विजय दिवस पीएसआर कांग्रेस ने दोहराया इतिहास

26 जुलाई, 1999 को भारत ने कारगिल युद्ध में विजय हासिल की थी। इस दिन को हर वर्ष विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन घुसपैठिए पाकिस्तानियों को हमारे जांबाजों ने खदेड़ बाहर किया था और कारगिल की चोटियों पर तिरंगा फहराया था। पूरा देश जहां कारगिल विजय दिवस के उल्लास में डूबा हुआ है वहीं सोशल मीडिया में एक वीडियो वायरल हो रहा है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राशिद अल्वी के इस वीडियो में कह रहे हैं, ”कारगिल युद्ध बीजेपी की लड़ाई थी, इस युद्ध से देश का कुछ लेना देना नहीं था।”

गौरतलब है कि 26 जुलाई, 1999 के भारतीय सेना ने घुसपैठिए पाकिस्तानियों को खदेड़ कर बाहर किया था और कारगिल की चोटियों पर तिरंगा फहराया था। इस युद्ध में भारत के 527 वीर सपूतों ने अपनी शहादत दी थी जबकि 1300 से अधिक सैनिक घायल हुए थे। हर देशवासी भारत मां के वीर सपूतों के बलिदान को सेल्यूट करता है, लेकिन कांग्रेस पार्टी और उनके नेता वीर शहीदों को सम्मान नहीं देती, और न ही सेना की इस उपलब्धि पर गर्व करती है। हालांकि ये वीडियो पुराना बताया जा रहा है, लेकिन यह साफ है कि कांग्रेस के नेता देश की सेना के लिए सम्मान का भाव नहीं रखते हैं। 

गौरतलब है कि 1999 के बाद से 2003 तक देश में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार रही। उस दौरान  हर साल संसद में कारगिल विजय दिवस मनाया जाता रहा, लेकिन मई 2004 में जैसे ही कांग्रेस के पास सत्ता आई तो सोनिया गांधी के आदेश से संसद में कारगिल विजय दिवस कार्यक्रम पर ही बैन लगा दिया गया। नतीजा रहा  कि 2004 से लेकर 2009 तक भारत की संसद में कारगिल के बलिदानियों को श्रद्धांजलि नहीं दी गई और न ही विजय दिवस मनाया गया। हालांकि जुलाई 2009 में एनडीए के राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने जब मामले को उठाया तो संसद में खूब हंगामा हुआ। इसके बाद कारगिल विजय दिवस संसद में नियमित रूप से मनाया जाने लगा।

Did u know 2004-2009 Cong led UPA did not celebrate or honor
on July26 till I insistd in

इसी तरह 2009 में ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राशिद अल्वी ने खुलेआम कह दिया था कि कारगिल युद्ध बीजेपी की लड़ाई थी, इस युद्ध से देश का कुछ लेना देना नहीं था। दरअसल कांग्रेस नेताओं की मंशा ही नहीं बल्कि परम्परा ही हमेशा देश के सेना का अपमान करने की रही है।

21 जून, 2018

कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने सेना को नरसंहार करने वाला कहा।

11 जून, 2017

कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने सेना प्रमुख को गुंडा कहा।

16 अप्रैल, 2017

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने सेना को कश्मीरी लोगों का हत्यारा कहा।

04 अक्टूबर, 2016

कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने सर्जिकल स्ट्राइक को Fake कहा।

15 अक्टूबर, 2015

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने अर्धसैनिक बल के जवान को थप्पड़ मारा।

09 फरवरी, 2013

कांग्रेस नेता सलमान निजामी ने भारतीय सेना को रेपिस्ट कहा।

Nation is busy remembering ‘Kargil’ and Congress at it best

Today ABVP PU remembered Martyrs on the occasion of Vijay Diwas at Student center in Panjab University, Chandigarh. ‘ This pious land of Panjab University does not belong to the stone pelters who abuse Indian Army openly but to the heroes of the kargil war Captain Vikram Batra And Major Sagar, we must respect our Armed forces who protect us’ said senior ABVP leader Harmanjot Singh Gill. All the members of Party paid tribute to the heros and celebrated the Kargil Victory Day..

on the other hand Congress Party states:

courtesy HEADLINES TODAY

 

पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने को भारत को ही आगे आना होगा: इमरान


भारत पर बोलते हुए इमरान खान ने कहा कि सेना के जरिए दोनों देशों के मसले ठीक नहीं हो सकते. कश्मीर समस्या का हल बातचीत के जरिए होगा

