आरजेडी के स्वर्णों के कोटा विरोध ने कांग्रेस की मुश्किल बढ़ाई

कांग्रेस पार्टी आरजेडी के वोट बैंक के साथ अगड़ों को एक साथ लाने की रणनीति पर काम कर रही थी लेकिन अब वैसा हो पाना उन्हें टेढ़ी खीर मालूम पड़ने लगा है

90 के दशक में मंडल-कमंडल की राजनीति के बीच बिहार में पिछड़ों के मसीहा के तौर पर लालू यादव का उभार हुआ था. दूसरी तरफ, मंडल के जवाब में कमंडल की राजनीति ने बीजेपी को भी धीरे-धीरे बिहार में अपने-आप को खड़ा करने का मौका दे दिया. लेकिन, इन दोनों के बीच में फंस गई कांग्रेस. बिहार में लालू के उभार ने ही कांग्रेस के अवसान की पटकथा लिख दी थी. लेकिन, मजबूर कांग्रेस सब कुछ जानते हुए भी लालू से तब भी पीछा नहीं छुड़ा पाई और अभी भी जेल में बंद लालू के पीछे-पीछे चलने को मजबूर दिख रही है.

कांग्रेस की रणनीति फेल?

लेकिन, लगभग दो दशक के दौर के बाद अब लालू यादव की पार्टी आरजेडी के खिलाफ सवर्णों की नाराजगी को कम करने का बीड़ा कांग्रेस ने उठाया था. लालू की गैरहाजिरी में उनके बेटे तेजस्वी यादव को आगे कर कांग्रेस सवर्णों के एक तबके के बीच यह संदेश देने की कोशिश कर रही थी कि आरजेडी अब वो आरजेडी नहीं रह गई. गंगा में बहुत पानी बह चुका है.

मोदी विरोध के नाम पर बिहार में महागठबंधन बनाने की तैयारी में लगी कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा था जिसमें लालू यादव के यादव और मुस्लिम वोट के साथ कांग्रेस सवर्ण तबके के लोगों को भी अपने नाम पर जोड़ने की तैयारी में थी. कांग्रेस में मदनमोहन झा और अखिलेश प्रसाद सिंह सरीखे सवर्ण नेताओं को आगे बढाकर आरजेडी के रघुवंश प्रसाद सिंह और जगदानंद सिंह जैसे चेहरों के सहारे कांग्रेस एक बार फिर से सवर्ण तबके को महागठबंधन से जोड़ने की तैयारी कर रही थी.

सूबे में कांग्रेस आरजेडी के बराबर सीट पर लड़ने का दावा कर रही थी. बीजेपी द्वारा एसएसी और एसटी एक्ट पर लिए गए फैसले के खिलाफ सवर्ण मतदाताओं की नाराजगी को भुनाने का मंसूबा पाल चुकी कांग्रेस बिहार में आरजेडी के साथ गठबंधन कर बेहतरीन प्रदर्शन की उम्मीद लगाए बैठी थी. लेकिन सवर्णों को आरक्षण दिए जाने संबंधी सदन में कवायद जैसे ही शुरू हुई राजनीतिक फिजा प्रदेश में बदलने लगी. खासकर आरजेडी के विरोध के फैसले के बाद आरजेडी के सवर्ण नेता सहित कांग्रेस पार्टी का राजनीतिक गणित उलझने लगा है.

स्टेट लेवल के एक सीनियर कांग्रेसी नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि अगड़ी जाति के बीच आरजेडी के रुख को समझ पाना मुश्किल होगा और इससे आगामी लोकसभा चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस के गठबंधन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा.

लेकिन, सामान्य वर्ग के गरीब तबके को मिलने वाले दस फीसदी आरक्षण वाले विधेयक पर आरजेडी के संसद में विरोध के बाद कांग्रेस की सारी रणनीति फेल होती दिख रही है. झटका आरजेडी के उन सवर्ण नेताओं को भी लगा है जो इस बार सवर्णों के वोट बैंक के सहारे चुनाव में उतरने की तैयारी में थे.

आरजेडी के सवर्ण नेताओं में बेचैनी

आरजेडी के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह की तरफ से आया बयान उसी झुंझलाहट और बेचैनी को दिखाता है. आरजेडी के सवर्ण नेता पार्टी के स्टेंड को लेकर उलझन में हैं कि वो लोकसभा चुनाव में सवर्ण मतदाताओं से वोट किस आधार पर मांगेंगे, उन दिग्गज नेताओं में रघुवंश प्रसाद सिंह,जगदानंद सिंह और शिवानंद तिवारी सरीखे नेता शामिल हैं जिन्हें आरजेडी के द्वारा लिया गया सवर्ण आरक्षण विरोधी फैसला असहज करने लगा है. इसलिए आरजेडी द्वारा लिए गए फैसले को चूक बताकर रघुवंश प्रसाद सिंह ने डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश भी शुरू कर दी है.

उन्होंने ऐसा वक्तव्य देकर अगड़ी जाति को रिझाने की कोशिश की है. दरअसल रघुवंश प्रसाद सिंह आरजेडी के सवर्ण चेहरा हैं. वो पांच दफा सांसद चुने जा चुके हैं. उनका चुनाव क्षेत्र वैशाली है जहां राजपूतों की संख्या निर्णायक फैसला कराने का मादा रखती है.

साल 1996 से लेकर 2009 तक लगातार रघुवंश प्रसाद सिंह वहां के सांसद रह चुके हैं. जातिगत समीकरण के तहत यादव और राजपूत जाति का एक साथ गोलबंद होना रघुवंश बाबू को संसद तक पहुंचाता रहा है लेकिन 2014 में रामा सिंह की इंट्री की वजह से एलजेपी और बीजेपी के गठबंधन ने रघुवंश प्रसाद सिंह को छठी बार सांसद बनने से रोक दिया था.

