सम्मान चाहिए पर विकल्प भी खुले हैं चराग पासवान


पासवान ने राहुल की जीत पर कहा, अगर आप किसी की आलोचना करते हैं और वही अच्छा परफॉर्म करे तो उसकी तारीफ करनी चाहिए

कुशवाहा कि तर्ज़ पर यदि सम्मान जनक सीटों का फैसला समय रहते नहीं होता तो विकल्प उनके लिए भी खुले हैं. पासवान को चुनावी मौसम का विशेषज्ञ बताया जाता है, यदि वह NDA छोड़ना चाहते हैं तो वाकई मौसम बदल रहा है.


लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तारीफ की है. उन्होंने कहा, ‘राहुल गांधी में निश्चित ही सकारात्मक बदलाव आया है. कांग्रेस पार्टी को काफी समय बाद जीत हासिल हुई है.’

पासवान ने राहुल की जीत पर कहा, ‘अगर आप किसी की आलोचना करते हैं और वही अच्छा परफॉर्म करे तो उसकी तारीफ करनी चाहिए. उन्होंने मुद्दों को सही तरह से चुना.’

चिराग ने कहा, ‘जिस तरह कांग्रेस ने किसानों और बेरोजगारों की समस्याओं का मुद्दा उठाया, वह बहुत सही समय पर किया गया फैसला था. हम केवल धर्म और मंदिर के पेचीदे मामले में ही उलझे रहे.’

पासवान ने कहा, ‘मैं सरकार से मांग करता हूं कि आने वाले समय में हमें एक बार फिर विकास के मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए.’

गौरतलब है कि मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को शानदार जीत मिली है.

राहुल कि मानें तो – मानो या न मानो मैं ही चैंपियन हूं: राजीव कुमार, वाइस चेयरमैन निति आयोग


नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने कहा, मुझे नहीं लगता जितना काम किसानों के लिए मौजूदा सरकार ने किया है, उतना काम कभी किसी सरकार ने किया है


किसानों की कर्ज माफी को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर निशाना साधा था. इसी के जवाब में नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने राहुल गांधी पर पलटवार किया है. उन्होंने कहा, ‘अब इस पर मैं क्या ही कहूं. ये ऐसा है जैसे मानो या न मानो मैं ही चैंपियन हूं. सरकार सब कुछ देखने के बाद ही काम करती है. मुझे नहीं लगता जितना काम किसानों के लिए मौजूदा सरकार ने किया है, उतना काम कभी किसी सरकार ने किया है.’

नीति आयोग के वाइस चेयरमैन ने आगे कहा कि किसी भी सरकार ने स्वामीनाथन रिपोर्ट को लेकर दिए गए सुझावों को स्वीकार नहीं किया, लेकिन इस सरकार ने किया. इससे किसानों को दिए जाने वाली कर्ज की राशी 10.50 लाख करोड़ रुपए तक बढ़ी है. राहुल गांधी की सरकार को अपना काम करना चाहिए, बाकी सब अपना काम कर रहे हैं.

 

गौरतलब है कि कांग्रेस अध्यक्ष ने किसानों की कर्ज को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी और मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा था. उन्होंने कहा था कि हमने सरकार बनने के छह घंटे में किसानों का कर्ज माफ किया. मोदी जी साढ़े चार साल से सत्ता में है फिर भी उन्होंने एक भी पैसा माफ नहीं किया. मोदी जी कब कर्ज माफ करेंगे. कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा था कि, विधानसभा चुनावों में जो ये जीत मिली है, ये देश के गरीब, किसान और छोटे दुकानदारों की जीत है. जब तक किसानों का कर्ज माफ नहीं हो जाता हम पीएम मोदी को सोने नहीं देंगे. सभी विपक्षी दल एक साथ इसकी मांग करेंगे.


वैसे पूछते हैं:

एक और कांग्रेस अपने पुराने चाहवानों मल्लय नीरव और चोकसी को ले कर उनके कर्जों को लेकर मोदी सरकार को घेरती है और कर्जों कि राशी कि वापसी कि बात करती है और उस पैसे को मध्य वर्ग से कि गयी ठगी बताती है वहीँ अब वह किसानों का अरबों रूपये का लों माफ़ कर किस मद से पैसा वापिस देगी?
क्या मध्य वर्ग में कर्जे से जूझते और परिवार सहित आत्महत्या करते लोंगों को और निचोड़ेग?
क्या यह ठीक नहीं होगा कि इस प्रकार के चुनावी वायदे सरकारों को अपने पार्टी फंड से ही चुकाना चाहिए?

टाइगर अभी जिंदा है : शिवराजसिंह चौहान


शिवराज सिंह से महिलाएं और बच्चे लिपट कर रो पड़े


आज शिवराज सिंह चौहान अपने विधानसभा क्षेत्र बुधनी पहुंचे जहां वह अपने क्षेत्र के लोगों का आभार प्रगट करने गए. वहां उन्हें मिलने कई औरतों का हुजूम भी मिलने पहुंचा. सभी औरतें शिवराज से बहुत भावपूर्ण ढंग से मिलीं.

बच्चे शिवराज सिंह चौहान को इन्हीं महिलाओं के कारण मामा शिवराज  कह कर बुलाते हैं. माहौल तब और भी ग़मगीन हो गया जब यही महिलायें पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से लिपट कर रो पड़ीं. उन्हें शिवराज के पुन: मुख्यमंत्री न बनने का दुःख साल रहा था.

वहीँ कई महिलायें तो यह कहतीं भी ही सुनीं गयीं कि भैया अब हमारा क्या होगा?

तब भर्राए गले शिव राज सिंह ने कहा, “मैं हूँ न, टाइगर अभी जिंदा है.”

लोक सभा चुनाव अभी दूर हैं, कांग्रेस भी मामा शिवराज कि मातृशक्ति को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी अब देखना है कि मातृशक्ति शिवराज को पुन: अपने आशीर्वाद से कैसे सराबोर करतीं हैं.

1984 नरसंहार का साया मुख्यमंत्री कमलनाथ की कुर्सी पर


कमलनाथ के खिलाफ मुख्तियार सिंह नाम के शख्स द्वारा हलफनामा दिया गया था. दंगा मामलों में बंद कर दिए गए 232 मामलों से यह भी एक है. 

वह 1984 में कांग्रेस के लोकसभा सांसद थे, जब इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी और जब उन्होंने दंगाई हत्यारी भीड़ की अगुवाई की थी.

वह 1 नवंबर 1984 को गुरुद्वारा रकाबगंज में मौजूद थे, जब दो सिख जलाए गए थे. कुछ लोग आरोप लगाते हैं कि वह उस भीड़ की अगुवाई कर रहे थे, जिसने दो सिख पुरुषों की हत्या की दी


दिल्ली में सिख विरोधी दंगों के 34 साल बाद, हाई कोर्ट ने कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार को दोषी ठहराया है. यह एक कठोर फैसला है जो दिल्ली की जनता के लिए दशकों पहले दे दिया जाना चाहिए था. सज्जन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है.

सिख विरोधी दंगों में उनकी भागीदारी, निर्दोष सिखों की हत्या करने और उनकी दुकानों व घरों को लूटने वालों की अगुवाई करने का दाग 1984 के बाद से हमेशा उन पर रहा, लेकिन यह कांग्रेस नेतृत्व को उन्हें महत्वपूर्ण पद देने में कभी रुकावट नहीं बना. वह कांग्रेस पार्टी के टिकट पर 1991 में 10वीं लोकसभा और 2004 में 14वीं लोकसभा के लिए चुने गए. वह 1984 में कांग्रेस के लोकसभा सांसद थे, जब इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी और जब उन्होंने दंगाई हत्यारी भीड़ की अगुवाई की थी.

इस तरह वह कांग्रेस के कोई साधारण नेता नहीं हैं. उन्होंने एच.के.एल. भगत (स्वर्गीय) और जगदीश टाइटलर के साथ पार्टी की दिल्ली इकाई को नियंत्रित किया. ये तीनों बाहरी दिल्ली, उत्तरी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली के सांसद थे. दंगों में उनकी भागीदारी के बारे में आम लोगों के जेहन में कोई शक नहीं था. कहते हैं कि न्याय में देरी, न्याय से वंचित करने के समान है. लेकिन निचली अदालत द्वारा सज्जन कुमार को बरी करने के फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले में पलट देने से पीड़ितों के परिवारों के लिए देरी से ही सही, इंतजार का अंत हुआ.