अमरीका ओर चीन से रिश्ते ओर सुधरेंगे ओर मजबूत होंगे 


पाकिस्‍तान क्रिकेट टीम के पूर्व कप्‍तान और पीटीआई चीफ इमरान खान एक और बड़े खिताब के काफी करीब पहुंच गए हैं. उनकी इस कामयाबी के लिए उन्हें दुनियाभर से बधाई मिल रही हैं. इमरान खान ने चुनाव के नतीजे घोषित होने से पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस की है. इसमें उन्होंने भारत और पाकिस्तान के रिश्ते अच्छे करने पर जोर डाला है.

भारत पर बोलते हुए इमरान खान ने कहा कि सेना के जरिए दोनों देशों के मसले ठीक नहीं हो सकते. कश्मीर समस्या का हल बातचीत के जरिए होगा. भारत एक कदम बढ़ाएगा तो पाकिस्तान दो कदम बढ़ाएगा. भारत के साथ अच्छे संबंध के साथ भारत के साथ मजबूत व्यापारिक रिश्ते चाहते हैं.

इमरान खान ने कहा कि कश्मीरी लंबे समय से दुख झेल रहे हैं. हमें कश्मीर का मुद्दा बातचीत के जरिए सुलझाना होगा. अगर भारत का नेतृत्व चाहता है तो हम दोनों मिल कर इस मुद्दे का सामाधान निकाल सकते हैं. यह इस उपमहाद्वीप के लिए अच्छा होगा.

राष्ट्र को संबोधित करते हुए पीटीआई चीफ इमरान खान ने कहा कि जिस तरह से मुझे भारतीय मीडिया में पेश किया गया उससे मुझे दुख पहुंचा. मैं उन पाकिस्तानियों में से हूं जो भारत के साथ अच्छे संबंध चाहता हूं. अगर हम उपमहाद्वीप को गरीबी से मुक्त कराना चाहते हैं तो हमें दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध रखने होंगे और व्यापारिक रिश्ते अच्छे करने होंगे.

अपने संबोधन में इमरान खान ने कहा कि अफगानिस्तान एक ऐसा देश है जिसने आतंकवाद का सबसे बुरा दौर देखा है. अगर वहां पर शांति हो सकती है तो पाकिस्तान में क्यों नहीं. उन्होंने कहा कि मैं चाहूंगा कि दोनों देशों के बीच बॉर्डर को खोला जाए.

इमरान खान ने कहा कि इस चुनाव के दौरान मेरे पर सबसे ज्यादा व्यक्तिगत हमले हुए. हम बदले की भावना से कोई कार्रवाई नहीं करेंगे. उन्होंने कहा कि जनता से किए गए हर वादे को पूरा करूंगा.

खान ने राष्ट्र के संबोधन में कहा कि पहले हुक्मरान, शासन करने वाले अपने आप पर खर्च करते थे. आज से यह नहीं होगा. म सादगी से रहेंगे, इतने बड़े पीएम हाउस में नहीं. छोटी जगह देखेंगे कोई. मैं आवाम के टैक्स की हिफाजत करूंगा.

उन्होंने कहा कि हमें गरीबी से लड़ाई लड़नी है. यह एक बड़ी चुनौती है. उन्होंने कहा कि चीन हमारे सामने एक उदाहरण की तरह है जिसने पिछले 30 साल में 70 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला. यह अभूतपूर्व था.

पीटीआई अध्यक्ष इमरान खान ने कहा कि हम लोग पाकिस्तान के लोकतंत्र को मजबूत होते हुए देख रहे हैं. तमाम आतंकी हमलों के बाद भी चुनावी प्रक्रिया सफल रही. उन्होंने सुरक्षा बलों को धन्यवाद भी दिया.

इमरान खान ने कहा कि वह जिन्‍ना के सपनों को पूरा करने के लिए राजनीति में आए थे. पाकिस्‍तानी सरकारों को गिरते देखा है. नया पाकिस्‍तान बनाना मेरा लक्ष्‍य है. हम देश में लोकतंत्र को मजबूत होते हुए देख रहे हैं.

राष्ट्र को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि 22 सालों की मेहनत रंग लाई है. उन्होंने बलूचिस्तान के लोगों को धन्यवाद भी दिया है. उन्होंने कहा कि अल्लाह ने मुझे मौका दिया है.

