वसुंधरा ने दिया इस्तीफा

जयपुर:

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया है. राज्य विधानसभा चुनाव में हुई बीजेपी के बाद उन्होंने अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया.

कांग्रेस को जीत की बधाई देते हुए वसुंधरा राजे ने कहा 5 साल में बीजेपी ने अच्छे काम किए हैं.मुख्यमंत्री ने कहा कि हम प्रदेश की जनता की आवाज को सदन में उठाएंगे. मैं समस्त पार्टी कार्यकर्ताओं, पीएम मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को धन्यवाद देना चाहती हूं. जब पत्रकारों ने उनसे हार का कारण जानना चाहा तो वसुंधरा ने सवाल को टाल दिया.

वसुंधरा के कई मंत्री चुनाव हारे

बता दें राजस्थान में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है. वसुंधरा राजे सरकार में कद्दावर रहे कई मंत्री विधानसभा चुनाव हार गए हैं. इनमें परिवहन मंत्री युनुस खान, खान मंत्री सुरेंद्र पाल सिंह टीटी, यूडीएच मंत्री श्रीचंद कृपलानी शामिल हैं. जीतने वाले मंत्रियों में गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया व शिक्षा मंत्री किरण महेश्वरी का नाम प्रमुख है. वसुंधरा राजे के करीबी माने जाने वाले युनुस खान टोंक विधानसभा सीट से 54,179 मतों से हार गए. इस सीट पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे सचिन पायलट जीते हैं.
वहीं जल संसाधन मंत्री डॉ. रामप्रताप हनुमानगढ़ सीट पर 15522 मतों से तो पशुपालन मंत्री रहे ओटाराम देवासी सिरोही सीट पर 10253 मतों से पराजित हुए. इसी तरह राजे सरकार के कृषि मंत्री प्रभु लाल सैनी अंता सीट पर 34059 मतों से हारे. उन्हें कांग्रेस के प्रमोद भाया ने हराया. खान मंत्री सुरेंद्र पाल सिंह टीटी करणपुर सीट पर हारे और वह मुकाबले में तीसरे स्थान पर रहे.

खाद्य व आपूर्ति मंत्री बाबू लाल वर्मा बारां अटरू सीट पर 12248 मतों से हार गए. पर्यटन मंत्री कृष्णेंद्र कौर दीपा नदबई सीट पर बसपा के जोगिंदर सिंह से 4094 मतों से हारीं जबकि यूडीएच मंत्री श्रीचंद कृपलानी निंबाहेडा सीट पर 11908 मतों से हारे हैं.

सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री अरूण चतुर्वेदी सिविल लाइंस सीट पर 18078 मतों से हार गए. उद्योग मंत्री राजपाल सिंह शेखावत झोटवाड़ा सीट पर 10747 मतों से हार गए. वहीं गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने उदयपुर सीट पर कांग्रेस की गिरिजा व्यास को 9307 मतों से पराजित किया.

इन मंत्रियों को मिली सफलता

वसुंधरा राजे के जिन प्रमुख मंत्रियों ने जीत दर्ज करने में सफलता पाई है उनमें चिकित्सा मंत्री कालीचरण सर्राफ मालवीयनगर सीट पर 1704 मतों से, महिला व बाल विकास मंत्री अनिता भदेल अजमेर (दक्षिण) सीट पर 5700 मतों से व शिक्षामंत्री वासुदेव देवनानी अजमेर (उत्तर) सीट पर 8630 मतों से जीते हैं. बाली सीट पर ऊर्जा मंत्री पुष्पेंद्र सिंह 28081 मतों व शिक्षा मंत्री किरण महेश्वरी ने राजसमंद सीट पर 24532 मतों से जीत दर्ज की है

आला / हाई कमान के दिन बहुरे: कांग्रेस ने की जोरदार वापसी


काँग्रेस के घर होली दिवाली एक साथ 

आला / हाई कमान के दिन बहुरे 

कांग्रेस की ये जीत बीजेपी विरोधी पार्टियों को आगामी चुनाव तक गोलबंद करने में मददगार साबित होगी जिससे बीजेपी के समक्ष मजबूत चुनौती पेश की जा सके.