वजह साफ है कि राजपूत और यादव समाज का गठबंधन पिछले चुनाव में मज़बूत नहीं हो पाया था और आरजेडी के सवर्ण आरक्षण मुद्दे पर अपनाए गए रुख से रघुवंश प्रसाद सिंह सरीखे नेता की राजनीतिक जमीन चौपट हो सकती है. इसके लिए रघुवंश प्रसाद सिंह ने पार्टी से अलग लाइन लेकर मुद्दे को माइल्ड करने की कोशिश की है. ध्यान रहे राजपूत और यादव का गठजोड़ वैशाली के आसपास तीन लोकसभा क्षेत्र में सीधा असर डाल सकता है इसलिए बदली परिस्थितियों में उन्हें एक साथ रख पाना आसान नहीं दिखाई पड़ रहा है. यही हालत कमोबेश कई संसदीय क्षेत्र में है जिनमें मुंगेर, बलिया, बेगूसराय, नवादा, दरभंगा, मुज़्फ्फरपुर, औरंगाबाद की सीटें प्रमुख हैं.

लालू यादव के इशारे पर हुआ था विरोध!

सूत्रों की मानें तो आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव से सलाह मशविरा करने के बाद ही पार्टी ने लोकसभा और राज्यसभा में सवर्ण आरक्षण मुद्दे पर विरोध करने का फैसला किया था. राज्य सभा में मनोज झा ने बिल का विरोध करते हुए कहा था कि ‘कहानियां हमेशा से काल्पनिक आधार पर गढ़ी जाती रही हैं और उसका वास्तविकता से दूर-दूर का वास्ता नहीं होता है.’ उन्होंने कहा था कि ‘हम सबने बचपन में पढ़ा है कि एक गरीब ब्राह्मण था लेकिन एक गरीब दलित था , एक गरीब यादव था या एक गरीब कुर्मी था ऐसी कहानी कभी नहीं पढ़ी है.’

ज़ाहिर है मनोज झा ऐसी कहानी सुना कर साबित करने की कोशिश कर रहे थे कि सवर्ण को गरीब बताया जाना मनगढ़ंत कहानी है और इसका हकीकत से कोई लेना देना नहीं है. मनोज झा पार्टी लाइन के हिसाब से सदन में बोल रहे थे और बाहर पार्टी के युवा नेता और लालू प्रसाद के वारिस तेजस्वी यादव सवर्ण आरक्षण के मुद्दे पर आए संविधान संशोधन विधेयक का विरोध यह कहते हुए कर रहे थे कि यह आरक्षण दलित,पिछड़े और आदिवासी को मिल रहे आरक्षण को खत्म करने की एक साजिश है. इतना ही नहीं तेजस्वी यादव ने विरोध करते हुए यह भी कहा था कि 15 फीसदी आबादी को 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने की कोशिश हो रही है तो 52 फीसदी ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए.

तेजस्वी पिता लालू प्रसाद से गंभीर मंत्रणा के बाद ही ऐसी लाइन ले रहे थे. उन्हें मालूम था कि ऐसी पार्टी लाइन आरजेडी को सूट करती है और वो मोदी सरकार द्वारा लाए गए सवर्ण आरक्षण मुद्दे पर बिहार में अगड़ा बनाम पिछड़ा राजनीति करने में ठीक वैसे ही कामयाब होंगे जैसे उनके पिता लालू प्रसाद 90 के दशक में मंडल कमीशन लागू किए जाने के बाद सत्ता के शिखर तक पहुंचे थे.

अगड़ा बनाम पिछड़ा की रणनीति कितनी कारगर?

बिहार में अगड़ा बनाम पिछड़ा की राजनीति के दम पर लालू प्रसाद की राजनीति खूब चमकती रही है. इसकी वजह यह है कि अगड़ी जाति में जो चार जाति आती हैं, उनमें ब्राह्मण की आबादी 5.7 फीसदी है वहीं कायस्थ 1.5 फीसदी, भूमिहार 4.7 फीसदी और राजपूत 5.2 फीसदी हैं. आरजेडी अगड़ों के खिलाफ अतिपिछड़ा 21.7 फीसदी, यादव 14.4 फीसदी, बनिया 7.1 फीसदी, कुर्मी 3 और कोईरी 4 फीसदी को गोलबंद कर बिहार में अपनी राजनीति चमकाने की फिराक में है.

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लेकिन 90 के दशक की राजनीति का वो तरीका अब कारगर हो पाएगा उसकी उम्मीद कम ही दिखाई पड़ती है. मंडल कमीशन के दौर की राजनीति के बाद बिहार में तमाम दलों के नेतृत्वकर्ता पिछड़े और अति पिछड़े समाज से ही आते हैं, इसलिए आरजेडी की राजनीति से ज्यादा राजनीतिक लाभ मिल पाएगा ऐसा प्रतीत होता नजर नहीं आता है. प्रदेश में अगड़ा बनाम पिछड़ा की राजनीति फिर से शुरू हो सके इसकी गुंजाइश नहीं दिखाई पड़ती है.

यही वजह है कि महागठबंधन के घटक दलों में सवर्ण आरक्षण मुद्दे पर आरजेडी के विरोध के बाद असहज स्थिति पैदा होने लगी है. आरजेडी के सवर्ण नेता भले ही डैमेज कंट्रोल करने में लगे हों लेकिन कांग्रेस के भीतर भी आरजेडी के स्टैंड को लेकर मायूसी है. कांग्रेस पार्टी आरजेडी के वोट बैंक के साथ अगड़ों को एक साथ लाने की रणनीति पर काम कर रही थी लेकिन अब वैसा हो पाना उन्हें टेढ़ी खीर मालूम पड़ने लगा है.

