कॉंग्रेस के बड़े नेताओं ने पेशकश की, त्यागपत्र नहीं सौंपे

मोदी की सुनामी में धराशायी हुई काँग्रेस के नेताओं द्वारा आज कल इस्तीफा-इस्तीफा खेला जा रहा है। यह नौटंकी राहुल द्वारा शुरू की गयी। राहुल तो चाहते थे कि अपने अपने प्रदेशों में कुर्सियों से चिपके नेता जवाबदेही से काम लें। लेकिन राहुल के इस्तीफे कि खबर से ही सबके पाँव तले ज़मीन खिसक गयी। अपनी ज़िम्मेदारी तो क्या तय करनी थी राहुल को मनाने में लग गए। पर राहुल टस से मस नहीं हो रहे। फिर राहुल ने अपना दर्द हरियाणा में युवा कार्यकर्ताओं से सांझा किया, तब जमीनी कार्यकर्ताओं के इस्तीफे आने लग गए। आज जब राहुल अपने इस्तीफे पर अडिग हैं वहीं बड़े नेता (कमलनाथ, गेहलोत) इत्यादि अपनी अपनी कुर्सी से चिपके हुए इस्तीफे कि पेशकश कर रहे हैं।

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने पर अड़े राहुल गांधी को मनाने के लिए अब पार्टी के कार्यकर्ता अनशन पर बैठेंगे. दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमिटी के कार्यकारी अध्यक्ष राजेश लिलोठिया ने कहा कि सभी कांग्रेसजन मानते हैं कि आज ज़रूरत एकजुट होकर नए संकल्प के साथ नई शुरूआत करने की है. चुनाव परिणाम भले ही कुछ भी रहे हों परंतु अपने संघर्ष एवं जुझारूपन से राहुल गांधी देश का मन जीतने में सफल रहे हैं. 

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लिलोठिया ने कहा कि अपने त्याग, स्वच्छ छवि और नेतृत्व क्षमता के कारण इस परिवार का, खास तौर पर राहुल गांधी का कोई विकल्प नहीं हो सकता है. हम राहुल के हर निर्णय का सम्मान करते हैं और उनके नेतृत्व के प्रति आस्था व्यक्त करते हैं. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी के इस्तीफे की पेशकश कांग्रेसजनों के लिए अकल्पनीय और असहनीय है. उन्होंने कहा कि देश की संवैधानिक संस्थाओं तथा संविधान को बचाने एवं देश के ग़रीबों, मज़दूरों एवं किसानों के उत्थान के लिए राहुल के नेतृत्व में जो संकल्प हम सब ने लिया है, वह तभी पूरा हो सकेगा जब वह हमारे अध्यक्ष के रूप में हमारे मार्गदर्शक बने रहें. हम सब को उनके साथ एक नई शुरुआत करने की ज़रूरत है.

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उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि हम सब कांग्रेस कार्यकर्ता आगामी 2 जुलाई को दोपहर 12 बजे से कांग्रेस कार्यालय पर एकत्रित होकर, इस दिशा में प्रयास के लिए अनशन की शुरुआत करेंगे. इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ कांग्रेस शासित राज्यों के 5 मुख्यमंत्रियों ने सोमवार को मुलाकात कर उनसे इस्तीफा वापस लेने की मांग की. बैठक के खत्म होने के बाद राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि राहुल गांधी के साथ बैठक अच्छी रही. हमने करीब दो घंटे तक बातचीत की. हमने राहुल गांधी को पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं की इच्छा से अवगत कराया. गहलोत ने कहा कि उम्मीद है कि राहुल गांधी हमारी बात पर विचार करेंगे और सही निर्णय लेंगे.

अशोक गहलोत ने कहा कि कांग्रेस शासित 5 राज्यों के सीएम ने राहुल गांधी को इस्तीफे की पेशकश की थी. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्रियों के इस्तीफे पर फैसला राहुल गांधी करेंगे. उन्होंने कहा कि चुनाव में हार-जीत होती रहती है और हमने वर्तमान हाताल पर राहुल गांधी से खुलकर चर्चा की. इसके साथ ही गहलोत ने मुख्यमंत्रियों के इस्तीफे की बात पर कहा कि लोकसभा चुनाव के नतीजे आते ही हमने इस्तीफे की पेशकश कर दी थी. अब राहुल गांधी और कांग्रेस नेतृत्व को इस पर फैसला लेना है.

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बता दें कि सोमवार को कांग्रेस शासित पांच राज्यों पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश और पुडुचेरी के मुख्यमंत्रियों ने राहुल गांधी से मुलाकात की. बैठक में अमरिंदर सिंह, कमलनाथ, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल और वी नारायणसामी मौजूद रहे.

गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन के बाद 25 मई को हुई पार्टी कार्य समिति की बैठक में राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश की थी. हालांकि, कार्य समिति के सदस्यों ने उनकी पेशकश को खारिज करते हुए उन्हें आमूलचूल बदलाव के लिए अधिकृत किया था. इसके बाद से राहुल गांधी लगातार इस्तीफे की पेशकश पर अड़े हुए हैं. साथ ही उन्होंने ताकीद की थी कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए गांधी परिवार से किसी को न चुना जाए. हालांकि, पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने उनसे आग्रह किया है कि वह कांग्रेस का नेतृत्व करते रहें.

जल्द आ सकता है कमल नाथ का इस्तीफा

कमलनाथ प्रदेशाध्यक्ष होने के कारण ही अपने बेटे को टिकिट दिलवा पाये थे। 29 में से 28 सीटों पर हारने के बाद भी कमल नाथ ने पद से इस्तीफा नहीं दिया था, कल से जब से demokraticfront.com पर रहुल की द्विधा का खुलासा हुआ तब ही से धड़ाधड़ इस्तीफ़ों की बरसात हो रही है। इसी सूची में अगला नाम मुख्यमंत्री कमाल नाथ का हो सकता था। परांत मुख्यमंत्री का पद प्रदेशाध्यक्ष के पद से बड़ा होता है इसी लिए नए प्रदेशाध्यक्ष की खोज शुरू होने के आसार हैं। कमलनाथ ने कहा, “मैंने मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के ठीक बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते हुए पार्टी आलाकमान से कहा था कि संगठन का यह ओहदा किसी अन्य नेता को सौंप दिया जाये. तब मुझे कहा गया था कि मैं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बना रहूं.”

