यूपी शिक्षक भर्ती: सपा शासन में हुई 12460 शिक्षकों की भर्ती भी रद्द


गुरुवार को सुनाए अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि चयन प्रकिया नियमों को दरकिनार कर की गई थी। अतः कानूनन यह दूषित है और रद्द करने लायक  है।


हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले की गाज समाजवादी पार्टी के शासनकाल में हुए 12 हजार 460 सहायक अध्यापकों के चयन पर गिरी है। न्यायालय ने बोर्ड ऑफ बेसिक एजूकेशन द्वारा किए गए इन चयनों को रद्द कर दिया है। इन भर्तियों के लिए 21 दिसंबर 2016 को विज्ञापन जारी कर चयन प्रक्रिया शुरू की गई थी।

न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया है कि उक्त भर्तियां यूपी बेसिक एजूकेशन टीचर्स सर्विस रूल्स 1981 के नियमों का पूरी तरह पालन करते हुए नए सिरे से काउंसलिग करा के पूरी की जाएं। नई चयन प्रकिया के लिए वही नियम लागू किए जाएंगे जो कि पूर्व में प्रकिया प्रारम्भ करते समय बनाए गए थे। न्यायालय नई प्रकिया पूरी करने के लिए तीन माह का समय दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति इरशाद अली की एकल सदस्यीय पीठ ने तमाम अभ्यर्थियों की ओर से दाखिल दर्जनों याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करते हुए दिया है। याचिकाओं में 26 दिसंबर 2016 के उस नोटिफिकेशन को खारिज किए जाने की मांग की गई थी, जिसके तहत उन जिलों में जहां कोई रिक्ति नहीं थी, वहां के अभ्यर्थियों को काउंसलिंग के लिए किसी भी जिले को प्रथम वरीयता के तौर पर चुनने की छूट दी गई थी।

याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर की दलील थी कि 26 दिसंबर 2016 के नोटिफिकेशन द्वारा नियमों में उक्त बदलाव भर्ती प्रकिया प्रारम्भ होने के बाद किया गया जबकि नियमानुसार एक बार भर्ती प्रकिया प्रारम्भ होने के बाद नियमों में बदलाव नहीं किया जा सकता। वहीं राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह का तर्क था कि नियमों में बदलाव इस लिए किया गया था ताकि काउंसलिंग में अधिक संख्या में अभ्यर्थियों को शामिल किया जा सके।

गौरतलब  है कि होई कोर्ट ने 19 अप्रैल 2018 के एक अंतरिम आदेश जारी कर पहले ही सफल अभ्यर्थियों को नियुक्त पत्र देने पर रोक लगा दी थी। गुरुवार को सुनाए अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि चयन प्रकिया नियमों को दरकिनार कर की गई थी। अतः कानूनन यह दूषित है और रद्द करने लायक  है।

मध्य प्रदेश कांग्रेस में बिजली फूंक दी बस सिंधिया-दिग्विजय कैंप के बीच चल रही जंग से होने वाले नुकसान का डर है


बीजेपी भले ही राहुल को ‘कन्फ्यूज़’ करार दे लेकिन मध्यप्रदेश में फ्यूज़ चल रही कांग्रेस में अब करंट दौड़ने लगा है


मध्यप्रदेश में साल 2004 में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा था. उसके बाद से ही कांग्रेस सत्ता का वनवास झेल रही है. हालांकि मध्यप्रदेश में भी सरकार बदलने की परंपरा देखी जाती रही है. कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस सत्ता में रही है. लेकिन मध्यप्रदेश में कांग्रेस के ‘दिग्विजय-काल’ के बाद से हालात बदल गए. पहले दिग्विजय सिंह ने दस साल राज किया तो अब शिवराज सिंह पंद्रह साल से सत्ता पर हैं. ‘दिग्विजय-दौर’ के दस साल के बाद जनता ने मालवा के शिवराज को हर पांच साल बाद पांच साल का ‘एक्स्ट्रा बोनस’ देने का काम किया जिससे कांग्रेस का वनवास सरकते-सरकते 15 साल तक पहुंच गया. अब कांग्रेस उसी मालवा से मिन्नतें कर रही है ताकि सत्ता का सूखा खत्म हो.

मालवा-निमाड़ अंचल को सत्ता का गलियारा कहा जाता है. इसकी बड़ी वजह है कि ये एमपी की विधानसभा में सबसे ज्यादा विधायक भेजता है. इस बार भी मध्यप्रदेश में विधानसभा के आर-पार के मुकाबले में मालवा-निमाड़ की बड़ी भूमिका है. मालवा-निमाड़ की 66 में से 56 सीटें बीजेपी के कब्जे में हैं.

सिवनी जिले के बुधनी से शिवराज सिंह चौहान विधायक हैं तो सुमित्रा महाजन और कैलाश विजयवर्गीय जैसे कद्दावर नेता इंदौर का प्रतिनिधित्व करते हैं. वहीं अतीत में सुंदरलाल पटवा, वीरेंद्र सखलेचा और कैलाश जोशी जैसे नेता मालवा अंचल से उदीयमान हुए तो आरएसएस को कुशाभाऊ ठाकरे जैसा चेहरा मिला.

