एक राष्ट्र एक चुनाव, पक्ष – विपक्ष

2018 में विधि आयोग की बैठक में भाजपा और कांग्रेस ने इससे दूरी बनाए रखी. कॉंग्रेस का विरोध तो जग जाहिर है लेकिन भाजपा की इस मुद्दे पर चुप्पी समझ से परे है. 2018 में ऐसा क्या था कि प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली भाजपा तटस्थ रही और आज मोदी इसका हर जगह इसका प्रचार प्रसार कर रहे हैं? 1999 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान विधि आयोग ने इस मसले पर एक रिपोर्ट सौंपी। आयोग ने अपनी सिफारिशों में कहा कि अगर किसी सरकार के खिलाफ विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आता है तो उसी समय उसे दूसरी वैकल्पिक सरकार के पक्ष में विश्वास प्रस्ताव भी देना सुनिश्चित किया जाए। 2018 में विधि आयोग ने इस मसले पर एक सर्वदलीय बैठक भी बुलाई जिसमें कुछ राजनीतिक दलों ने इस प्रणाली का समर्थन किया तो कुछ ने विरोध। कुछ राजनीतिक दलों का इस विषय पर तटस्थ रुख रहा। भारत में चुनाव को ‘लोकतंत्र का उत्सव’ कहा जाता है, तो क्या पांच साल में एक बार ही जनता को उत्सव मनाने का मौका मिले या देश में हर वक्त कहीं न कहीं उत्सव का माहौल बना रहे? जानिए, क्यों यह चर्चा का विषय है.

सारिका तिवारी, चंडीगढ़:

हर कुछ महीनों के बाद देश के किसी न किसी हिस्से में चुनाव हो रहे होते हैं. यह भी चुनावी तथ्य है कि देश में पिछले करीब तीन दशकों में एक साल भी ऐसा नहीं बीता, जब चुनाव आयोग ने किसी न किसी राज्य में कोई चुनाव न करवाया हो. इस तरह के तमाम तथ्यों के हवाले से एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक देश एक चुनाव’ की बात छेड़ी है. अव्वल तो यह आइडिया होता क्या है? इस सवाल के बाद बहस यह है कि जो लोग इस आइडिया का समर्थन करते हैं तो क्यों और जो नहीं करते, उनके तर्क क्या हैं.

जानकार तो यहां तक कहते हैं ​कि भारत का लोकतंत्र चुनावी राजनीति बनकर रह गया है. लोकसभा से लेकर विधानसभा और नगरीय निकाय से लेकर पंचायत चुनाव… कोई न कोई भोंपू बजता ही रहता है और रैलियां होती ही रहती हैं. सरकारों का भी ज़्यादातर समय चुनाव के चलते अपनी पार्टी या संगठन के हित में ही खर्च होता है. इन तमाम बातों और पीएम मोदी के बयान के मद्देनज़र इस विषय के कई पहलू टटोलते हुए जानते हैं कि इस पर चर्चा क्यों ज़रूरी है.

क्या है ‘एक देश एक चुनाव’ का आइडिया?

इस नारे या जुमले का वास्तविक अर्थ यह है कि संसद, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव एक साथ, एक ही समय पर हों. और सरल शब्दों में ऐसे समझा जा सकता है कि वोटर यानी लोग एक ही दिन में सरकार या प्रशासन के तीनों स्तरों के लिए वोटिंग करेंगे. अब चूंकि विधानसभा और संसद के चुनाव केंद्रीय चुनाव आयोग संपन्न करवाता है और स्थानीय निकाय चुनाव राज्य चुनाव आयोग, तो इस ‘एक चुनाव’ के आइडिया में समझा जाता है कि तकनीकी रूप से संसद और विधानसभा चुनाव एक साथ संपन्न करवाए जा सकते हैं.

पीएम मोदी की खास रुचि

जनवरी, 2017 में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक देश एक चुनाव के संभाव्यता अध्ययन कराए जाने की बात कही. तीन महीने बाद नीति आयोग के साथ राज्य के मुख्यमंत्रियों की बैठक में भी इसकी आवश्यक्ता को दोहराया. इससे पहले दिसंबर 2015 में राज्यसभा के सदस्य ईएम सुदर्शन नचियप्पन की अध्यक्षता में गठित संसदीय समिति ने भी इस चुनाव प्रणाली को लागू किए जाने पर जोर दिया था. 2018 में विधि आयोग की बैठक में भाजपा और कांग्रेस ने इससे दूरी बनाए रखी. चार दलों (अन्नाद्रमुक, शिअद, सपा, टीआरएस) ने समर्थन किया. नौ राजनीतिक दलों (तृणमूल, आप, द्रमुक, तेदेपा, सीपीआइ, सीपीएम, जेडीएस, गोवा फारवर्ड पार्टी और फारवर्ड ब्लाक) ने विरोध किया. नीति आयोग द्वारा एक देश एक चुनाव विषय पर तैयार किए गए एक नोट में कहा गया है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को 2021 तक दो चरणों में कराया जा सकता है. अक्टूबर 2017 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा था कि एक साथ चुनाव कराने के लिए आयोग तैयार है, लेकिन  निर्णय राजनीतिक स्तर पर लिया जाना है.

क्या है इस आइडिया पर बहस?

कुछ विद्वान और जानकार इस विचार से सहमत हैं तो कुछ असहमत. दोनों के अपने-अपने तर्क हैं. पहले इन तर्कों के मुताबिक इस तरह की व्यवस्था से जो फायदे मुमकिन दिखते हैं, उनकी चर्चा करते हैं.

कई देशों में है यह प्रणाली

स्वीडन इसका रोल मॉडल रहा है. यहां राष्ट्रीय और प्रांतीय के साथ स्थानीय निकायों के चुनाव तय तिथि पर कराए जाते हैं जो हर चार साल बाद सितंबर के दूसरे रविवार को होते हैं. इंडोनेशिया में इस बार के चुनाव इसी प्रणाली के तहत कराए गए. दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रीय और प्रांतीय चुनाव हर पांच साल पर एक साथ करा  जाते हैं जबकि नगर निकायों के चुनाव दो साल बाद होते हैं.