विधान सभा में चीमा होंगे नेता विपक्ष

आम आदमी पार्टी ने पंजाब में अपने विपक्ष के नेता को बदल दिया है. दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ट्वीटर पर यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि आम आदमी पार्टी ने फैसला किया है कि वह पंजाब में अपने विपक्ष के नेता को बदल रही है. दिरबा विधानसभा से विधायक हरपाल सिंह चीमा पंजाब विधानसभा में आम आदमी पार्टी के नेता होंगे.

अभी तक पंजाब विधानसभा में आम आदमी पार्टी के नेता सुखपाल खैहरा थे लेकिन उनके बगावती तेवरों की वजह से उन्हें हटा दिया गया और उनकी जगह हरपाल सिंह चीमा को विपक्ष का नेता बनाया गया है. चीमा पेशे से वकील हैं और उन्हें पंजाब में आम आदमी पार्टी के बड़े नेताओं में से एक माना जाता है.

डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम पर डेरा प्रबंधक रंजीत हत्या मामले में आज हुई सुनवाई

डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम पर डेरा प्रबंधक रंजीत हत्या मामले में आज हुई सुनवाई।

पंचकूला स्थित हरियाणा की विशेष सीबीआई अदालत में हुई सुनवाई।

मुख्य आरोपी राम रहीम विडिओ कॉन्फ्रेंसिंग से हुआ सीबीआई कोर्ट में पेश।

वहीं मामले के अन्य आरोपी जसबीर,शब्दिल,इन्द्रसेन,अवतार और कृष्ण प्रत्यक्ष रूप से सीबीआई कोर्ट में हुए पेश।

आज मामले की सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने 18 गवाहों की लिस्ट दाखिल की।

जिसे सीबीआई कोर्ट ने मंजूर कर दिया।

इस मामले की अगली सुनवाई अब
27 जुलाई को होगी।

वहीं 27 जुलाई को सीबीआई कोर्ट ने गुरमीत राम रहीम पर डेरा प्रबंधक रंजीत सिंह की हत्या व पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या दोनो मामलों के गवाहों की होगी गवाही।

2 Punjab IPS  empanelled for the post of Joint Secretary

 

Punjab IPS  Rai &  Rao empanelled for the post of Joint Secretary/ Equivalent  at Centre

Chandigarh , July 25 , 2018 : Union Government has approved the empanelment of Punjab IPS officers A S Rai and  G Nagehwara Rao to hold post of  Joint Secretary/ Equivalent  at Centre. Mr.  Rai ,presently posted as IG Patiala  Range is 1994 batch IPS.1995 batch Mr. Rao is posted as Director ,Vigilance Bureau , Punjab.

The list includes 1994 batch Punjab cadre IPS A S Rai and 1995 batch officer Gollapalli Nageswara Rao  is posted as Director ,Vigilance. Total 20 IPS offices of 1987, 1989, 1990, 1991, 1992, 1994 and 1995 batches have been empanelled to hold  the post of Joint Secretary/ Equivalent  at Centre.

Bir Devinder Singh strongly condemned appointment of new VC

Chandigarh, July 24, 2018:

Former Punjab Deputy Speaker, Bir Devinder Singh strongly condemned presence of the local BJP-RSS workers at the joining of the new Vice-Chancellor Dr Raj Kumar, Panjab University (PU).

With this, the alleged ideological affiliation of the new VC with RSS-BJP has been exposed. “It is quite disturbing to learn that the new VC of Punjab University, Dr Raj Kumar is an RSS man from Banaras Hindu University,” said Bir Devinder in a statement issued here on Tuesday.

He stated that the Panjab University represented the liberal ethos and culture of Punjab in the world of academia. It’s Senate, Syndicate and Vice Chancellors have always guarded the rich heritage and maintained appropriate balance, keeping in mind the region’s aspirations. Therefore, the appointment of all previous VCs was made keeping in view the sensitivity of Punjabis.

“It seems bizarre that the selection committee did not find even one Professor from the Punjab University or any other university of Punjab, worthy of the august post despite having illustrious academic careers. The new VC has no connect with Punjab region,” he added.

Bir Devinder alleged that the search committee set up to find suitable candidate for the post was packed with RSS/BJP appointed/ affiliated persons. It is strange enough that out of about 160 applicants, only 9 were shortlisted and all the shortlisted professors had RSS/BJP connections. “It is another extreme of intellectual dishonesty that neither in search committee, nor among the candidates, a single person belonged to minorities, schedule castes or schedule tribes, he pointed out while terming the  presence of the Chandigarh BJP president Sanjay Tandon and other RSS people “supervising” the joining of the new VC.