सीबीआई,ईडी और आयकर विभागों को इस्तेमाल कर भाजपा कर्नाटक हथियाना चाहती है

मल्लिकार्जुन जी जिन विभागों की बात कर रहे हैं वह सभी विभाग भ्रष्टाचार, अनाचार करने वाले लोगों और उनके कार्यों पर रोकथाम के लिए हैं, मज़ेदार बात यह है की इस विभाग की नज़र हमेशा विपक्ष के काले कारनामों पर होती है और सत्ता जाते ही अपने पुराने आकाओं के प्रति लाम बंद हो जातीं हैं। अब प्रश्न है कि क्या खडगे जी कि पार्टी इसी प्रकार अपने विरोधियों को त्रस्त करती थी?दूसरे जब आप सभी लोगों कि छवि ईमानदारी कि है तो फिर आपको घबराहट कैसी?

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाया कि वह कर्नाटक में उनकी पार्टी के विधायकों को ‘काबू में करने’ का प्रयास कर रहे हैं. इसके साथ ही खड़गे ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार को अस्थिर करने के बीजेपी के कथित प्रयास में सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग का उपयोग उन विधायकों को ‘आतंकित’ करने के लिए किया जा रहा है.

खडगे ने एक कार्यक्रम में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, ‘वे सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर छापों के द्वारा हमारे विधायकों को धमकी देने जैसी कई चीजों की कोशिश कर रहे हैं.’

उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी हमारे विधायकों पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रहे हैं. लोकसभा में कांग्रेस के नेता खड़गे ने कहा कि कांग्रेस के कार्यकर्ता ‘मजबूत और प्रतिबद्ध’ हैं तथा वे किसी दबाव में नहीं आएंगे.

उन्होंने गठबंधन सरकार को गिराने के बीजेपी के कथित प्रयास ‘ऑपरेशन लोटस’ को रेखांकित करने के लिए एक घटना का जिक्र किया. खड़गे ने कहा कि वह, मोदी, प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी 16 जनवरी की शाम को गांधी शांति पुरस्कार पर फैसला करने के लिए एकत्र हुए थे. उन्होंने कहा कि जब वे लोग बैठे थे, प्रधानमंत्री ने उनसे कर्नाटक के घटनाक्रम के बारे में पूछा.

खड़गे ने कहा, ‘मैंने उनसे कहा कि मैं नहीं आप बेहतर जानते हैं कि आप क्या कर रहे हैं. मोदी ने कहा कि सूचना है कि बीजेपी के विधायकों को दल बदलने के लिए लालच दिया गया है.’

‘मैंने जवाब दिया कि आपके लोग और आपकी सरकार यह कर रही है. तब उन्होंने कहा कि आपके लोग (कांग्रेस विधायक) यहां-वहां घूम रहे हैं.’

सीबीआई घटनाक्रम के बारे में खड़गे ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री ने चयन समिति को विश्वास में लिए बिना ही अवैध रूप से आलोक वर्मा को एजेंसी प्रमुख के पद से हटा दिया था. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने अगले सीबीआई निदेशक का चयन करने के लिए 24 जनवरी को एक बैठक बुलाई है.

खड़गे ने कहा, ‘जब मैंने नोटिस दिया (सीबीआई निदेशक के चयन के लिए), तब 24 जनवरी को एक बैठक बुलाई गई है. मुझे पता है कि इसका परिणाम क्या होगा क्योंकि उन्हें बहुमत मिला है और वे जो चाहते हैं करेंगे.’

‘‘जब बहनजी ने उन्हें छोड़ दिया, तब यह स्वभाविक है कि वह दीदी (ममता) को याद करेंगे.’’ स्मृति ईरानी

‘‘विपक्षी दल बार – बार कह रहे हैं कि वे बीजेपी से अकेले नहीं लड़ सकते और इससे उनकी नाकामी उजागर होती है.’
मोदी ने अक्सर ही इस बात पर जोर दिया है कि देश को एक मजबूत सरकार चाहिए, ना कि एक मजबूर सरकार. 

नई दिल्लीः तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की विपक्षी दलों की रैली का समर्थन करने को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर शुक्रवार को बीजेपी ने तंज कसते हुए कहा कि यह स्वभाविक है कि ‘बहनजी’ के छोड़ने के बाद वह ‘दीदी’ को याद करेंगे. 

कोलकाता के ऐतिहासिक ब्रिगेड परेड मैदान में आज बीजेपी के खिलाफ होने वाली इस रैली में 20 से अधिक विपक्षी दलों के नेताओं के शरीक होने की उम्मीद है. बीजेपी की इस टिप्पणी में संभवत: बहनजी का जिक्र बसपा प्रमुख मायावती और दीदी का जिक्र पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए किया गया है.

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि रैली से भगवा पार्टियों के प्रतिद्वंद्वियों के बारे में यह खुलासा होता है कि वे अपने बूते मुकाबला नहीं कर सकते हैं. यह पूछे जाने पर कि क्या ममता को राहुल के समर्थन पत्र से विपक्ष की मजबूती प्रदर्शित होती है, स्मृति ने जवाब दिया, ‘‘जब बहनजी ने उन्हें छोड़ दिया, तब यह स्वभाविक है कि वह दीदी (ममता) को याद करेंगे.’’ 

उन्होंने उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के हाल ही में गठबंधन की घोषणा किए जाने की ओर संभवत: इशारा करते हुए यह कहा. दरअसल, उप्र में दोनों दलों (सपा और बसपा) ने गठबंधन में कांग्रेस को शामिल नहीं किया है. केंद्रीय मंत्री ने भरोसा जताया कि लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन करेंगे. उन्होंने कहा कि उन्होंने (मोदी ने) अक्सर ही इस बात पर जोर दिया है कि देश को एक मजबूत सरकार चाहिए, ना कि एक मजबूर सरकार. 

उन्होंने रैली का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘विपक्षी दल बार – बार कह रहे हैं कि वे बीजेपी से अकेले नहीं लड़ सकते और इससे उनकी नाकामी उजागर होती है.’