पक्ष में दलीलें

1. राजकोष को फायदा और बचत : ज़ाहिर है कि बार बार चुनाव नहीं होंगे, तो खर्चा कम होगा और सरकार के कोष में काफी बचत होगी. और यह बचत मामूली नहीं बल्कि बहुत बड़ी होगी. इसके साथ ही, यह लोगों और सरकारी मशीनरी के समय व संसाधनों की बड़ी बचत भी होगी.  एक अध्ययन के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव पर करीब साठ हजार करोड़ रुपये खर्च हुए. इसमें पार्टियों और उम्मीदवारों के खर्च भी शामिल हैं. एक साथ एक चुनाव से समय के साथ धन की बचत हो सकती है। सरकारें चुनाव जीतने की जगह प्रशासन पर अपना ध्यान केंद्रित कर पाएंगी.

2. विकास कार्य में तेज़ी : चूंकि हर स्तर के चुनाव के वक्त चुनावी क्षेत्र में आचार संहिता लागू होती है, जिसके तहत विकास कार्य रुक जाते हैं. इस संहिता के हटने के बाद विकास कार्य व्यावहारिक रूप से प्रभावित होते हैं क्योंकि चुनाव के बाद व्यवस्था में काफी बदलाव हो जाते हैं, तो फैसले नए सिरे से होते हैं.

3. काले धन पर लगाम : संसदीय, सीबीआई और चुनाव आयोग की कई रिपोर्ट्स में कहा जा चुका है कि चुनाव के दौरान बेलगाम काले धन को खपाया जाता है. अगर देश में बार बार चुनाव होते हैं, तो एक तरह से समानांतर अर्थव्यवस्था चलती रहती है.

4. सुचारू प्रशासन : एक चुनाव होने से सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल एक ही बार होगा लिहाज़ा कहा जाता है कि स्कूल, कॉलेज और ​अन्य विभागों के सरकारी कर्मचारियों का समय और काम बार बार प्रभावित नहीं होगा, जिससे सारी संस्थाएं बेहतर ढंग से काम कर सकेंगी.

5. सुधार की उम्मीद : चूंकि एक ही बार चुनाव होगा, तो सरकारों को धर्म, जाति जैसे मुद्दों को बार बार नहीं उठाना पड़ेगा, जनता को लुभाने के लिए स्कीमों के हथकंडे नहीं होंगे, बजट में राजनीतिक समीकरणों को ज़्यादा तवज्जो नहीं देना होगी, यानी एक बेहतर नीति के तहत व्यवस्था चल सकती है.

ऐसे और भी तर्क हैं कि एक बार में ही सभी चुनाव होंगे तो वोटर ज़्यादा संख्या में वोट करने के लिए निकलेंगे और लोकतंत्र और मज़बूत होगा. बहरहाल, अब आपको ये बताते हैं कि इस आइडिया के विरोध में क्या प्रमुख तर्क दिए जाते हैं.

1. क्षेत्रीय पार्टियां होंगी खारिज : चूंकि भारत बहुदलीय लोकतंत्र है इसलिए राजनीति में भागीदारी करने की स्वतंत्रता के तहत क्षेत्रीय पार्टियों का अपना महत्व रहा है. चूंकि क्षेत्रीय पार्टियां क्षेत्रीय मुद्दों को तरजीह देती हैं इसलिए ‘एक चुनाव’ के आइडिया से छोटी क्षेत्रीय पार्टियों के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा क्योंकि इस व्यवस्था में बड़ी पार्टियां धन के बल पर मंच और संसाधन छीन लेंगी.

2. स्थानीय मुद्दे पिछड़ेंगे : चूंकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग मुद्दों पर होते हैं इसलिए दोनों एक साथ होंगे तो विविधता और विभिन्न स्थितियों वाले देश में स्थानीय मुद्दे हाशिये पर चले जाएंगे. ‘एक चुनाव’ के आइडिया में तस्वीर दूर से तो अच्छी दिख सकती है, लेकिन पास से देखने पर उसमें कई कमियां दिखेंगी. इन छोटे छोटे डिटेल्स को नज़रअंदाज़ करना मुनासिब नहीं होगा.

3. चुनाव नतीजों में देर : ऐसे समय में जबकि तमाम पार्टियां चुनाव पत्रों के माध्यम से चुनाव करवाए जाने की मांग करती हैं, अगर एक बार में सभी चुनाव करवाए गए तो अच्छा खास समय चुनाव के नतीजे आने में लग जाएगा. इस समस्या से निपटने के लिए क्या विकल्प होंगे इसके लिए अलग से नीतियां बनाना होंगी.

4. संवैधानिक समस्या : देश के लोकतांत्रिक ढांचे के तहत य​ह आइडिया सुनने में भले ही आकर्षक लगे, लेकिन इसमें तकनीकी समस्याएं काफी हैं. मान लीजिए कि देश में केंद्र और राज्य के चुनाव एक साथ हुए, लेकिन यह निश्चित नहीं है कि सभी सरकारें पूर्ण बहुमत से बन जाएं. तो ऐसे में क्या होगा? ऐसे में चुनाव के बाद अनैतिक रूप से गठबंधन बनेंगे और बहुत संभावना है कि इस तरह की सरकारें 5 साल चल ही न पाएं. फिर क्या अलग से चुनाव नहीं होंगे?

यही नहीं, इस विचार को अमल में लाने के लिए संविधान के कम से कम छह अनुच्छेदों और कुछ कानूनों में संशोधन किए जाने की ज़रूरत पेश आएगी.

मोदी के आवाहन पर भारत ने दिखाई एकता, की दीपावली

कोरोना के खिलाफ जंग में पीएम मोदी की अपील के बाद देशवासी आज रात 9 बजे 9 मिनट दीया, कैंडल, मोबाइल फ्लैश और टार्च जलाकर एकजुटता का परिचय देंगे. लोग दीया जलाने की तैयारी कर लिए हैं.