The senior leader warned that any attempt to ‘saffronise’ the PU by changing its secular character would be resisted at every level. He also urged the faculty and students of the PU affiliated colleges and the university campus to keep vigil on any activities and new policies brought in by the new VC. “The appointment of the new VC has posed a big question mark on the future of the Panjab University,” he said.

2019: कांग्रेस के पास 272 के ‘मैजिक फिगर’ के लिये कोई जादुई छड़ी नहीं है

क्या कांग्रेस 1977 के चुनावी फॉर्मूले को लेकर 2019 का चुनाव जीतने का ख्वाब संजो रही है? 1977 में जिस तरह से कांग्रेस के खिलाफ समूचा विपक्ष एकजुट हुआ था क्या वो ही तस्वीर 2019 में बीजेपी के खिलाफ दिखाई देगी?

दरअसल बीजेपी की इस वक्त मजबूत स्थिति 1960 और 1970 के दशक में कांग्रेस की स्थिति को दर्शा रही है. कांग्रेस की ही तरह बीजेपी आज देश की सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर राज्य दर राज्य अपनी विजय यात्रा जारी रखे हुए है. बीजेपी के विजयी रथ को रोकने के लिये कांग्रेस वर्किंग कमेटी में गहन मंथन हुआ. पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने 2019 के लोकसभा चुनाव के लिये ‘मिशन 300’ का प्लान पेश किया है.

chidambaram

चिदंबरम का मानना है कि 12 राज्यों में कांग्रेस के मजबूत जनाधार को देखते हुए 150 सीटों का लक्ष्य रखा जाए. कांग्रेस अगर अपनी मौजूदा सीटों की संख्या को तीन गुना बढ़ा कर 150 तक पहुंचा ले तो बाकी 150 सीटों का बचा हुआ काम क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन पूरा कर सकते हैं. जिससे 272 के ‘मैजिक फिगर’ को यूपीए-3 पार कर सकती है.

चिदंबरम का मानना है कि तकरीबन 270 सीटें ऐसी हैं जहां क्षेत्रीय दलों के साथ रणनीतिक गठबंधन की मदद से 150 सीटें जीती जा सकती हैं. चिदंरबरम फॉर्मूले के तहत कांग्रेस 300 सीटों पर अकेले और 250 सीटों पर रणनीतिक गठबंधन के साथ चुनाव लड़े.

साल 2004 में भी कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में 145 सीटें मिली थीं जिसके बाद उसने केंद्र में यूपीए-1 की सरकार बनाई थी. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल 44 सीटें ही जीत सकी थी.

कांग्रेस की रणनीति ये हो सकती कि वो जिन राज्यों में मजबूत स्थिति या फिर नंबर दो पर हो वहां बीजेपी से सीधा मुकाबला करे. लेकिन जिन राज्यों में उसकी स्थिति नंबर 4 की हो तो वहां क्षेत्रीय दलों को बीजेपी से टक्कर के लिये आगे बढ़ाए और खुद पीछे रह कर समर्थन करे.

एनसीपी नेता शरद पवार ने भी ऐसा ही सुझाव कांग्रेस को सुझाया था. पवार ने चुनाव पूर्व महागठबंधन की कल्पना अव्यावाहरिक बताया था. उन्होंने महागठबंधन के आड़े आ रही क्षेत्रीय दलों की निजी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की मजबूरी को सामने रखा था. उनका कहना था कि चुनाव में क्षेत्रीय दल पहले अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करना चाहेंगे. भले ही बाद में बीजेपी विरोधी दल समान विचारधारा के नाम पर एक छाते के नीचे महागठबंधन बना लें.

लेकिन सवाल ये उठता है कि कांग्रेस के लिये आखिर 150 का आंकड़ा भी कैसे और किन राज्यों से आ सकेगा? इमरजेंसी के बाद कांग्रेस ने जिस तरह से सत्ता में धमाकेदार वापसी की थी, वैसा ही करिश्मा दिखाने के लिये कांग्रेस के पास आज न ज़मीन है और न ही चेहरा.

