भाजपा की ‘साइबर सेना’ 2019 के संग्राम के लिए तैयार


बीजेपी के उपलब्धियों के बखान और विपक्ष के हमलों का जवाब देने के लिए बनाई गई है साइबर सेना


अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया पर विपक्ष के हमले का जवाब देने के लिए बीजेपी ने किलेबंदी की है. इसके लिए पार्टी ने साइबर सेना का गठन किया है. यह सेना हर मतदान केंद्र पर उन पांच लोगों की टीम होगी जो लोगों के सामने बीजेपी की उपलब्धियों की तस्वीर पेश करेगी.

बीजेपी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आज के दौर में सोशल मीडिया का प्रभाव किसी से छिपा नहीं है. आने वाले चुनाव में काफी संख्या में युवा पहली बार वोट डालेंगे. देश के दूरदराज के क्षेत्रों में भी लोग सोशल मीडिया से जुड़े हैं.

उन्होंने कहा, ‘ऐसे में पार्टी दूरदराज के क्षेत्रों में आईटी के जरिए जन-जन तक सरकार के कार्यों की सही तस्वीर पेश करेगी.’ बीजेपी की साइबर सेना विपक्षी दलों के आरोपों का जबाव देने के लिए खास तौर पर काम कर रही है. इसके लिए अलग-अलग मुद्दों पर डाटा बैंक तैयार किया जा रहा है. ताकि, आरोपों का जवाब तथ्य और आंकड़ों के साथ दिया जा सके.

कैसे काम करेगी ‘साइबर सेना’

पार्टी की सोशल मीडिया टीम तीन स्तरों पर काम कर रही है. एक समूह प्रिंट मीडिया पर ध्यान देगा और बीजेपी के खिलाफ प्रचार पर नजर रखेगा. एक दल बीजेपी के खिलाफ दुष्प्रचार का मुकाबला करने के लिए जवाबी रिपोर्ट तैयार करेगा.

बीजेपी के खिलाफ किसी भी तरीके के दुष्प्रचार को रोकने के लिए साइबर सेना में हर मतदान केंद्र पर पांच लोगों को चुना जाएगा. इन लोगों को पार्टी की उपलब्धियों से जुड़ी रिपोर्ट और डेटा वाले मैसेज भेजे जाएंगे. इन पांच लोगों को हर दिन बीजेपी का बुलेटिन भेजा जाएगा. ये लोग स्मार्ट फोन से लैस होंगे और सोशल मीडिया पर सक्रिय होंगे.

साइबर सेना बड़े नेताओं के रुख का प्रचार सोशल मीडिया के माध्यम से करेगी. इसके लिए पार्टी सोशल मीडिया पर काम करने के लिए बड़ी टीम तैयार कर रही है. इस सिलसिले में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह अपनी देशव्यापी यात्रा के दौरान हर प्रदेश में पार्टी के आईटी सेल के लोगों और कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं.

कुछ समय पहले अमित शाह 300 ऐसे कार्यकर्ताओं से मिले थे जिन्हें सोशल मीडिया पर 10 हजार से ज्यादा लोग फॉलो करते हैं. उन्होंने कार्यकर्ताओं को केंद्र सरकार की तरफ जनता के हित में उठाए गए कदमों की सूचना फैलाने की सलाह दी गई.

बीजेपी ने समाज के हर तबके और हर उम्र के लोगों के बीच अपने आधार को मजबूत बनाने के लिए शक्ति केंद्रों की स्थापना की है. इन शक्ति केंद्रों के प्रमुखों के ज़िम्मे पांच से सात बूथ हैं.

पार्टी सोशल मीडिया प्लेटफार्म के जरिए सरकार की योजनाओं के बारे में भी जानकारी दे रही है. बीजेपी ने नमो एप से बूथ स्तर तक पार्टी कार्यकर्ताओं को जोड़ने की पहल की है. कॉलेजों और अलग-अलग शैक्षिक संस्थानों में अभियान चलाकर इससे युवाओं को जोड़ने की ‘सेल्फी विद कैम्पस’ योजना बनाई गई है. कई प्रदेशों में ‘चलो पंचायत’ कार्यक्रम भी शुरू किया गया है.

मंदिरों से नहीं विज्ञान से आएगा रोजगार: सैम पित्रोदा


उन्होंने आरोप लगाया कि देश के युवाओं को लोगों को, खासकर राजनीतिक नेताओं द्वारा गुमराह किया जा रहा है, बेकार की चीजों पर बात की जा रही है जिससे वे गलत रास्ते पर जा रहे हैं

किसी धर्म विशेष के प्रार्थना स्थल को चिन्हित कर के सैम पित्रोदा का ब्यान दुर्भाग्यपूर्ण है


प्रौद्योगिकीविद् सैम पित्रोदा ने रविवार को अहमदाबाद के कर्णावती विश्वविद्यालय में छात्रों से कहा कि भविष्य में धर्म से नौकरियां उत्पन्न नहीं होंगी, केवल विज्ञान ही भविष्य का निर्माण करेगा.

उन्होंने यह भी कहा कि जब रोजगार के बारे में बात की जाती है तो इसे राजनीतिक रंग दे दिया जाता है और ‘इसमें वास्तविकता कम, शब्दाडंबर ज्यादा होता है.’

