दिग्विजय आ जाएं भोपाल और हो जाए दो-दो हाथ: बाबूलाल गौर

‘दिग्विजय भोपाल से चुनाव लड़कर दिखाएं, मालूम पड़ जाएगा. भोपाल में उनका जीतना नाक से लोहे के चने चबाने जैसा है. आ जाएं भोपाल और हो जाए दो-दो हाथ.’

भोपालः बीजेपी के कद्दावर नेता बाबूलाल गौर ने कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को भोपाल से चुनाव लड़ने की चेतावनी दी है. गौर ने कांग्रेस महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को चुनौती देते हुए कहा कि ‘दिग्विजय भोपाल से चुनाव लड़कर दिखाएं, मालूम पड़ जाएगा. भोपाल में उनका जीतना नाक से लोहे के चने चबाने जैसा है. आ जाएं भोपाल और हो जाए दो-दो हाथ.’ बता दें गौर की चुनौती को उनकी भोपाल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा के रूप में भी देखा जा रहा है.

गौर इससे पहले भी भोपाल से लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘मुझे खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने मंच पर बधाई देकर कहा था कि एक बार और बाबूलाल गौर, तो मुझे पूरा भरोसा है कि पार्टी मुझे मौका देगी. लगातार 10 बार विधानसभा में रहा अब दिल्ली देखने की इच्छा.’

इससे पहले पूर्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता भी पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के लोकसभा चुनाव जीतने पर टिप्पणी कर चुके हैं. जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘दिग्विजय सिंह के लिए मध्य प्रदेश मुफीद नहीं है. वह प्रदेश की सरल से सरल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे तो भी उनका हारना तय है. उन्हें तो हमारा कार्यकर्ता ही कम से कम 1 लाख वोटों के अंतर से हरा देगा.’ दरअसल, दिग्विजय सिंह ने एक ट्वीट किया है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि ‘धन्यवाद कमल नाथ जी को जिन्होंने मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमजोर सीटों पर लड़ने का आमंत्रण दिया. उन्होंने मुझे इस लायक समझा मैं उनका आभारी हूं.’

Come and contest Lok Sabha Elections from Bhopal

दिग्विजय सिंह के ट्वीट पर पूर्व भाजपा मंत्री ने कहा कि ‘मध्य प्रदेश में सत्ता का संघर्ष चल रहा है. अकेले दिग्विजय के नहीं कांग्रेस में सबके नेता सिर्फ राहुल गांधी ही हैं और कोई इनके पास बड़ा नेता नहीं है. यह कांग्रेस के बिखराव विभाजन के साफ संकेत हैं.’ वहीं वर्तमान सांसद आलोक संजर ने कहा कि ‘कांग्रेस कभी करीना को चुनाव लड़ाने की बात कहती है तो कभी दिग्विजय सिंह को. मालूम पड़ता है कि कांग्रेस कमजोर होती जा रही है और भोपाल में तो कांग्रेस इतनी कमजोर हो गई है कि बाहर से प्रत्याशी लाने पड़ रहे हैं. दिग्विजय सिंह चुनाव लड़कर देख लें, कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ेगी.’

थरूर के मौसा-मौसी और 13 अन्य ने उठाई केरल में कमल की ज़िम्मेदारी

जब प्रियंका गांधी वाड्रा ने पूर्वी उत्तरप्रदेश की कमान संभाली तभी से वह राष्ट्र भर ए दौरों पर हैं। और तभी से कभी बिहार कभी उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात से वरिष्ठ नेता यहाँ तक की विधायक भी अपने पदों से इस्तीफा दे कर भाजपा का दामन पकड़ रहे हैं। अभी टॉम वादक्कन का मामला शांत भी नहीं हुआ था की शोभना शशिकुमार अपने पति और 13 अन्य सहित भाजपा में शामिल हो गईं। कांग्रेस के अपने को पुन:sथापित करने की राह में यह बड़ी रुकावट है। वहीं शशि थरूर के लिए भी यह अच्छी खबर नहीं है।

कोच्चि: कांग्रेस प्रवक्ता टॉम वडक्कन के भाजपा में शामिल होने के एक दिन बाद तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस के लोकसभा सदस्य शशि थरूर के मौसा-मौसी ने शुक्रवार को भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. थरूर की मां की बहन, सोभना शशिकुमार और उनके पति शशिकुमार तथा 13 अन्य लोग बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी के राज्य अध्यक्ष पी.एस. श्रीधरन पिल्लै ने सभी का पार्टी में स्वागत किया. थरूर के मौसा-मौसी ने कहा कि एक लंबे समय से वे भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा का अनुसरण कर रहे हैं.