कांग्रेस नेता कमलनाथ संजय गाधी के अच्छे मित्र थे (फोटो: फेसबुक से साभार)

दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है. यह ऐसे समय में आया है जब पार्टी तीन हिंदीभाषी राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी से सत्ता छीनने के बाद उत्सव के मूड में थी.

यह फैसला 1984 के नरसंहार से कांग्रेस के सीधे संबंध का पहला प्रत्यक्ष और निर्णायक सबूत पेश करता है. अब तक, कांग्रेस के प्रतिद्वंद्वियों और आलोचकों के पास राजीव गांधी के बयान के रूप में सिर्फ एक परिस्थितिजन्य सबूत था, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘कुछ दिन के लिए लोगों को लगा कि भारत हिल रहा है, लेकिन जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती थोड़ा हिलती है.’ अब इस टिप्पणी को नया अर्थ मिलेगा, नए राजनीतिक अर्थ के साथ, खासकर तब जबकि संसदीय चुनाव मात्र चार महीने दूर हैं.

कैसी विडंबना है कि उसी समय जब हाईकोर्ट आरोपी सज्जन कुमार को दोषी ठहराते हुए अपना फैसला सुना रहा था, एक और प्रमुख नेता कमलनाथ जिनका नाम दिल्ली के 1984 के सिख दंगों में आया था, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभालने की तैयारी कर रहे थे. हाईकोर्ट द्वारा ऐतिहासिक फैसला सुनाए जाने के तीन घंटे बाद अकाली दल, बीजेपी के एक वर्ग और सिख समुदाय के विरोध प्रदर्शन के बीच भोपाल में एक सार्वजनिक समारोह में कमलनाथ ने गवर्नर आनंदीबेन पटेल के सामने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

हालांकि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई पुख्ता आपराधिक मामला नहीं है, लेकिन 1984 का दाग उनकी स्थिति को थोड़ा असहज बना रहा है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एसआईटी ने कई मामलों को फिर से खोल दिया है. दंगों के मामलों को दोबारा खोलने और मुकदमों की समीक्षा के चलते ही बीते कुछ हफ्तों में कई आरोपी दोषी साबित हुए हैं. कमलनाथ यही ख्वाहिश करेंगे कि उनका मामला फिर से ना खोला जाए.

कमलनाथ 1984 में पहली बार सांसद बने थे. वह 1 नवंबर 1984 को गुरुद्वारा रकाबगंज में मौजूद थे, जब दो सिख जलाए गए थे. कुछ लोग आरोप लगाते हैं कि वह उस भीड़ की अगुवाई कर रहे थे, जिसने दो सिख पुरुषों की हत्या की दी, लेकिन कमलनाथ का बचाव यह है कि वह तो भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे थे.

अपनी पुस्तक ‘1984: द एंटी-सिख राइट एंड आफ्टर’ में पत्रकार संजय सूरी ने विस्तार से उस दिन की घटना का आंखोंदेखा हाल बयान किया है, ‘मुझे गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब के बाहर चीखती भीड़ के साथ कमलनाथ के दिखने की उम्मीद नहीं थी, जहां अभी-अभी दो सिखों को जिंदा जला दिया गया था.

लेकिन वह वहां थे, दमकते सफेद कुर्ता-पाजामे में थोड़ा सा किनारे, लेकिन सफेद अंबेसडर कार से बहुत दूर नहीं, जिसकी छत पर लाल बत्ती लगी थी और बंपर पर छोटा सा राष्ट्रध्वज लगा था, जो कि इनके मंत्री पद का कोई शख्स होने या कम से कम आधिकारिक रूप से महत्वपूर्ण शख्स होने की गवाही दे रहा था… यह 1 नवंबर की दोपहर थी, इंदिरा गांधी की हत्या एक दिन पहले हुई थी.

उनका पार्थिव शरीर गुरुद्वारा रकाबगंज के करीब तीन मूर्ति भवन में लोगों के दर्शन के लिए रखा था. सुबह से जमा हो रहे शोकाकुल समर्थक रोते हुए कह रहे थे, ‘खून का बदला खून.’ गुरुद्वारा रकाबगंज तीन मूर्ति भवन से निकटतम निशाना था, जहां खून के बदले की मांग को कार्रवाई में बदला जा सकता था. वहां सिखों का मिलना पक्का था, और हमले के लिए गुरुद्वारा तो था ही…’

कमलनाथ के खिलाफ मुख्तियार सिंह नाम के शख्स द्वारा हलफनामा दिया गया था. दंगा मामलों में बंद कर दिए गए 232 मामलों से यह भी एक है. अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के खिलाफ इस मामले सहित इन सभी मामलों को फिर से खोलने की नई मांग उठाई जा रही है.

इंदिरा गांधी की हत्या और दंगों के फौरन बाद हुए संसदीय चुनावों में कमलनाथ फिर से चुने गए. तब से उन्होंने कभी पीछे पलट कर नहीं देखा, कई बार संसद के लिए चुने गए, यूपीए-1 और यूपीए-2 में वाणिज्य और उद्योग, भूतल परिवहन, संसदीय मामले, शहरी विकास सहित विभिन्न मंत्री पदों पर रहे. मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की राह में ज्योतिरादित्य सिंधिया की चुनौती को उन्होंने आसानी से निपटा दिया. कमलनाथ ने जिंदगी में जिस दिन अपनी सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा को पूरा किया, उसी दिन 1984 के दंगों का प्रेत उनके सिर पर मंडराने के लिए वापस लौट आया है.

Why are they [the government and the BJP) running away from a debate in Parliament,” Rahul


“We promised to waive loans in 10 days. In two States, we did it in six hours,” he tells reporters outside the Parliament hall.


Congress president Rahul Gandhi on Tuesday said he would not let Prime Minister Narendra Modi sleep until all farms loans were waived.

The government had turned a blind eye to “loans given to 15 top industrialists of the country, including Reliance Group chairman Anil Ambani,” but made no effort to alleviate the woes of farmers in the last four years, he said.

“We promised to waive loans in 10 days. In two States, we did it in six hours,” Mr. Gandhi told reporters outside the Parliament hall.

He alleged that the “loans of friends of Mr. Modi and BJP president Amit Shah” had been waived. About Rs. 3.5 lakh crore was waived for 15 corporates, including for Mr. Anil Ambani. Poor people and small shopkeepers were on one side and the group of industrialists on the other. The Congress and all other Opposition parties would stand by the poor and others, he said.

Terming demonetisation the world’s biggest scam, he accused the government of having stolen from the public, shopkeepers and farmers.

‘More typos coming now’

“There will be many more typos coming now,” he said when asked about the government’s claim on the “error” in the affidavit given to the Supreme Court on the Rafale issue.

“We will force a joint parliamentary committee on the Rafale issue. Why are they [the government and the BJP) running away from a debate in Parliament,” he said.

साथी दलों को क्या राहुल मंजूर नहीं?


मतलब साफ है ‘मोदी- विरोध’ तो इन सभी विपक्षी कुनबे के नेताओं को मंजूर तो है, लेकिन, मोदी विरोध के नाम पर एकजुट होकर किसी एक को ‘नेता’ मानने के सवाल पर इनकी आपसी महत्वाकांक्षा टकराने लगती है.


डीएमके प्रमुख एम.के. स्टालिन ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने का प्रस्ताव दिया है. 16 दिसंबर को चेन्नई के डीएमके मुख्यालय में एम. करुनानिधि की प्रतिमा के अनावरण के मौके पर आयोजित कार्यक्रम के मौके पर आयोजित समारोह में पार्टी प्रमुख की तरफ से यह बयान दिया गया.

