India and Myanmar jointly open the entery-exit gates giving a major boost to India’s ‘Act East Policy’


The move comes after India and Myanmar jointly carried out a routine survey


The landmark land border crossing agreement between India and Myanmar came into effect on Wednesday with the simultaneous opening of international entry-exit checkpoints between the two countries, giving a major boost to India’s ‘Act East Policy’.

“August 8 is an important date in the history of Myanmar. Today, it will also become an important date in the history of India-Myanmar bilateral relations. This morning, international entry-exit checkpoints have been opened simultaneously on the Tamu- Moreh Border between Manipur and Sagaing Division and the Rihkhawdar-Zokhawthar border between Mizoram and Chin State,” said Indian Ambassador to Myanmar Vikram Misri.

“People will now be able to cross the land border between India and Myanmar holding passports and visas and will be able to travel for tourism, business and education purposes. This will bring our two peoples and two countries closer together and connect our North-East much more strongly with Myanmar as well as the broader ASEAN region. This indeed is Act East (Policy) in action,” he added.

The move comes after India and Myanmar jointly carried out a routine survey following several media reports claiming that unrest erupted in some areas in Moreh sub-division of Manipur over the rumours of alleged shifting of an India-Myanmar border pillar into the Indian Territory.

During the survey, work on the construction of subsidiary pillars between already settled main boundary pillars 81 and 82 along the zero line was agreed and settled international boundary was also undertaken.

पूर्वोत्तर भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ भारत मिशन की समीक्षा

 

पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय में सचिव परमेश्वरन अय्यर ने मंगलवार 07 अगस्त को गुवाहाटी में आयोजित एक क्षेत्रीय कार्यशाला में समस्त पूर्वोत्तर राज्यों में स्वच्छ भारत मिशन- ग्रामीण (एसबीएम-जी) के क्षेत्र में हुई प्रगति की समीक्षा की। असम, मणिपुर, नगालैंड और त्रिपुरा के वरिष्ठ सरकारी प्रतिनिधियों ने स्वच्छ भारत के लिए तय 2 अक्टूबर, 2019 के राष्ट्रीय लक्ष्य से पूरे एक साल पहले ही अक्टूबर, 2018 तक ‘ओडीएफ (खुले में शौच से मुक्त) पूर्वोत्तर’ का लक्ष्य पाने के लिए अपने द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों पर विचार-विमर्श किया। इस क्षेत्र के तीन ओडीएफ राज्यों अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और मिजोरम ने अपनी-अपनी उपलब्धियों को बनाए रखने के लिए स्वयं द्वारा उठाए गए कदमों पर विचार-विमर्श किया। इसके साथ ही इन तीनों ओडीएफ राज्यों ने ठोस एवं तरल अपशिष्ट के प्रबंधन के जरिए ‘ओडीएफ’ से भी आगे निकल कर ‘ओडीएफ+’ बनने की दिशा में उठाए गए कदमों की भी चर्चाएं कीं।

इससे पहले सचिव परमेश्वरन अय्यर ने असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल से भेंट की और स्वच्छ भारत मिशन- ग्रामीण के क्षेत्र में असम में हुई प्रगति पर विचार-विमर्श किया। सचिव ने राज्य सरकार को एसबीएम-जी के क्षेत्र में भारत सरकार की ओर से पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया, जिसमें समयबद्ध ढंग से संबंधित धनराशि उपलब्ध कराना भी शामिल है। मुख्यमंत्री ने 2 अक्टूबर, 2018 तक ‘ओडीएफ असम’ के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए राज्य की प्रतिबद्धता दोहराई।