पित्रोदा ने कहा, ‘जब मैं इस देश में मंदिर, धर्म, ईश्वर, जाति के बारे में सभी चर्चाओं को सुनता हूं तो तब मैं भारत के बारे में चिंता करता हूं. भविष्य में मंदिरों से रोजगार उत्पन्न नहीं होगा. केवल विज्ञान ही भविष्य का निर्माण करेगा.’

उन्होंने कहा कि हालांकि सार्वजनिक क्षेत्र में विज्ञान पर बहुत कम चर्चा होती है.

पित्रोदा ने कहा, ‘जब भी कोई रोजगार के बारे में बात करता है तो हमेशा इसमें राजनीतिक रंग होता है. वास्तविकता बहुत कम और शब्दाडंबर ज्यादा होता है.’

पित्रोदा कर्णावती विश्वविद्यालय में ‘युवा संसद’ में बोल रहे थे.

उन्होंने आरोप लगाया कि देश के युवाओं को लोगों को, खासकर राजनीतिक नेताओं द्वारा गुमराह किया जा रहा है, बेकार की चीजों पर बात की जा रही है जिससे वे गलत रास्ते पर जा रहे हैं.

70 सालों में किसी सरकार ने शिक्षा पर नहीं दिया ध्यान : आआपा प्रमुख

तीन तलाक विधेयक को लेकर अब दिल्ली के मुख्यमंत्री ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोला है. मध्य प्रदेश में आम आदमी पार्टी के राज्यस्तरीय सम्मेलन में आआपा प्रमुख ने कहा ‘अगर अपनी सरकार के चार साल के कार्यकाल के बाद भी मोदी को हिंदू-मुसलमान की बात करनी पड़ रही है. तो इसका मतलब है कि उनकी सरकार की उपलब्धियां शून्य रही हैं.’

दरअसल संसद में अटके तीन तलाक से संबंधित विधेयक को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को कांग्रेस पर हमला बोला था. इस पर दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कहा, ‘आज अमेरिका नैनो तकनीक की बात कर रहा है. जापान, फ्रांस और इंग्लैंड जैसे देश बड़ी- बड़ी तकनीकों की बातें कर रहे हैं. लेकिन हमारे प्रधानमंत्री अब भी हिंदू-मुसलमान की बात कर रहे हैं.’

मुख्यमंत्री ने कहा, ‘हम सब चाहते हैं कि विकास और तकनीकी के क्षेत्र में अमेरिका और अन्य बड़े देशों को भारत पीछे छोड़ दे. लिहाजा मैं प्रधानमंत्री से पूछना चाहता हूं कि क्या हिंदू-मुस्लिम की बात करने से भारत दुनिया का नंबर एक देश बन सकेगा.’

स्कूली पढ़ाई के क्षेत्र में दिल्ली सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए आआपा प्रमुख ने कहा कि भारत केवल शिक्षा के माध्यम से दुनिया का नंबर एक देश बन सकता है. उन्होंने कहा, ‘भारत के नागरिक इस दुनिया के सबसे बुद्धिमान लोग हैं. लेकिन गंदी राजनीति के जरिए बड़ी संख्या में देशवासियों को जान-बूझकर अनपढ़ रखा जा रहा है.’ केजरीवाल ने आरोप लगाया कि पिछले 70 साल के दौरान देश में किसी भी दल की केंद्र सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में सही तरीके से काम नहीं किया है.

4-2 से फ्रांस ने फिफा 2018 अपने नाम किया


फ्रांस ने फाइनल में क्रोएशिया को 4-2 से पराजित किया. वो 1998 में पहली बार विश्व कप में फाइनल खेली थी और जीतने में सफल रही थी


 

रेफरी की अंतिम सीटी बजते ही फ्रांस जश्न में डूब गया. मैच के अंतिम पलों में ही बेंच पर बैठे उसके खिलाड़ी, कोच, सपोर्ट स्टाफ और फैंस जश्न में मूड में आ गए थे. फ्रांस ने रविवार को मास्को के लुज्निकी स्टेडियम में फीफा विश्व कप के 21वें संस्करण में एक बार फिर अपनी बादशाहत साबित कर दी. महत्वपूर्ण मौकों पर स्कोर करने की अपनी काबिलियत और भाग्य के दम पर उसने रोमांचक फाइनल में दमदार क्रोएशिया को 4-2 से हराकर दूसरी बार विश्व चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया.

 

फ्रांस ने इससे पहले 1998 में विश्व कप जीता था. तब उसके कप्तान डिडियर डेस्चैम्प्स थे जो अब टीम के कोच हैं. इस तरह से डेस्चैम्प्स खिलाड़ी और कोच के रूप में विश्व कप जीतने वाले तीसरे व्यक्ति बन गए हैं. उनसे पहले ब्राजील के मारियो जगालो और जर्मनी फ्रैंज बेकनबॉर ने यह उपलब्धि हासिल की थी.

फ्रांस ने 18वें मिनट में मारियो मांजुकिच के आत्मघाती गोल से बढ़त बनाई, लेकिन इवान पेरिसिच ने 28वें मिनट में बराबरी का गोल दाग दिया. फ्रांस को हालांकि जल्द ही पेनल्टी मिली जिसे एंटोनी ग्रीजमैन ने 38वें मिनट में गोल में बदला जिससे फ्रांस मध्यांतर तक 2-1 से आगे रहा.