एम.के. स्टालिन ने जब यह बयान दिया उस वक्त कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी मंच पर मौजूद थे. इसके अलावा टीडीपी अध्यक्ष और आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन, फिल्म स्टार और नेता रजनीकांत, बीजेपी के बागी नेता शत्रुघ्न सिन्हा और दक्षिण भारत के कई जाने-माने नेता और अभिनेता भी उस वक्त कार्यक्रम के दौरान मंच पर मौजूद थे.

इन सभी नेताओं की मौजूदगी में स्टालिन की तरफ से राहुल गांधी के बारे में दिया गया यह बयान कांग्रेस को खूब पसंद आ रहा होगा. जो बात कांग्रेस आलाकमान अबतक खुलकर नहीं बोल पा रहा था या विपक्षी एकता के नाम पर कुछ वक्त के लिए चुप्पी साधना ही मुनासिब समझ रहा था, वो काम डीएमके प्रमुख ने कर दी है. स्टालिन ने अपने बयान के आधार पर अब 2019 की लड़ाई को ‘मोदी बनाम राहुल’ करने की कोशिश कर दी है.

हालांकि, इसी साल मई में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के वक्त राहुल गांधी ने एक सवाल के जवाब में अपने को प्रधानमंत्री पद के लिए तैयार बताया था. लेकिन, बाद में वे उस बयान से पलट गए थे. राहुल गांधी और उनकी पार्टी के रुख में ये नरमी सभी बीजेपी विरोधी दलों को साधने के लिए की गई थी, क्योंकि उस वक्त कांग्रेस की हालत ऐसी थी कि वो महज पंजाब तक ही सिमट कर रह गई थी.

लेकिन, अब स्टालिन का बयान ऐसे वक्त में आया है जब कांग्रेस ने तीन राज्यों में सरकार बना ली है. सोमवार 17 दिसंबर को राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जब कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों का शपथग्रहण हुआ है, तो, ठीक उसके एक दिन पहले ही स्टालिन ने कांग्रेस अध्यक्ष के बढ़े हुए कद का एहसास करा दिया है.

लेकिन, स्टालिन की यह ‘पैरवी’ मोदी के खिलाफ विपक्षी एकजुटता में लगे दूसरे दलों को रास नहीं आ रही है. इसकी एक झलक स्टालिन के बयान के अगले ही दिन दिख गई जब राजस्थान समेत तीनों राज्यों में ‘कांग्रेसी सरकार’ के शपथ ग्रहण समारोह में जिस विपक्षी एकजुटता की उम्मीद कांग्रेस कर रही थी वो नहीं दिखी.

शपथग्रहण समारोह में दिखाने के लिए मंच पर तो ऐसे बहुत सारे नेता थे, मसलन, डीएमके अध्यक्ष एम के स्टालिन, टी.आर. बालू और कनिमोझी, एनसीपी से शरद पवार औऱ प्रफुल्ल पटेल, झारखंड से पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी, कर्नाटक से जेडीएस के नेता पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी और जेडीएस के दूसरे नेता दानिश अली मौजूद थे. इसके अलावा आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, एलजेडी से शरद यादव और आरजेडी से तेजस्वी यादव मंच पर मौजूद रहे. कांग्रेस की तरफ से अध्यक्ष राहुल गांधी के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और लोकसभा में नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भी मौजूद रहे.

लेकिन, इन सभी विपक्षी नेताओं की मौजूदगी के बीच विपक्षी एकता में दरार दिख रही थी. यह दरार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अलावा यूपी के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों अखिलेश यादव और मायावती की गैर-मौजूदगी के तौर पर दिख रही थी.

गौरतलब है कि इसी साल कर्नाटक में जब जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार बन रही थी तो उस वक्त मोदी विरोधी मोर्चा के तौर पर विपक्षी कुनबे की एकता प्रदर्शित करने के लिए विपक्ष के सभी नेता पहुंचे थे. उस वक्त सोनिया गांधी के साथ मायावती की ‘केमेस्ट्री’ की भी चर्चा थी तो राहुल के साथ अखिलेश यादव की जुगलबंदी भी चर्चा में रही. लेफ्ट से लेकर टीएमसी तक सभी नेता एक साथ एक मंच पर दिख रहे थे. लेकिन, हकीकत यही है कि उस वक्त कांग्रेस के नहीं बल्की जेडीएस के नेता कुमारस्वामी मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रह थे.

लेकिन, इन छह महीने बाद तीन-तीन राज्यों में बीजेपी को पटखनी देने के बाद जब कांग्रेस सत्ता में आई है तो इस वक्त मंच पर ममता, माया, अखिलेश के अलावा लेफ्ट के नेता भी नदारद दिख रहे थे. तो क्या इन नेताओं को एम के स्टालिन की वो बात नागवार गुजरी है? क्या ये नेता राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं?

फिलहाल तो हालात देखकर ऐसा ही लग रहा है. अखिलेश यादव और मायावती पहले ही यूपी में महागठबंधन की बात कर रहे हैं. लेकिन, उन्हें, महागठबंधन के भीतर कांग्रेस का साथ मंजूर नहीं. इन दोनों को लग रहा है कि कांग्रेस के साथ रहने और नहीं रहने से यूपी के भीतर कोई खास फर्क नहीं पड़ता है. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ ‘हाथ’ मिला चुके अखिलेश यादव इस बार कांग्रेस के साथ जाने से कतरा रहे हैं.

कुछ यही हाल मायावती का भी है. इन दोनों नेताओं को लगता है कि यूपी में कांग्रेस से उनको फायदा तो नहीं होगा लेकिन, उनके साथ गठबंधन में रहकर कांग्रेस कुछ सीटें जीत सकती है. यानी फायदा कांग्रेस को जरूर होगा. नेतृत्व के मामले में लोकसभा चुनाव बाद फैसला लेने की बात इनकी तरफ से हो रही है. ऐसा कर ये दोनों नेता अपना विकल्प खुला रखना चाह रहे हैं.

उधर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मुलाकात कर चुकी हैं. अपने दिल्ली दौरे के वक्त ममता बनर्जी ने मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री के मसले पर लोकसभा चुनाव बाद फैसला करने की बात कही थी. माना जा रहा है कि ममता बनर्जी की भी ‘ख्वाहिशें’ बड़ी हैं, ऐसे में एम के स्टालिन का बयान ममता बनर्जी को तो नागवार गुजरेगा ही.

11 दिसंबर को संसद का सत्र शुरू होने से एक दिन पहले दिल्ली में लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर मंथन को लेकर विपक्षी दलों की बैठक हुई थी, लेकिन, इस बैठक से भी अखिलेश यादव और मायावती ने दूरी बना ली. इन दोनों नेताओं ने अपने किसी प्रतिनिधि को भी इस बैठक में नहीं भेजा. यह साफ संकेत है कि ये दोनों ही नेता अभी अपने पत्ते नहीं खोलना चाहते. वे नहीं चाहते कि चुनाव से पहले यूपी में ऐसा कोई भी गठबंधन हो, जिसमें कांग्रेस भी शामिल रहे.

मतलब साफ है ‘मोदी- विरोध’ तो इन सभी विपक्षी कुनबे के नेताओं को मंजूर तो है, लेकिन, मोदी विरोध के नाम पर एकजुट होकर किसी एक को ‘नेता’ मानने के सवाल पर इनकी आपसी महत्वाकांक्षा टकराने लगती है. एम.के. स्टालिन के बयान ने भले ही बयान देकर मोदी बनाम राहुल की लड़ाई को हवा दे दी है, लेकिन, इस लाइन पर आगे बढ़ पाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा.

