सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा की छुट्टी जारी रहेगी: सर्वोच्च नयायालय

 

कांग्रेस के आरोप निराधार साबित हुए।

सर्वोच्च नयायालय ने एक अभूतपूर्व फैसला लेते हुए कहा की सीवीसी की अनुशंसा पर निदेशक को अनिश्चितकालीन छुट्टी पर भेजना संवैधानिक है ओर सरकार ने कुछ गलत नहीं किया है।

 

  • अपने फैसले में सर्वोच्च नयायालय ने आगे कहा की सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट जबतक इस मामले में दोबारा सुनवाई नहीं कर लेता तबतक सीबीआई के नए डायरेक्टर एम नागेश्वर राव एक भी नीतिगत फैसला नहीं लेंगे.

 

  • चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि सीवीसी सुप्रीम कोर्ट के एक जस्टिस की देखरेख में 10 दिनों में जांच जारी रखेगी. एम नागेश्वर राव केवल नियमित कार्य करेंगे. उन्होंने कहा कि सीबीआई द्वारा जांच अधिकारिओं के तबादले की सूचि सुप्रीम कोर्ट को सील बंद लिफाफे में 12 नवंबर को दी जाए.

 

  • सीजेआई रंजन गोगोई ने अपने फैसले में कहा कि सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच सीवीसी आज से दो सप्ताह के भीतर पूरा करे. जांच सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज एके पटनायक मामले की जांच करेंगे.

पत्रकार सुरक्षा, पेंशन-आवास योजना को भाजपा घोषणा पत्र में शामिल करवाने के लिए जार राजस्थान के पदाधिकारी व पत्रकार मिले भाजपा नेताओं से


  • राजस्थान में न्यूज वेबसाइट, न्यूज वेबपोर्टल और यू-ट्यूब चैनल को विज्ञापन मान्यता देने के लिए नीति बनाई और सरकार बनने के छह महीने में इसे लागू किया जाए

  • सभी समाचार पत्रों, मीडिया संस्थानों के कार्यालयों को एक ही छत के नीचे लाने के लिए बहुमंजिला मीडिया सेंटर बनाकर उन्हें कार्यालय आवंटित किए जाए


जयपुर:

जर्नलिस्टस एसोसिएशन ऑफ राजस्थान (जार) ने चुनाव घोषणा पत्र में पत्रकार हितों से जुड़े मुद्दों को शामिल करने के लिए आज जार पदाधिकारियों ने भाजपा मुख्यालय में भाजपा नेताओं से मिलकर ज्ञापन दिए। जार के प्रदेश अध्यक्ष राकेश कुमार शर्मा, महासचिव संजय सैनी, वरिष्ठ पत्रकरा ऐश्वर्य प्रधान, जितेन्द्र सिंह राजावत, जयराम शर्मा, मजीठिया वेजबोर्ड आंदोलन में सक्रिय दैनिक भास्कर के शीलेन्द्र उपाध्याय, रीतेश गौत्तम, पिंकसिटी प्रेस क्लब के पूर्व सदस्य रवीन्द्र शर्मा शेखर आदि पत्रकार भाजपा घोषणा कमेटी के अध्यक्ष व पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास मंत्री राजेन्द्र राठौड़, कमेटी के सदस्य ओंकार सिंह लखावत से मिले और इन्हें पत्रकारों के हितों से जुड़े मुद्दों को घोषणा पत्र में शामिल करने के लिए ज्ञापन सौंपा। जार प्रतिनिधियों ने राठौड़ व लखावत को पत्रकार आवास योजना, बुजुर्ग पत्रकार पेंशन योजना को लागू करने, पत्रकार सुरक्षा कानून, लघु-मझौले समाचार पत्रों को मासिक विज्ञापन तय करने, डिजिटल पॉलिसी लागू करने समेत अन्य मुद्दों के बारे में बताया। इन सभी मुद्दों को पार्टी के घोषणा पत्र में शामिल करने का आग्रह किया गया। राठौड़ व लखावत ने पत्रकार हितों के मुद्दों पर गंभीरता से विचार करके इन्हें घोषणा पत्र में शामिल करवाने का आश्वासन दिया है।

जर्नलिस्टस एसोसिएशन ऑफ राजस्थान (जार) की ओर से निम्न सुझाव दिए गए।

– देश और प्रदेश में पत्रकारों पर जानलेवा हमले और हत्याएं की घटनाएं काफी होने लगी है। ऐसे में पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राजस्थान में पत्रकार सुरक्षा कानून बनाया जाए। पत्रकारों पर हमले, धमकियों को गैर जमानती अपराध घोषित किया जाए। पत्रकारिता कार्य के दौरान हमले में हताहत और घायल पत्रकारों को सरकार की तरफ से उचित मुआवजा दे और चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराएं।

-राजस्थान में वयोवृद्ध पत्रकारों की पेंशन योजना बंद है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने बुजुर्ग पत्रकारों को पेंशन देने की व्यवस्था कर रखी थी। हरियाणा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे भाजपा शासित राज्यों में भी पत्रकारों को पेंशन दी जा रही है। ऐसे में राजस्थान के पत्रकारों की पेंशन योजना फिर से शुरु की जाए और कम से कम दस हजार पेंशन रखी जाए, जिससे अपनी लेखनी से समाज व देश हित में कार्य करने वाले पत्रकारों का सम्मान व स्वाभिमान बना रहे।

-प्रदेश में पत्रकार आवास योजना के नियम सरल किए जाए। पत्रकार समाज के लिए जिलों में भूखण्ड और फ्लैट हाऊसिंग प्रोजेक्ट को अमल में लाया जाए। जयपुर की नायला पत्रकार आवासीय योजना के सभी सफल आवंटियों को पट्दे देने में आ रही बाधाओं को दूर करके आवंटियों को पट्टे दिलवाए जाए।