2014 लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन पहली बार काबिलेतारीफ रहा है. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ‘पंजे’ के द्वारा ‘कमल’ को उखाड़ फेंका जाना दोनों राज्यों में उसके बेहतरीन प्रदर्शन की मिसाल है. वहीं मध्य प्रदेश में कांटे की टक्कर कांग्रेस द्वारा एक और राज्य में बेहतर प्रदर्शन को दर्शाती है. हिन्दीभाषी बीजेपी के गढ़ में कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन से कांग्रेस की बांछें खिल गई हैं और साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी का आत्मविश्वास पूरी तरह उफान पर है.

वैसे 2014 लोकसभा चुनाव के बाद साल 2017 तक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है. एक-एक कर 14 राज्यों में सत्ता गंवा चुकी कांग्रेस के लिए लगातार मिल रही हार को छिपाना मुश्किल हो रहा था. पार्टी के अंदर और बाहर पार्टी में जान फूंके जाने के लिए लीडरशिप क्राइसिस की बात उठने लगी थी और बीजेपी के ‘कांग्रेस मुक्त’ भारत के नारे को लोग सच्चाई की कसौटी पर देखने लगे थे.

विधानसभा चुनावों में मिली जीत पर बेंगलुरु में कांग्रेस मुख्यालय पर खुशियां मनाते पार्टी कार्यकर्ता

विधानसभा चुनावों में मिली जीत पर बेंगलुरु में कांग्रेस मुख्यालय पर खुशियां मनाते पार्टी कार्यकर्ता

पिछले चार सालों में पंजाब की जीत ही एक ऐसी जीत थी, जिसको लेकर कांग्रेस अपनी पीठ थपथपा सकती थी लेकिन उस जीत में भी जीत का सेहरा कैप्टन अमरिंदर सिंह को दिया गया. ध्यान रहे पंजाब में भी कांग्रेस की सीधी लड़ाई शिरोमणी अकाली दल से थी और बीजेपी शिरोमणी अकाली दल के सहयोगी तौर पर चुनाव मैदान में थी.

महाराष्ट्र, हरियाणा, गुजरात और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बीजेपी की लगातार जीत से कांग्रेस की कमर टूट चुकी थी वहीं बिहार में महागठबंधन को मिली जीत के बावजूद कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा. यहां महागठबंधन के नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आरजेडी और कांग्रेस से नाता तोड़कर बीजेपी की तरफ रुखसत कर गए और फिर से वहां एनडीए की सरकार बनाने में कामयाब हुए.

कुलमिलाकर कहा जाए तो 2014 लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी से सीधी लड़ाई में कांग्रेस कहीं भी कामयाब नहीं हुई थी. गोवा और मणिपुर में बीजेपी द्वारा हार का सामना करने के बाद भी राजनीतिक सूझबूझ से सरकार बना लेने से कांग्रेस का मनोबल पूरी तरह टूट चुका था. इन राज्यों में बीजेपी की सरकार बन जाने के बाद कांग्रेस को सेल्फ गोल करने वाली पार्टी की संज्ञा दी जाने लगी. जाहिर है बीजेपी से एक के बाद दूसरी मिल रही हार से कांग्रेस के हौसले पस्त हो चुके थे.

ऐसे में तीन राज्यों में कांग्रेस का जोरदार प्रदर्शन 2019 लोकसभा चुनाव में संजीवनी बूटी की तरह है, जो उसे नया जीवन देने और उसके हौसले को पंख लगाने में काफी मददगार साबित होगा. कांग्रेस के नेता मानने लगे हैं कि इन तीनों राज्यों के नतीजों से बीजेपी विरोधी पार्टियों में राहुल गांधी नेता के रूप में पदस्थापित हो सकेंगे और बीजेपी विरोधी पार्टियों में कांग्रेस और उसके नेतृत्व को लेकर विश्वास बढ़ेगा.

