ऑडिट रिपोर्ट को सीसोदिया ने दी चुनौती, केजरीवाल ने झाड़ा पल्ला, 12 राज्यों में हुई हत्याओं का दोषी कौन?

दिल्ली में ऑक्सीजन के मुद्दे पर गठित सुप्रीम कोर्ट के एक पैनल ने जब अपनी रिपोर्ट पेश की तो आम आदमी पार्टी (आआपा) सरकार पूरी तरह उखड़ गई। बीजेपी की तरफ से सवाल हुआ तो डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने रिपोर्ट को ‘तथाकथित’ कहते हुए रिपोर्ट पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया। इस केस में सीएम अरविंद केजरीवाल ने यह कह कर कि वो दो करोड़ लोगों की लड़ाई लड़ रहे थे रिपोर्ट पर जवाबदेई से पल्ला झाड लिया। अब इस पूरे मामले पर सिर्फ और सिर्फ राजनीति होगी। कानून प्रावधान क्या होने चाहिए और क्या होंगे न तो इस पर चर्चा होगी न ही कोई बनती कार्यवाई। 12 राज्यों में प्राण दायिनी ऑक्सिजन की कमी से जो हत्याएँ हुईं उनको कभी भी न्याय नहीं मिलेगा।

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन संकट को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त किए गए ऑडिट पैनल ने अपनी रिपोर्ट दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जब पूरा देश मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए संघर्षरत था, तब अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने 4 गुणा अधिक ऑक्सीजन की माँग की थी।

इस दौरान राजनैतिक लाभ लेने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री केजरीवाल और उनके मंत्रियों ने लगातार यह कहा था कि दिल्ली को उचित मात्रा में ऑक्सीजन नहीं प्राप्त हो रही है, इसके कारण दिल्ली को आवश्यकता से अधिक ऑक्सीजन प्रदान करनी पड़ी। यह सब तब हुआ जब बाकी राज्य लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन के लिए लगातार प्रतीक्षा कर रहे थे।

ऑडिट पैनल की रिपोर्ट में PESO के द्वारा किए गए अध्ययन को शामिल किया गया है। इसमें यह बताया गया है कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड और पंजाब जैसे राज्य टैंकर और कंटेनर की कमी से जूझ रहे थे, वहीं दिल्ली के 4 कंटेनर सूरजपुर आईनॉक्स में खड़े थे। ये कंटेनर इसलिए खड़े थे, क्योंकि दिल्ली में आपूर्ति आवश्यकता से ज्यादा थी और लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन को स्टोर करने की कोई जगह नहीं थी। इस रिपोर्ट में यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि दिल्ली द्वारा जितनी ऑक्सीजन की माँग की जा रही थी, वास्तविक आवश्यकता उससे कहीं कम थी।

अब चूँकि दिल्ली के अस्पतालों में आवश्यकता से अधिक ऑक्सीजन उपलब्ध थी। इसलिए ऑक्सीजन निस्तारण में अधिक समय लगने लगा। इससे रिलायंस जैसे अपूर्तिकर्ताओं को भी अपने कंटेनर प्राप्त करने और उन्हें रिफिल करके भेजने में औसत से अधिक समय लग गया।

अंतरिम रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दिल्ली न तो ऑक्सीजन के वास्तविक उपयोग का ऑडिट कर रही थी, न ही इसकी वास्तविक माँग का आकलन कर रही थी। इससे केंद्र सरकार उत्तरी भारत के अन्य राज्यों को ऑक्सीजन आवंटित कर सकने में असमर्थ थी, जहाँ अस्पतालों में लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन (LMO) की वास्तविक आवश्यकता थी।

ऑडिट पैनल की रिपोर्ट के अनुसार, 5 मई से 11 मई के बीच पेट्रोलियम एंड ऑक्सीजन सेफ्टी ऑर्गनाइजेशन (PESO) द्वारा किए गए अध्ययन में यह भी पाया गया था कि दिल्ली के लगभग 80% प्रमुख अस्पतालों में 12 घंटे से अधिक समय तक LMO का स्टॉक था। औसत दैनिक खपत 282 मीट्रिक टन से 372 मीट्रिक टन के बीच पाई गई और दिल्ली में उस समय मांग की जा रही 700 मीट्रिक टन LMO के लिए पर्याप्त भंडारण सुविधाएँ नहीं थीं।

यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आआपा सरकार द्वारा LMO की कमी का दावा किया गया था। उसके बाद जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार को दिल्ली को 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति बनाए रखने का निर्देश दिया था। वहीं, केंद्र ने विशेषज्ञों के सुझाव के आधार पर 415 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति निश्चित करने की बात कही थी।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 9 मई से केजरीवाल की आआपा सरकार पड़ोसी राज्यों में वैकल्पिक भंडारण स्थान प्राप्त करने की कोशिश कर रही थी क्योंकि उनके पास LMO के लिए भंडारण स्थान समाप्त हो गया था। दिल्ली की आआपा सरकार ने भंडारण सुविधाओं की कमी के कारण एयर लिक्विड कंपनी से आवंटित LMO (150 एमटी) की तुलना में कम मात्रा में ऑक्सीजन उठाई थी। केजरीवाल सरकार ने कंपनी से पानीपत और रुड़की में अपने संयंत्रों में उनके लिए LMO स्टोर करने के लिए भी कहा था।

इतना ही नहीं, दिल्ली की आआपा सरकार के कारण ओडिशा में लिंडे और JSW झारसुगुड़ा जैसे संयंत्रों को अपने टैंकर होल्ड करने और अन्य राज्यों को आपूर्ति में देरी करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। दरअसल, दिल्ली में आआपा सरकार ने उपलब्ध और आवंटित ऑक्सीजन टैंकरों का उपयोग ही नहीं किया अथवा अस्पतालों में स्टोरेज की अनुपस्थिति के कारण टैंकर वापस कर दिए गए। गोयल गैसेस ने सूचित किया था कि दिल्ली के अस्पतालों के पास आवश्यक ऑक्सीजन उपलब्ध है और उनके पास कोई अतिरिक्त भंडारण सुविधा उपलब्ध नहीं है इसलिए उनके टैंकर लंबे समय तक इंतजार करते रहे जिसके परिणामस्वरूप अन्य राज्यों को ऑक्सीजन आपूर्ति में कमी हो गई।

दिल्ली में केजरीवाल की आआपा सरकार ने केंद्र सरकार पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए बड़े पैमाने पर हंगामा किया और दिल्ली की ऑक्सीजन को रोके रखने के लिए अन्य राज्यों को भी जिम्मेदार ठहराया था। केजरीवाल ने तो प्रोटोकॉल को भी तोड़ा और पीएम मोदी के साथ मुख्यमंत्रियों की गोपनीय बैठक के वीडियो फुटेज को टीवी पर दिखा दिया। मीटिंग में उन्हें यह कहते हुए देखा गया कि दिल्ली को ऑक्सीजन की बहुत अधिक जरूरत है। दिल्ली सरकार का राजनैतिक और मीडिया का ड्रामा इतना अधिक हो गया था कि अंततः सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल देना पड़ा।

अब प्रश्न यह हा कि तब दिल्ली ऑक्सिजन की कमी का स्वत: संगयान लेने वाले न्यायालय अब आआपा की इस रिपोर्ट पर या कार्यवाई कराते हैं या फिर अब शास्त्र मौन हैं

हिंदुत्व का बड़ा चेहरा बने योगी, मोदी और शाह के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं

राजनीतिक जगत में इस बात की भी चर्चा है कि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्ष नेताओं को अब ऐसा फ़ैसला समझ में आ रहा है, जिसे अब बदलना और बनाए रखना, दोनों ही स्थितियों में घाटे का सौदा दिख रहा है।  दूसरे, पिछले चार साल के दौरान बतौर मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ की जिस तरह की छवि उभर कर सामने आई है, उसके सामने चार साल पहले के उनके कई प्रतिद्वंद्वी काफ़ी पिछड़ चुके हैं।  यहां तक कि पिछले दो हफ़्ते से आरएसएस और बीजेपी के तमाम नेताओं की दिल्ली और लखनऊ में हुई बैठकों के बाद यह माना जा रहा था कि शायद अब यूपी में नेतृत्व परिवर्तन हो जाए लेकिन बैठक के बाद वो नेता भी योगी आदित्यनाथ की तारीफ़ कर गए जिन्होंने कई मंत्रियों और विधायकों के साथ आमने-सामने बैठक की और सरकार के कामकाज का फ़ीडबैक लिया। 

करणीदानसिंह राजपूत, सूरतगढ़:

भाजपा शासित राज्यों में विरोध की दशा दिशा में अभी तो केवल मोदी के नाम के सहारे ही लड़ने और जीतने की संभावना मानते हुए राज्यों के चुनाव में उतरेंगे मगर मोदी-शाह की सबसे बड़ी मुश्किल है कि योगी उनके लिए एक चुनौती बनते जा रहे हैं। योगी फिर से जीते तो मोदी के लिए बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। क्योंकि हिंदू नेता के तौर पर योगी इस समय भाजपा का सबसे लोकप्रिय चेहरा माने जाते हैं। 

यूपी की दशा दिशा सब के सामने आ चुकी है।

सीएम योगी आदित्यनाथ दिल्ली में आकर पीएम और गृह मंत्री से भेंट कर चुके हैं। केंद्र की टीम लखनऊ में डेरा लगाकर  हल निकालने की जुगत में बैठी है लेकिन  बीच का रास्ता नहीं निकल पा रहा है। योगी भारी पड़ रहे हैं और केंद्र की टीम वहां बिना भार का रूई का गोला साबित हो रही है।

बंगाल चुनाव में मिली हार के बाद पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी को सबसे बड़ी ठेस भी पहुंची है की भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वापस टीएमसी में शामिल हो गया। चाहे वह टीएमसी से ही आए थे लेकिन भाजपा से गए जब राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद था। संगठन में एक पद नीचे यानि दूसरे क्रम पर थे। मोदी शाह से समकक्ष नहीं तो कुछ छोटा।

यह मामूली तो नहीं कहा जा सकता। इसके बाद बंगाल में जो टीएमसी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए लोगों का वापस टीएमसी में लौटने का तूफान मचा है। समाचारों में तो यह संख्या बड़ी है। चुनाव के समय रोजाना ममता को झटका लगने का समाचार खूब प्रचारित किये जाते रहे जब टीएमसी छोडकर भाजपा में शामिल होते। इतना करने के बावजूद राज मिलने तक की संख्या तक नहीं पहुंच पाए। ममता को नीचा दिखाने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय चेहरे अपने पद और कद से बहुत नीचे उतरे। अब भाजपा को रोजाना झटके लग रहे हैं।

बंगाल में राज नहीं मिलने पर जो कमजोरी आई है उससे राज्यों में चुनौती मिलने लगी है। भाजपा शासित राज्यों  में जो विरोध के स्वर देखने को मिल रहे हैं वो नेताओं की चिंता बढ़ाने के लिए काफी हैं। सबसे मुश्किल ये है कि विरोध केवल हिंदी भाषी राज्यों में नहीं है बल्कि दक्षिण तक पहुंच चुका है। चिंता केवल इतनी ही नहीं है। 

कर्नाटक में भी मुख्यमंत्री येदियुरप्पा केंद्रीय नेतृत्व को आंखें दिखा रहे हैं। वहां एक धड़ा उनके विरोध में सामने आ चुका है। केंद्रीय नेतृत्व चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा, क्योंकि मुख्यमंत्री लिंगायत समुदाय के बड़े नेता हैं। उन्हें नाराज करने का मतलब होगा इस समुदाय को नाराज करना। कर्नाटक भाजपा के लिए अहम इस वजह से भी है क्योंकि दक्षिण में ये अकेला राज्य है जहां भाजपा अपने दम पर खड़ी है।

प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात के हालात भी ठीक नहीं हैं। वहां मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और पार्टी अध्यक्ष सीआर पाटिल के बीच सिर फुटौव्वल चल रही है। पाटिल को मोदी का नजदीकी माना जाता है। कोरोना मामले पर मुख्यमंत्री के साथ उनकी तनातनी अब जगजाहिर हो चुकी है। केंद्रीय नेतृत्व के लिए ये बड़ी चिंता का मामला है। दोनों की तनातनी में गुजरात के उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल अपने लिए मौका तलाश रहे हैं। वो मुख्यमंत्री बनने के लिए गुणाभाग कर रहे हैं।

गोवा में भाजपा के नेता और मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के खिलाफ उनकी ही कैबिनेट ने मोर्चा खोल रखा है। गोवा में भी उत्तर प्रदेश के साथ अगले साल चुनाव होना है। केंद्र ने वहां के हालात सुधारने का जिम्मा बीएल संतोष को दिया है। नतीजा देखना रोचक होगा।

बंगाल में हार के बाद किस तरह की भगदड़ भाजपा में मची है, ये बात जगजाहिर हो चुकी है। भाजपा चाहकर भी अपने लोगों को रोकने में नाकाम साबित हो रही है। त्रिपुरा में भी हालात काबू से बाहर होते जा रहे हैं। मध्य प्रदेश में भी हालात ठीक नहीं हैं। बंगाल से मात खाकर लौटे कैलाश विजय वर्गीय के बारे में कहा जा रहा है कि वो शिवराज को हटाकर खुद मुख्यमंत्री बनने के जुगाड़ में हैं। 

भाजपा की दशा दिशा शोचनीय होने पर भी माना जा रहा है कि असंतोष से कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है राज्यों में चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री मोदी का नाम ही काफी रहेगा।

साथियों के जाने का दु:ख है : मिलिंद

मिलिंद देवड़ा ने जितिन प्रसाद के भाजपा में शामिल होने पर ट्वीट कर कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व पर एक तरह से सवाल उठाया। उन्होंने लिखा, मेरा मानना है कि कांग्रेस को अपनी पुरानी स्थिति पाने के लिए प्रयास करना चाहिए। देश की बड़ी पार्टी के तौर पर वह यह कर सकती है और करना ही चाहिए। हमारे पास अब भी ऐसे नेता हैं जिन्हें अगर सशक्त किया जाए और बेहतरीन ढंग से इस्तेमाल किया जाए तो वे नतीजे दे सकते हैं। मैं सिर्फ यह चाहता हूं कि काश ! मेरे कई मित्रों, सम्मानित साथियों और मूल्यवान सहयोगियों ने हमारा साथ नहीं छोड़ा होता।

  • जितिन प्रसाद के बाद मिलिंद देवड़ा ने बढ़ाई कांग्रेस की मुसीबत
  • देवड़ा ने गुजरात सरकार के कामकाज की ट्विटर पर की तारीफ
  • कांग्रेस के कई युवा नेताओं की नाराजगी के अटकलों को मिली हवा