इंदौर: लोकसभा चुनावों की करारी हार के बाद देश भर में कांग्रेस संगठन में जारी उथल-पुथल के बीच मध्यप्रदेश में पार्टी का अध्यक्ष जल्द बदला जा सकता है. इस बात के स्पष्ट संकेत खुद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने शनिवार शाम दिये जो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बदले जाने की सुगबुगाहट के बारे में पूछे जाने पर कमलनाथ ने कहा, “मैंने मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के ठीक बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते हुए पार्टी आलाकमान से कहा था कि संगठन का यह ओहदा किसी अन्य नेता को सौंप दिया जाये. तब मुझे कहा गया था कि मैं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बना रहूं.”

अप्रैल 2018 में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किये गये वरिष्ठ राजनेता ने कहा, “…तो नया अध्यक्ष (प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष) बनेगा. हमें भाजपा की चुनावी मशीनरी से मुकाबला करना है. इस मुकाबले के लिये हमें इस विरोधी पार्टी की तरह अपनी चुनावी मशीनरी बनानी है. हमें कांग्रेस संगठन को एक नयी दृष्टि से आकार देना है.” इस बीच, कांग्रेस के मीडिया विभाग की प्रदेश इकाई की प्रमुख शोभा ओझा ने कहा, “कमलनाथ कांग्रेस आलाकमान से मिलने जा रहे हैं. मध्यप्रदेश कांग्रेस संगठन को नया अध्यक्ष मिलेगा.”

प्रदेश के गृह मंत्री बाला बच्चन को भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद का दावेदार माना जा रहा है. राज्य के लोक निर्माण मंत्री सज्जन सिंह वर्मा कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष के रूप में बच्चन का नाम सुझा चुके हैं. वर्मा ने 17 जून को एक बयान में कहा था कि आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले बच्चन को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाने से जनजातीय वर्ग में अच्छा संदेश जायेगा.

बच्चन ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उनका नाम सुझाये जाने के बारे में पूछे जाने पर कहा, “मैं कांग्रेस का कार्यकर्ता हूं. अब तक मैंने पार्टी की हर जिम्मेदारी को अच्छी तरह निभाने की कोशिश की है. आने वाले समय में भी पार्टी मुझे जो जिम्मेदारी देगी, मैं उसे बखूबी निभाऊंगा.”

लोकसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रचंड लहर के कारण कांग्रेस को मध्यप्रदेश की 29 में 28 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था. सूबे में सत्तारूढ़ कांग्रेस केवल छिंदवाड़ा सीट जीत सकी थी. यह सीट कमलनाथ का मजबूत गढ़ मानी जाती है. इस बार छिंदवाड़ा सीट से उनके बेटे नकुल नाथ विजयी होकर लोकसभा पहुंचे हैं. नवम्बर 2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को नजदीकी अंतर से सत्ता से बेदखल करते हुए कांग्रेस ने 15 साल के लम्बे अंतराल के बाद सूबे में अपनी सरकार बनायी थी.


सारंगी के सुर सधे हुए पर तीखे हैं

सारंगी ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उसकी छवि गरीब, किसान, महिला विरोधी बनाने की कोशिश की गई। सरकार को सांप्रदायिक दर्शाने और नोटबंदी, जीएसटी और अन्य विषयों को लेकर नकारात्मक छवि पेश करने का प्रयास किया गया।
उन्होंने पूछा, ‘जो लोग भारत के टुकड़े-टुकड़े करने तक जंग रहेगी, पाकिस्तान जिंदाबाद और अफजल गुरू जिंदाबाद के नारे लगाते हैं क्या उन्हें देश में जीने का अधिकार है।’

  • सारंगी ने कहा कि कांग्रेस को मोदी के कामकाज की सफलता को स्वीकार कर उनका अभिनंदन करना चाहिए
  • इस पर कांग्रेस के सदस्य खफा दिखे और उनके खिलाफ नारेबाजी करते नजर आए
  • सदन में मौजूद यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी भी सदस्यों को विरोध करने के लिए संकेत करते हुए देखी गईं

केंद्रीय मंत्री एवं ओडिशा से बीजेपी सांसद प्रताप चंद सारंगी ने सोमवार को लोकसभा में कहा कि कांग्रेस को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले पांच साल के कार्यकाल में किए गए कामकाज की सफलता को स्वीकार कर उनका अभिनंदन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस खुद को जनता की ओर से नकार दिए जाने पर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। 

केंद्रीय पशुपालन राज्य मंत्री प्रताप चंद सारंगी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर लोकसभा में धन्यवाद प्रस्ताव रखते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के समय नीतिगत पंगुता थी और घोटाले पर घोटाले हो रहे थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री मूकदर्शक बने रहते थे। उन्होंने कांग्रेस के प्रथम परिवार (नेहरू-गांधी परिवार) की भी आलोचना की जिस पर विपक्षी पार्टी के सदस्यों ने कड़ा ऐतराज जताया। 

सदन में मौजूद यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी भी सदस्यों को विरोध करने के लिए संकेत करते हुए देखी गईं। कांग्रेस के सदस्यों ने ‘व्यवस्था का प्रश्न’ उठाया, लेकिन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर ‘व्यवस्था का प्रश्न’ नहीं उठाया जाता। 

सारंगी ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उसकी छवि गरीब, किसान, महिला विरोधी बनाने की कोशिश की गई। सरकार को सांप्रदायिक दर्शाने और नोटबंदी, जीएसटी और अन्य विषयों को लेकर नकारात्मक छवि पेश करने का प्रयास किया गया, लेकिन जनता ने विपक्ष के महागठबंधन के प्रयासों को धता बताते हुए एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा जताया। 