-बड़े समाचार पत्रों की तर्ज पर लघु व मझौले समाचार पत्रों (दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक) को भी मुद्रणालय यंत्र व कार्यालय स्थापित करने के लिए प्रदेश भर में रियायती दर पर जमीन आवंटन किया जाए। रीको क्षेत्र में डीएलसी दर की बीस फीसदी दर पर जमीन आवंटन के नियम बनाए जाए।

-लघु व मझौले समाचार पत्रों (दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक) को रोस्टर प्रणाली से मासिक विज्ञापनों का आवंटन सुनिश्चित किया जाए। साथ ही उक्त समाचार पत्रों के स्थापना दिवस और सरकार-पार्टी के विशेष आयोजनों पर अलग से विज्ञापन दिया जाए।

-वर्तमान युग डिजिटल है। सरकार ने प्रिंट और इलेक्टोनिक मीडिया को विज्ञापन के लिए मान्यता दे रखी है, लेकिन देश और प्रदेश में तेजी से बढ़ते व पसंद किए जा रहे न्यूज वेबसाइट, न्यूज वेबपोर्टल को राजस्थान में मान्यता नहीं है। राजस्थान में न्यूज वेबसाइट, न्यूज वेबपोर्टल और यू-ट्यूब चैनल को विज्ञापन मान्यता देने के लिए नीति बनाई और सरकार बनने के छह महीने में इसे लागू किया जाए।

– सभी समाचार पत्रों, मीडिया संस्थानों के कार्यालयों को एक ही छत के नीचे लाने के लिए बहुमंजिला मीडिया सेंटर बनाकर उन्हें कार्यालय आवंटित किए जाए।

-समाचार पत्रों को पहले रियायती दर पर सरकार न्यूज प्रिंट उपलब्ध कराती थी। इस व्यवस्था को फिर से बहाल किया जाए। क्योंकि न्यूज प्रिंट की लागत बढऩे से अखबार मालिकों के सामने आर्थिक संकट गहराने लगा है।

– पीआईबी कार्ड की तर्ज पर राजस्थान में भी पत्रकारों को एक ही कार्ड बनाकर शासन सचिवालय, मुख्यमंत्री कार्यालय, राजस्थान विधानसभा, पुलिस मुख्यालय, राजभवन व दूसरे सरकारी कार्यालयों में आने-जाने की सुविधा प्रदान की जाए।

-राज्य और राज्य के बाहर सर्किट हाउस व स्टेट गेस्ट हाउस में पत्रकारों के लिए रियायती दरों पर ठहराव की व्यवस्था करना।

-पत्रकार अधिस्वीकरण कार्ड योजना में अधिकाधिक श्रमजीवी पत्रकारों को लाभ मिल सके, इसके लिए अखबारों के तय कोटे को बढ़ाया जाए। डिजिटल मीडिया के पत्रकारों का भी अधिस्वीकरण किया जाए और इसके लिए नियम बनाए जाए।

– मेडिकल क्लेम योजना में अधिस्वीकृत पत्रकारों के साथ गैर अधिस्वीकृत श्रमजीवी पत्रकारों को शामिल करके इन्हें भी लाभांवित किया जाए।

-जेडीए, राजस्थान आवासन मण्डल, नगर निगम, नगर पालिका, नगर परिषद की आवासीय योजना में अधिस्वीकृत पत्रकारों के लिए तय कोटे को दुगुना किया जाए।

Promoting Hindi language is my duty: Pankaj Tripathi

Pankaj-Tripathi


Generally, I don’t use common Hindi words while communicating. I use a bit difficult Hindi words on set.


Pankaj Tripathi says he is a Hindi cinema actor so, promoting the Hindi language is his duty.

“Being a responsible citizen of India and coming from a Hindi medium school, I believe it’s my responsibility and duty to teach and correct Hindi. While shooting for Shakeela biopic, my director Indrajit Lankesh used to tell me to speak in Hindi with him so that his Hindi could improve,” Pankaj said in a statement.

“Generally, I don’t use common Hindi words while communicating. I use a bit difficult Hindi words on set. Crew members often used to ask me the meaning of those Hindi words. They were excited to learn meaning of new Hindi words. It wasn’t difficult communicating with Bengaluru crew members on sets of Shakeela biopic. I am a Hindi cinema actor, promoting Hindi language is my duty,” he added.

The film is based on South Indian glamour actress Shakeela.

सबरीमाला मंदिर को लेकर दिए गए बयान की आलोचना होने के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने सफाई दी है


केरल के सबरीमाला मंदिर को लेकर दिए गए बयान की आलोचना होने के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने सफाई दी है


केरल के सबरीमाला मंदिर को लेकर दिए गए बयान की आलोचना होने के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने सफाई दी है. उन्होंने कहा कि सबरीमाला के संबंध में मेरे बयान पर चर्चा हो रही है. ऐसे में मैं अपने बयान पर बयान देना चाहती हूं. एक हिंदू के नाते और एक पारसी से शादी करने के चलते मुझे अग्नि मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं है.

उन्होंने आगे कहा कि मैं पारसी समुदाय, उनके पुजारियों का सम्मान करती हूं. लेकिन दो पारसी बच्चों की मां होने के नाते वहां पूजा करने के अधिकार के लिए मैं कोर्ट नहीं गई. ऐसे ही मासिकधर्म वाली पारसी महिलाएं या फिर गैरपारसी महिलाएं किसी अग्नि मंदिर में प्रवेश नहीं करती. ये दो तथ्यात्मक बयान हैं. बाकी सब प्रोपेगेंडा और मेरे खिलाफ चलाया जा रहा एजेंडा है

उन्होंने कहा, ‘जहां तक किसी दोस्त के घर खून से सने सैनिटरी पैड को ले जाने वाले मेरे बयान को लेकर मुझ पर निशाना साधा जा रहा है. तो मैं ये बताना चाहती हूं कि मुझे अब तक कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला है, जिसने ऐसा किया हो.’