अब कांग्रेस के विधायक पहुंचे रिज़ॉर्ट

सूत्रों के अनुसार, पार्टी के कम से कम आठ विधायक पाला बदल सकते हैं
विधायकों की गैरमौजूदगी को “गंभीरता” से लिया जाएगा और दल-बदल विरोधी कानून के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

बेंगलुरु: कर्नाटक में सत्तारुढ़ ग‍ठबंधन में दरार उजागर करते हुए चार नाराज कांग्रेसी विधायक पार्टी विधायक दल (सीएलपी) की बैठक में शामिल नहीं हुए. हालांकि, कुमारस्वामी ने दावा किया कि गैरहाजिर विधायक उनके संपर्क में हैं और जल्द ही शामिल होंगे. सरकार बचाने के लिए कांग्रेस ने आनन-फानन में अपने विधायकों को रिसॉर्ट में शिफ्ट कर दिया है.

सूत्रों के अनुसार, पार्टी के कम से कम आठ विधायकों पाला बदल सकते हैं. आंकड़ों के लिहाज से चार विधायकों की गैरमौजूदगी से सात महीने पुरानी कांग्रेस-जेडीएस ग‍ठबंधन सरकार को तत्काल कोई खतरा नहीं है लेकिन इससे यह संकेत मिलता है कि अब भी असंतोष झेल रही कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं है. 

ये 4 विधायक रहे बैठक में गैरहाजिर
कांग्रेस विधायक रमेश जारकीहोली, बी नगेंद्र, उमेश जाधव और महेश कुमाताहल्ली पार्टी विधायक दल की बैठक में नहीं पहुंचे. पार्टी उन्हें नोटिस जारी करेगी. हाल ही में कैबिनेट फेरबदल में मंत्रीपद से हटाए जाने के बाद से जारकीहोली बेहद नाखुश थे. बैठक में 76 विधायक मौजूद थे. पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने कहा कि जाधव ने लिखकर कहा था कि वह अस्वस्थ होने के कारण बैठक में भाग नहीं ले सकेंगे वहीं नागेंद्र ने कांग्रेस महासचिव के सी वेणुगोपाल से कहा था कि अदालत में एक मामले के कारण वह बैठक में शामिल नहीं हो सकेंगे. उन्होंने कहा कि दो अन्य विधायकों से कोई सूचना नहीं मिली है.

सिद्धरमैया ने कहा कि अनुपस्थित रहे विधायकों के जवाब मिलने के बाद इस मुद्दे पर पार्टी आलाकमान और राज्य नेताओं के साथ विचार विमर्श किया जाएगा और उसके बाद अगला कदम तय किया जाएगा. बै‍ठक से पहले कांग्रेस विधायकों को जारी नोटिस में सीएलपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने चेतावनी दी थी कि विधायकों की गैरमौजूदगी को “गंभीरता” से लिया जाएगा और दल-बदल विरोधी कानून के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. 

इस बीच, भाजपा के विधायक अब भी गुरुग्राम के एक लग्जरी होटल में ठहरे हुए हैं और पार्टी का कहना है कि विधायकों को कांग्रेसी खरीद-फरोख्त से बचाने के लिए ऐसा किया जा रहा है. यह अब भी नहीं पता है कि सोमवार से यहां डेरा डाले विधायक वापस कब लौटेंगे. ग‍ठबंधन सरकार को मंगलवार को पहला झटका तब लगा जब दो निर्दलीय विधायकों ने उससे समर्थन ले लिया था.

भय्यू जी महाराज ने ब्लैक मेलिंग के चलते की आत्म हत्या: आरोपी गिरफ्तार

पलक कुछ निजी वस्तुओं के आधार पर भय्यू महाराज को ब्लैकमेल कर उन पर शादी के लिए दबाव बना रही थी.

इंदौर: 

हाईप्रोफाइल आध्यात्मिक गुरु भय्यू महाराज की मौत के सात महीने पुराने मामले में शुक्रवार को अहम मोड़ आ गया, जब उन्हें खुदकुशी के लिए उकसाने के आरोप में पुलिस ने 25 साल युवती समेत तीन लोगों को गिरफ्तार किया. उनमें भय्यू महाराज के दो सहयोगी शामिल हैं.

डीआईजी हरिनारायणाचारी मिश्रा ने बताया कि मामले में पलक, विनायक दुधाड़े और शरद देशमुख को गिरफ्तार किया गया है. उन पर भारतीय दंड विधान की धारा 306 (आत्महत्या के लिये उकसाना) और अन्य संबद्ध धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है.

उन्होंने बताया कि पलक (25) पर आरोप है कि वह कुछ निजी वस्तुओं के आधार पर भय्यू महाराज (50) को ब्लैकमेल कर उन पर शादी के लिये दबाव बना रही थी, जबकि आध्यात्मिक गुरु के दो सहयोगी-दुधाड़े और देशमुख इस काम में युवती की कथित तौर पर मदद कर रहे थे. डीआईजी के मुताबिक भय्यू महाराज की पत्नी आयुषी और उनके अन्य नजदीकी संबंधियों ने तीनों आरोपियों के खिलाफ पुलिस को हाल ही में बयान दर्ज कराए हैं.

पुलिस सूत्रों के मुताबिक भय्यू महाराज के पूर्व ड्राइवर कैलाश पाटिल ने भी पुलिस को कुछ दिन पहले दिये बयान में कहा था कि पलक यह कहकर आध्यात्मिक गुरू को ब्लैकमेल कर रही थी कि उसके पास उनसे जुडी कुछ निजी वस्तुएं हैं.

