कांग्रेस को लगा बड़ा झटका, हार्दिक पटेल ने छोड़ी कांग्रेस, अपमान का आरोप, राम मंदिर का जिक्र कर भाजपा में जाने के संकेत

हार्दिक पटेल ने कहा, ‘कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में किसी भी मुद्दे के प्रति गंभीरता की कमी एक बड़ा मुद्दा है। मैं जब भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से मिला तो लगा कि नेतृत्व का ध्यान गुजरात के लोगों और पार्टी की समस्याओं को सुनने से ज्यादा अपने मोबाइल और बाकी चीजों पर रहा। जब भी देश संकट में था अथवा कांग्रेस को नेतृत्व की सबसे ज्यादा आवश्यकता थी, तो हमारे नेता विदेश में थे। शीर्ष नेतृत्व का बर्ताव गुजरात के प्रति ऐसा है, जैसे कि गुजरात और गुजरातियों से उन्हें नफरत हो। ऐसे में कांग्रेस कैसे अपेक्षा करती है कि गुजरात के लोग उन्हें विकल्प के तौर पर देखेंगे?’ बता दें कि हार्दिक पटेल को गुजरात कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था।  लेकिन बीते कुछ वक्त से वह कांग्रेस नेतृत्व से नाराज चल रहे हैं।  कई बार वह अपनी नाराजगी खुलकर जता भी चुके थे।  उन्होंने यहां तक कह दिया था कि कांग्रेस में उनकी हालत ऐसी हो गई है जैसे नए दूल्हे की नसबंदी करा दी हो।  यहां वह कहना चाह रहे थे कि उनके पास पार्टी में फैसला लेने की कोई पावर नहीं है।  हार्दिक पटेल ने कहा था कि उनकी नाराजगी राहुल गांधी, प्रियंका गांधी या सोनिया गांधी से नहीं है, बल्कि स्टेट लीडरशिप से है।

हार्दिक पटेल ने कांग्रेस पर क्या आरोप लगाए

  • कांग्रेस पार्टी देशहित और समाज हित के बिल्कुल विपरीत काम कर रही है
  • कांग्रेस पार्टी विरोध की राजनीति तक सीमत हो गई है
  • कांग्रेस राम मंदिर निर्माण, CAA-NRC, धारा 370, जीएसटी लागू करने में बाधा थी
  • जब देश संकट में था, तब हमारे नेता विदेश में थे  

सारिका तिवारी, डेमोक्रेटिक फ्रंट, अहमदाबाद/चंडीगढ़ :  

काफी लंबे समय से पार्टी से नाराज चल रहे गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने इस्तीफा दे दिया है। अपने इस्तीफे की खबर हार्दिक पटेल ने ट्वीट के जरिये दी है। ट्वीट कर उन्होंने लिखा कि आज मैं हिम्मत करके कांग्रेस पार्टी के पद और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देता हूं, मुझे विश्वास है कि मेरे इस निर्णय का स्वागत मेरा हर साथी और गुजरात की जनता करेगी। मैं मानता हूं कि अपने इस कदम के बाद मैं भविष्य में गुजरात के लिए सच में सकारात्मक रूप से कार्य कर पाऊंगा।

हार्दिक पटेल लंबे समय से पार्टी से नाराज चल रहे थे और लगातार राज्य के नेताओं और हाईकमान पर सवाल खड़े कर रहे थे। गुजरात में विधानसभा चुनाव में कुछ ही महीने बचे हैं और उससे पहले हार्दिक पटेल के इस्तीफे ने कांग्रेस को करारा झटका दिया है। हार्दिक पटेल ने कहा था कि वह कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष जरूर बने हैं, लेकिन उन्हें कोई जिम्मेदीरी नहीं दी गई है और लगातार नेता उन्हें किनारे लगाने में जुटे हैं। हार्दिक पटेल ने राज्य इकाई के नेताओं पर आरोप लगाया था कि वे चाहते हैं कि मैं कांग्रेस छोड़ दूं। यही नहीं उनका कहना था कि कांग्रेस राज्य में बेहद कमजोर है और चुनाव जीतने की स्थिति में फिलहाल नजर नहीं आती है।

कई महीनों से हार्दिक पटेल के भाजपा में जाने की अटकलें लगाई जाती रही हैं। अपने इस्तीफे से हार्दिक पटेल ने इस बात के संकेत भी दिए हैं कि वे भाजपा में जा सकते हैं। हार्दिक पटेल ने अपने इस्तीफे में राम मंदिर, CAA, आर्टिकल 370 और जीएसटी का जिक्र करते हुए कहा कि इन मुद्दों का समाधान देश के लिए जरूरी था, लेकिन कांग्रेस लगातार इनमें बाधा ही बनती रही। उनकी इस टिप्पणी से यह माना जा रहा है कि वह भाजपा में शामिल हो सकते हैं। हार्दिक पटेल ने कहा कि भारत हो, गुजरात या फिर मेरे पटेल समाज की बात हो, कांग्रेस का अजेंडा सिर्फ केंद्र सरकार के विरोध का ही रहा है। 

हार्दिक पटेल ने अपने इस्तीफे में कांग्रेस पर अपमान का आरोप भी लगाया है। उन्होेंने लिखा, ‘राजनीति में सक्रिय हर व्यक्ति का धर्म होता है कि वह जनता के लिए कुछ करता रहे। लेकिन अफसोस की बात है कि कांग्रेस पार्टी गुजरात की जनता के लिए कुछ अच्छा करना ही नहीं चाहती। इसलिए जब मैं गुजरात के लिए कुछ करना चाहता था तो कांग्रेस ने सिर्फ मेरा तिरस्कार ही किया। मैंने सोचा नहीं था कि कांग्रेस का नेतृत्व हमारे प्रदेश, समाज और विशेष तौर पर युवाओं के लिए इस प्रकार का द्वेष अपने मन में रखता है।’ 

गुजरात कांग्रेस ने एक युवा को नेतृत्व करने का मौका दिया था। हार्दिक पटेल ने अमित शाह को “जनरल डायर” की उपाधि दी थी। बीजेपी निराश है क्योंकि अब असली मुद्दे गुजरात में भी सामने आ रहे हैं. अब उन्हें सत्ता गंवाने का डर सता रहा है। इसलिए वे कांग्रेस को अस्थिर करने के प्रयास करने लगे।भारत कभी “कांग्रेस मुक्त” नहीं हो सकता लेकिन यह सच है कि बीजेपी “कांग्रेस युक्त” हो गई है। हार्दिक पटेल ने अपने पत्र में जो कुछ भी लिखा है वह मूल रूप से भाजपा के शब्द हैं।

हार्दिक पटेल ने इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले विपक्षी पार्टी छोड़ने की अटकलों के बीच सोमवार को अपने ट्विटर प्रोफाइल से अपना पदनाम और पार्टी चुनाव चिह्न ‘हाथ’ को हटा दिया था।

पटेल द्वारा राज्य पार्टी नेतृत्व के कामकाज पर नाराजगी व्यक्त करने के कुछ दिनों बाद हार्दिक की ऐसी प्रतिक्रिया आई है। गुजरात में नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण के लिए पाटीदार समुदाय के आंदोलन का नेतृत्व करने वाले तेजतर्रार नेता ने ट्विटर पर अपने नए प्रोफाइल में खुद को “Proud Indian patriot” बताया था। 

पाकिस्तान में चीनियों पर चौथा आतंकी हमला, 3 की मौत, क्या चीन से बिगड़ेंगे रिश्ते ?

विशेषज्ञों के मुताबिक चीन कन्फ्यूशियस इंस्‍टीट्यूट के जरिए दुनियाभर में सांस्‍कृतिक प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। साथ ही इसके जरिए चीन उस देश के चर्चित विश्‍वविद्यालय में हो रहे शोध और अन्‍य तकनीकों के विकास पर नजर रखता है। इससे जासूसी को भी बढ़ावा देने की भी खबरें आई हैं और यही वजह है कि भारत ने चीनी इंस्‍टीट्यूट को लेकर बहुत सख्‍त न‍ियम बना दिए हैं। इससे पहले गत 26 अप्रैल को बुर्का पहनी बलूच आत्‍मघाती महिला ने खुद को उड़ा दिया था जिसमें 3 चीनी शिक्षक मारे गए थे और 4 अन्‍य घायल हो गए थे। सीनेट रक्षा समिति के अध्यक्ष मुशाहिद हसन ने अखबार डॉन को बताया कि इस घटना के बाद पाकिस्तान में चीनी लोगों की रक्षा करने की सरकार की क्षमता पर चीन का विश्वास गंभीर रूप से हिल गया। इस घटना के बाद चीनी सरकार ने पाकिस्तान में काम कर रहे अपने नागरिकों पर हमलों पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी।

कराची/नयी दिल्ली, डेमोक्रेटिक फ्रंट :   

पाकिस्तान   के विभिन्न हिस्सों में मैंडरिन पढ़ाने वाले चीनी शिक्षक हाल में हुए घातक हमलों के मद्देनजर बीजिंग द्वारा वापस बुलाए जाने के बाद घर के लिए रवाना हो गए हैं। कराची विश्वविद्यालय के एक अधिकारी ने सोमवार को यह जानकारी दी।  कुछ हफ्ते पहले बुर्का पहनकर आई बलूच महिला आत्मघाती हमलावर ने पाकिस्तान के प्रतिष्ठित कराची विश्वविद्यालय के अंदर एक वाहन के पास खुद को विस्फोट कर उड़ा लिया। देश की वित्तीय राजधानी में चीनी नागरिकों के खिलाफ इस हमले में कन्फ्यूशियस संस्थान के प्रमुख और उनके स्थानीय चालक सहित तीन चीनी शिक्षकों की मौत हो गई। प्रतिबंधित बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) से संबद्ध मजीद ब्रिगेड ने चीन द्वारा निर्मित कन्फ्यूशियस संस्थान के पास शिक्षकों पर हुए हमले की 26 अप्रैल को जिम्मेदारी ली थी।

यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान में चीनी नागरिकों को निशाना बनाकर हमला किया गया हो। आइए जानते हैं कि पाकिस्तान में कब-कब चीनी नागरिकों पर हमला किया गया है।

23 नवंबर 2018

इस दिन चीनी कांसुलेट जनरल, कराची पर हमला किया गया था। इस हमले में 4 लोगों की मौत हो गई थी। इसमें 2 पुलिस के कर्मी और 2 पाकिस्तान के नागरिक मारे गए थे। घंटों चले ऑपरेशन में तीनों हमलावर मारे गए थे। इस हमले में एक भी चीनी नागरिक न ही घायल हुआ था और न ही मारा गया था।

घटना के बाद चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा था कि चीन राजनयिक एजेंसियों के खिलाफ किसी भी हिंसक हमले की कड़ी निंदा करता है। चीन ने कहा था कि हमले के बावजूद चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना आगे बढ़ेगी। उस वक्त पाकिस्तान में चीनी दूतावास में मिशन के उप प्रमुख झाओ लिजियन ने हमले के जवाब में ‘समय पर और उचित कार्रवाई’ के लिए पाकिस्तानी सेना और पुलिस की तारीफ की थी।

20 अगस्त 2021

इस दिन बलूचिस्तान में ग्वादर ईस्ट बे एक्सप्रेसवे प्रोजेक्ट में एक आत्मघाती हमलावर ने चीनी कर्मियों पर हमला किया था। इस हमले में एक चीनी नागरिक घायल हो गया था और दो स्थानीय बच्चों की मौत हो गई थी।

हमले के बाद चीन ने कहा था कि पाकिस्तान से घायलों का उचित इलाज करने, हमले की गहन जांच करने और अपराधियों को कड़ी सजा देने की मांग की गई। इसके साथ ही चीन ने कहा कि हाल ही में पाकिस्तान में सुरक्षा की स्थिति गंभीर रही है। पाकिस्तान में चीनी दूतावास ने चीनी नागरिकों को सतर्क रहने की अपील की थी।

14 जुलाई 2021

खैबर पख्तूनख्वा के ऊपरी कोहिस्तान जिले में दासु हाइड्रोपॉवर में काम कर रहे चीनी श्रमिकों को ले जा रहे एक बस पर हमला किया गया था। इस हमले में कुल 13 लोगों की मौत हो गई थी जिसमें 4 पाकिस्तानी नागरिक थे और 9 चीनी। इस हमले में 28 लोग घायल हो गए थे। इस हमले के बाद चीन ने जमकर पाकिस्तान को लताड़ लगाई थी।

चीनी मीडिया ने भारत का दिया साथ, ‘गेहूं निर्यात पर’ G7 देशों के खिलाफ खोला मोर्चा

चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि अब जी-7 के एग्रीकल्चर मिनिस्टर्स भारत से गेहूं एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध नहीं लगाने का आग्रह कर रहे हैं, तो जी-7 राष्ट्र अपने एक्सपोर्ट में इजाफा करके फूड मार्केट की सप्लाई को स्थिर करने के लिए खुद कदम क्यों नहीं उठाते। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक है, लेकिन ग्लोबल व्हीट एक्सपोर्ट में उसकी हिस्सेदारी काफी कम है। इसके विपरीत अमेरिका, कनाडा, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया सहित कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाएं गेहूं के प्रमुख निर्यातकों में से हैं।

सारिका तिवारी, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़/नयी दिल्ली:

चीन  ने रविवार को भारत के पक्ष में G7 देशों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। G7 देश गेहूं के निर्यात को सीमित करने के भारत के फैसले की आलोचना कर रहे थे। चीन ने कहा कि भारत जैसे विकासशील देशों पर दोषारोपण से वैश्विक खाद्य संकट (Global Food Crisis) का हल नहीं निकलेगा।  पिछले हफ्ते भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात की नीति को संशोधित करते हुए गेहूं के निर्यात को “प्रतिबंधित” श्रेणी में डाल दिया था।  यह आदेश कॉमर्स मंत्रालय की तरफ से जारी हुआ था। इसमें कहा गया था कि सरकार ने गेहूं के निर्यात पर “तुरंत प्रभाव से” प्रतिबंध लगा दिया है।

रुस-यूक्रेन जंग के बीच भारत के गेहूं एक्सपोर्ट पर बैन लगाने से दुनियाभर में हलचल मच गई है। G-7 देशों के ग्रुप ने भारत सरकार के इस फैसले की आलोचना की है। जर्मनी के कृषि मंत्री केम ओजडेमिर ने कहा है कि भारत के इस कदम से दुनियाभर में कमोडिटी की कीमतों का संकट और ज्यादा बढ़ जाएगा। अगले महीने जर्मनी में जी-7 शिखर सम्मेलन में इस मुद्दे को उठाया जाएगा। इस सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भाग लेंगे।

रूस और यूक्रेन दोनों देश गेहूं के बड़े एक्सपोर्टर है और फरवरी में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद सप्लाई की चिंताओं से वैश्विक गेहूं की कीमतें बढ़ गई हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के दाम 60% तक बढ़े हैं। भारत गेहूं उत्पादन के मामले में दूनिया में दूसरे नंबर पर है। यहां सालाना लगभग 107.59 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन होता है। इसका एक बड़ा हिस्सा घरेलू खपत में जाता है। भारत में प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और गुजरात हैं।

इस संबंध में 13 मई, शुक्रवार को जारी अधिसूचना के मुताबिक भारत ने घरेलू स्तर पर बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के उपायों के तहत गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है। भारत ने बताया कि इस फैसले के पीछे गेहूं की कम पैदावार और वैश्विक कीमतें में आई तेजी से उछाल, मुख्य कारण हैं। वहीं युद्ध की वजह से वह अब अपनी”खाद्य सुरक्षा” को लेकर चिंतित था। वैसे, शुक्रवार को जारी निर्देश से पहले की सभी खेप और एक्सपोर्ट डील पर कोई रोक नहीं होगी। मगर भविष्य के सभी शिपमेंट के लिए सरकार की मंजूरी जरूरी है। यानी निर्यात तभी किया जा सकता है, जब किसी देश के अनुरोध पर भारत सरकार इसकी मंजूरी दे दे।

गेहूं की सप्लाई पर पड़े असर को देखते हुए G7 औद्योगिक देशों के मंत्रियों ने दुनिया भर के देशों से कोई प्रतिबंध नहीं लगाने का आग्रह किया था, क्योंकि इससे उपज बाजारों पर और दबाव बढ़ सकता है। लेकिन भारत के फैसले से उन्हें झटका लगा है। हो सकता है इसी तरह कुछ और देश भी निर्यात में कटौती कर दें। इससे दुनिया भर में खाद्यान्न की समस्या पैदा हो जाएगी। कृषि मंत्री ने जून में जर्मनी में होने वाले G7 शिखर सम्मेलन में इस मुद्दे को उठाने की बात कही है। इस सम्मेलन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के भी शामिल होने की संभावना है।

कॉंग्रेस के चिंतन शिविर में ‘हार्दिक’ की अनुपस्थिति से कॉंग्रेस चिंतन में

गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल के करीबी सूत्रों के मुताबिक उन्हें उदयपुर आने का न्यौता दिया गया था। हालांकि कांग्रेस ने देश के अन्य प्रदेशों के कार्यकारी अध्यक्षों को चिंतन शिविर में आमंत्रित नहीं किया है। चिंतन शिविर में शामिल कुल 430 प्रतिनिधियों में युवा नेता कन्हैया कुमार का नाम भी है। लंबे समय से उपेक्षित चल रहे वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी भी चिंतन शिविर में मौजूद हैं।

सारिका तिवारी, डेमोक्रेटिक फ्रंट, राजस्थान/चंडीगढ़ :

गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने की अटकलों पर पूछे गये सवाल का जवाब दिया। उन्होंने इसका सीधा जवाब नहीं देते हुए पत्रकारों के सामने ही एक सवाल दाग दिय। . साथ ही कहा कि राहुल गांधी या प्रियंका गांधी वाड्रा की वजह से वह परेशान नहीं हैं। वह राज्य के कांग्रेस नेताओं की वजह से परेशान हैं।

गौरतलब है कि पिछले दिनों गुजरात दौरे पर राहुल गांधी से ना मिल पाने को लेकर हार्दिक पटेल ने कहा था कि राहुल को पांच घंटे के भीतर कई नेताओं से मिलना था। उन्होंने ये भी कहा था कि 15 दिन पहले राहुल गांधी ने उन्हें संदेश भेजा था कि वक्त मिलते ही वो उनसे बात करेंगे। हार्दिक पटेल के चिंतन शिविर में हिस्सा ना लेने को लेकर राजनीतिक गलियारों में उनके बीजेपी में शामिल होने की चर्चा शुरू हो गई है। पिछले दिनों गुजरात सरकार ने हार्दिक पटेल के खिलाफ केस वापस लेने का फैसला किया था।