 लोकसभा चुनाव 2019 चुनावों के समर में कांग्रेस प्रवक्‍ता टॉम वडक्‍कन ने बीजेपी का दामन थाम लिया था. केरल में शशि थरूर कांग्रेस के बड़े नेताओं में से एक हैं. वह इस समय त‍िरुवनंतपुरम से सांसद है. बीजेपी की लंबे समय से इस सीट पर नजर है. इस बार भी वह उनके सामने अपना मजबूत उम्‍मीदवार उतार सकती है. एेसी भी चर्चा है कि हाल ही में मिजोरम के राज्‍यपाल पद से इस्‍तीफा देने वाले कुम्‍मानम राजशेखरन यहां से चुनाव लड़ सकते हैं. पद संभालने के 10 महीने के बाद ही उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था.

आरएसएस के निष्ठावान व्यक्ति माने जाने वाले और भाजपा की प्रदेश इकाई के पूर्व प्रमुख राजशेखरन (65) को केरल में लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बेहतर मौका नजर आ रहा है. इस राज्य में पार्टी अभी तक अपना खाता नहीं खोल पायी है. भाजपा नेतृत्व ने उम्मीदवार सूची की घोषणा नहीं की है, लेकिन प्रदेश पार्टी के सूत्रों ने यहां कहा कि इसकी काफी संभावना है कि राजशेखरन बहुचर्चित तिरूवनंतपुरम सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. पार्टी राज्य में करीब छह सीटों पर अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है और यह सीट भी उनमें से एक है.

केरल में सत्तारूढ़ एलडीएफ ने शुरू किया चुनावी अभियान, कांग्रेस व भाजपा के प्रत्याशी तय नहीं
केरल में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान 23 अप्रैल को होना है और सत्तारूढ़ एलडीएफ ने इसके लिए सोशल मीडिया पर और घर-घर जाकर प्रचार शुरू कर दिया है. उधर, विपक्षी यूडीएफ तथा भाजपा नीत राजग अभी प्रत्याशियों के नामों पर माथापच्ची करने में जुटे हैं. माकपा नीत वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) ने बहुत पहले उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. इस मोर्चे ने चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की तारीखें घोषित करने से पहले ही अपने उम्मीदवारों के नाम सार्वजनिक कर दिये थे. वाम मोर्चे के उम्मीदवारों ने मतदाताओं से व्यक्तिगत रूप से मिलना शुरू कर दिया है जबकि विपक्षी दल अभी चुनावी समर में उतरने की तैयारी ही कर रहे हैं.

माकपा की ज्‍यादा से ज्‍यादा सीटों पर नजर
भाकपा के वरिष्ठ नेता और तिरूवनंतपुरम सीट से एलडीएफ के उम्मीदवार सी दिवाकरन ने यहां एक स्थानीय मंदिर में पूजा अर्चना के लिए आईं महिला श्रद्धालुओं से वोट मांगे. एलडीएफ ने अपने छह वर्तमान सांसदों और छह विधायकों को चुनावी मैदान में उतारने का फैसला किया है. मोर्चे ने इसके अलावा वरिष्ठ नेताओं और अनुभवी पार्टी सदस्यों को टिकटें दी हैं. अधिक से अधिक सीटें हासिल करना माकपा के वरिष्ठ नेता और मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि लोकसभा चुनावों के नतीजों को उनकी तीन साल पुरानी सरकार के कामकाज के मूल्यांकन के तौर पर देखा जाएगा.

सबरीमाला मुद्दे का कितना होगा असर
विजयन को नतीजों के जरिये यह भी साबित करना है कि सबरीमला मंदिर में सभी आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश को अनुमति के उच्चतम न्यायालय के फैसले को लागू करने के उनके निर्णय को आम लोगों से समर्थन प्राप्त हुआ. विपक्षी कांग्रेस नीत संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चे (यूडीएफ) और भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि वे सबरीमला मुद्दे तथा विजयन के ‘‘अड़ियल रवैये’’ को उठाएंगे.

