जहां नम्रता, सत्य, लज्जा और धर्म हैं वहीं कृष्ण हैं, जहां कृष्ण हैं वहीं विजय है


धार्मिक विश्वासों को छोड़ दें तो एक किरदार के रूप में कृष्ण के जीवन के तमाम पहलू बेहद रोचक हैं


जनमाष्टमी यानी कृष्ण के जन्म का उत्सव. कृष्ण के जन्म से दो बिल्कुल कड़ियां अलग जुड़ती हैं. एक ओर मथुरा की काल कोठरी है जहां वासुदेव और देवकी जेल में अपनी आठवीं संतान की निश्चित हत्या का इंतजार कर रहे हैं. दूसरी तरफ गोकुल में बच्चे के पैदा होने की खुशियां हैं. कृष्ण के जन्म का ये विरोधाभास उनके जीवन में हर जगह दिखता है. धार्मिक विश्वासों को छोड़ दें तो एक किरदार के रूप में कृष्ण के जीवन के तमाम पहलू बेहद रोचक हैं. और समय-समय पर उनके बारे में जो नई कहानियां गढ़ी गईं उन्हें समझना भी किसी समाजशास्त्रीय अध्ययन से कम नहीं है.

अब देखिए वृंदावन कृष्ण की जगह है, लेकिन वृंदावन में रहना है तो ‘राधे-राधे’ कहना है. ऐसा नहीं हो सकता कि आप अयोध्या में रहकर सिया-सिया, लुंबिनी में यशोधरा-यशोधरा या ऐसा कुछ और कहें. यह कृष्ण के ही साथ संभव है. कान्हा, मुरली और माखन के कथाओं में कृष्ण का बचपन बेहद सुहावना लगता है. लेकिन कृष्ण का बचपन एक ऐसे शख्स का बचपन है, जिसके पैदा होने से पहले ही उसके पिता ने उसकी हत्या की जिम्मेदारी ले ली थी. वो एक राज्य की गद्दी का दावेदार हो सकता था तो उसको मारने के लिए हर तरह की कोशिशें की गईं. बचपन के इन झटकों के खत्म होते-होते पता चलता है कि जिस परिवार और परिवेश के साथ वो रह रहा था वो सब उसका था ही नहीं.

कहानियां यहीं खत्म नहीं होतीं. मथुरा के कृष्ण के सामने अलग चुनौतियां दिखती हैं. जिस राज सिंहासन को वो कंस से खाली कराते हैं उसे संभालने में तमाम मुश्किलें आती हैं. अंत में उन्हें मथुरा छोड़नी ही पड़ती है. महाभारत युद्ध में एक तरफ वे खुद होते हैं दूसरी ओर उनकी सेना होती है. वो तमाम योद्धा जिनके साथ उन्होंने कई तैयारियां की होंगी, युद्ध जीते होंगे. अब अगर कृष्ण को जीतना है तो उनकी सेना को मरना होगा. इसीलिए महाभारत के कथानक में कृष्ण जब अर्जुन को ‘मैं ही मारता हूं, मैं ही मरता हूं’ कहते हैं तो खुद इसे जी रहे होते हैं.

महाभारत से इस्कॉन तक कृष्ण

अलग-अलग काल के साहित्य और पुराणों में कृष्ण के कई अलग रूप हैं. मसलन महाभारत में कृष्ण का जिक्र आज लोकप्रिय कृष्ण की छवि से बिलकुल नहीं मिलता. भारतीय परंपरा के सबसे बड़े महाकाव्य में कृष्ण के साथ राधा का वर्णन ही नहीं है. वेदव्यास के साथ-साथ श्रीमदभागवत् में भी राधा-कृष्ण की लीलाओं का कोई वर्णन नहीं है. राधा का विस्तृत वर्णन सबसे पहले ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है. इसके अलावा पद्म पुराण में भी राधा का जिक्र है. राधा के शुरुआती वर्णनों में कई असमानताएं भी हैं. कहीं दोनों की उम्र में बहुत अंतर है, कहीं दोनों हमउम्र हैं.

इसके बाद मैथिल कोकिल कहे जाने वाले विद्यापति के पदों में राधा आती हैं. यह राधा विरह की ‘आग’ में जल रही हैं. 13वीं 14वीं शताब्दी के विद्यापति राधा-कान्हा के प्रेम के बहाने, शृंगार और काम की तमाम बातें कह जाते हैं. इसके कुछ ही समय बाद बंगाल से चैतन्य महाप्रभु कृष्ण की भक्ति में लीन होकर ‘राधे-राधे’ का स्मरण शुरू करते हैं. यह वही समय था जब भारत में सूफी संप्रदाय बढ़ रहा था, जिसमें ईश्वर के साथ प्रेमी-प्रेमिका का संबंध होता है. चैतन्य महाप्रभु के साथ जो हरे कृष्ण वाला नया भक्ति आंदोलन चला उसने भक्ति को एक नया आयाम दिया जहां पूजा-पाठ साधना से उत्सव में बदल गया.

अब देखिए बात कृष्ण की करनी है और जिक्र लगातार राधा का हो रहा है. राधा से शुरू किए बिना कृष्ण की बात करना बहुत मुश्किल है. वापस कृष्ण पर आते हैं. भक्तिकाल में कृष्ण का जिक्र उनकी बाल लीलाओं तक ही सीमित है. कृष्ण ब्रज छोड़ कर जाते हैं तो सूरदास और उनके साथ बाकी सभी कवि भी ब्रज में ठहर जाते हैं. उसके आगे की कहानी वो नहीं सुनाते हैं. भक्तिकाल के कृष्ण ही सनातन परंपरा में पहली बार ईश्वर को मानवीय चेहरा देते हैं. भक्तिकाल के बाद रीतिकाल आता है और कवियों का ध्यान कृष्ण की लीलाओं से गोपियों और राधा पर ज्यादा जाने लगता है. बिहारी भी जब श्रृद्धा के साथ सतसई शुरू करते हैं, तो ‘मेरी भव बाधा हरो राधा नागरि सोए’ ही कहते हैं. इन सबके बाद 60 के दशक में इस्कॉन जैसा मूवमेंट आता है जो उस समय दुनिया भर में फैल रहे हिप्पी मूवमेंट के साथ मिलकर ‘हरे कृष्णा’ मूवमेंट बनाता है.

ईश्वर का भारतीय रूप हैं कृष्ण

कृष्ण को संपूर्ण अवतार कहा जाता है. गीता में वे खुद को योगेश्वर भी कहते हैं. सही मायनों में ये कृष्ण हैं जो ईश्वर के भारतीय चेहरे का प्रतीक बनते हैं. अगर कथाओं के जरिए बात कहें तो वे छोटी सी उम्र में इंद्र की सत्ता और शोषण के खिलाफ आवाज उठाते हैं. जीवन भर युद्ध की कठोरता और संघर्षों के बावजूद भी उनके पास मुरली और संगीत की सराहना का समय है. वहीं वह प्रेम को पाकर भी प्रेम को तरसते रहते हैं. यही कारण है कि योगेश्वर कृष्ण की ‘लीलाओं’ के बहाने मध्यकाल में लेखकों ने तमाम तरह की कुंठाओं को भी छंद में पिरोकर लिखा है. उनका यह अनेकता में एकता वाला रूप है जिसके चलते कृष्ण को हम बतौर ईश्वर अलग तरह से अपनाते हैं.

तमाम जटिलताएं

इसमें कोई दो राय नहीं कि कृष्ण की लीलाओं के नाम पर बहुत सी अतिशयोक्तियां कहीं गईं हैं. बहुत कुछ ऐसा कहा गया है जो, ‘आप करें तो रास लीला…’ जैसे मुहावरे गढ़ने का मौका देता है. लेकिन इन कथाओं की मिलावटों को हटा देने पर जो निकल कर आता है वो चरित्र अपने आप में खास है. अगर किसी बात को मानें और किसी को न मानें को समझने में कठिनाई हो तो एक काम करिए, कथानकों को जमीन पर जांचिए. उदाहरण के लिए वृंदावन और मथुरा में कुछ मिनट पैदल चलने जितनी दूरी है. मथुरा और गोकुल या वृंदावन और बरसाने का सफर भी 2-3 घंटे पैदल चलकर पूरा किया जा सकता है. इस कसौटी पर कसेंगे तो समझ जाएंगे कि कौन-कौन सी विरह की कथाएं कवियों की कल्पना का हिस्सा हैं.