नई दिल्ली: 

कोरोना वायरस के खिलाफ पूरे देश ने एकजुट होकर प्रकाश पर्व मनाया. पीएम मोदी की अपील पर एकजुट होकर देश ने साबित कर दिया कि कोरोना के खिलाफ हिंदुस्तान पूरी ताकत से लड़ेगा. देश के इस संकल्प से हमारी सेवा में 24 घंटे, सातों दिन जुटे कोरोना फाइटर्स का भी हौसला लाखों गुना बढ़ गया. गौरतलब है कि पूरी दुनिया कोरोना महामारी की चपेट में हैं. अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देश कोरोना के आगे बेबस और लाचार नजर आ रहे हैं लेकिन भारत के संकल्प की वजह से देश में कोरोना संक्रमण विकसित देशों के मुकाबले कई गुना कम है.

Live Updates- 

  • कोरोना के खिलाफ एकजुट हुआ भारत, प्रकाश से जगमगाया पूरा देश
  • पीएम मोदी की अपील पर हिंदुस्तान ने किया कोरोना के खिलाफ जंग का ऐलान
  • कोरोना के खिलाफ जापान में जला पहला दीया,
  • कुछ देर बाद 130 करोड़ हिंदुस्तानी लेंगे एकजुटता का संकल्प

अमित शाह ने जलाए दीये

दिल्ली: गृह मंत्री अमित शाह ने अपने आवास पर सभी लाइट बंद करने के बाद मिट्टी के दीपक जलाए. 

योगी आदित्यनाथ ने जलाया दीया

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने दीया जलाकर एकता की पेश की मिसाल. दीए की रोशनी से बनाया ऊं.

अनुपम खेर ने जलायी मोमबत्ती

अनुप खेर ने दीया जलाकर दिया एकता का संदेश

बता दें कि पीएम मोदी ने शुक्रवार को अपील की थी कि पूरे देश के लोग रविवार रात 9 बजे घर की बत्तियां बुझाकर अपने कमरे में या बालकनी में आएं और दीया, कैंडिल, मोबाइल और टॉर्च जलाकर कोरोना के खिलाफ जंग में अपनी एकजुटा प्रदर्शित करें.

अब देश में होंगे 28 राज्य और 9 केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर अब राज्य नहीं

इतिहास के पटल पर आज 31 अक्तूबर का दिन खास तौर पर दर्ज़ हो गया जब आज आधी रात से  जम्मू कश्मीर का राज्य के रूप में अस्तित्व समाप्त हो गया ।

यह पहला मौका है जब एक राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदल दिया गया हो। आज आधी रात से फैसला लागू होते ही देश में राज्यों की संख्या 28 और केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या नौ हो गई है।

आज जी सी मुर्मू और आर के माथुर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के प्रथम उपराज्यपाल के तौर पर बृहस्पतिवार को शपथ लेंगे।

श्रीनगर और लेह में दो अलग-अलग शपथ ग्रहण समारोहों का आयोजन किया जाएगा। जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल दोनों को शपथ दिलाएंगी।

सरकार ने अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को दिए गए विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का फैसला किया था, जिसे संसद ने अपनी मंजूरी दी। इसे लेकर देश में खूब सियासी घमासान भी मचा। 

भाजपा ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में जम्मू-कश्मीर को दिया गया विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने की बात कही थी और मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के 90 दिनों के भीतर ही इस वादे को पूरा कर दिया। इस बारे में पांच अगस्त को फैसला किया गया।


सरदार पटेल की जयंती पर बना नया इतिहास 


सरदार पटेल को देश की 560 से अधिक रियासतों का भारत संघ में विलय का श्रेय है। इसीलिए उनके जन्मदिवस को ही इस जम्मू कश्मीर के विशेष अस्तित्व को समाप्त करने के लिए चुना गया।
देश में 31 अक्टूबर का दिन राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाएगा। आज पीएम मोदी गुजरात के केवडिया में और अमित शाह दिल्ली में अगल-अलग कार्यक्रमों में शिरकत करेंगे। कश्मीर का राज्य के रूप में अस्तित्व समाप्त हो गया। इसके साथ ही दो केंद्रशासित प्रदेशों का दर्जा मध्यरात्रि से प्रभावी हो गया है। नए केंद्र शासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अस्तित्व में आए हैं।

 जम्मू और कश्मीर में आतंकियों की बौखलाहट एक बार फिर सामने आई है. आतंकियों ने कुलगाम में हमला किया है, जिसमें 5 मजदूरों की मौत हो गई है. जबकि एक घायल है. मारे गए सभी मजदूर कश्मीर से बाहर के हैं. जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद से घाटी में ये सबसे बड़ा आतंकी हमला है. आतंकियों की कायराना हरकत से साफ है कि वे कश्मीर पर मोदी सरकार के फैसले से बौखलाए हुए हैं और लगातार आम नागरिकों को निशाना बना रहे हैं.

जम्मू और कश्मीर पुलिस ने कहा कि सुरक्षा बलों ने इस इलाके की घेराबंदी कर ली है और बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चल रहा है. अतिरिक्त सुरक्षा बलों को बुलाया गया है. माना जा रहा है कि मारे गए मजदूर पश्चिम बंगाल के थे.

ये हमला ऐसे समय हुआ है जब यूरोपियन यूनियन के 28 सांसद कश्मीर के दौरे पर हैं. सांसदों के दौरे के कारण घाटी में सुरक्षा काफी कड़ी है. इसके बावजूद आतंकी बौखलाहट में किसी ना किसी वारदात को अंजाम दे रहे हैं. डेलिगेशन के दौरे के बीच ही श्रीनगर और दक्षिण कश्मीर के कुछ इलाकों में पत्थरबाजी की घटनाएं सामने आईं.

