38-38 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे माया-अखिलेश

1993 में एक साथ चुनाव लड़ने के 25 साल बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने शनिवार को एकबार फिर से आगामी लोकसभा चुनाव साथ में लड़ने का ऐलान कर दिया. एसपी मुखिया अखिलेश यादव और बीएसपी सुप्रीमो ने लखनऊ में सांझा प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर इ बात का ऐलान किया. एसपी और बीएसपी आगामी लोकसभा चुनाव में गठबंधन के तहत उत्तर प्रदेश की 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. दो सीटें छोटी पार्टियों के लिए छोड़ी गई हैं जबकि अमेठी और रायबरेली की दो सीटें कांग्रेस पार्टी के लिए छोड़ना तय किया गया है. हालांकि कांग्रेस इस गठबंधन में शामिल नहीं है.

बीएसपी सुप्रीमो मायावती के साथ एसपी मुखिया अखिलेश यादव ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया. इस दौरान मायावती ने केंद्र की बीजेपी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि एसपी-बीएसपी गठबंधन से गुरु-चेला (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह) की नींद उड़ जाएगी.

गठबंधन कितना लंबा चलेगा, इस सवाल पर मायावती ने कहा कि गठबंधन स्थायी है. यह सिर्फ लोकसभा चुनाव तक नहीं है बल्कि उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में भी चलेगा और उसके बाद भी चलेगा. मायावती ने कहा कि बीजेपी ने इस गठबंधन को तोड़ने के लिए एसपी प्रमुख अखिलेश यादव का नाम जानबूझकर खनन मामले से जोड़ा.

बीजेपी की घिनौनी हरकत से एसपी-बीएसपी गठबंधन होगा मजबूत

उन्होंने कहा, ‘बीजेपी को मालूम होना चाहिए कि उनकी इस घिनौनी हरकत से एसपी-बीएसपी गठबंधन को और ज्यादा मजबूती मिलेगी.’ गठबंधन में कांग्रेस को शामिल नहीं किए जाने के बारे में मायावती ने कहा कि कांग्रेस के वर्षों के शासन के दौरान गरीबी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार में वृद्धि हुई. उन्होंने कहा कि सरकार बदलती है लेकिन नीतियां नहीं बदलती. पहले भी रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार होता है और अब भी हो रहा है.

मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कम से कम दो बार जोर देकर 1995 गेस्ट हाउस कांड का जिक्र किया और कहा कि उनकी पार्टी ने जनहित और देशहित में उसे भूलाकर एसपी के साथ गठबंधन करने का फैसला लिया है. अखिलेश ने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार ने उत्तर प्रदेश को ‘जाति प्रदेश’ बना दिया है, और तो और बीजेपी ने भगवानों को भी जाति में बांट दिया. एसपी मुखिया ने यह आशंका भी जताई कि बीजेपी दंगा फसाद करा सकती है.

उन्होंने कहा कि एसपी-बीएसपी का गठबंधन केवल चुनावी गठबंधन नहीं है बल्कि यह गठबंधन बीजेपी के अत्याचार का अंत भी है. ‘बीजेपी के अहंकार का विनाश करने के लिए बीएसपी और एसपी का मिलना बहुत जरूरी था.’ अखिलेश ने कहा, ‘मायावती का सम्मान मेरा सम्मान है. अगर बीजेपी का कोई नेता मायावती का अपमान करता है तो एसपी कार्यकर्ता समझ लें कि वह मायावती का नहीं बल्कि मेरा अपमान है.’

पाठक सामाजिक कार्यों में योगदान के लिए सम्मानित

शहीद सुशील कुमार शर्मा फाउंडेशन द्वारा आज डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम के कानूनी सलाहकार और संविधान विशेषज्ञ ‘दिनेश पाठक’ को सम्मानित किया गया दिनेश पाठक को वीएचपी के विधि प्रकोष्ठ के प्रमुख होने का गौरव भी प्राप्त है

जयपुर,

शहीद का सम्मान देश हित मे कुर्बान होने वाले सभी जांबाज़ों को मिलना चाहिए। कुछ लोग देश हित के लिए अपनी कुर्बानी देने से पीछे नही रहते।उनके परिजनों की देखभाल करने वाला कोई नहीं होता, हमें ऐसी व्यवस्थाये करानी होगी, जिससे आमजन देश हित मे ततपरता दिखाये। यह कहना है शहीद सुशील कुमार शर्मा फाउंडेशन के राजस्थान प्रदेश संयोजक यतेन्द पाण्डेय का। पाण्डेय शहीद सुशील कुमार शर्मा फाउंडेशन द्वारा राजस्थान उच्च न्यायालय के बार सभागार में स्वामी विवेकानंद की जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में अपना उदबोधन दे रहे थे।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल उपमन रहे। अध्यक्षता महासचिव संगीता शर्मा रही। वक्ताओं ने विवेकानंद जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए, उनके द्वारा किये गये कार्यों से शिक्षा लेकर देश उत्थान की बात कही।इस अवसर पर अनिल उपमन,संगीत शर्मा, दिनेश पाठक, अनिल चतुर्वेदी, मनीष शर्मा, का सम्मान किया। इस अवसर पर फाउंडेशन के अम्रत भारद्वाज भरतपुर ,मौहम्मद नासिर दौसा, सोन् सैनी सहित अनेक अधिवक्ता उपस्थित रहे।

स्वामी विवेकानंद की जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में अपना उदबोधन दे रहे थे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल उपमन रहे। अध्यक्षता महासचिव संगीता शर्मा रही। वक्ताओं ने विवेकानंद जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए, उनके द्वारा किये गये कार्यों से शिक्षा लेकर देश उत्थान की बात कही।इस अवसर पर अनिल उपमन,संगीत शर्मा, दिनेश पाठक, अनिल चतुर्वेदी, मनीष शर्मा, का सम्मान किया। इस अवसर पर फाउंडेशन के अम्रत भारद्वाज भरतपुर ,मौहम्मद नासिर दौसा, सोन् सैनी सहित अनेक अधिवक्ता उपस्थित रहे।

नटवर सिंह के बेटे ने मोदी और वसुंधरा को पेटी पैक करने की धमकी दी

जगत सिंह ने अपने समर्थकों के बीच कहा, ‘मैं पीछे नहीं हटूंगा भाइयों. गोली चलेगी तो पहली गोली मेरे सीने में लगेगी. पत्थर का जवाब एके 47 के साथ करता हूं मैं, तो आ जाओ अशोक जी, आ जाओ मोदी जी, आ जाओ वसुंधरा जी, सबको पेटी पैक कर के भेजूंगा’

जगत सिंह पहले भी खनन माफिया को धड़ल्ले से काम करने के लिए आश्वस्त करते दिखे थे उस समय उन्होने तत्कालीन मुख्यमंत्री को काम में टांग ना अड़ाने के लिए ‘समझा दिया है’ कहते दिखे थे।

पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह के बेटे और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के नेता जगत सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और यहां की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को लेकर भड़काऊ बयान दिया है.

zee news से साभार

रामगढ़ सीट से बीएसपी के प्रत्याशी जगत सिंह ने अपने समर्थकों के बीच कहा, ‘मैं पीछे नहीं हटूंगा भाइयों. गोली चलेगी तो पहली गोली मेरे सीने में लगेगी. पत्थर का जवाब एके 47 के साथ करता हूं मैं, तो आ जाओ अशोक जी, आ जाओ मोदी जी, आ जाओ वसुंधरा जी, सबको पेटी पैक कर के भेजूंगा.’

जिस दौरान जगत सिंह यह बोल रहे थे वहां मौजूद किसी ने मोबाइल से उनका  वीडियो बना लिया. 30 सेकेंड के विवादित बयान वाला यह वीडियो वायरल हो रहा है.