रक्षा सौदों को कांग्रेस Punching Bag और Funding Source समझती थी: प्रधानमंत्री मोदी


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र के पहले दौरे में ही आज रायबरेली को 1100 करोड़ की सौगात देने के साथ पहले की सरकारों पर निशाना साधा। जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी को निशाने पर रखा।


रायबरेली:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के साथ ही भाजपा का विरोध करने वाली पार्टियों पर निशाना साधा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कांग्रेस रक्षा सौदों के लेकर इसलिए भड़की है क्योंकि उसमें ‘क्वात्रोची मामा’ या फिर ‘क्रिश्चेन मिशेल अंकल’ नहीं है। उन्होंने कहा कि भाइयों-बहनों देश में स्वतंत्रता के बाद से ही कुछ लोगों का शासन रहा है। कोई किसी का मामा, रिश्तेदार सेंध लगाते रहे हैं। अब सब रुक गया है तो फिर दर्द होना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि भाजपा विरोधी के साथ कांग्रेस के लोग देश को कमजोर करने वालों के साथ हैं। क्या कारण हैं कि भाजपा के खिलाफ यहां के नेता भाषण देते हैं और ताली पाकिस्तान में बजती है।आज कांग्रेस व विरोधी उनके साथ खड़े हैं जो देश को कमजोर करना चाहते हैं। आप बताइए देश को सेना ताकतवर होनी चाहिए या नही। पीएम मोदी ने कहा कि आज दो पक्ष हैं, एक पक्ष सरकार सच्चाई का है, एक पक्ष देश को कमजोर कर रहा है। यह सब लोग मोदी पर वो किसी भी तरह एक दाग लगा देना चाहते हैं, मैं सब जानता हूँ, मगर इसके लिए देश की सुरक्षा के साथ क्यों खिलवाड़ कर रहे है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारा एक ही मंत्र है। इसी मंत्र पर केंद्र के साथ ही उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार भी काम कर रही है। हम तो देश के सामान्य से सामान्य नागरिक के जीवन में हम परिवर्तन ला रहे हैं। रायबरेली में ही दो लाख महिलाओ को मुफ्त गैस कनेक्शन दिए। सरकार चाहे केंद्र की हो या योगी जी की हमारा एक ही मंत्र है, सबका साथ सबका विकास। कांग्रेस इनको दबा रही है, कांग्रेस की साजिश को हमारी सरकार अब घर घर जाकर पहुंचाएगी। पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने देश के किसानों के साथ बड़ा धोखा किया है। कर्नाटक में सैकड़ों किसानों के वारंट निकल रहे हैं। कांग्रेस ने कर्ज माफी पर झूठे वादे किए। सौ रुपये में डेढ़ रूपये ज्यादा से ज्यादा पांच रूपये का प्रीमियम लिया गया। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से सरकार में किसानों की सारी समस्याओं को दूर किया। किसके दबाव में कांग्रेस ने यूरिया का शत प्रतिशत नीम कोटिंग किया। इस एक फैसले से हमारे देश के किसानों को 60 हजार करोड़ का फायदा होगा। खरीफ व रबी की 22 फसलों पर एमएसपी लागू किया गया। इनका जवाब कांग्रेस कभी नही देगी। किसके दबाव में एमएसपी को दाब दिया। कांग्रेस ने स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को क्यों लागू नहीं किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि हम किसानों का संकट दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। पहली बार 70 वर्ष में हमारी सरकार ने किसानों के लिए नीतियां बनाकर लागू किया। कांग्रेस के राज में किसी की कोई परवाह नहीं की। वन रैंक वन पेंशन हमने लागू की। जिस पार्टी के लोग सेना की सर्जिकल स्ट्राइक पर उंगली उठाते हैं, उनसे क्या उम्मीद करें। जिस पार्टी के लोग हमारे सेनाध्यक्ष को गुंडा कहते है और गुंडा को पार्टी में ऊंचे पद पर बैठाए हैं उनसे क्या उम्मीद कर सकते हैं। जब ईमानदारी से सौदे होते हैं तो कांग्रेस बौखला जाती है। एचएएल को 1400 करोड़ की मंजूरी दी गयी। हमने 2016 में 83 नए तेजस विमान खरीदने की स्वीकृति दी। इसे तेज करने की कोशिश नही हुई। इस साल अप्रैल में भारत की कंपनी एक लाख 16 हजार बुलेटप्रूफ जैकेट बना रही है। सरकार ने ऑर्डर दे दिया। हमने 2014 में सरकार बनने के बाद 2016 जैकेट दिए। हमारी सेना की सुरक्षा के प्रति कांग्रेस से 2009 में भारतीय सेना ने लाखों बुलेटप्रूफ जैकेट मांगे मगर 2014 तक नही खरीदा। सेना के लिए मैं कड़ें से कड़े फैसले लेने में पीछे नही हटूंगा। उन माताओं बहनों, बच्चों का मैं जवाबदार हूँ जिंनके घरवाले सेना में हैं। जान की बाजी लगाने वाले सैनिकों को कोई दिक्कत नहीं होने दूंगा। हम पूरा प्रयास कर रहे हैं कि भारत को सेनाएं किसी से कम न हों। जब देश की सुरक्षा की बात हो, सेना की बात हो, तब एनडीए सरकार सिर्फ राष्ट्रहित का ध्यान रखती है। जो सौदा भाजपा सरकार सुरक्षा के लिए कर रही है, उसमे कोई दाग नहीं है। इस घोटाले में कांग्रेस ने अपना वकील बचाने को भेज दिया। कांग्रेस सरकार के क्वात्रोची मामा बोफोर्स घोटाले वाले को देश माफ नहीं करेगा। करगिल युद्ध के बाद वायुसेना को मजबूत करने को जरूरत थी मगर कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया। सेना के प्रति कांग्रेस सरकार का रवैया क्या रहा इसके लिए देश उन्हें माफ नही करेगा। हमारे लिए दल से बड़ा देश है और जीवन पर्यंत रहेगा। झूठ बोलने वालों पर सत्य बोलने वालों की विजय होती है। सच को श्रृंगार की जरूरत नहीं होती, झूठ चाहे जितना बोलो इसमें जान नहीं होती। इन लोगों के लिए हमारी सेना झूठी हैं, हमारी सेना की रक्षा मंत्री झूठी हैं, हमारे वायु सेना के अफसर भी झूठे हैं। झूठ की पंक्तियों को कुछ लोगों ने जीवन का मूल मंत्र बना लिया है। कांग्रेस के समय तेजस विमान से जुड़ी हर कड़ी को कमजोर किया गया। पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस के पापों को बताने के लिए पूरा सपताह कम पड़ जायेगा।