यही वजह है कि मालवा-निमाड़ अंचल अपनी राजनीतिक महत्ता की वजह से बीजेपी और कांग्रेस के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह  इंदौर से महा जनसंपर्क अभियान की शुरुआत करते हैं तो सीएम शिवराज सिंह चौहान मालवा से ही जन आशीर्वाद यात्रा शुरू करते हैं. मालवा का आध्यात्मिक और राजनीतिक महत्व ही समझते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उज्जैन में महाकाल का आशीर्वाद लिया तो झाबुआ में आदिवासियों के सामने परिवार के इतिहास को याद दिलाया.

लेकिन राहुल के मध्यप्रदेश दौरे ने इस बार राजनीति के समीकरणों को बदलने का काम किया है. राहुल के मालवा दौरे से पहले तक बीजेपी विधानसभा चुनाव को साल 2013 के ‘एक्शन-रीप्ले’ की तरह ही देख रही थी क्योंकि बीजेपी के सामने कांग्रेस अपनी अंदरूनी गुटबाजी के चलते कमजोर नजर आ रही थी. लेकिन राहुल के दौरे से मध्यप्रदेश की सियासत में गर्मी आ गई है. राहुल की वजह से 15 साल से सोई कांग्रेस की उम्मीद भी जगी है. राहुल को सुनने के लिए उमड़ी भीड़ में कांग्रेस अब सत्ता विरोधी लहर देखने लगी है.

रोड शो और रैलियों में उमड़ी भीड़ से उत्साहित राहुल ने मध्यप्रदेश के किसानों से वादा किया है कि अगर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनती है तो सिर्फ 10 दिनों में किसानों का कर्जा माफ किया जाएगा और ऐसा न करने वाले सीएम को ग्यारहवें दिन बदल दिया जाएगा.

 

भले ही राहुल गांधी की ‘कन्फ्यूज़ियत’ पर बीजेपी खुश हो लेकिन राहुल का अंदाज उन किसानों में उम्मीद जगा सकता है जिन्होंने मंदसौर किसान आंदोलन देखा. अब कांग्रेस के लिए किसान आंदोलन की फसल काटने का समय है. वैसे भी मंदसौर के निकाय चुनावों में कांग्रेस को मिली जीत से वहां की जनता का मिज़ाज समझा जा सकता है. तभी राहुल को मध्यप्रदेश में एंटी इंकंबेंसी दिखाई दे रही है और वो कह रहे हैं कि इस बार मध्यप्रदेश में वोट स्विंग हो सकता है जिसका फायदा कांग्रेस को ही मिलेगा.

हालांकि साल 2013 में मध्यप्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच वोट प्रतिशत का अंतर काफी बड़ा था. बीजेपी को जहां 44.88 प्रतिशत वोट मिले थे तो कांग्रेस को 36.38 प्रतिशत वोट ही मिले थे. ऐसे में राहुल गांधी का आशावादी नजरिया संदेह पैदा करता है.

लेकिन, राहुल के दौरे से कांग्रेस अब बीजेपी के मुकाबले में जरूर खड़ी हो गई है. पहले मंदसौर किसान आंदोलन ने शिवराज सरकार की नींद उड़ाने का काम किया तो अब राहुल का मालवा-निमाड़ अंचल का दौरा बीजेपी के लिए चिंता की लकीरें खींच गया है.  उज्जैन, धार, महू, खरगोन, झाबुआ में रैली तो इंदौर में रोड शो,  छप्पन दुकान में नाश्ता, कारोबारियों से बातचीत और पत्रकारों से बिना लाग-लपेट के बातचीत तो स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दे उठाकर राहुल ने कांग्रेस को दौड़ में बना दिया है. राहुल कह रहे हैं कि वो फ्रंट पर खेल रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस को राहुल के हिट-विकेट का डर नहीं है. बस डर उन्हें सिंधिया-दिग्विजय कैंप के बीच चल रही जंग से होने वाले नुकसान का है. बहरहाल, बीजेपी भले ही राहुल को ‘कन्फ्यूज़’ करार दे लेकिन मध्यप्रदेश में फ्यूज़ चल रही कांग्रेस में अब करंट दौड़ने लगा है.

मैं भी चाहती हूं कि अयोध्या में बने राम मंदिर: अपर्णा यादव


अपर्णा यादव ने कहा कि कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए हमें जनवरी तक मामले की सुनवाई शुरु होने का इंतजार करना चाहिए


राम मंदिर मुद्दे को लेकर मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव ने बयान दिया है. गुरुवार को अपर्णा यादव ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि उन्हें भी राम मंदिर बनने का इंतजार है.

उन्होंने कहा कि मुझे सुप्रीम कोर्ट पर विश्वास है. मेरा विचार है कि अयोध्या में राम मंदिर बनना चाहिए. अपर्णा यादव गुरुवार को बाराबंकी के देवा शरीफ पहुंची थी. यहां उन्होंने यह भी कहा कि कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए हमें जनवरी तक  मामले की सुनवाई शुरु होने का इंतजार करना चाहिए.

एक रिपोर्ट के मुताबिक जब उनसे पूछा गया कि क्या मस्जिद नहीं बनना चाहिए, तो उन्होंने कहा कि, ‘मैं तो मंदिर के पक्ष में हूं, क्योंकि रामायण में भी राम जन्मभूमि का उल्लेख आता है.’ वहीं जब उनसे बीजेपी का साथ देने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि, ‘ मैं राम के साथ हूं.’

