देश की सवा सौ करोड़ जनता की प्रतिनिधि लोकसभा में 27वें अविश्वास प्रस्ताव पर जो बहस हुई वह अधिकतर पुरानी बातों का दोहराव बन कर रह गई
अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में 20 जुलाई को पक्ष और विपक्ष के बीच हुई बहस में सरकारी कामकाज अथवा नेताओं की कार्यशैली पर तो जुमलेबाजी होनी प्रत्याशित थी मगर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एनडीए सरकार के विरुद्ध असरदार भाषण देने के बाद अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘जादू की झप्पी’ देकर सदन में नई परिपाटी डाल दी. यह बात दीगर है कि संसदीय विमर्श में नई लकीर डालने की राहुल की यह स्वत:स्फूर्त कोशिश राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की शिकार हो गई.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और बीजेपी के अन्य नेताओं ने जहां राहुल की आलोचना की वहीं कांग्रेसियों ने उनकी सराहना की. यह बात दीगर है कि राहुल ने अपने चीफ व्हिप ज्योतिरादित्य सिंधिया से बातचीत के दौरान जो ‘आंख मारने’ का इशारा किया उससे भी उनकी पहल हल्की पड़ गई. हालांकि ऐसा इशारा राहुल एकाध बार अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी कर चुके हैं. लेकिन संसदीय विमर्श के पुराने जानकारों की राय में लोकसभा में बहस का स्तर नीतिगत अथवा प्रखरता पूर्ण भाषणों के बजाए निरंतर व्यक्तिगत और दलगत आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित होता जा रहा है.
देश की सवा सौ करोड़ जनता की प्रतिनिधि लोकसभा में 27वें अविश्वास प्रस्ताव पर जो बहस हुई वह अधिकतर पुरानी बातों का दोहराव बन कर रह गई. साथ ही एनडीए सरकार ने 199 मतों के भारी अंतर से अविश्वास प्रस्ताव को खारिज भी कर दिया. इससे 15 साल पहले 2003 में वाजपेयी सरकार के खिलाफ पेश हुए अविश्वास प्रस्ताव में विपक्ष का स्कोर 186 रहा था जो शुक्रवार के 126 के उसके स्कोर से कहीं बेहतर था.
शुक्रवार की बहस में नई बात बस कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा अपने भाषण में राफेल लड़ाकू विमानों के खरीद समझौते पर फ्रांस के राष्ट्रपति से अपनी बातचीत के हवाले से रक्षा मंत्री पर ‘असत्य’ बोलने का आरोप ही रहा. हालांकि रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने राहुल के आरोप का भारत और फ्रांस की सरकार के बीच राफेल खरीद पर 2008 में हुए गुप्तता संबंधी समझौते की प्रति दिखाकर तत्काल प्रतिवाद भी कर दिया.
दिन भर चली बहस के दौरान राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी के अलावा तेलगु देशम पार्टी के जयदेव गाला, तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय, नेशनल कांफ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला, सीपीएम के मोहम्मद सलीम, एमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी आदि नेताओं ने भी अपने तर्कों से मोदी सरकार की खामियां गिनाने और सदन को और उसके बाहर अपने वोट बैंक को प्रभावित करने की भरपूर कोशिश की.
इस अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस ने हालांकि मोदी से पहले तक देश की सबसे विवादित प्रधानमंत्री रही इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्ष के ऐसे ही प्रस्तावों पर हुए भाषणों को याद करा दिया. राहुल सहित विपक्षी नेताओं ने जैसे प्रधानमंत्री मोदी पर देश में नफरत फैलाने, मनमानी करने और अपने वादे पूरे करने में कोताही का आरोप लगाया वैसे ही आरोप इंदिरा गांधी पर भी तत्कालीन विपक्षी नेता लगाते थे. उन पर सबसे बड़ा आरोप तो ‘गरीबी हटाओ’ के नारे पर अमल में कोताही का लगता था. उसके अलावा तानाशाही, संजय गांधी के सरकार में अनधिकृत दखल और उनकी मारुति कार परियोजना सहित अनेक अन्य कथित घोटालों के आरोप भी इंदिरा गांधी को झेलने पड़ते थे.
इंदिरा के खिलाफ मोर्चा संभालने वालों में राम मनोहर लोहिया, एन जी गोरे, अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नांडीज, ज्योतिर्मय बसु, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, मधु लिमये, मधु दंडवते, पीलू मोदी, अशोक मेहता, चंद्रशेखर, रामधन आदि नेता प्रमुख रहे. लोहिया ने ही इंदिरा गांधी को सदन में ‘गूंगी गुड़िया’ कह कर उनकी कमियां गिनाई थीं. इसकी वजह यह थी कि 1966 में इंदिरा गांधी को जब कांग्रेसी दिग्गजों के सिंडीकेट ने प्रधानमंत्री चुना तो सदन में बोलने के समय घबराहट के मारे उनके हाथ कांपते थे और जुबान तालू से चिपक जाती थी. अपने सामने लोहिया, वाजपेयी, ज्योतिर्मय बसु, एन जी गोरे, अशोक मेहता आदि जैसे कद्दावर विपक्षी नेताओं को देख कर संसदीय अनुभव के लिहाज से नौसिखिया इंदिरा के लिए ऐसा होना शायद स्वाभाविक भी था. फिर भी बार—बार कुल 15 अविश्वास प्रस्ताव झेलने वाली इंदिरा गांधी की सरकार एक बार नहीं गिरी.
