अनुच्छेद 35A : संविधान का अदृश्य हिस्सा किताब में नहीं किन्तु अमल में है.

राजविरेन्द्र वशिष्ठ


संविधान की किताबों में न मिलने वाला अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर की विधान सभा को यह अधिकार देता है कि वह ‘स्थायी नागरिक’ की परिभाषा तय कर सके


बँटवारे की  वजह से बाजपुर से इस  ब्राह्मण परिवार  को  भारत की सरजमीं पर आना पड़ा, आज इस बात को 70 साल हो गए, वह शरणार्थी ही हैं। उन्हे न तो मताधिकार प्राप्त है, न ही उन्हे बैंक अथवा कोई सरकारी संस्थान से आर्थिक लाभ अथवा सहायता मिल सकती है।  छजजु राम वशिष्ठ जो कि इस परिवार के  सबसे बड़े पुत्र हैं और रिश्ते मे मेरे भाई  जो कि घाटी में करोड़ों के मालिक हैं  जो कि किसी कारणवश चंडीगढ़ आए हुये हैं ने बताया,अगर उनकी पत्नी  जम्मू की न होतीं तो वह यह मुकाम हासिल न कर पाते। उनका व्यापार आज विदेशों तक में फैला हुआ है, सिंगापुर मलेशिया ओर दुबई जैसी जगहों पर उनके यहाँ से बासमती और सोया के उत्पाद जाते हैं, मलेशिया में उनका ट्रांसपोर्ट का बिज़नस है जो उनका बड़ा बेटा देख रहा है, भारत में पैदा होने के बावजूद भी वह स्वयं को भारतीय नहीं कह सकता, उसका विवाह भी जम्मू की ही एक युवती से हुआ है तभी वह यहाँ पर उसके नाम पर व्यवसाय आरंभ कर सका।

राज्य को इस परिवार की संवैधानिक स्थिति से कोई मतलब नहीं, परंतु इस परिवार द्वारा कमाई गयी रकम से अपना हिस्सा करों के रूप में चाहिए, इतना ही नहीं जो धन यह परिवार विदेशों में कमा रहा है उसमें भी राज्य का हिस्सा चाहिए। मेरे पूछने पर मोंटी (घर का नाम) को मैंने पूछा की वह विदेश में क्यों नहीं बस जाता, तो उसने जवाब दिया की किस तरह वह विदेश में बस सकता है जब की उसके पास अपने देश ही की नागरिकता नहीं है, वह स्पेशल पासपोर्ट पर प्रवास करता है।

चाहे देश हो या विदेश ये लोग भारतीय संविधान और  राज्य के रवैया इतना सौतेला रहा है कि इन लोगों को देश में दूसरे  या तीसरे दर्जे की तो बात खैर क्या ही कहें इनको तो कोई दर्जा ही प्राप्त नहीं है

कहा जाता है  कि 1952 में तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू की शह पर शेख अब्दुल्लाह ने चीन की पहाड़ियों से कुछ कबाईलियों को भारत बुला कर बसाया था, जिसका मकसद घाटी में एक अराजकता का माहौल बनाना और घाटी में हिन्दू मुसलानों की संख्या में संतुलन बिगाड़ना था। आज जो भी यहाँ के हालात हों उससे बेअसर इस परिवार की व्यथा है।

जब 47 से शरणार्थी बन रह रहे इन परिवारों को आज तक न्याय नहीं मिला तो काश्मीरी पंडितों को तो आस ही छोड़ देनी चाहिए

जून 1975 में लगे आपातकाल को भारतीय गणतंत्र का सबसे बुरा दौर माना जाता है. इस दौरान नागरिक अधिकारों को ही नहीं बल्कि भारतीय न्यायपालिका और संविधान तक को राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ा दिया गया था. ऐसे कई संशोधन इस दौर में किये गए जिन्हें आज तक संविधान के साथ हुए सबसे बड़े खिलवाड़ के रूप में देखा जाता है. लेकिन क्या इस आपातकाल से लगभग बीस साल पहले भी संविधान के साथ ऐसा ही एक खिलवाड़ हुआ था? ‘जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र’ की मानें तो 1954 में एक ऐसा ‘संवैधानिक धोखा’ किया गया था जिसकी कीमत आज तक लाखों लोगों को चुकानी पड़ रही है.

1947 में हुए बंटवारे के दौरान लाखों लोग शरणार्थी बनकर भारत आए थे. ये लोग देश के कई हिस्सों में बसे और आज उन्हीं का एक हिस्सा बन चुके हैं. दिल्ली, मुंबई, सूरत या जहां कहीं भी ये लोग बसे, आज वहीं के स्थायी निवासी कहलाने लगे हैं. लेकिन जम्मू-कश्मीर में स्थिति ऐसी नहीं है. यहां आज भी कई दशक पहले बसे लोगों की चौथी-पांचवी पीढ़ी शरणार्थी ही कहलाती है और तमाम मौलिक अधिकारों से वंचित है.

कई दशक पहले बसे इन लोगों की चौथी-पांचवी पीढ़ी आज भी शरणार्थी ही कहलाती है और तमाम मौलिक अधिकारों से वंचित है

एक आंकड़े के अनुसार, 1947 में 5764 परिवार पश्चिमी पकिस्तान से आकर जम्मू में बसे थे. इन हिंदू परिवारों में लगभग 80 प्रतिशत दलित थे. यशपाल भारती भी ऐसे ही एक परिवार से हैं. वे बताते हैं, ‘हमारे दादा बंटवारे के दौरान यहां आए थे. आज हमारी चौथी पीढी यहां रह रही है. आज भी हमें न तो यहां होने वाले चुनावों में वोट डालने का अधिकार है, न सरकारी नौकरी पाने का और न ही सरकारी कॉलेजों में दाखिले का.’

