मध्य प्रदेश का सियासी घमासान: कमलनाथ सरकार पर नहीं है कोई संकट, विधान सभा 26 मार्च तक स्थगित

गवर्नर के संक्षिप्त अभिभाषण के पश्चात स्पीकर ने कोरोना वाइरस का हवाला दे कर विधान सभा को 26 मार्च तक किया स्थगित, एक बड़ा संवैधानिक संकट टाला। अब कमल नाथ मुख्यमंत्री बने रहेंगे और राजनैतिक प्रतिशोध का अजेंडा चलाते रहेंगे।

बताया जा रहा है कि बीजेपी सदन में फ्लोर टेस्ट की मांग उठाएगी. इस बीच, देर रात सीएम कमलनाथ राज्यपाल से राजभवन गए. गवर्नर से मुलाकात के बाद उन्होंने बताया, ‘मुझे राज्यपाल लालजी टंडन ने चर्चा के लिए बुलाया था. विधानसभा सत्र को लेकर राज्यपाल चर्चा करना चाहते थे.’ सीएम ने उम्मीद जताई कि सदन की कार्यवाही शांतिपूर्वक चलेगी. सीएम ने कहा, ‘विधानसभा कैसे चलेगी? मतदान कैसे होगा? यह मैं तय नहीं करता हूं. मैंने तो राज्यपाल से कहा था कि फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार हूं.’

विधानसभा के बाहर और अंदर दिलचस्प नज़ारे देखने मिल रहे हैं. कोरोना के खौफ के बीच शिवराज सिंह सहित कई विधायक मास्क लगाकर विधानसभा पहुंचे. वो सदन में सेनेटाइजर लगाते दिखे. कांग्रेस और बीजेपी दोनों तरफ के नेता विक्टरी का साइन दिखाते हुए अंदर दाखिल हुए.

भोपाल.

 भारी उठापटक और पल-पल बदल रहे राजनीतिक घटनाक्रम के बीच मध्य प्रदेश विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो गया है. राज्यपाल के अभिभाषण के साथ सदन की कार्यवाही शुरू हुई.राज्यपाल ने एक मिनट में ही अपना भाषण खत्म कर दिया. महामहिम का भाषण खत्म होते ही बीजेपी विधायकों ने टोका-टाकी शुरू कर दी.

भारी गहमा-गहमी के बीच सीएम कमलनाथ, पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान सहित कांग्रेस और बीजेपी के विधायक विधानसभा पहुंचे.भोपाल की एक होटल में ठहराए गए कांग्रेस विधायक कड़ी सुरक्षा में दो बसों में विधान सभा लाए गए. उनके साथ मंत्री जयवर्धन सिंह और सचिन यादव भी बस में मौजूद थे. बीजेपी के देर रात 2 बजे मानेसर से भोपाल लौटे बीजेपी विधायक शहर से दूर होशंगाबाद रोड पर एक होटल में ठहराए गए थे. वो भी बसों में लाए गए. विधानसभा के बाहर और  अंदर दिलचस्प नज़ारे देखने मिल रहे हैं. कोरोना के खौफ के बीच शिवराज सिंह सहित कई विधायक मास्क लगाकर विधानसभा पहुंचे. वो सदन में सेनेटाइजर लगाते दिखे. कांग्रेस और बीजेपी दोनों तरफ के नेता विक्टरी का साइन दिखाते हुए अंदर दाखिल हुए.

मध्य प्रदेश में जारी राजनीतिक उठापटक के बीच सोमवार का दिन बेहद महत्वपूर्ण है. सबकी निगाहें विधानसभा पर टिकी हुई हैं. विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो रहा है. पहला ही दिन हंगामेदार होने का आसार है. कांग्रेस में बगावत के बाद अब बीजेपी फ्लोर टेस्ट की मांग पर अड़ी है, लेकिन विधानसभा की कार्यसूची में इसे शामिल ही नहीं किया गया है. ऐसे में कमलनाथ सरकार के विश्‍वासमत को लेकर अभी भी सस्‍पेंस बरकरार है. उधर, देर रात सीएम कमलनाथ फिर गवर्नर लालजी टंडन से मिलने पहुंचे. दूसरी तरफ आधी रात के बाद करीब 2 बजे बीजेपी विधायक मानेसर (गुरुग्राम) से भोपाल लौट आए.

बजट सत्र के शुरुआत में राज्यपाल लालजी टंडन का अभिभाषण होगा. बताया जा रहा है कि बीजेपी सदन में फ्लोर टेस्ट की मांग उठाएगी. इस बीच, देर रात सीएम कमलनाथ राज्यपाल से राजभवन गए. गवर्नर से मुलाकात के बाद उन्होंने बताया, ‘मुझे राज्यपाल लालजी टंडन ने चर्चा के लिए बुलाया था. विधानसभा सत्र को लेकर राज्यपाल चर्चा करना चाहते थे.’ सीएम ने उम्मीद जताई कि सदन की कार्यवाही शांतिपूर्वक चलेगी. सीएम ने कहा, ‘विधानसभा कैसे चलेगी? मतदान कैसे होगा? यह मैं तय नहीं करता हूं. मैंने तो राज्यपाल से कहा था कि फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार हूं.’

अल्‍पमत में है कमलनाथ सरकार: शिवराज

बीजेपी नेता और पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भी भोपाल में देर रात प्रेस कॉन्फ्रेंस की. उन्होंने कहा कि सरकार अल्पमत में आ गई है और फ्लोर टेस्ट से भाग रही है. हम फिर से फ्लोर टेस्ट की मांग सदन में रखेंगे. उन्होंने कहा कि भाजपा ने पहले विश्वासमत कराने की बात कही है. राज्यपाल और सीएम की मुलाकात पर शिवराज सिंह ने कहा कि सीएम कमलनाथ का जवाब बहुत मासूम है. उन्होंने इस बात से इंकार किया कि कांग्रेस के किसी विधायक को बीजेपी ने बंधक बना रखा है.

भोपाल पहुंचे बीजेपी विधायक

मध्‍य प्रदेश में जारी सियासी हलचल के बीच रविवार को आधी रात के बाद तकरीबन 2 बजे मानेसर (गुरुग्राम) भेजे गए सभी बीजेपी विधायक वापस भोपाल लौट आए. सोमवार को सभी सदन की कार्यवाही में हिस्‍सा लेंगे. विधायकों की संख्या करीब 104 है. भाजपा के सभी विधायक विशेष विमान से भोपाल पहुंचे. एयरपोर्ट पर नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव औऱ प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वीडी शर्मा ने पार्टी के विधायकों को रिसीव किया. भार्गव ने बाद में बताया कि विधानसभा की कार्यवाही में शामिल होने के लिए बीजेपी के सभी विधायक भोपाल आ गए हैं. उन्होंने हैरत जताई कि विधानसभा की पहले दिन की कार्यसूची में सिर्फ राज्यपाल के अभिभाषण का जिक्र है, फ्लोर टेस्ट की बात नहीं है. भार्गव ने कहा, ‘अगर फ्लोर टेस्ट नहीं हुआ तो हम फिर से सदन में इस पर चर्चा करेंगे. हम राज्यपाल के आदेश का पालन करेंगे.’