पीएम मोदी ने कहा कि जिस भारत मां के नारों से गौरव होता है कुछ लोग इस जयघोष पर शर्मिंदगी महसूस करते हैं। मैं तो सेना के शौर्य समर्पण के प्रति प्रहरियों का गौरव गान करके नमन करता हूँ। युद्ध में शामिल हर सैनिक को मैं नमन करता हूँ। 1971 में आज के ही दिन भारत की सेना ने अराजकता व आतंक को धूल चटाई थी। देश के इतिहास में आज का दिन एक और वजह से विशेष है। आपलोग बताइए कि देश की सेना मजबूत होनी चाहिए कि नहीं। उन्होंने कहा कांग्रेस को उसमें भी दिक्कत है। रामचरितमानस में एक चौपाई है झूठै लेना झूठे देना झूठै भोजन झूठ चबेना। आज कुछ लोगों को सत्य हजम नहीं हो पा रहा है। भारत आज सबसे बड़ा देश है। आज जब मैं देश के सपने देखता हूँ। भाजपा पार्टी राष्ट्रहित में सोचती है। इसके लिए हमको कड़े से कड़े फैसले लेने में भी कोई हिचक नहीं है। उन्होंने कहा अगले वर्ष तक देश के सैनिकों को बड़ी संख्या में बुलेटप्रूफ जैकेट प्रदान की जाएगी। पीएम मोदी ने कहा कि देश को यह भी जानकारी देना चाहता हूं कि सेना के जवानों के लिए बुलेटप्रूफ जैकेट भी देश की कंपनी बना रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा किआप सोचिए 2007 में स्वीकृत हुई रेल कोच 2010 में फैक्ट्री बनकर तैयार हो गयी। इसके बाद भी उत्पादन शून्य था। इससे पता चलता है कि पहले की सरकारों ने देश के संसाधनों के साथ अन्याय किया। इसकी गवाही रेल कोच फैक्ट्री दे रही है। अब जिस गति से काम हो रहा है वह सराहनीय है। उन्होंने कहा कि यहां मंच पर आने से पहले रेल कोच मॉडर्न फैक्ट्री में था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अब आने वाले समय में यहां से 5000 कोच प्रतिवर्ष बनाए जाएंगे।अभी तो प्रतिवर्ष तीन हजार कोच बनेंगे। मैं चाहूंगा अगले वर्ष दो गुना डिब्बे बनें। उन्होंने कहा कि यह हमारी सरकार के काम का नतीजा है कि बीते वर्ष 711 कोच बने। रायबरेली के नौ जवान बहुत अच्छे हैं। यहां के लोगों को यहां काम मिले, हम इसके प्रयास में लगे हैं। भाइयों बहनों मैं छोटा सोचने की आदत नहीं रखता। भाजपा सरकार में नई मशीन लगाई जा रही हैं। हमारी सरकार आने के तीन महीने के भीतर ऐसा कोच निकला जो पूरी तरह रायबरेली रेल कोच में बना हुआ था। हालत ये थी कि 2014 तक यहां की तीन प्रतिशत मशीन काम कर रही थे। चार साल तक इस फैक्ट्री में कपूरथला से लाकर पेंच कस रहे थे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज रायबरेली में 1100 करोड़ के प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया है। मैं तो रायबरेली के लोगों व भूमि को नमन करता हूं। इसी भूमि पर पण्डित अमोल शर्मा हुए। यह तो बीरा पासी, राणा बेनी माधव के बलिदान की भूमि है। आज मैं उस भूमि पर हूँ जिसने साहित्य, राजनीति सहित सबको दिशा दिखाई है। इस भूमि के साथ न्याय नहीं किया गया। प्रधानमंत्री ने रायबरेली में कोच फ़ैक्टरी में उत्पादित 900वें रेल डिब्बे व हमसफर रेक को हरी झंडी दिखा कर देश को समर्पित किया। एल्युमिनियम के हल्के कोच बनाकर देश दुनिया की सबसे बड़ी फैक्ट्री बनाना हमारा लक्ष्य है। रेलवे, हाइवे, एयरवे और मोटरवे आदि के लिए दिन रात काम हो रहा है। थोड़ी देर पहले ही बांदा तक जाने वाली सड़क का उद्घाटन किया है। रायबरेली भी स्वस्थ रहे और अपने आसपासो के लोगों को स्वस्थ्य रखें इस नाते मेडिकल कालेज समेत कई योजना दी गई है। हमारे पीएम आवास लोगों की खुशहाली पहुंचा रही है। उन्होंने कहा कि आज के दिन देश के वीर सपूतों ने वलिदान दिया था। उनके सम्मान में जयकारे लगवाए।

रायबरेली व अमेठी का वास्तविक विकास 2014 के बाद से हुआ : योगी आदित्यनाथ

योगी आदित्यनाथ ने कहा रायबरेली का वास्तविक विकास 2014 के बाद से ही हुआहै। प्रधानमंंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना किसी भेदभाव के देश के साथ प्रदेश के हर जिले तथा गांव के विकास के बारे में योजना बनाकर उसका क्रियान्वयन किया। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अभी तक रायबरेली विकास के लिए तड़प रहा था। यहां 2014 के बाद से तेजी से विकास के नए आयाम गढ़े जा रहे हैं। यहां पर जुलाई में एम्स शुरू हुआ। सौभाग्य योजना में बिजली 1345 गांव पहुंचाई गई। केंद्र सरकार ने अमेठी और रायबरेली में भी पूरी ईमानदारी से काम किया है। कोई भेदभाव नहीं किया है। पहले की सरकारों ने कभी भी ईमानदारी से कार्य नहीं किया।

उन्होंने कहा कि रायबरेली में डेढ़ वर्ष में 23430 पीएम आवास बनाये गए है। आठ लाख 85 हजार पीएम आवास उत्तर प्रदेश में बन चुके हैं। पीएम आवास योजना ने मील का पत्थर स्थापित किया। स्वच्छ भारत मिशन में रायबरेली में 311858 तथा अमेठी में 214974 इज्जत घर बनाए गए हैं। हम अमेठी में 934 गांव के 5239 मजरों में विद्युतीकरण का कार्य कर रहे हैं।

रायबरेली में 7013 मजरों में विद्युतीकरण कर नि:शुल्क कनेक्शन दिये गए। रायबरेली के 3500 गांव सौर ऊर्जा से युक्त किये गए। सूबे के वीवीआइपी जनपद में सौभाग्य योजना में 1547 गाँव में विद्युतीकरण किया गया। सौभाग्य योजना से प्रत्येक घर में बिजली मिल रही है। उन्होंने कहा कि इससे पहले जाति के आधार पर लोगों ने बांटने का काम किया है। योगी आदित्यनाथ ने कहा रायबरेली की रेल फैक्ट्री नौजवानों को नौकरी दे रही है साथ ही मेक इन इंडिया के स्वरूप को भी साकार कर रही है। रायबरेली विकास के लिए तड़प रहा था। वहां 2014 के बाद से विकास के नए आयाम गढ़े जा रहे हैं। जुलाई में एम्स शुरू हुआ। सौभाग्य योजना में बिजली 1345 गांव पहुंचाई गई। उन्होंने, राज्यपाल, विधानसभा अध्यक्ष, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और क्षेत्रीय विधायक एमएलसी आदि का नाम लेकर उदबोधन शुरू किया।इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रायबरेली को 1100 करोड़ का तोहफा देने के साथ मार्डन रेल कोच फैक्ट्री का निरीक्षण किया। उन्होंने हमसफर एक्सप्रेस के 900वें मार्डन कोच का भी शिलान्यास किया। पीएम मोदी ने हमसफर एक्सप्रेस के 900वें कोच को राष्ट्र को समर्पित किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीधे मार्डन कोच फैक्ट्री का रुख किया। उन्होंने कोच फैक्ट्री का निरीक्षण किया। इसके बाद यहां पर दो हजार रेल डिब्बों की उत्पादन क्षमता के लिए विस्तारीकरण कार्य का शुभारंभ करने के साथ कोच फैक्ट्री के इस वित्तीय वर्ष में उत्पादित 900वें रेल डिब्बे व हमसफर रैक को राष्ट्र को समर्पित किया। उनके साथ रेल मंत्री पीयूष गोयल भी हैं। रायबरेली में उनका पहला हेलीकॉप्टर 10.20, दूसरा 10:22 पर तथा तीसरा 10.23 पर रेल कोच के कारखाना परिसर में बने हेलीपैड पर पहुंचा। वहां पर उनकी अगवानी तथा स्वागत किया गया। उधर सभा स्थल पर जाने के लिए यहां पर जनसैलाब उमड़ा है। पांडाल के सभी प्रवेश द्वारों पर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था होने के कारण उत्साहित कार्यकर्ताओं और सतर्क सुरक्षाकर्मियों के बीच कई बार तकरार भी हुई। सुरक्षा बलों ने काली जैकेट पहने लोगो को वापस लौटाया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी कुर्सी संभालने के बाद आज पहली बार कांग्रेस के सनातन गढ़ रायबरेली में चुनावी शंखनाद करेंगे। पीएम मोदी के साथ यहां पर आधा दर्जन केंद्रीय मंत्री के साथ उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक व सीएम योगी आदित्यनाथ भी है।सोनिया गांधी और उनसे पहले नेहरू-गांधी परिवार का राजनीतिक दुर्ग रायबरेली का पीएम नरेंद्र मोदी का यह पहला दौरा होगा। पीएम नरेंद्र मोदी रायबरेली को लगभग 1100 करोड़ रुपये की सौगात देंगे। कांग्रेस का गढ़ रायबरेली को माना जाता रहा है। बीते साढ़े चार सालों में भाजपा ने इसे दरकाने की हर कोशिश की। उसे हल्की सफलता भी मिली। छह महीने पूर्व गांधी परिवार के करीबी कुनबे को साथ जोडऩे में सफल हुई। भाजपा अब आक्रामक मुद्रा में है। प्रदेश की सत्ता भी इस जिले पर पैनी निगाह रखे है। पांच राज्यों के आशा विपरीत चुनाव परिणाम के बाद पीएम जनसभा में जब बोलेंगे, तो कांग्रेस ही उनके निशाने पर होगी।प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा राजनीति के लिहाज से भी बहुत अहम है।