इससे पहले केंद्रीय मंत्री ने कहा था कि पूजा करने के अधिकार का यह मतलब नहीं है कि आपको अपवित्र करने का भी अधिकार प्राप्त है. उन्होंने कहा था, ‘मैं सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ बोलने वाली कोई नहीं हूं, क्योंकि मैं एक कैबिनेट मंत्री हूं. लेकिन यह साधारण-सी बात है क्या आप माहवारी के खून से सना नैपकिन लेकर चलेंगे और किसी दोस्त के घर में जाएंगे. आप ऐसा नहीं करेंगे.’

उन्होंने कहा था, ‘क्या आपको लगता है कि भगवान के घर ऐसे जाना सम्मानजनक है? यही फर्क है. मुझे पूजा करने का अधिकार है लेकिन अपवित्र करने का अधिकार नहीं है. यही फर्क है कि हमें इसे पहचानने तथा सम्मान करने की जरुरत है.’ स्मृति ब्रिटिश हाई कमीशन और आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की ओर से आयोजित ‘यंग थिंकर्स’ कान्फ्रेंस में बोल रही थी.

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 28 सितंबर को मंदिर में माहवारी आयु वर्ग (10 से 50 वर्ष) की महिलाओं के प्रवेश पर लगा प्रतिबंध हटा दिया था. सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ प्रदर्शनों के चलते महिलाओं को सबरीमला मंदिर में जाने से रोक दिया गया.

भाजपा के स्टार प्रचारकों की सूची में आडवाणी नहीं


बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में होने वाले प्रचार के लिए 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है, इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से लेकर कई केंद्रीय मंत्री, सांसद बीजेपी के पक्ष में समर्थन जुटाएंगे


चुनावों के मद्देनजर अब हर पार्टी कमर कस कर तैयार हो गई है. जीत के लिए सभी पार्टियों ने पुरजोर मेहनत करना शुरू कर दिया है. पार्टी अपने स्टार प्रचारकों की मदद से चुनाव में अपना परचम लहराने की कोशिश करती है और ऐसे में साल 2013 के चुनावों तक अटल-आडवाणी कमल निशान मांग रहा है हिंदुस्तान, का नारा लगाने वाली बीजेपी ने इस चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी को अपने स्टार प्रचारकों की सूची में भी शामिल नहीं किया है.

बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में होने वाले प्रचार के लिए 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से लेकर कई केंद्रीय मंत्री, सांसद बीजेपी के पक्ष में समर्थन जुटाएंगे. हालांकि बीजेपी की इस लिस्ट में पार्टी के मार्गदर्शक मंडल के नेता लालकृष्ण आडवाणी को जगह नहीं मिली है. आपको बता दें कि इससे पहले भी यूपी विधानसभा चुनाव प्रचार में लालकृष्ण आडवाणी को जगह नहीं दी गई थी. यूपी विधानसभा चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी के साथ साथ विनय कटियार, ओम प्रकाश सिंह, सूर्यप्रताप शाही, लक्ष्मीकांत बाजपेई, रमापति राम त्रिपाठी के नाम भी हटा दिए गए थे. गवर्नर होने के चलते सूची से बाहर हुए कल्याण सिंह की जगह उनके बेटे राजबीर सिंह को दे दी गई थी.

अन्य स्टार प्रचारकों में केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, नितिन गडकरी, शिवराज सिंह चौहान, उमा भारती, स्मृति इरानी, धर्मेंद्र प्रधान, जुएल उरांव, रविशंकर प्रसाद, जेपी नड्डा, योगी आदित्यनाथ, रघुवर दास, देवेंद्र फडनवीस, डॉ. रमन सिंह, डॉ. अनिल जैन, सौदान सिंह, सरोज पांडेय, मनोज तिवारी, विष्णुदेव साय, अर्जुन मुंडा, बृजमोहन अग्रवाल, अभिषेक सिंह, दिनेश कश्यप, रमेश बैस, धरमलाल कौशिक, हुकुमचंद नारायण यादव, रामकृपाल सिंह, हेमा मालिनी, पवन साय, रामप्रताप सिंह, चंदुलाल साहू, कमलभान सिंह, लखनलाल साहू, कमलादेवी पाटले, रणविजय सिंह जूदेव, रामविचार नेताम और फग्गन सिंह कुलस्ते शामिल हैं.

सत्ता विमुख दलों में हाशिये पर जाते मुस्लिम नेता


कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद ने हाल ही में यह कह सियासी तूफान मचा दिया है कि अब उनकी पार्टी के हिंदू नेता कार्यक्रमों में बुलाने से डरने लगे हैं.


कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद ने हाल ही में यह कह सियासी तूफान मचा दिया है कि अब उनकी पार्टी के हिंदू नेता कार्यक्रमों में बुलाने से डरने लगे हैं. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में वहां के छात्रों से मुखातिब आज़ाद ने कहा कि पहले उन्हें अपने कार्यक्रमों में बुलाने वालों में 95 फीसदी हिंदू हुआ करते थे. अब सिर्फ 20 फीसदी हिंदू ही उन्हें बुलाते हैं. पिछले चार साल में देश में ऐसा माहौल बन गया है कि वोट कटने के डर से हिंदू नेता मुस्लिम नेताओं को अपने कार्यक्रमों में बुलाने से कन्नी काटने लगे हैं.

आज़ाद के इस बयान पर बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे हिंदुओं का अपमान करार दिया. बीजेपी इसे लेकर कांग्रेस पर हमालावर हो गई है. कांग्रेस प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा है कि ऐसा बयान देकर आज़ाद ने हिंदुओं को नीचा दिखाने की कोशिश की है. बीजेपी ऐसे ही मुद्दों की तलाश में रहती है जिससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हो और उसे चुनावी फायदा पहुंचे. पाच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. इनमें से तीन में बीजेपी की सरकारें हैं. राजस्थान और मध्य प्रदेश में मुसलमान करीब 10 फीसदी हैं, इन राज्यों में बीजेपी आज़ाद के इस बयान को बड़ा मुद्दा बनाकर ध्रुवीकरण कर सकती है.

