नागपुर निगम चुनाव में भाजपा ने परचम फहराया

नागपुर।

भाजपा ने नागपुर में अपना वर्चस्व कायम रखा है हालांकि नागपुर की पारशिवनी नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर शिवसेना ने कब्जा जमाया है। जबकि वानाडोंगरी नगर परिषद अध्यक्ष पद भाजपा को मिला है। मंगलवार को राज्य चुनाव आयोग ने दोनों नगर निकाय के चुनाव परिणाम घोषित किए। इसके अनुसार पारशिवनी नगर पंचायत की 17 सीटों में से भाजपा को 11 सीटों पर जीत मिली है। शिवसेना ने  4 और कांग्रेस ने 2 सीट पर जीत दर्ज की है। वहीं वानाडोंगरी नगर परिषद की 21 सीटों में से भाजपा 19 सीटों पर विजयी हुई है। राष्ट्रवादी कांग्रेस 1 और निर्दलीय को 1 सीट पर जीत मिली है।

तहसील बनने के बाद वानाडोंगरी नगर परिषद में पहली बार हुए चुनाव में भाजपा को एकतरफा जीत हासिल हुई है। क्षेत्र की जनता ने नगराध्यक्ष के साथ ही 19 नगरसेवक भाजपा के चुनकर दिए। राकांपा, कांग्रेस आघाड़ी की उम्मीदवार को 270 मतों से भाजपा की नगराध्यक्ष उम्मीदवार वर्षा शहाकार ने हराकर जीत हासिल की। वहीं 10 प्रभाग के कुल 21 नगरसेवकों में से 19 नगरसेवक भाजपा, एक राकांपा तथा एक अपक्ष नगरसेवक चुनकर आए। इस जीत को विधायक मेघे ने भाजपा कार्यकर्ता व क्षेत्र की जनता की जीत करार दिया है। उन्होंने विकास तेज गति से करने का भरोसा भी दिया है।

पारशिवनी नगर पंचायत के 17 वार्ड सदस्यों के लिएए 68 उम्मीदवार और नगराध्यक्ष पद के लिए 4 उम्मीदवार मैदान में थे। शिवसेना के पूर्व विधायक आशीष जयस्वाल की रणनीति सफल हुई जिसके चलते कम सीट जीतने के बावजूद नगराध्यक्ष पद पर शिवसेना की प्रतिभा कुंभलकर विजयी हुईं। कुंभलकर को 2 हजार 440 वोट मिले। जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस की सुनीता डोमकी को 2 हजार 229 वोट मिले। कुंभलकर 211 वोटों से विजयी रहीं और नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर शिवसेना का परचम लहरा गया।

कास्टिंग काउच: शिकंजा कसा तो बहुत लोगों के नाम होंगे उजागर


केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने किया सूचित, 7 प्रोडक्शन हाउसेज का बना पैनल


यौन उत्पीड़न के खिलाफ दक्षिण की लड़कियों ने जंग छेड़ रखी है, अब ये साफ-सफाई अधिनियम शुरू करने के लिए बॉलीवुड की बारी है. केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने सूचित किया है कि सात बॉलीवुड प्रोडक्शन हाउसेज यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए एक पैनल बनाने पर सहमत हुए हैं.

2017 में मेनका गांधी ने बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं से वर्कप्लेस एक्ट, 2013 में यौन उत्पीड़न का अनुपालन करने और शिकायतों को सुनने के लिए समितियों की स्थापना करने के लिए कहा था. तब से ये आंदोलन हो रहा है और प्रोडक्शन हाउसेज और फिल्म एसोसिएशन ने भी इस तरह के मामलों से निपटने की शुरुआत कर दी है. जब फिल्म के सीईओ और टेलीविजन प्रोड्यूसर कुलमीत मक्कड़ ने पूछा कि क्या मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र में कंपनियों के लिए या किसी अन्य उद्योग में उस मामले के लिए काम पर यौन उत्पीड़न नीति है या नहीं. उन्होंने कहा, ‘बिल्कुल! ये गैर-विचारणीय है और इसे लागू किया जाना चाहिए. हम भारत के निर्माता गिल्ड के रूप में बड़े पैमाने पर इंडस्ट्री के जरिए पालन किए जाने वाले सर्वोत्तम प्रथाओं की आवश्यकता का समर्थन करते हैं और ये सुनिश्चित करते हैं कि कार्यस्थल महिलाओं के काम करने के लिए एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करें’

अमित बहल ने कहा कि, कई प्रोडक्शन हाउसेज में पहले से ही एक सेल है जहां शिकायतों का ख्याल रखा जा रहा है. यहां तक कि सिने और टेलीविजन आर्टिस्ट्स एसोसिएशन भी ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई करता है. सुशांत सिंह और मैं अमेरिका और फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल एक्टर्स में हमारे समकक्षों के जरिए शुरू किए गए #मीटू कैंपेन के लिए प्रमुख तौर पर हस्ताक्षरकर्ता रहे हैं. इसके अलावा हमने निश्चित रूप से ये सुनिश्चित किया है कि कोई भी सदस्य यौन उत्पीड़न और शोषण का कोई मामला होने पर आगे आ सकते हैं और अगर हमें पुलिस के पास जाने और कानूनी लड़ाई लड़ने की जरूरत पड़ती है तो हम अपने सदस्यों की मदद करेंगे.