कृष्ण के जीवन में बहुत सारे रंग हैं. कुछ बहुत बाद में जोड़े गए प्रसंग हैं जिन्हें सही मायनों में धार्मिक-सामाजिक हर तरह के परिवेश से हटा दिया जाना चाहिए. राधा के वर्णन जैसी कुछ ऐसी चीज़ें हैं जो महाभारत और भागवत में नहीं मिलती मगर आज कृष्ण का वर्णन उनके बिना संभव नहीं है. इन सबके बाद भगवद् गीता है जो सनातन धर्म के एक मात्र और संपूर्ण कलाओं वाले अवतार की कही बात. जिसमें वो अपनी तुलना तमाम प्रतीकों से करते हुए खुद को पीपल, नारद कपिल मुनि जैसा बताते हैं. आज जब तमाम चीजों की रक्षा के नाम पर हत्याओं और अराजकता एक सामान्य अवधारणा बनती जा रही है. निर्लज्जता, झूठ और तमाम तरह की हिंसा को कथित धर्म की रक्षा के नाम पर फैलाया जा रहा है, ऐसे में कृष्ण के लिए अर्जुन का कहा गया श्लोक याद रखना चाहिए यतः सत्यं यतो धर्मो यतो ह्लीराजर्वं यतः. ततो भवति गोविंदो यतः कृष्णोस्ततो जयः यानी जहां नम्रता, सत्य, लज्जा और धर्म हैं वहीं कृष्ण हैं, जहां कृष्ण हैं वहीं विजय है. अंतिम बात यही है कि कृष्ण होना सरस होना, क्षमाशील होना, नियमों की जगह परिस्थिति देख कर फैसले लेना और सबसे ज़रूरी, निरंकुशता के प्रतिपक्ष में रहना है.

तरुण सागर जी के ब्रह्मलीन होने की खबर सुनकर आहत हूं: अनिल विज

 

 

अम्बाला- जैन मुनि तरुण सागर जी के निधन पर हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने व्यक्त किया शोक।

अम्बाला- विज ने कहा समाज को सही दिशा दिखाने में हमेशा याद किया जायेगा तरुण सागर जी का योगदान।

अम्बाला- विज ने कहा- तरुण सागर जी के ब्रह्मलीन होने की खबर सुनकर आहत हूं।

पीवी सिंधू ने 18वें एशियाई खेलों में रचा इतिहास


रियो ओलंपिक खेलों की रजत विजेता भारत की पीवी सिंधू ने सोमवार को 18वें एशियाई खेलों की बैडमिंटन स्पर्धा के महिला एकल स्वर्ण पदक मुकाबले में पहुंचकर इतिहास रच दिया।


सिंधू भारत की पहली बैडमिंटन खिलाड़ी बन गयी हैं जिन्होंने एशियन खेलों के फाइनल में प्रवेश पाया है। उन्होंने महिला एकल सेमीफाइनल मुकाबले में भारी उत्साह और भारतीय समर्थकों के सामने दूसरी सीड जापान की अकाने यामागुची के खिलाफ 66 मिनट तक चले रोमांचक मुकाबले को 21-17, 15-21, 21-10 से जीता।

विश्व की तीसरे नंबर की खिलाड़ी सिंधू ने यामागुची की चुनौती को स्वीकारते हुये बराबरी की टक्कर दिखाई। पहला गेम जीतने के बाद दूसरे गेम में हालांकि जापानी खिलाड़ी ने कहीं बेहतर खेल दिखाया और 8-10 से सिंधू से पिछड़ने के बाद लगातार भारतीय खिलाड़ी को गलती करने के लिये मजबूर किया और 11-10 तथा 16-12 से बढ़त बना ली।

सिंधू पर दबाव बढ़ता गया और एक समय यामागुची ने स्कोर 17-14 पहुंचा दिया और फिर 20-15 पर गेम प्वांइट जीतकर 21-15 से गेम जीता और मुकाबला 1-1 से बराबर पहुंचा दिया। निर्णायक गेम और भी रोमांचक रहा जिसमें यामागुची ने आत्मविश्वास के साथ शुरूआत करते हुये 7-3 की बढ़त बनाई।  लेकिन सिंधू लगातार अंक लेती रहीं और 5-10 से पिछड़ने के बाद लंबी रैली जीतकर बढ़त बनाई।

उन्होंने 11 अंकों की सबसे बढ़ी बढ़त ली और 16-10 से यामागुची को पीछे छोड़ा और 20-10 पर मैच प्वाइंट जीतकर निर्णायक गेम और मैच अपने नाम कर लिया। तीसरी वरीय खिलाड़ी के सेमीफाइनल मुकाबला जीतने के साथ ही स्टेडियम में बैठे लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनकी जीत का स्वागत किया।

सिंधू अब फाइनल में भारत को पहला एशियाड स्वर्ण दिलाने के लिये चीनी ताइपे की ताई जू यिंग के खिलाफ उतरेंगी जिन्होंने दिन के एक अन्य सेमीफाइनल में भारत की सायना नेहवाल को 21-17, 21-14 से पराजित किया।
सायना एशियाई खेलों में महिला एकल का पदक जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी हैं।

स्थिर सरकार, योग्य कार्यपालिका ने बदली बस्तर की तस्वीर, विकास ने यहाँ तो पैर पसार ही दिये


पिछले कई सालों से छत्तीसगढ़ की गिनती देश के नक्सल प्रभावित राज्यों में पहले नंबर पर की जाती है.


पिछले कई सालों से छत्तीसगढ़ की गिनती देश के नक्सल प्रभावित राज्यों में पहले नंबर पर की जाती है. कुछ समय पहले तक राज्य के बस्तर, दंतेवाड़ा, जगदलपुर, बीजापुर, सुकमा, राजनांदगांव, कांकेर सहित लगभग 16 जिलों में नक्सलियों का खुलमखुल्ला तांडव चलता था. केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार भी नक्सलियों के सामने लाचार, विवश और बेसहारा बन कर यह सब देखते रहते थे.सारी मशीनरी नक्सलियों के सामने घुटने टेक देती थी.

30-40 साल बाद एक बार फिर से वही हाथ उठने लगे हैं, एक बार फिर से बंदूकों से गोलियां गरजने लगी हैं, लेकिन अब बंदूकों से निकलने वाली गोलियों की दिशा बदल गई है. जो आदिवासी पहले कभी नक्सली बन कर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल हुआ करते थे, वही नक्सली अब छत्तीसगढ़ पुलिस में भर्ती हो कर दूसरे लोगों की जान की रक्षा करने में लग गए हैं. ये वही लोग हैं जो बाकी बचे-खुचे नक्सलियों के खिलाफ भी अब काल बन कर सामने खड़े हो गए हैं. ये लोग समाज की मुख्यधारा में वापस लौट कर समाज के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना पाले हुए हैं.

जो लोग कुछ साल पहले तक नक्सली जुल्म का शिकार थे वो अब सहकारी समिति के माध्यम से पॉस्चराइजेशन प्लांट में दूध बेच कर पैसे कमा रहे हैं. इसके अलावा परम्परागत जैविक खेती कर चावल पैदा कर रहे हैं और मुंबई और चेन्नई जैसे बड़े व्यापारिक हब को निर्यात भी कर रहे हैं.