कांग्रेस पिछले 8 सालों से लगातार एक के बाद एक करके लोकसभा से लेकर विधानसभा के चुनावों में लगातार शिकस्त खा रही है। आखिर क्या वजह से जो देश की इतनी बड़ी पार्टी जिसने 60 साल से भी ज्यादा समय देश पर राज किया एकदम से हार रही है ? इस बात को लेकर राजस्थान के उदयपुर में चिंतन शिविर का आयोजन किया गया ह। . इस बार कांग्रेस का पूरा ध्यान संगठन में बदलाव और अगले लोकसभा चुनाव की कार्ययोजना पर होगा। नाराज चल रहे गुजरात के युवा नेता हार्दिक पटेल न्यौते के बावजूद कांग्रेस के चिंतन शिविर में नहीं पहुंचे। उनके अलावा जी-23 नेता कपिल सिब्बल भी इस चिंतन शिविर में नहीं पहुंचे हैं।

यह चिंतन शिविर तीन दिनों तक चलेगा जिसमें आज और कल शाम तक विभिन्न मुद्दों पर अलग-अलग समूहों में चर्चाओं का दौर चलेगा। फिर जो प्रस्ताव तैयार होगा उस पर 15 मई को कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में मुहर लगाई जाएगी। कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा है कि 19 साल बाद कांग्रेस ऐसा चिंतन शिविर कर रही है, अच्छा कदम है। सभी लोगों को अपनी राय बिना हिचक रखने का मौका मिलना चाहिए। वहीं आपको बता दें कि इस चिंतन शिविर में पार्टी अध्यक्ष को लेकर चर्चा नहीं होगी लेकिन बड़ी जानकारी ये सामने आई है कि राहुल गांधी पार्टी को दोबारा कमान संभालने पर गंभीरता से विचार किया जा सकता है

ताजमहल के 22 बंद कमरों को खोलने की याचिका दायर, कल हाईकोर्ट में सुनवाई

इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच में एक याचिका दायर की गई कि ताजमहल में बंद 22 कमरों को खुलवाया जाए और ऐएसआई से इनकी जांच कराई जाए। याचिका में ये दावा भी किया गया कि ताज महल में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां हैं। जानकारी के मुताबिक, अयोध्या में बीजेपी के मीडिया प्रभारी की ओर से ताजमहल को लेकर ये याचिका दायर की गई है याचिकाकर्ता ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि, “मैंने एऐसआई से वालों से पूछा है कि ताजमहल में ये जो कमरों को बंद किया गया है इसका कारण क्या है? उन्होंने कहा कि मैंने मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर से भी पूछा कि इसका असल कारण क्या है जिसके जवाब में कहा गया कि सुरक्षा कारणों के चलते इन्हें बंद किया गया है।”

लखनऊ:(ब्यूरो), डेमोक्रेटिक फ्रंट :

ताजमहल में बंद पड़े 22 कमरों को खुलवाने की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच गुरुवार को सुनवाई करेगी। दरअसल, हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है कि ताजमहल में बंद पड़े 22 कमरों को खुलवाया जाए ताकि लोग जान पाए कि आखिर बंद पड़े 22 कमरों में अंदर क्या है? याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में यह दलील दी है कि उन्होंने आरटीआई दाखिल कर इस बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश की कि आखिरकार 22 कमरे बंद क्यों है? लेकिन, याचिकाकर्ता जवाब से संतुष्ट नहीं हुए. जिस के बाद उन्होंने कोर्ट का रुख किया है। 22 कमरे खोलने का निर्देश देने की गुजारिश की गई है ताकि यह पता लगाया जा सके कि वहां हिंदू मूर्तियां और शिलालेख छिपे हैं या नहीं। यह याचिका BJP के अयोध्या जिले के मीडिया प्रभारी डॉ रजनीश सिंह ने दायर की है।

याचिका में याचिकाकर्ता ने अदालत से राज्य सरकार को एक समिति गठित करने का निर्देश देने की मांग की है जो इन कमरों की जांच करे और वहां हिंदू मूर्तियों या धर्मग्रंथों से संबंधित किसी भी सबूत की तलाश करे। डॉ. रजनीश सिंह ने कहा कि उन्होनें 4 मई को याचिका दायर की है जिस पर कल सुनवाई होनी है। याची का कहना है कि ताजमहल से जुड़ा एक पुराना विवाद है। ताजमहल में करीब 22 कमरे बंद हैं और किसी को अंदर जाने की इजाजत नहीं है।  

ताज के बंद दरवाजों को खोलने में एक नहीं कई अड़चनें हैं। पहली, वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा रखने वाली इमारत से छेड़छाड़ के लिए चाहिए होंगे करोड़ों रुपए और हाईलेवल एक्सपर्सट्स की कई टीमें। दूसरी वजह यह भी है कि ताजमहल वर्ल्ड हैरीटेज मॉन्यूमेंट है, इसलिए UNESCO भी इस मामले में दखल देगा।

सेंट्रल स्टडीज एंड हेरिटेज मैनेजमेंट रिसोर्सेज, पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट अहमदाबाद में ऑनरेरी डायरेक्टर देबाशीष नायक कहते हैं, ‘ताजमहल वर्ल्ड हेरिटेज है, ऐसे में उसके ढांचे से छेड़छाड़ करने के लिए UNESCO से डिस्कस करना पड़ेगा। लॉजिक देना पड़ेगा। उसके बाद ही आप दरवाजे खोल सकते हैं।’

लेकिन क्या यह संभव है कि अगर कोर्ट ASI को उन दरवाजों को खोलने का निर्देश दे और याचिकाकर्ता का दावा ठीक निकले, तो भी वह वर्ल्ड हेरिटेज रहे? वे कहते हैं, यह दूर की कौड़ी है। लेकिन अगर हेरिटेज इमारत का ऑब्जेक्टिव चेंज होगा, तो UNESCO दखल जरूर देगा। उसके बाद वह इस पर फाइनल फैसला लेगा।

BHU की हिस्ट्री प्रोफेसर और आर्कियोलॉजिस्ट बिंदा कहती हैं, ‘ताजमहल का आर्किटेक्चर बेहद अनूठा है। आप देखिए कि उस पर लिखी कुरान की आयतों को आप जिस भी डायरेक्शन से देखें तो वे दिखाई देती हैं। इसका मतलब है कि तब के कारीगरों और एक्सपर्ट्स ने इंसानी विजन को समझकर उसका वैज्ञानिक विश्लेषण करने के बाद आयतें इस ढंग से लिखी होंगी कि दूर से और हर एंगल से वे दिखाई दें। ऐसे में अगर दरवाजे खोलने का निर्णय लिया गया तो पहले बेहद सावधानी और एक्सपर्ट्स की टीम के साथ काम करना होगा।

बिंदा के मुताबिक, ‘टीम भी कई स्तरों पर गठन करने की जरूरत होगी, पहली आर्काइव को खंगालने के लिए, दूसरी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम और फिर ऐसी टीम भी जो केमिस्ट्री यानी केमिकल्स की जानकार हो। अगर कोई स्ट्रक्चर जरा सा भी क्षतिग्रस्त हुआ, तो उसे मेंटेन करना आसान नहीं होगा। इन सबके लिए करोड़ों रुपए के फंड की जरूरत होगी। ऐसे में अगर ताजमहल के दरवाजे खोलने का निर्णय हुआ तो सबसे पहले फंड एलोकेट करना होगा। वह कोई छोटा-मोटा फंड नहीं होगा। कई काम फंड की कमी से बीच में ही अटक जाते हैं।’

आप हिस्ट्री की प्रोफेसर हैं, आपको क्या लगता है, आखिर यह 22 दरवाजे बंद क्यों हैं? इस सवाल पर प्रो. बिंदा कहती हैं, ‘देखिए कोणार्क मंदिर का भी कुछ हिस्सा बंद था, लेकिन उसके पीछे वजह यह थी कि वह डैमेज हो रहा था। अगर उसे पर्यटकों के लिए खोला रखा जाता तो वह और भी डैमेज हो जाता। अब ताजमहल के बंद दरवाजों के पीछे रहस्य क्या है, यह तो उनके खुलने के बाद ही पता चलेगा। मेरी चिंता बस यह है कि अगर कोई विवाद है तो उसे सुलझाया जाए, लेकिन वैश्विक धरोहरों और दुनिया के लिए मिसाल बने आर्किटेक्चर से छेड़छाड़ न हो। अगर कुछ करना भी है तो फिर ऐसे हो कि विवाद भी सुलझ जाए और वह इमारत अपने मूल रूप में भी बनी रहे।’

रजनीश सिंह ने कहा, ‘मैं केवल शंका का समाधान चाहता हूं। जो सच होगा, वह सामने आएगा। वे 22 दरवाजे खुलेंगे, तो पता चलेगा कि वह मकबरा है या मंदिर। मैं अभी से कोई दावा नहीं करता। उन्होंने यह भी साफ किया कि उनकी याचिका का पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है। यह उनकी व्यक्तिगत याचिका है।’

ताजमहल पर ताजा याचिका के बारे में जानने से पहले आपइस खबर को भी पढ़ सकते हैं :

पिटीशन में ताजमहल पर उठाए गए 5 गंभीर सवाल

1. पिटीशन में हवाला दिया गया है कि कई किताबों में ये जिक्र है कि 1212 AD में राजा परमारदी देव ने तेजो महालय बनवाया था, जो बाद में जयपुर के राजा मान सिंह को विरासत में मिला था। यही बाद में राजा जय सिंह को मिला। शाहजहां ने तेजो महालय को तुड़वाकर इसे मकबरा बना दिया था।