सारिका तिवारी, चंडीगढ़:

कांग्रेस पार्टी में 20 साल गुजारने के बाद आखिरकार पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने बुधवार को बीजेपी का दामन थाम लिया। हालिया पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी रहे प्रसाद को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के एक युवा ब्राह्मण नेता के तौर पर देखा जाता था। प्रसाद के जाने से एक बार फिर से कांग्रेस में कई युवा नेताओं की नाराजगी और पाला बदलने की अटकलों को हवा मिल गई है। सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा ऐसे नेताओं में शामिल हैं जिनकी नाराजगी की चर्चा इन दिनों हो रही है। इस बीच, मिलिंद देवड़ा ने गुजरात सरकार के कामकाज की तारीफ कर कांग्रेस की चिंता और बढ़ा दी है।

दरअसल, कोरोना महामारी की वजह से पिछले एक साल से गुजरात में होटल इंडस्‍ट्री, रेस्‍टोरेंट, रिजार्ट और वॉटर पार्क बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। आर्थिक नुकसान को देखते हुए मुख्‍यमंत्री विजय रूपाणी ने उनका पिछले एक साल का प्रॉपर्टी टैक्‍स और बिजली बिल माफ करने का फैसला लिया है। कांग्रेस नेता मिलिंद देवड़ा ने अपने ट्विटर अकाउंट पर यह खबर शेयर करते हुए गुजरात सरकार की तारीफ की है। उन्‍होंने लिखा है- ‘दूसरे राज्‍यों के अनुकरण के लिए एक स्वागत योग्य कदम। यदि हम भारत के आतिथ्य क्षेत्र में और नौकरियों के नुकसान को रोकना चाहते हैं तो सभी राज्यों को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए।’

‘काश, हमारे साथियों ने साथ न छोड़ा होता’
दूसरी ओर, मिलिंद देवड़ा ने अपने पूर्व सहयोगी जितिन प्रसाद के बीजेपी में जाने पर भी प्रतिक्रिया जताई है। उन्‍होंने ट्विटर पर लिखा है- ‘मेरा मानना है कि कांग्रेस को अपनी पुरानी स्थिति पाने के लिए प्रयास करना चाहिए। देश की बड़ी पार्टी के तौर पर वह यह कर सकती है और करना ही चाहिए। हमारे पास अब भी ऐसे नेता हैं जिन्हें अगर सशक्त किया जाए और बेहतरीन ढंग से इस्तेमाल किया जाए तो वे नतीजे दे सकते हैं। मैं सिर्फ यह चाहता हूं कि काश मेरे कई मित्रों, सम्मानित साथियों और मूल्यवान सहयोगियों ने हमारा साथ नहीं छोड़ा होता।’

दरक रही है कांग्रेस की युवा ब्रिगेड
गौरतलब है कि मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट कभी कांग्रेस की युवा ब्रिगेड माने जाते थे। उन्होंने केंद्र में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में भी काम किया था। सिंधिया और प्रसाद अब बीजेपी में हैं, जबकि पायलट और देवड़ा पार्टी में कुछ मुद्दों पर परेशान दिखते हैं और बार-बार सुधार की मांग करते हैं। जितिन प्रसाद उन 23 नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने पिछले साल कांग्रेस में सक्रिय नेतृत्व और संगठनात्मक चुनाव की मांग को लेकर पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी।

2 – DG कोरोना के खिलाफ DRDO का नया हथियार

कोरोना वायरस के खिलाफ भारत की जंग लगातार जारी है. इस बीच रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन की ओर से शुभ समाचार देश को मिला है और डीआरडीओ ने एंटी-कोविड मेडिसन, 2 डीजी (2-DG) लॉन्च कर दी है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने सोमवार को दिल्ली में एक कार्यक्रम में 2 डीजी की पहली खेप को रिलीज की।

नई दिल्ली(ब्यूरो): 

कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में निर्णायक भूमिका निभाने के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की ओर से एंटी-कोविड मेडिसिन, 2 डीजी (2-DG) लॉन्च कर दी है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने इस दवा की पहली खेप को रिलीज की।

पाउडर फॉर्म में उपलब्ध है दवा

डीआरडीओ के अनुसार, ‘2-डीऑक्सी-डी-ग्लूकोज’ दवा को इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड एलाइड साइंसेज (INMAS) द्वारा हैदराबाद की डॉक्टर रेड्डी लैब के साथ मिलकर तैयार किया है। हाल ही में क्लीनिकल-ट्रायल में पास होने के बाद ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने इस दवा को इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दी थी। बताया जा रहा है कि ये दवाई सैशे में उपलब्ध होगी. यानी मरीजों को इसे पानी में घोलकर पीना होगा।

इस दवा से ऑक्सीजन लेवल रहेगा मेंटेन

अधिकारियों का कहना है कि ग्लूकोज पर आधारित इस दवा के सेवन से कोरोना मरीजों को ऑक्सजीन पर ज्यादा निर्भर नहीं होना पड़ेगा। साथ ही वे जल्दी स्वस्थ हो जाएंगे। क्लीनिक्ल-ट्रायल के दौरान भी जिन कोरोना मरीजों को ये दवाई दी गई थी, उनकी RT-PCR रिपोर्ट जल्द निगेटिव आई है। उन्होंने बताया कि ये दवा सीधा वायरस से प्रभावित सेल्स में जाकर जम जाती है और वायरस सिंथेसिस व एनर्जी प्रोडक्शन को रोककर वायरस को बढ़ने से रोक देती है। इस दवा को आसानी से उत्पादित किया जा सकता है. यानी बहुत जल्द इसे पूरे देश में उपलब्ध कराया जा सकेगा।

देशभर में कोरोना के 24 घंटे में 281386 नए केस आए सामने

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, पिछले 24 घंटे में भारत में 2 लाख 81 हजार 286 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए है, जबकि इस दौरान 4106 लोगों की जान गई। इसके बाद भारत में कोरोना संक्रमितों की कुल संख्या 2 करोड़ 49 लाख 65 हजार 463 हो गई है, जबकि 2 लाख 74 हजार 390 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। आंकड़ों के अनुसार, देशभर में पिछले 24 घंटे में 3 लाख 78 हजार 741 लोग ठीक हुए, जिसके बाद कोविड-19 से ठीक होने वाले लोगों की संख्या 2 करोड़ 11 लाख 74 हजार 76 हो गई है। इसके साथ ही देशभर में एक्टिव मामलों में भी गिरावट आई है और देशभर में 35 लाख 16 हजार 997 लोगों का इलाज चल रहा है।

डीआरडीओ के वैज्ञानिक डॉक्टर अनंत नारायण ने बताया, ‘सीसीएमबी हैदराबाद में हमने इसका पहला टेस्ट किया था, उसके बाद हमने ड्रग कंट्रोल से कहा कि क्लीनिकल ट्रायल की मंजूरी दें। ट्रायल में हमने देखा है कि कोरोना पेशेंट को काफी फायदा हुआ. टेस्टिंग के बाद फेज 2 सही से किया और फेज 3 में हमने बहुत बड़े पैमाने पर प्रयोग किया।’

डीआरडीओ ने डॉ. रेड्डीज लेबोरेटरीज के साथ मिल बनाई दवा

कोरोना की इस दवा को डीआरडीओ के Institute of Nuclear Medicine and Allied Sciences यानी INMAS ने हैदराबाद स्थित डॉ. रेड्डीज लेबोरेटरीज के साथ मिलकर तैयार किया है।