बीजेपी को खाता खुलने की उम्‍मीद
इस बीच, खबर है कि पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी, केपीसीसी प्रमुख एवं वर्तमान सांसद मुल्लापल्ली रामचंद्रन और वरिष्ठ नेता वीएम सुधीरन सहित कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं ने लेाकसभा चुनाव लड़ने से अनिच्छा जाहिर की है जिससे कांग्रेसी नेतृत्व दुविधा में है. कांग्रेस नीत गठबंधन की चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों ने भी आशाएं बढ़ा दी हैं, जिनमें कांग्रेस नीत मोर्चे का केरल में शानदार प्रदर्शन का पूर्वानुमान लगाया गया है. भाजपा नीत राजग इस दक्षिणी राज्य में अपने उम्मीदवारों पर माथापच्ची करने में जुटा है. उसे इस बार केरल में खाता खुलने की उम्मीद है. वर्ष 2014 लोकसभा चुनावों में, केरल की कुल 20 सीटों में से कांग्रेस नीत यूडीएफ ने 12 जबकि माकपा नीत एलडीएफ ने आठ सीटें जीती थीं.

आरएलएसपी के राम बिहारी पुन: राजग में शामिल

बिहार राजनीति के एक प्रमुख घटक रहे आरएलएसपी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा राजग को छोड़ कांग्रेस और लालू से गलबहियाँ डालने चले गए थे। बहुत मनाने के बाद भी उन्होने अपना हाथ नहीं छोड़ा और अब उन्हें उनकी हठधर्मिता के चलते उनकी पार्टी ही में विघटन हो रहा है, अभी हाल ही में राम बिहारी सिंह का नाम भी इन्हीं कारणों से चर्चा में है।

पटनाः राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) से नेताओं के जाने का दौर जारी है. आरएलएसपी पार्टी से पहले ही कई बड़े नेता जो पार्टी के अहम पद पर पदस्थापित थे वह चले गए. अब पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शामिल राम बिहारी सिंह ने शुक्रवार को पार्टी छोड़ दी. जिससे उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व वाली इस पार्टी को लोकसभा चुनाव से पहले एक झटका लगा है.

आरएलएसपी के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव राम बिहारी सिंह ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने भाजपा के नेतृत्व वाले राजग को छोड़कर विपक्ष के महागठबंधन में शामिल होकर लोगों के साथ ‘विश्वासघात’ करने का आरोप लगाया.

सिंह ने पत्रकारों से कहा, ‘‘मैं उन कुछ लोगों में से था जिन्होंने उस समय कुशवाहा का समर्थन किया था जब उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जद (यू) से अपना रास्ता अलग करने का फैसला किया था. लेकिन आज वह सर्वेसर्वा बन गये है. मैंने राजग छोड़कर महागठबंधन में शामिल होने के उनके निर्णय का भी विरोध किया था लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी और मनमाने ढ़ंग से निर्णय लिया. ऐसा करके उन्होंने राजग सहयोगी के रूप में उन्हें वोट देने वाले लोगों को धोखा दिया है.’’ 

उन्होंने आरोप लगाया कि टिकटों के बंटवारे में कुशवाहा कॉरपोरेट के हाथों खेल रहे है. हालांकि उन्होंने इस संबंध में विस्तृत रूप से नहीं बताया. लेकिन उन्होंने कहा कि एनडीए में भी उन्हें तीन सीट मिल रही थी. और महागठबंधन में भी इससे अधिक मिलने की उम्मीद नहीं है. ऐसे में वह एनडीए में मंत्री पद पर होने के बाद भी क्यों महागठबंधन में आ गए.

आपको बता दें कि आरएलएसपी के एनडीए छोड़ने के साथ ही पार्टी के दो विधायक और एक एमएलसी ने कुशवाहा का साथ छोड़ दिया. वहीं, हाल ही में पार्टी के दो बर्खास्त नेता नागमणि और प्रदीप मिश्रा ने कुशवाहा पर टिकटों को ‘बेचने’ का आरोप लगाया था. आरएलएसपी प्रमुख ने इन आरोपों को खारिज किया था.