बता दें कि पिछले महीने संपन्न राजस्थान विधानसभा चुनाव में रामगढ़ विधानसभा सीट पर बीएसपी प्रत्याशी लक्ष्मण सिंह के निधन हो जाने से यहां चुनाव टाल दिया गया था. 9 जनवरी को जगत सिंह ने बीएसपी के टिकट पर यहां अपना पर्चा भरा था. न्यूज़ एजेंसी एएनआई के अनुसार उनके भड़काऊ भाषण वाला यह वीडियो नामांकन दाखिल करने के बाद का है.

रामगढ़ सीट पर 28 जनवरी को चुनाव होना है और 31 जनवरी को यहां काउंटिग होगी.

11 दिसंबर, 2018 को आए 199 सीटों के चुनाव नतीजों में राजस्थान में कांग्रेस को 101 सीटें मिली थी. यहां बीएसपी के 6 उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी. नतीजों के कुछ दिन बाद बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कांग्रेस को बिना शर्त समर्थन का ऐलान किया था.

सर्वासिद्धिप्रद: कुम्भ:, स्वागत है

प्रयागराज में संगम तट पर लगने वाले कुंभ मेला 2019 (Kumbh Mela 2019) की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। अखाड़ों, संतों, देशी-विदेशी मेहमानों और अन्य अतिथियों के लिए कुंभ में तैयारी पूरी कर ली गई है। ऐसे में आपके लिए भी ये जानना जरूरी है कि यहां पुण्य कमाने के अलावा भी ऐसी कई वजहें हैं, जिसके कारण आपको यहां अवश्य आना चाहिए। कुंभ मेला 2019 को लेकर सरकार की तरफ से खास और भव्य तैयारी की गई है। यहां आकर आप इस भव्यता के साथ कई ऐसे ऐतिहासिक पलों का गवाह बनेंगे जो कुंभ के अलावा कहीं देखने को नहीं मिलती। आइये जानते हैं कौन सी हैं वो वजहें…

प्रयागराज में कुंभ मेले के लिए दुनिया की सबसे बड़ी टेंट सिटी तैयार की गई है। इन टेंट में लाखों लोगों के ठहरने की व्यवस्था की गई है। यहां टेंट में आलीशान सूईट से लेकर धर्मशालाएं तक बनी हैं। ये टेंट सिटी इतनी विशाल है कि इसे पैदल पूरा घूमना आसान नहीं होगा। यहां संगम तट पर बनी टेंट सिटी का एरियर व्यू इतना मनोरम होता है, जो आपको कहीं और देखने को नहीं मिलेगा।

संगम तट किनारे आम तौर पर शाम या रात के वक्त अंधेरा रहता है, लेकिन कुंभ के दौरान यहां टेंट सिटी में आकर्षक लाइटिंग की जाती है। शाम को संगम तट पर अखाड़ों, साधू-संतों और श्रद्धालुओं द्वारा भव्य आरती की जाती है। कल-कल करती लहरों पर पड़ने वाली इन लाइटों और दीयों की रोशनी शाम को इसे झिलमिलाते तारों का शहर बना देती है। संगम पुल से इस नजारे को देखना बेहद मनोरम होता है। दुनिया में शायद ही कहीं और ऐसा नजारा देखने को मिलता है। इन नजारों को देखना किसी संयोग से कम नहीं।

कुंभ मेले में आस्था को जो जमघट लगता है उसका हिस्सा बनकर आपको बराबरी का एहसास होता है। यहां करोड़पति और गरीब सब एक साथ आस्था की डुबकी लगाते हैं। हजारों आलीशान पांच सितारा सूईट वाले टेंट से लेकर साधारण टेंट, किसी मुगलकालीन शहर से जैसे लगने लगते हैं।

हर बार कुंभ में साधु-संतों के 13 अखाड़े शामिल होते हैं। ये पहला मौका है जब कुंभ में 14 अखाड़े शिरकत करेंगे। कुंभ के दौरान इनकी भव्य पेश्वाई निकलती है। पेश्वाई का अभिप्राय इनकी शाही सवारी से है। इसमें हाथी, घोड़े, ऊंट, बग्घी, बैंड से लेकर सोने-चांदी से सजे सिंहासनों पर अखाड़ा प्रमुख सजधज कर बैठे होते हैं। इनकी सवारी के लिए अखाड़ों के शिविर से संगम तट तक एक विशेष राजपथ बनाया जाता है, जिस पर केवल अखाड़े ही चलते हैं। मार्ग के दोनों तरफ इनके सेवादार और श्रद्धालु आशीर्वाद पाने को खड़े रहते हैं। ये अखाड़े, साधू-संत और महंत कुंभ का प्रमुख आकर्षण होते हैं, जिन्हें देखने के लिए पूरी दुनिया से लोग यहां आते हैं। दुनिया भर के फोटोग्राफर इन पलों को अपने कैमरों में कैद करने के लिए हर वक्त मुस्तैद रहते हैं। दरअसल यही एक मौका होता है, जब सभी अखाड़े एक साथ जुटते हैं और पूरी भव्यता से अपनी पेश्वाई निकालते हैं।

खूब विवादों के बाद किन्नर आखाडा पहली बार करेगा पेशवाई

प्रयागराज कुंभ में पहली बार किन्नर अखाड़ा भी शामिल हो रहा है। इस बार कुंभ में जाने वाले लोग किन्नर अखाड़े की पेश्वाई भी देख सकेंगे। कुंभ में किन्नर अखाड़े को शामिल करने को लेकर पिछले दिनों अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने काफी हंगामा और विरोध भी किया था। बावजूद प्रशासन को उन्हें मंजूरी देनी पड़ी। इसके बाद किन्नर संयासियों के अखाड़े ने दो दिन पहले कुंभ में हाथी, घोड़े और ऊंट पर सवार होकर अपनी शानदार पेश्वाई निकाली थी। इस बार के कुंभ में नागाओं के बाद ये प्रमुख आकर्षण हो सकते हैं।

किन्नरों की दुनिया के नियम, कायदे सब आम लोगों से काफी अलग होते हैं। इसलिए लोगों को उनके जीवन के बारे में जानने की उत्सुकता हमेशा बनी रहती है। किन्नरों की इसी हैरतअंगेज दुनिया से रूबरे कराने के लिए कुंभ में किन्नर आर्ट विलेज भी बनाया गया है। यहां चित्र प्रदर्शनी, कविता, कला प्रदर्शनी, दृश्य कला, फिल्में, इतिहास, फोटोग्राफी, साहित्य, स्थापत्य कला, नृत्य एवं संगीत आदि के जरिए लोगों को किन्नरों की दुनिया से रूबरू कराया जाएगा। लोगों को रामायण और महाभारत में किन्नरों के महत्व और भूमिका के बारे में भी विस्तार से बताया जाएगा। यह आर्ट विलेज किन्नरों की रहस्यमयी दुनिया का झरोखा होगा।

इस बार कुंभ में सांस्कृतिक संध्याओं से संगम तट को गुलजार करने के लिए भी विशेष इंतजाम किए गए हैं। इसके लिए पहली बार कुंभ मेले में देशी-विदेशी रामलीला का मंचन भी होगा। इसके अलावा सरकारी और निजी संस्थाओं द्वारा भी मेले में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इस दौरान यहां देश की सांस्कृतिक विरासत से भी रूबरू होने का मौका मिलेगा। इसके लिए कुंभ मेले में पांच विशाल सांस्कृतिक पांडाल बनाए गए हैं। यहां प्रतिदिन धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन होंगे।