2. किसी भी मुगल कोर्ट पेपर या क्रॉनिकल, यहां तक कि औरंगजेब के समय में भी ताजमहल का जिक्र नहीं है। मुस्लिम महल शब्द का इस्तेमाल कभी नहीं करते। किसी भी मुस्लिम कंट्री में इस शब्द के होने के प्रमाण नहीं हैं।

3. औरंगजेब काल के तीन दस्तावेज हैं- आदाब-ए-आलमगिरी, यादगारनामा और मुरक्का-ए-अकबराबादी। इनमें दर्ज 1652 AD के एक पत्र में औरंगजेब ने मुमताज के मकबरे की मरम्मत के निर्देश दिए। उसमें साफ लिखा है कि मकबरे की हालत ठीक नहीं है। वह कई जगह से रिस रहा है। दरारें पड़ चुकी हैं। मकबरे को 7 माले का बताया गया है। यानी साफ है कि मकबरा औरंगजेब के समय में काफी पुराना हो चुका था, अगर शाहजहां ने बनवाया होता तो कुछ ही सालों बाद यह इतना पुराना नहीं पड़ गया होता।

4. शाहजहां की पत्नी का नाम मुमताज महल बताया गया है। इसीलिए इसका नाम ताजमहल भी रखा गया, लेकिन अगर कोई ऑथेंटिक डाक्यूमेंट्स खंगाले तो पता चलेगा कि मुमताज का नाम मुमताज उल जमानी लिखा गया है।

5. इस कब्र को 1631 में बनाना शुरू किया गया था और 1653 में यह बनकर तैयार हुई। यानी 22 साल इसके निर्माण में लगे। एक कब्र को बनाने में इतना वक्त लगना भी शंका खड़ी करता है।

गुजरात में कांग्रेस को झटका, पार्टी नेता वसंत भटोल भाजपा में शामिल

करीब छह महीने पहले परप्रांतीय लोगों पर बड़ी संख्या में हुए हमलों की वजह से गुजरात अचानक से राष्ट्रीय स्तर की सुर्खियों में शामिल हो गया था,  तब गुजरात में 14 महीने की एक बच्ची के साथ दुष्कर्म के एक मामले में बिहार के एक मजदूर को गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद राज्य के कई इलाकों में बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों के खिलाफ जबर्दस्त हिंसा भड़क गई थी। इसके चलते कई लोगों को गुजरात छोड़ना पड़ा था। हिंदीभाषी पीड़ितों ने उस समय खुद पर हुई ज्यादती के लिए अल्पेश ठाकोर और उनके नेतृत्व वाली ‘गुजरात क्षत्रिय-ठाकोर सेना’ को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं। 

डेमोक्रेटिक फ्रंट, अहमदाबाद :  

गुजरात के पूर्व विधायक और कांग्रेस नेता वसंत भटोल सोमवार को गांधीनगर में भारतीय जनता पार्टी के मुख्यालय ‘कमलम’ में पार्टी में शामिल हो गए। भटोल ने अप्रैल 2019 में आम चुनाव से पहले भाजपा छोड़ दी थी और विपक्षी पार्टी द्वारा उनके पिता पार्थी भटोल को बनासकांठा से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिए जाने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए थे। भटोल ने 2009 में बनासकांठा की दांता विधानसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार के रूप में उपचुनाव जीता था।  गुजरात में इस साल दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने की संभावना है।

आखिरकार गुजरात की पिछड़ी जाति, ठाकोर समाज के नेता अल्पेश ठाकोर कांग्रेस छोड़कर चले गए। उनके बारे में बताया जा रहा है कि वे अब भारतीय जनता पार्टी में शामिल होंगे। हालांकि उन्होंने अभी तक किसी भी पार्टी में शामिल होने की बात नहीं बताई है, लेकिन उनके व्यवहार और राजनीतिक सोच को देखकर यह साफ होने लगा है कि वे भाजपा का ही दामन थामेंगे। इससे गुजरात कांग्रेस को झटका तो लगा है, लेकिन कुछ मायने में फायदा भी हो सकता है।

भाजपा की गुजरात इकाई के प्रमुख सीआर पाटिल ने भटोल के पार्टी में वापस आने का स्वागत करते हुए कहा कि उन्होंने कांग्रेस में शामिल होकर गलती की और दावा किया कि वह ‘मातृ संगठन’ में वापस आकर इसे ठीक कर रहे हैं।  भटोल ने दावा किया कि वह बिना किसी पूर्व शर्त या टिकट की उम्मीद के फिर से भाजपा में शामिल हुए हैं। उन्‍होंने कहा कि मुझे मातृ प्रेम इसी संस्‍था से मिला और भाजपा से दूर होने पर मैं दुखी रहा। उन्‍होंने कहा कि भाजपा ने मुझे अस्तित्‍व दिया है और पहचान दी है।

उन्‍होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को धन्‍यवाद दिया। उन्‍होंने कहा कि मैं अपने कर्तव्‍यों को जिम्‍मेदारी से निभाऊंगा। वहीं, हाल में सूरत के लिम्‍बायत से कांग्रेस के 2017 में प्रत्‍याशी रहे पूर्व उपमहापौर डॉ. रविंद्र ने घर वापसी की थी। जबकि श्‍वेता ब्रह्मभट्ट ने भी कांग्रेस से इस्‍तीफा देकर भाजपा में शामिल होने का रास्‍ता बना लिया है।

गुजरात में इस साल दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने की संभावना है। भटोल ने दावा किया कि वह बिना किसी पूर्व शर्त या टिकट की उम्मीद के फिर से भाजपा में शामिल हुए हैं।

गुजरात विधानसभा का चुनाव कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर हो गया है

गुजरात में जैसे-जैसे विधानसभा के चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं वहां कांग्रेस में राजनीतिक घमासान तेज होता जा रहा है। कुछ महीने पहले हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की तरह गुजरात में भी एक बार फिर से चुनावों से पहले आपस में नेताओं की तकरार शुरू हो गई है। गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने जिस तरह से पार्टी को निशाने पर लिया है उससे राजनीतिक हलकों में स्पष्ट संदेश है कि आने वाले कुछ दिनों में पटेल पार्टी छोड़कर किसी दूसरे दल में शामिल हो सकते हैं। वहीं, अंदरूनी रार के चलते कांग्रेस के नेताओं का चुनाव से ऐन वक्त पहले दूसरी पार्टियों में खिसकना जारी हो गया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी के लिए उनके अपने ही नेता चुनौती बने हुए हैं। इसलिए गुजरात विधानसभा का चुनाव कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर हो गया है। 

सारिका तिवारी, डेमोक्रेटिक फ्रंट, गुजरात/ चंडीगढ़ :

पांच राज्यों के चुनावों में करारी हार से उबरने की कोशिश कर रही कांग्रेस इस साल के अंत में होने जा रहे गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए बड़ी रणनीति बना रही है. कांग्रेस सूत्रों का दावा है कि अंदरखाने पार्टी नेतृत्व बड़े पाटीदार नेता नरेश पटेल को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की रणनीति बना रहा है. चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर इस योजना का अहम हिस्सा हैं. सब ठीक रहा तो जल्द नरेश पटेल कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. आपको बताते हैं कि कौन हैं नरेश पटेल, जिनके चेहरे पर कांग्रेस दांव लगा सकती है और आखिर क्यों नरेश पटेल पर कांग्रेस को इतना भरोसा है?

कांग्रेस को 2017 में 15 विधायकों के पलायन का सामना करना पड़ा था। इन नेताओं में दिग्गज लीडर शंकर सिंह वाघेला भी शामिल थे, जो सूबे के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। यही नहीं अहमद पटेल को अपनी राज्यसभा सीट के लिए बेहद कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ा था, हालांकि वह करीबी अंतर से जीतने में कामयाब रहे थे। भले ही उस दौरान वाघेला ने भाजपा जॉइन नहीं की थी, लेकिन अन्य 14 विधायक भगवा दल में शामिल हो गए थे। कहा जा रहा है कि इस बार यह संख्या और अधिक भी हो सकती है। भाजपा के एक सीनियर नेता का कहना है कि आने वाले दिनों में कई और विधायक कांग्रेस छोड़कर पार्टी में शामिल हो सकते हैं। 

बता दें कि 2017 के बाद पहला झटका कांग्रेस को तब लगा था, जब 5 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ दी थी। इसके अलावा दो विधायकों का निधन हो गया था और फिर 7 सीटों पर उपचुनाव हुआ था, जिसमें भाजपा को 4 और कांग्रेस को 3 पर जीत मिली है। इनमें से एक ओबीसी विधायक अल्पेश ठाकोर ने भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन लिया था, लेकिन राधनपुर सीट पर हुए उपचुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। उनके मुकाबले कांग्रेस के रघु देसाई को जीत मिल गई थी। हालांकि 2020 में भाजपा के नए बने प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल के नेतृत्व में 8 सीटों पर उपचुनाव हुआ था, जिनमें से सभी पर भाजपा को जीत मिली थी। इस तरह भाजपा की फिलहाल विधानसभा में संख्या 111 है। 