दरअसल इमरजेंसी के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी की सबसे बड़ी वजह खुद जनता पार्टी भी थी. जनता पार्टी की सरकार अंदरूनी कलह की वजह से गिर गई थी. जिसका फायदा उठाते हुए कांग्रेस जनता को ये समझाने में कामयाब रही कि सिर्फ कांग्रेस ही देश में शासन चला सकती है. उस वक्त कांग्रेस के पास इंदिरा गांधी जैसा करिश्माई चेहरा भी था. पाकिस्तान से 1971 की जंग जीतने के सेहरा उनके राजनीतिक बायोडाटा में दर्ज था. ‘इंदिरा इज़ इंडिया’ जैसे नारों की गूंज थी. लेकिन आज कांग्रेस के पास बीजेपी के भीतर भूचाल लाने वाले चेहरे का शून्य साफ देखा जा सकता है.

जहां कांग्रेस के लिये यूपीए 3 को लेकर चुनाव पूर्व गठबंधन की राहें इतनी आसान नहीं है तो वहीं चुनाव बाद महागठबंधन को लेकर भी आशंकाएं दिनों-दिन गहराने का ही काम कर रही हैं. अविश्वास प्रस्ताव में बीजेडी और टीआरएस जैसी पार्टियों के रुख ने कांग्रेस को झटका देने का काम किया है. इन दोनों ही पार्टियों ने खुद को वोटिंग से अलग रख कर बीजेपी का ही एक तरह से साथ दिया है. जबकि महागठबंधन को लेकर एसपी,बीएसपी और टीएमसी जैसी पार्टियों ने अब तक अपना रुख साफ नहीं किया है. कांग्रेस के साथ गठबंधन करने में इन पार्टियों को अपने जनाधार खिसकने का भी डर है.

समान विचारधारा के नाम पर भी ये पार्टियां यूपीए3 का हिस्सा बनने से कतरा रही हैं क्योंकि कांग्रेस के ‘मुस्लिम पार्टी’ के ठप्पा का डर इन्हें भी लगने लगा है. यूपी विधानसभा चुनाव में एसपी का मुस्लिम-यादव समीकरण का सत्ता दिलाने का हिट फॉर्मूला फेल हो गया तो बीएसपी की सोशल इंजीनियरिंग का किला भी ध्वस्त हो गया था. साफ है कि अब एसपी-बीएसपी भी लोकसभा चुनाव में हर कदम फूंक-फूंक कर रखेंगीं. ऐसे में कमजोर कांग्रेस के साथ चुनावी तालमेल की संभावना सियासी सौदेबाजी के कई चरणों के बाद ही हो सकती है.

बिहार की राजनीति में कांग्रेस अपने ही वजूद के लिये संघर्ष कर रही है. ऐसे में यहां उसके पास यूपीए के सहयोगी आरजेडी के सामने सरेंडर करने के अलावा कोई चारा नहीं है. बिहार की राजनीति में मुख्य लड़ाई आरजेडी और बीजेपी-जेडीयू के बीच ही होगी.

जबकि पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी पार्टी टीएमसी की नेता ममता बनर्जी का ज्यादा जोर थर्ड फ्रंट बनाने पर दिखता रहा है. लेकिन टीआरएस के बदले-बदले से मिजाज को देखकर वो भी अब खुद की पार्टी को ही चुनाव में मजबूत करने का काम करना चाहेंगीं. इसी तरह तमिलनाडु और केरल जैसे दूसरे राज्यों में भी कांग्रेस की उम्मीदें डीएमके और सीपीएम जैसी पार्टियों पर है. इन राज्यों में कांग्रेस को अपने ही धैर्य का इम्तिहान लेना होगा. सीपीएम कभी हां-कभी ना के साथ कांग्रेस के साथ दिखाई देती है तो वहीं डीएमके भी बदलते राजनीतिक समीकरणों के चलते कोई नया दांव चल सकती है.

दरअसल सवाल सभी क्षेत्रीय दलों के अपने वजूद का भी है जो कि मोदी लहर की वजह से गड़बड़ाने के बाद अबतक सम्हल नहीं सका है.

ऐसे में कांग्रेस को मिशन 150 के लिये बीजेपी की मिशन 300+ की रणनीति से ही कुछ सीक्रेट फॉर्मूले निकालने होंगे. एक वक्त तक बीजेपी को सवर्णों की पार्टी कहा जाता था तो कांग्रेस को दलित-मुसलमानों के मसीहा के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाता था. लेकिन आज बीजेपी ने सवर्णों की पार्टी के टैग को हटा कर सोशल इंजीनियरिंग की जो मिसाल पेश की उसकी काट किसी के पास नहीं है. कांग्रेस को भी एक नए समीकरण की तलाश करनी होगी क्योंकि उसका वोट बैंक क्षेत्रीय दल लूट चुके हैं.