मुलायम को दरकिनार कर अपर्णा को चुनाव से दूर रखेंगे अखिलेश यादव

योगी आदित्यनाथ के साथ गोशाला में अपर्णा यादव

लखनऊ :लोकसभा चुनावों की तैयारियों के बीच समाजवादी पार्टी ने अपने प्रत्याशियों की चौथी लिस्ट को जारी कर दिया है. इस लिस्ट में समाजवादी पार्टी की हाई प्रोफाइल सीट कैराना और संभल लोकसभा सीट के उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया गया है. इस लिस्ट के आने के बाद इस बात की सुगबुगाहट तेज हो गई है कि अखिलेश यादव, सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की कोई भी बात नहीं मान रहे हैं. ऐसा इसलिए कहा जा क्योंकि मुलायम सिंह यादव ने संभल लोकसभा सीट से अपर्णा यादव के लिए टिकट मांगा था. 

यह भी कहा जा रहा था कि इस बार इस सीट से यादव परिवार का सदस्य मैदान होगा. सूत्रो के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक, कुछ वक्त पहले मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव से अपर्णा यादव के लिए सिफारिश की थी. सभी सिफारिशों को खारिज करते हुए अखिलेश यादव ने संभल लोकसभा सीट से पार्टी के पूर्व सांसद शफिकुर्रहमान बर्क को प्रत्याशी घोषित किया है. 

अब तक 15 नामों की हुई घोषणा
नई लिस्ट आने के बाद समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों की संख्या 15 हो गई है. पार्टी की ओर से जारी की गई लिस्ट के मुताबिक, मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव, फिरोजाबाद से अक्षय यादव, बदायूं से धर्मेंद्र यादव, इटावा से कमलेश कठेरिया, रोबर्टसगंज से भिलाल कोल, बहराइच से शब्बीर बाल्मीकि, कन्नौज से डिंपल यादव, लखीमपुर खीरी से पूर्वी वर्मा, हरदोई से उषा वर्मा, हाथरस से रामजी लाल सुमन और मिर्जापुर से राजेंद्र एस विंद चुनावी मैदान में होंगे.

पूर्वोत्तर में भाजपा ने मनाए सभी रूठे और नए साथियों को भी लिया साथ

बीजेपी ने पूर्वोत्तर (नॉर्थ ईस्ट) में गठबंधन की प्रक्रिया पूरी कर ली है. पार्टी ने यहां के आठ राज्यों की 25 लोकसभा सीटों में से कम से कम 22 पर जीत हासिल करने का लक्ष्य रखा है.

बीजेपी महासचिव राम माधव ने बुधवार को यह जानकारी दी.

बीजेपी के पूर्वोत्तर प्रभारी माधव ने मंगलवार को आधी रात तक कई दौर की चर्चा की और असम गण परिषद (AGP), बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (BPF), इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT), नेशनल पीपुल्स पार्टी, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी और सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के साथ गठबंधन होने की घोषणा की. 

बीजेपी नेता त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब और IPFT के नेताओं के साथ बुधवार को अगरतला में बैठक करेंगे.

इस गठबंधन को पूर्वोत्तर लोकतांत्रिक गठबंधन (NEDA) के तहत अंतिम रूप दिया गया है. NEDA भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का क्षेत्र की क्षेत्रीय पार्टियों के साथ राजनीतिक गठबंधन है.

राम माधव ने फेसबुक पर पोस्ट किया, ‘इस गठबंधन में क्षेत्र की 25 में से कम से कम 22 सीटें जीतने की क्षमता है और मोदी जी को एक बार फिर प्रधानमंत्री बनते देखने में इसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है.’

इससे पहले मंगलवार को माधव ने नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो, असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल, मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा, मणिपुर के मुख्यमंत्री बिरेन सिंह, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू और एनईडीए के संयोजक हेमंत विश्व शर्मा से मुलाकात की.

Without meaningful alliances, Congress’ revival is at risk

It became evident quite early — even before the drumroll for 2019 Lok Sabha election had begun — that dislodging the BJP would be quite difficult if the Opposition parties don’t strike tactical pre-poll alliances. Accordingly, we saw the movement towards a ‘grand alliance’ or a ‘mahagathbandhan’ where theoretically every seat among the 543 Lok Sabha seats will be a one-on-one contest between the BJP and the Opposition. This was a formula floated by some Opposition leaders such as Mamata Banerjee who made a grand show of Opposition unity in a giant rally in Kolkata last January.