अटल ने की थी इंदिरा की प्रशंसा, कांग्रेस को झिझक क्यों?
उन्होंने इस बात का पालन करके दिखाया है। सारंगी ने कहा कि 1971 में जब तत्कालीन जनसंघ नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की प्रशंसा में कोई कसर नहीं छोड़ी थी तो आज कांग्रेस एवं विपक्ष को मोदी की प्रशंसा में झिझक क्यों है। उन्होंने कहा कि यह पहली सरकार है और मोदी ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने हर साल विभिन्न स्थानों पर जाकर अपने कामकाज का हिसाब जनता को दिया। 

जनता ने सामंतियों को हराया, अब तो समझे कांग्रेस
जनता ने काम के आधार पर फिर मोदी को चुना है इसलिए हम जनता के आभारी हैं। सारंगी ने अपने भाषण में कई बार ऋग्वेद, गीता, रामचरित मानस और वेदों के मंत्रों, श्लोकों और सूक्तियों का उल्लेख किया। उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि इस बार जनता ने ‘सामंतियों’ को हराया और साबित किया कि वंशवाद को लोग पसंद नहीं करते। सारंगी ने कहा कि कांग्रेस को अब तो समझ जाना चाहिए । 

कैकेयी से की कांग्रेस की तुलना
उन्होंने रामायण में राम-कैकेयी संवाद का उल्लेख करते हुए कहा कि कैकेयी ने राम को वनवास भेजा तो उन्हें पूरे देश ने जाना और नायक माना, ठीक इसी तरह ‘‘कांग्रेस के हम आभारी हैं।’’ इस दौरान सदन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे। दोनों को भी सारंगी के भाषण के दौरान कई बार मुस्कराते हुए देखा गया। सारंगी ने आपातकाल का भी उल्लेख किया और कांग्रेस पर संविधान का अपमान करने और लोकतंत्र की हत्या करने का आरोप लगाया। उन्होंने सिख विरोधी दंगों (1984) के लिए भी विपक्षी दल को आड़े हाथ लिया। 

संतों के अपमान के चलते नेता विपक्ष का भी नहीं मिला पद
सारंगी ने कहा कि संतों का अपमान किया गया, उसी का परिणाम है कि कांग्रेस को विपक्ष के नेता का भी पद नहीं मिला। उन्होंने कहा कि अमेठी संसदीय सीट से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को हराया और उन्हें केरल जाना पड़ा। केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘अब समय आ गया है कि कांग्रेस आत्मनिरीक्षा करे।’ 

उनकी धाराप्रवाह संस्कृत, हिन्दी, अँग्रेजी और बांग्ला ने समा बांध दिया। वेदों, उपनिषदों, गीता, रामायण, सभी भाषाओं के साहित्य और संविधान पर उनकी पाद का तो विपक्ष भी कायल हो गया। उनके भाषण की सोशल मीडिया पर बहुत तारीफ हो रही है।

आपातकाल कब – क्यूँ और कैसे ?

साभार DNA ज़ी न्यूज़

25 जून 1975 की आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी यानी आपातकाल लगाने की घोषणा की थी. आज़ाद भारत में इमरजेंसी के 21 महीनों के दौरान संवैधानिक अधिकारों को कुचल कर मनमाने ढंग से सत्ता चलाई गई. 25 जून 1975 को Doctor भीम राव अंबेडकर के लिखे संविधान की कीमत…एक साधारण किताब जैसी हो गई थी. इस तारीख़ को गांधीवाद की माला जपने वाली कांग्रेस ने महात्मा गांधी के आदर्शों और उसूलों की हत्या कर दी थी. देश एक ऐसे अंधेरे में डूब गया था, जहां सरकार के विरोध का मतलब था जेल. ये वो दौर था जब अपने अधिकारों को मांगने के लिए भी जनता के पास कोई रास्ता नहीं बचा था, क्योंकि अखबारों में वही छपता था, जो सरकार चाहती थी. रेडियो में वही समाचार सुनाई देते थे, जो सरकार के आदेश पर लिखे जाते थे.

25 जून को इमरजेंसी के 44 वर्ष पूरे हो जाएंगे. भारत में कम से कम दो पीढ़ियां ऐसी हैं, जो इमरजेंसी के बाद पैदा हुईं. और उनमें से सबसे युवा पीढ़ी को तो शायद इमरजेंसी के बारे में पता ही नहीं होगा. इसलिए, हम DNA में इमरजेंसी का विश्लेषण करने वाली एक सीरीज़ शुरू कर रहे हैं. जिसमें हम हर रोज़ आपको इमरजेंसी की अनुसनी कहानियां बताएंगे…ताकि हमारे हर उम्र के दर्शक इसके बारे में अच्छी तरह समझ सकें.

इमरजेंसी क्यों लगाई गई? इसके पीछे इंदिरा गांधी की मंशा क्या थी? इमरजेंसी को लगाने से पहले देश में किस तरह का माहौल था? इसकी जानकारी हम आपको आगे देंगे, लेकिन उससे पहले आपको ये बताते हैं कि आखिर इमरजेंसी होती क्या है? भारतीय संविधान में तीन तरह की इमरजेंसी का ज़िक्र है…

संविधान के Article 352 के तहत National emergency का प्रावधान है. इसे तब लगाया जाता है, जब देश की सुरक्षा को बाहरी आक्रमण से ख़तरा हो. संविधान के Article 356 के तहत State Emergency का प्रावधान है. इसे तब लगाया जाता है, जब राज्य में संवैधानिक मशीनरी फेल हो गई हो. इस इमरजेंसी को राष्ट्रपति शासन या President Rule भी कहा जाता है. और संविधान के Article 360 के तहत Financial emergency का प्रावधान है. इसे तब लगाया जाता है, जब देश की वित्तीय स्थिरता को ख़तरा हो.