यह स्थिति सिर्फ पश्चिमी पकिस्तान से आए इन हजारों परिवारों की ही नहीं बल्कि लाखों अन्य लोगों की भी है. इनमें गोरखा समुदाय के वे लोग भी शामिल हैं जो बीते कई सालों से जम्मू-कश्मीर में रह तो रहे हैं. इनसे भी बुरी स्थिति वाल्मीकि समुदाय के उन लोगों की है जो 1957 में यहां आकर बस गए थे. उस समय इस समुदाय के करीब 200 परिवारों को पंजाब से जम्मू कश्मीर बुलाया गया था. कैबिनेट के एक फैसले के अनुसार इन्हें विशेष तौर से सफाई कर्मचारी के तौर पर नियुक्त करने के लिए यहां लाया गया था. बीते 60 सालों से ये लोग यहां सफाई का काम कर रहे हैं. लेकिन इन्हें आज भी जम्मू-कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं माना जाता.

ऐसे ही एक वाल्मीकि परिवार के सदस्य मंगत राम बताते हैं, ‘हमारे बच्चों को सरकारी व्यावसायिक संस्थानों में दाखिला नहीं दिया जाता. किसी तरह अगर कोई बच्चा किसी निजी संस्थान या बाहर से पढ़ भी जाए तो यहां उन्हें सिर्फ सफाई कर्मचारी की ही नौकरी मिल सकती है.’

यशपाल भारती और मंगत राम जैसे जम्मू कश्मीर में रहने वाले लाखों लोग भारत के नागरिक तो हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर राज्य इन्हें अपना नागरिक नहीं मानता. इसलिए ये लोग लोकसभा के चुनावों में तो वोट डाल सकते हैं लेकिन जम्मू कश्मीर में पंचायत से लेकर विधान सभा तक किसी भी चुनाव में इन्हें वोट डालने का अधिकार नहीं. ‘ये लोग भारत के प्रधानमंत्री तो बन सकते हैं लेकिन जिस राज्य में ये कई सालों से रह रहे हैं वहां के ग्राम प्रधान भी नहीं बन सकते.’ सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता जगदीप धनकड़ बताते हैं, ‘इनकी यह स्थिति एक संवैधानिक धोखे के कारण हुई है.’

ये लोग लोकसभा के चुनावों में तो वोट डाल सकते हैं लेकिन जम्मू कश्मीर में पंचायत से लेकर विधान सभा तक किसी भी चुनाव में इन्हें वोट डालने का अधिकार नहीं

जगदीप धनकड़ उसी ‘संवैधानिक धोखे’ की बात कर रहे हैं जिसका जिक्र इस लेख की शुरुआत में किया गया था. जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र के निदेशक आशुतोष भटनागर बताते हैं, ’14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा एक आदेश पारित किया गया था. इस आदेश के जरिये भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35A जोड़ दिया गया. यही आज लाखों लोगों के लिए अभिशाप बन चुका है.’

‘अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर की विधान सभा को यह अधिकार देता है कि वह ‘स्थायी नागरिक’ की परिभाषा तय कर सके और उन्हें चिन्हित कर विभिन्न विशेषाधिकार भी दे सके.’ आशुतोष भटनागर के मुताबिक ‘यही अनुच्छेद परोक्ष रूप से जम्मू और कश्मीर की विधान सभा को, लाखों लोगों को शरणार्थी मानकर हाशिये पर धकेल देने का अधिकार भी दे देता है.’

आशुतोष भटनागर जिस अनुच्छेद 35A (कैपिटल ए) का जिक्र करते हैं, वह संविधान की किसी भी किताब में नहीं मिलता. हालांकि संविधान में अनुच्छेद 35a (स्मॉल ए) जरूर है, लेकिन इसका जम्मू-कश्मीर से कोई सीधा संबंध नहीं है. जगदीप धनकड़ बताते हैं, ‘भारतीय संविधान में आज तक जितने भी संशोधन हुए हैं, सबका जिक्र संविधान की किताबों में होता है. लेकिन 35A कहीं भी नज़र नहीं आता. दरअसल इसे संविधान के मुख्य भाग में नहीं बल्कि परिशिष्ट (अपेंडिक्स) में शामिल किया गया है. यह चालाकी इसलिए की गई ताकि लोगों को इसकी कम से कम जानकारी हो.’ वे आगे बताते हैं, ‘मुझसे जब किसी ने पहली बार अनुच्छेद 35A के बारे में पूछा तो मैंने कहा कि ऐसा कोई अनुच्छेद भारतीय संविधान में मौजूद ही नहीं है. कई साल की वकालत के बावजूद भी मुझे इसकी जानकारी नहीं थी.’

भारतीय संविधान की बहुचर्चित धारा 370 जम्मू-कश्मीर को कुछ विशेष अधिकार देती है. 1954 के जिस आदेश से अनुच्छेद 35A को संविधान में जोड़ा गया था, वह आदेश भी अनुच्छेद 370 की उपधारा (1) के अंतर्गत ही राष्ट्रपति द्वारा पारित किया गया था. लेकिन आशुतोष कहते हैं, ‘भारतीय संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ देना सीधे-सीधे संविधान को संशोधित करना है. यह अधिकार सिर्फ भारतीय संसद को है. इसलिए 1954 का राष्ट्रपति का आदेश पूरी तरह से असंवैधानिक है.’