वहीं चाचा शिवपाल के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि 2019 के चुनाव में शिवपाल के अलग होने से असर पड़ेगा क्योंकि पार्टी को मजबूत करने में उनका भी अहम योगदान रहा है. उन्होंने ये भी कहा कि अगर उन्हें चुनाव लड़ने का मौका मिला तो अखिलेश या शिवपाल में से वह अपने चाचा शिवपाल और नेता जी मुलायम सिंह यादव को चुनेंगी.

कानून या फिर बिल लाकर महज माहौल बनाने की तैयारी हो रही है या फिर मंदिर बनेगा


पार्टी की रणनीति देखकर यही लग रहा है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का परिणाम ही राम मंदिर मुद्दे पर अगले कदम और अगली रणनीति तय करेगा.


बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए प्राइवेट मेंबर बिल लाने का ऐलान कर दिया है. राज्यसभा सांसद सिन्हा ने प्राइवेट मेंबर बिल लाने की बात कहते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी और बीएसपी सुप्रीमो मायावती समेत कई विपक्षी पार्टी के नेताओं को चुनौती देते हुए उनका स्टैंड पूछा है.


Prof Rakesh Sinha

@RakeshSinha01

जो लोग @BJP4India @RSSorg को उलाहना देते रहते हैं कि राम मंदिर की तारीख़ बताए उनसे सीधा सवाल क्या वे मेरे private member bill का समर्थन करेंगे ? समय आ गया है दूध का दूध पानी का पानी करने का .@RahulGandhi @yadavakhilesh @SitaramYechury @laluprasadrjd @ncbn


बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा की तरफ से किए गए इस ऐलान के बाद से मंदिर मुद्दे पर सियासत गरमा गई है. आखिरकार राकेश सिन्हा ने इस तरह का बयान क्यों दिया. क्या राकेश सिन्हा ने अपनी मर्जी से बयान दिया या फिर उनके पीछे बीजेपी की भी सोच है या फिर संघ के लाइन को ही आगे बढ़ाते हुए सिन्हा ने एक कदम आगे बढ़ा दिया है.

सिन्हा को संघ का समर्थन!

दरअसल, राकेश सिन्हा संघ विचारक हैं. मीडिया में सघ की बात प्रमुखता से रखने वाले राकेश सिन्हा को संघ के आलाकमान का वरदहस्त प्राप्त है. संघ के समर्थन की बदौलत ही उन्हें राज्यसभा भेजा गया है. ऐसे में उनकी तरफ से प्राइवेट मेंबर बिल के जरिए अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे पर रास्ता साफ करने के लिए कदम उठाए जाने के पीछे संघ का ही हाथ माना जा रहा है.

गौरतलब है कि सरसंघचालक मोहन भागवत ने विजयादशमी की अपनी सालाना बैठक में साफ-साफ शब्दों में सरकार से अयोध्या विवाद के समाधान करने और वहां राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त करने के लिए रुकावटों को दूर करने के लिए कानून बनाने की मांग कर दी है. संघ परिवार के मुखिया की तरफ से आए इस बयान के बाद भगवा ब्रिगेड इस मुद्दे पर अब और आक्रामक हो गया है.

वीएचपी और साधु-संतों का कड़ा रुख

विश्व हिंदू परिषद यानी वीएचपी के अलावा साधु-संतों ने भी अपना रुख कड़ा कर लिया है. संतों की उच्चाधिकार समिति की बैठक में पहले ही इस बात का ऐलान किया जा चुका है कि राम मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने की मांग को लेकर देश भर में जनजागरण कार्यक्रम चलाने के अलावा उनकी तरफ से सांसदों को उनके ही संसदीय क्षेत्र में मिलकर उन्हें ज्ञापन सौंपा जाएगा. वीएचपी के साथ मिलकर साधु-संतों की योजना हर राज्य मे गवर्नर से भी मिलने की है. आखिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर भी कानून बनाने की मांग की जाएगी.

दूसरी तरफ, संतों के एक वर्ग ने 3 और 4 नवंबर को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में राम मंदिर निर्माण के लिए माहौल बनाने के लिए एक सम्मेलन करने जा रहा है. यह सम्मेलन अखिल भारतीय संत समिति की तरफ से कराया जा रहा है जिसका नेतृत्व जगद्गुरू रामानंदाचार्य हंसदेवाचार्य जी कर रहे हैं. संतों की मांग है कि सरकार कानून बनाकर या फिर अध्यादेश के जरिए अयोध्या में भव्य मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करे.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की तरफ से राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले की सुनवाई अगले साल जनवरी तक टाल देने के बाद आरएसएस, वीएचपी और कई दूसरे हिंदू संगठनों की तरफ से केंद्र की मोदी सरकार पर राम मंदिर के लिए अध्यादेश लाने का दबाव बनाया जा रहा है.

भागवत के बयान से भगवा ब्रिगेड को मिला मौका

खासतौर से मोहन भागवत के बयान ने बीजेपी के उन नेताओं को भी खुलकर बोलने का मौका दिया है जो इस मुद्दे पर प्रखर रहे हैं. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से लेकर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी राम मंदिर के मुद्दे पर बयान देकर माहौल गरमा दिया है.

बीजेपी के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा के अलावा बीजेपी के यूपी के अंबेडकर नगर से लोकसभा सांसद हरिओम पांडे ने भी प्राइवेट मेंबर बिल लाने की बात कही है. प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा है कि इस बार अयोध्या में दीवाली के दौरान वे राम मंदिर निर्माण से जुड़ी अच्छी खबर लेकर जाएंगे.