भारत में National emergency यानी राष्ट्रीय आपातकाल तीन बार लगाया गया. पहली बार 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान, दूसरी बार 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान. और तीसरी बार 1975 में इंदिरा गांधी के शासनकाल में. 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आंतरिक गड़बड़ियों की आशंका को आधार बनाकर आपातकाल लगा दिया था. इसे एक तानाशाही फैसला कहा जाता है, क्योंकि देश में इमरजेंसी लगाने के आदेश पर कैबिनेट की मंज़ूरी के बिना ही राष्ट्रपति के हस्ताक्षर ले लिए गए थे. अगली ही सुबह विपक्ष के सभी बड़े नेताओं को जेल के अंदर डाल दिया गया था.
देश में जो भी सरकार की आलोचना कर रहा था उसे गिरफ्तार कर लिया गया था.

Lalu Prasad Yadav kept his Daughter name MISA as he was arrested under MISA ACT during Emergency . Now Same MISA is seen hugging & embracing Sonia Gandhi 

आपातकाल में Maintenance of Internal Security Act यानी मीसा के तहत किसी को भी अनिश्चितकाल के लिए गिरफ़्तार कर लिया जाता था और उसे अपील करने का भी अधिकार नहीं था. इंदिरा गांधी ने देश के नागरिकों के सभी मूलभूत संवैधानिक अधिकार छीन लिए थे. लोकतंत्र में जनता ही भगवान है. लेकिन इंदिरा गांधी ने खुद को लोकतंत्र का भगवान समझ लिया था. इसलिए अपनी तानाशाही को बचाये रखने लिए उन्होंने इमरजेंसी लगा दी. इसकी वजह समझनी भी ज़रूरी है.

1971 का चुनाव जीतने के बाद अगले 3 वर्षों में इंदिरा गांधी की लोकप्रियता कम होने लगी. सरकारी नीतियों से देश की अर्थव्यवस्था बदहाल हो गई. भ्रष्टाचार और महंगाई ने लोगों की ज़िंदगी मुश्किल कर दी थी. महंगाई से परेशान सरकारी कर्मचारी वेतन बढ़ाने की मांग कर रहे थे और छात्र भी हालात से परेशान होकर आंदोलन करने लगे.
उस वक्त तमिलनाडु को छोड़कर देश के हर राज्य में कांग्रेस की सरकार थी. लोगों का गुस्सा कांग्रेस सरकारों के प्रति बढ़ता जा रहा था. इसी बीच छात्र संगठनों ने भी आंदोलन तेज़ कर दिया था.

विपक्ष के सभी नेता एकजुट होकर इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग करने लगे. इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ देश भर में हड़ताल, प्रदर्शन, अनशन और आंदोलनों का दौर शुरू हो गया. 1974 में जार्ज फर्नांडिस के साथ करीब 17 लाख रेलवे कर्मचारी 20 दिनों तक हड़ताल पर चले गये. फर्नांडिस उस समय सोशलिस्ट पार्टी के चेयरमैन और ऑल इंडिया रेलवे मैंस फेडरेशन के अध्यक्ष थे. 1974 में इंदिरा गांधी की सरकार ने हड़ताल को गैरक़ानूनी क़रार देते हुए हज़ारों कर्मचारियों को नौकरी से बर्खास्त कर दिया.

इस फैसले के बाद कर्मचारी और मज़दूर इंदिरा गांधी से नाराज़ हो गए. लेकिन इमरजेंसी लगाने की आख़िरी वजह बना 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट को ऐतिहासिक फैसला, जिसमें रायबरेली से इंदिरा गांधी के निर्वाचन को रद्द कर दिया था…और उन्हें भ्रष्ट तरीकों से चुनाव लड़ने का दोषी ठहरा दिया था. आज आपको इस ऐतिहासिक घटनाक्रम के बारे में भी जानना चाहिए. जिसकी कहानी 1971 से शुरू होती है. वर्ष 1971 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी, रायबरेली से लोकसभा चुनाव जीती थीं.

1971 के चुनावों में रायबरेली से इंदिरा के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार खड़ा किया जाना था. कोई तैयार नहीं था, न चंद्रभानु गुप्ता तैयार हुए और न चंद्रशेखर की हिम्मत हुई, न किसी अन्य दिग्गज नेता की. ऐसे में राजनारायण सिंह संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार बने.
12 जून 1975 को फैसला आया. इसके 14वें दिन इंदिरा ने देशभर में आपातकाल लगा दिया.

लेकिन इंदिरा गांधी की इस जीत को उनके विपक्षी उम्मीदवार राजनारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दे दी. राज नारायण संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे. वो अपनी जीत को लेकर इतने आश्वस्त थे कि नतीजे घोषित होने से पहले ही उनके समर्थकों ने विजय जुलूस निकाल दिया था.

लेकिन जब परिणाम घोषित हुआ तो राज नारायण चुनाव हार गए. नतीजा आने के बाद राज नारायण ने इसके ख़िलाफ़ कोर्ट में अर्ज़ी दी. उन्होंने ये अपील की थी कि, इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया है, इसलिए ये चुनाव निरस्त कर दिया जाए. इंदिरा गांधी पर ये आरोप थे कि उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय के एक सीनियर अधिकारी यशपाल कपूर को अपना चुनावी एजेंट बनाया था, जबकि वो एक सरकारी कर्मचारी थे.

इसके अलावा उन्होंने ने भारतीय वायु सेना के विमानों का दुरुपयोग किया और रायबरेली के कलेक्टर और पुलिस अधिकारियों को अपने चुनाव के लिए इस्तेमाल किया. इंदिरा गांधी पर ये आरोप भी था कि चुनाव जीतने के लिए वोटरों को कंबल और शराब भी बंटवाई गई थी. यानी आप आज के विश्लेषण से ये भी जान सकते हैं कि चुनाव जीतने के लिए शराब और दूसरे सामान बांटने का फॉर्मूला इंदिरा गांधी ने 1970 के दशक में ही खोज लिया था. मुक़दमे की सुनवाई के दौरान इंदिरा गांधी पर सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल करने वाले आरोप सही साबित हुए.