दरअसल पिछले चार सालों में बीजेपी के साथ सीधी लड़ाई में पहली बार ऐसा हुआ है कि कांग्रेस बीजेपी को पछाड़ पाने में कामयाब हो सकी है. 90 सीटों वाले राज्य छत्तीसगढ़ में बीजेपी को कांग्रेस ने पूरी तरह उखाड़ फेंका है. वहां बीजेपी को 20 से कम सीटें मिली हैं वहीं कांग्रेस 70 सीटें पाकर पंद्रह साल बाद सत्ता पर काबिज हो रही है. रमण सिंह के अभेद्य किले में कांग्रेस की सेंध से पार्टी आत्म विश्वास से लवरेज है. पार्टी के नेता और कार्यकर्ता इस चुनाव को 2019 लोकसभा चुनाव से पहले का सेमीफाइनल करार दे रहे हैं.

राजस्थान में भी ‘हाथ’ के करिश्मे के आगे कमल खिल नहीं सका. बीजेपी की मजबूत जड़ को हिला कांग्रेस अपना परचम लहराने में कामयाब रही है. कांग्रेस शतक पार कर बहुमत के आंकड़े को छू चुकी है वहीं बीजेपी 72 के आसपास सिमट कर रह गई है. सूबे के दिग्गज कांग्रेस नेता अशोक गेहलोत और सचिन पायलट पर्दे के पीछे मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए दावेदारी पेश कर रहे हैं. जाहिर है दोनों जीत का सेहरा राहुल गांधी के सिर बांध रहे हैं और जनता की अदालत के इस फैसले को साल 2019 की लोकसभा के रिजल्ट की झांकी करार दे रहे हैं. वैसे राजस्थान का रिकॉर्ड ये बताता है कि हर पांच साल में यहां सरकार बदलती है और ये सिलसिला पिछले 25 सालों से बरकरार हैं.

वहीं मध्य प्रदेश में भी शिवराज सिंह चौहान के पंद्रह साल के शासन को चुनौती देकर कांग्रेस सीधे तौर पर विजय के मार्ग पर आगे बढ़ रही है. जाहिर है राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की ये पहली ऐसी विजय है जिसको लेकर पार्टी का हौसला बुलंदियों पर है. कांग्रेस में उम्मीद जगी है कि लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी विरोधी पार्टियों को लामबंद करने में कांग्रेस को कामयाबी मिल सकेगी और बीजेपी विरोधी तमाम पार्टियों के बीच कांग्रेस नेतृत्व को लेकर विश्वास बढ़ेगा. ऐसी तमाम क्षेत्रीय पार्टियां जो कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर असमंजस की स्थिति में थी और राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार कर पाने में असहज हो रही थी उनके बीच राहुल गांधी की स्वीकार्यता को लेकर भरोसा बढ़ेगा.

वैसे राहुल गांधी कई बार इस बात को दोहरा चुके हैं कि 2019 का चुनाव बीजेपी बनाम विपक्षी पार्टियां होंगी लेकिन विपक्ष को गोलबंद कर पाने में वो अब तक कामयाब नहीं हो पाए थे. छ्त्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में एसपी, बीएसपी का कांग्रेस से अलग चुनाव लड़ना कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल खड़े करता रहा है. ऐसे में कांग्रेस की ये जीत बीजेपी विरोधी पार्टियों को आगामी चुनाव तक गोलबंद करने में मददगार साबित होगी जिससे बीजेपी के समक्ष मजबूत चुनौती पेश की जा सके.

पूर्वोत्तर कांग्रेस मुक्त हो गया, बनेगी एमएनएफ की सरकार


इसके साथ ही पूर्वोत्तर में कांग्रेस का आखिरी किला मिजोरम भी बुरी तरह से ढह गया है.