आश्चर्यजनक बात ये है कि सबसे प्रतिष्ठित प्रोडक्शन हाउसेज एक्सेल एंटरटेनमेंट, यश राज और स्फेयर ऑरिजीन के बोर्डों ने अपने बोर्ड्स पर लिखा है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न नहीं होता है, इसलिए हम चाहते हैं कि सभी लोग उन मानकों का पालन करें जो अनियमित प्रोडक्शन हाउसेज हैं जो रात में ऑपरेट होते हैं. कुछ ऐसे व्यक्तियों के बारे में रिपोर्ट है जिन्होंने सीधे यौन उत्पीड़न के बारे में मंत्रालय को लिखा है जिसमें वो मॉडल, अभिनेत्री और कुछ अभिनेता भी शामिल हैं.

इस बीच हमारे पास कुछ ऐसे नाम हैं जो अधिकारियों के साथ परेशानी में पड़ सकते हैं. इस सूची में शीर्ष की एक ऐसी कंपनी है जो युवा महत्वाकांक्षी अभिनेत्री को संगीत वीडियो का वादा करता है और अक्सर काम के लिए सेक्सुअल फेवर मांगता है. वो उन्हें गलत काम के लिए बुलाता है और अगर वो नहीं करते हैं तो उन्हें काम नहीं मिलता है.

एक फिल्म निर्माता है जो वर्तमान में एक और सीक्वल बनाने की प्रक्रिया में है और फिल्मों में अपनी ‘गर्लफ्रेंड्स’ को मौका दे रहा है, वो भी इस सूची में शामिल है. उनकी आखिरी फिल्म में ऐसी एक अभिनेत्री थी जिसे उस फिल्म के निर्माण के दौरान उनकी ‘वर्तमान’ प्रेमिका माना जाता था. एक अभिनेता-निर्देशक है जिसने एक वरिष्ठ अभिनेता के साथ फिल्म बनाने के दौरान एक अभिनेत्री के साथ गलत किया था उसके बाद उसने फिल्म को प्रमोट नहीं किया, वो भी परेशानी में पड़ने वाला है.

ये अभिनेता-निर्देशक वर्तमान में विदेश में एक फिल्म की शूटिंग कर रहा है, जो खुले तौर पर काम करने वाले लोगों से फेवर मांग रहा है. एक फिल्म निर्माता जो कॉर्पोरेट हाउस के साथ काम करता है, जिसकी कमजोरी ही लड़की है. उसके खिलाफ एक कर्मचारी ने शिकायत दर्ज कराई थी. जिसके बाद उन्हें प्रोडक्शन हाउस से बर्खास्त कर दिया गया, लेकिन उनके एक सलाहकार जो उनके दोस्त भी हैं, उन्होंने बॉसेज से अनुरोध किया कि वो उन्हें एक मौका और दें. एक टैलेंट एजेंसी का मालिक है जिसे उसके गलत व्यवहार के लिए हटा दिया गया है, वो भी इस सूची में है. ऐसे कई महत्वाकांक्षी मॉडल और अभिनेत्रियां हैं जिन्होंने बाद में उनके खिलाफ शिकायतें दर्ज कराई हैं.

2019: कांग्रेस के पास 272 के ‘मैजिक फिगर’ के लिये कोई जादुई छड़ी नहीं है

क्या कांग्रेस 1977 के चुनावी फॉर्मूले को लेकर 2019 का चुनाव जीतने का ख्वाब संजो रही है? 1977 में जिस तरह से कांग्रेस के खिलाफ समूचा विपक्ष एकजुट हुआ था क्या वो ही तस्वीर 2019 में बीजेपी के खिलाफ दिखाई देगी?

दरअसल बीजेपी की इस वक्त मजबूत स्थिति 1960 और 1970 के दशक में कांग्रेस की स्थिति को दर्शा रही है. कांग्रेस की ही तरह बीजेपी आज देश की सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर राज्य दर राज्य अपनी विजय यात्रा जारी रखे हुए है. बीजेपी के विजयी रथ को रोकने के लिये कांग्रेस वर्किंग कमेटी में गहन मंथन हुआ. पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने 2019 के लोकसभा चुनाव के लिये ‘मिशन 300’ का प्लान पेश किया है.

chidambaram

चिदंबरम का मानना है कि 12 राज्यों में कांग्रेस के मजबूत जनाधार को देखते हुए 150 सीटों का लक्ष्य रखा जाए. कांग्रेस अगर अपनी मौजूदा सीटों की संख्या को तीन गुना बढ़ा कर 150 तक पहुंचा ले तो बाकी 150 सीटों का बचा हुआ काम क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन पूरा कर सकते हैं. जिससे 272 के ‘मैजिक फिगर’ को यूपीए-3 पार कर सकती है.

चिदंबरम का मानना है कि तकरीबन 270 सीटें ऐसी हैं जहां क्षेत्रीय दलों के साथ रणनीतिक गठबंधन की मदद से 150 सीटें जीती जा सकती हैं. चिदंरबरम फॉर्मूले के तहत कांग्रेस 300 सीटों पर अकेले और 250 सीटों पर रणनीतिक गठबंधन के साथ चुनाव लड़े.

साल 2004 में भी कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में 145 सीटें मिली थीं जिसके बाद उसने केंद्र में यूपीए-1 की सरकार बनाई थी. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल 44 सीटें ही जीत सकी थी.

कांग्रेस की रणनीति ये हो सकती कि वो जिन राज्यों में मजबूत स्थिति या फिर नंबर दो पर हो वहां बीजेपी से सीधा मुकाबला करे. लेकिन जिन राज्यों में उसकी स्थिति नंबर 4 की हो तो वहां क्षेत्रीय दलों को बीजेपी से टक्कर के लिये आगे बढ़ाए और खुद पीछे रह कर समर्थन करे.