जम्मू एवं से अनुच्छेद-370 हटने के बाद यूरोपीय संघ के 27 सांसदों के कश्मीर दौरे को लेकर कांग्रेस सहित विपक्षी दलों द्वारा सवाल उठाने पर भारतीय जनता पार्टी ने जवाब दिया है. पार्टी का कहना है कि कश्मीर जाने पर अब किसी तरह की रोक नहीं है. देसी-विदेशी सभी पर्यटकों के लिए कश्मीर को खोल दिया गया है, और ऐसे में विदेशी सांसदों के दौरे को लेकर सवाल उठाने का कोई मतलब नहीं है.

भाजपा प्रवक्ता शहनवाज हुसैन ने कहा, ‘कश्मीर जाना है तो कांग्रेस वाले सुबह की फ्लाइट पकड़कर चले जाएं. गुलमर्ग जाएं, अनंतनाग जाएं, सैर करें, घूमें-टहलें. किसने उन्हें रोका है? अब तो आम पर्यटकों के लिए भी कश्मीर को खोल दिया गया है.’शहनवाज हुसैन ने कहा कि जब कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटा था, तब शांति-व्यवस्था के लिए एहतियातन कुछ कदम जरूर उठाए गए थे, मगर हालात सामान्य होते ही सब रोक हटा ली गई. उन्होंने कहा, ‘अब हमारे पास कुछ छिपाने को नहीं, सिर्फ दिखाने को है.’

भाजपा प्रवक्ता ने कहा, ‘जब कश्मीर में तनाव फैलने की आशंका थी, तब बाबा बर्फानी के दर्शन को भी तो रोक दिया गया था. यूरोपीय संघ के सांसद कश्मीर जाना चाहते थे. वे पीएम मोदी से मिले तो अनुमति दी गई. कश्मीर को जब आम पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है तो विदेशी सांसदों के जाने पर हायतौबा क्यों? विदेशी सांसदों के प्रतिनिधिमंडल के कश्मीर जाने से पाकिस्तान का ही दुष्प्रचार खत्म होगा.’

आठ दिन और छ्ह फैसले

सारिका तिवारी, चंडीगढ़ 31-अक्टूबर:

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई नवंबर की 17 तारीख को रिटाइर हो रहे हैं  उन्हें छह महत्त्वपूर्ण मामलों में फैसला सुनाना है। सुप्रीम कोर्ट में इस समय दिवाली की छुट्टियां चल रही हैं और छुट्टियों के बाद अब काम 4 नवंबर को शुरू होगा।

अयोध्या बाबरी मस्जिद मामला, राफल समीक्षा मामला , राहुल पर अवमानना मामला, साबरिमाला , मुख्य न्यायाधीश पर यौन उत्पीड़न का मामला और आर टी आई अधिनियम पर फैसले आने हैं।

अयोध्या-बाबरी मस्जिद का मामला इन सभी मामलों में सर्वाधिक चर्चित है अयोध्या-बाबरी मस्जिद का मामला। पांच जजों की संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई पूरी कर चुकी है और 16 अक्टूबर को अदालत ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा। इस पीठ की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ही कर रहे हैं। इस विवाद में अयोध्या, उत्तर प्रदेश में स्थित 2 .77 एकड़ विवादित जमीन पर किसका हक़ है, इस बात का फैसला होना है। हिन्दू पक्ष ने कोर्ट में कहा कि यह भूमि भगवान राम के जन्मभूमि के आधार पर न्यायिक व्यक्ति है। वहीं मुस्लिम पक्ष का कहना था कि मात्र यह विश्वास की यह भगवान राम की जन्मभूमि है, इसे न्यायिक व्यक्ति नहीं बनाता। दोनों ही पक्षों ने इतिहासकारों, ब्रिटिश शासन के दौरान बने भूमि दस्तावेजों, गैज़ेट आदि के आधार पर अपने अपने दावे पेश किये है। इस सवाल पर कि क्या मस्जिद मंदिर की भूमि पर बनाई गई? आर्किओलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट भी पेश की गई।

 रफाल समीक्षा फैसला मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में एसके कौल और केएम जोसफ की पीठ के 10 मई को रफाल मामले में 14 दिसंबर को दिए गए फैसले के खिलाफ दायर की गई समीक्षा रिपोर्ट पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। यह मामला 36 रफाल लड़ाकू विमानों के सौदे में रिश्वत के आरोप से संबंधित है। इस समीक्षा याचिका में याचिकाकर्ता एडवोकेट प्रशांत भूषण और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने मीडिया में लीक हुए दस्तावेजों के आधार पर कोर्ट में तर्क दिया कि सरकार ने फ्रेंच कंपनी (Dassault) से 36 फाइटर जेट खरीदने के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण सूचनाओं को छुपाया है। कोर्ट ने इस मामले में उन अधिकारियों के विरुद्ध झूठे साक्ष्य देने के सन्दर्भ में कार्रवाई भी शुरू की जिन पर यह आरोप था कि उन्होंने मुख्य न्यायाधीश को गुमराह किया है। 10 अप्रैल को अदालत ने इस मामले में द हिन्दू आदि अखबारों में लीक हुए दस्तावेजों की जांच करने के केंद्र की प्रारंभिक आपत्तियों को दरकिनार कर दिया था। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि ये दस्तावेज सरकारी गोपनीयता क़ानून का उल्लंघन करके प्राप्त किए गए थे, लेकिन पीठ ने इस प्रारंभिक आपत्तियों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि साक्ष्य प्राप्त करने में अगर कोई गैरकानूनी काम हुआ है तो यह इस याचिका की स्वीकार्यता को प्रभावित नहीं करता।

राहुल गांधी के “चौकीदार चोर है” बयान पर दायर अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा रफाल सौदे की जांच के लिए गठित मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने राहुल गांधी के खिलाफ मीनाक्षी लेखी की अवमानना याचिका पर भी फैसला सुरक्षित रखा। राहुल गांधी ने रफाल सौदे को लक्ष्य करते हुए यह बयान दिया था कि “चौकीदार चोर है।” कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी इस टिपण्णी के लिए माफी मांग ली थी।