इस दवा से 7 दिन में ठीक हो जाएंगे मरीज

रक्षा मंत्रालय का कहना है कि 2-डीजी एक जेनेरिक मॉलीक्यूल है और ग्लुकोज से मिलती जुलती है, इसलिए इसका उत्पादन आसान होगा और ये दवा देश में बड़े पैमाने पर उपलब्ध कराई जा सकेगी। डॉक्टर अनंत नारायण ने कहा, ‘इस ड्रग को हम जल्द से जल्द मार्किट में लाने का काम कर रहे है. यह दवा पाउडर के रूप में आता है पानी में घोल कर दिया जाता है। इसको दिन में 2 बार सुबह-शाम देने के बाद मरीज लगभग सात दिन में लोग ठीक हो रहे है।

ऑक्सीजन की किल्लत से मिलेगी राहत

इस दवा के बाजार में आने से एक और बड़ी राहत मिलेगी. अभी जो ऑक्सीजन की मारा-मारी है, दावा है कि इस दवा के मिलने के बाद ये समस्या बहुत हद तक कम होगी साथ ही ये दवा कोविड से संक्रमित मरीजों की अस्पताल में दाखिले की संख्या को भी कम करेगी. यानी मरीज घर पर रहकर ही डॉक्टर की सलाह से ये दवा लेकर ठीक हो जाएंगे।

“हां, सिद्धू आम आदमी पार्टी में जा रहा है और मेरे खिलाफ चुनाव लड़ेगा” : कैप्टन अमरिंदर

डेमोक्रेटिकफ्रंट॰ कॉम की खबर पर कैप्टन अमरिंदर की मोहर बोले “हां, सिद्धू आम आदमी पार्टी में जा रहा है और मेरे खिलाफ चुनाव लड़ेगा”पंजाब में अगले साल होनेवाले विधानसभा चुनाव से पहले नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर चर्चाओं का बाजार फिर गर्म हो गया है। सिद्धू के अगले राजनीतिक ठिकाने के बारे में कयासबाजी तेज हो गई है। उनके आम आदमी पार्टी से तार फिर जुड़ने की संभावनाओं की चर्चााएं फिर हो रही है और इसे बल मिला है पंजाब आप के प्रधान भगवंत मान के बयान से मिला है। मान ने कहा कि सिद्धू का आम आदमी पार्टी में स्‍वागत करेंगे। इसके साथ ही पंजाब की कांग्रेस सरकार पर सिद्धू लगातार सवाल कर रहे हैं। ये उनके नए सियासी  कदम के संकेत दे रहे हैं।

  • कैप्टन अमरिंदर बोले “हां, सिद्धू आम आदमी पार्टी में जा रहा है और मेरे खिलाफ चुनाव लड़ेगा”।
  • भगवंत मान ने कहा कि नवजोत सिंह सिद्ध आम आदमी पार्टी में आते हैं, तो उनका स्वागत करेंगे।

नरेश शर्मा भारद्वाज, राजनैतिक डेस्क – जालंधर/चंडीगढ़

पंजाब के फायर ब्रांड नेता और पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू अपनी ‘कर्मभूमि’ को छोड़कर सीएम कैप्‍टन अमरिंदर सिंह के गढ़ पटियाला में सियासी बैटिंग करने की तैयारी में है। शाही शहर पटियाला की सियासत में अभी तक कैप्टन अमरिंदर सिंह व उनके परिवार का दबदबा रहा है, वहां से अब सिद्धू ताल ठोंकने की तैयारी कर रहे हैं। वैसे पटियाला सिद्धू का भी गृहनगर है लेकिन 2004 में यह शहर छोड़ गुरु नगरी अमृतसर को उन्होंने अपनी कर्मभूमि बना लिया था।    

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आम आदमी पार्टी ने नवजोत सिंह सिद्धू के लिये रेड कारपेट बिछा दिया है और उनकी दिल्ली में केजरीवाल से बात फाइनल हो चुकी है। यह ब्रेकिंग स्टोरी डिजिटल पोस्ट ने 8 मार्च को ​लिखी थी और अब 50 दिन बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खुद आगे आकर उस स्टोरी पर मोहर लगाते हुए कहा है कि हां सिद्धू आप में जा रहे हैं और मेरे खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं।

यह भी ध्यान देने लायक है : – ‘सिद्धू के बयान से पूरे देश की भावनाएं आहत हुई हैं.’अरविंद

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का अपने ही पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के साथ विवाद इतना ज्यादा बढ़ गया है कि उन्होंने अब सिद्धू के लिए अपने सभी दरवाजे बंद कर लिए हैं।कैप्टन का कहना है कि सिद्धू उनकी लीडरशिप को सीधे तौर पर चुनौती दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात की सूचना मिली है कि सिद्धू तीन-चार बार दिल्ली के सीएम और आम आदमी पार्टी के संयोजक केजरीवाल से गुप्त रूप से बैठक कर चुके हैं. वह मेरे खिलाफ पटियाला से चुनाव लड़ने की तैयार कर रहे हैं।

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8 मार्च को खबर की ब्रेक के बाद उत्ताखंड से हरीश रावत विशेष तौर पर चंडीगढ़ पहुंचे और सिद्दू को मनाने का प्रयास किया था। इसके बाद एक बैठक फिर से कैप्टन व सिद्धू के बीच हुई लेकिन सिद्धू के लिए आप रेड कारपेट बिछा चुकी है और अब सिद्धू किसी भी समय आप का दामन थाम सकते हैं।

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बता दे‍ं कि नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस में काफी दिनों से उपेक्षित हैं। पिछले दिनों पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत ने उनको फिर से पार्टी में सक्रिय करने और उनको मुख्‍यधारा लाने की कोशिश की, लेकिन यह सिरे चढ़ता न‍हीं दिखा। सीएम कैप्‍टन अमरिंदर सिंह से दो बार की मुलाकात के बावजूद उनकी राज्‍य कैबिनेट में वापसी नहीं हुुई। सिद्धू कांग्रेस की राज्‍य प्रधानगी भी चाहते थे, लेकिन इसकी उम्‍मीद न के बराबर दिख रही है। ऐेसे में उनके सियासी करियर को लेकर कयासबाजी होने लगी।

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इस बीच सिद्धू के तेवर फिर तीखे होते दिखाई दिए। किसानों के मुद्दे पर केंद्र सरकार पर निशाना साधने के साथ ही सिद्धू ने पंजाब की अपनी पार्टी की सरकार पर भी सवाल खड़े किए। इसके बाद उनके अगले सियासी पड़ाव को लेकर चर्चाएं तेज हो गईं। यह उनके मंगलवार को अचानक बुर्ज जवाहर सिंह के दौरे और बेअदबी मामले को उठाने के खास मायने लगाए जा रहे हैं।

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इसी बीच, मंगलवार को पंजाब आप के प्रधान भगवंत मान के सिद्धू का आम आदमी पार्टी में स्‍वागत करने के बयान से चर्चाओं ने जाेर पकड़ लिया है। 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले भी नवजाेत सिंह सिद्धू के आम आदमी पार्टी का झाड़ू थामने की चर्चाएं चली थीं और इसे लगभग तय माना जा रहा था। माना जाता है कि सीएम पद की उम्‍मीदवारी काे लेकर गतिरोध पैदा हाे गया था और सिद्धू ने कांग्रेस में एंट्री ले ली थी। अब 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले फिर नवजोत सिंह सिद्धू के आम आदमी पार्टी में शामिल होने की चर्चाएं जोर पकड़ रही है। लेकिन, फिर बड़ा सवाल है कि क्‍या आप उनको विधानसभा चुनाव में अपना सीएम चेहरा बनाएगी।