पॉल पोग्बा ने 59वें मिनट में तीसरा गोल दागा, जबकि किलियन एम्बाप्पे ने 65वें मिनट में फ्रांस की बढ़त 4-1 कर दी. जब लग रहा था कि अब क्रोएशिया के हाथ से मौका निकल चुका है तब मांजुकिच ने 69वें मिनट में गोल करके उसकी उम्मीद जगाई. क्रोएशिया पहली बार फाइनल में पहुंचा था. उसने अपनी तरफ से हर संभव प्रयास किए और अपने कौशल और चपलता से दर्शकों का दिल भी जीता, लेकिन आखिर में ज्लाटको डॉलिच  की टीम को उप विजेता बनकर ही संतोष करना पड़ा. निसंदेह क्रोएशिया ने बेहतर फुटबॉल खेली लेकिन फ्रांस ने अधिक प्रभावी और चतुराईपूर्ण खेल दिखाया. यही उसकी असली ताकत है जिसके दम पर वह 20 साल बाद फिर चैंपियन बनने में सफल रहा.

दोनों टीमें 4-2-3-1 के संयोजन के साथ मैदान पर उतरी. क्रोएशिया ने इंग्लैंड की खिलाफ जीत दर्ज करने वाली शुरुआती एकादश में बदलाव नहीं किया तो फ्रांसीसी कोच डेस्चैम्प्स ने अपनी रक्षापंक्ति को मजबूत करने पर ध्यान दिया. क्रोएशिया ने अच्छी शुरुआत और पहले हाफ में न सिर्फ गेंद पर अधिक कब्जा जमाए रखा, बल्कि इस बीच आक्रामक रणनीति भी अपनाए रखी. उसने दर्शकों में रोमांच भरा, जबकि फ्रांस ने अपने खेल से निराश किया. यह अलग बात है कि भाग्य फ्रांस के साथ था और वह बिना किसी खास प्रयास के दो गोल करने में सफल रहा.

मैच की महत्वपूर्ण बातें

फ्रांस के पास पहला मौका 18वें मिनट में मिला और वह इसी पर बढ़त बनाने में कामयाब रहा. फ्रांस को दायीं तरफ बॉक्स के करीब फ्री किक मिली. ग्रीजमैन का क्रास शॉट गोलकीपर डेनियल सुबासिच की तरफ बढ़ रहा था. लेकिन तभी मांजुकिच ने उस पर हेडर लगा दिया और गेंद गोल में घुस गई. इस तरह से मांजुकिच विश्व कप फाइनल में आत्मघाती गोल करने वाले पहले खिलाड़ी बन गए. यह वर्तमान विश्व कप का रिकॉर्ड 12वां आत्मघाती गोल है.

पेरिसिच ने हालांकि जल्द ही बराबरी का गोल करके क्रोएशियाई प्रशंसकों और मांजुकिच में जोश भरा. पेरिसिच का यह गोल दर्शनीय था जिसने लुज्निकी स्टेडियम में बैठे दर्शकों को रोमांचित करने में कसर नहीं छोड़ी. क्रोएशिया को फ्री किक मिली और फ्रांस इसके खतरे को नहीं टाल पाया. मांजुकिच और डोमागोज विडा के प्रयास से गेंद विंगर पेरिसिच को मिली. उन्होंने थोड़ा समय लिया और फिर बाएं पांव से शॉट जमाकर गेंद को गोल के हवाले कर दिया. फ्रांसीसी गोलकीपरी ह्यूगो लॉरिस के पास इसका कोई जवाब नहीं था.

लेकिन इसके तुरंत बाद पेरिसिच की गलती से फ्रांस को पेनल्टी मिल गई. बॉक्स के अंदर गेंद पेरिसिच के हाथ से लग गई. रेफरी ने वीएआर की मदद ली और फ्रांस को पेनल्टी दे दी. अनुभवी ग्रीजमैन ने उस पर गोल करने में कोई गलती नहीं की. यह 1974 के बाद विश्व कप में पहला अवसर है जबकि फाइनल में मध्यांतर से पहले तीन गोल हुए.

क्रोएशिया ने दूसरे हाफ में भी आक्रमण की रणनीति अपनाई और फ्रांस को दबाव में रखा. खेल के 48वें मिनट में लुका मोड्रिच ने एंटे रेबिच का गेंद थमाई, जिन्होंने गोल पर अच्छा शॉट जमाया. लेकिन लॉरिस ने बड़ी खूबसूरती से उसे बचा दिया.

लेकिन गोल करना महत्वपूर्ण होता है और इसमें फ्रांस ने फिर से बाजी मारी. दूसरे हाफ में वैसे भी उसकी टीम बदली हुई लग रही थी. खेल के 59वें मिनट में किलियन एम्बाप्पे ने दाएं छोर से गेंद लेकर आगे बढ़े. उन्होंने पोग्बा तक गेंद पहुंचाई जिनका शॉट विडा ने रोक दिया. रिबाउंड पर गेंद फिर से पोग्बा के पास पहुंची जिन्होंने उस पर गोल दाग दिया.

इसके छह मिनट बाद एम्बाप्पे ने ने स्कोर 4-1 कर दिया. उन्होंने बाएं छोर से लुकास हर्नाडेज से मिली गेंद पर नियंत्रण बनाया और फिर 25 गज की दूरी से शॉट जमाकर गोल दाग दिया जिसका विडा और सुबासिच के पास कोई जवाब नहीं था. एम्बाप्पे ने 19 साल, 207 दिन की उम्र में गोल दागा और वह विश्व कप फाइनल में गोल करने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बन गए. पेले ने 1958 में 17 साल की उम्र में गोल दागा था.