बीजेपी नेता भी राज्यपाल से मिले

भोपाल में बीजेपी नेता रविवार को दोबारा राज्यपाल से मिले. गोपाल भार्गव और नरोत्तम मिश्रा ने राज्यपाल से मुलाकात की और उन्हें एक ज्ञापन सौंपा. बीजेपी ने कार्यसूची में फ्लोर टेस्ट को शामिल न करने को असंवैधानिक बताया. बीजेपी ने कहा हमने राज्यपाल से ज्ञापन सौंपकर शिकायत की है. राज्यपाल के आदेश का स्पष्ट उल्लंघन हुआ है. इससे पहले इस तरह की स्थिति पैदा नहीं हुई. राज्यपाल के पास सारी संवैधानिक शक्तियां हैं. गोपाल भार्गव ने कहा कि राज्यपाल ने आश्वासन दिया है कि वह शीघ्र कदम उठाएंगे

समाजवादी पार्टी ने जारी किया व्हिप

कमलनाथ सरकार पर छाए संकट के बीच समाजवादी पार्टी ने व्हिप जारी किया है. पार्टी ने अपने विधायक राजेश शुक्ला के लिए यह व्हिप जार किया है. पार्टी कमलनाथ सरकार के पक्ष में वोट करेगी. सपा अभी कमलनाथ सरकार को बाहर से समर्थन दे रही है.

संवैधानिक संकट से गुज़र रहा मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश में आज से बजट सत्र आरंभ होगा, लेकिन अल्पमत की सरकार बजट कैसे पेश करेगी? कमलनाथ फ्लोर टेस्ट से बचने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं, विधानसभा स्पीकर उनके दल के हैं अत: वह भी इसी प्रयास में हैं की किसी भी तरह बजट सत्र आरंभ हो जाये, उसके बाद ही शक्ति परीक्षण हो। परंतु जब पता है की सरकार गिर जाएगी तो बजट कैसा पेश किया जाएगा, आने वाली सरकार के लिए आत्मघाती ही न हो अथवा बजट में अपनों ही को रेवड़ियाँ बाँट दीं गईं हों। असूलन स्पीकर को राज्यपाल का कहना मानना होता है परंतु कॉंग्रेस से इस बात की अपेक्षा कम ही है।

बीजेपी नेता और पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भी भोपाल में देर रात प्रेस कॉन्फ्रेंस की. उन्होंने कहा सरकार अल्पमत में आ गयी है. लेकिन वो फ्लोर टेस्ट से भाग रही है.हम फिर से फ्लोर टेस्ट की मांग सदन में रखेंगे. उन्होंने कहा-हमने मांग की थी विश्वास मत पहले होना चाहिए.राज्यपाल और सीएम की मुलाकात पर शिवराज सिंह ने कहा कि सीएम कमलनाथ का जवाब बहुत मासूम है. उन्होंने इस बात से इंकार किया कि कांग्रेस के किसी विधायक को बीजेपी ने बंधक बना रखा है.

भोपाल. 

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कमलनाथ सरकार पर हमला बोलते हुए कहा है कि राज्य सरकार अपना बहुमत खो चुकी है और इसी कारण से फ्लोर टेस्ट से बचना चाह रही है.

शिवराज बोले, ‘मध्य प्रदेश सरकार बहुमत खो चुकी है. हम सोमवार को विधानसभा में सरकार से बहुमत साबित करने की मांग करेंगे. मुख्यमंत्री यह कह चुके हैं कि वे फ्लोर टेस्ट चाहते हैं, फिर इससे भाग क्यों रहे हैं. हमारी मांग सिर्फ फ्लोर टेस्ट कराने की है.’ बता दें कि बीजेपी के सभी विधायक भी देर रात जयपुर से भोपाल पहुंच गए.

यह हैं प्रावधान:

भारतीय इतिहास में आज तक ऐसा कभी दिखाई नहीं दिया कि बजट किसी भी कारणवश पारित न हुआ हो। क्योंकि बजट संविधान के अनुसार बजट निचले सदन में पेश किया जाता है जिस वजह से इसे पारित ना होने के कोई कारण ही नहीं रहते क्योंकि निचला सदन बहुमत में होता है। परंतु अगर किसी भी कारणवश बजट पारित नहीं होता तो भारतीय संविधान की धारा 116 के अंतर्गत होने वाली वोटिंग मे बजट के विरोध मे वोटिंग अधिक ही तो उस स्थिति में इसे संवैधानिक संकट माना जाता है और नैतिकता के आधार पर मन्त्रीमंडल को। त्यागपत्र दे देना चाहिए क्योंकि तकनीकी रूप से बजट फेल हो गया। इसका अगला पायदान है सदन में सरकार के खिलाफ अविश्वास पेश करना।

सीएम कमलनाथ द्वारा भाजपा पर विधायकों को बंधक बनाने के आरोप पर जवाब देते हुए कमलनाथ ने कहा, ‘किसी भी विधायक को बंधक नहीं बनाया गया है, राज्य सरकार इन्हें सुरक्षा प्रदान क्यों नहीं कर पा रही.’

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश विधानसभा का बजट सत्र सोमवार से शुरू हो रहा है. सत्र में राज्यपाल का अभिभाषण होगा लेकिन फ्लोर टेस्ट होगा या नहीं, इस पर संशय बरकारार है. दरअसल, विधानसभा की कार्यसूची में बहुमत परीक्षण का विषय नहीं है. केवल राज्यपाल के अभिभाषण का जिक्र है. 

इधर, विधायक दल की बैठक में सीएम कमलनाथ (Kamal Nath) ने कहा कि 21 विधायक बंधक बना लिया गया तो फ्लोर टेस्ट का क्या औचित्य? ऐसे में सवाल यह भी है क्या कमलनाथ राज्यपाल के आदेश की अनदेखी करेंगे. उधर, फ्लोर टेस्ट पर विधानसभा स्पीकर एनपी प्रजापति का कहना है कि कल फ्लोर टेस्ट होगा या नहीं, ये काल्पनिक प्रश्न है. राज्यपाल आदेश दे सकते हैं या नहीं, इसकी व्याख्या भी सोमवार को होगी.