प्रदेश की इस लोकसभा सीट को गांधी परिवार और कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है। यहां की सांसद यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं और कभी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इस क्षेत्र से चुनाव लड़ चुकी हैं। यहां की ही जनता ने एक बार इंदिरा गांधी को हरा भी दिया था। उसके बाद से सिर्फ दो बार ही यह सीट कांग्रेस के खाते में नहीं आई। प्रधानमंत्री का यहां आना महत्वपूर्ण है। इससे यह संदेश जाएगा कि भारत उसके कारखानों में तैयार डिब्बों के निर्यात के लिए प्रतिस्पर्धी बाजार में उतर रहा है। उनका यह दौरा इस लिहाज से काफी अहम है कि भारत की उच्च गुणवत्ता के रेल डिब्बों के विनिर्माण और निर्यात बाजार पर नजर है। रेलवे ने कुछ महीने पहले ही प्रस्ताव दिया था कि वह ऐसे देशों के लिए बुलेट ट्रेन के डिब्बे बनाने और निर्यात करने को इच्छुक है, जो तेज रफ्तार गलियारे का निर्माण कर रहे हैं। कारखाने को लेकर पहले ही कई देश अपनी रूचि दिखा चुके हैं। कोरिया, जापान, जर्मनी, चीन और ताइवान के अधिकारी कारखाने का दौरा कर चुके हैं। रेलवे के एक अधिकारी ने कहा कि कई देश कम उत्पादन लागत की वजह से भारत का इस्तेमाल विनिर्माण के प्रमुख केंद्र के रूप में कर सकते हैं। माडर्न कोच फैक्टरी (एमसीएफ)में पहली बार पूरे डिब्बे का विनिर्माण रोबोट ने किया है। एक किलोमीटर लंबी उत्पादन लाइन में रोबोट को समानांतर तौर पर काम में लगाया गया है, जहां वे डिब्बों पर कुछ-कुछ काम कर रहे हैं। वर्तमान में 70 रोबोट काम में लगे हुए हैं। यह पूरी तरह से ‘मेक इन इंडिया’ है।

भाजपा आम चुनाव 2019 से पहले कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को उनके घर में ही घेरने की रणनीति पर तेजी से काम कर रही है। यही कारण है कि अमेठी में केंद्रीय नेतृत्व की सक्रियता के बाद बीते छह महीनों में कई बार भाजपा का शीर्ष नेतृत्व यहां आ चुका है। 21 अप्रैल को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह शहर में रैली को संबोधित कर चुके हैं। उनके साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आए थे। तबसे पार्टी नेताओं की सक्रियता बनी हुई है।पार्टी के प्रदेश महामंत्री विजय बहादुर पाठक ने बताया कि रायबरेली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकास की अलख जगाने आ रहे हैं। इससे यह साफ है कि भाजपा अपने विकास के एजेंडे पर ही पूरी मजबूती से चल रही है। भारतीय जनता पार्टी पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव में पार्टी हार से विचलित न होते हुए पूरा फोकस उत्तर प्रदेश पर कर रही है।

उत्तर प्रदेश से भाजपा को जहां 2014 में उसे 71 सीटों पर जीत मिली थी। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी आज पहली बार रायबरेली दौरे पर पहुंच रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां एक जनसभा को संबोधित भी करेंगे। देश की सियासत के लिहाज से रायबरेली सदस्यीय सीट हमेशा से ही महत्वपूर्ण रही है। गांधी परिवार की इस सीट को अपने खाते में करने का सपना भाजपा और संघ का लंबे समय से रहा है।

कांग्रेस को जिस डील में घोटाला दीख पड़ता है जानिए उस डील का सच


राफेल विमान सौदे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सबके सामने है, लेकिन याचिका और इस पर आए फैसले के पूर्व यह जानना जरूरी है कि राफेल विमान सौदा है क्या?


राफेल डील को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया है. कोर्ट ने इस मामले में जांच की मांग वाली सारी याचिकाएं खारिज कर दी हैं. राफेल डील पर उठाए जा रहे सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस पर कोई संदेह नहीं है.राफेल डील की खरीद प्रक्रिया में कोई कमी नहीं है.

साथ ही कोर्ट ने कहा कि कीमत देखना कोर्ट का काम नहीं है. कोर्ट के इस फैसले को कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी पर बड़ा हमला करते हुए आरोप लगाया था कि राफेल डील में मोदी सरकार ने घपला किया है. उन्‍होंने आरोप लगाते हुए कहा था कि मोदी इस डील के लिए निजी तौर पर पेरिस गए थे और वहीं पर राफेल डील हो गई और किसी को इस बात की खबर तक नहीं लगी.

यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में इस डील को लेकर जांच किए जाने की मांग वाली याचिकाएं भी दाखिल की गई थी. बीते 14 नवंबर को हुई सुनवाई में इसपर फैसला सुरक्षित भी रख लिया गया था. अब फैसला सबके सामने है, लेकिन याचिका और इस पर आए फैसले के पूर्व यह जानना जरूरी है कि राफेल विमान सौदा है क्या?

राफेल विमान क्या है?

राफेल एक फ्रांसीसी कंपनी डैसॉल्ट एविएशन निर्मित दो इंजन वाला मध्यम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) है. राफेल लड़ाकू विमानों को ‘ओमनिरोल’ विमानों के रूप में रखा गया है, जो कि युद्ध में अहम रोल निभाने में सक्षम हैं. ये बखूबी ये सारे काम कर सकती है- वायु वर्चस्व, हवाई हमला, जमीनी समर्थन, भारी हमला और परमाणु प्रतिरोध.

भारत ने राफेल को क्यों चुना है?

राफेल भारत का एकमात्र विकल्प नहीं था. कई अंतरराष्ट्रीय विमान निर्माताओं ने भारतीय वायुसेना से पेशकश की थी. बाद में छह बड़ी विमान कंपनियों को छांटा गया. इसमें लॉकहेड मार्टिन का एफ -16, बोइंग एफ / ए -18 एस, यूरोफाइटर टाइफून, रूस का मिग -35, स्वीडन की साब की ग्रिपेन और रफाले शामिल थे.

सभी विमानों के परीक्षण और उनकी कीमत के आधार पर भारतीय वायुसेना ने यूरोफाइटर और राफेल को शॉर्टलिस्ट किया. डलास ने 126 लड़ाकू विमानों को उपलब्ध कराने के लिए अनुबंध हासिल किया, क्योंकि ये सबसे सस्ता मिल रहा था. कहा गया कि इसका रखरखाव भी आसान है.

खरीद प्रक्रिया कब शुरू हुई?

भारतीय वायु सेना ने 2001 में अतिरिक्त लड़ाकू विमानों की मांग की थी. वर्तमान आईएएफ बेड़े में बड़े पैमाने पर भारी और हल्के वजन वाले विमान होते हैं रक्षा मंत्रालय मध्यम वजन वाले लड़ाकू विमान लाना चाहता था. वैसे इसकी वास्तविक प्रक्रिया 2007 में शुरू हुई. रक्षा मंत्री ए के एंटनी की अध्यक्षता वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद ने अगस्त 2007 में 126 विमान खरीदने के प्रस्ताव पर हरी झंडी दे दी.

कितने राफेल खरीद रहे हैं और लागत क्या है?

इस सौदे की शुरुआत 10.2 अरब डॉलर (5,4000 करोड़ रुपये) से होनी अपेक्षित थी. 126 विमानों में 18 विमानों को तुरंत लेने और बाकि की तकनीक भारत को सौंपे जाने की बात थी. लेकिन बाद में इस सौदे में अड़चन आ गई.

फिर क्या हुआ?

राफेल के लिए भारतीय पक्ष और डेसॉल्ट ने 2012 में फिर बातचीत शुरू हुई. जब नरेंद्र मोदी की सरकार सत्ता में आई तो उसने वर्ष 2016 में इस सौदे को फिर नई शर्तों और कीमत पर फिर किया.

यह देरी क्यों?