गौरवशाली संसदीय इतिहास
गनीमत यह रही कि इंदिरा गांधी के समय तक पक्ष और विपक्ष में ऐसे नेता मौजूद थे जो विरोधियों की निजी कमियों के बजाए अधिकतर नीतिगत मुद्दों पर सदन में अपनी बात रखते थे जिनमें वैचारिक और विद्वत्तापूर्ण तत्व भी होते थे. भारत की संसद का इतिहास यूं भी बेहद गौरवशाली रहा है. हमारी संसद में डॉ बी आर अंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, महावीर त्यागी, डॉ सुशीला नैयर, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, आर आर दिवाकर, आचार्य जे बी कृपलानी, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, सी डी देशमुख, अशोक सेन, भूपेश गुप्त, ज्योतिर्मय बसु, हीरेन मुखर्जी, अशोक मेहता, बलराज मधोक, पीलू मोदी, राजनारायण, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, हरेकृष्ण महताब, बीजू पटनायक, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ मुरली मनोहर जोशी जैसे प्रखर प्रवक्ता रहे हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था. बाद में वाजपेयी जब खुद प्रधानमंत्री बने तो उन्हें भी एक बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा. इससे पहले दो बार विश्वास प्रस्ताव में वो सरकार नहीं बचा पाए लेकिन 2003 में विपक्ष को उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव में निर्णायक मात दे दी थी. इस अविश्वास प्रस्ताव के जवाब में उन्होंने विपक्षी कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी के भाषण में अपनी सरकार की नाकामी गिनाने वाले जुमलों पर कड़ा एतराज जताया था. उन्होंने कहा, ‘जब मैंने श्रीमती सोनिया जी का भाषण पढ़ा, तो दंग रह गया. उन्होंने एक ही पैरा में सारे शब्द इकट्ठे कर दिए और बीजेपी की अगुआई वाली सरकार को नाकाबिल, संवेदनहीन, गैर-जिम्मेदार और बड़ी ढिठाई से भ्रष्ट ठहरा दिया.’ उन्होंने पूछा था, ‘राजनीति में जो कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं, उनके बारे में आपका ये मूल्यांकन है. मतभेदों को प्रकट करने का ये कैसा तरीका है.’
UNDATED FILE PHOTO: India’s Prime minister Atal Bihari Vajpayee and President of Congress(I) Sonia Gandhi speak with each other during a function in New Delhi on April 29,1998. (photo by T.C.Malhotra)
उन्होंने सोनिया गांधी के सरकार पर जनादेश को धोखा देने के आरोप पर भी एतराज किया था. उन्होंने पूछा था कि आपको जज किसने बनाया? उन्होंने कहा था कि सभ्य तरीके से लड़िए, इस देश की मर्यादाओं का ध्यान रखिए. गाली से देश की समस्या का समाधान नहीं होगा.
इस मायने में अलग रहा अविश्वास प्रस्ताव पर बहस
बहरहाल शुक्रवार को अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान सरकार की ओर से सबसे दमदार भाषण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रहा जिन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष और अन्य विपक्षी नेताओं द्वारा अपनी आलोचना में कहे गए एक-एक मुद्दे का जी भर कर प्रतिवाद किया. डेढ़ घंटे लंबा उनका भाषण इस मायने में अलग रहा कि उसकी अधिकतर इबारत उन्होंने पढ़ कर बोली. साथ ही राहुल गांधी द्वारा अपने गले लगने को भी उन्होंने नहीं बख्शा. उन्होंने पूछा कि कांग्रेस के नेता को यह कुर्सी हथियाने की इतनी भी क्या जल्दी है? उनके अनुसार देश के 125 करोड़ लोग ही यह तय करेंगे कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर कौन बैठेगा?
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने राहुल की ‘झप्पी’ को ‘संसद में चिपको आंदोलन की शुरुआत’ बताया. लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा, ‘सदन की अपनी गरिमा है और वे प्रधानमंत्री है. हमें सदन की गरिमा का पालन करना चाहिए. मुझे लगा कि कोई नाटक हो रहा है.’ हालांकि कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने राहुल गांधी के भाषण और उनकी ‘झप्पी’ को नई शुरुआत बताया.
तेलगु देशम पार्टी के सांसद जयदेव गाला ने मोदी सरकार पर आंध्र प्रदेश से अन्याय का आरोप लगाया. उनका कहना था कि हैदराबाद का विकास संयुकत आंध्र प्रदेश की जनता के पैसे से हुआ था और उसके तेलंगाना में जाने की भरपाई केंद्र को करनी थी मगर मोदी सरकार मुकर गई. उन्होंने कहा कि खनिज आदि संसाधनों के आंध्र के हाथ से निकल जाने का भी राज्य की भारी नुकसान हुआ है. उन्होंने अपने भाषण में भावुक होते हुए मोदी सरकार को आंध्र की जनता का श्राप लगने का जुमला भी बोल डाला जिससे प्रधानमंत्री बेहद आहत दिखे.
प्रधानमंत्री मोदी ने हालांकि गाला के आरोपों का आंकड़ों और पुरानी घटनाओं के जिक्र के साथ जवाब देने की पूरी कोशिश की. अब देखना यही है कि राजीव गांधी द्वारा आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री टी अंजैया के अपमान को तेलगु कौम की तौहीन के रूप में भुनाकर एनटी रामाराव जैसे नौसिखिया सत्ता हासिल करने में जिस प्रकार कामयाब रहे थे वैसे ही उनके दामाद ओर चतुर नेता चंद्रबाबू नायडू क्या विपक्षी गठजोड़ के चाणक्य बन कर मोदी को शिकस्त देने में कामयाब रहेंगे?jumlebaazi