इस बैठक के बाद असम की मुख्य सचिव टी• वाई• दास और पेयजल एवं स्वच्छता सचिव ने वीडियो क्रांफ्रेंसिंग के जरिए राज्य के सभी जिलाधिकारियों के साथ एसबीएम-जी की विस्तृत समीक्षा की। मुख्य सचिव ने इस मिशन में लोगों विशेषकर महिलाओं की सहभागिता की अहमियत दोहराई। उन्होंने जिलाधिकारियों से एसबीएम-जी से संबंधित प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस) के क्षेत्र में हुई प्रगति की समवर्ती सूचना प्रेषण सुनिश्चित करने को कहा। उन्होंने स्कूल एवं कॉलेज के विद्यार्थियों द्वारा अपने अभिभावकों को स्वच्छता एवं साफ-सफाई की अहमियत से अवगत कराने के लिए जिलाधिकारियों को प्रोत्साहित किया। उन्होंने जिलाधिकारियों से आगामी स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण के लिए तैयार रहने को भी कहा, जिसके तहत नागरिकों से प्राप्त ऑफलाइन एवं ऑनलाइन जानकारियों (फीडबैक) सहित गुणात्मक एवं मात्रात्मक पैमानों के आधार पर स्वच्छता को लेकर भारत के सभी जिलों एवं राज्यों की रैंकिंग की जाएगी (sbm.gov.in/ssg2018)।

इस बीच, राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छता कवरेज वर्ष 2014 के 39 प्रतिशत से बढ़कर वर्तमान में 89.5 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई है। 4.12 लाख से अधिक गांवों, 421 जिलों, 14 राज्यों और 5 केन्द्र शासित प्रदेशों को पहले ही ‘ओडीएफ’ घोषित किया जा चुका है।

राज्यसभा उप सभापति चुनाव आज, जानिए क्या होती है प्रक्रिया

राज्यसभा के उपसभापति के लिए गुरुवार को चुनाव होना है. इसी दिन राज्यसभा को नया उपसभापति भी मिल जाएगा. यह एक संवैधानिक पद है. भारत के संविधान के आर्टिकल 89 में कहा गया है कि राज्यसभा अपने एक सांसद को उपसभापति पद के लिए चुन सकता है, जब यह पद खाली हो.

उपसभापति का पद इस्तीफा, पद से हटाए जाने या इस पद पर आसीन राज्यसभा सांसद का कार्यकाल खत्म होने के बाद खाली हो जाता है. वर्तमान उपसभापति प्रोफेसर पीजे कुरियन का कार्यकाल 1 जुलाई को खत्म हो गया था, जिस कारण यह पद अभी खाली है.

क्या है राज्यसभा के उपसभापति चुनने का नियम

राज्यसभा उपसभापति का चुनाव करने की प्रक्रिया बहुत ही सहज और सरल है. कोई भी राज्यसभा सांसद इस संवैधानिक पद के लिए अपने किसी साथी सांसद के नाम का प्रस्ताव आगे बढ़ा सकता है. इस प्रस्ताव पर किसी दूसरे सांसद का समर्थन भी जरूरी है. इसके साथ ही प्रस्ताव को आगे बढ़ाने वाले सदस्य को सांसद द्वारा हस्ताक्षरित एक घोषणा प्रस्तुत करनी होती है जिनका नाम वह प्रस्तावित कर रहा है. इसमें इस बात का उल्लेख रहता है कि निवार्चित होने पर वह उपसभापति के रूप में सेवा करने के लिए तैयार हैं. प्रत्येक सांसद को केवल एक प्रस्ताव को आगे बढ़ाने या उसके समर्थन की अनुमति है.

अगर किसी प्रस्ताव में एक से ज्यादा सांसद का नाम हैं तो इस स्थिति में सदन का बहुमत तय करेगा कि कौन राज्यसभा के उपसभापति के लिए चुना जाएगा. अगर सभी राजनीतिक दलों में किसी एक सांसद के नाम को लेकर आम सहमति बन जाती है, तो इस स्थिति में सांसद को सर्वसम्मति से राज्यसभा का उपसभापति चुन लिया जाएगा.