इसी आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के खिलाफ एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया और उनके चुनाव को रद्द कर दिया. इस फैसले में अगले 6 वर्षों तक इंदिरा गांधी को लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहरा दिया गया.

ये इंदिरा गांधी के लिए बहुत बड़ा झटका था… उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. 25 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट के Vacation Judge वी आर कृष्णा अय्यर ने अपने फैसले में कहा कि इंदिरा गांधी को संसद में वोट का अधिकार नहीं है…पर वो अगले 6 महीने के लिए प्रधानमंत्री बनी रह सकती हैं.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद विपक्ष ने इंदिरा गांधी पर राजनीतिक हमले तेज़ कर दिए. 25 जून 1975 को ही दिल्ली के रामलीला मैदान में देश के वरिष्ठ राजनेता जयप्रकाश नारायण की रैली हुई और उस रैली में एक नारा दिया गया था- “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है”…..आपने भी ये नारा ज़रूर सुना होगा. लेकिन ये सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता थी.

वह जनसभा जिसने इन्दिरा गांधी की नींद उड़ा दी थी

कहा जाता है कि जयप्रकाश नारायण की रैली को रोकने के लिए भी इंदिरा गांधी ने कई कोशिशें की. दिल्ली की रामलीला मैदान में रैली करने के लिए जयप्रकाश नारायण को Flight से कलकत्ता से दिल्ली आना था लेकिन इंदिरा गांधी ने इस फ्लाइट को कैंसिल करवा दिया. इसके बावजूद वो दिल्ली पहुंच गये. इस रैली में करीब तीन लाख लोगों की संख्या देखकर इंदिरा गांधी घबरा गईं. इसके बाद उन्होंने तुरंत इमरजेंसी लगाने का फैसला ले लिया.

वक़्त बदलने देर नहीं लगती. वर्ष 1971 में इंदिरा गांधी ने लोकसभा को भंग कर के मध्यावधि चुनाव कराए थे. वो भारी बहुमत से चुनकर सत्ता में आई थीं. 1971 में कांग्रेस ने लोकसभा की 352 सीटें जीती थीं. इसके बाद दिसंबर 1971 में पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांटकर इंदिरा गांधी अपनी राजनीति के शिखर पर पहुंच गई थीं. लेकिन, सत्ता से चिपके रहने के इंदिरा गांधी के लालच ने देश को इस अंधकार में झोंक दिया. इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले के बाद इंदिरा गांधी इस्तीफ़ा देकर किसी और को प्रधानमंत्री बना सकती थीं और ये लड़ाई क़ानूनी तरीक़े से लड़कर दोबारा सत्ता हासिल कर सकती थीं. लेकिन, उन्होंने गांधी परिवार से बाहर के किसी सदस्य को प्रधानमंत्री बनाने के विकल्प पर काम नहीं किया और उसका नतीजा इमरजेंसी के तौर पर देश ने भुगता.

इंदिरा गांधी की इमरजेंसी वाली तानाशाही के पीछे एक पूरी टीम काम कर ही थी. इसमें दो तरह के लोग थे. एक वो जो इमरजेंसी को लागू करने की संवैधानिक रणनीति तैयार कर रहे थे. आप इन्हें इमरजेंसी के स्क्रिप्ट राइटर भी कह सकते हैं. इनमें पहला नाम है
सिद्धार्थ शंकर रे– जो उस वक्त पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री थे. माना जाता है इमरजेंसी का आइडिया सिद्धार्थ शंकर रे ने ही इंदिरा गांधी को दिया था. सिद्धार्थ शंकर रे एक मशहूर वक़ील थे और संविधान के जानकार माने जाते थे. इमरजेंसी लगाने से पहले इंदिरा गांधी ने सिद्धार्थ शंकर रे को कोलकाता से दिल्ली बुलाया था.

सिद्धार्थ शंकर रे युवराज को प्रणाम कर आशीर्वाद लेते हुए

इसके बाद 25 जून को रात 11 बजे इंदिरा गांधी और सिद्धार्थ शंकर रे राष्ट्रपति भवन गए. जहां इन दोनों ने इमरजेंसी की घोषणा पर तत्कालीन राष्ट्रपति फख़रुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर कराए. इस तरह, सिद्धार्थ शंकर रे ने संविधान की अपनी जानकारी का इस्तेमाल देश को आपातकाल के अंधकार में झोंकने के लिए किया.

इमरजेंसी के दूसरे बड़े किरदार का नाम है- तत्कालीन राष्ट्रपति फख़रुद्दीन अली अहमद. राष्ट्रपति पद के लिए फख़रुद्धीन अली अहमद के नाम को इंदिरा गांधी ने ही आगे बढ़ाया था. शायद यही वजह थी कि फखरुद्दीन अली अहमद ने विरोध का एक भी शब्द कहे बिना …संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर कर दिए.

आधी रात को इमरजेंसी के पेपर पर राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर पर एक कार्टून भी बना था, जो पूरी दुनिया में चर्चित हो गया. इसमें फख़रुद्दीन अली अहमद अपने बाथटब में लेटे हुए इमरजेंसी के पेपर पर साइन कर रहे हैं और ये कह रहे हैं कि बाक़ी के कागज़ों पर साइन लेने के लिए थोड़ा इंतज़ार करें. इस कार्टून से आप इंदिरा गांधी की सत्ता की शक्ति और तानाशाही का अंदाज़ा लगा सकते हैं.