40 विधानसभा सीटों वाले मिजोरम में विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ चुके हैं. राज्य में 26 सीटें एमएनएफ जीत चुकी हैं और इसी के साथ राज्य में इस बार एमएनएफ की सरकार बनने जा रही है. वहीं कांग्रेस मिजोरम में बुरी तरह से हार चुकी है. इसके साथ ही पूर्वोत्तर में कांग्रेस का आखिरी किला मिजोरम भी बुरी तरह से ढह गया है. या यूं कहें कि पूर्वोत्तर कांग्रेस मुक्त हो चुका है.

साल 2013 में मिजोरम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जहां 34 विधानसभा सीटें जीती थीं तो वहीं इस बार आलम ये हो चुका है कि कांग्रेस से ज्यादा सीटें अन्य ने जीत ली है. साल 2013 के बाद अब कांग्रेस सिर्फ 5 सीटों पर ही सिमट गई है. वहीं राज्य में मिजो नेशनल फ्रंट सबसे ज्यादा सीटों के साथ बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आई है. एमएनएफ 26 सीटें जीत चुकी हैं. इसके साथ ही एनएमएफ ने पूर्ण बहुमत भी हासिल कर लिया है.

वहीं राज्य में इस बार कांग्रेस का बुरा हाल देखने को मिला है. लोगों ने सिरे से कांग्रेस को नकार दिया है. कांग्रेस से ज्यादा इस बार राज्य में अन्य ने सीटें जीती हैं. अन्य के खाते में इस बार 9 सीटे आई हैं. इन 9 सीटों में से 1 सीट बीजेपी के खाते में भी गई है. नॉर्थ ईस्ट में असम, त्रिपुरा, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और अब मिजोरम में कांग्रेस हार चुकी हैं.

 कांग्रेस की जीत पर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह

 

ब्रेकिंग् फ्रॉम झजजर

कांग्रेस की जीत पर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह

:  ढोल -नगाड़ो व लडडू बाटकर मनाई जीत की खुशी

: झज्जर के अंबेडकर चौक पर अशोक तंवर के कार्यकर्ताओं ने  ढोल बजाकर किया खुशी का इजहार

: कहा,  2019 में देश के प्रधानमंत्री होंगे राहुल गांधी

: कहा,  झज्जर का बेटा अशोक तंवर होगा हरयाणा का मुख्यमंत्री

राजस्थान की 18 सीटों के चुनाव परिणाम और पल पल के नतीजे

टोक से सचिन पायलट जीते 41000 से

राजगढ से कृष्णा पूनिया चुनाव जीती

ये है 18 सीटों का परिणाम-

1. सांचोर से कांग्रेस के सुखाराम विशनोई जीते.

2. मांडल से रामलाल जाट कांग्रेस उम्मीदवार जीते.

3. डग से बीजेपी प्रत्याशी कालूलाल मेघवाल जीते.

4. जालोर से बीजेपी के जोगेश्वर गर्ग जीते.

5. आहोर से बीजेपी के छगन सिंह राजपुरोहित जीते.

6. भीनमाल से बीजेपी के पूराराम चौधरी जीते.

7. रेवदर से बीजेपी के जगसीराम कोली जीते.

8. मसूदा से कांग्रेस के राकेश पारिक जीते.

9. मावली में बीजेपी के धर्मनाराणय जोशी 25000 मतों से जीते.

10. किशनगढ़ से निर्दलीय प्रत्याशी सुरेश टांक जीते, बीजेपी प्रत्याशी विकास चौधरी को हराया.

11. सिरोही से निर्दलीय प्रत्याशी संयम लोढ़ा जीते.

12. अजमेर दक्षिण से बीजेपी के वासुदेव देवनानी जीते.

13. बाड़मेर डेगाना से कांग्रेस के मेवाराम जैन जीते.

14. पचपदरा से कांग्रेस के मदन प्रजापत जीते.

15. जयपुर के सिविल लाइंस से कांग्रेस के प्रताप सिंह खाचरियावास 14,191 वोटों से जीते

16. भरतपपुर कामां से कांग्रेस की जाहिदा खान ने दर्ज की जीत

17. पिंडवाड़ा- आबू से बीजेपी के समाराम गरासिया जीते. करीब 27 हजार वोटो से जीत दर्ज की.