जिन सड़कों पर कभी आदिवासी महिलाएं सिर पर लकड़ी लेकर जाती थीं वही महिलाएं अब बेहतरीन सड़कों पर सार्वजनिक यातायात के जरिए गैस का सिलेंडर लेकर जाते हुए देखी जा सकती हैं. गांव की दुकानों और बाजारों में पहले जो वीरानी छाई रहती थी, उन दुकानों और बाजारों में अब रौनक रहती है.

दंतेवाड़ा जिले के बोमड़ा पारा ब्लॉक के जावंगा गांव की एक महिला बुड़िया, गांव की खूबसूरत सड़क के किनारे खड़ी होकर टूटी-फूटी हिंदी में बात करते हुए कहती हैं, मैं अब घर पर ही ज्यादा काम करने लगी हूं. अभी पति के साथ साइकिल से गांव से बाजार आई हूं. पति के साथ खेती में सहयोग करती हूं. दो बच्चे हैं, पांच साल का बेटा है और सात साल की बेटी. दोनों बच्चे स्कूल गए हैं, इसलिए हमलोग बाजार में सामान खरीदने आए हैं. पति जैविक खेती करते हैं. पति का भी सहकारी समिति में कुछ काम था इसलिए हमलोग दोनों एक साथ बाजार आए हैं.’

बुड़िया से पत्रकारों  ने सवाल किया कि आपके लिए राज्य के सीएम रमन सिंह ने क्या-क्या काम किया है तो उस पर बुडिया कहती हैं, ‘राशन अब समय पर मिलने लगा है. पहले हमलोग राशन लेने नहीं जाते थे. अपने खेत का उपजा हुआ चावल ही खाते थे. लेकिन, अब हमें सरकार की तरफ से मदद मिलने लगी है. गांव में बिजली भी आ गई है. 20 से 22 घंटे बिजली रहती है. गांव में ही पानी भी पहुंचने वाला है. कलेक्टर साहेब अक्सर गांव आते रहते हैं. पानी लाने के लिए हमें अब दूर नहीं जाना पड़ता है.’

आतंक की त्रासदी में दशकों जीने को मजबूर ये लोग अब अपने दम पर खड़े हो रहे हैं. छत्तीसगढ़ देश का अकेला ऐसा राज्य है, जिसमें अनाज का उत्पादन ही नहीं, उत्पादकता भी बढ़ी है. यानी लागत कम, अनाज ज्यादा. यहां के युवाओं को बीपीओ के जरिए रोजगार मुहैया कराया जा रहा है. यहां के युवा किसी भी दूसरे शहर के लड़के-लड़कियों की तरह फर्राटेदार अंग्रेजी में बात करते मिल जाते हैं.

दंतेवाड़ा के एक बीपीओ में काम करने वाली और दंतेवाड़ा के ही पीजी कॉलेज से एमए पास मीना सेनापति कहती हैं, ‘पहले मेरी कम्यूनिकेशन स्किल अच्छी नहीं थी. मैंने 45 दिनों की बीपीओ ट्रेनिंग ली. मेरे बातचीत करने का तरीका बेहतर हुआ है. मुझे 8 हजार की नौकरी भी मिल गई है.’

दंतेवाड़ा के इसी बीपीओ में काम करने वाली नीता देशमुख कहती हैं, ‘मैं ग्रेजुएट हूं. दंतेवाड़ा में गीदम एक जगह है वहां की रहने वाली हूं. सात महीने पहले मैं इस बीपीओ में आई थी, तब मुझे कुछ नहीं आता था. मेरा सपना था कि मैं वेब डिजायनर बनूं, लेकिन पैसे की कमी के कारण मेरा सपना पूरा नहीं हो रहा था. लेकिन अब मुझे आठ हजार रुपए मिलते हैं, जिससे मैं अपना सपना पूरा कर सकती हूं. पापा राजमिस्त्री का काम करते हैं. मैं चार बहनों में दूसरे नंबर पर हूं. दो बहन की शादी हो चुकी है.’

इसी तरह बछेली की रहने वाली कांति नाग, दंतेवाड़ा की रहनेवाली निधि बैरागी और रवि प्रकाश बीपीओ में काम कर अपना सपना पूरा करना चाहते हैं. इन युवाओं को सरकार की तरफ से रोजगार मुहैया कराया जा रहा है. फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली हिना सिंह, जिनके पिता नौकरी करने सालों पहले कर्नाटक से दंतेवाड़ा आ गए थे, कहती हैं, ‘मैं एक ट्यूटर हूं. पिछले 21 सालों से ट्यूशन पढ़ाती आ रही हूं. इस बीपीओ के जरिए मुझे फिक्स्ड सैलेरी मिल रही है. पति ड्राइवर का काम करते हैं. यहां से छूटने पर मैं 10वीं क्लास तक के बच्चों को पढ़ाती भी हूं.’

दूसरी तरफ दिव्यांग बच्चों के लिए भी दंतेवाड़ा में एक शानदार मुकबधिर स्कूल चलाया जा रहा है. हाल ही में इस स्कूल में देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने दौरा किया था. यहां पढ़ने वाली दंतेवाड़ा के कुआकोंडा ब्लॉक के माड़ेंदा गांव की हड्मा हंस कर कहती हैं, ‘बहरेपन का इलाज नहीं होने पर भी वे इशारों में बात कर लेती थीं पर अब सरकारी इलाज के बाद यह फायदा हुआ है कि दूसरे उनके बारे में क्या कह रहे हैं यह सुन सकती हूं. आम लोगों की तरह संवाद कर सकती हूं.’

आज से कुछ साल पहले तक छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के सातों जिलों बस्तर, दंतेवाड़ा, जगदलपुर, बीजापुर, सुकमा, राजनांदगांव, कांकेर जिले का नाम सुनते ही लोगों के मन में भय तारी हो जाता था. कहा जाता था अगर एक तरफ से कोई हिंसक जानवर हमला करे और दूसरी तरफ से नक्सली तो लोग पहले की तरफ भागना पसंद करते थे. यही सोच कर कि जानवर तो सिर्फ एक झटके में मारेगा. तड़पना तो नहीं पड़ेगा.

सालों बाद आज स्थानीय अखबारों में खबर देखने को मिलती है कि इस अप्रतिमरूप से प्राकृतिक सौन्दर्य समेटे हाथ-से-हाथ न दीखने वाले जंगल से घिरे अमुक गांव मे एक-दो नक्सलियों ने मोबाइल छीन लिया. दरअसल स्थानीय मीडिया भी अब नक्सली और औसत अपराधी को समानार्थी समझने लगा है. यह स्थिति चरम वामपंथ जो पिछले 60 सालों में ‘राज्य-पोषित शोषण को हथियार से खत्म करने’ के नाम पर देश के 10-12 राज्यों में लंपटवादी आतंक का पर्याय बन गया था, अब पता चला कि सड़क-छाप गुंडई के रूप में अंतिम सांसें गिन रहा है.

यह सब कुछ संभव कैसे हुआ !

कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने अपनी कुछ प्रचार सामग्री (बुकलेट) छापी, जो बाहर से आने वाले किसी भी स्वतंत्र विश्लेषक को उपलब्ध होती है, लेकिन चूंकि यह सरकारी ज्ञान होता है, जिस पर सहज विश्वास करना मुश्किल होता है, लिहाजा तस्दीक के लिए हमारी टीम हाईवे के पास के गांव में निकल गई. सड़क के पास ही कुछ आदिवासी महिलाएं गैस सिलिंडर के साथ दिखीं. उनके चेहरे पर खुशी देखने को मिली. इन महिलाओं से पूछने की कोशिश की तो टूटी-फूटी हिंदी में कहती हैं, ‘सरकार ने दिया है. जलाना आता है का जवाब हंस कर देती हैं, घर जा कर किसी से पूछेंगे.

कैसे स्वतंत्र रूप से काम कर रहा है प्रशासन?