उधर, शिवसेना ने भी इस मसले पर सहयोगी बीजेपी पर दबाव बढ़ा दिया है. शिवसेना पहले से ही राम मंदिर मुद्दे को लेकर बीजेपी सरकार पर निशाना साध रही है. शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे 25 नवंबर को अयोध्या भी जा रहे हैं.शिवसेना नेता संजय राउत का कहना है कि ठाकरे अयोध्या पहुंचकर मोदी जी और बीजेपी सरकार को राम मंदिर निर्माण के लिए याद दिलाएंगे. शिवसेना का मानना है कि अगर कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे तो हमें एक हजार साल इंतजार करना पड़ेगा. ऐसे में जल्द से जल्द कानून के जरिए सरकार इस मसले पर आगे बढ़े.

विपक्षी दलों का बीजेपी पर हमला

लेकिन, विपक्षी दलों की तरफ से इस मुद्दे पर बीजेपी पर प्रहार हो रहा है. विपक्षी दल अगले चुनाव को ध्यान में रखकर मूल मुद्दे से ध्यान हटाने की कोशिश के तौर पर मंदिर मुद्दे को देख रहे हैं. बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा के ऐलान पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि राम या अल्लाह वोट करने नहीं आएगें, जनता को ही वोट करना होगा.

उधर, कांग्रेस ने इस मुद्दे पर बीजेपी पर राजनीति करने का आरोप लगाया है. कांग्रेस प्रवक्ता आलोक शर्मा ने कहा है कि ‘कांग्रेस का स्टैंड क्लीयर है, हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानेंगे. राकेश सिन्हा यह नौटंकी बंद करें.’ॉ

सरकार के लिए सहयोगियों को साधना मुश्किल

लेकिन, बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपनी ही सहयोगी दलों से है. सहयोगी जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार का कहना है कि, ‘अगर न्यायपालिका समाधान का रास्ता खोज रही हो तो उस पर ज्यादा भरोसा करना चाहिए.’

संघ परिवार, साधु-संतों, सहयोगी शिवसेना के अलावा अपनी ही पार्टी के सांसदों की मांग के बाद बीजेपी पर भी राम मंदिर मुद्दे को लेकर दबाव बन रहा है. लेकिन, जेडीयू जैसी सहयोगी की तरफ से आ रहे बयान और गठबंधन की राजनीति की मजबूरी को बीजेपी भी समझ रही है. पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा के इस बयान में इस बात की झलक भी मिल रही है.

पात्रा ने इस मसले पर कहा, ‘प्राइवेट मेंबर बिल पार्लियामेंट की संपत्ति होती है, भविष्य में इस विषय पर बिल संसद में आएगा, इसपर मैं अभी से टिप्पणी करूं यह उचित नहीं होगा. मगर इसमें कोई संशय नहीं है कि जहां तक राम मंदिर निर्माण का सवाल है बीजेपी एक मात्र ऐसी पॉलिटिकल पार्टी है जिसने 1989 के पालनपुर के कांक्लेव में यह प्रतिज्ञा की है कि मंदिर का निर्माण हमारा लक्ष्य है, यह हमारा ध्येय है, हमारा लक्ष्य है और यह हमेशा ध्येय रहेगा.’

संबित पात्रा के बयान से साफ है कि बीजेपी के सांसद भले ही प्राइवेट मेंबर बिल की बात करें लेकिन, अभी पार्टी की तरफ से इस मुद्दे को गरमाए रखने से उसे ही फायदा होगा. पार्टी की तरफ से पात्रा ने आधिकारिक तौर पर इस बिल के पक्ष में कुछ नहीं कहा, लेकिन, उनकी तरफ से विपक्षी दलों को राम विरोधी दिखाना बीजेपी की रणनीति को दिखा रहा है.

विपक्ष पर पात्रा का प्रहार

पात्रा ने विपक्षी दलों को कठघड़े में खड़ा करते हुए कहा, ‘अगर आप एक सूची बनाएं और एक तरफ यह लिखें की मंदिर बनाने वाले और दूसरी तरफ लिखें मंदिर नहीं बनाने वाले, तो मंदिर बनाने वालों में विश्व हिंदू परिषद, संघ, बीजेपी और साधु-संतों का नाम आएगा. लेकिन, मंदिर नहीं बनाने वालों में पहले कांग्रेस का नाम आएगा, जिसने राम के वजूद को ही नकारा है. समाजवादी पार्टी का नाम आएगा, बीएसपी का नाम आएगा और इसके अलावा वो तमाम विपक्षी पार्टी जो हमारी उलाहना करने का काम कर रही हैं उन सबका नाम आएगा.’

हालांकि सूत्र बता रहे हैं कि संघ परिवार की तरफ से मुद्दा गरमाए जाने के बावजूद बीजेपी की तरफ से इस मुद्दे पर आगे बढ़ना आसान नहीं होगा, क्योंकि पार्टी को अपने सहयोगियों को भी साधना है. पार्टी की रणनीति देखकर यही लग रहा है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का परिणाम ही राम मंदिर मुद्दे पर अगले कदम और अगली रणनीति तय करेगा.