एनसीपी नेता शरद पवार ने भी ऐसा ही सुझाव कांग्रेस को सुझाया था. पवार ने चुनाव पूर्व महागठबंधन की कल्पना अव्यावाहरिक बताया था. उन्होंने महागठबंधन के आड़े आ रही क्षेत्रीय दलों की निजी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की मजबूरी को सामने रखा था. उनका कहना था कि चुनाव में क्षेत्रीय दल पहले अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करना चाहेंगे. भले ही बाद में बीजेपी विरोधी दल समान विचारधारा के नाम पर एक छाते के नीचे महागठबंधन बना लें.

लेकिन सवाल ये उठता है कि कांग्रेस के लिये आखिर 150 का आंकड़ा भी कैसे और किन राज्यों से आ सकेगा? इमरजेंसी के बाद कांग्रेस ने जिस तरह से सत्ता में धमाकेदार वापसी की थी, वैसा ही करिश्मा दिखाने के लिये कांग्रेस के पास आज न ज़मीन है और न ही चेहरा.

दरअसल इमरजेंसी के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी की सबसे बड़ी वजह खुद जनता पार्टी भी थी. जनता पार्टी की सरकार अंदरूनी कलह की वजह से गिर गई थी. जिसका फायदा उठाते हुए कांग्रेस जनता को ये समझाने में कामयाब रही कि सिर्फ कांग्रेस ही देश में शासन चला सकती है. उस वक्त कांग्रेस के पास इंदिरा गांधी जैसा करिश्माई चेहरा भी था. पाकिस्तान से 1971 की जंग जीतने के सेहरा उनके राजनीतिक बायोडाटा में दर्ज था. ‘इंदिरा इज़ इंडिया’ जैसे नारों की गूंज थी. लेकिन आज कांग्रेस के पास बीजेपी के भीतर भूचाल लाने वाले चेहरे का शून्य साफ देखा जा सकता है.

जहां कांग्रेस के लिये यूपीए 3 को लेकर चुनाव पूर्व गठबंधन की राहें इतनी आसान नहीं है तो वहीं चुनाव बाद महागठबंधन को लेकर भी आशंकाएं दिनों-दिन गहराने का ही काम कर रही हैं. अविश्वास प्रस्ताव में बीजेडी और टीआरएस जैसी पार्टियों के रुख ने कांग्रेस को झटका देने का काम किया है. इन दोनों ही पार्टियों ने खुद को वोटिंग से अलग रख कर बीजेपी का ही एक तरह से साथ दिया है. जबकि महागठबंधन को लेकर एसपी,बीएसपी और टीएमसी जैसी पार्टियों ने अब तक अपना रुख साफ नहीं किया है. कांग्रेस के साथ गठबंधन करने में इन पार्टियों को अपने जनाधार खिसकने का भी डर है.

समान विचारधारा के नाम पर भी ये पार्टियां यूपीए3 का हिस्सा बनने से कतरा रही हैं क्योंकि कांग्रेस के ‘मुस्लिम पार्टी’ के ठप्पा का डर इन्हें भी लगने लगा है. यूपी विधानसभा चुनाव में एसपी का मुस्लिम-यादव समीकरण का सत्ता दिलाने का हिट फॉर्मूला फेल हो गया तो बीएसपी की सोशल इंजीनियरिंग का किला भी ध्वस्त हो गया था. साफ है कि अब एसपी-बीएसपी भी लोकसभा चुनाव में हर कदम फूंक-फूंक कर रखेंगीं. ऐसे में कमजोर कांग्रेस के साथ चुनावी तालमेल की संभावना सियासी सौदेबाजी के कई चरणों के बाद ही हो सकती है.

बिहार की राजनीति में कांग्रेस अपने ही वजूद के लिये संघर्ष कर रही है. ऐसे में यहां उसके पास यूपीए के सहयोगी आरजेडी के सामने सरेंडर करने के अलावा कोई चारा नहीं है. बिहार की राजनीति में मुख्य लड़ाई आरजेडी और बीजेपी-जेडीयू के बीच ही होगी.

जबकि पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी पार्टी टीएमसी की नेता ममता बनर्जी का ज्यादा जोर थर्ड फ्रंट बनाने पर दिखता रहा है. लेकिन टीआरएस के बदले-बदले से मिजाज को देखकर वो भी अब खुद की पार्टी को ही चुनाव में मजबूत करने का काम करना चाहेंगीं. इसी तरह तमिलनाडु और केरल जैसे दूसरे राज्यों में भी कांग्रेस की उम्मीदें डीएमके और सीपीएम जैसी पार्टियों पर है. इन राज्यों में कांग्रेस को अपने ही धैर्य का इम्तिहान लेना होगा. सीपीएम कभी हां-कभी ना के साथ कांग्रेस के साथ दिखाई देती है तो वहीं डीएमके भी बदलते राजनीतिक समीकरणों के चलते कोई नया दांव चल सकती है.

दरअसल सवाल सभी क्षेत्रीय दलों के अपने वजूद का भी है जो कि मोदी लहर की वजह से गड़बड़ाने के बाद अबतक सम्हल नहीं सका है.

ऐसे में कांग्रेस को मिशन 150 के लिये बीजेपी की मिशन 300+ की रणनीति से ही कुछ सीक्रेट फॉर्मूले निकालने होंगे. एक वक्त तक बीजेपी को सवर्णों की पार्टी कहा जाता था तो कांग्रेस को दलित-मुसलमानों के मसीहा के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाता था. लेकिन आज बीजेपी ने सवर्णों की पार्टी के टैग को हटा कर सोशल इंजीनियरिंग की जो मिसाल पेश की उसकी काट किसी के पास नहीं है. कांग्रेस को भी एक नए समीकरण की तलाश करनी होगी क्योंकि उसका वोट बैंक क्षेत्रीय दल लूट चुके हैं.