भारत और फ्रांस दोनों ने वार्ताओं का दौरान राष्ट्रीय चुनाव और सरकार में बदलाव देखा. कीमत भी एक अन्य कारण था. यहां तक कि खरीद समझौते के हस्ताक्षर के दौरान, दोनों पक्ष वित्तीय पहलुओं पर एक निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पा रहे थे. विमान की कीमत लगभग 740 करोड़ रुपए है. भारत उन्हें कम से कम 20 फीसदी कम लागत पर चाहता था. शुरुआत में योजना 126 जेट खरीदने की थी, अब भारत ने इसे घटाकर 36 कर दिया.

भारत और फ्रांस दोनों के लिए सौदा कितना अहम?

फिलहाल फ्रांस, मिस्र और कतर राफेल जेट विमानों का उपयोग कर रहे हैं. हालांकि डेसॉल्ट कंपनी की माली हालत ठीक नहीं है. कंपनी को उम्मीद थी कि भारत से सौदे के बाद कंपनी अपने राजस्व लक्ष्यों को पूरा कर पाएगी. भारत ने रूस के मिग की बजाय डेसाल्ट को चुना. भारत ने अमेरिका के लॉकहीड को भी नजरअंदाज कर दिया था.

नई सरकार में क्या हुआ?

अप्रैल 2015 में नरेंद्र मोदी ने पेरिस का दौरा किया. तभी 36 राफेल खरीदने का फैसला किया गया. बाद में एनडीए सरकार ने इस सौदे पर वर्ष 2016 में साइन कर दिए. जब फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांकोइस होलैंड ने जनवरी में भारत का दौरा किया तब राफेल जेट विमानों की खरीद के 7.8 अरब डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर हुए.

कांग्रेस को इस पूरी डील में घोटाला नजर आ रहा है. राफेल विमान सौदे को लेकर मोदी सरकार पर कांग्रेस ने न सिर्फ हमला बोला है, बल्कि घोटाले का आरोप भी लगाया है. कांग्रेस ने राष्ट्रीय हित एवं सुरक्षा के साथ सौदा करने का भी आरोप लगाया. कहा कि इस सौदे में कोई पारदर्शिता नहीं है. इसके खिलाफ याचिका भी दायर की गई. अब इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील की खरीद प्रक्रिया में कोई कमी नहीं होने की बात कही है.

राहुल का कद बड़ा दिखाने के लिए की नामों की घोषणा में देरी


कांग्रेस में इस तरह पहली बार हुआ है कि एक दूसरे के समर्थक आमने सामने आ गए हों, कांग्रेस में शक्ति प्रदर्शन को पंसद नहीं किया जाता है. कई नेताओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है.

धनाभाव से जूझ रही कांग्रेस को पुराने दिग्गज नेता अब कोरपोरेट जगत का रुख कांग्रेस की ओर मोड़ेंगे। 


राहुल गांधी की अगुवाई में तीन राज्य जीतने के बाद मुख्यमंत्री चयन में हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिला है. राजस्थान में अपने नेता के समर्थन में लोगों ने प्रदर्शन किया है. लेकिन अंत भला तो सब भला है. मध्य प्रदेश में कमलनाथ और राजस्थान में अशोक गहलोत रेस जीत गए. राजनीति में अंत तक अपनी राजनीतिक चाल चलनी होती है.

कांग्रेस के ये नेता अनुभव के आधार पर आगे निकल गए. युवा नेताओं को अब कुछ दिन या साल इंतजार करना पड़ सकता है. शाहरुख खान का बाजीगर वाला डायलॉग भी है. हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते है. अशोक गहलोत को जादूगर तो पहले से ही कहा जाता है. अब वो राजनीति के बाजीगर भी हो गए हैं.

आलाकमान की अहमियत

कांग्रेस में इस तरह पहली बार हुआ है कि एक दूसरे के समर्थक आमने सामने आ गए हों, कांग्रेस में शक्ति प्रदर्शन को पंसद नहीं किया जाता है. कई नेताओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है. भजनलाल ने सीएम बनने के लिए शक्ति प्रदर्शन किया लेकिन बने भूपेन्द्र सिंह हुड्डा. आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएसआर की मृत्यु के बाद जगन मोहन रेड्डी ने बगावती तेवर अपनाए तो पार्टी से बाहर होना पड़ा था.

कांग्रेस में आलाकमान की अहमियत हमेशा रही है. सोनिया गांधी के वक्त में विधायक दल द्वारा पार्टी के मुखिया को सर्वाधिकार सौंप दिए जाते रहे हैं. सोनिया गांधी फैसले करती रहीं हैं. सिवाय अमरिंदर सिंह और वीरभद्र सिंह के केस में जिन्होंने पार्टी आलाकमान को सीएम बनाने के लिए मजबूर कर दिया, हालांकि पार्टी के भीतर प्रदेश में उनके कद का नेता नहीं था जो चुनौती दे सकता था.

पावर शिफ्ट

कांग्रेस में पावर शिफ्ट की भी अपनी भूमिका है. कांग्रेस के मैनेजर्स ये जानते हैं कि ये सही मौका है जब राहुल गांधी को पार्टी के भीतर स्थापित कर दिया जाए. इसलिए ये एहसास दिलाया गया कि राहुल गांधी कितने ताकतवर हैं. वो सीएम बना सकते हैं. कांग्रेस के युवा नेताओं का गुमान भी कम हुआ है. महज राहुल गांधी से रिश्ते अच्छे होने पर पद नहीं मिल सकता है. बल्कि जिस तरह राजनीतिक नफा नुकसान की अहमियत होती है, उसके हिसाब से निर्णय लिया जाता है.

राहुल गांधी ने जो फैसला किया है, वो कांग्रेस के मुखिया होने की वजह से किया है. राजनीति में निजी रिश्तों की अहमियत है, लेकिन राजनीति में ऐसा हमेशा नहीं होता है. तीन दिन फोकस यही रहा कि 12 तुगलक लेन से क्या संदेश मिलता है. जहां चुनाव था वहां के नेता और पूरे देश के कार्यकर्ताओं की निगाह राहुल गांधी के फैसले पर टिकी थीं. कांग्रेस में तय हो गया कि फैसला दस जनपथ में नहीं राहुल गाधी के 12 तुगलक लेन में हो रहा है. 7 लोककल्याण मार्ग के बाद दूसरा महत्वपूर्ण पता बन गया है.

ओल्ड गार्ड बनाम युवा नेता

कांग्रेस के मुखिया ने सीनियर नेताओं पर भरोसा किया है. पहली वजह वफादारी है. जो परिवार के प्रति है. दूसरी वजह दो राज्य में अल्पमत सरकार भी है. पुराने नेता सबको साथ लेकर चलने में माहिर हैं. नए लोगों को अभी इस विधा को सीखने की जरूरत है. पार्टी के भीतर और बाहर समन्वय बनाना आवश्यक है. नए नेताओं ने टिकट में जिस तरह मनमानी की है, वो भी इनके खिलाफ गई है. खासकर जो बागी जीतकर आए वो पुराने नेताओं के साथ हो गए. जिससे बैलेंस उनकी तरफ चला गया है. हालांकि पहले से ये पता था कि मुख्यमंत्री कौन बन रहा है.

युवा नेताओं को इसका आभास पहले से था, इसलिए खींचतान ज्यादा थी. टिकट बंटवारे में अपने समर्थकों को ज्यादा टिकट दिलाने का यही मकसद था. मध्यप्रदेश में दिग्विदय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच बहस होना, छत्तीसगढ़ में प्रभारी पीएल पुनिया और भूपेश बघेल के बीच खटपट की बात थी.राजस्थान में सचिन पायलट और रामेश्नर डूडी के बीच मतभेद की खबर इसका सबूत है.

लोकसभा चुनाव पर निगाह

हालांकि कांग्रेस आलाकमान यानी राहुल गांधी ने आम चुनाव के समीकरण पर ज्यादा ध्यान दिया है. मंझे हुए राजनीतिक खिलाड़ियों को तरजीह दी है. इसके कई कारण हैं, लोकसभा चुनाव सिर पर है. पुराने नेता राज्य पर फौरन अपनी पकड़ मजबूत कर सकते हैं. वहीं नए लोगों को प्रशासनिक व्यवस्था को समझने में वक्त लग सकता है.