इस राज्य में एक व्यक्ति और एक पार्टी का शासन पिछले 15 साल से जारी है. छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ सालों से युवा आईइएस और आईपीएस अधिकारियों में इस बात की होड़ लगी है कि कौन विकास के नए विचार अमल में लाता है या कौन कानून व्यवस्था को ज्यादा दुरुस्त करता है. विकास के 31 पैरामीटर्स पर कौन जिलाधिकारी इस माह किससे आगे या पीछे रह गया है, इसकी समीक्षा की जाती है. साथ ही, अधिकारियों को तबादले की चाबुक से डराने का खेल यहां नहीं चलता.

सौरभ कुमार सिंह

चार साल से भी ज्यादा समय से दंतेवाड़ा में तैनात 2009 बैच के आईएएस अधिकारी और जिले के डीएम सौरभ कुमार सिंह हमसे बात करते हुए कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि एक आईएएस अधिकारी को काम करने के लिए बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्य ही बने हैं. ये ऐसे राज्य हैं, जहां पर काम करने की संभावना सबसे ज्यादा हैं. किसी भी स्तर के अधिकारी को अगर सच में कुछ कर के दिखाना है तो दो चीजें होनी चाहिए, पहली काम करने के लिए ऐसी परिस्थितियां होनी चाहिए, जो आपके काम को प्रमोट करें. जिसके लिए पोलिटिकल स्टेबलिटी होना बहुत ही आवश्यक है. दूसरा, एक ऐसा एनवायरमेंट होना चाहिए जिससे आप एक निश्चित समय-सीमा में काम कर दिखा सकें. हम अगर बात करें साल 2015 या 2016 की तो जिले में संस्थागत प्रसव रेट 38 प्रतिशत था. आज की तारिख में यह 78 प्रतिशत है. अब महिलाएं अस्पताल में जाकर प्रसव करा रही हैं. ये सब तभी संभव हो पाता है जब आपको एक अच्छा प्लेटफॉर्म मिले. ये सब छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में ही आपको करने को मिलेगा. ’

सौरभ कुमार सिंह आगे कहते हैं, ‘दंतेवाड़ा में प्राइवेट सेक्टर में पिछले छह महीने में रोजगार डबल हो गए हैं. अगर जिले में योजनाओं की बात करें तो यहां पर एससीए या भारत सरकार की होम मिनिस्ट्री के जरिए जो पैसा आता है उससे कहीं अधिक पैसा दंतेवाड़ा जिले को माइनिंग फंड से मिलता है, जिसमें राज्य शासन ने जो नियम बनाए हैं उसमें ज्यादातर अधिकार जिले के कलेक्टर को दिए हैं. उसी के समकक्ष जिले में जो बड़ी इंडस्ट्री चल रही जैसे एनएमडीसी के सीएसआर का पैसा भी आता है. इन पैसों के इस्तेमाल का अधिकार राज्य शासन ने कलेक्टर को दे रखा है. मेरा मानना है कि सबके अंदर कुछ न कुछ कर के दिखाने की चाहत होती है चाहे वह नेता हों या अधिकारी. हम साल में एक हजार युवक और युवतियों को नौकरी देने का काम करते हैं तो इसमें हमें कौन रोक सकता है. हजारों महिलाओं को सिलाई की ट्रेनिंग दी जाती है ताकि ली कूपर और रेमंड जैसी कंपनियों से उनके पास सिलाई के ऑफर आ रहे हैं तो इसमें कौन रोक सकता है. चाहे नेता हों या जनता हो या फिर कोई और लोग सकारात्मक चीजों के साथ जुड़ना चाहते हैं.’

‘दंतेवाड़ा जिले में हमलोग यही काम कर रहे हैं. जिले में एक जैविक कैफे चल रहा है, जो किसानों की एक कंपनी चला रही है. हमको हरियाणा, पंजाब की तरह उत्पादकता में नहीं जाना है बल्कि अपने उत्पाद को अलग बनाना है. अगर रोजगार की बात करें तो हम गुरुग्राम और नोएडा से कंपेयर नहीं कर सकते हैं, पर अगर यहां के युवाओं को हम 8 हजार रुपए दे कर रोजगार दे रहे हैं तो क्या यह कम है. जिले की 150 महिला समूह ऑटो चला रही हैं. हमने सड़कें तो बना दी लेकिन लोगों के आय का लेवल इतना नहीं है कि वह ऑटो खरीद सकें. उनको हम ऑटो प्रोवाइड कर रहे हैं. 210 महिला समूह एक अलग जाति का कड़कनाथ मुर्गे का प्रजनन कर रहे हैं.’

दंतेवाड़ा के डीएम जहां जिले में विकास के नए आयाम स्थापित कर रहे हैं वहीं जिले के एसपी डॉ. अभिषेक पल्लव नक्सलियों के मंसूबे को तहस-नहस कर नक्सलियों को मुख्यधारा में जोड़ने का काम कर रहे हैं. और यह सब तब शायद संभव नहीं होता अगर राज्य सरकार के द्वारा युवा पुलिस अधिकारियों के लिए रणनीतिक परिवर्तन न किया होता.

इस प्रश्न पर कि सड़कों पर इस बीहड़ जंगल में भी पुलिस नहीं दिखाई दे रही है और क्या कहीं यह आत्ममुग्धता तो नहीं है या फिर पुलिस का अभाव है, दंतेवाडा के युवा पुलिस अधीक्षक डॉ. अभिषेक पल्लव कहते हैं, ‘नहीं अब पुलिस आप को ही नहीं, नक्सलियों को भी दिखाई नहीं देती बस उन्हें गोली की आवाज सुनाई देती है और उनके समझने के पहले वे इसका शिकार हो चुके होते हैं. आपको बता दें कि सीआरपीएफ छत्तीसगढ़ में 2003-04 में आई. इससे पहले हमलोग यहां की भाषा को नहीं जानते थे. यहां के लोगों के कल्चर के बारे में हमलोगों को पता नहीं रहता था. छत्तीसगढ़ पुलिस में भी जो लोग थे वह छत्तीसगढ़ के दूसरे हिस्सों के थे. स्थानीय भागादारी बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने काफी काम किया है. इसमें एक है सरेंडर और रिहैब पॉलिसी, जिसके अंदर कोई भी ग्रामीण या नक्सली सरेंडर करता है या पुलिस को मदद करता जिससे हम दूसरे नक्सलियों को पकड़ पाते हैं. ऐसे लोगों को एसपी के रिकंमडेशन पर आईजी सिपाही के तौर पर भर्ती कर लेते हैं. धीरे-धीरे काफी नक्सलियों ने सरेंडर किया है. अगर बात सिर्फ दंतेवाड़ा जिले की करें तो यहां पर 70 से 80 सिपाही सरेंडर्ड नक्सली हैं.’

अभिषेक पल्लव

अभिषेक पल्लव आगे कहते हैं, ‘राज्य सरकार ने कुछ साल पहले डिस्टिक रिजर्व ग्रुप के नाम से एक लोकल ग्रुप बनाया. इसमें बस्तर निवासियों को अपने जिले में ही पुलिस की नौकरी करने के लिए पद निकाले गए थे. ऐसे 200 पद दंतेवाड़ा जिले में भी रिलिज किए गए थे. ये दो ग्रुप हैं, जिससे लोकल लोग हमलोगों को मिलते हैं. हमारी इस नीति को सीआरपीएफ ने भी हाल ही में आजमाया है. पहली बार सीआरपीएफ ने बस्तरिया बटालियन के लिए 750 बस्तर के ही युवक और युवतियों को नियुक्त किया. हमारे लिए लोकल लोगों का पुलिस में आना काफी फायदेमंद रहा. इन लोगों और उनके परिवार के जरिए हमें काफी सूचनाएं मिलती हैं. इनकी सटीक सूचनाओं और नक्सलियों के काम करने की गतिविधि को उन्हीं के अंदाज में जवाब दे रहे हैं.