हेलीकॉप्टर और क्रूज की सवारी
इस बार कुंभ मेले में आप क्रूज के अलावा हेलीकॉप्टर की सवारी का भी मजा किफायती कीमत पर ले सकते हैं। हेलीकॉप्टर के जरिए आप टेंट सिटी का एरियर व्यू देख सकेंगे। साथ ही इस विशाल मेले का हवाई नजारा ले सकेंगे। पर्यटकों को ये सुविधाएं सस्ती दरों पर उपलब्ध कराई जाएगी, ताकि वह कई किलोमीटर में फैले कुंभ के अद्भुत नजारों को अपनी आंखों से देख सकें।

टूरिस्ट वॉक का भी अवसर
कुंभ मेले में इस बार आपको आसपास के दर्शनीय स्थलों पर जाने की भी सुविधा मिलेगी। इसके लिए मेले में कुछ टूरिस्ट वॉक भी बनाए गए हैं। यहां आप टूर ऑपरेटरों से संपर्क कर पैकेज ले सकते हैं। मेले में शंकर विमान मंडपम से टूरिस्ट वॉक शुरू होगा जो रामघाट पर आकर खत्म होगा। इस बीच बड़े हनुमान जी का मंदिर, पातालपुरी मंदिर, अक्षय वट और इलाहाबाद का किला देख सकेंगे।

फेरी का मजा ले सकेंगे
कुंभ में आप यमुना नदी पर जलमार्ग से फेरी का मजा भी ले सकेंगे। फेरी सेवा सुजावन घाट से शुरू होकर रेल सेतु (नैनी की ओर) के नीचे से वोट क्लब घाट और सरस्वती घाट होता हुआ किला घाट पर जाकर खत्म होगा। ये फेरी करीब 20 किलोमीटर लंबी है। इस दौरान आपको की टर्मिनल मिलेंगे।

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35000 का है सबसे आलीशान टेंट
कुंभ मेले का सबसे आलीशान टेंट 35000 रुपये प्रति रात का पांच सितारा सूईट जैसा है। ये टेंट 900 वर्ग फुट क्षेत्रफल में बना है। इसमें दो बेडरूम, एक लिविंग रूम, फर्निचर, बेड, प्राइवेट वाशरूम और एलईडी टीवी के साथ गृहस्थी का सारा सामना भी है। इसके अलावा यहां वैदिक टेंट सिटी में 24000 रुपये प्रति रात की दर पर टेंट में बना प्रीमियम विला भी है। यहां लग्जरी टेंट की कीमत 19,000 रुपये और 15,000 रुपये प्रति रात है। कल्प वृक्ष टेंट सिटी में 8500 रुपये से लेकर 3500 रुपये तक की कीमत के टेंट एक रात के लिए बुक कर सकते हैं। सबसे सस्ता टेंट 650 रुपये प्रति रात की दर से है। यहां 24 घंटे चलने वाले कई रेस्टोरेंट भी हैं, जहां आपको देशी-विदेशी हर तरह का शाकाहारी भोजन उपलब्ध होगा। इन रेस्टोरेंट में बिना लहसुन प्याज का भोजन भी विशेष तौर पर तैयार किया जाएगा।

कुंभ के रंग में रंगा प्रयागराज, विश्व रिकॉर्ड बनाने की तैयारी
कुंभ मेले को यादगार बनाने के लिए यहां पहली बार पेंटिगं भी देखने लायक होगी। सरकार ने पूरे प्रयाग को कुंभ के रंग में रंगने के लिए कई महीने पहले ही पेंट साई सिटी योजना शुरू कर दी थी। इसके तहत 600 से ज्यादा पेंटरों ने यहां के जर्रे-जर्रे को अपनी कूची और पेंट के जरिए कुंभ के रंग में रंग दिया है। पेंट माई सिटी योजना पर सरकार ने 30 करोड़ रुपये से ज्यादा का बजट खर्च किया है। पेंट माई सिटी योजना के तहत इलाहाबाद की नैनी जेल की दीवार पर समुद्र मंथन की सबसे बड़ी चित्रकारी बनाने का भी विश्व रिकॉर्ड बनाया जा रहा है। इसे गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज कराने के लिए आवेदन किया जा चुका है।

गुरु गोबिन्द सिंह जी के प्रकाशोत्सव को समर्पित नगर कीर्तन

आज गुरू गोबिंद सिंह जी महाराज के प्रकाश दिवस को समर्पित भव्य नगर कीर्तन गुरूद्वारा श्री मंजी साहिब पिजौंर से प्रारंभ हो कर सैणी मुहल्ला चौणा चौक से होता हुए बिटना रोड रथपुर से निकल कर पुनः शाम सवा तीन बजे गुरूद्वारा मंजी साहिब में नगर कीर्तन की समाप्ति हुई।

इस अवसर गतका पार्टी ने अपना जौहर दिखा कर लोगों का मन मोह लिया।फौजी बैड व ढोल पालकी साहिब के स्वागत में मधुर धुन बजा रहे थे। नगर कीर्तन में पालकी साहिब के साथ साथ स्त्री सत्संग सभा का जत्था शब्द कीर्तन करते हुए चल रहा था।नगर कीर्तन में पंज प्यारे साहिबों ने बहुत ही सुदंर पोशाक पहने हुए साथ साथ चल रहे थे। इस नगर कीर्तन में रायतन और दून से भी श्रद्धालु बड़ी संख्या में ट्रैक्टर ट्रॉली के साथ साथ चार पहिया वाहनों व मोटर साइकिलों के जत्थे भी शामिल हुए। स्थानीय संगत बड़ी संख्या में पालकी साहिब के पिछे पिछे शब्द श्रवण करते हुए चल रही थी।

इस अवसर पर जगह जगह स्थानीय सगंत के द्वारा चाय पानी पकौड़े बिस्कुट फलों के लंगर लगाये गये। इस अवसर पर मुख्य रूप से शिरोमणि अकाली दल जिला पंचकूला के अध्यक्ष स मलविंदर सिंह बेदी, वरिष्ट उपाध्यक्ष स दलजीत सिंह मरड़, रायतन अध्यक्ष स इंदर पाल सिंह, हेड ग्रंथी सुखविंदर सिंह जी व एस जी पी सी की टीम, शिअद के वरिष्ट नेता स भूपिंदर सिंह, स जगजीत सिंह बारा, स सुखदेव सिंह सूदन आदि शामिल हुए।

छत्रपति मर्डर केस में चारों आरोपी दोषी करार दिये गए, यह है सुनवाई अपडेट जानें “पूरा सच”

ख़बर फोटो और वीडियो: सारिका तिवारी, कमल कलसी और राज कुमार

3:14 PM, उसके बाद arrest कर लिया जायेगा 3:13 PM, चारों आरोपियों का Medical चल रहा है
3:13 Sentence to be pronounced on 17th
3:12 Conviction बाद
3:11 चारों दोषी करार

2:49 pm पंचकूला की सीबीआई कोर्ट से फैसला दोपहर बाद आएगा

फिलहाल कोर्ट में बाबा गुरमीत राम रहीम वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के जरिए जबकि बाकी तीनो आरोपी प्रत्यक्ष तौर र हाजरी के लिए  पेश हुए है

कोर्ट लंच के बाद सुनवाई करते हुए आरोपियों को दोषी करार कर  दे सकती

एडीजीपी लॉ एंड ऑर्डर मोहम्मद अकील ने दी जानकारी

कोर्ट से दोपहर बाद मामले में फैसला आने की उम्मीद है

सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम पुख्ता है– अकील

1:16 pm police briefing
1:16 pm, Police briefing

1:24 pm : पिछली गलतियों से सबक लेते हुए पंचकुला प्रशासन को कोई भी कोताही न बरतते हुए शहर और इसके नागरिकों की सुरक्षा के सारे इंतेजाम चाक चौबन्द रखने चाहिये ताकि पिछले हादसों की पुनरावृति न हो। याद दिला दें कि पिछली बार जो शहर का हाल डेरा दंगाइयों ने किया था उसे याद कर आज भी शहर वासी सिहर उठते हैं।