While the theory was sound enough, implementing it on the ground was always going to be a problem. The lack of chemistry quite often runs antithetical to the promise of arithmetic.

File image of Congress president Rahul Gandhi

The bigger question was about the role of Congress. Regional parties that are quite strong in their respective fiefdoms lack national outreach. Their personal ambitions come in the way of stitching up a mythical ‘non-BJP, non-Congress third front’. It was evident that the Congress would need to play the role of a conduit for Opposition unity and anchor the grand alliance, but its own compulsions are posing problems for itself and queering the pitch for a united Opposition against the BJP.

The Congress, right now, is in a state of suspended animation. It seems torn between the twin impulses of ambition and reality. Its ambition of re-emerging as a national alternative to the BJP is crucial to its long-term existence but in the short term, this ambition is rubbing up against the reality of its reduced national footprint, decrepit party structure in several states and the need to strike smart alliances. The Assembly poll results towards the end of last year have compounded the problem.

While the Congress was grudgingly settling down in its new role of playing second fiddle to allies — for instance, the offer of chief minister’s post to seal the JD(S) deal and keep the BJP away from power in Karnataka — the three wins in Hindi heartland seems to have convinced the party that its revival is on course. This could be a red herring.

Misreading the Assembly polls results could prove costly to the Congress and throw a spanner in its plan of preventing Narendra Modi’s return in 2019. For the Congress to act as a conduit for Opposition unity it must show flexibility in working with regional partners and be prepared to make sacrifices to make the alliances work. While this may delay its structural revival, the immediate imperative for the party is to gain a share of power at the Centre. It is an interesting paradox. If the Congress cedes too much space to alliance partners, its revival as a major political force gets delayed. Conversely, if it chooses not to ally with partners and goes alone, it risks getting left out of the power pie which again, may delay its revival.

Mitigating this tension between the need to make space for alliance partners and revive the party’s political relevance is the leadership’s primary task. Going by the trend so far in the campaign season, Rahul Gandhi is faltering in his job.

The Congress president seems unsure about the path to be taken. Let’s take the case of Uttar Pradesh, for example. Having been left out of the SP-BSP alliance, Rahul launched sister Priyanka Gandhi and put her officially in charge of Uttar Pradesh East. Initial media hype and soundbites from Congress’ top leadership created an impression that the party is serious about throwing a challenge to key players in BJP and the SP-BSP alliance. It became quickly clear to Priyanka — tasked with building the party ground up in India’s most crucial state where it is almost non-existent on the ground — that emerging as a serious challenger in the 2019 Lok Sabha polls will be a stretch for Congress. Accordingly, the goalposts were shifted and Congress now talks about strengthening the base first before the next Assembly polls.

As the election dates draw near, the Congress seems unable to stitch alliances and upsetting potential partners. Mayawati has already made it clear that there will be no electoral alliance with the Congress in any state. In reply, the Congress taunted her for not having “even a single seat in the Parliament” and dismissed her.

“How can she decide if the Congress has to come on board or not? We are fighting the election alone and do not want an alliance. We don’t need her,” Uttar Pradesh Congress spokesperson Rajiv Bakshi was quoted, as saying.

It possibly did not occur to Congress that keeping the door open for negotiation works better in politics than arrogance. But its woes in Uttar Pradesh are reflective of its woes elsewhere and utter failure so far in striking pre-poll partnerships. What’s worse is that Congress seems to be still suffering from the ‘big brother’ attitude that regional chiefs such as Mayawati find abhorring. Then there’s the question of Rahul’s acceptability. Many regional leaders still prefer dealing with Sonia Gandhi — West Bengal chief minister Mamata Banerjee, for instance.

While the BJP is busy settling differences with estranged partners and reaching pre-poll deals, the Congress appears laden-footed and arrogant. In Karnataka, which has so far showcased the worst traits of coalition politics, senior Congress leader and former chief minister Siddaramaiah declared on Monday that Congress won’t yield any “sitting MP seats” to partner JD(S).

The BJP, which understands the need for coalition politics in the absence of a ‘wave’ factor, appears generous in offering a seat-sharing deal to partners. BJP national general secretary Ram Madhav announced on Monday that the party has sealed a “grand alliance” in the North East by wooing even estranged partners such as Asom Gana Parishad.