आज़ाद कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं. वो उन गिने-चुने नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के साथ काम किया है और अब राहुल गांधी के साथ उनके बेहद करीबी और विश्वास पात्र नेताओं की हैसियत से उनकी टीम मे शामिल हैं. पार्टी में उनकी हैसियत और अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा में विपक्ष बनाया गया हैं. लिहाज़ा यह नहीं माना जा सकता कि पार्टी और देश राजनीतिक मिजाज को समझने में उसे किसी तरह की चूक हुई होगी. जो उन्होंने महसूस किया बोल दिया. शायद यह बात कहने का समय उन्होंने गलत चुना है.

आजम खान

आजाद की हिम्मत की दाद देनी होगी कि इतने संवेदनशील मुद्दे पर उन्होंने मुंह खोला. और बगैर लाग लपेट साफ बात की. समाज को आईना दिखाया. हो सकता है कि उनका यह बयान राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए नुकसान का सबब बन जाए. पिछले साल गुजरात चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी ने यह कह कर बाजी पलट दी थी कि अगर कांग्रेस जीती तो अहमद पटेल को मुख्यमंत्री बनाएगी. पाकिस्तान अहमद पटेल को मुख्यमंत्री बनाना चाहता है. यह सच्चाई है कि इस प्रचार के बाद गुजरात में बीजेपी के पक्ष में ध्रुवीकरण हुआ था. इससे बीजेपी को चुनाव जीतने में काफी मदद मिली था.

गुजरात का यह प्रयोग इस बात का सबूत है कि तेजी से बदलते भारत में मुसलमानों के खिलाफ नफरत नित नए आयाम ले रही है. इसकी शुरुआत कब हुई यह तो रिसर्च का विषय है. लेकिन यह बात पक्के तौर पर कही जा सकती है कि जब से बीजेपी ने हिंदुत्व को खुले रूप से अपने एजेंडे में शामिल किया है तब से राजनीतिक परिदृश्य से मुसलमान कम होते गए हैं. साल 2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद राजनीति में मुसलमान लुप्तप्राय प्राणी बन गए हैं. सिर्फ कांग्रेस ही क्यों मुसलमानों के दम पर राजनीति करने वाली सपा, बसपा, राजद, जदयू और रालोद जैसी पार्टियों ने अपने मुस्लिम चेहरों पर नकाब डाल दिया है.

कांग्रेस ने गुजरात के पिछले तीन विधानसभा चुनावों में अहमद पटेल को छोड़कर किसी दूसरे मुस्लिम नेता प्रचार में नहीं भेजा. कांग्रेस आलाकमान को डर रहता है कि ज्यादा मुस्लिम चेहरे दिखेंगे तो कांग्रेस को नुकसान होगा. इस बार कर्नाटक के चुनाव में भी कांग्रेस ने मुस्लिम नेताओं को दूर रखा था. चुनावी नतीजे आने के बाद वहां सरकार बनाने के लिए गुलाम नबी आज़ाद के बड़ी ज़िम्मेदारी ज़रूर दी गई. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं को अलग रखा गया है. ज़ाहिर है कांग्रेस मुस्लिम नेताओं को चुनाव प्रचार में नहीं भेजकर धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण की गुंजाइश कम करना चाहती है.

कांग्रेस में टिकटों के बंटवारे में भी इस बात का खास ख्याल रखा जाता है कि कहीं मुसलमानों को ज्यादा टिकट देने से उसका हिंदू वोट बैंक न खिसक जाए. गुजरात के पिछले तीन चुनाव के आंकड़े देखिए कांग्रेस 6-7 से ज्यादा टिकट मुसलमानों को नहीं देती. इसी तरह राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी पिछले तीन चुनावों में कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवारों का आंकड़ा दहाई के अंक को नहीं छूता. इन राज्यों में मुसलमानों की आबादी 10 फीसदी है.

अहमद पटेल

इस हिसाब से देखें तो कांग्रेस को इन राज्यों में कम से कम 15-20 मुस्लिम उम्मीदवार उतारने चाहिए. लेकिन हिंदू जनाधार खिसकने का डर कांग्रेस को ऐसा करने से रोकता है.

मुसलमानों का डर दिखाकर सिर्फ बीजेपी ही राजनीतिक फायदा नहीं उठाती. कांग्रेस इस इस खेल की माहिर रही है. कांग्रेस मौका मिलने अब भी नहीं चूकती. साल 2011 में असम के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने अनौपचारिक रूप से यही प्रचार किया था कि अगर हिंदुओं ने उस वोट नहीं दिया तो बदरुद्दीन अजमल राज्य के मुख्यमंत्री बन जाएंगे. तब असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलकर ही अपनी सत्ता बचाई थी. ये खुली सच्चाई है. अब यही काम बीजेपी खुलेआम कर रही है.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी ने राजनीति में धर्म का ऐसा तड़का लगाया था कि उसकी खुशबू राजनीतिक माहौल में रच बस गई है. पीएम बनने बाद मोदी ने देश विदेश के प्रसिद्ध मंदिरों में सार्वजनिक रूप से विशेष पूजा करके देश के बहुंसख्यंक समाज के बीच एक मजबूत हिंदू नेता की छवि बना ली है. इसकी काट कांग्रेस और बाकी पार्टियां ढूंढ ही नहीं पा रहीं. अब राहुल गांधी भी मंदिर-मंदिर चक्कर लगा कर खुद को मोदी से बेहतर हिंदू साबित करने में जुटे हैं. वहीं अखिलेश और मुलायम कभी कृष्ण को राम से बड़ा भगवान बताकर उनकी मूर्ती लगवाने की बात करते हैं तो कभी विष्णु भगवान की मूर्ती लगवाने का ऐलान करते है.