क्रोएशिया लेकिन हार मानने वाला नहीं था. तीन गोल से पिछड़ने के बावजूद उसका जज्बा देखने लायक था. लेकिन उसने दूसरा गोल फ्रांसीसी गोलकीपर लॉरिस की गलती से किया. उन्होंने तब गेंद को ड्रिबल किया जबकि मांजुकिच पास में थे. क्रोएशियाई फारवर्ड ने उनसे गेंद छीनकर आसानी से उसे गोल में डाल दिया. इसके बाद भी क्रोएशिया ने हार नहीं मानी. उसने कुछ अच्छे प्रयास किए, लेकिन उसके शॉट बाहर चले गए. इस बीच इंजरी टाइम में पोग्बा को अपना दूसरा गोल करने का मौका मिला, लेकिन वह चूक गए.

यों शोषण के आरोपी प्रोफेसर को पर्यावरण प्रदूषण प्राधिकरण (EPCA) से हटाया


जौहरी के खिलाफ यौन शोषण की 8 एफआईआर दर्ज हैं.


केंद्र सरकार ने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के उस प्रोफेसर को पर्यावरण प्रदूषण प्राधिकरण (EPCA) से हटा दिया है जिन पर यौन शोषण के आरोप लगे हैं. आठ महिलाओं के साथ यौन शोषण के आरोपी अतुल कुमार जौहरी को पर्यावरण मंत्रालय ने 4 जुलाई को हटा दिया.

पर्यावरण मंत्रालय के नोटिफिकेशन में कहा गया कि आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर मुकेश खरे को भी हटाया गया था. खरे ने कहा था कि उन्होंने निजी कारणों से 6 महीने पहले अपने पद से इस्तीफा दिया था और उनके इस्तीफे को स्वीकार कर लिया गया था.

जौहरी को मार्च में गिरफ्तार किया गया था, हालांकि अभी वह जमानत पर बाहर चल रहे हैं. पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि जौहरी के खिलाफ खराब व्यवहार के आरोप लगे थे. वहीं उनके खिलाफ यौन शोषण की 8 एफआईआर दर्ज हैं. दिल्ली हाईकोर्ट ने जौहरी को हालही में निर्देश दिए थे कि वह किसी भी महिला हॉस्टल के वार्डन की जिम्मेदारी न लें.

ताल भी सकता है राज्यसभा के उपसभापति का चुनाव


राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव को लेकर सबकी नजर इस पर है कि क्या बीजेपी अपनी सहयोगी पार्टियों को मना पाएगी या उनके सामने झुकेगी वहीं दूसरी तरफ विपक्षी एकता के दावे की भी परीक्षा है


भारतीय संसद के उच्च सदन के उपसभापति की जगह खाली है और फिलहाल उस जगह को भरने की संभावना दिख नहीं रही है. वर्तमान उपसभापति पीजे कुरियन का कार्यकाल 30 जून को समाप्त हो चुका है और उनकीजगह नए उपसभापति की चयन प्रक्रिया संसद के आगामी सत्र के बीच में होनी है. लेकिन समस्या ये है कि इस सदन में सत्तारूढ़ दल बीजेपी के पास बहुमत नहीं है और ना ही विपक्षी दलों के पास सही आंकड़े हैं.

यही वजह है कि उपसभापति के चयन को लेकर मामला फंसा हुआ है. कांग्रेस नेता और राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन का कार्यकाल जब समाप्त हुआ तो कांग्रेस ने उन्हें दोबारा मनोनीत नहीं किया है. बीजेपी की कोशिश है कि उच्च सदन का उपसभापति उनकी पार्टी का हो. लेकिन दोनों ही दलों को पास बहुमत नहीं है और यही वजह से वो पार्टी के किसी सदस्य के नाम को आगे नहीं कर पा रहे हैं. आमतौर से उपसभापति के कार्यकाल समाप्त होने के बाद आगामी संसद सत्र में चुनाव करा दिया जाता है. फिलहाल मानसून सत्र 18 जुलाई से शुरू होकर 10 अगस्त तक चलेगा.

भारत में संसद के दो सदन होते हैं, एक लोकसभा और दूसरा राज्यसभा. लोकसभा के सदस्यों को जनता मतदान करके चुनती है जबकि राज्यसभा के सदस्यों को राज्यों के चुने गए विधायक निर्वाचित करते हैं. ऐसे में राष्ट्रीय कानूनों और बिल में राज्यों की भी अप्रत्यक्ष रूप से भागीदारी बन जाती है.

राज्यसभा का उपसभापति

राज्यसभा की अध्यक्षता देश के उपराष्ट्रपति करते हैं. अभी वैंकेय्या नायडू उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के अध्यक्ष हैं. उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य मिलकर करते हैं. अध्यक्ष ही सभापति होते हैं और एक उपसभापति भी होते हैं, जिसे राज्यसभा के सदस्य मिलकर चुनते हैं.