12: 24 pm: फतेहाबाद, राम रहीम के लिये सीबीआई के गवाह फतेहाबाद निवासी पत्रकार आर.के. सेठी ने कोर्ट से मांगी फांसी की सजा, कहा-16 साल की लड़ाई और हर पल मौत को सामने देखने के बाद आया है इंसाफ का दिन, बोले- रामचन्द्र छत्रपति ने जब डेरा सच्चा-सौदा की करतूतों को छापा तो हमने भी अपने सांध्य दैनिक में डेरा की करतूतों की न्यूज़ आइटम छापीं, हमारा ऑफिस तहस-नहस किया गया, मेरे घर व परिवार को जिंदा जलाने के प्रयास किया गया, लेकिन रामचन्द्र छत्रपति की हत्या होने के बाद 21 साल की उम्र में रामचन्द्र छत्रपति जी के बेटे अंशुल छत्रपति के हौंसले से सच की लड़ाई लड़ने में आगे बढ़े, गवाह सेठी बोले- सीबीआई कोर्ट में गवाही के दौरान राम-रहीम के सामने मैं गया तो राम-रहीम ऐसे खड़ा था जैसे सच सामने देख कर कोई शख्स डर जाता है, अब गुंडे राम रहीम को फांसी हो, यही कोर्ट से उम्मीद है।

10: 11 am: छत्रपति मर्डर मामले में सी॰बी॰आई कोर्ट के स्पेशल जज जगदीप सिंह और आरोपी कोर्ट पहुंचे।पुलिस किसी को भी बिना जांच के परिसर में प्रवेश नहीं करने दे रही

घटनाक्रम जो छत्रपति की हत्या का कारण बना

समाचार पत्रों के संपादकों के पास पहुँचने के बाद डेरा सच्चा सौदा को अनाम चिट्ठी की चर्चा अभी कुछ खास लोगों तक ही सीमित थी की 30 मई 2002 को रोड़ी बाज़ार में घटित एक घटना के बाद ‘पूरा सच’ में छपी एक ख़बर से यह चर्चा आम जनता की ज़ुबान पर आ गई। पूरा सच ने डेरे की परतें उधेड़नी प्रारम्भ कर दीं। डेरा सच्चा सौदा प्रमुख व प्रबंध समिति वास्तविकता सामने आने से बौखला गई ओर छात्रपाती को समाप्त करने के लिए डेरा प्रमुख के हुक्म पर प्रबन्धक किशन लाल ने दो कटीलों को भेज दिया, जिनहोने छत्रपती पर अंधाधुंध गोलीय चला कर अपने काम को अंजाम दिया।

सिलसिलेवार जानकारी:

      30 मई, 2002 को रोड़ी बाज़ार में डेरा सच्चा सौदा के कार चालक की एक पुलिस अधिकारी से कहासुनी के बाद उक्त अधिकारी ने साध्वी की चिट्ठी का राज़ आम लोगों के बीच खोल दिया। ‘पूरा सच’ ने इस ख़बर को ‘कार चालक के हाथ ने खोल दिया धार्मिक डेरे का कच्चा चिट्ठा’ के शीर्षक से छापा।

      30 मई को ही ‘पूरा सच’ ने ‘धर्म के नाम पर किए जा रहे साध्वियों के जीवन बर्बाद’ शीर्षक से बॉक्स कलाम में समाचार छाप कर अनाम साध्वी की चिट्ठी में लिखी बातों का उल्लेख किया।

      ‘पूरा सच’ को अगले ही दिन से फोन पर धमकियाँ मिलनी शुरू हो गईं।

      रोड़ी बाज़ार में किन्हीं लोगों ने साधवी के पत्र की फोटो प्रतियाँ बाँटीं। शक के आधार पर डेरा के अनुयायीओन ने चाय काफी की दुकान करने वाले प्यारे लाल सेठी को घेरा। उसकी पिटाई करने और प्र्टादित करने के बाद सेठी क छोड़ दिया गया।

      साध्वी की चिट्ठी की चर्चा रतिया में पहुंची तो डेरा अनुयायियों ने 3 जून को फोटोस्टेट का कारोबार करने वाले दो दूकानदारों को घेर लिया। बाला जी फ़ोटोस्टेट के मालिक सरमेश लाली और सेठी फ़ोटोस्टेट के मालिक सुरेन्द्र सेठी पर आरोप था की इनहोने चर्चित चिट्ठी को फ़ोटोस्टेट करके बेचा है। फलस्वरूप लठियाँ चलीं और पत्थरबाजी हुई। दोनों तरफ से लोग गिरफ्तार हुए। बाद में राजीनामा ही गया।

      फतेहाबाद के सांध्य दैनिक ‘लेखा जोखा’ के कार्यकारी संपादक आर॰के॰सेठी ने जून 6 को अपने समाचारपत्र में एक लेख लिख कर चिट्ठी में लिखी बातों की जांच किए जाने का प्रश्न उठाया तो बौखलाए डेरा प्रेमियों ने उसी रात ‘लेखा जोखा’ कार्यालय में तोड़ फोड़ कर दी। चार डेरा प्रेमियों की गिरफ्तारी के बाद हजारों डेरा प्रेमियों ने दबाव बनाने के लिए 7 जून को ठाणे का घेराव किया। पुलिस को दबाव में आ कर संपादक को गिरफ्तार करना पड़ा, नतीजा माफीनामा।

      पूरा सच में ‘लेखा जोखा’ प्रकरण को को 7 जून को विस्तार से छापा और ‘ कलाम के खिलाफ जुनूनी गुस्सा’ के शीर्षक से उक्त घटना का ब्योरा दिया।

      27 जून को डेरा प्रेमियों ने साध्वी की चिट्ठी को लेकर डबवाली में एक वकील के साथ दुरावयवहार किया गया और उसके चैंबर कर ताला तोड़ने का प्रयास किया गया। ‘पूरा सच’ ने इस घटना का भी पूरा ब्योरा अपने अखबार में दिया।

      14 जुलाई को डबवाली के डेरा प्रेमियों ने वहाँ के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में बैठक कर रहे तर्कशीलों को घेरा  और स्कूल के गेट बंद कर उन पर हमला किया। मामला ठाणे तक पहुंचा। बाद में राजीनामा हुआ। तर्कशीलों पर आरोप था की वह ‘साध्वी की चिट्ठी को ले कर सच्चा सौदा के खिलाफ कोई योजना तैयार करने के लिए बैठक कर रहे थे।

      ‘पूरा सच’ ने डेरा प्रेमियों और तर्कशीलों के संघर्ष को पूरे तथ्यों के अनुसार छापा।

      ‘पूरा सच’ मे डेरे के खिलाफ छापने वाली खबरों पर प्रतिबंध की मांग को लेकर डेरा सच्चा सौदा का प्रतिनिधि मण्डल उपायुक्त से मिला।

      ‘साध्वियों की चिट्ठी की जांच सी॰बी॰आई॰ को 6 मास में करनी होगी’ ‘डेरा सच्चा सौदा की स्कूली बस की टक्कर से दो घायल’, प्रशासन ‘पूरा सच’ में खबरें छापने पर पाबंदी नहीं लगा सकते।

      ‘टीम को स्क्रेच से बचाने हेतु सेमीफिनल में हरवाया। जाँच में शाह सत्नाम स्कूल के दो खिलाड़ी ओवर एज पाये गए।‘

      ‘डेरा सच्चा सौदा के सत्संगों में सी॰बी॰आई॰ जाँच की छाया देखी गयी

      ‘डेरा कैंटर और जीप की टक्कर में वकील की मौत, चार घायल। घायल जीप मेंपड़े कराहते रहे, डेरा प्रेमी भजन गाते रहे।

      डेरा सच्चा सौदा के श्रद्धालुओं की सूमों ने टक्कर मार कर बच्चे को घायल किया।

      सच्चा सौदा वाले कर रहे हैं उच्च नयायालय की अवमानना।

      डेरा सच्चा सौदा के आरोप सच पाये जाने पर सांसद बराड़ दे देंगे इस्तीफा, डेरा प्रेयोन द्वारा पत्रकारों से मार पीट और हमलों को झूठा बताया। बराड़ का साक्षात्कार: देहधारी को गुरु मानना क्या यह गुरुमत की अवमानना नहीं?