18. झालरापाटन से बीजेपी की उम्मीदवार और सीएम वसुन्धरा राजे जीतीं।

एससी/एसटी कानून में संशोधन का फैसला आत्मघाती था: सुरेन्द्र सिंह गहरवार


सुरेंद्र सिंह ने कहा, एससी/एसटी कानून में संशोधन का फैसला आत्मघाती था


भारतीय जनता पार्टी के विधायक सुरेंद्र सिंह ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खराब प्रदर्शन का ठीकरा एससी/एसटी कानून में संशोधन पर फोड़ा है. बीजेपी के बैरिया क्षेत्र से विधायक सुरेंद्र सिंह ने मंगलवार को कहा कि बीजेपी सवर्णों का अपमान करके जीत का सफर तय नहीं कर सकती.

उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार का एससी/एसटी कानून में संशोधन का फैसला आत्मघाती था. उन्होंने कहा कि चुनाव परिणाम अपेक्षा के अनुरूप ही हैं. जनता ने बीजेपी को आंशिक सबक दिया है. बीजेपी ने एससी, एसटी कानून पर अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सुधार नहीं किया तो लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ेगा.

उन्होंने कहा, ‘सवर्ण वर्ग बीजेपी का परंपरागत मतदाता है और जो अपनों को छोड़ कर पराए पर विश्वास करता है तो अपना भी चला जाता है और पराया भी.’

सुरेंद्र सिंह पहले भी अपने बयानों की वजह से चर्चा में रहे हैं. इससे पहले उन्होंने बुलंदशहर हिंसा में मारे गए इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की मौत पर पुलिस को कटघरे में खड़ा किया था. उन्होंने कहा था, इंस्पेक्टर सहित एक कार्यकर्ता की हत्या पुलिस की लापरवाही से हुई है. अगर पुलिस गोहत्या करने वालों को समय से गिरफ्तार करती तो ऐसा नहीं होता.

मध्यप्रदेश नतीजे शिवराज उतारचढ़ाव के बीच सरकार बनाने के जुगाड़ में


खबर आ रही है कि बीजेपी घटते-बढ़ते आंकड़ों को देखकर जोड़-तोड़ करके सरकार बनाने की तैयारी में है


पांचों चुनावी राज्यों में मध्य प्रदेश ही ऐसा राज्य है, जहां से कोई भी साफ तस्वीर निकलकर नहीं आ रही. यहां कांग्रेस और बीजेपी आगे-पीछे हो रही हैं. अभी तक किसको बहुमत मिलेगा, ये साफ नहीं हो पा रहा है.

मध्य प्रदेश में बहुमत की सरकार के लिए 116 का नंबर चाहिए. रुझानों में अभी तक कांग्रेस को 111 सीटें मिली हैं और बीजेपी को 108 मिली हैं. वहीं अन्य 11 सीटें अन्य दलों के हिस्से में जा रही हैं. नतीजे आने तक ये आंकड़े बदलेंगे.

वहां के हालात देखकर लग रहा है कि वहां त्रिशंकु विधानसभा बनेगी. अगर दोनों पार्टियों में से किसी को भी बहुमत नहीं मिलेगा तो सत्ता की चाबी मायावती और निर्दलीय विधायकों के हाथ में होगी.

न्यूज18 के मुताबिक खबर आ रही है कि बीजेपी घटते-बढ़ते आंकड़ों को देखकर जोड़-तोड़ करके सरकार बनाने की तैयारी में है. खबर है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के घर पर बीजेपी की अहम बैठक हो रही है. बीजेपी जरूर निर्दलीय विधायकों को अपने साथ लाने की कोशिश करेगी.

वहीं बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायवती के कदम पर भी सबकी नजर है. बीजेपी बीएसपी को अपनी तरफ मिलाने की कोशिश कर सकती है. लेकिन एबीपी न्यूज ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि बीएसपी एमपी में बीजेपी से हाथ नहीं मिलाएगी. खबर है कि मायावती ने राज्य में लड़ रहे अपने उम्मीदवारों को दिल्ली बुलाया है, ताकि उन्हें जोड़-तोड़ से बचाया जा सके.