उपसभापति पद के लिए हुए अबतक के चुनाव

राज्यसभा उपसभापति पद के लिए अबतक कुल 19 बार चुनाव हुए हैं. इनमें से 14 मौकों पर सर्वसम्मति से इस पद के लिए उम्मीदवार को चुन लिया गया, मतलब चुनाव की नौबत ही नहीं आई. 1969 में पहली बार उपसभापति के पद के लिए चुनाव हुआ था.

राज्यसभा उपसभापति को पूरी तरह से राज्यसभा के सांसद ही निवार्चित करते हैं. यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण पद है. उपसभापति को सभापति/उपराष्ट्रपति की गैरमौजूदगी में राज्यसभा का संचालन करना होता है. इसके साथ ही तटस्था के साथ उच्च सदन की कार्यवाही को भी सुचारू रूप से चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है.

राज्यसभा के उपसभापति पद के उम्मीदवार के लिए NDA ने जेडीयू सांसद हरिवंश को चुना है. कांग्रेस ने राज्यसभा के उपसभापति के उम्मीदवार के तौर पर बीके हरिप्रसाद का नाम आगे किया है. गुरुवार को फैसला हो जाएगा कि राज्यसभा का अगला उपसभापति कौन होगा. हालांकि आंकड़े सत्तारूढ़ दल एनडीए के साथ हैं.

उपसभापति राज्यसभा के लिए भाजपा का गेमपलान


इसे बीजेपी का ऐसा मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है जिस पर विपक्षी दलों को भी अपना उम्मीदवार खड़ा करने में कई दौर की बैठक करनी पड़ी


राज्यसभा के उपसभापति पद के चुनाव के लिए बीजेपी ने काफी सोच-समझकर सियासी बिसात बिछाई है. बीजेपी ने अपनी सहयोगी जेडीयू के राज्यसभा सांसद हरिवंश को अपना उम्मीदवार बनाया है. हरिवंश वरिष्ठ पत्रकार भी रहे हैं. उनके नाम को आगे कर बीजेपी ने एनडीए के भीतर के सियासी समीकरण को साधने की पूरी कोशिश की है.

हरिवंश का नाम सामने आने के बाद अपनी पार्टी के उम्मीदवार की जीत के लिए बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार काफी सक्रिय हो गए हैं. नीतीश कुमार ने उपसभापति पद के चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार के समर्थन के लिए कई दूसरे छोटे राजनीतिक दलों से संपर्क साधना शुरू कर दिया है, जिनकी भूमिका काफी अहम है. इन राजनीतिक दलों की ताकत भले ही कम है, लेकिन, राज्यसभा के भीतर अपने उम्मीदवार की जीत के लिए इनका समर्थन बेहद अहम है.

गैर-यूपीए और गैर-एनडीए दलों की भूमिका बढ़ी

एनडीए और यूपीए के मौजूदा सांसदों की तादाद लगभग बराबर है. लेकिन, टीआरएस, बीजेडी और एआईएडीएमके जैसे गैर-एनडीए और गैर-यूपीए दलों की भूमिका बढ़ गई है. टीआरएस के 6, बीजेडी के 9 और एआईएडीएमके के 13 सांसदों का समर्थन काफी अहम हो गया है.

एआईएडीएमके के सभी 13 सांसद एनडीए उम्मीदवार का ही समर्थन करेंगे क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी उन्होंने सरकार का ही साथ दिया था. भले ही एआईएडीएमके औपचारिक तौर पर एनडीए का हिस्सा नहीं हो, लेकिन सूत्रों के मुताबिक, पार्टी एनडीए और सरकार के खिलाफ नहीं जाएगी.

दूसरी तरफ टीआरएस के राज्यसभा में 6 सदस्य हैं. एनडीए उम्मीदवार को जीत दिलाने के लिए टीआरएस के समर्थन की जरूरत होगी. नीतीश कुमार ने टीआरएस के समर्थन के लिए तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव से बात भी की है. अभी पिछले कुछ महीनों में केसीआर के बीजेपी के करीब आने की संभावना भी दिख रही है. ऐसे में इस बात की उम्मीद की जा रही है कि टीआरएस एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में ही वोट करेगी.