मौजूदा राजनीतिक हालात में बीजेपी को छोड़ हर पार्टी के सामने अपना वजूद बचाने की चुनौती है. ऐसे में मुसलमानों की चिंता के लिए भला किसके पास वक्त बचा है. मुलायम यिंह यादव और अमर सिंह 2009 के लोकसभा चुनाव में हर रोज दाढ़ी वाले मुसलमानों के साथ टीवी चैनलों पर दिखते थे. साल 2012 के विधानसभा चुनावों के दौरान पूरे यूपी में मुलायम, अखिलेश और शिवपाल की हरे चैक के रूमाल और सिर पर मुस्लिम टोपी वाले पोस्टर लगे थे. वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने एक भी लंबी दाढ़ी और टोपी वाले मुसलमान को अपने आसपास भी नहीं फटकने दिया. सपा के जन्म से ही उसका चेहरा रहे आज़म खान आज पार्टी में अपनी जगह ढूंढ रहे हैं.

लगभग सभी राजनीतिक दलों में मुस्लिम नेताओं का हालात आज़म खान और गुलाम नबी आज़ाद की तरह होती जा रही है. मायावती ने कभी बसपा में पार्टी की रीढ़ माने जाने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी को एक झटके से पार्टी से निकाल फेंका था. मुसलमानों के वोटों पर राजनीति करने वाले राजद, जदयू ने भी मौके की नजाकत को देखते हुए अपने मुस्लिम नेताओं को चुपचाप पिछली कतार में बैठा दिया है. ऐसा लगता है कि कभी मुसलमानों के वोट हासिल करने का जरिया रहे ये मुस्लिम नेता उनके लिए आज बोझ बन गए है. आज इस बोझ को कोई ढोना नहीं चाहता.

गुलाम नबी आज़ाद

गुलाम नबी आज़ाद ने जब यह मुद्दा छेड़ ही दिया है तो उनसे भी कुछ सवाल बनते हैं. आज़ाद को खुद से और अपनी पार्टी के बड़े नेताओं से भी पूछना चाहिए कि अगर देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण इस हद तक पहुंच गया है कि मुस्लिम नेताओं की मौजूगी भर से पार्टी के हिंदू वोटर खिसक जाते हैं तो फिर इसका जिम्मेदार कौन है? अगर संघ परिवार और बीजेपी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नाम पर अपनी सांप्रदायिक सोच को देश के बड़े तबके के बीच ले जाने में कामयाब हुए हैं तो फिर पांच दशकों तक केंद्र की सत्ता और कई दशकों तक राज्यों की सत्ता में रहने के बावजूद कांग्रेस ऐसा माहौल क्यों नहीं पैदा कर पाई जिसमें समाज का कोई तबका किसी दूसरे के मुकाबले खुद को कमतर या असुरक्षित महसूस न करे. इसकी जिम्मेदारी तो किसी न किसी को लेनी होगी. लंबे समय तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस पर इसकी ज्यादा जिम्मेदारी आती है.

अपने लिए सुरक्षित सीट तलाश रही हैं CM वसुंधरा!


वसुंधरा राजे का दूसरी सीट की तलाश करना राजस्थान में बीजेपी के हालात को दिखाता है. हर चुनाव में सरकार को उखाड़ फेंकने का वोटर का फैसला और एंटीइनकंबेंसी की वजह से पार्टी के तमाम नेता इस बार नई सीटें तलाश रहे हैं


जब भी शंका हो, दूसरी सीट देखो. राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे शायद भारतीय राजनीति की इसी, बहुत पुरानी नीति पर काम कर रही हैं. कहा जा रहा है कि वो कोई ऐसी सीट ढूंढ रही हैं, जहां आसानी से चुनाव जीता जा सके. इसकी वजह यह है कि उनके पुराने गढ़ पर कांग्रेस की तरफ से लगातार हमला हो रहा है.

बताया जा रहा है कि वसुंधरा के रडार पर जो 2 सीटें हैं, वो राजाखेड़ा और श्रीगंगानगर हैं. राजाखेड़ा राजस्थान-उत्तर प्रदेश सीमा पर स्थित है. जबकि श्रीगंगानगर पंजाब सीमा से सटा हुआ है. अगर बीजेपी हाईकमान उनके इस फैसले से सहमत होता है, तो राजे 7 दिसंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में 2 सीटों से भी लड़ सकती हैं.

राजे की परंपरागत सीट झालरापाटन मध्य प्रदेश सीमा पर है. यहां लगातार कांग्रेस की तरफ से जोरदार तरीके से हाई प्रोफाइल कैंपेन हो रहा है. कुछ दिन पहले जब राजे अजमेर में अपनी ताकत दिखा रही थीं, तब कांग्रेस ने राहुल गांधी को रोड शो के लिए मुख्यमंत्री के क्षेत्र में आमंत्रित किया था. बुधवार को एक बार फिर राहुल गांधी झालरापाटन में इलेक्शन रैली और रोड शो के लिए मौजूद होंगे. इस रोड शो में मुख्यमंत्री की सीट का बड़ा क्षेत्र कवर किया जाएगा.

कांग्रेस एक सामान्य रणनीति पर काम कर रही है. वो चुनाव के समय राजे को उनकी अपनी सीट पर समेट देना चाहती है. पार्टी राज्य में बीजेपी के कैंपेन से उन्हें दूर रखना चाहती है. राज्य में वो अकेली ऐसी नेता हैं, जो भीड़ जुटा सकती हैं. ऐसे में कांग्रेस के गेम प्लान का अहम हिस्सा यही है कि सीएम को उनके ही विधानसभा क्षेत्र में बांधकर रख दिया जाए.