यूपी में कांग्रेस को फिलहाल मंथन करने की जरूरत नहीं है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल 2 सीटें ही मिलीं. जबकि साल 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे सिर्फ 7 सीटें मिलीं. गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में उसकी जमानत भी जब्त हुई. ऐसे में यहां ज्यादा एक्सपेरीमेंटल होने की जरुरत नहीं है. यूपी की 80 लोकसभा सीटों को देखते हुए कांग्रेस को एसपी-बीएसपी गठबंधन पर ही भरोसा दिखाना होगा. कांग्रेस के पास यूपी में कोई करिश्माई चेहरा नहीं है. ऐसे में कांग्रेस सौदेबाजी की हालत में नहीं है. यहां वो दर्शन ठीक है कि जो मन का हो जाए तो ठीक है और न हो तो और भी ठीक है.

हालांकि साल 2009 की तर्ज पर कांग्रेस यहां सभी 80 सीटों पर दांव भी खेल सकती है क्योंकि उसके पास यहां खोने को कुछ नहीं है. अगर दांव चल गया तो कांग्रेस के लिये सबसे अप्रत्याशित एडवांटेज होगा.

गुजरात में लोकसभा की 26 सीटें हैं. साल 2014 में गुजरात में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. लेकिन गुजरात विधानसभा चुनाव में ‘ट्रेलर’ दिखाने वाली कांग्रेस का दावा है कि वो लोकसभा चुनाव में पूरी ‘पिक्चर’ दिखाएगी. गुजरात कांग्रेस का दावा है कि वो लोकसभा चुनाव में सभी बीजेपी विरोधी ताकतों को साथ लाकर मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलेगी.

गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी जैसे नेताओं के साथ गठबंधन कर बीजेपी के ‘क्लीन-स्वीप’ के तिलिस्म को तोड़ दिया था. ऐसे में इस बार गुजरात में कांग्रेस को संभावना दिख रही हैं जो कि उसकी 150 सीटों के लक्ष्य को हासिल करने के लिये बूंद-बूंद से घड़ा भरने का काम कर सकती है.

इस बार पंजाब और राजस्थान को लेकर कांग्रेस आत्मविश्वास से लबरेज है. पंजाब में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में हारी कांग्रेस ने 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में जबरदस्त वापसी की. इस चुनाव से न सिर्फ उसकी सीटों में इजाफा हुआ बल्कि वोट प्रतिशत में भी बढ़ोतरी हुई. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 38.5 फीसदी मत मिले. वहीं गुरुदासपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में मिली जीत से कांग्रेस उत्साहित है. ऐसे भी संकेत मिल रही हैं कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल को कड़ी टक्कर देने के लिये कांग्रेस आम आदमी पार्टी से भी हाथ मिला सकती है. आम आदमी पार्टी ने पंजाब के विधानसभा चुनाव को त्रिकोणीय मुकाबले में बदल दिया था.

इसी साल मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव होने वाले हैं. मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटों में कांग्रेस के पास केवल 2 ही सीटें हैं. ये सीटें ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुना और कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में जीती थीं. लेकिन इस बार कांग्रेस को एमपी में एंटीइंकंबेंसी से काफी उम्मीदें हैं. शिवराज के 15 साल के शासनकाल में उपजी सत्ताविरोधी लहर के भरोसे कांग्रेस न सिर्फ विधानसभा चुनाव जीतने का सपना देख रही है बल्कि उसे लोकसभा सीटें मिलने की भी उम्मीदें है.

इसी तरह छत्तीगढ़ में लोकसभा की 11 सीटें हैं. लेकिन कांग्रेस के पास यहां विद्याचण शुक्ल जैसा पुराना चेहरा नहीं है. नक्सली हमले में कांग्रेस ने अपने कई बड़े नेताओं को खो दिया था. बीजेपी के मुख्यमंत्री रमन सिंह का फिलहाल कांग्रेस के पास यहां कोई तोड़ नहीं दिखाई देता है.

राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता में आने का पूरा भरोसा है. यहां हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा है. विधानसभा चुनाव के साथ ही कांग्रेस को यहां लोकसभा सीटें भी जीतने की उम्मीद है. साल 2014 में राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में से एक भी सीट कांग्रेस नहीं जीत सकी थी. लेकिन इस बार उपचुनावों में उसने लोकसभा की दो और विधानसभा की एक सीट जीती.

उत्तर-पूर्वी राज्यों में एक वक्त कांग्रेस का एकछत्र राज होता था. लेकिन बीजेपी ने अपनी रणनीति के तहत उत्तर-पूर्वी राज्यों में ताकत झोंक दी. बीजेपी ये जानती है कि यूपी में साल 2014 का करिश्मा दोहरा पाना आसान नहीं होगा. इसलिये उसने वैकल्पिक सीटों के लिये उत्तर-पूर्वी राज्यों को खासतौर से टारगेट किया. ये इलाके कांग्रेस और लेफ्ट का गढ़ होने के बावजूद अब भगवामय हो चुके हैं.

असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और त्रिपुरा में बीजेपी की सरकार है. वहीं नागालैंड में नागा पीपुल्स फ्रंट-लीड डेमोक्रेटिक गठबंधन को बीजेपी का समर्थन मिला हुआ. ऐसे में कांग्रेस को उत्तर-पूर्वी राज्यों में कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि बीजेपी ने पूर्वोत्तर की 25 लोकसभा सीटों के लिये साल 2014 से ही तमाम परियोजनाओं के जरिये साल 2019 की तैयारी शुरू कर दी थी.

सबसे ज्यादा असम के पास 14 लोकसभा सीटें हैं. असम में बीजेपी की सरकार है. बीजेपी ने पूर्वोत्तर को कांग्रेस मुक्त बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. कांग्रेस पांच राज्यों से सिमट कर मेघालय और मिजोरम तक ठहर गई है.

महाराष्ट्र को लेकर कांग्रेस थोड़ी सी आशान्वित हो सकती है. महाराष्ट्र के वोटरों में हर पांच साल में सरकार बदलने की मानसिकता रही है. यूपी के बाद महाराष्ट्र ही लोकसभा की सबसे ज्यादा 48 सीटें देता है. यहां असली मुकाबला कांग्रेस-एनसीपी और बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के बीच है. फिलहाल जो राजनीतिक हालात हैं उसे देखकर लग रहा है कि बीजेपी यहां पर अकेले दम पर चुनाव लड़ सकती है क्योंकि शिवसेना के साथ रिश्ते काफी बिगड़ चुके हैं. कांग्रेस और एनसीपी इसका फायदा उठा सकते हैं.

कर्नाटक में भले ही कांग्रेस दोबारा सरकार नहीं बना पाई लेकिन उसे जेडीएस के रूप में साल 2019 का लोकसभा पार्टनर मिल गया है. कर्नाटक की 28 लोकसभा सीटों में कांग्रेस को साल 2014 में केवल 9 सीटें ही मिली थीं. ऐसे में कांग्रेस और जेडीएस का गठबंधन इस बार चुनाव में बीजेपी का गेम-प्लान बिगाड़ने का काम कर सकता है.

चिदंबरम के गेम-प्लान के मुताबिक अगर कांग्रेस को 150 सीटें हासिल करनी है तो उसे मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर के राज्यों में जोरदार मेहनत करनी होगी तो वहीं क्षेत्रीय दलों के वर्चस्व वाले राज्यों में गठबंधन को ही रणनीति बनानी होगी.

चिदंबरम के फॉर्मूले में अंकगणित के हिसाब से कागजों पर कांग्रेस करिश्मा देख सकती है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि मोदी-विरोधी मोर्चा केंद्र सरकार के खिलाफ किन मुद्दों पर मैदान में ताल ठोंक सकेगा? सिर्फ मोदी विरोध के नाम पर चुनाव जीतने की गलतफहमी कांग्रेस को साल 2014 की ही तरह दोबारा ‘हाराकीरी’ पर मजबूर ही करेगी.

कांग्रेस को अपनी रणनीति बदलनी होगी. पीएम मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक बयानों से बचना होगा. इसकी शुरुआत खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को ही करनी पड़ेगी तभी दूसरे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जबान पर लगाम रखेंगे. अब राहुल भी ये जान चुके हैं कि ‘आंखों में आंख न डाल पाने वाले’ मोदी अविश्वास प्रस्ताव पर कैसे विरोधियों को धूल चटा गए हैं.

कांग्रेस में पीएम मोदी पर बोलने के नाम पर ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ का ‘भरपूर इस्तेमाल’ करने वाले नेता ही अपनी पार्टी का काम तमाम करते आए हैं. तभी राहुल को सीडब्लूसी की बैठक में बड़बोले नेताओं की बोलती बंद करने के लिये कड़ी कार्रवाई की धमकी देनी पड़ी है.

बहरहाल, कांग्रेस ये सोचकर खुद में आत्मविश्वास भर सकती है कि इस साल लोकसभा की दस सीटों पर हुए उपचुनावों में बीजेपी 8 सीटों पर हारी है. वहीं बीजेपी भी 8 सीटों की हार से 2019 के अपने मिशन 300+ की दोबारा समीक्षा कर सकती है. फिलहाल सौ साल पुरानी कांग्रेस को 150 सीटों की सख्त दरकार है. ये चुनौती इसलिये भी बड़ी है क्योंकि कांग्रेस के पास 272 के ‘मैजिक फिगर’ के लिये कोई जादुई छड़ी नहीं है.

शिवसेना से नाराज शाह ने ली अलग राह


शाह ने कहा कि सभी सीटों पर ऐसी स्थिति होनी चाहिए कि तीनों पार्टियों शिवसेना, कांग्रेस व एनसीपी के एक साथ लड़ने पर भी चुनाव बीजेपी जीते


बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह ने महाराष्‍ट्र में पार्टी कार्यकर्ताओं को 2019 का लोकसभा चुनाव शिवसेना के बिना लड़ने की तैयारी करने को कहा है. उन्‍होंने महाराष्ट्र के बीजेपी कार्यकर्ताओं को सभी 48 लोकसभा और 288 विधानसभा सीटों पर अकेले लड़ने के लिए संगठन मजबूत करने के निर्देश दिए. शाह ने कहा कि सभी सीटों पर ऐसी स्थिति होनी चाहिए कि तीनों पार्टियों शिवसेना, कांग्रेस व एनसीपी के एक साथ लड़ने पर भी चुनाव बीजेपी जीते.