सभापति के ना होने पर उपसभापतिराज्यसभा का कार्यभार संभालते हैं. अध्यक्ष या उपसभापति सदन की अध्यक्षता करता है, उसका काम नियमों के हिसाब से सदन को चलाना होता है. किसी भी बिल को पास कराने के लिए वोटिंग हो रही है तो उसकी देखरेख भी ये ही करते हैं. ये किसी भी राजनीतिक पार्टी का पक्ष नहीं ले सकते हैं. सदन में हंगामा होने या किसी भी और कारण से सदन को स्थगित करने का हक अध्यक्ष या उपसभापति को ही होता है. किसी सदस्य के इस्तीफा को मंज़ूर या नामंज़ूर करने का अधिकार अध्यक्ष का उपसभापति को ही होता है. नामंज़ूर करने की स्थिति में वो सदस्य सदन से इस्तीफा नहीं दे सकता है.

राज्यसभा में संख्या का गणित

राज्यसभा में 67 सांसदों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन बदले हालात में तेलगु देशम पार्टी का उससे नाता तोड़ने और शिव सेना के साथ रिश्ते खराब होने के बाद बीजेपी के लिए उपसभापति पद के चुनाव का सामना कर पाना आसान नहीं रह गया.

कांग्रेस पार्टी की सदस्य संख्या 51 रह गई है. लेकिन विपक्षी एकता के बदले हालात में तृणमूल कांग्रेस के 13, समाजवादी पार्टी के 6, टीडीपी 6, डीएमके के 4, बीएसपी के 4, एनसीपी के 4 सीपीएम के 4, सीपीआई के 1 और अन्य गैर बीजेपी पार्टियों की सदस्य संख्या को मिला दें तो वे बीजेपी पर भारी पड़ रहे हैं. हालांकि 13 सदस्यों वाली एआईएडीएमके बीजेपी के साथ जाएगी. ऐसे आसार हैं लेकिन 9 सदस्यों वाला बीजू जनतादल और शिव सेना समेत कुछ और दल अगर तटस्थता बनाए रखते हैं तो इससे विपक्षी पलड़ा भारी होना तय है.

अभी तक कांग्रेस के उम्मीदवार ही राज्यसभा के उपसभापति बनते थे. सिर्फ एक बार ये पद विपक्षी दल के पास गया था. अभी पिछले 41 सालों से कांग्रेस के पास डिप्टी स्पीकर का पद है और पिछले 66 सालों में से 58 सालों तक यह पद उसी के पास रहा है.

लेकिन बीजेपी की कोशिश है कि इस बार उपसभापति का पद उनकी पार्टी के पास जाए. बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी भी इस पद पर बीजेपी का उम्मीदवार का चयन चाहते हैं. उपसभापति के चुनाव के मुद्दे पर दोनों पार्टियों में बैठकों का दौर जारी है. हाल फिलहाल राज्यसभा में सदन के नेता अरुण जेटली के घर पर इस मुद्दे को लेकर बैठक भी बुलाई गई, जिसमें पार्टी अध्यक्ष अमित शाह सहित वरिष्ठ नेताओं ने भी शिरकत की.

इसी बैठक में सुझाव आया कि एनडीए के किसी घटक दल से उपसभापति का नाम आगे किया जाए और उसपर आम सहमति बनाने की कोशिश की जाए. हालांकि शिरोमणि अकाली दल के सदस्य नरेश गुजराल के नाम पर चर्चा की गई. मगर उनके नाम पर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बीच सहमति नहीं बन पाई है.

वहीं कांग्रेस की तरफ से केरल से ही पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पीसी चाको का नाम उछला है. कांग्रेस का कहना है कि पीसी चाको से ज्यादा अनुभवी उम्मीदवार विपक्ष में नहीं हैं. चाको पहले भी राज्यसभा पैनल के सदस्य रहे हैं. मनमोहन सरकार के कार्यकाल में वे टूजी घोटाले की जांच के लिए बनी संसदीय समिति के चेयरमैन रहे चुके हैं. इस बात के संकेत हैं कि राहुल गांधी उन्हें उपसभापति पद का दावेदार बनाने के लिए उन्हें केरल से पार्टी की ओर से राज्यसभा उम्मीदवार घोषित कर दें.

21 जून को केरल की तीन राज्यसभा पर चुनाव होना है इनमें पीजे कुरियन भी शामिल हैं जो सदस्यता से रिटायर हो जाएंगे. 140 सदस्यों वाली केरल विधानसभा में केरल में मौजूदा समीकरणों के हिसाब से 22 सदस्यों वाली विपक्षी कांग्रेस पार्टी आईयूएमएल, केरल कांग्रेस (मणि) और केरल कांग्रेस (जे) के साथ मिलकर एक ही सदस्य को राज्यसभा में भेज सकती है.

सूत्रों का कहना है कि अगर एनडीए संख्याबल जुटाने में विफल रहता है, तो चुनाव को अगले शीतकालीन सत्र के लिए टाला जाए जा सकता है. हालांकि विपक्ष सत्र की शुरूआत में ही नए उपसभापति के चुनाव की मांग उठा सकता है.

चुनाव को अगले सत्र के लिए टालने के पीछे बीजेपी की दलील है कि संविधान में भी नए उपसभापति के चुनाव को लेकर कोई तय समय सीमा नहीं है. यह उपराष्ट्रपति यानी सभापति के विवेक पर निर्भर करता है. सूत्रों का कहना है कि यूपीए दौर में डा. रहमान खान के अवकाश प्राप्त करने के चार महीने बाद चुनाव हुआ था. खान दो अप्रैल को रिटायर हुए थे, लेकिन चुनाव के लिए मानसून सत्र का इंतजार किया गया था. उस समय 8 अगस्त को सत्र बुलाया गया था और उपसभापति का चुनाव 21 अगस्त को हुआ था.