यह सब पहले भी हो चुका है : – कैप्टन सिद्धू द्वि के साथ आर पार के मूड में

रूपनगर में भगवंत मान ने कहा कि नवजोत सिंह सिद्ध आम आदमी पार्टी में आते हैं, तो उनका स्वागत करेंगे। इसके बाद उनको सीएम चेहरा के रूप में प्रस्तुत करने का फैसला पार्टी हाईकमान करेगा। उन्होंने कहा कि पार्टी सीएम का चेहरा चुनाव से पहले और पंजाब से ही देगी। मान ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को पहाड़ी राजा बताते हुए कहा कि वह तो मैदानी इलाके में आते ही नहीं हैं।

चीनी मिल घोटाले में बसपा के पूर्व एमएलसी और सहारनपुर के खनन माफिया हाजी मोहम्मद इकबाल की 1097 करोड़ रुपए की संपत्तियों को अटैच किया

चीनी मिल घोटाले में सीबीआइ लखनऊ की एंटी करप्शन ब्रांच ने 25 अप्रैल 2019 को केस दर्ज किया था। सीबीआइ ने लखनऊ के गोमतीनगर थाने में वर्ष 2017 में दर्ज कराई गई एफआइआर में इस घोटाले को अपने केस का आधार बनाया था। इसके बाद ईडी के लखनऊ स्थित जोनल कार्यालय में करोड़ों के इस घोटाले में प्रिवेंशन आफ मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया था। जोनल डायरेक्टर राजेश्वर सिंह के नेतृत्व में पूर्व एमएलसी मु.इकबाल व अन्य आरोपितों की भूमिका की छानबीन की जा रही थी। 

सहारनपुर/चंडीगढ़:

एक ओर जहां केंद्र की मोदी सरकार अपने ढुल – मुल रवैये के साथ अपने विरोधियों पर कसे कानूनी मामलों पर ‘जांच चल रही है’, ‘मामला विचारधीन है’ जैसे लचर बहानों के साथ अपराधियों से समझौते करती जान पड़ती है, वहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री असल में ‘न खाऊँगा न खाने दूँगा’ वाले नारे को चिरतार्थ करते दिखाई पड़ते हैं। कॉंग्रेस के भ्रष्टाचार से तंग आ चुकि भारतीय जनता ने बड़ी उम्मीद से मोदी सरकार को चुना था। लाखों करोड़ों के घोटाले जिनका ज़िक्र यदा कदा मोदी अपने भाषणों में करते हैं उनसे न केवल जांच करवाने अपितु दोषियों पर दंडात्मक कार्यवाही करने के वादे के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार अपने लगाए किसी भी आरोप को चाहे वह चिदम्बरम पर हो या फिर गांधी परिवार के दामाद वाड्रा पर साबित नहीं कर पायी। सात साल बीत जाने पर भी तथाकथित आरोपी आनंद ले रहे हैं। वहीं जब योगी सरकार की बात करें तो आरोपी प्रदेश छोड़कर भागते फिर रहे हैं। अपराधियों को दंड दिलवाने के मामलों में जहां मोदी सिर्फ भाषण है वहीं योगी एक्शन है। ताज़ा मामला 2019 में शुरू हुई चीनी मिल घोटाले की जांच का है।

उत्तर प्रदेश में बीएसपी शासनकाल में हुए 1100 करोड़ के चीनी मिल घोटाला केस में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने बड़ी कार्रवाई की है। ईडी ने बसपा के पूर्व एमएलसी और सहारनपुर के खनन माफिया हाजी मोहम्मद इकबाल की 1097 करोड़ रुपए की संपत्तियों को अटैच किया। ईडी ने मोहम्मद इकबाल की कुल सात संपत्तियों को अटैच किया है। हाजी इकबाल पर कई और भी आरोप हैं, जिनमें अवैध खनन से नामी, बेनामी संपत्ति खरीदने जैसे मामले हैं। बताया जा रहा है कि 2500 करोड़ की संपत्तियाँ ईडी के निशाने पर हैं।

बीएसपी चीफ मायावती के शासनकाल में वर्ष 2010 से लेकर 2011 के दौरान करीब 11 चीनी मिलों को औने- पौने दाम पर बेचा गया था। पूरे प्रदेश में कुल 21 से ज्यादा चीनी मिल को बेहद कम दाम पर बेचने का आरोप है। इनमें से कई चीनी मिलों की बिक्री पर अब भी जाँच चल रही है। आरोप है कि इस फर्जीवाड़े से केंद्र और राज्य सरकार को करीब 1,179 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था।

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने 12 अप्रैल, 2018 को चीनी मिल घोटाले की सीबीआई जाँच कराने की सिफारिश की थी। सीबीआइ लखनऊ की एंटी करप्शन ब्रांच ने अप्रैल, 2019 में चीनी मिल घोटाले का केस दर्ज किया था। सीबीआई ने लखनऊ के गोमतीनगर थाने में सात नवंबर 2017 को दर्ज कराई गई एफआईआर को अपने केस का आधार बनाते हुए सात चीनी मिलों में हुई धांधली में रेगुलर केस दर्ज किया था, जबकि 14 चीनी मिलों में हुई धांधली को लेकर 6 प्रारंभिक जाँच दर्ज की गईं थीं। 

करोड़ों के भ्रष्टाचार के इस मामले में सीबीआई के साथ-साथ ईडी ने भी सक्रियता बढ़ा दी थी। घोटाले में सीबीआई के बाद प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत केस दर्ज किया था। लखनऊ स्थित ईडी के जोनल कार्यालय ने यह कार्रवाई की थी।

सीबीआई ने फर्जी दस्तावेजों के जरिए देवरिया, बरेली, लक्ष्मीगंज, हरदोई, रामकोला, छितौनी व बाराबंकी स्थित सात चीनी मिल खरीदने के मामले में दिल्ली निवासी राकेश शर्मा, उनकी पत्नी सुमन शर्मा, गाजियाबाद निवासी धर्मेंद्र गुप्ता, सहारनपुर निवासी सौरभ मुकुंद, मोहम्मद जावेद, मोहम्मद वाजिद अली व मोहम्मद नसीम अहमद के खिलाफ नामजद केस दर्ज किया था। 

भारत सरकार का आजादी का अमृत महोत्सव और आपातकाल लोकतंत्र सेनानियों का दयनीय जीवन

आपातकाल में लोकतंत्र कायम करने के लिए मीसा, डीआईआर और सीआरपीसी की अलग अलग धाराओं में बड़ी संख्या में व्यक्ति निरुद्ध या जेल में बंद रहे थे। इनके आकलन और जांच के लिए केंद्र सरकार ने जेएस शाह की अध्यक्षता में इस बारे में कमीशन का गठन किया था। इसकी रिपोर्ट अनुसार, राजस्थान में मीसा बंदियों की संख्या 542, डीआईआर बंदियों की संख्या 1352 और सीआरपीसी निरुद्ध व्यक्तियों की संख्या 1908 बताई गई है। इस संख्या में वह आंकड़ा भी शामिल है जो मीसा,डीआईआर और सीआरपीसी की अलग अलग धाराओं में 30 दिन से भी कम समय तक जेल में बंद या निरुद्ध रहे। 

करणीदानसिंह राजपूत(पत्रकार, आपातकाल जेलयात्री) , 9 मार्च 2021.