राम मंदिर पर प्राइवेट बिल ला सकती है बीजेपी: राकेश सिन्हा


राकेश सिन्हा ने एक ट्वीट किया है. जिसमें राम मंदिर पर प्राइवेट मेंबर बिल लाने के बारे में कहा गया है


नयी दिल्ली, 1 नवम्बर, 2018:

चुनावी मौसम के बीच एक बार राम मंदिर का मुद्दा गरमा गया है. राम मंदिर को लेकर बीजेपी पर कांग्रेस लगातार निशाना साधती रही है. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर पर सुनवाई जनवरी तक के लिए टाल दी है. अब इस मुद्दे पर बीजेपी को विपक्ष लगातार घेर रहा है.

राज्यसभा सांसद और संघ विचारक राकेश सिन्हा ने एक ट्वीट किया है. जिसमें राम मंदिर पर प्राइवेट मेंबर बिल लाने के बारे में कहा गया है. सिन्हा ने पूछा है कि अगर बीजेपी राम मंदिर पर प्राइवेट मेंबर बिल लेकर आती है तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, लालू यादव, सीताराम येचुरी और मायावती का स्टैंड क्या होगा? सिन्हा ने विपक्ष के नेताओं को इस पर अपना स्टैंड साफ करने के लिए कहा है.


Prof Rakesh Sinha

@RakeshSinha01

Will @RahulGandhi @SitaramYechury @laluprasadrjd Mayawati ji support Private member bill on Ayodhya? They frequently ask the date ‘तारीख़ नही बताएँगे ‘ to @RSSorg @BJP4India ,now onus on them to answer


सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर मुद्दे पर सुनवाई अगले साल जनवरी तक के लिए टाल दी है. मामले की सुनवाई टलने के बाद साधु-संतों में भी नाराजगी देखने को मिल रही है.

मंगलवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश लाने के विकल्प को नकारा नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर इस मुद्दे को सर्वसम्मति से हल नहीं किया जा सकता है, तो फिर दूसरे विकल्पों को भी खंगाला जा सकता है.

राहुल गांधी ग्रामोफोन की तरह अटक गए हैं, लोग उनके दावों का मजाक उड़ाते हैं: मोदी


डिजिटल इंडिया का विपक्ष की आलोचना के बारे में एक सवाल के जवाब में मोदी ने कहा कि कांग्रेस के लोग जिन जिन मुद्दों पर जोर जोर से झूठ बोलने लगे तब समझना चाहिए कि हम अपने काम में सफल रहे हैं


कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के दावों पर तंज कसते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को कहा कि ग्रामोफोन की तरह उनकी पिन अटक गई है जिसके कारण वह ऐसी बचकानी बाते कर रहे हैं और लोग उनके दावों का मजाक उड़ाते हैं.

मोदी ने कहा कि इनको समझ नहीं आ रहा है कि वक्त बदल गया है, जनता को मूर्ख समझना बंद करें. ‘इस प्रकार की बचकानी बातें किसी के गले नहीं उतरती है और लोग मजाक उड़ाते हैं.’

बीजेपी के एक कार्यकर्ता द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि इसकी चिंता न करें. पहले ग्रामोफोन के रिकार्ड में पिन अटक जाती है तो कुछ ही शब्द बार बार सुनाई देती है. ऐसे ही कुछ लोग भी होते हैं जिनकी पिन अटक जाती है. एक ही चीज दिमाग में भर जाती है जो बार बार एक ही बात बोलते हैं. ऐसे में इन बातों का मजा उठाना चाहिए, आनंद लेना चाहिए.

मोदी ने कहा, ‘चुनाव की आपाधापी में इन चीजों का आनंद उठाएं.’

प्रधानमंत्री ने ‘मेरा बूथ, सबसे मजबूत’ कार्यक्रम के तहत नरेंद्र मोदी ऐप के जरिए मछलीशहर, महासमंद, राजसमंद, सतना, बैतूल के बीजेपी कार्यकर्ताओं से संवाद के दौरान कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि जितना कीचड़ उछालोगे, उतना कमल खिलेगा. कांग्रेस को सच नहीं, झूठ पर भरोसा है.

सत्ता में आने पर मध्यप्रदेश में मोबाइल फोन बनाने के बारे में कांग्रेस अध्यक्ष के बयान के संबंध में पूछे जाने पर मोदी ने सवाल किया, ‘मोबाइल का आविष्कार क्या 2014 के बाद हुआ था? 2014 के पहले भी मोबाइल थे, जिन लोगों ने इतने साल राज किया, उनके समय में सिर्फ दो ही मोबाइल फैक्टरियां क्यों थीं?’

कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने इतने साल शासन किया उनके समय में सिर्फ दो मोबाइल फैक्टरियां थी और पिछले चार सालों में 100 से ज्यादा कंपनियां मोबाइल फोन बना रही हैं.

वन रैंक, वन पेंशन लागू करने के राहुल गांधी के बयान के संदर्भ में प्रधानमंत्री ने कहा कि आज ये लोग वन रैंक, वन पेंशन की बातें कर रहे हैं. दशकों से यह मामला लंबित था, तब क्यों कुछ नहीं किया. ‘जब हमने वन रैंक, वन पेंशन लागू कर दी, तब जाकर वे कह रहे हैं कि हम देंगे.’

कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि इतने दशकों तक इनकी सरकार रही, सेना के जवान 40 सालों से मांग कर रहे थे, उसे सुनने की फुर्सत नहीं थी. जब हमने इसे कर दिया तब परेशान हो रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में उनसे मिलने गए सेवानिवृत्त सैनिकों के एक समूह से कहा कि सत्ता में आने पर कांग्रेस ’वन रैंक, वन पेंशन’ (ओआरओपी) के मु्द्दे पर किए अपने सभी वादों को पूरा करेगी. इससे पहले राहुल ने भोपाल में आयोजित कार्यकर्ता संवाद के दौरान कहा था, ‘आपके हाथ में जो मोबाइल है, वह ‘मेड इन चाइना’ है, यदि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो हम ‘मेड इन मध्य प्रदेश’ मोबाइल बनाएंगे.

डिजिटल इंडिया का विपक्ष की आलोचना के बारे में एक सवाल के जवाब में मोदी ने कहा कि कांग्रेस के लोग जिन जिन मुद्दों पर जोर जोर से झूठ बोलने लगे तब समझना चाहिए कि हम अपने काम में सफल रहे हैं.

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज डिजिटल इंडिया कदम कदम पर सुदूर गांव तक लोगों की मदद को खड़ा है. डिजिटल इंडिया के माध्यम से लोगों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन आ रहा है.

उन्होंने कहा कि जब लोग और सरकार मिलकर काम करते हैं तभी सकारात्मक परिणाम आता है. सरकार कहती है कि पराली मत जलाओ, पराली मत जलाओ. लेकिन यह जनभागीदारी से ही संभव होगा.

गरीबी उन्मूलन के अपने सरकार के प्रयासों का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि पहले की सरकारों की सबसे बड़ी गलती यह थी कि उनके लिये गरीबी शब्द चुनावी वोट बैंक का हिस्सा थी और उनके राजनीतिक फायदे में थी. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार गरीब कल्याण के कार्य में जुटी है.

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मैं लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का हमेशा से ही आग्रही रहा हूं. सरकार भी इसी दिशा में काम कर रही है.’ उन्होंने कहा कि आज कॉमन सर्विस सेंटर के माध्यम से करोड़ों भारतीयों का न सिर्फ जीवन आसान हुआ है, बल्कि उनका भविष्य भी संवर रहा है.

मोदी ने कहा कि पहले अगर किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करनी होती थी, तो गांव में इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. लेकिन आज वाई-फाई और ऑनलाइन स्टडी ने युवाओं की इस सबसे बड़ी परेशानी का हल कर दिया है.

उन्होंने कहा कि मनरेगा की योजना तो पहले से चली आ रही है. लेकिन पहले क्या होता था. अपने पैसे लेने के लिए कई-कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. ऊपर से बिचौलिया भी कुछ पैसे मार लेता था, लेकिन आज टेक्नोलॉजी की मदद से मजदूरी आसानी से मिल जाती है. आज छात्रों के खाते में छात्रवृति पहुंच जाती है.

प्रधानमंत्री ने अपने संवाद के दौरान गुजरात में सरदार बल्लभभाई पटेल की प्रतिमा राष्ट्र को समर्पित करने का उल्लेख किया और कहा कि यह उनके मन को संतोष देने वाला पल था.

मोदी ने नरेंद्र मोदी एप के जरिए पार्टी कोष में चंदा एकत्र करने के अभियान का भी जिक किया.

पटेल की मूर्ति पर मायावती ने भाजपा आरएसएस को घेरा


गुजरात में ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के अनावरण के बाद बीएसपी प्रमुख मायावती ने बुधवार को कहा कि बीएसपी सरकार के समय बने स्मारकों को ‘फिजूलखर्ची’ बताने के लिए बीजेपी और आरएसएस को बहुजन समाज के लोगों से माफी मांगनी चाहिए.


मायावती ने भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि देते हुए एक बयान में कहा, लगभग तीन हजार करोड़ रुपए की लागत से बनी पटेल की ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ प्रतिमा का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गुजरात में अनावरण के बाद बीजेपी और आरएसएस के उन सभी लोगों को बहुजन समाज के लोगों से माफी मांगनी चाहिए जो बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर सहित दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों में जन्में महान संतों, गुरुओं व महापुरुषों के सम्मान में बीएसपी सरकार द्वारा लखनऊ और नोएडा में निर्मित भव्य स्थलों, स्मारको, पार्कों को फिजूलखर्ची बताकर इसकी जबर्दस्त आलोचना किया करते थे.’

बीजेपी ने पटेल को क्षेत्रवाद में बांध दिया

मायावती ने कहा, ‘वैसे तो पटेल अपनी बोल-चाल, रहन-सहन व खान-पान में पूर्ण रूप से भारतीयता व भारतीय संस्कृति की एक मिसाल थे. लेकिन उनकी भव्य प्रतिमा का नामकरण हिंदी और भारतीय संस्कृति के नजदीक होने के बजाय स्टैच्यू ऑफ यूनिटी जैसा अंग्रेजी नाम रखना कितनी राजनीति है, यह देश की जनता अच्छी तरह से समझ रही है.’

उन्होंने कहा कि पटेल विशुद्ध रूप से भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के पोषक थे लेकिन उनकी प्रतिमा पर विदेशी निर्माण की छाप उनके समर्थकों को हमेशा सताती रहेगी. बीएसपी प्रमुख ने कहा कि आंबेडकर की तरह पटेल एक राष्ट्रीय व्यक्ति थे और उनका सम्मान भी था लेकिन बीजेपी और उसकी केंद्र सरकार ने उन्हें क्षेत्रवाद की संकीर्णता में बांध दिया है.