      डेरा सच्चा सौदा के श्रद्धालुओं ने छत्रपति को जान से मरने के लिए गोलियां चलाईं, छत्रपति गंभीर रूप से घायल। मौके से पकड़े गए हमलावरों ने डेरा प्रबन्धक किशन लाल द्वारा हथियार दिये जाने व छत्रपति को शोध देने की बात स्वीकार करते हुए षड्यंत्र से पर्दा उठाया।

स्थापना से लेकर विवादों तक देर सच्चा सौदा

      1948 में डेरा सच्चा सौदा की स्थापना शाह मस्तान ने की

      1990 में डेरा प्रमुख गुरमीत सिंह ने  गद्दी संभाली।

      1998 में गाँव बेगु का एक बच्चा डेरे की जीप तले कुचला गया। गाँव वालों के साथ डेरे का विवाद हो गया। इस घटना का समाचार प्रकाशित करने वाले समाचार पत्रों के नुमाइंदों को धमकाया गया। डेरा पप्रेमी गाडियाँ भर सिरसा के दैनिक सांध्य रामा टाइम्स के कार्यालय में आ धमके और पत्रकार विश्वजीत शर्मा को धम्की दी। डेरा सच्चा सौदा की प्रबंधन समिति और मीडिया कर्मियों की पंचायत हुई जिसमें डेरा सच्चा सौदा की ओर से लिखित माफी मांगी गई और विवाद का पटाक्षेप हुआ।

      मई 2002 में डेरा प्रमुख गुरमीत सिंह पर यौन शोषण के आरोप लगाते हुए डेरे की एक साध्वी द्वारा गुमनाम पत्र प्रधानमंत्री को भेजा गया। जिसकी एक प्रति पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्ययायलय के मुख्य न्यायाधीश को भी भेजी गयी।

      20 जुलाई 2002 को डेरा सच्चा सौदा की प्रबंधन समिति के सदस्य रहे कुरुक्षेत्र के रणजीत का कत्ल हुआ। आरोप डेरा प्रमुख पर लगे। पुलिस जाँच से असनातुष्ट रंजीत के पिता ने जनवरी 2003 में उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सी॰बी॰आई॰ जाँच की की मांग की।

      24 सितंबर 2002 को उच्च न्यायालय ने साध्वियों के पत्र का संगयान लेते हुए डेरा सचका सौदा की सी॰बी॰आई। की जाँच के आदेश दिए। सी॰बी॰आई ने मामला दर्ज़ कर जाँच शुरू कर दी।

      24 अक्तूबर 2002 को सिरसा सांध्य दैनिक ‘पूरा सच’ के संपादक पर डेरे के गुर्गों द्वारा कातिलाना हमला किया गया। छत्रपति को घर से बाहर बुला कर पाँच गोलियां मारीं गईं।

      25 अक्टोबर को छत्रपति पर हमले के विरोध स्वरूप शहर बंद। उत्तर भारत में पत्रकार पर हमले को ले कर डेरे का विरोध मुखर हुआ। मीडिया कर्मियों ने जगह जगह धरणे प्रदर्शन किए।

      16 एनवीएमबीआर को सिरसा में मीडिया की महापंचायत बुलाई और डेरा सच्चा सौदा का बाईकॉट करने का पीआरएन लिया गया।

      21 नवंबर, 2002 को सिरसा के पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की दिल्ली के अपोलो हस्पताल में मौत हुई।

      दिसंबर 2002 को छत्रपति परिवार ने पुलिस जाँच से असन्तुष्ट हो कर मुख्य मंत्री से मामले की जाँच सी॰बी॰आई से करवाए जाने की मांग की। परिवार का आरोप था की पुलिस हत्या के मुख्यारोपी एवं सजीशकर्ता को बचा रही है।

      जनवरी 2003 में पत्रकार छत्रपति के पुत्र अंशुल छत्रपति ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर छत्रपति प्रकरण में सी॰बी॰आई जाँच करवाए जाने की मांग की। याचिका में डेरा प्रमुख पर छत्रपति की हत्या का आरोप था।

      10 नवंबर, 2003 को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने पत्रकार छत्रपति व रणजीत मर्डर केस में सी॰बी॰आई को एफ़॰ई॰आर॰ दर्ज़ कर जाँच के आदेश जारी किए।

      दिसंबर 2003 में सी॰बी॰आई ने छत्रपति और रंजीत हत्याकांड में जाँच शुरू कर दी।

      दिसंबर 2003 में डेरा प्रेमियों ने सर्वोच्च न्यायालय में में याचिका दायर कर सी॰बी॰आई जाँच पर रोक लगाने की मांग की। सर्वोच्च न्यायालय ने जाँच पर स्टे दे दिया।

      एनवीएमबीआर 2004 में दूसरे पक्ष की सुनवाई के बाद डेरा की याचिका को खारिज कर दिया और सी॰बी॰आई जाँच जारी रखने के आदेश दिये।

      सी॰बी॰आई ने पुन: मामले की जाँच शुरू करते हुए डेरा प्रमुख सहित कई आँय को आरोपी बनाया। बौखलाए डेरा प्रेमियों ने सी॰बी॰आई के खिलाफ हजारों की संख्या में आकार चंडीगढ़ में प्रदर्शन किया।

      मई 2007 में डेरा प्रमुख ने डेरा सलवातपुरा (भटिंडा पंजाब) में सीख गुरु गोबिन्द सिंह जैसी वेषभूषा धारण कर फटो खिंचवाए और उन्हे अखबारों में प्रदर्शित करवाया।

      13 मई, 2007 क सिखों ने गुरु गोबिन्द सिंह जी की नकल किए जाने के विरोध में डेरा प्रमुख का पतला फूंका। प्रदर्शनकारियों पर डेरा प्रेमियों ने हमला बोल दिया। जिसके फलस्वरूप 14 मई, 2007 को पूरे उत्तर भारत में हिंसक घटनाएँ हुईं। सिखों व डेरा प्रेमियों के बीच जगह जगह टकराव हुए।

      17 मई को प्रदर्शन कर रहे सिखों पर सुनाम में डेरा प्रेमी ने गोली चलाई, जिसमें सीख युवक कोमल सिंह की मौत हो गयी। इसके बाद सीख जत्थे बंदियों ने डेरा प्रमुख की गिरफ्तारी को ले कर आंदोलन किया। पंजाब में डेरा प्रमुख के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गयी, डेरा प्रेमी झुकने को तैयार नहीं थे। बिगड़ती स्थिति को देखते हुए पंजाब एवं हरियाणा मे सुरक्षा बल तैनात कर दिया गया।