नीतीश के चलते मान सकती है बीजेडी

बीजेपी को उम्मीद बीजेडी से भी है. बीजेपी के रणनीतिकारों को लग रहा है कि सीधे-सीधे बीजेपी के नाम पर नहीं तो कम-से-कम जेडीयू और नीतीश कुमार के  नाम पर बीजेडी राजी हो सकती है. उम्मीद की जा रही है कि नीतीश कुमार के कहने पर ओडीशा के मुख्यमंत्री शायद मान जाएं. बीजेडी अगर समर्थन कर देती है तो फिर एनडीए के लिए राहें आसान हो जाएगी.

बीजेपी का गेम प्लान भी यही है. बीजेपी को लगा कि अकले अपने दम पर बहुमत नहीं होने की सूरत में नीतीश कुमार को आगे कर उन दलों को साधा जा सकता है जो बीजेपी के साथ तो नहीं हैं, लेकिन, कांग्रेस के साथ भी जाना पसंद नहीं करते.

दूसरी तरफ, एनडीए के सहयोगी दलों की तरफ से भी जेडीयू के नाम पर ऐतराज नहीं है. अकाली दल और शिवसेना दोनों को लेकर पहले कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे. अकाली दल के राज्यसभा सांसद नरेश गुजराल का भी नाम उपसभापति पद के लिए चर्चा में था. लेकिन, दूसरी सहयोगी जेडीयू के उम्मीदवार के नाम के ऐलान के बाद अकाली दल में थोड़ी नाराजगी भी दिखी थी. लेकिन, आखिर में अकाली दल ने एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में खड़ा होने का फैसला किया है.

शिवसेना भी एनडीए के पक्ष में खड़ी हो सकती है

दूसरी तरफ, शिवसेना को लेकर भी कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे. बीजेपी के साथ शिवसेना के रिश्ते ठीक नहीं हैं. सरकार में रहते हुए भी शिवसेना बीजेपी के खिलाफ बोलती रहती है. अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी शिवसेना ने जिस तरह से सदन से बाहर रहने का फैसला किया वो दोनों दलों के रिश्तों में कड़वाहट को दिखाने वाला है.

फिर भी शिवसेना को साधने के लिए जेडीयू उम्मीदवार को आगे करने की कोशिश सफल होती दिख रही है. सूत्रों के मुताबिक, राज्यसभा के भीतर 6 सांसदों वाली शिवसेना पार्टी एनडीए के समर्थन में खड़े हो सकती है.

राज्यसभा के गणित को आंकड़ों के हिसाब से देखें तो 245 सदस्यीय राज्यसभा में अभी 244 सदस्य हैं और 1 सीट खाली है. सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए 123 सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी. एनडीए के राज्यसभा में 90 सांसद हैं. इसमें बीजेपी के 73, बोडो पीपुल्स फ्रंट के पास 1, जेडीयू के 6, नामांकित सदस्य 4, आरपीआई (ए) के 1, शिरोमणि अकाली दल के 3 और सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के 1 सांसद शामिल हैं. ऐसे में एनडीए को उम्मीद एआईएडीएमके के 13 सांसदों के अलावा सहयोगी शिवसेना के 3 और टीआरएस के 6 सांसदों पर टिकी है.

दूसरी तरफ विपक्ष के पास भी 112 सांसदों का समर्थन दिख रहा है. इसमें कांग्रेस के 50, आम आदमी पार्टी के 3, बीएसपी के 4, टीएमसी के 13, सीपीआई के 2, सीपीएम के 5, डीएमके के 4, इंडियन मुस्लिम लीग के 1, जेडीएस के 1, केरल कांग्रेस के 1, एनसीपी के 4, आरजेडी के 5, एसपी के 13, टीडीपी के 6 सांसद शामिल हैं.