अहमदाबाद स्थित अच्युत याग्निक ने कांग्रेस की स्थिति को लेकर कहा, ‘कांग्रेस लगातार कमजोर होती दिख रही है। लीडरशिप की ओर से जरूरी ऐक्शन नहीं लिया जा रहा है। खासतौर पर राज्य स्तर पर स्थिति ठीक नहीं है। भाजपा का जमीन पर मजबूत संगठन है और उसे आरएसएस की ओर से भी ग्राउंड पर अच्छा सपोर्ट मिलता रहा है। कांग्रेस का किसी जमाने में सेवा दल नाम का संगठन था, लेकिन अब वह उस तरह से ऐक्टिव ही नहीं है।’ याग्निक ने कहा कि भाजपा सत्ता में है और कांग्रेस छोड़कर आने वाले नेताओं को भरोसा है कि वह लंबे समय तक सत्ता में रहेगी। 

आज जाएष्ठ मास से ग्रीषम ऋतु आरंभ

ग्रीष्म ऋतु साल का सबसे गर्म मौसम होता है, जिसमें दिन के समय बाहर जाना काफी मुश्किल होता है। इस दौरान लोग आमतौर पर  बाजार देर शाम या रात में जाते हैं। बहुत से लोग गर्मियों में सुबह में टहलना पसंद करते हैं। इस मौसम में धूल से भरी हुई, शुष्क और गर्म हवा पूरे दिन भर चलती रहती है। कभी-कभी लोग अधिक गरमी के कारण हीट-स्ट्रोक, डीहाइड्रेशन (पानी की कमी), डायरिया, हैजा, और अन्य स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से भी प्रभावित हो जाते हैं।

राजविरेन्द्र वसिष्ठ, डेमोक्रेटिक फ्रंट, ऋतु वर्णन डेस्क, चंडीगढ़ – वैशाख़ कृष्ण चतुर्थी :

ज्येष्ठ और आषाढ़ ‘ग्रीष्म ऋतु’ के मास हैं। इसमें सूर्य उत्तरायण की ओर बढ़ता है। ग्रीष्म ऋतु प्राणीमात्र के लिए कष्टकारी अवश्य है, पर तप के बिना सुख-सुविधा को प्राप्त नहीं किया जा सकता। यह ऋतु अंग्रेजी कैलेंडर अनुसार मई और जून में रहती है।

मादक वसन्त का अन्त होते ही ग्रीष्म की प्रचंडता आरम्भ हो जाती है। वसन्त ऋतु काम से, ग्रीष्म क्रोध से सम्बन्धित है। ग्रीष्म ऋतु, भारतवर्ष की छह ऋतओं में से एक ऋतु है, जिसमें वातावरण का तापमान प्रायः उच्च रहता है। दिन बड़े हो जाते हैं रातें छोटी।  शीतल सुंगधित पवन के स्थान पर गरम-गरम लू चलने लगती है। धरती जलने लगती है। नदी-तलाब सूखने लगते हैं। कमल कुसुम मुरझा जाते हैं। दिन बड़े होने लगते हैं। सर्वत्र अग्नि की वर्षा होती-सी प्रतीत होती है। शरद ऋतु का बाल सूर्य ग्रीष्म ऋतु को प्राप्त होते ही भगवान शंकर की क्रोधाग्नि-सी बरसाने लगा है। ज्येष्ठ मास में तो ग्रीष्म की अखंडता और भी प्रखर हो जाती है। छाया भी छाया ढूंढने लगती है।

  एक और दोहे में कवि बिहारी कहते हैं कि ग्रीष्म की दोपहरी में गर्मी से व्याकुल प्राणी वैर-विरोध की भावना को भूल जाते हैं। परस्पर विरोध भाव वाले जन्तु एक साथ पड़े रहते हैं। उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है मनो यह संसार कोई तपोवन में रहने वाले प्राणियों में किसी के प्रति दुर्भावना नहीं होतीं । बिहारी का दोहा इस प्रकार है –

 गर्मी में दिन लम्बे और रातें छोटी होती हैं। दोपहर का भोजन करने पर सोने व आराम करने की तबियत होती है। पक्की सड़कों का तारकोल पिघल जाता है। सड़कें तवे के समान तप जाती हैं –

ग्रीष्म की प्रचंडता का प्रभाव प्राणियों पर पड़े बिना नहीं रहता। शरीर में स्फूर्ति का स्थान आलस्य ले लेता है। तनिक-सा श्रम करते ही शरीर पसीने से सराबोर हो जाता है। कण्ठ सूखने लगता है। अधिक श्रम करने पर बहुत थकान हो जाती है। इस मौसम में यात्रा करना भी दूभर हो जाता है। यह ऋतु प्रकृति के सर्वाधिक उग्र रुप की द्योतक है।

भारत में सामान्यतया 15 मार्च से 15 जून तक ग्रीष्म मानी जाती है। इस समय तक सूर्य भूमध्य रेखा से कर्क रेखा की ओर बढ़ता है, जिससे सम्पूर्ण देश में तापमान में वृद्धि होने लगती है। इस समय सूर्य के कर्क रेखा की ओर अग्रसर होने के साथ ही तापमान का अधिकतम बिन्दु भी क्रमशः दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ता जाता है और मई के अन्त में देश के उत्तरी-पश्चिमी भाग में 48डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। उत्तर पश्चिमी भारत के शुष्क भागों में इस समय चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवाओं को ‘लू’ कहा जाता है। राजस्थान, पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रायः शाम के समय धूल भरी आँधियाँ आती है, जिनके कारण दृश्यता तक कम हो जाती है। धूल की प्रकृति एवं रंग के आधार पर इन्हें काली अथवा पीली आंधियां कहा जाता है। सामुद्रिक प्रभाव के कारण दक्षिण भारत में इन गर्म पवनों तथा आंधियों का अभाव पाया जाता है।

त्योहार- ग्रीष्म माह में अच्छा भोजन और बीच-बीच में व्रत करने का प्रचलन रहता है। इस माह में निर्जला एकादशी, वट सावित्री व्रत, शीतलाष्टमी, देवशयनी एकादशी और गुरु पूर्णिमा आदि त्योहार आते हैं। गुरु पूर्णिमा के बाद से श्रावण मास शुरू होता है और इसी से ऋतु परिवर्तन हो जाता है और वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है।

रीतिकालीन कवियों में सेनापति का ग्रीष्म ऋतु वर्णन अत्यन्त प्रसिद्ध है।–

रासो काव्य रचनाकार ‘अब्दुल रहमान’ द्वारा लिखी गई सन्देश रासक में षड्ऋतुवर्णन ग्रीष्म से प्रारम्भ होता है…

ग्रीष्म शब्द ग्रसन से बना है। ग्रीष्म ऋतु में सूर्य अपनी किरणों द्वारा पृथ्वी के रस को ग्रस लेता है।

भागवत पुराण में ग्रीष्म ऋतु में कृष्ण द्वारा कालिया नाग के दमन की कथा आती है जिसको उपरोक्त आधार पर समझा जा सकता है । भागवत पुराण का द्वितीय स्कन्ध सृष्टि से सम्बन्धित है जिसकी व्याख्या अपेक्षित है।

शतपथ ब्राह्मण में ग्रीष्म का स्तनयन/गर्जन से तादात्म्य कहा गया है जिसकी व्याख्या अपेक्षित है।

जैमिनीय ब्राह्मण 2.51 में वाक् या अग्नि को ग्रीष्म कहा गया है ।

तैत्तिरीय संहिता में ग्रीष्म ऋतु यव प्राप्त करती है। तैत्तिरीय ब्राह्मण में ग्रीष्म में रुद्रों की स्तुति का निर्देश है। तैत्तरीय संहिता में ऋतुओं एवं मासों के नाम बताये गये है,जैसे :- बसंत ऋतु के दो मास- मधु माधवग्रीष्म ऋतु के शुक्र-शुचिवर्षा के नभ और नभस्यशरद के इष ऊर्जहेमन्त के सह सहस्य और शिशिर ऋतु के दो माह तपस और तपस्य बताये गये हैं।

चरक संहिता में कहा गया हैः …… शिशिर ऋतु उत्तम बलवाली, वसन्त ऋतु मध्यम बलवाली और ग्रीष्म ऋतु दौर्बल्यवाली होती है। ग्रीष्म ऋतु में गरम जलवायु पित्त एकत्र करती है। प्रकृति में होने वाले परिवर्तन शरीर को प्रभावित करते हैं। इसलिए व्यक्ति को साधारण रूप से भोजन तथा आचार-व्यवहार के साथ प्रकृति और उसके परिवर्तनों के साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहिए । तापमान बढ़ने पर पित्त उत्तेजित होता है तथा शरीर में जमा हो जाता है। व्याधियों से बचाव के लिए ऋतु के अनुकूल आहार तथा गतिविधियों का पालन जरूरी है।

होलिकोत्सव में सरसों के चूर्ण से उबटन लगाने की परंपरा है, ताकि ग्रीष्म ऋतु में त्वचा की सुरक्षा रहे। आदिकाल से उत्तर भारत में जहाँ तेज गर्मी होती है, गरम हवाएँ चलती हैं वहाँ पर त्वाचा की लाली के शमन के लिए प्राय: लोग सरसों के बीजों के उबटन का प्रयोग करते हैं।

नवरात्री दुर्गा पूजा वर्ष में दो बार आती है। यह जलवायु प्रधान पर्व है। अतः एक बार यह पर्व ग्रीष्म काल आगमन में राम नवरात्रि चैत्र (अप्रैल मई) के नाम से जाना जाता है। दूसरी बार इसे दुर्गा नवरात्रि अश्विन(सितम्बर-अकतूबर) मास में मनाया जाता है। यह समय शीतकाल के आरम्भ का होता है। यह दोनो समय ऋतु परिवर्तन के है।