आजादी का अमृत महोत्सव भारत सरकार पूरे देश में मनाने जा रही है। यह महोत्सव आजादी के 75 साल पूरे होने पर मनाया जा रहा है। यह 12 मार्च 2021 से देशभर में शुरू होगा और 75 सप्ताह तक यानी 15 अगस्त 2023 तक मनाया जाएगा। इस महोत्सव पर आयोजन के लिए प्रत्येक राज्य में और प्रत्येक जिले में तैयारियां शुरू हो चुकी है। इस 75 सप्ताह तक चलने वाले महोत्सव में अनेक कार्यक्रम होंगे।

वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अपने सम्बोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि इस आयोजन का लक्ष्य लोगों को देश की आजादी और स्वतंत्रता संग्राम के महत्व को समझाना है, साथ ही, युवा पीढ़ी को स्वतंत्रता आन्दोलन की जानकारी देना है। उन्होंने कहा कि इससे युवाओं को जोड़ना है और इस आयोजन को आन्दोलन का रूप देना है।

स्वतंत्रता के 75 वर्ष का समारोह, आजादी का अमृत महोत्सव मनाने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय समिति की पहली बैठक 8 मार्च 2021 को आयोजित हुई। प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए पैनल को संबोधित किया। राज्यपालों, केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, राजनेताओं, वैज्ञानिकों, अधिकारियों, मीडिया प्रमुखों,आध्यात्मिक नेताओं, कलाकारों तथा फिल्मों से जुड़े व्यक्तियों, खिलाड़ियों तथा जीवन के अन्य क्षेत्रों के विख्यात व्यक्तियों सहित राष्ट्रीय समिति के विभिन्न सदस्यों ने बैठक में भाग लिया।

राष्ट्रीय समिति के जिन सदस्यों ने बैठक में इनपुट तथा सुझाव दिये, उनमें पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, पूर्व प्रधानमंत्री श्री एच डी देवेगौड़ा, श्री नवीन पटनायक, श्री मल्लिकार्जुन खड़गे, श्रीमती मीरा कुमार, श्रीमती सुमित्रा महाजन, श्री जे.पी. नड्डा, मौलाना वहीदुद्दीन खान शामिल थे।

  • समिति के सदस्यों ने प्रधानमंत्री को “आजादी का अमृत महोत्सव” की योजना बनाने तथा इसके आयोजन के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने महोत्सव के क्षेत्र को और विस्तारित करने के लिए अपने सुझाव तथा इनपुट दिए।

केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि भविष्य में ऐसी और अधिक बैठकें होंगी तथा आज प्राप्त हुए सुझावों एवं इनपुटों पर विचार किया जाएगा।

प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि देश धूमधाम और उत्साह के साथ आजादी के 75 वर्ष का समारोह मनाएगा, जो ऐतिहासिक प्रकृति, गौरव और इस अवसर के महत्व के अनुकूल होगा। उन्होंने समिति के सदस्यों से प्राप्त होने वाले नए विचारों तथा विविध सोचों की सराहना की। उन्होंने आजादी के 75 वर्ष के महोत्सव को भारत के लोगों को समर्पित किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के 75 वर्ष का समारोह एक ऐसा समारोह होना चाहिए, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम की भावना, शहीदों को श्रद्धांजलि तथा भारत के निर्माण के उनके संकल्प का अनुभव किया जा सके। उन्होंने कहा कि इस समारोह को सनातन भारत के गौरव की झलकियों तथा आधुनिक भारत की चमक को भी साकार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस समारोह को संतों की आध्यात्मिकता की रोशनी तथा हमारे वैज्ञानिकों की प्रतिभा और ताकत को भी परिलक्षित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम विश्व के सामने इन 75 वर्षों की उपलब्धियों को भी प्रदर्शित करेगा तथा अगले 25 वर्षों के लिए हमारे लिए संकल्प करने की एक रूपरेखा भी प्रदान करेगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कोई भी संकल्प बिना समारोह के सफल नहीं है। उन्होंने कहा कि जब कोई संकल्प समारोह का रूप ले लेता है तो लाखों लोगों की प्रतिज्ञा और ऊर्जा उसमें जुड़ जाती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि 75 वर्षों का समारोह 130 करोड़ भारतीयों की भागीदारी के साथ किया जाना है तथा लोगों की यह भागीदारी इस समारोह के मूल में है। इस समारोह में 130 करोड़ देशवासियों की अनुभूतियां, सुझाव तथा सपने शामिल हैं।

प्रधानमंत्री ने जानकारी दी कि 75 वर्षों के समारोह के लिए पांच स्तंभों का निर्णय किया गया है। ये हैं- स्वतंत्रता संग्राम, 75 पर विचार, 75 पर उपलब्धियां, 75 पर कदम तथा 75 पर संकल्प। इन सभी को 130 करोड़ भारतीयों के विचारों तथा भावनाओं में शामिल किया जाना चाहिए।

  • प्रधानमंत्री ने कम ज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित करने तथा लोगों को उनकी कहानियों के बारे में भी बताने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि देश का हर कोना देश के बेटों और बेटियों की शहादत से भरा हुआ है और उनकी कहानियां देश के लिए प्रेरणा का शाश्वत स्रोत होंगी। उन्होंने कहा कि हमें प्रत्येक वर्ग के योगदान को सामने लाना है। ऐसे बहुत से लोग हैं, जो पीढ़ियों से देश के लिए बहुत महान कार्य कर रहे हैं, उनके योगदान, विचार तथा सोच को राष्ट्रीय प्रयासों के साथ समेकित किये जाने की आवश्यकता है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि यह ऐतिहासिक समारोह स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों को पूरे करने, ऐसी ऊंचाई पर भारत को पहुंचाने, जिसकी उन्होंने कल्पना की थी, को लेकर है। उन्होंने जोर देकर कहा कि देश ऐसी चीजें अर्जित कर रहा है, जिसके बारे में कुछ वर्ष पहले तक सोचा भी नहीं जा सकता था। उन्होंने कहा कि यह समारोह भारत के ऐतिहासिक गौरव के अनुरूप होगा।

लोकतंत्र सेनानियों, देश की आजादी के बाद लोकतंत्र इतिहास में आपातकाल लगाया तब देश की आजादी, लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए अपने परिवार व्यावसाय,नौकरियों को छोड़ कर लाखों लोग निकल पड़े। दमनचक्र में पिसे। वे देश के साथ खड़े थे लेकिन उनके साथ कौन खड़ा है? न सरकार, न कोई नेता न कोई संगठन साथ दे रहा है। प्रधानमंत्री गृहमंत्री के यहां से तो 7 सालों में एक पत्र का उत्तर तक नहीं आया। उनकी और सरकार की ईच्छा क्या है? इसका संकेत तक नहीं मिला।
आपातकाल 26 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का यह क्रांतिकारी इतिहास में और महोत्सव में शामिल होने से रह जाएगा। जब हमारी सरकार ही आपातकाल और आपातकाल के लोकतंत्र रक्षक सेनानियों को दूर रखेगी तो अन्य कौन सहेजेगा? आपातकाल के लोककतंत्र रक्षकों की वृद्धावस्था है और 60 वर्ष से ऊपर 75,80,85 और अधिक उम्र में पहुंच चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमितशाह व अन्य प्रमुख जन एक एक अंश से परिचित हैं और उनकी चुप्पी सभी को पीड़ित कर रही है। यह पीड़ा अपने कहे जाने वाले राज में हो तो अधिक महसूस होती है, आपातकाल के अत्याचारों से अधिक महसूस होती है।