लेकिन, सबकी नजरें टिकी हैं बीजेडी के उपर. अगर बीजेडी ने एनडीए उम्मीदवार को समर्थन देने का फैसला कर लिया तो फिर उपसभापति के चुनाव में एनडीए की राह आसान हो जाएगी.

राज्यसभा के उपसभापति पद के चुनाव में बीजेपी की रणनीति चर्चा का विषय है. जेडीयू उम्मीदवार के आगे आने से बीजेपी के साथ नीतीश कुमार की नजदीकी भी दिख रही है. नीतीश का बढ़ा हुआ कद भी दिख रहा है. इसे बीजेपी का ऐसा मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है जिस पर विपक्षी दलों को भी अपना उम्मीदवार खड़ा करने में कई दौर की बैठक करनी पड़ी.

Nirankari Mata Savinder Hardev ji passes away

Nirankari Mata Savinder Hardev ji passes away after a prolong illness at 5:15 pm in New Delhi. She was 61. Born on 2nd January 1957 to Sh. Manmohan Singh and Smt. Amrit Kaur and later was adopted by Sh. Gurumukh Singh and Mrs Madan Kaur ji.

She got her education at convent of Christian and Mary Mussoorie As a better half of Baba Hardev Singh she supported him in prachar and welfare in india and abroad.

She was the 5th Saduru of nirankari mission

She is survived by three daughters. Samta, Renuka and Sudeeksha

Sadguru Sudiksha ji is the 6th head of Nirankari Mission

The body of Mata ji will be plaed for last ‘darshans’ in Samagam ground no. 8 till 7th of August, 2018, the cremation will be held at Nigam Bodh Ghat on 8th August at 12 noon in electrical crematorium. The mission sources told.

The Shradhaanjli samaroh will take place in samagam ground the same day at 2:00 pm

Eight-member Trinamool Congress (TMC) delegation to visit Assam to assess situation in state after release of NRC final draft

Kolkata: An eight-member delegation of the Trinamool Congress (TMC) will be visiting Assam later this week to assess the situation in the north-eastern state in the wake of the publication of the final draft of the NRC, the party said on Monday.

The final draft of the National Register of Citizens (NRC) was published in Assam on Monday. Over 40 lakh people of the state did not find their names in the document. “On August 2 and 3, a delegation comprising six MPs of the Trinamool Congress (Sukhendu Sekhar Ray, Kakoli Ghosh Dastidar, Ratna De Nag, Nadimul Haque, Arpita Ghosh, Mamata Thakur), MLA Mohua Moitra and West Bengal minister Firhad Hakim will be visiting Assam,” the TMC said in a statement.

TMC supremo and West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee accused the BJP-led central government of resorting to “vote-bank politics” with regard to the NRC and said “Indian citizens have become refugees” in their own land.

Amid tight security, the much-awaited NRC final draft was published in Assam on Monday with over 2.89 crore names of the 3.29 crore applicants.

NRC Assam: Over 40 lakh were declared ineligible for inclusion and, therefore, will not have any claim to Indian citizenship

 

 

Unlike what the government had anticipated, Assam did not witness any significant disturbances on Monday, the day the state government released the final draft of the National Register of Citizens (NRC). To prevent violence, central forces had been deployed in the state to maintain law and order.

However, this is not to say that the discontent already generated by this exercise will not be exacerbated by the knowledge that of the roughly 3.29 crore people who had applied to be included in the register, over 40 lakh were declared ineligible for inclusion and, therefore, will not have any claim to Indian citizenship. That this version of the register just published is only the final draft — the final NRC of Assam will be published after another round of claims and objections are filed and processed — will be of small consolation for those who face the prospect of being denied citizenship and either becoming “stateless” or being deported. Stateless people, like practically the entire Rohingya Muslim population, are those who are not recognised as citizens by any country.