शिवसेना से नाराज हैं शाह

अमित शाह अविश्‍वास प्रस्‍ताव के दौरान शिवसेना के बर्ताव से नाराज हैं. बता दें कि शिवसेना ने पहले तो प्रस्‍ताव के विरोध में वोट करने के लिए व्हिप जारी किया था लेकिन बाद में इसे वापस ले लिया था. बाद में शिवसेना की तरफ से राहुल गांधी के भाषण की तारीफ भी की गई थी. इसने भी बीजेपी आलाकमान को नाराज किया है.

शिवसेना वर्तमान में महाराष्‍ट्र और केंद्र में बीजेपी के साथ है. इसके अलावा बृहन्‍मुंबई नगरपालिका (बीएमसी) में शिवसेना को बीजेपी ने समर्थन दिया है. इसके बावजूद शिवसेना लगातार केंद्र और राज्‍य की बीजेपी सरकार को निशाने पर लेती रही है. इसके चलते दोनों दलों के बीच दूरियां आ रही हैं. बीजेपी अध्‍यक्ष ने पार्टी कार्यकर्ताओं को 23 सूत्री कार्यक्रम के तहत काम करने को कहा है.

 

–  ऑनलाइन जुड़ने वाले कार्यकर्ताओ को सक्रिय किया जाए.

–  एक बूथ 25 यूथ के फॉर्मूले पर काम हो.

–  हर बूथ से बाइक रखने वाले पांच लोगों को जोड़ा जाए.

–  हर बूथ के मंदिर की लिस्ट, उनके ट्रस्टी और पुजारी का नंबर और डिटेल्स इकट्ठी की जाए.

–  हर बूथ में मस्जिदो की लिस्ट बनाई जाए.

–  किसी भी तरीके के लाभार्थियों की लिस्ट और डिटेल्‍स लाई जाए.

–  तीनों पार्टियो के एक होने पर भी 51 फीसदी मतदान बीजेपी को कराने का लक्ष्‍य दिया.

–  अपने-अपने इलाके में सभी से लगातार संपर्क रखा जाए.

–  मुद्रा बैंक से ज्यादा से ज्यादा लोन दिलाने की कोशिश हो.

–  हर बूथ में 10 एससी, 10 एसटी, 10 ओबीसी कार्यकर्ता जोड़े जाए.

–  प्रत्‍येक पांच घरों के लिए एक बीजेपी कार्यकर्ता तय हो.

–  अन्य पार्टियों की जानकारी निकाली जाए.

–  विपक्षी पार्टियों के नाराज कार्यकर्ताओं की लिस्ट बनाकर उनसे संपर्क साधा जाए.

–  विधायक जनता के बीच जाकर काम करें.

–  विस्तारकों को ऑनलाइन रिपोर्ट देनी होगी, उनके लिए अलग मोबाइल ऐप है.

–  विस्तारक सरकार की तरफ से किसी को भी काम कराने का आश्वासन न दें.

लोकसभा चुनाव से पहले  बीजेपी-शिवसेना के बीच के फासले को मिटाना बड़ी चुनौती

 

आगामी लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अपनी पार्टी के ‘संपर्क फॉर समर्थन’ अभियान के तहत बीते 6 जून को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मिले थे. तब कहा जा रहा था कि अमित शाह शिवसेना के गिले-शिकवे दूर करने के मकसद से मुंबई पहुंचे थे. लेकिन इस मुलाकात के बाद भी शिवसेना के तेवर नरम नहीं हुए.

हाल ही संसद में लाए गए ‘अविश्वास प्रस्ताव’ से भी शिवसेना ने खुद को अलग कर लिया था. कुछ महीने पहले पालघर लोकसभा सीट पर चुनाव में बीजेपी से मिली हार के बाद से उद्धव के तेवर बदले बदले से नजर आ रहे हैं. उन्होंने बीजेपी पर लगातार  हमला बोलते हुए 2019 का चुनाव अकेले ही लड़ने की बात भी कई दफे कही है.

ताजा मामला शिवसेना के मुख्यपत्र ‘सामना’ में दिए गए उद्धव ठाकरे के इंटरव्यू का है. इंटरव्यू के माध्यम से शिवसेना ने जमकर बीजेपी पर हमला बोला है और अपनी भड़ास निकाली है. पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपने दिए इंटरव्यू में कहा कि वह किसी को भी शिवसेना के कंधे का सहारा लेकर बंदूक चलाने की इजाजत नहीं देंगे.

रविवार को ‘सामना’ में पब्लिश उद्धव ठाकरे के इंटरव्यू के टीजर में साफ बताया गया है कि शिवसेना अब बीजेपी के खिलाफ प्रत्यक्ष तौर पर सामने आ रही है. उद्धव ठाकरे ने कहा, ‘शिवसेना पिछले 25 साल के गठबंधन में सड़ गई. बीजेपी के साथ गठबंधन कर शिवसेना को नुकसान हुआ उद्धव ने बीजेपी के साथ जाने पर नफा-नुकसान की बात भी की है.’

अविश्वास प्रस्ताव’ से दूरी बनाने के बाद शिवसेना ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तारीफ कर एक तरह से बीजेपी को उकसाने की भी कोशिश की है. ‘सामना’ में पहले पन्‍ने की हेडलाइन में राहुल के लिए लिखा गया- ‘भाई, तू तो छा गया…’ साथ ही राहुल के भाषण में ‘देश के चौकीदार कहने वाले उद्दोगपतियों के भागीदार बन गए हैं…’ जुमले को भी हाईलाइट किया गया.

बता दें कि शिवसेना नेता संजय राउत ने शुक्रवार को उद्धव ठाकरे का ये इंटरव्यू लिया है, जिसे सोमवार को पब्लिश किया जाएगा. ऐसा माना जा रहा है कि पूरा इंटरव्यू सामने आने के बाद ये साफ हो जाएगा कि बीजेपी-शिवसेना के गठबंधन पर उद्धव ठाकरे का स्टैंड क्या है?