भय्यू महाराज का सबसे खास सेवादार दुधाड़े उनकी आत्महत्या के तुरंत बाद चर्चा में आया था. आध्यात्मिक गुरू के कथित सुसाइड नोट में उनके वित्तीय उत्तराधिकार, संपत्ति, बैंक खाते और संबंधित मामलों में दस्तखत का हक दुधाड़े को ही सौंपे जाने का जिक्र था. वह भय्यू महाराज से करीब 15 साल पहले जुड़ा था और साये की तरह उनके साथ रहता था. दुधाड़े मामले में उस समय संदेह के घेरे में आया, जब वह आध्यात्मिक गुरु की खुदकुशी के कुछ समय बाद गायब हो गया था.

पुलिस के मुताबिक, भय्यू महाराज (50) ने यहां अपने बाइपास रोड स्थित बंगले में 12 जून को उनके लायसेंसी रिवॉल्वर से गोली मारकर कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी.

पुलिस ने भय्यू महाराज के घर से छोटी-सी डायरी के पन्ने पर लिखा सुसाइड नोट बरामद किया था. इसमें उन्होंने लिखा था कि “वह भारी तनाव से तंग आकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर रहे हैं.”

पुलिस को शुरुआत में संदेह था कि भय्यू महाराज ने कथित पारिवारिक कलह से परेशान होकर खुदकुशी की थी. लेकिन भय्यू महाराज के भक्त इस पहलू को खारिज करते हुए लगातार कह रहे थे कि आध्यात्मिक गुरु की मौत के पीछे कोई गहरी साजिश है और इसके खुलासे के लिये मामले की सीबीआई से जांच करायी जानी चाहिये.

कांग्रेस के शक्तिप्रदर्शन को ‘ज़ोर का झटका धीरे से’

बेंगलुरु: बीजेपी महासचिव पी मुरलीधर राव ने शुक्रवार को कहा कि कर्नाटक के पूर्व मंत्री रमेश जारकीहोली समेत चार कांग्रेस विधायकों की यहां पार्टी विधायक दल की बैठक से अनुपस्थिति देश की सबसे पुरानी पार्टी में मौजूद स्पष्ट दरार दिखाती है.

कर्नाटक में बीजेपी मामलों के प्रभारी राव ने कहा, ‘अहम बात यह है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी में पूरी तरह अव्यवस्था है. कांग्रेस कुछ अंदरुनी समस्या का सामना कर रही है, इसलिये उन्होंने शक्ति प्रदर्शन के लिए कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) का आयोजन किया था.‘

कांग्रेस विधायक दल की बैठक में गैरमौजूद रहे चार विधायक
उनकी यह टिप्पणी चार काग्रेसी विधायकों के पार्टी विधायक दल की बैठक में गैरमौजूद रहने के बाद आई है. कर्नाटक में ग‍ठबंधन सरकार को कथित तौर पर बीजेपी द्वारा गिराने की कोशिशों के बीच शक्ति प्रदर्शन के लिये इस बैठक का आयोजन किया गया था.

राव ने कहा,’इस तरह की राजनीतिक अस्थिरता की मौजूदगी में, कुमारस्वामी सरकार टिकी नहीं रह सकती. एक मात्र चीज जो हम कह नहीं सकते वह यह है कि वह कब गिरेगी. क्या वह आज गिरेगी, कल गिरेगी या अबसे तीन-चार महीने बाद. मैं नहीं जानता.‘ उन्होंने कहा, ‘जिस तरह की चीजें हो रही हैं वह कर्नाटक के लोगों के लिये अच्छी नहीं हैं.‘

आज या कल वापस आएंगे बीजेपी विधायक
बीजेपी के 104 विधायकों के कर्नाटक कब लौटने की उम्मीद है इस बारे में पूछे जाने पर राव ने कहा, ‘गुड़गांव (गुरुग्राम) कर्नाटक के विधायकों का स्थायी ठिकाना नहीं है. आज या कल वे वापस आएंगे. उनकी गणना में कोई समस्या नहीं है.‘

क्षेत्रीय राजनीतिक मजबूरियों की बिसात है ममता की महारैली

लोकसभा चुनाव 2019 से पहले विपक्षी एकता का इसे प्रदर्शन माना जा रहा है. “क्षेत्रीय राजनीतिक मजबूरियों को इस प्रस्तावित रैली से जुड़े बड़े राजनीतिक उद्देश्यों में नहीं मिलाना चाहिए.” : टीएमसी
भाजपा से पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी गेगोंग अपांग और शत्रुघ्न सिन्हा भी शिरकत करेंगे

कोलकाता: उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ बने समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के गठबंधन के बाद कोलकाता में शनिवार को तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की विपक्षी दलों की महारैली होने जा रही है. लोकसभा चुनाव 2019 से पहले विपक्षी एकता का इसे प्रदर्शन माना जा रहा है. यह रैली यहां ऐतिहासिक ब्रिगेड परेड मैदान में होगी. हालांकि, विपक्ष के कई नेता इस रैली में नजर नहीं आएंगे.  

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव रैली में भाग लेंगे जबकि बसपा की ओर से पार्टी के वरिष्ठ नेता सतीश चंद्र मिश्रा के शिरकत करने की संभावना है. हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती खुद इस रैली में हिस्सा नहीं लेंगी. आरएलडी के अजीत सिंह और जयंत चौधरी भी मौजूद रहेंगे. वहीं, रैली में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे करेंगे. 

उत्तर प्रदेश में नया चुनावी समीकरण बनाने वाली सपा और बसपा सहित सभी बड़ी विपक्षी पार्टियों की इस रैली में मौजूदगी काफी मायने रखती है. वहीं, कांग्रेस को भी यह लगता है कि विपक्ष की महारैली से उत्तर प्रदेश में राजनीतिक समीकरण के बारे में गलतफहमी नहीं होनी चाहिए. रैली का आयोजन कर रही तृणमूल कांग्रेस ने कहा, “क्षेत्रीय राजनीतिक मजबूरियों को इस प्रस्तावित रैली से जुड़े बड़े राजनीतिक उद्देश्यों में नहीं मिलाना चाहिए.”