      18 जून, 2007 को भटिंडा की अदालत ने राजेन्द्र सिंह संधु की याचिका पर डेरा प्रमुख के गैर ज़मानती वारंट जारी कर दिये। इससे डेरा सच्चा सौदा मीन बौखलाहट बढ़ गयी और डेरा प्रेमियों ने पंजाब की बादल सरकार के खिलाफ जगह जगह हिंसक प्रदर्शन किया

      16 जुलाई, 2007 को सिरसा के गाँव घुक्कांवाली में प्रशासनिक पाबंदी के बावजूद नामचारचा राखी गयी, नाम चर्चा में डेरा प्रमुख काफिले सहित शामिल होने पहुंचा। सिखों ने काफिले को काले झंडे दिखाए, इस बात से दोनों पक्षों में टकराव शुरू हो गया। देखते ही देखते भीड़ ने उग्र रूप धरण कर लिया और हिंसक हो उठे। डेरा प्रमुख को नाम चर्च बीच ही में छोड़ कर भागना पड़ा।

      24 जुलाई, 2007 को गाँव मल्लेवाल में नामचारचा के दौरान एक डेरा प्रेमी ने अपनी बंदूक से फायर कर दिया जिससे तीन पुलिसकर्मियों सहित 8 सिख  घायल हो गए। माहौल फिर से तनावपूर्ण हो गया। सिखों ने डेरप्रेमियों पर लगाम कसने को ले कर जगह जगह प्रदर्शन किए। पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने घायलों का हाल चाल जाना और हरियाणा सरकार से सिक्खों की सुरक्षा को लेकर अपनी चिंता जताई।

      31 जुलाई, 2007 को सी॰बी॰आई ने हत्या और साध्वी यों शोषण मामले में जाँच पूरी कर न्यायालय में चालान पेश कर दिया। सी॰बी॰आई ने तीनों मामलों मीन डेरा प्रमुख को ही मुख्यारोपी बनाया। न्यायालय ने डेरा प्रमुख को 31 अगस्त 2007 तक अदालत में एष होने का आदेश जारी कर दिया। डेरे ने सी॰बी॰आई विशेष जज को भी धमकी भरा पत्र भेजा जिसके चलते जज को सुरक्षा मांगनी पड़ी। मामला अभी तक न्यायालय में विचारधीन है।

      वर्ष 2010 में डेरे के ही एक साधू फकीर चंद की र्हसायमाई गुमशुडगी को लेकर उच्च न्यायालय ने सी॰बी॰आई जाँच के आदेश दिये, बौखलाए डेरा प्रेमियों ने हरियाणा, पंजाब व राजस्थान में एक साथ सरकारी संपाती को नुकसान पहुंचाया और बसों में आगजनी की

दिसंबर 2012 में सिरसा में नाम चर्च को लेकर डेरा प्रेमियों और सिख आमने सामने हुए। यहाँ डेरा प्रेमियों ने गुंडई दिखाई और गुरुद्वारे पर हमला बोला। इसके अलावा चुन चुन कर सिक्खों के वाहनों को आग के हवाले किया गया और उन पर पत्थर बाज़ी भी की गयी। सिरसा में स्थिति को काबू करने के लिए कर्फ़्यू लगन पड़ा।

      2010 में डेरा के ही पूर्व साधु राम कुमार बिश्नोई ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर डेरा के पूर्व मैनेजर फ़कीर चंद की गुमशुदगी की सीबीआई जांच की मांग की. बिश्नोई का आरोप था कि डेरा प्रमुख के आदेश पर फ़कीरचंद की हत्या कर दी गई.

      इस मामले में भी उच्च न्यायालय ने सीबीआई जांच के आदेश दिए. हालांकि सीबीआई जांच के दौरान मामले में सुबूत नहीं जुटा पाई और क्लोज़र रिपोर्ट फाइल कर दी. बिश्नोई ने उच्च न्यायालय में क्लोज़र को चुनौती दे रखी है.

      फ़तेहाबाद ज़िले के कस्बा टोहाना के रहने वाले हंसराज चौहान (पूर्व डेरा साधू) ने जुलाई 2012 में उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर डेरा सच्चा सौदा प्रमुख पर डेरा के 400 साधुओं को नपुंसक बनाए जाने का आरोप लगाया था.

      अदालत के सामने 166 साधुओं का नाम सहित विवरण प्रस्तुत किया गया. यह मामला भी अदालत में विचाराधीन है.

      26 अगस्त, 2017 को फैसला सुनाने का दिन तय किया गया। 24 अगस्त, 2017 से ही पंचकुला में डेरा प्रेमियों की आमद शुरू हो गयी। शहर के पार्क सड़कें और पार्किंग स्थल डेरा प्रेमियों द्वारा पाट दिये गए।

      26 अगस्त 2017 को डेरा प्रमुख को पंचकुला की विशेष सी॰बी॰आई॰ अदालत ने राम रहीम को दोषी करार दिया और 28 अगस्त को फैसला सुनाने की बात कही। 

      फैसला सुनाए जाने का तुरंत बाद देश भर में डेरा प्रेमियों का उत्पात शुरू हो गया। पंचकुला में तो स्थिति बहुत ही भयावह थी। डेरा प्रेमियों ने इतनी मार काट मचाई कि शहरवासियों कि सुरक्षा के लिए फौज कि सहायता लेनी पड़ी।

चयन समिति की बैठक के बाद आलोक वर्मा को गुरुवार को सीबीआई निदेशक पद से हटा दिया

Alok Verma

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति की मैराथन बैठक के बाद आलोक वर्मा को गुरुवार को सीबीआई निदेशक पद से हटा दिया गया. सीबीआई के अतिरिक्त निदेशक एम. नागेश्वर राव उनके स्थान पर कामकाज संभालेंगे. राव जब तक नए सीबीआई निदेशक की नियुक्ति नहीं हो जाती या अगले आदेश तक सीबीआई के अंतरिम निदेशक होंगे. 

अधिकारियों ने बताया कि 1979 बैच के एजीएमयूटी कैडर के आईपीएस अधिकारी वर्मा को भ्रष्टाचार और कर्तव्य निर्वहन में लापरवाही के आरोप में पद से हटाया गया. इसके साथ ही एजेंसी के इतिहास में इस तरह की कार्रवाई का सामना करने वाले वह सीबीआई के पहले प्रमुख बन गए हैं. सीबीआई निदेशक पद से हटाए गए आलोक वर्मा को दमकल, असैन्य रक्षा एवं होम गार्ड महानिदेशक बनाया गया है.

सीवीसी की रिपोर्ट में वर्मा के खिलाफ आठ आरोप लगाए गए थे. यह रिपोर्ट उच्चाधिकार प्राप्त समिति के समक्ष रखी गई. समिति में लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के प्रतिनिधि के रूप में उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए के सीकरी भी शामिल थे. उन्होंने बताया कि वर्मा को पद से हटाने का फैसला बहुमत से किया गया. खड़गे ने इस कदम का विरोध किया. 

वर्मा को विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के साथ उनके झगड़े के मद्देनजर 23 अक्टूबर 2018 की देर रात विवादास्पद सरकारी आदेश के जरिये छुट्टी पर भेज दिया गया था. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में सरकार के आदेश को चुनौती दी थी. शीर्ष अदालत ने मंगलवार को सरकारी आदेश को निरस्त कर दिया था. शीर्ष अदालत ने वर्मा को छुट्टी पर भेजने वाले आदेश को निरस्त कर दिया था, लेकिन उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की सीवीसी जांच पूरी होने तक उनके कोई भी बड़ा नीतिगत फैसला करने पर रोक लगा दी थी. शीर्ष अदालत ने कहा था कि वर्मा के खिलाफ कोई भी आगे का फैसला उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति करेगी जो सीबीआई निदेशक का चयन करती है और उनकी नियुक्ति करती है.