सबरीमाला समीक्षा फैसला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने सबरीमाला मामले में याचिकाकर्ताओं को एक पूरे दिन की सुनवाई देने के बाद समीक्षा याचिका पर निर्णय को फरवरी 6 को सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोगोई की अध्यक्षता में न्यायमूर्ति खानविलकर, न्यायमूर्ति नरीमन, न्यायमूर्ति चंद्रचूड और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने इस मामले में याचिकाकर्ताओं की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में ट्रावनकोर देवस्वोम बोर्ड, पन्दलम राज परिवार और कुछ श्रद्धालुओं ने 28 दिसंबर 2018 को याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सभी उम्र की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की इजाजत दे दी थी। याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में अपनी दलील में यह भी कहा था कि संवैधानिक नैतिकता एक व्यक्तिपरक टेस्ट है और आस्था के मामले में इसको लागू नहीं किया जा सकता। धार्मिक आस्था को तर्क की कसौटी पर नहीं कसा जा सकता। पूजा का अधिकार देवता की प्रकृति और मंदिर की परंपरा के अनुरूप होना चाहिए। यह भी दलील दी गई थी कि फैसले में संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत ‘अस्पृश्यता’ की परिकल्पना को सबरीमाला मंदिर के सन्दर्भ में गलती से लाया गया है और इस क्रम में इसके ऐतिहासिक सन्दर्भ को नजरअंदाज किया गया है।

मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय आरटीआई के अधीन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 4 अप्रैल को सीजेआई कार्यालय के आरटीआई अधिनियम के अधीन होने को लेकर दायर याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल ने दिल्ली हाईकोर्ट के जनवरी 2010 के फैसले के खिलाफ चुनौती दी थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि सीजेआई का कार्यालय आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 2(h) के तहत ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’है। वित्त अधिनियम 2017 की वैधता पर निर्णय ट्रिब्यूनलों के अधिकार क्षेत्र और स्ट्रक्चर पर डालेगा प्रभाव राजस्व बार एसोसिएशन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 10 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रखा। इस याचिका में वित्त अधिनियम 2017 के उन प्रावधानों को चुनौती दी गई है, जिनकी वजह से विभिन्न न्यायिक अधिकरणों जैसे राष्ट्रीय हरित अधिकरण, आयकर अपीली अधिकरण, राष्ट्रीय कंपनी क़ानून अपीली अधिकरण के अधिकार और उनकी संरचना प्रभावित हो रही है। याचिकाकर्ता की दलील थी कि वित्त अधिनियम जिसे मनी बिल के रूप में पास किया जाता है, अधिकरणों की संरचना को बदल नहीं सकता।

यौन उत्पीडन मामले में सीजेआई के खिलाफ साजिश मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के खिलाफ यौन उत्पीडन के आरोपों की साजिश की जांच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज न्यायमूर्ति एके पटनायक ने की और जांच में क्या सामने आता है, इसका इंतज़ार किया जा रहा है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, आरएफ नरीमन और दीपक गुप्ता की पीठ ने न्यायमूर्ति पटनायक को एडवोकेट उत्सव बैंस के दावों के आधार पर इस मामले की जांच का भार सौंपा था। उत्सव बैंस ने कहा था कि उनको किसी फ़िक्सर, कॉर्पोरेट लॉबिस्ट, असंतुष्ट कर्मचारियों ने सीजेआई के खिलाफ आरोप लगाने के लिए एप्रोच किया था। ऐसा समझा जाता है कि न्यायमूर्ति पटनायक ने इस जांच से संबंधित अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी है।


मुकुल रॉय के ब्यान ने मचाई खलबली

गोवा और कर्नाटक में सियासी हलचल से अभी कांग्रेस थी तरह उभरी भी नहीं थी की उसे बंगाल से एक बहुत ही भयंकर समाचार प्राप्त हुआ है। बीजेपी नेता मुकुल रॉय ने कहा

है कि पश्चिम बंगाल में 107 विधायक बीजेपी में शामिल होंगे. मुकुल रॉय ने कहा कि इन सभी विधायकों की लिस्ट तैयार हो चुकी है और उनसे लगातार संपर्क बना हुआ है। कर्नाटक में अभी थोड़ी सुध आ ही रही थी कि मुकुल रॉय के ब्यान ने एक बार फिर सियासी तूफान मचा दिया है।

कोलकाता: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता मुकुल रॉय ने शनिवार को एक ऐसा दावा किया है, जिससे पश्चिम बंगाल की सियासत में भारी उथल-पुथल मच सकती है. न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार, मुकुल रॉय ने कहा है कि पश्चिम बंगाल में 107 विधायक बीजेपी में शामिल होंगे. उन्होंने दावा किया कि सीपीएम, कांग्रेस और टीएमसी के 107 विधायक बीजेपी में शामिल होंगे. उन्होंने कहा कि हमारे पास उन विधायकों की लिस्ट तैयार हो गई है और उनसे लगातार संपर्क में हैं.

लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ दोबारा सत्ता पर काबिज हुई थी. बीजेपी ने पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 18 पर जीत दर्ज की थी. वहीं, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को 22 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. कांग्रेस को दो सीटों पर जीत मिली थी. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस किले में सेंध लगाने के लिए बीजेपी कोई भी कोर-कसर छोड़ना नहीं चाहती है. अभी हाल ही में टीएमसी के कई नेताओं ने बीजेपी का दामन थामा था. टीएमसी के नेताओं का बीजेपी में शामिल होने का क्रम लोकसभा चुनाव से पहले ही शुरू हो गया था.  

यदि ऐसा हो जाता है तो सबसे अधिक नुकसान काँग्रेस को होगा। वह बंगाल में अपना बचाखुचा जनाधार भी खो देगी।

कर्णाटक में लोकतन्त्र पर कठोर प्रहार

संसद भवन में गला फाड़ फाड़ कर लोकतन्त्र बचाने की गुहार लगाने वाली कांग्रेस कर्णाटक में खुद ही लोकतन्त्र की हत्या करने पर उतारू है। जिन विधायकों ने राज्यपाल और स्पीकर को इस्तीफा सौंप दिया है उन्हे भी व्हिप के तहत लाने की कॉंग्रेस की चाल न केवल अमर्यादित है आपितु स्पीकर का उन्हे बल और समय दोनों प्रदान करना आलोकतांत्रिक है। कॉंग्रेस और स्पीकर चाहते हैं की इन बागी विधायकों को वहिप की अवहेलना करने पर अयोग्य ठहरा दिया जाये। कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस और जेडीएस के 16 विधायकों के इस्तीफे के बाद यही सवाल उठ रहा है कि क्या बागी विधायक अयोग्य ठहरा दिए जाएंगे?