सूत्रों के मुताबिक, ठाकरे इस बात से झुंझलाए हुए हैं कि कैसे बीजेपी पूरी कोशिश में थी कि ‘अविश्वास प्रस्ताव’ पर शिवसेना का समर्थन हासिल कर ले. पार्टी के सूत्रों का कहना है कि सांसदों को वोटिंग में शामिल रहने के लिए जो व्हिप जारी किया गया था और जिसे बाद में वापस ले लिया गया, वो भी बीजेपी की एक चाल थी. इसी बात से नाराज होकर उद्धव ठाकरे ने वोटिंग से दूर रहने का फैसला लिया.

कई मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी कहा जा रहा है कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने ‘अविश्वास प्रस्ताव’ से पहले उद्धव ठाकरे से बात करने के लिए उन्हें कई बार फोन किया था, लेकिन ठाकरे फोन पर नहीं आए. ऐसे में साफ है कि बीजेपी-शिवसेना के बीच कितना फासला आ चुका है. अगर बीजेपी अभी भी शिवसेना का साथ चाहती है, तो लोकसभा चुनाव से पहले इस फासले को मिटाना उसके लिए बड़ी चुनौती होगी.

Shiv Sena will abstain from the Motion

 

 

In an interesting turn of events, Shiv Sena MPs have decided not to attend the Lok Sabha on Friday where a debate on no-confidence motion against the Narendra Modi government is underway and a voting will be taken up later in the day.

This comes as a huge setback for the BJP, a day after it almost seemed to have garnered the support of the warring NDA ally.

Earlier on Thursday, Shiv Sena had issued a whip to its MPs to be present and vote in favour of the government.

“We will support the BJP. A formal announcement may be made by this evening,” a source close to Shiv Sena chief Uddhav Thackeray had said.

Hours after issuing the whip, the Sena shifted its stance and said party chief Uddhav Thackeray had asked his party MPs to remain in Delhi and a final decision on supporting the Modi government would be taken on Friday morning before the debate started.

As of Thursday, in the 545-member (including the Speaker) Lok Sabha, the NDA had 311 members, including 273 of the BJP, four of SAD, 18 of Shiv Sena, six of LJP, three of RLSP, two of JD-U, two of Apna Dal, and one each of All India N R Congress, SDF and NDPP.

Following Friday’s development, the BJP will lose 18 MPs of Shiv Sena taking the number down to 293.

However, the no-confidence motion moved by the Opposition does not pose a threat to the government as NDA enjoys absolute majority in the House. The majority mark is 268.

Meanwhile, the Biju Janata Dal (BJD) members walked out of the Lok Sabha on Friday as the House began its debate on a no-confidence motion against the government.

On the first day of the Monsoon Session, Lok Sabha Speaker Sumitra Mahajan had admitted the motion moved by the Opposition including the Congress and former BJP ally TDP.

TDP chief N Chandrababu Naidu had sought the support of other parties for the motion, citing the NDA government’s “non-fulfilment of the promise” in granting special status to his state.

Apart from TDP, the notice of no-confidence had also been given by members of the Congress, NCP, RSP and CPI-M. AIMIM member Asaduddin Owaisi.

Top leaders of the BJP and the Opposition, including Congress president Rahul Gandhi, will take part in the debate that will conclude with a reply from Prime Minister Narendra Modi.

……. और कारवां गुज़र गया

 

 जन्म 04 जनवरी 1924
 निधन 19 जुलाई 2018
 उपनाम नीरज
 जन्म स्थान पुरावली, इटावा, उत्तर प्रदेश, भारत
 कुछ प्रमुख कृतियाँ
दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरीगीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की गीतीकाएँ, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी,बादलों से सलाम लेता हूँकुछ दोहे नीरज के कारवां गुजर गया
 विविध
2007 में पद्म भूषण सहित अनेकप्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित

अविश्वास प्रस्ताव में मोदी सरकार पर विश्वास दिखाएगी शिव सेना व्हिप जारी


शिवसेना ने व्हिप जारी कर अपने सभी सांसदों को अविश्वास प्रस्ताव के दौरान संसद में उपस्थित रहने के लिए कहा है. इसी के साथ निर्देश दिए हैं कि वो सरकार के पक्ष में ही वोट दें


मोदी सरकार के खिलाफ पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव पर शुक्रवार को संसद में चर्चा की जाएगी. ऐसे में हर पार्टी की नजर वोटिंग पर टिकी हुई है. इस दौरान शिवसेना की भूमिका पर भी लगातार सवाल उठाए जा रहे थे. लेकिन गुरुवार को शिवसेना ने व्हिप जारी कर इन सवालों का जवाब दे दिया है. शिवसेना ने व्हिप जारी कर अपने सभी सांसदों को अविश्वास प्रस्ताव के दौरान संसद में उपस्थित रहने के लिए कहा है. इसी के साथ निर्देश दिए हैं कि वो सरकार के पक्ष में ही वोट दें.


इससे पहले बुधवार को मॉनसून सत्र के पहले ही दिन टीडीपी समेत विपक्षी पार्टियों ने केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया, जिसे लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने मंजूर कर लिया.

संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार ने लोकसभा अध्यक्ष को संबोधित करते हुए कहा था कि कई विपक्षी पार्टियों ने अविश्वास प्रस्ताव मूव किया है. आप से अनुरोध है कि वह प्रस्ताव को स्वीकार कर लीजिए, आज दूध का दूध और पानी का पानी हो ही जाए. इस पर सुमित्रा महाजन ने कहा कि मैंने इसे स्वीकार कर लिया है, एक-दो दिन में इस पर फैसला लिया जाएगा.