लोकसभा चुनाव अगले साल होने वाले हैं. ऐसे में हर संसद और राज्य के हर चुनाव को सरकार की कार्यशैली और कूटनीति की परीक्षा के रूप में देखा जाता है. एक तरफ सबकी नजर इस पर है कि क्या बीजेपी अपनी सहयोगी पार्टियों को मना पाएगी या उनके सामने झुकेगी वहीं दूसरी तरफ विपक्षी एकता के दावे की भी परीक्षा है. क्या कांग्रेस अपने सहयोगी दलों के लिए ये पद छोड़ देगी और सालों से चली आ रही परंपरा को तोड़ देगी. मामला यहीं पर अटका है. राज्यसभा में सीटों का गणित किसी के भी पक्ष में नहीं है इसलिए पेंच फंसा हुआ है.

अगली लोकसभा के गठन के बाद संसद के नए भवन के निर्माण के प्रस्ताव पर अमल हो सकेगा: सुमित्रा महाजन


संसद भवन के लिए स्थान भी सुझाए गए हैं. इनमें से एक वर्तमान संसद परिसर में ही प्लॉट नंबर 118 है


सुमित्रा महाजन ने कहा, ‘संसद के नए भवन के निर्माण के विषय पर शहरी विकास मंत्रालय के साथ दो बैठक हुई हैं. हमने नए भवन के लिए कुछ वैकल्पिक स्थलों के बारे में भी सुझाव दिया है.’

उन्होंने कहा कि अब तो चुनावी साल में प्रवेश कर गए हैं. लोकसभा चुनाव में ज्यादा समय नहीं बचा है. ‘उम्मीद करते हैं कि अगली लोकसभा के गठन के बाद संसद के नए भवन के निर्माण के प्रस्ताव पर अमल हो सकेगा.’

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि आवश्यकताओं के अनुरूप वर्तमान संसद भवन छोटा पड़ रहा है. सदस्यों ने भी कहा है कि उन्हें बैठने में दिक्कत होती है, लेकिन इस भवन में सीटों की संख्या नहीं बढ़ा सकते. उन्होंने कहा कि अगली जनगणना के बाद अगर सदस्यों की संख्या बढ़ाने का विषय आया, तो इस पर अमल में समस्या आएगी.

सुमित्रा महाजन ने कहा कि संसद भवन 100 साल पुराना हो चुका है, इसकी मरम्मत कराने में भी डर लगता है. हालांकि रखरखाव और मरम्मत के काफी कार्य हुए हैं. अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने नौ दिसंबर 2015 को तत्कालीन शहरी विकास मंत्री एम वैंकेया नायडू को पत्र लिखा था.

उन्होंने लिखा था कि वर्तमान भवन ग्रेड 1 हेरिटेज बिल्डिंग है और यह पुराना हो रहा है. मरम्मत में बाधाएं आने के साथ ही स्टाफ के काम में भी दिक्कत आने लगी है. इसके चलते नए भवन की जरूरत महसूस की जा रही है .

संसद भवन के लिए स्थान भी सुझाए गए हैं. इनमें से एक वर्तमान संसद परिसर में ही प्लॉट नंबर 118 है. हालांकि यहां नए भवन के निर्माण पर कुछ सुविधाओं और सेवाओं को स्थानांतरित करना पड़ेगा. दूसरा स्थान राजपथ के दूसरी ओर है.

संसद भवन का निर्माण साल 1921 में शुरू हुआ था. निर्माण पूरा होने के बाद यहां वर्ष 1927 से कामकाज शुरू हुआ. उस समय सुरक्षाकर्मियों, कर्मचारियों और मीडियाकर्मियों की संख्या और संसदीय गतिविधियां सीमित थीं, लेकिन समय के साथ इनमें इजाफा हुआ है.

CRIKC & CIIC to be developed soon

 

 

Dr Pramod Kumar, while speaking on the future of Chandigarh had that  “Chandigarh is emerging as the satellite town of Delhi. It has a potential to develop as a global destination in terms of culture, trade, knowledge exchange. It can locate a diplomatic enclave to realise this potential. The main focus should be to reach out to the people and influence policy planning institutions like CRIKC (Chandigarh Region Innovation and Knowledge Cluster) to be strengthened besides setting up an institution like India International Centre, Delhi.”

Both CM seconded the idea and also promised to contribute to turn the idea into reality.

It has been learnt that the proposed site of CIIC likely to be in one of the posh sectors of Chandigarh.

Here are some of the suggested features of the proposed CIIC

The underlying vision of CIIC will be aimed to have a vibrant space for preservation and dissemination of knowledge. The purpose is to make people’s contribution central in global processes through generation, dissemination and sharing of knowledge.

CIIC will try to support Chandigarh in its journey to emerge as an international city with number of knowledge imparting and disseminating institutions. To consolidate and reinforce its capacity to become a knowledge hub, CIIC shall make an effort to, preserve cultural impulse of the north-western region, promote spirit of enquiry to reinforce scientific temper and sustain dialogue. Chandigarh being a modern city with unique architecture will be used as an example to shape and influence process and pattern of urban development in the region in terms of people-centric growth of planned cities etc.