दंतेवाड़ा के रहने वाले योगेश मानवी, जो आठवीं पास हैं, 1998 में ही नक्सली बन गए थे. साल 2012 में आत्मसमर्पण के बाद आज 25 हजार की पगार पर छत्तीसगढ़ पुलिस में नौकरी कर रहे हैं. इसी तरह परशुराम आलमी 2007 में नक्सली बन गए थे. साल 2015 में सरेंडर के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस में नक्सलियों को खत्म करने या मुख्यधारा में लौटने में मदद कर रहे हैं. आलमी पढ़े-लिखे नहीं हैं. इसी तरह 5वीं पास पोडिया तेलम 2001 में नक्सली बन गए थे. 2014 में समाज की मुख्यधारा में लौट कर परिवार का जीवन यापन कर रहे हैं.

सुरक्षा सिद्धांतों में इस रणनीति को अदृष्टिगोचर सिक्योरिटी कहते हैं. पहले जहां जंगल के ऊंचे टीलों से ये जवानों को शिकार बनाते थे. आज पुलिस का उन ठिकानों पर कब्जा है. डरकर नक्सली या तो मौत के डर से मुख्यधारा में जुड़ने लगे हैं या फिर अंदर जंगलों में तिल-तिल कर मर रहे हैं. अब अदिवासियों पर भी उनका खौफ नहीं रहा है और सामूहिक रूप से उन्हें नकारने की क्षमता भी आ गई है. पुलिस अधीक्षक से यह मुलाकात अचानक ही थी लेकिन बड़े भरोसे से उन्होंने कहा ‘आप जहां हैं सिर्फ थोड़ी दूर घने जंगलों में नजर डालें आपको पुलिस की अदृश्य लेकिन सतर्क मुश्तैदी का एहसास हो जाएगा. और यह बात तब सच लगी जब उनके साथ हमारी टीम घने जंगलों से चित्रकोट तक का सफर किया.

कुलमिलाकर कुछ साल पहले तक राज्य के नक्सल प्रभावित 16 से 18 जिलों में लोकतंत्र नाम की कोई चीज नहीं थी. खासकर बस्तर संभाग के सभी जिलों में रहने वाले आदिवासियों के जीवन को समझने वाला दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं देता था. इसका कारण था कि यहां पर नक्सलियों के द्वारा एक समानांतर सरकार चलाई जाती थी, लेकिन समय बदला, सरकार बदली और ब्यूरोक्रेसी ने भी अपनी जिम्मेदारी को बखुबी निभाया,जिसका नतीजा आज पूरे देश के सामने है. इन इलाकों में न केवल नक्सली घटनाओं में कमी आई बल्कि इन इलाकों के लोगों के जीवन स्तर से लेकर शिक्षा और स्वरोजगार में भी काफी सुधार देखने को मिल रहा है.

‘मन की बात’ का 47वां संस्करण

 

मोदी ने रविवार को आकाशवाणी अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 47वें संस्करण में देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि सुशासन को मुख्य धारा में लाने के लिए देश सदा वाजपेयी का आभारी रहेगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि वाजपेयी ने भारत को नई राजनीतिक संस्कृति दी और बदलाव लाने का प्रयास किया। इस बदलाव को उन्होंने व्यवस्था के ढांचे में ढालने की कोशिश की जिसके कारण भारत को बहुत लाभ हुआ हैं और आगे आने वाले दिनों में बहुत लाभ होने वाला सुनिश्चित है।

उन्होेंने कहा कि भारत हमेशा 91वें संशोधन अधिनियम 2003 के लिए अटल जी का कृतज्ञ रहेगा। इस बदलाव ने भारत की राजनीति में दो महत्वपूर्ण परिवर्तन किए। पहला यह कि राज्यों में मंत्रिमंडल का आकार कुल विधानसभा सीटों के 15 प्रतिशत तक सीमित किया गया। दूसरा यह कि दल-बदल विरोधी कानून के तहत तय सीमा एक-तिहाई से बढ़ाकर दो-तिहाई कर दी गयी। इसके साथ ही दल-बदल करने वालों को अयोग्य ठहराने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश भी निर्धारित किए गए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कई वर्षों तक भारी भरकम मंत्रिमंडल गठित करने की राजनीतिक संस्कृति ने ही बड़े-बड़े “जम्बो” मंत्रिमंडल कार्य के बंटवारे के लिए नहीं बल्कि राजनेताओं को खुश करने के लिए बनाए जाते थे। वाजपेयी ने इसे बदल दिया। इससे पैसों और संसाधनों की बचत हुई। इसके साथ ही कार्यक्षमता में भी बढ़ोतरी हुई।

मोदी ने कहा कि यह अटल जी दीर्घदृष्टा ही थे, जिन्होंने स्थिति को बदला और हमारी राजनीतिक संस्कृति में स्वस्थ परम्पराएं पनपी। अटल जी एक सच्चे देशभक्त थे। उनके कार्यकाल में ही बजट पेश करने के समय में परिवर्तन हुआ। पहले अंग्रेजों की परम्परा के अनुसार शाम को पांच बजे बजट प्रस्तुत किया जाता था क्योंकि उस समय लन्दन में संसद शुरू होने का समय होता था। वर्ष 2001 में अटल जी ने बजट पेश करने का समय शाम पांच बजे से बदलकर सुबह 11 बजे कर दिया।

मोदी ने कहा कि वाजपेयी के कारण ही देशवासियों को ‘एक और आज़ादी’ मिली। उनके कार्यकाल में राष्ट्रीय ध्वज संहिता बनाई गई और 2002 में इसे अधिसूचित कर दिया गया। इस संहिता में कई ऐसे नियम बनाए गए जिससे सार्वजनिक स्थलों पर तिरंगा फहराना संभव हुआ। इसी के कारण अधिक से अधिक भारतीयों को अपना राष्ट्रध्वज फहराने का अवसर मिल पाया। इस तरह से उन्होंने प्राण प्रिय तिरंगे को जनसामान्य के क़रीब कर दिया। उन्होेंने कहा कि वाजपेयी ने चुनाव प्रक्रिया और जनप्रतिनिधियों से संबंधित प्रावधानों में साहसिक कदम उठाकर बुनियादी सुधार किए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि इसी तरह आजकल आप देख रहे हैं कि देश में एक साथ केंद्र और राज्यों के चुनाव कराने के विषय में चर्चा आगे बढ़ रही है। इस विषय के पक्ष और विपक्ष दोनों में लोग अपनी-अपनी बात रख रहे हैं। ये अच्छी बात है और लोकतंत्र के लिए एक शुभ संकेत भी। मैं जरुर कहूंगा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए, उत्तम लोकतंत्र के लिए अच्छी परम्पराएं विकसित करना, लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए लगातार प्रयास करना, चर्चाओं को खुले मन से आगे बढ़ाना, यह भी अटल जी को एक उत्तम श्रद्धांजलि होगी।

वाजपेयी के योगदान का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने गाज़ियाबाद से कीर्ति, सोनीपत से स्वाति वत्स, केरल से भाई प्रवीण, पश्चिम बंगाल से डॉक्टर स्वप्न बनर्जी और बिहार के कटिहार से अखिलेश पाण्डे के सुझावाें का जिक्र किया।

श्रावण पूर्णिमा एवं रक्षाबंधन की कोटी कोटी बधाई

श्रावण माह की पूर्णिमा: ओणम एवं रक्षाबंधन

 

श्रावण माह की पूर्णिमा बहुत ही शुभ व पवित्र दिन माना जाता है. ग्रंथों में इन दिनों किए गए तप और दान का महत्व उल्लेखित है. इस दिन रक्षा बंधन का पवित्र त्यौहार मनाया जाता है इसके साथ ही साथ श्रावणी उपक्रम श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को आरम्भ होता है. श्रावणी कर्म का विशेष महत्त्व है इस दिनयज्ञोपवीत के पूजन तथा उपनयन संस्कार का भी विधान है.