इस रैली में जिन अन्य नेताओं के शामिल होने की उम्मीद है, उनमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एवं जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं तेदेपा प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू शामिल हैं. इनके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला के भी शामिल होने की उम्मीद है. कांग्रेस से खड़गे और पार्टी के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी रैली में भाग लेंगे. 

तृणमूल कांग्रेस प्रमुख एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ – साथ एनसीपी प्रमुख शरद पवार, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी, पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और झारखंड विकास मोर्चा के बाबूलाल मरांडी भी मंच पर नजर आएंगे. मंगलवार को भाजपा छोड़ने वाले अरूणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री गेगोंग अपांग भी रैली में शामिल होंगे. 

परो रैसलिंग: ऐमपी योद्धा ने मुम्बई मराठी को 4-3 से हराया

पिरो रैसलिंग गीलापन -4- चौथे दिन मुम्बयी माहारथी और एमपी योद्धा बीच हुए मुकाबले

पंचकूला, 17 जनवरी:

पंचकुला के सैक्टर 3स्थित ताऊ देवी लाल स्टेडियम में पिरो रैसलिंग लीग गीलापन -4 के चौथे दिन मुम्बयी मराठी और एमपी योद्धा की तरफ से 7 राउंड में रैसलिंग, की गई। आज के मुकाबलों में एमपी योद्धा ने मुम्बयी मराठी को 4-3से हराया। इस दौरान पहले राउंड का 65 किलो पुरुष मुकाबला मुम्बयी मराठी के हरफूल और एमपी योद्धा के हाजी अली और हरियाणा हैमर्स के बीच हुआ, जिस दौरान हाजी आलीएव ने हरफूल को हरा कर पहला मुकबला एमपी योद्धा की झोली डाल दिया।

महिलाएं दा किलो कैटागरी का दूसरा मुकबला मुम्बयी मराठी की विनेश फोगाट और एमपी योद्धा की ऋतु फोगाट बीच हुआ, जिस में विनेश फोगाट ने ऋतु फोगाट को हरा कर मुकाबला बराबरी पर ले आया।

तीसरा पुरुषों की 125 किलो की कैटागरी में हुहैं। यह मुकाबला मुम्बयी मराठी के बैटसीव वलदिसलाव और एमपी योद्धा के आकाश अंतिल बीच वाले हुआ, जिस में बैटसीव वलदिसलाव ने आकाश अंतिल को हरा कर मुकाबला 2-1पर ले आया।

चौथा मुकबला महिला वर्ग में हुहैं। 57 किलो कैटागरी का यह मुकाबला मुम्बयी मराठी की बेतजाबेथ ऐनजिलिका और एमपी योद्धा की पूजा ढांडा बीच हुआ, जिस में पूजा ने बेतजाबेथ ऐनजिलिका को हरा कर मुकबला फिर 2-2की बराबरी पर ले आया।

पुरुषों की 86 किलो कैटागरी में पाँचवाँ मुकाबला मुम्बयी मराठी के दीपक पूनम की रात और एमपी योद्धा के दीपक के बीच हुहैं। इस मुकाबलो में दीपक पूनम की रात ने दीपक को हरा दिया।

छटा 62 किलो कैटागरी का महिलाएं का मुकबला मुम्बयी मराठी की शिल्पी यादव और एमपी योद्धा की ऐलीसा मोनोलोवा के बीच हुआ, जिस में ऐलीसा मोनोलोवा ने शिल्पी यादव को हरा कर मुकाबला 3-3की बराबरी पर ले आया।

57 किलो वज़न के पुरुषों के सातवें और आखिरी मुकाबले एमपी योद्धा के सन्दीप तोमर ने मुम्बयी मराठी के इबरागीम इल्यास को हरा कर आज की जीत एमपी योद्धा के नाम कर दी। आज का मुकाबला 4-3पर ख़त्म हुहैं।

कांग्रेस के लिए लोक सभा की वैतरणी गुटबाजी डुबाएगी

जिन चेहरों के ईर्दगिर्द राजस्थान की राजनीति घूमती है वो चेहरे अपनी पदस्थापना से संतुष्ट हैं?
विधानसभा अध्यक्ष बनने वाले सीपी जोशी के लिए राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष पद छोड़ना कठिन फैसला हो सकता है.

राजस्थान की राजनीति में गुटबाजी और अंदरूनी कलह के बाद चुनावी मौसम में उम्मीदवारों का टिकट मामला, सीएम पद की रेस और फिर सरकार के लिए मंत्रीपद का बंटवारा शांति से निपट गया. राज्य के सभी अनुभवी और जोश से लबरेज नेताओं के सम्मान का ध्यान रखते हुए कांग्रेस आलाकमान ने ताजपोशी भी कर दी. ये सब देखते हुए सियासत की सीधी तस्वीर कहती है कि राजस्थान कांग्रेस में अब शांति है और लोकसभा चुनाव की तैयारियों में कांग्रेस जुट गई है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या वाकई राजस्थान में गुटबाजी थम गई?

अशोक गहलोत को गुजरात और कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में अपनी जादुगरी दिखाने का ईनाम मिला तो सचिन पायलट को 21 सीटों पर सिमटने वाली कांग्रेस को फिर से खड़ा करने के एवज में डिप्टी सीएम का पद मिला. वहीं शपथ लेने वाले मंत्रियों की सूची में नाम न होने के बाद अब सीपी जोशी को भी विधानसभा अध्यक्ष का पद दिया गया है.

क्या वाकई जिन चेहरों के ईर्दगिर्द राजस्थान की राजनीति घूमती है वो चेहरे अपनी पदस्थापना से संतुष्ट हैं? क्या ये सब मिलकर कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव में भी विधानसभा चुनाव की ही तरह दमदार प्रदर्शन के लिए सामूहिक प्रण और रण करेंगे?