वसुंधरा राजे पर इस बार के चुनाव में बीजेपी को जिताकर लगातार दूसरी बार सरकार बनवाने की चुनौती है

वसुंधरा राजे तीन दशक से चुनाव नहीं हारी हैं. उन्होंने 9 चुनाव जीते हैं

राजस्थान की राजनीति में राजे ऐसे चंद नेताओं में हैं, जिन्होंने तीन दशक से चुनाव नहीं हारा है. इस दौरान उनके पूर्ववर्ती और समकालीन नेता जैसे भैरों सिंह शेखावत और अशोक गहलोत भी हार चुके हैं. लेकिन राजे का रिकॉर्ड बिल्कुल बेदाग है. उन्होंने अब तक 9 चुनाव जीते हैं, 5 लोकसभा और 4 विधानसभा के. मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपनी झालावाड़ लोकसभा सीट बेटे दुष्यंत सिंह के लिए छोड़ दी थी. वहां उनकी जबरदस्त पकड़ बरकरार है और कोई चुनौती देने वाला नहीं है. लेकिन 2018 के चुनाव अलग हो सकते हैं, क्योंकि राज्य में एंटीइनकंबेंसी बढ़ती जा रही है और राजे सरकार की लोकप्रियता गिरती जा रही है. तमाम ओपिनियन पोल इशारा कर रहे हैं कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत की लोकप्रियता राजे से लगभग दोगुनी है. इसके अलावा, झालरापाटना में राजे की जीत में जातीय समीकरण से मदद मिलती थी. लेकिन अब राजपूतों में गुस्सा है. सवर्ण उनसे नाखुश हैं. यह दोनों ही बीजेपी के पारंपरिक वोटर हैं.

कई मायने में राजे के खिलाफ गुस्सा लगभग वैसा ही है, जैसा हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल ने झेला है. नाराजगी काफी कुछ उनकी छवि और प्रदर्शन को लेकर है, न कि पार्टी को लेकर. कैंपेन के दौरान स्लोगन में नजर आ रहा है कि राजे को राजनीति में सबक सिखाने की बात है. भले ही वोटर नरेंद्र मोदी को पसंद कर रहा है.

राजे का दूसरी सीट की तलाश करना राज्य में बीजेपी के हालात को दिखाता है. हर चुनाव में सरकार को उखाड़ फेंकने का वोटर का फैसला और एंटीइनकंबेंसी की वजह से तमाम बीजेपी नेता इस बार नई सीटें तलाश रहे हैं. लेकिन, संभव है कि बीजेपी इस तरह का फैसला करे, जिसमें सीटें बदलने की इजाजत न हो. इसकी वजह यही होगी कि जिस सीट पर जिसने जैसा काम किया है, वही अपने भविष्य की जिम्मेदारी ले.

क्या वसुंधरा के पर कतरकर पार्टी डैमेज कंट्रोल कर पाएगी?


पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा परेशानी राजस्थान में ही हो रही है.


पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा परेशानी राजस्थान में ही हो रही है. राज्य में बीजेपी की सीधी लड़ाई कांग्रेस से है लिहाजा किसी तीसरे मोर्चे की ताकत नजर नहीं आ रही है. भले ही घनश्याम तिवाड़ी जैसे बीजेपी के पुराने दिग्गज अलग से मैदान में ताल ठोक रहे हों या फिर दलित वोटों की जुगत में लगी बीएसपी भी मैदान में क्यों न उतर आई हो, लेकिन, मुकाबले के केंद्र में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ही हैं.

बीजेपी की कोशिश, लड़ाई के केंद्र में हों मोदी

2018 के इस मुकाबले में मजबूत दावेदार बनकर उभरी कांग्रेस ने पांच साल की वसुंधरा सरकार के काम को आधार बनाकर हमला बोलना शुरू किया है. पलटवार बीजेपी की तरफ से भी हो रहा है, लेकिन, बीजेपी की कोशिश 2018 की इस लड़ाई के केंद्र से वसुंधरा को हटाकर मोदी को लाने की है. बीजेपी चाहती है कि पांच साल की लड़ाई महज वसुंधरा राजे बनाम सचिन पायलट न बनकर मोदी बनाम राहुल की लड़ाई के तौर पर सामने आए.

टीम अमित शाह की रणनीति के केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं जिनके साढ़े चार साल के काम-काज को आधार बनाकर बीजेपी 2019 की बड़ी लड़ाई के पहले 2018 में भी राजस्थान के रेगिस्तान में अपनी कंटीली राह को कुछ हद तक आसान बनाना चाहती है.

बीजेपी के रणनीतिकारों को लगता है कि अगर लड़ाई मोदी बनाम राहुल की हो तो फिर बीजेपी को काफी हद तक राहत मिल सकती है, वरना राजस्थान में इस बार पार्टी के लिए अपना किला बचाना मुश्किल लग रहा है.

अमित शाह की सियासी बिसात

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने राजस्थान को लेकर विशेष ‘गेम प्लान’ भी तैयार किया है. इसके लिए उन्होंने खुद सबसे ज्यादा फोकस राजस्थान पर किया है. शाह के लगातार हो रहे राजस्थान दौरे और वहां हर संभाग में जाकर पार्टी संगठन को चुस्त करने की कवायद इस बात का प्रतीक है. वसुंधरा राजे से नाराज पार्टी नेताओं को साथ लाने की कोशिश भी हो रही है. संघ और संगठन में समन्वय के साथ-साथ बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत करने पर जोर दिया जा रहा है.

माइक्रो मैनेजमेंट के माहिर खिलाड़ी अमित शाह खुद पूरे मामले पर नजर रख रहे हैं. बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने फ़र्स्टपोस्ट के साथ बातचीत में कहा, ‘भले ही राज्य में बीजेपी ने कई नेताओं और प्रभारियों को जिम्मेदारी दी है, लेकिन, खुद अमित शाह की हर पहलू पर नजर है.’

इसके अलावा राज्य में चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर को बनाया गया है, जबकि अविनाश राय खन्ना पहले से ही प्रभारी की भूमिका में काम कर रहे हैं. ये दोनों नेता राज्य में पार्टी की चुनावी रणनीति को लेकर लगातार बैठक भी कर रहे हैं और उम्मीदवारों के चुनाव में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.