यूपी में कांग्रेस को फिलहाल मंथन करने की जरूरत नहीं है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल 2 सीटें ही मिलीं. जबकि साल 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे सिर्फ 7 सीटें मिलीं. गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में उसकी जमानत भी जब्त हुई. ऐसे में यहां ज्यादा एक्सपेरीमेंटल होने की जरुरत नहीं है. यूपी की 80 लोकसभा सीटों को देखते हुए कांग्रेस को एसपी-बीएसपी गठबंधन पर ही भरोसा दिखाना होगा. कांग्रेस के पास यूपी में कोई करिश्माई चेहरा नहीं है. ऐसे में कांग्रेस सौदेबाजी की हालत में नहीं है. यहां वो दर्शन ठीक है कि जो मन का हो जाए तो ठीक है और न हो तो और भी ठीक है.

हालांकि साल 2009 की तर्ज पर कांग्रेस यहां सभी 80 सीटों पर दांव भी खेल सकती है क्योंकि उसके पास यहां खोने को कुछ नहीं है. अगर दांव चल गया तो कांग्रेस के लिये सबसे अप्रत्याशित एडवांटेज होगा.

गुजरात में लोकसभा की 26 सीटें हैं. साल 2014 में गुजरात में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. लेकिन गुजरात विधानसभा चुनाव में ‘ट्रेलर’ दिखाने वाली कांग्रेस का दावा है कि वो लोकसभा चुनाव में पूरी ‘पिक्चर’ दिखाएगी. गुजरात कांग्रेस का दावा है कि वो लोकसभा चुनाव में सभी बीजेपी विरोधी ताकतों को साथ लाकर मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलेगी.

गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी जैसे नेताओं के साथ गठबंधन कर बीजेपी के ‘क्लीन-स्वीप’ के तिलिस्म को तोड़ दिया था. ऐसे में इस बार गुजरात में कांग्रेस को संभावना दिख रही हैं जो कि उसकी 150 सीटों के लक्ष्य को हासिल करने के लिये बूंद-बूंद से घड़ा भरने का काम कर सकती है.

इस बार पंजाब और राजस्थान को लेकर कांग्रेस आत्मविश्वास से लबरेज है. पंजाब में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में हारी कांग्रेस ने 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में जबरदस्त वापसी की. इस चुनाव से न सिर्फ उसकी सीटों में इजाफा हुआ बल्कि वोट प्रतिशत में भी बढ़ोतरी हुई. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 38.5 फीसदी मत मिले. वहीं गुरुदासपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में मिली जीत से कांग्रेस उत्साहित है. ऐसे भी संकेत मिल रही हैं कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल को कड़ी टक्कर देने के लिये कांग्रेस आम आदमी पार्टी से भी हाथ मिला सकती है. आम आदमी पार्टी ने पंजाब के विधानसभा चुनाव को त्रिकोणीय मुकाबले में बदल दिया था.

इसी साल मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव होने वाले हैं. मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटों में कांग्रेस के पास केवल 2 ही सीटें हैं. ये सीटें ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुना और कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में जीती थीं. लेकिन इस बार कांग्रेस को एमपी में एंटीइंकंबेंसी से काफी उम्मीदें हैं. शिवराज के 15 साल के शासनकाल में उपजी सत्ताविरोधी लहर के भरोसे कांग्रेस न सिर्फ विधानसभा चुनाव जीतने का सपना देख रही है बल्कि उसे लोकसभा सीटें मिलने की भी उम्मीदें है.

इसी तरह छत्तीगढ़ में लोकसभा की 11 सीटें हैं. लेकिन कांग्रेस के पास यहां विद्याचण शुक्ल जैसा पुराना चेहरा नहीं है. नक्सली हमले में कांग्रेस ने अपने कई बड़े नेताओं को खो दिया था. बीजेपी के मुख्यमंत्री रमन सिंह का फिलहाल कांग्रेस के पास यहां कोई तोड़ नहीं दिखाई देता है.

राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता में आने का पूरा भरोसा है. यहां हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा है. विधानसभा चुनाव के साथ ही कांग्रेस को यहां लोकसभा सीटें भी जीतने की उम्मीद है. साल 2014 में राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में से एक भी सीट कांग्रेस नहीं जीत सकी थी. लेकिन इस बार उपचुनावों में उसने लोकसभा की दो और विधानसभा की एक सीट जीती.