नई दिल्ली/बेंगलुरू: 

कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस और जेडीएस के 16 विधायकों के इस्तीफे के बाद यही सवाल उठ रहा है कि क्या बागी विधायक अयोग्य ठहरा दिए जाएंगे? प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अध्यक्ष को इस्तीफे पर फैसला करने के लिए 16 जुलाई तक का समय देते हुए तब तक के लिए यथास्थिति का आदेश दिया. वहीं, गुरुवार की शाम जब अध्यक्ष की ओर से शीर्ष अदालत के सामने कहा गया कि उन्हें इस्तीफा स्वीकार करने से संबंधित निर्णय लेने के लिए समय की आवश्यकता होगी, तब अदालत ने उन्हें एक दिन के अंदर निर्णय लेने के लिए कहा था.

शुक्रवार से विधानसभा का 10 दिवसीय सत्र शुरू होने के कारण उनका यह दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है. क्योंकि जब तक उनके इस्तीफे स्वीकार नहीं हो जाते, तब तक दोनों दलों के सभी विधायक अपने-अपने दलों द्वारा विधानसभा की उपस्थिति और उसमें मतदान के संबंध में जारी किए गए व्हिप के लिए बाध्य होंगे. अगर विधायक व्हिप का उल्लंघन करते हैं, तो वे अयोग्यता सहित अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना कर सकते हैं. इस स्थिति में विधानसभा की शेष अवधि के लिए वह फिर से चुनाव नहीं लड़ सकेंगे.

कांग्रेस और जेडीएस दोनों ने अपने सभी विधायकों को राज्य के बजट (वित्त विधेयक) को पारित कराने के लिए विधानसभा में उपस्थित रहने और अन्य विषयों पर चर्चा में भाग लेने के लिए व्हिप जारी किया है. कांग्रेस प्रवक्ता रवि गौड़ा ने आईएएनएस को बताया, “बागियों को भी व्हिप जारी किया गया है, क्योंकि उनके इस्तीफे को अध्यक्ष ने स्वीकार नहीं किया है.”

कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के नेता सिद्धारमैया ने पहले ही अध्यक्ष को याचिका दी है कि जो विधायक व्हिप की अवहेलना करते हैं, उन्हें अयोग्य घोषित करें. हालांकि, बागियों ने दावा किया है कि अयोग्यता उन पर लागू नहीं होगी, क्योंकि वे अपने संबंधित विधानसभा क्षेत्रों से पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं और 6 जुलाई को राज्यपाल के साथ-साथ विधानसभा अध्यक्ष को भी पत्र सौंप चुके हैं. अगर अध्यक्ष सभी 16 इस्तीफों को स्वीकार कर लेते हैं, तो विधानसभा की प्रभावी ताकत 225 से घटकर 209 हो जाएगी और सत्तारूढ़ गठबंधन 100 पर सिमट जाएगा. इस स्थिति में बहुमत का जादुई आंकड़ा 105 होगा.

वहीं, कांग्रेस व जेडीएस के 16 विधायकों के अलावा, केपीजेपी विधायक और निर्दलीय विधायक ने भी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है, जिसकी वजह से गठबंधन खतरे में पड़ गया है. दूसरी ओर, भाजपा के पास 105 विधायक हैं और वह सरकार बनाने के लिए तैयार है. मुख्यमंत्री एच. डी. कुमारस्वामी ने शुक्रवार को कहा कि वह विश्वास मत हासिल करने के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा कि उनकी जेडीएस व कांग्रेस गठबंधन सरकार के पास सदन में पर्याप्त बहुमत है.

कुमारस्वामी ने कहा कि अगर भाजपा चाहती है तो वह अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने के लिए भी तैयार हैं. मुख्यमंत्री ने कन्नड़ भाषा में विधानसभा अध्यक्ष से कहा, “मैं विश्वास मत या अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने के लिए तारीख और समय को निर्धारित करना आप पर छोड़ता हूं.”

बागियों की दलील पर यथास्थिति बनाए रखने के लिए अध्यक्ष को निर्देश देते हुए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि वे विधायक के पद पर बने रहेंगे और अयोग्य नहीं ठहराए जाएंगे. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस और जेडीएस ने भी अध्यक्ष को याचिका दी है कि वे उन 10 बागियों को अयोग्य घोषित करें, जो उनके खिलाफ शीर्ष अदालत में गए और उनकी विधायक दल की बैठकों में शामिल नहीं हुए.
शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को इस्तीफे पर फैसला करने के अपने गुरुवार के आदेश को संशोधित करते हुए अध्यक्ष को अतिरिक्त समय दिया.

“हम विधानसभा सत्र के निर्वाध संचालन के लिए विश्वस्त और तैयार हैं.” कुमारस्वामी

कर्नाटक विधानसभा से सत्तारूढ़ कांग्रेस व जेडीएस के विधायकों द्वारा इस्तीफा देने के बाद सरकार के भविष्य पर बड़ा संकट पैदा हो गया है.

बेंगलुरू: कर्नाटक विधानसभा से सत्तारूढ़ कांग्रेस व जेडीएस के विधायकों द्वारा इस्तीफा देने के बाद सरकार के भविष्य पर बड़ा संकट पैदा हो गया है. पिछले कुछ दिनों में कांग्रेस के 13 जबकि जेडीएस के तीन विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा सौंप दिया, जिससे गठबंधन सरकार संकट में पड़ गई है. राज्य में आज यानी शुक्रवार से मानसून सत्र शुरू होने जा रहा है. इसी बीच राज्य के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कहा है कि उनकी सरकार मजबूत है, हालांकि अस्थिर किए जाने का प्रयास किया जा रहा है. कुमारस्वामी ने कहा, “हम विधानसभा सत्र के निर्वाध संचालन के लिए विश्वस्त और तैयार हैं.” 
   