उन्होंने कहा कि देश की जनता यह भी नहीं समझ पा रही है कि बीजेपी को यदि वाकई पटेल के नाम पर राजनीति करने के बजाय उनसे सही मायने में लगाव होता तो गुजरात में अपने लम्बे शासन के दौरान उनकी ऐसी भव्य प्रतिमा क्यों नहीं बनाई.

India moves up to 77th rank in Ease of Doing Business Index


It was ranked 100 last year and 130 in 2016 and 2015. When Modi government took over in 2014, it was ranked 142 among 190 nations.


Curtsy “The Hindu”

India jumped 23 ranks in the World Bank’s Ease of Doing Business Index 2018 to 77. It ranked 100 in the 2017 report.

The Index ranks 190 countries across 10 indicators ranged across the life cycle of a business from ‘starting a business’ to ‘resolving insolvency’.

“India’s strong reform agenda to improve the business climate for small and medium enterprises is bearing fruit. It is also reflected in the government’s strong commitment to broaden the business reforms agenda at the state and now even at the district level,” said Junaid Ahmad, World Bank Country Director in India in a press release. “Going forward, a continuation of this effort will help India maintain its goal of strong and sustained economic growth and we look forward to recording these successes in the years ahead.”

Source: Indian Govt

“The improvement in rankings is excellent news for India, and good news for the business community,” Commerce Minister Suresh Prabhu said at a press conference. “I’m sure we will continue to improve it more and more.”

Mr. Prabhu said that there were several initiatives by the government in the works that would further ease doing business, such as enabling export and import using only a mobile phone.

“The government will get out of business and allow people to conduct their business,” the Commerce Minister added.

Finance Minister Arun Jaitley pointed out that, since the World Bank sets May 1 as the deadline for measurement, there are several initiatives taken by the government that will only reflect in next year’s rankings including the effects of the Insolvency and Bankruptcy Code and the full effect of the Goods and Services Tax.

He noted that, despite the sharp improvement India has made in several of the categories in the Index, there were others such as registering a property, starting a business, taxation, insolvency, and enforcing a contract where a lot of work still needs to be done.

Photo: Twitter/@wb_research

“During the past year, India made Starting a Business easier by fully integrating multiple application forms into a general incorporation form,” the World Bank said in a release. “India also replaced the value added tax with the Goods and Services Tax (GST) for which the registration process is faster in both Delhi and Mumbai, the two cities measured by the Doing Business report. In addition, Mumbai abolished the practice of site inspections for registering companies under the Shops and Establishments Act. As a result, the time to start a business has been halved to 16 days, from 30 days.”

India moved from rank 184 in 2014 to 52 in 2018 in the construction permits category, 137 to 24 in getting electricity, 126 to 80 in trading across borders, 156 to 121 in paying taxes, 137 to 108 in resolving Insolvency, 186 to 163 in enforcing contracts, 158 to 137 in starting a business, and 36 to 22 in getting credit.

“The upward movement in India’s ranking is as expected,” Vishwas Udgirkar, Partner, Deloitte India said in a note. “This has been on back of overall reforms driven by the government, and to a large extent, use of digital and technology leading to process improvement. The country is on the right track in adopting technology and innovations in business processes. Government efforts to this end are laudable. Government’s thrust on infrastructure development to promote trade and business, especially logistics and supply chain centred initiatives, as also overall fiscal reforms including bankruptcy code, are showing results.”

बेनीवाल का उदय बीजेपी के लिए अच्छी खबर क्यों है?


माना जा रहा है कि नतीजा कुछ भी हो, बीजेपी लोकसभा चुनाव नए नेता के साथ लड़ेगी. नया नेता राजे की जगह लेगा


जाट लीडर हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व में राजस्थान तीसरे मोर्चे का उदय देख रहा है. यह पिछले तमाम महीनों में बीजेपी के लिए सबसे अच्छी खबर है. नई पार्टी न सिर्फ आने वाले विधान सभा चुनाव में, बल्कि अगले साल लोक सभा चुनाव में भी बीजेपी के लिए मददगार साबित होगी.

बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) मुख्य तौर पर ऐसे पूर्व बीजेपी नेताओं का एक साथ आना है, जो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व में अपने लिए कोई भविष्य नहीं देखते. इन लोगों का सामूहिक लक्ष्य खुद को ऐसी जगह ले जाना है, जहां से वो कांग्रेस और राजे दोनों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. उनकी राजनीति का खेल कुछ ऐसा है, जहां राजे को खत्म किया जा सके और राजस्थान में नया पावर सेंटर बनकर बीजेपी में वापसी की जा सके.

वोट एकजुट करने की कोशिश

आने वाले विधानसभा चुनाव में, इनकी उम्मीद बीजेपी के खिलाफ वोट को एकजुट करने की है. इस तरह वे कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएंगे. बेनीवाल और उनके समर्थकों को लगता है कि वे त्रिशंकु विधान सभा में अच्छे नंबर के साथ आएं. इसके बाद वे किंग मेकर्स बन जाएं. ठीक वैसे ही, जैसे कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी ने किया. अगर ऐसा होता है, तो उनकी पहली पसंद राजे रहित बीजेपी होगी.