उच्चतम न्यायालय ने विनीत नारायण मामले में सीबीआई निदेशक का न्यूनतम दो साल का कार्यकाल निर्धारित किया था ताकि किसी भी राजनीतिक हस्तक्षेप से उन्हें बचाया जा सके. लोकपाल अधिनियम के जरिये बाद में सीबीआई निदेशक के चयन की जिम्मेदारी चयन समिति को सौंप दी गई थी.

राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने शिवराज, रमन सिंह और वसुंधरा राजे

बीजेपी ने तीन राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्रियों को संगठन में बड़ी जिम्मेदारी दी है

बीजेपी में संगठन स्तर पर बड़ा बदलाव सामने आया है. 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले इस बदलाव को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है. बीजेपी ने तीन राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्रियों को संगठन में बड़ी जिम्मेदारी दी है.

मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह और राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को बीजेपी ने पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त किया है.

तीन राज्यों की बागडोर संभालने वाले इन तीनों नेताओं को संगठन में इतनी बड़ी जिम्मेदारी देना बीजेपी की चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा माना जा रहा है क्योंकि तीनों ही नेता बहुत अनुभवी हैं और राज्य में सरकार चलाने के हर दांव पेंच से वाकिफ हैं.

शिवराज सिंह चौहान हालही में हुए एमपी चुनावों से पहले तीन बार लगातार सीएम रह चुके हैं, वहीं छत्तीसगढ़ के सीएम रमन सिंह भी लगातार तीन बार से राज्य के सीएम थे. वसुंधरा राजे भी राजस्थान की दो बार सीएम रही हैं.

बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह ने भी इन नियुक्तियों पर खुशी जताई है और तीनों ही नेताओं को बधाई दी है.

गौरतलब है कि आगामी लोकसभा चुनावों के लिए बीजेपी ने अपनी तैयारियों को जोर देना शुरू कर दिया है.

पीएम नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को कहा था कि बीजेपी गठबंधन करने के लिए तैयार है और वह अपने पुराने मित्रों के साथ दोस्ती निभाते हुए चलती है. इसी के साथ उन्होंने इस बात के संकेत दे दिए कि बीजेपी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर तमिलनाडु में एनडीए को मजबूत करना चाहती है.


10% कोटा बिल पर लालू के विरोध के क्या मायने

आरजेडी की तरफ से नेताओं के बयान के साथ-साथ आरजेडी की तरफ से आ रहे ट्वीट में भी गरीब सवर्णों को आरक्षण के मुद्दे पर तल्खी दिख रही है.

देर रात तक चली बहस और वोटिंग के बाद गरीब सवर्णों को दस फीसदी आरक्षण देने वाला बिल लोकसभा से पारित हो गया. कई पार्टियों ने इस बिल के खिलाफ आवाज भी उठाई लेकिन इसके विरोध में सबसे ज्यादा खुलकर आई लालू यादव की पार्टी आरजेडी, जिसने लोकसभा में बिल का विरोध किया.

गरीब सवर्णों के लिए सरकारी नौकरी और शैक्षणिक संस्थाओं में दस फीसदी आरक्षण के मुद्दे पर आरजेडी का स्टैंड पहले ही ऐसा दिख रहा था, जब बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे पर अपने त्वरित बयान में कहा, ‘जब 15 फीसदी आबादी वालों को 10 फीसदी आरक्षण देने की बात की जा रही है तो 85 फीसदी आबादी वालों को 90 फीसदी आरक्षण दिया जाए.’

राज्यसभा में बिल पेश होने से पहले अपने नेता की उसी बात को आगे बढ़ाते हुए राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा, ‘यह मध्य रात्रि की डकैती है और यह संविधान की मूल ढांचे के साथ छेड़छाड़ हो रही है.’

आरजेडी का खुला विरोध!

आरजेडी की तरफ से नेताओं के बयान के साथ-साथ आरजेडी की तरफ से आ रहे ट्वीट में भी गरीब सवर्णों को आरक्षण के मुद्दे पर तल्खी दिख रही है. आरजेडी की तरफ से ट्वीट के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा गया. ट्वीट में लिखा गया कि ‘सवर्ण पैदा हुए मोदी ने पहले गुजरात में अपनी जाति को पिछड़ा बनाया फिर 2014 में खुद की जाति के नाम पर दलित-पिछड़ों को मूर्ख बना कर खूब वोट लूटा!’

इस ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अब असली मनुवादी रंग दिखाने का आरोप लगाया गया है. आरजेडी की तरफ से यह दिखाने की कोशिश की गई है कि सवर्ण तबके में महज 5 फीसदी ही गरीब हैं, लिहाजा, उन्हें 10 फीसदी आरक्षण का लाभ देकर बहुजन समाज के लोगों के साथ नाइंसाफी हुई है.

आरजेडी के दूसरे ट्वीट में केंद्र सरकार से जातीय जनगणना की रिपोर्ट को जल्द से जल्द सार्वजनिक करने की मांग की गई है जिसके बाद उनकी संख्या के हिसाब से आरक्षण में हिस्सेदारी तय की जा सके.

बिल का विरोध कर मिलेगा सियासी फायदा?

सवाल है कि आखिरकार आरजेडी इस तरह बिल का विरोध क्यों कर रही है. दरअसल, आरजेडी को लग रहा है कि इस बिल का विरोध करने पर उसे दलित और पिछड़े समुदाय के उन सभी लोगों की सहानुभूति मिल जाएगी, जो अबतक आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं. आरजेडी की रणनीति एक बार फिर से मंडल के दौर को याद कर उस पर आगे बढ़ने की है.

मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद जब पिछड़ी जातियों को भी आरक्षण के दायरे में लाया गया तो इसका जमकर विरोध हुआ था. उस वक्त दलित-पिछड़े और आरक्षण का लाभ मिलने वाली जातियों और सवर्ण जातियों के बीच जातीय गोलबंदी चरम पर थी. इसी गोलबंदी का फायदा उठाकर लालू यादव औऱ मुलायम सिंह यादव जैसे पिछड़े समुदाय से आने वाले नेताओं ने अपनी राजनीतिक जमीन काफी मजबूत कर ली, जिसकी फसल आजतक काट रहे हैं.

पुराने चश्मे से आज की सियासत देखना पड़ सकता है भारी!

नब्बे के दशक में बिहार में लालू यादव और उनकी पार्टी का जनाधार इतना मजबूत था कि उस वक्त लालू यादव की सरकार को हटाना काफी दूर की कौडी लग रहा था, लेकिन, अब गंगा में काफी पानी बह चुका है.

अपने पिता के जेल जाने के बाद पार्टी की कमान संभाल रहे तेजस्वी यादव को शायद इस बात का एहसास नहीं है कि उस वक्त भी जब आरजेडी का मजबूत जनाधार था, तो भी उनकी पार्टी में जगदानंद सिंह और रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे सवर्ण राजपूत समुदाय के नेता उनके साथ साए की तरह खड़े रहे. शिवानंद तिवारी भी उस वक्त पार्टी के साथ थे, एक बार फिर, तिवारी नीतीश कुमार का साथ छोड़ लालू के पाले में आ खड़े हैं.

जगदानंद सिंह और रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे नेताओं की पार्टी में मौजूदगी से लालू यादव के साथ कई क्षेत्रों में राजपूत समुदाय के वोटर भी जुड़े रहे. रघुवंश प्रसाद सिंह वैशाली से लोकसभा सांसद रहे हैं, जबकि, जगदानंद सिंह बक्सर से सांसद रहे हैं. इसके अलावा बिहार की महाराजगंज सीट से राजपूत जाति से आने वाले प्रभुनाथ सिंह भी लालू यादव के साथ कुछ साल पहले आ गए हैं. उस वक्त 85 बनाम 15 का नारा देकर अगड़े-पिछड़े के नाम पर वोट लेने वाले नेताओं की टोली में इन बड़े राजपूत नेताओं की मौजूदगी सियासी कुनबे में उस खालीपन को खत्म कर रही थी.