शिवसेना के मुख्‍य सचेतक चंद्रकांत खैर ने सभी लोकसभा सांसदों व्‍हिप जारी कर शुक्रवार को लोकसभा में उपस्‍थित रहने को कहा है साथ ही सरकार के पक्ष में वोट करने को भी कहा गया है.

जब जरूरी होगा, हमलोग भी उस वक्त बोलेंगे : राऊत


पार्टी प्रवक्ता संजय राउत ने कहा, विपक्ष भले ही एक एक व्यक्ति की पार्टी क्यों न हो, लोकतंत्र में विपक्ष की आवाज जरूर सुनी जानी चाहिए


 

संसद में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने से ठीक एक दिन पहले एनडीए की सहयोगी पार्टी शिवसेना ने बड़ा बयान दिया है. पार्टी ने कहा है कि अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान के लिए वह अंतिम समय पर फैसला लेगी और पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने जो निर्देश दिया है, उसी के मुताबिक संसद में कार्यवाही की जाएगी.

शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने शुक्रवार को पत्रकारों से कहा, लोकतंत्र में विपक्ष की आवाज जरूर सुनी जानी चाहिए. विपक्ष भले ही एक एक व्यक्ति की पार्टी क्यों न हो. जब जरूरी होगा, हमलोग (शिवसेना) भी उस वक्त बोलेंगे. हमारे अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने हमें जो निर्देश दिया है, मतदान के समय उसका पालन करेंगे.

उधर बीजेपी ने उम्मीद जताई है कि नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष की ओर से लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर शुक्रवार को होने वाले मत विभाजन में सरकार को 314 सांसदों का समर्थन मिलेगा.

पार्टी नेताओं के आकलन के मुताबिक सरकार को एनडीए के घटक दलों के अलावा अंबुमणि रामदास की अगुवाई वाले पीएमके और राजू शेट्टी की अगुवाई वाले स्वाभिमानी पक्ष से भी समर्थन मिलने की उम्मीद है.

हालांकि शेट्टी और रामदास अब एनडीए में शामिल नहीं हैं, इसके बावजूद सरकार को उम्मीद है कि वे मत विभाजन के दौरान प्रस्ताव का विरोध करेंगे. पार्टी सूत्रों ने बताया कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार को लोकसभा में 314 सदस्यों का समर्थन मिलेगा. निचले सदन में फिलहाल 535 सदस्य हैं. ऐसे में सरकार को 268 सांसदों के समर्थन की जरूरत है.

इन 314 सांसदों की सूची में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन का मत शामिल नहीं है. वह इंदौर से बीजेपी की सांसद हैं.

अमिताभ के किए गए एड की बैंक यूनियन ने की आलोचना


ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कनफेडरेशन ने विज्ञापनदाता आभूषण कंपनी ‘कल्याण ज्वेलर्स’ के खिलाफ मुकदमा करने की बुधवार को चेतावनी दी है


अभी हाल ही में अमिताभ बच्चन के साथ उनकी बेटी श्वेता बच्चन ने अपना डेब्यू किया है. हालांकि, ये कोई फिल्म नहीं थी बल्कि एक एड फिल्म थी. ये एड कल्याण ज्वेलर्स का था. अब इस एड से जुड़ी एक ऐसी खबर आ रही है जिसे जानकर अमिताभ के फैंस को थोड़ा झटका लग सकता है.

बैंक यूनियन ने की आलोचना

केरल की आभूषण कंपनी ‘कल्याण ज्वेलर्स’ के लिए अमिताभ बच्चन और उनकी बेटी श्वेता बच्चन नंदा ने डेढ़ मिनट का विज्ञापन किया जिसकी एक बैंक यूनियन ने आलोचना की है. बैंक यूनियन ने इस एड को बेकार बताया और कहा कि इस विज्ञापन का मकसद बैंक प्रणाली में अविश्वास पैदा करना है. ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कनफेडरेशन ने विज्ञापनदाता आभूषण कंपनी ‘कल्याण ज्वेलर्स’ के खिलाफ मुकदमा करने की बुधवार को चेतावनी दी है. संगठन ने कंपनी पर एड के जरिए लाखों कर्मचारियों की भावना को आहत करने का आरोप लगाया है.

कल्याण ज्वेलर्स ने किया आरोप खारिज

आपको बता दें कि, इन लगाए गए आरोपों को ‘कल्याण ज्वेलर्स’ ने खारिज करते हुए कहा है कि ये पूरी तरह कल्पना पर आधारित है. ‘कल्याण ज्वेलर्स’ ने अपने पत्र में लिखा है कि, ‘हम इस बात को समझ रहे हैं कि आपका प्रतिष्ठित संगठन ये महसूस कर रहा है कि विज्ञापन में बैंक कर्मचारियों को गलत तरीके से पेश किया गया है. लेकिन ये पूरी तरह से काल्पनिक है और हमारा बैंक अधिकारियों या कर्मचारियों को अपमानित करने का कोई इरादा नहीं है. कृपया इसके लिए हमारी तरफ से बिना किसी शर्त के स्पष्टीकरण स्वीकार कीजिए. आज से तीन कार्यकारी दिनों में हम इस विज्ञापन में पात्र और स्थितियों के काल्पनिक होने का स्पष्टीकरण विज्ञापन में शामिल कर देंगे.’