अनुच्छेद 35A (कैपिटल ए) संविधान की किसी किताब में नहीं मिलता. हालांकि संविधान में अनुच्छेद 35a (स्मॉल ए) जरूर है, लेकिन इसका जम्मू-कश्मीर से कोई सीधा संबंध नहीं

अनुच्छेद 35A की संवैधानिक स्थिति क्या है? यह अनुच्छेद भारतीय संविधान का हिस्सा है या नहीं? क्या राष्ट्रपति के एक आदेश से इस अनुच्छेद को संविधान में जोड़ देना अनुच्छेद 370 का दुरूपयोग करना है? इन तमाम सवालों के जवाब तलाशने के लिए जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र जल्द ही अनुच्छेद 35A को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने की बात कर रहा है.

वैसे अनुच्छेद 35A से जुड़े कुछ सवाल और भी हैं. यदि अनुच्छेद 35A असंवैधानिक है तो सर्वोच्च न्यायालय ने 1954 के बाद से आज तक कभी भी इसे असंवैधानिक घोषित क्यों नहीं किया? यदि यह भी मान लिया जाए कि 1954 में नेहरु सरकार ने राजनीतिक कारणों से इस अनुच्छेद को संविधान में शामिल किया था तो फिर किसी भी गैर-कांग्रेसी सरकार ने इसे समाप्त क्यों नहीं किया? इसके जवाब में इस मामले को उठाने वाले लोग मानते हैं कि ज्यादातर सरकारों को इसके बारे में पता ही नहीं था शायद इसलिए ऐसा नहीं किया गया होगा.

अनुच्छेद 35A की सही-सही जानकारी आज कई दिग्गज अधिवक्ताओं को भी नहीं है. जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र की याचिका के बाद इसकी स्थिति शायद कुछ ज्यादा साफ़ हो सके. लेकिन यशपाल भारती और मंगत राम जैसे लाखों लोगों की स्थिति तो आज भी सबके सामने है. पिछले कई सालों से इन्हें इनके अधिकारों से वंचित रखा गया है. यशपाल कहते हैं, ‘कश्मीर में अलगाववादियों को भी हमसे ज्यादा अधिकार मिले हुए हैं, वहां फौज द्वारा आतंकवादियों को मारने पर भी मानवाधिकार हनन की बातें उठने लगती हैं. वहीं हम जैसे लाखों लोगों के मानवाधिकारों का हनन पिछले कई दशकों से हो रहा है. लेकिन देश को या तो इसकी जानकारी ही नहीं है या सबकुछ जानकर भी हमारे अधिकारों की बात कोई नहीं करता.’

आशुतोष भटनागर कहते हैं, ‘अनुच्छेद 35A दरअसल अनुच्छेद 370 से ही जुड़ा है. और अनुच्छेद 370 एक ऐसा विषय है जिससे न्यायालय तक बचने की कोशिश करता है. यही कारण है कि इस पर आज तक स्थिति साफ़ नहीं हो सकी है.’ अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर को कुछ विशेषाधिकार देता है. लेकिन कुछ लोगों को विशेषाधिकार देने वाला यह अनुच्छेद क्या कुछ अन्य लोगों के मानवाधिकार तक छीन रहा है? यशपाल भारती और मंगत राम जैसे लाखों लोगों की स्थिति तो यही बताती है.

Shortage of over 9,000 officers in Indian Armed Forces


The Indian Army alone is short of 7,298 officers, Minister of State for Defence Subhash Bhamre said in a written reply in the Lok Sabha.


The Indian Army, the Navy and Air Force are facing a shortage of more than 9,000 officers, the government said on Wednesday.

The Indian Army alone is short of 7,298 officers, Minister of State for Defence Subhash Bhamre said in a written reply in the Lok Sabha.

He said the Army has an authorised strength of 49,933 officers but as on January 1, 2018 it had only 42,635.

The Indian Army is considered the second largest army in the world with 1.4 million officers and others, according to the World Atlas 2018 report.

The Indian Navy has a sanctioned strength of 11,352 officers but has only 9,746 – a shortage of 1,606, according to data as on July 1, 2018.

Similarly, the Air Force’s authorised strength of officers is 12,584 but it has only 12,392 and is short of 192.

The minister said recruitment in the Armed Forces was a continuous process and the government was taking a number of measures to reduce the shortages.

“These include sustained image projection, participation in career fairs and exhibitions and publicity campaign to create awareness among the youth on the advantages of taking up a challenging and satisfying career.”

The government, he said, had as well taken various steps to make Armed Forces’ jobs attractive including improvement in promotion prospects.

“To attract youth including the rural youth to join the Armed Forces various steps are taken such as giving wide publicity to recruitment in the Armed Forces through advertisement in print and audio-visual media.

“Recruitment of Personnel Below Officers Ranks (PBORs) in the Army is carried out through open rally system being conducted regularly throughout the country. Efforts are made to cover the entire country including remote and tribal areas.”

In the Navy, the minister said, regular recruitment drives are also undertaken for recruitment of sailors.

Recruitment of Airmen in the Air Force is done on all India basis through scheduled selection tests as recruitment rallies are also conducted in different parts of the country including tribal areas.

Bill to restore arrest provision in SC/ST act gets cabinet nod


The preamble of the amendment says that the decision to arrest or not to arrest cannot be taken away from the investigating officer


Under attack from the opposition, Dalit groups and its allies, the Modi government on Wednesday decided to restore a provision of the SC/ST Act allowing the arrest of an accused without preliminary enquiry or prior approval that was recently struck down by the Supreme Court.

The Scheduled Castes and the Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Amendment Bill, 2018 to amend the original law of 1989 was approved by the Union Cabinet and is likely to be introduced in the ongoing monsoon session of Parliament to make it a law.