उत्तर-पूर्वी राज्यों में एक वक्त कांग्रेस का एकछत्र राज होता था. लेकिन बीजेपी ने अपनी रणनीति के तहत उत्तर-पूर्वी राज्यों में ताकत झोंक दी. बीजेपी ये जानती है कि यूपी में साल 2014 का करिश्मा दोहरा पाना आसान नहीं होगा. इसलिये उसने वैकल्पिक सीटों के लिये उत्तर-पूर्वी राज्यों को खासतौर से टारगेट किया. ये इलाके कांग्रेस और लेफ्ट का गढ़ होने के बावजूद अब भगवामय हो चुके हैं.

असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और त्रिपुरा में बीजेपी की सरकार है. वहीं नागालैंड में नागा पीपुल्स फ्रंट-लीड डेमोक्रेटिक गठबंधन को बीजेपी का समर्थन मिला हुआ. ऐसे में कांग्रेस को उत्तर-पूर्वी राज्यों में कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि बीजेपी ने पूर्वोत्तर की 25 लोकसभा सीटों के लिये साल 2014 से ही तमाम परियोजनाओं के जरिये साल 2019 की तैयारी शुरू कर दी थी.

सबसे ज्यादा असम के पास 14 लोकसभा सीटें हैं. असम में बीजेपी की सरकार है. बीजेपी ने पूर्वोत्तर को कांग्रेस मुक्त बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. कांग्रेस पांच राज्यों से सिमट कर मेघालय और मिजोरम तक ठहर गई है.

महाराष्ट्र को लेकर कांग्रेस थोड़ी सी आशान्वित हो सकती है. महाराष्ट्र के वोटरों में हर पांच साल में सरकार बदलने की मानसिकता रही है. यूपी के बाद महाराष्ट्र ही लोकसभा की सबसे ज्यादा 48 सीटें देता है. यहां असली मुकाबला कांग्रेस-एनसीपी और बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के बीच है. फिलहाल जो राजनीतिक हालात हैं उसे देखकर लग रहा है कि बीजेपी यहां पर अकेले दम पर चुनाव लड़ सकती है क्योंकि शिवसेना के साथ रिश्ते काफी बिगड़ चुके हैं. कांग्रेस और एनसीपी इसका फायदा उठा सकते हैं.

कर्नाटक में भले ही कांग्रेस दोबारा सरकार नहीं बना पाई लेकिन उसे जेडीएस के रूप में साल 2019 का लोकसभा पार्टनर मिल गया है. कर्नाटक की 28 लोकसभा सीटों में कांग्रेस को साल 2014 में केवल 9 सीटें ही मिली थीं. ऐसे में कांग्रेस और जेडीएस का गठबंधन इस बार चुनाव में बीजेपी का गेम-प्लान बिगाड़ने का काम कर सकता है.

चिदंबरम के गेम-प्लान के मुताबिक अगर कांग्रेस को 150 सीटें हासिल करनी है तो उसे मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर के राज्यों में जोरदार मेहनत करनी होगी तो वहीं क्षेत्रीय दलों के वर्चस्व वाले राज्यों में गठबंधन को ही रणनीति बनानी होगी.

चिदंबरम के फॉर्मूले में अंकगणित के हिसाब से कागजों पर कांग्रेस करिश्मा देख सकती है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि मोदी-विरोधी मोर्चा केंद्र सरकार के खिलाफ किन मुद्दों पर मैदान में ताल ठोंक सकेगा? सिर्फ मोदी विरोध के नाम पर चुनाव जीतने की गलतफहमी कांग्रेस को साल 2014 की ही तरह दोबारा ‘हाराकीरी’ पर मजबूर ही करेगी.

कांग्रेस को अपनी रणनीति बदलनी होगी. पीएम मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक बयानों से बचना होगा. इसकी शुरुआत खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को ही करनी पड़ेगी तभी दूसरे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जबान पर लगाम रखेंगे. अब राहुल भी ये जान चुके हैं कि ‘आंखों में आंख न डाल पाने वाले’ मोदी अविश्वास प्रस्ताव पर कैसे विरोधियों को धूल चटा गए हैं.

कांग्रेस में पीएम मोदी पर बोलने के नाम पर ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ का ‘भरपूर इस्तेमाल’ करने वाले नेता ही अपनी पार्टी का काम तमाम करते आए हैं. तभी राहुल को सीडब्लूसी की बैठक में बड़बोले नेताओं की बोलती बंद करने के लिये कड़ी कार्रवाई की धमकी देनी पड़ी है.