राज्यसभा सांसद मदनलाल सैनी अभी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, हालांकि पार्टी आलाकमान केंद्रीय मंत्री और जोधपुर से सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाह रहा था, लेकिन, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के विरोध के चलते मदन लाल सैनी को प्रदेश की कमान सौंपकर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की गई. पार्टी आलाकमान ने चुनावी साल में विवाद खत्म करने के लिए ऐसा कर दिया. लेकिन, बाद में गजेंद्र सिंह शेखावत को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाकर संकेत साफ दे दिया गया कि पार्टी आलाकमान की पसंद गजेंद्र सिंह शेखावत ही हैं.

भरोसेमंद नेताओं के भरोसे आलाकमान !

हालांकि इन लोगों के अलावा भी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने संगठन के दूसरे नेताओं को मैदान में उतार दिया है. बीजेपी के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री वी सतीश, केंद्रीय मंत्री और बीकानेर से सांसद अर्जुन राम मेघवाल, पार्टी महासचिव भूपेंद्र यादव और राजस्थान में संगठन मंत्री चंद्रशेखर भी लगातार चुनावी तैयारी में लगे हुए हैं जिनसे मिले फीडबैक के आधार पर पार्टी आगे की रणनीति बना रही है.

राजस्थान में संगठन मंत्री चंद्रशेखर कुछ महीने पहले ही राजस्थान में संगठन को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी दी गई है. इसके पहले वे पश्चिमी यूपी के संगठन का काम देख रहे थे. चंद्रशेखर को राजस्थान भेजने के पीछे भी बीजेपी आलाकमान का मकसद वसुंधरा की नकेल कसना था.

इसके अलावा वसुंधरा राजे की काट के लिए प्रदेश के दो राजपूत नेताओं केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को भी मैदान में उतारा है. इस तरह बीजेपी आलाकमान ने अपने तरीके से राजस्थान में पार्टी संगठन और चुनावी रणनीति में वसुंधरा की मनमानी को रोकने की पूरी तैयारी कर ली है.

नहीं चलेगी महारानी की मनमानी !

राजस्थान में पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के 200 में से 162 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस महज 21 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थी. उस वक्त मोदी लहर का असर राजस्थान में भी दिखा था. लेकिन, इस बार इस तरह की कोई लहर नहीं दिख रही है. बल्कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ माहौल जरूर दिख रहा है.बीजेपी की कोशिश है डैमेज कंट्रोल करने की. पार्टी को इस बात का अंदाजा है, क्योंकि इस साल हुए अजमेर और अलवर लोकसभा के उपचुनाव और मांडलगढ़ के विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. इसे मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ गुस्से के तौर पर देखा गया था.

अब पार्टी आलाकमान ने डैमेज कंट्रोल करने के लिए ही पहले वसुंधरा के हाथों में चुनाव की पूरी कमान सौंपने के बजाए कई नेताओं को अपने तरीके से चुनाव अभियान की कमान सौंपी है. दूसरी तरफ अब तैयारी हो रही है कई मौजूदा विधायकों के टिकट काटने की.

बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, इस बार 162 विधायकों में से एक तिहाई से ज्यादा विधायकों के टिकट भी कट जाएं तो बहुत आश्चर्य नहीं होना चाहिए. पार्टी एंटीइंबेंसी फैक्टर को कम करने के लिए इस तरह की तैयारी कर रही है. इसके लिए पार्टी आलाकमान ने हर विधायक की रिपोर्ट मंगाई है, जिसके आधार पर ही टिकट का फैसला होगा.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, हर मौजूदा विधायक को टिकट उनके परफॉरमेंस और रिपोर्ट कार्ड के आधार पर ही तय होगा, भले ही वो विधायक कितने भी दिनों से अपने क्षेत्र से विधायक क्यों न हो ? सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी इस बाबत अपनी मंशा से पार्टी नेताओं को अवगत करा दिया है.

हालांकि, इसके पहले विधानसभा चुनाव या फिर लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे की ही मनमानी चलती रही है, क्योंकि वहां प्रदेश अध्यक्ष भी अबतक उन्हीं के गुट के रहे हैं. लेकिन, अब पहली बार वसुंधरा पार्टी के अंदर ही घिर गई हैं. महारानी की मनमानी इस बार अब नहीं चलने वाली है. पार्टी आलाकमान जीताऊ उम्मीदवार और उम्मीदवार के रिपोर्ट कार्ड के आधार पर ही फैसला करेगा.

पार्टी की नजर लोकसभा चुनाव पर

2014 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान की सभी 25 सीटें बीजेपी की झोली में आई थीं. लोकसभा चुनाव से पहले हुए विधानसभा चुनाव का असर लोकसभा में भी देखने को मिला था. इस लिहाज से बीजेपी के लिए अब विधानसभा का चुनाव काफी अहम हो गया है. पार्टी आलाकमान को अंदाजा है कि अगर विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन ज्यादा खराब हुआ तो फिर उसका असर लोकसभा चुनाव में भी पड़ सकता है.

पार्टी की तरफ से इसी रणनीति के तह तैयारी हो रही है, जिसमें पहले तैयारी सरकार बनाने की होगी. लेकिन, बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, अगर सरकार नहीं बन पाई तो भी पार्टी मजबूत विपक्ष के तौर पर राज्य में अपने –आप को जिंदा रखे, वरना कांग्रेस की एकतरफा जीत और पार्टी की एकतरफा हार का असर सीधे लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा.

सूत्रों के मुताबिक, अगर राजस्थान में सरकार नहीं बन पाई तो बीजेपी वसुंधरा को किनारे करने की तैयारी करेगी. हो सकता है कि पार्टी उन्हें विधानसभा में नेताप्रतिपक्ष का पद न दे. लोकसभा चुनाव से पहले अगर ऐसा पार्टी नहीं भी कर पाई तो इतना तय है कि फिर वो अपने हिसाब से नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति कर लोकसभा चुनाव की तैयारी करेगी. उस वक्त कमजोर हो चुकी वसुंधरा राजे को नजरअंदाज कर गजेंद्र सिंह शेखावत जैसे युवा चेहरे को कमान सौंपी जा सकती है.