The preamble of the amendment says that the decision to arrest or not to arrest cannot be taken away from the investigating officer, a power given under the criminal procedure code in which there is no provision for a preliminary inquiry.

Under the new provision, no preliminary inquiry will be required for registering an FIR against an accused and arrest of a person accused under the SC/ST act and this will not require any approval. The provision of anticipatory bail shall not be available to an accused notwithstanding any court judgment.

The cabinet decision was made public by Union Consumer Affairs Minister Ram Vilas Paswan, whose party Lok Janashakti Party (LJP) had virtually set an ultimatum of August 9 for making changes in the law over which Dalit organisations have threatened to hold protests on August 9.

However, at a media briefing on the cabinet decisions, Law Minister Ravi Shankar Prasad refused to go into details of the proposed bill, saying Parliament was in session and parliamentary traditions didn’t allow him to speak over policy matters.

He, however, asserted that the government would go to any extent to protect the interests of Scheduled Castes and Scheduled Tribes.

The apex court on March 20 struck down the provision that made an immediate arrest of an accused under the 1989 law mandatory. The court said any arrest would be made only after a preliminary probe and prior approval of by an officer of the rank of Deputy Superintendent of Police.

The controversial judgment infuriated various Dalit groups, triggering a nationwide agitation. Some NDA Dalit MPs and leaders spoke openly against the judgment which forced the government to file for a review in the top court.

The opposition alleged the BJP-led government was anti-Dalit and had not done enough to get the court order reviewed.

Paswan, the LJP chief, put the government on notice, saying the party would launch a protest if the law was not amended. Another Union minister, Ramdas Athawale, also demanded that a bill is brought in to restore the original provisions of the Act.

The row deepened further when the government appointed Justice A.K. Goel, who pronounced the March 20 judgment in the SC/ST Act case, as the chairman of the National Green Tribunal. Paswan had also demanded his removal. Asked about Justice Goel’s removal, Paswan said the issue is settled with the proposed amendment.

He said it was a historic decision taken by Prime Minister Narendra Modi.

“It was a challenge for us. People’s sentiments were negative. There were two options. Either to bring an ordinance to restore the orginal Aact  or to bring a new Bill.

“The Bill is approved by the Cabinet. We will introduce the bill in Parliament as soon as possible. We expect it will be passed with consensus…Whoever opposes will be vanquished.”

“I am sad that no one from the opposition discusses the issue. (The Bill) is a slap on the face of those who have been criticising the Modi government as being anti-Dalit.”

लापता

इस बच्चे का नाम आशीष है उम्र 15 वर्ष निवासी 1393A सेक्टर 39B चंडीगढ़ कल शाम को (31.7.2018) घर से हरे रंग की स्पोर्ट्स साईकल पर खेलने गया था लेकिन घर वापिस नहीं पहुंचा। अगर किसी को ये बच्चा मिलता है तो जल्द से जल्द इसके पिता श्री राजपाल जो कि हरियाणा विधान सभा में कार्यरत है मोo 9888098899 को तुरंत सूचित करें। इस सम्बन्ध में रिपोर्ट सेक्टर 39 थाना में भी दर्ज करवा दी गई है आप इस मैसेज को आगे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें
धन्यावाद

सरकार ने कलेजियम को जजों की भर्ती में भाई भतीजावाद के सबूत दिये


इलाहाबाद हाईकोर्ट कॉलेजियम द्वारा भेजी गई 33 वकीलों की सूची को सरकार ने अपनी जुटाई गहन जानकारियों के साथ सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को भेजा है. इसमें इन वकीलों की योग्यता, न्याय बिरादरी में उनकी निजी और पेशवर छवि के अलावा उनकी पूरी साख के बारे में बताया गया है


जजों की नियुक्ति के प्रस्ताव में परिवारवाद (नेपोटिज्म) को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को आईना दिखाया है. केंद्र ने पहली बार इलाहाबाद हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए भेजे गए 33 वकीलों के नामों के अनुशंसा (सिफारिश) में शामिल कम से कम 11 के वर्तमान और रिटायर्ड हाईकोर्ट के जजों और सुप्रीम कोर्ट के जजों के साथ संबंधों (भाई-भतीजावाद) का जिक्र किया है.

एक राष्ट्रीय दैनिक में छपी खबर के अनुसार सरकार ने फरवरी में इलाहाबाद हाईकोर्ट कॉलेजियम की तरफ से दी गई 33 वकीलों की सूची को अपनी जुटाई गहन जानकारियों के साथ सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को भेजा है. इसमें इन वकीलों की योग्यता, न्याय बिरादरी में उनकी निजी और पेशवर छवि के अलावा उनकी पूरी साख जैसे जांच निष्कर्षों के बारे में कोलेजियम को बताया गया है.

हालांकि सरकार ने एक अनूठा कदम उठाते हुए इस बार कई उम्मीदवारों के वर्तमान और रिटायर जजों के साथ संबंधों को भी अपनी जुटाई जानकारी में शामिल किया है. इसके पीछे केंद्र का उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के इस बारे में फैसला लेते वक्त ऐसे सभी सिफारिशों को दरकिनार करना है. और काबिल (सक्षम) वकीलों को प्रस्तावना में बराबर का मौका दिलाना है.

दो वर्ष पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट की तरफ से ऐसी ही एक अनुशंसा की गई थी. उस समय हाईकोर्ट कॉलेजियम ने 30 वकीलों के नाम का प्रस्ताव भेजा था. जिसमें से तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) टीएस ठाकुर ने 11 वकीलों के नाम खारिज कर दिए थे, और सरकार से केवल 19 के हाईकोर्ट के जज के तौर पर नियुक्ति की सिफारिश की थी. 2016 की उस लिस्ट में भी जजों और नेताओं के सगे-संबंधी शामिल थे.