ब्राह्मण वर्ग अपनी कर्म शुद्धि के लिए उपक्रम करते हैं. हिन्दू धर्म में सावन माह की पूर्णिमा बहुत ही पवित्र व शुभ दिन माना जाता है सावन पूर्णिमा की तिथि धार्मिक दृष्टि के साथ ही साथ व्यावहारिक रूप से भी बहुत ही महत्व रखती है. सावन माह भगवान शिव की पूजा उपासना का महीना माना जाता है. सावन में हर दिन भगवान शिव की विशेष पूजा करने का विधान है.

इस प्रकार की गई पूजा से भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं. इस माह की पूर्णिमा तिथि इस मास का अंतिम दिन माना जाता है  अत: इस दिन शिव पूजा व जल अभिषेक से पूरे माह की शिव भक्ति का पुण्य प्राप्त होता है.

कजरी पूर्णिमा | Kajari Purnima

कजरी पूर्णिमा का पर्व भी श्रावण पूर्णिमा के दिन ही पड़ता है यह पर्व विशेषत: मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के कुछ जगहों में मनाया जाता है. श्रावण अमावस्या के नौंवे दिन से इस उत्सव तैयारीयां आरंभ हो जाती हैं. कजरी नवमी के दिन महिलाएँ पेड़ के पत्तों के पात्रों में मिट्टी भरकर लाती हैं जिसमें जौ बोया जाता है.

कजरी पूर्णिमा के दिन महिलाएँ इन जौ पात्रों को सिर पर रखकर पास के किसी तालाब या नदी में विसर्जित करने के लिए ले जाती हैं .इस नवमी की पूजा करके स्त्रीयाँ कजरी बोती है. गीत गाती है तथा कथा कहती है. महिलाएँ इस दिन व्रत रखकर अपने पुत्र की लंबी आयु और उसके सुख की कामना करती हैं.

श्रावण पूर्णिमा को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक नामों से जाना जाता है और उसके अनुसार पर्व रुप में मनाया जाता है जैसे उत्तर भारत में रक्षा बंधन के पर्व रुप में, दक्षिण भारत में नारयली पूर्णिमा व अवनी अवित्तम, मध्य भारत में कजरी पूनम तथा गुजरात में पवित्रोपना के रूप में मनाया जाता है.

रक्षाबंधन | Rakshabandhan

रक्षाबंधन का त्यौहार भी श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है इसे सावनी या सलूनो भी कहते हैं. रक्षाबंधन, राखी या रक्षासूत्र का रूप है राखी सामान्यतः बहनें भाई को बांधती हैं इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं उनकी आरती उतारती हैं तथा इसके बदले में भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है और उपहार स्वरूप उसे भेंट भी देता है.

इसके अतिरिक्त ब्राहमणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा संबंधियों को जैसे पुत्री द्वारा पिता को भी रक्षासूत्र या राखी बांधी जाती है. इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है, उत्सर्जन, स्नान-विधि, ॠषि-तर्पणादि करके नवीनयज्ञोपवीत धारण किया जाता है. वृत्तिवान ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं.

श्रावणी पूर्णिमा पर अमरनाथ यात्रा का समापन

पुराणों के अनुसार गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर श्री अमरनाथ की पवित्र छडी यात्रा का शुभारंभ होता है और यह यात्रा श्रावण पूर्णिमा को संपन्न होती है. कांवडियों द्वारा श्रावण पूर्णिमा के दिन ही शिवलिंग पर जल चढया जाता है और उनकी कांवड़ यात्रा संपन्न होती है. इस दिन शिव जी का पूजन होता है पवित्रोपना के तहत रूई की बत्तियाँ पंचग्वया में डुबाकर भगवान शिव को अर्पित की जाती हैं.

श्रावण पूर्णिमा महत्व

श्रावण पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ होता है अत: इस दिन पूजा उपासना करने से चंद्रदोष से मुक्ति मिलती है, श्रावणी पूर्णिमा का दिन दान, पुण्य के लिए महत्वपूर्ण होता है अत: इस दिन स्नान के बाद गाय आदि को चारा खिलाना, चिंटियों, मछलियों आदि को दाना खिलाना चाहिए इस दिन गोदान का बहुत महत्व होता है.

श्रावणी पर्व के दिन जनेऊ पहनने वाला हर धर्मावलंबी मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेकर जनेऊ बदलते हैं ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान दे और भोजन कराया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा का विधान होता है. विष्णु-लक्ष्मी के दर्शन से सुख, धन और समृद्धि कि प्राप्ति होती है. इस पावन दिन पर भगवान शिव, विष्णु, महालक्ष्मीव हनुमान को रक्षासूत्र अर्पित करना चाहिए.

इतिहास में वर्णित कुछ प्रसंग:

श्रावण मास पूर्णिमा को मनाए जाने वाला रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है। इस बार 26 अगस्त रविवार को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जा रहा है। इस त्योहार का प्रचलन सदियों पुराना है। पौराणिक कथा के अनुसार इस त्योहार की परंपरा उन बहनों ने रखी जो सगी बहनें नहीं थी। आइए जानते हैं कि आखिर क्यों मनाया जाता हैं रक्षाबंधन का त्योहार।

राजा बलि और देवी-लक्ष्मी ने शुरू की भाई बहनों की राखी

राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयास किया तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान, वामन अवतार लेकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। भगवान ने तीन पग में आकाश, पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। तब राजा बलि ने अपनी भक्ति से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। तब माता लक्ष्मी ने राजा बलि के पास जाकर उन्हें रक्षासूत्र बांधकर अपना भाई बनाया और भेंट में अपने पति को साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी।

द्रौपदी और कृष्ण का रक्षाबंधन

राखी या रक्षा बंधन या रक्षा सूत्र बांधने की सबसे पहली चर्चा महाभारत में आती है, जहां भगवान कृष्ण को द्रौपदी द्वारा राखी बांधने की कहानी है। दरअसल, भगवान कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से चेदि नरेश शिशुपाल का वध कर दिया था। इस कारण उनकी अंगुली कट गई और उससे खून बहने लगा। यह देखकर विचलित हुई रानी द्रौपदी ने अपनी साड़ी का किनारा फाड़कर कृष्ण की कटी अंगुली पर बांध दी। कृष्ण ने इस पर द्रौपदी से वादा किया कि वे भी मुश्किल वक्त में द्रौपदी के काम आएंगे। पौराणिक विद्वान, भगवान कृष्ण और द्रौपदी के बीच घटित इसी प्रसंग से रक्षा बंधन के त्योहार की शुरुआत मानते हैं। कहा जाता है कि कुरुसभा में जब द्रौपदी का चीरहरण किया जा रहा था, उस समय कृष्ण ने अपना वादा निभाया और द्रौपदी की लाज बचाने में मदद की।

कर्णावती-हुमायूं

मेवाड़ के महाराजा राणा सांगा की मृत्यु के बाद बहादुर शाह ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया था। इससे चिंतित रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूं को एक चिट्टी भेजी। इस चिट्ठी के साथ कर्णावती ने हुमायूं को भाई मानते हुए एक राखी भी भेजी और उनसे सहायता मांगी। हालांकि मुगल बादशाह हुमायूं बहन कर्णावती की रक्षा के लिए समय पर नहीं पहुंच पाया, लेकिन उसने कर्णावती के बेटे विक्रमजीत को मेवाड़ की रियासत लौटाने में मदद की।

रुक्साना-पोरस

रक्षा बंधन को लेकर इतिहास में राजा पुरु (पोरस) और सिकंदर की पत्नी रुक्साना के बीच राखी भेजने की एक कहानी भी खूब प्रसिद्ध है। दरअसल, यूनान का बादशाह सिकंदर जब अपने विश्व विजय अभियान के तहत भारत पहुंचा तो उसकी पत्नी रुक्साना ने राजा पोरस को एक पवित्र धागे के साथ संदेश भेजा। इस संदेश में रुक्साना ने पोरस से निवेदन किया कि वह युद्ध में सिकंदर को जान की हानि न पहुंचाए।