बहरहाल, कांग्रेस ये सोचकर खुद में आत्मविश्वास भर सकती है कि इस साल लोकसभा की दस सीटों पर हुए उपचुनावों में बीजेपी 8 सीटों पर हारी है. वहीं बीजेपी भी 8 सीटों की हार से 2019 के अपने मिशन 300+ की दोबारा समीक्षा कर सकती है. फिलहाल सौ साल पुरानी कांग्रेस को 150 सीटों की सख्त दरकार है. ये चुनौती इसलिये भी बड़ी है क्योंकि कांग्रेस के पास 272 के ‘मैजिक फिगर’ के लिये कोई जादुई छड़ी नहीं है.

Both SBI and GOI cheated Retirees: Garg


SBI VRS 2017 Employees Association today accused State Bank of India for not fulfilling the various financial commitments towards the employees who opted for retirement under voluntary retirement scheme offered by the bank before merger.While adressing the media persons in chandigarh press club the association President Mr Yog Raj told that special allowances and DA thereon and HRA has not been included while calculating ex gratia amount while these were part of the salary. When the association asked for a copy of approved note for Voluntary Retirement Scheme framed for the merger of associate banks with SBI should be provided to the association immediately under RTI Act it was denied straightly.

Explaining the woes of Retirees Garg further said that their pension has not been revised even once since they have been retired, whereas the state govt and central government regularly revise the pension and other allowances. The humiliating attitude of the bank make them feel as if they have been forcibly thrown out of organization to which they had served for quite long.

Association also accused Government of India has also cheated the retirees of banks who retired between January 1 ,2016 to March 28 2018 by amending Gratuity Act w.e.f . March 29, 2018.The Ceiling amount has been increased from Rs 10 lakh to Rs 20 lakh with retrospective date January 1, 2016 for centre and state government employees as well as for RBI employees..

Mr Garg also demanded that the complete Form 16 for FY 2017-18 be issued so as to make the retirees able to file income tax returns before 31st july 2018.

On the behalf of association he further demanded the  entertainment allowance for the full year from March 2018 be paid to each retiree. The SBI has issued instructions on July 12, 2017 not to pay for full year while such instructions cannot be made applicable retrospectively after the retirement of employees retired between April 1, 2017 and July 12, 2017.
The other demands of the association are that LFC which was to be extended to clerical staff should now be extended without delay.
State Bank of India must immediately without discrimination release overtime compensation for the period of demonetization as SBI staff has already been paid.

Association threatened the management if their demands which are their rights are not met within the week they will be forced to protest at the gate of Local Head Office.

Akal Takht ask SGPC to seek legal remedy to prevent Sikh women to wear helmet

helmet mandatory for two wheeler riding women. Only those Sikh women have been exempted who are wearing turbans. The administration has notified

 

Amritsar, July 23,2018 :

Jathedar Akal Takht  the highest Sikh temporal seat Gyani Gurbachan Singh has asked the Shriomani Gurdwara Pharbandhak committee (SGPC) to adopt all possible legal remedy to get relief for the Sikh females who were being asked by Chandigarh administration to wear headgear while riding on two wheeler.

Jathedar said that Sikh females who write Kaur with their name and complete Sikh having unshorn head’s hair should be exempted to wear metalled helmet. Moreover, this was deadly against the Sikh tenets to force Sikh women to wear helmet while driving two-wheeler on road, said he.

However, Chandigarh Administration has initiated the process to make mandatory for all women including Sikh drivers and pillion riders to wear helmet.

The UT administration has exempted to wear helmet to only those Sikh women who wear proper turban to drive two-wheeler.

Earlier, wearing headgear was optional for Sikh women riders in UT as they were exempted on religious grounds.

In the month of April this year, the Punjab and Haryana High Court had taken suo motu notice of the issue of safety of women, including Sikhs, while riding pillion or driving two-wheelers of any class or description and exemption given to them from wearing headgear under the Motor Vehicle Rules.

Taking cognizance of the matter, the Chandigarh Administration, while considering the aspect of safety of women, had issued a draft notification for amending the existing rules.

According to the draft notification, the words “a Sikh woman wearing a turban” instead of the words “or a woman” are proposed to be substituted in Rule 193 of the Chandigarh Motor Vehicle Rules, 1990. This will make the headgear mandatory for all women drivers and pillion riders (except Sikhs wearing a turban) on any two-wheeler in the city.