इलाहाबाद HC कॉलेजियम की भेजी लिस्ट में परिवारवाद का था बोलबाला

एक राष्ट्रीय अखबार के हवाले से यह खबर छापी थी कि इलाहाबाद हाईकोर्ट कॉलेजियम की भेजी गई लिस्ट में सुप्रीम कोर्ट के एक वर्तमान जज के साले, एक अन्य जज के कजिन (भाई) के अलावा सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट के ही कई पूर्व जजों के सगे-संबंधी के भी नाम इसमें शामिल थे. तब अखबार ने इन नामों को उजागर नहीं किया था. इसकी वजह थी कि सरकार को इनके इतिहास (बैकग्राउंड) के बारे में पड़ताल करना बाकी था.

कुल मिलाकर कहें तो, 33 वकीलों की इस लिस्ट में कम से कम 11 ऐसे हैं जिनका संबंध वर्तमान या रिटायर्ड जजों से है. इसके अलावा लिस्ट में शामिल एक वरिष्ठ वकील के बारे में कहा जाता है कि वो दिल्ली के एक बड़े नेता की पत्नी के कथित लॉ पार्टनर हैं.

दिलचस्प बात है कि गहन पड़ताल के बाद सरकार ने इन 33 अनुशंसाओं में से केवल 11-12 वकीलों के ही देश के इस सबसे बड़े हाईकोर्ट का जज बनने के लायक पाया. सूत्रों के अनुसार अनुशंसा किए गए हर उम्मीदवार की काबिलियत पर काफी बारीकी से जांच की गई थी.

गोगोई की बिसात पर भाजपा की मात


ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. इस मुद्दे पर विपक्ष उनके पीछे खड़ा हुआ है


एनआरसी को लेकर हंगामा जारी है. विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों ने इसे राजनीतिक मुद्दा बना लिया है. संसद में भी इस मसले को लेकर बवाल चल रहा है. दोनों पक्ष इस मसले को तूल दे रहे हैं. विपक्ष की तरफ से लोकसभा में दो स्थगन प्रस्ताव भी दिया गया है. एक कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी की तरफ से दूसरा टीएमसी के सौगत राय की तरफ से. वहीं टीएमसी की अध्यक्ष के दिल्ली दौरे से इस मामले में और भी राजनीतिक उबाल आ गया है. ममता बनर्जी ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की है, वहीं बीजेपी के दो बागी नेताओं के साथ इस पूरे मसले पर राय मशविरा कर रही हैं, जिसमें यशंवत सिन्हा और राम जेठमलानी शामिल हैं.

टीएमसी के सांसदों ने संसद परिसर में गांधी प्रतिमा के सामने धरना भी दिया है. टीएमसी सांसदो का एक दल हालात का जायज़ा लेने के लिए असम जा रहा है. ऐसा लग रहा है कि एनआरसी का मसला एकबार फिर बीजेपी और टीएमसी के बीच फ्लैश प्वाइंट बनता जा रहा है. टीएमसी उन 40 लाख लोगों को बंगाल में बसाने की पेशकश कर रही है. वहीं बीजेपी बंगाल में एनआरसी जैसी प्रक्रिया अपनाने को लेकर बयानबाज़ी कर रही है. हालांकि इस पूरे राजनीतिक माहौल में कांग्रेस अलग-थलग दिखाई दे रही है. वैसे राज्यसभा में कांग्रेस ने इस मसले को पुरज़ोर ढंग से उठाने का प्रयास किया है.

ममता-माया साथ-साथ

इस पूरे मामले में ममता बनर्जी ने राजनीतिक बाज़ी मार ली है. ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. इस मुद्दे पर विपक्ष उनके पीछे खड़ा हुआ है. मायावती ने सरकार से सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग की है. मायावती ने ममता के सुर में सुर मिलाया है. दोनों का आरोप है कि सरकार इस मुद्दे को धार्मिक रंग देने की कोशिश कर रही है. मायावती ने आरोप लगाया है कि सरकार इसका चुनावी फायदा उठाना चाहती है. बीएसपी की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि असम में रह रहे 40 लाख से अधिक धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के नागरिकता को ही समाप्त करके बीजेपी की केंद्र और असम सरकार ने अपनी स्थापना के संकीर्ण और विभाजनकारी राजनीतिक मकसद को हासिल कर लिया है. लेकिन इससे जो नई उन्मादी समस्या पैदा हो रही है उसके दुष्प्रभाव को संभालना मुश्किल होगा. इसलिए सरकार को बैठक बुलाकर इसपर सुरक्षात्मक कार्रवाई करनी चाहिए.

बीजेपी का रूख सख्त

इस मसले को लेकर राज्यसभा में भी काफी हंगामा हुआ है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेस को घेरा है. अमित शाह ने कहा कि एनआरसी कांग्रेस लेकर आई है. ये राजीव गांधी के वक्त असम एकॉर्ड का हिस्सा था. लेकिन इसको लागू नहीं किया गया था. बीजेपी की सरकार आने पर लागू किया गया है, क्योंकि बीजेपी ने हिम्मत दिखाई है.