तीसरे मोर्चे में एकमात्र अहम नेता बेनीवाल हैं. अहम होने की वजह उनका जाट नेता होना है. जाटों के बारे में माना जाता है कि वे एकजुट होकर एक पार्टी को  वोट देते हैं. राजस्थान में पुरानी कहावत है -जाट की रोटी, जाट का वोट, पहले जाट को. अभी जाटों के पास ऐसा कोई नेता नहीं है, जिसकी पूरे राजस्थान में धमक हो. बेनीवाल का लक्ष्य उसी खालीपन को भरना और निर्विवाद तौर पर जाटों का नेता बनने का है. राज्य में जाटों की तादाद करीब 12 से 14 फीसदी है, बेनीवाल इन्हीं को एकजुट करना चाहते हैं.

यह ऐसा इलेक्शन है, जिसे एंटी इनकंबेंसी के अंडर करंट की तरह से देखा जा रहा है, जो राजे के खिलाफ है. ऐसे में जाटों के लिए स्वाभाविक पसंद कांग्रेस है. बेनीवाल के होने से समुदाय के पास एक और विकल्प होगा, जो कांग्रेस के नुकसान पहुंचाएगा. लेकिन बेनीवाल के लिए चुनौती होगी जाटों को कांग्रेस से दूर रखना. वो इसकी कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने पूर्व मुख्य मंत्री अशोक गहलोत पर हमला बोला है. गहलोत को जाटों में नापसंद किया जाता है. माना जाता है कि उन्होंने कांग्रेस में जाट नेताओं को खत्म कर दिया. हालांकि सचिन पायलट के उभरने से यह रणनीति नाकाम रह सकती है. जाटों के लिए पायलट क्लीन स्लेट की तरह शुरुआत कर रहे हैं. ऐसे में गहलोत के लिए जाटों का गुस्से का कोई मतलब नहीं बचता.

क्या है समस्या

तीसरे मोर्चे के लिए एक और समस्या है बड़े स्तर पर सामाजिक गठबंधन का अभाव. बिहार में लालू यादव या उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के पास मुसलमानों सहित कुछ और जातियों, समुदायों का समर्थन रहा है. लेकिन यहां बेनीवाल के साथ अकेले जाट हैं. ऐसे में 12 से 14  फीसदी वोट किसी उम्मीदवार को हराने में काम आ सकते हैं, लेकिन वे अपने उम्मीदवार को इलेक्शन नहीं जिता सकते.

इसके अलावा, जब भी राजस्थान में कोई ताकतवर समुदाय एक साथ आता दिखता है, तो उसके खिलाफ काउंटर पोलराइजेशन या जवाबी ध्रुवीकरण होने लगता है. समस्या तब नहीं होती, अगर नए फ्रंट के बाकी नेताओं का बड़ा आधार होता. लेकिन बेनीवाल के साथी, जैसे घनश्याम तिवाड़ी अपनी खुद की सीट जीतने की क्षमता नहीं रखते. ऐसे में सिर्फ एक अहम नेता को आगे रखकर नैया पार करना आसान नहीं होगा.

हां, लंबे समय में बेनीवाल के उदय से बीजेपी को फायदा होगा. माना जा रहा है कि नतीजा कुछ भी हो, बीजेपी लोकसभा चुनाव नए नेता के साथ लड़ेगी. नया नेता राजे की जगह लेगा. संभावना है कि बीजेपी या तो राजपूत या ब्राह्मण को नए चेहरे के तौर पर पेश करेगी. अगर बेनीवाल नए नेतृत्व के साथ पार्टी से जुड़ते हैं, तो बीजेपी एक बड़ा सामाजिक गठजोड़ बनाने में कामयाब होगी. ऐसे में उसका वोट बेस विधान सभा चुनावों के मुकाबले काफी बड़ा होगा.

राहुल को चौहान का कानूनी नोटिस


शिवराज ने ट्वीट करते हुए कहा, मिस्टर राहुल गांधी, आपने मेरे और परिवार के खिलाफ व्यापम और पनामा पेपर मामले में झूठे आरोप लगाए 

क्या कोर्ट की कार्यवाही अगले 5 वर्ष तक हो पाएगी ?


कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. राहुल के बयान के खिलाफ मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय ने मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया है. भोपाल कोर्ट में दायर किए गए इस मुकदमें की अगली सुनवाई 3 नवंबर को होगी.

शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि वह मंगलवार को राहुल के खिलाफ मानहानि का केस करेंगे. शिवराज का कहना है कि राहुल ने व्यापम और पनामा पेपर्स जैसे मामलों में उनके परिवार और खुद उनकी छवि को धूमिल किया है.

शिवराज ने ट्वीट करते हुए कहा था, ‘मिस्टर राहुल गांधी, आपने मेरे और परिवार के खिलाफ व्यापम और पनामा पेपर मामले में झूठे आरोप लगाए. अब मैं आपके दिए गए बयानों के लिए मानहानि का केस करूंगा. अब कानून अपना काम करेगा.’

चौहान ने कहा था, ‘कांग्रेस लगातार बीजेपी पर आपत्तिजनक बयान देती है. उसने पीएम मोदी को मौत का सौदागर कहा, नीच और बिच्छू कहा. इस पार्टी ने मुझे नालायक और मदारी कहा. सत्ता से दूर रहने की वजह से कांग्रेस की मानसिक हालत खराब हो गई है.’

सोमवार को झाबुआ में रैली को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा था, ‘पनामा मामले में सीएम शिवराज के बेटे का नाम आने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई. जबकि पाकिस्तान ने पनामा मामले में अपने पूर्व पीएम के खिलाफ कार्रवाई की।’