“The BJP, NPP, NDPP, AGP and BPF will fight together in Assam, Nagaland, Meghalaya, Manipur and Arunachal Pradesh with the mission of defeating Congress party in the hustings…,” Madhav wrote, adding that the party will fight alongside Indigenous People’s Front of Tripura (IPFT), its coalition partner in Tripura and will contest from Sikkim in partnership with the Sikkim Krantikari Morcha.

The Congress is trying to strike a deal with the Left Front while simultaneously battling it in Kerala. In Delhi, the Congress has rejected AAP’s overtures, leaving Arvind Kejriwal to utter that AAP will win without Congres’ support.

In Bihar, one of the few places where the Congress is still in with a chance to strike a meaningful alliance, the party has threatened RJD, its key partner, that it will go solo in the state if the seat-sharing formula is not “respectable”.

Even the Congress-NCP alliance in Maharashtra seems to have gotten off to a tumultuous start with NCP veteran Sharad Pawar opting out of the race. In both Maharashtra and Gujarat, Congress has been hit by a volley of defections that some analysts say are BJP’s ploy to demoralise the Congress.

The picture that emerges is that of a party unsure of its core strategy in approaching the elections. Rahul’s aggressive attacks on Modi may grab some eyeballs on prime time television but it’s to be seen whether that alone is enough to stymie BJP’s chances. It is time the Congress president addresses the critical failures in alliance formation and adopts a more flexible stance.

मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस की ‘लंगड़ी सरकार’ है: शिवराज सिंह

लोक सभा चुनावों के बिगुल बजते ही राजनैतिक दल आपसी खींच तान में जुट जाते हैं और कए जगह हमें यह देखने को मिल भी रहा है। फिलहाल तो कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने वालों की संख्या अधिक जान पड़ती है। मध्य प्रदेश में पहले ही से संख्या बल को लेकर हमेशा से घबराई कांग्रेस को बीएसपी ने तो तकरीबन नकार ही दिया है, शायद गठबंधन धर्म निभाने को एसपी भी बसपा की राह चल पड़े। असंतुष्ट विधायकों की भी कांग्रेस में कमी नहीं है, ऐसे में शिवराज सिंह चौहान कांग्रेस को “लंगड़ी सरकार” न कहें तो क्या कहें?

शिवपुरी (मध्यप्रदेश): बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने बुधवार को दावा किया कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस की ‘लंगड़ी सरकार’ है, जो समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) और निर्दलीयों की बैसाखी पर खड़ी है. उन्होंने यह भी कहा कि यह सरकार ज्यादा दिन चलने वाली नहीं है. चौहान ने शिवपुरी जिले के बैराड़ में अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी की ‘विजय संकल्प यात्रा’ के दौरान आयोजित सभा को संबोधित करते हुए यह बात कही.

कांग्रेस की सरकार आते ही डकैतों का राज फिर लौटा
चौहान ने कहा कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आते ही डकैतों का राज फिर लौट आया है. लगातार अपहरण की घटनाएं सामने आ रही हैं. यह इस बात का प्रमाण है कि बंटाधार युग फिर लौट आया है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के पहले कई वादे किए थे, लेकिन बीते ढाई माह में एक भी विकास कार्य नहीं हुआ. सरकार ने प्रदेश में तबादला उद्योग शुरू कर दिया है, विकास के काम ठप हो गए. उन्होंने आरोप लगाया, ‘कांग्रेस सरकार में हर चीज बिकाऊ हो गई है, हर चीज के रेट तय है. ’

देश पीएम मोदी के नेतृत्व में आगे बढ़ रहा है 
चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश आगे बढ़ रहा है. लेकिन यह सब कांग्रेस के मित्रों को रास नहीं आ रहा. उनके नेता लगातार सेना का अपमान कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि मोदी के मुकाबले में कई पार्टियों का ‘ठगबंधन’ है. ‘अब तय आपको करना है कि आपको मजबूत सरकार देने वाले नरेन्द्र मोदी चाहिए या आतंकवादियों के समर्थन में बोलने वाला ठगबंधन.’