इससे पहले, कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष केआर रमेश कुमार ने गुरुवार को कहा कि उन्हें सत्ताधारी कांग्रेस और जेडीएस के 13 विधायकों के इस्तीफे नियत फॉर्मेट में मिले थे. कुमार ने यहां संवाददाताओं से कहा, “विधायकों ने अपना इस्तीफा मेरे कार्यालय में नियत फॉर्मेट में लिखे. मैं उन पर विचार करूंगा और उनकी बात निजी तौर पर सुनने के बाद फैसला लूंगा.”

उन्होंने कहा, “मैं शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को सूचित करूंगा कि मैंने मामले पर कार्रवाई कानून और दिन में पूर्व में जारी अपने आदेश के अनुसार की है.”

अगर 16 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार हुए
अगर अध्यक्ष 16 विधायकों के इस्तीफे को स्वीकार कर लेते हैं, तो विधानसभा की प्रभावी ताकत 225 से घटकर 209 हो जाएगी और बहुमत के लिए जादुई आंकड़ा 105 हो जाएगा जबकि सत्तारूढ़ गठबंधन 100 पर सिमटकर अल्पमत में आ जाएगा. 

स्पीकर को आज सर्वोच्च न्यायालय में सौंपनी होगी फैसले की प्रति

कर्णाटक के स्पेकर येन केन प्रकारेण अपने दल काँग्रेस की सरकार बचाने की जुगत में हैं। वह हर संभव कोशिश में हैं की किसी तरह सत्र मानसून सत्र निकाल जाये, परांतु ऐसा होता प्रतीत नहीं होता। जितना सत्ता पाक्स देरी कर रहा है उतने ही और नेता बागी हो रहे हैं। स्पीकर ने कहा था कि कोर्ट इस तरह का आदेश पारित नहीं कर सकता.स्पीकर की तत्काल सुनवाई की मांग गुरुवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दी थी. परसों ही 3 और विधायकों ने त्यागपत्र दिये थे जिससे बागी हुए विधायकों की संख्या बढ़ कर 16 हो गयी है।

नई दिल्लीः कर्नाटक के 10 बागी विधायकों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगा.चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ मामले की सुनवाई करेगी.गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने बागी विधायकों को शाम छह बजे तक स्‍पीकर के सामने पेश होने कहा था. साथ ही स्‍पीकर को कोर्ट ने निर्देश दिया था कि उसके बाद वह इस्‍तीफे पर फैसला लें और फैसले की कॉपी कोर्ट में सौंपे. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के डीजीपी से बागी विधायकों को सुरक्षा देने को कहा था.उधर, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कर्नाटक विधानसभा स्पीकर ने शीर्ष अदालत से अपने आदेश को वापस लेने की मांग की थी.

स्पीकर ने कहा था कि कोर्ट इस तरह का आदेश पारित नहीं कर सकता.स्पीकर की तत्काल सुनवाई की मांग गुरुवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दी थी. हालांकि कोर्ट ने स्पीकर को याचिका दायर करने की इजाजत दे दी थी. 

यह भी पढ़ें : कर्णाटक स्पीकर ने कहा की सर्वोच्च न्यायालय तय नहीं करेगा की कब और क्या फैसला लेना है

इससे पहले बागी विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर स्पीकर के फैसले पर सवाल उठाए थे.विधानसभा अध्यक्ष केआर रमेश कुमार इस्तीफे को खारिज कर दिया था.इसके खारिज करने की वजह इस्तीफा तय फॉर्मेट में नहीं होना बताया गया था. स्पीकर ने इन विधायकों को अब दोबारा इस्तीफा सौंपने के लिए कहा था. इस्तीफों के खारिज होने के बाद गठबंधन सरकार अल्पमत में आने से बच गई है और उसे थोड़ी राहत मिली थी.

आपको बता दें कि बागी विधायकों के इस्तीफों के बाद सदन में गठबंधन सरकार के विधायक घटकर 103 हो गए हैं. जबकि भाजपा के पास 105 विधायक हैं और दो निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन है जिन्होंने सोमवार को गठबंधन से समर्थन वापस ले लिया था. सभी बागी विधायकों ने महाराष्ट्र में किसी गुप्त जगह पर डेरा डालकर रखा है.कांग्रेस के कई शीर्ष नेता और इसके संकटमोचक डीके शिवकुमार बागी नेताओं के साथ लगातार संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन वह अभी तक कामयाब नहीं हो पाए है.कांग्रेस को उम्मीद हैं की वह बागी विधायकों से बात कर उन्हें मना लेंगे और वापस पार्टी में शामिल करने में सफल होंगे.


कर्णाटक स्पीकर ने कहा की सर्वोच्च न्यायालय तय नहीं करेगा की कब और क्या फैसला लेना है

कर्नाटक विधानसभा के स्पीकर रमेश कुमार ने सुप्रीम कोर्ट को अपने उस आदेश पर रोक लगाने की मांग की है, जिसमें गुरुवार सुबह सुप्रीम कोर्ट की ओर से विधायकों के इस्‍तीफे के मामले पर आज ही फैसला लेने को कहा था. 

बेंगलुरू:  कर्नाटक के बागी कांग्रेस और जेडीएस विधायक गुरुवार को विधासभा अध्यक्ष से मिलने पहुंचे. विधायकों से मुलाकात के बाद स्पीकर रमेश कुमार ने कहा कि मेरा काम किसी को बचाना या हटाना नहीं है. सुनवाई में देरी के आरोप से दुखी हूं. स्पीकर ने कहा – 8 विधायकों का इस्तीफा सही प्रारूप में नहीं था. मुझसे किसी विधायक ने मिलने का वक्त नहीं मांगा.’ 