Chandigarh India International Centre will be a non-government institution, non-commercial in nature and carried out its activities in the spirit of public service. Its basic character and predisposition would be to remain non-aligned, non-governmental and non-affiliate to any political, economic or religious formations.

The aims and objectives of the proposed centre include:

  • To develop a place where statesmen, diplomats, policymakers, intellectuals, scientists, jurists, writers, artists and members of civil society meet to initiate the exchange of new ideas and knowledge in the spirit of international cooperation.
  • To promote dialogical tradition of lokayata  through lectures, seminars, workshops and conferencing etc.
  • To create a world class library fully equipped with modern technological facilities. It will have not only printed material, but also video and audio collections.
  • To invite cultural leaders, scholars, scientists and creative artists, who may or may not be members of the society, to exchange of new ideas, knowledge, art, skills and creativity.
  • To undertake, facilitate and provide for the publication of newsletters, research papers, and books, and of a journal for the exposition of cultural patterns and values prevailing in different parts of the world.

सख्त तय समयसीमा के साथ पूर्वाञ्चल एक्सप्रेसस्वे का शिलानियास हुआ आज, 2021 तक होगा तैयार


सरकार ने प्रोजेक्ट के लिए सख्त डेडलाइन तय की है. अनुमान है कि 2021 तक यह प्रोजेक्ट पूरा हो जाएगा


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को आजमगढ़ में 23 हजार करोड़ के पूर्वांचल एक्सप्रेसवे की नींव रखी. 354 किलोमीटर लंबा यह एक्सप्रेसवे लखनऊ से गाजीपुर को जोड़ेगा. एक्सप्रेसवे की वजह से 6 घंटे का रास्ता केवल साढे 4 घंटे का रह जाएगा.

अखिलेश यादव की सरकार में इस एक्सप्रेसवे का नाम समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेस रखा गया था. इसके जरिए 302 किमी लंबे लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे और 165 किमी लंबे यमुना एक्सप्रेसवे से भी जुड़ा जा सकेगा. एक्सप्रेसवे का कुल नेटवर्क 800 किलोमीटर का हो जाएगा.

एक्सप्रेसवे की शुरुआत आजमगढ़ से होगी जोकि समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का क्षेत्र है. हालांकि वाराणसी तक एक्सप्रेसवे को जोड़ने का प्रस्ताव रखा गया है. योगी सरकार ने इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए पंजाब नेशनल बैंक से 12 हजार करोड़ का लोन पारित करा लिया है.

93 फीसदी जमीन खरीदने में खर्च हुए 6500 करोड़ रुपए

यूपी के प्रिंसिपल सेक्रेटरी अवनीश अवस्थी ने बताया कि 6500 करोड़ रुपए 93 फीसदी जमीन को खरीदने में खर्च हुए. 11 जुलाई को राज्य सरकार ने पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के लिए पांच बोलीदाताओं को 340 किलोमीटर के एक्सप्रेसवे के आठ हिस्सों के लिए अनुबंध सौंपकर टेंडर की प्रक्रिया पूरी की.

सरकार ने प्रोजेक्ट के लिए सख्त डेडलाइन तय की है. अनुमान है कि 2021 तक यह प्रोजेक्ट पूरा हो जाएगा. अधिकारियों का कहना है कि वह 24 से 26 महीनों में प्रोजेक्ट को पूरा करने की कोशिश करेंगे.

हालांकि सपा और बीजेपी के बीच इस प्रोजेक्ट का श्रेय लेने की होड़ मची है. सपा इस प्रोजेक्ट से जुड़े फोटो शेयर कर रही है जिसमें 22 दिसंबर 2016 को अखिलेश यादव इस प्रोजेक्ट की नींव रख रहे हैं वहीं क्षेत्रीय पार्टी के नेताओं ने आजमगढ़ में रैली लगाकर इस प्रोजेक्ट पर अपना दावा पेश किया.

वहीं इन्फ्रास्ट्रक्चर और इंडस्ट्री मामलों के मंत्री सताश महाना ने कहा कि 2016 में रखी गई नींव फर्जी थी. उन्होंने दावा किया कि पुरानी सरकार ने इस टेंडर को ऊंचे दामों में पास किया था.

राज्य सभा को मिले 4 मनोनीत सदस्य, बढ़ा भाजपा का आधार


राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोनल मान सिंह, राकेश सिन्हा, राम सकल और रघुनाथ महापात्रा का नाम राज्यसभा के नए सांसद के तौर पर मनोनीत किया है


 

राज्यसभा के लिए राष्ट्रपति ने चार लोगों के नाम को मनोनित किया है. ये चारों लोग अलग-अलग क्षेत्र के हुनरमंद हैं. इनमें राकेश सिन्हा, राम सकल, रघुनाथ महापात्रा और सोनल मान सिंह का नाम शामिल है. संविधान के अनुच्छेद 80 के तहत प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए और प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति ने इन 4 नामों को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है.

आइए जानते हैं इन चारों के बारे में…

राकेश सिन्हा

राकेश सिन्हा दिल्ली यूनिवर्सिटी के मोतीलाल नेहरू कॉलेज में प्रोफेसर हैं और आरएसएस के विचारक हैं. लेकिन राकेश सिन्हा के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1980 में हुई थी. दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ते हुए उन्होंने तय किया कि वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के उम्मीदवार के तौर पर छात्र संघ का चुनाव लड़ेंगे. सिन्हा ने एक अच्छा कैंपेन चलाया लेकिन वो जीत नहीं सके.