प्रकृति-चित्रण में बिहारी किसी से पीछे नहीं रहे हैं। षट ॠतुओं का उन्होंने बड़ा ही सुंदर वर्णन किया है। ग्रीष्म ॠतु का चित्र देखिए –

कालिदास ने अभिज्ञानशाकुन्तलम् और ऋतुसंहार में ग्रीष्म ऋतु का वर्णन किया है-

अभिज्ञानशाकुन्तलम्- नाटक के प्रारम्भ में ही ग्रीष्म-वर्णन करते हुए लिखा कि वन-वायु के पाटल की सुगंधि से मिलकर सुगंधित हो उठने और छाया में लेटते ही नींद आने लगने और दिवस का अन्त रमणीय होने के द्वारा नाटक की कथा-वस्तु की मोटे तौर पर सूचना दे दी गई है, जो क्रमशः पहले शकुन्तला और दुष्यन्त के मिलन, उसके बाद नींद-प्रभाव से शकुन्तला को भूल जाने और नाटक का अन्त सुखद होने की सूचक है।

ऋतुसंहार में महाकवि कालिदास कहते हैं- प्रथम सर्ग के ग्रीष्म ऋतु के वर्णन में गीतिकार अपनी प्रियतमा को प्यार भरा सम्बोधन कर कहता है। प्रिये देखो, यह घोर गर्मी का मौसम है। इस ऋतु में सूर्य बहुत ही प्रचण्ड हो जाता है, -चन्द्र किरणें सुहानी लगती हैं, जल में स्नान करना भला लगता है। सांयकाल बड़ा रमणीयहो जाता है क्योंकि उस समय सूर्य का ताप नहीं सताता ! काम भावना भी प्रायः शिथिल पड़ जाता है। संभवतः इस सन्दर्भ में युवा कवि की यह सूचना रही हो कि ऋतु राजबसन्त में कामोद्रेक द्विगुणित हो जाता है।

गर्मी की रात में चन्द्र किरणों से रात्रि की कालिमा क्षी हो जाने से चाँदनी राते बहुत ही सुहावनी लगती है। ऐसे ही उष्पकाल में जिन भवनों में जल यन्त्र (फब्बारे) लगे रहते हैं, वे भी अति मनोरम लगते हैं । ठण्डक देने वाले चन्द्रकान्त मणि और सरस चन्दन का सेवन अति सुखकर लगता है। ग्रीष्म की चाँदनी रातों में धवल भवनों की छतों पर सुख से सोई ललनाओं के मुखों की कालि को देखकर चन्द्रमा बहुत ही उत्कण्ठित हो जाता है और रात्रि समाप्ति की वेला में  उनकी सुन्दरता से लजा कर फीका पड़ जाता है।

ग्रीष्म ऋतु में मयूर, सूर्य के आतप से इतने परितप्त हो जाते है कि अपने पंखों की छाया में धूप निवारण के लिए आ छिपे सॉपों को भी नहीं खाते, जबकि यह सर्प उनके भक्ष्य जंगल में फैली हुयी दावाग्नि का भी सरस चित्रण कवि करता है । पर्वत की गुफाओं में हवा का जोर पकड़कर दवानल बढ़ रहा है। सूखे बॉसों में चर-चर की आवाज आ रही है क्योकि जलने से ये शब्द करते है । जो अभभ दूर थी वहीं दावाग्नि सूखे तिनकों में फैलकर बढ़ती ही जाती है । इसी तरह से इधर-उधर घूमने वाले हरेषों को व्याकुल कर देती है। इस तरह से कवि ने प्रथम सर्ग में ग्रीष्म ऋतु का हृदय हारी वर्णन किया है ।

ज्येष्ठ की गर्मी- ज्येष्ठ हिन्दू पंचांग का तीसरा मास है। ज्येष्ठ या जेठ माह गर्मी का माह है। इस महीने में बहुत गर्मी पडती है। फाल्गुन माह में होली के त्योहार के बाद से ही गर्मियाँ प्रारम्भ हो जाती हैं। चैत्र और बैशाख माह में अपनी गर्मी दिखाते हुए ज्येष्ठ माह में वह अपने चरम पर होती है। ज्येष्ठ गर्मी का माह है। इस माह जल का महत्त्व बढ जाता है। इस माह जल की पूजा की जाती है और जल को बचाने का प्रयास किया जाता है। प्राचीन समय में ऋषि मुनियों ने पानी से जुड़े दो त्योहारों का विधान इस माह में किया है-

ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को गंगा दशहरा

ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जला एकादशी

इन त्योहारों से ऋषियों ने संदेश दिया कि गंगा नदी का पूजन करें और जल के महत्त्व को समझें। गंगा दशहरे के अगले दिन ही निर्जला एकादशी के व्रत का विधान रखा है जिससे संदेश मिलता है कि वर्ष में एक दिन ऐसा उपवास करें जिसमें जल ना ग्रहण करें और जल का महत्त्व समझें। ईश्वर की पूजा करें। गंगा नदी को ज्येष्ठ भी कहा जाता है क्योंकि गंगा नदी अपने गुणों में अन्य नदियों से ज्येष्ठ(बडी) है। ऐसी मान्यता है कि नर्मदा और यमुना नदी गंगा नदी से बडी और विस्तार में ब्रह्मपुत्र बड़ी है किंतु गुणों, गरिमा और महत्त्व की दृष्टि से गंगा नदी बड़ी है। गंगा की विशेषता बताता है ज्येष्ठ और ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष की दशमी गंगा दशहरा के रूप में गंगा की आराधना का महापर्व है।

निर्जला एकादशी- भीषण गर्मी के बीच तप की पराकाष्टा को दर्शाता है यह व्रत। इसमें दान-पुण्य एवं सेवा भाव का भी बहुत बड़ा महत्व शास्त्रों में बताया गया है।  ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है। अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है, परंतु इस एकादशी को फल तो क्या जल भी ग्रहण नहीं किया जाता। यह एकादशी ग्रीष्म ऋतु में बड़े कष्ट और तपस्या से की जाती है। अतः अन्य एकादशियों से इसका महत्व सर्वोपरि है। इस एकादशी के करने से आयु और आरोग्य की वृद्धि तथा उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है। महाभारत के अनुसार अधिक माससहित एक वर्ष की छब्बीसों एकादशियां न की जा सकें तो केवल निर्जला एकादशी का ही व्रत कर लेने से पूरा फल प्राप्त हो जाता है।

वृषस्थे मिथुनस्थेऽर्के शुक्ला ह्येकादशी भवेत्‌

ज्येष्ठे मासि प्रयत्रेन सोपाष्या जलवर्जिता।

नवतपा- नवतपा को ज्येष्ठ महीने के ग्रीष्म ऋतु में तपन की अधिकता का द्योतक माना जाता है। सूर्य के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करने के साथ नवतपा शुरू हो जाता है। शुक्ल पक्ष में आर्द्रा नक्षत्र से लेकर 9 नक्षत्रों में 9 दिनों तक नवतपा रहता है। नवतपा में तपा देने वाली भीषण गर्मी पड़ती है। नवतपा में सूर्यदेव लोगों के पसीने छुड़ा देते हैं। पारा एक दम से 48 डिग्री पर पहुंच जाता है। जबकि न्यूनतम तापमान 32 डिग्री तक रहता है। लेकिन नवतपा के बाद एक अच्छी खबर आती है आर्द्रा के 10 नक्षत्रों तक जिस नक्षत्र में सबसे अधिक गर्मी पड़ती है, आगे चलकर उस नक्षत्र में 15 दिनों तक सूर्य रहते हैं और अच्छी वर्षा होती है।

राग दीपक- ग्रीष्म की जलविहीन शुष्क ऋतु में भी कलाकार की रचनाधर्मिता जागृत रहती है। संगीतकार इस उष्ण वातावरण को राग दीपक के स्वरों में प्रदर्शित करता है तो चित्रकार रंग तथा तूलिका के माध्यम से राग दीपक को चित्र में साकार करता है। भारतीय मान्यताओं के अनुसार राग के गायन के ऋतु निर्धारित है । सही समय पर गाया जाने वाला राग अधिक प्रभावी होता है । राग और उनकी ऋतु इस प्रकार है –

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तानसेन और राग दीपक- परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है। ग्रीष्म की तपन के पश्चात आकाश में छाने लगते हैं – श्वेत-श्याम बादलों के समूह तथा संदेश देते हैंजन-जन में प्राणों का संचार करने वाली बर्षा ऋतु के आगमन का। आकाश में छायी श्यामल घटाओं तथा ठंडी-ठंडी बयार के साथ झूमती आती है जन-जन को रससिक्त करतीजीवन दायिनी वर्षा की प्रथम फुहार। वर्षा की सहभागिनी ग्रीष्म की उष्णता आकाश से जल बिंदुओं के रूप में पुन: धरती पर अवतरित होती है किंतु अपने नवीन मनमोहक रूप में। उष्ण वातावरण के कारण घिर आये मेघ तत्पश्चात जीवनदान करती वर्षा का प्रसंग एक किवदंती में प्राप्त होता है जिसके अनुसार बादशाह अकबर ने दरबार में गायक तानसेन से ग्रीष्म ऋतु का राग दीपक‘ सुनने का अनुरोध किया। तानसेन के स्वरों के साथ वातावरण में ऊष्णता व्याप्त होती गयी। सभी दरबारीगण तथा स्वयं तानसेन भी बढ़ती गरमी को सहन नहीं कर पा रहे थे। लगता थाजैसे सूर्य देव स्वयं धरती पर अवतरित होते जा रहे हैं। तभी कहीं दूर से राग मेघ के स्वरों के साथ मेघ को आमंत्रित किया जाने लगा। जल वर्षा के कारण ही गायक तानसेन की जीवन रक्षा हुई। 