नेताजी, पटेल और आंबेडकर के सम्मान से कांग्रेस को क्यों ऐतराज है: शाहनवाज हुसैन


शाहनवाज हुसैन ने कहा, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, बाबा साहब भीमराव आंबेडकर जैसे महापुरूषों का सम्मान किए जाने का तो कांग्रेस को स्वागत करना चाहिए


मोदी सरकार पर इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास करने के कांग्रेस के आरोप पर पलटवार करते हुए बीजेपी ने सोमवार को कहा कि नेताजी, सरदार पटेल, बाबा साहब आंबेडकर जैसे महापुरूषों के सम्मान पर विपक्षी दल को ऐतराज क्यों हो रहा है?

बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा, ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, बाबा साहब भीमराव आंबेडकर जैसे महापुरूषों का सम्मान किए जाने का तो कांग्रेस को स्वागत करना चाहिए. लेकिन उसे इस पर ऐतराज है, क्यों?’

उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास नहीं कर रही है, बल्कि इन महापुरूषों के साथ जो नाइंसाफी हुई, जिस प्रकार इन्हें कांग्रेस ने भुलाने का काम किया, उसे दूर करते हुए उन्हें सम्मान देने का प्रयास किया जा रहा है.

हुसैन ने कहा कि 75 साल में पहली बार, अखंड भारत की पहली सरकार को सम्मानपूर्वक, समारोह में याद किया गया. कांग्रेस पर निशाना साधते हुए बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि नेताजी की तरह ही सरदार पटेल और बाबा साहब आंबेडकर का योगदान भुलाने की कोशिश की गई. 31 अक्टूबर को सरदार पटेल की याद में ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का अनावरण किया जा रहा है.

स्वतंत्रता संग्राम में आरएसएस के योगदान पर कांग्रेस द्वारा सवाल उठाने के विषय पर हुसैन ने कहा कि कांग्रेस के लिए एक ही परिवार का योगदान मायने रखता है जबकि आजादी की लड़ाई में नागरिक होने के नाते अनेकानेक लोगों ने योगदान दिया और देश से मोहब्बत रखने वाला संगठन होने के नाते संघ ने भी योगदान दिया.

उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने बीजेपी नीत केंद्र सरकार पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की धरोहर हथियाने के लिए ‘षडयंत्रपूर्ण प्रयास’ करने का आरोप लगाते हुए रविवार को कहा था कि बीजेपी इतिहास फिर से लिखने के लिए व्याकुल है.

कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि ‘व्याकुल बीजेपी इतिहास फिर से लिखने की कोशिश कर रही है और सरदार पटेल एवं जवाहरलाल नेहरू के बीच तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस एवं नेहरू के बीच एक काल्पनिक प्रतिद्वंद्विता पैदा कर रही है. इसने शुभ अवसरों का इस्तेमाल ओछे राजनीतिक हथकंडों के लिए किया है.’

इससे पहले आजाद हिंद सरकार की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर रविवार को आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि यह दुखद है कि एक परिवार को बड़ा बताने के लिए, देश के अनेक सपूतों के योगदान को भी भुलाने का प्रयास किया गया.

राहुल गांधी महागठबंधन के पीएम उम्मीदवार नहीं


पूर्व केंद्रीय वित्‍त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि पिछले दो दशकों में राष्‍ट्रीय पार्टियों के वोट बैंक में सेंधमारी कर क्षेत्रीय पार्टियों की स्थिति मजबूत हुई है


2019 लोकसभा चुनाव को लेकर पूर्व केंद्रीय वित्‍त मंत्री पी चिदंबरम ने एक बड़ा खुलासा किया है. आम चुनावों को लेकर बयान देते हुए पी चिदंबरम ने कहा कि 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार के तौर पर घोषित नहीं करेगी. पूर्व केंद्रीय वित्‍त मंत्री पी चिदंबरम ने यह बात मिडियाकर्मियों से कही. उन्‍होंने कहा कि राहुल ही नहीं कांग्रेस अन्‍य किसी भी व्‍यक्ति की दावेदारी की घोषणा नहीं करेगी.

पूर्व केंद्रीय वित्‍त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि पिछले दो दशकों में राष्‍ट्रीय पार्टियों के वोट बैंक में सेंधमारी कर क्षेत्रीय पार्टियों की स्थिति मजबूत हुई है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों का संयुक्‍त वोट शेयर भी 50 फीसदी से कम है. उन्होंने कहा कि केंद्र में बीजेपी सरकार यह देखने के लिए पुरजोर कोशिशें कर रही है कि क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस से हाथ न मिला लें. स्थिति बदल जाएगी और कांग्रेस राज्‍य स्‍तर पर जबरदस्त गठबंधन बनाएगी.

पी चिदंबरम ने कहा- हम बीजेपी को बाहर देखना चाहते हैं और उसकी जगह पर एक ऐसी सरकार बनाना चाहते हैं जो कि प्रगतिशील हो, लोगों की स्वतंत्रता का सम्मान करती हो, भारी टैक्स से लोगों में तनाव न पैदा करती हो, महिलाओं और बच्चों को सुरक्षा दे सके और किसानों की स्थिति में सुधार कर सके. उन्होंने कहा हम गठबंधन चाहते हैं और उसके बाद ही मिलजुल कर पीएम उम्मीदवार का नाम तय किया जाएगी. आपको बता दें कि इसी बीच पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी एक दिवसीय दौरे पर आज रायपुर पहुंचेंगे. वह साइंस कॉलेज में एक सभा को संबोधित करेंगे. इसके बाद शाम को सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों से चर्चा भी करेंगे.