आपातकाल के “खलनायकों’’ का पता लगा कर सजा देना जरूरी है : ए सूर्य प्रकाश

आपातकाल के दंश को झेल चुके राष्ट्र की आज की युवा पीढ़ी को तो भान भी नहीं की आपातकाल था क्या और उस समय देश की जनता को किन हालातों से गुजरना पड़ा?आज के दौर की आपातकाल से तुलना करने वाले काँग्रेस और विपक्ष के प्रबुद्ध नेताओं को यदि उस दौर की 48 घंटे की भी झलकी दे दी जाये तो वह इस मुद्दे को अपनी प्रताड़नाओं को संयुक्त राष्ट्र तक ले जाएँ। और चुनावों की मांग तक कर डालें। किसी को कष्ट दे कर खुश होना और स्वयं वह वेदना झेलना इन दोनों में अंतर है। आज जब विपक्ष आपातकाल की बात करता है तो मात्र इसीलिए कि वह यव पीढ़ी को बरग्ला सके और विधवाविलाप कर सके। आपातकाल को याद करना बहुत ज़रूरी है। भारतीय लोकतन्त्र के पटल पर वह वो काला अध्याय है जिसकी कभी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए।

नई दिल्ली: प्रसार भारती के प्रमुख ए सूर्य प्रकाश ने सोमवार को कहा कि देश में लोकतंत्र को सुरक्षित करने के लिये आपातकाल के “खलनायकों’’ का पता लगा कर सजा देना जरूरी है. “आपातकाल : भारतीय लोकतंत्र की स्याह घड़ी” पर चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि भारत आपातकाल के दौरान कई महीनों तक “फासीवादी शासन’’ के तहत आ गया था. सूर्य प्रकाश ने कहा, “आपातकाल के खलनायकों ने हमारे संविधान और लोकतांत्रिक जीवन शैली को तबाह किया. मेरे विचार से हमें उनका पता लगाना चाहिए. नाजीवादी 60-70 सालों के बाद अब भी मौजूद हैं. हमें उन्हें यूं ही नहीं छोड़ देना चाहिए.” 

उन्होंने नवीन चावला की ओर इशारा करते हुए कहा, “हमें उनका पता लगा कर उन्हें सजा देनी चाहिए. डॉ. मनमोहन सिंह को इस बात का जवाब देना चाहिए कि शाह आयोग द्वारा तानाशाह बताए गए व्यक्ति को चुनाव आयुक्त क्यों बनाया गया. किसके निर्देश पर उन्होंने यह किया.” प्रकाश ने कहा, “अगर हम अपने लोकतंत्र को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो आपातकाल के खलनायकों एवं उनके आकाओं को सबक सिखाना होगा.” उन्होंने श्रोताओं में से एक के विचार का भी समर्थन किया जिसने आपातकाल के पीड़ितों के नाम एक स्मारक बनाए जाने की राय दी.

राहुल जी, यही नव भारत है, जहां कुत्ते भी आपसे अधिक बुद्धिमान हैं : परेश रावल

लोक सभा च्नावोन में मिली करारी हार से राहुल का उबरना कठिन लग रहा है। वह आए दिन अपने अंदाज़ से भारत की लोक तांत्रिक व्यवस्था का मज़ाक दाते दिखाई पड़ते हैं ओर फिर न्के नेता उनके बचाव में आ जाते हैं, लेकिन रहल हैं के मानते ही नहीं।

नई दिल्ली: राहुल गांधी का योग दिवस पर किए गए तंज पर विवाद बढ़ता जा रहा है. योग दिवस के मौके पर राहुल गांधी ने सेना के जवानों और कुत्तों के जरिए योग करते हुए तस्वीरें ट्वीट की थी. इस पर बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. इस तस्वीर में जवानों के साथ सेना के कुत्ते भी योग करते नजर आ रहे हैं. इस पर राहुल गांधी ने तंज कसा था.

इसके बाद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि सेना का अपमान करना कांग्रेस की परंपरा रही है. कांग्रेस का हाथ नकारात्मकता के साथ. उनके अलावा केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने भी राहुल गांधी के बयान पर निराशा जताते हुए कहा, भगवान उन्हें सदबुद्धि दे.

Congress stands for negativity.
Today, their negativity was seen in their clear support to the medieval practice of Triple Talaq. Now, they mock Yoga Day and insult our forces (yet again!) Hoping the spirit of positivity will prevail. It can help overcome toughest challenges. https://twitter.com/rahulgandhi/status/1142019983485988864 …Rahul Gandhi✔@RahulGandhiNew India.21.5K6:39 PM – Jun 21, 2019Twitter Ads info and privacy7,346 people are talking about this

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर सबसे तीखा हमला बीजेपी के पूर्व सांसद और फिल्म अभिनेता परेश रावल ने किया. उन्होंने कहा, हां राहुल गांधी जी ये न्यू इंडिया है. यहां पर कुत्ते आपसे ज्यादा स्मार्ट हैं.

Yes it’s a NEW INDIA Rahul ji where even dogs are smarter than you . @RahulGandhi27K4:42 PM – Jun 21, 2019Twitter Ads info and privacy8,038 people are talking about this

योग दिवस पर पूरी दुनिया समेत देश के ज्यादातर हिस्सों में योगा दिवस पर कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड के रांची में योग कार्यक्रम में हिस्सा लिया था. खुद कांग्रेस शासित कई राज्यों में योग दिवस पर कार्यक्रम आयोजित किए गए थे.

एक और ख़बर जो ख़बर न बन सकी

1951 में कांग्रेस सरकार ने “हिंदू धर्म दान एक्ट” पास किया था। इस एक्ट के जरिए कांग्रेस ने राज्यों को अधिकार दे दिया कि वो किसी भी मंदिर को सरकार के अधीन कर सकते हैं।
इस एक्ट के बनने के बाद से आंध्र प्रदेश सरकार नें लगभग 34,000 मंदिर को अपने अधीन ले लिया था। कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु ने भी मंदिरों को अपने अधीन कर दिया था। इसके बाद शुरू हुआ मंदिरों के चढ़ावे में भ्रष्टाचार का खेल। उदाहरण के लिए तिरुपति बालाजी मंदिर की सालाना कमाई लगभग 3500 करोड़ रूपए है। मंदिर में रोज बैंक से दो गाड़ियां आती हैं और मंदिर को मिले चढ़ावे की रकम को ले जाती हैं। इतना फंड मिलने के बाद भी तिरुपति मंदिर को सिर्फ 7 % फंड वापस मिलता है, रखरखाव के लिए।

आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री YSR रेड्डी ने तिरुपति की 7 पहाड़ियों में से 5 को सरकार को देने का आदेश दिया था। इन पहाड़ियों पर चर्च का निर्माण किया जाना था। मंदिर को मिलने वाली चढ़ावे की रकम में से 80 % “गैर हिंदू” कामों के लिए किया जाता है।

तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक हर राज्य़ में यही हो रहा है। मंदिर से मिलने वाली रकम का इस्तेमाल मस्जिदों और चर्चों के निर्माण में किया जा रहा है। मंदिरों के फंड में भ्रष्टाचार का आलम ये है कि कर्नाटक के 2 लाख मंदिरों में लगभग 50,000 मंदिर रखरखाव के अभाव के कारण बंद हो गए हैं।
दुनिया के किसी भी लोकतंत्रिक देश में धार्मिक संस्थानों को सरकारों द्वारा कंट्रोल नहीं किया जाता है, ताकि लोगों की धार्मिक आजादी का हनन न होने पाए। लेकिन भारत में ऐसा हो रहा है। सरकारों ने मंदिरों को अपने कब्जे में इसलिए किया क्योंकि उन्हे पता है कि मंदिरों के चढ़ावे से सरकार को काफी फायदा हो सकता है।

लेकिन, सिर्फ मंदिरों को ही कब्जे में लिया जा रहा है। मस्जिदों और चर्च पर सरकार का कंट्रोल नहीं है। इतना ही नहीं, मंदिरों से मिलने वाले फंड का इस्तेमाल मस्जिद और चर्च के लिए किया जा रहा है।

इन सबका कारण अगर खोजे तो 1951 में पास किया हुआ कॉंग्रेस का वो बिल है। हिन्दू मंदिर एक्ट की पुरजोर मांग करनी चाहिए जिससे हिन्दुओ के मंदिरों का प्रबंध हिन्दू करे ।गुरुद्वारा एक्ट की तर्ज पर हिन्दू मंदिर एक्ट बनाया जाए।

राजीव कुमार सैनी,
एडवोकेट हाई कोर्ट इलाहाबाद
स्वयंसेवक
संयोजक , भाजपा विधि प्रकोष्ठ, हाई कोर्ट इलाहाबाद इकाई, प्रयागराज

Mr. Sidhu when are you quitting Politics? Asks Posters in Mohali

Navjot Singh Sidhu overloaded with confidence announced well in time that if his captain ‘Rahul Gandhi’ will lose from his hereditary seat of ‘Amethi’ then Sidhu will quit politics. Later during election campaign of 17th Lok Sabha, he ignored the position of Captain Amrinder Singh in Punjab he guffawed his role in Punjab Politics while Rahul seemed patronising him on various issues. and now…….Posters

When are you quitting politics? Posters seen with Congress leader Navjot Sidhu’s pic seen in Mohali

Mohali, June 21, 2019:  The demand for resignation from Congress leader Navjot Singh Sidhu has once again cropped through the posters with his photograph seen in Mohali.

With the defeat of Rahul Gandhi in Lok Sabha elections, the leaders and social media users had been reminding Navjot Singh Sidhu to honour his commitments and taking retirement from politics with special reference in the posters – When you are quitting the politics? Time has come to keep your words. We are waiting for your resignation.

Added here, the demand for the resignation Punjab Cabinet Minister, Navjot Singh Sidhu has come up with the defeat of Rahul Gandhi from BJP candidate Smriti  Irani in Amethi especially from his critics on the social media.  In fact, in April, Sidhu had announced to resign in case Rahul Gandhi is defeated from Amethi, he will resign from politics.

आज डाकटरों की देशव्यापी हड़ताल

ममता की भड़काई आग में सारे देश के जूनियर डाक्टर हड़ताल पर हैं। अभी तक कहीं कहीं सांकेतिक हड़ताल चल रही थी परंतु आज यानि 17 जून को आईएमए और दूसरे संगठनों ने देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है। जो बात सिर्फ एक आश्वासन से दूर की जा सकती थी उसे पहले ममता ने सांप्रदायिक रंग दिया, फिर क्षेत्रीय मामला बनाया, धमकाया, इस्तीफे – निलंबन और तत्पश्चात अपनी सुरक्षा से भी जोड़ दिया। सब कुछ किया बस वही नहीं किया जो अति साधारण और अति आवश्यक था।

नई दिल्लीः पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों के साथ हुए व्यवहार के बाद हड़ताल का असर पूरे देश में देखने को मिल रहा है. आज राजधानी दिल्ली में सफदरजंग, लेडी हार्डिंग, आरएमएल, जी टीबी, डॉ बाबासाहेब अंबेडकर, संजय गांधी मेमोरियल, दिन दयाल उपाध्याय अस्पताल के डॉक्टर हड़ताल पर रहेंगे. डॉक्टरों के हड़ताल पर रहने के कारण दिल्ली के सभी सरकारी अस्पतालों में ओपीडी सेवाएं और रूटीन ऑपरेशन प्रभावित होंगे. 

इमरजेंसी सेवाएं जारी रहेंगी

इन अस्पतालों में करीब 14,500 रेजिडेंट डॉक्टरों के हड़ताल पर रहने से ओपीडी प्रभावित रहेंगी. वहीं ऑपरेशन थियेटर बंद रहने की वजह से पहले से निर्धारित ऑपरेशन नहीं हो पाएंगे. हालांकि ओपीडी में वरिष्ठ डॉक्टर मौजूद रहेंगे. रेजिडेंट डॉक्टरों का कहना है कि इमरजेंसी में रेजिडेंट डॉक्टर ड्यूटी पर मौजूद रहेंगे. ताकि गंभीर मरीजों का इलाज प्रभावित न होने पाए. आइएमए की घोषणा के मद्देनजर दिल्ली के निजी अस्पतालों में भी ओपीडी सेवा प्रभावित होने की आशंका है. इससे हजारों मरीजों का इलाज प्रभावित होगा.