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस सरकार के समय जब देश पर आतंकी हमले होते थे, तब कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी कहते थे- ‘देखते हैं.’ तोमर ने कहा, ‘इसके विपरीत जब उरी में आतंकी हमला हुआ, तो पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंकियों को खत्म किया गया. जब पुलवामा में आतंकी हमला हुआ तो एयर स्ट्राइक करके सभी आतंकियों को जहन्नुम पहुंचाने का काम हमारी सेना ने किया.’

पूर्व वरिष्ठ कांग्रेस नेता डॉ॰ जाधव भाजपा से खडगे को देंगे चुनौती

कर्नाटक कांग्रेस में मची घमासान अभी थमी भी न थी की एक और घबराने वाली खबर ने कांग्रेस को चिंता में दाल दिया है। अभी चार दिन पहले कांग्रेस का हाथ छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले डॉ॰ उमेश जाधव, खडगे को लोक सभा चुनावों में चुनौती देंगे। जहां यह खडगे के लिए एक मुश्किल भरी खबर है वहीं डॉ॰ जाधव के लिए भी चुनौती भरी राह होगी।
बीएस येदियुरप्पा ने यह भी दावा किया कि लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी कर्नाटक की 28 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है. 

बेंगलुरु: कर्नाटक बीजेपी के अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा ने बुधवार को कहा कि डॉ. उमेश जाधव लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Elections 2019) में गुलबर्गा सीट से चुनाव लड़ेंगे. येदियुरप्पा ने कहा कि जाधव कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरेंगे. साथ ही उन्होंने कहा कि दिवंगत केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार की पत्नी तेजस्विनी अनंत कुमार बेंगलुरु दक्षिण सीट से चुनाव लड़ेंगी. हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने यह भी कहा कि इस पर अंतिम निर्णय पार्टी आलाकमान लेगा. 

कर्नाटक में जीतेंगे 28 लोकसभा सीट- बीएस येदियुरप्पा
वहीं, बीएस येदियुरप्पा ने दावा किया कि लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी कर्नाटक की 26 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की उपलब्धियों और कर्नाटक सरकार की नाकामी के कारण हमें राज्य में बड़ा फायदा होने की उम्मीद है. उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि राज्य सरकार की नाकाम नीतियों और मोदी सरकार की सफल योजनाओं के कारण कर्नाटक में बीजेपी को 26 सीटें मिलना तय माना जा रहा है. वहीं, उन्होंने कहा कि जाधव को खड़गे के खिलाफ प्रत्याशी बनाने का फैसला पार्टी आलाकमान करेगी. 

मल्लिकार्जुन खड़गे का गढ़ है गुलबर्गा सीट
गौरतलब है कि उमेश जाधव ने हाल ही में कांग्रेस का ‘हाथ’ छोड़कर बीजेपी का दामन थामा है. जाधव उन तीन विधायकों में से एक हैं जो बीते माह ‘गायब’ हो गए थे. इसके बाद कांग्रेस ने विधानसभा स्पीकर से उनकी सदस्यता रद्द करने की मांग की थी. जाधव कलबुर्गी जिले की चिनचोली से दो बार विधायक रह चुके हैं. गुलबर्गा लोकसभा क्षेत्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का गढ़ माना जाता है. 

महाराष्ट्र कांग्रेस के 7 बार के विधायक कालिदास थाम सकते हैं कमल

चुनावी समय में विभिन्न प्रदेशों से कांग्रेस के लिए अच्छी ख़बरें नहीं आ रहीं। बिहार गुजरात के बाद अब महाराष्ट्र से भी कांग्रेस के लिए अच्छी खबर नहीं आ रही। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के पुत्र अब भाजपा का हाथ थामने वाले हैं।

नई दिल्ली: बीते मंगलवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल के बेटे सुजय विखे पाटिल बीजेपी में शामिल होने के बाद ही बुधवार को महाराष्ट्र से कांग्रेस नेता कालिदास कोलंबकर नेे अपनी ही पार्टी पर गंभीर आरोप लगाया है. इसके बाद यह संकेत माना जा रहा है कि जल्द ही कांग्रेस को एक और भी झटका लग सकता है. 7 बार के विधायक कोलंबकर ने मीडिया को बताया कि, ‘हमने कांग्रेस में 10 साल तक मेहनत से काम किया लेकिन कांग्रेस पार्टी 2004 से 2014 तक 10 साल सत्ता में रहते हुए भी उनके क्षेत्र में कोई भी विकास कार्य नहीं किया है.

