force Modi to place himself at the centre of the campaign as he had done in 2014 too. The difference now is that he is no longer a challenger to the regime. He is the regime. He will double down on attempts to contrast himself with Rahul Gandhi. And that strategy as we know by now, can cut both ways. That strategy will require a progressive degeneration of his vocabulary and could turn off at least some sections of the electorate. Moreover, Mr. Modi has to now outsmart Mr. Yogi in the Hindutva game. A more detailed analysis of how the Modi factor worked in comparison with the Yogi factor in these core regions of Hindutva is likely to be done by the RSS. The internal dynamics of Hindutva politics will now play out less subtly in the coming months.

Thirdly, this election proves that there is limit to cleverness. In Chhattisgarh, the BJP talked up the Ajit Jogi-Mayawati alliance as a third force and its government tacitly supported it. At the end of the day, the new formation took down the BJP that finished third in Bilaspur and surrounding region. Far from harming the Congress, Mr. Jogi’s exit turned out to be boon for the Congress and his new party and the coalition contributed to the BJP’s downfall.

Fourth point is about Congress. This election puts the Congress party, and more specifically its president Rahul Gandhi, as the central character of opposition politics nationally. How the Congress will process its new status, how it will try to project that into other states where it is not the principal opponent of the BJP such as U.P and negotiate with regional partners are critical factors to track as India shifts gear to the campaign for the 17th general election next year.

Fifth point is how will the regional parties process the new status of the Congress as they are themselves wary of any improvement in the fortunes of India’s Grand Old Party. For their continuing prominence in their respective regions, they need the BJP as an enemy more than they need Congress as a friend. In 2004, this apparent contradiction was overcome by the genius and authority of Harkishan Singh Surjeet, then general secretary of the CPI (M). The CPI(M)’s own standing as a national party, without any claim for itself helped. In the absence of such a figure amongst them, can non-Congress parties forge an understanding that will bring them together around a Congress nucleus to form a national anti-BJP coalition? That question remains open today.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने साल 2019 में केंद्र में सत्ता परिवर्तन का दावा किया है।


 नवजीवन अखबार 1919 में महात्मा गांधी ने शुरु किया था।

राहुल गांधी ने कहा कि बीजेपी को हराएंगे और उसे उसकी जगह दिखाएंगे।


चुनाव में बीजेपी को हराना हमारा अंतिम लक्ष्य नहीं है। हमारा अंतिम लक्ष्य किसानों के संकट और रोजगार के संकट को हल करना है। ये शब्द राहुल गांधी ने आज मोहाली में कहे।

राहुल गांधी तीन राज्यों के चुनावों को लेकर आए एग्जिट पोल को लेकर खासे उत्साहित है। उनका कहना है कि चुनाव परिणाम से जो संदेश निकलेगा वह पूरे देश तक पहुंचेगा। वहीं, राहुल ने कहा है कि सदी कोई भी हो किसानों के बिना ये देश आगे नहीं बढ़ सकता है। राहुल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए कहा कि किसानों को प्रधानमंत्री बोझ मानते हैं।

बीजेपी के विजन में किसान शामिल नहीं हैं। किसानों के बिना, यह देश प्रगति नहीं कर सकता है।’कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि हम जल्द से जल्द बीजेपी और मोदी सरकार को दिल्ली से हटाने जा रहे हैं। राहुल गांधी ने पंजाब के मोहाली में ये बात कही। कांग्रेस अध्यक्ष आज पंजाब में नवजीवन अखबार के रीलॉन्च कार्यक्रम में पहुंचे हैं। इसी मौके पर एक बार फिर उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा।

उन्होंने कहा, ‘देशभर में प्रत्येक संस्थान पर हमला किया जा रहा है और कांग्रेस और विपक्ष इन हमलों के खिलाफ है। 2019 में हम दिल्ली से बीजेपी सरकार को हटाने के बाद ही रुकेंगे। जल्दी से जल्दी बीजेपी और मोदी जी की सरकार को हम दिल्ली से हटाने जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट को स्वतंत्र रूप से काम करने की इजाजत नहीं है, राजनीतिक लाभ के लिए सेना का इस्तेमाल किया जाता है। यह सब 2019 में बंद कर दिया जाएगा।’