ऐसे में लोकसभा की तैयारी कैसे हो सकती है, इस लिहाज से चयन किया गया है. ये लोग अपने राज्य में बिना केन्द्रीय नेताओं की मदद से अच्छा परफॉर्म कर सकते हैं. वहीं राहुल गांधी और बाकी नेता दूसरे राज्यों पर फोकस कर सकते हैं.जो पार्टी के लिए मुफीद साबित हो सकता है.

गठबंधन की राजनीतिक मजबूरी

2019 का चुनाव नरेन्द्र मोदी बनाम गठबंधन होने वाला है. एक बड़ा और माकूल गठबंधन ही जीत की गारंटी है वरना मोदी को मात देना आसान नहीं है. इस गठबंधन को हकीकत में लाने के लिए सीनियर नेताओं की टीम ही कर सकती है. इसकी वजह है छोटे दलों के नेताओं पर इनका असर है.

2008 में जब मनमोहन सिंह की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था. तब कई पूर्व और तत्कालीन मुख्यमंत्रियों ने अहम भूमिका अदा की थी. अब नया समीकरण बनाने के लिए भी ये लोग मददगार साबित हो सकते है. खासकर बीएसपी-एसपी जैसे दल इन नेताओं के वायदों पर भरोसा कर सकते हैं.

फंड की कमी

कांग्रेस के पास फंड की कमी है. मौजूदा साल में भी कांग्रेस को नाम मात्र ही चंदा मिला है. नए राज्यों के जीतने से कॉरपोरेट जगत का नजरिया कांग्रेस के लिए बदल सकता है. पुराने नेता नए कॉरपोरेट को पार्टी की तरफ लाने में मददगार साबित हो सकते हैं. इसलिए कांग्रेस में पहले से ये पता था कि पार्टी की जीत की स्थिति में कुर्सी किसे मिलने वाली है. लेकिन ये पूरी गहमा-गहमी राहुल गांधी पर फोकस शिफ्ट करने के लिए की गई है. क्योंकि चयनित लोगों पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ है.

ताकत दिखाने वालों को नहीं मिली सत्ता

सोनिया गांधी के वक्त में भी ताकत दिखाने वालों को पद नहीं दिया गया था. हरियाणा में भजनलाल ने ताकत दिखाने की कोशिश की थी. 2004 में तत्कालीन प्रदेश के मुखिया भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को कुर्सी मिल गई. जिनको अहमद पटेल की हिमायत हासिल थी. जगन मोहन रेड्डी ने अपने पिता की मौत के बाद हंगामा किया लेकिन सत्ता नहीं मिल पाई थी. 2008 में अशोक गहलोत ने रेस में पीछे होते हुए अपनी राह आसान कर ली है. कांग्रेस में ये बानगी है लेकिन ये साफ है कि आलाकमान ही ताकतवर है, जिसको चाहे बिठाए जिसको चाहे हटाए.

बीजेपी अपवाद नहीं

हालांकि ये अपवाद नहीं है बीजेपी मे हाई कमान कल्चर है. हरियाणा महाराष्ट्र इसका उदाहरण है. वहीं एक केस के चलते उमा भारती को हटाकर शिवराज सिंह चौहान को सीएम बनाया गया था. झारखंड में बाबू लाल मरांडी के दावे को दरकिनार करके अर्जुन मुंडा को सीएम बनाया गया था.

उपेंद्र कुशवाहा अकेले पड़े

राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (RLSP) को शनिवार को तब एक बड़ा झटका लगा जब बिहार विधानसभा और विधान परिषद के उसके सभी सदस्यों ने घोषणा की कि वे अभी भी NDA में हैं. साथ ही RLSP सदस्यों ने पार्टी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा पर आरोप भी लगाया कि उन्होंने गठबंधन से अलग होने की घोषणा में निजी हितों को तवज्जो दी.

आरएलएसपी के दोनों विधायकों सुधांशु शेखर और ललन पासवान और पार्टी के एकमात्र विधानपरिषद सदस्य संजीव सिंह श्याम ने एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में बयान जारी किया. तीनों ने शेखर को मंत्रिपद दिए जाने पर जोर दिया जो कि पहली बार विधायक बने हैं और तीनों में सबसे कम आयु के हैं.

श्याम ने कहा कि हम चुनाव आयोग से भी संपर्क करेंगे और दावा करेंगे कि हम असली आरएलएसपी का प्रतिनिधित्व करते हैं. हमें पार्टी के अधिकतर कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों का समर्थन हासिल हैं. उन्होंने ऐसा करके स्पष्ट किया कि आरएलएसपी एक बिखराव की ओर बढ़ रही है.

आरएलएसपी ने दो चुनाव एनडीए के साथ लड़ा था

आरएलएसपी ने 2014 लोकसभा चुनाव और 2015 बिहार विधानसभा चुनाव एनडीए के साथ लड़ा था. आरएलएसपी के कुल मिलाकर तीन सांसद हैं जिसमें कुशवाहा भी शामिल हैं. इसके साथ ही पार्टी के बिहार में दो विधायक और विधानपरिषद का एक सदस्य है.

तीनों विधायकों ने कुशवाहा से अलग होने की घोषणा की है. वहीं दो अन्य सांसदों जहानाबाद से अरुण कुमार और सीतामढ़ी से राम कुमार शर्मा है. अरुण कुमार पिछले दो वर्षों से अलग रास्ता अपनाए हुए हैं.

शर्मा ने शुरू में एनडीए और नीतीश कुमार के समर्थन में बयान दिया था लेकिन बाद में अपना रुख बदल लिया और उन्हें तब कुशवाहा के साथ दिल्ली में देखा गया था जब उन्होंने कैबिनेट से अपने इस्तीफे के साथ ही एनडीए से अलग होने के निर्णय की घोषणा की थी.

उपेंद्र कुशवाहा

श्याम ने कहा कि हम यह लंबे समय से कह रहे हैं कि हम आरएलएसपी के एनडीए के साथ रहने के पक्ष में हैं लेकिन कुशवाहा जिन्हें अपने निजी लाभ की चिंता थी उन्होंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया.

कुशवाहा को सिर्फ अपने से मतलब

रालोसपा के विधानपरिषद सदस्य ने आरोप लगाया कि गत वर्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एनडीए में वापस लौटने के बाद रालोसपा के लिए मंत्रिपद पर विचार नहीं करने के बारे में बात करने में कुशवाहा ने देरी की. श्याम ने दावा किया वास्तव में उन्होंने इसको लेकर कभी प्रयास नहीं किया. जब सहयोगी दलों के बीच मंत्रिपदों का आवंटन किया जा रहा था वह पटना में घूम रहे थे.

उन्होंने कहा कि कुशवाहा केंद्र में अपने मंत्रिपद को लेकर खुश थे. उसके बाद उनका पूरा ध्यान ऐसे समझौते पर केंद्रित था जो उनके हितों की पूर्ति करे. उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं थी कि उनकी पार्टी से भी किसी को राज्य में मंत्रिपद मिलना चाहिए. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि न तो उन्हें और न ही पासवान को मंत्रिपद चाहिए.

श्याम ने कहा कि हम चाहते हैं कि सुधांशु शेखर को राज्य मंत्रिपरिषद में शामिल किया जाए और यदि इसके लिए उनके नाम पर विचार नहीं किया जाता है तो हम बहुत निराश होंगे.

असली आरएलएसपी हमारी

उन्होंने कहा कि हम दलबदलू नहीं बल्कि असली आरएलएसपी की प्रतिनिधित्व करते हैं. हमारा रुख अधिकतर कार्यकर्ताओं और पार्टी के पदाधिकारियों की भावनाओं के अनुरूप है. हम अपने दावे को लेकर जल्द ही चुनाव आयोग से संपर्क करेंगे. इस घटना पर टिप्पणी के लिए बिहार में एनडीए के नेता उपलब्ध नहीं थे.

पार्टी में उठापटक पिछले महीने तब सामने आ गया था जब शेखर और पासवान उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के आवास पर आयोजित बीजेपी विधायक दल की बैठक में शामिल होने पहुंचे थे.