आयुर्वेद के अनुसार ग्रीष्म ऋतु में कौन सा पकवान और मिष्ठान लाभदायक होता है…

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वसंत ऋतु की समाप्ति के बाद ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है। अप्रैल, मई तथा जून के प्रारंभिक दिनों का समावेश ग्रीष्म ऋतु में होता है। इन दिनों में सूर्य की किरणें अत्यंत उष्ण होती हैं। इनके सम्पर्क से हवा रूक्ष बन जाती है और यह रूक्ष-उष्ण हवा अन्नद्रव्यों को सुखाकर शुष्क बना देती है तथा स्थिर चर सृष्टि में से आर्द्रता, चिकनाई का शोषण करती है। इस अत्यंत रूक्ष बनी हुई वायु के कारण, पैदा होने वाले अन्न-पदार्थों में कटु, तिक्त, कषाय रसों का प्राबल्य बढ़ता है और इनके सेवन से मनुष्यों में दुर्बलता आने लगती है। शरीर में वातदोष का संचय होने लगता है। अगर इन दिनों में वातप्रकोपक आहार-विहार करते रहे तो यही संचित वात ग्रीष्म के बाद आने वाली वर्षा ऋतु में अत्यंत प्रकुपित होकर विविध व्याधियों को आमंत्रण देता है। आयुर्वेद चिकित्सा-शास्त्र के अनुसार ‘चय एव जयेत् दोषं।’ अर्थात् दोष जब शरीर में संचित होने लगते हैं तभी उनका शमन करना चाहिए। अतः इस ऋतु में मधुर, तरल, सुपाच्य, हलके,जलीय, ताजे, स्निग्ध, शीत गुणयुक्त पदार्थों का सेवन करना चाहिए। जैसे कम मात्रा में श्रीखंड, घी से बनी मिठाइयाँ, आम, मक्खन, मिश्री आदि खानी चाहिए। इस ऋतु में प्राणियों के शरीर का जलीयांश कम होता है जिससे प्यास ज्यादा लगती है। शरीर में जलीयांश कम होने से पेट की बीमारियाँ, दस्त, उलटी, कमजोरी, बेचैनी आदि परेशानियाँ उत्पन्न होती हैं। इसलिए ग्रीष्म ऋतु में कम आहार लेकर शीतल जल बार-बार पीना हितकर है।

आहारः ग्रीष्म ऋतु में साठी के पुराने चावलगेहूँदूधमक्खनगुलाब का शरबत, आमपन्ना से शरीर में शीतलतास्फूर्ति तथा शक्ति आती है। सब्जियों में लौकीगिल्कीपरवलनींबूकरेलाकेले के फूलचौलाईहरी ककड़ीहरा धनिया,पुदीना और फलों में द्राक्षतरबूजखरबूजाएक-दो-केलेनारियलमौसमीआमसेबअनारअंगूर का सेवन लाभदायी है। इस ऋतु में तीखे, खट्टे, कसैले एवं कड़वे रसवाले पदार्थ नहीं खाने चाहिए। नमकीन, रूखा, तेज मिर्च-मसालेदार तथा तले हुए पदार्थ, बासी एवं दुर्गन्धयुक्त पदार्थ, दही, अमचूर, आचार, इमली आदि न खायें। गरमी से बचने के लिए बाजारू शीत पेय (कोल्ड ड्रिंक्स), आइस क्रीम, आइसफ्रूट, डिब्बाबंद फलों के रस का सेवन कदापि न करें। इनके सेवन से शरीर में कुछ समय के लिए शीतलता का आभास होता है परंतु ये पदार्थ पित्तवर्धक होने के कारण आंतरिक गर्मी बढ़ाते हैं। इनकी जगह कच्चे आम को भूनकर बनाया गया मीठा पनापानी में नींबू का रस तथा मिश्री मिलाकर बनाया गया शरबतजीरे की शिकंजीठंडाईहरे नारियल का पानीफलों का ताजा रसदूध और चावल की खीरगुलकंद आदि शीत तथा जलीय पदार्थों का सेवन करें। इससे सूर्य की अत्यंत उष्ण किरणों के दुष्प्रभाव से शरीर का रक्षण किया जा सकता है।

गुजरात राज्य के कांग्रेस नेता चाहते हैं कि ‘मैं पार्टी छोड़ दूं’ : हार्दिक पटेल

गुजरात का चुनाव कांग्रेस पार्टी के लिए कई मायनों में खास है। पांच राज्यों में हार के बाद कांग्रेस पर बेहतर प्रदर्शन का दबाव है और ऐसे वक्त में चुनाव से पहले पार्टी के विधायक टूटते हैं तो इसका बुरा असर पड़ेगा। संयम लोढ़ा ने जो आशंका जताई है उसको लेकर राजनीतिक गलियारों में काफी चर्चा है। पिछले गुजरात चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी लेकिन जीत बीजेपी की हुई। गुजरात कांग्रेस में फूट उस वक्त भी हुई जब 2020 में राज्यसभा चुनाव से पहले 8 कांग्रेसी विधायकों ने इस्तीफे दे दिए। यह सभी बीजेपी में शामिल हो गए थे। कुछ दिन पहले पार्टी के कुछ पूर्व विधायक भी बीजेपी में शामिल हुए। दिसंबर 2017 के चुनाव में 182 सदस्यीय विधानसभा में 77 सीटें जीतने वाली कांग्रेस के सदस्यों की संख्या कम होकर 65 रह गयी है। गुजरात में इस बार कांग्रेस को बीजेपी से मुकाबला करना ही है साथ ही आम आदमी पार्टी का भी मुकाबला करना है। पंजाब में शानदार जीत के बाद आम आदमी पार्टी का उत्साह काफी बढ़ा हुआ है और अभी से ही गुजरात को लेकर तमाम दावे पार्टी की ओर से किए जा रहे हैं। आम आदमी पार्टी बीजेपी के सामने खुद को एक विकल्प के रूप में पेश कर रही है। कांग्रेस के लिए गुजरात में इस बार डबल चुनौती है ऐसा कहा जाए तो यह बात गलत नहीं है।

  • गुजरात चुनाव से पहले कांग्रेस में टूट की आशंका
  • पांच राज्यों में हार के बाद पार्टी में जारी है कलह
  • जी-23 शीर्ष नेतृत्व को लेकर खड़े कर रहा सवाल

सारिका तिवारी, गुजरात, डेमोक्रेटिक फ्रंट :

गुजरात का चुनाव कांग्रेस पार्टी के लिए कई मायनों में खास है। पांच राज्यों में हार के बाद कांग्रेस पर बेहतर प्रदर्शन का दबाव है और ऐसे वक्त में चुनाव से पहले पार्टी के विधायक टूटते हैं तो इसका बुरा असर पड़ेगा। संयम लोढ़ा ने जो आशंका जताई है उसको लेकर राजनीतिक गलियारों में काफी चर्चा है। पिछले गुजरात चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी लेकिन जीत बीजेपी की हुई।

गुजरात में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले कांग्रेस मजबूत होने की बजाय बिखरने की राह पर बढ़ती दिख रही है। पार्टी की स्टेट यूनिट के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने गुरुवार को कहा कि कांग्रेस के ही नेता चाहते हैं कि मैं पार्टी छोड़ दूं। हार्दिक पटेल ने आरोप लगाया कि पार्टी का प्रदेश नेतृत्व उन्हें परेशान कर रहा है और राज्य के कांग्रेस नेता चाहते हैं कि ‘मैं पार्टी छोड़ दूं।’ उन्होंने कहा कि उनकी ओर से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को अपनी इस स्थिति के बारे में कई बार अवगत कराया गया, लेकिन दुख की बात है कि कोई निर्णय नहीं हुआ। उन्होंने दावा किया कि पिछले तीन दशक से गुजरात में कांग्रेस की सरकार नहीं बनी तो इसके लिए गुटबाजी और स्थानीय कांग्रेस नेताओं का दूसरे दलों के साथ ‘गुप्त गठबंधन’ जिम्मेदार है। 

पटेल ने यह दावा भी किया, ‘2017 में इतना बड़ा माहौल था, लेकिन गलत टिकट बंटने की वजह से सरकार नहीं बन सकी।’ हार्दिक पटेल ने गुजरात विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले पार्टी के प्रदेश नेतृत्व के खिलाफ खुलकर बगावत की है। राज्य में इस साल नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होना है। कांग्रेस 27 वर्षों से गुजरात की सत्ता से बाहर है। पाटीदार आरक्षण आंदोलन का चेहरा रहे पटेल ने कहा, ‘हमने एक बड़ा आंदोलन खड़ा करके कांग्रेस को फायदा दिलाया था। हमें यह लगा था कि जब हमारी ताकत और कांग्रेस की ताकत मिलेगी तो हम प्रदेश को एक नयी स्थिति में लाकर खड़ा करेंगे। लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने ही हमारी ताकत को कमजोर किया।’ 