इस मौके पर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भी उपस्थिति रहे। महात्मा गांधी के 150वीं जन्म जयंती के साल के मौके पर नवजीवन को री-लॉन्च किया गया है। राहुल ने यहां एक बार फिर मीडिया की स्वतंत्रता पर बात की। उन्होंने कहा कि मीडिया को बड़े लोगों ने कैप्चर कर रखा है। मीडिया की स्वतंत्रता खत्म हो गई है और ये भारत ही नहीं दुनियाभर में हो रहा है। उन्होंने कहा कि अखबारों से किसान और बेरोजगारी जैसे मुद्दे गायब हैं। रोजगार और किसानों के मुद्दे को हल करना होगा।

राहुल ने कहा, ‘प्रेस के लोगों को निडर होकर सच को सामने रखना चाहिए। चाहे वो कांग्रेस के बारे में ही क्यों न हो, क्योंकि हम आरएसएस नहीं हैं। हम आलोचनाओं को भी स्वीकारते हैं।

खट्टर ने ब्रहमकुमरि आश्रमों के लिए दिये 21 लाख रुपए

चंडीगढ़, 9 दिसम्बर-

हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल ने कहा कि आध्यात्मिक सोच से जीवन में सकारात्मकता पैदा होती है और यही सकारात्मकता जीवन में आगे बढऩे के लिए प्रेरित करती है। सकारात्मकता के बल पर ही एक अच्छे समाज का निर्माण किया जा सकता है। ब्रह्मकुमारी मिशन भी इस कार्य को बखूबी कर रहा है और समाज में अपने आध्यात्मिक चिंतन के जरिए सकारात्मकता का संदेश देते हुए अच्छी सोच पैदा कर रहा है।

मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल आज जिला सोनीपत के गांव नांगल खुर्द में स्थापित ब्रह्मकुमारी रिट्रीट सेंटर में उपस्थित लोगों को संबोधित कर रहे थे। इससे पहले उन्होंने इसी परिसर में 103 वर्षीय दादी जानकी की उपस्थित में दादी जानकी आडिटोरियम का उद्घाटन किया और रिट्रीट सेंटर के पांचवें सालाना उत्सव का शुभारंभ भी किया। इस दौरान उन्होंने रिट्रीट सेंटर के विकास के लिए 21 लाख रुपये देने की घोषणा भी की।

श्री मनोहर लाल ने कहा कि ब्रह्मकुमारी आध्यात्मिक विचारधारा है और यह अलग-अलग धर्मों व जातियों के लोगों को एक नई राह दिखाने का कार्य कर रही है। आज देश और विदेश के सैकड़ों गांवों और कस्बों में ब्रह्मकुमारीज की हजारों शाखाएं चल रही हैं। उन्होंने कहा कि इस संस्था की सोच ‘एक ईश्वर-एक परिवार’ की सोच के तहत कार्य कर रही है और पूरे विश्व को एक परिवार के तौर पर मानते हुए आगे बढ़ रही है।

मुख्यमंत्री ने मौजूदा दौर में भौतिकतावाद की वजह से पूरे विश्व के सिमटने की बात कहते हुए इससे पैदा हुई आतंकवाद, नक्सलवाल जैसी समस्याओं की तरफ भी ध्यान आकर्षित करवाया। उन्होंने कहा कि हम जैसे-जैसे विकास कर रहे हैं, वायु प्रदूषण जैसी अनेक समस्याएं हमारे सामने चुनौतियां बनी खड़ी हैं। इन्हीं चुनौतियों से निपटने के लिए उन्होंने समर्पण भाव से काम करने की आवश्यकता पर बल दिया।

श्री मनोहर लाल ने कहा कि ब्रह्मकुमारी से लाखों की संख्या में महिलाएं जुड़ी हुई हैं और हरियाणा सरकार भी महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए लगातार कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि आज दादी जानकी ने पांच गुणों की चर्चा की है जिनमें पवित्रता, सत्यता, नम्रता, मधुरता, शालीनता शामिल हैं। इसके साथ ही आठ गुणों की भी बात की जिनमें सहनशक्ति सबसे बड़ा गुण है, अपने अंदर समाने की शक्ति, सामना करने की शक्ति, समेटने की शक्ति, परखने, निर्णय और सहयोग करने के गुण शामिल हैं।