साल 2013 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथ से राजस्थान का किला जिस तरह फिसला उससे दोबारा जीत दूर दूर तक मुमकिन नहीं थी. लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में गुटबाजी हावी न हो उसके लिए कांग्रेस ने सबसे पहले गुटबाजी पर विराम लगाने की रणनीति पर काम किया. कांग्रेस ने सीएम की रेस में सभी चेहरों को चुनाव के आखिर तक बने रहने दिया. किसी भी एक नाम को न तो खारिज किया और न ही आगे बढ़ाया.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जब राजस्थान विधानसभा चुनाव से तकरीबन 4 महीने पहले जयपुर में रोड शो किया तो उन्होंने मंच पर अशोक गहलोत और सचिन पायलट को गले मिलवाकर समर्थकों में संदेश भिजवाया. संदेश साफ था कि पहले सब मिलकर लड़ें और बाद में तय होगा कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा.

लेकिन संकेतात्मक प्रयासों के बावजूद राजस्थान में पार्टी अंदरूनी कलह और गुटबाजी को झेल रही थी. पहली गुटबाजी टिकटों के बंटवारे को लेकर अपनी पसंद के उम्मीदवारों को मौका दिए जाने पर शुरू हुई. विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन भरने का पहला दिन आ चुका था. लेकिन कांग्रेस अपने उम्मीदवारों के नाम तय नहीं कर सकी थीं.

नामों पर मंथन के साथ-साथ खींचतान चलती रही. यहां तक कि अशोक गहलोत- सचिन पायलट के बीच टिकटों के बंटवारे के वक्त खींचतान के आरोप लग रहे थे. राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट और तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी के बीच तो तीखी बहस तक हो गई थी. वहीं ‘मेरा बूथ, मेरा गौरव’ अभियान नाम के कार्यक्रमों में नेताओं के साथ मारपीट और कपड़े फाड़ने की घटना भी सामने आई थी.

दरअसल, राजनीति के तराजू में महत्वाकांक्षा और असुरक्षा के पलड़ों के बीच नेता हाथ आए मौके को किसी भी कीमत पर गंवाना नहीं चाहते हैं और यही वजह है कि जब चुनाव आते हैं तो उनका सब्र एक तरफ और आक्रमण हावी हो जाता है. लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने समय समय पर इसी सब्र के बांध को मजबूती से बांधने का काम किया ताकि चुनाव तक एकजुटता बनी रहे. सार्वजनिक मंच पर गहलोत और पायलट को साथ खड़े कर दोनों के ही समर्थकों में सीएम पद को लेकर सस्पेंस भरने का काम किया ताकि चुनावी संगठन और प्रबंधन कमजोर न हो सके. एक तस्वीर राजस्थान की सियासत में वाइरल हुई थी. एक रैली के दौरान एक ही मोटर साइकिल पर अशोक गहलोत और सचिन पायलट साथ जा रहे थे.

किसी तरह गुटबाजी पर अंकुश लगा. लेकिन चुनावी नतीजों ने कांग्रेस को सीटों की सेंचुरी बनाने से रोक दिया. बावजूद इसके कांग्रेस ने राजस्थान में अपने तीन बड़े खिलाड़ियों के जरिए सभी जातियों को साधने का काम जरूर बखूबी से पूरा किया. अब जबकि गहलोत सरकार ने पूरी तरह से कामकाज शुरू नहीं किया है तो ऐसे में पार्टी की गुटबाजी का कोई ताजा मामला सामने नहीं है जो कि लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के लिए चिंता का सबब बने.

गहलोत और पायलट के बीच सत्ता के समझौते के तहत 15–15 मंत्रीपदों के बंटवारे पर सहमति बनी थी. अभी तक कुल 23 मंत्री शपथ ले चुके हैं जिसमें गहलोत समर्थित मंत्रियों की तादाद ज्यादा है. कुल 30 मंत्रियों को शपथ लेना है. ऐसे में 7 मंत्रियों के नाम पर खींचतान हो सकती है.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने पास वित्त मंत्रालय रखा तो पीडब्लूडी विभाग सचिन पायलट को दिया गया. ताकि भारी मंत्रालयों को लेकर छोटी सी नाराजगी बड़ा रूप न ले सके. बाकी बचे मंत्रालयों के बंटवारे के दौरान गुटबाजी असर दिखा सकती है. इसके बाद लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों के चयन के लिए बनने वाली स्क्रीनिंग कमेटी में ही ये तस्वीर साफ हो सकेगी कि राजस्थान में किस गुट का जोर चला और गुटबाजी की नई शक्ल क्या होगी?

विधानसभा अध्यक्ष बनने वाले सीपी जोशी के लिए राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष पद छोड़ना कठिन फैसला हो सकता है. वो आरसीए अध्यक्ष पद छोड़ना नहीं चाहते हैं और शायद इस वजह से पार्टी में नया तनाव उभर सकता है.

बहरहाल, किसानों की कर्जमाफी का दावा करने वाली कांग्रेस सरकार ने भले ही दो दिन में कर्जमाफी का ऐलान कर दिया लेकिन ये ऐलान अभी फाइलों से बाहर निकल नहीं सका है.  कर्जमाफी को लेकर कुछ शर्तें तय की जा रही हैं जिनको लेकर विरोध के सुर उठ रहे हैं. अगर शर्ते किसानों की उम्मीदों के खिलाफ गईं तो इसका खामियाज़ा कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है. फिलहाल, राजस्थान कांग्रेस और राजस्थान सरकार में सब शांत है.