स्वतंत्रता सेनानियों जैसे सम्मान के खातिर अब भी भटक रहे लोकतंत्र सेनानी
  • भारत सरकार जिन दलों के संगठन से बनी है उसमें भाजपा सबसे बड़ा दल है। इस बड़े दल के प्रमुख और अन्य नेताओं को नैतिक दायित्व भूलना नहीं चाहिए। आपातकाल में लोकतंत्र को बचाने वालों में माना जाता है कि देश के विभिन्न हिस्सों से अलग अलग विचारधारा होते हुए भी 36 या 38 संगठनों ने अपनी आहुतियां दी थी। भाजपा के अलावा भी संगठन हैं उनके नेताओं को भी इस बारे में आगे आना चाहिए। अनुनय, विनय,प्रार्थना, आग्रह पिछले 7 सालों में बहुत हो चुके हैं।
    अब पढ कर चुप रहने का समय नहीं है। जो सेनानी करें वे ही आगे बढें और सत्ता के हर भागीदार को बतादें कि जो नुकसान होगा वह सभी को भोगना होगा।
    भारत सरकार निर्णय लेने तक पहुंचे ऐसा कार्य सभी करें।

गुजरात निकाय चुनाव में किसान आंदोलन बेअसर, बीजेपी ने परचम लहराया है। सभी नगर निगम उसके कब्जे में

कल गुजरात से राज्य सभा की दो सीटें भाजपा के हाथों गँवाने के पश्चात आज कॉंग्रेस का निकाय चुनावों में भी सूपड़ा साफ हो गया। सूरत में तो हालत यह रही कि कॉंग्रेस आआपा (आम आदमी पार्टी) से हार कर तीसरे नंबर कि पार्टी बन गयी। पहले पुड्डुचेरी, फिर राज्य सभा और अब गुजरात ए न्याय चुनाव, कॉंग्रेस के सबसे बुरे प्रदर्शनों में से यह एक है। गुजरात पंचायत चुनाव में भाजपा का क्लीन स्वीप होता हुआ दिख रहा है। खबर लिखे जाने तक पार्टी ने राजकोट म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में 78 सीटों पर विजय हासिल करने (बढ़त/जीत) की स्थित में है। वहीं कॉन्ग्रेस मात्र 2 सीटों पर आगे है। सूरत में 17 सीटें जीत कर AAP दूसरे नंबर की पार्टी बन कर उभरी है, जबकि भाजपा को 51 सीटें मिली हैं। कॉन्ग्रेस वहाँ भी खाता खोलने की बाट ही जोह रही है।

  • गुजरात में निकाय चुनाव के नतीजों में बीजेपी ने मारी बाजी
  • गुजरात के चुनावी नतीजों से उत्‍साहित हो राज्‍य के मुख्‍यमंत्री विजय रुपाणी ने किया ट्वीट कर कहा पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने जीत दिलाई. शाम को अहमदाबाद के खानपुर में विजयोत्सव होगा 
  • सभी छह नगर निगमों में बड़ी जीत की ओर बढ़ रही है पार्टी
  • हार्दिक पटेल के जोरदार अभियान के बावजूद कांग्रेस हारी
  • पाटीदार आंदोलन के केंद्र सूरत में कांग्रेस को बड़ा झटका

अहमदाबाद/नयी दिल्ली:

एक महीने के अंदर देश के तीसरे राज्य में निकाय चुनाव के नतीजे आए हैं। पहले हरियाणा, फिर पंजाब और अब गुजरात। किसान आंदोलनों की आंच के बीच हरियाणा और पंजाब में बीजेपी को जनता का गुस्सा झेलना पड़ा। वहीं, अपने गढ़ गुजरात में बीजेपी ने फिर कामयाबी हासिल की है। आइए समझते हैं इस रिजल्ट के क्या हैं मायने…

गुजरात बीजेपी का गढ़ है और रहेगा!
बीजेपी ने जिन छह नगर निगमों में चुनाव हुए थे, उन पर अपनी पकड़ बरकरार रखी है। अहमदाबाद, सूरत, भावनगर, जामनगर, राजकोट और वडोदरा में उसका मेयर तय है। इस चुनाव से सबसे बड़ा झटका कांग्रेस को लगा है। चुनाव के नतीजों से एक बात पत्थर की लकीर की तरह साफ है कि गुजरात बीजेपी का गढ़ है और फिलहाल इस गढ़ में सेंध लगाने वाला दूर-दूर तक कोई दिख नहीं रहा। हालांकि यह चुनाव स्थानीय मुद्दे पर होते हैं। लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के गृहराज्य की वजह से हर चुनाव पर सबकी नजर रहती है। नतीजों से साफ है कि गुजरात में बीजेपी का तिलिस्म तोड़ पाना फिलहाल किसी विपक्षी दल के बूते की बात नहीं है।

हार्दिक फैक्टर बेअसर
पिछले साल जुलाई में हार्दिक पटेल को गुजरात कांग्रेस कमिटी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। पाटीदार आरक्षण आंदोलन से चर्चित हुए हार्दिक ने पूरे गुजरात में निकाय चुनाव के लिए जमकर प्रचार अभियान चलाया। लेकिन नतीजों में इसका कोई असर नहीं दिख रहा है। अहमदाबाद में हार्दिक ने पूरी ताकत झोंकी। तमाम वॉर्डों में रैलियां भी कीं। इसके बावजूद यहां कांग्रेस को करारी शिकस्त मिल रही है। सूरत जैसे पाटीदार समुदाय के गढ़ में भी कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। यहां भी बीजेपी ने कांग्रेस को बहुत पीछे छोड़ दिया है।

गुजरात में स्थानीय निकाय चुनाव के वोटों की गिनती जारी है। छह बड़े शहरों में नगर निगम चुनाव की भी काउंटिंग हो रही है। यहां कुल 144 वॉर्डों की 576 सीटों के लिए 21 फरवरी को मतदान हुआ था। बीजेपी ने इन सभी नगर निगमों में भारी बढ़त बनाई है। वहीं कांग्रेस को नतीजों से बड़ा झटका लगता दिख रहा है। पार्टी किसी भी नगर निगम में आगे नहीं है। आइए जानते हैं इन सभी नगर निगमों की काउंटिंग का हाल…

नगर निगम- कुल सीटें (आगे/जीते)बीजेपीकांग्रेसअन्य
अहमदाबाद- 192 (100)82162
सूरत- 120 (80)56816
वडोदरा- 76 (35)2780
राजकोट- 72 (48)4800
भावनगर- 52 (27)2070
जामनगर- 64 (32)2363
कुल सीटें- 576 (322 के रुझान)2564521

आम आदमी पार्टी की एंट्री
इस चुनाव के नतीजे एक और संदेश दे रहे हैं। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने सूरत में अच्छा प्रदर्शन किया है। रुझानों और नतीजों के अपडेट पर नजर डालें तो यहां फिलहाल कांग्रेस से मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा आम आदमी पार्टी ने छीन लिया है। यहां की 79 सीटों के रुझान में से बीजेपी के बाद केजरीवाल की पार्टी दूसरे नंबर पर है। उसके उम्मीदवार 13 सीटों पर आगे चल रहे हैं। राज्य में अगले साल के आखिर तक विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में आम आदमी पार्टी के पास अपने आधार को बढ़ाने के लिए पर्याप्त समय है।