The apprehension that the NRC being upgraded, and the criteria set to include in it, is a political stratagem to consolidate the Bharatiya Janata Party’s (BJP) majority vote bank in Assam is underlined by several factors.

First, the majority of those left out of the NRC are Bengali-speaking Muslims who migrated to Assam at some point. Theoretically, if they had arrived in the state before midnight on 24 March, 1971, they are eligible to be included in the register and claim citizenship. But in practical terms, it is not so simple. There are many people who did arrive before the cut-off date but do not have the requisite documentation to prove that; for instance, some because they went to other states when they migrated before shifting to Assam.

Second, there is more than a whiff of injustice that clings to any process, under whatever mandate, that seeks to make illegal the status of people living in a place for up to 47 years. Even more egregious and unconscionable is the decision to exclude them from the ambit of the NRC and also deny citizenship to those who were born in Assam to illegal migrants, as this is in violation of the Citizenship Act as amended in 2003.

Third, there is the parallel legislative manoeuvre of amending the Citizenship Act with the Citizenship (Amendment) Bill, 2016. This amendment Bill was tabled in the Lok Sabha in July 2016 and referred to a joint parliamentary committee about a month later. The committee is scheduled to table its report in the Winter Session of Parliament this year. This Bill seeks to grant citizenship to illegal immigrants, understood to be from the region, who are Buddhists, Christians, Hindus, Jains, Parsis or Sikhs. A Bill that explicitly discriminates against people professing a particular religion — Islam — seems, on the face of it, against the spirit of the Constitution.

When considered together, all of these have given the exercise of updating the NRC in Assam — and nowhere else — a communal and sectarian colour and has made it look as though it is being pushed through to subserve the BJP’s political and electoral calculations, obviously not just in Assam but countrywide. It would certainly not be outlandish to argue that the timing — months before crucial Assembly elections this year and the Lok Sabha elections next year — is suspect. On the other had, BJP supporters could argue that the exercise cannot be considered partisan as it was the Supreme Court that had ordered the government to identify illegal immigrants.

This argument does not really cut much ice. Illegal immigrants are illegal immigrants, regardless of their religion. So when the state simultaneously undertakes an exercise to identify illegal immigrants and seeks to provide immunity, i.e. citizenship, to some of them, the spirit of the Supreme Court’s order seems to be vitiated.

Opposition parties have Protested against the process of the NRC’s upgrade. The Congress warned that “illegals”, as well as Indian Muslims who are not part of the BJP’s vote base, will be targeted. A conglomerate of groups from the Barak Valley, which has a high concentration of Bengali-speakers, and rights groups have also critiised the way the Assam government has gone about the task set by the Supreme Court (beginning with setting the criteria determining eligibility) for violating human rights. There has also been talk of ethnic cleansing, though a bit extreme.

 

Assam’s neighbours will ultimately have to suffer some of the consequences of whatever outcome finally emerges. For now, 40 lakh people risk losing out; this figure could either drop significantly or rise. Within India, West Bengal would be the obvious destination for the “illegals” who are, as earlier mentioned, largely Bengali-speaking Muslims.

Not surprisingly, Chief Minister of West Bengal Mamata Banerjee has taken a stand against the exercise. She has accused the BJP of using this stratagem for electoral gains, of turning people — Bengalis, Biharis, Hindus and Muslims — into refugees in their own country and of pursuing a policy of divide and rule. Mamata also said that West Bengal will serve as a refuge for the displaced. Other parties have been similarly critical. Bangladesh, which may be affected as well, has understandably not reacted.

Mamata has a point, especially when she says that West Bengal — and by extension other neighbouring states — should have been consulted. This is in tune with her reiterations of the sanctity of the federal principle and her attempt to play a key role in building a “federal front” to fight the BJP.

However, the West Bengal chief minister is also playing to her constituency: Bengalis, in general, and Bengali-speaking Muslims in particular. In this context, the Trinamool Congress would do well to be careful to first stick to principles instead of countering one form of identity politics with another.