कमलनाथ सरकार पर संकट बरकरार

कमलनाथ सरकार पर संकट बरकरार है. बेंगलुरू से बाकी 16 बागियों ने भी स्पीकर को चिट्ठी भेजकर कहा कि भोपाल नहीं लौटेंगे, इस्तीफा मंजूर करें. बीजेपी ने एक व्हिप जारी करके अपने विधायकों को सोमवार को विधानसभा में उपस्थित रहने और बीजेपी के पक्ष में वोट देने के लिए कहा है. भोपाल में राज्यपाल से रविवार को बीजेपी नेता नरोत्तम मिश्रा और गोपाल भार्गव ने मुलाक़ात की. हाथ उठवाकर वोटिंग की मांग की. उन्होंने कहा कि स्पीकर राज्यपाल की बात मानने के लिए बाध्य है.

राज्य सभा चुनाव के ऐन पहले गुजरात के 4 कांग्रेसी विधायकों के इस्तीफे मंजूर

अहमदाबाद: 

राज्यसभा चुनाव से पहले गुजरात कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. कांग्रेस के चार विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है. विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र त्रिवेदी चारों का इस्तीफा स्वीकार भी कर चुके हैं.

कांग्रेस के जिन चार विधायकों ने इस्तीफा दिया है उनमें – मंगल गावित, जेवी काकड़िया, सोमाभाई पटेल, प्रद्युमन जाडेजा  शामिल हैं. 

बता दें बीजेपी द्वारा गुजरात राज्यसभा चुनाव के लिए तीसरा उम्मीदवार मैदान में उतारे जाने के साथ कांग्रेस की धड़कनें बढ़ गई हैं. कांग्रेस को डर है कि कहीं उसके विधायक भाजपा के पाले में न चले जाएं, इसलिए उसने शनिवार को अपने कई विधायकों को राजस्थान भेज दिया है. 

मीडिया से बात करते हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि कांग्रेस विधायकों पर काफी दबाव है और भाजपा धन और बाहुबल से राज्यसभा चुनाव को प्रभावित करना चाहती है.

182 सदस्यीय गुजरात विधानसभा में भाजपा के पास 103, जबकि कांग्रेस के पास 73 विधायक हैं. राज्यसभा के उम्मीदवार को जीतने के लिए 37 वोटों की जरूरत होगी. दोनों पार्टियों के पास दो सीटें जीतने के लिए पर्याप्त ताकत है. कांग्रेस को उम्मीद है कि निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी उनके उम्मीदवार के लिए ही वोट करेंगे. राज्यसभा की चार सीटों में से फिलहाल भाजपा के पास तीन और कांग्रेस के पास 1 सीट है.

सोनिया राहुल के रहते कोई भी युवा नेता सक्षम नहीं हो सकता

राजविरेन्द्र वशिष्ठ

सोनिया गांधी के खिलाफ कॉंग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने वाले राजेश्वर प्रसाद सिंह विदूड़ी उर्फ राजेश पायलट के बेटे होने की सज़ा भुगत रहे हैं सचिन पायलट। यह आधा अधूरा सच है, असल में काबिल युवा नेता होने के कारण सचिन की अनदेखी कारवाई जा रही है। कल को सिंधिया, देवड़ा, सचिन आदि युवा नेता राहुल गांध से सक्षम साबित हों और क्षेत्रीय क्षत्रप जो वह अभी हैं की भूमिका से आगे बढ़ कर पार्टी में अपनी महती भूमिका तलाश लें और राहुल की अकर्मण्यता एवं प्रियंका गांधी वाड्रा की छवि को भेद दें तो क्या हो। कांग्रेस हाई कमान को यह चिंता सताती है। इसीलिए रहल गांधी के समक्ष कोई भी युवा नेता काबिल नहीं दिखना चाहिए, शायद यही बात राहुल भी समझने लगे हैं।

इक शेर याद आ रहा है,

कांग्रेस की ग्रह-दशा अभी तो ऐसी चल रही है कि कोई मामूली ज्योतिषी भी सटीक भविष्यवाणी कर सकता है. कांग्रेस के राज्य सभा उम्मीदवारों की जो सूची सोनिया गांधी ने फाइनल की है वो भी कांग्रेस के भीतर संभावित घटनाओं की तरफ साफ इशारा करती है.

बाकी राज्यों में कांग्रेस नेताओं के अंसतोष को तो टाला भी जा सकता है, लेकिन राजस्थान का मामला काफी नाजुक लगता है. मालूम नहीं राहुल गांधी और सोनिया गांधी हालात की गंभीरता को किस तरह से ले रहे हैं. राजस्थान से राज्य सभा उम्मीदवार तय करने में जिस तरह से सचिन पायलट की आपत्तियों को खारिज कर अशोक गहलोत की बात मान ली गयी है – ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ कर चले जाने के बाद ये फैसला हैरान करने वाला लगता है. सिंधिया की बगावत के बाद मध्य प्रदेश में कमलनाथ भले ही सरकार कुछ दिन बचा लें लेकिन वे गिनती के ही दिन होंगे.

राहुल गांधी सिंधिया को जानते ज़रूर थे, लेकिन शायद समझते नहीं थे

सिंधिया के कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन करने पर राहुल गांधी ने मीडिया में आकर कहा कि वो उन्हें अच्छी तरह जानते हैं. सही बात है जानते जरूर थे, लेकिन शायद समझने की कोशिश नहीं किये. कुछ तो मजबूरियां रही होंगी. सवाल ये है कि क्या वैसी ही मजबूरियां सचिन पायलट की मुश्किलों को समझने में आड़े आ रही हैं?

सचिन पायलट को कितना जानते हैं राहुल गांधी

2017 के गुजरात चुनाव में राहुल गांधी को नये अवतार में देखा गया था और उन दिनों भी उनके दो साथी करीब ही नजर आते थे – ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट. गुजरात चुनाव खत्म होने के बाद और नतीजे आने से पहले राहुल गांधी ने अध्यक्ष की कुर्सी संभाली थी. तब से सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया की सियासी मुश्किलें ऐसे नजर आयीं जैसे जुड़वां भाइयों की समस्याएं होती हैं. दोनों ही के सामने दो सीनियर और गांधी परिवार के करीबी नेता चुनौती बन गये. दोनों ने विधानसभा चुनाव में बराबर मेहनत की, लेकिन सत्ता हासिल होने पर मलाई खाने दूसरे नेता आ डटे. सचिन पायलट तो डिप्टी सीएम बना दिये गये, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की कौन कहे, उनके किसी समर्थक विधायक को भी ये ओहदा देने के लिए पार्टी नेतृत्व राजी नहीं हुआ – और सिंधिया झोला उठाकर दूसरे फकीरों की टोली में पहुंच गये.

ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने पर जिस तरीके से सचिन पायलट ने रिएक्ट किया है, उस एक ही ट्वीट में राहुल गांधी और सोनिया गांधी के लिए बड़ा संदेश है. अगर राहुल गांधी और सोनिया गांधी जान बूझ कर ऐसी चीजों को नजरअंदाज करते हैं तो ये मान लेना बिलकुल गलत नहीं होगा कि बिगड़ी बातों को बनाने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है

सोनिया गांधी और राहुल गांधी मां-बेटे जरूर हैं, लेकिन दोनों के कुर्सी पर होते कांग्रेस के भीतर की तमाम चीजें एक दूसरे के उलट ही देखने को मिली हैं. राहुल गांधी ने कुर्सी संभालते ही जिस तरह पुराने नेताओं को ठिकाने लगा दिया था, सोनिया गांधी ने भी वही व्यवहार किया है. नतीजा ये हुआ है कि राहुल गांधी की वजह से कांग्रेस में दबदबा रखने वाले नेता उनके कुर्सी छोड़ते ही असुरक्षित महसूस करने लगे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया से पहले हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अशोक तंवर के मामले में जो हुआ सबके सामने ही है. अशोक तंवर तो सोनिया के भी करीबी हुआ करते थे, लेकिन एक झटके में सब खत्म हो गया.

हरियाणा के साथ ही महाराष्ट्र चुनाव भी हुए थे और तब ज्योतिरादित्य सिंधिया महाराष्ट्र के चुनाव प्रभारी बनाये गये थे. जरा याद कीजिये संजय निरूपम ने प्रेस कांफ्रेंस करके क्या कहा था. संजय निरूपम के निशाने पर भी कांग्रेस के बुजुर्गों की टीम ही रही. मिलिंद देवड़ा भी तो जब तक ऐसे मुद्दे उठाते रहे हैं. आम चुनाव के दौरान जितिन प्रसाद ने भी तो बागी रुख अख्तियार कर ही लिया था. नवजोत सिंह सिद्धू भी तो कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन के ही शिकार लगते हैं. कुछ नेताओं की अपनी अलग मजबूरी हो सकती है, लेकिन सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा के मामले में तो कम से कम ऐसा नहीं लगता.

क्या ऐसा नहीं लगता कि सोनिया गांधी ने राहुल गांधी की टीम के ज्यादातर नेताओं को सिंधिया बनने के लिए छोड़ दिया है – और सचिन पायलट भी मुहाने पर ही खड़े हैं. अब ये राहुल गांधी को ही देखना होगा कि वो सचिन पायलट को कितना जानते हैं और कितना समझना चाहते हैं.

ये तो बहुत नाइंसाफी है

अगर राहुल गांधी ये कहते हैं कि राज्य सभा चुनाव में उनका कोई रोल नहीं रहा तो क्या उनके करीबी नेताओं को सिर्फ नाम पर ही टिकट दे दिया गया, जबकि एक एक टिकट के लिए तगड़ी रेस लगी रही. आखिर कैसे राजस्थान से केसी वेणुगोपाल टिकट पा गये और तारिक अनवर से लेकर राजीव अरोड़ा और भंवर जितेंद्र सिंह से लेकर गौरव वल्लभ तक बस मुंह देखते रह गये. आखिर कैसे राजीव साटव महाराष्ट्र से बाजी मारने में कामयाब रहे और मुकुल वासनिक और रजनी पाटिल मन मसोस कर रह गये. आखिर ये दोनों नेता टिकट पाने में सफल तो राहुल गांधी के कारण ही रहे. ऐसा कैसे हो सकता है कि एक बार भी राहुल गांधी से उनकी राय न पूछी गयी हो – राहुल गांधी भले ही कहते फिरें कि वो वायनाड के सांसद भर हैं, लेकिन जिस तरीके से दिल्ली चुनाव और दंगे प्रभावित इलाकों में भाषण देते रहे, वायनाड क्या केरल का कोई नेता या कांग्रेस का ही दूसरा कोई नेता बोल सकता है क्या?

क्या बदले हुए नाजुक हालात में भी राहुल गांधी को एक बार नहीं लगा कि सचिन पायलट की बातों को बार बार नजरअंदाज नाइंसाफी नहीं तो क्या है?

सचिन पायलट हमेशा से मुखर रहे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुद्दे पर तो बोला ही है, जब सोनिया गांधी ने कोटा अस्पताल भेज कर ग्राउंट रिपोर्ट मांगी थी वो पहुंचे और मौके पर भी बरस पड़े. अपनी ही सरकार और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सारी गलतियों का जिम्मेदार बता डाला था.

राजस्थान से कांग्रेस के दो उम्मीदवार तय किये गये हैं – केसी वेणुगोपाल और नीरज डांगी. पता चला है कि सचिन पायलट को जैसे ही राज्य सभा के लिए उम्मीदवारों की फाइल सूची का पता चला, वो सक्रिय हो गये और विरोध करने लगे. सचिन पायलट को केसी वेणुगोपाल को लेकर आपत्ति का तो मतलब भी नहीं था, लेकिन नीरज डांगी को लेकर कड़ा ऐतराज जताया. इतना ही नहीं, सचिन पायलट ने अपनी तरफ से एक नाम का भी सुझाव दिया था, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया.

सचिन पायलट ने नीरज डांगी की जगह कुलदीप इंदौरा का नाम सुझाया था. दिलचस्प बात ये रही कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत के सुझाये नामों में बहुत सारी समानता देखने को मिलती है.

  1. नीरज डांगी तीन बार और कुलदीप इंदौरा दो बार विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं और दोनों में कोई भी जीत नहीं पाया.
  2. नीरज डांगी और कुलदीप इंदौरा दोनों ही राजस्थान प्रदेश युवक कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं.
  3. नीरज डांगी के पिता दिनेशराय डांगी और कुलदीप इंदौरा के पिता हीरालाल इंदौरा भी राजस्थान सरकार में मंत्री रह चुके हैं.
  4. नीरज डांगी और कुलदीप इंदौरा दोनों ही अनुसूचित जाति से आते हैं.

दोनों के करियर ग्राफ पर गौर करें तो और भी कई समानताएं नजर आती हैं, बड़ा फर्क सिर्फ ये है कि सचिन पायलट ने जिसका नाम सुझाया था वो दो बार विधानसभा चुनाव हार चुका है और अशोक गहलोत ने जिसका सपोर्ट किया वो तीन बार.

देखा जाये तो भी सचिन पायलट का कैंडीडेट, अशोक गहलोत के उम्मीदवार से थोड़ा बेहतर रहा – लेकिन सोनिया गांधी ने अशोक गहलोत के उम्मीदवार पर ही मुहर लगायी है. ये कोई बहुत बड़ी बात भी नहीं है, लेकिन जब मालूम है कि पार्टी की स्थिति डांवाडोल है और छोटी छोटी चीजों से बात बिगड़ सकती है तो ये महंगा भी पड़ सकता है.