कहा जाता है कि राजा पोरस ने जंग के मैदान में इसका मान रखा और युद्ध के दौरान जब एक बार सिकंदर पर उसका धावा मजबूत हुआ तो उसने यूनानी बादशाह की जान बख्श दी। इतिहासकार रुक्साना और पोरस के बीच धागा भेजने की घटना से भी राखी के त्योहार की शुरुआत मानते हैं।

जब युद्धिष्ठिर ने अपने सैनिको को बांधी राखी

राखी की एक अन्य कथा यह भी हैं कि पांडवो को महाभारत का युद्ध जिताने में रक्षासूत्र का बड़ा योगदान था। महाभारत युद्ध के दौरान युद्धिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं कैसे सभी संकटो से पार पा सकता हूं। इस पर श्रीकृष्ण ने युद्धिष्ठिर से कहा कि वह अपने सभी सैनिको को रक्षासूत्र बांधे। इससे उसकी विजय सुनिश्चिच होगी। तब जाकर युद्धिष्ठिर ने ऐसा किया और विजयी बने। तब से यह त्योहार मनाया जाता है।

जब पत्नी सचि ने इन्द्रदेव को बांधी राखी

भविष्य पुराण में एक कथा हैं कि वृत्रासुर से युद्ध में देवराज इंद्र की रक्षा के लिए इंद्राणी शची ने अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया और श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्र की कलाई में बांध दी। इस रक्षासूत्र ने देवराज की रक्षा की और वह युद्ध में विजयी हुए। यह घटना भी सतयुग में ही हुई थी

‘राहुल गांधी, क्या आपने हिन्दुस्तान की सुपारी ली हुई है?’: संबित पात्रा


राहुल के बयान की आलोचना करते हुए बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, क्या आपने हिन्दुस्तान की सुपारी ली हुई है, जो विदेश जाकर अपने ही देश को बदनाम करने पर तुले हो


कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने शुक्रवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की तुलना अरब जगत के इस्लामी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड से की और आरोप लगाया कि आरएसएस भारत के स्वभाव को ‘बदलने’ और इसकी संस्थाओं पर ‘‘कब्जा’’ करने की कोशिश कर रहा है.

राहुल के इस बयान पर बीजेपी ने पलटवार करते हुए पूछा कि क्या कांग्रेस अध्यक्ष ने भारत नाम के विचार की ‘सुपारी’ ले रखी है. बीजेपी ने कहा कि राहुल को अपने बयान के लिए माफी मांगनी चाहिए.

मुस्लिम ब्रदरहुड अरब जगत में सबसे पुराना राजनीतिक इस्लामी संगठन है. अरब के कुछ देशों में इसे आधिकारिक राजनीतिक पार्टी के तौर पर काम करने की इजाजत नहीं है.

लंदन स्थित थिंक टैंक अंतरराष्ट्रीय सामरिक अध्ययन संस्थान (आईआईएसएस) को संबोधित करते हुए राहुल ने आरएसएस पर आरोप लगाया कि वह भारत के स्वभाव को बदलने और इसकी संस्थाओं पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है.

राहुल ने कहा, ‘आरएसएस भारत के स्वभाव को बदलने की कोशिश कर रहा है. अन्य पार्टियों ने भारत की संस्थाओं पर कब्जा करने की कोशिश नहीं की है.’ उन्होंने कहा, ‘आरएसएस का विचार अरब जगत में मुस्लिम ब्रदरहुड के विचार जैसा ही है.’

इससे पहले, राहुल ने गुरुवार को बर्लिन में आरएसएस पर निशाना साधते हुए कहा था कि बीजेपी और आरएसएस भारत के लोगों को बांट रहे हैं जबकि कांग्रेस उन्हें आपस में जोड़ने का काम करती है. उन्होंने यह आरोप भी लगाया था कि आरएसएस में महिलाओं के लिए कोई जगह नहीं है और वहां उन्हें ‘दोयम दर्जे का नागरिक’ माना जाता है.

‘राहुल गांधी, क्या आपने हिन्दुस्तान की सुपारी ली हुई है?’

राहुल के बयान की आलोचना करते हुए बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (जिनका हाल में निधन हुआ) जैसे लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि के हैं और राहुल द्वारा लंदन में एक कार्यक्रम में संगठन की तुलना एक इस्लामी संगठन से किया जाना ‘अक्षम्य’ है.

दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने कहा, ‘राहुल गांधी, क्या आपने हिन्दुस्तान की सुपारी ली हुई है? क्या आपने भारतवर्ष की सभ्यता और संस्कृति और लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार की सुपारी ली हुई है जो विदेश जाकर अपने ही देश को बदनाम करने पर तुले हो?’

उन्होंने कहा कि राहुल गांधी यह कैसे कह सकते हैं कि हिन्दुस्तान की सोच, लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार की सोच आतंकी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड की सोच है? क्या वह कहना चाहते हैं कि हिन्दुस्तान ने एक आतंकी संगठन को समर्थन दिया है और देश की जनता की सोच एक आतंकी संगठन की सोच है.

नोटबंदी का विचार सीधे आरएसएस से आया

इससे पहले, नोटबंदी की आलोचना करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ‘नोटबंदी का विचार सीधा आरएसएस से आया, वित्त मंत्री और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की अनदेखी की गई और प्रधानमंत्री के दिमाग में बात डाली गई.’ आठ नवंबर 2016 को नोटबंदी का ऐलान किया गया था, जिसके तहत 500 और 1000 के पुराने नोटों पर पाबंदी लगा दी गई थी.

नोटबंदी का ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि इससे काला धन, अवैध गतिविधियों एवं आतंकवाद पर लगाम लगेगी. राहुल ने कहा कि भारत की आर्थिक ताकत लाखों सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम में निहित है, क्योंकि वे नौकरियां पैदा करते हैं. उन्होंने कहा, ‘जब कोई समूचे संस्थागत ढांचे की अनदेखी करता है और देश में नोटबंदी का फैसला करता है तो उससे भारत की ताकत बढ़ती नहीं है.’

केरल में बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने 10 करोड़ रुपए की राशि देने की घोषणा की

प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक बयान में बताया कि प्रधानमंत्री ने केरल को 500 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता देने की घोषणा की है. यह राशि 12 अगस्त को गृह मंत्रालय की ओर से 100 करोड़ रुपए की देने की घोषणा से अलग है. कोच्चि में एक उच्च स्तरीय बैठक की समीक्षा के बाद प्रधानमंत्री ने बाढ़ से प्रभावित कुछ क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण किया.

राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) ने बारिश और बाढ़ से जूझ रहे केरल के विभिन्न इलाकों से 10 हजार से ज्यादा लोगों को सुरक्षित निकाला है और कहा है कि उसने अब तक का देश का सबसे बड़ा राहत और बचाव अभियान छेड़ा है.

एनडीआरएफ के एक प्रवक्ता ने कहा कि उसकी कुल 58 टीम राहत एवं बचाव काम के लिए केरल में तैनात की गई हैं. उनमें से 55 टीम वहां काम कर रही हैं जबकि तीन टीम रास्ते में है. प्रवक्ता ने कहा, ‘बाढ़ से जूझ रहे केरल राज्य में बल ने अपना राहत एवं बचाव अभियान तेज कर दिया है.’

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि हम केरल बाढ़ से प्रभावित लोगों को लेकर चिंतित हैं. केंद्र सरकार हर संभंव मदद कर रही है. रेल अब मुफ्त में खाने पीने की चीजें बाढ़ प्रभावित इलाकों में ले जाएगी.