मध्य प्रदेश में बीजेपी की पिछले 15 सालों से सरकार है. हालांकि इस बार जनता में बदलाव का माहौल बन गया था.

Five points to note, even before the last vote is counted for analysis

Madhya Pradesh, Chattisgarh and Rajasthan are three States where the Congress and the BJP are face to face.

Trends continue to fluctuate in Rajasthan and Madhya Pradesh, into the afternoon on the counting day, but one thing is clear — Amarinder Singh, the leader of the lean club of Congress chief ministers will have some new members joining. It is not yet clear, how many.

Madhya Pradesh, Chhattisgarh and Rajasthan are three States where the Congress and the BJP are face to face, like Gujarat. In Telangana and Mizoram,the Congress is up against regional parties.

There are five points to be noted even before the results are complete

First, the BJP’s strongholds are under challenge. Madhya Pradesh, Rajasthan and Chhattisgarh, surrounding the Gujarat laboratory, are critical to Hindutva politics. The BJP has been in power since 2013 in MP and Chhattisgarh. The party sought to overcome anti-incumbency and corruption charges in these States by a high dose of Hindutva, generously deploying Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath for campaigning. Perhaps that strategy worked to some extent and prevented a complete collapse of the party, though not enough to secure a comfortable win anywhere. What lesson will the BJP learn from this, for its 2019 campaign? A likely scenario will be that it will go for a mix of fresh populist government schemes and a sharp escalation of its Hindutva rhetoric. The mandir slogan is dusted and ready, for relaunch any time. We can’t be sure of its outcome.

Second point to be noted is the impact of the results on Mr. Modi’s individual standing. It can be argued that it was Mr. Modi’s personal appeal that prevented a complete rout of the BJP in Madhya Pradesh and Rajasthan. It is possible that when the 2019 election will be framed as a verdict on Mr. Modi and his politics, the scenario could be different from what we see today. But the news scenario of a weakened BJP at the state level in critical regions will force Modi to place himself at the centre of the campaign as he had done in 2014 too. The difference now is that he is no longer a challenger to the regime. He is the regime. He will double down on attempts to contrast himself with Rahul Gandhi. And that strategy as we know by now, can cut both ways. That strategy will require a progressive degeneration of his vocabulary and could turn off at least some sections of the electorate. Moreover, Mr. Modi has to now outsmart Mr. Yogi in the Hindutva game. A more detailed analysis of how the Modi factor worked in comparison with the Yogi factor in these core regions of Hindutva is likely to be done by the RSS. The internal dynamics of Hindutva politics will now play out less subtly in the coming months.

Thirdly, this election proves that there is limit to cleverness. In Chhattisgarh, the BJP talked up the Ajit Jogi-Mayawati alliance as a third force and its government tacitly supported it. At the end of the day, the new formation took down the BJP that finished third in Bilaspur and surrounding region. Far from harming the Congress, Mr. Jogi’s exit turned out to be boon for the Congress and his new party and the coalition contributed to the BJP’s downfall.

Fourth point is about Congress. This election puts the Congress party, and more specifically its president Rahul Gandhi, as the central character of opposition politics nationally. How the Congress will process its new status, how it will try to project that into other states where it is not the principal opponent of the BJP such as U.P and negotiate with regional partners are critical factors to track as India shifts gear to the campaign for the 17th general election next year.

Fifth point is how will the regional parties process the new status of the Congress as they are themselves wary of any improvement in the fortunes of India’s Grand Old Party. For their continuing prominence in their respective regions, they need the BJP as an enemy more than they need Congress as a friend. In 2004, this apparent contradiction was overcome by the genius and authority of Harkishan Singh Surjeet, then general secretary of the CPI (M). The CPI(M)’s own standing as a national party, without any claim for itself helped. In the absence of such a figure amongst them, can non-Congress parties forge an understanding that will bring them together around a Congress nucleus to form a national anti-BJP coalition? That question remains open today.