जैसा कि राहुल गांधी बता रहे थे कि वो ज्योतिरादित्य सिंधिया को अच्छी तरह जानते हैं, बिलकुल वैसे ही न सही लेकिन जानते तो सचिन पायलट को भी होंगे ही. सचिन पायलट की विचारधारा को भी जानते ही होंगे. सचिन पायलट के सामने भी वैसे ही राजनीतिक हालात हैं जैसे सिंधिया के पास रहे. जिस तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनावों में शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ मैदान में डटे रहे, सचिन पायलट भी वैसे ही वसुंधरा राजे के खिलाफ मोर्चे पर बने रहे और मुकाबले करते रहे. बीजेपी के हिसाब से सोचें तो मध्य प्रदेश की ही तरह राजस्थान की हर गतिविधि पर वैसी ही पैनी नजर है. बस एक मौके की तलाश है.

Political Vendetta: कमलनाथ सरकार ने सिंधिया पर कसा शिकंजा, जमीन खरीद मामले में दर्ज हो सकती है FIR

कॉंग्रेस पार्टी राजनैतिक बदले लेने के लिए कुख्यात है। कल सिंधिया द्वारा इस्तीफ़ा दिये जाने के पश्चात भाजपा मे शामिल होने से तिलमिलायी कॉंग्रेस ने अपना अगला कदम उठा लिया है। ग्वालियर में ज़मीन की ख़रीद-फरोख्त के मामले में ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ 10 हजार करोड़ के घोटाले का है आरोप. ग्वालियर के एक वकील के शिकायती आवेदन पर EOW ने जांच शुरू कर दी है। ग्वालियर में SP – EOW बादल दिया गया है और राजनैतिक विद्वेष की नयी पारी शुरू हो गयी है। सिंधिया पर यह आरोप नए नहीं हैं। लेकिन वह अब भाजपा में नहीं हैं। राजस्थान में सोनिया के दामाद वाड्रा पर भी आरोप हैं और वह आरोप अब लगभग 10 साल पुराने हैं, उन आरोपों की जाँच ठप्प पड़ी है, क्योंकि वहाँ सोनिया गांधी का मोहरा मुख्यमंत्री है। वैसे कमलनाथ यह बहुत पहले ही कर दिये होते लेकिन तब काँग्रेस की साख का सवाल था।

भोपाल. 

ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya scindia) के कांग्रेस छोड़ते ही उनकी चारों तरफ से घेराबंदी शुरू कर दी गई है. उनके खिलाफ EOW ने जांच शुरू कर दी है. मामला जमीन की खरीद फरोख्त का है, जिसमें 10 हजार करोड़ के घोटाले का आरोप है. इन मामलों में FIR भी हो सकती है. इस बीच ग्वालियर में पदस्थ EOW के एसपी देवेंद्र सिंह राजपूत का तबादला कर दिया गया है. उनकी जगह अमित सिंह एसपी होंगे.

मध्‍यप्रदेश में चल रहे सियासी घटनाक्रम के बीच कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आए ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के खिलाफ आर्थिक अपराध प्रकोष्‍ठ यानी EOW ने एक पुराने मामले में कार्रवाई शुरू कर दी है. ग्वालियर के वकील सुरेंद्र श्रीवास्‍तव ने एक आवेदन लगाकर कार्रवाई की मांग की है. इसी शिकायती आवेदन पर EOW ने जांच शुरू कर दी है.

ये है शिकायत

26 मार्च 2014 को EOW में एक शिकायती आवेदन दिया गया था. आरोप थे कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके परिवार ने 2009 में महलगांव, ग्वालियर की जमीन (सर्वेक्रमांक 916) खरीदकर रजिस्ट्री में काट-छांटकर आवेदक की 6000 वर्ग फीट जमीन कम कर दी. साथ ही सिंधिया देवस्थान के चेयरमैन और ट्रस्टियों ने महलगांव, जिला ग्वालियर स्थित शासकीय भूमि सर्वे क्रमांक 1217 बेचने के लिए प्रशासन के सहयोग से फर्जी दस्तावेज तैयार किए. इस संबंध में एक शिकायती आवेदन 23 अगस्त 2014 को EOW में दिया गया था. दोनों शिकायतों को जांच के बाद नस्तीबद्ध किया गया था. इसी,से असंतुष्ट होकर श्रीवास्तव ने फिर कार्रवाई के लिए आवेदन दिया है.

EOW ने शुरू की जांच

सुरेंद्र श्रीवास्‍तव के आवेदन पत्र पर EOW की ओर से सत्यापन की कार्रवाई की जा रही है. EOW ने मामले की जांच शुरू कर दी है. इस बीच मध्य प्रदेश शासन ने ग्वालियर में पदस्थ EOW के एसपी का भी तबादला कर दिया है. कमलनाथ सरकार ने EOW के मौजूदा SP देवेंद्र सिंह राजपूत को हटाकर उनकी जगह अमित सिंह को नया एसपी बना दिया है. आपको बता दें कि बुधवार को ज्योतिरादित्य सिंधिया के औपचारिक रूप से बीजेपी में शामिल होते ही उनके प्रभाव वाले इलाकों के डीएम भी बदल दिए गए थे. इसके बाद अब EOW के एसपी के तबादले से सिंधिया की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.

सचिन की खामोशी पर कयास न लगाएँ

मध्य प्रदेश के सियासी संकट में जिस प्रकार कॉंग्रेस के तमाम छोटे बड़े नेता बढ़ चढ़ कर अपनी भूमिका निभा रहे हैं वहीं सिंधिया के मित्र राजस्थान के उप मुख्य मंत्री एवं राजस्थान प्रदेश कॉंग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पाइलट की खामोशी बहुत कुछ कयास लगाने पर मजबूर करती है। वैसे रास्थान में सचिन की स्थिति सिंधिया से बिलकुल उलट है। सच्न को वह सब पहले ही से मिला हुआ है जिसकी सिंधिया अपनी पार्टी से अपेक्षा रखते थे। कयास लगाने के कारण मात्र उनकी(सचिन) और अशोक गहलोत में कभी कभार मुद्दों पर होने वाली असहमति है। आज सोशल मीडिया पर सचिन को अगला सिंधिया कहा जा रहा है जबकि इसकी कोई वजह नहीं दीखती। मौजूदा घटनाक्रम को देखते हुए काँग्रेस पार्टी एक और युवा एवं प्रभावशाली नेता को नहीं खोना चाहेगी, जिससे सचिन की मोलभाव की शक्ति उभरती ही दीखेगी।

जयपुर:

मध्यप्रदेश में चल रहे सियासी संकट से कांग्रेस पार्टी को उबारने में जहां दिल्ली से लेकर राजस्थान के नेताओं ने पूरी ताकत झोंक रखी है. वहीं इन सबके बीच एक नाम बिल्कुल खामोश और नदारद है. वह नाम है प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और सरकार में उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट का. पिछले 2 दिनों में जिस तरह का सियासी घटनाक्रम हुआ है उस पर पायलट की तरफ से ना कोई रिएक्शन आया है ना ही उनकी टि्वटर हैंडल पर कोई ट्वीट देखने को मिला है. इतना ही नहीं जब राजस्थान में सरकार मध्य प्रदेश के कांग्रेस के विधायकों को बचाए रखने की जद्दोजहद में जुटी है तब भी पायलट की गैरमौजूदगी कई सवाल खड़े करती है.