यहां तक कि सवर्ण समुदाय से आने वाले भूमिहार जाति के अखिलेश प्रसाद सिंह पहले विधायक बनने के बाद आरजेडी सरकार में मंत्री रहे और बाद में बिहार के मोतिहारी से लोकसभा चुनाव जीतकर यूपीए-1 सरकार में मंत्री बनाए गए. आज अखिलेश प्रसाद सिंह आरजेडी से बाहर होकर कांग्रेस के साथ खड़े हैं. फिर भी, लालू यादव की पार्टी में एक वक्त अखिलेश प्रसाद सिंह सवर्ण चेहरे के तौर पर सामने थे.

लेकिन, अब आरजेडी का गरीब सवर्णों के आरक्षण का विरोध करना यह दिखा रहा है कि वो फिर से नब्बे के दशक के हिसाब से पुराने ढर्रे पर ही राजनीति करना चाहती है. लेकिन, आरजेडी आलाकमान को यह समझन होगा कि उस वक्त और आज के वक्त में जमीन-आसमान का फर्क है.

हालांकि फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं, ‘हम इस बिल का समर्थन करते हैं लेकिन, हमारी मांग है कि जब 50 फीसदी की सीमा को बढ़ा रहे हैं तो फिर सबकी हिस्सेदारी उनकी आबादी के हिसाब से तय की जाए.’ उनकी मांग है कि ‘पहले जातीय जनगणना के आंकड़े को प्रकाशित किया जाए, फिर, उसके आधार पर आरक्षण लागू किया जाए. जब 15 फीसदी आबादी वालों को 10 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है तो 85 फीसदी वालों को 90 फीसदी कर देना चाहिए.’

आरजेडी के जनाधार में भी हुआ है बिखराव

85 बनाम 15 की उस वक्त बात करने वाले नेताओं में से आज बहुत सारे ऐसे हैं जिनका जनाधार उसी 85 फीसदी वोट बैंक से ही निकला है. नीतीश कुमार ने आरजेडी के पिछड़े वोट बैंक में सेंधमारी कर अपनी अलग राजनीतिक जमीन तैयार कर ली है, जबकि, रामविलास पासवान दलित वोट बैंक के सबसे बड़े दावेदार बन गए हैं. लिहाजा, लालू यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव की रणनीति उनकी अपनी संभावनाओं पर पलीता लगा सकती है.

कांग्रेस गरीब सवर्णो के आरक्षण के मुद्दे पर विरोध नहीं कर पा रही है. मजबूर कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सरकार का साथ दे दिया है. दूसरी तरफ, आरजेडी की सहयोगी आरएलएसपी की तरफ से भी बिल का समर्थन कर दिया गया है. भले ही आरएलएसपी न्यायपालिका और प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण की मांग ही क्यों न कर रही हो.

मुसीबत में आरजेडी के सहयोगी

आरजेडी का खुलकर विरोध में उतर आना बिहार में महागठबंधन के उसके सहयोगियों पर भारी पड़ सकता है. कांग्रेस का वोट बैंक सवर्ण तबका ही रहा है. ऐसे में उसे परेशानी हो सकती है. गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव 2015 में कांग्रेस के 27 विधायक चुनकर आए थे, जिसमें 12 सवर्ण समुदाय के ही थे. ऐसे में मुश्किल कांग्रेस को हो सकती है.

हालांकि बिहार कांग्रेस के नेता आरजेडी के रुख से इत्तेफाक नहीं रखते हैं. फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में बिहार कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष समीर सिंह का कहना है, ‘जनता इस बात को समझती है, लिहाजा कोई परेशानी कांग्रेस को नहीं होगी.’ उनका कहना है, ‘जनता जानती है कि आरजेडी-कांग्रेस दोनों का चरित्र और संस्कार अलग है. केवल सेक्युलरिज्म के नाम पर हम एक हो जाते हैं. गरीब सवर्णों के आरक्षण का मुद्दा तो कांग्रेस ने ही सबसे पहले उठाया था, जिसकी बीजपी नकल कर रही है.’

2015 की कहानी दोहरा पाएगी आरजेडी?

आरजेडी की रणनीति को समझने के लिए पिछले विधानसभा चुनाव के गणित और समीकरण को समझना होगा. पिछले विधानसभा चुनाव में जेडीयू और कांग्रेस की तरफ से सवर्ण तबके के उम्मीदवारों को तरजीह दी गई थी. लेकिन, आरजेडी की तरफ से उनको कम सीटें दी गई थी.

आरजेडी ने एक ब्राह्मण, एक कायस्थ और तीन राजपूत जाति के उम्मीदवार मैदान में उतारे थे. जिनमें ब्राह्मण और दो राजपूत उम्मीदवारों की जीत हुई. लेकिन, एक खास रणनीति के तहत आरजेडी ने भूमिहार समुदाय के किसी भी व्यक्ति को उम्मीदवार नहीं बनाया था. चुनाव से ठीक पहले भूमिहार जाति से आने वाले बाहुबली अनंत सिंह की गिरफ्तारी को आरजेडी की तरफ से एक संकेत और संदेश के तौर पर प्रसारित किया गया. एक भी भूमिहार को टिकट न देकर लालू यादव ने फिर से पुराने दौर की याद दिलाकर अगड़ा बनाम पिछड़ा की राजनीति को ही धार देने की कोशिश की.

विधानसभा चुनाव में उस वक्त जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस के महागठबंधन में नीतीश कुमार का चेहरा सामने किया गया जिसका सीधा फायदा महागठबंधन को हुआ, महागठंबधन में नीतीश कुमार के साथ मिलकर लालू यादव ने जो सामाजिक समीकरण तैयार किया उसमें पिछड़ी-अतिपिछड़ी जातियों के अलावा दलित-महादलित भी काफी हद तक उनके साथ आ गए. विधानसभा चुनाव में आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की तरफ से सवर्ण तबके के बजाए सभी पिछड़ों-दलितों की बात जोर-शोर से उठाई गई.

चुनाव के ठीक पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का आरक्षण पर दिया गया बयान और उसको प्रचारित करने की लालू यादव की कोशिश का ही कमाल रहा कि उस वक्त आरजेडी फिर से बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर गई. अब एक बार फिर कुछ उसी तरह की कोशिश आरजेडी कर रही है.

उसे यह कोशिश भारी पड़ सकती है, क्योंकि, इससे न केवल उसको वोट करने वाले सवर्ण वोटर नाराज होंगे बल्कि, सामान्य वर्ग के गरीब तबकों को मिलने वाले आरक्षण के दायरे में आने वाले मुस्लिम समुदाय के भी वोटर भी खफा हो सकते हैं.

Roadies in Panchkula when Demokraticfront.com met few contestants

Today all roads were leading to Roadies at Indradhanush in Panchkula.

The day was shining with the hope from all around. Guys & Demsels from all around the northern region of India were in Panchkula. It was like as if who is not in Panchkula is not in North India.

The show was at its prime in side the ” Indradhanush” but a cub (Purnoor) was roaring outside looking wildly for her prey who on the other hand were having fire in their belly and ready to mingle at single tingle any where ‘That is Roadies’.

The first

Purnoor met Rekha Shikhawat
Roadies Don’t Lie
The Group of Fantastic Four
It was not our idea but It Rocks
Direct From the Heart
And the Song was Kishore Da’s “हम थे वो थी और समां रंगीन”
eye catching