हिंदू कॉलेज में पढ़ने वाले कम ही छात्र इस प्रकार की महत्वकांक्षा रखते हैं. सिन्हा जब मैदान में थे बिहारी बनाम लोकल का मुद्दा अपने चरम था. ऐसे में उनका चुनाव लड़ने का निर्णय लेना एक महत्वपूर्ण कदम था.

एक छात्र और राजनीतिक की तरफ झुकाव रखने वाले एक छात्र कार्यकर्ता के रूप में की गई उनकी कड़ी मेहनत का फल आने वाले सालों में उन्हें मिलने लगा. वो राइट विंग बुद्धिजीवियों के सबसे प्रसिद्ध चेहरों में से एक बन गए. ऐसा इसलिए नहीं था कि वे आरएसएस और उनके सहयोगियों को अच्छी तरह से जानते थे और उन्होंने आरएसएस संस्थापक केबी हेडगेवार पर अपना पोस्ट ग्रेजुएशन डिजर्टेशन लिखा था. बल्कि उन्होंने वामपंथी विचारधारा और राजनीतिक को समझने के लिए काफी समय और ऊर्जा खर्च की थी.

वाम दलों पर काफी रिसर्च किया है राकेश सिन्हा ने

राकेश सिन्हा ने हार्डकोर राइट विंगर होते हुए भी अपना एमफिल, नागरिक स्वतंत्रता आंदोलन पर करने को चुना. इसके बाद उन्होंने अपने पीएचडी रिसर्च के लिए सीपीआई (एम) के संगठनात्मक और विचाराधारात्मक परिवर्तन को चुना.

उनको पहली बार तब प्रसिद्धि हासिल हुई जब उन्होंने आरएसएस संस्थापक हेडगेवार पर किताब लिखी. इसे उस समय का हेडगेवार पर पहला प्रमाणिक जीवनी कहा गया. सिन्हा ने एक राइट विंग थिंक टैंक, इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन की भी स्थापना की.

एक समय जब आरएसएस अपने काम और दर्शन के बारे में बहुत चुनिंदा या लगभग गुप्त रहता था. यहां तक कि सार्वजनिक मंच पर खुद को बचाने में भी, खासकर समाचार चैनलों पर, तब सिन्हा ने संघ परिवार का अघोषित प्रवक्ता बनने की पहल की.

सिन्हा ने अपने दोस्तों के बीच कभी भी अपनी आकांक्षाओं को गुप्त नहीं रखा. वह खुले तौर पर संसद के ऊपरी सदन में एक सांसद के तौर पर जाने की अपनी बात को कहते थे और इस मंच से बहस करने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते थे.

सिन्हा को कई संस्थानों का नेतृत्व करने का प्रस्ताव मिला लेकिन उन्होंने इसे सवीकार नहीं किया. आज सिन्हा यह कह सकते हैं उन्हें जो चाहिए था, वह मिल गया है. इसके लिए वे अपने विचारधारात्मक परिवार का धन्यवाद भी कह सकते हैं.

राम सकल

इनके अलावा, उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले राम सकल किसान नेता हैं. दलित समुदाय के कल्याण और बेहतरी के लिए उन्होंने कई काम किए हैं. वो पूर्व में लगातार 3 बार रॉबर्टसगंज से बीजपी के सांसद भी रह चुके हैं. लेकिन 2004 में उन्हें टिकट नहीं मिला. आरएसएस से मजबूत संबंध रखने वाले राम सकल संघ के जिला प्रचारक थे. टिकट नहीं मिलने के बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया. अब जब उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनित किया गया है, तो एक बार फिर भारतीय संसद में जाने के लिए तैयार हैं.

रघुनाथ महापात्रा

रघुनाथ महापात्रा अद्भुत प्रतिभा के धनी हैं. उनकी शिल्पकला का जादू देश में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी माना जाता है. साल 2013 में उन्हें पद्म विभूषण से नवाज़ा गया था. इससे पहले उन्हें पद्म भूषण, शिल्प गुरु अवार्ड जैसे कई समान मिल चुके हैं.

अब तक उन्होंने लगभग 2000 छात्रों को ट्रेनिंग दी है. देश की पारंपरिक शिल्प कला को सहेजने में उनका बहुत बड़ा योगदान है. उनकी कला की खूबसूरती पुरी के जगन्नाथ मंदिर में देखने को मिलती है. उनके कई कामों को देश और विदेश में खूब ख्याति मिली. इसमें से एक संसद के सेंट्रल हॉल में लगी भगवान सूर्य की 6 फीट लंबी प्रतिमा है. उनके द्वारा बनाए गए लकड़ी के बुद्धा को पेरिस के बुद्धा मंदिर में रखा गया है.

सोनल मानसिंह

ओडिसी डांस के प्रमुख प्रदर्शकों में से एक सोनल मानसिंह प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, विचारक, शोधकर्ता, वक्ता, कोरियोग्राफर और शिक्षिका हैं. सोनल मानसिंह ओडिसी के अलावा, भरतनाट्यम में भी माहिर हैं. उन्होंने कई भारतीय पौराणिक कथाओं के माध्यम से कई नृत्य कलाएं बनाई हैं. सोनल मानसिंह को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. इनको 1992 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया और वह सबसे कम उम्र में पद्म भूषण पाने वाली महिला हैं.