उनका कहना है, ‘मुझे कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया, लेकिन मेरे पास कोई काम नहीं है। मुझे किसी अहम बैठक में नहीं बुलाया जाता, किसी निर्णय में भागीदार नहीं बनाया जाता। सवाल यह है कि कांग्रेस में कार्यकारी अध्यक्ष क्या होता है? कुछ तो जिम्मेदारी दी जानी चाहिए, लेकिन तीन साल हो गए, कोई काम नहीं दिया गया।’ पटेल ने कहा, ”मेरी यह नाराजगी कहीं जाने के लिए नहीं है। मैं यह कहना चाहता हूं कि कुछ अच्छा तो करो। पार्टी की बहुत खराब स्थिति है, जो मजबूती से लड़ने वाले लोग हैं, उन्हें मौका तो दो। जो कुछ नहीं करना चाहते हैं, उन्हीं लोगों पर सब कुछ टिका हुआ है। लगभग 30 साल से कांग्रेस की सरकार नहीं बनी तो इन लोगों की गलती तो मानो।’ 

पाटीदार समुदाय के चर्चित चेहरे नरेश पटेल के कांग्रेस में शामिल होने की संभावना को लेकर हार्दिक पटेल ने कहा, ‘कांग्रेस को स्पष्ट करना चाहिए कि उनसे बातचीत हुई है या नहीं। इतने दिनों से खबरें आ रही हैं, लेकिन कुछ बोला नहीं जा रहा है।’ उन्होंने पार्टी पर निशाना साधते हुए सवाल किया, ‘2017 में आपने हार्दिक का उपयोग किया, 2022 में आप नरेश भाई का उपयोग करोगे और 2027 में क्या कोई नया पटेल ढूंढोगे? आपके पास हार्दिक है, तो उसे मजबूत क्यों नहीं करते? नरेश भाई को लेना चाहिए, लेकिन उनका कहीं मेरे जैसा हाल तो नहीं होगा?’ 

यह पूछे जाने पर कि क्या वह कांग्रेस छोड़ने पर विचार कर रहे हैं तो 28 वर्षीय पटेल ने कहा, ‘मैं किसी दूसरी पार्टी में नहीं जाना चाहता। लेकिन गुजरात कांग्रेस में जो मजबूत नेता होते हैं, उनको परेशान किया जाता है ताकि वो पार्टी छोड़कर चले जाएं।’ उन्होंने आरोप लगाया कि ‘प्रदेश कांग्रेस के नेता चाहते हैं कि मैं भी पार्टी छोड़ दूं।‘ पटेल ने कहा, ‘मुझे इतना परेशान किया जा रहा है कि दिल भर आता है।’ उन्होंने सवाल किया, ‘साल 2017 में कांग्रेस के 80 विधायक थे, आज 65 बचे हैं। एक-दो विधायक जाते हैं तो यह मान लेते कि भाजपा ने खरीद लिए होंगे, लेकिन इतने विधायक चले गए तो हम अपनी गलती क्यों नहीं मानते?’ 

उन्होंने कहा, ‘अल्पेश ठाकोर चला गया तो हमने यह क्यों कहा कि वह स्वार्थी था? सच्चाई यह है कि उसे परेशान किया गया था, इसलिए चला गया।’ पटेल ने आरोप लगाया, ”कांग्रेस का स्थानीय नेतृत्व पूरी तरह से बेकार काम कर रहा है। सबको परेशान किया जा रहा है, गुटबाजी को बढ़ावा दिया जा रहा है।’ उन्होंने कहा, ‘सारी स्थिति के बारे में राहुल जी को कई बार बताया, लेकिन कोई निर्णय नहीं होता है। इसलिए मुझे ज्यादा दुख होता है।’ युवा पाटीदार नेता ने यह आरोप भी लगाया, ‘मेरे बारे में कांग्रेस के लोग ही अफवाह फैलाते हैं कि मैं पार्टी छोड़ने वाला हूं। एक साल पहले अफवाह फैलाई गई कि मैं आम आदमी पार्टी में शामिल हो रहा हूं। यह सब मुझे कमजोर करने के लिए किया जाता है।’ 

जिस ‘दिल्ली मॉडल’ का इतना ढोल पीटते हैं केजरीवाल, उसको ‘हेड मास्टर’ भी नसीब नहीं – NCPCR

एनसीपीसीआर (The National Commission for Protection of Child Rights ) की तरफ से दिल्ली के मुख्य सचिव विजय देव को एक पत्र लिखा गया है। लिखे गए पत्र में कहा कि एनसीपीसीआर की टीम ने दिल्ली के कई स्कूलों का दौरा किया है। इस दौरे के दौरान स्कूलों में कई सारी खामियां देखने को मिली है। एनसीपीसीआर के मुताबिक दिल्ली शिक्षा निदेशालय के अंतर्गत आने वाले 1027 स्कूलों में से सिर्फ 203 ऐसे स्कूल हैं जहां प्रिंसिपल हैं।

नई दिल्ली(ब्यूरो): 

दिल्ली के शिक्षा मॉडल पर जहां एक तरफ दिल्ली सरकार दूसरे राज्यों को चुनौती दे रही है और इसके दूसरे राज्यों से बेहतर होने का दावा कर रही है, तो वहीं दूसरी ओर भारत सरकार के राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग(NCPCR) ने मंगलवार को दिल्ली सरकार को पत्र लिखकर दावा किया है कि दिल्ली के 80% से ज्यादा सरकारी स्कूलों में प्रिंसिपल या हेडमास्टर हैं ही नहीं।

NCPCR says only 203 out of 1,027 govt schools in Delhi have a headmaster or principal; seeks explanation

— Press Trust of India (@PTI_News) April 12, 2022

दिल्ली के मुख्य सचिव विजय देव लिखे पत्र में एनसीपीसीआर ने कहा कि उसके प्रमुख की अगुवाई वाली टीम ने दिल्ली में कई स्कूलों का दौरा किया और पाया कि आधारभूत अवसंरचना तथा कई अन्य पहलुओं में खामि

NCPCR ने उल्लेख किया कि NCT सरकार के शिक्षा विभाग के तहत कुल 1027 स्कूल आते हैं। इनमें से केवल 203 में हेड मास्टर या कार्यवाहक हेड मास्टर हैं। इसमें आगे लिखा गया है, “स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए सकारात्मक सीखने का माहौल सुनिश्चित करने और समावेशी संस्कृति को विकसित करने में एक हेड मास्टर या प्रिंसिपल की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हेड मास्टर या प्रिंसिपल की अनुपस्थिति का बच्चों की सुरक्षा और सलामती पर असर पड़ता है।”

NCPCR says only 203 out of 1,027 govt schools in Delhi have a headmaster or principal; seeks explanation

आयोग के प्रमुख प्रियंक कानूनगो ने कहा कि प्रधानाचार्य की यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका होती कि स्कूल में पढ़ाई का सकारात्मक माहौल हो। उन्होंने कहा कि प्रधानाचार्य नहीं होने से बच्चों की सुरक्षा पर विपरीत असर होता है।

NCPCR says 203 out of 1027 govt schools in Delhi functioning

without a head, seeks explanation https://t.co/XMGQu57yGa

— प्रियंक कानूनगो Priyank Kanoongo (@KanoongoPriyank) April 12, 2022

यां हैं। एनसीपीसीआर के अनुसार, शिक्षा विभाग के तहत आने वाले 1,027 स्कूलों से सिर्फ 203 ऐसे स्कूल हैं जिनमें प्रधानाचार्य या कार्यवाहक प्रधानाचार्य हैं।

आयोग के प्रमुख प्रियंक कानूनगो ने कहा कि प्रधानाचार्य की यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका होती कि स्कूल में पढ़ाई का सकारात्मक माहौल हो। उन्होंने कहा कि प्रधानाचार्य नहीं होने से बच्चों की सुरक्षा पर विपरीत असर होता है।

पत्र में शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 का हवाला देते हुए कहा गया है कि जिन स्कूलों में छठी से आठवीं कक्षा के छात्रों की संख्या 100 से ऊपर है, वहाँ स्कूल में पूर्णकालिक प्रिंसिपल होना चाहिए। NCPCR ने मुख्य सचिव से ऐसे पदों की रिक्तियों और शिक्षा विभाग द्वारा 19 अप्रैल तक की गई कार्रवाई के बारे में तथ्यात्मक स्थिति शेयर करने के लिए कहा है।

मुख्य सचिव को लिखे एक अन्य पत्र में, NCPCR ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के सांसद मनोज तिवारी ने सर्वोदय कन्या विद्यालय, सब्जी मंडी, तिमारपुर, दिल्ली का दौरा किया। यहाँ उन्हें स्कूल की बिल्डिंग में स्वच्छता संबंधी कई समस्याएँ दिखी। शीर्ष निकाय ने कहा कि इस तरह की चीजों से स्कूल में गंभीर दुर्घटनाएँ हो सकती हैं।

पत्र में कहा गया है, “मामले की गंभीरता को देखते हुए आपके कार्यालय से अनुरोध है कि इस मामले में तत्काल कार्रवाई की जाए और इस संबंध में की गई कार्रवाई की रिपोर्ट इस पत्र की प्राप्ति के सात दिनों के भीतर आयोग के साथ शेयर की जाए।”

सांसद मनोज तिवारी अकेले भाजपा नेता नहीं हैं, जिन्होंने हाल ही में दिल्ली के स्कूलों में कमियों को उजागर किया है। डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और सीएम अरविंद केजरीवाल समेत आम आदमी पार्टी (AAP) के नेताओं ने आगामी राज्य विधानसभा चुनाव को देखते हुए गुजरात के स्कूलों पर निशाना साधा था। AAP नेताओं के हमले के बाद दिल्ली के भाजपा नेताओं ने हाल के दिनों में कई स्कूलों का दौरा किया और छात्रों एवं शिक्षकों की समस्याओं के बारे में बताते हुए वीडियो शेयर किया।