इन अस्पतालों में जाने से बचें

सफदरजंग, आरएमएल, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, लोकनायक, जीबी पंत, जीटीबी, डीडीयू, संजय गांधी स्मारक अस्पताल, आंबेडकर अस्पताल, गुरु गो¨वद सिंह अस्पताल, हइबास, हिंदू राव, भगवान महावीर अस्पताल, चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय, रेलवे अस्पताल व महर्षि वाल्मीकि अस्पताल, एलबीएस. एम्स के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (आरडीए) ने अपना फैसला बदल लिया है और दोपहर 12 बजे से हड़ताल में शामिल होने के एलान किया है. इससे कार्डियक सेंटर व न्यूरो सेंटर में दोपहर दो बजे से होने वाली ओपीडी प्रभावित होगी.

दिल्ली के इन अस्पतालों के लिए जारी किया गया नंबर

यहां पहुंचने वाले मरीज़ हड़ताल से  अस्पताल में कौन-कौन सी स्वास्थ्य सेवाएं बाधित हुई है उसकी जानकारी हासिल कर सकते हैं..
1. सफदरजंग  :- 26165060, 26165032, 26168336
2. लेडी हार्डिंग :- 011 2336 3728
3. आरएमएल :-91-11-23404040
4. जी टीबी  :- 011 2258 6262
5. डॉ बाबासाहेब अंबेडकर:- 0120 245 0254
6. संजय गांधी मेमोरियल :-011 2792 2843 / 011 2791 5990
7.दिन दयाल उपाध्याय : 011 2549 4402

टीएमसी नेताओं के बच्चे डाक्टरों की हड़ताल के समर्थक

नई दिल्‍ली : पश्चिम बंगाल के कोलकाता में एक अस्‍पताल में तीमारदारों की ओर से डॉक्‍टरों संग की गई मारपीट के बाद शुरू हुई डॉक्‍टरों की हड़ताल पूरे देश में फैल गई है. देश के सबसे बड़े सरकारी अस्‍पताल एम्‍स के भी रेजीडेंट डॉक्‍टर भी इसमें शामिल हो गए हैं. डॉक्‍टरों की इस हड़ताल में कोलकाता के मेयर और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नेता फरहाद हकीम की डॉक्‍टर बेटी भी शामिल हो गई है. उनकी बेटी शबा हकीम ने गुरुवार को डॉक्‍टरों की हड़ताल का समर्थन किया है. इसके साथ ही उन्‍होंने फेसबुक में एक पोस्‍ट लिखा. उसमें उन्‍होंने साफतौर पर कहा है कि मैं टीएमसी समर्थक हूं लेकिन इस मामले में नेताओं के ढुलमुल रवैया और उनकी ओर से साधी गई चुप्‍पी पर मैं शर्मिंदा हूं.

app-facebookShabba Hakimon Wednesday

For those who do not know Doctors in government and most private hospitals are boycotting OPD but are still working in emergency. Unlike other professions we can’t just decide not to work because at the end of the day we have humanity. 
If there was a bus or taxi strike not one taxi driver or bus driver would provide you with any service no matter how dire the situation. 
For those saying “Ono Rugider ki dosh?” Please question the government as in why the police officers post…See more

शबा हकीम ने कोलकाता के केपीसी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल से डॉक्‍टरी की पढ़ाई की है. शबा हकीम ने सोशल मीडिया में पोस्‍ट करते हुए डॉक्‍टरों को पश्चिम बंगाल में काम के समय अस्‍पताल में सुरक्षा उपलब्‍ध कराने की मांग की. बात दें कि इसके बाद शुक्रवार को ही खुद ममता बनर्जी के भतीजे आबेश बनर्जी भी डॉक्‍टरों की इस हड़ताल में शामिल हुए हैं. कोलकाता के केपीसी मेडिकल कॉलेज और अस्‍पताल में पढ़ने वाले आबेश बनर्जी ने डॉक्‍टरों की हड़ताल का समर्थन किया है और इस हड़ताल में शामिल हो गए हैं. 

पश्‍चिम बंगाल में मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी के अल्‍टीमेटम के बाद डॉक्‍टरों की हड़ताल ने तूल पकड़ लिया है. इसी के चलते शुक्रवार को पश्चिम बंगाल के 16 और डॉक्‍टरों ने अपना इस्‍तीफा दे दिया है. ये सभी डॉक्‍टर कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में कार्यरत हैं.

डॉक्‍टरों की सुरक्षा की मांग और पश्चिम बंगाल की घटना के विरोध में डॉक्‍टरों का प्रतिनिधिमंडल ने आज स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन से मुलाकात की है. डॉक्‍टरों के प्रतिनिधिमंडल के साथ मुलाकात से पहले स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने डॉक्‍टरों से सांकेतिक हड़ताल कर मरीजों का इलाज जारी रखने की अपील की. उन्‍होंने कहा कि मैं सभी डॉक्‍टरों को आश्‍वस्‍त करना चाहता हूं कि सरकार उनकी सुरक्षा को लेकर गंभीर है. 

Dr Dev D@neo_natal

Dr Abesh Banerjee, nephew of Mamata Banerjee at KPC hospital Kolkata!!#SaveTheDoctors https://twitter.com/Jb21bh/status/1139209543928258560 …

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#Jayanta Bhattacharya@Jb21bhAbesh Bannerjee, son of @MamataOfficial’s brother Kartik Bannerjee was leading the protest of the doctors of KPC College and Hospital.#BengalBurning,@trunilss,@prettypadmaja,#IndiaFirst, #TeamIndiaFirst510:09 PM – Jun 13, 2019Twitter Ads info and privacySee Dr Dev D’s other Tweets

 
स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने यह भी कहा कि मैं पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी से अनुरोध करता हूं कि इस मामले को अपने सम्‍मान का मुद्दा न बनाएं. उन्‍होंने डॉक्‍टरों को कल अल्‍टीमेटम दिया था, इसीलिए डॉक्‍टर नाराज हो गए और उन्‍होंने हड़ताल कर दी. आज मैं इस मामले में ममता बनर्जी जी को लिखूंगा. साथ ही उनसे बात करने की भी कोशिश करूंगा.