ज़ाहिर है कि अमित शाह को लग रहा है कि बीजेपी के लिए एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा साबित हो सकता है इसलिए बीजेपी इस मसले पर कांग्रेस को घेर रही है. बीजेपी को चुनाव से पहले इतना बढ़िया मुद्दा नहीं मिल सकता है. बीजेपी लगातार कहती रही है कि असम में अवैध रूप से विदेशी बंग्लादेशी नागरिक रह रहे हैं, जिससे निजात पाना ज़रूरी है. हालांकि, एनआरसी का ये फाइनल ड्राफ्ट नहीं है लेकिन 40 लाख लोगों की नागरिकता पर सवाल खड़ा हो गया है. बीजेपी ने इस मुद्दे को बढ़ाते हुए बंगाल को भी घेरने की कोशिश की है. बीजेपी के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि बीजेपी को बंगाल की सत्ता हासिल हुई तो राज्य में एनआरसी की व्यवस्था लागू करेगी. ज़ाहिर है कि निशाने पर ममता बनर्जी हैं. बीजेपी का आरोप है कि टीएमसी अवैध रूप से रह रहे लोगों को भारत में बसाने का प्रयास कर रही है. बंगाल में बीजेपी की जद्दोजहद जारी है. पार्टी अपने विस्तार के लिए मुद्दों की तलाश में है.

राजनैतिक मुद्दे गँवाती कांग्रेस

इस मसले को लेकर कांग्रेस परेशान है. बंगाल में पार्टी की स्थिति और खराब हो सकती है. इसका उदाहरण संसद परिसर में देखने को मिला है. जब केंद्रीय राज्यमंत्री अश्विनी चौबे और कांग्रेस के नेता प्रदीप भट्टाचार्य में तीखी बहस हो गई. इससे पता चलता है कि कांग्रेस के बंगाल के नेता किस तरह दबाव में हैं. कांग्रेस को लग रहा है कि बंगाल में बचा-खुचा कांग्रेस का मुस्लिम वोट टीएमसी में शिफ्ट कर सकता है.

राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि मनमोहन सिंह ने इसकी शुरूआत की थी. ये असम समझौते का हिस्सा था लेकिन जिस तरह इसको अमली जामा पहनाया गया है, ये सही नहीं है. कांग्रेस ने इस मसले को ज़ोरदार ढंग से उठाया है. लेकिन इसका कांग्रेस को राजनीतिक फायदा होगा ये कहना मुश्किल है. राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आज़ाद ने नपे-तुले शब्दों का इस्तेमाल किया है. गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि एनआरसी को लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिए, इसका इस्तेमाल वोट बैंक के तौर पर नहीं किया जाना चाहिए. ये मानवाधिकार का मामला है, हिंदू मुस्लिम का नहीं है. कांग्रेस को लग रहा है ये मसले पार्टी के लिए दोधारी तलवार हैं. अगर बोले तो बीजेपी मुस्लिमपरस्त साबित करने की कोशिश करेगी. अगर नहीं बोले तो पार्टी के धर्मनिरपेक्षता वाली छवि को नुकसान हो सकता है.

गोगोई ने की हिटविकेट 

असम में ज्यादातर लोग इस हंगामे के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार मानते हैं. कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के बयान से पार्टी की जान सांसत में है. पंद्रह साल राज्य के मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई ने कहा कि एनआरसी कांग्रेस लेकर आई थी. हालांकि इस तरह से लोगों के बेदखल करने का विरोध पूर्व मुख्यमंत्री ने किया है. लेकिन कांग्रेस के हाथ से ये मुद्दा निकल गया है. कुल मिलाकर इस मसले पर कांग्रेस फंस गई है. कांग्रेस को नहीं लग रहा था कि इतनी बड़ी तादाद में लोग रजिस्टर से बाहर हो जाएंगे, जो राजनीतिक बिसात बिछाने की कोशिश तरुण गोगई ने की थी, उसका फायदा बीजेपी ने उठा लिया है. कांग्रेस के हाथ में कुछ नहीं आया है.

जानकार कहते हैं कि तरुण गोगोई ने एआईयूडीएफ के विरोध में कांग्रेस को असम में बहुसंख्यक पार्टी बनाने की तैयारी की थी. लेकिन बीजेपी के हिंदुत्व के आगे गोगोई की ये चाल फेल हो गई है. कांग्रेस के पास हाथ मलने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है. हालांकि मुस्लिम जमात इस मसले पर अभी सरकार के रुख का इंतज़ार कर रहे हैं. जमीयत उलेमा हिंद के अरशद मदनी ने कहा है कि घबराने की जरूरत नहीं है. अभी ये फाइनल लिस्ट नहीं है. जमीयत के कार्यकर्ता सभी को अपना नागरिकता साबित करने में मदद करेंगे इसलिए लोग संयम से काम लें. गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी कहा है कि ये फाइनल लिस्ट नहीं है.

भाजपा को घेरने आए विपक्ष भाजपा से ही घिर गई


राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के मुद्दे को लेकर संसद से सड़क तक संग्राम छिड़ा है.


राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के मुद्दे को लेकर संसद लेकर सड़क तक संग्राम छिड़ा है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने राज्यसभा में जैसे ही इस मुद्दे पर बोलना शुरू किया, हंगामा तेज हो गया. हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही अगले दिन तक के लिए स्थगित करनी पड़ी.

आखिर विपक्षी दल एनआरसी के मुद्दे पर इतना हंगामा क्यों कर रहे हैं. विपक्षी दल लगातार बीजेपी पर हमलावर क्यों है. ये चंद सवाल हैं जिसको लेकर गुवाहाटी से लेकर दिल्ली तक की राजनीति गर्म है.

दरअसल, असम में एनआरसी का अंतिम मसौदा जारी करने के बाद से ही हंगामा तेज हो गया है. इस मसौदे के मुताबिक 2 करोड़ 89 लाख 83 हजार 677 लोगों को भारत का वैध नागरिक मान लिया गया है. हालांकि, वैध नागरिकता के लिए 3,29,91,384 लोगों ने आवेदन किया था, लेकिन, इनमें से 40,07,707 लोग यह साबित नहीं कर पाए कि वे भारत के नागरिक हैं.