देश में कांग्रेस अपने सबसे बड़े सियासी संकट से जूझ रही है. मध्यप्रदेश कांग्रेस को सियासी संकट से उबरने में दिल्ली से लेकर राजस्थान तक के कांग्रेसी नेताओं ने अपनी पूरी ताकत लगा रखी है. मध्य प्रदेश कांग्रेस के विधायकों को टूटने से बचाने और उनका मनोबल बनाए रखने के लिए जयपुर के दो रिसोर्ट में ठहराया गया है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनकी विश्वस्त साथियों की टीम इस पूरे ऑपरेशन में जुटी हुई है. इस पूरे घटनाक्रम के बीच जहां कांग्रेस के क्षेत्रीय और राष्ट्रीय नेताओं के अलग-अलग बयान सामने आए हैं वहीं सचिन पायलट पिछले 2 दिनों से इस पूरे घटनाक्रम से नदारद रहे हैं.

पायलट की तरफ से इस मसले को लेकर ना किसी तरह का कोई बयान आया है ना उनकी तरफ से कोई ट्वीट दिखाई दिया है. पिछले दो दिनों में सचिन पायलट के टि्वटर हैंडल से 4 ट्वीट किए गए हैं, लेकिन यह सभी ट्वीट कांग्रेस नेताओं को जन्मदिवस की बधाई और नियुक्ति पर बधाई संदेश के अलावा कुछ नहीं है. इन सबके बीच मध्य प्रदेश के कांग्रेसी विधायकों को जब जयपुर लाया गया है. उसके बावजूद पायलट की गैरमौजूदगी हैरान करने वाली है.

हालांकि, महाराष्ट्र कांग्रेस के सियासी घटनाक्रम के दौरान भी पूरे ऑपरेशन की कमान अशोक गहलोत और उनकी टीम के पास ही थी, लेकिन सचिन पायलट उस समय जयपुर में मौजूद रहे थे. इस पूरे घटनाक्रम में सचिन पायलट की गैर मौजूदगी और चुप्पी दोनों ही हैरानी का विषय बनी हुई है. कोई नहीं जानता है कि इसके पीछे वजह क्या है और सचिन पायलट का अगला कदम क्या हो सकता है.

कांग्रेस की सियासत को समझने वाले नेताओं का मानना है कि पायलट पूरे हालातों को मापने और समझने में लगे हैं. हालांकि, मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य और राजस्थान में सचिन पायलट की भूमिका और पोजीशन में जमीन आसमान का अंतर है. जिस तरीके से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ सचिन पायलट के तल्ख रिश्तों की खबरें आती रही हैं उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां पर भी कांग्रेस के भीतर हालात ठीक नहीं है, लेकिन इन सबके बावजूद पर यहां पर सचिन पायलट पीसीसी चीफ और उपमुख्यमंत्री की दोहरी भूमिका में है.

उनकी सत्ता और संगठन दोनों में जिम्मेदारी हैं. उनके विश्वस्त लोगों को सरकार में मंत्री भी बनाया गया है, लेकिन इसके ठीक उलट ज्योतिरादित्य सिंधिया के हाथ मध्यप्रदेश में बिलकुल खाली थे. उन्हें पीसीसी चीफ नहीं बनने दिया गया. राज्यसभा की सीट से भी इंकार कर दिया गया तब जाकर उन्होंने पार्टी छोड़ने का निर्णय लिया. भले ही राजस्थान में सचिन पायलट अभी खामोश हैं, लेकिन इसमें कहीं कोई दो राय नहीं है कि जो हालात मध्यप्रदेश में पैदा हुए हैं उसके चलते राजस्थान में उनकी पोजीशन को मजबूती मिली है.

यहां भी आने वाले दिनों में पीसीसी चीफ की अपनी भूमिका को कंटिन्यू कर सकते हैं. साथ ही राजनीतिक नियुक्तियों मंत्रिमंडल विस्तार और 2 दिनों में होने वाली राज्य सभा सीट के लिए नामों का ऐलान में उनकी बारगेनिंग पावर काफी हद तक बढ़ जाएगी.

ज्योतिरादित्य के भाजपा में शामिल होने पर बुआ वसुंधरा और यशोधरा हुईं भावुक

कांग्रेस का साथ छोड़कर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बुधवार को भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया है. दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी के मुख्यालय में सिंधिया ने पार्टी ज्वाइन की. भाजपा में उनकी एंट्री के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया की दोनों बुआओं ने सिंधिया के इस फैसले का स्वागत किया. राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने ट्वीट कर ज्योतिरादित्य का स्वागत किया, वहीं यशोधरा ने इसे उनकी घर वापसी कहा.

जयपुर.

पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के कांग्रेस से इस्तीफे के बाद बुधवार को बीजेपी में शामिल होने पर राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) ने उनका अपने अंदाज में स्वागत किया है. रिश्ते में ज्योतिरादित्य की बुआ वसुंधरा ने ट्वीट करते हुए कहा है कि ‘आज यदि राजमाता साहब हमारे बीच होतीं तो आपके इस निर्णय पर जरूर गर्व करतीं. ज्योतिरादित्य ने राजमाता जी द्वारा विरासत में मिले उच्च आदर्शों का अनुसरण करते हुए देशहित में यह फैसला लिया है, जिसका मैं व्यक्तिगत और राजनीतिक दोनों ही तौर पर स्वागत करती हूं’. बता दें कि मध्य प्रदेश के सियासी हलके में मंगलवार को अपने पिता माधव राव सिंधिया की 75वीं जन्मतिथि पर ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस का हाथ छोड़ते हुए पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. जानकारी के अनुसार कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से नाराज चल रहे सिंधिया सूबे में सरकार बनने के बाद से ही अपनी उपेक्षा से आहत थे. सिंधिया के कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद 22 कांग्रेसी विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया. उधर, कांग्रेस का दावा है कि कमलनाथ सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी और इन्हीं दावों के बीच विधायकों की बाड़ेबंदी के तहत बुधवार को कांग्रेस विधायकों को भोपाल से जयपुर लाया गया है.