ओवैसी नहीं कर पाए कमाल
गुजरात में इस बार के निकाय चुनाव इसलिए भी अहम थे, क्योंकि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने भी हाथ आजमाया था। हालांकि अहमदाबाद को छोड़कर बाकी जगह ओवैसी की पार्टी को नाकामी हाथ लगी है। इक्का-दुक्का सीटों पर ही एआईएमआईएम के उम्मीदवार बढ़त बनाए हुए हैं। पार्टी को मुस्लिम बहुल इलाकों में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थी लेकिन नतीजे कुछ और ही इबारत लिख रहे हैं।

गुजरात राज्य सभा चुनाव – भाजपा ने जीतीं दोनों सीटें

राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस को झटका लगा है। कांग्रेस के हिस्से की एक सीट भी बीजेपी के पास चली गई। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सोनिया गांधी के खास अहमद पटेल का पिछले साल 25 नवंबर को निधन हो गया था। उनके निधन के बाद ही ये सीट खाली हो गई थी। वे 2017 के चुनाव में राज्यसभा के लिए चुने गए थे। उनका कार्यकाल अगस्त 2023 तक था। वे पांच बार राज्यसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके थे। वहीं भाजपा के अभय भारद्वाज का निधन एक दिसंबर को हुआ था। राज्यसभा की अभी की संख्या से बीजेपी बहुमत के आंकड़े के बेहद नजदीक पहुंच चुकी है। अभी राज्यसभा की संख्या 238 और बहुमत का आंकड़ा 120 है। वैसे AIADMK, BJD, TRS और YSR कांग्रेस ने कई मुद्दों पर NDA को समर्थन दिया है।

नयी दिल्ली (ब्यूरो):

गुजरात से राज्यसभा की दोनों सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमा लिया है। भाजपा के दिनेशचंद्र जमलभाई अननवदिया और रामभाई हरजीभाई मोकरिया ने जीत हासिल की है। गुजरात की ये दोनों सीटें कॉन्ग्रेस के अहमद पटेल और भाजपा के अभय गणपतराय भारद्वाज के निधन के बाद खाली हो गई थीं।

राज्यसभा सांसद रामभाई मोकारिया मारुति कोरियर्स के संस्थापक सीएमडी हैं और राजकोट में भाजपा के पुराने कार्यकर्ता रहे हैं। रामभाई 1974 से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य थे और बाद में 1978 में जनसंघ में शामिल हो गए। तब से वह भाजपा के साथ हैं। मोकारिया ब्राह्मण समुदाय से हैं।

राज्यसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस को झटका लगा है। कॉन्ग्रेस के हिस्से की एक सीट भी बीजेपी के पास चली गई। कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता और सोनिया गाँधी के खास अहमद पटेल का पिछले साल 25 नवंबर को निधन हो गया था। उनके निधन के बाद ही ये सीट खाली हो गई थी। वे 2017 के चुनाव में राज्यसभा के लिए चुने गए थे। उनका कार्यकाल अगस्त 2023 तक था। वे पाँच बार राज्यसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके थे। वहीं भाजपा के अभय भारद्वाज का निधन एक दिसंबर को हुआ था।

गौरतलब है कि 8 अगस्त 2017, कॉन्ग्रेस ने गुजरात में अपने नेता अहमद पटेल की राज्यसभा सीट को बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। राज्य में तीन सीटों पर दोबारा चुनाव होने थे और दावेदार 4 थे। यही वो समय था जब गुजरात 1996 के बाद पहली दफा राज्यसभा चुनावों को देख रहा था क्योंकि इससे पहले हर राज्यसभा चुनाव निर्विरोध होता आ रहा था।

उस साल दो सीटों पर अमित शाह और स्मृति ईरानी की जीत सुनिश्चित थी, लेकिन तीसरी सीट के लिए भाजपा ने गुजरात में कॉन्ग्रेस के अहमद पटेल के सामने कॉन्ग्रेस के ही पूर्व चीफ व्हिप बलवंत सिंह राजपूत को उतार दिया था।

चुनावों के लिए चली गई चाल का ड्रामा मतदान के बाद भी आधी रात तक चला। कॉन्ग्रेस ने अपना सारा पैसा, सारी ताकत एक राज्यसभा सीट को बचाने में लगा दिया। इस चुनाव में अहमद पटेल तो जीत गए लेकिन कॉन्ग्रेस राज्य को हार गई। अब कॉन्ग्रेस के हाथ से वो सीट भी जाती रही।

इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तन लेने के पश्चात दलित नहीं ले सकेंगे जातिगत आरक्षण का लाभ

हिन्दू धर्म में वर्ण व्यवस्था है, हिन्द धर्म 4 वर्णों में बंटा हुआ है, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वेश्या एवं शूद्र। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात पीढ़ियों से वंचित शूद्र समाज को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए संविधान में आरक्षण लाया गया। यह आरक्षण केवल (शूद्रों (दलितों) के लिए था। कालांतर में भारत में धर्म परिवर्तन का खुला खेल आरंभ हुआ। जहां शोषित वर्ग को लालच अथवा दारा धमका कर ईसाई या मुसलिम धर्म में दीक्षित किया गया। यह खेल आज भी जारी है। दलितों ने नाम बदले बिना धर्म परिवर्तन क्यी, जिससे वह स्वयं को समाज में नचा समझने लगे और साथ ही अपने जातिगत आरक्षण का लाभ भी लेते रहे। लंबे समय त यह मंथन होता रहा की जब ईसाई समाज अथवा मुसलिम समाज में जातिगत व्यवस्था नहीं है तो परिवर्तित मुसलमानों अथवा इसाइयों को जातिगत आरक्षण का लाभ कैसे? अब इन तमाम बहसों को विराम लग गया है जब एकेन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद सिंह ने सांसद में स्पष्ट आर दिया कि इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले दलितों के लिए आरक्षण की नीति कैसी रहेगी।

नयी दिल्ली(ब्यूरो):

इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले दलितों को चुनावों में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों से चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं होगी। इसके अलावा वह आरक्षण से जुड़े अन्य लाभ भी नहीं ले पाएँगे। गुरुवार (11 फरवरी 2021) को राज्यसभा में एक प्रश्न का जवाब देते हुए क़ानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने यह जानकारी दी। 

हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले अनुसूचित जाति के लोग आरक्षित सीट से चुनाव लड़ने के योग्य होंगे। साथ ही साथ, वह अन्य आरक्षण सम्बन्धी लाभ भी ले पाएँगे। भाजपा नेता जीवी एल नरसिम्हा राव के सवाल का जवाब देते हुए रविशंकर प्रसाद ने इस मुद्दे पर जानकारी दी। 

आरक्षित क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की पात्रता पर बात करते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा, “स्ट्रक्चर (शेड्यूल कास्ट) ऑर्डर के तीसरे पैराग्राफ के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म से अलग है, उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।” इन बातों के आधार पर क़ानून मंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले दलितों के लिए आरक्षण की नीति कैसी रहेगी। 

क़ानून मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि संसदीय या लोकसभा चुनाव लड़ने वाले इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्ति को निषेध करने के लिए संशोधन का प्रस्ताव मौजूद नहीं।