एनआरएसी के नए ड्राफ्ट के हिसाब से अब चालीस लाख से ज्यादा लोगों को बेघर होना पड़ेगा. इसी के बाद हंगामा तेज हो गया है. विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरना शुरू कर दिया है. कांग्रेस से लेकर टीएमसी तक और एसपी-बीएसपी तक सबकी तरफ से सरकार पर हमला तेज कर दिया गया है.

विपक्षी दलों ने एनआरएसी के मुद्दे को लेकर सरकार पर राजनीति करने का आरोप लगाया है, जबकि सरकार की तरफ से सफाई यही दी जा रही है कि यह सबकुछ सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रहा है.

बात पहले विपक्ष की करें तो इस मुद्दे पर कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने इस मुद्दे पर चर्चा के दौरान कहा कि एनआरसी को लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिए और इसका इस्तेमाल वोट बैंक के तौर पर नहीं किया जाना चाहिए. ये मानवाधिकार का मामला है, हिंदू-मुस्लिम का नहीं. कांग्रेस की तरफ से इस मुद्दे पर बीजेपी को घेरा जा रहा है. सरकार पर ध्रुवीकरण की राजनीति का आरोप लगाया जा रहा है.

उधर, टीएमसी ने भी इस मुद्दे को लेकर हंगामा शुरू कर दिया है. टीएमसी ने इस मुद्दे को लेकर संसद परिसर में धरना भी दिया. राज्यसभा में इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है, लेकिन, अब लोकसभा के भीतर भी टीएमसी इस मुद्दे पर चर्चा चाहती है.

असम में भारतीय नागरिकता साबित करने को लेकर एनआरसी तैयार हो रहा है, लेकिन, इसका असर पश्चिम बंगाल में भी दिख रहा है. पश्चिम बंगाल में भी अवैध रूप से रह-रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों की तादाद को लेकर सियासत होती रही है. अब जबकि बीजेपी नेताओं की तरफ से असम की ही तर्ज पर पश्चिम बंगाल में भी ऐसा करने की बात कही जा रही है तो फिर टीएमसी इस मुद्दे पर पलटवार कर रही है.

लेकिन, टीएमसी ही नहीं इस मुद्दे पर एसपी, बीएएसपी और आरजेडी जैसे विरोधी दल भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. मायावती ने इसे बीजेपी और आरएसएस की विभाजनकारी नीतियों का परिणाम बताया है. समाजवादी पार्टी सांसद रामगोपाल यादव ने भी सरकार पर एनआरसी के मुद्दे को लेकर हमला बोला है.

लेकिन, विपक्ष के हमले का बीजेपी भी अपने अंदाज में जवाब दे रही है. राज्यसभा में चर्चा के दौरान बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने जैसे ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम लिया वैसे ही सदन में कांग्रेस के सदस्यों ने हंगामा कर दिया. अमित शाह ने कहा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 14 अगस्त 1985 को असम समझौते पर हस्ताक्षर किया था, जिसकी आत्मा एनआरसी है. उन्होंने कहा कि अवैध घुसपैठियों की पहचान की बात इसमें की गई थी. अमित शाह ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि आपमें हिम्मत नहीं थी इसलिए आप इस पर आगे नहीं बढ़ पाए, लेकिन, हमारे अंदर हिम्मत है तो हम इस पर आगे बढ पा रहे हैं.

बीजेपी अध्यक्ष के संसद के भीतर कांग्रेस को घेरने के बाद कांग्रेसी सांसद राज्यसभा में वेल में आ गए. हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी गई. लेकिन, बीजेपी इस मुद्दे पर विपक्ष को घेरने की पूरी कोशिश कर रही है. उसे लगता है कि इस मुद्दे पर जितनी चर्चा होगी, विपक्ष उतना ही बैकफुट पर जाएगा. लिहाजा बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अलग से प्रेस कांफ्रेस बुलाकर इस मुद्दे पर विपक्ष के रवैये को लेकर सवाल खड़ा कर दिया.

बीजेपी इस मुद्दे पर असम समेत पूरे नॉर्थ-ईस्ट में विपक्ष पर बढ़त लेना चाहती है. भले ही यह सबकुछ सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रहा है, लेकिन, अवैध रूप से भारत में रह रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे को बीजेपी पहले से ही उठाती रही है. एनआरसी के मुद्दे पर भले ही हंगामा कर विपक्ष की तरफ से बीजेपी को घेरने की कोशिश हो रही है, लेकिन,इस मुद्दे पर बीजेपी को सियासी फायदा ही मिलने वाला है, क्योंकि यह उसके मुख्य मुद्दे में से एक रहा है.

असम में ममता बनर्जी पर FIR


असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) का दूसरा और आखिरी ड्राफ्ट जारी हो चुका है. इसमें 3.29 करोड़ आवेदकों में से 2.90 करोड़ आवेदक वैध पाए गए हैं. 40 लाख आवेदकों का नाम ड्राफ्ट से गायब है


असम NRC मुद्दे पर डिब्रुगढ़ जिले के नाहरकटिया पुलिस थाने में ममता बनर्जी के खिलाफ एफआईआर हुआ है. ममता पर प्रदेश की सांप्रदायिक सद्भावना को नुकसान पहुंचाने की कोशिश का आरोप लगाया गया है.