यशोधरा राजे ने कहा कि आज ज्योतिरादित्य की घर वापसी हुई है, ऐसे में उन्हें काफी खुशी है. जल्द ही मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनेगी. यशोधरा ने कहा कि कांग्रेस की कमलनाथ सरकार में कई योजनाओं को बंद किया गया है.

18 साल बाद छोड़ा कांग्रेस का साथ

मध्य प्रदेश कांग्रेस का बड़ा चेहरा रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी में 18 साल का सफर मंगलवार को खत्म कर दिया था. होली के दिन उन्होंने अपना इस्तीफा कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजा था. बुधवार को भाजपा ज्वाइन करते हुए सिंधिया ने कहा कि आज कांग्रेस पहली वाली पार्टी नहीं रही है, ना ही नए नेतृत्व को जगह दी जा रही है.

प्रेस कॉन्फ्रेंस में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राज्य की कमलनाथ सरकार पर भी निशाना साधा और कहा कि 2018 में जिन वादों को लेकर कांग्रेस ने राज्य में सरकार बनाई थी, वो सपने पूरे नहीं किए गए हैं. साथ ही राज्य में भ्रष्टाचार लगातार बढ़ता जा रहा है.

मध्य प्रदेश में सरकार के जाने से नहीं पेट्रोल की गिरती कीमतों पर मोदी की तवज्जो न होने से दुखी हैं राहुल

मध्यप्रदेश में चुनावों के पश्चात जोड़ तोड़ से बनी कमाल नाथ की सरकार का गिरना राहुल गांधी के लिए क्या माने रखता है? राजनैतिक कैरियर के शुरुआती दिनों के साथी हमउम्र सिंधिया के पार्टी छोड़ने और फिर भाजपा में शामिल होने पर राहुल गांधी की पहली प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार आई मानो वह अपने 18 – 20 साल पुराने साथी को खो कर सहज हैं और जब सभी की नज़रें सिंधिया द्वारा उठाए गए इस कदम पर थीं तो शायद मोदी मण्डल पेट्रोल की गिरती कीमतों को लेकर अनभिज्ञ था। अचानक ही राहुल गांधी वित्तीय सलहाकार की भूमिका में आ गए और सरकार को पेट्रोल की कीमत 60 रुपए करने की नसीहत दे डाली।

नई दिल्ली: 

पेट्रोल की कीमतों के घटने के साथ ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री का ध्यान इस ओर खींचने की कोशिश की. ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने की सरगर्मी के बीच कांग्रेस नेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ट्वीट करते हुए कहा है ‘पेट्रोल की कीमतों में गिरावट आ रही है. इस पर ध्यान दिया जाए.’

पेट्रोल 60 रुपये प्रति लीटर करने की मांग

राहुल गांधी ने PMO को टैग करते हुए ट्विटर पर लिखा, ‘सरकार ने शायद नोटिस नहीं किया है कि अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल के दामों में 35 फीसदी की कमी हुई है.’ राहुल गांधी ने आगे लिखा है, ‘पेट्रोल की कीमतों को 60 रुपये प्रति लीटर से कम करके आम लोगों को इसका फायदा मिलना चाहिए.’

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5-6 रुपये की हो सकती है गिरावट

ग्लोबल मार्केट में कच्चे तेल के भाव में इस बड़ी गिरावट के चलते घरेलू मार्केट में इसका असर साफ देखने को मिल सकता है. आने वाले दिनों में पेट्रोल-डीजल का भाव में भी बड़ी गिरावट देखने को मिल सकती है. सीनियर ट्रेड एनालिस्ट अरुण केजरीवाल के मुताबिक, कच्चे तेल के भाव में गिरावट का फायदा भारत को मिलेगा. पेट्रोल-डीजल 6 रुपए प्रति लीटर तक सस्ता हो सकता है. हालांकि, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर बना हुआ है. इसलिए पेट्रोल-डीजल में ज्यादा बड़ी कटौती की उम्मीद कम है.

राजस्थान में अरोड़ा के नाम पर रार

पार्टी सूत्रों के अनुसार पायलट ने दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर उन्हें अपनी नाराज़गी से अवगत कराया है। गहलोत के करीबी समझे जाने वाले अरोड़ा लंबे समय से कांग्रेस से जुड़े हैं। वे प्रदेश में पार्टी के उपाध्यक्ष हैं और पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष रह चुके हैं। पार्टी के स्थानीय नेता संभावित प्रत्याशियों को लेकर खुलकर कुछ भी कहने को तैयार नहीं है। मुख्यमंत्री गहलोत ने ये नाम तय करने के लिए सप्ताहांत नयी दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की थी।

नयी दिल्ली:

मध्य प्रदेश में राजनीतिक घटनाक्रम के बीच राजस्थान से राज्यसभा के दो संभावित प्रत्याशियों को लेकर भी कांग्रेस में रार सामने आ रही है। पार्टी को राज्य में कम से कम दो सीटों के लिए प्रत्याशी तय करने हैं और अंदरूनी सूत्रों के अनुसार एक संभावित नाम का कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट खुलकर विरोध कर रहे हैं।

राजस्थान से राज्यसभा की तीन सीटों के लिए 26 मार्च को चुनाव होना है। मौजूदा विधायक संख्या के आधार पर कांग्रेस के खाते में दो सीटें जानी तय हैं और पार्टी को अपने प्रत्याशियों के नाम अगले दो दिन में तय करने होंगे क्योंकि नामांकन 13 मार्च तक होंगे। इसके लिए सियासी जोड़तोड़ शुरू हो गया है।राजनीतिक गलियारों में तारिक अनवर से लेकर राजीव अरोड़ा और भंवर जितेंद्र सिंह से लेकर गौरव वल्लभ तक अनेक नाम चर्चा में हैं जिनमें से दो पर आने वाले एक दो दिन में मुहर लगनी है। यहां कुछ मीडिया रपटों व पार्टी जानकारों के अनुसार पार्टी तारिक अनवर को राजस्थान से राज्यसभा में भेज सकती है। तारिक अनवर पांच बार लोकसभा व दो बार राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं। दूसरा बड़ा नाम राजीव अरोड़ा का सामने आया है। हालांकि बताया जाता है कि पायलट खेमा उनके नाम को लेकर बिलकुल सहज नहीं है। पार्टी सूत्रों के अनुसार पायलट ने दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर उन्हें अपनी नाराज़गी से अवगत कराया है।