कड़े मुक़ाबले के बावजूद भाजपा का पलड़ा भारी

दिनेश पाठक अधिवक्ता, राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर। विधि प्रमुख विश्व हिन्दु परिषद

*एक विश्लेषण :-

राजस्थान के विधानसभा 2013 चुनाव में 74 प्रतिशत मतदान हुआ था जहाँ भाजपा को लगभग 45 प्रतिशत मत मिले थे और कॉंग्रेस को 33 प्रतिशत , मतलब लगभग 12 प्रतिशत का अंतर !!!

यह मोदीलहर थी , निसंदेह ! भाजपा ने स्वयं के प्रदर्शन में भी 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी की थी जिसमे से साढ़े तीन प्रतिशत उसने कॉंग्रेस से खिंचा था 4-5 प्रतिशत निर्दलीयों व अन्य पार्टियों से और लगभग 2 प्रतिशत विंडफॉल गेन मतलब नए वोटरों का 90 प्रतिशत समर्थन जो कुल वोट का 2 प्रतिशत के करीब था।

मतदान प्रतिशत ही सीधे 9.5 प्रतिशत बढ़कर 74 प्रतिशत हो गया था , जहाँ भाजपा को सीधे सीधे 37 लाख मतों की बढ़त थी कॉंग्रेस पर !!
चलिए अब मान लेते है कि भाजपा ने जो कॉंग्रेस के साढ़े तीन प्रतिशत लुटे थे वे इस बार कांग्रेस ने reclaim कर लिए तो मत प्रतिशत पहुंचा भाजपा 41.5 और कॉंग्रेस 36.5 प्रतिशत !

चलिए मान लेते है कि एन्टी इनकंबेंसी है तो 2 प्रतिशत और वोट भाजपा से सीधे कॉंग्रेस ने झटक लिए तब भी टैली पहुंची 39.5 भाजपा और 38.5 कॉंग्रेस

यहाँ एक बात नोट कर लीजिये की चाहे कुछ भी हो इन पांच साल में नए जुड़े वोटर जो कि 20 लाख के करीब है उनका 90 ना सही 75 प्रतिशत अब भी मोदी का मुरीद है जो भाजपा को मिलेगा विंडफॉल के रूप में जो प्रतिशत मे जाकर हुआ 4.85 प्रतिशत (वोट पड़े 3.5 करोड़ (74 % turnout 4.75 करोड़ का , नवयुवा वोटर 20 लाख जिसका 85 प्रतिशत मतदान होता हैं है मतलब 17 लाख हुआ 4.85 प्रतिशत )
ये मानकर चलिए की सभी सीटों पर फैले इस गेमचेंजर 4.85 नए वोटरों का 75 फीसदी कम से कम हुआ 3.7 प्रतिशत !!

लिखकर लें लीजिये की एन्टी एन्टीइनकम्बेंसी की लहर “मोदीलहर” के बराबर भी हो तो भी उंसके नकारात्मक असर को केवल ये नवयुवा वोटर ही ठिकाने लगा देगा और भाजपा कम से कम 2-3 प्रतिशत आगे ही रहेगी कांग्रेस से फिर भी क्लोज टैली के चलते 5-7 सीट कम ज्यादा हो सकती है , कम से कम भी मानकर चले तो भाजपा- कांग्रेस 95- 90 या 90-95 से नीचे नही जाएगी लिख कर ले लीजिए , ज्ञातव्य है कि 2008 की भाजपा के विरुद्ध की भयंकर एन्टीनकंबेंसी लहर तक मे भाजपा 78 सीट लाई थी जबकि मोदी फैक्टर जैसा कुछ नही था जो कि अब हर चुनाव में महत्वपूर्ण होता है ।

सबसे अंत मे वह जनसमर्थन जो मोदीजी /योगीजी की रैलियों में दिखा वह है, स्मरण रखिये की राजस्थान में युही कोई केवल चेहरा देखने/दिखाने नही आ जाता दिन बिगाड़ के या चुटुकुले सुनने राहुल के दर्शकों की तरह !
इसे अज्ञात बोनस मानकर चलिये कम से कम !