यह एफआईआर जगदीश सिंह, मृदुल कलिता और अमुल्य चेंगलारी नाम के तीन लोगों ने दर्ज करवाई है. ये तीनों बीजेपी युवा मोर्चा के सदस्य बताए जा रहे हैं. एफआईआर के मुताबिक ममता बनर्जी असम में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने और NRC की शांतिपूर्ण प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही हैं. ममता बनर्जी ने एनआरसी से 40 लाख लोगों को बाहर रखने पर केंद्र सरकार पर आरोप लगाया था.

क्या कहा था ममता ने?

दिल्ली स्थित कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में ममता बनर्जी ने कहा कि बंगाली ही नहीं अल्पसंख्यकों, हिंदुओं और बिहारियों को भी एनआरसी से बाहर रखा गया है. 40 लाख से ज्यादा लोगो जिन्होंने कल सत्ताधारी पार्टी के लिए वोट किया था आज उन्हें अपने ही देश में रिफ्यूजी बना दिया गया है. ममता ने कहा, ‘वे लोग देश को बांटने की कोशिश कर रहे हैं. यह जारी रहा तो देश में खून की नदियां बहेंगी, देश में सिविल वॉर शुरू हो जाएगा.’

ममता बनर्जी ने NRC पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि जिन 40 लाख लोगों के नाम एनआरसी से बाहर किए गए हैं वे नेहरू-लियाकत पैक्ट, इंदिरा पैक्ट के मुताबिक वे भारतीय नागरिक हैं. बिहार, तमिलनाडु और राजस्थान के कई लोगों के नाम वहां नहीं हैं. उन्होंने कहा कि अगर बंगाली कहें कि वे बंगाल में नहीं रह सकते, अगर दक्षिण भारतीय कहें कि वे उत्तर भारतीयों को नहीं रहने दे सकते इस देश के हालात कैसे होंगे? अगर हम साथ रह रहे हैं तो यह देश हमारे लिए परिवार की तरह है.

कौन सी गलती करना चाहती हैं ममता?

ममता ने यह भी कहा कि किसी भी अच्छी वजह के लिए लड़ना गलत है तो हम ये गलती करेंगे. उन्होंने नाम न लेते हुए कहा कि सिर्फ एक ही पार्टी के सदस्यों का अधिकार है कि वे देश से प्यार करें.

असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) का दूसरा और आखिरी ड्राफ्ट जारी हो चुका है. इसमें 3.29 करोड़ आवेदकों में से 2.90 करोड़ आवेदक वैध पाए गए हैं. 40 लाख आवेदकों का नाम ड्राफ्ट से गायब है. असम में एनआरसी का पहला ड्राफ्ट पिछले साल दिसंबर के आखिर में जारी हुआ था. पहले ड्राफ्ट में 3.29 करोड़ आवेदकों में से 1.9 करोड़ लोगों के नाम शामिल किए गए थे.

राफेल डील पर सुरजेवाला के सवालों का जवाब दें पीएम मोदी : शत्रुघ्न सिन्हा


राफेल डील पर शत्रुघ्न सिन्हा ने उठाए सवाल, बोले- सुरजेवाला के सवाल तार्किक, ‘खामोश’ क्यों हैं पीएम मोदी


31 जुलाई 2018

नई दिल्ली : अपनी ही पार्टी (भाजपा) के खिलाफ बागी तेवर रखने वाले शत्रुघ्न सिन्हा ने राफेल डील मामले को लेकर सवाल किए हैं।और कांग्रेस के कंधे पर बंदूक रखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है।

शत्रुघ्न सिन्हा ने मंगलवार को एक के बाद एक कई ट्वीट करके कहा कि कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी श्री रणदीप सिंह सुरजेवाला ने राफेल डील को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं। और उनके आरोपों में दिए गए तथ्य तार्किक लगते हैं। उन्होंने कहा कि इस कारण प्रधानमंत्री को जल्द से जल्द जवाब देकर स्थिति साफ करनी चाहिए।

शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने ट्वीट में लिखा, ‘सर (पीएम मोदी) हम इस मुश्किल और चिंताजनक स्थिति का मुकाबला करने के लिए अपने दिशानिर्देश और उत्तर का इंतजार कर रहे हैं। हमेशा की तरह आपके ‘खामोश’ रहने से समस्या के समाधान में मदद नहीं मिलेगी। उन्होंने कहा, सुरजेवाला ने यह भी आरोप लगाया है कि हमारे कुछ ईमानदार ब्यूरोक्रेट्स संवेदनशील दस्तावेजों, फाइलों, कागजातों को आगे लीक कर रहे हैं।

सिन्हा ने कहा कि क्या हम अपने लोगों और देश पर पकड़ खो रहे हैं? उन्होंने कहा कि ये आरोप वजनदार हैं और इनके जवाब तुरंत देने चाहिए। कांग्रेस के आरोपों की तारीफ करते हुए सिन्हा ने कहा कि कांग्रेस ने अत्यंत स्पष्टता, तथ्यों और भरोसे साथ आरोप लगाए हैं।

गौरतलब है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी श्री रणदीप सिंह सुरजेवाला ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि 60,145 करोड़ रु. की राफेल डील ने साबित कर दिया कि ‘कल्चर ऑफ क्रोनी कैपिटलिज़्म’ यानी 3C मोदी सरकार का डीएनए बन गया है। उन्होंने कहा कि इस डील में भ्रष्टाचार उसी समय उजागर हो गया जब इससे सरकारी कंपनी एचएएल को दरकिनार कर दिया गया और ये कॉन्ट्रैक्ट एक ऐसी कंपनी को दे दिया गया, जिसे इस क्षेत्र का कोई अनुभव नहीं था।