 

हरियाणा:

केरल में बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने 10 करोड़ रुपए की राशि देने की घोषणा की।
बीते 100 सालों में सबसे भीषण बाढ़ का सामना कर रहे हैं केरलवासी जान-माल के भारी नुकसान को देखते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने लिया निर्णय।
बाढ़ पीड़ितों को मदद और बचाव कार्यों के लिए सहयोग की दिशा में लिया गया निर्णय।

 


मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केरल बाढ़ प्रभावितों के मदद के लिए 10 करोड़ रुपए की सहायता राशि देने की घोषणा की है.

 

 

 


कल्याण डोंबिवली महानगरपालिका के बीजेपी के सभी कॉरपोरेटर केरल बाढ़ प्रभावित लोगों के मदद के लिए अपनी एक महीने की सैलरी दान करेंगे

 

 

 

 


उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केरल बाढ़ प्रभावितों के मदद के लिए 15 करोड़ रुपए देने की घोषणा की है.

 

 

 

 

 


छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने केरल के मुख्यमंत्री विजयन से फोन पर बात कर हर संभंव मदद करने का भरोसा दिया है.

 

 

 


गुजरात

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने केरल बाढ़ प्रभावित लोगों के मदद के लिए 10 करोड़ रुपए की मदद की घोषणा की है.

 

 

 


महाराष्ट्र

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने केरल में बाढ़ प्रभावित लोगों के मदद के लिए 20 करोड़ रुपए की सहायता राशि देने की घोषणा की है.

 

 

 


झारखंड

केरल में बाढ़ प्रभावित लोगों की मदद के लिए झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने 5 करोड़ रुपए की सहायता राशि देने की घोषणा की है

 

 

 


ओडिशा

ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी केरल के लिए 5 करोड़ रुपए की सहायता राशि का ऐलान किया है. पटनायक ने नौकाओं के साथ 245 दमकलकर्मी केरल भेजने का ऐलान किया.

 

 

 


हार

बाढ़ की मार झेल रहे केरल की मदद में बिहार सरकार आगे आई है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शनिवार को केरल को 10 करोड़ रुपए की मदद का ऐलान किया.

 

 

 


मुख्यमंत्री ने कहा, प्रधानमंत्री ने हवाई सर्वे किया और हालात जाने. हमारे हेलिकॉप्टर खराब मौसम के कारण कुछ जगहों पर नहीं जा सके. वित्तीय सहायता देने के लिए हमने पीएम का आभार जताया और उनसे और हेलिकॉप्टर और नौकाएं देने की गुहार लगाई है.


मुख्यमंत्री पिनारई विजयन ने कहा, हमने प्रधानमंत्री को सभी परिस्थितियों की जानकारी दे दी. केरल में हालात बहुत खराब हैं. हमें एकजुट होना पड़ेगा. प्रधानमंत्री ने केरल की हालत को बखूबी समझा. राजस्व विभाग के अधिकारी भी हमारे साथ थे.


प्रधानमंत्री के साथ बैठक में मुख्यमंत्री विजयन ने प्रदेश में बाढ़ से हुई तबाही का हाल बताया. विजयन के मुताबिक केरल को 19,512 करोड़ की हानि हुई है.


 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाढ़ के हालात का जायजा लेने के लिए आज यानी शनिवार सुबह कोच्चि पहुंचे हैं. उन्होंने यहां मुख्यमंत्री पिनारई विजयन और राज्य सरकार के साथ बाढ़ राहत को लेकर बैठक की है. उन्होंने केरल में बाढ़ राहत के लिए 500 करोड़ के पैकेज का ऐलान किया है.

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इससे पहले केरल की आपदा के लिए 100 करोड़ पैकेज का ऐलान किया था. तब इतनी बड़ी आपदा के लिए इतने कम पैकेज की घोषणा करने पर सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ा था.

केरल में भारी बारिश और बाढ़ के चलते अकले शुक्रवार को ही 106 लोगों की मौत हो गई है. इसी के साथ केरल में बीते 8 अगस्त से बाढ़ और बारिश की वजह से मरने वालों का आंकड़ा बढ़कर 324 हो गया है.

प्राकृतिक आपदा की इस स्थिति में राज्य में ऑक्सीजन की कमी और पेट्रोल पंपों में तेल नहीं होने से संकट और गहरा हो गया. बाढ़ की वजह से पर्यटन के लिए मशहूर केरल को गहरा धक्का लगा है. हजारों एकड़ खेत में खड़ी फसलें बर्बाद हो गई हैं. लोगों के घर और मकान ढह गए हैं. साथ ही सड़कें पुल और बुनियादी ढांचे को बड़ा नुकसान पहुंचा है.

अलग-अलग जगहों पर फंसे 80,000 से ज्यादा लोगों को सुरक्षित जगहों पर ले जाया गया. इनमें 71,000 से ज्यादा लोग बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित एर्नाकुलम जिले के अलुवा क्षेत्र से थे.

तीनों सेनाओं के अलावा राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) के जवानों ने छतों और ऊंची जगहों पर फंसे लोगों को सुरक्षित जगहों पर ले जाने का काम शुक्रवार को फिर से शुरू किया. पहाड़ी इलाकों में पहाड़ के हिस्से जमीन पर गिरने से सड़क जाम हो रहे हैं, जिससे बाकी जगहों से उनका संपर्क टूट जा रहा है. द्वीप की शक्ल ले चुके कई गांवों में फंसे लोगों को निकालने का अभियान भी जारी है.

नौका से नहीं पहुंचने लायक जगहों में फंसी महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों सहित कई लोगों को सेना के हेलीकॉप्टरों से सुरक्षित जगहों पर ले जाया जा रहा है.ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन में रह रहे केरल के लोगों ने टीवी चैनलों के जरिए अधिकारियों से अपील की है कि वे उनके प्रियजन की मदद करें.

ऑस्ट्रेलिया में रह रही सौम्या ने कहा कि उनके माता और कुछ रिश्तेदार बीते दो दिनों से अलुवा में फंसे हुए हैं. एक अन्य ने कहा कि उनकी बुजुर्ग रिश्तेदार मैरी वर्गीज को ऑक्सीजन सिलिंडर की सख्त जरूरत है और उनकी हालत लगातार बिगड़ रही है. एक वॉट्सऐप वीडियो में छह साल के बच्चे के साथ एक जगह पर फंसी हुई महिला मदद की गुहार लगाती नजर आ रही है. वह कह रही है, ‘हमारे पास न खाना है और न पीने को पानी। कृपया हमारी मदद करें.’

In tribute to Vajpayee, PM Modi walks the extra mile

Indian Prime Minister Narendra Modi (R) walks behind a truck pulling the coffin with the body of former Indian prime minister Atal Bihari Vajpayee during a funeral procession in New Delhi on August 17, 2018.
Three-time Indian prime minister Atal Bihari Vajpayee died August 16, sparking tributes from across the political spectrum as current leader Narendra Modi mourned the “irreplaceable loss” of the respected statesman.


In a rare gesture, Prime Minister Modi joined the sea of people who walked down from the BJP headquarters up to the Smriti Sthal, a distance of roughly 5km


He may not be a true follower of the style of politics that former Prime Minister Atal Bihari Vajpayee believed in, but Prime Minister Narendra Modi paid a rare tribute to the three-time BJP PM by covering his final journey on foot on Friday.

In a rare gesture, Prime Minister Modi joined the sea of people who walked down from the BJP headquarters up to the Smriti Sthal, a distance of roughly 5 km. By doing so, the Prime Minister set aside the protocol and apprehensions over his security. This was a silent gesture of PM Modi to show how much he loved and respected BJP stalwart AB Vajpayee

Prime Minister Narendra Modi paying his last respects to former prime minister Atal Bihari Vajpayee at the cremation ground in New Delhi on August 17, 2018.

Vajpayee’s funeral procession started from the BJP headquarters on the Deen Dayal Upadhyay Marg, and then took the Bahadur Shah Zaffar Marg, crossed Delhi Gate and Daryaganj, to take the Netaji Subhash Marg, before reaching Smriti Sthal at Shanti Van.

Social media was flooded with posts appreciating PM Modi’s gesture towards the former PM.