मोदी जी की झोली में कम हो या ज्यादा डालेंगे जरूर, राजस्थानी उन्हें खाली नही भेजेंगे कभी !

बाकी एग्जिट पोल मात्र वो पॉपकॉर्न है जो फ़िल्म चालू होने से पहले टाइमपास के लिए है कमर्शियल ads देखते देखते ।

भाजपा टक्कर में है और सरकार बनाएगी फिर से ……

रिपब्लिकन टीवी के पत्रकार पर अपहरण, शोषण और मारपीट का केस दर्ज़


एफआईआर के अनुसार चुटिया पर आईपीसी की कई धाराओं में केस दर्ज किया गया है. चुटिया को दो दिन तक पुलिस हिरासत में रखने के बाद सीआरपीसी की धारा 41 के तहत 3 दिसंबर को रिहा कर दिया गया था


रिपब्लिक टीवी के रिपोर्टर अनिरुद्ध भक्त चुटिया पर गुवाहाटी की एक महिला ने अपहरण और मारपीट करने का आरोप लगाया गया है. महिला की शिकायत के आधार पर 1 दिसंबर को गुवाहाटी के दिसपुर पुलिस स्टेशन में चुटिया के खिलाफ केस दर्ज की गई है. चुटिया 3 दिसंबर को रिहा हुए इसके पहले दो दिन तक वो पुलिस हिरासत में थे.

द वाइर में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, पीड़ित ने आरोप लगाया कि 1 दिसंबर की रात को जब वो काम से लौट रही थी तभी चुटिया उन्हें मिले. चुटिया कथित तौर पर एक अनजान आदमी के साथ था और नशे में धुत्त था. पीड़िता ने बताया, ‘वो नशे में था. उसने मुझे बात करने के लिए रोका. और इससे पहले कि मैं कुछ रिएक्ट कर पाती, उन दोनों ने मेरी गर्दन पर चाकू लगाया और मुझे लेन से सटे अपने घर में खींच लिया. जबर्दस्ती घर में ले जाने के बाद कुर्सी से हाथ बांध दिए गए थे. जब मैंने विरोध किया, तो उन्होंने मेरा यौन उत्पीड़न भी किया. चुटिया की मां भी कमरे में भी मौजूद थीं.’

जैसे ही पीड़िता के हाथ खोले गए तो उसने अपना मोबाइल फोन निकाला और अपने सहयोगियों को घटना के बारे में बताया. इसके बाद वे आए और उसे बचा लिया. पीड़िता का दावा है कि चुटिया उसके घर के पास में ही रहता है. वो दोनों काम के सिलसिले में दो बार मिले भी थे. चुटिया ने पीड़िता से मेलजोल बढ़ाने की कोशिश की लेकिन उसने नजरअंदाज कर दिया.

पुलिस दबाव में काम कर रही है:

एफआईआर के अनुसार चुटिया पर आईपीसी की कई धाराओं में केस दर्ज किया गया है. चुटिया को दो दिन तक पुलिस हिरासत में रखने के बाद सीआरपीसी की धारा 41 के तहत 3 दिसंबर को रिहा कर दिया गया था. पीड़िता ने यह भी आरोप लगाया है कि पुलिस ‘दबाव में काम कर रही है’ और चुटिया के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करते समय घटना के विभिन्न विवरण को पुलिस ने जानबूझकर नजरअंदाज कर दिया है. कई समाचार रिपोर्टों का दावा है कि पुलिस अधिकारियों ने इस मामले के बारे में कुछ भी बोलने से मना कर दिया है.

न तो चुटिया और न ही जिस मीडिया संस्थान (रिपब्लिक टीवी) के लिए वो काम करता है ने इस मुद्दे पर किसी तरह का बयान जारी किया है.