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने बागी विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष के सामने पेश होने के लिए कहा था. इससे पहले अब कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष केआर रमेश कुमार ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया. अध्यक्ष ने न्यायालय द्वारा उन्हें 10 बागी विधायकों के इस्तीफे पर फैसला लेने के आदेश को रोकने की अपील की है. 

अध्यक्ष ने कहा कि इस तरह का निर्देश सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी नहीं किया जा सकता है. उन्होंने अपने आवेदन पर तत्काल सुनवाई की मांग भी की. अध्यक्ष ने कहा कि उनके संवैधानिक कर्तव्यों और विधानसभा के नियमों ने उन्हें यह सत्यापित करने के लिए बाध्य किया कि विधायकों द्वारा दिए गए इस्तीफे के पीछे मूल कारण क्या हैं. क्या ये स्वैच्छिक हैं या इनके पीछे किसी का दबाव है. उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि यह पता लगाने के लिए उस निश्चित समय-सीमा के अंदर जांच पूरी नहीं की जा सकती है जिसे शीर्ष अदालत ने तय किया है.

पीठ का मामले पर तत्काल सुनवाई से इनकार
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया.  लेकिन, अदालत ने अध्यक्ष के आवेदन को दायर  करने की अनुमति देते हुए यह संकेत दिया कि मामले को 10 बागी विधायकों की याचिका के साथ सुनवाई के लिए लिया जाएगा.

अध्यक्ष की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील ए. एम. सिंघवी और देवदत्त कामत ने अदालत के सामने तर्क दिया कि अध्यक्ष संवैधानिक रूप से अयोग्यता की कार्यवाही  पहले करने के लिए बाध्य हैं. प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने जवाब दिया कि उसने पहले ही सुबह आदेश पारित कर दिया था कि यह फैसला अध्यक्ष को करना है कि इस पर क्या कार्रवाई की जानी है. हम आपको कल (शुक्रवार को) सुनेंगे.

गोवा में कॉंग्रेस विलुप्त

काँग्रेस को सिर्फ सत्ता लोलुपता और ऐय्याशियों ने डुबोया है, काँग्रेस सत्ता से दूर शायद रह भी ले परंतु कोंग्रेसी नहीं रह सकते। आज जिस प्रकार से भाजपा में शामिल होने की होड़ मची है सासे यही साबित होता है की येन केन प्रकारेण कोई पद, कोई कुर्सी या महकमा हाथ लग जाये। मोदी के नेतृत्व में भाजपा की प्रचंड जीत और सर्वोपरो अमेठी से राहुल गांधी की शर्मनाक हार का असर कॉंग्रेस पर इतना पड़ा की वह 2024 के लिए भी परेशान हो गए। आज गोवा में कॉंग्रेस विल्प्त हो गयी। गोवा विधानसभा के डिप्टी स्पीकर माइकल लोबो ने इस मामले पर कहा कि कांग्रेस के 10 विधायक बीजेपी में शामिल हुए हैं. यह उनके कुल विधायकों की संख्या का दो-तिहाई है.

नई दिल्ली: कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस की गठबंधन सरकार पर सियासी संकट गहरा रहा है. वहीं, इन सबके बीच कांग्रेस के लिए गोवा राज्य से भी बुरी खबर सामने आ रही है. गोवा में कांग्रेस के 10 विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया है. इन विधायकों में चंद्रकांत कावलेकर भी शामिल हैं, जो विपक्ष के नेता थे. कांग्रेस के 10 विधायकों के बीजेपी में शामिल होने पर गोवा के सीएम प्रमोद सावंत ने कहा कि कांग्रेस के विधायकों के अपने विपक्षी नेता के साथ बीजेपी में शामिल होने से हमारी संख्या 27 हो गई है. सभी विधायक बिना किसी शर्त के बीजेपी में शामिल हुए हैं.

गोवा विधानसभा के डिप्टी स्पीकर माइकल लोबो ने इस मामले पर कहा कि कांग्रेस के 10 विधायक बीजेपी में शामिल हुए हैं. यह उनके कुल विधायकों की संख्या का दो-तिहाई है. कांग्रेस विधायकों का विलय नियमानुसार हुआ है. वहीं, गोवा विधानसभा के स्पीकर राजेश पाटनेकर ने कहा कि आज कांग्रेस के 10 विधायकों ने मुझे पत्र देकर बीजेपी में शामिल होने की जानकारी दी. दूसरा पत्र मुझे गोवा के सीएम प्रमोद सावंत की ओर से मिला, जिसमें बीजेपी का संख्याबल बढ़ने की बात कही गई थी. मैंने दोनों पत्र स्वीकार कर लिए हैं.  

वहीं, कांग्रेस का साथ छोड़ बीजेपी में शामिल हुए विपक्ष के नेता चंद्रकांत कावलेकर ने कहा कि अगर विधानसभा क्षेत्र में कोई विकास नहीं होगा तो लोग हमें दोबारा कैसे चुनेंगे. कांग्रेस ने जो भी वादें किए थे, उन्हें पूरा नहीं किया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस के पास गोवा में सरकार बनाने के कई मौके थे, लेकिन वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं में एकता की कमी के कारण यह नहीं हो पाया. उन्होंने कहा कि यह कभी हो भी नहीं पाएगा इसलिए हमनें बीजेपी में शामिल होने का निर्णय लिया है. 

कावलेकर ने कहा कि गोवा के सीएम प्रमोद सावंत अच्छा काम कर रहे हैं इसलिए हम 10 विधायकों ने बीजेपी में शामिल होने का फैसला किया है. मैं विपक्ष का नेता होने के बावजूद अपने विधानसभा क्षेत्र में विकास कार्य नहीं करवा पा रहा था. उन्होंने कहा कि राज्य की सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद कुछ लोगों के कारण हम सरकार नहीं बना सके. बीजेपी में शामिल होने वाले नेताओं में बाबू कावलेकर, बाबुश मोनसेराट, उनकी पत्नी जेनिफर मोनसेरेट, टोनी फर्नांडिस, फ्रांसिस सिल्वेरा आदि हैं.