गहलोत के करीबी समझे जाने वाले अरोड़ा लंबे समय से कांग्रेस से जुड़े हैं। वे प्रदेश में पार्टी के उपाध्यक्ष हैं और पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष रह चुके हैं। पार्टी के स्थानीय नेता संभावित प्रत्याशियों को लेकर खुलकर कुछ भी कहने को तैयार नहीं है। मुख्यमंत्री गहलोत ने ये नाम तय करने के लिए सप्ताहांत नयी दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की थी। राजस्थान में राज्यसभा की कुल 10 सीटे हैं जिनमें से फिलहाल नौ भाजपा व एक कांग्रेस के पास है।

कांग्रेस ने पिछले साल अगस्त में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को यहां से राज्यसभा के लिए चुना था। भाजपा के तीन राज्यसभा सदस्य विजय गोयल, नारायण पंचारिया व रामनारायण डूडी का कार्यकाल नौ अप्रैल को पूरा हो रहा है। राज्य विधानसभा में बदले संख्याबल के हिसाब से दो सीटें कांग्रेस को मिलनी तय हैं। भाजपा ने भी अपने प्रत्याशी के नाम की अभी घोषणा नहीं की है। राज्य विधानसभा में कुल 200 विधायकों में से कांग्रेस के पास 107 विधायक व भाजपा के पास 72 विधायक हैं। राज्य के 13 में से 12 निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी कांग्रेस को है।

राजस्थान से राज्यसभा की तीन सीटों के लिए 26 मार्च को मतदान होगा।

भाजपा समय से पहले खुशियाँ न मनाए, अभी काँग्रेस ने अपने पत्ते खोले भी नहीं

एमपी के सीएम कमलनाथ ने अपने विश्वस्त सज्जन सिंह वर्मा को नाराज विधायकों को मनाने का जिम्मा सौंपा है. यानी अब सरकार बचाने की जिम्मेदारी वर्मा के कंधों पर है. सरकार पर गहराए संकट के बादलों के बीच मुख्यमंत्री आवास पर कमलनाथ की अध्यक्षता में कांग्रेस विधायकों की बैठक हुई. जिसमें चार निर्दलीय सहित 94 विधायक शामिल हुए.

भोपाल: 

मध्य प्रदेश की सियासत में आए भूचाल के बाद अभी भी कमलनाथ समर्थक विधायकों को उम्मीद है कि मध्य प्रदेश सरकार इस राजनीतिक संकट से बच जाएगी. सरकार पर गहराए संकट के बादलों के बीच मुख्यमंत्री आवास पर कमलनाथ की अध्यक्षता में कांग्रेस विधायकों की बैठक हुई. जिसमें चार निर्दलीय सहित 94 विधायक शामिल हुए.

”सब कुछ खत्म नहीं हुआ है, हम हार नहीं मानेंगे”

सूत्रों के हवाले से खबर है कि कांग्रेस विधायक दल की बैठक में सीएम कमलनाथ ने संबोधित करते हुए कहा कि सब कुछ खत्म नहीं हुआ है, हम हार नहीं मानेंगे. विधायक मध्यावधि चुनाव में भी जाने के लिए तैयार रहें. सीएम कमलनाथ ने बैठक में आश्वासन दिया कि एसपी-बीएसपी विधायक भी संपर्क में है. वहीं बीजेपी पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी खरीद-फरोख्त तक प्रदेश को बदनाम करने पर आमादा है.

कमलनाथ का मास्टरस्ट्रोक देखने को मिलेगा

कांग्रेस नेता पीसी शर्मा ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि लोगों को अभी कमलनाथ का मास्टरस्ट्रोक देखने को मिलेगा. पीसी शर्मा ने ये जवाब पत्रकारों के उस सवाल पर दिया जब उनसे पूछा गया कि क्या कमलनाथ के पास सरकार बचाने के लिए संख्या बल है. कांग्रेस प्रियव्रत सिंह ने सिंधिया और बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्होंने अपनी महत्वकांक्षा के लिए पार्टी छोड़ी. बीजेपी धनबल के जरिए सरकार गिराने की साजिश में है. हम हार नहीं मानेंगे, सदन से सड़क तक लड़ाई लड़ेंगे. माफिया की मदद से सरकार गिराने की कोशिश है.विधानसभा उपाध्यक्ष हिना कांवरे ने भी ज्योतिरादित्य सिंधिया पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि सिंधिया ने अपने ही लोगों ने धोखा दे दिया है. कांग्रेस हर परिस्थिति के लिए तैयार है. मध्यावधि चुनाव की स्थिति नहीं, फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार.

मीडिया रिपोर्टस के अनुसार विधायकों के इस्तीफे मंजूर नहीं हुए हैं. लेकिन राजनीति में हर संभावनाओं पर चर्चा होती है. सीएम आवास पर मंगलवार शाम को यह बैठक हुई. कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि विधायकों को धोखा देकर राज्यसभा चुनावों की बात कहकर ले जाया गया.

कांग्रेस विधायकों को धोखा देकर ले जाया गया

कांग्रेस नेत्री शोभा ओझा ने बैठक के बाद कमलनाथ सरकार पर किसी भी तरह के खतरे से इनकार किया है. कांग्रेस नेता ने विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने की बात भी कही. कांग्रेस नेताओं का दावा है कि कांग्रेस के वो विधायक जो यहां मौजूद नहीं हैं, वो कांग्रेस के पक्ष में रहेंगे. उनका यह भी कहना है कि कांग्रेस के इन विधायकों को धोखा देकर वहां ले जाया गया है. ओझा ने आरोप लगाया कि उन्हें राज्यसभा चुनाव की बात कहकर वहां ले जाया गया. वो तमाम विधायक सीएम कमलनाथ के टच में हैं.  कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह ने बैठक के बाद कहा कि हमारे पास पर्याप्त संख्या बल है. सरकार को कोई खतरा नहीं है.

कांग्रेस लड़ाई के लिए है तैयार

कांग्रेस नेता लक्ष्मण सिंह ने एएनआई से कहा कि कांग्रेस फिर से लड़ाई करने के लिए तैयार है, अगर इसकी जरुरत पड़ी तो. सिंह ने कहा कि हमारे पास 94 विधायक हैं और कांग्रेस की नैतिकता को कोई भी नीचे नहीं कर सकता है. वहीं, कांग्रेस नेता प्रियव्रत सिंह का कहना है कि कांग्रेस के विधायकों ने सीएम कमलनाथ सरकार के प्रति विश्वास जताया है.

सिंधिया मुर्दाबाद के लगे नारे

जानकारी मिल रही है कि कांग्रेस विधायक दल की बैठक के दौरान सीएम हाउस के बाहर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ जमकर नारेबाजी की.