वहीं दूसरी तरफ कोलंबकर ने सीएम देवेंद्र फडणवीस की तारीफ करते हुए कहा कि, विपक्षी पार्टी के विधायक होने के बाद भी सीएम ने उनकी समस्याओं को सुना और क्षेत्र में विकास कार्य के लिए उचित कदम भी उठाए.कोलंबकर ने कहा कि, जब देवेंद्र फडणवीस ने सीएम के रूप में पदभार संभाला था तो उनसे मिलकर अपने क्षेत्र के कार्यों को लेकर बातचीत की थी.

जिसके बाद उन कार्यों की निपटाने में सीएम ने मदद की. इसके बाद कोलंबकर ने उस सवाल का जवाब दिया जिसमें कहा गया था कि, आपने अपने कार्यालय में जो बैनर लगाया है उसमें देवेंद्र फड़नवीस की फोटो क्यों लगाई है.

कोलंबकर ने कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधते हुए जवाब दिया कि, हमें किसकी फोटो लगानी चाहिए जिसने काम किया या उन लोगों की जिसने 10 साल सत्ता में रहते हुए काम ही नहीं किया. आपको बता दें कि महाराष्ट्र में जहां एक ओर चुनावों को लेकर बीजेपी शिवसेना का प्लान 2019 चल रहा है इसी बीच कांग्रेस विधायक कालीदास कोलंबकर ने अपने कार्यालय में मुख्यमंत्री फड़णवीस के फोटो वाला बैनर लगाया है.

बैनर की सबसे खास बात यह है कि इस बैनर में कोई भी कांग्रेस का बड़ा नेता नहीं दिख रहा है. इसके बाद से कोलंबकर के बीजेपी में शामिल होने की अटकलें तेज हो गई है. इससे पहले भी कोलंबकर ने बताया था कि, उन्हें बीजेपी और शिवसेना की ओर से पार्टी में शामिल होने का ऑफर मिला हुआ है. लेकिन देवेंद्र फडणवीस की तारीफ और तस्वीर लगाने के बाद चर्चा है कि कोलंबकर बीजेपी का दामन थाम सकते हैं.

“कांग्रेस के साथ कहीं भी गठबंधन नहीं करेगी बीएसपी” मायावती

मायावती ने अपनी रणनीति साफ राखी है, की वह किसी भी प्रकार के गठबंधन में स्व्यम को छोटा सांझीदार नहीं बनाने देगी। इसीलिए वह किसी भी बड़े दल के साथ गठबंधन नहीं करेंगी। हाँ यह अवश्य ही उनके दिमाग में है कि चुनावों के पश्चात मोदी विरोधी किसी भी गठबंधन को आवश्यकता हुई तो वह अपनी शर्तों पर संजीवनी का काम कर सकतीं हैं।

मंगलवार को बहुजन समाज पार्टी (BSP) सुप्रीमो मायावती ने ऐलान किया कि उनकी पार्टी कांग्रेस के साथ न सिर्फ उत्तर प्रदेश, बल्कि देश में कहीं भी गठबंधन नहीं करेगी. लखनऊ में बीएसपी की अखिल भारतीय बैठक में मंगलवार को लोकसभा चुनाव की तैयारियों और पार्टी प्रत्याशियों के चयन पर चर्चा की गई. इस बैठक में एक बार फिर स्पष्ट किया गया कि बीएसपी किसी भी राज्य में कांग्रेस पार्टी के साथ कोई चुनावी समझौता नहीं करेगी.

लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने के काफी समय पहले ही बीएसपी ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर लिया था. इस गठबंधन में कांग्रेस पार्टी को शामिल नहीं किया गया. हालांकि सीट बंटवारे के समय इस गठबंधन ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की सीटों पर अपने प्रत्यार्शी नहीं उतारे थे. इस गठबंधन ने यूपी की 80 में से कुल 76 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं.

गौरतलब है कि बीएसपी ने हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी के साथ चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था. लेकिन चुनाव बाद तीन राज्यों (मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़) में बीएसपी ने कांग्रेस पार्टी को समर्थन दिया. इन तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार है.