बागी घर लौटे,कर्नाटक संकट टला

तथाकथित बागी विधायक अपने खेमे में पहुंचे और पार्टी में अपना विश्वास जताया, कर्नाटक संकट टला और एक पार्टी वैश्विक अपमान से बची

बेंगलुरु: कांग्रेस विधायक दल की शुक्रवार को होने वाली विधायक दल की अहम बैठक से पहले कई कांग्रेस विधायक पार्टी में लौट आए जिससे एचडी कुमारस्वामी नीत गठबंधन सरकार के लिए संकट के टलने की उम्मीद जगी है. इन विधायकों पर कथित तौर पर भाजपा की नजर थी. कांग्रेस ने पार्टी के अंदर असंतोष थामने की कोशिश तेज कर दी हैं. उधर, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा यहां पहुंचे और उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी सरकार को गिराने के किसी भी अभियान में शामिल नहीं है.

उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के विधायक भी गुरुग्राम से लौट रहे हैं जहां वे कुछ दिनों से ठहरे हुए थे. सरकार को अस्थिर करने की ‘व्यर्थ कोशिश’ करने को लेकर भाजपा पर हमला करते हुए कुमारस्वामी ने उस पर अपने विधायकों को गुरूग्राम के एक होटल में ‘बंधक बना कर’ रखने का आरोप लगाया. सरकार गठन के अपने प्रयास के तहत कांग्रेस विधायकों को फुसलाने की भाजपा की कथित कोशिशों की खबरों से पैदा राजनीतिक उथल-पुथल से जूझ रहे कुमारस्वामी ने भगवा पार्टी के इस आरोप को खारिज कर दिया कि वह भाजपा विधायकों को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. शुक्रवार की कांग्रेस विधायक दल की बैठक को सरकार गिराने की भाजपा की कथित कोशिश के जवाब में कांग्रेस का शक्ति प्रदर्शन माना जा रहा है. सत्तारूढ़ गठबंधन ने कहा है कि भाजपा की कोशिश विफल रही है.

कांग्रेस विधायकों को जारी नोटिस विधायक दल के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने चेतावनी दी कि शुक्रवार की बैठक में विधायकों की गैर-मौजूदगी को गंभीरता से लिया जाएगा. सिद्धरमैया ने कहा, “मैं आपके संज्ञान में लाना चाहता हूं कि आपकी गैर हाजिरी को गंभरता से लिया जाएगा और यह माना जाएगा कि आपने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्राथमिकता सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ने का फैसला कर लिया है.” 
 
उन्होंने कहा कि ऐसे में दल-बदल कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी. हुबली में सिद्धरमैया ने दावा किया कि पार्टी के सभी विधायक सीएलपी की बैठक में आएंगे. जब उनसे पूछा गया कि क्या पार्टी में लौटने वाले असंतुष्ट विधायकों को मंत्री बनाया जाएगा तो उन्होंने कहा, “हमने किसी से नहीं कहा है कि हम उन्हें मंत्री या कुछ और बनायेंगे. कांग्रेस में कोई असंतोष नहीं है.” 

कांग्रेस के लिए राहत की बात है कि कुछ और विधायक, जो कथित रूप से पार्टी के संपर्क से कट गए गए थे तथा जिन्हें कथित रूप से भाजपा अपने पाले में करने के लिए बहला फुसला रही थी, सामने आए और उन्होंने पार्टी के प्रति निष्ठा जताई. येल्लापुर के विधायक शिवराम हेब्बार ने बृहस्पतिवार को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गुंडू राव से भेंट की और कहा कि वह परिवार के साथ अंडमान निकोबार गये थे जिसकी योजना एक महीने पहले बनी थी.

उन्होंने अपनी इस यात्रा को वर्तमान घटनाक्रम के साथ महज संयोग बताया और कहा, “मैं कांग्रेस का कार्यकर्ता हूं… किसी भी कारणसे बिक जाने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता.’’ उनकी तरह कई और विधायकों ने करीब करीब ऐसी ही बात कही. वैसे असंतोष से इनकार करने वाले बल्लारी के विधायक बी नागेंद्र ने अदालती सुनवाई के चलते विधायक दल की बैठक में पहुंच पाने पर संदेह प्रकट किया.

कुमारस्वामी ने संवाददाताओं से कहा कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष येद्दियुरप्पा का बार बार यह दावा करना कि मुख्यमंत्री समेत कांग्रेस जदएस के नेता उनकी पार्टी के विधायकों को लालच दे रहे हैं, उनके लिए हैरत की बात है. उन्होंने कहा, ‘‘वे (सरकार को अस्थिर करने के लिए) सभी प्रकार की व्यर्थ कोशिशें कर रहे हैं. कौन आगे आगे चल रहा है और (विधायकों को) फुसलाने में जुटा है?’’ 

उन्होंने सवाल दागा, “आज मैं येदियुरप्पा और उनके मित्रों से से पूछना चाहता हूं कि कब तक आप गुरुग्राम के एक होटल में ठहरे रहेंगे, आपने किस वजह से विधायकों को बंधक बना रखा है.” बीजेपी पर विधायकों को फुसलाने के लिए ‘हर चीज’ करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा, “लेकिन अब आप हमपर आरोप मढ़ रहे हैं, यदि आप महसूस करते हैं कि आप जो कुछ कह रहे हैं लोग मान लेंगे, तो आप गलत हैं. लोग सही समय पर भाजपा नेताओं को जवाब देंगे.”  

उधर, येदियुरप्पा ने कहा, “बीजेपी से कोई भी किसी भी प्रकार के अभियान या कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के विधायकों को फुसलाने में नहीं लगा है.’’ उन्होंने कहा, “हमने एक स्थान पर अपने सभी विधायकों को एकत्रित किया था और पिछले दो तीन दिन से आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी पर चर्चा कर रहे थे. आज सभी लौट रहे हैं.” उन्होंने कहा, “हम अपने विधायकों को एकत्रित करते हैं तो उन्हें डर किस बात का है, मुझे समझ में नहीं आता. कांग्रेस और जेडीएस के बीच की अंदरूनी लड़ाई नियंत्रण के बाहर जा रही है, अपनी अंदरूनी लड़ाई पर पर्दा डालने के लिए वे भाजपा पर दोष मढ़ रहे हैं.”